18 जनवरी
11.2
वरदाता शिवबाबा, सर्व बच्चों को अशरीरी, निराकारी, निरहंकारी और निर्विकारी
बनने का वरदान देते हैं । ब्रहमा बाबा ने इस वरदान को अपने जीवन में
प्रत्यक्ष किया, अर्थात, वे ज्ञान स्वरूप, याद स्वरूप और वरदानी मूर्त बन
गए । जो कोई भी उनके सामने जाता था तो उनके मस्तक के मध्य मणि को देखता था
और आँखों में प्रचंड अग्नि देखता था और उनके होठों से वरदानी बोल सुनता था
।
कर्म
में गुण: साक्षी दृष्टा
अब बाप समान बनना ही ईश्वरीय सेवा को समाप्त करने की विधि है । जब आपको यह
स्मृति है कि आपको निराकारी दुनिया में जाना है, तो आप स्वत: सभी सम्बन्धों
से और गृहस्थी के सर्व आर्कषणों से पार हो जाऐंगे अर्थात साक्षी दृष्टा बन
जाऐंगे । साक्षी दृष्टा बनने से बाप समान और बाप के साथी बन जाऐंगे । सभी
को आप प्रचंड अग्नि के रूप में प्रतीत होंगे । इसलिए आपकी अन्तिम अवस्था
सर्व बंधनों से पार जाने की है: कर्मातीत, निराकारी और निर्विकारी अवस्था ।
अब ऐसी अवस्था बनानी है और फिर आप सहजता से विनाश के और नई दुनिया के नज़ारे
देख सकेंगे ।
17 जनवरी
11.1 ब्रहमा बाबा के आखरी शब्द थे “निराकारी, निर्विकारी, निरंहकारी,” जो
हमें बाबा के गहन और गुप्त पुरूषार्थ की याद दिलाते हैं जिससे उन्होंने
कर्मातीत और फरिश्ता स्वरूप को पाया । पहले, उन्होंने स्वयं को साकारी
दुनिया में रहते हुए लगातार निराकारी दुनिया का रहवासी समझा । दूसरा,
उन्हें मालूम था कि जब तक आत्मा सम्पूर्ण आत्म अभिमानी नहीं बन जाती है तब
तक सम्पूर्ण निर्विकारी नहीं बन सकते । इसलिए उनका सम्पूर्ण निर्विकारी
बनने का पुरूषार्थ विचारों और भावनाओं के स्तर पर था । जब कोई विकार नहीं
रहा या आत्मा का किसी तत्व की और खिंचाव नहीं रहा, और निराकारी, निरहंकारी
और निर्विकारी अवस्था सहज बन गई तो वे फरिश्ता बन गए ।
कर्म
में गुण: सहज स्वभाव
निराकारी अवस्था आपका सहज स्वभाव बन जाएगी जब आप निरंहकारी बन जाऐंगे ।
बहुत प्रकार का अभिमान या अहंकार होता है । बहुत बच्चों में मोह या
देहअहंकार का प्रत्यक्ष स्वरूप नहीं है लेकिन उनमें विशेष बुद्धि होने
का, विशेष संस्कार, विशेष गुण, विशेष हुनर या विशेष शक्तियाँ होने का
अहंकार और नशा है । यह भी देह का सूक्ष्म अहंकार है । यह अहंकार आपको
सूक्ष्म फरिश्ते की अवस्था अनुभव करने या निराकारी अवस्था अनुभव करने नहीं
देता । तो जाँच करें कि किसी भी प्रकार के अहंकार का नामो निशान नहीं रहे
। अगर थोड़ा भी है तो कभी न कभी आप इससे धोखा खा लेंगे । तो इसलिए अपना
लक्ष्य और लक्षण समान बनाऐं और फिर आप बाप समान बन जाऐंगे ।
16 जनवरी
10.3 ब्रहमा बाबा एवर रेडी थे और बंधनमुक्त थे । आपने उनके बंधन मुक्त
होने के सीन अंत में देखे । एवर रेडी होने में उन्हें कितना समय लगा ।
कोई भी बंधन उन्हें नीचे खींच नहीं पाया । आपने उनका एवर रेडी और कर्मातीत
का पार्ट देखा । आपने देखा कि कैसे उन्होंने सर्व किनारों से दूर होकर
एक बाप को अपना सहारा बनाया ।
कर्म
में गुण: सहारा
आप स्वयं को इस हद तक एवर रेडी रखें कि अंत घड़ी कभी भी आ सकती है । इंतज़ार
नहीं इंतज़ाम करना आरम्भ कर दें । केवल सेवा में एवर रेडी नहीं बनना
है, लेकिन अपने संस्कारों को परिवर्तन करने में भी एवर रेडी बनें । एवर
रेडी बननें के लिए आपको अपने संस्कारों को एक सेकंड में रोकना होगा । जिस
प्रकार फौजियों के बोरिया बिस्तर सदैव तैयार रहते हैं क्योंकि किसी समय
भी उनका स्थान बदला जा सकता है, उसी प्रकार आपके विचार भी तैयार रहने
चाहिऐं । तब आप एक के सहारे के साथ एवर रेडी कहे जा सकेंगे ।
15 जनवरी
10.2 जब भी ब्रहमा बाबा ने, चाहे किसी परिस्थिति के द्वारा, किसी
प्राकृतिक आपदा के द्वारा या शरीर के किसी कर्मभोग द्वारा किसी परीक्षा
का सामना किया तो फुल स्टाप लगाने के लिए पहले से ही तैयार थे और हर
प्रकार की परीक्षा को पुरे अंकों से पास किया । वे इस हद तक एवर रेडी थे
कि हर प्रकार की परीक्षा में वे सदा खुश रहे ।
कर्म
में गुण: हर्षित रहना
जिस प्रकार समय किसी का इंतज़ार नहीं करता, यह चलता ही रहता है, इसी प्रकार
आप स्वयं से पूछें कि माया के किसी विघ्न से आप रूक तो नहीं गए हैं । जब
भी माया का कोई विघ्न आता है, चाहे बाहय रूप से या सूक्ष्म रूप से या माया
वार करती है तब स्वयं को अपने ऊँचे स्वमान में स्थित कर लें और सदा हर्षित
रहें । जो आत्माऐं बाप समान एवर रेडी रहती हैं उन्हें बाप बीज रूप अवस्था
में स्थित कर देते हैं और गहरे प्रेम से उनके कर्मों के हिसाब किताब के पेड़
को समाप्त कर देते हैं ।
14 जनवरी
10.1
ब्रहमा बाबा हमेशा एवर रेडी रहे, अर्थात, सर्व गुण सम्पन्न । श्रीमत के
आधार पर स्वयं को जब चाहे किसी भी अवस्था में स्थित कर सकते थे । उनके
विचार अनुशासित थे और पूर्णतया श्रीमत के आधार पर थे । शरीर के अंगों का
उपयोग उनके नियंत्रण में था । वे जितनी देर चाहें उतनी देर एक के साथ अपना
बुद्धियोग लगा सकते थे । इस प्रकार एवर रेडी रहते हुए उन्होंने प्रत्येक
क्षण को अविनाशी बना दिया अर्थात परमात्मा की याद में बीता हर पल वह पल बन
गया जिसकी पुनरावृत्ति अनंतकाल तक होती रहेगी ।
कर्म
में गुण: प्राप्ति
सदा ऐवर रेडी का अर्थ है सदा सर्व गुणों से भरपूर रहना, क्योंकि किसी भी
समय आपको उनका प्रयोग करने की आवश्यकता पड़ सकती है । बाप की तरह एवर रेडी
बनने के लिए अपने पास तीन प्राप्तियाँ सदा रखें: 1) लाइट, 2) माइट, और 3)
डिवाईन इनसाइट (दिव्य समझ) । अगर आपके पास ये तीनों हैं और मार्ग पर
प्रगति करते हुए आप इनका सही प्रकार से प्रयोग करते हैं तो आप कभी धोखा नहीं
खा सकते । आप सदा श्रीमत अनुसार सही दिशा में आगे बढ़ेंगे ।
13 जनवरी
9.3
ब्रहमा बाबा ने अपने विचारों, शब्दों या कर्मों में ना तो कोई बात
मुश्किल अनुभव की ना ही कभी किसी मुश्किल का कोई ज़िक्र किया । अपने
आध्यात्मिक जीवन के आरम्भ में ऐसा लगा कि सारा संसार एक तरफ है और बाबा
दूसरी तरफ । लेकिन तब भी, उन्हें कोई बात मुश्किल अनुभव नहीं हुई और
इसलिए निरूत्साहित और आशाहीन नहीं बनें । उन्हें सदा याद रहा कि यह भगवान
का कार्य है, उनका वायदा था मुश्किल को आसान बनाने का और सूली को काँटा
बनाने का ।
कर्म
में गुण: उमंग-उत्साह
जिस प्रकार एक स्विच को दबाने से अंधेरा मिट जाता है, उसी प्रकार जब भी
कोई परिस्थिति अंधेरे, दुख, अशांति, उलझन या तनाव के रूप में आकर आपको
नाउम्मीदवार बना देती है तो बस एक शब्द याद करें “बाबा” । यह ऐसा जादुई
मंत्र है जिससे आप हर परिस्थिति पर एक सेकंड में विजय प्राप्त कर सकते हैं
। बस सही विधि से इस जादुई मंत्र का प्रयोग करें । ब्राहमण जीवन का
श्वाँस उमंग उत्साह है । अगर उमंग-उत्साह की कमी है, तो ब्रहामण जीवन का
कोई मज़ा नहीं है । क्योंकि अभी आप उस बाप के बने हो जो सभी उम्मीदें पूरी
करने वाला है तो आप नाउम्मीदवार कैसे बन सकते हैं?
12 जनवरी
9.2
ब्रहमा बाबा ने कमज़ोर, निरूत्साहित और नाउम्मीद में सदा आशा रखी ।
उन्होंने बच्चों को सदा उम्मीद रखने को कहा ताकि वे बाप से मदद प्राप्त
कर सकें और तीव्र पुरूषार्थी बन सकें । जिन्होंने उम्मीद रखी उन्हें
दाता की ओर से पुरस्कार में सौगात और वरदान प्राप्त हुए ।
कर्म
में गुण: धैर्यता
चाहे दूसरों के संस्कार कितने ही कड़वे क्यों न हों, अपनी बाप समान, धैर्यता
से भरपूर और कल्याणकारी, अवस्था के आधार से, उन्हें आप परिवर्तन कर दें
और समीप लाऐं । जब कोई किसी नाउम्मीद को उम्मीदवार बना देता है, तो
असम्भव को सम्भव करने के लिए उसकी सराहना होती है । यह कोई बड़ी बात नहीं
है कि जो आशावान हैं उनके साथ अच्छा व्यवहार करना या उनके साथ चलना जो
अच्छी उन्नती कर रहें हैं । बड़ी बात है अपनी ऊँची अवस्था और वृत्ति से
जो नाउम्मीद हैं उनमें उम्मीद पैदा करना । जैसे होमीओपैथी की छोटी गोलियाँ
बड़ी बड़ी बीमारीयों को समाप्त कर देती हैं, तो आप मास्टर सर्वशक्तिमान
आत्माऐं अपनी स्मृति और वृत्ति से किसी के कड़वे संस्कारों की बीमारी ठीक
नहीं कर सकते?
11 जनवरी
9.1 ब्रहमा बाबा ने किसी की भी कमी कमज़ारी अपने हृदय में नहीं रखी ।
दिलाराम की सन्तान होने के नाते, उन्होंने बच्चों के दिलों को सदा आराम
दिया और उनकी क्षमताओं में उम्मीद जताई, इस प्रकार उनको हिम्मत दी और आगे
बढाया । उनके शब्दों और दृष्टि से सदा वरदान ही प्रकट हुए ।
कर्म
में गुण: करूणा
दूसरों में उम्मीद की ज्योति जलाने में बाप को फॉलो करो । जिन्हें
ब्रहामणों की असली धारणा में उम्मीद नहीं है उनमें उम्मीद जगाना । किसी
की भी कमियों को अपने हृदय में नहीं रखें, बल्कि ब्रहमा बाबा की तरह एक
दूसरे के हृदय को आराम दें । ऐसा बनें जिसमें दूसरों के लिए सदा
उम्मीद बनी रहती है और जिनमें हिम्मत नहीं है उनका सहारा बनें । आपको
दूसरों की कमियों के बारे में कभी बात नहीं करनी चाहिए, चाहे वे आपके साथी
हों या सम्पर्क वाले । कमियों को समा लें और करूणामय बनें ।
10 जनवरी
8.3 ब्रहमा बाबा की सम्पूर्ण सम्पर्णता के कारण ही उन्हें इस रूप में याद
किया जाता है जिसने पहाड़ को भी गला दिया । अर्थात उन्होंने सम्पूर्णता
की अव्यक्त स्थिति को पाया । श्रेष्ठ कार्य के लिए एक ही झट से उन्होंने
अपना तन, मन, धन, सम्बन्ध और समय समर्पित कर दिया । और एक ही पल में बाबा
ने आध्यात्मिक समानता को प्राप्त किया । समर्पण होने के बाद श्रीमत
प्राथमिकता बन गई । उनके मन, बुद्धि और हृदय में शिवबाबा के गुणों, कार्यों
और सम्बन्धों के सिवाय कुछ नहीं था ।
कर्म
में गुण: ट्रस्टी
जब आप कुछ समर्पित कर देते हैं तो उस वस्तु से आपका स्वयं का और दूसरों का
अधिकार समाप्त हो जाता है । जब तक आपका या दूसरों को उस पर अधिकार है तो
इससे सिद्ध होता है कि आपने सम्पूर्ण समर्पण नहीं किया है, और इसलिए
आध्यात्मिक समानता नहीं आई है । जो बहुत अधिक सोच विचार करके समर्पण करते
हैं वे अपने विचारों के कारण की अपने पुरूषार्थ में विघ्नों का अनुभव करते
हैं । उनकी सोच उन्हें सार से विस्तार में ले जाती है । ब्रहमा बाबा को
फॉलो करें और उनकी तरह ही समर्पित होने की शक्ति को आत्मसात करें ।
9 जनवरी
8.2 ब्रहमा बाबा ने “मैं” और “मेरेपन” का सम्पूर्ण त्याग किया । उन्होंने
अनुभव किया कि जितना “मैंपन” का भाव उन्होंने शिवबाबा की याद में विलय कर
दिया उतना ही वे बाप समान मूर्त बन गऐ । उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व बाप
के प्रकाश में समा गया, और उनके नयन निश्चल हो गऐ । उनकी बुद्धि बहुत
पवित्र और शुद्ध थी, क्योंकि उसमें एक के सिवाय कोई भी उपस्थित नहीं था ।
कर्म
में गुण: समर्पण
बाबा को अपना प्रत्येक विचार और प्रत्येक कदम समर्पित कर दें । जो कुछ भी
आप सोचें और जो कुछ भी आप करें उसमें यह स्मृति रहे कि यह बाबा का कार्य
है । आपके संस्कार जितने अधिक समर्पणता के होंगे, उतना अधिक शक्तिशाली
आपका आईना होगा, अर्थात, वह आईना जो बाबा को प्रतिबिम्बित करे । फिर
आपका हर विचार और कर्म निमित्त भाव से होगा ।
8 जनवरी
8.1 साकार ब्रहमा बाबा ने एक शब्द ‘समर्पण’ को गहराई से आत्मसात किया
और अपनी कर्मातीत अवस्था के लक्ष्य को प्राप्त किया । सम्पूर्ण समर्पण के
लक्ष्य से वे सम्पूर्ण बन गए । सम्पूर्ण समर्पण अर्थात अपना सब कुछ
शिवबाबा को ‘विल’ कर दिया, यहाँ तक की विचारों के स्तर पर भी । बदले
में उन्हें आध्यात्मिक अथॉरीटी प्राप्त हुई ।
कर्म
में गुण: शक्ति
सम्पूर्ण समर्पण अर्थात माया की शक्ति को त्याग देना । माया की बलि नहीं
बनें बल्कि भगवान की शक्ति से शक्तिशाली बनें । सम्पूर्ण समर्पण होने के
लिए तीन शिक्षाऐं सदा याद रखें: 1) अपने मन के लिए, शरीर और शरीर के सभी
सम्बन्धों का त्याग कर दें और निरंतर एक को याद करें । 2) अपने शब्दों
के लिए, ज्ञान रत्नों का दान करें । 3) अपने कर्मों के लिए, याद रखें जो
कुछ भी आप करेंगे, आप उसका फल पाऐंगे । इन तीन शिक्षाओं को जीवन में लागू
कर के आप उन की सूची में आ जाऐंगे जिन्होने स्वयं को समर्पित किया है ।
7 जनवरी
7.3
ब्रहमा बाबा का भगवान के साथ सबसे गहरा सम्बन्ध मानवता के वृक्ष के बीज के
रूप में था । जिस प्रकार एक बीज में सारे झाड़ का सार होता है, फल की
संभावना भी उसी में निहित होती है उसी प्रकार भगवान बीज भी सभी गुणों और
आध्यात्मिक शक्तिओं से भरपूर होता है । ब्रहमा बाबा की शुभ कामनाओं औा
कल्याणकारी भावनाओं का लक्ष्य कमज़ोर आत्माओं को शक्तिशाली बनाना, उदास
आत्माओं को खुश करना और क्रोधी अत्माओं को शांत करना होता था । उनकी
शुद्ध मंशा बिना किसी शर्त के लाभ पहुँचाना था ।
कर्म में गुण: वर्तमान समय के अनुसार, संसार की आत्माओं में बहुत भय और
चिंता है । जितना उनमें भय और चिंता है उतना ही आप वह हैं जिनमें शुभ
कामनाऐं और कल्याणकारी भावनाऐं हैं । ऐसे समय पर जब चारों ओर दुख के पहाड़
टूट रहे हैं, हमारे भाइयों और बहनों को ब्रहामणों की आवश्यकता है जो उन्हें
शांति और सुख का आश्वासन दे सकें ।
6 जनवरी
7.2
ब्रहमा बाबा लाइट हाऊस की तरह थे । विश्व की बेहद सेवा करने का आधार है
हरेक के लिए शुभ भावना रखना । ब्रहमा बाबा कई प्रकार की आत्माओं के
सम्पर्क में आते थे, और उन्होंने अपने श्रेष्ठ विचारों की किरणों से
दूसरों को निरंतर आत्मविश्वास, हिम्मत, शक्ति और सहारा दिया ।
कर्म
में गुण: लाइट
आप
अपनी शुभ भावनाओं, शुभ कामनाओं, ऊँच वृत्ति और आध्यात्मिक प्रकम्पन्न
से आत्माओं की सेवा कर सकते हैं । एक स्थान पर रहते हुए लाइट हाऊस बहुत
दूर तक सेवा कर सकता है । इसी प्रकार, आप भी एक स्थान पर रहते हुए बहुतों
की सेवा के निमित्त बन सकते हैं । बस आपको लाईट माईट से भरपूर रहना है ।
आपको मनमनाभव के स्वरूप में टिकना है ।
5 जनवरी
7.1
अपने ऊँच विचारों से ब्रहमा बाबा ने सारे विश्व की सेवा की और उन्होंने
सभी के लिए शुभ भावना, शुभ कामना रखी । उनके आध्यात्मिक प्रकम्पन्न संसार
के चारों कोनो में सूर्य की किरणों की भाँति फैले ।
कर्म
में गुण: सेवा
आज संसार को उन आत्माओं की आवश्यकता है जिनमें शुभ भावना हो । मनसा द्वारा
आप चलते फिरते सभी आत्माओं की सेवा कर सकते हैं । आपकी शुभ भावना के
प्रकम्पन्न सहजता से वातावरण को परिवर्तन कर सकते हैं । आपके श्रेष्ठ
विचार और शुभ भावनाऐं बहुत सी आत्माओं के दुख दूर करने का आधार बन जाते
हैं । इस सूक्ष्म सेवा के कारण विश्व आपको अत्याधिक प्रेम करने लगता है ।
जो भी आपके सम्पर्क में आऐगा उसे ऐसा महसूस होगा कि विश्व में आप जितनी
दुआऐं किसी के पास नहीं हैं ।
4 जनवरी
6.3 ब्रहमा बाबा ने सदा सोचा, “मेरे पीछे और मेरे आगे समस्त संसार है
। जो भी कर्म मैं करूँगा दूसरे भी मुझे देखकर वही करेंगे ।” अपना पार्ट
बजाते हुए उन्होंने पूरी सावधानी बरती । हर समय प्रत्येक कर्म पर ध्यान
दिया ।
कर्म
में गुण: यथार्थता
हर कर्म में यर्थाथ होने के लिए, मन में उत्पन्न होने वाले विचारों पर
ध्यान दें और सावधानी से विचार करने के बाद ही उन पर अमल करें । जिस
प्रकार एक न्यायधीश बहुत सोच विचार के बाद ही अपना निर्णय सुनाता है उसी
प्रकार आप स्वयं अपने विचारों के न्यायधीश बनें । जब आप सावधानी से
विचार विमर्श कर कर्म करते हैं तो हर कर्म यथार्थ होगा । विचार बीज होते
हैं । विचार जीवन का श्रेष्ठ खज़ाना होते हैं । इसलिए, यथार्थ बनने के
लिए अपने विचारों को शक्तिशाली बनाऐं और व्यर्थ सोच को समाप्त करें ।
3 जनवरी
6.2 ब्रहमा बाबा का बहुत बड़ा गुण था: उन्होंने किसी भी कार्य को बाद के
लिए नहीं छोड़ा । उन्होंने सदा ही कहा: “इसे अभी ही करना है ।” ब्रहमा
बाबा ने हर कार्य को उसी समय किया । वह यहाँ तक सावधानी बरतते थे कि अभी
नहीं तो कभी नहीं । उन्होंने कभी नहीं सोचा: “मैं अंतत: कर ही लूँगा;
मैं 10-15 दिन के बाद कर लूँगा ।” नहीं! उन्होंने समय की यथार्थता को समझ
लिया था । उन्होंने प्रत्येक श्वाँस और समय को उपयुक्त तरीके से प्रयोग
किया । समय बहुत शुभ था और इसने ऐसा पुरूषार्थ करने के मौके का भाग्य
दिया जिससे पदम गुणा प्राप्ति हुई ।
कर्म
में गुण: समय
समय अभी समीपता की घंटियाँ बजा रहा है । इसलिए, स्वयं को सुरक्षित रखने
के लिए बहाने बनाना बंद कर दीजीऐ और स्वयं परिवर्तन का लक्ष्य रखें ।
ऐसा नहीं होना चाहिए कि दूसरे बदलें तभी आप बदलें—मुझे स्वयं को परिवर्तन
कर दूसरों को भी प्रेरित करना है । इसमें सदा स्वयं को पहले रखें ।
सम्पूर्ण बनें और समय को समीप ले आऐं । आपको ऐसा नहीं कहना चाहिए कि समय
आपको सम्पूर्ण बना देगा । सावधान रहें, समय से पहले स्वयं को परिवर्तन कर
लें, और फिर प्राप्तियों की प्रचूरता होगी ।
2 जनवरी
6.1 प्रत्येक कार्य करते हुए ब्रहमा बाबा यथार्थ और सतर्क रहे, स्वयं
को अपने कर्म के लिए जिम्मेवार आत्मा समझा है । उन्होंने जिम्मेवारियों
को सबसे बड़े शिक्षक के रूप में देखा । जिम्मेवारी से परिपक्वता आती है और
अलबेलापन समाप्त हो जाता है । अपनी जिम्मेवारियों का निर्वाह करते हुए
ब्रहमा बाबा हल्के रहे । अपनी जिम्मेवारियों को निभाने में और हल्का रहने
में उन्होंने संतुलन बनाऐ रखा । बाप को इस रूप में फॉलो करो ।
कर्म
में गुण: ज़िम्मेवारी
जिस प्रकार संसारिक कार्यों के लिए आप समय सारिणी बनाते हो, उसी प्रकार
आत्मा की उन्नति के लिए भी समय सारिणी बनाऐं । आज, मुझे इतने समय
निराकारी अवस्था का, अव्यक्त अवस्था का और कर्मयोगी स्थिति का अभ्यास करना
है । फिर अपने इसी टाइम टेबल के अनुसार जिम्मेवारी से कार्य करें ।
सावधानी रखते हुए अपने समय का उपयोग उपयुक्त रूप से करें । विस्तार को
समाने और समेटने के अभ्यास से ज़िम्मेवारी और हल्केपन का संतुलन उत्पन्न
होगा । अब अलबेलेपन के लिए समय नहीं है । उन सभी बातों का परहेज़ करें
अथवा व्रत करें जो आपके पुरूषार्थ को हानि पहुँचाती हैं । जब आप इस
प्रकार का व्रत करते हैं तो बहुत तीव्रगति से आगे जा सकेंगे ।
1st जनवरी
5.3 ब्रहमा
बाबा पवित्रता को अपने अनादि गुण के रूप में देखते थे । उन्होंने समझा
था कि पवित्रता शिवबाबा का वरदान है और अपवित्रता रावण का श्राप है । उनको
इस बात का अनुभव हो गया था कि उनकी कर्मेंद्रियों का अनादि स्वभाव पवित्र
कर्म करना है । उन्हें सदा इस बात की स्मृति रही: “मैं परम पवित्र आत्मा
हूँ । मेरा असली स्वरूप पवित्र है, मेरा अनादि धर्म पवित्रता है, और
आत्मा की पहली धारणा पवित्रता है । मेरा स्वदेश पवित्र है । मेरा अनादि
राज्य पवित्र है ।” ब्रहमा बाबा निरंतर इस स्वमान में स्थित रहे और
प्यूरिटी की पर्सनैलिटि और अथॉरीटी का अनुभव करते रहे ।
कर्म
में गुण: स्वमान
पवित्रता का संचयी प्रभाव हमारे विचारों, शब्दों, कर्मों और सपनों में
समन्वय लाता है और आत्मा अपने स्वमान का अनुभव करती है । जब विचार, शब्द
और कर्म आध्यात्मिक अनुशासन के अनुसार नहीं होते तो इससे मतभेद उत्पन्न
होता है जिसके परिणामस्वरूप आन्तरिक संघर्ष जन्म लेता है और आत्मा अपने
स्वमान को खो देती है । सूक्ष्म समन्वय को बनाए रखने के लिए ब्रहामण
जीवन की दिनचर्या के अनुशासन का पालन करना अति आवश्यक है । अगर कोई आलस
और अलबेलेपन के कारण दिनचर्या का पालन नहीं करता है तो इसे अपवित्रता का
अंश कहा जाएगा ।
31 दिसम्बर
5.2 ब्रहमा
बाबा की प्यूरिटी की पर्सनैलिटी, महानता और कर्म में विशेषता की प्रतीक बनी
। उन्होंने छोटे छोटी बातों में अपने मन और बुद्धि को उलझाया नहीं । उनके
प्रत्येक विचार का शुद्ध प्रायोजन और महत्व होता था । उनके शब्द
अर्थपूर्ण होते थे और सत्यता से बोले जाते थे । उनके कर्म विशुद्ध और
युक्तियुक्त होते थे ।
कर्म
में गुर्ण: निर्मलता
स्वयं को ब्राहमण की श्रेष्ठ अवस्था में स्थित करने के लिए, आपको अपनी
वृत्ति, विचारों और स्मृति की अपवित्रता का त्याग करने की आवश्यकता है ।
हर कदम पर सावधानी बरतें । अपनी शक्तिशाली वृत्ति से वातावरण की अशुद्धि
और कमज़ोरी को समाप्त करने वाले बनें । वातावरण में अशुद्धि की कोई
बात नहीं करें । बल्कि, आपके होंठों से निरंतर ज्ञान रत्न निकलते रहें
। एक शब्द भी व्यर्थ नहीं जाऐ । अगर आपका एक कर्म भी व्यर्थ है तो उसका
दाग मिटाया नहीं जा सकता । अपना रजिस्टर साफ-सुथरा रखें ।
30 दिसम्बर
5.1 पवित्रता
ब्रहमा बाबा के जीवन का वरदान था । उनके पुरूषार्थ और प्रालब्ध का आधार
पवित्रता थी । उनको इस बात का अहसास हो गया था कि दिव्य बनने के लिए
पवित्रता अति अनिवार्य है । जिस प्रकार शरीर को जिन्दा रहने के लिए
साँस लेना आवश्यक है उसी प्रकार ब्रहमा बाबा के आध्यात्मिक जीवन की साँस
पवित्रता थी ।
कर्म
में गुण: पवित्रता
संगम युग की सर्व प्राप्तियों का आधार पवित्रता है । 21 जन्मों के
प्रालब्ध का आधार पवित्रता है । पवित्रता के महत्व को समझें और पवित्रता
को एक वरदान के रूप में आत्मसात करें, फिर आप पवित्रता की अथॉरीटी और
पर्सनैलीटी वाले बन जाऐंगे । वरदाता बाबा को कम्बाईंड रूप में अनुभव करें
तो अपवित्रता आपके विचारों में भी नहीं आऐगी ।
29 दिसम्बर
4.3 ब्रहमा बाबा सदा ज्ञान और योग के सार में स्थित रहे और सब विस्तारों
को उनके सार में समा दिया । उन्होंने अपना समय और ऊर्जा को विघ्नों
के कारणों के विस्तार में व्यर्थ नहीं किया । जब भी वे किसी चुनौती का
सामना करते थे तो सदा खुशी में मुस्कुराते हुए करते थे ।
कर्म में गुण:
सुअवसर
जो समय और ऊर्जा की बचत करते हैं वे कभी निराश या दिलशिक्स्त नहीं होते ।
वे विघ्नों से डरते नहीं हैं, लेकिन वे उन्हें गहरी आध्यात्मिक उन्नति का
सुअवसर मानते थे । नथिंग न्यूँ की स्मृति से वे ज्ञान और योग की गहराई
में उतरते हैं ।
28 दिसम्बर
4.2 स्थापना के कार्य में ब्रहमा बाबा ने छोटे बडे़ कई विघ्नों का सामना
किया । फिर भी, जिस प्रकार शास्त्रों में दिखाया है कि हनुमान ने अपनी
हथेली पर पूरे पहाड़ को उठा लिया, उसी प्रकार ब्रहमा बाबा ने भी विघ्नों
को खिलौना बना दिया और खेल की तरह उनका सामना किया । उन्होंने विघ्नों
का कैसे, क्यों, क्या, कब और कौन जैसे सवालों से विस्तार नहीं किया बल्कि
अपने मन से फुल स्टॉप लगा दिया ।
कर्म में गुण:
एकाग्रता
जब भी किसी विघ्न का सामना करते हैं तो कोई हलचल नहीं होनी चाहिए । जीवन
यात्रा में विघ्न साईड सीन की तरह होते हैं । परिस्थितियों और घटनाओं के
साईड सीन्स से अपने लक्ष्य से भटकें नहीं । चलते रहिए और पार चले जाऐं,
और फिर आप ऐसा महसूस करेंगे कि लक्ष्य सदा समीप है ।
27 दिसम्बर
4.1 ब्रहमा बाबा ने ड्रामा के हर सीन को साक्षी होकर देखा – जो भी कल्प
पहले हुआ वही फिर से घटित हो रहा है । अपने त्रिकालदर्शी होने की स्मृति
से वे पिछले कल्प को स्पष्टता से याद कर पाए और वर्तमान पल में उन्हें लगता
था नथिंग न्यूँ ।
कर्म में गुण: अच्छा
जब भी आपके सामने कोई परीक्षा आती है तो यह सवाल नहीं उठना चाहिए कि: “यह
ऐसा क्यों कर रहा है? उसे ऐसा नहीं करना चाहिए ।” जो कुछ हुआ अच्छा हुआ
। उसमें से अच्छे को छाँट लें । उसे पानी के समान समझें और जाने दें ।
किसने किया और क्यों किया इन सबमें अपना समय बर्बाद नहीं करें । अधिक
संवेदनशील बनना अर्थात नापास हो जाना । ज्ञान से सम्पन्न बनें और अभ्यास
करें: “नथिंग न्यूँ”!
26 दिसम्बर
3.3 ब्रहमा बाबा को निरंतर यह स्मृति थी कि शिवबाबा ने उनके साकारी तन
को लोन लिया है । वे कर्म करने के लिए शरीर में प्रवेश करते थे ।
कर्म में गुण:
मेहमान
यह अनुभव होना चाहिए कि वास्तव में आपने अपने शरीर को लोन में लिया है, और
कर्म करने के लिए आप केवल एक मेहमान हैं । स्वयं को मेहमान समझकर आप अपनी
अवस्था को कर्मों और शब्दों से परे महसूस करेंगे । इसलिए शरीर में रहते,
इस परे जाने की अवस्था की स्मृति में रहें ।
25 दिसम्बर
3.2 एक सेकंड में निराकारी बनने की कला की ड्रिल में ब्रहमा बाबा निपुण
बन गए थे और फिर साकार में आना, और इस कारण दूसरों को उनसे साक्षात्कार
होते थे ।
कर्म में गुण: स्थिति
के अनुरूप ढ़लना
जो इस अलौकिक ड्रिल को जानते हैं और अभ्यास करते हैं वे सदा के लिए स्वस्थ
बन जाते हैं और माया की बीमारी से मुक्त हो जाते हैं । जिस प्रकार आप अपने
शरीर की बाहों और पैरों को जैसे चाहें वैसे चला सकते हैं उसी प्रकार एक
सेकण्ड की ड्रिल का अभ्यास करें: साकारी से निराकारी बनें और शरीर में होते
हुए अशरीरी बनें ।
24 दिसम्बर
3.1 शरीर में रहते हुए ब्रहमा बाबा ने अशरीरी बनने का अभ्यास किया और जो
भी उनके सम्बन्ध सम्पर्क में आते थे वे उन्हें बहुत पसंद करते थे ।
कर्म में गुण: सहजता
जैसे शरीर में रहते हैं वैसे ही अशरीरी बन कर रहें । जिस प्रकार आपके
कपड़े पहनने और उतारने बहुत सहज होते हैं उसी प्रकार शरीर का भान होना और
शरीर के भान से पार जाना भी उतना ही सहज होना चाहिए । एक पल आप अपना
शरीर रूपी वस्त्र धारण करते हैं और अगले ही पल उतार देते हैं । यह मुख्य
पुरूषार्थ करें और फिर आप मुख्य रत्नों में आ जाऐंगे ।
23 दिसम्बर
2.3 ब्रहा बाबा कर्मयोगी स्वरूप थे । उन्हें सदा स्मृति रहती थी कि
शिवबाबा ने उन्हें प्रेरणा दी है और वे कर्म कर रहे हैं । इस निश्चय से
वे डबल लाइट बन गए, उन्होंने लाइट का ताज पहना और बेफिक्र बादशाह बन गए ।
कर्म में गुण:
हल्कापन
जब आप ऐसे बेफिक्र बादशाह बन जाते हैं अर्थात मालिक बन जाते हैं, तो आप
मायाजीत, इंद्रियजीत और प्रकृतिजीत बन सकेंगे ।
22 दिसम्बर
2.2 ब्रहमा बाबा का निश्चय चार स्तम्भों पर आधारित था: 1) बाप में निश्चय
2) बुद्धि में निश्चय अर्थात यथार्थ जानना, स्वीकार करना और अपने
स्वमान के आधार पर आगे बढ़ना; 3) ब्राहमण परिवार में निश्चय; 4) समय के
महत्व पर अर्थात संगम युग पर निश्चय ।
कर्म में गुण: विवेक
निश्चय बुद्धि का अर्थ है त्रिकालदर्शी बनकर सुनना या बोलना और केवल
वर्तमान के बारे में नहीं बल्कि भूत और भविष्य के बारे में भी । ज्ञानवान
बनें और अपने कर्मों के परिणाम को जानकर ही कर्म करें । फिर निश्चय और
विजय का संतुलन आपको बेफिक्र बादशाह बना देगा ।
21 दिसम्बर
2.1 ब्रहमा बाबा निश्चय के आधार पर अपनी सभी जिम्मेवारियों का निर्वाह
करते थे । उन्हें सदा इस बात की स्मृति रहती थी कि, “यह शिवबाबा की
जिम्मेवारी है, मेरी नहीं । मैं केवल निमित्त हूँ” । इस स्मृति से उनकी
बुद्धि पर कोई बोझ नहीं होता था, और वे सदा अडोल और हर्षित रहते थे ।
कर्म में गुण: स्थिरता
तूफानों और विघ्नों के समय ही आपके निश्चय की पहचान होती है । इसलिए
निश्चय बुद्धि बनकर सभी विघ्नों को पार करें । कभी उलझन में नहीं आऐं या
भयभीत न हों । चाहे लौकिक सम्बन्धों से या समाज से विघ्न आऐं लेकिन आपको
हिलना नहीं है । आपको निश्चय होना चाहिए कि जिनका साथी स्वयं भगवान है
उन्हें कोई हिला नहीं सकता । बेफिक्र बादशाह बनें और अचल अडोल अवस्था
में स्थित रहें ।
20 दिसम्बर
2.3 आत्मिक स्थिति में स्थित रहना, ज़ीरो की अवस्था में रहना ही ब्रहमा
बाबा का गुप्त पुरूषार्थ था, इस अवस्था में पुराने किसी भी संस्कार का
अनुभव नहीं होता ।
कर्म में गुण:
एकत्रीकरण
आपस में बात करते हुए, शरीर में रहते हुए भी आत्मा को देखें । इस अभ्यास
से दूसरी सभी धारणाऐं सहज और स्वाभाविक बन जाती हैं । इस आत्मिक स्थिति
के अभ्यास से सभी कमज़ोरियाँ समाप्त हो जाऐंगी, और फिर आप सेवा में
चमत्कार कर सकेंगे ।
19 दिसम्बर
2.2 ब्रहमा बाबा की
दृष्टि बहुत साधारण और रॉयल थी । कहा जाता है कि दृष्टि से सृष्टि बनती है
। उनकी आत्म अभिमानी दृष्टि ने स्वत: ही सब कुछ बदल दिया; संसार और
परिस्थितयाँ सब कुछ परिवर्तन हो गया । दृष्टि में इस परिवर्तन के बाद अपने
प्रत्येक कर्म में वे गुणों को समाहित करने लगे ।
कर्म में गुण: सादगी
दूसरों को आत्म अभिमानी दृष्टि से देखना प्रथम अध्याय है । इसलिए, दूसरों
के लिए अपनी दृष्टि और वृत्ति को केवल आत्म अभिमानी बनाऐं । सादगी का
अर्थ है आत्म अभिमानी, क्रोध, लालच और अहंकार से मुक्त । सादगी में ही
रॉयल्टी है ।
18 दिसम्बर
2.1 ब्रहमा बाबा को आत्म अभिमानी दृष्टि और वृत्ति के लिए गहरी शुभेच्छा
थी । जब भी कोई उनके सामने आता था तो वे उसे आत्म अभिमानी स्थिति में
स्थित होकर दृष्टि देते थे । इस अभ्यास से बूढ़े और जवान,अमीर और गरीब,
जाति और रंग के भेद समाप्त हो गऐ । सभी को यह अहसास होता था कि बाबा मेरा
है ।
कर्म में गुण: आध्यात्मिक समानता
ब्रहमा के हम ब्राहम्ण बच्चे, आत्म अभिमानी स्थिति की दृष्टि और वृत्ति
के अभ्यास से लौकिक और साकारी भावनाओं से ऊपर उठ जाते हैं और आध्यात्मिक
समानता के मनोभाव को अपना लेते हैं ।