01-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
नए वर्ष के लिए बाप द्वारा कराया गया दृढ़ संकल्प
विजयी रत्न ब्राह्मण कुल-भूषण बच्चों के प्रति बाप-दादा बोले:
आज सर्व बच्चों को बाप-दादा नई उमंगों नये दृढ़ संकल्पों नई दुनिया को समीप लाने के सुहावने संकल्पों को सुनाते हुए अति हर्षित हो रहे थे। हरेक बच्चे के अन्दर विशेष उमंग है स्वयं को सम्पन्न बनाकर विश्व का कल्याण करने का। आज अपने अन्दर रही हुई कमजोरियों को सदाकाल के लिए विदाई देने के दृढ़ संकल्प पर, बाप-दादा भी बधाई देते हैं। इसी विदाई की बधाई को हर रोज़ अमृतबेले स्मृति के द्वारा समर्थ बनाते रहना। इस वर्ष स्वयं के समर्थी स्वरूप के साथ-साथ सेवा में भी समर्थ स्वरूप लाना है - जैसे विनाशकारी ग्रुप बहुत तीव्रगति से अपने कार्य को आगे बढ़ाते जा रहे हैं - बहुत रिफाइन सेकेण्ड में शारीरिक बन्धन से मुक्त होने अर्थात् शारीरिक दु:ख से सहज मुक्त होने, अनेक आत्माओं को बचाने के सहज साधन बना रहे हैं। किस आधार से? साइन्स की अथॉरिटी से। ऐसे स्थापना के कार्य में निमित्त बने हुए मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी ग्रुप-आत्माओं को जन्म-जन्मान्तर के लिए माया के बन्धन से, माया द्वारा प्राप्त हुए अनेक प्रकार के दु:खों से, एक सेकेण्ड में मुक्त करने वा सदाकाल के लिए सुख- शान्ति का वरदान देने, हरेक आत्मा को ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो! विनाशकारी ग्रुप अब भी एवररेडी है। सिर्फ आर्डर की देरी है - ऐसे स्थापना निमित्त बने हुए ग्रुप एवररेडी हो? क्योंकि स्थापना का कार्य सम्पन्न होना अर्थात् विनाशकारियों को आर्डर मिलना है। जैसे समय समीप अर्थात् पूरा होने पर सुई आती है और घण्टे स्वत: ही बजते हैं - ऐसे बेहद की घड़ी में स्थापना की सम्पन्नता अर्थात् समय पर सुई (काँटा) का आना और विनाश के घण्टे बजना। तो बताओ सम्पन्नता में एवररेडी हो?
आज बच्चों के अमृतवेले से नये वर्ष के नये उमंग सुनते बाप-दादा की भी एक नई टापिक पर - रूह-रूहान हुई।
ब्रह्मा बोले - मुक्ति का गेट कब खोलना है! जब तक मुक्ति का गेट ब्रह्मा नहीं खोलते तब तक अन्य आत्माएं भी मुक्ति में जा नहीं सकती। ब्रह्मा बोले अब चाबी लगावें?
बाप बोले - उद्घाटन अकेला करना है या बच्चों के साथ! ब्रह्मा बोले - सौतेले और मातेले बच्चों के दु:ख के आलाप, तड़फने के आलाप सुनते-सुनते अब रहम आता है। बाप बोले - बच्चों में से सर्व श्रेष्ठ विजयी रत्न जो साथ-साथ भिन्न-भिन्न सम्बन्ध और स्वरूप से ब्रह्मा की आत्मा के साथी बनने वाले हैं ऐसे साथी विजयी रतनों की माला तैयार है! जिन्हों का आदि से यही संकल्प है कि साथ जिएंगे, साथ मरेंगे - किसी भी भिन्न रूप वा सम्बन्ध में साथ रहेंगे - उन्हीं से किए हुए वायदे के प्रमाण साथियों के बिना चाबी कैसे लगावेंगे!
तो नये वर्ष का नया संकल्प ब्रह्मा का सुना! बाप के इस संकल्प को प्रैक्टिकल में लाने वाले विजयी ग्रुप अब क्या करेंगे! श्रेष्ठ विजयी रतन ही बाप के इस संकल्प को पूरा करने वाले हैं - इसलिए इस वर्ष में विशेष रूप से मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी के स्वरूप से सेकेण्ड में मुक्त करने की मशीनरी तीव्र करो। अभी मेजोरिटी आत्माएं प्रकृति के अल्पकाल के साधनों से, वा आत्मिक शान्ति प्राप्त करने के बने हुए अल्पज्ञ स्थानों से अर्थात् परमात्म मिलन मनाने के ठेकेदारों से अब थक गए हैं, निराश हो गए हैं - समझते हैं सत्य कुछ और है - सत्यता की मंजिल की खोज में हैं - प्राप्ति के प्यासे हैं। ऐसी प्यासी आत्माओं को आत्मिक परिचय, परमात्म परिचय की यथार्थ बूँद भी तृप्त आत्मा बना देगी - इसलिए ज्ञान कलश धारण कर प्यासों की प्यास बुझाओ। अमृत कलश सदा साथ रहे। चलते फिरते सदा अमृत द्वारा अमर बनाते चलो। तब ही ब्रह्मा बाप के साथ-साथ मुक्ति के गेट का उद्घाटन कर सकेंगे! अभी तो भवनों का उद्घाटन कर रहे हो - अभी विशाल गेट का उद्घाटन करना है। उसके लिए सदा अमर बनो और अमर बनाओ - अमर भव के वरदानी मूर्त बनो। अब पुरूषार्थ करने वाली आत्माएं जो अन्तिम अति कमज़ोर आत्माएं हैं, ऐसी कमज़ोर आत्माओं में पुरूषार्थ करने की भी हिम्मत नहीं है ऐसी आत्माओं को स्वयं की शक्तियों द्वारा समर्थ बनाकर प्राप्ति कराओ। इसलिए ज्ञान मूर्त से ज्यादा अभी वरदानी मूर्त का पार्ट चाहिए। सुनने की शक्ति भी नहीं हैं। चलने की हिम्मत नहीं है सिर्फ एक प्यास है कि कुछ मिल जाए - ऐसी अनेक आत्माएं विश्व में भटक रही हें - चलने के पांव अर्थात् हिम्मत भी आपको देनी पड़ेगी। तो हिम्मत का स्टाक जमा है! अमृत कलश सम्पन्न है! अखुट है! अखण्ड है! क्यू लगावें? स्वयं की क्यू समाप्त की है - अगर स्वयं की क्यू में बिजी होंगे तो अन्य आत्माओं को सम्पन्न कैसे बनावेंगे! इसलिए इस वर्ष में अपनी क्यू को समाप्त करो। क्यों, क्या, की भाषा चेन्ज करो। एक ही भाषा हो - सर्व प्रति संकल्प से, वाणी से वरदानी भाषा हो - वरदानी मूर्त हो - वरदानों की वर्षा के भाषण हों। जो भी सुनें वह अनुभव करे कि भाषण नहीं लेकिन वरादानों के पुष्पों की वर्षा हो रही है - तब उद्घाटन करेंगे। नये वर्ष की यही नवीनता करना। अच्छा –
ऐसे सदा अमृत कलशधारी, हर संकल्प से वरदानी अनेक आत्माओं को हिम्मत बढ़ाने वाले, हिम्मते बच्चे मदद बाप, ऐसे एवररेडी ब्रह्मा बाप के साथ-साथ सदा साथ का पार्ट बजाने वाले ऐसे विजयी रतनों को, सम्पन्न आत्माओं को बाप-दादा का यादप्यार और नमस्ते!
(दीदी जी से) ब्रह्मा को यह संकल्प क्यों उठा - इसका रहस्य समझते हो! ब्रह्मा के संकल्प से सृष्टि रची और ब्रह्मा के संकल्प से ही गेट खुलेगा। अब शंकर कौन हुआ? यह भी गुह्य रहस्य है - जब ब्रह्मा ही विष्णु है तो शंकर कौन? इस पर भी रूह- रूहान करना। अब तो वरदानी मूर्त ग्रुप, जिन्हों के इन स्थूल हाथों में नहीं लेकिन सदा स्मृति में, समर्थ स्वरूप में विजय का झण्डा हो - ऐसे विजय का झण्डा लहराने वाला ग्रुप हो। जिसको कहा जाता है रूहानी सोशल वर्कर ग्रुप - ऐसा ग्रुप अब स्टेज पर चाहिए। स्टेज पर आने वाले के ऊपर सभी की नज़र आटोमेटिकली जाती है - अभी पर्दे के अन्दर है, स्वयं के पुरूषार्थ का पर्दा है- अभी इसी पर्दे से निकल सेवा की स्टेज पर आओ तो विश्व की आत्माएं - ऐसे हीरो पार्टधारियों को देख नज़र से निहाल हो जावेंगे। ऐसे प्लान बनाओ ऐसे ग्रुप के मुख से सत्यता की अथॉरिटी स्वत: ही बाप की प्रत्यक्षता करेगी - अभी तो बेबी बाम्ब फेंक रहे हैं - अभी परमात्म बाम्ब द्वारा धरनी को परिवर्तन करो। इसका सहज साधन है सदा मुख पर वा संकल्प में बापदादा - बापदादा की निरन्तर माला के समान स्मृति हो। सबकी एक ही धुन हो बाप-दादा। संकल्प, कर्म और वाणी में यही अखण्ड धुन हो - जैसे वह अखण्ड धुनी जगाते हैं वैसे यह अखण्ड धुन हो। यही अजपाजाप हो - जब यह अजपाजाप हो जावेगा तो और सब बातें स्वत: ही समाप्त हो जावेंगी। क्योंकि इसमें ही बिजी रहेंगे। फुर्सत ही नहीं होती तो व्यर्थ स्वत: ही समाप्त हो जावेगा। तो अब सुना कि इस वर्ष में क्या करना है - आज के संकल्प से समय को जानना - सुई तो ब्रह्मा ही हैं ना। तो सुई कहाँ तक पहुँची हैं! सूक्ष्मवतन से आगे भी बढ़ेगी ना! अच्छा –
विदेशी भाई-बहनों से - डबल विदेशी बच्चों के तीव्र पुरूषार्थ की रफ्तार को देख बाप-दादा भी हर्षित होते हैं। विदेशी बच्चों ने अपने असली बाप को, अपने असली देश को, असली धर्म को बहुत अच्छी तरह से पहचान लिया है। जैसे कल्प पहले की बनी हुई धरनियों में सिर्फ बाप के परिचय का बीज पड़ने से फल स्वरूप प्रत्यक्ष हो गए। बापदादा जानते हैं कि इस ग्रुप में कई ऐसे रतन हैं जो बाप-दादा के गले के माला के मणके हैं। ऐसे मणकों को बाप भी सदा विश्व के आगे प्रत्यक्ष करने के वा विश्व के आगे बच्चों द्वारा बाप प्रत्यक्ष होने के कई दृश्य देख भी रहे हैं - अभी प्रत्यक्ष हो रहे हैं, और आगे चल के भी होंगे। आप सभी अपने को ऐसे अमूल्य रतन समझते हो! जो सबसे अमूल्य रतन हैं उन्हीं का निवास स्थान कहाँ है? अमूल्य रतनों का स्थान है ही दिल की डिब्बी। सदा दिल में रहने वाले अर्थात् सदा बाप की याद में रहने वाले। सभी अपने को तीव्र पुरुषार्थी अनुभव करते हो? किस लाइन में हो? हाई जम्प लगाने वाले हो ना। डबल लाइट वाले सदा हाई जम्प देंगे। अगर किसी भी प्रकार का बोझ है तो हाई जम्प नहीं दे सकते। सभी सिकीलधे हो। क्योंकि बाप का परिचय मिलते ही सहजयोग द्वारा बाप को सहज ही पहचान लिया। मुश्किल का अनुभव नहीं हुआ। मुश्किल को सहज करने का साधन है - बाप के सामने बैठ जाओ - तो सदा वरदान का हाथ अपने ऊपर अनुभव करेंगे। सेकेण्ड में सर्व समस्याओं का हल मिल जाएगा। लेकिन बाप के सामने कौन बैठ सकेंगे? जिन्होंने बाप को जो है, जैसे है, वैसे दिव्य चक्षु द्वारा, बुद्धि द्वारा जान लिया और देख लिया। बाप जानते हैं कि इन आत्माओं ने विश्व के आगे एक एक्जैम्पुल बन अनेक आत्माओं के कल्याण के लिए बहुत अच्छा कदम उठाया है। विश्व आपको फालो करेगी। अच्छा।
दिल्ली जोन (28.12.79 - पार्टीयों से)
1. अन्तिम मंजिल के समीपता की निशानी - सर्व से किनारा - सदा अपनी मंज़िल अति समीप अनुभव करते हो? ऐसे समझते हो कि अपनी अन्तिम फरिश्ते जीवन की मंज़िल पर अभी पहुँचने वाले ही हैं। जितना-जितना इस अन्तिम मंज़िल के नज़दिक आते जाएंगे उतना सब तरफ से न्यारे और बाप के प्यारे बनते जाएंगे। जैसे जब कोई चीज़ बनाते हो जब वह तैयार हो जाती है तो किनारा छोड़ देती है ना, जितना सम्पन्न स्टेज के समीप आते जाएंगे उतना सर्व से किनारा होता जाएगा। फरिश्ता अर्थात् एक के साथ सब रिश्ता। ऐसे अनुभव करते हो कि किनारा होता जाता है। जब कोई चीज़ पूरी नहीं बनती तो तले में लगते जाती है, जब बन जाती है तो किनारा छोड़ देती, किनारा नहीं छोड़ा माना अभी तैयार नहीं। तो सब बन्धनों से सब तरफ से वृत्ति द्वारा किनारा होता जाता है कि अभी लगाव है? अगर स्पीड ढीली होगी तो समय पर पहुँच नहीं सकेंगे। समय के बाद पहुँचे तो प्राप्ति की लिस्ट में नहीं आ सकेंगे। इसलिए यह चेक करो कि चारों ओर के बन्धन से मुक्त होते जाते हैं। अगर नहीं होते तो सिद्ध है फरिश्ता जीवन समीप नहीं। जब एक तरफ सम्बन्ध का सुख प्राप्त हो सकता है तो भटकने की क्या ज़रूरत है, ठिकाने लग जाना चाहिए ना। एक के साथ सर्व रिश्ते निभाना यह है ठिकाना। सदा अपना अन्तिम फरिश्ता स्वरूप स्मृति में रखो तो जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति बन जाएगी।
2. वाह ड्रामा वाह इसी स्मृति से अनेकों की सेवा - सभी सदैव वाह ड्रामा वाह इसी स्मृति में ड्रामा के हर सीन को देखते हुए चलते हो? कोई भी सीन को देखते हुए घबड़ाते तो नहीं! जब ड्रामा का ज्ञान मिल गया तो वर्तमान समय कल्याणकारी युग है, जो भी दृश्य सामने आता है उसमें कल्याण भरा हुआ है, वर्तमान न भी जान सको लेकिन भविष्य में समाया हुआ कल्याण प्रत्यक्ष हो जाएगा - वाह ड्रामा वाह याद रहे तो सदा खुश रहेंगे, पुरूषार्थ में कभी भी उदासी नही आएगी, स्वत: ही आप द्वारा अनेकों की सेवा हो जाएगी।
3. सहयोगी आत्माओं को सदा सम्पन्न रहने का वरदान - जो आत्माएं दिल व जान सिक व प्रेम से यज्ञ को सम्पन्न बनाती हैं, जिन्होंने समय के अनुसार सहयोग की अंगुली दी उन्हीं का एक से अनेक गुणा बन गया, समय की भी वैल्यू होती, आदि में आवश्कता के समय जिन आत्माओं का अमूल्य सहयोग स्थापना के कार्य में हुआ है उन्हीं को रिटर्न में सदा सम्पन्न रहने का वरदान प्राप्त हो गया। वह सदा भरपूर रहते आए हैं और रहेंगे। अच्छा - ओम् शान्ति।
02-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सम्पूर्णता की समीपता ही विश्वपरिवर्तन की घड़ी की समीपता है
बच्चों की जन्म पत्री जानने वाले रहमदिल बाबा बोले :-
आज बापदादा हरेक बच्चे की आदि अब तक के संगमयुगी अलौकिक जन्म की जन्मपत्री देख रहे थे। हरेक बच्चे ने दिव्य जन्म लेते बाप दादा से वा स्वयं से क्या-क्या वायदे किये हैं और अब तक कौन से वायदे और किस परसेन्ट में निभाए हैं, वायदा करना और निभाना इसमें कितना अन्तर रहा है वा करना और निभाना समान है - यह जन्मपत्री देख रहे थे। हर वर्ष हरेक बच्चा यथा शक्ति बाप के सम्मुख वायदे करते हैं अर्थात् बाप से प्रतिज्ञा करते हैं - रिजल्ट में क्या देखा, प्रतिज्ञा करते समय बहुत उमंग उत्साह से हिम्मत से संकल्प लेते हैं - कुछ समय संकल्प को साकार में लाने का, समस्याओं का सामना करने का शुभ भावना से कल्याण की कामनाओं से सम्पर्क में आते सफलता मूर्त बनते हैं। परन्तु चलते-चलते कुछ समय के बाद फुल अटेन्शन (Full ATTENTION) के बजाए सिर्फ अटेन्शन (ATTENTION) रह जाता और अटेन्शन के बीच-बीच अटेन्शन बदल टेन्शन (Tension) का रूप भी हो जाता है। विजय हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है यह समर्थ संकल्प धीरे-धीरे रूप परिवर्तन करता जाता है - जन्म सिद्ध अधिकार है के बजाए कब-कब बाप दादा के आगे यह बोल निकलते हैं कि अधिकार दो, शक्ति दो। है शब्द दो शब्द में बदल जाता है। मास्टर दाता वरदाता, दाता के बजाए लेता हो जाते हैं। ऐसे पुरूषार्थ की स्टेज कब तीव्र पुरूषार्थ, कब पुरूषार्थ कब हलचल कब अचल। इस में चलते रहते हैं और चलते-चलते रूक जाते हैं। अब तक की रिजल्ट में - रास्ते के नजारों में मंजिल की तरफ से किनारा कर लेते हैं। अब तक भी ऐसे खेल दिखाते रहते हैं - लेकिन यह कब तक।
बापदादा भी अभी नया खेल देखना चाहते - तो इस नये वर्ष में अब ऐसा नया खेल दिखाओ - जिस खेल में हर दृश्य का लक्ष्य सदा विजय हो। हम विजयी हैं, विजयी रहेंगे - ऐसा संकल्प सदा हर कर्म में प्रत्यक्ष दिखाई दे। जैसे कल्प पहले का चित्र है - हरेक शक्ति सेना के हाथ में विजय का झण्डा लहरा रहा है। आज तक भी आप श्रेष्ठ आत्माओं को विजयी रतन के रूप में दुनिया वाले सुमिरण करते और पूजते रहते हैं। पुरूषार्थ करने का समय भी बहुत मिला-नम्बरवार यथाशक्ति पुरूषार्थ भी किया। अब क्या करना है - अब पुरूषार्थ के प्रत्यक्ष फलस्वरूप अर्थात् सफलता स्वरूप बन स्वयं भी हर कार्य में सफल रहो और सर्व आत्माओं को भी सफलता मूर्त्त का वरदान दो। पुरूषार्थ स्वरूप के बजाए वरदानी महादानी स्वरूप में रहो, जिससे स्वयं भी प्रत्यक्ष फल का अनुभव करेंगे और अन्य आत्माओं को भी प्रत्यक्ष फल के अधिकारी बनायेंगे। अब भाषा परिवर्तन करो। स्वभाव संस्कार भी परिवर्तन करो। स्वयं भी परिवर्तन करो। स्वभाव-संस्कार सर्व आत्माओं को भी प्रत्यक्षफल के अधिकारी बनायेंगे।। अब भाषा भी परिवर्तन करो। जैसे विश्व परिवर्तन की घड़ी समीप भाग रही हैं - सम्पूर्णता की समीपता ही विश्व परिवर्तन के घड़ी की समीपता है - इसलिए अब बीती सो बीती कर व्यर्थ का खाता समाप्त करो-सदा समर्थ का खाता हर संकल्प में जमा करो - अभी से सदाकाल के लिए अपने को ताज तिलक और तख्तधारी अनुभव करो - तिलक का मिट जाना अर्थात् स्मृति से नीचे आना है। अभी यह बातें स्वप्न से भी समाप्त करो। ऐसा समाप्ति समारोह मनाओ। विश्व सेवा में संकल्प वाणी और कर्म से दिन-रात सच्चे सेवाधारी बन संगठित रूप सदा तत्पर हो जाओ तो विश्व सेवा में स्वयं को चढ़ती कला स्वत: होती जायेगी। पुण्य आत्मा बन, पुण्य का फल प्राप्त कर रहे हैं सदा ऐसे अनुभव करेंगे। क्योंकि समय की समीपता प्रमाण हर श्रेष्ठ कर्म का फल सदा सन्तुष्टता के रूप में वर्तमान और भविष्य दोनों ही काल में प्राप्त होंगे। अभी प्राप्ति की मशीनरी तीव्रगति से अनुभव करेंगे। व्यर्थ का भी और समर्थ का भी - दोनों कर्म का फल लाख गुणा प्राप्ति क्या होती है यह सब अनुभव करेंगे। इसलिए लाख गुणा जमा करने का समय अब बाकी थोड़ा सा रह गया है अब का जमा होना, जन्म-जन्मान्तर की प्रालब्ध बनाना है - इसके लिए विशेष क्या करना है - सिर्फ दो बातें याद रखो - एक सदा अपने को विशेष आत्मा समझ - संकल्प वा कर्म करो। दूसरी बात सदा हरेक में विशेषताओं को देखो। हर आत्मा में विशेष आत्मा की भावना रखो। साथ विशेष बनाने की, शुभ कल्याण की कामना रखो। सदा एक बात का अटेन्शन रखो - जिस अवगुण वा कमज़ोरी को हर आत्मा छोड़ने का पुरूषार्थ कर रही है, ऐसी दूसरे द्वारा छोड़ने वाली चीज़ को स्वयं कभी धारण नहीं करना - दूसरे द्वारा फेंकी हुई चीज़ को लेना यह ईश्वरीय रायल्टी नहीं। रायल आत्माएं दूसरे की बढ़िया चीज़ भी फेंकी हुई नहीं लेती। यह तो अवगुण गन्दगी है। उसके तरफ संकल्प में भी धारण करना महापाप है - इसलिए इस बात का अटेन्शन रखो। किसी की कमजोरी वा अवगुण को देखने का नेत्र सदा बन्द रखो। धारण करो न वर्णन करो। जब आपके चित्रों की भी भक्त महिमा करते हैं, हर अंग की महिमा करते हैं कीर्ति गाने का कीर्तन करते हैं - आप चैतन्य रूप में एक दो के गुणगान करो - विशेषताओं का वर्णन करो। एक दो में सहयोग और स्नेह के पुष्पों की लेन-देन करो। हर कार्य में हाँ जी वा पहले आप का हाथ बढ़ाओ। सदा हरेक विशेष आत्मा के आगे रूहानी वृत्ति रूहानी वायब्रेशन का धूप जगाओ। जो भी आत्मायें सम्पर्क में आवें उन्हों को सदा अपने खज़ानों से वैरायटी भोग लगाओ। अर्थात् खज़ाना भेंट करो। जब प्रैक्टिकल में अभी से यह रूहानी रसम आरम्भ करेंगे तब ही भक्ति में यह रसम चलती रहेगी। सुना इस वर्ष क्या करना है। आज स्वयं के परिवर्तन की बातें सुनाई। फिर सेवा की सुनावेंगे कि सेवा के क्षेत्र में क्या करना है - अच्छा –
ऐसे सदा सम्पन्न मूर्तियाँ रायल्टी के निज़ी संस्कार वाली आत्माओं, सदा तिलक, ताज, तख्तधारी आत्माओं को, हर कर्म का प्रत्यक्ष फल खाने वाली आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पार्टियों से मुलाकात
1 - जादू मन्त्र की स्मृति से सफलता स्वरूप:-
जादू मन्त्र सदा याद रहता है? जादू का मन्त्र कौन सा है? बाप की याद ही जादू का मंत्र जादू के मन्त्र द्वारा जो सिद्धि चाहो तो पा सकते हो। जैसे स्थूल में भी किसी कार्य की सिद्धि के लिए मन्त्र जपते हैं। तो यहाँ भी अगर किसी कार्य में विधि चाहते हो तो यह महामन्त्र ही विधि स्वरूप है ऐसा जादू मन्त्र जो सेकेंड में जादू मन्त्र कर दो। अर्थात् परिवर्तन कर दो। तो ऐसा जादू मन्त्र सदा याद रहता है कि कभी भूलता है। सदा स्मृति तो सदा सिद्धि। कभी-कभी स्मृति होगी तो सफलता नहीं होगी, कभी-कभी होगी। तो यह वर्ष ‘सदा’ को अन्डरलाइन लगाने का वर्ष है। याद रहना बड़ी बात नहीं, लेकिन सदा याद में रहना यही बड़ी बात है। अब सदा की बारी आई है। सदा का एड करो तो सदा सफलता मूर्त रहेंगे। 2 - माया के वार से बचने का साधन है - विश्व से न्यारा और बाप का प्यारा बनो:- हरेक अपने को बाप के प्यारे और विश्व में प्यारे समझते हो? जो बाप के प्यारे बनते हैं वह विश्व से न्यारे बन जाते हैं। तो जितना न्यारापन होगा उतना ही प्यारा होगा - अगर न्यारा नहीं तो प्यारा भी नहीं। जो बाप के प्यार में लवलीन रहते हैं, खोये हुए होते हैं उन्हें माया आकर्षित कर नहीं सकती। जैसे वाटरप्रूफ कपड़ा होता है तो एक बूँद भी टिकती नहीं, ऐसे जो लगन में रहते, लवलीन रहते वह मायाप्रूफ बन जाते हैं। माया का कोई वार-वार नहीं कर सकता। बाप का प्यार अविनाशी और निस्वार्थ है, इसके भी अनुभवी हो और अल्पकाल के प्यार के भी अनुभवी हो। वह प्यार इस प्यार के आगे कुछ भी नहीं है। बाप और मैं तीसरा न कोई, ऐसी स्थिति रहती है। तीसरा बीच में आना अर्थात् बाप से अलग करना। तीसरा आता ही नहीं तो अलग हो नहीं सकते। जो सदा बाप की याद में लवलीन रहते वह सिद्धि का पा लेते हैं। अच्छा ओम् शान्ति।
04-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सम्पूर्णता के आईने में निज स्वरूप को देखो
विश्व कल्याणकारी त्रिमूर्ति शिव बाबा के बच्चों के प्रति महावाक्य :-
आज बाप दादा ब्राह्मण बच्चों की आदि से अब तक के जीवन में ब्राह्मणों का विशेष कर्तव्य है विनाश और स्थापना का, उस कर्तव्य में हरेक किस रफ्तार से चल रहे हैं, उस कर्तव्य की गति को देख रहे हैं - कहाँ तक अपने कर्तव्य की जिम्मेवारी निभाई है और आगे भी कितनी रही हुई है। ब्राह्मणों का कर्त्तव्य के आधार से विशेष टाइटिल है विश्व कल्याणकारी, विश्व के आधारमूर्त, विशेष उद्धारमूर्त्त, विश्व के परिवर्तक। तो जैसे टाइटिल है उसी प्रमाण कर्तव्य का प्रैक्टिकल रूप कहाँ तक हुआ है और कहाँ तक होना है। हरेक अपने कर्तव्य की परसेन्टेज को देखो। समय प्रमाण अभी तक स्पीड तीव्र है। वह अब तीव्र होनी है। पहली बात स्वयं को चैक करो - स्वयं प्रति विनाश और स्थापना के कर्तव्य ने अर्थात् पास्ट पुराने हिसाब-किताब स्वभाव वा संस्कार कहाँ तक विनाश किए हैं और नये संस्कार स्वभाव अर्थात् बाप समान स्वभाव संस्कार की स्थापना कहाँ तक की है, सम्पूर्ण विनाश किया है वा अधूरा किया है, जितना पुराना विनाश किया है उतना नया संस्कार वा स्वभाव धारण होगा - तो चैक करो किस गति से यह कार्य कर रहे हैं।
2 - दूसरी बात स्वयं के सम्पर्क में आने वाली आत्मायें वा सम्बन्ध में रहने वाली आत्माएं जो हैं उन्हों के पुराने संस्कार वा स्वभाव देखते हुए न देखो अर्थात् अपने कर्तव्य की स्मृति द्वारा वा अपने टाइटिल की समर्थी द्वारा उन आत्माओं में भी परिवर्तन करने के कार्य की गति कहाँ तक है। चैरिटी बिगेन्स ऐट होम किया है! कितनी भी तमोगुणी आत्मा हो, लेकिन ब्राह्मणों के कर्तव्य प्रमाण सदा ऐसी आत्माओं के प्रति भी कल्याण की भावना रहती है! वा घृणा की भावना रहती है। रहम आता है वा रोब में आते हो! रोब में आकर बाप के आगे वा निमित्त बनी हुई आत्माओं के आगे बार-बार उन आत्माओं के प्रति प्रोब (Complaint) करते रहते। यह ऐसे करते यह ऐसे कहते। ऐसे वैसे क्यों? यह प्रोब करते हैं।
3 - तीसरी बात विश्व की सर्व आत्माओं प्रति सदा संकल्प में कल्याण करने की स्मृति रहती है - बेहद की सेवा अर्थात् विश्व सेवा की जिम्मेदारी समझते हुए चलते हो। मन्सा द्वारा भी विश्व प्रति अपनी शक्तियों के खज़ाने वा ज्ञान, गुणों के खज़ाने को महादानी बन दान करते रहते हो। अपने को विश्व के आगे अथॉरिटी समझते हो। वा जहाँ निवास करते हो उस देश वा गाँव के अथॉरिटी समझते हो। प्रैक्टिकल स्मृति में क्या सेवा रहती है। सामने हद आती है या बेहद! संकल्प में इतनी समर्थी है जो विश्व की आत्माओं तक शक्तिशाली संकल्प द्वारा सेवा कर सको - वृत्ति की शुद्धि अनुसार वायुमण्डल को शुद्ध कर सको। वृत्ति की शक्ति है! शुद्ध अर्थात् प्यूरिटी। प्युरिटी का आधार है भाई-भाई की स्मृति की वृत्ति। कहाँ तक बनी है। इसी प्रकार अपने कर्तव्य की गति और विधि को चैक करो। जब तक स्वयं में विनाश और स्थापना का प्रैक्टिकल स्वरूप नहीं लाया है तब तक विश्व में कर्तव्य की प्रत्यक्षता होना भी स्वयं की गति के प्रमाण ही होगा। क्योंकि आज विश्व की आत्माएं, देखकर सौदा करने वाली हैं सिर्फ सुनकर मानने वाली नही हैं। अपनी यथार्थ मान्यताओं को मान्यताओं को मानने के लिए पहले स्वयं उन मान्यताओं का स्वरूप बनना पड़े। जिस स्वरूप के सैम्पुल द्वारा सौदा सिम्पुल समझ में आवेगा। नहीं तो अब तक अनेक अल्पज्ञ अयथार्थ मान्यताओं द्वारा मेजोरिटी आत्मायें विश्व परिवर्तन वा स्वयं का परिवर्तन अति मुश्किल वा असम्भव समझ बैठी है। इस कारण दिलशिकस्त की बीमारी ज्यादा है। जैसे आजकल शारीरिक रोग हार्टफेल का ज्यादा है वैसे आध्यात्मिक उन्नति में दिलशिकस्त का रोग ज्यादा है। ऐसी दिलशिकस्त आत्माओं को प्रैक्टिकल परिवर्तन द्वारा ही अर्थात् आंखों देखी वस्तु द्वारा ही हिम्मत वा शक्ति आ सकती है। सुना बहुत है अब देखना चाहते हैं। प्रमाण द्वारा परिवर्तन चाहते हैं। तो विश्व परिवर्तन के लिए वा विश्व कल्याण के लिए सदा स्वकल्याण पहले सैम्पुल के रूप में दिखाओ। अब समझा कर्तव्य के लिए क्या चैक करना है। विश्व कल्याण की सेवा के लिए क्षेत्र में सहज सफलता का साधन प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा बाप की प्रत्यक्षता है। जो बोले वह देखें। बोलते हो कि हम ब्राह्मण आलमाइटी अथॉरिटी हैं, मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, मायाजीत हैं, रहमदिल हैं, रूहानी सेवाधारी हैं। तो जो बोलते हो वह प्रैक्टिकल स्वरूप देखना चाहते हैं। नाम मास्टर सर्वशक्तिवान और स्वयं के व्यर्थ संकल्प को भी समाप्त नहीं कर सके तो विश्व कल्याणकारी कौन मानेगा! चलते-चलते स्वयं के संस्कार स्वभाव परिवर्तन करने में दिलशिकस्त होने वाले को विश्व परिवर्तक कौन मानेगा। स्वयं ही सहयोग मांगने वाले को वरदानी कौन मानेगा! इसलिए सम्पूर्णता के आइने में स्वयं का स्वरूप देखो। स्वयं को सम्पन्न बनाए सैम्पुल बनो। समझा क्या करना है। इस वर्ष स्वयं को सम्पन्न बनाए विश्व कल्याणकारी बनो - चेक भी करो और चेन्ज भी करो।
पहले गुजरात आरम्भ करे - जब सुनने में इतनी खुशी होती तो बनने में कितनी खुशी होगी। गुजरात की धरनी वैसे भी सात्विक है - तो गुजरात को सेम्पुल तैयार करने चाहिए। जिसको देखो वह सैम्पुल नजर आए। गुजरात ने विस्तार अच्छा किया है। वृद्धि भी अच्छी है - अब बाकी क्या करना है? ऐसी विधि करो - जो ऐसा वायु मण्डल पावरफुल हो जिससे विघ्न विनाश का भी हो और विश्व की आत्माओं की आकर्षण भी ऐसे रूहानी वायुमण्डल के तरफ हो। गुजरात को लाइट हाउस बनाओ। न सिर्फ गुजरात लाइट हाउस हो बल्कि विश्व लाइट हाऊस। जिस द्वारा विश्व की आत्माओं को स्वयं के वा बाप के परिचय को रोशनी मिले। परमात्म बाम्ब आरम्भ करो। ऐसा बाम्ब फैंको जो एक ठका आत्मायें दौड़ती हुई अपने एक एसलम में पहुँच जायें - पहले गुजरात आबू में क्यू शुरू करें। जो ओटे सो अर्जुन हो जावेगा। अर्जुन अर्थात् पहला नम्बर। अच्छा –
ऐसे सदा सेवाधारी सेकेण्ड वा संकल्प भी सेवा के बिना चैन न आवे, निरन्तर योगी निरन्तर सेवाधारी सर्व प्रकार की सेवा में प्रत्यक्षफल दिखाने वाले ऐसे प्रत्यक्ष प्रमाण बन विश्व का कल्याण करने वाली आत्माओं को बाप दादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पार्टियों से मुलाकात
1-संगमयुग के समय हर कदम में पद्मों की कमाई का चान्स - सदा बाप की याद में रहते हुए हर कदम उठाते पदमों की कमाई जमा करते रहते हो? यह जो गायन है हर कदम में पदम यह किन्हों का है? आप सबका है ना। इस संगम पर ही पदमों की कमाई की खान मिलती है। फिर सारे कल्प में यह चान्स नहीं मिलता। संगमयुग है जमा करने का युग, सतयुग को भी प्रालब्ध का युग कहेंगे, जमा करने का नहीं। अभी जमा करने का युग है, जितना जमा करना चाहो उतना जमा कर सकते हो। तो कितना जमा किया है वा करते जा रहे हो? जितना करना चाहिए उतना कर रहे हो वा जितने वा उतने में अन्तर है। एक कदम अर्थात् एक सेकेण्ड भी बिना जमा के न जाए अर्थात् व्यर्थ न हो। इतना अटेन्शन रहता है!
सतयुग में भी विश्व महाराजा वा राजा बनने का आधार इस समय के जमा करने पर है। तो क्या बनेंगे बड़े महाराजा या छोटे राजा!। बड़े राजे जो होंगे उन्होंके पास अनगिनत सम्पत्ति होगी तो इतनी अनगिनत कमाई जमा की है? सदा भण्डारा भरपूर है। अप्राप्त नहीं कोई वस्तु...ऐसे संस्कार अभी हैं। सदा तृप्त आत्मा अप्राप्त कुछ नहीं ऐसे हैं? वह सभी बन्धन कांटों - थोड़ा सहयोग दो, ऐसे तो नहीं, सहयोग मिले, आगे बढ़ाया जाए तो आगे बढ़े इससे सिद्ध है कि सम्पन्न नहीं हैं। स्वयं की शक्ति में कमी है तब दूसरे कि शक्ति से आगे बढ़ायें तब बढ़ेंगे। तो क्या इसको ही तृप्त वा सम्पन्न आत्मा कहेंगे। बापदादा तो स्वत: ही दाता है, देते ही रहेंगे, वह मांगने की भी जरूरत नहीं तो ऐसे तृप्त आत्मा भविष्य में अखुट खज़ाने के मालिक होंगे अभी से संस्कार भरेंगे तब भविष्य में होंगे। अच्छा –
06-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सूर्यवशी और चन्द्रवंशी, आत्माओं के प्रैक्टिकल जीवन की धारणाओं के चिन्ह
सृष्टि के आदि मध्य और अन्त के राज़ों को सुनाने वाले शिव बाबा बोले –
आज बापदादा वतन में बच्चों की चढ़ती कला के पुरूषार्थ पर रूह रूहान कर रहे थे जिसमें दो प्रकार के बच्चे देखे। एक फर्स्ट डिवीज़न के पुरुषार्थी सूर्यवंशी देवता रूपों में, दूसरे सेकेण्ड डिवीज़न वाले चन्द्रवंशी क्षत्रिय रूप में। दोनों की स्टेज और स्पीड दोनों में अन्तर था। संकल्प दोनों का सम्पूर्णता की मंजिल पर पहुंचने का ही था वा अभी भी है। लेकिन पहले नम्बर अर्थात् सूर्यवंशियों के संकल्प और स्वरूप में ज्यादा अन्तर नहीं है, सेकेण्ड नम्बर चन्द्रवंशियों में संकल्प में ज्यादा फर्क है। संकल्प और स्वरूप 100 प्रतिशत पावरफुल और स्वरूप कब 75 प्रतिशत कब 50 प्रतिशत इतना अन्तर है।
सूर्यवंशी सदा मास्टर ज्ञान सूर्य अर्थात् पावरफुल स्टेज बीज़रूप में रहते अथवा सेकेण्ड स्टेज अव्यक्त फरिश्ते में ज्यादा समय स्थित रहते। चन्द्रवंशी ज्ञान सूर्य समान बीज़रूप स्टेज में कम ठहर सकते लेकिन फरिश्ते स्वरूप में और अनेक प्रकार के माया के विघ्नों से युद्ध कर विजयी बनने की स्टेज में ज्यादा रहते हैं। कब व्यर्थ संकल्प के रूप में कब समस्या के रूप में, माया से विजयी बनने की मेहनत में ज्यादा समय रहते एक घण्टे की मेहनत से आधा घण्टा वा 15 मिनट सफलता का अनुभव करते इसलिए पुरूषार्थ का मेहनत करते-करते कब थक जाते कब चल पड़ते हैं। कब दौड़ लगाते - कब दौड़ लगाने वालों को देखकर दौड़ना चाहते लेकिन दौड़ नहीं सकते। बाप के हर गुण के अनुभव करने में अधूरी स्टेज पर पहुंचते अर्थात् 50-50 अवस्था रहती। जैसे वर्णन करेंगे बाप सुख का सागर है मैं सुख स्वरूप हूँ लेकिन सदा सुख की अनुभूति नहीं होगी - सम्पूर्ण सुख का अनुभव कभी होगा कभी नहीं होगा। जैसे चन्द्रमा की कलायें बढ़ती और घटती रहती हैं। वैसे चन्द्रवंशी कब बहुत उमंग उत्साह में सम्पूर्ण स्टेज का अनुभव करेंगे और कब स्वयं को सम्पूर्णता से बहुत दूर अनुभव करेंगे। और कब साथ लेने के लिए याद की स्टेज से फरियाद की स्टेज में आ जायेंगे।
सूर्यवंशी - सदा बाप के साथ और सर्व सम्बन्ध की अनुभूतियों में लवलीन रहेंगे। 2- सूर्यवंशी चढ़ती और उतरती कला में नहीं आते। सदा चढ़ती कला अनुभव करते जैसे सूर्य सदा प्रकाश स्वरूप अनुभव होता, कलाओं के चक्कर में नहीं आता। कब 14 कला सम्पन्न स्टेज कब 8 कला सम्पन्न स्टेज हो इतना अन्तर नहीं होता। 3- सूर्यवंशियों के आगे माया बादल की तरह सामने आती जरूर है लेकिन बादल आता और चला जाता। 4- सूर्यवंशी अपने स्वरूप को सदा समान रखते, बादल को देख प्रकाश कम नहीं होता। सदा अपने बाप के गुण से गुणों में साकार रूप में अनुभवी होते और औरों के आगे भी प्रत्यक्ष होते। 5- सूर्यवंशी सदा बेहद के सेवाधारी स्वयं को लाइट हाउस माइट हाउस अनुभव करते। 6- सूर्यवंशी का हर कदम साकार ब्रह्मा बाप के कर्म रूपी कदम के पीछे कदम उठाने वाले होते अर्थात् कर्म और पुरूषार्थ की गति में साकार ब्रह्मा बाप समान होंगे। 7- सूर्यवंशियों का पहला कदम फालो फादर का होगा - मन-बुद्धि और साकार में सदा बाप के आगे समर्पण होंगे। जैसे ब्रह्मा बाप की विशेषता देखी - इसी महात्याग से महान भाग्य मिला नम्बरवन सम्पूर्ण फरिश्ता रूप और नम्बरवन विश्व महाराजन्। ऐसे सूर्यवंशी भी महान त्यागी वा सर्वस्व त्यागी होगी। सर्वस्व त्यागी का अर्थ ही है संस्कार रूप में भी विकारों के वंश का त्याग। ऐसे सर्वस्व त्यागी फालो फादर करने वाले वर्तमान फरिश्ता स्वरूप और भविष्य में नम्बरवन विश्व महाराजन् बनते हैं। 8- सूर्यवंशी सदा निश्चय बुद्धि का प्रत्यक्ष स्वरूप सदा निश्चिन्त और सदा स्वयं को कल्प-कल्प के निश्चिंत विजयी अनुभव करेंगे। 9- सूर्यवंशी सदा विश्व कल्याण की जिम्मेदारी को निभाते हुए जितनी बड़ी जिम्मेदारी उतना ही डबल लाइट रूप होंगे। 10- सूर्यवंशी अपने वृति और वायब्रेशन की किरणों द्वारा अनेक आत्माओं को स्वस्थ अर्थात् स्वस्मृति में स्थित करने का अनुभव करावेंगे। 11- सूर्यवंशी सदा अपने प्राप्त हुए सर्व खज़ानों का स्वार्थ अर्थात् स्व अर्थ नहीं लेकिन सर्व प्रति महादानी और वरदानी होते। 12- सूर्यवंशी की विशेष दो निशनियाँ अनुभव होगी - एक तो सदा निर्वाण स्थिति में स्थित हो वाणी में आना। दूसरा सदा स्थिति में स्वमानबोल और कर्म में निर्माण अर्थात् निर्वाण और निर्माण दो निशानियाँ अनुभव होगी।
ऐसे ही चन्द्रवंशी की सब बातें कब कैसी कब कैसी और 50-50 होगी। कब 100 के मणके समान चमकेगा कब अपनी कमजोरियों की माला बाप के आगे बार-बार सुमिरण करेगा। कभी समर्थ कभी व्यर्थ। कभी महान कभी साधारण। कभी अपने को अथॉरिटी अर्थात् महाबीर अनुभव करेंगे कभी कहेंगे सहारा मिले, सहयोग मिले तो आगे बढ़े। ऐसे लंगड़ाते हुए चलने वाले अनुभव करेंगे अभी अपने से पूछो कि मैं कहाँ तक पहुँचा हूँ। सूर्यवंशी हूँ वा चन्द्रवंशी की स्टेज को पार कर सूर्यवंशी की बाउन्ड्री तक पहुँचे हें वा चन्द्रवंशी में ही हैं। बाउन्ड्री तक पहुँचने वाले कब सूर्यवंशी की स्टेज में जम्प लगाते कभी चन्द्रवंशी में रहते अब आप कहाँ हो वह चैक करो। बाउन्ड्री पार कर सूर्यवंशी बनो। समझा कया करना है अच्छा –
ऐसे स्वयं को सदा सूर्यवंशी के अधिकारी बनाने वाले बाप के हर कदम पर कदम रखने वाले बाप समान सदा फरिश्ते रूप में रहने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य बन विश्व को अपनी प्राप्तियों के किरणों द्वारा अन्धकार से रोशन बनाने वाले ऐसे मास्टर ज्ञान सूर्य बच्चों को बाप दादा का याद-प्यार और नमस्ते।
गुजरात को सहज योगी का वरदान मिला हुआ है। गुजरात की धरनी सात्विक होने के कारण बनी बनाई धरनी है। बनी बनाई धरनी में बीज़ पड़ने से फल सहज निकल आता है। सहज योगी का ड्रामा अनुसार वरदान मिला हुआ है इसी वरदान को स्मृति में रखते स्वयं भी सहजयोगी और सर्व को भी सहजयोगी बनाओ। सदा विजय का झण्डा हाथ में हो। अब ऐसी विशेष आत्माओं को सम्पर्क में लाओ जिन्हों से सेवा का आवाज़ दूर तक फैले। ज्ञान के हिसाब से विशेष व्यक्ति नहीं लेकिन दुनिया के हिसाब से जो विशेष व्यक्ति हैं उनकी सेवा करो। इससे स्वत: ही अखबार वाले, रेडिओ, टी.वी. वाले आवाज़ फैलाते हैं। ऐसी कोई विशेष आत्मा निकालो जिनके आवाज़ से अनेक आत्माओं का कल्याण हो जाए। बापदादा सदैव सभी उम्मीद रखते हैं। अब उम्मीदों का प्रैक्टिकल रूप दिखाना। समय बहुत कम है और सेवा बहुत रही हुई है अब सेवा का तरीका ऐसा हो जो एक चक्र से अनेकों का कल्याण हो जाए। अभी ऐसी स्पीड चाहिए। राज्य अधिकारी तो अपना भाग्य लेते रहेंगे - लेकिन सन्देश तो सभी को देते जाओ। जो उल्लाहना न रह जाए। अच्छा –
पार्टियों के साथ मुलाकात
1. बीजरूप स्थिति द्वारा सारे विश्व की सेवा :- बीजरूप स्टेज सबसे पावरफुल स्टेज है, उसके बाद सब नम्बरवार स्टेज हैं, यहाँ स्टेज लाइट हाउस का कार्य करती है। सारे विश्व में लाइट फैलाने के निमित्त बनते हैं। जैसे बीज द्वारा स्वत: ही सारे वृक्ष को पानी मिल जाता है ऐसे जब बीजरूप स्टेज पर स्थित रहते तो आटोमेटिकली विश्व की लाइट का पानी मिलता रहता। जैसे लाइट हाउस एक स्थान पर होते हुए चारों ओर अपनी लाइट फैलाते हैं ऐसे लाइट हाउस बन विश्व कल्याणकारी बन विश्व तक अपनी लाइट फैलाने के लिए पावरफुल स्टेज चाहिए। जैसे स्थूल लाइट का बल्ब तेज पावर वाला नहीं होगा तो चारों ओर लाइट नहीं फैल सकती, जीरों पावर हद तक रहेगी ना। तो अब लाइट हाउस बनो न कि बल्ब। बेहद के बाप के बच्चे बेहद सेवाधारी वर्तमान समय बेहद सेवा की आवश्यकता है, कयोंकि बेहद विश्व का परिवर्तन हैं। विश्व परिवर्तन करने के लिए पहले स्वयं का परिवर्तन करो। हर संकल्प में स्मृति रहे कि विश्व का कल्याण हो।
व्यक्तिगत मुलाकात
सदा सम्पन्न आत्माओं की निशानियाँ - जो सदा सर्व खज़ानों से सम्पन्न होगा वह सदा सन्तुष्ट होगा। असन्तुष्टता का कारण है अप्राप्ति। जो भरपूर आत्मायें हैं वह अन्य आत्माओं को भी दे सकेंगी। अगर स्वयं में कमी होगी तो औरों को भी दे नहीं सकते। सन्तुष्टता अर्थात् सम्पन्नता। जैसे बाप सम्पन्न है इसलिए बाप की महिमा में सागर शब्द कहते हैं, यह सम्पन्नता को सिद्ध करता है। तो बाप समान मास्टर सागर बनो। नदी तो फिर भी सूख जाती है। सम्पन्न आत्मायें सदा खुशी में नाचती रहेंगी। खुशी के सिवाए और कुछ अन्दर आ नहीं सकता। सन्तुष्ट आत्मायें सम्पन्न होने के कारण किसी से भी तंग नहीं होगी। सम्बन्ध में भी कोई खिटखिट नहीं होगी। अगर होगी भी तो उसका असर नहीं आयेगा। किसी भी प्रकार की उलझन या विघ्न एक खेल अनुभव होगा। समस्या भी मनोरंजन का साधन बन जायेगी क्योंकि नालेज़फुल होकर देखेंगे। वह सदा निश्चयबुद्धि होने के कारण निश्चय के आधार पर विजयी होंगे। सदा हर्षित होंगे।
2. वर्ल्ड सर्वेन्ट समझने से एकरस स्थिति का अनुभव :- बापदादा को सदा सेवाधारी बच्चे याद रहते हैं, क्योंकि बाप का भी काम है वर्ल्ड सर्वेन्ट का। जैसे बाप वर्ल्ड सर्वेन्ट है वैसे बच्चे भी। सर्वेन्ट को सदा सेवा और मास्टर याद रहता है। तो ऐसे सेवाधारी बच्चों को भी बाप और सेवा के सिवाए कुछ याद नहीं इससे ही एकरस स्थिति में रहने का अनुभव होता। उन्हें एक बाप के रस के सिवाए सब रस नीरस लगेंगे। एक बाप के रस का अनुभव होने के कारण और कहाँ भी आकर्षण नहीं जा सकती यही पुरूषार्थ है और यही मंजिल है। बाप दादा सभी को तीव्र पुरुषार्थी की नजर से देखते हैं, पुरुषार्थी रहेंगे तो भी मंजिल पर नहीं पहुँचेंगे।
3. सर्व सम्बन्धों का रस एक बाप से लेने वाले ही नष्टोमोहा - बाप को सर्व सम्बन्धों से अपना बना लिया है? सिर्फ बाप के सम्बन्ध से नहीं लेकिन सर्व सम्बन्ध बाप के साथ हो गये अपना बनाना अर्थात् बाप का खुद बनना। तो सर्व सम्बन्ध से एक बाप दूसरा न कोई, जिसके सर्व सम्बन्ध बाप के साथ हो गये उसका शेष गुण क्या दिखाई देगा? वह सदा निर्मोही होगा। जब किसीं तरफ लगाव अर्थात् झुकाव नहीं तो माया से हार हो नहीं सकती। ऐसे नष्टोमोहा बनना अर्थात् सदा स्मृति स्वरूप। सदैव अमृतवेले यह स्मृति में लाओ कि सर्व सम्बन्धों का सुख हर रोज बाप दादा से लेकर औरों को भी दान देंगे। हर सम्बन्ध का सुख लो। सर्व सुखों के अधिकारी बन औरों को भी बनाओ। ऐसे अधिकारी समझने वाले सदा बाप को अपना साथी बनाकर चलते हैं। जो भी काम हो तो साकार साथी न याद आवे पहले बाप याद आवे। सच्चा मित्र भी तो बाप हैं ना, ऐसे सच्चे साथी का साथ लो तो सहज ही सर्व से न्यारा और प्यार बन जायेंगे। एक बाप से लगन है तो नष्टोमोहा हैं।
टीचर्स से मुलाकात
जो स्नेह में सदा रहने वाली स्नेही आत्मायें हैं, ऐसे स्नेही आत्माओं को बाप दादा भी सदा स्नेह का रिटर्न देते हैं - किस समय देते हैं? अमृतवेले विशेष। अमृतवेले सहज वरदान मिलता है। वैसे तो सारा दिन अधिकार है फिर भी वह खास समय है वह बाप है। जैसे विशेष टाइम होता है ना कि इस टाइम पर यह चीज़ सस्ती मिलेगी, सीज़न होती है ना अमृतवेला विशेष सीज़न है इसलिए सहज प्राप्ति होती है, सभी टीचर्स निर्विघ्न हो ना योग का किला मजबूत करो, विशेष जब कोई विघ्न कहाँ आते हैं तो जैसे अन्तर्राष्ट्रीय योग रखते हो। वैसे हर मास संगठित रूप में चारों ओर विशेष टाइम पर एक साथ योग का प्रोग्राम रखो। पूरा ज़ोन का ज़ोन योगदान दें। जिससे किला मजबूत होगा। कोई भी तार नहीं काट सकेगा। जितना सेवा बढ़ाते जायेंगे उतना माया अपना बनाने की कोशिश भी करेगी तो जैसे कोई कार्य शुरू किया जाता है तो शुद्धि की विधियाँ की जाती है ना तो सर्व श्रेष्ठ आत्माओं का एक ही शुद्ध संकल्प हो विजयी, यह हो गई शुद्धि द्वारा विधि चारों ओर एक साथ किला मजबूत करो - तो विजयी हो जायेंगे। अच्छा - ओम् शान्ति।
08-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
संगमयुग में समानता में समीप भविष्य सम्बन्ध में भी समीप आत्माएं
सर्व के विघ्नों का विनाश करने वाले रूहानी पिता शिव बाबा बोले –
आज बाप-दादा चारों ओर के विदेशी और देशवासी बच्चों को दूर होते भी सन्मुख देख सर्व बच्चों को उसमें भी विशेष रूप में विदेशी बच्चों को एक बात के लिए विशेष शाबास दे रहे हैं। क्योंकि कोने-कोने में बाप के छिपे हुए बच्चों ने बाप को पहचान निश्चय से बहुत अच्छा जम्प लगाया है। भिन्न-भिन्न धर्म के पर्दे के अन्दर होते हुए भी सेकेण्ड में पर्दे को हटाए बाप के साथ सहयोगी आत्माएं बन गए, लगन में आए हुए विघ्नों को भी सहज ही पार कर रहे हैं। इसलिए बाप-दादा विशेष शाबास देते हैं। ऐसे हिम्मत रखने वाले बच्चों के साथ बाप-दादा का सदा सहयोग है - हर बच्चे के साथसाथ हर कर्म में बाप का साथ हैं - सभी बच्चों को बाप-दादा द्वारा बुद्धि रूपी लिफ्ट की गिफ्ट मिली हुई है। गिफ्ट तो सबको मिली हुई है लेकिन उसको कार्य में लाना हरेक के ऊपर है। बहुत पावरफुल और बहुत सहज लिफ्ट की गिफ्ट है। सेकेण्ड में जहाँ चाहो वहाँ पहुँच सकते हो। यह वन्डरफुल लिफ्ट तीनों लोकों तक जाने वाली है। जैसे ही स्मृति का स्वीच आन किया तो एक सेकेण्ड में वहाँ पहुँच जावेंगे। लिफ्ट द्वारा जितना समय जिस लोक का अनुभव करना चाहो उतना समय वहाँ स्थित रह सकते हो - इस लिफ्ट को विशेष यूज़ करने की विधि है अमृतबेले केयरफुल बन स्मृति के स्वीच को यथार्थ रीति से सेट करो तो सारा दिन आटोमेटिकली चलती रहेगी। सेट करना तो आता हे ना। अच्छी तरह से अभ्यासी हो ना। दिव्य बुद्धि रूपी लिफ्ट सारे दिन में कहाँ अटकती तो नहीं है। अथॉरिटी होकर इस लिफ्ट को कार्य में लगाने से कभी भी यह लिफ्ट धोखा नहीं देगी। वर्तमान संगमयुग की लिफ्ट यह दिव्य बुद्धि की लिफ्ट है। साथ साथ भविष्य स्वर्ग के राज्य की गिफ्ट भी बाप-दादा अभी देते हैं - स्वर्ग के गेट की चाबी बाप-दादा बच्चों को ही देते हैं। चाबी है अधिकारपन अर्थात् अधिकारी बनना। अधिकार की चाबी से गेट खुला हुआ है। तो नम्बर वन अधिकारी कौन बनता अर्थात् अधिकार द्वारा गेट पहले कौन खोलता उसको भी अच्छी तरह से जानते हो - लेकिन अकेले नहीं खोलते। उद्घाटन के समय आप भी सभी होंगे ना। देखने वाले होंगे वा करने वाले होंगे! कौन होंगे! साथी होंगे ना! कम से कम ताली बजाने के साथी तो होंगे ना। खुशियों की पुष्प वर्षा करेंगे ना। बाप-दादा समय की समीपता को देख हर बच्चे का बाप-दादा के साथ क्या समीप सम्बन्ध है, देख रहे हैं। अति समीप कौन है और समीप कौन हैं - और थोड़ा सा दूर से देखने वाले कौन है। बच्चों का डबल भविष्य बापदादा के सामने आता है। एक संगमयुग का भविष्य अर्थात् बाप समान बनने का भविष्य और दूसरा फर्स्ट जन्म का भविष्य अर्थात् स्वर्ग का भविष्य। यहाँ समानता में समीप होंगे और वहाँ सम्बन्ध में समीप होंगे। जितना यहाँ समीपता द्वारा सदा साथ है उतना ही मूलवतन में भी ऐसी आत्माएं साथ-साथ हैं। और स्वर्ग में भी हर दिनचर्या में सम्बन्ध का साथ है - जैसे यहाँ तुम्ही से बोलूँ तुम्ही से खेलूँ, तुम्हीं से साथ निभाऊंगा वैसे भविष्य में भी सवेरे से साथ बगीचे में खेलेंगे, रास करेंगे, पाठशाला मे पढ़ेंगे, सदा मिलते रहेंगे और फिर साथ-साथ राज्य करेंगे। जैसे ब्रह्मा बाप सदा स्वराज्य करने वाले अर्थात् स्व अधीन नहीं लेकिन स्व अधिकारी थे। ऐसे ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले जिन्हों का सदा संकल्प साकार में है कि स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, ऐसे स्वराज्य करने वाले वहाँ भी साथ में राज्य करेंगे। यहाँ के नम्बरवन रेगुलर और पंचुअल गाडली स्टुडेन्ट वहाँ भी साथ-साथ पढ़ेंगे क्योंकि ब्रह्मा बाप नम्बरवन गाडली स्टुडेन्ट है - जो यहाँ अतिइन्द्रिय सुख के झुले में बाप के साथ-साथ सदा झूलते हैं वह वहाँ भी झूले में साथ झूलेंगे। जो यहाँ अनेक प्राप्तियों की खुशी में नाचते हैं वह वहाँ भी साथसाथ रास करेंगे। जो यहाँ बाप के गुण और संस्कार के समीप सर्व सम्बन्धों से बाप का साथ अनुभव करते हैं वही वहाँ रायल कुल के समीप सम्बन्ध में आवेंगे - तो बापदादा हरेक के नयनों से दोनों भविष्य देखते हैं - फर्स्ट जन्म में आना ही फर्स्ट नम्बर की प्रालब्ध है। तो विदेशी बच्चे सब फर्स्ट जन्म में आवेंगे ना। इतने सब फर्स्ट में आवेंगे! फर्स्ट में कौन आवेंगे उसकी पहचान विशेष एक बात से करो। वह कौनसी? आदि से अब तक अव्यभिचारी और निर्विघ्न होंगे, विघ्न आए भी हों तो विघ्नों को जम्प दे पार किया है वा विघ्नों के वश हुए - निर्विघ्न का अर्थ यह नहीं कि विघ्न आए ही न हों - लेकिन विघ्न विनाशक वा विघ्नों के ऊपर सदा विजयी रहे। यह दोनों बातें अगर आदि से अन्त तक ठीक हैं तो फर्स्ट जन्म में साथी बन सकते हैं - सहज मार्ग हैं ना। अच्छा –
कर्नाटक के बच्चे भी आए हैं। यह भी भारत का विदेश ही है। लण्डन से सहज आ सकते हैं लेकिन यह बहुत मेहनत से आते हैं। इसलिए मेहनत का फल प्रत्यक्ष बाप का मिलन हुआ है। लगन वाले अच्छे हैं - बच्चों की लगन को देख बाप भी हर्षित होते हैं। सदा इसी लगन के दीपक को बार-बार अटेन्शन के घृत से अविनाशी रखना। कर्नाटक के तरफ दीप बहुत जगाते भी हैं - जैसे स्थूल दीपक जगाते रहे वैसे अब लगन का दीपक सदा जगता रहे। सब अपने को बाप के खुशनशीब बच्चे समझते हो ना - अच्छा आज तो मिलने का दिन है –
सभी सिकीलधे बच्चों को श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले बच्चों को सदा स्वराज्य अधिकारी बच्चों को, तिलक और तख्तनशीन बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पार्टियों से मुलाकात (6-1-79)
1. ब्राह्मण जन्म की मुख्य पर्सनालीटी है प्यूरिटी -
सदा अपने को मन-वाणी और कर्म में सम्पूर्ण प्यूरिटी की पर्सनैलिटी वाले अनुभव करते हैं? क्योंकि ब्राह्मणों की परसनाल्टी है ही प्यूरिटी तो जो ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है वह अपने जीवन में अनुभव करते हो? जितनी पर्सनैलिटी होगी उतना ही विशेष आत्माएं गाई जाएंगी। मुख्य पर्सनैलिटी प्यूरिटी है। ब्रह्मा बाप भी आदि देव वा पहला प्रिन्स कैसे बने। इस प्यूरिटी की पर्सनैलिटी के आधार पर वन नम्बर की पर्सनैलिटी की लिस्ट में आए। तो फालो फादर है ना। संस्कार ही पवित्रता के हैं। ब्राह्मण जन्म के संस्कार ही पवित्र हैं। इसलिए आजकल के ब्राह्मणों द्वारा ही किसी भी प्रकार की शुद्ध वा श्रेष्ठ कार्य कराते हैं। क्योंकि उन्हों को महान समझते हैं, श्रेष्ठता ही पवित्रता है। तो ऐसे ब्राह्मण जीवन के निजी जन्म संस्कार अपने में अनुभव करते हो। पवित्रता जन्म संस्कार बनी है? जैसे कोई के क्रोध के संस्कार जन्म से होते हैं तो कहते हैं चाहते नहीं हैं, मेरे जन्म के संस्कार हैं, ऐसे यह जन्म के संस्कार स्वत:ही कार्य करते हैं। कभी स्वप्न में भी अपवित्रता के संकल्प नहीं आए इसको कहा जाता है प्यूरिटी की परसनाल्टी वाले। इस परसनाल्टी के कारण ही विश्व की आत्माएं आज तक नमस्कार कर रही हैं। महान आत्माओं को न जानते भी नमस्कार करते हैं, साधारण को नहीं, तो ऐसे महान हो ना।
2. मोह का बीज है सम्बन्ध – उस बीज को कट करने से सब शिकायतें समाप्त - मातायें सब नष्टोमोहा हो ना। जब बाप के साथ सर्व सम्बन्ध जोड़ लिए तो और किसमें मोह हो सकता है क्या? बिना सम्बन्ध के कोई में मोह नहीं हो सकता। सदा यह याद रखो जब सम्बन्ध नहीं तो मोह कहाँ से आया, मोह का बीज है सम्बन्ध। जब बीज को ही कट कर दिया तो बिना बीज के वृक्ष कैसे पैदा होगा। अगर अभी तक होता है तो सिद्ध है कि कुछ तोड़ा है कुछ जोड़ा है, दो तरफ है। तो दो तरफ वाले को न मंजिल मिलती न किनारा होता। तो ऐसे तो नहीं हो ना। सब नष्टोमोहा हो ना। फिर कभी शिकायत नहीं करना कि क्या करें बन्धन हैं, कटता नहीं...जहाँ मोह नष्ट हो गया तो स्मृति स्वरूप स्वत: हो जाते फिर कटता नहीं मिटता नहीं यह भाषा खत्म हो जाती। सर्व प्राप्ति स्वरूप हो जाते। सदा मनमनाभव रहने वाले मन के बन्धन से भी मुक्त रहते हैं। अच्छा - ओम् शान्ति।
विदेशी भाई बहनों के साथ –
सभी बाप के सदा नियरेस्ट और डियरेस्ट हो? क्या समझते हो अपने को? अपनी कल्प पहले की प्रालब्ध स्पष्ट सामने है ना। डबल विदेशी आत्माओं का नम्बरवार इस संगमयुग के विशेष पार्टो में विशेष पार्ट जुड़ा हुआ है। डबल विदेशी बच्चों को बाप दादा द्वारा विशेष वरदान है, कौन सा? विदेशी बच्चे जब से जन्म लेते हैं तभी पहली घड़ी में ही बापदादा द्वारा विशेष वरदान सदा छत्रछाया के अन्दर रहने का मिल जाता है जैसे भारत के शास्त्रों में दिखाया है, जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तो जेल में जन्म होते हुए भी जब नदी पार किया तो साँप ही सेफ्टी के साधन बन गये, तो विदेशी बच्चों को वरदान है कि कैसे भी वातावरण अशुद्ध है, कैसी भी जीवन पार्ट देख रहे हैं लेकिन फिर भी बाप की छत्रछाया बच्चों को सदा सेफ रखती आई है और अन्त तक रखेगी।
2. साथ-साथ विदेशी बच्चों को बाप के सदा साथ के अनुभव की विशेष मदद है। तीसरी बात विदेशी बच्चों को विशेष रूप से जन्मते ही सेवा के संस्कार का सहयोग है। यह भी विशेष ड्रामानुसार पार्ट मिला हुआ है। चौथी बात - याद की यात्रा में सहज ही अनुभवों की खान प्राप्त होने का वरदान भी विदेशियों को प्राप्त है। तो बताओ कितने लकीएस्ट हो? बापदादा के संगमयुगी विशेष अमुल्य रत्न ही जिन अमूल्य रत्नों द्वारा बाप दादा विश्व में ऐसे रत्नों को सेम्पुल के रूप में रखेंगे। इसलिए सदा बाप और सेवा के सिवाए कोई भी बात याद न रहे। साथ का अनुभव करते हो? शक्ति सेना क्या समझती है? शिव और शक्ति सदा साथ हैं ना, नाम ही है शक्ति, शिव शक्ति नहीं। जो शिव शक्ति है वह याद के सिवाए रह नहीं सकती। कभी भी कोई कार्य करो तो सदा यह सोचो कि विश्व सेवा के अर्थ निमित्तमात्र यह कार्य कर रहे हैं, इसी को ही कमल पुष्प के समान कहा जाता है तो सभी कमल पुष्प के समान कार्य करते न्यारे और बाप के प्यारे बन कर रहते हो? पाण्डव कमलपुष्प के समान हैं ना। यह लौकिक कार्य भी अनेक आत्माओं को सम्पर्क में लाने का साधन है क्योंकि ईश्वरीय सेवा के लिए सम्पर्क तो बनाना ही पड़ता है ना यही बना बनाया सम्पर्क मिल जाता है। इसलिए डबल कार्य के लिए डायरेक्शन दिये जाते हैं। और जैसे सम्पर्क आगे बढ़ते जायेंगे, सम्पर्क की आवश्यकता नहीं रहेगी फिर लौकिक खड़ा हो जायेगा अलौकिक कार्य के निमित्त बन जायेंगे। सभी की यह स्टेज आती है और सदा है। यह भी सेवा का चान्स समझकर कार्य करो।
आस्ट्रेलिया पार्टी - आस्ट्रेलिया वालों ने बाप को प्रत्यक्ष करने का संकल्प साकार में बहुत अच्छा लाया है। जो अनुभव किया वह अन्य आत्माओं को भी कराने का जो प्रैक्टिकल रूप दिखाया वह बहुत अच्छा। इस विशेषता के कारण आस्ट्रेलिया का नम्बर बापदादा के पास नम्बर वन में है। जैसे गायन है भारत के लिए घर-घर मन्दिर जैसे आस्ट्रेलिया वालों के घर-घर में अर्थात् जो भी आने वाले हैं, यह सेवा का सबूत देने में घर-घर को मन्दिर बनाने में नम्बर वन आ रहे हैं। तो आप सब कोन हो गये? मन्दिर में रहने वाली चैतन्य मूर्तियाँ। आप सब समझते हो हम नम्बर वन हैं? बाप को भी खुशी है। ऐसे ही आपको देखकर सब फालो करेंगे। आस्ट्रेलिया में क्यू सबसे पहले लगेगी। जैसे बाप बच्चों में उम्मीद रखते हैं तो आप सभी उम्मीदों के सितारे हो। चारों ओर ऐसे आवाज़ फैलाओ जो आस्ट्रेलिया का आवाज़। भारत में पहले पहुँच जाए। आवाज़ तब पहुँचेगा जब बुलन्द होगा। बुलन्द आवाज़ करने के लिए चारों ओर से एक आवाज़ निकले कि हमारा बाप गुप्तवेष में आ गया है। जैसे बाप ने आप बच्चों को गुप्त से प्रत्यक्ष किया वैसे आप सबको फिर बाप को प्रत्यक्ष करना है। सब शक्तियाँ मिलकर अंगुली देंगी तो सहज ही हो जायेगा। बहुत अच्छे-अच्छे रतन हैं। एक-एक रत्न की अपनी अपनी विशेषता है। सदा अपने को कल्प पहले वाले रत्न समझ कर चलेंगे तो विजय का जन्म सिद्ध अधिकार प्राप्त हो जायेगा विजयी रहेंगे। अच्छा - ओम् शान्ति।
10-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
अब वेस्ट और वेट को समाप्त करो
व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कराने वाले शिव बाबा बोले:-
बापदादा आज विशेष बच्चों की लगन और स्नेह को देख हर्षित हो रहे हैं - कैसे लगन से परवाने समान शमा पर आये हैं। सभी परवानों की एक ही विशेष मिलन की लगन है - इसलिए बापदादा को भी मिलन मनाने के लिए साकार महफिल में आना पड़ता है - हरेक के पुरूषार्थ की रफ्तार को देख बापदादा जानते हैं कि हरेक यथाशक्ति मंजिल पर पहुँचने का संकल्प कर चल रहे हैं। संकल्प एक है, मंजिल भी एक है गाइड भी एक है, श्रीमत भी एक ही है फिर भी नम्बरवार क्यों हैं। है भी सहज मार्ग और वर्तमान स्वरूप भी सहयोगी का है फिर भी स्पीड में अन्तर क्यों है। नम्बरवन और कोई फिर 16 हजार की माला का भी लास्ट मणका। दोनों ही के पुरूषार्थ का समय और साथी एक ही है, पढ़ाई का स्थान भी लास्ट अथवा फर्स्ट का एक ही शिक्षक भी एक है, शिक्षा भी एक ही है फर्स्ट वाले के लिए स्पेशल ट्युशन भी नहीं है फिर भी इतना अन्तर क्यों? कारण क्या है संगमयुग के टाइटिल्स भी बहुत बड़े हैं - फर्स्ट अथवा लास्ट के टाइटिल भी एक है - मास्टर सर्वशक्तिवान मास्टर नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी, मास्टर जानीजाननहार फिर भी लास्ट क्यों कुल भी एक ही है ब्राह्मण कुल - वंश भी एक ब्रह्मा के हैं कर्तव्य भी एक विश्व कल्याण का है फिर भी इतना अन्तर क्यों? वर्सा भी बेहद के बाप का हरेक के लिए बेहद है - अर्थात् मुक्ति जीवन मुक्ति का अधिकार सभी के लिए अन्तर भी है, क्यों। कारण क्या।
बापदादा ने सब बच्चों के पुरूषार्थ को देख मुख्य दो कारण देखें - एक तो वेस्ट अर्थात् व्यर्थ गँवाना दूसरा वेट अर्थात् वज़न ज्यादा। जैसे आजकल के जमाने में शारीरिक रोगों का कारण वेट जास्ती हैं, सर्व बीमारियों का निवारण वेट कम करना है वैसे पुरूषार्थ की गति के लास्ट और फर्स्ट कारण भी वेट कम न करना जैसे शरीर में भारीपन होने के कारण आटोमेटिकली बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं वैसे आत्मा के बोझ से आत्मिक रोग भी स्वत: पैदा हो जाता है - सबसे ज्यादा वेट बढ़ने का कारण जैसे शारीरिक हिसाब से ज्यादा वेट बढ़ने का कारण सड़ी हुई चीजें कहते हैं वैसे यहाँ भी सड़ी हुई वस्तु अर्थात् बीती हुई बातें जो न सोचने की हैं अर्थात् न खाने की हैं ऐसे सड़ी हुई बातों को बुद्धि द्वारा स्वीकार कर लेते हैं अथवा हर आत्माओं की कमियों वा अवगुणों का स्वयं में धारण करना इसको भी सड़ी हुई वस्तु कहेंगे। तली हुई वस्तु खाने में बड़ी अच्छी लगती है - अपने तरफ आकर्षण भी बहुत करती हैं - न दिल होते भी थोड़ा सा खा लेते हैं - जितना ही आकर्षण वाली होती हैं उतना ही नुकसान वाली भी होती हैं वैसे यहाँ फिर आकर्षण की चीजें हैं एक दो द्वारा व्यर्थ समाचार सुनना और सुनाना। रूप रूहरूहान का होता, लेन-देन करने का होता लेकिन उसका रिजल्ट एक दो के प्रति घृणा दृष्टि होती है। समझते हैं मनोरंजन है लेकिन अनकों के मन को रन्ज करते हैं। तो बाहर का रूप आकर्षण का है लेकिन रिजल्ट गिराना है ऐसी बातों का बुद्धि द्वारा धारण करना अर्थात् सेवन करना इस कारण वेट बढ़ जाता है। जैसे शारीरिक वेट बढ़ने के कारण दौड़ नहीं लगा सकेंगे, चढ़ाई नहीं चढ़ सकेंगे वैसे यहाँ भी पुरूषार्थ में तीव्र गति नहीं प्राप्त कर सकते। हर कदम में चढ़ती कला का अनुभव नहीं कर सकते। वजन भारी वाला हर स्थान पर सेट नहीं हो पाते। वजन भारी वाले को चलते-चलते एक तो रूकना पड़ता है दूसरा किसका सहारा लेना पड़ता है, इसी रीति पुरूषार्थ में चलते-चलते थक जाते हैं अर्थात् विघ्नों के वश हो जाते हैं पार नहीं कर पाते हैं। साथ-साथ कोई न कोई आत्मा को सहारा बनाकर चल सकते। एक बाप का सहारा तो सभी को मिला हुआ है लेकिन यह आत्माओं को सहारा बनाकर चलते। अगर थोड़ा भी आत्माओं का सहारा अर्थात् सहयोग नहीं मिलता तो चल नहीं पाते।
बार-बार कहेंगे सहयोग मिले तो आगे बढ़ें चान्स मिले कोई बढ़ावे तो आगे बढ़े। क्योंकि स्वयं भारी होने कारण दूसरे के सहारे द्वारा अपना बोझ हल्का करना चाहते हैं। इसलिए बापदादा भी कहते हैं वेट कम करो। इसका साधन है - जैसे शारीरिक हल्केपन का साधन है एक्सरसाइज़। वैसे आत्मिक एक्सरसाइज़ योग अभ्यास द्वारा अभी-अभी कर्मयोगी अर्थात् साकारी स्वरूपधारी बन साकार सृष्टि का पार्ट बजाना, अभी-अभी आकारी फरिश्ता बन आकारी वतनवासी अव्यक्त रूप का अनुभव करना - अभी-अभी निराकारी बन मूल वतनवासी का अनुभव करना, अभी-अभी अपने राज्य स्वर्ग अर्थात् वैकुण्ठवासी बन देवता रूप का अनुभव करना। ऐसे बुद्धि की एक्सरसाइज़ करो तो सदा हल्के हो जावेंगे। भारीपन खत्म हो जावेगा। पुरूषार्थ की गति तीव्र हो जावेगी। सहारा लेने की आवश्यकता नहीं होगी। सदा बाप के सहारे अर्थात् छत्रछाया के नीचे अनुभव करेंगे। दौड़ लगाने के बजाए हाईजम्प वाले हो जावेंगे। तो साधन है एक एकसरसाइज़ - दूसरा है खान-पान की परहेज करो। जो बुद्धि द्वारा कोई भी अशुभ वस्तु का सेवन करना अर्थात् धारण करना इसकी परहेज़ करो - जो सुनाया सड़ी हुई और तली हुई वस्तु का सेवन नहीं करो - दूसरा वेस्ट न करो। क्यों वेस्ट करते हो? जो वस्तु जैसी मूल्यवान है उसको वैसे यूज़ न करना इसको भी वेस्ट कहा जाता। बाप द्वारा यह समय संगमयुग का खज़ाना मिला है - संगमयुग का सेकेण्ड अनेक पदमों की वैल्यू का है - सेंकेण्ड का भी स्वयं के प्रति वा सर्व के प्रति पदमों के मूल्य समान यूज़ नहीं किया यह भी वेस्ट किया अर्थात् जैसा मूल्य है वैसे जमा नहीं किया। हर सेकेण्ड में पदमों की कमाई का वरदान ड्रामा में संगम के समय को ही मिला हुआ है - ऐसे वरदान को स्वयं प्रति भी जमा नहीं किया, औरों के प्रति भी दान न किया तो इसको भी व्यर्थ कहा जावेगा। ऐसे नहीं समझो कि कोई पाप तो किया नहीं वा कोई भूल तो की नहीं, लेकिन समय का लाभ न लेना भी व्यर्थ है। मिले हुए वरदान को न स्वयं प्राप्त किया न कराया तो इसको भी वेस्ट अर्थात् व्यर्थ कहेंगे। इसी प्रकार संकल्प भी एक खज़ाना है, ज्ञान भी खज़ाना है, स्थूल धन भी ईश्वर अर्थ समर्पण करने से एक नया पैसा एक रतन समान वैल्यू का हो जाता है, इन सब खज़ानों को स्वयं के प्रति वा सेवा के प्रति कार्य में नहीं लगाते तो भी व्यर्थ कहेंगे। हर सेकेण्ड स्व कल्याण वा विश्व कल्याण के प्रति हों। ऐसे सर्व खजाने इसी प्रति ही बाप ने दिये हैं - इसी कार्य में लगाते हो! कई बच्चे कहते हैं न अच्छा किया न बुरा किया - तो किस खाते में गया! वैल्यू न रखना इसको भी व्यर्थ कहेंगे। इस कारण पुरूषार्थ की रफ्तार तीव्र नहीं हो पाती और इसी के कारण नम्बरवार बढ़ जाते हैं। तो अब समझा नम्बरवार बनने का कारण क्या हुआ। वेट और वेस्ट। इन दोनों बातों को अब समाप्त करो तो फर्स्ट डिवीजन में आ जावेंगे। नहीं तो जास्ती वेट वाले को फिर वेट (इन्तजार) भी करना पड़ेगा। फर्स्ट राज्य के बजाए सेकेण्ड राज्य में आना पड़ेगा। वेट करना पसन्द है वा सीट लेना पसन्द है। अब क्या करेंगे - डबल लाइट बन जाओ। अच्छा –
ऐसे सदा फरिश्ते समान सदा हल्के रहने वाले हर खज़ाने को सदा स्वंय प्रति वा सर्व प्रति कार्य में लगाने वा सदा बाप के सहारे का अनुभव कर सहजयोगी जीवन अपनाने वाले, ऐसे तीव्र पुरूषार्थ बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। ओम् शान्ति।
दीदी जी के साथ बातचीत:-
महारथी अर्थात् वेटलेस - ऐसे महारथी सदा उड़ने वाली परियों के समान दिखाई देंगे। यह है ज्ञान परियाँ - ज्ञान और विज्ञान इन दोनों पंखों वाली परियाँ का स्थान परिस्तान है। परिस्तान किसको कहते हैं? स्वर्ग को तो परिस्तान कहते ही हैं लेकिन अब भी इस स्थूल स्थान से पर स्थान परिस्थान कौनसा है? दिलतख्त। सबसे बड़े से बड़ा दिलतख्त है - तो दिलतख्तनशीन अर्थात् परिस्तान की परियाँ। इसको कहा जाता परिस्तान की परियाँ। सदा स्थान ही यह हुआ। तख्त से नीचे नहीं आते। तख्त से नीचे आना अर्थात् बाप के सम्मुख के बजाए किनारे होना - जैसे बाप सदा बच्चों के सन्मुख हैं वैसे बच्चे भी सदा बाप के सन्मुख हैं। बाप के सन्मुख कौन रहते? बच्चे। भक्त किनारे रहते बच्चे सदा सन्मुख रहते। तो इसको कहेंगे परिस्तान की परियाँ। परियों का भी संगठन होता है साथ-साथ उड़ती हैं। जहाँ चाहें वहाँ उड़कर पहुँच सकती हैं - कोई आधार की आवश्यकता नहीं। तो ऐसी परिस्तान की परियाँ जो जब चाहें वहाँ उड़ सकें इसको कहा जाता है महारथी। महारथियों की अवस्था का यादगार चित्र भी है - हरेक गोपी के साथ गोपी वल्लभ का चित्र देखा है। हरेक गोपी के मुख से यही निकलता कि मेरा गोपी वल्लभ। तो ऐसे सदा साथ का चित्र यह है स्थिति का यादगार चित्र। एक दो से अलग नहीं - सदा साथ है। बाप पर पूरा हरेक का अधिकार है। ऐसे अधिकारियों का यह चित्र है जिन्होंने सदा के लिए बाप को अपना साथी बना लिया है - यह है महारथियों की स्थिति का चित्र। महारथी अर्थात् सदा साथ रहने वाले। साथ निभाने का यह चित्र है - महारथियों के सिवाए और आत्माएं तो कब सन्मुख, कब किनारा कर लेती। सदा साथ का अनुभव नहीं कर सकती। साथ छूटता और साथ पकड़ते हैं - इसलिए उन्हों का यह यादगार नहीं कह सकते। अच्छा –
महारथियों ने पुरूषार्थ की कोई नई इन्वेन्शन निकाली है जो बहुत रिफाइन हो - संकल्प किया और हुआ - इसको कहते हैं रिफाइन। ऐसा सहज साधन निकालो जिससे साधना कम हो और सिद्धि ज्यादा हो। जैसे आजकल साइन्स वाले इन्वेन्शन करते हैं दुख कम हो - और जिस कार्य अर्थ करते हैं वह सफलता भी ज्यादा हो - इसी प्रकार पुरूषार्थ के साधनों में ऐसा सहज साधन इनवैन्ट को अपने अनुभवों के आधार पर जो जैसे सेकेण्ड में साइन्स के साधन विधि को पाता है वैसे यह साइलेन्स का साधन सेकेण्ड में विधि प्राप्त हो। बाप नॉलेज देते हैं लेकिन जैसे साइन्स प्रयोगशालाओं में सब इन्वेन्शन प्रैक्टिकल में लाते हैं, ऐसे प्रयोग में तो आप बच्चे लाते हैं, प्रयोग में लाने वाले साधन अर्थात् अनुभव में लाने वाले साधन - उनमें से ऐसा कोई सहज साधन सुनाओ जिसमें मेहनत कम हो और अनुभव ज्यादा हो - ऐसे चारों ओर के वातावरण, चारों ओर की कमजोर आत्माओं के समाचार प्रमाण ऐसा साधन निकालो - जैसी बीमारी होती है वैसी दवाई निकाली जाती है - तो चारों ओर के समाचार अनुसार ऐसा साधन निकालो और फिर प्रैक्टिकल करके दिखायें अब महारथियों को ऐसा नया साधन इनवैन्ट करना चाहिए। ऐसा ग्रुप हो जिसको रीसर्च ग्रुप कहते हैं - अब समझा महारथियों को क्या करना है - फिर कारोबार भी हल्की हो जायेगी।
जैसे पहले-पहले मौन व्रत रखा था तो सब फ्री हो गए थे, टाइम बच गया था - तो ऐसा कोई साधन निकालो जिससे सबका टाइम बच जाए - मन का मौन हो व्यर्थ संकल्प आवे ही नहीं। यह भी मन का मौन है ना। जैसे मुख से आवाज़ न निकले वैसे व्यर्थ संकल्प न आयें - यह भी मन का मौन है। तो व्यर्थ खत्म हो जावेगा। सब समय बच जावेगा, तब फिर सेवा आरम्भ होगी। मन के मौन से नई इन्वेन्शन निकलेगी - जैसे शुरू के मौन से नई रंगत निकली वैसे इस मन के मौन से नई रंगत होगी। तो अभी पहले निमित्त कौन बनेंगे। महारथी ग्रुप - जो बाप द्वारा युक्तियाँ मिलती रहती हैं उनको प्रयोग करने के रूप में लाओ। वह रूप रेखा सभी को नहीं आती। वर्णन करना आता है लेकिन उसी साधन से सिद्धि को प्राप्त करें वह प्रयोग करना नहीं आता है - इसलिए योग भी नहीं लगता - तो ऐसा प्लैन बनाओ जिससे सहज ही विधि प्राप्त हो। अच्छा।
12-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
वरदाता बाप द्वारा मिले हुए खुशी के खज़ानों का भंडार
विश्व के रचयिता, सर्व खज़ानों के दाता, सर्व वरदानों के दाता बाप-दादा बोले:-
बाप-दादा बच्चों के राजभाग्य को देख कर हर्षित हो रहे हैं। सारी सृष्टि की सर्व आत्माओं से कितनी श्रेष्ठ आत्मायें हैं। कितनी सर्व खज़ानों से सम्पन्न आत्मायें हैं। इस समय की सम्पन्नता का गायन आप श्रेष्ठ आत्माओं के कारण स्थान का गायन सदा चलता आ रहा है। अब अन्त तक भी भारत भूमि का गायन विदेश में भी महान है। स्थान का महत्व आप चैतन्य महान आत्माओं के कारण है। आज तक भी आध्यात्मिक खजाने के लिए सबकी नज़र भारत के तरफ ही जाती है। स्थूल धन में गरीब माना जाता है लेकिन आध्यात्मिक खज़ाने अविनाशी सुख और शान्ति, शक्ति इन खज़ानों में भारत ही सबसे सम्पत्तिवान गाया जाता है - तो आपकी इस संगमयुगी की सम्पन्न स्थिति के कारण ही स्थान का गायन है। इतने खज़ानों से सम्पन्न होते हो जो आधा कल्प वही प्राप्त खजाने चलते रहते हैं। इतना खज़ाना जमा होता जो अनेक जन्म खाते रहते। ऐसा कभी कोई सारे कल्प में नहीं बन सकता। संगमयुग सर्व युगों में से छोटा युग होने के कारण इनकी बहुत थोड़ी-सी आयु है। जितनी छोटी-सी जीवन है छोटा-सा युग है इतनी कमाई सब युगों से श्रेष्ठ है। सदा अपने खज़ानों को स्मृति में रखते हो। क्या-क्या खज़ाने मिले हैं, किस द्वारा मिले हैं और कितने समय तक चलने वाले हैं - बाप ने खज़ाने तो सबको एक समान दिये हैं किसको एक लाख, किसको हजार नहीं दिया हे। सब बच्चों को बेहद का अखुट खज़ाना बाप द्वारा मिला है। ऐसे अखुट खज़ाने से स्वयं को सदा भरपूर तृप्त आत्मा समझते हो! तृप्त आत्मा को सदा बाप और खज़ाना ही सामने रहता है। सदा इसी नशे में झूमते रहते हैं - सबसे बड़े ते बड़ा खज़ाना, जिस खज़ाने के लिए अनेक आत्मायें अनेक प्रकार के साधनों को अपनाती हैं फिर भी वन्चित हैं। वह कौनसा खज़ाना आपको मिल गया है। आज दुनिया में किस खजाने की इच्छा है जिस इच्छा के कारण आत्मायें जगह-जगह भटक रही हैं। आप सबके पास सिर्फ अब के लिए नहीं लेकिन अनेक जन्मों के लिए भी जमा है - वह कौन-सा खज़ाना मिला है? सबसे बड़े से बड़ा खज़ाना है खुशी का खज़ाना। इसी खुशी के लिए लोग तड़फते हैं। और आप सब सदा खुशी में नाचने वाले हो। आप सबके यादगार चित्र में भी खुशी का पोज़ दिखाया हुआ है - अपना चित्र याद है ना! अमृतवेले से लेकर इस खुशी के खज़ाने को यूज़ करो - सोचो - वा अपने आप से बातें करो - ऑख खुलते कौन सामने आता है! पहले-पहले संकल्प में किससे मिलन होता है - विश्व के रचता, सर्व खज़ानों के दाता, सर्व वरदानों के दात बीज से मिलन होता है। जिसमें सारा वृक्ष समाया हुआ है - सर्व आत्मायें भिखारी बन बाप की एक सेकेण्ड की झलक देखने की इच्छा से कितने कठिन मार्ग अपनाते हैं - और आप श्रेष्ठ आत्मायें सर्व सम्बन्धों से मिलन मनाने के अनुभवों के श्रेष्ठ खजाने के अधिकारी हो - तो सबसे पहली खुशी की बात है अमृतवेले सर्व सम्बन्ध से बाप से मिलन मनाना। दुनिया भिखारी है और आप हो बच्चे - इससे बड़ी खुशी और कोई हो सकती है क्या - तो अमृतवेले से इस खुशी के खजाने को यूज़ करो। यूज़ करना ही खज़ानों की चाबी है।
दूसरा खुशी का खज़ाना, इतनी सिकीलधे श्रेष्ठ आत्मायें हो जो स्वयं भगवान आपको पढ़ाने के लिए परमधाम से आते हैं। लण्डन वा अमेरिका से नहीं आते हैं - इस लोक से भी पार जहाँ तक साइन्स वाले स्वप्न में भी पहुँच नहीं सकते ऐसे परमधाम से स्पेशल आपके पढ़ाने के लिए आते हैं। और फिर पढ़ाने की फी नहीं लेते। और ही पढ़ाई की प्रालबध स्वर्ग का स्वराज्य स्वयं नहीं लेते, आपको देते हैं। तो इससे बड़ी खुशी और क्या होती है। इस स्मृति से खज़ाने को यूज़ करो - इससे आगे चलो।
कार्य करते हुए कर्मयोगी का पार्ट बजाते कर्मयोगी अर्थात् सदा बाप के साथ रहते हुए हर कार्य करने वाला कर्मयोगी के समय भी चाहे कोई भी कर्म कर रहे हो। लौकिक वा अलौकिक लेकिन आलमाइटी अथॉरिटी आपका साथी अर्थात् फ्रेंड बनकर हर समय साथ निभाते हैं। ऐसा फ्रेंड फिर कभी मिल नहीं सकता। कभी फ्रेंडशिप निभाते हैं - कभी कम्बाइन्ड युगल रूप निभाते हैं - ऐसा कम्बाइन्ड स्वरूप विचित्र युगल रूप जो सदा आपको कहते हैं - सारा बोझ हमें दे दो - और तुम सदा हल्के रहो - जहाँ भी कोई मुश्किल कार्य आये तो वह मुझे अर्पण कर दो तो मुश्किल सहज हो जावेगा। ऐसे कर्मयोग के पार्ट में सदा साथी पन के खज़ाने को वा सदा साथ के खुशी को यूज़ करो - और आगे चलो –
जब कार्य से खाली हो जाओ तो सबसे बड़े ते बड़ा मनोरंजन का धन प्राप्त है - अगर आपको सैर करने की रूचि है वा देखने की रूचि है, पढ़ने की रूचि है, श्रृंगार की रूचि है, डान्स की रूचि है, रूह-रूहान करने की रूचि है जो भी रूचि हो वह सब मनोरंजन के साधन आप के साथ हैं। देखने चाहते हो तो स्वर्ग को देखो - संगमयुग की श्रेष्ठता को देखो। अपने और बाप के कर्तव्य की अलौकिक कहानी का ड्रामा देखो। सैर करना चाहते हो तो तीन लोकों का सैर करो। श्रृंगार करना चाहते हो तो हर गुण के विस्तार से स्वयं को सजा लो। ड्रामा देखने चाहते हो तो पांच हजार वर्ष का ड्रामा देखो। हिस्ट्री पढ़ने चाहते हो तो अपने 84 जन्मों की हिस्ट्री देखो। रूह-रूहान करना चाहते हो तो रूह बन रूहों के रचता से रूह-रूहान करो। और क्या चाहिए। इन सब साधनों से सदा अपने को खुश रखो अर्थात् खजाने को यूज़ करो।
भोजन बनाते हो, भोजन बनाने के समय पहले भोग लगाना है अर्थात् प्यारे ते प्यारे बाप को स्वीकार कराना है - इस स्मृति से भोजन बनाओ कि किसको खिलाना है! आजकल की दुनिया में अगर कोई प्राईम मिनिस्टर वा प्रेजीडेन्ट आपके पास खाने आते हैं कितनी खुशी होती है लेकिन बाप के आगे यह सब क्या हैं! तो सदा बाप आपके साथ भोजन खाते हैं - भक्त बिचारे बार-बार घण्टियाँ बजा-बजा कर थक जाते हैं, बुलाते-बुलाते भूल भी जाते हैं - लेकिन बच्चों के साथ बाप का वायदा है सदा साथ रहेंगे। तुम्हीं से खावें, तुम्हीं से बैठें, तो इससे बड़ी खुशी और क्या चाहिए - तो भोजन के समय भी तुम्हीं से खाऊं यह सलोगन याद रखो - ऐसे खुशी के खजाने को यूज़ करो। और आगे चलो।
अभी दिन का अन्त समय आ गया - अर्थात् रात का समय आया - अब रात को क्या करेंगे? सोने के पहले सारे दिन के समाचार की लेन-देन चाहे कम्बाइन्ड रूप में करो - चाहे बाप के रूप में करो - एक दिन का समाचार दो और दूसरे दिन का श्रेष्ठ संकल्प और कर्म की प्रेरण लो - सब समाचार की लेन-देन करना अर्थात् हल्के बन जाना। जैसे रात को हल्की ड्रेस से सोते हैं ना - ऐसे बुद्धि को हल्का करना अर्थात् हल्की ड्रेस पहनना है - ऐसे तैयार हो साथ में सो जाओ - अकेले नहीं सोओ - अकेले होंगे तो माया चान्स लेगी, इसलिए सदा साथ रहो। अकेले रहने से डर भी लगता है, निर्भय भी हो जावेंगे। आप निर्भय रहेंगे ओर माया डराएगी। तो ऐसे सदा साथ के खुशी के खजाने को सारी रात के लिए यूज़ करो। अब बताओ सारे दिन में श्रेष्ठ खुशी के खजाने प्राप्त होते हुए भी श्रेष्ठ आत्मा कभी उदास हो सकती है! वा अन्य कोई मनोरंजन के तरह वा अल्पकाल के खज़ानों की तरफ आकर्षित हो सकती हैं! ऐसी श्रेष्ठ अर्थात् सम्पन्न आत्मायें हैं। आपके नाम से भी जब अनेक भक्त अल्पकाल की खुशी में आ जाते हैं। आपके जड़ चित्रों को देख खुशी में नाचने लगते हैं। ऐसे खुशनसीब आप सब को खज़ाने बहुत मिले हैं, अब सिर्फ यूज़ करो अर्थात् चाबी लगाओ। चाबी होते हुए भी समय पर नहीं मिलती है - समय पर खो जाती है इसलिए सदा सामने रखो अर्थात् सदा स्मृति में रखो। बार-बार स्वरूप स्मृति को रिफ्रेश करो। खज़ाना क्या और चाबी क्या! हर कर्म में जैसे सुनाया वैसे प्रैकिकल में लाओ - अर्थात् स्मृति को स्वरूप में लाओ। समझा - क्या करना है। अच्छा –
ऐसे सदा सर्व खज़ानों से सम्पन्न आत्मायें हर कर्म में बाप के साथ सर्व सम्बन्ध निभाने वाले सदा बाप को अपना साथी अनुभव करने वाले सदा माया के भय से निर्भय रहने वाले ऐसी तृप्त आत्माओं को, खजाने के मालिक आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।ओम् शान्ति।
पार्टीयों के साथ मुलाकात (कर्नाटक जोन)
1. सदा अपना कल्प पहले वाला सम्पन्न फरिश्ता स्वरूप सामने रहता है? कल्प पहले भी हम ही फरिश्ते थे - और अब भी हम ही फरिश्ते हैं। ऐसे अनुभव होता है? फरिश्ता अर्थात् जिसका एक बाप के साथ सर्व रिश्ता हो। अर्थात् सर्व सम्बन्ध हो। एक बाप दूसरा न कोई ऐसे अनुभव होता है कि और भी सम्बन्ध स्मृति में आते हैं, जिसके सर्व सम्बन्ध एक बाप के साथ होंगे उसको और सब सम्बन्ध निमित्त मात्र अनुभव होंगे। वह सदा खुशी में नाचने वाले होंगे। कभी भी थकावट का अनुभव नहीं करेंगे बाप समान स्टेज वाले सदा अथक होंगे, थकेंगे नहीं। सदा बाप और सेवा इसी लगन में मगन होंगे। तो हरेक विघ्न विनाशक हो या लगन और विघ्न दोनों साथ-साथ चलते हैं? विघ्नों के आने से रूकने वाले तो नहीं हो, हर कल्प विघ्न आये हैं और हर कल्प विघ्न विनाशक बने हो। जो हर कल्प के अनुभवी हैं उनको रिपीट करने में क्या मुश्किल! सदा यह स्मृति रहे कि हम कल्प-कल्प के विजयी हैं। अनेक बार कर चुके हैं अब सिपर् रिपीट कर रहे हैं, तो सहज योगी होना चाहिए ना - क्या करें कैसे करें, इन सब कम्पलेन (Complaint) से कम्पलीट (Complete) कम्पलीट आत्माओं की सब कम्पलेन खत्म हो जाती हैं। सम्पन्न होना अर्थात् सन्तुष्ट, असन्तुष्ट होने का कारण है अप्राप्ति, अप्राप्ति ही असन्तुष्टता को जन्म देती है। अप्राप्त नहीं कोई वस्तु...यह देवताओं का गायन नहीं, आप ब्राह्मणों का गायन है, मास्टर सर्वशक्तिवान का अर्थ ही है सम्पन्न स्वरूप। जैसा लक्ष्य होता वैसे लक्षण भी होते हैं, लक्ष्य एक हो और लक्षण दूसरे हों, लक्ष्य है सम्पूर्ण बनने का और धारणा अर्थात् प्रैक्टिकल रूप में कमी हैं तो अन्तर हुआ ना। अच्छा - सभी सदा हंसते रहते हो - रोते तो नहीं हो! रोने वाले बाप के युगल नहीं बन सकते। क्या करूँ, चाहता हूँ यह होने नहीं देते, मदद करो, कृपा करो यह भी रोना है, ऐसे रोने वालों को बाप अपने साथ कैसे ले जायेंगे! साथ चलने के लिए जैसा बाप वैसे बच्चे बनो, बाप समान बनो, जो भी कर्म करो पहले चेक करो यह बाप समान है, बाप समान नहीं है तो कट कर दो, आगे नहीं बढ़ो। कोई भी कर्म अगर श्रेष्ठ नहीं साधारण है तो उसे परिवर्तन कर श्रेष्ठ बनाओ, इससे सदा सम्पन्न अर्थात् बाप समान हो जायेंगे।
2. अनेक आत्माओं की दुआयें प्राप्त करने का साधन सेवा - सभी बाप के सहयोगी विश्व कल्याणकारी समझकर हर कार्य करते हो? जब यह लक्ष्य रहता है कि हम विश्व कल्याणकारी हैं तो अकल्याण का कर्तव्य हो नहीं सकता, जैसा कार्य होता है वैसी अपनी धारणायें होती हैं, अगर कार्य याद रहे तो सदा रहमदिल रहेंगे, सदा महादानी रहेंगे। विश्व कल्याणकारी की स्मृति से स्वयं भी हर कदम में कल्याणकारी की स्मृति से स्वयं भी हर कदम में कल्याणकारी वृति से चलेंगे और चलायेंगे। स्वयं प्रति भी हर कदम कल्याणकारी हो तब विश्व का कल्याण हो सकता है, सदा यह याद रहे कि निमित्त मात्र यह कार्य कर रहे हैं मैं पन समाप्त हो जायें और निमित्त पन याद रहे, ऐसे सदा सेवा करने से बाप की याद स्वत: रहती है। जितनी सेवा करते उतनी विश्व की अनेक आत्माओं द्वारा दुआयें मिलती हैं। आशीर्वाद मिलती हैं। अच्छा –
3. ईश्वरीय नशे की मस्ती से कर्मातीत अवस्था का निशाना अति समीप - आप श्रेष्ठ आत्मायें ज्ञान सागर बाप द्वारा डायरेक्ट सर्व प्राप्ति करने वाली हो और जो भी आत्मायें हैं वह श्रेष्ठ आत्माओं के द्वारा कुछ न कुछ प्राप्ति करती हैं, लेकिन आप डायरेक्ट बाप द्वारा सर्व प्राप्ति करने वाले हो, ऐसा श्रेष्ठ नशा रहता है? जितना नशा होगा उतना अपना कर्मातीत अवस्था का निशाना नज़दीक दिखाई देगा। अगर नशा कम होगा तो निशाना भी दूर दिखाई देगा। इस ईश्वरीय नशे में रहने से दुखों की दुनिया को सहज ही भूल जाते हैं, उस नशे में भी सब कुछ भूल जाता है ना तो इस ईश्वरीय नशे में रहने से सदाकाल के लिए पुरानी दुनिया भूल जाती। इस नशे में कोई नुकसान नहीं, जितना नशा चढ़ाओ उतना अच्छा, उस नशे को तो ज्यादा पिया तो खत्म हो जाते। यहाँ इस नशे से अविनाशी बन जाते। जो नशे में रहते हैं उनको देखने वाले भी अनुभव करते कि यह नशे में हैं, ऐसे आपको भी देख यह अनुभव करें कि यह नशे में हैं। अभी- अभी नशा चढ़ा अभी-अभी उतरा तो जो मज़ा आना चाहिए वह नहीं आयेगा, इसलिए सदा नशे में मस्त रहो, इस नशे में सर्व प्राप्ति है। एक बाप दूसरा न कोई यह स्मृति ही नशा चढ़ाती है। इसी स्मृति से समर्थी आ जाती।
सुना तो बहुत है अब जो सुना है उसका स्वरूप बन साक्षात कराओ। बापदादा सभी बच्चों को चैतन्य साक्षात्कार कराने वाली साक्षात मूर्तियाँ देखना चाहते हैं, जब चैतन्य मूतियाँ तैयार हो जायेंगी तब यह जड़ मूर्तियाँ समाप्त हो जायेंगी और यही भारत बेहद का मन्दिर बन जायेगा, अनेक समाप्त होकर एक ही बड़ा मन्दिर हो जायेगा। अच्छा।
4. संगमयुग के समय को हर कदम में पदमों की कमाई का वरदान - सदा स्वयं को हर कदम में पदमों की कमाई करने वाले पदमापदम भाग्यशाली आत्मायें समझते हो - चेक करते हो कि हर कदम में जमा होता जा रहा है! संगमयुग को यही वरदान मिला हुआ है, हर कदम में पदम जमा। तो एक सेकेण्ड भी वा एक कदम भी जमा नहीं किया तो कितना नुकसान हो गया, लौकिक में भी अगर कोई दिन कमाई नहीं होती है तो चिंता लग जाती है, वह तो हद की कमाई है यह बेहद की कमाई है, अभी का एक कदम पदमों की कमाई जमा करने वाला है तो यहाँ कितना अटेन्शन चाहिए। इतना अटेन्शन है कि साधारण कदम उठाते हो? अभी अलौकिक जन्म हुआ तो हर कदम अलौकिक होना चाहिए, साधारण नहीं। जो हर कदम में पदमों की कमाई जमा करने वाले होंगे उनकी निशानी क्या दिखाई देंगी? उनके चेहरे से सदा प्राप्ति की झलक दिखाई देगी, जैसे स्थूल कोई चीज की चमक दिखाई देती है ना वैसे प्राप्ति की, झलक चेहरे से दिखाई देगी। सम्पर्क में आने वाले भी समझेंगे कि इनको कुछ प्राप्त हुआ है। वह स्वयं ही आकर्षित हो करके आपके सामने आयेंगे, तो आपका सम्पन्न चेहरा सेवा के निमित्त बन जायेगा। सभी सदा खुश रहते हो कि कभी-कभी खुशी का खज़ाना माया छीन ले जाती है, माया का गेट बन्द है या खुला हुआ है! अब गेट में अच्छी तरह से डबल लाक लगाओ - सिंगल लाक भी माया खोल कर अन्दर आ जायेगी। डबल लाक अर्थात् याद और सेवा में बिजी रहो, अगर सिर्फ याद में होंगे सेवा में नहीं तो भी माया आ जायेगी। डबल लाक में माया अन्दर नहीं आयेगी। खटकायेगी अन्दर नहीं आयेगी अर्थात् वार नहीं करेगी। मन्सा सेवा भी बहुत है, अपनी वृति से वातावरण को शक्तिशाली बनाओ। सारे विश्व का परिवर्तन है ना, तो वृति से वातावरण परिवर्तन होगा। अच्छा।
5. फर्स्ट जन्म की सम्पन्न स्टेज तक पहुँचने का साधन - हाईजम्प :- अभी पुरूषार्थ का समय गया, क्योंकि समय की स्पीड बहुत तीव्र है, पीछे आने वालों को थोड़े समय में सब पढ़ाई पूरी करनी है। इसलिए तीव्र पुरूषार्थ कर हाईजम्प लगाओ। तीव्र पुरूषार्थ के लिए सिर्फ एक बात का अटेन्शन रखो - अपनी सम्पूर्ण स्टेज को सामने रखते वर्तमान का पोतामेल चैक करो - सम्पूर्ण स्टेज 16 कला है, तो 16 कलाओं में कितनी कलायें मैंने धारण की, ऐसे चैक करते जाओ, जो कमी है उसको भरते जाओ इसको कहा जाता है पुरूषार्थ। अच्छा –
विदाई के समय - जैसे बाप बच्चों को देख खुश होते हैं वैसे हर बच्चा सदैव खुशी में नाचता रहे। वह खुशी का चेहरा वाणी से भी ज्यादा सेवा करता है, चेहरा चैतन्य चलता फिरता म्युजियम हो जाए, जैसे म्यूजियम में भिन्न-भिन्न चित्र रखते हो - वैसे चेहरे में बाप के सर्व गुण दिखाई दें - मुख की सर्विस से तो जाकर के सुनाना पड़ता है, चेहरे द्वारा न बुलाते भी आप ही आयेंगे। तो अभी सब अपने को चैतन्य म्यूजियम बनाओ। जब इतने सारे म्यूजियम बन जायेंगे तभी स्वर्ग का उद्घाटन होगा। ब्रह्मा बाप इसी उद्घाटन के लिए रूके हुए हैं, तो जल्दी तैयार हो जाओ तो जल्दी उद्घाटन हो। कब उद्घाटन करेंगे? डेट फिक्स हो सकती है कि अचानक होगा, क्या होगा?
संगमयुग तो अच्छा है लेकिन सबको सुख और शान्ति देने का भी संकल्प चाहिए, औरों को दुखी देख, तड़फता हुआ देख रहम भी तो आना चाहिए ना। अच्छा - ओम् शान्ति।
14-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
ब्राह्मण जीवन का विशेष आधार - पवित्रता
पवित्रता, सुख और शान्ति का ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार प्राप्त करने वाले वत्सों के प्रति बाप-दादा बोले:-
आज अमृतवेले बाप-दादा बच्चों के मस्तक द्वारा हरेक की प्यूरिटी (Purity) की परसनाल्टी देख रहे थे - हरेक में नम्बरवार पुरूषार्थ प्रमाण प्यूरिटी की झलक चमक रही थी। इस ब्राह्मण जीवन का विशेष आधार प्यूरिटी ही है। आप सभी श्रेष्ठ आत्माओं की श्रेष्ठता प्यूरिटी ही है - प्यूरिटी ही इस भारत देश की महानता है, प्यूरिटी ही आप ब्राह्मण आत्माओं की प्रोस्पेर्टी (Prosperty) है जो इस जन्म में प्राप्त करते हो वही अनेक जन्मों के लिए प्राप्त करते हो। प्यूरिटी ही विश्व परिवर्तन का आधार है, प्यूरिटी के कारण ही आज तक भी विश्व आपके जड़ चित्रों को चैतन्य से भी श्रेष्ठ समझता है। आजकल की नामीग्रामी आत्मायें भी प्यूरिटी के आगे सिर झुकाती रहती हैं। ऐसी प्यूरिटी तुम बच्चों को बाप द्वारा जन्म-सिद्ध अधिकार में प्राप्त होती है - लोग प्यूरिटी को मुश्किल समझते हैं लेकिन आप सब अति सहज अनुभव करते हो - प्यूरिटी की परिभाषा तुम बच्चों के लिए अति साधारण है - क्योंकि स्मृति आयी कि वास्तविक आत्म स्वरूप है ही सदा प्योर। अनादि स्वरूप भी पवित्र आत्मा है। और आदि स्वरूप भी पवित्र देवता है, और अब का अन्तिम जन्म भी पवित्र ब्राह्मण जीवन है - इस स्मृति के आधार पर पवित्र जीवन बनाना अति सहज अनुभव करते हो - अपवित्रता परधर्म है पवित्रता स्वधर्म है। स्वधर्म को अपनाना सहज लगता है। आज्ञाकारी बच्चों को बाप की पहली आज्ञा है - पवित्र बनो तब ही योगी बन सकेंगे। इस आज्ञा का पालन करने वाले आज्ञाकारी बच्चों को बाप दादा देख हर्षित होते हैं। उसमें भी विशेष आज विदेशी बच्चों को, जिन्होंने बाप की इस श्रेष्ठ मत को धारण कर जीवन को पवित्र बनाया है, ऐसे पवित्र आज्ञाकारी आत्माओं को देख बच्चों के गुणगान करते हैं। बच्चे ज्यादा बाप के गुणगान करते हैं वा बाप बच्चों के ज्यादा गुणगान करते हैं? बाप के सामने वतन में विशेष श्रृंगार कौनसा है?
जैसे आप लोग यहाँ कोई स्थान का श्रृंगार मालाओं से करते हो - बापदादा के पास भी हर बच्चे के गुणों की माला की सजावट है। कितनी अच्छी सजावट होगी! दूर से ही देख सकते हो ना - हरेक अपनी माला का नम्बर भी जान सकते हैं कि हमारी गुण माला बड़ी है वा छोटी है - बापदादा के अति समीप हैं, सन्मुख हैं वा थोड़ा सा किनारे हैं। समीप किन्हीं की माला होती, यह तो जानते हो ना। जो बाप के गुणों और कर्तव्य के समीप हैं वही सदा समीप हैं - हर गुण से बाप का गुण प्रत्यक्ष करने वाले हैं, हर कर्म से बाप के कर्तव्य को सिद्ध करने वाले समीप रतन हैं।
आज बापदादा प्यूरिटी की सबजेक्ट में मार्क्स दे रहे थे - मार्क्स देने में विशेषता क्या देखी - पहली विशेषता मन्सा की पवित्रता - जब से जन्म लिया तब से अभी तक संकल्प में भी अपवित्रता के संस्कार इमर्ज न हों। अपवित्रता अर्थात् विष को छोड़ चुके। ब्राह्मण बनना अर्थात् अपवित्रता का त्याग। अपवित्रता का त्याग और पवित्रता का श्रेष्ठ भाग्य। ब्राह्मण जीवन में संस्कार ही परिवर्तन हो जाते हैं। मन्सा में सदा श्रेष्ठ स्मृति - आत्मिक स्वरूप अर्थात् भाई-भ्ई की रहती है - इस स्मृति के आधार पर मन्सा प्यूरिटी के मार्क्स मिलते हैं। वाचा में सदा सत्यता और मधुरता - विशेष इस आधार पर वाणी की मार्क्स मिलती हैं। कर्मणा में सदा नम्रता और सन्तुष्टता इसका प्रत्यक्ष फल सदा हर्षितमुखता होगी, इस विशेषता के आधार पर कर्मणा में मार्क्स मिलती हैं। अब तीनों को सामने रखते हुए अपने आपको चैक करो कि हमारा नम्बर कौनसा होगा। विदेशी आत्माओं का नम्बर कौनसा है?
आज विशेष मिलने के लिए आए हैं - कोई आत्माओं के कारण बाप को भी विदेशी से देशी बनना पड़ता है - सबसे दूर देश का विदेशी तो बाप है - विदेशी बाप इस लोक के विदेशियों से मिलने आये हैं। भारतवासी भी कम नहीं हैं - भारतवासी बच्चों का विदेशियों को चान्स देना भी भारत की महानता है - चान्स तो देने वाले भारतवासी सब चान्सलर हो गये। विदेशियों की विशेषता को जानते हो? जिस विशेषता के कारण नम्बर आगे ले रहे हैं - विशेष बात यह है कि कई विदेशी बच्चे आने से ही अपने को इसी परिवार के, इसी धर्म की बहुत पुरानी आत्मायें अनुभव करते हैं, इसी को कहा जाता है आने से ही अधिकारी आत्मायें अनुभव होते। मेहनत ज्यादा नहीं लेते - सहज ही कल्प पहले की स्मृति जागृत हो जाती है। इसलिए ‘हमारा बाबा’ यह बोल अनुभव के आधार से बहुत जल्दी कईयों के मुख से वा दिल से निकलता है। दूसरी बात गाडली स्टडी की विशेष सबजेक्ट सहज राजयोग - इस सबजेक्ट में मेजोरिटी विदेशी आत्माओं को अनुभव भी बहुत अच्छे और सहज होने लगते हैं। इस मुख्य सबजेक्ट के तरफ विशेष आकर्षण होने के कारण निश्चय का फाउन्डेशन मजबूत हो जाता है। यह है दूसरी विशेषता। अंगद के समान मजबूत हो ना - माया हिलाती तो नहीं हैं - आज विशेष विदेशियों का टर्न है इसलिए भारत के बच्चे साक्षी हैं –
भारतवासी बच्चे अपने भाग्य को तो अच्छी रीति जानते हैं - विदेशियों को भी राज्य तो यहाँ ही करना है ना - अपने भाग्य को जानते हो। आगे चल सेवा के निमित्त बनन का अच्छा पार्ट है। भाग्य प्राप्त हुआ देख सभी को खुशी होती है। (दादाराम सावित्री का परिवार मधुबन आया है - उन्हों को देख बाबा कहे) किसी विशेष भाग्यशाली आत्माओं (राम सावित्री) के कारण परिवार का भी भाग्य है। जब कोई संकल्प सिद्ध होता है तो खुशी जरूर होती है। अच्छा –
ऐसे सदा खुशी में झूमने वाले, सदा अपने भाग्य के सितार को चमकता हुआ देख चढ़ती कला की ओर जाने वाले, सदा प्यूरिटी की परसानाल्टी वाले, प्यूरिटी की महानता के आधार पर विश्व को परिवर्तन करने वाले, विश्व कल्याणकारी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पार्टीयों से मुलाकात
लन्दन पार्टी :- सभी अपने को सदा बाप के साथी अनुभव करते हो? कम्बाइन्ड रूप अपना देखते हो ना - अकेले नहीं, जहाँ बच्चे हैं वहाँ बाप हर बच्चे के साथ है। सदैव बाप की याद के छत्रछाया के अन्दर हो। किसी भी प्रकार के माया के विघ्न छत्रछाया के अन्दर आ नहीं सकते। तो जहाँ भी रहते हो, जो भी कार्य करते हो - लेकिन सदा ऐसे अनुभव करो कि हम सेफ्टी के स्थान पर हैं, ऐसे अनुभव करते हो? खास विदेशियों के ऊपर बापदादा का विशेष स्नेह और सहयोग है। विदेशी आत्मायें सेवा के क्षेत्र में भी अपना अच्छा पार्ट आगे चल करके बजायेंगी। सेवा का भविष्य भी बहुत अच्छा है। सेवा का नया प्लैन क्या बनाया है? जनरल प्रोग्राम के साथ-साथ विशेष आत्माओं की सेवा करो - उसके लिए मेहनत जरूर लगेगी लेकिन सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है, यह नहीं सोचो बहुत किया है फल नहीं दिखाई देता। फल तैयार हो रहे हैं। कोई भी कर्म का फल निष्फल हो ही नहीं सकता, क्योंकि बाप की याद में करते हो ना। याद में किये हुए का फल सदा श्रेष्ठ रहता है। इसलिए कभी भी दिलशिकस्त नहीं बनना। जैसे बाप को निश्चय है कि फल निकलना ही है वैसे स्वयं भी निश्चयबुद्धि रहो। कोई फल जल्दी निकलना कोई थोड़ा देरी से इसलिए इसका भी सोचो नहीं - करते चलो, अभी जल्दी ही ऐसा समय आयेगा जो स्वत: आपके पास इनक्वायरी करने आयेंगे कि यह सन्देश वा सूचना कहाँ से मिली थी। थोड़ा सा विनाश का ठका होने दो सिर्फ - तो फिर देखो कितनी लम्बी क्यू लग जाती है फिर आप लोग कहेंगे हमको समय नहीं है, अभी वह लोग कहते हैं हमें टाइम नहीं, फिर आप कहेंगे टू लेट।
जिस बात में मुश्किल अनुभव करो वह मुश्किल की बात बाप पर छोड़ दो - स्वयं सदा सहजयोगी रहो। सहजयोगी रहना ही सदा सर्विस करना है। आपकी सूक्ष्म योग की शक्ति स्वत: ही आत्माओं को आपके तरफ आकर्षित करेगी तो यही सहज सेवा है, यह तो सभी करते हो ना। लण्डन निवासियों ने सेवा का विस्तार अच्छा किया है। हमजिन्स अच्छी तैयार की है? माला तैयार हो गई है? 108 रतन तैयार किये हैं? अब लण्डन वाले ऐसा ग्रुप तैयार करें जिसमें सब वैरायटी हों, वैज्ञानिक भी हों, धार्मिक भी हों, नेतायें भी हों, और जो भिन्न-भिन्न ऐसेसियेशनस हैं उनकी भी विशेष आत्मायें हों। जब तक स्थापना के लिए सब प्रकार की वैरायटी आत्मायें स्थापना के कार्य में बीज नहीं डालेगी तो विनाश कैसे होगा! क्योंकि सतयुग में सब प्रकार के कार्य वाले काम में आयेंगे। सेवाधारी बनकर आपकी सेवा करेंगे। अभी एक जन्म थोड़े समय की आप सेवा कर ऐसे सेवाधारी तैयार करो जो अनेक जन्म आपकी सेवा करें। साइन्स वालों का भी वहाँ पार्ट है, जो वहाँ के सुख के साधनों की विशेषता है वह यहाँ से सहज मार्ग का बीज डालकर जायेंगे, यही बीज वहाँ काम में आयेगा। तो विदेश में यह सेवा अभी तीव्रगति से होनी चाहिए। राजधानी तैयार करो, प्रजा भी तैयार करो, रायल फैमली भी तैयार करो, सेवाधारी भी तैयार करो। कोई भी ऐसा वर्ग न रह जाए जो उल्हना दे कि हमें सन्देश नहीं मिला है।
2. ईश्वरीय सेवा का श्रेष्ठ और नया तरीका:- संकल्पों द्वारा ईश्वरीय सेवा करना यह भी सेवा का श्रेष्ठ और नया तरीका है, जैसे जवाहरी होता है तो रोज सुबह को दुकान खोलते अपने हर रतन को चैक करता कि साफ हैं, चमक ठीक है, ठीक जगह पर रखे हुए हैं, वैसे रोज़ अमृतवेले अपने सम्पर्क में आने वाली आत्माओं पर संकल्प द्वारा नजर दौड़ाओ, जितना आप उन्हों को संकल्प से याद करेंगे उतना वह संकल्प उन्हों के पास पहुँचेगा और वह कहेंगे कि हमने भी बहुत वारी आपको याद किया था इस प्रकार सेवा के नये-नये तरीके अपनाते आगे बढ़ते जाओ - हर मास सम्पर्क वाली आत्माओं का विशेष कोई प्रोग्राम रखो, स्नेह मिलन रखो, अनुभव की लेन-देन वा मनोरंजन का प्रोग्राम रखो, किसी न किसी तरह से बुलाकर सम्पर्क बढ़ाओ, यह नहीं सोचो दो निकले या तीन निकले, एक भी निकले तो भी अच्छा, एक ही दीपक दीपमाला तैयार कर देगा।
जर्मनी :- जर्मनी वालें ने अपने देश में बाप का परिचय देने का साधन अच्छा बनाया है, अभी जर्मनी के आस-पास हैन्डस तैयार करके सेवा के फील्ड को और बढ़ाओ जो भी आये हैं वह सब एक-एक सेवा केन्द्र सम्भालो क्योंकि समय कम है और राजधानी बनानी है। जर्मनी का ग्रुप फालो फादर करने वाला है ना! सर्विस करो लेकिन सम्पर्क के आधार से, इन्डिपिन्डेंट नहीं। जैसे हर डाली का तने से कनेक्शन होता है इसी रीति से विशेष निमित्त आत्माओं से सम्पर्क अच्छा हो फिर सफलता अच्छी मिलती हैं, ऐसा प्लैन बनाना। अच्छा।
विदाई के समय :- संगमयुग के यह दिन भी बहुत अमूल्य हैं, बापदादा भी बच्चों का मेला संगम पर ही साकार रूप में देखते हैं। संगमयुग अच्छा लगता हैं ना? विश्व परिवर्तन नहीं करेंगे? संगमयुग की विशेषता अपनी है और नई दुनिया की विशेषता अपनी है। जब नई दुनिया में जायेंगे तो बाप को भी भूल जायेंगे उस समय याद होगा? बाप को भी खुशी है कि बच्चे इतने श्रेष्ठ पद को प्राप्त कर लेते हैं। सदैव बाप यही चाहते हैं कि बच्चे बाप से भी आगे रहें। बच्चों का श्रेष्ठ भाग्य देख बाप खुश होते हैं। थोड़े ही टाइम में भाग्य कितना बना लेते हो? संगमयुग की यही विशेषता है - हर घड़ी हर संकल्प अपना भाग्य बना सकते हो! जितना चाहो उतना भाग्य ऊँचे से ऊंचा बना सकते हो, तो चैक करो कि कितना भाग्य बनाने का चान्स है उतना ही पूरा चान्स ले रहे हैं। प्राप्ति का समय अभी ज्यादा नहीं है इसलिए जितना चाहो उतना अभी कर लो नहीं तो यह प्राप्ति का समय याद आयेगा कि करना चाहिए था लेकिन किया नहीं! अपने याद की यात्रा को पावरफुल बनाते जाओ। संकल्प में सर्व शक्तियों का सार भरते जाओ। हर संकल्प में शक्ति भरते रहो। संकल्प की शक्ति से भी बहुत सेवा कर सकते हो। अच्छा - ओम् शान्ति।
16-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
तिलक, ताज और तख्तधारी बनने की युक्तियाँ
देह से न्यारे, देही रूप में स्थित रहने वाले प्यारे बच्चों के प्रति बाबा बोले:-
बापदादा सर्व बच्चों के वर्तमान और भविष्य दोनों के अन्तर को देखते, आज बापदादा बच्चों के वर्तमान को देखते हुए हर्षित भी हो रहे थे और साथ-साथ कई बच्चों के विचित्र चलन को देख रहम भी आ रहा था - बाप कितना श्रेष्ठ बनाते हैं और बच्चे अपनी ही थोड़ी सी गफलत करने के कारण वा अलबेलेपन के कारण श्रेष्ठ स्थिति से नीचे आ जाते हैं। आज बापदादा विशेष रूप से बच्चों के भिन्न-भिन्न प्रकार के हंसी के रूप देख रहे थे - ब्राह्मण जन्म होते ही बापदादा संगमयुगी विश्व सेवा की जिम्मेदारी का ताजधारी बनाता। लेकिन आज रमणीक खेल देखा - कोई-कोई तो ताज और तिलकधारी भी थे लेकिन कोई-कोई ताजधारी के बदले किए हुए पिछले वा अबके भी छोटे सो बड़े पाप वा चलते-चलते की हुई अवज्ञाओं की गठरी सिर पर थी। कोई ताजधारी तो कोई सिर पर गठरी लिए हुए थे। उसमें भी नम्बरवार छोटी बड़ी गठरी थी और कोई के सिर पर डबल लाइट के बजाए, अपने ब्राह्मण जीवन के सदा ट्रस्टी स्वरूप के बजाय गृहस्थीपन के भिन्न-भिन्न प्रकार के बोझ की टोकरी भी सिर पर थी। जिसको देख बापदादा को रहम भी आ रहा था - और क्या देखा! कई बच्चे अनेक प्रकार के सहज साधन बाप द्वारा प्राप्त होते हुए भी निरंतर बुद्धि का कनेक्शन जुटा हुआ न होने के कारण सहज को मुश्किल बनाने के कारण, अनेक प्रकार के मुश्किल साधन अपनाने में थके हुए रूप में दिखाई दे रहे थे। सहज मार्ग के बजाए पुरूषार्थ के साधन, हठ के प्रमाण यूज़ कर रहे थे। और क्या देखा!
जैसे सूर्य के आगे बादल आने से सूर्य छिप जाता है ऐसे बार-बार माया के बादलों के कारण कई बच्चे ज्ञान सूर्य से किनारे हो सूर्य को पाने के लिए प्रयत्न करते रहते। कब सन्मुख कब किनारे, इसी खेल में लगे हुए हैं। साथ-साथ बच्चे नटखट होने के कारण बाप के याद की गोदी से निकल माया की धूल में देह अभिमान की स्मृति रूपी मिट्टी में खेलते रहते हैं। ज्ञान रतनों से खेलने के बजाए मिट्टी में खेलते हैं। बाप बार-बार मिट्टी से किनारा कराते लेकिन नटखट संस्कारों के कारण फिर भी मैले बन जाते। कोई-कोई बच्चे अल्पकाल के सुखों के आकर्षणमय वस्तुओं की आकर्षण में आकर उन ही वस्तुओं में इतने बिजी हो जाते जो समय और अविनाशी प्राप्ति उतना समय भूल जाती है। फिर होश में आते हैं - ऐसे अनेक प्रकार के विचित्र रूप बच्चों के देखे। अब अपने आपको देखो मेरा रूप कौनसा है? बापदादा तो हर बच्चे को सदा श्रेष्ठ स्वरूप में देखना चाहते हैं। ताज को, दिलतख्त को छोड़ गठरी क्यों उठाते हो? ताज अच्छा वा टोकरी, गठरी अच्छी लगती हैं! तीनों के फोटो सामने रखो तो कौनसा चित्र पसन्द आवेगा। 63 जन्म यह सब वन्डरफुल खेल खेले - अब संगमयुग पर कौनसा खेल खेलना है। सबसे अच्छे ते अच्छा खेल है बाप और बच्चों के मेले का खेल। बाप द्वारा मिले हुए ज्ञान रतनों से खेला। कहाँ रतन और कहाँ मिट्टी! अब क्या करना है? बचपन के अलबेलेपन के वा नटखट के खेल बहुत समय खेले अब तो वानप्रस्थ में जाने का समय समीप आ रहा है इसलिए अब इन सब बातों की समाप्ति का दृढ़ संकल्प करो - सदा ताज, तख्त और तिलकधारी बनो। इन तीनों का आपस में सम्बन्ध है। तिलक होगा तो ताज तख्त जरूर होगा। अपने श्रेष्ठ भाग्य, श्रेष्ठ प्राप्तियों को बार-बार सामने लाओ - जब सर्व प्राप्तियों को और प्राप्त कराने वाले को सदा सामने रखेंगे तो कभी भी माया से सामना करने में कमजोर नहीं बनेंगे। सिर्फ एक बात याद रखो - सर्व सम्बन्धों से हर कार्य में बापदादा सदा साथ है। साथ छोड़ने के कारण ही यह विचित्र खेल खेलने पड़ते हैं। विश्व की जिम्मेवारी उठाने वाले बाप का साथ होते भी अपने हद की जिम्मेवारी के बोझ की टोकरी क्यों उठाते हो? क्या विश्व का बोझ उठाने वाले आपका यह छोटा सा बोझ नहीं उठा सकते हैं क्या? फिर भी पुराने संस्कार के वश बार-बार बोझ भी उठाते और फिर थक कर चिल्लाते भी हैं कि अब हमको छुड़ाओ। एक तरफ पकड़ते हैं दूसरे तरफ पुकारते हैं - छोड़ो तो छूटे - यह एक सेकेण्ड की हिम्मत अनेक जन्मों के लिए अनेक प्रकार के बोझ से छुड़ा देगी। पहलापहला वायदा बाप से क्या किया - याद है? मेरा तो एक दूसरा न कोई। जब मेरापन ही समाप्त हो गया, एक मेरा रह गया तो फिर हद की जिममेवारियों का मेरापन कहाँ से आया! देह का मेरापन कहाँ से आया। कमजोरियों के संस्कारों का मेरापन कहाँ से आया - स्वयं को ज्ञानी तू आत्मा कहलाते हो - ज्ञान स्वरूप अर्थात् कहना, सोचना और करना समान हो। सदा समर्थ हों - ज्ञानी तू आत्मा का हर कर्म समर्थ बाप समान, संस्कार गुण और कर्तव्य समर्थ बाप के समान हों - तो समर्थ स्टेज पर स्थित होने वाले यह व्यर्थ के विचित्र खेल नहीं खेल सकते। सदा मिलन के खेल में बिज़ी रहते, बाप से मिलन मनाना और औरों को बाप समान बनाना - तो इस वर्ष क्या करेंगे? 78 वर्ष भी बीत गया - आप सब तो 76 में तैयार थे ना। विनाश के साथ स्थापना वाले भी तैयार थे ना - यह अभी का तो एकस्ट्रा टाइम मिला है - किसलिए? स्वयं के प्रति मिला है? इस एकस्ट्रा समय का भी रहस्य है - पीछे आने वाले उल्हना न दें कि हमें बहुत थोड़ा समय मिला - जैसे सौदे के पीछे एकस्ट्रा रूंग (घाता) दी जाती है - वैसे ड्रामा अनुसार यह समय भी सेवा के प्रति अमानत रूप में मिला हुआ है इसी अमानत को बापदादा की श्रेष्ठ मत प्रमाण यूज़ करो - समझा इस वर्ष क्या करना है।
हर समय और संकल्प में स्वयं को विश्व सेवा में इतना बिजी रखो जो यह सब व्यर्थ के खेल स्वत: समाप्त हो जाएं - यह रिजल्ट बापदादा देखने चाहते हैं।
अच्छा –
सदा संकल्प और सेकेण्ड के भी ट्रस्टी समझने वाले, ‘एक बाप मेरा और नहीं कोई मेरा’ ऐसे बेहद के समर्थ संकल्प वाले, सदा विश्व कल्याण के संकल्प में बिजी रहने वाले, बाप समान समर्थ संस्कार वाले, व्यर्थ को बाप के साथ से सदा के लिए विदाई देने वाले, ऐसे ज्ञानी तू आत्मा बच्चों को बाप की बार-बार बधाई हो - साथसाथ ऐसे तख्तनशीन बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पार्टियों से मुलाकात (मद्रास जोन)
सर्व का आकर्षण बाप की तरफ आकर्षित कराने का साधन - चमकता हुआ दिव्य सितारा :-
आपका दिव्य सितारा सदा चमकता दिखाई दे तो सितारे की चमक सर्व को अपने तरफ स्वत: ही आकर्षण करेगी। कोई भी लाइट की वस्तु चलती हुई आत्माओं को अपने तरफ आकर्षित जरूर करती है। यह तो अविनाशी सितारा है, तो चमकते हुए सितारों के तरफ सर्व की आकर्षण स्वत: होगी। सितारों की तरफ आकर्षित होना अर्थात् बाप के तरफ आकर्षित होना तो सदा अनुभव करते हो कि हमारा आत्मिक स्वरूप का सितारा चमक रहा है! सदा चमकता है वा कभी-कभी चमकता है। जब बाप द्वारा, नॉलेज द्वारा सितारा चमक गया तो अभी बुझ तो सकता नहीं लेकिन चम्क की परसेन्टेज कम और ज्यादा हो सकती है, उसका कारण क्या? अटेन्शन की कमी। जैसे दीपक में अगर सदा घृत डालते रहें। तो वह एकरस जलता रहेगा, घृत कम हुआ तो हलचल करेगा। ऐसे अटेन्शन कम हो जाता है तो परसेन्टेज भी चमक की कम हो जाती। इसलिए बापदादा की श्रेष्ठ मत है रोज अमृतवेले सारे दिन के लिए अटेन्शन रखो। रोज अमृतवेले अपनी दिनचर्या को सैट करो। अगर कोई भी प्रोग्राम सैट नहीं होता है तो उसकी रिजल्ट क्या निकलती? सफल नहीं होता, तो यहाँ भी अगर रोज अपनी दिनचर्या सैट नहीं करेंगे तो सफलता मूर्त अनुभव नहीं कर सकेंगे। अटेन्शन रहता भी है, लेकिन और अन्डर लाइन करो। वहां अटेन्शन होगा वहाँ किसी भी प्रकार का टेन्शन नहीं हो सकता। जैसे रात होगा तो दिन नहीं हो सकता, टेन्शन है रात, अटेन्शन हैं दिन। तो दिन और रात दोनों इकट्ठे नहीं रह सकते। अगर किसी भी प्रकार का टेन्शन है तो सिद्ध है अटेन्शन नहीं है। साधारण अटेन्शन और सम्पूर्ण अटेन्शन में भी अन्तर है। सम्पूर्ण अटेन्शन अर्थात् जो बाप के गुण वा शक्तियाँ हैं वह अपने में हो। बाप के बच्चे बने तो उसका प्रूफ भी तो चाहिए ना। साधारण अटेन्शन अर्थात् हम हैं ही बाप के बच्चे....। अगर इतने श्रेष्ठ बाप के बच्चे और श्रेष्ठता न हो तो कौन मानेगा कि यह श्रेष्ठ बाप के बच्चे हैं। तो जो बाप में विशेषता वही बच्चों में दिखाई दे - इसको कहा जाता है तीव्र पुरुषार्थी। तीव्र पुरुषार्थी अर्थात् सोचना और करना समान। प्लैन और प्रैक्टिकल समान।
2. आपका स्वधर्म है याद और कर्त्तव्य है सेवा :- सभी सदा याद और सेवा इसी में तत्पर रहते हो? जो सदा याद और सेवा में लगे हुए हैं उन्हों से माया भी सदा के लिए नमस्कार करके किनारा कर लेती है। माया भी जानती है कि यह सदा बिज़ी रहने वाले हैं तो डिस्टर्ब नहीं करती। खाली रहने वालों को डिस्टर्ब करती हैं। तो सदा बिज़ी रहो फिर माया आ नहीं सकती। याद से अपना भविष्य बनाते, सेवा से औरों का भी और अपना भी। तो याद ही आपका स्वधर्म है और सेवा करना ही आपका कर्त्तव्य है।
3. चढ़ती कला की निशानी - सम्पूर्ण मंजिल समीप दिखाई दे :- सदा हर कर्म में चढ़ती कला का अनुभव करते हैं? कदम आगे बढ़ाया अर्थात् चढ़ती कला हुई। हर कदम में चढ़ती कला होने से सम्पूर्ण स्टेज तक बहुत जल्दी पहुँच जायेंगे। चढ़ती कला वाले को सदा अपनी सम्पूर्ण स्टेज अर्थात् मंजिल स्पष्ट दिखाई देगी। जितना जिस वस्तु के नज़दीक जाते हैं उतना ही वह वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है, स्पष्टता ही समीपता की निशानी है। अभी समय है तीव्र पुरूषार्थ का, दौड़ लगाने का समय अब आ गया, अब हाई जम्प लगाओ। समय कम है और मंजिल ऊंची है। हाई जम्प देने के लिए डबल लाइट चाहिए। बिना डबल लाइट बने जम्प नहीं दे सकते।
4. हर कर्म को श्रेष्ठ बनाने का साधन - फालो फादर :- जैसे साकार बाप के ऊपर इतनी जिम्मेवारी होते हुए भी सदा डबल लाइट देखी - उसके अन्तर में तो आपके पास भी तो कुछ भी जिममेवारी नहीं है, अपने को सदा निमित्त समझकर चलो, जिम्मेवार बापदादा हैं आप निमित्त हैं, निमित्त समझकर चलने से डबल लाइट हो जायेंगे। बाप भी इतनी बड़ी जवाबदारी संभालते हुए निमित्त समझकर चले, तो फालो फादर। हर कर्म करने के पहले चैक करो कि फालो फादर हैं? इससे हर कर्म अति श्रेष्ठ होगा। श्रेष्ठ कर्म की प्रालब्ध आटोमेटिकली श्रेष्ठ होगी। बाप को कापी करो तो भी बाप समान बन जायेंगे। समान बनने वाले ही समीप रतन बनते हैं।
5. देह से न्यारे देही रूप में स्थित रहने वाले ही बाप के प्यारे :- सभी अपने को देह से न्यारे और बाप के प्यारे अनुभव करते हो? जितना देह से न्यारे बनते जायेंगे उतना ही बाप के प्यारे बनेंगे। बाप प्यारा तब लगता है जब देह से न्यारे देही रूप में स्थित होते। तो सदा इसी अभ्यास में रहते हो? जैसे पाण्डवों की गुफायें दिखाते हैं ना, तो गुफायें कोई और नहीं हैं, लेकिन पाण्डव इन्हीं गुफाओं में रहते हैं। इसी को ही कहा जाता है अन्तर्मुखता। जैसे गुफा के अन्दर रहने से बाहर के वातावरण से परे रहते हैं ऐसे अन्तुर्मुखी अर्थात् सदा देह से न्यारे और बाप के प्यारे रहने के अभ्यास की गुफा में रहने वाले दुनिया के वातावरण से परे होते, वह वातावरण के प्रभाव में नहीं आ सकते। जो बाप का प्यारा होगा वह न्यारा जरूर होगा-क्योकि जिससे प्यार है वह जैसा होगा वैसा ही बनेगा। बाप सदा न्यारा है तो जो बाप का प्यारा होगा वह भी सदा न्यारा होगा। तो सदा न्यारे रहो यही अभ्यास चलता रहे इसके सिवाए नीचे नहीं आओ।
नैराबी पार्टी से मुलाकात :- सभी अपने को कोटों में कोई और कोई में भी कोई ऐसी महान आत्मा समझते हो? जितना अपने को महान अर्थात् श्रेष्ठ आत्मा समझेंगे उतना हर कर्म स्वत:ही श्रेष्ठ होगा। क्योंकि जैसी स्मृति वैसी स्थिति स्वत: ही होती है। जैसे अनुभवी हो कि आधा कल्प देह की स्मृति में रहे तो स्थिति क्या रही? अल्पकाल का सुख और अल्पकाल का दुख। तो सदा आत्मिक स्वरूप की जब स्मृति रहेगी तो सदाकाल के सुख और शान्ति की स्थिति बन जायेगी। ऐसी स्मृति रहती है? अच्छा - आपका आक्यूपेशन है पतित पावनी - इस स्मृति से सहज मायाजीत बनेंगे :- आप सब सदा सागर से सम्बन्ध रखने वाली ज्ञान नदियाँ हो जिसमें अनेक आत्मायें ज्ञान स्नान कर पावन बनती हैं तो पावन बनाने की सेवा में सदा तत्पर रहते हो? नदियों का महत्व तब है जब सागर से सम्बन्ध है, अगर सागर से सम्बन्ध नहीं तो नदी भी नाला बन जाती। तो आप चैतन्य ज्ञान नदियों का ही गायन है पतित पावनी, इसी सेवा में सदा बिज़ी रहो। माया का वार होना अर्थात् खाली होना। बिजी रहना अर्थात् माया के वार से बच जाना। तो सदा बिजी रहते हो या बहुत समय की साथी के ऊपर रहम आता है जो उसे भी चान्स दे देते हों! जिसका जो आक्यूपेशन होता वह कभी भूलता नहीं। आपका आक्यूपेशन ही है पतित पावनी तो अपना आक्यूपेशन न भूलना है, न छोड़ना है तो मायाजीत बन जायेंगे। सदा के मायाजीत ही बाप के दिलतख्तनशीन बनते हैं। हार खाना अर्थात् तख्त से नीचे आना। अगर कोई हार खाले तो तख्त थोड़ा ही मिलेगा। तो यहाँ भी माया से हार खाना अर्थात् तख्त से नीचे आना।
टीचर्स का आक्यूपेशन है सदा सन्तुष्टता की खान रहना और सर्व को सन्तुष्ट बनाना :- टीचर्स तो हैं ही सदा सन्तुष्ट। टीचर्स अर्थात् सर्व को संतुष्ट बनाने की सेवा पर उपस्थित। जितना स्वयं सम्पन्न होंगे उतना औरों को भी बना सकेंगे। टीचर्स की विशेषता ही है हर बात में सन्तुष्ट। सन्तुष्ट भी तब रह सकेंगे जब सदा बाप के गुणों और कर्त्तव्य में समान बनेंगे। सदा यह चैक करो कि जो बाप का गुण वही मेरा है, जो बाप का कर्त्तव्य वही मेरा कर्त्तव्य है। ऐसे चैक कर चलने वाले सदा सन्तुष्ट रहते भी हैं और सर्व को भी बनाते हैं। टीचर्स अर्थात् सन्तुष्टता की खान। सदा सम्पन्न, खान के समान अखुट हो। यही टीचर्स का अक्यूपेशन है।
विदाई के समय :- कितनी 18 जनवरी आ गई? 10 वर्ष समाप्त हो गए उसका रिजल्ट क्या? वैसे भी 10 वर्ष तो कोई कम नहीं हैं। साकार के 42-43 वर्ष और अव्यक्त के 10 वर्ष, तो 50 से ऊपर चले गये ना। तो उसकी रिजल्ट क्या? रिजल्ट चाहिए - परिवर्तन। जो अगले वर्ष की बातें हैं वह इस वर्ष में नहीं होनी चाहिए। तो नवीनता क्या आई? जैसे मधुबन में जो आते हैं उन्हों से पूछते हैं क्या छोड़ा क्या पाया। तो इस वर्ष की रिजल्ट में भी देखो क्या-क्या छोड़ा क्या पाया। क्या-क्या वरदान पाये, क्या-क्या व्यर्थ छोड़ा। दोनों की रिजल्ट देखो। न्यू इयर मनाते हैं, जब वर्ष नया हुआ, नया वर्ष अर्थात् नवीनता भरा हुआ। इसकी आपस में रिजल्ट निकालना। टोटल मेजोरिटी भी कहाँ तक अपने में परिवर्तन समझते हैं। इसलिए बाप-दादा ने पहले भी कहा कि रिजल्ट लेने के लिए आयेंगे तो वह रिजल्ट क्या हुई? सेवा वृद्धि को पा रही है, सेवाधारी आत्मायें स्वयं के पुरूषार्थ में क्या वृद्धि पा रही हैं, दोनों का बैलेन्स जब समान होगा तब समाप्ति होगी। सभी सदा संगमयुग के श्रेष्ठ भाग्य को सुमिरण कर हार्षित् रहते हो? संगमयुग का भाग्य और कोई भी युग में पा नहीं सकते। संगमयुग का एक-एक सेकेण्ड अति भाग्यशाली है। एक सेकेण्ड कई जन्मों का भागय बनाने के निमित्त बनता है। तो ऐसे श्रेष्ठ भाग्य को सदा याद रखते, अन्दर में भाग्य को देख करके सदा खुशी में नाचते रहो। वाह मेरा भाग्य - ऐसे अन्दर की खुशी बाहर दिखाई देती है दूसरे भी देखने वाले अनुभव करें कि इन्हों को कुछ मिला है, कुछ पाया है। ऐसे सदा खुश रहो। सदा अटेन्शन रखो तो माया खुशी का खज़ाना छीन नहीं सकती। अच्छा - ओम् शान्ति।
18-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
18 जनवरी ‘स्मृति दिवस’को सदाकाल का समर्थी दिवस मनाने के लिए शिक्षाएं
सर्वसमर्थ शिव बाबा ‘सदा अमर भव’ का वरदान देते हुए बोले :-
आज सभी बच्चे विशेष साकारी याद - प्रेम स्वरूप की स्मृति में ज्यादा रहे। साकारी सो आकारी बाप सभी के नयनों में समाये हुए हैं। अमृतवेले से लेकर देशविदेश के बच्चों की याद के सन्देश सारे वतन में वायुमण्डल की रीती से फैले हुए थे - प्रेम के आसुँओं की मालायें वतन को सजा रही थीं। हरेक बच्चा ब्रह्मा बाप के लव में लवलीन थे। चारों ओर दिल के दिलरूबा की आवाज़ बापदादा के पास पहुँच रही थी - हरेक के मन से बाप की महिमा के सुन्दर आलाप साजों के समान वतन में गूँज रहे थे। हरेक के आशाओं के दीपक जगे हुए, वतन को जगमगा रहे थे। बापदादा बच्चों के स्नेह को देख मुस्करा रहे थे। विदेशी वा देशवासी बच्चे अपने बुद्धियोग द्वारा वतन में भी पहुँचे हुए थे। ब्रह्मा बाप भी बच्चों के स्नेह के सागर में बच्चों के लव में लवलीन थे - याद का रिटर्न दे रहे थे।
बच्चे बाप से पूछते हैं हम सबसे पहले अकेले वतनवासी क्यों? मेजोरिटी बच्चों का यही स्नेह का सवाल था। बाप बोले - जैसे आदि में स्थापना के कार्य प्रति साकार रूप में निमित्त एक ही बने - अल्फ की तार पहले एक को आई। सेवा अर्थ - सर्वस्व त्यागमूर्त एक अकेले बने। जिसको देख बच्चों ने फालो फादर किया। त्याग और भाग्य दोनों में नम्बरवन बाप निमित्त बने। अब अन्त में भी बच्चों को ऊंचा उठाने के लिए वा अव्यक्त बनाने के लिए बाप को ही अव्यक्त वतनवासी बनना पड़ा। इस साकारी दुनिया से ऊंचा स्थान अव्यक्त वतन अपनाना पड़ा - अभी बाप कहते हैं बाप समान स्वयं को और सेवा को सम्पन्न करो। बाप समान अव्यक्त वतनवासी बन जाओ। बापदादा अभी भी आह्वान करते हैं। देर किसकी है? ड्रामा की देर हैं! ड्रामा में भी निमित्त कारण कौन। सिर्फ एक छोटी-सी बात दृढ़ संकल्प रूप से धारण करो तो सदाकाल का मिलन हो जावेगा। जैसे आज के दिन सहजयोगी, निरन्तरयोगी, एक बाप दूसरा न कोई - इसी स्थिति में स्थित रहे, ऐसे ही सदा अमर भव के वरदानी बनो। तो क्या होगा। सदाकाल के लिए जुदाई को विदाई मिल जावेगी और सदा मिलन की बधाई होगी। स्नेह स्वरूप को समान स्वरूप में परिवर्तन करो। जैसे जिस भी आत्मा से स्नेह होता है तो स्नेह का स्वरूप यही है कि जो स्नेही को पसन्द हो वही स्नेह करने वाले को पसन्द हो - चलना- खाना-पीना-रहना स्नेही के दिल पसन्द हो। ऐसे ही बाप से स्नेह - जानते हो बाप का स्नेह किससे हैं? बाप को सदा क्या पसन्द है? अपने दिल पसन्द नहीं लेकिन स्नेही बाप के दिलपसन्द। तो सदा जो भी संकल्प करो वा कर्म करो पहले यह सोचो कि स्नेही बाप के दिलपसन्द है। अगर बाप को पसन्द नहीं तो लोकपसन्द भी नहीं। तो सिर्फ इतनी सी बात है स्नेही के पसन्दी से चलना है। इतना रिटर्न सदा कर सकते हो ना! सर्व सम्बन्ध के स्नेह से इतना सा रिटर्न क्या मुश्किल लगता है? आज के स्मृति दिवस को सदाकाल के लिए समर्थी दिवस मनाओ। यह संकल्प करो - जो बाप को पसन्दी वही मेरी पसन्दी। सदा बाप पसन्द लोक पसन्द रहना है।
दिलशिकस्त होना, किसी भी संस्कार वा परिस्थितियों के वशीभूत होना, अल्पकाल की प्राप्ति कराने वाले व्यक्ति वा वैभवों के तरफ आकार्षि होना - इन सब कमजोरियों रूपी कलियुगी पर्वत को आज के समर्थी दिवस पर सब बच्चे दृढ़ संकल्प की अंगुली दे सदाकाल के लिए समाप्त करो अर्थात् सदाकाल के विजयी बनो। विजय आपका तिलक है। विजय आपके गले की माला है। विजय जन्मसिद्ध अधिकार है। सदा इस समर्थी स्वरूप में रहो। यह है स्नेह का रिटर्न। बाप बच्चों से पूछते हैं - जैसे ब्रह्मा बाप ने सारे ज्ञान का सार स्वयं धारण कर बच्चों को फालो फादर करने की हिम्मत दी, साकार रूप द्वारा अन्तिम महावाकय अमूल्य सौगात दी - उस सौगात को स्वरूप में लाया? सौगात की रिटर्न में बाप को स्वरूप बन दिखाया? सिर्फ तीन बोल जो थे उनको साकार में लाया। साकार स्नेह के रिटर्न में साकार रूप है। इन ही तीन बोल से बाप ने कर्मातीत अवस्था को पाया - फालो फादर। साकार बाप ने स्थिति का स्तम्भ बनकर दिखाया - जिसके स्नेह में यह स्मृति स्तम्भ भी बनाया है - ऐसे ही तत्वम - सर्वगुणों के स्तम्भ बनो। जो विश्व के हर धर्म वाली आत्मायें धारणा स्वरूप स्तम्भ आपको माने - विश्व के आगे आदि पिता के समान शक्ति और शान्ति स्तम्भ बनो।
स्नेह के सन्देश जो बच्चों ने भेजे रिटर्न में बापदादा भी सभी स्नेही बच्चों को पदमगुणा स्नेह दे रहे हैं। अब पदमापदम भाग्यशाली सदा रहो। अच्छा –
ऐसे सदा बाप के स्मृति सो समर्थी स्वरूप, बाप के सदा दिलपसन्द, सदा दृढ़ संकल्प द्वारा स्वयं का ओर विश्व का सेकेण्ड में परिवर्तन करने वाले, सदा विश्व के आगे शक्ति और शन्ति स्तम्भ समान स्थित रहने वाले - ऐसे बापदादा के समीप सिकीलधे बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
दीदी जी से बातचीत :- आज का दिन स्नेह और शक्ति का बैलेन्स रहा? आज के दिन विशेष साकार बाप को याद किया वा दानों का बैलेन्स था - बैलेन्स रखने वाले बच्चे बाप द्वारा ब्लिसफुल के वरदान को प्राप्त करते हैं। आज साकार बाप ने भी बच्चों को याद किया - हर बच्चे की विशेषता रूपी रतनों को देखते हर्षाया। लौकिक शरीर के संस्कार भी जवाहरी के थे। अलौकिक जीवन में भी जवाहरी के कार्य में ही रहे। जवाहरी की नज़र कहाँ जाती है? अमूल्य रतनों के तरफ, तो बाप भी अपने रतनों को देख रतनों को ही सजा रहे थे। ब्रह्मा बाप के तीव्र पुरूषार्थ के संस्कार को तो जानती हो - आज भी बाबा बोले अब माला तैयार करो - माला तैयार होना अर्थात् खेल खत्म। फिर क्या हुआ होगा। ब्रह्मा अपने तीव्र पुरूषार्थ के संस्कार प्रमाण माला बनाने लगे और बाप मुस्कराने लगे। माला तैयार भी हुई, लेकिन तैयार होने के बाद जब देखने लगे तो दिलपसन्द नहीं लगी। तो फटाफट बदली करने लगे। संकल्प था कि करके दिखावेंगे - बाप बोले - फुल पावर्स हैं - जो चाहे जैसे चाहे तैयार करके दिखाओ। ब्रह्मा बाप तो रोज आह्वान करते हैं। आप आह्वान करते हो? फिर रिजल्ट क्या हुई। बहुत रमणीक दृश्य हुआ। रूहरिहान भी चली और एक-दो को देख मुस्कराये। 100 की माला फिर भी 90% बन गई 8 की माला में बदली बहुत थी - किसको 4 नम्बर दें किसको 5 नम्बर दें - उसकी रूह-रूहान थी। मतलब तो आज ब्रह्मा को माला तैयार करने का तीव्र संकल्प था।
जैसे बाप विचित्र है, विचित्र बाप की लीला भी विचित्र है - दुनिया वाले समझते हैं बाप चले गये और बाप बच्चों से विचित्र रूप में जब चाहें तब मिलन मना सकते। दुनिया वालों की आँखों के आगे पर्दा आ गया - वैसे भी स्नेही मिलन पर्दे के अन्दर अच्छा होता है - तो दुनिया की आँखों में पर्दा आ गया - लेकिन बाप बच्चों से अलग हो नहीं सकता। वायदा है साथ चलेंगे, वही वायदा याद है ना। जो आदि से अन्त।
पार्टियों से मुलाकात
1. सभी ने बापदादा की आज के वतन की रूह-रूहान सुनी। उससे अपने को एवररेडी बनाने की प्रेरणा भी ली। सदैव यह अटैन्शन रहे कि हम सभी बाप समान विजयी बने हैं - क्योंकि बहुत समय के विजयी, विजयी माला के मणके बन सकते हैं। अगर अभी-अभी हार होगी तो कभी भी विजय माला के मणके नहीं बन सकते। विजयी बनने के लिए सदैव क्या याद रहे? विजयी बनने के लिए सदा बाप को सामने रखो - जो बाप ने किया वह हमें करना है। हर कदम-कदम के ऊपर जो बाप का संकल्प वही बच्चों का संकल्प, जो बाप के बोल वही बच्चों के बोल तब विजयी बन सकते हो। ऐसा अटेन्शन सदैव रहता है? जब सदा काल का राज्य-भाग्य पाना है तो अटेन्शन भी सदाकाल का चाहिए, अगर अल्पकाल का राज्य लेना है तो थोड़ समय के लिए याद रखो। जैसा पुरूषार्थ वैसी प्रालब्ध। तो सदा का राज्य और सदा का पुरूषार्थ - ऐसे पुरुषार्थी हो? माया के भी नॉलेजफुल हो, तो नॉलेजफुल कभी धोखा नहीं खाते। अनजान होते हैं तो धोखा खा लेते हैं। नॉलेज को लाइट और माइट कहा जाता है। जो नॉलेजफुल हैं अर्थात् लाइट और माइट दोनों हैं वह कभी माया से हार नहीं खा सकते। सिर्फ संकल्प में दृढ़ता की कमी होती है। संकल्प करते हो कि यह करेंगे लेकिन दृढ़ता न होने के कारण सोचने-करने में फर्क पड़ जाता है। संकल्प में दृढ़ता हो तो सोचना और करना दोनों समान हो जाएं। तो सुना बहुत है लेकिन अब जो सुना वह साकार स्वरूप में लाओ।
2. संगमयुग के महत्व को जानते हुए हर संकल्प और सेकेण्ड जमा करते हो? व्यर्थ तो नहीं जाता है? सेकेण्ड भी व्यर्थ गया तो सेकेण्ड की वैल्यू बहुत बड़ी है। जैसे एक का लाख गुना बनता है वैसे एक सेकेण्ड भी व्यर्थ जाता तो लाख गुना व्यर्थ गया। इतना अटेन्शन रहता है। अलबेलापन तो नहीं आता। अभी वह समय नहीं है। अभी तो चल जाता है, कोई हिसाब लेने वाला ही नहीं है लेकिन थोड़े समय के बाद अपने आपको ही पश्चाताप होगा। समय की वैल्यू है समय के वरदान से ही अमूल्य रतन बनते हो। अमूल्य रतन समय भी अमूल्य रीति से व्यतीत करते हैं। अमूल्य रतन समझने से सेकेण्ड और संकल्प भी अमूल्य हो जायेंगे।
3. सभी अपने को सदा सर्व आत्माओं से श्रेष्ठ आत्मा समझ श्रेष्ठ कर्म करते हो? जैसा आक्यूपेशन होता है वैसे कर्म होता है। अगर कोई बड़ा पोजीशन वाला होगा तो उसकी एक्टिविटी भी उसी प्रमाण होगी। आपका आक्यूपेशन क्या है? सर्व आत्माओं से श्रेष्ठ आत्मा। तो श्रेष्ठ आत्मा का हर संकल्प हर सेकेण्ड भी ऐसा ही होगा! आप जैसा विशेष पार्ट बाप को पा लेना, ऐसा पार्ट और किसका हो नहीं सकता। जब ब्रह्माकुमार कहलाते हो, परमात्मा के बच्चे कहलाते हो तो चलन भी तो ऐसी चाहिए। सदा आक्यूपेशन और एक्टिविटी को मिलाओ। बड़ा आदमी कर्म बेसमझी के वा बच्चे जैसे करे तो लोग हसेंगे ना। ऐसे ही जब ब्रह्माकुमार कहलाते हो और साधारण ऐक्ट चलो तो क्या कहेंगे! आधाकल्प बेसमझ रहे अब समझदार बने - तो समझदार का हर संकल्प शक्तिशाली होगा।
4. सदा कल्प पहले माफिक अपने को अंगद के समान अचल समझते हो? अंगद के समान अचल अर्थात् सदा निश्चय बुद्धि विजयन्ती। जरा भी हलचल में आये तो विजयी बन नहीं सकेंगे। माया के विघ्न यह तो ड्रामा में महावीर बनाने के लिए पेपर के रूप में आते हैं। बिना पेपर के कभी क्लास चेन्ज नहीं होता। पेपर आना अर्थात् क्लास आगे बढ़ना। तो पेपर आने से खुश होना चाहिए न कि हलचल में आना है। माया से भी लेसन सीखो, वह कभी भी हलचल में नहीं आती - अटल रहती, यही लेसन माया से सीख मायाजीत बन जाओ।
5. स्नेह का रेसपान्ड है फालोफादर। जिससे स्नेह होता है उसको आटोमेटिकली फालो करना होता है। सदा याद रहे कि यह कर्म जो कर रहे हैं यह फालो फादर है। अगर नहीं तो स्टाप। फालो फादर है तो करते चलो, कापी ही करनी हैं ना। बाप को कापी करते बाप बन जाओ। कापी करने के लिए जैसे कार्बन पेपर डालते हैं वैसे अटेन्शन का पेपर डालो तो कापी हो जायेगा।
अभी अपने को तीव्र पुरुषार्थी नहीं बनायेंगे तो आगे चलकर यह समय भी खत्म हो जायेगा फिर टू लेट हो जायेंगे, वंचित रह जायेंगे। अभी हर शक्ति से स्वयं को सम्पन्न बनाने का समय है। अगर स्वयं-स्वयं को सम्पन्न नहीं कर सकते हो तो सहयोग लो, छोड़ नहीं दो। सम्पन्नता की निशानी है सन्तुष्टता। इसलिए सदा सन्तुष्ट आत्मा बनो। अच्छा - ओम् शान्ति।
23-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सदा सुहागिन ही सदा सम्पन्न है
अमरनाथ शिव बाबा की सच्ची सुहागिन पार्वतियों के प्रति पतिपरमेश्वर शिव बाबा बोले :-
आज बाप-दादा बच्चों के श्रेष्ठ भाग्य और सदा सुहाग को देख हर्षित हो रहे हैं। हरेक बच्चा भाग्यशाली और सदा सुहागिन है। भाग्य विधाता द्वारा जो भाग्य प्राप्त हुआ है उसको अच्छी तरह से जानते हो? विश्व में जीवन की श्रेष्ठता इन दो बातों की होती है एक सुहाग दूसरा भाग्य। अगर सदा सुहाग नहीं तो सारी जीवन बेकार अनुभव करते हैं, नीरस समझते हैं। लेकिन आप सबका अविनाशी सुहाग है - जो कभी मिटने वाला नहीं। क्योंकि अविनाशी अमरनाथ ही आपका सुहाग है। जैसे वह अमर है वैसे आपका सुहाग भी अमर है। सुहागवती स्वयं को सदा दुनिया में श्रेष्ठ समझती हैं - सुहागवती सदा साथ के कारण स्वयं को सन्तुष्ट समझती है। आजकल की दुनिया में जिसको श्रेष्ठ कार्य समझते हैं, उस श्रेष्ठ कार्य के निमित्त सुहागिन को ही रखते हैं। सुहागिन सदा श्रृंगार की अधिकारी होती है। सुहागिन नहीं तो श्रृंगार भी नहीं। सुहाग की निशानी तिलक और कंगन होती है। सुहागिन सदा सुहाग के कारण सुहाग के खजाने को सर्व खज़ाने अनुभव करती है अर्थात् अपने को सम्पन्न समझती है। ऐसे ही यह सब रीति-रसम अविनाशी सुहाग का यादगार चला आ रहा है।
आप सब सच्ची सुहागिन विश्व के अन्दर सर्व श्रेष्ठ आत्मायें गाई और पूजी जाती हो - आज का विश्व आप सदा सुहागिन के जड़ चित्रों को देख खुश होता कि यह आत्मायें अमरनाथ अर्थात् पति परमेश्वर की सच्ची पार्वतियाँ हैं। आप सच्ची सुहागिन आत्मायें सदा स्मृति के तिलकधारी और मर्यादाओं के कंगनधारी आत्मायें, सदा दिव्य गुणों के श्रृंगार से सजी सजाई आत्मायें, आप सदा सुहागिन आत्मायें सदा सर्व खज़ानों से सम्पन्न और विश्व के परिवर्तन के श्रेष्ठ कार्य वा शुभ कार्य के निमित्त हो - संगम- युग के इस श्रेष्ठ वा अविनाशी बेहद के सुहाग की रीति रसम हद के सुहाग में भी चलती आ रही है। अपने आप से पूछो ऐसे सदा सुहागिन अर्थात् सदा सम्पन्न और सदा हर्षित अनुभव करते हो - सदा अपने को आत्मा और परमात्मा के कम्बाइण्ड (Combined) रूप का अनुभव करते हो - सिंगल हो वा युगल हो? अकेले समझेंगे तो वियोगी जीवन अनुभव करेंगे। सदा सुहागिन अर्थात् कम्बाइण्ड समझेंगे तो सदा मिलन महफिल में अपने को अनुभव करेंगे।
बहुकाल से अलग हो गये तो अपने अविनाशी साथी को भी भूल गये। सुहाग खोया, तिलक को भी मिटा दिया - श्रृंगार को भी गवां दिया - खज़ानों से भी वंचित हो गये। सदा सुहागिन से क्या बन गये? भिखारी बन गये। वियोगी बन गये। फिर भी अमरनाथ ने आकर बहुकाल से बिछुड़ी हुई पार्वतियों को अपना स्मृति का तिलक दे सुहागिन बना दिया। अब बहुकाल के बाद जो सुन्दर मेला हो गया इस मेले से अब सेकेण्ड भी वंचित नहीं रहने वाले हो - ऐसी कम्पेनियनशिप निभाने वाले हो ना - आज बाप-दादा अपनी पार्वतियों का श्रृंगार देख रहे थे कि हरेक पार्वती कहाँ तक सजी सजाई रहती है। श्रृंगार तो सब करते हो लेकिन फिर भी नम्बरवार - माला सभी पहनते हैं लेकिन कहाँ नौ लखा हार और कहाँ साधारण मोतियों का हार। ऐसे ही बाप के गुणों की माला वा अमरनाथ की महिमा की माला सबके गले में पड़ी हुई है। फिर भी अन्तर है। अन्तर तो समझते हो ना। गाने वाले हैं वा बनने वाले हैं! इनमें अन्तर पड़ जाता है। ऐसे ही मर्यादाओं के कंगन तो सबने पहने हैं। सब मर्यादाओं के कंगन से सज रहे हैं लेकिन सदा मर्यादा पुरूषोत्तम बनने में कोई हीरे तुल्य बने हैं कोई सोने तुल्य बने हैं और कोई फिर चाँदी तुल्य बने हैं। कहाँ हीरा और कहाँ चाँदी! तो नम्बरवार हो गये ना। इसलिए कहा कि नम्बरवार श्रृंगार देख रहे हैं।
दूसरी बात सुहाग के साथ भाग्य देखा। लौकिक रीति से भी भाग्य का आधार - तन की तन्दरूस्ती, मन की खुशी, धन की समृद्धि, सम्बन्ध की सदा सन्तुष्टी और सम्पर्क में सदा सफल मूर्त होता है, इन सब बातों से भाग्य को देखते हैं - तो अब संगमयुग का श्रेष्ठ भाग्य अनुभव कर रहे हो ना। संगमयुग के अलौकिक जीवन की विशेषतओं को जानते हो ना। सदा स्वस्थ अर्थात् सदा स्व में स्थित रहने से तन का कर्मभोग भी कर्मयोग से सूली से काँटा हो जाता है। कर्मभोग को भी बेहद के ड्रामा के अन्दर खेल समझ कर खेलते हैं। तो तन का रोग योग में परिवर्तन हो गया। इसलिए सदा स्वस्थ हो। बीमारी को बीमारी नहीं समझते लेकिन अनेक जन्मों का बोझ हल्का हो रहा है, हिसाब चुक्तू हो रहा है - ऐसे समझने से सदा स्वस्थ समझते हो - साथ-साथ मन की खुशी तो सदा प्राप्त है ही। मनमना भव होना अर्थात् खुशियों के खज़ाने से सम्पन्न होना। ज्ञान धन सब धनों से श्रेष्ठ है। ज्ञान धन वालों की प्रकृति स्वत: ही दासी बन जाती है। जहाँ ज्ञान धन हैं वहाँ स्थूल धन की कोई कमी नहीं। तो धन का भाग्य भी सदा प्राप्त है। तीसरा है सम्बन्ध - सर्व सम्बन्ध निभाने वाले परम आत्मा को अपना बना लिया, जब चाहो, जैसा सम्बन्ध चाहो वैसा ही सम्बन्ध का रस एक द्वारा सदा निभा सकते हो, और सम्बन्ध भी ऐसे जो देने वाले होंगे लेने वाले नहीं। कभी धोखा भी नहीं देने वाले - सदा प्रीति की रीति निभाने वाले - ऐसे अमर सम्बन्ध अनुभव करते हो ना? और बात सम्पर्क - संगमयुगी जीवन में सम्पर्क भी सदा होली हंसों से है। बाप के सम्पर्क के आधार पर ब्राह्मण परिवार का सम्पर्क है - हंस और बगुलों का सम्पर्क नहीं लेकिन ब्राह्मण आत्माओं का सम्पर्क है बगुलों का सम्पर्क सिर्फ सेवा अर्थ है। सेवा का सम्पर्क होने का कारण - सदा विश्व कल्याण की भावना, विश्व परिवर्तन की कामना रहती है। इस कारण सेवा के सम्पर्क में भी कोई दुख की लहर नहीं। निन्दा करे तो भी मित्र, गुणगान करे तो भी मित्र - सदा भाई-भाई की दृष्टि रहम की वृत्ति रहती है तो सम्पर्क भी श्रेष्ठ है। ऐसा श्रेष्ठ भाग्य भाग्यविधाता से प्राप्त है। तो सदा श्रेष्ठ भाग्यवान हुए ना। आज बच्चों के इस सुहाग और भाग्य को देख रहे थे। सदा सम्पन्न आत्मायें, अप्राप्त नहीं कोई वस्तु इस ब्राह्मण जीवन में - ऐसे अनुभव करते हो ना। सदा सुहाग का तिलक वा भाग्य का सितारा चमक रहा हैं ना? चमक की परसेन्टेज कितनी है? चमक तो सभी में है लेकिन वरसेन्टेज के अनुसार नम्बरवार है - विदेशियों का नम्बर कौन सा है? विजय माला में नम्बर हैं ना। चाहे देश के हो चाहे विदेश के हो, माला तो एक ही है - जो सदा सुहाग और भाग्य के अधिकारी हैं वही विजय माला के भी अधिकारी हैं।
बाप-दादा को विशेष काम है ही बच्चों का - तो सदा बच्चों की माला जपते हैं। बाप की माला तो आत्मायें जपती हैं लेकिन बच्चों की माला परमात्मा जपते हैं। तो भाग्यशाली कौन हुए! अच्छा –
ऐसे सदा सुहागिन, सदा श्रेष्ठ भाग्य के अधिकारी, सदा कम्पेनियनशिप निभाने वाले, सदा स्मृति के तिलकधारी, मर्यादा सम्पन्न श्रेष्ठ आत्माओं को, विश्व कल्याणकारी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
दीदी से बातचीत - सदा सुहागिन का गायन शास्त्रों में किस रूप में है! सदा सुहागिन का गायन पटरानियों के रूप में है - फिर पटरानियों में भी नम्बर हैं - कोई सदा साथ रहती है और कोई कभी-कभी। उन्होंने देहधारी की कहानी बना दी है - लेकिन हैं आत्माओं और परमात्मा की कहानी। जो एक ही समय पर सभी से मिलन मना सकते हैं जो भी आह्वान करे। तो पटरानियाँ तो सब बनती हैं लेकिन उनमें भी नम्बर है। प्राप्ति में भी अन्तर है और पूजन में भी अन्तर है। राधे और गोपियों में भी अन्तर है। पूजन में भी अन्तर है तो प्राप्ति में भी अन्तर है। राधे की प्राप्ति अपनी - गोपियों की अपनी। कोई विशेषता राधे के पार्ट में है और कोई विशेषता पटरानियों वा गोपियों के पार्ट में है। इसका भी गुह्य रहस्य है। मिलन मेला मनाने वाले कौन? सर्व सुखों का अनुभव परमात्म पार्ट से है - यह भी सबसे विशेष भाग्य है। इसका भी आत्माओं के विशेष पार्ट से सम्बन्ध है।
संगमयुग पर विशेष यही चैक करना है कि सर्व प्राप्ति की है। सर्व खजाने सामने रखो, सर्व सम्बन्ध सामने रखो - सर्वगुण सामने रखो, कर्तव्य सामने रखो - सर्व बातों में अनुभवी हुए हैं! कर्तव्य में भी मन्सा का कर्तव्य, वाणी द्वारा है कर्म अर्थात् सम्बन्ध और सम्पर्क द्वारा है। उसकी भी चैकिंग चाहिए कि सर्व रूप से कर्तव्य के भी अनुभवी हैं। अगर कोई भी अनुभव रह गया हो तो उसी अनुभव को सम्पन्न बनाना चाहिए। क्योंकि संगमयुग के अनुभव फिर कभी भी नहीं हो सकते। इसलिए अब रहे हुए थोड़े समय में सर्व बातें में स्वयं को सम्पन्न बनाना चाहिए। ऐसी चैकिंग जरूर होनी चाहिए। अगर एक भी सम्बन्ध वा गुण की कमी है तो सम्पूर्ण स्टेज वा सम्पूर्ण मूर्त नहीं कहला सकते। बाप का गुण वा अपना आदि स्वरूप का गुण अनुभव न हो तो सम्पन्न मूर्ति कैसे कहेंगे। इसलिए सबमें सम्पूर्ण बनना है।
जैसे ब्रह्मा बाप सम्पूर्ण बने तो बच्चे भी फालो फादर। ऐसा ही लक्ष्य सदा रहता है ना। ततत्वम् का वरदान मिला है ना। निमित्त बनना अर्थात् ततत्वम् के वरदानी - अभी भी और जन्म जन्मान्तर के भिन्न-भिन्न पार्ट में भी। अभी का ततत्वम् का वरदान सारा कल्प चलता है। संगम पर भी, पूज्य के समय भी और पुजारी के समय भी तो विशेष आत्माओं को विशेष वरदान है ततत्वम का। यह बहुत थोड़ों को मिलता है। अच्छा।
पार्टियों से मुलाकात 1. अनेक मतों का विनाश प्रारम्भ करो तो विजय का झण्डा लहरा जाए :- अनेक मत वाले सिर्फ एक बात को मान जाएं कि हम सबका बाप एक है और वही अब कार्य कर रहे हैं, कम से कम यह आवाज़ सब तरफ पहुँचे कि हम सब एक की सन्तान एक हैं और एक ही यथार्थ है। चाहे धारण करे न करे लेकिन मान लें, चलना तो पीछे की बात है। जैसे कई आत्मायें सम्पर्क में आती तो समझती हैं यह अच्छा काम कर रहे हैं, इतना सब मान लें तो विजय का झण्डा लहरा जायेगा। इसी संकल्प से मुक्तिधाम में चली जायें तो भी ठीक है। इसी संकल्प से मुक्तिधाम जायेंगे तो जब अपना-अपना पार्ट बजाने आयेंगे तो पहले यही संस्कार होंगे कि गाड इज वन। यह गोल्डन एज की स्मृति है। अनेकों में फँसना यह आइरन एज है। अथॉरिटी से और सत्यता से बोलो, संकोच से नहीं। सत्यता प्रत्यक्षता का आधार है। प्रत्यक्षता करने के लिए पहले स्वयं को प्रत्यक्ष करो, निर्भय बनो।
एक बल एक भरोसे पर अचल और अटल रहने वाले - यह अनुभव अनेकों को निश्चयबुद्धि बनाने वाला होता। निश्चयबुद्धि की नाव कितना भी कोई हिलावे लेकिन कभी भी कोई बात का असर नहीं हो सकता।
2. अलौकिक और अविनाशी झूला है - अतीन्द्रिय सुख :- सभी सदा संगमयुग की श्रेष्ठ प्राप्ति अतीन्द्रिय सुख में झूलते रहते हो? यह सुख ही सबसे बड़ा अलौकिक अविनाशी झूला है, जैसे जो लाडले बच्चे होते हैं उनको झूले में झुलाते हैं, जैसे कृष्ण को लाडला होने के कारण झूले में झुलाते हैं ना। संगमयुगी ब्राह्मणें का झूला अतीन्द्रिय सुख का झूला है। तो इसी झूले में सदा झूलते रहते हो! कभी भी देह अभिमान में आना अर्थात् झूले से निकल धरनी पर पांव रखना। धरनी पर पाँव रखते तो मैले हो जाते हैं। तो ऊंचे ते ऊंचे बाप के बच्चे सदा स्वच्छ होते - मैले नहीं। तो सदा इसी अतीन्दिय सुख में झूलते रहो।
3. सभी अपने को सदा बाप के समीप आत्मायें समझते हो? जो बाप के समीप आत्मायें होंगी उन्हों की निशानी क्या होगी? जितनी समीप होंगी उतना बाप के समान होगी। तो समान व समीप आत्मा बनने के लिए विशेष कौन-सी धारणा की आवश्यकता है? सदा याद और सेवा में तत्पर रहो। अगर सदा याद और सेवा में फालो फादर होंगे तो नम्बर वन जरूर आयेंगे। जैसे ब्रह्मा बाप ने इसी धारणा से नम्बरवन पद को प्राप्त किया वैसे आप भी फालो कर नम्बरवन डिवीजन में आ जायेंगे। नम्बर वन तो ब्रह्मा की आत्मा गई - लेकिन आप भी सब उसके साथ फर्स्ट डिवीजन में आयेंगे अर्थात् राजधानी में साथ-साथ होंगे जितना-जितना लाइट हाउस माइट हाउस बनेंगे उतना माया दूर से ही भाग जायेगी। लाइट हाउस के आगे अन्धकार रूपी माया आ नहीं सकती। अच्छा - ओम् शान्ति।
25-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सम्मान देना ही सम्मान लेना है
सर्व के बाप, शिक्षक और सतगुरू शिवबाबा बोले :-
आज भाग्यविधाता बाप सर्व भाग्यशाली बच्चों का विशेष एक बात का आदि से अब तक का रिकार्ड (Record) देख रहे थे। कौन सी बात का? रिगार्ड का रिकार्ड देख रहे थे। रिगार्ड (Regard) भी विशेष ब्राह्मण जीवन के चढ़ती कला का साधन है। जो रिगार्ड देते हैं वही विशेष आत्मा वर्तमान समय और जनम जन्मान्तर भी अन्य आत्माओं द्वारा रिगार्ड लेने के पात्र बनते हैं। बापदादा भी साकार सृष्टि पर पार्ट बजाते आदि काल से पहले बच्चों को रिगार्ड दिया। बच्चों को स्वयं से भी श्रेष्ठ मानकर बच्चों के आगे समर्पण हुआ। पहले बच्चे पीछे बाप, बच्चे सिर के ताज बने। बच्चे ही डबल पूज्य बनते - बच्चे ही बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त बनते हैं। बाप ने भी आदि काल से रिगार्ड रखा - ऐसे ही फालो फादर करने वाले बच्चे आदिकाल से अपना रिगार्ड का रिकार्ड बहुत अच्छा रखते आये हैं। हरेक अपने आपको चैक करो कि हमारा रिकार्ड अब तक कैसा रहा।
रिकार्ड रखने के लिए पहली बात है - बाप में रिगार्ड - दूसरी बात...बाप द्वारा मिली हुई नॉलेज का रिगार्ड - तीसरी बात - स्वयं का रिगार्ड - चौथी बात - जो भी आत्मायें चाहे ब्राह्मण परिवार वा अन्य आत्मायें जो भी सम्पर्क में आती हैं उन आत्माओं के प्रति आत्मा का रिगार्ड। इन चारों ही बार्तें में अपने आपको चैक करो कि हमारा रिकार्ड कैसा रहा। चारों ही बातों में कितनी मार्क्स हैं! चारों ही बातों में सम्पन्न रहे हैं वा यथा शक्ति किस बात में मार्क्स अच्छी हैं और किसमें कम!
पहली बात - बाप का रिगार्ड - अर्थात् सदा जो है जैसा है वैसे स्वरूप से, यथार्थ पहचान से बाप के साथ सर्व सम्बन्धों की मर्यादाओं को निभाना। बाप के सम्बन्ध का रिगार्ड है फालो फादर करना। शिक्षक के सम्बन्ध का रिगार्ड है सदा पढ़ाई में रेगुलर (Regular) और पंक्चुअल (Punctual) रहना। पढ़ाई की सर्व सबजेक्ट में फुल अटैन्शन देना - सतगुरू के सम्बन्ध में रिगार्ड रखना - अर्थात् सतगुरू की आज्ञा देह सहित देह के सर्व सम्बन्ध भूलकर देही स्वरूप अर्थात् सतगुरू के समान निराकारी स्थिति में स्थिति रहना। सदा वापस घर जाने के लिए एवररेडी रहना। ऐसे ही साजन के सम्बन्ध का रिगार्ड - हर संकल्प और सेकेण्ड में उसी एक की लगन में आशिक रहना। तुम्ही से खाऊं, तुम्हीं से हर कार्य में सदा संग रहूँ...इस वफादारी को निभाना। सखा वा बन्धु के सम्बन्ध का रिगार्ड अर्थात् सदा अपना सर्व बातों में साथीपन का अनुभव करना। ऐसे सर्व सम्बन्धों का नाता निभाना ही रिगार्ड रखना है। रिगार्ड रखना अर्थात् जैसे कहावत है एक बाप दूसरा न कोई - बाप ने कहा और बच्चे ने किया। कदम के ऊपर कदम रख चलना। मनमत वा परमत बुद्धि द्वारा ऐसे समाप्त हो जाए जैसे कोई चीज़ होती ही नहीं। मनमत वा परमत को संकल्प से टच करना भी स्वप्नमात्र भी न हो - अर्थात् अविद्या हो। सिर्फ एक ही श्रीमत बुद्धि में हो - सुनो तो भी बाप से - बोलो तो भी बाप का - देखो तो भी बाप को, चलो तो भी बाप के साथ, सोचो तो भी बाप की बातें सोचो, करो तो भी बाप के सुनाये हुए श्रेष्ठ कर्म करो। इसको कहा जाता है बाप के रिगार्ड का रिकार्ड।
ऐसे चैक करो कि पहली बात में रिकार्ड फर्स्ट क्लास रहा है वा सेकेण्ड क्लास। अखण्ड रहा है वा खण्डित हुआ है, अटल रहा है या माया की परिस्थितियों प्रमाण रिगार्ड का रिकार्ड हलचल में रहा है। लकीर सदा सीधी रही है वा टेढ़ी बाँकी भी रही है।
दूसरी बात - नॉलेज का रिगार्ड - अर्थात् आदि से अभी तक जो भी महावाक्य उच्चारण हुए उन हर महावाक्य में अटल निश्चय हो - कैसे होगा, कब होगा, होना तो चाहिए, है तो सत्य...इस प्रकार के क्वेश्चन उठाना भी अर्थात् सूक्ष्म संकल्प के रूप में संशय उठाना है। यह भी नॉलेज का डिस रिगार्ड है।
आजकल के अल्पकाल के चमत्कार दिखाने वाले अर्थात् बाप से वंचित करने वाले यथार्थ से दूर करने वाले नामधारी महान आत्मायें उन्हों के लिए भी सतवचन महाराज कहते हैं। तो सतगुरू जो महान आत्माओं का भी रचता परमपिता है उसकी सत्य नॉलेज में क्वेश्चन करना वा संकल्प उठाना यह भी रायल रूप का संशय अर्थात् डिसरिगार्ड है। एक क्वेश्चन होता है स्पष्ट करने के लिए - दूसरा क्वेश्चन होता है सूक्ष्म संशय के आधार से - इसको कहा जाता है डिसरिगार्ड। बाप तो ऐसे कहते हैं लेकिन होना असम्भव है वा मुश्किल है - ऐसा संकल्प भी किस खाते में जावेगा - यह चैक करो।
तीसरी बात - स्वयं का रिगार्ड - इसमें भी बाप द्वारा इस अलौकिक श्रेष्ठ जीवन वा ब्राह्मण जीवन के जो भी टाइटिल हैं वा अनेक गुणों और कर्तव्य के आधार पर जो स्वरूप वा स्थिति का गायन हे - जैसे स्वदर्शन चक्रधारी - ज्ञान स्वरूप प्रेम स्वरूप फ़रिश्तेपन की स्थिति - जो बाप ने नॉलेज के आधार पर टाइटिल दिये हैं ऐसे अपने को अनुभव करना वा ऐसी स्थिति में स्थित रहना। जो हूँ वैसा अपने को समझकर चलना - जो हूँ अर्थात् श्रेष्ठ आत्मा हूँ, डायरेक्ट बाप की सन्तान हूँ, बेहद के प्रॉपर्टी की अधिकारी हूँ, मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ ऐसे जो हूँ वैसे समझकर चलना इसको कहा जाता है स्वयं का रिगार्ड। मैं तो कमजोर हूँ, मेरी हिम्मत नहीं हैं। बाप कहते हैं लेकिन मैं नहीं बन सकती, मेरा ड्रामा में पार्ट ही पीछे का है, जितना है उतना ही अच्छा है, ऐसे स्वयं से दिलशिकस्त होना यह भी स्वयं का डिसरिगार्ड है। यह भी चैक करो कि स्वयं के रिगार्ड का रिकार्ड क्या रहा।
चौथी बात - आत्माओं द्वारा सम्बन्ध वा सम्पर्क वाली आत्माओं का रिगार्ड - इसका अर्थ है हर आत्मा को चाहे ब्राह्मण आत्मा, चाहे अज्ञानी आत्मा हो लेकिन हर आत्मा के प्रति श्रेष्ठ भावना अर्थात् ऊंचे उठाने की वा आगे बढ़ाने की भावना हो, विश्व कल्याण की कामना हो इसी धारणा से हर आत्मा से सम्पर्क में आना यह है रिगार्ड रखना। सदा आत्मा के गुणों वा विशेषतओं को देखना - अवगुण को देखते हुए न देखना वा उससे भी ऊंचा अपनी शुभ वृत्ति से वा शुभचिन्तक स्थिति से अन्य के अवगुण को भी परिवर्तन करना इसको कहा जाता है आत्मा का आत्मा प्रति रिगार्ड। सदा अपने स्मृति की समर्थी द्वारा अन्य आत्माओं का सहयोगी बनना यह है रिगार्ड। सदा ‘पहले आप’ का मंत्र संकल्प और कर्म में लाना, किसी की भी कमजोरी वा अवगुण को अपनी कमजोरी वा अवगुण समझ वर्णन करने के बजाए वा फैलाने के बजाए समाना और परिवर्तन करना यह है रिगार्ड। किसी की भी कमजोरी की बड़ी बात को छोटा करना, पहाड़ को राई बनाना चाहिए न कि राई को पहाड़ बनाना है। इसको कहा जाता है रिगार्ड। दिलशिकस्त को शक्तिवान बनाना - संग के रंग में नहीं आना - सदा उमंग उल्लास में लाना इसको कहा जाता है रिगार्ड। ऐसे इस चौथी बात में भी चैक करो कि इसमें भी कितनी मार्क्स हैं! समझा कैसे रिगार्ड देना है। ऐसे चारों ही बातों में रिगार्ड अच्छा रखने वाले विश्व की आत्माओं द्वारा रिगार्ड लेने के पात्र बनते हैं। अर्थात् अब विश्व कल्याणकारी रूप में और भविष्य विश्व महाराजन के रूप में और मध्य में श्रेष्ठ पूज्य के रूप में प्रसिद्ध होते हैं। तो विश्व महाराजन बनने के लिए रिकार्ड भी ऐसा बनाओ।
रिगार्ड रखना अर्थात् रिगार्ड लेना है। देना, लेना हो जाता है। एक देना और दस पाना है। सहज हुआ ना।
कर्नाटक वाले सदा बाप के स्नेहमूर्त रहते हैं - कर्नाटक की धरनी बहुत सहज है। भावना के कारण धरनी फलीभूत है। इसलिए वृद्धि बहुत होती है। कर्नाटक की धरनी को सहज संदेश मिलने का ड्रामा अनुसार वरदान है। विशेष आत्मायें भी इस धरनी से सहज निकल सकती। लेकिन अभी आगे क्या करना है! जो वृद्धि होती है उसको विधिपूर्वक चलाना। सर्वशक्तियों के आधार से पालना में सदा महावीर बनाना हैं। स्नेह और शक्ति का बैलेन्स रखना यह विशेषता लानी है। वैसे भोलानाथ बाप के भोले बच्चे अच्छे हैं। परवाने अच्छें हैं। बापदादा को पसन्द हैं। अभी बाप-पसन्द के साथ लोक पसन्द भी बनना है। अच्छा –
ऐसे सदा बाप को फालो करने वाले, आज्ञाकारी, वफ़ादार, फरमानवरदार, सदा महादानी वरदानी अर्थात् विश्व कलयाणकारी, हर आत्मा को रिगार्ड दे आगे बढ़ाने वाले, सदा शुभचिन्तक आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। ओम् शान्ति।
‘‘बाप-दादा के पर्सनल (पार्टियों के साथ) उच्चारे हुए मधुर महावाक्य’’
1. सभी अपने को होलीहंस समझते हो? होली हंस अर्थात् जो सदा व्यर्थ को छोड़ समर्थ को अपनाने वाले हों। वह हंस क्षीर और नीर को अलग-अलग करता है लेकिन होलीहंस व्यर्थ और समर्थ को अलग कर व्यर्थ को छोड़ देंगे, समर्थ को अपनायेंगे। जैसे हंस कभी भी कंकड़ नहीं चुगेंगे - रतन को धारण करेंगे, ऐसे होलीहंस जो सदा बाप के गुणें को धारण करें किसी के भी अवगुण अर्थात् कंकड़ को धारण न करें उसको कहा जाता है होलीहंस अर्थात् पवित्र आत्मायें, शुद्ध आत्मायें। जैसा शुद्ध आत्मा होगा वैसा उसका आहार व्यवहार भी शुद्ध होगा, होली हंस का आहार भी शुद्ध, व्यवहार भी शुद्ध। अशुद्धि खत्म हो जाती है। क्योंकि शुद्ध दुनिया में जा रहे हैं। जहाँ अपवित्रता वा अशुद्धि का नामनिशान भी नहीं। अब होलीहंस बनते हो तब ही भविष्य में भी हिज़ होलीनेस कहलाते हो। कभी गलती से भी किसका अवगुण धारण न करने वाले, सदा गले में गुण माला हो। शक्तियों के गले में भी माला दिखाते हैं, देवताओं के गले में भी माला दिखाते हैं। तो संगम में गुणों की माला धारण करने वालों की यादगार में माला दिखाई है। बाप के गुणों को धारण करते हुए सर्व के गुण देखने वाले हो तो यह गुणमाला सभी के गले में पड़ी है? गुणमाला धारण करने वाले ही विजय माला में आते हैं। तो चैक करना चाहिए माला छोटी है या बड़ी है। जितने बाप के और सर्व के गुण स्वयं में धारण करने वाले हैं वही बड़ी माला धारण करने वाले हैं। गुणमाला को सुमिरण करने से स्वयं भी गुणमूर्त बन जाते हैं। जैसे बाप गुणमूर्त है वैसे बच्चे भी सदा गुणमूर्त हैं।
2. सदा कमल पुष्प के समान प्रवृति में रहते हर कार्य करते हुए न्यारे अर्थात् बाप के प्यारे समझते हो? जितना न्यारा होगा उसके न्यारे पन की निशानी होगी - बाप का प्यारा होगा। बाप के प्यारे कहाँ तक बने हैं - प्यारे की निशानी क्या है? जिससे प्यार होता है उसकी याद स्वत: रहती है। याद करना नहीं पड़ता। अगर ऐसा अनुभव होता तो समझो प्यारे हैं। प्यार की निशानी स्वत: याद, अगर मेहनत करनी पड़ती है तो कम प्यार है। जहाँ जाएँ वहाँ बाप और बच्चे का मिलन मेला ही हो, जैसे कम्बाइन्ड होते हैं तो कभी एक दो से अलग नहीं हो सकते, ऐसे अपने को कम्बाइन्ड अनुभव करो। जहाँ जाएंँ वहाँ बाप ही बाप, इसको कहा जाता है निरनतर योगी। बाप की याद मुश्किल न हो बाप को भूलना मुश्किल हो। जैसे आधाकल्प करना मुश्किल था वैसे अब संगम पर भूलना मुश्किल हो, कोई कितना भी भुलाने की कोशिश करे लेकिन अभुल। ऐसे पक्के अंगद के समान, संकल्प रूपी नाखून भी माया हिला न सके - ऐसे ही बाप के अति प्यारे हैं।
3. सर्विस में कोई न कोई प्रकार का विघ्न वा टैन्शन आने का कारण है - स्वयं और सेवा का बैलेन्स नहीं, स्वयं का अटैन्शन कम हो जाने के कारण सर्विस में भी कोई न कोई प्रकार का विघ्न वा टैन्शन पैदा हो जाता है। सर्विस के प्लैन के साथ पहले अपना प्लैन बनाओ। मर्यादाओं के लकीर के अन्दर रहते हुए सर्विस करो। लकीर से बाहर निकल सर्विस करेंगे तो सफलता नहीं मिल सकती। पहले अपनी धारणा की कमेटी बनाओ। आपस में प्लैन बनाओ फिर सर्विस वृद्धि को सहज पा लेगी। 4. सदा अपने को शमा के ऊपर फिदा होने वाले परवाने समझते हो? परवाने को सिवाए शमा के और कुछ सूझता नहीं। जैसे परवाना स्वयं को मिटाकर शमा में समा जाता है वैसे अपने देहभान को भूल बाप समान बन जाना इसको कहा जाता है समान बनना अर्थात् समा जाना। सारा कल्प तो बीत चुका, अब संगम को वरदान है जो बनने चाहो वह बन सकते हो। भाग्यविधाता भाग्य की लकीर अभी ही खींचते हैं, जो चाहो वह भाग्य बनाओ। अच्छा - ओम् शान्ति।
30-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सर्व बन्धनों से मुक्ति की युक्ति
सर्व बन्धनों से मुक्ति दिलानेवाले मुक्तेश्वर शिवबाबा, त्रिकालदर्शी साक्षी दृष्टा बच्चों प्रति बोले –
आज बाप-दादा सभी स्नेही सिकीलधे बच्चों को देख हर्षा रहे हैं। जैसे बापदादा दूर देश से बच्चों से मिलने आते हैं वैसे बच्चे भी दूर देशों से बाप के साथ मिलने आते हैं। यह अलौकिक मेला अर्थात् बाप बच्चों का मिलन कल्प के अन्दर अब संगम पर ही होता है - अब नहीं तो कब नहीं। बाप-दादा सभी बच्चों की विशेष धारणाओं को देख रहे हैं। सुनना - यह तो जन्म-जन्मान्तर से करते ही आये लेकिन इस अलौकिक जन्म में अर्थात् ब्राह्मण जीवन में विशेषता है ही धारणा स्वरूप बनने की। तो बाप-दादा रिज़ल्ट देख रहे हैं। हरेक ब्राह्मण बच्चा कर्म करने के पहले त्रिकालदर्शी स्टेज पर स्थित हो तीनों कालों को जानने वाले बन कर्म के आदि, मध्य, अन्त को जान कर्म करते हैं! और फिर कर्म करते समय साक्षी दृष्टा हो पार्ट बजाते हैं। ऐसे पार्ट बजाने वाले वर्तमान समय और भविष्य में भी पूज्य स्वरूप बन अनेक आत्माओं के आगे दृष्टान्त रूप बनते हैं। त्रिकालदर्शी, साक्षी दृष्टा और फिर दृष्टान्त रूप। तीनों ही स्थिति में अभी कहाँ तक पहुँचे हैं? जैसे साकार बाप को देखा ऐसे फालो फादर हैं? हर कर्म त्रिकालदर्शी बन करने से कभी भी कोई कर्म विकर्म नहीं हो सकता, सदा सुकर्म होगा। त्रिकालदर्शी न बनने के कारण ही व्यर्थ कर्म वा पाप कर्म होते हैं। ऐसे ही साक्षी दृष्टा बन कर्म करने से कोई भी कर्म के बन्धन में कर्म बन्धनी आत्मा नहीं बनेंगे। कर्म का फल श्रेष्ठ होने के कारण कर्म सम्बन्ध में आवेंगे, बन्धन में नहीं। सदा कर्म करते हुए भी न्यारे और बाप के प्यारे अनुभव करेंगे ऐसी न्यारी और प्यारी आत्मायें अभी भी अनेक आत्माओं के सामने दृष्टान्त अर्थात् एक्जैम्पुल बनते हैं - जिसको देखकर अनेक आत्मायें स्वयं भी कर्मयोगी बन जाती हैं और भविष्य में भी पूज्यनीय बन जाती हैं। ऐसे बाप समान बने हो? बन्धन मुक्त आत्मा बने हो? सर्व सम्बन्ध बाप के साथ जोड़ना अर्थात् सर्व बन्धनों से मुक्त होना। अनेक जन्मों के अनेक प्रकार के बन्धन को समाप्त करने का सहज साधन बाप से सर्व सम्बन्ध। अगर किसी भी प्रकार का बन्धन अनुभव करते हो तो उसका कारण है सम्बन्ध नहीं। बाप-दादा रिज़ल्ट देख रहे थे कि अभी तक कौन-कौन से बन्धन युक्त हैं। देह के बन्धन का कारण है देही का सम्बन्ध बाप से नहीं जोड़ा है। बाप की स्मृति और देही स्वरूप के स्मृति की धारणा नहीं हुई है। पहला पाठ कच्चा है। सेकेण्ड में देह से न्यारे बनने का अभ्यास सेकेण्ड में देह के बन्धन से मुक्त बना देता है। स्वीच आन हुआ और भस्म। जैसे साइन्स के साधनों द्वारा भी वस्तु सेकेण्ड में परिवर्तन हो जाती है वैसे साइलेन्स की शक्ति से, देही के सम्बन्ध से बंधन खत्म। अब तक भी अगर पहली स्टेज देह के बन्धन में हैं तो क्या कहेंगे! अभी तक पहले क्लास में हैं। जैसे कोई स्टूडेन्ट कमज़ोर होने के कारण कई वर्ष एक ही क्लास में रहते हैं - तो सोचो ईश्वरीय पढ़ाई का लास्ट टाइम चल रहा है और अब तक भी देह के सम्बन्ध की पहली चौपड़ी में हैं, ऐसे स्टूडेन्ट को क्या कहेंगे। किस लाइन में आवेंगे! पाने वाले वा देखने वाले। तो अब तक पहली क्लास में तो नहीं बैठे हो। परधर्म में स्थित होना सहज होता है वा स्वधर्म में? स्वधर्म है देही अर्थात् आत्मिक स्वरूप। परधर्म है देह स्वरूप - तो सहज क्या अनुभव होता है। जैसा नाम है सहज राजयोगी वैसा ही अनुभव है? वा नाम और काम में फर्क है!
दूसरे नम्बर का बन्धन है मन का बन्धन। इस मन के बन्धन का साधन है सदा मनमनाभव। यह पहला मन्त्र सदा जीवन में अनुभव करते हो? सदा एक बाप दूसरा न कोई। यह पहला वायदा निभाना अर्थात् मन के बन्धनों से मुक्त होना - तो पहला वायदा निभाना आता है ना! कहना आता है वा निभाना आता है? निभाना अर्थात् पाना - इसमें भी चैक करो कि कहाँ तक बन्धन मुक्त बने हैं। सदा सर्व आकर्षणों से परे एक ही लगन में मगन हैं? एक रस हैं? अचल हैं वा चंचल हैं। अगर अब तक चंचल हैं तो क्या कहेंगे? अभी तक छोटा बच्चा है और स्टेज आकर पहुँची हैं वानप्रस्थ की, ऐसी स्टेज के समय यह चंचलता! बचपन की स्टेज अच्छी लगती है? ब्राह्मण जन्म का अधिकार मास्टर सर्वशक्तिवान का प्राप्त किया है - अधिकार के आगे यह देह वा मन के बन्धन रह सकते हैं! प्रैक्टिकल अनुभव क्या है? सदा यह तीन बातें याद करो - त्रिकालदर्शी फिर साक्षी दृष्टा और उसकी रिज़ल्ट विश्व के आगे दृष्टान्त रूप। इस स्थिति को सदा याद रखो तो सदा बन्धन मुक्त जीवनमुक्त अवस्था का अनुभव करेंगे। पुरूषार्थ का समय बहुत बीत चुका। अब थोड़े का भी थोड़ा-सा रहा है। समय के प्रमाण अपनी रिज़ल्ट चैक करो। इस मेले का भी थोड़ा-सा समय रह गया है - इसलिए अब सुना तो बहुत, सुनना अर्थात् वाणी द्वारा ही यह ब्राह्मण जन्म लिया इसलिए मुख वंशावली कहलाते हो। तो जन्म से ही सुनते आये हो अब क्या करना है? सुनने के बाद है स्वरूप बनना। इसलिए लास्ट स्टेज स्मृति स्वरूप की है। ऐसी स्टेज तक कहाँ तक पहुँचे हो। सीज़न की रिजल्ट भी क्या! सुनना और मिलना वा समान बनना। स्नेह का सबूत है ही समान बनना। जिस स्टेज से बाप का स्नेह है ऐसी स्टेज को पाना। ऐसे स्नेही हो ना? सदा अपने सम्पूर्ण स्वरूप को सामने रखने से माया का सामना करना बहुत सहज होगा। बाप-दादा यही रिज़ल्ट देखने चाहता - इस रिज़ल्ट को प्रैक्टिकल में लाने के लिए विशेष धारणायें याद रखो - 1. मधुरता 2. नम्रता। इन विशेष दो धारणाओं से सदा विश्व कल्याणकारी महादानी वरदानी बन जावेंगे - और सहज ही स्नेह का सबूत दे सकेंगे। समझा - अभी क्या करना है? यह करना है और कुछ छोड़ना भी है। छोड़ना क्या है? ज्ञानी तू आत्मा होने के कारण भक्ति के संस्कार भिखारी बन मांगने का वा सिर्फ बाप की महिमा वा कीर्तन गाने का, मन द्वारा यहाँ वहाँ भटकने का, अपने खज़ानों को व्यर्थ गँवाने का यह पुराने संस्कार सदा के लिए समाप्त करो अर्थात् पुराने संस्कारों का संस्कार करो। यह है छोड़ना। तो अब समझा क्या करना है। क्या छोड़ना है। ज्ञानी तू आत्मा अर्थात् विजयी। अच्छा –
ऐसे सेकेण्ड में स्व परिवर्तन करने वाले, स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन करने वाले, सर्व बन्धनों से मुक्त सदा योगयुक्त, जीवन मुक्त, बाप-दादा के स्नेही अर्थात् समान बनने वाले ऐसे सदा विजयी रतनों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
बाप-दादा की व्यक्तिगत मुलाकात - (बंगाल बिहार ज़ोन)
1. सदा अपने को पदमापदमपति समझते हो? जो हर कदम में पदमों की कमाई जमा करते हैं वह क्या हो गये? पदमापदमपति हो गये ना! आपके आगे आजकल के नम्बरवन धनवान भी क्या हैं? भिखारी। क्योंकि जितना धन होगा तो धन के साथ और क्या होता है, दुख भी होता है। तो जो दुखी होंगे वह सुख के भिखारी तो होंगे ना। तो चाहे जितना भी बड़ा विश्व में प्रसिद्ध नामी-ग्रामी धनवान हो लेकिन आपके आगे सब भिखारी हैं। अब ऐसा समय प्रैक्टिकल में देखेंगे जो नामी-ग्रामी धनवान अभी सुनने के लिए तैयार नहीं हैं, जिन्हें सोचने की फुर्सत नहीं है वह सब आपके आगे भिखारी की क्यू में होंगे, तरसेंगे, तड़फेंगे एक सेकेण्ड के सुख के लिए। ऐसे समय पर आप सभी महादानी स्टेज पर स्थित हो सबको दान देंगे। तो इतना नशा रहता है? कि हम विश्व में सबसे मालामाल हैं। शुरू में भी स्थापना के समय अखबार में क्या डलवाया था - लोगों ने कहा ओम मण्डली गई कि गई और बाप ने डलवाया ओम मण्डली सारे वर्ल्ड में रिचेस्ट है, मालामाल है, सब भूख मर सकते हैं लेकिन बाप के बच्चे भूखे नहीं मर सकते। क्योंकि ‘अमरभव’ का वरदान मिला हुआ है। जो वरदानी हैं वह सदा मालामाल हैं तो ऐसा नशा और खुशी सदा कायम रहे, कभी-कभी नहीं। अमरभव अर्थात् निरन्तर सदा खुशी में बाप के साथ समानता की रास खेलते रहो। बाप के साथ रास भी वही खेलेंगे जो समान होंगे। सदा समानता ही रास है तो ऐसे रास खेलते हो? जो यहाँ सदा बाप के समान रहते हैं वा खुशी में नाचते रहते हैं वही फिर भविष्य में भी साथ-साथ रास करेंगे। ब्रह्मा बाप के साथ पार्ट बजाना, तो बाप समान होंगे तब तो पार्ट बजायेंगे ना।
शक्ति सेना सदा विजय का झण्डा लहराने वाली हो ना? कितना ऊँचा झण्डा लहराया है? इतना ऊंचा झण्डा है जो सारी विश्व देख सकेंगे। झण्डा लहराया जरूर है लेकिन अभी ऊंचा उठाना है। अगर कोई अट्रैक्शन की वस्तु कहाँ भी नजर आती तो सबकी नज़र आटोमेटिकली जाती है, न चाहते भी आकर्षण होती है। तो ऐसा आकर्षण वाला झण्डा लहराओ जो न चाहते भी सबकी नज़र जाए। वैसे तो धरनी अभी परिवर्तन होती जा रही है, अभी सबके कानों में यह आवाज़ गूँजने वाला है कि अगर सत्य कार्य है तो इनहों का ही है, सब तरफ से निराश होंगे और इसी तरफ आशा का दीपक दिखाई देगा। इसके लिए सम्पर्क बढ़ाओ। समय पर सम्पर्क नही सदा सम्पर्क। सम्पर्क में आने वालों को आगे बढ़ाते चलो, कोई न कोई प्रोग्राम समय प्रति समय रखते हो। हर वर्ग की सेवा करनी है, अन्त में कोई भी उल्हना न दे सके कि हमें नही बताया। इसलिए सब धर्म वालों को सन्देश जरूर देना है।
2. तमोगुणी वातावरण से सेफ्टी का साधन - बाप का साथ :- अपने को इस पुरानी दुनिया में रहते कमल पुष्प के समान न्यारे और बाप के अति प्यारे अनुभव करते हो? जैसे कमल का पुष्प कीचड़ में रहते भी न्यारा रहता है, ऐसे पुरानी दुनिया में रहते हुए, तमोगुणी वातावरण से न्यारे रहते हो? तमोगुणी वातावरण का प्रभाव तो नहीं पड़ता। जो सदा बाप को अपना साथी बनाते और साक्षी हो पार्ट बजाते वह सदा न्यारे होंगे। जैसे वाटरप्रूफ होता है ना तो कितना भी पानी पड़े लेकिन एक बूँद भी असर नहीं करेंगी। ऐसे सदा मायाप्रूफ हो कि माया का असर होता है? जब बाप के साथ का किनारा करते हो तब असर होता है। किनारा देख माया अपना वार कर देती हैं। सदा साथ रहो तो माया का वार नहीं हो सकता। सभी बच्चों को मायाजीत बनने का वरदान है लेकिन मायाजीत का पेपर तो होगा ना! पास नहीं होंगे तो पास विद ऑनर कैसे कहलायेंगे। सदा यह याद रखो कि हम सर्वशक्तिवान के साथ हैं। अगर कोई बहादुर का साथ होता है तो कितना निर्भय रहते हैं, यह तो सर्वशक्तिवान का साथ है तो कितना निर्भय रहना चाहिए। सदा अपने भाग्य का सितारा चमकता हुआ देखो। दुनिया वाले आज भी आपके भाग्य का वर्णन कर रहे हैं, तो अपने भाग्य का सितारा देखते रहो।
3. डबल लाइट की स्थिति से पहाड़ जैसा कार्य भी रूई समान :- सभी डबल लाइट हो ना! किसी भी प्रकार का बोझ अनुभव न हो यह है डबल लाइट। डबल लाइट अर्थात् बिन्दी स्वरूप आत्मा में भी कोई बोझ नहीं और जब फरिश्ते बन जाते तो उसमें भी कोई बोझ नहीं। तो या तो अपना बिन्दु रूप याद रहे या कर्म में फरिश्ता स्वरूप - ऐसी स्टेज पर स्थित होने से कितना भी बड़ा कार्य ऐसे अनुभव करेंगे जैसे करन करावनहार करा रहे हैं। निमित्त समझेंगे तो डबल लाइट रहेंगे। ट्रस्टी अर्थात् डबल लाइट, गृहस्थी अर्थात् बोझ वाला। ट्रस्टी होकर चलने से बोझ भी नहीं और सफलता भी ज्यादा। गृहस्थी समझने से मेहनत भी ज्यादा और सफलता भी कम। तो सदा डबल लाइट के स्वरूप की स्मृति की समर्थी में रहो तो कोई भी पहाड़ जैसा कार्य भी राई नहीं लेकिन रूई जैसा हो जायेगा। राई फिर भी सख्त होती है, रूई उससे भी हल्की, तो रूई के समान अर्थात् असम्भव भी सम्भव हो जायेगा। अच्छा –
4. अपनी स्थिति को शक्तिशाली बनाने का साधन है - श्रेष्ठ स्मृति :- सदा अपने को श्रेष्ठ आत्मा समझते हुए हर संकल्प और कर्म श्रेष्ठ करते हो? क्योंकि जैसी स्मृति होती है वैसी स्थिति स्वत: बन जाती है। तो स्मृति रहती है कि हम महान श्रेष्ठ आत्मा हैं। स्मृति को सदा चैक करो कि निरंतर विशेष आत्मा की रहती है - या चलते- चलते साधारण बन जाती है। सदा अपना आक्यूपेशन कि मैं विश्व में ब्राह्मण चोटी हूँ। सदा अपने मस्तक पर स्मृति का तिलक लगा हुआ हो। लौकिक रीति से भी ब्राह्मण तिलक लगाते हैं, तो यह निशानी अब संगमयुग की है, तो सदा तिलक कायम रहता है? माया मिटाती तो नहीं है। सदा अटेन्शन रहे तो स्मृति का तिलक अमिट और अविनाशी रहेगा। अच्छा - ओम् शान्ति।
01-02-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
मनन-शक्ति ही माया जीत बनने का साधन
मनन द्वारा मग्न रहने वाले मास्टर भगवान बच्चों बच्चों प्रति बाप-दादा बोले –
आज बापदादा बच्चों के अनेक प्रकार के पुरूषार्थ की विधि को देखते हुए बच्चों के उमंग, उत्साह, मिलन की लगन, स्नेह का संकल्प सदा सहयोगी बनने के कार्य में तत्पर रहना, सब संग तोड़ एक संग जोड़ने की मेहनत को देख बापदादा हर्षित भी हो रहे थे और साथ-साथ स्नहे के कारण तरस भी पड़ रहा था - हरेक अपने-अपने यथाशक्ति लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तीव्रगति से लगे हुए हैं। सबकी एक ही इच्छा है कि फास्ट जावें फर्स्ट आवें। दिन रात इसी लगन में चल रहे हैं - लेकिन लक्ष्य एक है, लगन भी एक से ही है। साथ भी एक का ही है फिर भी कोई महावीर हैं और कोई बहुत मेहनत अनुभव करते हैं - कोई सहजयोगी हैं - कोई पुरुषार्थी योगी हैं, कोई सर्व प्राप्ति स्वरूप हैं - कोई सर्व प्राप्ति करने में खूब लगे हुए हैं। कोई मायाजीत हैं - और कोई माया के विघ्नों से युद्ध करने में लगे हुए हैं - कोई के मन का आवाज़ जो पाना था पा लिया - और कोई का आवाज़ है अभी पा रहे हैं। कोई सदा साथ का अनुभव करते और कोई सदा साथी बनाने के प्रयन्त में रहते। ऐसा देख बापदादा को मेहनत करने वालों के ऊपर तरस पड़ता है - एक बाप के बच्चे दो प्रकार के क्यों? और यह मेहनत भी कब तक? यह अलौकिक जन्म जिस जन्म को वरदान है क्योंकि वरदाता द्वारा यह जन्म है - ऐसा वरदानी जन्म प्राप्त होते हुए भी यह जन्म भी मनाने के बजाए मेहनत में ही जाए तो ऐसा वरदानी जन्म फिर कब मिलेगा! इसलिए इस वरदानी जन्म का हर सेकेण्ड और सर्व प्राप्ति करने का सुहावना सेकेण्ड है। ऐसे समय को पाने के बजाए मेहनत में लगाना क्या अच्छा लगता है! चाहते भी नहीं हैं फिर भी कर लेते हैं - क्यों? आज बापदादा ने विशेष कारण देखे। मूल कारण है जो चाहते नहीं हो लेकिन परवश हो जाते किसके वश हो जाते हो - उसको भी अच्छी तरह से जानते हो। जानते हुए बचने का प्रयत्न करते हुए भी फिर चक्कर में आ जाते हो - क्योंकि माया भी जानी जाननहार रूप में आती है - वह भी जानती है कि इन ब्राह्मण आत्माओं का मुख्य आधार बुद्धि योग है – दिव्य बुद्धि द्वारा ही बाप से मिलन मना सकते तो माया भी पहले-पहले बुद्धि में वार करती है। कमजोर बना देती है। किस द्वारा? माया का विशेष बाण व्यर्थ संकल्पों के रूप में होता है। इस बाण द्वारा दिव्यबुद्धि को कमजोर बना देती है और कमज़ोर बनने के कारण परवश हो जाते हैं। कमज़ोर व्यक्ति जो चाहे वह नहीं कर पाते इसलिए चाहते हो लेकिन कर नहीं पाते हो। इस कारण का निवारण सर्वशक्तिवान बाप द्वारा जो प्राप्त हुआ है उस शक्ति को कार्य में नहीं लगाते हो। वह विशेष शक्ति है मनन शक्ति। मनन शक्ति को यूज़ करना नहीं आता। मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुराक है। खुराक को न खाने से कमजोर बन जाते। और कमज़ोर होने के कारण परवश हो जाते। मनन शक्ति का विस्तार बहुत बड़ा है। लेकिन विधि नहीं आती।
जब से ब्राह्मण जन्म हुआ तब से अभी तक डायरेक्टर बाप द्वारा जीवन के कितने टाइटिल्स सुने हैं - अगर वर्णन करो तो पूरी लम्बी माला बन जाए - भक्ति मार्ग में भी सुमिरण करने के अभ्यासी हैं - एक-एक मणके पर सुमिरण करते हैं। भक्ति में सुमिरण शक्ति है और ज्ञान में स्मृति की शक्ति है। जब भक्त आत्मायें अपनी शक्ति को नहीं भूलती। अल्पकाल की विधि से अल्पकाल की सिद्धि को पाती रहती हैं - तो आप ज्ञानी तू आत्मायें स्मृति की शक्ति की विधि को क्यों भूल जाते हो। अगर रोज़ अमृतवेले अपने एक टाइटिल को भी स्मृति में लाओ और मनन करते रहो तो मनन शक्ति से सदा बुद्धि शक्तिशाली रहेगी। शक्तिशाली बुद्धि के ऊपर माया का वार नहीं हो सकता अर्थात् परवश नहीं हो सकती। तो मूल कारण है बुद्धि की कमजोरी और कमजोरी का निवारण है मनन शक्ति।
जैसे आजकल की विशेष आत्मायें अर्थात् पढ़े लिखे लोग जैसा कार्य होगा जैसा स्थान होगा वैसी अपनी ड्रेस चेन्ज करते हैं - आपके जड़ चित्रों का भी हर समय ड्रेस चेन्ज करते हैं। भविष्य देवताई रूप में भी हर कार्य की ड्रेस अलग-अलग होगी। यह संस्कार भविष्य का वर्तमान के आधार पर है - इस समय का फैशन वा रीति रसम सतयुग में तो चलेगी लेकिन आपके जड़ चित्रों में भी रस्म चली आ रही है - तो संगमयुग की रीति रसम कौन सी है? जैसा कार्य करते हो वैसे टाइटिल प्रमाण अपना स्वरूप याद रखो - सबसे ज्यादा फैशनेबुल संगमयुगी ब्राह्मण हैं। जैसा समय वैसा स्वरूप - यह स्वरूप भी आपकी ड्रेस है। जैसी स्मृति वैसी वृति वैसी दृष्टि और वैसी स्थिति अर्थात् स्वरूप। जैसे आजकल का फैशन है ना जैसा श्रृंगार - वस्त्र भी वैसे, तिलक भी वैसे लगावेंगे तो आँखों का श्रृंगार भी वैसा करेंगे। तो सबसे फैशनेबुल आप ब्राह्मण हो। ऐसी स्मृति वृति और दृष्टि बनाओ। स्मृति है तिलक और दृष्टि है आँखों का श्रृंगार - और वृति है मेकप करना। वृति से जैसा परिवर्तन चाहो वैसे कर सकते हो। तो सदैव रूहानी सजी सजाई मूर्त हो विश्व को परिवर्तन करने वाले!
मनन शक्ति अर्थात् अपने अनेक टाइटिलज़ अर्थात् स्वरूप स्मृति में रखो। अनेक गुणों के श्रृंगार को स्मृति में रखो - अनेक प्रकार के खुशी की प्वाईन्टस स्मृति में रखो, रूहानी नशे के प्वाईन्टस स्मृति में रखो, रचता बाप के परिचय की प्वाईन्टस बुद्धि में रखो, रचना के विस्तार की प्वाईन्टस स्मृति में रखो। याद द्वारा अनेक प्रकार के अनुभव और प्राप्तियों की प्वाईन्टस को स्मृति में रखो तो मनन शक्ति का साधन कितना बड़ा है! जो चाहे वह मनन करो। जो आपकी पसन्दी हो वह पसन्द करो - तो मनन करते मगन अवस्था भी सहज प्राप्त हो जावेगी। परवश के बजाए मायाजीत बनने का वशीकरण मन्त्र सदा साथ रहेगा और माया सदा के लिए नमस्कार करेगी। संगमयुग का पहला भक्त आपकी माया बनेगी। मास्टर भगवान बनो तो भक्त भी बने ना। अगर खुद ही भगत होंगे तो वह किसका भक्त बने। तो भक्त बनेंगे वा मास्टर भगवान बनेंगे - इसका सहज साधन सुनाया। मनन शक्ति को बढ़ाओ। समझा।
बंगाल बिहार का ज़ोन तो श्रृंगार करना जानता है, जैसे देवियों को बहुत सजाते हैं, अपने जड़ चित्रों को सजाने आता है ना। ऐसे स्वयं को सजाना है। इस ज़ोन की भी विशेषता है - जो बाप को अति प्रिय है। ऐसे बच्चे बहुत हैं - वह कौन? गरीब भी हैं और भोलेनाथ के भोले भी हैं - दोनों ही बाप को अति प्रिय हैं। इसलिए इस ज़ोन का ग्रुप देखो बड़ा है ना - इस ज़ोन की विशेषता है - इस ज़ोन में कितने अलग- अलग प्रदेश है - नेपाल भी है तो आसाम भी है, वैराइटी फूलों का गुलदस्ता है - सेवा भी अब विस्तार को पाती जा रही है। साकार तन को ढूंढा भी यहाँ से ही है। तो स्थान की विशेषता रही ना। जैसे गवर्मेन्ट को किस स्थान से कोई विशेष अमूल्य वस्तु मिलती है तो उस स्थान का महत्व रहता है - नामीग्रामी रहती है - हिस्ट्री में आ जाती है। ऐसे यह स्थान भी बाप की हिस्ट्री में विशेष स्थान है। आगे चलकर इस स्थान का महत्व विश्व में महत्वपूर्ण होगा - जैसे देहली की विशेषता अपनी है, बाम्बे की अपनी है। इस स्थान का महत्व भी बहुत बड़ा अपना है, इसलिए आगे चलकर और भी इस स्थान को विशेष भूमि की रीति से देखेंगे और सुनेंगे। ऐसे विशेष भूमि के निवासी भी विशेष आत्मायें हो। भूमि के साथ आप लोग के भाग्य का भी सब वर्णन करेंगे। अच्छा
सदा शक्तिशाली स्वरूप में स्थित रह माया दुश्मन को भी अपना भक्त बनाने वाले, सदा सजे सजाये स्वरूप में स्थित रहने वाले, वशीकरण मन्त्र द्वारा माया को वश करने वाले, सदा स्मृति द्वारा समर्थ रहने वाले, सर्वशक्तिवान आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पार्टियो से मुलाकात
1. हर संकल्प वा कर्म बाप समान करने से - निरन्तर सहजयोगी की स्टेज का अनुभव :- संगमयुग का श्रेष्ठ स्थान है बाप का दिलतख्त, जो इस तख्त पर बैठते हैं वही विश्व के तख्त के अधिकारी बनते हैं। और जैसे बाप परमपूज्य है वैसे बच्चे भी पूज्य बन जाते हैं। क्योंकि दिल में वही समाये जाते हैं जो समान होते हैं, तो बाप समान फालो फादर करने वाली आत्मायें हो ना - ऐसे अनुभव होता है जो बाप की स्मृति वह बच्चों की स्मृति, जो बाप के गुण वह बच्चों के गुण, जो बाप का कर्त्तव्य वह बच्चे का। इसको कहा जाता है फालो फादर। जो भी संकल्प वा कर्म करो तो पहले चेक करो कि बाप समान है, अगर बाप समान है तो सहजयोगी की स्टेज का अनुभव होगा। मेहनत नहीं लगेगी। और कोई भी परिस्थिति में बाप को सामने लाने से, स्वस्थिति के आधार से परिवर्तन हो जायेगी। चाहे कितने भी देश के हालात नाजुक हों लेकन आप सदा कमलपुष्प के समान बाप की छत्रछाया में न्यारे और प्यारे रहेंगे। सदा छत्रछाया में हो ना? बाप सेवाधारी बन करके आते हैं तो छत्रछाया के रूप में बच्चों की सदा सेवा करते हैं। बाप को याद किया और साथ अनुभव किया, वैसे कोई भी शरीरधारी का साथ लेने में समय लग जाता है लेकिन बाप तो सेकेण्ड में हाज़र होगा - तो दूर रहते भी सदा समीप आत्मा हो ऐसा अनुभव होता है? जो जितना प्यारा होगा उतना समीप होगा - तो कितने समीप हो? अभी भी समीप हो और परमधाम में भी समीप होंगे फिर भविष्य में भी समीप - तो तीनों ही स्थानों के समीप हो ना। जहाँ भी ब्राह्मण बच्चों के पांव पड़ते हैं वहाँ कोई न कोई आत्मायें हैं तब जाना होता है। जो बच्चे बाप की याद में रहते हैं, याद में रहने वाले बच्चों को बाप सदा रेसपान्ड देते भी रहते हैं और सदा देते रहेंगे, क्योंकि याद द्वारा ही अनुभवों का अधिकार प्राप्त होता है।
भाषण ही सिर्फ सेवा का साधन नहीं है, अनुभव द्वारा भी प्रभावित कर सकते हो, अनुभव की टापिक सबसे ज्यादा अट्रैक्ट करने वाली होती है। सेवा ज़रूर करनी है, जैसे भी करो। सब सबजेक्ट में मार्क्स लेनी हैं, अगर एक भी कम रह गई तो पास विद आनद कैसे होंगे, इसलिए सब सबजेक्ट को कवर करो।
2. सारे कल्प में संगमयुग ही बहारी मोसम है :- सदा बहार के समान खिले हुए पुष्प खुशबूदार रूहे गुलाब अपने को समझते हो? जब बहार का मौसम आता है तो सब फूलों में रगत आ जाती है, खिल जाते हैं, सुन्दर लगते हैं, संगमयुग भी सारे कल्प के अन्दर बहारी मौसम है, जिसमें हरेक आत्मा रूपी पुष्प खिला हुआ रहता है। तो ऐसे अपने को सदा खिला हुआ अर्थात् सदा रूहानी याद में रहने वाला रूहे गुलाब समझते हो? कि कभी फूल से मुखड़ी भी बन जाते हो? जो पहले छोटी कली होती है वह बन्द होती है, फिर खिल जाती है तो फूल कहा जाता। तो सदा खिले हुए हो या कभी फूल या कभी कली। सदा खिला हुआ पुष्प वह है जो दूर से ही सबको आकर्षित करे। ऐसी रूहानियत है? जो भी सम्पर्क में आए उसको यह रूहानी खुशबू आकर्षित करे - खिले हुए फुल ही किसी को भेंट किये जाते। बापदादा के ऊपर भी खिले हुए फुल ही बलिहार होते हैं। जो सच्चे भक्त होते हैं वह कभी देवताओं पर सड़े हुए फूल नहीं चढ़ायेंगे, अच्छे खिले हुए फूल देवाताओं पर भेंट करेंगे। तो ऐसे खिले हुए रूहानी गुलाब हो जो बाप के ऊपर बलिहार हो सकें। सदा यह याद है कि हम किस बागवान के बगीचे के फूल हैं। डायरेक्ट बाप फूलों को अपने स्नेह का पानी दे रहे हैं, तो कितने लकी हो गये!
बापदादा सदा हर बच्चे को देख क्या सोचते? कि हर बच्चा विश्व के मालिक बने
हद के नहीं, स्टेट के नहीं लेकिन विश्व के। विश्व का मालिक कौन बनेंगे? जो विश्वकल्याणकारी होंगे? तो आप सब कौन हो विश्व पर राज्य करने वाले या स्टेट पर? जो विश्व पर राज्य करने वाले होंगे वह सदा बेहद की स्थिति में स्थित होंगे - सम्बन्ध, संस्कार स्वभाव सब बेहद में होंगे, हद नहीं होगी। हद की प्रवृति में अपना ज्यादा समय समय देते हो या बेहद में? बनना है बेहद का मालिक और समय देते हद में - तो क्या होगा? बेहद के मालिक बनने वाले बेहद की सेवा में ज़रूर लगेंगे। हद निमित्तमात्र, सारा अटेन्शन बेहद की सेवा में। बेहद में जाकर सेवा करो, सर्विस में नया मोड़ लाओ। बहुत समय से दिल में जो प्लैन हैं वह प्रैक्टिकल में लाओ। इस वर्ष की योजना बनाओ - कि इतने सेन्टर खोलने हैं - हैन्डस भी आटोमेटिकली निकल आते हैं। वहाँ के भी हैन्डस तैयार करो। अच्छा - ओम्शान्ति।
03-02-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सर्व पर रहम करो, ‘वहम’ और ‘अहम’ भाव को मिटाओ
विश्व कल्याणकारी, राज्य भाग्य प्राप्त करने वाली, देव पद प्राप्त करने वाली आत्माओं प्रति बाबा बोले –
बापदादा सभी बच्चों को सम्पन्न स्वरूप, विश्व कल्याणकारी रूप में देख रहे हैं। वर्तमान समय अन्तिम स्वरूप वा अन्तिम कर्त्तव्य विश्व कल्याण का ही है। इस अन्तिम स्वरूप में स्थित रहने के लिए हरेक ब्राह्मण यथाशक्ति पुरूषार्थ कर रहे हैं। लक्ष्य सबका एक ही विश्व कल्याण करने का है लेकिन कोई अभी तक स्व कल्याण में ही लगे हुए हैं, और कोई स्वदेश के कल्याण करने में लगे हुए हैं। बहुत थोड़े बेहद के बाप समान बेहद अर्थात् विश्व की सेवा में अथवा विश्व कल्याणकारी स्वरूप में स्थित रहते हैं। विश्व कल्याणकारी श्रेंष्ठ आत्मा की निशानी क्या होगी?
1. विश्व कल्याणकारी जानते हैं कि समय कम है और कार्य महान है इसलिए विश्व कल्याणकारी हर सेकेण्ड वा संकल्प विश्व कल्याण के प्रति ही लगायेंगे।
2. तन मन और प्राप्त धन सदा विश्व सेवा में अर्पण करेंगे।
3. उनके मस्तक और नयनों में सदा विश्व की सर्व आत्मायें स्मृति वा दृष्टि में होंगी कि इन अप्राप्त आत्माओं को भी तृप्त आत्मा कैसे बनायें। भिखारी आत्माओं को सम्पन्न बनायें। वंचित हुई आत्माओं को सम्पर्क और सम्बन्ध में कैसे लायें। दिन-रात बाप द्वारा शक्तियों का वरदान लेते हुए सर्व को देने वाले दाता होंगे।
4. अथक, निरन्तर सेवाधारी होंगे। प्रोग्राम प्रमाण सेवाधारी नहीं लेकिन सदा एवररेडी आलराउन्डर होंगे।
5. ऐसे विश्व कल्याणकारी अर्थात् रहमदिल आत्मायें ही कैसी भी अवगुण वाली आत्मा हो, कड़े संस्कार वाली आत्मा हो, कम बुद्धि वाली आत्मा हो, पत्थर बुद्धि हो, सदा ग्लानि करने वाली आत्मा हो, सर्व आत्माओं के प्रति कल्याणकारी अर्थात् लाफुल और लवफुल होंगे। लक्ष्य सभी का ऐसा ही है लेकिन करते क्या हैं? चलते- चलते रहम के बदले दो बातों में बदल जाते हैं। कोई रहम करने के बदले आत्माओं में वहम भाव पैदा कर देते हैं - यह कभी बदल नहीं सकते, यह हैं ही ऐसे, सब तो राजा बनने वाले नहीं हैं, इस प्रकार के अनेक वहम भाव रहम को खत्म कर देते हैं। दूसरी बात - रहम भाव के बदले अहम् भाव ‘‘मैं ही सब कुछ हूँ - यह कुछ नहीं है। यह कुछ नहीं कर सकते मैं सब कुछ कर सकता हूँ।’’ इस प्रकार के अहम् भाव अर्थात् मैं-पन का अभिमान रहमदिल बनने नहीं देता। यह दोनों बातें बेहद के विश्व कल्याणकारी बना नहीं सकती। इसलिए स्व कल्याण वा स्व-देश कल्याण तक रह जाते हैं। विश्व कल्याणकारी बनने का सहज साधन जानते भी हो लेकन समय पर भूल जाते हो। कैसी भी अवगुणधारी आत्मा हो -कैसी भी पतित आत्मा वा पुरूषार्थहीन आत्मा दोनों में से कोई भी हो अज्ञानी पतित आत्मा होगी और ब्राह्मण परिवार की पुरूषार्थहीन आत्मा होगी-दोनों आत्माओं के प्रति विश्व कल्याणकारी अर्थात् बेहद की दाता आत्मा, विश्व परिवर्तन अधिकारी आत्मा सदा उन आत्माओं की बुराई वा कमज़ोरियों को कल्याणकारी होने के नाते पहले क्षमा करेंगी। जैसे बेहद का बाप बच्चों को क्षमा करते हैं किस बात पर? बच्चों की बुराई वा कमज़ोरियों को दिल में न समाए क्षमा करते हैं, पूज्य देवता भक्तों पर क्षमा करते हैं। तो विश्व कल्याणकारी मास्टर रचता भी हैं, विश्व अधिकारी भी हैं अर्थात् छोटों के आगे बड़ा राजा के समान हैं, बाप के समान हैं, पूज्य आत्मा हैं, इन तीनों सम्बन्ध के आधार से बुराई वा कमजोरी दिल पर न रख क्षमा करेंगे। उसके बाद ऐसी आत्मा के कल्याण प्रति सदा हर आत्मा के वास्तविक स्वरूप ओर गुण को सामने रखते हुए महिमा करेंगे अर्थात् उस आत्मा को अपनी महानता की स्मृति दिलायेंगे। किसके बच्चे हो - किस कुल के हो! संगमयुग की विशेषता वा वरदान क्या है! बाप का कर्त्तव्य असम्भव को भी सम्भव करने का है, तुम आत्मा आदिकाल की राजवंशी हो, अब ब्रह्मावंशी हो, मास्टर सर्वशक्तिवान हो, इस प्रकार की महिमा करेंगे - जिससे वह आत्मा गुणों को सुनते हुए स्मृति और समर्थी में आये और कमज़ोरी को वा बुराई को मिटाने की हिम्मत में आये।
जैसे आज की दुनिया में राजपूत वंश वाले अपने वंश की स्मृति दिलाते तो कमज़ोर में भी हिम्मत आ जाती - ऐसे विश्व कल्याणकारी - कमज़ोर आत्मा को भी महिमा से महान बना देंगे। अर्थात् अपनी रहमदिल की शकि्त से स्वयं तो उसके अवगुण धारण नहीं करेंगे लेकिन उसको भी अपने अवगुण विस्मृत कराए समर्थ बना देंगे। ऐसे समर्थ धरनी बनाने के बाद ऐसी आत्मा प्रति थोड़ी-सी मेहनत करने से, वहम भाव और अहम् भाव न रखने से ऐसी आत्मा भी परिवर्तन हो जायेगी। कभी भी ब्राह्मण परिवार में कमजोर आत्मा को - ‘‘तुम कमजोर हो, तुम कमजोर हो’’ नहीं कहना, नहीं तो जैसे शारीरिक कमज़ोर आत्मा अगर डाक्टर द्वारा सुने कि मैं तो मरने वाली हूँ तो हार्टफेल हो जायेगा। ऐसे आप सब भी मास्टर अथॉरिटी हो, श्रेष्ठ आत्मायें हों, विश्व परिवर्तक हो, आप लोगों के मुख से सदैव हर आत्मा के प्रति शुभ बोल निकलने चाहिए, दिलशिकस्त बनाने वाले नहीं, दिलशिकस्त बनना भी हार्टफेल होना हैं। चाहे कितना भी कमजोर हो उसको ईशारा भी देना हो, शिक्षा भी देनी हो, तो पहले समर्थ बनाकर फिर शिक्षा दो। पहले उनकी विशेषता की महिमा करो फिर उसको आगे के लिए और भी श्रेष्ठ आत्मा बनने का साधन, कमज़ोरी पर अटेन्शन रीति से दिलाओ। पहले धरनी पर हिम्मत और उत्साह का हल चलाओ फिर बीज डालो तो सहज ही बीज का फल निकलेगा। नहीं तो हिम्मतहीन कमज़ोर संस्कार वश आत्मा अर्थात् कलराठी जमीन में बीज डालते हैं इसलिए मेहनत और समय ज्यादा लगता है और सफलता भी कम निकलती है, विश्व कल्याण के कार्य में सोचने वा करने की फुर्सत नहीं मिलती, स्व कल्याण या देश कल्याण में ही लगे रहते हैं। विश्व कल्याणकारी स्वरूप में स्थित नहीं हो सकते। समझा। तो विश्व कल्याणकारी बनने के लिए क्या करना है और क्या न करना है। तब ही विश्व कल्याण की सेवा की गति तीव्र हो सकेगी। अभी मध्यम गति है इसलिए इस वर्ष में विश्व कल्याणकारी स्थिति की विधि द्वारा विश्व कल्याण के सेवा की गति तीव्र बनाओ, रहमदिल बनो। अब तक जो कुछ चला ड्रामा अनुसार जो चलता था वह चला। इससे भी आगे के लिए कल्याण की भावना ले, चढ़ती कला की भावना ले अब आगे बढो। कमज़ोरियों को सदा के लिए दृढ़ संकल्प द्वारा विदाई दो और विदाई दिलाओ। तो विश्व परिवर्तन का कार्य तीव्रगति से हो जायेगा। स्पीड और स्टेज को बढ़ाओ अर्थात् हर बात को नॉलेजफुल समर्थ स्थिति द्वारा सदा सहज पास करो और सदा पास हो जाओ तो फाइनल स्टेज पर पास विद आनर हो जायेंगे। समझा ऐसी तैयारी करो - जो दूसरी सीज़न में बापदादा सबको तीव्र पुरूषाथ्री के रूप में देखें। सभी आत्मायें फर्स्ट डिवीजन वाली आत्मायें हों - ऐसी महान आत्माओं का मिलन मेला मनाने आयें। हर ब्राह्मण बच्चा सदा ताज तिलक और तख्तधारी हो, ऐसी राज्य सभा में बाप आये। जब यहाँ राज्य अधिकारी सभा बनेगी तब वहाँ राज्य दरबार लगेगी। निमन्त्रण दिया जाता है तो विशेष आत्माओं के लिए विशेष स्टेज तैयार करनी पड़ती है। तो बापदादा को भी फिर आने का निमन्त्रण देते हो - तो हरेक प्रैक्टिकल सम्पूर्ण स्टेज तैयार करेंगे तब तो बापदादा आयेंगे। इसलिए हरेक एक दो से श्रेष्ठ वा सुन्दर स्टेज तैयार करो। अच्छा अब देखेंगे कौन-सा ज़ोन नम्बर वन जाता है, विदेश आगे जाता है, वा देश आगे जाता है अच्छा –
ऐसे सदा विश्व कल्याणकारी, सर्व प्रति रहमदिल, सदा शुभ चिंतन में रहने वाले और सदा शुभाचिंतक बनने वाले, हर आत्मा में हिम्मत और हुल्लास दिलाने वाले, ऐसे सदा राज्य अधिकारी सर्व को सदा सम्पन्न बनाने वाले समर्थ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
टीचर्स से बातचीत - सेवा का भाग्य प्राप्त आत्मायें हो! कितनी वंचित आत्माओं को बाप का परिचय दे तृप्त आत्मा बनाने वाली हो! सेवा में विशेष रहमदिल का गुण याद रहता है? रहमदिल बाप के बच्चे रहमदिल बन कर सेवा करते तो सफलता बहुत मिलती है। तो सभी बाप समान रहमदिल हो, अन्जान आत्माओं के प्रति तरस पड़ता है? सदा सम्पन्न मूर्त बन वरदानी और महादानी बनो। कमजोर आत्माओं को शक्ति दे आगे बढ़ाओ। सम्पन्न मूर्त बन सेवा करो। अच्छा।
‘‘43 वीं शिवजयन्ती महोत्सव मनाने सम्बन्धित अव्यक्त बापदादा का सन्देश’’ –
इस शिवरात्रि पर बाप को प्रत्यक्ष करने का कार्य करना है। अथॉरिटी से निर्भय हो वास्तविक परिचय देना है। इस शिवरात्रि उत्सव मनाने समय सब ऐसा प्रोग्राम रखें जिसमें सबका अटेन्शन विश्व के रचयिता तथा जिसके द्वारा पार्ट बजाया उस आदिदेव अर्थात् साकार ब्रह्मा को पहचानें। यह शिवरात्रि विशेष बाप को प्रत्यक्ष करने वाली, नवीनता वाली हो। बोलने समय यह विशेष अटेन्शन रहे कि प्वाइन्टस में ज्यादा न जावें, भाषण का लेविल ठीक रहे, प्वाइन्टस में ज्यादा जाने से जो लक्ष्य होता वह खत्म हो जाता। भाषण में शब्द कम हों लेकिन ऐसे शक्तिशाली हों जिसमें बाप का परिचय और स्नेह समाया हुआ हो, जो स्नेह रूपी चुम्बक आत्माओं को परमात्मा तरफ खैंचे। भाषण का स्थूल रूप तो अनेक लोग जानते हैं लेकिन हरेक के भाषण में रूहानी नशा हो, शब्दों में परमात्म स्नेह हो, मस्तक में बाप के प्रत्यक्षता की चमक हो तब बाप का साक्षात्कार सभी को करा सकेंगे। यह शिवरात्रि प्रत्यक्षता की शिवरात्रि करके मनाओ। सबका अटेन्शन जाए यह कौन हैं और किसके प्रति सम्बन्ध जोड़ने वाले हैं, सब अनुभव करें कि जो आवश्यकता है वह यहाँ से ही मिल सकती है, सब सुखों के खान की चाबी यहाँ ही मिलेगी। अच्छा।
सभी शिवरात्रि पर विश्व कल्याणकारी बन सेवा में उपस्थित होने वाले होवनहार सफलता के सितारों को यादप्यार।
पार्टियों से मुलाकात
1. स्व-स्थिति की सीट पर रहने से परिस्थितियों पर विजय:-
सदा मास्टर सर्वशक्तिवान की स्थिति में स्थित हो हर प्रकार की परिस्थितयों के ऊपर विजयी रहते हो? जब तक स्व स्थिति शक्तिशाली नहीं होगी - तो परिस्थिति के ऊपर विजय नहीं होगी परिस्थिति प्रकृति द्वारा आती है इसीलीए परिस्थिति रचना हो गई और स्वस्थिति वाला रचता है। तो सदा रचना के ऊपर विजय होती हैं ना। अगर रचता रचना से हार खा ले तो उसे रचता कहेंगे? तो प्रकृति द्वारा आई हुई परिस्थितियाँ रचना है, तो मास्टर रचता अर्थात् मास्टर सर्वशक्तिवान कभी हार खा नहीं सकते, असम्भव है। अगर अपनी सीट छोड़ते हो तो हार होती, सीट पर सेट होने वाले में शक्ति होती, सीट छोड़ी तो शक्तिहीन। तो मास्टर रचता की सीट पर सेट रहना है, सीट के आधार पर शक्तियाँ स्वत: आयेगी। नीचे नहीं आना, नीचे है ही देहअभिमान रूपी माया की धूल। नीचे आयेंगे तो धूल लग जायेगी अर्थात् शुद्ध आत्मा से अशुद्ध हो जायेंगे। बच्चा भी अगर स्थान से नीचे आ जाता है तो मैला हो जाता है, बच्चे के लिए भी अटेन्शन रखते - मैला न हो जाए। तो देहभान में आना अर्थात् मैला होना। आप शुद्ध आत्मा हो, शुद्ध पर अगर ज़रा भी मिट्टी लग जाए तो स्पष्ट दिखाई देती, जरा भी देहअभिमान की मैल आप शुद्ध आत्माओं में स्पष्ट दिखाई देगी - बार-बार देहभान में आना अर्थात् मिट्टी में खेलना वा मिट्टी खाना। तो ऐसे तो नहीं हो ना! कभी पिछले संस्कार तो नहीं आ जाते। जब मरजीवा हो गये तो पिछला खत्म हुआ। मरजीवा अर्थात् ब्राह्मण जीवन। ब्राह्मण कभी मिट्टी से नहीं खेलेंगे, यह तो शूद्रपन की बातें हैं। तो सदा बाप की याद की गोद में रहो। याद ही याद है, लाडले बच्चों को माँ-बाप गोद में रखते, मिट्टी में नहीं जाने देते, तो आप लाडले बच्चे हो ना - तो मिट्टी में नहीं खेल सकते। रतनों से खेलते रहो। मिट्टी में खेलने वाले बाप के बच्चे हो नहीं सकते। रायल बाप के बच्चे मिट्टी से नहीं खेलते। तो सबसे बड़े से बड़े बाप के बच्चे सदा ज्ञान रतनों से खेलने वाली श्रेष्ठ आत्मायें - ऐसे हो ना। अच्छा।
कैसी भी परिस्थिति हो लेकिन सदा बाप का साथ स्मृति में रहे तो मायाजीत, बाप को साथी बनाने से विजयी रतन हो जायेंगे। बाप का साथ याद रहे तो सदा खुश और सदा निर्विघ्न रहेंगे। एक से डबल बन गये - तो सदा महावीर रहेंगे, निर्भय रहेंगे। बाप का साथ होने से मायाजीत बन जायेंगे। अच्छा - ओम् शान्ति।
‘‘प्राण प्यारे अव्यक्त बापदादा की व्यक्तिगत मुलाकात’’ (बिहार बंगाल ज़ोन) उड़ीसा :-
जितना वृद्धि को पाता जाए उतना सेवा का इनाम मिलता है। जो जितनी आत्माओं को बाप का परिचय देने के निमित्त बनते हैं उतना ही अभी भी खुशी की प्राप्ति होती है और भविष्य में भी राज्य पद की प्राप्ति होती है। वर्तमान और भविष्य दोनों ही काल श्रेष्ठ बन जाते हैं। ऐसा श्रेष्ठ कार्य जिससे दोनों काल श्रेष्ठ हो जाएं तो कितना करना चाहिए। लौकिक में भी किसी कार्य में फायदा अधिक होता तो दिन रात लग जाते हैं यह तो सबसे श्रेष्ठ बिज़नेस है। 21 जन्म के लिए सौदा करते हो। इस सीज़न में इतना जमा कर लेते हो जो फिर आराम से खाते रहेंगे। कितनी बड़ी लाटरी मिलती है, एक जन्म की थोड़ी मेहनत और अनेक जन्म खाते रहते। वह हद की लाटरी होती उसमें एक डालते तो लाख की लाटरी लग सकती लेकिन यह तो बेहद की अविनाशी लाटरी है। घर बैठे इतनी श्रेष्ठ प्राप्ति है, घर बैठे भगवान मिल गया ना! तो अपने भागय की सदा महिमा करते रहो, सदा मन में अपने भाग्य के गीत गाते हुए खुश रहो, अगर कहीं भी लगाव होगा, मोह होगा तो दुख की लहर आयेगी। कभी दुख होता है? बाप जन्म-जन्मान्तर के लिए रोना बन्द कराते हैं, दुख होगा तो रोयेंगे, दुख ही नहीं तो रोना बन्द। सब सुखदाता के बच्चे मास्टर बन गये तो दुख तो आ नहीं सकता। दुख का दरवाज़ा बन्द, स्वर्ग अर्थात् सुख का दरवाज़ा खुल गया। स्वर्ग की टिकट ले ली है ना - सदा खुशी में नाचते रहो, खुशी होगी तो दूसरे भी आपको देखकर खुश होंगे और बाप के समीप आयेंगे। आपकी खुशी बाप का परिचय देगी। कभी भी वियोग में नहीं आना, सदा योगी - संगमयुग पर विशेष प्राप्ति बाप से मिलन मनाने की है। सदा मिलन मनाने वाले, ऐसे खुशी में रहो। अच्छा –
2. सदा अपने को महावीर अर्थात् सदा ज्ञान के शस्त्रधारी अनुभव करते हो? महावीर को सदा ज्ञान के शस्त्र दिखाते हैं। वह है विजय की निशानी। ऐसे सदा ज्ञान के शस्त्रं से सजे हुए महावीर हो? शस्त्रं को समय पर काम में लगाते हो वा समय पर कार्य नहीं करते? ऐसे भी होता है चीज़ें सब होती हैं लेकिन समय पर याद नहीं रहतीं। तो जैसी परिस्थिति वैसे ज्ञान के शस्त्र द्वारा महावीर बन मायाजीत बन जाते हो। कितने समय में विजयी होते हैं? सेकेण्ड में विजयी बनते हो या टाइम लगता है। अगर टाइम लगता है तो महावीर नहीं कहेंगे। अगर विजयी बनने में एक घण्टा लगा और उसी टाइम के अन्दर अन्तिम घड़ी आ जाए तो किस पद को प्राप्त होंगे। तो महावीर अर्थात् हर घड़ी अटेन्शन। पास विद आनर वही होगा जो हर परिस्थिति में पास होगा - तो सदा पास होने वाले हो ना। अच्छा –
टीचर्स से मुलाकात - टीचर्स को विशेष लिफ्ट की गिफ्Ìट है? क्यों? टीचर्स को सिवाए ईश्वरीय सेवा के और कोई भी बोझ नहीं। एक की ही याद, एक के ही प्रति सेवा। जब एक काम है तो एक काम में अच्छी तरह से आगे बढ़ सकते हैं ना! प्रवृति वालों को तो दो कार्य निभाने पड़ते, टीचर्स सहज ही एक रस रह सकती हैं। बातें करनी हैं तो भी बाप का परिचय देना है, कर्मणा सेवा करनी है तो भी बाप ने जिसके निमित्त बनाया। तो टीचर्स को नैचुरल गिफ्ट मिली हुई है। इस गिफ्ट का लाभ उठाते रहो। टीचर्स अर्थात् डबल लाइट। निमित्त बनकर चलना अर्थात् डबल लाइट तो सदा इसी स्थिति का अनुभव होना चाहिए। करनकरावनहार करा रहे हैं मैं निमित्त हूँ तब सफलता होती है। मैं-पन आया अर्थात् माया का गेट खुला, निमित्त समझा अर्थात् माया का गेट बन्द हुआ। निमित्त समझने से मायाजीत भी बन जाते, डबल लाइट भी बन जाते और सफलता भी मिल जाती। तो टीचर्स को यह लिफ्ट है। जितना लाभ उठाना चाहो उतना उठा सकती हो। तो टीचर्स को चैक करना चाहिए - हमारा नम्बर क्या है! अच्छा - ओम्शान्ति।
05-02-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘मधुबन निवासियों के साथ बाप दादा की रूह रूहान’’
आज विशेष यादगार भूमि, जिसकी महिमा आज भी भक्त लोग कर रहे हैं ऐसे महान भूमि वा महान तीर्थ स्थान पर रहने वाले विशेष भाग्यशाली आत्माओं से मिलने आये हैं। जैसे भूमि समर्थ है, जिस भूमि में आने से अनेक आत्माओं का व्यर्थ समाप्त हो जाता है - सब समर्थ बन जाते हैं, अनेक प्रकार के अनुभवों का खज़ाना सहज प्राप्त कर लेते - ऐसी भूमि जिस द्वारा जो वरदान चाहें वह वरदान याद और भूमि के आधार से सहज ही पा सकते हैं। ऐसी भूमि के निवासी स्वयं क्या होंगे! भक्त लोग इस दिव्य भूमि के वा श्रेष्ठ स्थान के दर्शन के लिए अब तक भी तड़पते रहते। ऐसे भूमि पर रहने वाले दर्शनीय मूर्त हैं? जैसा स्थान का महत्व है ऐसे ही स्थिति भी रहती है वा स्थिति से स्थान की महिमा ज्यादा है? दूर रहने वाले सिर्फ मधुबन की स्मृति से ही समर्थ बन जाते हैं - तो मधुबन निवासी क्या होंगे? जैसा महत्व है वैसे ही महान हैं? मधुबन स्थूल सूक्ष्म प्राप्तियों का भण्डारा हैं - सभी अपनी स्पीड और स्टेज श्रेष्ठ समझते हो? मधुबन निवासियों को जो साधन हैं, संग हैं, भूमि के महत्व का सहयोग है, वायुमण्डल का सहज साधन है उसी प्रमाण सिद्धि स्वरूप है? वर्ष बीते, यह वर्ष भी बीत गया, नया वर्ष चालू हो गया इसका भी मास पूरा हो गया - एक मास की रीजल्ट मे भी अनुभव क्या रहा। चढ़ती कला का अनुभव रहा? हर कदम जमा करने वाला अर्थात् समर्थ रहा - स्वयं के प्रति और सर्व के प्रति विघ्न विनाशक रहे? जबकि समय समीप आ रहा है तो चारों ही सबजेक्ट में मार्क्स चाहिए। जैसे सेवा के लिए सभी के मुख से एक आवाज़ निकलता है कि सेवाधारी बहुत अच्छे हैं, वैसे ही ज्ञान - योग और धारणायुक्त भी हों। जैसे टोटल वायुमण्डल में स्वर्ग का अनुभव करते हैं, वैसे व्यक्तिगत भी स्वर्गवाले अर्थात् सर्व प्राप्ति स्वरूप अनुभव करें। चलते फिरते एक दो को फरिश्ता नज़र आयें। अच्छा –
इस वर्ष सभी वर्ग वालों को सम्पर्क में लाओ। ऐसे सम्पर्क में हों जो अपनी अथॉरिटी से इशारा मिलते ही सब कार्य सम्पन्न कर दें। समय पर सम्पर्क करते हो, बाद में सम्पर्क हल्का हो जाता है, अभी सम्पर्क बढ़ाओ। जैसे शुरू में लक्ष्य रहता था कि हरेक का भाग्य ज़रूर बनाना है, वैसे अब लक्ष्य हो कि हर वर्ग की आत्माओं को सम्पर्क में लाकर विशेष सेवा के अर्थ निमित्त बनाकर सहयोग लें। अभी सभी स्थानों पर मध्यम क्वालिटी है, लेकिन आखरीन तो सब तक पहुँचना है, ऐसी विशेष आत्मा निकले जो एक द्वारा अनेकों को सन्देश प्राप्त हो जाए। उमंग-उत्साह पैदा हो जाए, तब तो क्यू लगेगी। इस वर्ष यह क्वालिटी की सर्विस होनी चाहिए। विश्व पिता का टाइटिल है तो विश्व में तो वैरायटी चाहिए ना। नास्तिक भी हों तो भी सम्पर्क में जरूर आयें। ज्ञान को भी न सुनें लेकिन परिवर्तन देखकर सम्पर्क में आयें। नई विश्व के स्थापना के लिए सब प्रकार के बीज चाहिए। तब विश्व कल्याणकारी बन सकेंगे। धर्म, राज्य के नेतायें भी इतना जरूर मानें कि इन्हों का परिवर्तन और जो विधि है वह बहुत अच्छी है। धर्म नेतायें भी ऐसे अनुभव कर सहयोग में आयेंगे। अच्छा –
टीचर्स के साथ मुलाकात :-
सभी टीचर्स विशेष सेवाधारी अर्थात् बाप को अपनी वाणी द्वारा और कर्म द्वारा प्रत्यक्ष करना। प्रत्यक्ष करना ही विशेष सेवाधारियों का कर्त्तव्य है - अब तक जो किया वह यथाशक्ति नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार बहुत अच्छा किया लेकिन अब तक रिज़ल्ट में आत्माओं को यह अनुभव - कि यह महान आत्मायें हैं, महान जीवन वाली हैं यह अनुभव कोई-कोई आत्माओं ने किया और वर्णन भी करते हैं लेकिन अब बाकी क्या रहा? बाप ने जीवन बनाकर बच्चों को आगे किया जो जीवन की महिमा करते रहते लेकिन अब बच्चों का कर्तव्य क्या हैं?
जो बाप बैकबोन है, गुप्तरूप में पार्ट बजा रहे हैं, बाप को प्रत्यक्ष करना है, सुनाने वालों को पहचानते हैं, लेकिन बनाने वाला अभी भी गुप्त है तो अब बनाने वाले को प्रत्यक्ष करना अर्थात् विजय का झण्डा लहराना है। विशेष जिस समय स्टेज पर आते हो उस समय स्वयं भी बाप के स्नेह और प्राप्ति में लवलीन स्वरूप हो - जैसे लौकिक रीति से भीं कोई किसके स्नेह में लवलीन होता है तो चेहरे से, नयनों से, वाणी से अनुभव होता है कि यह लवलीन हैं - आशुक है - ऐसे जब स्टेज पर आते हो तो जितना अपने अन्दर बाप का स्नेह इमर्ज होगा उतना स्नेह का बाण औरों को भी स्नेह में घायल कर देगा।
भाषण की लिंक सोचना, प्वाइन्टस दुहराना, यह स्वरूप नहीं हो लेकिन स्नेह और प्राप्ति का सम्पन्न स्वरूप हो - अथॉरिटी हो - जिस चीज़ की अथॉरिटी होते हैं उनको सोचना नहीं पड़ता है। सोचा हुआ ही होता है। स्टेज पर आने के पहले मनन करके बुद्धि में पहले से ही टापिक का स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए। उस समय इस अटेन्शन में नहीं रहना चाहिए। टापिक तैयार होगी तो टापिक की भी अथॉरिटी हो बोलेंगे। प्वाइन्ट को ही सोचते रहेंगे तो अथॉरिटी अनुभव नहीं होगी। पहले स्नेह ओर प्राप्ति स्वरूप हो - दूसरा जब बोलना शुरू करते हो तो एक अन्दर की अथॉरिटी और बोल में पहले दिल की आवाज़ से बाप की महिमा हो - जैसे दिन है शिवरात्री का - तो शिवरात्री अर्थात् बाप को प्रत्यक्ष करने का दिन इसी को ही परमात्म-बाम्ब कहा जाता। जो अन्दर में समाया हुआ है वह लोगों को प्रत्यक्ष दिखाई दे। यह है बाम्ब का फटना। जैसे बाम्ब फटता है तो क्या करता है - सबको अग्नि में जला देता है तो यह परमात्म-बाम्ब अर्थात् स्नेह का बाम्ब, सम्बन्ध जोड़ने का बाम्ब - दिल के आवाज़ से महिमा करने का बाम्ब - सभी को लगन में मगन की आग में सभी को हिला दे। जब बाम्ब फटता है तो सब हिल जाते हैं ना। तो सबकी बुद्धि को हिलावे यह किसकी महिमा है! यह किसकी अथॉरिटी से बोल रहे हैं, यह क्या और किसका सन्देश दे रहे हैं - अथॉरिटी भी हो, मधुरता भी हो - शब्दों की मधुरता हो लेकिन अन्दर समाई हुई अथॉरिटी हो - शब्द भी रहमदिल की भावना के हों - स्पष्ट भी करते रहें लेकिन स्पष्ट करते हुए बाप की महिमा करते हुए सम्बन्ध भी जोड़ते जाएं। हम यह क्यों कहते, इससे क्या प्राप्ति होगा, हम लोगों का अनुभव क्या है। एक घड़ी की भी प्राप्ति क्या है। ऐसे बीच-बीच में निज़ी अनुभव का आवाज़ लगे - सिर्फ भाषण नहीं लगे - लगन में मगन मूर्त अनुभव हो - यह नवीनता है - लोग कहते हैं लेकिन स्वरूप नहीं बनते - आपका बोल और स्वरूप दोनों साथसाथ हों - स्पष्ट भी हों, स्नेह भी हो, नम्रता भी, मधुरता भी और महानता भी हो, सत्यता भी हो लेकिन स्वरूप की नम्रता भी हो, इसी रूप से बाप को प्रत्यक्ष करना है। निर्भय हो लेकिन बोल मर्यादा के अन्दर हों - दोनों बातों का बैलेन्स हो - जहाँ बैलेन्स होता है वहाँ कमाल दिखाई देती है और वह शब्द कड़े नहीं, मीठे लगते हैं तो अथॉरिटी और नम्रता दोनों के बैलेन्स की कमाल दिखाओ। इसको कहा जाता है बाप की प्रत्यक्षता का साधन। जैसे झूठे शास्त्रों की अथॉरिटी वाले भी कितनी अथॉरिटी से बोलते हैं। जो बिल्कुल असत्य बात उसको कैसे सिद्ध कर बताते हैं। न सिर्फ सिद्ध करते हैं लेकिन मनवाते भी हैं, सतवचन महाराज कहलवाते भी हैं, जब वह झूठ की अथॉरिटी वाले भी इतना प्रभाव डाल सकते यह तो अनुभव के बोल हैं-प्राप्ति स्वरूप के बोले हैं - बाप से सम्बन्ध है उसकी बातें हैं, तो क्यों नहीं कहलवायेंगे वा मनवायेंगे। तो अब समझा क्या करना है –
परिचय को पूरा स्पष्ट करना है - एक प्वाइन्ट सुनाकर बाप के तरफ अटेन्शन खिंचवाओ, सारी प्वाइन्टस बोलकर बाप की महिमा के बोल, बोल करके बाप तरफ अटेन्शन खिंचवाओ, बार-बार पत्थर पर स्नेह का पानी डालते जाओ तब यह पत्थर पानी होगा।
और जितना हो सके साइलेन्स का प्रभाव हो - रूप रेखा ही अलौकिक हो - सिम्पुल स्वच्छ, रूहानियत वा प्यूरिटी के वायब्रेशन हों - सुनने वाली जो सहयोगी ब्राह्मण आत्मायें होती उन्हों में भी वायुमण्डल को बनाने का संकल्प हो - जैसे अगरबत्ती वायुमण्डल को परिवर्तन कर देती वैसे सब ब्राह्मण आत्माओं की वृत्ति रहम की वृति अगरबत्ती का काम करे - जो आने से ही उनको महसूस हो यह सभा कोई अलौकिक सभा है। अच्छा - स्नेह मिलन से स्नेह की झोली भरकर जावेंगे और फिर सबको स्नेह बाँट देंगे। बाप का स्नेह - ऐसा स्नेह स्वरूप हो जावेंगे जो सबको आपके चित्र, चलन से बाप का स्नेह नज़र आये। ऐसा मिलन मना रहे हो ना। स्नेह मिलन अर्थात् दृढ़ संकल्प द्वारा स्वपरिवर्तन और सब के परिवर्तन सहयोगी बनना। यह है स्नेह मिलन की विशेषता। स्नेह मिलन अर्थात् प्रैक्टिकल संस्कार मिलन - जैसे मिलन में हाथ मिलते हैं ना - यह मिलन हैं संस्कार मिलन - अगर सबके संस्कार मिलकर बाप समान हो जाएं - एक ही सबके संस्कार हो जाएं तो क्या होगा? एक राज्य, एक धर्म वाली दुनिया आ जावेगी। यहाँ एक होना ही एक धर्म एक राज्य की दुनिया को लाने का आधार बनेगी। स्नेह मिलन अर्थात् कम्पलेन खत्म और कम्पलीट होकर जाएं। उल्हने खत्म उल्लास में आ जायें - यह है स्नेह मिलन।
विदेशी भाई बहनों से मुलाकात :- बापदादा सभी लवलीन रहने वाले बच्चों को देख हर्षात होते हैं - जो सदा लवलीन रहते उसकी निशानी क्या होती? लवलीन आत्मा को याद में रहने का पुरूषार्थ नहीं करना पड़ेगा। लेकिन स्वत: योगी होगा। सिवाय बाप और सेवा के कुछ दिखाई नहीं देगा। जब बुद्धि को एक ही ठिकाना मिल जाता तो बुद्धि का भटकना स्वत: ही बन्द हो जाता। लवलीन आत्मा सर्व प्राप्तियों में रह औरों को प्राप्ति कराने में तत्पर होगी। इसलिए सदा मायाजीत होगी - लवलीन रहने वाले हो या मेहनत करने वाले हो - विदेश में रहने वाली आत्माओं को विशेष विदेश की सेवाअर्थ योगी जीवन का अनुभव सेवा में सफलता मूर्त बना सकता है। जितना-जितना अपनी स्टेज को पावरफुल बनावेंगे, पावरफुल अर्थात् सर्व प्राप्ति के अनुभवी मूर्त। तब सफलतामूर्त होंगे। क्योंकि दिन प्रतिदिन वैरायटी प्रकार की इच्छा वाली आत्मायें आपके सामने आवेंगी तो सर्व इच्छाओं को पूर्ण करने वाले तब बन सकेंगे जब सर्व प्राप्ति के अनुभवी स्वरूप होंगे। आपको सभी ढूढ़ने आवेंगे कि सुख शान्ति के मास्टर दाता कहाँ हैं! जब अपने पास सर्वशक्तियों का स्टाक होगा तब तो सबको सन्तुष्ट कर सकेंगे। जैसे विदेश में रिवाज है एक ही स्टोर में सब चीज़ें मिल जाती। ऐसे आपको भी बनना है। ऐसे भी नहीं कि सहन शक्ति हो लेकिन सामना करने की शक्ति नहीं। सर्वशक्तियों का स्टाक चाहिए तब सफलता मूर्त बन सकेंगे। अभी विदेश में मन्सा सेवा का वातावरण और भी पावरफुल बनाओ। क्योंकि वहाँ की वैरायटी आत्मायें वायुमण्डल से प्रभावित होंगी। पहले वायब्रेशन उन्हों को खीचेंगा फिर नॉलेज सुन सकेंगे। मन्सा सेवा करने के लिए सदा एकाग्रता का अभ्यास चाहिए। व्यर्थ समाप्त हो तब मन्सा सेवा कर सकेंगे। मधुबन से मन्सा पावरफुल सर्विस का अनुभव करके और वहाँ के लिए अभ्यासी बनकर जाओ। जो भी देखें वह अनुभव करें कि यह शक्तियों की खान आये हुए हैं। जो शक्तियाँ अनुभव में आ गई तो अनुभव सदाकाल जीवन का अंग होता है, ज्यादा से ज्यादा अनुभवों की खान बनकर जा रहे हैं? जैसे बाप परफैक्ट है तो बच्चे भी बाप समान - कोई डीफैक्ट न हो। अच्छा।
सेवाधारी ग्रुप से बात चीत
सेवाधारी अर्थात् बाप समान। क्योंकि बाप भी सेवाधारी बनकर आते हैं। बाप का स्वरूप ही है विश्व सेवक। जैसे बाप विश्व सेवाधारी है वैसे आप सब भी बाप समान विश्व सेवाधारी हो! शरीर द्वारा स्थूल सेवा करते हो लेकिन मन्सा द्वारा विश्व परिवर्तन की सेवा में तत्पर रहते। तन-मन दोनों में सेवाधारी। एक ही समय पर दोनों ही इकट्ठी सेवा करते हो। ऐसे नहीं तन की सेवा करते तो मन की नहीं कर सकते। दोनों ही एक समय पर करने से डबल प्राप्ति होगी। डबल सेवाधारी ही डबल ताजधारी बनते हैं। अगर सिंगल सेवा करेंगे तो डबल ताज नहीं मिलेगा। कर्म करते हुए चैक करो डबल सेवा के बदले सिंगल तो नहीं हो गई। अटेन्शन रखते-रखते संस्कार बन जायेंगे। जो मन्सा और कर्मणा दोनों सेवा साथ-साथ करते, साक्षात्कार देखने वाले को अनुभव होगा यह कोई अलौकिक शक्ति है। लोग स्वत: ही आपके पीछे होंगे। इसी अभ्यास को आगे बढ़ाओ। इतना अभ्यास बढ़ाओ जो नैचुरल और निरन्तर हो जाए। अच्छा –
12-11-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
बंगाल-बिहार, तामिलनाडू तथा विदेशी भाई बहनों के सम्मुख उच्चारे हुए महावाक्य
‘‘आज चारों ओर के लवली बच्चों के स्नेह के साज़ अमृतवेले से बाप-दादा ने सुने। स्नेह का रिटर्न, बाप-दादा दूर देश वासी से, अव्यक्त वतन वासी से, बच्चों के समान साकार वतन निवासी आकर बने। स्नेह का स्वरूप है समान बनना। तो बाप-दादा समान स्वरूप में स्नेह का रिटर्न (Return) दे रहे हैं, अब बच्चों को क्या रिटर्न करना है? जब बाप बच्चों के समान बन सकते हैं तो बच्चों को भी समान बनना है। यही स्नेह का रिटर्न है।’’
2. अब इस वर्ष में कौन-सी विशेष समानता दिखावेंगे? समय की रफ़्तार तीव्र गति से चल रही है। बाप-दादा की सर्व सृष्टि की आत्मायें बाप-दादा और आप सर्व परम पूज्य आत्माओं के प्रति संकल्प द्वारा भिन्न-भिन्न रूप से एक अर्ज़ी रख रहे हैं। उस अर्ज़ी को पूर्ण करने वाले, आत्माओं की अर्ज़ी की आवाज़ सुनते हो?
अमृतवेले का महत्व
3. अमृतवेले चारों ओर के तमोगुणी वातावरण या वाइब्रेशन के वायुमण्डल में प्राय: लोप स्थिति का समय होता है अर्थात् तमोगुण का प्रभाव दबा हुआ होता है। ऐसे समय पर सहज ही पुकार और उपकार होता। पुकार सुनना भी सहज है, उपकार करना भी सहज है। वरदान लेना भी सहज है और दान देना भी सहज है क्योंकि वातावरण वृत्ति को बदलने वाला होता है। ऐसे समय पर, आप सर्व वरदानी आत्माओं की स्वयं की स्थिति भी, बाप की विशेष वरदानों की छत्रछाया के कारण, बाप के समान सम्पन्न और दातापन की होती है। ब्रह्मलोक के निवासी बाप विशेष रूप से ज्ञान-सूर्य की लाईट और माइट की किरणें विशेष बच्चों को वरदान रूप में देते हैं। इसलिए इस समय को ‘ब्रह्म मुहूर्त्त’ का समय कहते हैं।
4. क्या इस समय पर आप स्वयं का सारे दिन की श्रेष्ठ स्थिति वा कर्म का मुहूर्त्त निकालते हो? जैसा मुहूर्त्त निकालना चाहो वह निकाल सकते हो। साथ-साथ अव्यक्त वतन-वासी ब्रह्मा बाप भाग्य-विधाता के रूप में इस अमृतवेले भाग्य अर्थात् अमृत बाँटते हैं। जितना भाग्य रूपी अमृत ब्रह्मा बाप द्वारा लेना चाहो वह ले सकते हो। लेकिन बुद्धि रूपी कलश अमृत धारण करने के योग्य हो। किसी भी प्रकार का विघ्न या रूकावट न हो। तो ऐसे समय पर लेना और देना साथ-साथ चलना है। वरदानी और महादानी दोनों पार्ट साथ-साथ चलना है। ऐसी स्थिति में स्थित होने वाली उपकारी आत्माओं को, आत्माओं की पुकार भी स्पष्ट सुनाई देगी। इतनी स्पष्ट सुनाई देगी जैसे कानों में कोई बात कह रहा हो।
पुकार पर उपकार कैसे?
5. तो वर्तमान समय सर्व की एक ही पुकार कौन-सी है, वह जानते हो? धार्मिक नेताओं, राजनेताओं और सर्वश्रेष्ठ साइन्स वाले और साथ-साथ आम जनता की एक ही पुकार है कि अब जल्दी में कुछ बदलना चाहिए। सर्व क्षेत्र की आत्मायें अब अपने को फेल अनुभव करने लगी हैं। अब कोई सुप्रीम पावर चाहिए। इस चाहना का दीपक वा इस आवश्यकता को महसूस करने के संकल्प का दीपक जग चुका है। अब उसको और तेज़ करने के लिए आप सर्व आत्माओं के संकल्प का घृत चाहिए जिससे सर्व की पुकार के ऊपर उपकार कर सको। (आज दो-चार बार बीच-बीच में बिजली जाती रहती थी) देखो यह लाईट भी शिक्षा दे रही है। जैसे लाइट एक सेकेण्ड में आती और चली जाती है, ऐसे ही आप भी एक सेकेण्ड में पुकार वालों के पास उपकारी बन पहुँच जाओ। ऐसा अभ्यास आने और जाने का हो। अभी-अभी पुकार सुनी और अभी- अभी पहुँचे। अब सर्व की पुकार मेहनत से छूट सहज प्राप्ति करने की है। साइन्स वाले भी बहुत मेहनत कर थक गए हैं। धार्मिक आत्मायें भी साधना करके थक गई हैं। राजनैतिक लोग अनेक दल-बदलुओं के चक्र से थक गये हैं। और आम जनता समस्याओं से थक गई है। अब सबकी थकावट उतारने वाले कौन?
द्रोपदी के पाँव दबाने का अर्थ
6. जैसे कल्प पहले के यादगार शास्त्रों में वर्णन हैं कि स्वयं बाप ने द्रोपदी के पाँव दबाये, तो बाप समान उपकारी बच्चे बन सर्व आत्माओं की थकावट मिटाओ। अब बुद्धि रूपी पाँव थक गये हैं, बुद्धि में स्मृति के स्विच को दबाओ। यही बुद्धि रूपी पाँव दबाना है।
7. अब सुना इस वर्ष क्या करना है? एक सेकेण्ड में झलक और फरिश्तेपन की फ़लक दिखाओ। यही बाप के स्नेह का रिटर्न है। अन्य आत्माओं की समस्याओं का समाधान स्वरूप बनने से स्वयं की समस्यायें स्वत: ही समाप्त हो जावेंगी। इसलिए अब समाधान स्वरूप बनो। एक वर्ष में ऐसा स्वरूप परिवर्तन किया है ना? विश्व-परिवर्तक स्वयं के परिवर्तक बन चुके हैं ना? वा अभी भी बनना है? बनना है वा अब विश्व-सेवा करनी है? अब सेवा करने का समय है, लेने के साथ देने का समय है। एक ही संकल्प में लेना है और देना है। ऐसी फास्ट स्पीड चाहिए।
अंतिम सीज़न और उनकी तैयारी
इन्तज़ार तो किया लेकिन इन्तज़ाम भी किया? इन्तज़ार किया बाप के आने का और बाप आकर क्या देखेंगे? इन्तज़ाम। कोई ऐसा इन्तज़ाम किया? जैसे यहाँ स्थूल सीज़न का इन्तज़ाम करते हो, सेवाधारी तैयार करते हो, सामग्री तैयार करते हो कि किसी को भी कोई तकलीफ न हो, समय व्यर्थ न हो, कहीं क्यू में खड़ा न रहना पड़े, इसके लिए सब साधन अपनाते हो। यह तो है ब्राह्मणों की मधुबन की सीज़न। लेकिन अब अन्तिम सीज़न कौन-सी आने वाली है? सर्व आत्माओं की गति-सद्गति करने की सीज़न आनी वाली है। उसके लिए साधन अपनाये हैं? तड़फती हुई आत्माओं को क्यू में खड़ा करने का कष्ट नहीं देना है। आते जाएं और लेते जाएं। तड़फती आत्माएं एक सेकेण्ड भी रूक नहीं सकेंगी। हाहाकार कर देंगी। ऐसे सीज़न की तैयारी की है। महारथियों को क्यू में खड़ा करने नहीं देना चाहिए और लूले-लंगड़े, ऐसी आत्माओं को क्यू में क्या खड़ा करेंगे! लण्डन में भी क्यू लगावेंगे क्या? फारेनर्स क्यू में खड़े होंगे? फिर क्या करेंगे? एवररेडी बनना पड़ेगा। भारत वाले या फारेन वाले एवररेडी बने बिना मास्टर गति सद्गति दाता नहीं बन सकते। ज्यादा पुरुषार्थी जीवन में रहने से भी ऊपर अब दातापन की स्थिति में रहो। हर सेकेण्ड चेक करो कि दाता के बच्चे दाता बने हैं? हर संकल्प और हर सेकण्ड में दाता बन करके चलो। तो आप सबका भी सेकेण्ड में हाईजम्प हो जावेगा। देने में बीज़ी होंगे तो माया भी बिज़ी देख वार करने की बजाए नमस्कार करेगी। समझा? अब क्या करना है? चारों ओर के बच्चों को जो साकार रूप से भले दूर हैं लेकिन स्नेह से समीप हैं, ऐसे स्नेही और समीप बच्चों को बाप-दादा समान भव के वरदान से याद का रिटर्न दे रहे हैं। (बिज़ली बन्द) चंचल में भी अचल। यह तो कुछ भी नहीं हैं, अन्तिम सीज़न के समय किसी भी प्रकार के साधन नहीं मिलेंगे। अभी तो बहुत साधन हैं। यह भी प्रैक्टिस करो कि वातावरण में हलचल हो लेकिन स्मृति और वृत्ति अचल हो। ज़रा भी हलचल न हो कि यह क्या हुआ! यह प्रैक्टिस हो रही है? बाप-दादा को भी ड्रामा अनुसार पुरानी दुनिया की कोई तो सीन सीनरी दिखावेंगे ना। अच्छा –
ऐसे सदा उपकारी, हर सेकेण्ड मास्टर गति-सद्गति दाता, शक्तियों के भण्डार से भरपूर, अखुट खज़ाने के दाता, सर्व आत्माओं की थकावट मिटाने वाले अथक सेवाधारी, ऐसे बाप समान, समीप बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।
विदेशी बच्चों के साथ - सभी सदा एक-रस स्थिति में स्थित रहते हुए, औरों का भी एक बाप से सम्बन्ध जुड़ाने में, सर्व प्राप्ति कराने में तत्पर रहते हो? एक बाप दूसरा न कोई, ऐसी स्थिति निरन्तर और नेचुरल बनी है कि बनानी पड़ती है? अभ्यास करना पड़ता है या स्वत: ही यह स्टेज रहती है? कहाँ तक पहुँचे हो? जब परिचय मिल गया अपना भी और बाप का भी फिर बार-बार अटेन्शन देने की आवश्यकता है?
माया-एक खिलौना और शिकार
माया तंग करती है क्या? अब नमस्कार करने का समय है न कि वार करने का। क्या अभी तक माया का वार होता है? समय प्रति समय जैसे स्टेज आगे बढ़ती जा रही है, अब माया का वार नहीं होना चाहिए। अगर माया आये भी, तो उसे खेल समझकर देखो। ऐसे अनुभव हो जैसे साक्षी होकर हद का ड्रामा देखते हैं। ऐसे इस माया के खेल का ड्रामा देखो तो बहुत मज़ा आयेगा, फिर घबरायेंगे नहीं। तो ऐसी स्टेज अभी होनी चाहिए। कैसी भी विकराल रूप से माया आये लेकिन आप उसको खिलौना समझेंगे तो वह खेल हो जायेगा। जैसे शिकारी शिकार करता है, उसमें भी वार होता है, लेकिन शिकार समझने के कारण वह घबराता नहीं है। खुश होता है। आप सब भी माया के शिकारी हो। शिकारी कभी डरते नहीं। घबराते नहीं, खुश होते हैं। इस बार मधुबन से यह दृढ़ संकल्प करके जाओ कि सदा खिलाड़ी बन करके खेल देखेंगे। ताकि विदेश से माया वार करने की बजाए नमस्कार करना शुरू कर दे। ऐसे विदेशी संकल्प करते हैं? अब सभी तरफ से माया का वार समाप्त।
टीचर्स के साथ –
टीचर्स अर्थात् शिक्षक। बाप भी शिक्षक के रूप से पार्ट बजाते हैं। तो शिक्षक बाप समान मास्टर वर्ल्ड शिक्षक हुए। जैसे बाप विश्व का शिक्षक है, सिर्फ भारत का नहीं है या सिर्फ फॉरेन का नहीं, पूरे विश्व का है। ऐसे मास्टर शिक्षक अर्थात् बेहद के शिक्षक। तो जो बेहद के शिक्षक हैं उन्हों का नशा क्या होगा? बेहद का नशा, बेहद की खुशी, बेहद की प्राप्ति, बेहद की प्रालब्ध। तो ऐसी टीचर्स हो ना? क्योंकि जैसे बाप का टाइटिल मिला है तो टाइटिल के प्रमाण कर्तव्य और गुण भी वही होंगे ना। तो बेहद में रहती हो? स्थिति भी बेहद की। देहाभिमान-हद की स्थिति हुई, देहीभिमानी बनना यह है बेहद की स्थिति। देहाभिमान में आयेंगे तो अनेक प्रकार की हदें हैं - मैं फीमेल हूँ, यह भी हद है ना। इसी प्रकार देह में आने से अनेक कर्म के बन्धनों में हद में आना पड़ता। जब देही बन जाते हो तो ये सब बन्धन खत्म हो जाते हैं। तो स्थिति भी बेहद की अर्थात् देहीभिमानी रहे।
टीचर्स अर्थात् बेहद में रहने वाली, टीचर्स अर्थात् बन्धनों से मुक्त रहने वाली। जैसे आप लोग भी कहते हो बन्धन मुक्त ही जीवनमुक्त....तो जो बेहद की स्थिति में रहने वाले होंगे वह बन्धन-मुक्त, जीवनमुक्त होंगे। भविष्य का जीवनमुक्ति नहीं, अभी की जीवनमुक्ति। इस संगमयुगी ब्राह्मण जीवन में रहते हुए वायुमण्डल, वायब्रेशन, तमोगुणी वृत्तियाँ, माया के वार, इन सबसे मुक्त। इसको कहा जाता है जीवनमुक्त। तो टीचर अर्थात् अभी के जीवनमुक्त। तो ऐसे हो? टीचर भी परिभाषा ही यह है। टीचर का टाइटिल कोई कम नहीं है।
टीचर बनना अर्थात् बाप समान बनना। टीचर बनना अर्थात् बाप की गद्दी पर बैठना। तो जो जिसकी गद्दी पर, कुर्सी पर, सीट पर बैठेंगे, तो सीट का कर्त्तव्य वा सीट के क्वालिफिकेशन प्रेक्टिकल में लाने पड़ेंगे। तो टीचर्स का कितना महत्व है। नाम के साथ काम भी है। तो ऐसे हो? क्या समझती हो? टीचर्स को देखकर बाप को विशेष खुशी होती है क्योंकि टीचर्स हैं बाप की फ्रेंडस। जब दो फ्रेंडस आपस में मिलते हैं तो कितने खुश होते हैं तो टीचर्स हैं सबसे समीप फ्रेंडस। तो खुशी होगी ना? फ्रेंड्स बनते ही तब हैं जब समान होते हैं। तो समान हो ना? जो इस समय समान बनते हैं वही भविष्य में भी ब्रह्मा बाप के साथ-साथ सर्व जीवन के विशेष पार्ट में भी साथ रहते हैं। जैसे फ्रेंड्स हर कार्य में सदा साथ-साथ रहते हैं ना। तो जो ऐसे समान टीचर बनते हैं वह शुरू से साथ पढ़ेंगे, साथ खेलेंगे और फिर साथ में ही राज्य करेंगे। तो ऐसे समान टीचर्स हो ना? वायदा भी है साथ जियेंगे, साथ मरेंगे...और साथ ही राज्य में आयेंगे। इतने तक वायदा है। तो ऐसे ही समान टीचर्स हो?
समान और स्वभाव
ऐसी समान टीचर्स की वर्तमान निशानी क्या होगी? सदा समान आत्मा इस समय स्वमान में होगी। समानता का स्वमान प्रेक्टिकल में दिखाई देगा। जैसे बाप सदा स्वमान में स्थित है इसी प्रकार समान आत्मायें भी स्वमान में होंगी। नीचे नहीं आयेंगी। हर कदम स्वमान का होगा। तो स्वमान को देखने से ही सबके मुख से निकलेगा कि यह तो स्वमानधारी बाप-समान है। स्वमान ही उनका सिंहासन होगा। भविष्य सिंहासन के पहले स्वमान के सिंहासन पर सदा कायम होंगी। सिंहासन से नीचे नहीं आयेंगी। ऐसी हो? बाप तो हरेक को इसी श्रेष्ठ नज़र से देखते हैं। अच्छा - सभी सन्तुष्ट हो? जहाँ भी हो वहाँ संतुष्ट हो? सदा सन्तुष्ट रहना, यह भी टीचर की विशेष क्वालिफिकेशन है। टीचर का मुख्य गुण ही है - सदा सन्तुष्ट रहना और सदा सन्तुष्ट करना। अगर कोई कहे कि मैं तो सन्तुष्ट हूँ, दूसरों को सन्तुष्ट नहीं कर सकती तो यह भी टीचर की योग्यता के विरूद्ध है। टीचर्स का कर्त्तव्य है - सन्तुष्ट करना। अगर स्वयं नहीं कर सकती तो किसी के भी सहयोग से करना ज़रूर है।
टीचर को तो सदा विघ्न-विनाशक बन करके अनेकों के विघ्न-विनाशक बनने का आधार बनने के निमित्त बनाया है। कोई समस्या ले करके आये और समाधान स्वरूप बन करके जाएं। ऐसी टीचर्स हो ना?
प्रश्न :- आप ब्राह्मण आत्मायें विशेष आत्माओं की लिस्ट में हो? इस लिस्ट में कौन आते हैं?
उत्तर :- विशेष आत्माओं की लिस्ट में वही आते जिनमें कोई-न-कोई विशेषता है। कोई भी ब्राह्मण बच्चा ऐसा नहीं जिसमें कोई विशेषता न हो सबसे पहली विशेषता तो यही है जो बाप को जान लिया, बाप को पा लिया। कोटो में कोउ और कोउ में भी कोई ने जाना। तो बाप भी उसी नज़र से देखते हैं कि यह विशेष आत्मायें हैं। विशेष आत्माओं को सदा खुशी के झूले में झूलना चाहिए। लाडले बच्चे कभी भी मिट्टी में पाँव नहीं रखते, आप लाडले बच्चे सदा बाप की याद के गोदी में रहो। सब-कुछ करते भी बाप की गोद में रहो, नीचे न आओ।
14-11-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
ब्राह्मण जीवन की निशानी है - सदा खुशी की झलक
एक का अनगिनत रिटर्न देने वाले सदा दाता भोलानाथ शिव बाबा बोले :-
‘‘आज बाप-दादा सर्व बच्चों की अन्तिम स्टेज अर्थात् विकर्माजीत स्टेज, विकल्प या व्यर्थ संकल्प-मुक्त स्टेज देख रहे हैं। इस अन्तिम स्टेज तक पहुँचने के लिए पुरूषार्थ तो सब कर रहे हैं लेकिन पुरुषार्थीयों में दो प्रकार के बच्चे देखे। एक वे जो पुरूषार्थ करते हुए पुरूषार्थ की प्रारब्ध अर्थात् प्राप्ति साथ-साथ अनुभव करते चल रहे हैं। और दूसरे, जो सिर्फ पुरूषार्थ में ही लगे हुए हैं। मेहनत ज्यादा, प्राप्ति का अनुभव कम होता है, इसलिए चलते-चलते थक भी जाते हैं। यथार्थ पुरुषार्थी कभी भी थकावट महसूस नहीं करते। कारण? दोनों के पुरूषार्थ में सिर्फ एक बात समझने का अन्तर हैं; जिससे वे मेहनत में रहते और दूसरे मोहब्बत में मस्त रहते हैं। कौन से संकल्प का अन्तर है, वह जानते हो? छोटा सा ही अन्तर है। एक समझते हैं कि हम स्वयं चल रहे हैं, चलना पड़ता है, सामना करना पड़ता है और दूसरे हैं जो सदैव संकल्प से भी सरेन्डर हैं, इसलिए वह सदैव यह अनुभव करते कि हमें बाप-दादा चला रहे हैं। मेहनत के पाँव से नहीं लेकिन स्नेह की गोदी में चलते रहते हैं। इसलिए वे स्नेह के पाँव से चलते, जिसमें थकावट नहीं होती। स्नेह की गोदी वा झोली में सर्व प्राप्तियों की अनुभूति होने के कारण वह चलते नहीं, लेकिन उड़ते रहते हैं। सदा खुशी में, आन्तरिक सुख में, सर्व शक्तियों से उड़ते रहते हैं।’’
अभी अपने से पूछो कि मैं कौन? संगमयुगी ब्राह्मण बच्चे जियेंगे, चलेंगे हर कदम में स्नेह की गोदी में। ब्राह्मण जीवन की निशानी है - सदा खुशी की झलक प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देगी। खुशी नहीं तो ब्राह्मण जीवन भी नहीं।
संगमयुग का महत्व
कई बच्चे समझते हैं कि संगमयुग पुरुषार्थी जीवन का है और भविष्य जन्म प्रारब्ध का जन्म है। वे समझते हैं कि जो बाप-दादा का वायदा है - एक दो और लाख लो, यह वायदा भविष्य के लिए है। लेकिन नहीं। यह वायदा संगमयुग का ही है। जैसे सर्व श्रेष्ठ समय, सर्व श्रेष्ठ जन्म, सर्वश्रेष्ठ टाइटिल इस समय के हैं, वैसे सर्व प्राप्तियों का अनुभव, सब वायदों की प्राप्ति इस समय होती है। भविष्य तो है ही लेकिन भविष्य से भी वर्तमान श्रेष्ठ है। इस समय ही एक कदम अर्थात् एक संकल्प बच्चे करते हैं कि बाबा हम आपके हैं और रिटर्न में बाप हर संकल्प, बोल और कर्म में अनुभव कराते हैं मैं आपका हूँ। अर्थात् बाप आपका है। एक संकल्प का रिटर्न सारे संगमयुग की जीवन में बाप आपका ही हो जाता है। एक का सिर्फ लाख गुणा नहीं मिलता! जब चाहो, जैसे चाहो, जो चाहो, बाप सर्वेन्ट रूप में बाँधे हुए हैं। तो एक का लाख गुणा तो क्या लेकिन अनगिनत बार का रिटर्न मिलता है। वर्तमान समय का महत्व चलते-चलते भूल जाते हो। इस संगमयुग को वरदान है - कौन सा? स्वयं वरदाता ही आपका है। जब वरदाता ही आपका है, तो बाकी क्या रहा? बीज आपके हाथ में हैं, जिस बीज द्वारा सेकेण्ड में जो चाहो वह ले सकते हो। सिर्फ संकल्प करने की बात है। शक्ति चाहिए, सुख चाहिए, आनन्द चाहिए, सब आपके लिए जी हज़ूर हैं क्योंकि हजूर ही आपका है। जैसे स्थूल सेवाधारी बुलाने से हाज़र हो जाते हैं वैसे यह सर्व प्राप्तियाँ संकल्प से हाज़र हो जावेंगी। लेकिन हज़ूर आपका है तो यह सब हाज़र हैं। बीज आपका है तो यह सब फल आपके हैं।
खुशी गुम होने का कारण
चलते-चलते करते क्या हो! दो लड्डू हाथ में उठाने की कोशिश करते हो। लेने के लिए तो तैयार हो जाते हो लेकिन छोड़ने वाली चीज़ भी फिर ले लेते हो। इसलिए विस्तार में जाने से सार को छोड़ देते हो। बीच में से बीज खिसक जाता है, यह मालूम नहीं पड़ता इसलिए फिर खाली हो जाते हो और मेहनत करते हो अपने को भरपूर करने की, लेकिन बीज छूट जाने के कारण प्रत्यक्षफल की प्राप्ति हो नहीं पाती है इसलिए थक जाते हो। भविष्य के दिलासे से अपने को चलाते रहते हो। प्रत्यक्षफल की बजाय भविष्य फल के उम्मीदवार बनकर चलते हो, इसलिए ख़ुशी की झलक सदा नज़र नहीं आती। मेहनत की रेखायें ज्यादा नज़र आती हैं, प्राप्ति की रेखायें कम नज़र आती हैं। त्याग की महसूसता ज्यादा होती है भाग्य की महसूसता कम होती है।
अब क्या करना है?
वर्तमान समय में जो आपके सम्पर्क में आते हैं, वे लोग भी समय प्रति समय अब भी यह बोल बोलते हैं कि आप लोगों का त्याग बहुत बड़ा है लेकिन अब यह बोल कहें कि आप लोगों का भाग्य बहुत बड़ा है। त्याग उनको दिखाई देता है लेकिन भाग्य अभी तक दिखाई नहीं देता है। भाग्य अभी गुप्त है। त्याग की महिमा बहुत करते हैं, इतनी ही भाग्य की महिमा करें तो सेकेण्ड में स्वयं का भी भाग्य खुल जायेगा। त्याग देख करके सोच में पड़ जाते हैं। भाग्य देखकर स्वयं भी भाग्यशाली बन जावेंगे। अब समझा, क्या चेन्ज करना है?
मेहनत से निकल स्नेह की, मोहब्बत की गोदी में आ जाओ। चल रहे हैं - नहीं, लेकिन चला रहे हैं। (लाइट बन्द हो गई) बच्चे अन्धकार में रहते हैं तो बाप को भी अनुभव होना चाहिए कि ऐसी दुनिया में बच्चे रहते हैं, यह प्रैक्टिकल अनुभव होता है।
अच्छा; अब समझा क्या करना है? भविष्य फल के पहले प्रत्यक्ष फल खाओ। सदा हज़ूर को बुद्धि में हाज़र रखो तो सर्व प्राप्तियाँ भी सदा जी हज़ूर करेंगी। अगर हज़ूर हाज़र है तो सर्व प्राप्तियाँ चुम्बक के समान आपे ही आकर्षित होती आवेंगी। समझा? बाप-दादा बच्चों की मेहनत देख सहन नहीं कर सकते। ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें, डायरेक्ट बीज से निकले हुए तना स्वरूप बच्चे हो। ऐसे श्रेष्ठ बच्चों को सर्व सहज प्राप्तियों का अनुभवी बनना है। अच्छा?
ऐसे सर्व सहज प्राप्तिवान, सदा सागर के समान सर्व में सम्पन्न, सदा बीज को साथ रखने वाले, बीजरूप स्टेज में स्थित रहने वाले, विकर्माजीत, विकल्प जीत ऐसे लक्ष्य को पाने वाले, सदा निश्चय बुद्धि और निश्चिन्त रहने वाले बच्चों को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।
(पार्टियों से अव्यक्त बाप-दादा की मधुर मुलाकात)
नेपाल - सभी बहुत दूर-दूर से स्नेह के आधार पर खिंचे हुए आ गये। जैसे बच्चे स्नेह की डोर में बँधे हुए अपने घर पहुँच गये हैं, ऐसे बाप भी इतना ही बच्चों को स्नेह का रेसपान्स दे रहे हैं। स्नेह का रेसपान्स क्या है? स्नेह का रेसपान्स हैं सदा अथक, सदा सफलतामूर्त भव। कभी भी माया आये तो यह स्थान, यह दिन, यह घड़ी, यह बाप का वरदान याद रखना तो वरदान से माया मूर्छित हो जायेगी। आप लोगों के देश में भी ऐसे जन्त्र-मंत्र बहुत करते हैं ना। तो आप भी इस जन्त्र-मन्त्र से माया को मूर्छित कर देना। बाप ने बच्चों को जन्मते ही कौन-सा वरदान दिया है? अमरनाथ बाप का पहला वरदान है - बच्चे अमरभव! अमरनाथ की कथा सुनने वाले आप सब हो ना? यह खुशी होती है कि हम सबका यादगार अब तक भी चल रहा है? कल्प पहले का यादगार अभी भी देख रहे हो। अमरनाथ में आपका ही यादगार है। एक-एक बच्चे की कितनी महिमा करें। जितनी आप सबने द्वापर से बाप की महिमा गाई है उतनी बाप अभी आप बच्चों की गाते हैं। रोज़ नया टाइटिल देते हैं तो महिमा हुई ना। बहुत-बहुत लकी हो। जिन माताओं को दुनिया वालों ने ठुकराया उन्हें बाप ने ठाकुर बना दिया। तो माताओं को तो बहुत खुशी होनी चाहिए। खुशी-खुशी में चलने से थकावट फील नहीं होगी।
हर ब्राह्मण बच्चों के घर में बाप का यादगार (गीता पाठशाला) जरूर होनी चाहिए। जैसे घर-घर में राजा-रानी का फोटो लगाते हैं ना। तो ब्राह्मणों के घर में यह विशेष यादगार हो। जो भी आये उसको बाप का परिचय देते रहो। अच्छा।
आसाम - आसाम वाले तो बहुत बड़ी आसामी होंगे! बड़े आदमी को बड़ी आसामी कहते हैं। तो आप बड़े से बड़े लोग बड़ी आसामी हो। वह लोग अखबार में निकालते हैं कि कौन-कौन बड़े हैं। हू इज हू? आप लोग तो जन्म-जन्मान्तर के लिए पूज्य बनते हो। वह तो आज हू इज़ हू की लिस्ट में हैं कल साधारण प्रजा की लिस्ट में हैं। आप सदा से इसी लिस्ट में हो। सदा के पूज्य हो। आधा कल्प चेतना में पूज्य के रूप में हो, आधा कल्प जड़ चित्रों के रूप में पूजे जाते हो। तो सारा ही कल्प हू इज हू हुए। ऐसा नशा रहता है कि हम बहुत बड़े लोग हैं? किसी भी प्रकार की समस्या कमज़ोर तो नहीं बनाती। महाबीर हो? बाप-दादा भी बच्चों को देख खुश होते हैं कि कैसे कल्प पहले वाला अपना भाग्य ले रहे हैं। कल्प-कल्प के तकदीरवान हो। ऐसी तकदीर कभी किसी की बन भी नहीं सकती। तो यह नशा और खुशी निरन्तर रहे।
बिहार - सदा बहार में रहने वाला बिहार है। सदैव अपने को ऐसे अनुभव करते हो जैसे ऊपर से अवतरित होकर साकार सृष्टि में सेवा के लिए आये हुए हैं। जो अवतार होते हैं उनको क्या याद रहता है? जिस कर्तव्य के लिए अवतरित होते हैं वही कर्तव्य याद रहता है। अवतार आते ही हैं कोई महान कर्तव्य करने के लिए। तो आप भी किसलिए अवतरित हुए हो? विश्व-परिवर्तन के कर्तव्य के लिए। तो सदा यह याद रहता है? कहीं भी रहते आपका मूल कर्तव्य विश्व-परिवर्तन का है। चाहे कोई भी धन्धा करो, घर का कार्य करो लेकिन याद क्या रहना चाहिए -परिवार या परिवर्तन? परिवार में रहते हो तो किस लक्ष्य से रहते हो? यही लक्ष्य रहता है ना कि इनको भी परिवर्तन करना है। गृहस्थी होकर नहीं, सेवाधारी होकर रहते हो! सेवाधारी को सेव् ही याद रहती, बाकी सब काम निमित्त मात्र हैं। असली कार्य है विश्व-परिवर्तन का। विश्व परिवर्तन वही कर सकते हैं जो पहले स्वयं का परिर्वतन करते हैं। पहले खुद को उदाहरण बनना पड़ता है फिर आपको देखकर सब करने लग पड़ेंगे। तो स्व परिवर्तन कर लिया है ना? बाकी जो थोड़ा समय रहा है वह किसलिए? सेवा के लिए। अन्य की सेवा करते स्व की सेवा हो ही जायेगी। अवतार हूँ यह याद रहे तो जैसी स्मृति होगी वैसा ही कर्म होगा। तो बिहार वाले बहारी मौसम लाने वाले हो। आजकल तो देश की हालत क्या है? कहाँ सूखा है कहाँ बहुत पानी है, लेकिन अभी क्या करेंगे? सदा बहार लायेंगे। आपका ऐसा कर्तव्य देख सब आपको आशीर्वाद देंगे, सब नमस्कार करने आयेंगे। अभी तो कोई- कोई गाली भी देते हैं क्योंकि गुप्त हो ना। जब प्रत्यक्ष होंगे तो आपे ही सब नमस्कार करने के लिए आयेंगे। जितनी गालियाँ देते हैं उतने पुष्प चढ़ायेंगे। एक गाली के बजाए कितनी बार फूलों की मालायें चढ़ानी पड़ेगी। जैसे बाप ने बहुत गालियाँ खाई तो पूजन भी इतना ही होता है ना। ऐसे जितनी गाली खायेंगे उतने बड़े पूज्य बनेंगे। इसलिए घबराना नहीं। मालायें तैयार हो रही हैं।
बंगाल - (कलकत्ता) कलकत्ता निवासी क्या प्लान बना रहे हैं? मेले तो बहुत किये अभी क्या सोचा है? अभी हर वर्ष में कोई नया प्लान बनाना चाहिए।
कलकत्ता भक्तिमार्ग में भी मशहूर है वहाँ की विशेषता है बलि चढ़ने की। जैसे भक्तिमार्ग की बलि मशहूर है वैसे ज्ञान में महाबलि चढ़ने वाले ज्यादा होंगे ना। एक तरफ भक्ति का फोर्स दूसरी तरफ ज्ञान का फोर्स। मेले के साथ अभी और कोई विधि अपनाओ। जितना बड़ा कलकत्ता है उतनी बड़ी आवाज़ हो। पुरानी गद्दी का स्थान है तो और कोई ऊंची आवाज़ निकालो। अच्छा - हरेक रोज़ अपनी चेकिंग कर तीव्रगति को प्राप्त हो रहे हो। संगमयुग पर ही चढ़ती कला का चान्स है। रोज़ अपनी चेकिंग करो। सिर्फ चल रहे हैं, यह नहीं लेकिन किस गति से चल रहे हैं। अगर तीव्र गति नहीं होगी तो फर्स्ट जन्म में नहीं पहुँच सकेंगे। हर कदम में पदमों की कमाई जमा करते पदमापदम भाग्यशाली बनो। साधारण चेकिंग नहीं लेकिन अभी महीन चेकिंग चाहिए।
यह मरजीवा जन्म है ही प्रत्यक्षफल खाने के लिए, किया और प्राप्ति हुई। अब मेहनत की जरूरत नहीं, फल खाने का समय है। अतीइन्द्रिय सुख की जीवन में रहने का समय है। तो अतीइन्द्रिय सुख के झूले में सदा झुलने वाले हो ना? जो अभी सदा इस झूले में झूलते वही श्रीकृष्ण के साथ-साथ झूलेंगे। ऐसा पुरूषार्थ है ना? इसको कहा जाता है तीव्र पुरूषार्थ।
तामिलनाडू - संगमयुग पर बाप द्वारा जो खज़ाने मिले हैं उन सभी खज़ानों को अच्छी तरह से जमा किया है! माया खज़ाने को लूट तो नहीं लेती। पहले भी सुनाया था कि डबल लाक लगा दो एक बाप की याद की और दूसरी सेवा, यह डबल लॉक लगाने से कभी भी माया खज़ाना लूट नहीं सकती। सदा भरपूर रहेंगे। अमृतवेले स्वयं को मास्टर सर्वशक्तिवान का तिलक दो। सारा दिन तिलकधारी रहने से कभी भी माया सामना नहीं करेंगी। तिलक आपके विजय की निशानी है। अमृतवेले वरदानों का समय है, जितना अमृतवेले का महत्व रखेंगे उतना महान बनेंगे।
19-11-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
बेहद के वानप्रस्थी अर्थात् निरन्तर एकान्त में सदा स्मृति स्वरूप
आज बाप-दादा सर्व बच्चों के भाग्य के गुण गा रहे थे। बाप बच्चों के भाग्य की श्रेष्ठ रेखाओं को देख हर्षित होते हैं। भाग्य की श्रेष्ठ रेखाओं में विशेष क्या-क्या बातें देखी जाती हैं। वह जानते हो? मुख्य बात तिथि अर्थात् तारीख, समय, विशेष ग्रह, कुल, धर्म और सम्पत्ति, सम्बन्ध और आक्यूपेशन देखा जाता है। इन सब बातों से भाग्य को देखते हैं।
सर्वोच्च भाग्यशाली
आप सभी अपनी इन सब बातों को अच्छी तरह से जानते हो? आप सबकी तिथि कौन-सी है? आज तक भी अपने भाग्य को जन्म की तारीख से या राशि से देखते हैं। तो आप सबकी राशि और तारीख कौन-सी है? जन्म की तारीख कौन-सी है? आप सब कब अवतरित हुए? ब्राह्मण कब अवतरित हुए? जो बाप के अवतरण की तारीख है वह आपकी है। ब्रह्मा सहित ब्राह्मण भी पैदा हुए। तो जो आदि रतन हैं उनकी तारीख कौनसी कहेंगे? बाप के अवतरण की तारीख आदि रतनों के जन्म की तारीख है। समय कौन-सा है? यह संगम ब्रह्मा मुहूर्त का समय है। तो सभी के जन्म का समय है - ब्रह्म मुहूर्त और राशि कौन-सी है? लौकिक राशियाँ तो भिन्न-भिन्न प्रकार की दिखाई हैं लेकिन आप सबकी राशि जो बाप की राशि है विश्व-कल्याणकारी, वही आप सबकी राशि है। जिस राशि में सर्व बाप के समान गुण समाये हुए हैं। और दशा भी गुरूवार की दशा है। कुल भी सर्वश्रेष्ठ है। डायरेक्ट ईश्वर के कुल के हो, ईश्वरीय कुल है। पोजीशन-मास्टर सर्वशक्तिवान हो। सम्पत्ति-अखुट और अविनाशी सम्पत्ति है। धर्म - ब्राह्मण चोटी के हो। बुद्धि की लाइन विशाल और त्रिकालदर्शी लाइन है। अब सोचो इससे अधिक भाग्य की रेखायें और किसी की श्रेष्ठ हो सकती हैं। कर्म-रेखा में निरन्तर कर्मयोगी, सहजयोगी, राजयोगी - यह रेखा बाप ने स्पष्ट खींच ली है। भाग्य के सितारें में ताज और तख्त दिखाई देता है। इससे श्रेष्ठ भाग्य और क्या होगा?
गुड़ियों का अनोखा खेल
आज बाप-दादा सदा सर्व भागय को देख रहे थे। जैसे बाप सर्व के भाग्य को देख हर्षित होते हैं वैसे आप सभी स्वयं के भाग्य को देख हर्षित होते हो? छोटी-छोटी बातों में भाग्य को भूल तो नहीं जाते? यह छोटी-छोटी बातें क्या हैं? जैसे भक्ति वालों को कहते हो कि यह पूजा आदि गुड़ियों की पूजा हैं, गुड़ियों को खेल खेलते हैं। जन्म भी देते हैं, सजाते भी हैं, पूजते भी हैं, और फिर डुबोते भी हैं, तो इसको आप गुड़ियों की पूजा वा गुड़ियों का खेल कहते हो। ऐसे ही मास्टर भाग्य-विधाता बच्चे भी इन छोटी-छोटी बातों की गुड़ियों को खेल बहुत करते हैं। रीयल बात नहीं होती लेकिन हिसाब-किताब चुक्तु होने के लिए व धारणाओं का पेपर लेने के लिए व अपनी स्थिति की चेकिंग होने के लिए यह बातें जीवन में नये-नये रूप से आती रहती हैं। निर्जीव बातें, असार बातें - लेकिन जब सामने आती हैं, जैसे वह जड़ मूर्ति में प्राण भर देते हैं और इतना विस्तार बना देते हैं वैसे आप सभी भी कभी ईर्ष्या की गुड़िया, कभी वहम की गुड़िया, कभी अनुमान की गुड़िया, कभी आवेश की गुड़िया, कभी रोब की गुड़िया, अर्थात् मूर्ति बनाकर बात रूपी गुड़िया में प्राण भर देते हो? और अनुभव करते और कराते हो कि यह सत्य है। यही बात ठीक है - यह प्राण भर देते हो। और, फिर क्या करते हो? आप लोगों का गीत बना हुआ है ना - डूब जा, डूब जा...तो क्या करते हो? उसी बात रूपी मूर्ति को आगे-पीछे की स्मृतियों से खूब सजाते हो। साथ-साथ जैसे वह भोग लगाते हैं देवी को अथवा मूर्ति को वैसे आप भी कौन-सा भोग लगाते हो? ज्ञान की पॉइन्टस उल्टे रूप से सोचते हो अर्थात् भोग लगाते हो। यह तो होता ही है, यह तो सबमें होता है। ड्रामा अनुसार पुरुषार्थी हैं, कर्मातीत तो अन्त में बनना है। इसी प्रकार के ज्ञान की भिन्न-भिन्न वैराइटी पॉइन्टस रोज़ भोग लगाते-लगाते मज़बूत कर देते हो, पक्का कर देते हो। पहले कच्चे भोजन का भोग लगाते फिर पक्का कर देते हो। और फिर उन पॉइन्टस को अर्थात् भोग को अकेले नहीं खाते, अपने साथ-साथ पण्डे, कुटुम्ब भी बिठाते हो अर्थात् और भी परिवार के साथी बनाते हो, उन की बुद्धि को भी यह भोजन स्वीकार कराते हो। लेकिन अन्त में क्या करना पड़ता हैं, ज्ञान-सागर बाप की याद में बीती-सो-बीती के ज्ञान-सागर की लहर में, स्व उन्नति की लहर में, हाई जम्प लगाने की लहर में, स्मृति स्वरूप की स्मृति की लहर में, मास्टर नालेज़फुल स्वरूप की लहर में, इन अनेक लहरों के बीच इन गुड़ियों को अथवा मूर्तियों को डुबोना ही पड़ता है। लेकिन इतने सारे समय को क्या कहेंगे? इस सारे गुड़ियों के खेल को,जैसे भक्ति वालों को कहते हो वेस्ट आफ टाइम और मनी, वैसे ही संगम का सर्वश्रेष्ठ समय और ज्ञान वा शक्तियों के खज़ाने को इतना व्यर्थ कर देते हो। तो यह छोटी-छोटी बातें क्या हुई? गुड़ियों का खेल। इस खेल में कभी भी अपने को व्यस्त मत करो। सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य को देखो।
वर्तमान समय के प्रमाण अभी वानप्रस्थ अवस्था के समीप हो। वानप्रस्थी गुड़ियों का खेल नहीं करते हैं। वानप्रस्थी एकान्त और सुमिरण में ही रहते हैं। तो आप सब बेहद के वानप्रस्थी सदा एक के अन्त में अर्थात् निरन्तर एकान्त में सदा स्मृति स्वरूप रहो। यह है बेहद के वानप्रस्थी की स्थिति (बाप-दादा ने 3 मिनट ड्रिल कराई) यह स्थिति अच्छी नहीं लगती? जो चीज़ अच्छी लगती है वह तो सदा याद रहती है। अब बाप व आप क्या चाहते हो? एक ही बात चाहते हो बाप और बच्चे समान हो जाएं। सदा याद में समाये रहें। समाना नहीं चाहते हो! समान बनना ही समाना है। समझा? कि बाप क्या चाहते हैं वा आप क्या चाहते हो?
यह सीज़न स्वरूप देखने की है या सिर्फ सुनने की है! फिर सुनायेंगे कि समय क्या पुकार रहा है! भक्त क्या पुकार रहे हैं! दुखी, अशान्त आत्मायें क्या पुकार रही हैं! धर्म- नेतायें, वैज्ञानिक, राजनैतिक क्या पुकार रहे हैं! प्रकृति भी क्या पुकार रही है! सबकी पुकार - हे उपकारी आत्मायें, सुनने में आती हैं या गुड़ियों के खेल में ही बिज़ी हो? अच्छा - फिर सबकी पुकार सुनायेंगे। आप लोग भी कल अमृतवेले सुनना।
सदा भाग्य को सुमिरण करने वाले, सदा बाप के समान, याद में समाये हुए निरन्तर एकान्तवासी, हर घड़ी को सफल बनाने वाले सफलतामूर्त्त, भक्ति के खेल समाप्त कर मास्टर ज्ञान-सागर स्वरूप, स्मृति और समर्थी स्वरूप, ऐसे पदमापदम भाग्यशाली बच्चों को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।
पार्टियों से मुलाकात
मैसूर - सभी अपने को सर्वश्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? कितनी श्रेष्ठ आत्मायें हो जो स्वयं बाप बच्चों से मिलने के लिए अपने वतन को छोड़कर आते हैं। आधा कल्प गाया कि अपना वतन छोड़कर आ जाओ लेकिन यह मालूम नहीं था कि कब और कैसे मिलेगा, सिर्फ इन्तज़ार में दिन बिताये। अभी इन्तजार खत्म हुआ और सम्मुख मिलन मना रहे हो! ऐसा श्रेष्ठ भाग्य और किसी का होगा? स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा होगा कि भगवान से बातें करेंगे। टोली खायेंगे, बैठेंगे और अभी प्रैक्टिकल में अनुभव कर रहे हो। प्राप्ति के आगे यह सफ़र भी क्या है? बाप कितने बड़े सफ़र से आते हैं। बाप का स्थान दूर है या आप का! जब खुशी होती है तो कोई भी थकावट व तकलीफ महसूस नहीं होती। रास्ते के चार दिन निरन्तर योगी की स्टेज होगी - कब मिलेंगे, कब पहुँचेंगे, तो निरन्तर योगी हो गये ना। यह भी कमाई हो गई ना। ब्राह्मण बनना माना हर कदम में कमाई। कष्ट भी कष्ट नहीं हैं लेकिन जैसे गुलाब के पुष्प के साथ काँटा भी होता है, वह काँटा उनके बचाव का साधन होता है। वैसे यह तकलीफ़ें और ही बाप की याद दिलाने के निमित्त बनती हैं। कोई भी प्रकार का जब दुख आता है तो नास्तिक के मुख से भी - ‘हे भगवान’ निकलता है। तो दुःख भी याद दिलाने का साधन हुआ ना। संगम पर कोई कष्ट हो नहीं सकता। इस समय आप बच्चे बाप के सर्व खज़ानों के अधिकारी हो। बाप का खज़ाना क्या है? सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम - यही तो खज़ाना है ना! तो अधिकारी और खुश ना रहे, यह हो कैसे सकता है। अमृतवेले सदा स्मृति का तिलक लगाओ कि हम अधिकारी हैं। अगर तिलक लगा होगा तो सदा हर्षित रहेंगे। तिलक को मिटने नहीं देना। माया कितना भी मिटाने की कोशिश करे लेकिन मिटाना नहीं तो सदा ‘अविनाशी भव’ का वरदान मिलता रहेगा। सिल्वर जुबली मना रहे हो लेकिन गोल्डन एज की स्थिति में रहकर सिल्वर जुबली मनाओ। अच्छी हिम्मत रखी है। रिज़ल्ट भी अच्छी है। अच्छे बुजुर्ग, अनुभवी और मेहनती बच्चे हैं, अच्छा सर्टिफिकेट है।
(विदेशी भाई-बहनों से)
सभी जैसे स्थूल देश के हिसाब से फारेनर्स हो वैसे ही आत्मा रूप से भी सदा अपने को फॉरेन अर्थात् परमधाम निवासी समझ कर चलते हो? सदैव यह अनुभव हो कि मैं आत्मा परमधाम से अवतरित हुई हूँ, विश्व-कल्याण का कर्तव्य करने के लिए। तो इस स्मृति से क्या होगा? जो भी संकल्प करेंगे, जो भी कर्म करेंगे, जो भी बोल बोलेंगे, जहाँ भी नज़र जायेगी, सर्व का कल्याण करते रहेंगे। यह स्मृति लाइट हाउस का कार्य करेगी। उस लाइट हाउस से एक रंग की लाइट निकलती है लेकिन यहाँ सर्व शक्तियों के लाइट हाउस हर कदम आत्माओं को रास्ता दिखाने का कार्य करें। तो सदा इस स्मृति में रहो ताकि जो भी सामने आए वह समझे कि हम अखुट खज़ाने की खान के आगे आये हैं। आने से ही ऐसे महसूस करें कि मैं ऐसे स्थान पर पहुँच गया हूँ जहाँ से सर्व प्राप्तियाँ होनी हैं। विदेशियों को ऐसे चलते-फिरते लाइट हाउस बनकर सेवा करनी है। अगर एक ही स्थान पर इतने लाइट हाउस हो जायेंगे तो क्या रिजल्ट निकलेगी। सब वाह-वाह के गीत गायेंगे। सदैव एक चित्र अपने सामने रखो। जैसे आप लोग चित्र निकालते हो जिसमें अंगुली से ब्रह्मा भी शिवबाबा की तरफ इशारा कर रहे हैं। ऐसे आप सबका हर कर्म, हर संकल्प बाप की तरफ इशारा करे। तो चेक करो कि मेरा संकल्प इशारा करने वाला है। जब सर्व आत्माओं को बाप का इशारा मिल जायेगा तो आप के गुण गाने लग जायेंगे। जैसे अभी और-और गीत गाते हैं ना, वैसे चारों ओर सभी साज़ों द्वारा बाप और आपके गुणों का गीत गायेंगे। उस समय क्या सीन होगी और आप लोग कहाँ होंगे? (मधुबन में) सब मधुबन में भाग आयेंगे तो भक्त क्या करेंगे! उस समय आप सबका साक्षात्कार होगा कि यह बाप-दादा के दिलतख्तनशीन हैं। उस समय आप तख्तनशीन नज़र आयेंगे तब सारी दुनिया हाय-हाय करेगी और आप लोग उनको वरदान देंगे। ऐसा साक्षात्कार अपने आपको अपना होता है कि हम तख्तनशीन हैं।
ब्राह्मण अर्थात् अधिकारी। तो अधिकार लेना है वा जन्म से ही अधिकारी हो? बापदादा सभी को सदैव तख्त और ताजधारी देखते हैं। तख्त से उतर आते हो क्या? जो श्रेष्ठ आत्मायें होती हैं वह कभी भी बिना गलीचे के नीचे पाँव नहीं रखतीं। आप सबसे बड़े-से-बड़े हो तो तख्त से नीचे नहीं पाँव रखना। तख्त पर ही खाते हो, पीते हो, घूमते हो, चलते हो इतना बड़े-से-बड़ा तख्त है। समझा, फॉरेनर्स का क्या पोजीशन है। अभी फॉरेनर्स को जो सेवा दी है वह कहाँ तक की है? स्पीकर की आवाज़ कहाँ तक पहुँची है? किस स्पीड से चल रहा है, कब आवाज़ पहुँचेगी? 80 में या 81 में। जब सब तरफ के लाउड स्पीकर्स की आवाज़ यहाँ पहुँचेगी तभी कुम्भकरण जागेंगे। छोटी आवाज़ नहीं भेजना बड़ी भेजना। सभी इन्तज़ार कर रहे हैं। कि कब फारेन की आवाज़ से भारत के कुम्भकरण जागते हैं। अभी बुलन्द आवाज़ करो। फॉरेन सर्विस की रिज़ल्ट अच्छी है। अभी आगे क्या करना है? (प्लान सुनाया) प्लान तो अच्छा है, यह तो करेंगे ही लेकिन अभी ऐसा कोई वातावरण बनाओ जो वातावरण चुम्बक जैसा कार्य करे। चारों ओर फैल जाए कि अगर शान्ति, सुख या प्रेम चाहिए तो यहाँ से मिल सकता है। एडवरटाइज़मेन्ट हो जाए। आजकल वाणी की बजाय वायब्रेशन्स से प्राप्ति करने के इच्छुक ज्यादा हैं। स्पीच करो लेकिन उसके पहले ऐसे वातावरण की आवाज़ जरूर फैलाओ। सभी अनुभव करें - जैसे प्यासे की प्यास पानी से बुझ जाती है ऐसे आत्माओं की शान्ति, सुख की प्यास बुझ जाए। जैसे स्थापना के शुरू में एक दिन भी कोई सत्संग में आ जाते थे तो पहले दिन ही कुछ-न-कुछ अनुभव करके जाते थे। जो आदि में वह अन्त में िवस्तार के रूप में होना है। ऐसा कुछ वातावरण बनाओ। वह तब होगा जब आप सभी निरन्तर इस स्थिति में स्थित रहेंगे। फिर सूर्य की किरणों के मुआफिक सब अनुभव करेंगे। सबकी नज़र जायेगी कि यह कहाँ से किरणें आ रही हैं। ऐसा अभी पुरूषार्थ करना। सभी रिफ्रेश तो बहुत हो रहे हो, ऐसे रिफ्रेश हुए हो जो अनेको को रिफ्रेश करते हुए सदा रिफ्रेश रहें। इस बारी विशेष एक शब्द पर डबल अन्डर लाइन करके जाना। वह कौन सा? निरन्तर। चाहे संकल्प चाहे बोल लेकिन - ‘निरन्तर’ शब्द को डबल अन्डर लाइन करके जाना। याद की यात्रा में निरन्तर, ज्ञान स्वरूप में निरन्तर, धारणा में निरन्तर, सेवा में भी निरन्तर। चारों सबजेक्टस में निरन्तर को डबल अन्डर लाइन करके जाना। समझा - यह एक शब्द वरदान के रूप में ले जाना।
प्लान लम्बे नहीं बनाओ लेकिन प्रैक्टिकल के जल्दी के बनाओ, उसके लिए यही इशारा है अपना तन-मन-धन शक्तियाँ जितना जल्दी यूज़ करेंगे उतना फायदा है। अभी समय है, फिर टू-लेट हो जायेंगे। करने के लिए डेट का इन्तज़ार नहीं करो, कल भी नहीं, आज भी नहीं अभी करो। क्योंकि अगर डेट बतायेंगे तो बहुत समय का जमा नहीं होगा - डेट का जमा होगा। फिर डेट की इन्तज़ार में चले जायेंगे इन्तज़ाम कम करेंगे। डेट कान्सेस हो जायेंगे। सोल कॉन्सेस नहीं रहेंगे।
हर एरिया में सन्देश पहुँचाने की कोशिश करो जिससे कोई उलाहना न दें कि हमें पता नहीं हैं। सर्विस करते जाओ तो सब आपे ही ऑफर करेंगे कि यहाँ सेन्टर खोलो।
प्रश्न - सम्पर्क और सेवा दोनों में सफल बनने के लिए मुख्य कौन सी धारणा चाहिए?
उत्तर - सफलता तभी मिलेगी जबकि सदैव स्वयं को मोल्ड करने की क्वालिफिकेशन होगी। अगर स्वयं को मोल्ड नहीं कर सकते तो गोल्डन एज की स्टेज तक पहुँच न सकेंगे। जैसा समय जैसे सरकमस्टन्सिज (Circumstance) हों उसी प्रमाण अपनी धारणाओं को प्रत्यक्ष करने के लिए मोल्ड होना पड़े। मोल्ड होने वाले ही रीयल गोल्ड हैं। अगर मोल्ड नहीं होते तो रीयल गोल्ड नहीं हैं। जैसे साकार बाप की विशेषता देखी - जैसा समय, जैसा व्यक्ति, वैसा रूप। तो सदा सफलतामूर्त्त के लिए विशेष यह क्वालिफिकेशन चाहिए।
प्रश्न - एक धर्म एक राज्य और एक भाषा, ऐसी दुनिया कब स्थापन होगी?
उत्तर - जब सब ब्राह्मणों की स्थिति एकरस हो जायेगी। एकरस स्थिति अर्थात् हम सब एक हैं। एक बाप के बच्चे हैं। सर्वश्रेष्ठ आत्मायें। भले स्थूल देश भिन्न-भिन्न हैं, यह शरीर के देश हैं लेकिन आत्माओं का देश एक ही है। हरेक की एकरस स्थिति बन जाए तो बहुत जल्दी एक राज्य, एक भाषा, ऐसी दुनिया स्थापन हो जाएगी। जब से ब्राह्मण बने तो यही एक संकल्प धारण किया है कि ऐसा राज्य स्थापन करके ही छोड़ेंगे। ऐसा जहाँ सब एक ही एक होगा, स्थापन करने के लिए स्थिति भी एकरस चाहिए।
प्रश्न - निरन्तर योगी बनने का सहज साधन क्या है?
उत्तर - सदा दिलतख्तनशीन बनने से स्वत: ही निरन्तर योगी बन जायेंगे। वर्तमान समय बाप द्वारा जो ताज़ और तख्त मिला है उसको सदा कायम रखो। अभी का ताज़ व तख्त अनेक जन्मों के लिए ताज़ व तख्त प्राप्त कराता है। विश्व-कल्याण की ज़िम्मेवारी का कार्य भूलना अर्थात् ताज़ को उतारना। ताज उतरता तो नहीं है ना! तख्त है - बाप का दिलतख्त। जो सदा बाप के दिलतख्तनशीन हैं वह निरन्तर स्वत: योगी रहते हैं, मेहनत की कोई बात है ही नहीं। क्योंकि एक तो सम्बन्ध बड़ा समीप है तो मेहनत काहे की। दूसरे प्राप्ति अखुट है, जहाँ प्राप्ति होती हैं वहाँ स्वत: याद होती है। ऐसे स्वत: और सहज योगी हो कि मेहनत करनी पड़ती है।
टीचर्स से - टीचर्स अर्थात् सदा अपने फीचर्स द्वारा बाप के गुण प्रत्यक्ष करने वाली। हर कर्म से, हर समय बाप के गुण अपने कर्म द्वारा प्रत्यक्ष करें - ऐसे ही हो ना। जो भी देखे वह यही कहे कि इनको सिखाने वाला उनसे परम शिक्षक कौन? आपको देखते ही बाप की याद आ जाए। आपका हर कर्म बाप की तरफ इशारा करने वाला हो। टीचर अर्थात् स्वयं और सर्व के प्रति विध्न विनाशक। छोटी-छोटी बातों के पीछे समय न गँवाने वाली। ऐसी टीचर्स ही बाप को प्रत्यक्ष कर सकती हैं। !
21-11-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
विश्व परिवर्तन के लिए सर्व की एक ही वृत्ति का होना आवश्यक
आज बाप-दादा चारों ओर के बच्चों के चेतन चित्रों द्वारा व हरेक के चेहरे द्वारा विशेष दो बातें चेक कर रहे हैं। हरेक बच्चा सेन्स (Sense) और इसेन्स (Essence) में कहाँ तक सम्पन्न हुआ हैं अर्थात् ज्ञान सम्पन्न और सर्व शक्ति सम्पन्न कहाँ तक बना है? जिसको रूप-बसन्त कहा जाता है। रूप-बसन्त अर्थात् सेन्स और इसेन्स फुल।
आज बाप-दादा रूहानी ड्रिल करा रहे थे। एक सेकेण्ड में संगठित रूप में एक ही वृत्ति द्वारा, वायब्रेशन्स द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन कर सकते हैं। नम्बरवार हर इन्डीविजुवल अपने-अपने पुरूषार्थ प्रमाण, महारथी अपने वायब्रेशन्स द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करते रहते हैं। लेकिन विश्व-परिवर्तन में सम्पूर्ण कार्य की समाप्ति में संगठित रूप की एक ही वृत्ति और वायब्रेशन्स चाहिए। थोड़ी-सी महान आत्माओं के वा तीव्र पुरुषार्थी महारथी बच्चों की वृत्ति व वायब्रेशन्स द्वारा कहीं-कहीं सफलता होती भी रहती है लेकिन अभी अन्त में सर्व ब्राह्मण आत्माओं की एक ही वृत्ति की अंगुली चाहिए। एक ही संकल्प की अंगुली चाहिए तब ही बेहद का विश्व-परिवर्तन होगा। वर्तमान समय विशेष अभ्यास इसी बात का चाहिए। जैसे कोई भी सुगन्धित वस्तु सेकेण्ड में अपनी खुशबू फैला देती है। जैसे गुलाब का इसेन्स डालने से सेकेण्ड में सारे वायुमण्डल में गुलाब की खुशबू फैल जाती है। सभी अनुभव करते हैं कि गुलाब की खुशबू बहुत अच्छी आ रही है। सभी का न चाहते भी अटेन्शन जाता है कि यह खुशबू कहाँ से आ रही है। ऐसे ही भिन्न-भिन्न शक्तियों का इसेन्स, शान्ति का, आनन्द का, प्रेम का, आप संगठित रूप में सेकेण्ड में फैलाओ। जिस इसेन्स का आकर्षण चारों ओर की आत्माओं को आये और अनुभव करें कि कहाँ से यह शान्ति का इसेन्स वा शान्ति के वायब्रेशन्स आ रहे हैं। जैसे अशान्त को अगर शान्ति मिल जाए वा प्यासे को पानी मिल जाए तो उनकी ऑख खुल जाती है, बेहोशी से होश में आ जाते हैं। ऐसे इस शान्ति वा आनन्द की इसेन्स के वायब्रेशन्स से अन्धे की औलाद अन्धें की तीसरी ऑख खुल जाए। अज्ञान की बेहोशी से इस होश में आ जाएं कि यह कौन हैं, किसके बच्चे हैं, यह कौन-सी परम-पूज्य आत्मायें हैं! ऐसी रूहानी ड्रिल कर सकते हो?
सेन्स और इसेन्स का बैलेन्स
जब द्वापर के रजोगुणी ऋषि-मुनि भी अपने तत्व योग की शक्ति से अपने आसपास शान्ति के वायब्रेशन्स फैला सकते थे यह भी आपकी रचना हैं। आप सब मास्टर रचयिता हो। वह हद के जंगल को शान्त करते थे आप राजयोगी क्या बेहद के जंगल में शान्ति व शक्ति व आनन्द के वायब्रेशन्स नहीं फैला सकते हो? अब इस अभ्यास का दृढ़ संकल्प, निरन्तर का संकल्प करो। हर मास के इन्टरनेशनल योग का अभ्यास तो शुरू किया है लेकिन अब यही अभ्यास ज्यादा बढ़ाओ। जैसे बसन्त रूप की विहंग मार्ग की सेवा मेले, कान्फ्रेंस व योग शिविर करते हो। एक ही समय संगठित रूप में अनेकों को सन्देश दे देते हो व अखबारों द्वारा टी.वी. व रेडियो द्वारा एक ही समय अनेकों को सन्देश दे देते हो। ऐसे ही रूप अर्थात् याद बल द्वारा, श्रेष्ठ संकल्प के बल द्वारा ऐसी विहंग मार्ग की सर्विस करो। इसकी भी नई-नई इन्वेन्शन निकालो। जब रूपबसन्त दोनों की सेवा का बैलेन्स हो जायेगा तब ही अन्तिम समाप्ति होगी। इसके लिए सर्व संगठित रूप का पुरूषार्थ कौन-सा है? जानते हो? उसी पुरूषार्थ का वर्णन और चित्र अब तक भक्ति में चल रहा है। कौन-सा? पुरूषार्थ का चित्र वा गायन क्या है? समाप्ति का चित्र क्या दिखाया है? स्थापना के वर्णन का चित्र भी वही है और समाप्ति का भी चित्र वही है। ब्रह्मा ने ब्राह्मणों के साथ क्या किया? यज्ञ रचा तो स्थापना का चित्र भी यज्ञ रचा। और समाप्ति में भी यज्ञ में सर्व ब्राह्मणों के संगठित रूप में ‘‘स्वाहा’’ के दृढ़ संकल्प की आहुति पड़े तब यज्ञ समाप्त होना है अर्थात् विश्व-परिवर्तन का कार्य समाप्त होना है। तो पुरूषार्थ कौन-सा रहा? एक ही शब्द का पुरूषार्थ रहा कौन-सा? ‘‘स्वाहा’’ जब स्वाहा हो जाता है तो हाय-हाय के बजाए आहा हो जाती है। परिवर्तन हो गया ना। शब्द कहने में ही मज़ा आता है। अब अपने से पूछो सर्व बातों में स्वाहा किया है? स्वाहा करना आता है।
जब संगठित रूप में पुराने संस्कार, स्वभाव व पुरानी चलन के तिल व जौं स्वाहा करेंगे तब यज्ञ की समाप्ति होगी। तिल और जौं यज्ञ में डालते हैं ना। जब यज्ञ की समाप्ति होती है सब इकट्ठे स्वाहा कर देते हैं, तब ही यज्ञ सफल होता है। अगर एक भी आहुति नहीं पड़ी तो अच्छा नहीं मानते हैं। तो पुरूषार्थ क्या हुआ? संगठित रूप में स्वाहा करो। अभी क्या करते हो? अगर कोई कहता भी है खत्म करो, स्वाहा करो तो क्या करते हैं? स्वाहा करने की बजाए संवाद चल पड़ता है। डिस्कशन चल पड़ता है। वह संवाद बड़े अच्छे होते हैं। उसका विषय ‘‘क्यों’’ और ‘‘कैसे’’ होता है। ऐसे संवाद या डायलॉग बहुत चलते हैं। बाप-दादा के पास वतन में रेडियो पर वह बहुत आते हैं। कभी किसी स्टेशन से कभी किसी स्टेशन से। उस समय के चित्र और एक्शन्स कैसे लगते होंगे? जैसे आपकी दुनिया में टी.वी. पर मिक्की माऊस का खेल आता है ऐसे कभी नयन बड़े हो जाते, कभी मुख बड़ा हो जाता, कभी बहुत तीव्रगति से उतरती कला की सीढ़ी टप-टप करके उतर आते हैं, कभी माया के तूफान में उड़ जाते हैं, बैलेन्स नहीं रख सकते। अभी-अभी हँसते अभी-अभी रोते हैं। ऐसे बाप-दादा भी कई खेल देखते रहते हैं। जैसे सुनने में हँसी आती है तो करते समय स्वयं पर भी हँसी आ जाए तो समाप्त हो जाए। तो सुनाया ‘‘स्वाहा’’ नहीं करते।
सहयोग से स्वाहा
अगर किसी के कुछ पुराने संस्कार रह भी गये हैं वह स्वयं स्वाहा नहीं कर सकते तो संगठित रूप में सहयोगी बनो। कैसे? अगर करने वाला कर रहा है या बोल रहा है तो सुनने वाले, देखने वाले, देखें नहीं, सुने नहीं, तो उसका करना भी समाप्त हो जायेगा। कोई गीत गाने वाला गा रहा है, डान्स वाला डान्स कर रहा है, देखने वाला, सुनने वाला कोई न हो तो स्वत: ही समाप्त हो जायेगा। ऐसा सहयोग दो। इसको कहा जाता है ‘‘स्वाहा’’। जब ऐसे सहयोगी बनेंगे तब ही संगठित रूप में विश्व परिवर्तन कर सकेंगे। सेन्स के साथ इसेन्स भी चाहिए। लेकिन जब सम्पर्क में आते हो, कार्य-व्यवहार में आते हो, कर्म बन्धनी प्रवृत्ति वा शुद्ध प्रवृत्ति में आते हो तो सेन्स की मात्रा ज्यादा होती है इसेन्स की कम। सेन्स अर्थात् ज्ञान की पाइन्टस अर्थात् समझ। इसेन्स अर्थात् सर्व शक्ति स्वरूप, स्मृति और समर्थ स्वरूप। सिर्फ सेन्स होने के कारण ज्ञान को विवाद में ला देते हो। यह तो होगा ही, यह तो होना ही चाहिए। इसेन्स से शक्तियों के आधार पर ज्ञान के विस्तार को प्रैक्टिकल जीवन के सार में ले आते हो। इसीलिए विस्तार व विवाद खत्म हो जाता है। थोड़े समय में स्वाहा कर आहा मैं! और आहा मेरा बाबा! इसी में समा जाते हो। तो सेन्स और इसेन्स दोनों का बैलेन्स रखो तो हर सेकेण्ड स्वाहा होते रहेंगे। संकल्प भी सेवा प्रति ‘‘स्वाहा’’ बोल भी विश्व-कल्याण प्रति ‘‘स्वाह’’ हर कर्म भी विश्व परिवर्तन प्रति स्वाहा। तो अपनापन अर्थात् पुरानापन स्वाहा हो जायेगा। बाकी रह जायेगा - बाप और सेवा। तो समझा, क्या पुरूषार्थ करना है। अपने देह की स्मृति सहित-स्वाहा। तब एक सेकेण्ड में वायब्रेशन्स द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन कर सकेंगे। समझा?
ऐसे सदा समर्थ, सदा सर्व के परिवर्तन करने में सहयोगी, सेन्स और इसेन्स का बैलेन्स रखने वाले विश्व-परिवर्तन की एक ही धुन में रहने वाले, बाप और सेवा और कोई बात नहीं, ऐसी स्थिति में चलने वाले, ऐसे बाप समान महान आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
हुबली पार्टी - सदा बाप और सेवा में मगन रहते हो? जो सदा बाप और सेवा में तत्पर रहते हैं, उनकी निशानी क्या होगी? सदा विघ्न-विनाशक - कोई भी विघ्न उनकी लगन को मिटा नहीं सकते। कोई भी तूफान उस जागती ज्योति को बुझा नहीं सकते। ऐसी जागती-ज्योति हो? अखण्ड ज्योति। भक्ति में भी आपके चित्रों के आगे अखण्ड ज्योति जलाते हैं। क्यों जलाते हैं? चेतन्य स्वरूप में अखण्ड ज्योति स्वरूप रहे हो तब अखण्ड ज्योति का यादगार रहता है। ज्योति के आगे कोई आवरण तो नहीं आता, तूफान हिलाता तो नहीं हैं? अपना भी स्वरूप ज्योति, बाप भी ज्योति और घर भी ज्योति तत्व है। तो सिर्फ ज्योति शब्द भी याद रखो तो सारा ज्ञान आ जाता है। यही एक ‘‘ज्योति’’ शब्द की सौगात ले जाना तो सहज ही विघ्न-विनाशक हो जायेंगे! अच्छा - हुबली निवासियों ने अपने घर-घर में शिवालय बनाया है? पहले शिव के पुजारी रहे हो अभी स्वयं शिववंशी बन गये। अधिकारी बन गये ना। अभी कुछ भी माँगने की चीज़ रही नहीं, सर्व खज़ाने स्वत: प्राप्त हो गये ना! अब अधिकारी बन करके अनेकों को अधिकारी बनाने वाले हो, माँगने वाले नहीं। क्या करूँ - कैसे करूँ, यह सब पुकार समाप्त।
सार - अभी अन्त में सर्व ब्राह्मण आत्माओं की एक ही वृत्ति की अंगुली चाहिए, एक ही संकल्प की अंगुली चाहिए तब ही बेहद का विश्व-परिवर्तन होगा। जब संगठित रूप में पुराने संस्कार, स्वभाव व पुरानी चलन के तिल व जौ स्वाहा करेंगे तब यज्ञ की समाप्ति होगी।
23-11-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
नम्रता रूपी कवच द्वारा स्नेह और सहयोग की प्राप्ति
आज सेवाधारियों का ग्रुप है। मधुबन वासी अर्थात् सेवाधारी। जैसे ब्रह्मा बाप नम्बर वन विश्व-सेवाधारी है वैसे ही मधुबन निवासी अर्थात् बेहद के सेवाधारी। बेहद के सेवाधारी में बेहद के गुण होते हैं। जैसे बाप को देखा - देखना भी बेहद की दृष्टि से, बोल भी बेहद के अनहद बोल सुनना और सुनाना। सम्बन्ध और सम्पर्क में आना तो भी बेहद का सम्बन्ध, हर संकल्प में भी कि बेहद का कल्याण कैसे हो। संस्कार में भी बेहद का त्याग और बेहद की तपस्या, दो चार घण्टे की तपस्या नहीं। बेहद की तपस्या अर्थात् हर सेकेण्ड तपस्या-स्वरूप, तपस्वी मूर्त। मूर्त और सूरत से त्याग, तपस्या और सेवा - सदा साकार रूप में प्रत्यक्ष देखा। जैसे ब्रह्मा बाप मधुबन निवासी जिसको ‘मधुबन के बाबा कहते’ ऐसी धरती पर रहने वाले मधुबन निवासी व सेवाधारी ‘फालो फादर’ कर रहे हैं। लोग मधुबन वासियों के गुण गाते हैं और मधुबन वासी गुण मूर्त हैं - ऐसी बेहद की स्थिति में स्थित हो? अल्लाह अवलदीन के चिराग बनकर के चलते हो? अल्लाह अवलदीन का चिराग बहुत मशहूर है। जिस चिराग द्वारा जो देखना चाहें, जो पाना चाहें, वह देख और पा सकते हैं। मधुबन निवासी विशेष अल्लाह अवलदीन के चिराग हैं। सेकेण्ड में घर और राज्य दिखाने वाले अर्थात् मुक्ति, जीवनमुक्ति देने वाले। महिमा तो इतनी महान है लेकिन ऐसे हरेक अपने को महान समझ करके चलते हो? रिज़ल्ट में सबसे नम्बर वन मधुबनवासी होने चाहिए या हैं? जब तक ‘चाहिए’ शब्द हैं, ‘होना चाहिए’ तो विश्व की सर्व चाहनायें कैसे पूर्ण कर सकेंगे। जैसे कोई पावर फुल बॉम्ब गिरने से सारी ही धरती का परिवर्तन हो जाता है तो मधुबनवासियों को भी ऐसा अभ्यास का पावरफुल बॉम्बस मधुबन के अन्डरग्राउण्ड में तैयार करना चाहिए और उसकी रिहर्सल पहले यहाँ करनी चाहिए। जितनी जो पॉवरफुल वस्तु होती है उतनी अति सूक्ष्म होती है। होती छोटी-सी चीज़ है लेकिन कार्य बहुत बड़ा करती है। ऐसी कोई नई बात निकालो जो वायब्रेशन चारों ओर फैलें। ‘होना चाहिए’ यह एक ही संकल्प तो सभी का है लेकिन फिर होता क्यों नहीं है - उसका क्या कारण है? प्रैक्टिकल में कमी क्यों हो जाती? कौन सी ऐसी दीवार है जो ‘होना चाहिए’ के संकल्प को रूकावट डालती है। एक तरफ संकल्प उठता है कि ‘होना चाहिए’ दूसरी तरफ फिर यह भी संकल्प आता कि ‘यह तो अन्त समय होगा। अभी तो ऐसा ही चलेगा, अभी तो सभी का चलता है।’ ऐसे-ऐसे व्यर्थ संकल्पों की ईटों की दीवार खड़ी हो जाती है जो पुरूषार्थ की तीव्र गति को रोक लेती है। इसको पार करने के लिए एक दृढ़ संकल्प का हाई जम्प लगाओ वह कौन सा? हरेक समझे ‘मैं करके दिखाऊंगा।’ ‘चाहिए’ को ‘करके दिखाऊंगा’ ऐसा दृढ़ संकल्प एक-एक इन्डीविजुअल अपने साथ करे। दूसरे का न देखे न सुने। तो एक-एक मिल कर संगठन बन जायेगा।
एक दो मिलकर बारह हो जावेंगे ऐसा हाई जम्प लगाओ, तब ही बाप-समान बेहद के सेवाधारी बनेंगे। समझा, सेवाधारियों का क्या महत्व है? पहली सेवा यह है।
अलग-अलग ग्रुप बनाओ। जैसे शुरू में पुरुषार्थीयों के ग्रुप थे। हम - शरीक पुरुषार्थीयों के ग्रुप हों। उसमें अपने सप्ताह का प्लैन बनाओ। अमृतवेले क्या संकल्प रखेंगे, क्लास के समय विशेषता क्या लेंगे, कर्मणा समय क्या लक्ष्य रखेंगे, शाम के समय योग में क्या विशेष अटेन्शन रखेंगे, सैर करते हुए कौन-सी मन्सा सेवा द्वारा वायब्रेशन्स फैलायेंगे, रात को किस बात की चेकिंग करेंगे, ऐसे ग्रुप बना करके रेस करो। ऐसा दिल का उमंग होना चाहिए। प्रोग्राम से अल्प काल के लिए होता है और मन का संकल्प अविनाशी होता है। यह संकल्प उठना चाहिए कि करेंगे और रिज़ल्ट निकालेंगे तब चारों ओर यह वायब्रेशन्स फैलेंगे। एक समय में एक नहीं दो सेवायें करो मधुबन है ही सारे विश्व के अन्दर ऊंचा स्तम्भ। कहीं से भी देखो चाहे दूर से, चाहे नज़दीक से लेकिन स्तम्भ तो ऊंचा ही दिखाई देता है। ऊंचा स्तम्भ होने के कारण सभी की नज़र जाती है तो यह है विशेष बेहद की सेवा। ब्रह्मा बाप समान कदम-कदम चलना चाहिए। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा रात जाग करके भी वायब्रेशन्स फैलाने का मंथन करते थे। तो ऐसे सब बच्चों का मंथन चलना चाहिए। ऐसे नहीं कि जैसे कहेंगे प्रोग्राम मिलेगा तो करेंगे। नहीं। इस बात में करो और कराओ - इस बात में जो ओटे सो अर्जुन। सब को देखने से रह जावेंगे। इसलिए जो करेगा उसको सब फालो करेंगे। रोटी बनाते, कोई भी सेवा करते शक्तिशाली स्मृतिस्वरूप हो। मन्सा से विश्व की सेवा करो, विश्व-सेवाधारी एक काम नहीं डबल काम करते हैं। स्थूल में हाथ चलते रहें और मन्सा से शक्तियों का दान देते रहो। सदैव सेवा के समय यह ध्यान रखो कि गुण-मूर्त होकर सेवा करें तो डबल जमा हो जावेगा, सदैव डबल सेवा करो।
अपने को विश्व-परिवर्तन के निमित्त समझो हरेक समझें कि मैं निमित्त हूँ। जैसे भाषण में सुनाते हो ना कि अपने को बदलो तो विश्व बदल जायेगा। यह बात स्वयं के लिए भी है ना। दूसरे की गलती को देख स्वयं गलती न करो। दूसरे की गलती देखने में आती है लेकिन मैं भी गलती कर रही हूँ वह दिखाई नहीं पड़ती। समझो एक गलत बोल रहा है लेकिन उसके संग के रंग में खुद भी गलत बोलते हैं तो संग के रंग का असर हो गया ना। अगर कोई गलती करता है तो हम राइट में रहें, उसके संग के प्रभाव में न आएँ, प्रभाव में आने के कारण अलबेले हो जाते हो। तो इस बात में पाण्डव आगे जायेंगे या शक्तियाँ। सिर्फ एक ज़िम्मेवारी उठा लो कि मैं राइट के मार्ग पर ही रहूँगी। राँग को देख कर राँग नहीं। अगर दूसरा राँग करता है तो उस समय समाने की शक्ति युज़ करो। अगर यही संकल्प हरेक कर ले तो विश्व का परिवर्तन सहज ही हो जायेगा। क्या यह नहीं कर सकते हो? मतलब कोई-नकोई प्लैन बनाओ। नये वर्ष में कोई नया कार्य करके दिखाना। एक दूसरे को श्रेष्ठ भावना से सहयोग दो। किसी की गलती को नोट न करो। लेकिन उसको सहयोग का नोट दो अर्थात् सहयोग से भरपूर कर दो, शक्तिवान बना दो। इसने यह किया, यह ऐसा करता - यह देखो ही नहीं, सुनो ही नहीं, नहीं तो अलबेलेपन के संस्कार पक्के हो जायेंगे। दूसरे को देखेंगे, दूसरे की सुनेंगे तो स्वयं अलबेले हो जायेंगे।
समय के प्रमाण अब व्यर्थ के नाम-निशान को भी खत्म करो। न व्यर्थ बोल न व्यर्थ कर्म, न व्यर्थ संग। व्यर्थ संग भी समय और शक्ति खत्म कर देता है। तो इस वर्ष कौनसा झण्डा बुलन्द करेंगे? कोई कितना भी आपके बीच कमी ढूँढने की कोशिश करे लेकिन ज़रा भी संस्कार-स्वभाव का टक्कर दिखाई न दे। अगर आज सभी यह दृढ़ संकल्प करके व्यर्थ के रावण को जला दें तो क्या हो जायेगा? सच्ची दीपावली। ऐसी प्रतिज्ञा करो। अगर कोई गाली भी दे, इनसल्ट भी करे, आप सेन्ट (Saint) बन जाओ। कोई ग्लानी करे, आप फूलों की वर्षा करो। यह नहीं ऐसा कहा इस लिए ऐसा हुआ। उसने कुछ भी किया, अगर राँग भी किया तो आप राइट रहो। मानो किसी ने 10 बोला और आप ने एक बोला तो कमल पुष्प तो नहीं हुए ना। बूँद तो पड़ गई ना। अगर आप से कोई टक्कर लेता है तो आप उसे अपने स्नेह का पानी दो, इससे अग्नि समाप्त हो जायेगी। अगर कहते - ‘यह क्यों’ ‘ऐसा क्यों’ तो उस पर तेल डाल देते हो। सदेव नम्रता की ड्रेस पड़ी रहे। यह नम्रता हैं कवच। कवच उतार देते हो। जहाँ नम्रता होगी वहाँ स्नेह और सहयोग अवश्य होगा। जहाँ स्नेह और सहयोग है वहाँ तेल नहीं डालते। तो हरेक क्या करेंगे इस वर्ष?
संस्कार तो भिन्न-भिन्न रहेंगे ही लेकिन उन संस्कारों का अपने ऊपर प्रभाव न हो। संस्कार तो अन्त तक किस के दासी के रहेंगे, किसी के राजा के। ‘संस्कार बदल जाएँ’ यह इन्तज़ार न करो लेकिन मेरे ऊपर किसी का प्रभाव न हो। क्योंकि एक तो हरेक के संस्कार भिन्न-भिन्न हैं, दूसरा कोई-न-कोई माया का रूप बनकर भी आते हैं। यह तो खत्म होगा ही नहीं लेकिन उसमें स्वयं साक्षी और कमल पुष्प के समान सेफ रहें, यह तो कर सकते हो? बोलने वाला बोले लेकिन सुनने वाल न सुने, यह तो हो सकता है ना! मर्यादा की लकीर के अन्दर रहकर कोई भी बात का फैसला करो। संस्कार भिन्नभिन्न होते हुए भी टक्कर न हो, इसके लिए नालेज़फुल हो जाओ। जब कहते हो हम विश्व-कल्याणकारी हैं तो जरूर कोई अकल्याण वाले भी हैं तब तो आप कल्याणकारी बनेंगे। अगर अकल्याण वाले ही न हों तो किसके कल्याणकारी बनेंगे। अगर कोई कुछ राँग कर रहा है तो उसको परवश समझ कर रहम की दृष्टि से परिवर्तन करो। डिसकस नहीं करो। अगर कोई पत्थर से रूक जाता है, तो अपना काम है पास करके चले जाना या उसको भी साथी बना कर पार ले जाओ। अगर इतनी हिम्मत नहीं है तो खुद तो नहीं रूको। क्रास करते हुए चलते जाओ। यह अटेन्शन चाहिए। अगर देखना है तो विशेषता देखो। छोड़ना है तो कमियों को छोड़ो। सम्पर्क में आना पड़ता है, देखना पड़ता है तो विशेषता ही दिखाई दे, नहीं तो बाप को देखो।
हरेक यही संकल्प ले कि हमें शान्ति की, शक्ति की किरणे फैलानी हैं, तपस्वी मूर्त बनकर रहना है, एक दूसरे को मन्सा से वा वाणी से भी अब सावधान करने का समय नहीं, अब मन्सा शुभ भावना से एक दूसरे के सहयोगी बनकर आगे बढ़ो और बढ़ाओ।’’
26-11-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
प्रीत की रीति
बाप दादा सर्व बच्चों की याद और प्यार का रिटर्न देने के लिए बच्चों के समान साकार रूप में आते हैं। क्योंकि समान बनना ही स्नेह का रिटर्न है। बाप बच्चों के सदा स्नेही और सदा के आज्ञाकारी हैं। बच्चे बुलाते हैं और बाप आ जाते हैं, समान बन जाते हैं। बाप परकाया प्रवेश होकर भी प्रीत की रीति निभाने आ जाते हैं। अब बच्चों को क्या करना है? वैसे तो सब बच्चे स्नेही हैं, मधुबन निवासी बनना ही स्नेह का रिटर्न है। दूरदूर से भाग आना, यह भी स्नेह है। सम्पूर्ण स्नेह का रिटर्न क्या है? स्नेही तो हो। साथसाथ बाप का भी स्नेह है। सदा एक संकल्प है कि सर्व बच्चे बाप समान बन जाएं। जैसे बाप आप सबके समान, स्नेह के कारण, साकार वतन निवासी, साकार रूपधारी बन जाते हैं वैसे आप सब बाप-समान आकारी अव्यक्त वतन निवासी बनो या निरकारी बाप के गुणों समान सर्व गुणों में भी मास्टर बन जाओ। इसको कहा जाता है सम्पूर्ण स्नेह का रिटर्न। ऐसे सम्पूर्ण स्नेह का रिटर्न देने वाले बने हो या बनना है? बने जरूर हो लेकिन नम्बरवार।
आज बाप-दादा सर्व स्नेही बच्चों का खेल देख रहे थे। क्या खेल होगा? खेल देखना तो आपको भी अच्छा लगता है। क्या देखा? अमृतबेले का समय था। हरेक आत्मा, जो पक्षी समान उड़ने वाली है अथवा रॉकेट की गति से भी तेज़ उड़ने वाली है, आवाज़ की गति से भी तेज़ जाने वाली है, सब अपने-अपने साकार स्थानों पर, जैसे प्लेन एरोड्रोम पर आ जाते हैं वैसे सब अपने रूहानी एरोड्रोम पर पहुँच गये। लक्ष्य और डायरेक्शन सबका एक ही था। लक्ष्य था उड़कर बाप समान बनने का और डायरेक्शन था एक सेकेण्ड में उड़ने का। क्या हुआ? जैसे साइन्स के साधन एरोप्लेन जब उड़ते हैं तो पहले चेकिंग होती है फिर माल भरना होता है। जो भी उसमें चाहिए - जैसे पेट्रोल चाहिए, हवा चाहिए, खाना चाहिए, जो भी चाहिए, उसके बाद धरती को छोड़ना होता है फिर उड़ना होता है। ब्राह्मण आत्मा रूपी विमान भी अपने स्थान पर तो आ ही गये। लेकिन जो डायरेक्शन था अथवा है एक सेकेण्ड में उड़ने का, उसमें कोई चेकिंग करने में रह गये। मैं आत्मा हूँ, शरीर नहीं हूँ - इसी चेकिंग में रह गये और कोई ज्ञान के मनन द्वारा स्वयं को शक्तियों से सम्पन्न बनाने में रह गये। मैं मास्टर ज्ञानस्वरूप हूँ, मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ - इस शुद्ध संकल्प तक रहे, लेकिन स्वरूप नहीं बन पाये। तो दूसरी स्टेज भरने तक रह गये और कोई फिर भरने में बिज़ी होने के कारण उड़ने से रह गये। क्योंकि शुद्ध संकल्प में तो रमण कर रहे थे लेकिन यह देह रूपी धरती को छोड़ नहीं सकते थे। अशरीरी स्टेज पर स्थित नहीं हो पाते थे। बहुत चुने हुए थोड़े से बाप के डायरेक्शन प्रमाण सेकेण्ड में उड़कर सूक्ष्मवतन या मूलवतन में पहुँचे। जैसे बाप प्रवेश होते हैं और चले जाते हैं, तो जैसे परमात्मा प्रवेश होने योग्य हैं वैसे मरजीवा जन्मधारी ब्राह्मण आत्मायें अर्थात् महान आत्मायें भी प्रवेश होने योग्य हैं। जब चाहो कर्मयोगी बनो, जब चाहो परमधाम निवासी योगी बनो, जब चाहो सूक्ष्मवतन वासी योगी बनो। स्वतन्त्र हो। तीनों लोकों के मालिक हो। इस समय त्रिलोकीनाथ हो। तो नाथ अपने स्थान पर जब चाहें तब जा सकते हैं।
एक सेकेण्ड में उड़ने का सहज तरीका
कई बच्चों का एक संकल्प पहुँचता है कि बाप तो निर्बन्धन हैं और हमें तो देह का बन्धन है, कर्म का बन्धन है। लेकिन बाप-दादा यह क्वेश्चन पूछते हैं अब तक क्या देह सहित त्याग नहीं किया हैं? पहला-पहला वायदा है सब बच्चों का कि तन-मन-धन तेरा न कि मेरा। जब तेरा है, मेरा है ही नहीं तो फिर बन्धन काहे का? यह तो लोन पर बापदादा ने दिया है। आप ट्रस्टी हो, न कि मालिक। जब मरजीवा बन गये तो 83 जन्मों का हिसाब समाप्त हो गया। अब यह नया 84वाँ जन्म है। इस जन्म की तुलना और जन्मों से कर ही नहीं सकते हो। इस दिव्य जन्म का बन्धन नहीं, सम्बन्ध है। कर्म बन्धनी जन्म नहीं, यह कर्मयोगी जन्म हैं। इस अलौकिक दिव्य जन्म में ब्राह्मण आत्मा स्वतन्त्र है न कि परतन्त्र। तेरे को मेरे में लाते हो, तब परतन्त्र होते हो। मेरा पहला हिसाब, मेरा पहला संस्कार आया कहाँ से? अगर ऐसे स्वतन्त्र होकर रहो कि यह लोन मिली हुई देह है तो सेकेण्ड में उड़ सकते हो। जो वायदे करते हो कि जहाँ बिठायेंगे वहाँ बैठेंगे, जो कहेंगे वह करेंगे। तो बाप की बन्धनी आत्मा हो या कर्म बन्धनी आत्मा हो? यह भी बाप ने डायरेक्शन दिया है कि कर्म करो। आप स्वतन्त्र हो, चलाने वाला चला रहा है, आप चल रहे हो। आपकी सरस्वती माँ की यह विशेष धारणा थी ‘हूक्मी हुक्म चलाये रहा’ तब नम्बर आगे ले लिया। फॉलो फादर और मदर।
माया का रॉयल रूप और उस पर विजय प्राप्त करने की विधि
‘कर्मभोग है’, ‘कर्मबन्धन है’,’संस्कारों का बन्धन है’, ‘संगठन का बन्धन है’ - इस व्यर्थ संकल्प रूपी जाल को अपने आप ही इमर्ज करते हो और अपने ही जाल में स्वयं फँस जाते हो, फिर कहते है कि अभी छुड़वाओ। बाप कहते हैं कि तुम हो ही छूटे हुए। छोड़ो तो छूटो। अब निर्बन्धनी हो या बन्धनी हो। पहले ही शरीर छोड़ चुके हो, मरजीवा बन चुके हो। यह तो सिर्फ विश्व की सेवा के लिए शरीर रहा हुआ है, पुराने शरीरों में बाप शक्ति भर कर चला रहे हैं। ज़िम्मेवारी बाप की है, फिर आप क्यों ले लेते हो। ज़िम्मेवारी सम्भाल भी नहीं सकते हो लेकिन छोड़ते भी नहीं हो। ज़िम्मेवारी छोड़ दो अर्थात् मेरा-पन छोड़ दो। मेरा पुरूषार्थ, मेरा इन्वेन्शन, मेरी सर्विस, मेरी टचिंग, मेरे गुण बहुत अच्छे हैं, मेरी हैंडलिंग-पॉवर बहुत अच्छी है। मेरी निर्णय शक्ति बहुत अच्छी है। मेरी समझ ही यथार्थ है। बाकी सब मिसअन्डरस्टैन्डिंग में हैं। यह मेरा-मेरा आया कहाँ से? यही रॉयल माया है, इससे मायाजीत बन जाओ तो सेकेण्ड में प्रकृति जीत बन जावेंगे। प्रकृति का आधार लेंगे लेकिन अधीन नहीं बनेंगे। प्रकृतिजीत ही विश्व जीत व जगतजीत है। फिर एक सेकेण्ड का डायरेक्शन अशरीरी भव का सहज और स्वत: हो जावेगा। खेल क्या देखा। तेरे को मेरे बनाने में बड़े होशियार हैं। जैसे जादू मन्त्र से जो कोई कार्य करते हैं तो पता नहीं पड़ता कि हम क्या कर रहे हैं। यह रॉयल माया भी जादू-मन्त्र कर देती हैं जो पता ही नहीं पड़ता कि हम क्या कह रहे हैं। अब क्या करेंगे? अब कर्म बन्धनी से कर्म योगी समझो। अनेक बन्धनों से मुक्त एक बाप के सम्बन्ध में समझो तो सदा एवर-रेडी रहेंगे। संकल्प किया और अशरीरी बना, यह प्रैक्टिस करो। कितना भी सेवा में बिज़ी हों, कार्य की चारों ओर की खींचतान हो, बुद्धि सेवा के कार्य में अति बिज़ी हो - ऐसे टाइम पर अशरीरी बनने का अभ्यास करके देखो। यथार्थ सेवा का कभी बन्धन होता ही नही। क्योंकि योग युक्त, युक्तियुक्त सेवाधारी सदा सेवा करते भी उपराम रहते हैं। ऐसे नहीं कि सेवा ज्यादा है इसलिए अशरीरी नहीं बन सकते। याद रखो मेरी सेवा नहीं बाप ने दी है तो निर्बन्धन रहेंगे। ‘ट्रस्टी हूँ, बन्धन मुक्त हूँ’ ऐसी प्रैक्टिस करो। अति के समय अन्त की स्टेज, कर्मातीत अवस्था का अभ्यास करो तब कहेंगे तेरे को मेरे में नहीं लाया है। अमानत में ख्यानात नहीं की है समझा, अभी का अभ्यास क्या करना है? जैसे बीच-बीच में संकल्पों की ट्रैफिक का कन्ट्रोल करते हो वैसे अति के समय अन्त की स्टेज का अनुभव करो तब अन्त के समय पास विद् आनर बन सकेंगे।
ऐसे सदा बन्धन मुक्त, बाप-समान जब चाहें प्रकृतिजीत, संकल्प और संस्कार में भी ट्रस्टी सदा देह की स्मृति से भी उपराम, ऐसे विश्व-उपकारी विश्व-कल्याणकारी बच्चों को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।
पार्टियों के साथ
अव्यक्त बाप-दादा की मुलाकात (बाम्बे और पूना ज़ोन)
स्वयं द्वारा बाप का साक्षात्कार कराने के लिए मस्तक पर भाग्य का सितारा सदा चमकता रहे
सदा अपने मस्तक पर भाग्य का सितारा चमकता हुआ दिखाई देता है? या सितारे की चमक के आगे कभी-कभी माया के बादल भी आ जाते हैं? अगर बादल होते हैं तो सितारे छिप जाते हैं और बादल नहीं होते तो बहुत सुन्दर चमकते रहते हैं। ऐसे आपके भाग्य का सितारा सदा चमकता है या बादल आ जाते हैं? ब्राह्मण बने और सितारा चमका, लेकिन सितारे के आगे बादल न आएं। सितारे की चमक छिपने न दें, यह है अटेन्शन। जैसे फोटो निकालते हैं, अगर बादल आगे आ जाएं तो फोटो ठीक निकलेगा? फीचर्स ही नहीं दिखाई देंगे, ऐसे ही अगर चमकते हुए सितारे के आगे बादल आ जाएं तो साक्षात्कार कैसे कराएंगे। आप तो बाप को प्रत्यक्ष कराने वाले अर्थात् स्वयं द्वारा बाप का साक्षात्कार कराने वाले हो। बादलों के बीच से कैसे साक्षात्कार होगा? तो साक्षात्कार कब करायेंगे? क्या जब विनाश होगा तब, अभी ही ऐसा बनना पड़ेंगा अगर बहुत समय का बादलों को दूर करने का अभ्यास नहीं होगा तो बादल भी उसी समय लास्ट घड़ी आयेंगे। साक्षात्कार के लिए खड़े हों और बादल आ जाएं तो सारा प्रोग्राम ही अपसेट हो जायेगा। अब ऐसे अभ्यासी बनो जो दूर से ही बादल भाग जाएं। जैसे साइन्स के साधन तूफान को, पहाडों के रास्ते को चेन्ज कर सकते हैं ना। वह साइन्स तो अपूर्ण है। साइन्स कभी सम्पूर्ण हो नहीं सकती क्योंकि मनुष्य-मत है। कभी नीचे कभी ऊपर होती रहती है। तो अनलॉफुल हो गई ना। बाप की श्री मत पर चलने वाले तो जो चाहें वह कर सकते हैं। तो विघ्नों को दूर करने का बहुत समय का अभ्यास चाहिए। पुरूषार्थ तो सब कर रहे हो लेकिन पुरूषार्थ की स्पीड कौन-सी है? पुरुषार्थी हूँ, इसमें खुश नहीं होना लेकिन किस स्पीड का पुरूषार्थ है? काम हो एक सेकेण्ड का आप करो दो घंटे में, तो टाइम तो पूरा हो जायेगा ना। प्रश्नों का उत्तर ठीक दे लेकिन टाइम पर न दे तो पास होंगे या फेल? चल रहे हैं, कर रहे हैं इससे अभी काम नहीं चलेगा। इसमें भी खुश हो जाना कि रोज़ क्लास तो करते हैं, रेगुलर पन्क्चुअल हैं, सेवा भी करते हैं लेकिन जो बाप का डायरेक्शन है - निरंतर योगी, सहजयोगी - उसमें रेगुलर और पन्क्चुअल बनो। बाप के पास वह प्रेजेन्ट मार्क पड़ेगी ना। उसकी भी मार्क्स मिलती हैं लेकिन नम्बर आगे तो इसी प्रजेन्ट मार्क से बनेंगे। कौन-सी माला में आने वाले हो? अगर कभी-कभी इसी स्थिति में स्थित रहते हो तो कभी-कभी पूजने वाली माला में आयेंगे, पीछे का मनका बनेंगे। माताएं कौन-सी सेवा करेंगी? सब नम्बर बन जायेंगी? नम्बर वन भी ग्रुप बनेगा। जितना सर्विस करो उतना ही लाख गुणा, पदम गुणा होकर मिलेगा। इसलिए यह संगमयुग है करने और पाने का। अभी-अभी करना, अभी-अभी पाना। प्रवृत्ति में रहते भी डबल सेवा करो, हैन्डस भी बन जायेंगे और सेन्टर भी खुल जायेंगे। सरेन्डर हैन्डस तो कम ही हैं, वह चक्कर लगाते रहें लेकिन सम्भालने वाले प्रवृत्ति वाले हों, ऐसे भी सेन्टर खुल सकते हैं। अगर बच्चों का, गृहस्थी का झंझट है तो कमरा अलग लेकर सम्भालो। अगर बचचों आदि की खिट-खिट नहीं है, कोई विघ्न-रूप नहीं हैं तो घर में भी सेन्टर सम्भालो।
(परिस्थितियाँ आना भी गुड-लक है क्योंकि इससे फाउन्डेशन मज़बूत होता है) :-
सदा अचल-अडोल रहते हो? कल्प पहले भी रावण सेना ने हिलाने की कोशिश की लेकिन अंगद अचल रहे। परिस्थितियाँ आयेंगी और चली जायेंगी, स्वस्थिति सदा आगे बढ़ायेगी। परिस्थिति के पीछे भागने से स्वस्थिति चली जायेगी। कोई भी परिस्थिति आये तो आप हाई जम्प दो, इससे पार हो जायेंगे। परिस्थिति आना भी गुड-लक है। यह पेपर फाउन्डेशन को मज़बूत करने का साधन है। यह निश्चय को हिलाकर देखने के लिए आते है। एक बारी अंगद समान मज़बूत हो जायेंगे तो यह नमस्कार करेंगे। पहले विकराल रूप से आयेंगे और फिर दासी रूप से आयेंगे। चैलेन्ज करो हम महावीर हैं। पानी के ऊपर लकीर ठहरती है क्या? आप मास्टर ज्ञान सागर के उपर कोई परिस्थिति वार कर नहीं सकती। लकीर डाल नहीं सकती।
3 - एक रस स्थिति बनाने का साधन - एक बल एक भरोसा:- सदा ‘एक बल एक भरोसा’ इसी लगन में रहते हो! जो सदा एक भरोसे में रहे हैं वही सदा एकरस रहते हैं। और कोई भी रस ऐसी आत्माओं को आकर्षित नहीं कर सकता। ऐसी आत्मायें सदा स्वयं भी लाइट हाऊस बन निर्विध्न होकर चलती हैं और अनेकों के निमित्त रास्ता दिखाने वाली बनती हैं। तो रोज़ कितनी आत्माओं को लाइट हाउस बनकर रास्ता दिखाते हो? यही ब्राह्मणों का कर्तव्य है, यही धन्धा अथवा व्यवहार है।
4 - अनुभवी मूर्त के द्वारा बाप की सूरत की प्रत्यक्षता - सदा बाप के गुणों में अनुभव मूर्त्त हो? जो बाप के गुण गाते हो उन सबके अनुभवी हो ना? आनन्द का सागर बाप है तो उसी आनन्द के सागर की लहरों में लहराने वाले अनुभवी मूर्त्त। जो सदा सर्व गुणों के अनुभवी हैं ऐसे अनुभवी मूर्त द्वारा बाप की सूरत प्रत्यक्ष होती है। आप सब बाप को प्रत्यक्ष करने वाले हो। इतने महान हो जो परम आत्मा को भी प्रत्यक्ष करने वाले हो। हरेक की सूरत से बाप के गुण दिखाई दें। जो भी सम्पर्क में आये उसे आनन्द, प्रेम, सुख सब गुणों की अनुभूति हो।
5 - पीछे आने वालों का भाग्य भी कम नहीं, बहुत श्रेष्ठ है - कैसे? पीछे आने वाले बनी बनाई पर आये हैं। जैसे दादे परदादे बीज डालते हैं और पौत्रे धौत्रे खाते हैं। तो पीछे आने वाले फल खाने वाले हैं। अभी कितने अच्छे साधन, कितने अच्छे स्थान बने बनाये मिले हैं। मंथन करने वाले दूसरे हैं आप मक्खन खाने वाले हो। इसलिए सदा खुश हो। सदा अपने भाग्य को और देने वाले दाता को याद रखो। बापदादा सदा कहते हैं छोटे सुभानअल्ला होते हैं अर्थात् समान अल्लाह।
28-11-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
प्रवृत्ति में रहते भी निवृत्ति में कैसे रहें?
आज बाप-दादा अपने कल्प पहले वाले सिकीलधे कोटों में से कोई, बाप को जानने और वर्सा पाने वाले किसी विशेष ग्रुप को देख रहे थे। कौंन-सा ग्रुप होगा? आज विशेष प्रवृत्ति में रहने वाले बच्चों को देख रहे थे। चारों ओर बच्चों की प्रवृत्ति के स्थान भी देखे। व्यवहार के स्थान भी देखे। परिवार भी देखे और आज की तमोगुणी प्रकृति और परिस्थितियों का प्रभाव क्या-क्या पड़ता है, राज्य का प्रभाव क्या-क्या पड़ता है यह हाल-चाल देख रहे थे। देखते-देखते कई बच्चों की कमाल भी देखी कि कैसे प्रवृत्ति में रहते हुए भी निवृत्त रहते हैं। प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों का बैलेन्स रखने वाले बहुत अच्छा श्रेष्ठ पार्ट बजा रहे हैं। सदा बाप के साथी और साक्षी हो बहुत अच्छा पार्ट बजाते, विश्व के आगे प्रत्यक्ष प्रमाण बने हुए हैं। सदा बाप की याद की छत्रछाया के अन्दर किसी भी प्रकार की माया के वार से व माया के अनेक आकर्षण से सदा सेफ रहने वाले हैं।
ऐसे विश्व से न्यारे और निराले बच्चों को देख कर बाप भी बच्चों के गुण गाते हैं। कई ऐसे बच्चे देखे जो रहते प्रवृत्ति के स्थान पर हैं। लेकिन सच्चे बच्चे होने के कारण साहेब उन पर सदा राज़ी रहते हैं। न्यारे और प्यारे के राज़ को जानने के कारण सदा स्वयं भी स्वयं से राज़ी रहते हैं। प्रवृत्ति को भी राज़ी रखते हैं। साथ-साथ बाप-दादा भी सदैव उन पर राज़ी रहते हैं। ऐसे स्वयं को और सर्व को राज़ी रखने वाले राज़ युक्त बच्चों को कभी भी अपने प्रति व अन्य किसी के प्रति किसी को काज़ी बनाने की ज़रूरत नहीं रहती। क्योंकि केस ही नहीं जो काज़ी बनाना पड़े। कई बार सुना है ना ‘‘मिया बीबी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी। अपने ही संस्कारों के केस अपने पास बहुत होते हैं, जिस पर अपने अन्दर ही बहस चलती रहती है। राइट है या रांग है, होना चाहिए या नहीं होना चाहिए, कहाँ तक होना चाहिए, यह बहस चलती रहती है। और जब अपने आप फैसला नहीं कर पाते तो दूसरों को काज़ी बनाना पड़ता है। फिर किसी की छोटी बात होती है, किसी की लम्बी होती है। अगर बाप और आप दोनों मिलकर फैसला कर दो तो सेकेण्ड में समाप्त हो जाए। और किसी को काज़ी या वकील या जज बनाने की ज़रूरत ही नहीं।
आग फैलायी नहीं जाती बुझाई जाती है।
प्रवृत्ति का कायदा होता है कि अगर कोई भी बात प्रवृत्ति में होती है तो माँ-बाप बच्चों तक भी पहुँचने नहीं देते हैं! वहाँ ही स्पष्ट कर समा देते हैं अर्थात् समाप्त कर देते हैं। अगर तीसरे तक बात गई तो फैलेगी ज़रूर। और जितना कोई बात फैलती है उतना बढ़ती है। जैसे स्थूल आग जितनी फैलेगी उतना नुकसान करेगी। यह भी छोटीमोटी बातें भिन्न-भिन्न प्रकार के विकारों की आग है। आग को वहाँ ही बुझाया जाता फैलाया नहीं जाता। प्रवृत्ति में बाप और आप के सिवाए तीसरी समीप आत्मा अर्थात् परिवार की आत्माओं में भी बात फैलनी नहीं चाहिए। मियाँ बीबी राज़ी हो जाओ। नाराज़ अर्थात् राज़ को न जानने के बराबर। कोई-न-कोई ज्ञान का राज़ मिस करते हो तब नाराज़ होते हो। चाहे स्वयं से या दूसरों से। तो वकील करने से वही छोटी बात बड़ा केस बन जाती है। इसलिए तीसरे को सुनाना अर्थात् घर की बात को बाहर निकालना। जैसे आज कल की दुनिया में जो बड़े केस होते हैं वह अखबार तक फैल जाते हैं तो यहाँ भी ब्राह्मण परिवार के अखबार में पड़ जाते हैं। तो क्यों नहीं आपस में फैसला कर लो। बाप जाने और आप जानें तीसरा कोई नहीं। कोई-कोई बच्चों का संकल्प पहुँचता है कि ‘‘मियाँ बीबी तो ठीक लेकिन मियाँ निराकार और बीबी साकार तो मेल कम होता है। इसलिए कभी मिलन होता है कभी नहीं होता है - कभी रूह-रूहान पहुँचती है कभी नहीं पहुँचती अर्थात् रेसपान्स नहीं मिलता है। इसलिए काज़ी करना पड़ता है।’’ लेकिन मियाँ ऐसे मिला है जो बहुरूपी है। जो रूप आप चाहो तो एक सेकण्ड में जी हज़ूर कह हाज़र हो सकते हैं लेकिन आप भी बाप समान बहुरूपी बनो।
जैसा देश वैसा भेष
बाप तो एक सेकेण्ड में आप को उड़ाकर वतन में ले जावेंगे, बाप वतन से आकार में आते हैं, आप साकार से आकार में आओ। मिलने के स्थान पर तो पहुँचों। स्थान भी तो ऐसा बढ़िया चाहिए ना! सूक्ष्म वतन आकारी वतन मिलने का स्थान है। समय भी फिक्स है, एप्वाइंटमेंट भी है, स्थान भी फिक्स है, फिर क्यों नहीं मिलन होता? सिर्फ गलती क्या करते हो कि मिट्टी के साथ वहाँ आना चाहते हो। यह देह मिट्टी है। जब मिट्टी का काम करना है तब करो। लेकिन मिलने के समय इस देह के भान को छोड़ना पड़े। जो बाप की ड्रेस वह आप की ड्रेस होनी चाहिए। समान होना चाहिए ना! जैसे बाप निराकार से आकारी वस्त्र धारण करते हैं। आकारी और निराकारी बाप-दादा बन जाते हैं - आप भी आकारी फरिश्ता ड्रेस पहन कर आओ। चमकीली ड्रेस पहन कर आओ, तब मिलन होगा। ड्रेस पहनना नहीं आता है क्या? ड्रेस पहनो और पहुँच जाओ यह ऐसी ड्रेस है जो माया के वाटर या फायर प्रूफ है। इस पुरानी दुनिया के वृत्ति और वायब्रेशन प्रूफ है। इतनी बढ़िया ड्रेस आपको दी है फिर वह एप्वाइंटमेंट के टाइम पर भी नहीं पहनते। पुरानी ड्रेस से ज्यादा प्रीत है क्या? जब दोनों समान चमकीली ड्रेस वाले होंगे और चमकीले वतन में होंगे तब अच्छा लगेगा। एक पुरानी ड्रेस वाला और एक चमकीली ड्रेस वाला, जोड़ी मिल नहीं सकती, इस लिए अनुभव नहीं होता। पुराने वायब्रेशन्स इन्टरफियर कर देते हैं। इसलिए आपसी रूह-रूहान का रेसपान्स नहीं मिलता है। क्लीयर समझ में नहीं आता। इसलिए औरों का अल्पकाल का सहारा लेना पड़ता है।
काज़ी को छोड़ो और राज़ी हो जाओ
वैसे यह मियाँ बीबी का नाता इतना स्नेही और समीप का है जो इशारे से भी समझ लें। इशारे से भी सूक्ष्म संकल्प में ही समझ लें। यह ऐसा प्रीत का नाता है। फिर बीच में तीसरे को क्यों डालते हो? तीसरे को डालना अर्थात् अपनी इनर्जा और टाइम को वेस्ट करना। हाँ, यह रूह-रूहान करो कि मेरा मिलन कैसे हुआ, मेरी रूह-रूहान क्या हुई, हम-शरीक सहयोगी बन आपस मे रूह-रूहान करो। काज़ी बना के रूह-रूहान नहीं करो। केस लेकर रूह-रूहान नहीं करो - तो काज़ी को छोड़ दो और राज़ी हो जाओ। जब पसन्द कर लिया फिर बीच में किसी को क्यों डालते हो? बीच में डालते हो तो बीच भँवर में आ जाते हो। बचाने की मेहनत फिर भी मियाँ को ही करनी पड़ती है इसलिए विश्व-कल्याण का कार्य रह जाता है। फिर पूछते हैं विनाश कब होगा? अब बीबियाँ तैयार ही नहीं तो विनाश क्या करे। समझा, विनाश क्यों नहीं हो रहा? ड्रेंस का परिवर्तन करने नहीं आता तो विश्व को कैसे परिवर्तन करेंगे। अच्छा, अब प्रवृत्ति वालों का हाल- चाल फिर सुनावेंगे। आज तो आप की प्रवृत्ति का हाल सुनाया।
ऐसे सदा राज़ युक्त, युक्तियुक्त, सदा समीप सम्बन्ध में रहने वाले, सदा राज़ी रहने वाले और सर्व को राज़ी रखने वाले, सदा मिलन मनाने वाले, ऐसे सदा बाप के साथी और साक्षी बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।
टीचर्स के प्रति अव्यक्त महावाक्य :- टीचर्स अर्थात् बाप समान सर्वश्रेष्ठ आत्मायें। टीचर्स को हर वर्ष कोई नया प्लैन बनाना चाहिए। सेवा के प्लैन तो स्टूडेन्ट्स भी बनाते हैं। लेकिन टीचर्स को विशेष क्या करना है? अब ऐसा अपना संगठन बनाओ जो सबके मुख से यह निकले कि यह अनेक होते भी एक हैं। जैसे यहाँ दीदी-दादी दो हैं लेकिन कहते हैं दोनो एक हैं तो यह प्रभाव पड़ता है ना। जब ये दो होते हुए भी एक-समान एक दूसरे को रिगार्ड देते, दो होते हुए एक दिखा रही हैं तो आप अनेक होते हुए एक का प्रमाण दे सकते हो। जैसे कहते हैं कि सब की वाणी एक ही होती है, जो एक बोलती वही सब बोलते हैं, ड्रैस भी एक जैसी, वाणी सबकी एक ही ज्ञान के पॉइन्ट्स की होती, भले सुनाने का ढंग अलग हो, सार एक ही होता है। वैसे ऐसा ग्रुप बनाओ जो सब कहें यह अनेक नहीं हैं, एक हैं। यही विशेषता है ना। तो एक्जैम्पल कोई निमित्त बनें जिसको फिर सब फालो करेंगे। इसमें जो ओटे सो अर्जुन। तो कौन अर्जुन बनेगा? जो अर्जुन बनेंगे उसे फर्स्ट प्राइज़ मिलेगी। सिर्फ एक बात का ध्यान देना पड़ेगा। कौनसी बात? क्या करना पड़ेगा? सिर्फ एक दूसरे को सहयोग दें, विशेषता देखते हुए, कमज़ोरियों को न देखना, न सुनना, यह अभ्यास पक्का करना पड़ेगा। देखते हुए भी कमज़ोरी को समाकर सहयोग देते रहें। तिरस्कार नहीं करें लेकिन तरस की भावना रखें। जैसे दु:खी आत्माओं के ऊपर रहमदिल बनते हो वैसे कमज़ोरियों के उपर भी रहमदिल बनो। अगर ऐसे रहमदिल बन गये तो क्या हो जायेगा? अनेक होते हुए भी एक बन जायेंगे। वैसे भी लौकिक में देखो - जो समझदार परिवार होते हैं, स्नेही परिवार होते हैं वह क्या करते हैं, एक दूसरे की कमज़ोरी की बात समाकर एक-दूसरे के सहयोगी बनकर बाहर अपना नाम बाला करते हैं। अगर कोई परिवार में गरीब होता है तो उसको मदद देकर के भरपूर कर देते हैं। यह भी परिवार है। अगर कोई संस्कार के वश हैं, तो क्या करना चाहिए। सहयोग देकर, हिम्मत बढ़ाकर के हुल्लास में लाते हुए उसको अपना साथी बनाना चाहिए फिर देखो अनेक होते भी एक हो जायेंगे। यह करना मुश्किल है क्या? जब वरदानी मूर्त्त हो तो वरदानी कभी किसी की कमज़ोरी नहीं देखते। वरदानी सदा सब के ऊपर रहमदिल होते हैं। ऐसे करके दिखाओ। तो क्या करेंगे? ऐसा कोई आत्मिक बाम्ब लगा कर दिखाओ। टीचर्स का कर्त्तव्य ही यह है। जैसे बाप कमज़ोरी दिल पर नहीं रखते लेकिन दिलाराम बनकर दिल को आराम देते हैं तो टीचर्स अर्थात् बाप समान। किसी की कमज़ोरी तो देखो ही नहीं। दिल पर धारण नहीं करो लेकिन हरेक की दिल को दिलाराम समान आराम दो। तो सब आपके गुणगान करेंगे। साथी हों चाहे प्रजा हो, हर आत्मा के मुख से दुआयें निकलें। आपके लिए आशीर्वाद निकले कि यह सदा स्नेही और सहयोगी आत्मा है, यह बाप-समान रहमदिल, दिलाराम की बच्ची दिलाराम है। तब कहेंगे योग्य टीचर। अगर टीचर ही कमी देखें तो स्टूडेन्ट और टीचर में अन्तर ही क्या हुआ? टीचर तो बाप के गद्दी नशीन हैं। साथ में बाप की गद्दी पर विराजमान हो ना। सबसे समीप तो साथी ही बैठेंगे ना। टीचर अर्थात् गद्दीनशीन। तो ऐसी कमाल करके दिखाओ। समझा टीचर किसको कहते हैं? इसमें कोई भी प्राईज़ ले सकता है। टीचर के मुख से कभी भी किसी की कमज़ोरी वर्णन नही होनी चाहिए, विशेषता ही वर्णन हो। टीचर का अर्थ ही है बाप-समान हिम्मतहीन की लाठी बनने वाली। समझा, टीचर किसको कहते हैं? विस्तार तो अच्छा बना रही हो। अब संगठन का सार बनाना है।
पार्टियों से :- बाप-दादा बच्चों का कौन-सा स्वरूप सदा देखते हैं। बाप बच्चों का सदा सम्पन्न, सम्पूर्ण स्वरूप ही देखते हैं। क्योंकि बाप जानते हैं कि भले आज ज़रा हलचल में हैं लेकिन अचल होना ही हैं, थे और वही पार्ट बजा कर सम्पन्न बनना ही है, बीच की हलचल है, न थी, न रहेगी। यह मध्यकाल की बात है। इसलिए बाप सदा हर बच्चे को श्रेष्ठ रूप में देखते हैं। तो बच्चों को क्या करना चाहिए? बच्चों को भी अपना सदा श्रेष्ठ रूप ही दिखाई दे। फिर कभी भी नीचे आयेंगे ही नहीं। नीचे तो कितना जन्म रहे हो। 63 जन्म उतरने का ही अनुभव किया। अब तो उतरते-उतरते थक गये हो ना, कि अभी भी टेस्ट करनी ह। अब चढ़ना ही चढ़ना है। उतरना समाप्त हुआ सिर्फ संगम युग ही चढ़ने का युग है फिर ता उतरना शुरू हो जायेगा। अगर इतने थोड़े से समय में भी उतरना चढ़ना होता रहेगा तो फिर कब चढ़ेंगे। जैसे औरों को कहते हो अब नहीं तो कभी नहीं। ऐसे अपने को भी यही स्मृति दिलानी है। अब नहीं चढ़े तो उतरना शुरू हो जायेगा। तो सदा चढ़ती कला। इसमें बहुत मज़ा आयेगा। इस जीवन में अप्राप्त कोई वस्तु नज़र नहीं आयेगी। भविष्य जीवन में तो अप्राप्ति और प्राप्ति के जीवन का पता ही नहीं होगा, अभी दोनों का पता है तो मज़ा अभी है ना। ब्राह्मण बनना अर्थात् चाहिए-चाहिए समाप्त। जब बाप ने सर्व खज़ाने दे दिये, चाबी भी दे दी फिर मांगते क्यों हो? क्या कुछ छिपाकर रख लिया है जो कहते हो? चाहिए! बाप ने बिना मांगे सब दे दिया। आपका मांगने का रूप भी बाप को अच्छा नहीं लगता। विश्व के मालिक के बालक मांगें तो अच्छा लगेगा? जो आपको ज़रूरत है वह सब दे ही दिया। तो अब क्या करेंगे। इसी नशे में रहो कि हम विश्व के मालिक के बालक हैं तो मांगना समाप्त हो जायेगा।
अब मायाजीत का झण्डा चारों ओर बुलन्द करो, जब यह झण्डा बुलन्द हो जायेगा तो सब झण्डे नीचे झुक जायेंगे। अभी रस्सी खींच रहे हो। जब झण्डा चढ़ जायेगा तो प्रत्यक्षता के फूलों की वर्षा होगी।
एक दो को सहयोगी बनाकर मायाजीत क वायब्रेशन्स फैलाओ अब ऐसा किला मज़बूत करो। इतना किला पक्का हो जो माया की हिम्मत ही न रहे। अगर किसी में आये भी तो उसे दूर से भगा दो।
30-11-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
स्वमान में स्थित आत्मा के लक्षण
बाप-दादा हरेक बच्चे को पदमापदम भाग्यशाली आत्मा देखते हैं। हरेक की श्रेष्ठ प्रारब्ध सदा बाप के सामने है और यही बेहद के बाप को बच्चों पर नाज़ है। इतने सब बच्चे विश्व के आगे परम-पूज्य हैं। चाहे नम्बरवार पुरुषार्थी हैं फिर भी लास्ट बच्चा भी दुनिया के आगे गायन योग्य और पूज्यनीय है। लास्ट बच्चे का भी अभी तक गायन और पूजन चल रहा है। एक बेहद के बाप के इतने बच्चे ऐसे योग्य बनते हैं। अब सोचो कि सभी कितने पदमापद्म भाग्यशाली हैं। अब तक भी भक्त लोग आप नम्बरवार देवता धर्म की आत्माओं के दर्शन के लिए प्यासे हैं। चेतन में ऐसे भाग्यशाली बने हैं, ऐसे योग्य बने हैं तब तो अभी तक भी उनके दर्शन के प्यासे हैं। इसलिए बाप-दादा को 16 हज़ार की माला के लास्ट दाने पर भी नाज़ है। चाहे कैसे भी हों, अलबेले पुरुषार्थी हों, मध्यम पुरुषार्थी हों या तीव्र पुरुषार्थी हों लेकिन बाप के बने, पूजनीय और गायन योग्य बने क्योंकि पारसनाथ बाप के संग में लोहे से पारस तो बन ही गये। पारस की वैल्यू जरूर होती है। इसलिए कभी भी स्वमान में अपने को कम नहीं समझना। देह अभिमान में नहीं आना। स्वमान में रहने वाला कभी भी अभिमान में नहीं आ सकता। वह सदा निर्माण होता है। जितना बड़ा स्वमान उतना ही ‘हाँ जी’ में निर्माण। स्वमान वाला सबको मान देने वाला दाता होता है। छोटे-बड़े, ज्ञानी-अज्ञानी, मायाजीत या मायावश, गुणवान हो या कोई एक-दो अवगुणवान भी हो अर्थात् गुणवान बनने का पुरुषार्थी हो लेकिन स्वमान वाले सभी को मान देने वाले दाता होते हैं अर्थात् स्वयं सम्पन्न होने के कारण सदा रहमदिल होंगे। दाता अथवा रहमदिल। कभी किसी प्रकार की आत्मा के प्रति संकल्प मात्र भी रौब में नहीं आयेंगे। या रहम होता है या रौब होता है। यह ‘ऐसा क्यों’, ‘ऐसा करना नहीं चाहिए’, ‘होना नहीं चाहिए’, ‘ज्ञान यह कहता है क्या’, यह भी सूक्ष्म रौब का अंश है। इसलिए रहमदिल दाता स्वमान वाला सभी को मान देगा, मान देकर ऊपर उठायेगा। अगर कोई पुरुषार्थी अपनी कमज़ोरी से या अलबेलेपन के कारण नीचे गिर भी जाते हैं अर्थात् अपनी स्टेज से नीचे आ जाते हैं तो भी आप स्वमानधारी पुण्य आत्मा हो। पुण्य आत्मा का काम है - गिरे हुए को उठाना, सहयोगी बनाना न कि ‘क्यों गिरा’, ‘गिरना ही चाहिए’, ‘कर्मो का फल भोग रहे हैं’, ‘करेंगे तो ज़रूर पावेंगे’, स्वमानधारियों के संकल्प में भी किसी के प्रति ऐसा संकल्प या बोल नहीं निकल सकता। ऐसे पुण्य आत्मा परवश को भी स्वतन्त्र बनायेंगे। रौब का अंश भी नहीं होगा। स्वमानधारी इसको कहा जाता है। ऐसे को देहाभिमान कभी आ नहीं सकता। बाप-दादा हरेक बच्चे को ऐसी पुण्य आत्मा की नज़र से देखते हैं। फॉलो फादर। बाम्बे निवासी फॉलो फादर करने में होशियार है ना? बाम्बे हैं ही बाप की। इसलिए साकार बाप का आना भी ज्यादा बाम्बे में ही हुआ। जितना बार साकार में आना हुआ उतनी पालना मिली। तो ऐसी पुण्य आत्मा धरती निवासी भी ऐसे पुण्य आत्मा अर्थात् किसी के पाप को भी परिवर्तन कर दें। किसी की भी कमी को न देखें लेकिन कमाल को देखें। तो वह कमी भी कमाल में परिवर्तन हो जायेगी। पुण्य भूमि के निवासी ऐसे महान हो ना? बाम्बे निवासी तो नम्बरवन एवररेडी होंगे। किसी घड़ी भी विनाश ज्वाला प्रज्वलित हो जाए उसके पहले एवररेडी हो ना? उस समय तो तैयारी नहीं करने लगेंगे? यह तो नहीं सोचेंगे कि अभी सम्पन्न नहीं बने हैं? प्रजा नहीं बनाई है? पहले से ही सब में सम्पन्न होना है। प्रकृति भी आपका इन्तज़ार कर रही है - दासी बन सेवा करने के लिए। दासी तो ज़रूर मालिक का इन्तज़ार ही करेगी ना। इसलिए सदा मालिकपन की स्टेज पर रहो।
कुमारों के साथ - कुमार और ब्रह्माकुमार। प्रवृत्ति के जीवन में भी कुमार और ब्राह्मण जीवन में भी ब्रह्माकुमार। सिर्फ कुमार नहीं लेकिन ब्रह्माकुमार। अगर सिर्फ कुमार रहेंगे तो माया आयेगी। ब्रह्माकुमार रहेंगे तो माया भाग जायेगी। तो जैसे ब्रह्मा आदि देव है ब्रह्माकुमार भी आदि रतन होंगे। आदि देव के बच्चे मास्टर आदि देव। आदि रतन समझेंगे तो अपने जीवन के मूल्य को जानेंगे। आप सब प्रभु के रतन, ईश्वर के रतन हो, तो आपकी कितनी वैल्यू हो गई। सदा अपने को आदि देव के बच्चे मास्टर आदि देव, आदि रतन समझो तो जो भी कार्य करेंगे वह समर्थ होगा व्यर्थ नहीं। कुमार जितना सर्विस में रहेंगे उतना मायाजीत रहेंगे। अपने को फ्री नहीं रखना।
अपने को अकेला न समझो, साथी को साथ रखो।
2. कुमार सब रीति से निर्बन्धन हैं। लौकिक ज़िम्मेवारी से भी निर्बन्धन और माया के बन्धनों से भी निर्बन्धन। कोई भी बन्धन के अधीन नहीं। बन्धन मुक्त की निशानी है - सदा योगयुक्त। योगयुक्त बनधन-मुक्त ज़रूर होंगे। मन का भी बन्धन नहीं। लौकिक ज़िम्मेवारी तो खेल है। बन्धन की रीति से नहीं लेकिन डायरेक्शन प्रमाण खेल की रीति से हंसकर खेलो तो छोटी-छोटी बातें में थकेंगे नहीं। अगर बन्धन समझते हो तो तंग होते हो। क्या, क्यों का प्रश्न उठता है। लेकिन डायरेक्शन प्रमाण खेल खेल रहे हैं ऐसा समझने से अथक रहेंगे। ज़िम्मेवार बाप है, आप निमित्त हैं। कुमार तो डबल निर्बन्धन हैं कोई पूँछ नहीं है। सदा लकी रहना, घबराना नहीं, अपने हाथ से भोजन बनाना बहुत अच्छा है। अपने लिए और बाप के लिए प्यार से बनाओ। पहले बाप को खिलाओ। अपने को अकेला समझते हो तो थक जाते हो। सदा यह समझो कि हम दो हैं, दूसरे के लिए बनाना है तो विधिपूर्वक प्यार से बनाओ तो बहुत अच्छा लगेगा। कुमारों का आपस में ग्रुप होना चाहिए, कभी कोई बीमार पड़े तो एक की ड्युटी हो। एक-दूसरे की मदद कर सेवा करो। कभी भी पूँछ लगाने का संकल्प नहीं करना, नहीं तो बहुत परेशान हो जायेंगे। बाहर से तो पता नहीं चलाते लेकिन अगर लगा दिया तो मुश्किल हो जायेगी। अभी तो स्वतन्त्र हो फिर ज़िम्मेवारी बढ़ जायेगी। सभी ने बाप को कम्पेनियन बनाया है ना? तो एक कम्पेनियन छोड़कर दूसरा बनाया जाता है क्या? ये तो लौकिक में भी अच्छा नहीं माना जाता। तो कुमार कभी अपने को अकेला नहीं समझो यदि अकेला समझा, तो उदास हो जायेंगे।
कुमार ज्वाला रूप बनकर ज्वाला जगाओ तो जल्दी विनाश हो जायेगा। ऐसी योग की अग्नि तेज़ करो जो विनाश की ज्वाला तेज़ हो जाएं।
कभी भी किसी बात में क्यों और क्या करने वाले तो नहीं हो ना? किसी भी बात में क्यों क्या वह करते हैं जो मास्टर त्रिकालदर्शी नहीं। जो तीनों कालों को जानते हैं वह ‘क्यों’, ‘क्या’, नहीं करेंगे। क्यों-क्या करने वाले छोटे बच्चे होते हैं, आप सब तो वानप्रस्थ तक पहुँच गये हो ना। वानप्रस्थ स्थिति में रहने से माया से परे रहेंगे। जितनी लाइन क्लीयर होगी उतना पुरुषार्थी की स्पीड तेज होगी। सबकी लाइन क्लीयर है? कुमार तो बहुत कमाल कर सकते हैं। रूहानी यूथ ग्रुप हो ना। आजकल के यूथ गवर्नमेनट को भी बदलना चाहते हैं तो बदल देते। वह करते हैं डिस्ट्रक्शन, नुकसान और आप करेंगे कनस्ट्रक्शन। आपको विनाश नहीं करना है। आप स्थापना करेंगे तो विनाश आपे ही हो जायेगा।
विघ्नों को अपने लिए पाठ समझो
कुमारियों को कहते हैं 100 ब्राह्मणों से उत्तम एक कन्या। और कुमार कितनों से श्रेष्ठ हैं। 7 शीतलाओं के साथ एक कुमार दिखाते हैं तो आप 700 ब्राह्मणों से उत्तम हुए। कुमार हार्डवर्कर हैं, जो करना चाहें वह कर सकते हैं। हरेक कुमार को अपना ग्रुप तैयार करना चाहिए। आपस में रीस नहीं लेकिन रेस करो। माया कितना भी हिलाने की कोशिश करे लेकिन आप अंगद के मुआफिक ज़रा भी नहीं हिलो, नाखून से भी हिला न सके। अगर ज़रा भी कमज़ोरी के संस्कार होंगे तो माया अपना बना लेगी। इसलिए मरजीवा बनो, पुराने संस्कारों से मरजीवा। कोई भी विघ्न आपके लिए पाठ है, आप उनके अनुभवी बनते-बनते पास विद् आनर हो जायेंगे। कुछ भी होता है तो उससे पाठ ले लेना चाहिए। क्यों-क्या में नहीं जाना चाहिए।
कुमार तो हैं ही सदा सेवाधारी। आलराउन्ड सेवा - मन्सा-वाचा-कर्मणा, सब में सेवाधारी। अगर इतने सब आलराउन्ड सेवाधारी हैं तो बहुत हैन्डस हो गये। आप सब बहुत कमाल कर सकते हो।
अधर कुमारों के साथ - आधाकल्प आप दर्शन करने जाते रहे, अभी बाप परमधाम से आते हैं आपके दर्शन के लिए। देखने को ही दर्शन कहते हैं। बाप बच्चों को देखने के लिए आते हैं। वह दर्शन नहीं यह दर्शन अर्थात् मिलना। ऐसा दर्शन जिससे प्रसन्न हो जाएं। अधर कुमार अर्थात् सदा पवित्र प्रवृत्ति में रहने वाले। बेहद की प्रवृत्ति में सदा सेवाधारी, हद की प्रवृत्ति में न्यारे। अधर कुमारों का ग्रुप है - कमल पुष्पों का गुलदस्ता।
प्रवृत्ति में रहते विघ्न-विनाशक की स्टेज पर रहते हो ना? विघ्न-विनाशक स्टेज है - सदा बाप-समान मास्टर सर्वशक्तिवान की स्थिति में रहना। इस स्थिति में रहेंगे तो विघ्न वार कर ही नहीं सकते। अगर सदा मास्टर सर्वशक्तिवान की स्थिति में नहीं रहते तो कभी विघ्न-वश कभी विघ्न-विनाशक। जितना समय विघ्नों के वश हो उतना समय लाख गुणा घाटे में जाता है। जैसे एक घण्टा सफल करते हो तो लाख गुणा जमा होता ऐसे एक घण्टा वेस्ट जाता है तो लाख गुणा घाटा होता है। इसलिए अब व्यर्थ का खाता बन्द करो। हर सेकेण्ड अटेन्शन। बड़े-से-बड़े बाप के बड़े बच्चे हो तो सदा यह अटेन्शन दो।
प्रवृत्ति में रहते सदा माया से निवृत्त। न्यारा और प्यारा। न्यारे होकर फिर प्रवृत्ति के कार्य में आओ तो सदा मायाप्रूफ अर्थात् न्यारे रहेंगे। न्यारा सदा प्रभु का प्यारा होता है। न्यारापन अर्थात् ट्रस्टीपन। ट्रस्टी की किसी में अटैचमेंट नहीं होती। क्योंकि मेरापन नहीं होता। तो सभी ट्रस्टी हो ना। गृहस्थी समझेंगे तो माया आयेगी। ट्रस्टी समझेंगे तो माया भाग जायेगी। मेरेपन से माया का जन्म होता है। जब मेरापन नहीं तो माया का जन्म ही नहीं। जैसे गन्दगी में कीडे पैदा होते हैं वैसे ही जब मेरापन आता है तो माया का जन्म होता है। तो मायाजीत बनने का सहज तरीका - सदा ट्रस्टी समझो। इसमें तो होशियार हो ना? ब्रह्माकुमार अर्थात् ट्रस्टी। चाहे प्रवृत्ति में हो लेकिन हो ब्रह्माकुमार न कि प्रवृत्ति कुमार। जब ब्रह्माकुमार की स्मृति रहती है तो प्रवृत्ति में भी न्यारे ब्रह्माकुमार के बजाए कोई और सम्बन्ध समझा तो माया आयेगी। इसलिए अपना अलौकिक सरनेम सदा याद रखो।
जैसे लौकिक में सब बातों के अनुभवी हो, ऐसे मास्टर ज्ञानसागर बन ज्ञान की गहराई में भी अनेक अनुभव रूपी रत्नों को प्राप्त करते जा रहे हो ना? जितना सागर के तले में जाते हैं उतना क्या मिलता है? रत्न। ऐसे ही जितना ज्ञान की गहराई में जायेंगे उतना अनुभव के रतन मिलेंगे और ऐसे अनुभवी मूर्त्त हो जायेंगे जो आपके अनुभवों को देख और भी अनुभवी बन जायेंगे। ऐसे अनुभवी बने हो? एक है ज्ञान सुनना और सुनाना, दूसरा है अनुभवी मूर्त्त बनना। सुनना व सुनाना - पहली स्टेज, अनुभवी मूर्त्त बनना यह है लास्ट स्टेज। जितना अनुभवी होंगे उतना अविनाशी और निर्विघ्न होंगे। अनुभवी को बढ़ाते जाओ, हर गुण में अनुभवी मूर्त्त बनो। जो बोलो वह अनुभव हो। पाण्डव सब अनुभवी मूर्त हो ना? अनुभवी को कोई हिलाना भी चाहें तो हिला नहीं सकता। अनुभव के आगे माया की कोई भी कोशिश सफल नहीं होगी। माया के विघ्नों के भी तो अनुभवी हो गये हो ना? अनुभवी कभी धोखा नहीं खाते। अनुभव का फाउन्डेशन मज़बूत हो।
सदा पुरुषार्थी की तीव्रगति से चलते रहो। शुद्ध संकल्प का स्टाक हो तो व्यर्थ खत्म हो जायेगा। जो रोज़ ज्ञान सुनते हो, उसमें से कोई-न-कोई बात पर मनन करते रहो। व्यर्थ संकल्प चलना अर्थात् मनन शक्ति की कमी है। मनना करना सीखो। एक ही शब्द लेकर के उसकी गुह्यता में जाओ। अपने आपको रोज़ कोई-न-कोई टॉपिक सोचने को दो, फिर व्यर्थ संकल्प समाप्त हो जायेंगे। जब भी कोई व्यर्थ संकल्प आये तो बुद्धि से मधुबन पहुँच जाना। यहाँ का वातावरण, यहाँ का श्रेष्ठ संग याद करेंगे तो भी व्यर्थ खत्म हो जायेगा। लाइन चेन्ज हो जायेगी। अधर कुमार अगर ब्रह्माकुमार नहीं बने आगे नहीं बढ़ सकते।
अपने को सदा पदमापदम भाग्यशाली आत्मा समझकर हर कर्म करो तो हर कर्म श्रेष्ठ होगा। आपके द्वारा बहुतों को सन्देश मिलता रहेगा। आप सब मैसेन्जर हो। जहाँ भी जाओ, जो भी सम्पर्क में आये उन्हें बाप का परिचय देते रहो। बीज डालते जाओ। ऐसे भी नहीं सोचना इतना कहा लेकिन आये 2-4 ही। किसी बीज का फल जल्दी निकलता है किसी बीज का फल सीज़न में निकलता है। अविनाशी बीज है, फल अवश्य देगा, इसलिए बीज डालते जाओ अर्थात् मैसेज देते जाओ। सदा याद और सेवा का बेलेन्स रखते हुए ब्लिसफुल बनो।
कुमारियाँ - कुमारियाँ तो हैं ही बाप की सेवा के हैन्डस। सब ब्रह्मा की भुजायें हो ना? सभी तैयार हो? टोकरी वाली हो या ताज वाली? या होगी टोकरी या होगा ताज। दोनों साथ कैसे रखेंगे? सभी सहयोगी हो ना? जब कहें तब तैयार। डायरेक्शन प्रमाण चलने वाली हो ना? अगर तेज़ी से चलना शुरू करेंगी तो मंजिल पर पहुँच जायेंगी। कुमारियाँ तो हैं ही सदा सन्तुष्ट। कुमारियों को माया आती है? जैसे कुमारियों को और कोई पूँछ नहीं तो माया का पूँछ कहाँ से आया। जैसे और सबसे निर्बन्धन वैसे माया से भी निर्बन्धन। कुमारियाँ अर्थात् निर्बन्धन, कोई भी पूँछ नहीं।
कुमारियाँ हैं ही सदा डबल लाइट, न कर्मों के बन्धन का बोझ और न आत्मा के ऊपर पिछले संस्कारों का बोझ। सभी बोझों से हल्के। ऐसे हो ना? कुमारी अर्थात् स्वतन्त्र, सब रीति से। सिर्फ सम्बन्ध की रीति से नहीं, तन से नहीं लेकिन मन से भी स्वतन्त्र। ऐसे हल्के हो ना? जितना याद में स्पीड बढ़ाती जायेंगी उतना हल्की रहेंगी। याद ही साधन है डबल लाइट बनने का। तो सदा अपने को हल्का रखो। कोई भी बात आये - डोन्ट केयर। जम्प दे दो तो बात नीचे रह जायेगी। हल्के बहुत बड़ा जम्प दे सकते हैं।
माताओं से - सभी शक्तियों के हाथ में बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा है ना? शक्तियों को जैसे और शस्त्र दिये हैं, अब शक्तियों को बाप को प्रत्यक्ष करने का झण्डा लहराना है। हरेक शक्ति द्वारा बाप प्रत्यक्ष हो जाए। तभी जय-जयकार हो जायेगी। शक्तियों द्वारा बाप की प्रत्यक्षता हुई है तभी सदा शिव-शक्ति इकठ्ठा दिखाया है। जो शिव की पूजा करेंगे वह शक्ति की ज़रूर करेंगे। बाप और शक्तियों का गहरा सम्बन्ध है। इसलिए पूजा साथ-साथ होती है। शक्तियों ने बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहराया है तभी तो पूजा होती है। झण्डा लहराना अर्थात् ऊंचा आवाज़ हो। प्रत्यक्षता का झण्डा लहराना सब तक आवाज़ सुनाई दे। बाप-दादा को शक्ति सेना पर नाज़ है। जिनको किसी ने आगे नहीं बढ़ाया वह इतनी आगे बढ़ीं जो सार विश्व को बदल दें। जिन्हें लोगों ने ना-उम्मेद करके छोड़ दिया, बाप ने उन्हें उम्मीदवार बना दिया। पहले शक्ति पीछे शिव। अपने को भी पीछे किया। तो ऐसे शिव बाप को कभी भी भूलना नहीं। सदा अपना कम्बाइन्ड रूप ही देखो और कम्बाइन्ड रूप में चलो।
माताओं को देख कर बहुत खुशी होती है। मातायें गिरीं तो चरणों तक, चढ़ती हैं तो एकदम सिर का ताज। बहुत गिरा हुआ बहुत ऊंचा चढ़ जाए तो खुशी होगी ना। माताओं के लिए तो है ही एक खुशी का झूला। सदा उसी झूले में झूलते रहो। माताओं को बाप द्वारा विशेष आगे जाने की लिफ्ट मिली है। थोड़ा-सा पुरुषार्थी अपना और हज़ार गुणा मदद बाप की। एक कदम आपका और हज़ार कदम बाप के। माताओं को सदा विशेष खुशी होनी चाहिए कि क्या से क्या बन गई। ना-उम्मीद से सर्व उम्मीदों वाली जीवन बन गई, पास्ट की जीवन में क्या थे अब क्या बन गये। दुनिया भटक रही है और आप ठिकाने पर, तो खुशी होनी चाहिए ना?
शक्तियाँ अपने शक्ति रूप में आ गई तो सभी को वायब्रेशन्स फैलता रहेगा। गृहस्थी में रहते ट्रस्टी होकर रहेंगी तो न्यारी रहेंगी। अपना और अन्य का जीवन सफल बनाने के निमित्त बनेंगे। सदा इसी नशे में रहो हम कल्प पहले वाली गोपियाँ हैं। बाप मिला गोया सब-कुछ मिला। कोई अप्राप्त वस्तु है ही नहीं। बाप के साथ सदा खुशी में नाचती रहो, दु:ख का नाम-निशान भी खत्म।
शक्तियों का मुख्य गुण है निर्भय। माया से भी डरने वाली नहीं। ऐसी निर्भय हो? माया चाहे शेर के रूप में आये अर्थात् विकराल रूप में आये लेकिन शक्तियाँ उस शेर पर भी सवारी करने वाली, इतनी निर्भय। जो निर्भय स्टेज पर रहते उनका साक्षात्कार शक्ति रूप का होता। सदा शस्त्रधारी। दुनिया आपको इसी रूप में नमस्कार करने आयेगी।
मातायें सिर्फ बाप के साथ सर्व सम्बन्ध निभाती रहें तो नम्बरवन ले सकती हैं। मातायें अगर नष्टोमोहा में पास हो गई तो बहुत आगे नम्बर ले सकती हैं। माताओं के लिए यही सबजेक्ट ज़रूरी है। बाप-दादा माताओं को एक्स्ट्रा, लिफ्ट देते हैं, क्योंकि जानते हैं बहुत भटकी हैं, बहुत दु:ख देखे हैं अभी बाप माताओं के पांव दबाते हैं अर्थात् सहयोग देते हैं। बाप को बहुत तरस पड़ता है। सारी जीवन गँवाई, अभी थोड़े समय में पास हो जाओ।
03-12-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
विश्व-कल्याणकारी ही विश्व का मालिक बन सकता है
बाप-दादा सर्व विश्व-कल्याणकारी बच्चों को देख हर्षित होते हैं। जैसे बाप बेहद विश्व के कल्याणकारी हैं। बाप के संकल्प में सदा एक ही संकल्प है कि सर्व का कल्याण अभी-अभी हो जाए। संकल्प का विशेष आधार इसी बात पर है। संकल्प का बीज यह है - बाकी वैराइटी वृक्ष का विस्तार है। ऐसे ही बाप के बोल में सदा बच्चों के कल्याण की भिन्न-भिन्न प्रकार की युक्तियाँ हैं। नयनों में बच्चों के कल्याण के प्रति सर्चलाइट है। मस्तक में कल्याणकारी बच्चों की यादगार मणि के रूप में है। हर कर्म में कल्याणकारी कर्म। तो जैसे बाप के संकल्प वा बोल में, नयनों में सदा ही कल्याण की भावना व शुभ कामना है। ऐसे ही हर बच्चे के संकल्प में विश्व कल्याण की भावना वा कामना भरी हुई हो। चाहे कोई भी काम कर रहे हो हद की प्रवृत्ति को चलाने अर्थ या कोई भी सेवाकेन्द्र चलाने अर्थ निमित्त हो लेकिन सदा विश्व-कल्याण की भावना हो। सदा सामने विश्व की सर्व आत्मायें इमर्ज हों। आपकी स्मृति के आधार से चाहे कितनी भी दूर रहने वाली आत्मायें हों लेकिन आपके सदा समीप और सम्मुख दिखाई दें। जैसे सेवा अर्थ आप लोगों का एक चित्र है भविष्य श्रीकृष्ण के रूप का। सारे विश्व का गोला उनके हाथ में दिखाया है। विश्व का मालिक होने के कारण विश्व का गोला उनके हाथ में दिखाया है। ऐसे वर्तमान समय भी विश्व-कल्याणकारी होने के नाते से सारे विश्व की सर्व आत्मायें आपके मस्तक में सदा समीप हैं। यहाँ बैठे भी चाहे कोई अमेरिका में या कितनी भी दूर रहने वाली आत्मा हो, सेकेण्ड में उस आत्मा को अपनी श्रेष्ठ भावना वा श्रेष्ठ कामना के आधार से शान्ति व शक्ति की रेज़ दे सकते हो। ऐसे मास्टर ज्ञान सूर्य विश्व को कल्याण की रोशनी दे सकते हो।
जैसे साइन्स के साधनों द्वारा समय और आवाज़ कितना भी दूर होते समीप हो गया है ना। जैसे प्लेन द्वारा समय कितना नज़दीक हो गया है, थोड़े समय में कहाँ से कहाँ पहुँच सकते हो। टेलीफोन द्वारा आवाज़ कितना समीप हो गया है। लण्डन के व्यक्ति का आवाज़ भी ऐसे सुनाई देगा जैसे सम्मुख बात कर रहे हैं। ऐसे ही टेलीविजन के साधनों द्वारा कोई भी दृश्य वा व्यक्ति दूर होते हुए भी सम्मुख अनुभव होता है। साइन्स तो आपकी रचना है। आप मास्टर रचयिता हो। साइलेन्स की शक्ति से आप सब भी विश्व की किसी भी दूर रहने वाली आत्मा का आवाज़ सुन सकते हो। कौन-सा आवाज़? साइन्स मुख का आवाज़ सुनाने का साधन बन सकती है लेकिन मन का आवाज़ नहीं पहुँचा सकती। साइन्स की शक्ति से हर आत्मा के मन का आवाज़ इतना ही समीप सुनाई देगा जैसे कोई सम्मुख बोल रहा है। आत्माओं के मन में अशान्ति, दु:ख की स्थिति के चित्र ऐसे ही स्पष्ट दिखाई देंगे जैसे टी.वी. द्वारा दृश्य वा व्यक्ति स्पष्ट देखते हो। जैसे इन साधनों का कनेक्शन जोड़ा, स्वीच ऑन किया और स्पष्ट दिखाई और सुनाई देता है। ऐसे ही बाप से कनेक्शन जोड़ा, श्रेष्ठ भावना और कामना का स्वीच ऑन किया तो दूर की आत्माओं को भी समीप अनुभव करेंगे। इसको कहा जाता है विश्व-कल्याणकारी। ऐसी स्थिति को बनाने के लिए विशेष कौंन-सा साधन अपनाना पड़े।
साइलेन्स पावर बढ़ाने की विधि और सिद्धि
इन सबका आधार है - साइलेन्स। वर्तमान समय साइलेन्स की शक्ति जमा करो। मन का आवाज़ संकल्पों के रूप में आवेगा। मन के आवाज़ अर्थात् व्यर्थ संकल्प का समाप्त कर एक समर्थ संकल्प में रहो। संकल्पों के विस्तार को समेट कर सार रूप में लाओ तब साइलेन्स की शक्ति स्वत: ही बढ़ती जावेगी।
व्यर्थ है बाह्यमुखता और समर्थ है अन्तर्मुखता। ऐसे ही मुख के आवाज़ के भी व्यर्थ को समेट कर समर्थ अर्थात् सार में लाओ तब साइलेन्स की शक्ति जमा कर सकेंगे साइलेन्स की शक्ति के विचित्र प्रमाण देखेंगे। ऐसे दूर की आत्मायें आपके सामने आकर कहेंगी कि आप ने मुझे सही रास्ता दिखाया। आपने मुझे ठिकाने का इशारा दिया। आपने मुझे बुलाया और मैं पहुँच गया। आपके दिव्य स्वरूप उनके मस्तक रूपी टी.वी. में स्पष्ट दिखाई देंगे और अनुभव करेंगे कि यह तो सम्मुख मिलन था। इतना स्पष्ट अनुभव करेंगे। इतनी साइलेन्स की शक्ति रूहानी रंगत दिखायेगी। जैसे शुरू में भी दूर बैठे हुए ब्रह्मा बाप के स्वरूप को स्पष्ट देखते इशारा मिलता था कि इस स्थान पर पहुँचो। ऐसे ही अन्त, में आप सब विशेष विश्व-कल्याणकारी आत्माओं का ऐसा ही विचित्र पार्ट चलना है। इसके लिए आत्मा को सर्व बन्धनों से मुक्त, स्वतन्त्र होना चाहिए। जो जब चाहें, जहाँ चाहें, जो शक्ति चाहें उससे कार्य कर सकें। ऐसी निर्बन्धन आत्मा अनेकों को जीवन मुक्त बना सकती है। समझा, कितनी ऊंची मंजिल है? कहाँ तक पहुँचना है? बेहद सेवा की रूपरेखा कितनी श्रेष्ठ है? अनेक मेहनतों से छूट जायेंगे। लेकिन एक मेहनत करनी पड़ेगी। ऐसी हिम्मत है?
महाराष्ट्र को कोई महान कार्य करना चाहिए। महाराष्ट्र ऐसी कमाल करके दिखाए। विहंग मार्ग की सर्विस तब होगी। एक सेकेण्ड में कहाँ से कहाँ पहुँच सकते हो। महाराष्ट्र नाम से ही महान आत्मा बनना सहज होना चाहिए। हर कर्म महान। हर बोल महान। सर्व महाराष्ट्र निवासी ऐसे महान हो ना? जिस भी आत्मा को देखे तो महान आत्मा अनुभव हो। ऐसे हो ना? टीचर्स क्या समझती हैं? महाराष्ट्र में तो कोई समस्या होती नहीं होगी ना? जहाँ महान हैं वहाँ समस्या समाप्त। महाराष्ट्र अथवा महात्माओं का राष्ट्र। राष्ट्र अर्थात् स्थान। तो स्थान और स्थिति समान हैं ना। सिर्फ यही याद रखो कि हम समान हैं तो नम्बरवन हो जायेंगे। महाराष्ट्र का ज़ोन नम्बर वन में है? नम्बरवन की निशानी है माया को विन करने वाले विजयी। ऐसे हैं ना? क्या, क्यों तो नहीं है ना।
ऐसे सदा समर्थ, सदा एक श्रेष्ठ संकल्प और श्रेष्ठ स्थिति में स्थित रहने वाले, बाप-समान सदा विश्व-कल्याणकारी, सदा एक ही लगन में मगन रहने वाले, ऐसे श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।
(टीचर्स के साथ) :- टीचर्स का महत्व तब है जब सदा मन, वाणी, कर्म, सम्पर्क में महानता दिखायें क्योंकि टीचर्स को महान बनने के साधन मिले हुए हैं। वातावरण, संग शुद्ध भोजन, सेवा, सम्पर्क और सम्बन्ध, सब महान बनने के साधन हैं। जो प्रवृत्ति में रहते हैं उनको रहते हुए न्यारा रहना पड़ता है लेकिन टीचर तो हैं ही न्यारी। न्यारा रहने का अभ्यास करने की जरूरत नहीं। कमाल उनकी है जो हंस और बगुले इकट्ठे रहते हैं और फिर न्यारे रहते हैं। उस हिसाब से देखो तो टीचर का कितना भाग्य मिला हुआ है। टीचर के लिए पुरूषार्थ सहज है। ऐसे अनुभव करते हो या मुश्कित लगता है? टीचर को अगर कहीं भी मुश्किल लगती है तो उसका एक ही कारण है वह कौन-सा है? टीचर अगर सारा समय अपने को बिज़ी रखें तो कभी भी मुश्किल न हो।
बिज़ी कैसे रहें
कर्मणा और वाचा सर्विस तो करते हो लेकिन मन्सा की दिनचर्या भी सेट करो। 1. मन्सा भी बिज़ी रहें तो मायाजीत सहज बन सकते हो। अगर अपने को फ्री रखते तो फ्री देख माया भी आती है। बिज़ी रहो तो माया भी किनारा सहज ही कर ले। अपने को बिज़ी करना नहीं आता है, मन्सा का चार्ट बनाना नहीं आता है तभी माया आती है या मुश्किल लगता है? 2. बिज़ी रखने के लिए जितना पढ़ाई की तरफ अटेन्शन होगा तो अपने आपको बिज़ी रख सकेंगे। पढ़ाई से दिल की प्रीति होनी चाहिए जिसका दिल से पढ़ाई से प्यार होगा वह सदा स्वयं और औरों को भी बिज़ी रख सकता है। अगर ऊपर का कभी-कभी का प्यार होगा तो स्वयं भी कभी बिज़ी कभी फ्री रहेंगे और आने वाले स्टूडैन्ट की कभी बिज़ी कभी फ्री, उनको भी बिज़ी नहीं रख सकेंगे। इसलिए सदा बिज़ी रहकर स्वयं भी विघ्न-विनाशक और दूसरों को भी विघ्न-विनाशक बनाओ।
3. प्लानिंग बुद्धि बनो। पहले स्वयं का प्लान फिर सेवा का। प्लानिंग बुद्धि सदा बिज़ी रहेंगे। डायरेक्शन पर चलने वाली बुद्धि कभी फ्री कभी बिज़ी रहेंगे। बाबा का डायरेक्शन ही मिला हुआ है प्लानिंग बुद्धि बनो। स्व का और औरों का प्लान बनाओ। ऐसे प्लानिंग बुद्धि हो या बना-बनाया प्लान मिलेगा तो करेंगे। पहले स्वयं के टीचर फिर औरों के। टीचर स्टूडैन्ट को प्लान बनाकर देती हैं, ऐसे स्व का टीचर बनो फिर औरों का बनो। अच्छा –
सभी अपनी-अपनी लगन प्रमाण पुरुषार्थी में आगे बढ़ रही हो ना? चढ़ती कला है ना? टीचर को तो सब फालो करने वाले होते हैं ना। फालो फादर तो हें लेकिन फिर भी निमित्त टीचर को सब देखते हैं। निमित्त बने हुए में बाप को देखते हैं। अगर देखने वाला आइना ही खराब होगा तो बाप भी क्या स्पष्ट दिखाई देगा। आइना अगर स्पष्ट और पावरफुल है तो कोई भी चीज़ को स्पष्ट और सहज देख और अनुभव कर सकते हैं। ऐसे स्पष्ट और पावरफुल आइना हो जो कोई भी सामने आए और बाप का स्पष्ट अनुभव कर सके?
कम्पलेन्ट नहीं करो, कम्पलीट बनो
बाप-दादा को टीचर की कोई भी कम्पलेन्ट सुनना अच्छा नहीं लगता। टीचर अगर कोई कम्पलेन्ट करे कि मैं कमज़ोर हूँ, माया आती है या जिज्ञासु सन्तुष्ट नहीं रहते हैं या मैं सन्तुष्ट नही रहती, ऐसी कोई भी कम्पलेन्ट टीचर की सुनना भी अच्छा नहीं लगता। टीचर का काम है सबको कम्पलीट बनाना। अगर खुद की कम्पलेन्ट होगी तो कम्पलीट कैसे बनायेंगी? टीचर को कभी भी अपने पुरुषार्थी में कोई कम्पलेन्ट नहीं रहनी चाहिए। कम्पलेन्ट अर्थात् कमी। कोई की कमी नहीं रहनी चाहिए। टीचर्स अर्थात् सम्पन्न, टीचर्स अर्थात् विघ्न-विनाशक। टीचर की महिमा बाप समान है। जो बाप की महिमा, वह टीचर की महिमा। समझा, टीचर्स का क्या महत्व है? ऐसा अविनाशी संगठन बनाओ जो कोई भी कम्पलेन्ट न रहे। वृद्धि बहुत कर रहे हो सिर्फ विघ्न-विनाशक बनो और बनाओ।
(पार्टीयों के साथ) बाप-टीचर और सतगुरू - इन तीनों सम्बन्धों से तीन प्राप्तियाँ :- सदा तीनों सम्बन्धों से वर्से को, पढ़ाई को और घर को याद करते चलते हो? बाप से वर्सा मिला, टीचर के सम्बन्ध से पढ़ाई मिली और सतगुरू के सम्बन्घ से घर का रास्ता मिला और साथ चलेंगे। तो तीनों सम्बन्धों से जो तीनों प्राप्तियाँ होती हैं वह सम्बन्ध और प्राप्ति सदा याद रहता है? समझते हो कि हम इतनी श्रेष्ठ आत्मायें हैं जो स्वयं परम आत्मा बाप, शिक्षक और सतगुरू बने हैं। इससे बड़ा भाग्य और किसी का हो सकता है? ऐसा भाग्य तो कभी सोचा भी नहीं होगा कि सर्व सम्बन्धों से परम-आत्मा मिल जायेगा। यह असम्भव बात भी सम्भव साकार में हो रही है तो कितना भाग्य है। सिर्फ बाप नहीं लेकिन शिक्षक और सतगुरू भी बनें। जैसे भक्त लोग कहते हैं भगवान जब राज़ी हो जाते हैं तो छप्पर फाड़ कर देते हैं। तो यह भी इस आकाश तत्व को भी पार कर, देने के लिए आ गये ना। वह तो सिर्फ छप्पर फाड़कर कहते लेकिन यह तो आकाश तत्व से पार रहने वाले 5 तत्वों को भी पार करके प्राप्ति करा रहे हैं तो कितने भाग्यशाली हुए। ऐसा भाग्य सदा याद रहे। यह तो आपकी प्रैक्टिकल लाइफ बन गई ना, सिर्फ नॉलेज हो गई तो भूल सकते हो लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ की कोई भी बात भूलती नहीं हैं। सदा याद रहती है। जैसे अपनी पास्ट लाइफ की बातें भूलना भी चाहते हो तो भी याद आ जाती है, यह फिर कैसे भूल सकती है? एक ही शब्द तो याद करना है। बाबा और मैं। बाबा, बाबा कहते चलो तो सदा स्मृति स्वरूप रहेंगे। दो वर्ष का बच्चा भी बाबा-बाबा कहता रहता है, तो आप इतने नॉलेजफुल के बच्चे एक ‘बाबा’ शब्द याद नहीं रख सकते हो? सहज मार्ग है ना - कठिन तो नहीं लगता? शक्ति सेना क्या समझती है। सदा एक बाप और आप तीसरा न कोई, ऐसे ही रहती हो ना? कोई तीसरी बात याद तो नहीं आती? बस बाप और बच्चा, बाप और मैं, इसी नशे में रहो। शक्ति सेना नष्टोमोहा हो या हद के घर में, बच्चों में मोह है। कुछ भी हो जाए लेकिन निर्मोही, साक्षी होकर ड्रामा की सीन देखते रहो।
पाण्डवों में होता है - रौब और क्रोध। पाण्डव निक्रोधी बन गये हैं? क्या समझते हो? पाण्डवों ने इस पर विजय प्राप्त की है? ज़रा भी देहभान व रौब न हो। बिल्कुल ब्रह्माकुमार निर्माणचित्त बन जाए। क्रोध का छोड़ा है कि थोड़ा-थोड़ा शस्त्र की रीति से यूज़ करते हो! जो समझते हैं खत्म हो गया, वह हाथ उठाओ। कोई गाली भी दे, कोई झूठा इल्ज़ाम भी लगाये, लेकिन आपको क्रोध न आये। क्रोध आने की यही दो बातें होती हैं एक जब कोई झूठी बात कहता है, दूसरा ग्लानि करता है। यही दो बातें क्रोध को जन्म देती हैं। ऐसी परिस्थिति में भी क्रोध न आये, ऐसे हो? अपकारी के ऊपर उपकार करना, यही ब्राह्मणों का कर्म है। वह गाली दे आप गले लगाओ, यही है कमाल। इसको कहा जाता है परिवर्तन। गले लगाने वाले को गले लगाना - यह कोई बड़ी बात नहीं लेकिन निन्दा करने वाले को सच्चा मित्र मन से मानो, मुख से नहीं। ऐसे बने हो? जब ऐसा परिवर्तन हो जायेगा तो विश्व के आगे प्रसिद्ध हो जायेगा। जो दुनिया समझती है नहीं हो सकता, वह आप करके दिखाओ। तब कहेंगे - ‘कमाल’।
05-12-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
विजय का झण्डा लहराने के लिए रियलाइजेशन कोर्स शुरू करो
आज बाप-दादा अपनी रूहानी सेना को देख रहे थे। सेना में सब प्रकार की नम्बरवार स्थिति अनुसार महारथी, घोड़े-सवार और प्यादे देखे। महारथियों के मस्तक में अर्थात् स्मृति में सदा विजय का झण्डा लहरा रहा था। घोड़े-सवार अर्थात् सेकेण्ड नम्बर - उनके मस्तक अर्थात् स्मृति में विजय का झण्डा तो था ही लेकिन सदा नहीं लहरा रहा था। कभी खुशी की झलक से व निश्चय की फलक से झण्डा लहराता था और कभी झलक और फलक की वायु कम होने के कारण झण्डा लहराने की बजाए एक ही जगह खड़ा हो जाता था। तीसरे, प्यादे बहुत प्रयत्न से निश्चय की रस्सी से, खुशी की झलक से झण्डे को लहराने के प्रयत्न में खूब लगे हुए थे। लेकिन कहींकहीं कमज़ोरी की गाँठ होने के कारण अटक जाता था, लहराता नहीं था। फिर भी खूब पुरुषार्थीर् में लगे हुए थे। किसी-किसी का पुरुषार्थी के बाद लहराता भी था लेकिन कुछ समय के बाद, कुछ मेहनत के बाद। इसलिए वह झलक और फलक नहीं थी। बाप-दादा बच्चों की मेहनत देख दूर से सकाश भी दे रहे थे अर्थात् इशारा दे रहे थे कि ऐसे करो। कोई-कोई बच्चे इशारे को देख सफल भी हो रहे थे लेकिन कोई-कोई इतना मेहनत में बिज़ी थे जो इशारे को कैच करने की फुर्सत ही नहीं थी। ऐसी सेना में तीनों प्रकार के योद्धा देखे। जब मेहनत से या सहज ही सबका झण्डा अच्छी तरह से लहराने लगा तो झण्डे के लहराने से ही विजय के पुष्पों की अर्थात् बाप और बच्चों के प्रत्यक्षता के पुष्पों की वर्षा-समान रौनक हो गई। बच्चे जो मेहनत कर रहे हैं उनको बाप-दादा सहज साधन सुनाते हैं।
निरन्तर योगी बनने का आधार सर्व सम्बन्धों का सहयोग
समय पर व निरन्तर विजय का झण्डा क्यों नहीं लहराता है, उसका कारण क्या है? आप लोग भी फंक्शन में झण्डा लहराते हो तो समय पर क्यों नहीं लहराता है। कारण? पहले से रिहर्सल नहीं करते। ऐसे विजय का झण्डा लहराने के लिए मुख्य बात रियलाइजेशन नहीं है। अमृतबेले से रियलाइजेशन कोर्स शुरू करो। वर्णन तो सभी करते हो लेकिन वर्णन करना और रियलाइजेशन करना अर्थात् अनुभूति करना, उसमें अन्तर हो जाता है। एक है सुनना, वा सुनाना कि बाप से सर्व सम्बन्ध हैं। लेकिन हरेक सम्बन्धों की अनुभूति और प्राप्ति अपनी-अपनी है। तो सर्व सम्बन्धों की अनुभूति वा प्राप्ति में मग्न रहो तो पुरानी दुनिया के वातावरण से सहज ही उपराम रह सकते हो। हर कार्य के समय भिन्न-भिन्न सम्बन्ध का अनुभव कर सकते हो। और उसी सम्बन्ध के सहयोग से निरन्तर योग का अनुभव कर सकते हो। हर समय बाप के भिन्न-भिन्न सम्बन्धों का सहयोग लेना अर्थात् अनुभव करना ही योग है। ऐसे सहज योगी वा निरन्तर योगी क्यों नहीं बनते हो? बाप कैसे भी समय पर सम्बन्ध निभाने के लिए बँधे हुए हैं। जब बाप साथ दे रहे हैं तो लेने वाले क्यों नहीं लेते। सहयोग लेना ही योग कैसे होता है, यह अनुभव करो। माता का सम्बन्ध क्या हे? बाप का सम्बन्ध क्या है? सखा और बन्धु का सम्बन्ध क्या है, सदा साजन के संग का अनुभव क्या है यह अलग-अलग सम्बन्ध का रहस्य अनुभव में आया है! अगर एक भी सम्बन्ध की अनुभूति से वंचित रह गये तो सारा कल्प ही वंचित रह जायेंगे। क्योंकि कल्प में अब ही सर्व अनुभवों की खान प्राप्त होती है। अब नहीं तो कभी नहीं। तो अपने आपको चेक करो किस सम्बन्ध की अनुभूति अब तक नहीं कर पाये हैं। इसी प्रकार से ज्ञान की सबजेक्ट में जो भी पाँइन्टस वर्णन करते हो उस हर पाँइन्ट का अनुभव किया है? जैसे वर्णन करते हो हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं तो स्व के दर्शन का अनुभव, किस आधार से कहते हो? दर्शन अर्थात् जानना। जानने वाला उस जानने की अथॉरिटी में रहता है। जैसे आजकल के शास्त्रवादी सिर्फ शास्त्र पढ़ते हैं, रटते हैं फिर भी स्वयं अपने को शास्त्र की अथॉरिटी समझते हैं। आप सब रटते नहीं हो लेकिन उसमें रमण करते हो। रमण करने वाला अर्थात् मनन द्वारा स्वरूप में लाने वाला, ऐसा सदा ज्ञान की अथॉरिटी अर्थात् सदा ज्ञान की हर पाँइन्ट के नशे में रहने वाला होगा। ऐसे हर ज्ञान की पाँइन्ट के अथॉरिटी अर्थात् अनुभव के नशे में रहते हो? इसी प्रकार से जो धारणा की सबजेक्ट में भिन्न-भिन्न गुणों का वर्णन करते हो उस हर गुण के अनुभव की अथॉरिटी हो? स्पीकर हो, श्रोता हो या अथॉरिटी हो? इसी में नम्बर हो जाते हैं।
महारथी अर्थात् हर शब्द के अनुभव की अथॉरिटी। घोड़ेसवार अर्थात् सुनने सुनाने वाले ज्यादा, अनुभव की अथॉरिटी में कम। तो सहज साधन क्या हुआ? रियलाइजेशन की कमी अर्थात् अनुभवी मूर्त बनने की कमी। भक्ति और ज्ञान का विशेष अन्तर ही यह है। वह वर्णन है और यह अनुभव होता है। निरन्तर योगी बनने का आधार - सदा सर्व सम्बन्धों का सहयोग लो। अनुभवी बनो। समझा? अनुभव की खान को अच्छी तरह से प्राप्त करो। थोड़ा-सा नहीं लेकिन सर्व प्राप्ति करो। दो-तीन सम्बन्ध का, दो-तीन पाइन्ट का अनुभव नहीं लेकिन सर्व अनुभवी मूर्त्त। मास्टर ऑलमाइटी अथॉरिटी बनो तो सदा विजय का झण्डा लहराता रहेगा।
बाप का सर्व पर स्नेह है। महाराष्ट्र वालों से भी स्नेह है। महाराष्ट्र वाले, सभी अनुभवी मूर्त बनना। तो महाराष्ट्र की विशेषता सब विजयी हो जाएं। क्षत्रिय नहीं जो सदा ही मेहनत में लगे रहें। लेकिन सदा विजयी। अब क्षत्रिय-पन के समय की समाप्ति हो गई। अगर इस समय तक भी क्षत्रीय रहेंगे तो चन्द्रवंशी बन जावेंगे। अब समय है ब्राह्मण अर्थात् विजयी बनने का। बहुत काल का विजयी संस्कार चाहिए। अब तो समय ही कम है। तो अब से विजयी-पन के संस्कार नहीं भरेंगे तो चन्द्रवंशी बन जावेंगे। इसलिए अपने भाग्य की लकीर को अभी भी परिवर्तन कर सकते हो।
ऐसे सदा विजयी, सर्व सम्बन्धों के अनुभवों की अथॉरिटी, ज्ञान की हर पाँइन्ट के अथॉरिटी, हर गुण के अनुभव की अथॉरिटी, सेवा की सबजेक्ट में आलराउन्डर और एवररेडी इस विशेषता की अथॉरिटी, ऐसे बाप-समान श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।
(महाराष्ट्र ज़ोन की पार्टियों के साथ)
1. निश्चय बुद्धि के मन की खुशी की आवाज़ - पाना था जो पा लिया :-
सदा सर्व खज़ानों से सम्पन्न अर्थात् अपने को मालामाल समझते हो? जैसे बाप सदा सम्पन्न है, ऐसे बाप-समान सभी खज़ानों से सम्पन्न हो? कोई भी खज़ाने की कमी नहीं। ऐसे मन से खुशी का आवाज़ निकलता है कि पाना था वो पा लिया? मुख का आवाज़ निरन्तर का नहीं हो सकता, लेकिन मन का आवाज़ निरन्तर अविनाशी है। तो यह मन से आवाज़ निकलता है कि पा लिया है? अन्दर से आता है या अभी समझते हो कि पायेंगे, पा तो रहे हैं। अटल निश्चयबुद्धि बच्चे बन गये हो? बच्चा बनना अर्थात् अधिकारी बनना। कभी भी अपने में भी संशय न हो। सम्पूर्ण बनेंगे या नहीं? सूर्यवंशी बनेंगे या चन्द्रवंशी? सदा निश्चयबुद्धि! जैसे बाप में निश्चय है वैसे स्वयं में भी निश्चय। स्वयं में अगर कमज़ोरी का संकल्प उत्पन्न होता है तो कमज़ोरी के संस्कार बन जायेगे। जैसे कोई एक बार भी शरीर से कमज़ोर हो जाता है, थोड़े समय में तन्दुरूस्त नहीं बन सका तो कमज़ोरी के जर्म्स पक्के हो जाते हैं। ऐसे व्यर्थ संकल्प रूपी कमज़ोरी के जर्म्स अपने अन्दर प्रवेश नहीं होने देना। नहीं तो उनको खत्म करना मुश्किल हो जायेगा।
जो भी ड्रामा की सीन देखते हो, चाहे वह हलचल की सीन हो या अचल की, लेकिन दोनों में निश्चय। हलचल की सीन में भी कल्याण का अनुभव हो। ऐसा निश्चयबुद्धि। वातावरण हिलाने वाला हो, समस्या विकराल हो लेकिन सदा निश्चयबुद्धि। इसको कहते हैं - विजयी। तो निश्चय के आधार से विकराल समस्या भी शीतल हो जायेगी।
भिन्न-भिन्न भाषा के होते हुए भी एक मत, एक बाप, एक ही निश्चय और एक ही मंज़िल। सिर्फ सेवार्थ भिन्न-भिन्न स्थानों पर रहे हुए हो। अगर सभी एक स्थान पर बैठ जाएं तो चारों ओर की सेवा कैसे होगी? जब सेवा समाप्त हो जायेगी तब सभी मधुबन आ जायेंगे। लेकिन वह भी कौन आयेंगे? जो नष्टोमोहा होंगे। जिनकी बुद्धि की लाइन क्लीयर होगी। उस समय टेलीफोन व टेलीग्राम से बुलावा नहीं होगा, लेकिन बुद्धि की लाइन क्लीयर होने से बुलावा पहुँच जायेगा। ऐसी हालतें बनेंगी जो जिस ट्रेन से आपको पहुँचना होगा वही चलेगी, उसके बाद नहीं। अगर लाइन क्लीयर होगी तो साधन भी मिल जावेंगे। नहीं तो कहीं-न-कहीं अटक जायेंगे। इसलिए बहुत काल का निरन्तर योग चाहिए। कवच है, कवच वाला सदा सेफ रहता है। सेफ्टी की ड्रेस है ही - याद का कवच।
मातायें तीव्र पुरुषार्थी हो ना? अभी घर में नहीं बैठ जाना, अभी ग्रुप बनाकर चारों ओर सेवा के लिए फैल जाओ। सेन्टर खोलो। अगले साल देखेंगे कितने सेन्टर खोले। समस्याओं के पहले सबको सन्देश दे दो। तो सभी आपके बहुत गुणगान करेंगे। अभी सेवा केन्द्र खोलते जाओ। सन्देश देने के लिए कोई साधन अपनाओ।
2. ड्रामा की नॉलेज से क्या-क्यों के क्वेश्चन को समाप्त करने वाले ही प्रकृतिजीत और मायाजीत बनते हैं - सभी प्रकृतिजीत वा मायाजीत बने हो? यह 5 तत्व भी अपनी तरफ आकर्षित न करें और 5 विकार भी वार न करें। ऐसे मायाजीत और प्रकृतिजीत दोनो ही पेपर में पास हो! अगर कोई प्रकृति द्वारा पेपर आये तो पास होने की शक्ति धारण हो गई है? हलचल में तो नहीं आयेंगे? ज़रा भी हलचल में आना अर्थात् फेल। यह क्या, यह क्यों, यह क्वेश्चन भी उठा तो क्या रिज़ल्ट होगी। अगर ज़रा भी कोई प्रकृति की समस्या वार करने वाली बन गई तो फेल हो जायेंगे। कुछ भी हो, लेकिन अन्दर से सदा यह आवाज़ निकले वाह मीठा ड्रामा। इतना ड्रामा का ज्ञान पक्का किया है! या जब अच्छी बाते है तो ड्रामा है, हलचल की बातें हैं तो हाय-हाय। ‘हाय क्या हुआ’ यह संकल्प में भी न आये, ऐसे मज़बूत हो? क्योंकि आगे चलकर अब ऐसी समस्यायें प्रकृति द्वारा भी आने वाली है! प्राकृतिक आपदायें तो दिन-प्रतिदिन बढ़ने वाली हैं ना। तो ऐसी स्थिति हो जो कोई भी संकल्प में भी हलचल न हो। ऐसे अचल और अडोल बने हो? अगर बहुत समय का मायाजीत वा प्रकृतिजीत का अभ्यास नहीं होगा तो रिज़ल्ट क्या होगी! एक सेकेण्ड का पेपर आना है। उस समय अगर तैयारी करने में लग गये तो रिज़ल्ट निकल जायेगा। एक सेकेण्ड में पास हो जाएं, इसका अभ्यास चाहिए। अगर यह भी सोचा कि योग लगायें, याद में बैठें तो भी सेकेण्ड तो बीत जायेगा। युद्ध में ही शरीर छोड़ देंगे। पुरुषार्थी जीवन में युद्ध करते-करते ही शरीर छूटा तो रिज़ल्ट क्या होगी! चन्द्रवंशी बन जायेंगे। इसलिए हरेक सदा 108 की माला में आने का लक्ष्य रखो। लक्ष्य श्रेष्ठ होगा तो लक्षण आटोमेटिकली आ जायेंगे। 16 हजार का लक्ष्य कभी नहीं करना। नम्बर वन आने का पुरूषार्थ और लक्ष्य रखो।
शक्तियाँ सदा शस्त्रधारी श्रृंगारीमूर्त और संहार करने वाली - दोनों ही स्वरूप में स्थित रहती हो? कभी रोने वाली तो नहीं हो ना? सदा हर्षित। मन से भी रोने वाली नहीं। ज़रा भी माया से हार हुई तो मन से रोना होता है। माताओं को तो सदा खुशी में नाचना चाहिए - क्योंकि ना-उम्मीद से उम्मीदवार हो गई, बाप ने सिर का ताज बना दिया तो कितनी खुशी होनी चाहिए। पाण्डव भी माताओं देखकर खुश होते हैं। क्योंकि शक्तियाँ हैं ही पाण्डवों के लिए ढाल। ढाल मज़बूत होगी तो वार नहीं होगा। इसलिए माताओं को आगे रखने में पाण्डवों को खुश होना चाहिए। अगर स्वयं आगे रहेंगे तो डन्डे खाने पड़ेंगे। शक्तियों को आगे रखेंगे तो पाण्डवों की भी महिमा है। आगे रखना भी आगे होना ही है।
3. अपनी विशेषता को जानने वाले ही विशेष आत्मा बनते हैं :- जैसे बच्चे बाप के स्नेह में सदा मगन रहते हैं वैसे बाप भी बच्चों की सेवा में ही सदा मगन रहते हैं। बच्चों को बाप के सिवाए कोई नहीं और बाप को बच्चों के सिवाए कोई नहीं। जैसे आप बाप के गुण गाते हो वैसे बाप भी हर बच्चे के गुण गाते हैं। रोज़ हर बच्चे की विशेषता और गुणों को सामने लाते हैं क्योंकि जो भी बाप के बच्चे बने हैं वह हैं ही विशेष आत्मायें। तो विशेष आत्माओं की विशेषता बाप भी गाते हैं। जैसे जौहरी हर रत्न की वैल्यू को जानते हैं वैसे बाप भी हर बच्चे की श्रेष्ठता को जानते हैं। हर रतन एक-दूसरे से श्रेष्ठ है। तो ऐसे श्रेष्ठ समझकर चलते हो? साधारण नहीं हो। लास्ट दाना भी साधारण नहीं है बाप को जानने की विशेषता तो लास्ट में भी है। आप लास्ट नहीं लेकिन फर्स्ट जाने वाले हो। अभी कोई भी नम्बर फिक्स नहीं है। सब सीट खाली हैं। सीटी नहीं बजी है। सीटी बजेगी, सीट लें लेंगे। लास्ट वाला भी फास्ट जाकर फर्स्ट ले सकता है। मातापिता को छोड़ करके बाकी सब सीटें खाली हैं। अभी तकदीर आपके हाथ में हैं, भाग्यविधाता बाप ने तकदीर आपके हाथ में दे दी है जो चाहो वह बनाओ। अभी इस संगम के समय को वरदान मिला है जो चाहे, जैसा चाहे, जितना चाहे उतना बना सकते हैं। तो ऐसे गोल्डन चान्स को अपनाया है?
सेवा का कितना भी विस्तार हो लेकिन स्वयं की स्थिति सार रूप में हो। अभी-अभी डायरेक्शन मिले एक सेकेण्ड में मास्टर बीज हो जाओ तो हो जाओ। टाइम न लगे। सेकेण्ड की बाज़ी है। एक सेकेण्ड की बाज़ी से सारे कल्प की तकदीर बना सकते हो। जितनी चाहो उतनी बनाओ।
07-12-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सर्व रिश्तों को समाप्त कर फरिश्ता बनो
पार्टियों के साथ –
(महाराष्ट्र ज़ोन) संगमयुग है वरदानी युग - इस समय अपने को वरदानों से सम्पन्न करो :-
सभी संगमयुग के विशेष वरदानों से अपने को सम्पन्न बना रहे हो? संगमयुग को कहा ही जाता है वरदानी युग। संगमयुग पर ही असम्भव, सम्भव होता है। सर्व परिवर्तन का युग संगमयुग है। तो ऐसे युग पर श्रेष्ठ पार्ट बजाने वाले हीरो आर हीरोइन एक्टर हो। इतना नशा सदा रहता है? संगमयुग पर ही सदा सम्पन्न का वरदान मिलता है। द्वापर से कभी-कभी अल्पकाल का मिलता है, संगमयुग को सदाकाल का वरदान है। अगर अभी भी कभी-कभी का होगा तो सदाकाल का कब होगा? संगमयुग पर नाम ही है शिव-शक्ति। जैसे नाम कम्बाइन्ड है वैसे सदा कम्बाइन्ड रहो, तो मायाजीत बन जायेंगे। अभी भी कम्बाइन्ड शिव शक्ति, भविष्य लक्ष्य भी कम्बाइन्ड विष्णु रूप का। तो डबल कम्बाइन्ड रूप हो ना। पाण्डव तो सदा याद में रहते हैं ना। पाण्डव और शक्तियों का अभी भी गायन चल रहा है। जिनका अब तक गायन चल रहा है उनका प्रैक्टिकल स्वरूप क्या होगा? सदा श्रेष्ठ स्वरूप। नीचे आते ही क्यों हो?
जब किसी को ऊंची सीट मीलती है तो कोई छोड़ता है क्या? आजकल देखों काँटों की कुर्सी को भी कोई नहीं छोड़ता। आपको तो बाप-दादा सदा सुखदाई स्थिति्ा की सीट दे रहे हैं। पोज़ीशन पर बिठा रहे हैं फिर नीचे क्यों आते हो? वह लोग कुर्सी के पिछाड़ी, देखो कितना प्रयत्न करते हैं। मालूम भी है दुखदाई है, फिर भी नहीं छोड़ते। तो आप श्रेंष्ठ स्थिति की कुर्सी को कभी भी नहीं छोड़ो। सदा अपने फरिश्तेपन की सीट पर सैट रहो तो सदा अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते रहेंगे। बाप द्वारा इतना सहज वर्सा प्राप्त हो तो और क्या चाहिए। अविनाशी वर्से को छोड़ क्यों देते हो? सिर्फ एक ही सहज बात तो याद करनी है हम बाप के और बाप हमारा। इसी एक बात में सब समाया हुआ है। यह है बीज। बीज को पकड़ना तो सहज होता है ना। वृक्ष के विस्तार को पकड़ना मुश्किल होता है। तो एक बात याद रखो। अब अभुल बनो। द्वापर कलियुग से भूलने वाले बने और इस समय अभुल बनते हो। इस वरदान भूमि से विशेष अभुल बनने का अर्थात् स्मृति-स्वरूप बनने का ही वरदान ले जाना। विस्मृति को यहाँ ही छोड़ करके जाना। विस्मृति के संस्कार समाप्त। कभी कोई बात हो तो यह वरदान याद करना।
बाप बच्चों से मिलने कहाँ से आते हैं? अगर बच्चों को आना पड़ता है तो बाप को भी आना पड़ता है। आप तो इसी साकारी लोक से आते हो, बाप तो इस लोक से भी परे से आता है। बाप का स्नेह बच्चों के साथ सदा है। सदा बच्चों की याद ही बाप को रहती है और कोई काम है क्या बाप को? बच्चों को याद करना, यही काम है ना। चाहे जाने या न जाने लेकिन बाप तो याद करते हैं। जैसे बाप का काम है बच्चों को याद करना वैसे बच्चों का भी काम है बाप को याद करना।
सदा लवलीन रहो। सदा सेफ्टी का साधन है - याद की भट्टी
ड्रामानुसार कलियुगी दुनिया का दु:ख और अशान्ति का नज़ारा देख बेहद के वैरागी बनते जायेंगे। कुछ भी होता है, अपनी सदा चढ़ती कला हो। दुनिया के लिए हाहाकार है और आपके लिए जय-जयकार है। आप जानते हो यह दुनिया हा-हाकार होने वाली है। हाहाकार होना अर्थात् जाना। किसी भी परिस्थिति में घबराना नहीं। हमारे लिए तैयारी हो रही है। साक्षी होकर सब प्रकार का खेल देखो। कोई रोता है, चिल्लाता है, साक्षी होकर देखने से मज़ा आता है। ‘क्या होगा?’ यह क्वेश्चन भी नहीं उठता। यह होना ही है। ऐसे अटल हो ना? ‘क्या होगा?’ यह क्वेश्चन तो नहीं उठता। अनेक बार यह सब हलचल देखी है और अब भी देख रहे हो। क्या भी हो दुनिया में, लेकिन याद की भट्टी में रहने वाले सदा सेफ रहते हैं।
सभी सदा फरिश्तों के समान डबल लाइट स्थिति में स्थित रहते हो। फरिश्तों का जो गायन है, वह हमारा गायन है ऐसे अनुभव करते हो? इस पुरानी देह में रहते देह के भान से न्यारे, इसको कहते हैं - फरिश्ता जीवन। यह फरिश्ता जीवन सदा हल्का होने के कारण ऊंची स्थिति पर ही रहेंगे। क्योंकि हल्की चीज़ कभी नीचे नहीं आती। अगर नीचे की स्थिति पर आते तो जरूर बोझ है। फरिश्ता अर्थात् निर्बन्धन, कोई भी रिश्ता नहीं देह से रिश्ता नहीं। निमित्त मात्र कार्य के लिए आधार लिया फिर उपराम।
10-12-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
पुण्य आत्माओं के लक्षण
आज बाप-दादा अपने सर्वश्रेष्ठ महान पुण्य-आत्माओं को देख रहे हैं। 1. पुण्यात्मा अर्थात् हर संकल्प और हर सेकेण्ड अपने और अन्य आत्माओं के प्रति पुण्य का खाता जमा करने और कराने वाली। 2. पुण्य आत्मा अर्थात् सदा कोई-न-कोई खज़ाने का महादान कर पुण्य कमाने वाली। 3. पुण्य आत्मा अर्थात् सदा उनके नयनों में बाप-दादा की मूर्त्त और सूरत में बाप-दादा की सीरत, स्मृति में बाप-समान समर्थ, मुख में सदा ज्ञान रत्न अर्थात् सदा अमूल्य बोल, हर कर्म में बाप-समान चरित्र, सदा बाप-समान विश्वकल् याणकारी वृत्ति, हर सेकेण्ड हर संकल्प के कल्याणकारी, रहमदिल किरणों द्वारा चारों ओर के दु:ख अशान्ति के अन्धकार को दूर करने वाले। 4. पुण्य आत्मा अपनी पुण्य की पूंजी से अनेक गरीबों को साहूकार बनाने वाले। ज्ञान-स्वरूप पुण्य आत्मा के एक पुण्य में भी बहुत ताकत है क्योंकि डायरेक्ट परमात्मा-पावर के आधार पर पुण्य आत्मा हैं।
जैसे द्वापर के इनडायरेक्ट दान-पुण्य करने वाले सकामी अल्पकाल के राजायें देखे व सुने होंगे, उन राजाओं में भी राज्य सत्ता की फुल पावर थी। जो आर्डर करें, कोई उसको बदल नहीं सकता। चाहे किसी को क्या भी बना दें। किसी को मालामाल बना दें, किसी को फाँसी पर चढ़ा दें, दोनों अथॉरिटी थी। यह है इनडायरेक्ट दान-पुण्य की सत्ता जो द्वापर के आदि में यथार्थ रूप में यूज़ करते थे। पीछे धीरे-धीरे वही राज्य सत्ता अयथार्थ रूप में हो गई। इस कारण आखिर अन्त में समाप्त हो गई। लेकिन जैसे इनडायरेक्ट राज्य सत्ता में भी इतनी शक्ति थी जो अपनी प्रजा को, परिवार को अल्पकाल के लिए सुखी वा शान्त बना देते थे। ऐसे ही आप पुण्य आत्माओं व महादानियों को भी डायरेक्ट बाप द्वारा प्रकृति-जीत, मायाजीत की विशेष सत्ता मिली हुई है तो आप ऑलमाइटी सत्ता वाले हो। अपनी ऑलमाइटी सत्ता के आधार पर अर्थात् पुण्य की पूंजी के आधार पर, शुद्ध संकल्प के आधार से, किसी भी आत्मा के प्रति जो चाहो, वह उसको बना सकते हो। आपके एक संकल्प में इतनी शक्ति है जो बाप से सम्बन्ध जोड़ मालामाला बना सकते हो। उनका हुक्म और आपका संकल्प। वह अपने हुक्म के आधार से जो च्हें वह कर सकते हैं - ऐसे आप एक संकल्प के आधार से आत्माओं को जितना चाहे उतना ऊंचा उठा सकते हो क्योंकि डायरेक्ट परमात्म- अधिकार प्राप्त हुआ है - ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें हो? लेकिन अब प्रैक्टिल में क्यों नहीं होता? अधिकार है, आलमाइटी सत्ता भी है फिर उसको यूज़ क्यों नहीं कर पाते? कारण क्या है? यह श्रेष्ठ सेवा अब तक शुरू क्यों नहीं हुई है?
संकल्प शक्ति का मिस यूज़ नहीं करो यूज़ करो
कोई भी सत्ता को सारी हिस्ट्री में अगर यूज़ नहीं किया है उसका विशेष कारण है अपनी सत्ता को मिसयूज़ करना। राजाओं ने राजाई गँवाई, नेताओं ने अपनी कुर्सी गँवाई, डिक्टेटर्स अपनी सत्ता खो बैठे - कारण? अपने निजी कार्य को छोड़ ऐशो-आराम में व्यस्त हो जाते हैं। कोई-न-कोई बात की तरफ स्वयं अधीन होते हैं, इसलिए अधिकार छूट जाता है। वशीभूत होते हैं, इसलिए अपना अधिकार मिसयूज़ कर लेते। ऐसे बाप द्वारा आप पुण्य आत्माओं को जो हर सेकेण्ड और हर संकल्प में सत्ता मिली हुई है, अथॉरिटी मिली हुई है, सर्व अधिकार मिले हुए हैं उसको यथार्थ रीति से सत्ता की वैल्यू को जानते हुए उसी प्रमाण यूज़ नहीं करते। छोटी-छोटी बातों में अपने अलबेलेपन के ऐश-आराम में या व्यर्थ सोचने और बोलने में मिस यूज़ करने से जमा हुई पुण्य की पूंजी व प्राप्त हुई ईश्वरीय सत्ता को जैसे यूज़ करना चाहिए वैसे नहीं कर पाते। नहीं तो आपका एक संकल्प ही बहुत शक्तिशाली है। श्रेष्ठ ब्राह्मणों का संकल्प आत्मा के तकदीर की लकीर खींचने वाला साधन है। आपका एक संकल्प एक स्विच है जिसको ऑन कर सेकेण्ड में अन्धकार मिटा सकते हो।
5. पुण्य आत्माओं का संकल्प एक रूहानी चुम्बक है जो आत्मा को रूहानियत की तरफ आकर्षित करने वाला है।
6. पुण्य आत्मा का संकल्प लाइट हाउस है जो भटके हुए को सही मंज़िल दिखाने वाला है।
7. पुण्य आत्मा का संकल्प अति शीतल स्वरूप है, जो विकारों की आग में जली हुई आत्मा को शीतला बनाने वाला है।
8. पुण्य आत्मा का संकल्प ऐसा श्रेष्ठ शस्त्र है जो अनेक बन्धनों की परतन्त्र आत्मा को स्वतन्त्र बनाने वाला है।
9. पुण्य आत्मा के संकल्प में ऐसी विशेष शक्ति है जैसे जन्त्र-मन्त्र द्वारा असम्भव बात को सम्भव कर लेते हैं वैसे संकल्प की शक्ति द्वारा असम्भव को भी सम्भव कर सकते हो। वशीकरण महामन्त्र द्वारा वशीभूत आत्मा को फायरफ्लाई मुआिफक उड़ा सकते हो।
10. जैसे आजकल के यन्त्रों द्वारा रेगिस्तान को भी हरा-भरा कर देते हैं, पहाड़ियों पर भी फूल उगा देते हैं। क्या आप पुण्य आत्माओं के श्रेष्ठ संकल्प द्वारा ना-उम्मीदवार से उम्मीदवार नहीं बन सकता? ऐसे हर सेकेण्ड के पुण्य की पुंजी जमा करो। हर सेकेण्ड हर संकल्प की वैल्यू को जान, संकल्प और सेकेन्ड को यूज़ करो। जो कार्य आज के अनेक पदमपति नहीं कर सकते वह आपका एक संकल्प आत्मा को पदमापदमपति बना सकता है। तो आपके संकल्प की शक्ति कितनी श्रेष्ठ है। चाहे जमा करो औ कराओ, चाहे व्यर्थ गँवाओ, यह आपके ऊपर है। गँवाने वाले को पश्चाताप करना पड़ेगा। जमा करने वाले सर्व प्राप्तियों के झूले में झूलेंगे। कभी सुख के झूले में, कभी शान्ति के झूले में, कभी आनन्द के झूले में। और गँवाने वाले झूले में झूलने वालों को देख अपनी झोली को देखते रहेंगे। आप सब तो झूलने वाले हो ना। राजस्थान और यू.पी.वाले आये हैं।
राजस्थान वाले तो राज्य सत्ता अर्थात् अधिकार की सत्ता, ईश्वरीय सत्ता द्वारा सदा अपने राजस्थान को रेगिस्तान से सब्ज़ बनाने में, रेगिस्तान को गुलिस्तान बनाने में, जंगल को फूलों का बगीचा बनाने में होशियार हैं। राजस्थान में मुख्य स्थान मुख्य केन्द्र है। तो जहाँ मुख्य केन्द्र है वह सब में मुख्य हैं ना। राजस्थान को तो नाज़ होना चाहिए, नशा होना चाहिए। राजस्थान से नये-नये सेवा के प्लैन्स निकलने चाहिए। राजस्थान को कोई नई इन्वेन्शन करनी चाहिए। अभी की नहीं है। राजस्थान की धरती का परिवर्तन करना पड़ेगा। उसके लिए बार-बार मेहनत का जल डालना पड़ेगा। लगातार का खाद डालना पड़ेगा। अभी हल्का खाद डाला है। अच्छा, दूसरे दिन फिर यू.पी. की महानता सुनावेंगे। फॉरेन तो अब भी फौरन करने वाले हैं। आजकल फॉरेन फौरन हो गया है। सोचा और किया। यू.पी. की महानता की माला भी वर्णन करेंगे। अभी तैयार करना फिर दूसरे दिन माला पहनाएंगे।
ऐसे श्रेष्ठ संकल्प की विधि द्वारा आत्माओं की सद्गति करने वाले ईश्वरीय सत्ता द्वारा आत्माओं को हर विपदा से छुड़ाने वाले, सदा पुण्य की पूंजी जमा करने और कराने वाले, सदा विश्व-कल्याण के दृढ़ संकल्प धारण करने वाले, ऐसे सर्व श्रेष्ठ पुण्य आत्माओं को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।
टीचर्स के साथ - टीचर्स तो सदा चढ़ती कला का अनुभव करती चल रही हो ना? टीचर्स की विशेषता - अनुभवी मूर्त बनना। टीचर अर्थात् सुनाने वाली नहीं लेकिन टीचर अर्थात् कहने के साथ अनुभव कराने वाली। तो सुनाना और स्वरूप में अनुभव कराना - यह है टीचर्स की विशेषता। सुनाने वाले या भाषण करने वाले, क्लासेज़ कराने वाले तो द्वापर से बहुत बड़े-बड़े नामीग्रामी बने लेकिन यहाँ ज्ञान-मार्ग में नामीग्रामी कौन बनता है? भाषण वाले? जो सुनाने के साथ-साथ अनुभव करायें। टीचर्स को विशेष अटेन्शन में यही सेवा हो कि मुझे, सदा जहाँ भी हैं वहाँ का और उसके साथ बेहद का वायुमण्डल वायब्रेशन्स सदा शुद्ध बनाना है। जैसे कोई हद की खुशबू वातावरण को कितना बदल लेती है, ऐसे टीचर्स के गुणों की धारणा की खुशबू, शक्ति की खुशबू वायुमण्डल व वायब्रेशन्स को सदा शक्तिशाली बनाये। टीचर कभी यह नहीं कह सकती कि वायुमण्डल ऐसा है, इनके वायब्रेशन्स के कारण मेरा पुरूषार्थ भी ऐसा हो गया। टीचर्स अर्थात् परिवर्तन करने वाली, न कि स्वयं परिवर्तन होने वाली। जो परिवर्तन करने वाला होता है वह कभी किसी के प्रभाव में स्वयं परिवर्तित नहीं होता है। तो टीचर्स की विशेषता वायुमण्डल को पावरफुल बनाना, कमज़ोरों को स्वयं शक्ति- शाली बन शक्ति का सहयोग देने वाली। दिलशिकस्त का उमंग हुल्लास बढ़ाने वाली। तो ऐसी टीचर्स हो ना? यह है टीचर्स का कर्त्तव्य या ड्यूटी। ऐसे स्वयं सम्पन्न हो जो औरों को भी सम्पन्न बना सकें। अगर कोई भी शक्ति की कमी होगी तो दूसरे भी उसी बात में कमज़ोर होंगे क्योंकि निमित्त हैं ना। टीचर्स को सदा अलर्ट और एवररेडी होना चाहिए। स्थूल वा सूक्ष्म आलस्य का नाम-मात्र भी न हो। पुरूषार्थ का भी आलस्य होता है और स्थूल कर्म में भी आलस्य होता है। पुरूषार्थ में दिलशिकस्त होते हैं तो आलस्य आ जाता हैं। क्या करें, इतना ही हो सकता है, ज्यादा नहीं हो सकता। हिम्मत नहीं है, चल तो रहे हैं, कर तो रहे हैं। पुरूषार्थ की थकावट भी आलस्य की निशानी हैं। आलस्य वाले जल्दी थकते हैं, उमंग वाले अथक होते हैं। तो टीचर्स अर्थात् न स्वयं पुरूषार्थ में थकने वाली न औरों को पुरूषार्थ में थकने दें। तो ऑलराउन्डर भी हों और अलर्ट भी हों।
हर कार्य में सम्पन्न। कभी-कभी टीचर्स समझती हैं कि क्लास कराना, इन्टरनल कार्य करना हमारा काम है और स्थूल सेवा, वह दूसरों का काम है, लेकिन नहीं। स्थूल कार्य भी इन्टरनल कार्य की सबजेक्ट है। यह भी पढ़ाई की सबजेक्ट है, तो इसको हल्की बात नहीं समझो। अगर कर्मणा में मार्क्स कम होंगी तो भी पास विद ऑनर नहीं बन सकेंगी। बैलेन्स होना चाहिए। इसको सेवा न समझना यह भी राँग हैं। इन्टरनल सेवा का यह भी एक भाग है। अगर प्यार से योगयुक्त होकर भोजन न बनाओ तो अन्न का मन पर प्रभाव कैसे होगा। स्थूल कार्य नहीं करेंगे तो कर्मणा की मार्क्स कैसे जमा होगी। तो टीचर्स अर्थात् स्पीकर नहीं, क्लास कराने वाली, कोर्स कराने वाली नहीं, जैसा समय जैसी सबजेक्ट उसमें ऐसे ही रूचि पूर्वक सेवा में सफलता प्राप्त करें, इसको कहा जाता है - ऑलराउन्डर। ऐसे हो ना कि इन्टरनल वाली और हैं, एक्सटर्नल वालीं और हैं। दोनों का ही आपस में सम्बन्ध है।
टीचर्स को त्याग और तपस्या तो सदा ही याद हैं ना? किसी भी व्यक्ति या वैभव के आकर्षण में न आयें। नहीं तो यह भी एक बन्धन हो जाता है कर्मातीत बनने में। तो टीचर्स अपने आपके पुरूषार्थ में सन्तुष्ट है? चढ़ती कला की महसूसता होती है? सबसे सन्तुष्ट हो सभी? अपने पुरूषार्थ से, सेवा से फिर साथियों में, सबसे सन्तुष्ट? सबके सर्टिफिकेट होने चाहिए ना? तो सभी सर्टिफिकेट हैं। क्या समझती हो? अगर आप सच्चाई से और सफाई से सन्तुष्ट हैं तो बाप भी सन्तुष्ट है। एक होता है वैसे ही कहना कि सन्तुष्ट हैं, एक होता है सच्चाई-सफाई से कहना कि सन्तुष्ट हैं। सदा सन्तुष्ट! यहाँ आई हो, कोई भी कमी हो तो अपने प्रति या सेवा के प्रति, तो जो निमित्त बने हुए हैं उनसे लेन-देन करना। आगे के लिए चढ़ती कला करके ही जाना। कमी को भरने और स्वयं को हल्का करने के लिए ही तो आते हो। कोई भी छोटी-सी बात भी हो जो पुरूषार्थ की स्पीड में रूकावट डालने के निमित्त हो तो उसको खत्म करके जाना।
राजस्थान ज़ोन - पाटियों से मुलाकात :- बाप-दादा सभी राज़स्थान निवासी बच्चों को किस नज़र से देखते हैं? राजस्थान के सभी राजे बच्चे हैं अर्थात् स्व-राज्यधारी हैं। अब स्वराज्यधारी और भविष्य में विश्व-राज्यधारी। जितना स्वराज्य उतना ही विश्व पर राज्य। जितने यहाँ अधिकारी बनते, उतना वहाँ भी बनते हैं। तो सभी स्वराज्यधारी हो? स्व पर राज्य अधिकारी बनने वाले अन्य आत्माओं को भी स्वराज्य के अधिकारी बना सकते हैं। तो पूरा अधिकार प्राप्त किया है कि कर रहे हो? अपने पुरूषार्थ से अपनी प्रारब्ध को समझ सकते हो। बहुत समय का पुरूषार्थ तो बहुत समय की प्रारब्ध। बाप वर्सा तो सबको एक जैसा देते हैं लेकिन वर्से को सम्भालने वाले अपनी यथाशक्ति अनुसार ही सम्भाल सकते हैं। लौकिक में भी बाप जायदादा एक जैसी बाँटते हैं लेकिन उसे कोई अल्पकाल चलाते, कोई बहुतकाल। कोई एक वंश तक कोई अनेक वंशों तक। तो बाप यहाँ भी वर्सा तो एक-जैसा देते लेकिन सम्भालने वाले नम्बरवार र्हं। तो राजस्थान वाले कौन-सा नम्बर हैं। नम्बर वन वाले हो? कैसे करें? क्या करें? ऐसे कहने वाले तो नहीं हो न? कैसे मन को लगायें, कैसे ऑखों को एकाग्र करें, ऐसी कम्पलेन्ट करने वाले तो नहीं हो न? अधिकारी कभी ‘कैसे’ नहीं कहेंगे? अधिकारी तो ऑर्डर से चलायेंगे। अधिकारी को ऑडर से ही चलाने का अधिकार है। ऑखे धोख् देती है ऐसे नहीं कहेंगे, आर्डर देंगे ऐसे देखना है। यही अन्तर है अधिकारी और अधिन में। क्या करें, हो गया, यह बोल अधिकारी कभी नहीं बोलेंगे। तो ऐसे अधिकारी हो कि कभी-कभी वाले हो। अगर कभी-कभी के अधिकारी होंगे तो कभी-कभी झूले में झूलेंगे। सदा बाप के साथ अतिइन्द्रिय सुख के झूले में कभी-कभी वाले कैसे झूलेंगे? सदा का वरदान है कभी-कभी का, ज्ञान अर्थात् सदा। भक्ति में कभी प्राप्ति कभी पुकार। लेकिन ज्ञान में सदा प्राप्ति। यही तो अन्तर है। तो आप सब कौन हो - ज्ञानी या भक्त। ज्ञानी को अविनाशी बाप का सदाकाल का वर्सा है। अभी तक कमी क्यों है उसका कारण क्या है? (अलबेलापन) समझदार तो बहुत हो, समझते भी हो फिर क्यों नहीं करते? अलबेलेपन को समझते भी आने क्यों देते?
अलबेलापन न आए उसकी विधि क्या है? उसकी विधि है? सदा स्वचिन्तन करो और शुभ चिन्तक बनो। स्वचिन्तन की तरफ अटेन्शन कम है, अमृतबेले से लेकर स्वचिन्तन शुरू करो और बार-बार स्वचिन्तन के साथ-साथ स्व की चैकिंग करो। चैंकिग नहीं करते, चिन्तन नहीं करते, इसको एक दृढ़ संकल्प की रीति से अपने जीवन का निजी कार्य नहीं बनाते, इसलिए अलबेलापन आता है। जैसे भोजन खाना एक निजी कार्य है न, वह कभी भूलते हो क्या? आराम करना, यह निजी कार्य है ना, अगर एक दिन भी 2-4 घन्टे आराम कम करेंगे तो चिन्तन चलेगा नींद कम की। जैसे उसको इतना आवश्यक समझते हो वैसे स्वचिन्तन और स्व की चैकिंग, इसको आवश्यक कार्य न समझने के कारण अलबेलापन आता है। पहले वह आवश्यक समझते हो यह नहीं। अमृतबेले रोज़ इस आवश्यक कार्य को री-रीफ्रेश करो तभी सारा दिन उसका बल मिलेगा। अगर फिर भी अलबेलापन आता तो 3. अपने-आपको सज़ा दो। जो सबसे प्यारी चीज़ व कत्र्तव्य लगता हो उससे अपने को किनारा करो। पश्चाताप करना चाहिए। अभी पश्चाताप कर लेंगे तो पीछे नहीं करना पड़ेगा। 4. रोज़ अमृतबेले अपनी महिमा, बाप की महिमा, अपना कर्त्तव्य, बाप का कर्त्तव्य रिवाइज़ करो। एक निजी नियम बनाओ। अलबेलापन तब आता है जब सिर्फ डायरेक्शन समझा जाता, नियम नहीं बनाते। जैसे दफतर में जाना जीवन का नियम है तो जाते हो ना? ऐसे नीज-नीज को नियम दो। अमृतबेले उठकर अपने नियम को दोहराओ। मेरे जीवन की क्या विशेषतायें हैं। ब्राह्मण जीवन के क्या नियम हैं। और हर घण्टे चैंकिग करो कि कहाँ तक नियम को अपनाया है। हर समय बार-बार चेकिंग करो, सिर्फ रात को नहीं।
इस वरदान भूमि से दृढ़ संकल्प की विशेष सौगात ले जाना। जो भी करो पहले दृढ़ संकल्प - ‘करना ही है’ यह सौगात ले जाओ तो सदा याद रहेगा। बार-बार अटेन्शन के चौकीदार रखना तो वह पहरा देते रहेंगे। अलबेलेपन की निवृत्ति का साधन है। 5. बार-बार अटेन्शन। सहज मार्ग समझते हो, इसलिए अलबेले हो जाते हो। 6. कोई कड़ा नियम बनाओ। जैसे भक्ति में कड़ा व्रत धारण करते हैं, ऐसे कड़ा नियम बनायेंगे तो अलबेलापन समाप्त हो जायेगा। जैसे साकार बाप को अथक देखा ना, ऐसे ही फालो फादर। पहले स्व के ऊपर मेहनत फिर सेवा में मेहनत। तभी धरती को चेन्ज कर सकेंगे। अभी सिर्फ ‘‘कर लेंगे - हो जायेगा’’ इस आराम के संकल्पों के डंलप को छोड़ो। ‘‘करना ही है’’ यह मस्तक में सदा सलोगन याद रहे तो फिर परिवर्तन हो जायेगा।
आपस में पुरूषार्थ के स्व उन्नति के प्लैन्स का ग्रुप बनाओ। उन्नति की बातों पर रूह-रूहान करो। लेन-देन करते-करते बार-बार यह रिपीट करते-करते रिवाइज़ करतेकरते रियलाइजेशन भी हो जायेगी। रोज़ किस विषय पर और क्या-क्या डीप रूह-रूहान की, इसका हर सप्ताह समाचार का पत्र आना चाहिए। क्या-क्या रूह-रूहान की। क्या चार्ट रहा। यह भी उन्नति का झन्डा है। धर्मराज के पास बाप का बच्चा डन्डा खाये - यह शोभा देगा? इसलिए अभी उन्नति का झन्डा ठीक है।
अभी तो चारों ओर फैलाव करो - राजस्थान के हिसाब से मुख्यालय के हिसाब से झन्डा तो ऊंचा है ना। अब ऐसा नम्बरवन बनो जो आपको सब फालो करें। स्व- उन्नति की एक इन्वेन्शन करके दिखाओ तो सब फालों करेंगे।
आगरा जोन - देह के बन्धन से न्यारा रहने वाला ही बाप का प्यारा है :- सभी सदा प्रवृत्ति में रहते भी न्यारे और बाप के प्यारे, ऐसी स्थिति में स्थित हो चलते हो? जितने न्यारे होंगे उतने ही बाप के प्यारे होंगे। तो हमेशा न्यारे रहने का विशेष अटेन्शन है? सदा देह से न्यारे आत्मिक स्वरूप में स्थित रहना। जो देह से न्यारा रहता है वह प्रवृत्ति के बन्धन से भी न्यारा रहता है। निमित्त मात्र डायरेक्शन प्रमाण प्रवृत्ति में रह रहे हो, सम्भाल रहे हो लेकिन अभी-अभी आर्डर हो कि चले आओ तो चले आयेंगे या बन्धन आयेगा। सभी स्वतन्त्र हो? बिगुल बजे और भाग आयें। ऐसे नष्टोमोहा हो? ज़रा भी 5% भी अगर मोह की रग होगी तो 5 मिनट देरी लगायेंगे और खत्म हो जायेगा। क्योंकि सोचेंगे, निकलें या न निकलें। तो सोच में ही समय निकल जायेगा। इसलिए सदा अपने को चेक करो कि किसी भी प्रकार का देह का, सम्बन्ध का, वैभवों का बन्धन तो नहीं हैं। जहाँ बन्धन होगा वहाँ आकर्षण होगी। इसलिए बिल्कुल स्वतन्त्र। इसको ही कहा जाता है - बाप-समान कर्मातीत स्थिति। सभी ऐसे हो ना?
12-12-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
रूहानी अलंकार और उनसे सजी हुई मूरतें
बाप-दादा अपने सर्व बच्चों को आज विशेष अलंकारी स्वरूप में देख रहे हैं हरेक की सजी सजाई अलंकारधारी अति सुन्दर मूर्त देख रहे हैं। अपने-आप को देखा है! कौन-कौन से अलंकार धारण किये हुए हैं। अपने रूहानी अलंकारों की सजावट को सदा धारण कर चले रहे हो?
आज अमृतबेले हरेक बच्चे की सजी सजाई हुई मूरत देखी। क्या देखा? हरेक बच्चा अति सुन्दर छत्रछाया के नीचे बैठा हुआ है। जिस छत्रछाया के नीचे होने के कारण प्रकृति और माया के वार से बचे हुए थे। बहुत रूहानी सेफ्टी के साधन के अन्दर थे। जरा सा सूक्ष्म वायब्रेशन भी छत्रछाया के अन्दर पहुँच नहीं सकता। ऐसी छत्रछाया के अन्दर विश्व-कल्याण की सेवा के ज़िम्मेवारी के ताजधारी बैठे हुए थे। डबल ताज बहुत सुन्दर सज रहा था। एक सम्पूर्ण प्यूरिटी के हिसाब से लाइट का क्राउन, दूसरा सेवा का ताज। इसमें नम्बरवार थे। किसी-किसी बच्चे का प्यूरिटी की तीन स्टेजिज़ संकल्प, बोल और कर्म के लाइट का क्राउन एक तो फैला हुआ ज्यादा था। जितनी तीनों स्टेज की प्यूरिटी उसी अनुसार लाइट का क्राउन, चारों ओर अपना प्रकाश फैला रहा था। किसी का ज्यादा तो किसी का कम था। साथ-साथ सेवा की ज़िम्मेवारी के अनुसार लाइट की पावर में अन्तर था। अर्थात् परसेन्टेज में फर्क था। कोई 10 पावर के तो कोई हज़ार पावर के, परसेन्ट और फैलाव अनुसार भिन्न-भिन्न नम्बरवार ताज़धारी थे।
जितने ताज में नम्बर थे उसी अनुसार छत्रछाया में भी फर्क था, किसी की छत्रछाया इतनी बड़ी थी जो उसी छत्रछाया के अन्दर रह कार्य कर सकते थे। सारे विश्व का भ्रमण छत्रछाया के अन्दर कर सकते थे, इतनी बेहद की छत्रछाया थी और किसी-किसी की यथा-शक्ति नम्बरवार हद की थी। ऐसी हद की छत्रछाया के अन्दर बैठे हुए अर्थात् अपने पुरूषार्थ के अन्दर सदा याद के बजाए नियम प्रमाण, समय प्रमाण याद में रहने वाले। 4 घण्टे वाले, 8 घण्टे वाले अर्थात् याद को भी हद में लाने वाले। याद बेहद के बाप की है लेकिन याद करने वालों ने बेहद की याद को भी हद में ला दिया है। सम्बन्ध अविनाशी है लेकिन सम्बन्ध निभाने वालों ने समय निश्चित कर विनाशी कर दिया है। कभी बाप से सम्बन्ध, कभी व्यक्ति से सम्बन्ध, कभी वैभवों से सम्बन्ध, कभी अपने ही पुराने संस्कार व स्वभाव के साथ सम्बन्ध। लेने के लिए तो अविनाशी अधिकार है, अविनाशी वर्सा है। लेकिन देने के समय विनाशी वर्से से भी किनारा कर देते हैं। लेने में फराखदिल हैं और देने में कहाँ-कहाँ इकॉनामी देने (म्दिंहदस्ब्) करते हैं। इकॉनामी कैसे करते हो, वह जानते हो? कई बच्चे बड़ी होशियारी से बाप से रूह-रूहान करते हैं। क्या कहते हैं? फलानी-फलानी बात में इतना तो परिवर्तन कर लिया है, बाकी थोड़ा-सा है, वह भी हो जायेगा। इतना थोड़ा तो होगा ही ना। लेने में ऐसे नहीं कहते कि थोड़ा-थोड़ा दे दो। अगर बाप कोई महारथी की स्पेशल खातिरी करें तो संकल्प उठेगा कि क्यों हम भी तो अधिकारी हैं। लेने में ज़रा भी नहीं छोड़ेंगे लेकिन देने में थोड़ा-थोड़ा कर खत्म कर देंगे। यह इकॉनामी करते हैं, चतुराई से बाप को भी दिलासे देते हैं। ज़रूर सम्पन्न बन जायेंगे, हो जायेगा। जब लेना - एक सेकेण्ड का अधिकार है तो देने में भी इतने फराखदिल बनो। परिवर्तन करने की शक्ति फुल परसेंन्टेज़ से यूज़ करो। तो निरन्तर याद को हद लाये हुए हैं इसलिए छत्रछाया में भी नम्बर देखे। नम्बरवार होने के कारण माया के वायब्रेशन वायुमण्डल, व्यक्ति-वैभव, स्वभाव-संस्कार वार करते हैं। नहीं तो छत्रछाया के अन्दर सदा सेफ रह सकते हैं।
ताजधारी भी देखे, छत्रधारी भी देखे। साथ-साथ सभी ताजधारी तख्तनशीन भी देखे। तख्त को तो जानते हो - बाप के दिलतख्तनशीन। लेकिन यह दिलतख्त इतना प्योर है जो इस तख्त पर सदा बैठ भी वही सकते जो सदा प्योर हैं। बाप तख्त से उतारते नहीं लेकिन स्वयं उतर आते हैं। बाप की सब बच्चों को सदाकाल के लिए ऑफर है कि सब बच्चे सदा तख्तनशीन रहो। लेकिन आटोमेटिक कर्म की गति के चक्र प्रमाण सदाकाल वही बैठ सकता है जो सदा फालो फादर करने वाले हैं। संकल्प में भी अपवित्रता वा अमर्यादा आ जाती है तो तख्तनशीन की बजाए गिरती कला में अर्थात् नीचे आ जाते हैं। जैसे-जैसे कर्म करते हैं उसी अनुसार उसी समय पश्चाताप करते हैं व महसूस करते हैं कि तख्तनशीन से गिरती कला में आ गये। अगर कोई ज्यादा उल्टा कर्म होता है तो पश्चाताप की स्थिति में आ जाते हैं। अगर कोई विकर्म नहीं लेकिन व्यर्थ कर्म हो जाता है तो पश्चाताप की स्थिति नहीं लेकिन महसूसता की स्टेज होती है। बारबार व्यर्थ संकल्प महसूसता की स्टेज पर लाता रहेगा कि यह करना नहीं चाहिए। यह राँग है, जैसे काँटे के समान चुभता रहेगा। जहाँ पश्चाताप की स्थिति व महसूसता की स्टेज अनुभव होगी वहाँ तख्तनशीन के नशे की स्टेज नहीं होगी। फर्स्ट स्टेज है - तख्त नशीन। सेकेण्ड स्टेज है - करने के बाद महसूसता की स्टेज। इसमें भी नम्बर है। कोई करने के बाद महसूस करते हैं। कोई करते समय ही महसूस करते हैं और कोई कर्म होने के पहले ही कैच करते हैं कि कुछ होने वाला है। कोई तूफान आने वाला है। आने के पहले ही महसूस कर, कैच कर समाप्त कर देते हैं। तो सेकेण्ड स्टेज है महसूसता की। तीसरी स्टेज है - पश्चाताप की। इसमें भी नम्बर हैं - कोई पश्चाताप के साथ परिवर्तन कर लेते हैं और कई पश्चाताप करते हैं लेकिन परिवर्तन नहीं कर पाते। पश्चाताप है लेकिन परिवर्तन की शक्ति नहीं है तो उसके लिए क्या करेंगे।
ऐसे समय पर विशेष स्वयं के प्रति कोई-न-कोई व्रत और नियम बनाना चाहिए। जैसे भक्ति मार्ग में भी अल्पकाल के कार्य की सिद्धि के लिए विशेष नियम और व्रत धारण करते हैं। व्रत से वृत्ति परिवर्तन होगी। वृत्ति से भविष्य जीवन रूपी सृष्टि बदल जायेगी क्योंकि विशेष व्रत के कारण बार-बार वही शुद्ध संकल्प, जिसके लिए व्रत रखा है, वह स्वत: याद आता है। जैसे भक्त लोग विशेष किसी देवी या देवता का व्रत रखते हैं तो न चाहते भी सारा दिन उसी देवी या देवता की याद आती है और याद के कारण ही बाप उसी देवी या देवता द्वारा याद की रिटर्न में उनकी आशा पूर्ण कर देते हैं। तो जब भक्तों के व्रत का भी फल मिलता है तो ज्ञानी तू आत्मा अधिकारी बच्चों को शुद्ध संकल्प रूपी व्रत का व दृढ़ संकल्प रूपी व्रत का प्रत्यक्ष फल जरूर प्राप्त होगा। तो सुना, तख्तनशीन तो सब देखे लेकिन कोई सदा काल के, उतरते चढ़ते हुए देखे, अभी-अभी तख्तनशीन, अभी-अभी नीचे। चौथा अलंकार क्या देखा?
हरेक के पास स्वदर्शन चक्र देखा। स्वदर्शन चक्रधारी भी सब थे लेकिन कोई का चक्र स्वत: ही चल रहा था और कोई को चलाना पड़ता था और कोई फिर कभी-कभी राइट तरफ चलाने की बजाए राँग तरफ चला लेते थे। जो स्वदर्शन चक्र के बजाए माया की चकरी में आ जाते थे। क्योंकि लेफ्ट साइड हो गया ना। स्वदर्शन चक्र के बजाए पर-दर्शन चक्र चला लेते थे, यह है लेफ्ट साइड चलाना। मायाजीत बनने के बजाए पर के दर्शन के उलझन के चक्र में आ जाते थे जिससे ‘क्यों’और ‘क्या’ के क्वेश्चन की जाल बन जाती, जो स्वयं ही रचते और फिर स्वयं ही फँस जाते, तो सुना क्या-क्या देखा?
चारों ही अलंकारों से सजे-सजाए ज़रूर थे लेकिन नम्बरवार थे। अब क्या करेंगे? बेहद की छत्रछाया के अन्दर आ जाओ अर्थात् कभी-कभी की याद का अन्तर मिटाकर निरन्तर याद की छत्रछाया में आ जाओ। प्यूरिटी और सेवा के डबल ताज को परसेन्टेज और प्रस्ताव में भी बेहद में करो अर्थात् बेहद फैली हुई लाइट के ताजधारी बनो। देने और लेने में सेकेण्ड के अभ्यासी बन सदा तख्तनशीन बनो। चढ़ने और उतरने में थक जायेंगे, सदा बेहद के रूहानी आराम में तख्तनशीन रहो। अर्थात् निर्बन्धन आत्मा के आराम की स्थिति में रहो, नॉलेजफुल मास्टर हो सदा और स्वत: स्वदर्शन चक्र फिराते रहो। पर-दर्शन चक्र क्यों क्या के क्वेश्चन की जाल से सदा मुक्त हो जाओ तो क्या होगा। सदा योग-युक्त, जीवन मुक्त चक्रवर्ती बन बाप के साथ विश्व-कल्याण की सेवा में चक्र लगाते रहेंगे। विश्व-सेवाधारी चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे।
ऐसे सदा अलंकारी, सदा स्वदर्शन चक्रधारी, माया के हर स्वरूप को मास्टर नॉलेज फुल स्टेज पर स्थित हो पहले ही परखने वाले, अनेक प्रकार के माया के वार को समाप्त कर माया को बलिहार बनाने वाले, बाप के गले के हार बनने वाले, अविनाशी सर्व सम्बन्धों की सदा प्रीति की रीति निभाने वाले, ऐसे बाप समान बच्चों को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।
यू.पी. निवासी आये हैं।
यू.पी. की विशेषता है जैसे भक्ति के तीर्थ स्थान यू.पी. में बहुत हैं, वैसे ज्ञान के सेवाकेन्द्रों का विस्तार भी अच्छा कर रहे हैं। यू.पी. में भक्त आत्माएं भी बहुत हैं तो मास्टर भगवान अब भक्तों की पुकार सुन और भी जल्दी-जल्दी भक्ति का फल उनको दो। दे रहे हैं, लेकिन और भी स्पीड को बढ़ाओ। यू.पी. की विशेषता - अनेक गरीबों को साहूकार बनाने का बहुत अच्छा चान्स ले रहे है। रहमदिल बन रहम की भावना अच्छी दिखा रहे हैं। यू.पी. का कौरव गवर्नमेन्ट के नक्शे में भी विस्तार है। एरिया बहुत लम्बी है ऐसे ही पाण्डव गवर्नमेन्ट के नक्शे में सेवा की एरिया सबसे नम्बरवन करके दिखाओ। विशेष इस वर्ष में रहे हुए गुप्त वारिसों को प्रत्यक्ष करो। अब तक जो किया है वह बहुत अच्छा किया है, अभी और भी चारों ओर की आत्मायें वन्स मोर (Once More) करें। वाह-वाह की ताली बजाएं। ऐसा विशेष कार्य भी यू.पी. वाले करेंगे। अभी और भी ज्यादा ज्ञान-स्थान बनाओ। तीर्थस्थानों से ज्ञानस्थान बनाते जाओ। अच्छा - बाकी जो भी सब आए हैं जैसे भी पुरूषार्थ में आगे बढ़ रहे हैं, आगे बढ़ने के लिए मुबारक हो। उससे भी अधिक हाई जम्प देने के लिए सदा स्मृति स्वरूप भव।
पार्टियों के साथ अव्यक्त बाप-दादा की पर्सनल मुलाकात
1. सहज यागी का चित्र है - विष्णु की शेष शैया:- आप सब सदा फाउण्डेशन के समान मज़बूत रहने वाले, सदा अचल हो ना? हिलने वाले तो नहीं हो? अंगद का जो अब तक गायन हो रहा है, वह किन का गायन है? अपना ही गायन फिर से सुन रहे हो। जो कल्प पहले विजय प्राप्त की है उस विजय का नगाड़ा अब भी सुन रहे हो। वह नक्शा अभी आपके सामने है कल्प-कल्प विजयी हो। अनेक बार वे विजयी हो, इसलिए सहजयोगी कहा जाता है। अनेक बार किया हुआ फिर करना तो सहज हो जाता है ना। नई बात नहीं कर रहे हो। बने हुए को बना रहे हो इसलिए कहा जाता है बनाबना या-बना रहे हैं, बना हुआ है लेकिन फिर रिपीट कर बनाया है। पहले भी पदमा पदम भाग्यशाली बने थे अब भी बन रहे हो। ऐसे सहयोगी हो। उनकी निशानी तथा रहन-सहन का चित्र कौन-सा दिखाया है? विष्णु की शेष शैया अर्थात् साँप को भी शैया बना दिया अर्थात् वह अधीन हो गए वह अधिकारी हो गए। नहीं तो साँप को कोई हाथ नहीं लगाता, साँपों को शैया बना दिया अर्थात् विजयी हो गये। विकारों रूपी साँप ही अधीन हो गये अर्थात् शैया बन गये तो निश्चिन्त हो गये ना। जो विजयी होते हैं वह सदा निश्चिन्त विष्णु के समान सदा हर्षित रहते हैं। हर्ष भी तब होगा जब ज्ञान का सुमिरण करते रहेंगे। तो यह चित्र आप का ही है ना। जो भी बाप के बच्चे बने और विजयी हो रहे हैं, उन सब का यह चित्र है। सदा सामने देखो कि विकारों को अधीन किया हुआ अधिकारी हूँ। आत्मा सदा आराम स्थिति में रहे। शरीर को सोने का आराम नहीं, वह तो सेवा में हि·याँ देनी हैं लेकिन आत्मा की निश्चिन्त स्थिति - यह है आराम? क्योंकि कि अब भटकने से बच गये।
मातायें सभी गोपिकायें, गोपी वल्लभ के साथ झूले में झूलने वाली हो ना? आधा कल्प जड़ चित्रों को बहुत प्यार से झुलाया अब झुलाना खत्म हुआ झूलना शुरू हो गया। कभी सुख के झूले में, कभी शान्ति के झूले में...अनेक झूले हैं, जिसमें चाहो झूलो, नीचे नहीं आओ। माताओं के झूला अच्छा लगता है। तब तो बच्चों को भी झूलाती रहती हैं। भक्ति में बहुत झुलाया अब भक्ति का फल तो लेंगी ना? भक्ति है झुलाना और फल है झूलना। तो अब जो फल मिल रहा है वह खा रही हो या देख-देख कर खुश हो रही हो। माताओं में यह भी आदत होती है - खायेंगी नहीं, रख देंगी। यह तो जितना खायेंगे उतना बढ़ेगा। 1 सेकेण्ड खायेंगी तो एक समय का अनुभव सदाकाल का अनुभवी बना देगा। इसलिए खूब खाओ। माताओं को देख करके बाप को भी खुशी होती है। जिन्हें दुनिया ने ना उम्मीदवार बनाया, बाप ने उन्हें ही सिर का ताज बना दिया। उन्होंने पुरानी जुत्ती समझा और बाप ने सिर का ताज बनाया तो कितनी खुशी होनी चाहिए। पाण्डवों का भी सदा सहयोगी और सदा साथ रहने का गायन है। यादगार में देखो गोपी वल्लभ के साथ ग्वाल-बाल दिखाये हैं। हर कार्य में सहयोग और सदा साथ रहने वाले हो ना? सभी याद और सेवा दोनों में तत्पर रहो। सेवा से भविष्य प्रारब्ध बनेगी और याद से वर्तमान खुशी में रहेंगे। कोई अप्राप्त वस्तु ही नहीं। सदा तृप्त।
15-12-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘विदेशी बच्चों के साथ अव्यक्त बाप-दादा की मुलाकात’’
आज सभी पदमापदम भाग्यशाली बच्चों को बाप-दादा भी देख हर्षित हो रहे हैं। एक-एक विश्व के शो केस के अन्दर अमूल्य रत्न हैं। हरेक रत्न अपनी-अपनी वैल्यू यथा-शक्ति जानते हैं। लेकिन बाप-दादा सदा सर्व बच्चों की सम्पन्न स्टेज ही देखते हैं। वर्तमान फरिश्ता रूप और भविष्य देवता रूप, मध्य का पूज्य रूप - तीनों ही रूप आदि, मध्य और अन्त का देखते हुए हरेक रत्न की वैल्यू को जानते हैं। हरेक रत्न कोटों में से कोई और कोई में भी कोई है। ऐसे ही अपने को समझते हो ना? एक तरफ विश्व की कोटों आत्मायें रखो ओर दूसरी तरफ एक अपने को रखो तो कोटों से भी ज्यादा आप हरेक का वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ है। इतना नशा सदा रहता है? आज दिन तक भी आपके पूज्य स्वरूप देवी वा देवता के रूप की भक्त लोग पूजा कर रहे हैं। आपके ही जड़ चित्रों में चैतन्य देवताओं का आह्वान कर रहे हैं। पुकार रहे हैं, आओ, आ करके अशान्ति से छुड़ाओ। भकतों की पुकार, अपनी भविष्य में होने वाली प्रजा का भी आह्वान सुनाई देता है?
आज की राजनीति की हलचल को देख आप विश्व के महाराजन महारानियों को व वैकुण्ठ रामराज्य को सब याद कर रहे हैं कि अब वह राज्य चाहिए। रामराज्य में व सतयुगी वैकुण्ठ में आप सब बाप के साथ-साथ राज्य-अधिकारी हो ना। तो आप अधिकारियों को आपकी प्रजा आह्वान कर रही है कि फिर से वह राज्य लाओ। आप सब श्रेष्ठ आत्माओं को उनकी आवाज़ नहीं पहुँचती है? सब चिल्ला रहे हैं, कोई भूख से चिल्ला रहे हैं, कोई मँहगाई से चिल्ला रहे हैं, कोई तन के रोग से चिल्ला रहे हैं, कोई मन की अशान्ति से चिल्ला रहे हैं, कोई टैक्स से चिल्ला रहे हैं, कोई परिवार की समस्याओं से चिल्ला रहे हैं, कोई अपनी कुर्सी की हलचल के कारण चिल्ला रहे हैं, बड़े-बड़े राज्य-अधिकारी एक-दूसरे से भयभीत होकर चिल्ला रहे हैं, छोटे-छोटे बच्चे पढ़ाई के बोझ से चिल्ला रहे हैं। छोटे से बड़े, सब चिल्ला रहे हैं। चारों ओर का चिल्लाना आप सबके कानों तक पहुँचता है? ऐसे समय पर बाप के साथ-साथ आप सब भी टॉवर ऑफ पीस हो। सबकी नज़र टॉवर ऑफ पीस की तरफ जा रही है। सब देख रहे हैं - हा-हाकार के बाद जय-जयकार कब होती है। तो सब टॉवर ऑफ पीस बताओ, कब जय-जयकार कर रहे हो? क्योंकि बाप-दादा ने साकार रूप में निमित्त आप बच्चों को ही रखा है। तो हे साकारी फरिश्ते, कब अपने फरिश्ते रूप से विश्व के दु:ख दूर कर सुखधाम बनायेंगे। तैयार हो?
अनूठा प्रसाद
विदेशी तो लास्ट इज़ फास्ट वाले हैं ना। फास्ट गति से कब सर्व की सद्गति कर रहे हो? एवररेडी हो? बाप-दादा सबको बच्चों के तरफ ही इशारा करते हैं। शक्तियों की पूजा ज्यादा है। दो तरफ लम्बी लाइन लगती है। पाण्डवों की यादगार हनुमान के पास और शक्तियों की तरफ से वैष्णव देवी के पास - दोनों के पास लम्बी लाइन लगती है। दिन-प्रतिदिन लाइन लम्बी होती जा रही है। तो सर्व भक्तों को भक्ति का फल, गति-सद्गति देने वाले हो ना? तो सदा अपने को मास्टर गति-सद्गति दाता समझ, गति और सद्गति का प्रसाद भक्तों को बाँटों, प्रसाद बाँटना आता है। टोली बाँटने का अभ्यास तो ही ही गया है, अब यह प्रसाद बाँटना है।
आज तो विशेष विदेशियों से मिलने आये हैं। आज अमृतबेले का दृश्य सुनाया कि विश्व में क्या देखा। एक चिल्लाना, दूसरा चलाना। एक तरफ चिल्ला रहे हैं और दूसरे तरफ सब कार्य को धक्के से चला रहे हैं। सब बातों में यह सोचते हैं कि चलाना ही है। जैसे कोई स्वयं नहीं चल पाता तो धक्के से व आार्टिफिशियल पहिये लगाकर चलाते हैं। आजकल की भाषा में - हर कार्य में जब तक किसी-न-किसी साधन के पहिये नहीं लगाते तब तक कार्य नहीं चलता। तो पहिये लगाने का सीज़न है? फैशन है। इससे क्या सिद्ध होता है कि वैसे कार्य नहीं चल सकता लेकिन धक्के से चला रहे हैं अथवा पहिये लगाकर चला रहे हैं। तो आज का समाचार था - विश्व में चिल्लाना और काम व जीवन को चलाना। इसलिए आजकल गवर्नमेन्ट भी काम चलाऊ है। तो चलाना और चिल्लाना, यही आज के विश्व की हालत है। कोई चिल्ला रहा है कोई चला रहा है। तो सुना, संसार समाचार।
विदेशियों में भी विशेषतायें हैं तब ही बाप-दादा ने दूर-दूर देशों से भी अपने बच्चों को ढूँढ लिया है। कभी स्वप्न में भी सोचा था कि क्या हम ऐसे बाप के सिकीलधे बनेंगे? लेकिन बाप तो बच्चों को कोने-कोने से भी छाँटकर अपने परिवार के गुलदस्ते में लगा देते हैं। तो सब भिन्न-भिन्न स्थान से आये हुए एक ही ब्राह्मण परिवार के गुलदस्ते के वैराइटी पुष्प हो।
विदेशियों की विशेषता डबल विदेशी बच्चों को ड्रामा अनुसार विशेष लिफ्ट भी मिली हुई है। जिस लिफ्ट के आधार से लास्ट सो फास्ट अच्छे ही जा रहे हैं। वह लिफ्ट की गिफ्ट कौन-सी है? विदेशियों की विशेषता अर्थात् विदेशियों को विशेष लिफ्ट इसलिए मिली हुई है जो विदेश में सुख के साधन सब प्रकार के भोगकर अब थके हुए हैं और भारतवासी अभी शुरू कर रहे हैं। तो विदेशियों का उन अल्पकाल के साधनों से जैसे जैसे किसी का पेट भर जाता है ना तो उसके आगे कुछ भी रखो, आसक्ति नहीं जाती, वैभवों से, वस्तुओ से, अल्काल के सुखों से जी भर चुका है। इसलिए एक तरफ से किनारा सहज हो चुका था और जिसकी आवश्यकता थी वह सहारा मिल गया। इसलिए सहज ही एक बाप दूसरा न कोई, इस स्थिति का अनुभव कर रहे हो। त्याग किया जरूर है लेकिन जी भरने के बाद त्याग किया है। विदेशियों को यह लिफ्ट है जो पहले से ही बुद्धि किनारे हो गई है। और सहारे को ढूँढने की वायुमण्डल में शुरूआत हो गई है, इसलिए भारतवासियों को छोड़ने में मेहनत लगती और विदेशियों को छोड़ने में मेहनत नहीं लगती। सहज ही त्याग हो जाता। इसलिए भारतवासियों का छोड़ने में हृदय विदीर्ण होता है। विदेशियों का उछल से, एक धक से, छोड़ा और छूटा। दूसरी बात विदेशियों के संस्कार स्वभाव में भी यह भरा हुआ है कि जो सोचा वह किया। डोन्ट केयर हैं। जो सोचा वह करना ही है। सोचने वाले नहीं कि यह क्या कहेंगे, वह क्या कहेंगे! लोक मर्यादा से पहले ही पार हैं। इसलिए भारतवासियों से ज्यादा पुरूषार्थ में सहज और तीव्र जाते हैं। उनको लोक मर्यादा ज्यादा होती है। डबल विदेशियों की लोक मर्यादा पहले ही छूटी हुई है। आधे नाते पहले ही टूटे हुए हैं इसलिए लास्ट सो फास्ट जाते हैं। समझा, विदेशियों की ड्रामा अनुसार विशेषता हैं। अज्ञान की बातें हैं। लेकिन ड्रामा में यह संस्कार परिवर्तन होने में सहज साधन बन गये हैं - इसलिए विदेशियों को सहज होता है। विदेशी नष्टोमोहा होने में होशियार हैं, इण्डियन भी विदेश में रहकर विदेश के वातावरण में तो आ जाते हैं ना। विदेशी जम्प लगाने में होशियार हो गए हैं। समझा, विदेशियों की विशेषता?
आस्ट्रेलिया पार्टी - आस्ट्रेलिया वालों ने बहुत अच्छी सेवा की वृद्धि की है। बिछुड़ी हुई आत्माओं को बाप से मिलाने वाले रूहानी सेवाधारी हो। एक-एक बाप के समीप आने और लाने वाला रत्न हैं। बाप-दादा भी ऐसे रूहानी सेवाधारियों को देख हर्षित होते हैं। नये-नये भी पुराने लगते हैं क्योंकि कल्प-कल्प के अधिकारी हैं। आस्ट्रेलिया वालों की विशेषता है - बिना कोई विशेष सहयोग के भी अपने पाँव पर खड़े होकर बाप के सम्बन्ध, सम्पर्क के आधार पर सेवा की, वृद्धि की तो सभी सदा बाप के समीप अपने को अनुभव करते हो? पाण्डव सेना ज्यादा है या शक्तियाँ? (शक्तियाँ) शक्तियों का झण्डा ऊंचा है। मेहनत पाण्डवों ने की है और झण्डा शक्तियों को दिया है। यही अच्छा है क्योंकि शक्तियाँ हैं गाइड और पाण्डव हैं गार्ड। गार्ड खुद पीछे होकर गाइड को आगे रखते हैं। तो शक्तियों गाइड बनकर सबको रास्ता दिखा रही हो? शक्तियों हो या कुमारी? शक्तियों की विशेषता है - सदा मायाजीत। माया अर्थात् वार करने वाले को अपनी सवारी बनाने वाली। ऐसे हो ना।
समान बनना ही साथ रहना है
बाप-दादा ने तो विदेशी बच्चों को आह्वान 10-12 वर्ष पहले से ही किया है। इतनी स्वीट आत्मायें हो। सभी सदा बाप-दादा द्वारा प्राप्त हुए सुख-शान्ति वा आनन्द के झूले में झूलते रहते हो ना? जो सदा झूले में झूलने वाले हैं वह भविष्य में भी साकार रूप के भिन्न रूप के साथ झूले में झूलते हैं। तो सभी श्रीकृष्ण के साथ झूलेंगे ना! जब बाप के समान बनेंगे तभी बाप के साथ झूले में झूल सकेंगे। नहीं तो दूर बैठे देखने वाले बन जायेंगे! सदा साथ रहने वाले वहाँ भी साथ-साथ झूलते हैं। हरेक ने स्वर्ग जाने की टिकट बुक कर दी हैं! कौन-सी क्लास की टिकट बुक की है? एयरकन्डीशन की टिकट किन्हें मिलेगी? जो यहाँ हर कन्डीशन में सेफ रहेंगे। कोई भी परिस्थिति आ जाए, कैसी भी समस्यायें आ जाएं लेकिन हर समस्या को सेकेण्ड में पार करने वाले। एयरकन्डीशन की टिकट बुक कराने के लिए पहले यह सर्टािफकेट चाहिए। जैसे उस टिकट के लिए पैसे देते हो। ऐसे यहाँ ‘‘सदा विजयी’’ बनने की मनी चाहिए - जिससे टिकट मिल सके। बहुत मेहनत करके मनी इकट्ठी करके यहाँ आये हो ना! यह मनी इकट्ठी करना उससे भी सहज है। जो सदा बाप के साथ रहते हैं उसकी हर सेकेण्ड में बहुत ही कमाई जमा होती रहती है। तो इतने समय में कितनी कमाई जमा कर ली है? अच्छा, नया प्लैन क्या बनाया है? शक्तियों और पाण्डवों का संगठन अच्छा है। आपस में निर्विघ्न हो, स्नेही और सहयोगी होकर चलते हो? कोई खिटखिट तो नहीं होती? और भी ज्यादा से ज्यादा निर्विघ्न सेवाकेन्द्र बनाओ, तब इनाम मिलेगा। ज्यादा सेन्टर भी हो और निर्विघ्न भी हों? (बापदादा हमारे पास आस्ट्रेलिया में आयेंगे?) बाप-दादा तो रोज़ चक्र लगाते हैं। आप सोचो जब बच्चे बाप को याद करते हैं तो बाप कैसे याद का रिटर्न नही देंगे? बाप-दादा सदा अमृतबेले हर बच्चे की सम्भाल करने के लिए, देखने के लिए विश्व-भ्रमण करते हैं। आप रूह-रूहान नहीं करते हो? आते हैं तब तो रूह-रूहान करते हो! रोज़ रूह-रूहान करते हो या कभी-कभी। एक होता है बैठना और दूसरा होता है - मिलन मनाना, तो बैठते हो लेकिन पॉवरफुल स्टेज पर बैठो तो सदा समीप का अनुभव करेंगे।
जादू का शब्द - बाबा
अभी तो जब तक हैं तब तक मिलते रहेंगे। बाबा कहा और साथ का अनुभव किया। कोई भी बात आये, सेकेण्ड में बाबा कहा और साथ का अनुभव कर लिया। यह बाबा शब्द ही जादू का शब्द है। तो जैसे जादू की रिंग या जादू की कोई चीज़ अपने साथ रखते हैं, वैसे ‘बाबा’ शब्द अपने साथ रखो। तो कभी भी किसी भी कार्य में कोई भी मुश्किल नहीं आयेगी। अगर कोई बात हो भी जाए तो ‘बाबा’ शब्द याद करने और कराने से निर्विघ्न हो जायेंगे। बाबा-बाबा का महामन्त्र सदा स्मृति में रखो तो सदा ऐसे अनुभव करेंगे छत्रछाया के नीचे चल रहे हैं।
मौरीशियस - सदा बाप द्वारा मिले हुए खज़ानों से खेलते रहते हो ना? जो लाडले और सिकीलधे होते हैं, वे सदा रतनों से खेलते हैं। तो आप सबको भी बाप-दादा द्वारा अखुट ज्ञान रत्न प्राप्त हुए हैं, उसी अखुट खज़ाने में खेलते रहते हो? इन्ही रतनों से खेलने और दूसरों को भी मालामाल करने में सदा बिज़ी रहते हो ना? यही कार्य है ना? बाकी प्रवृत्ति तो निमित्त मात्र है। क्योंकि वर्तमान समय आप सब मरजीवा ब्राह्मण जीवन के बने हो। ब्राह्मण जीवन का कर्त्तव्य है - सुनना और सुनाना। यही निजी कार्य है। (बाँधेलियाँ हैं) बाँधेलिया तो प्रवृत्ति में रहते भी निवृत्त रहती है। हर घड़ी लगन रहती है कि किस घड़ी निर्बन्धन बन बाप से मिलें। तन वहाँ है लेकिन मन बाप के पास रहता है। परतन्त्र तन के हैं मन के तो नहीं है ना। तन को कितने भी तालों में रखें, मन को तो ताला नहीं लगा सकते। अगर मायाजीत हैं तो मन स्वतन्त्र है। बाँधेलियाँ अपनी वृत्ति द्वारा, शुद्ध संकल्प द्वारा, विश्व के वायुमण्डल को परिवर्तन कर सकती हैं। बाँधेलियों को इस सेवा का बहुत बड़ा चान्स है। आजकल मन्सा सेवा ही चाहिए क्योंकि विश्व को आवश्यकता है - मन की शान्ति की। तो मन्सा द्वारा शान्ति के वायब्रेशन्स फैला सकती हो। शान्ति के सागर बाप की याद में इसी संकल्प में रहना, यही मन्सा सेवा है। ऑटोमेटिक शान्ति की किरणें फैलती रहेगी। तो शान्ति का दान देने वाली, महादानी हो न?
जहाँ बाप साथ है, वहाँ कोई कुछ भी नहीं कर सकता। अगर कोई थोड़ा शोर करते हैं तो भी धीरे-धीरे ठण्डे हो जायेंगे। जैसे दीपावली के मच्छर निकलते हैं और समाप्त हो जाते हैं ना। आप सागर के बच्चे सागर हो, सारे विश्व को सच्चा आर्य बनाने वाले हो - तो कोई कर ही क्या सकता है। तालाब सागर में समाकर समाप्त हो जायेंगे। जितना आप लोग बाप को याद करते हो, बाप आपको पदमगुणा याद करते हैं। इसलिए रोज़ याद का रिटर्न देने के लिए चक्र लगाते हैं। बच्चे भले सोये भी पड़े हों, बाप सर्व बच्चों की देख-रेख का अपना कार्य सदा ही करते हैं। कोई कैच करते हैं कोई नहीं करते हैं, वह हुआ बच्चों का पुरूषार्थ। उसी समय कैच करो तो बहुत कुछ अनुभव कर सकते हो। सारे दिन के लिए एक खुराक मिल जायेगी।
पेपर आना अर्थात् अनुभवी बनाना अर्थात् सदा के लिए विघ्न-विनाशक की डिग्री लेना। इसलिए जब पेपर आता है तो समझना चाहिए कि क्लास आगे बढ़ गये। बापदादा सदा बच्चों की रक्षा करते हैं, इसलिए सदा उसी छत्रछाया में रहो।
सदा इसी नशे में रहो - हम डबल हीरे हैं
नैरोबी पार्टी - सदा लास्ट सो फास्ट जाने वाले विशेष (बाप-दादा) शमा के आगे परवाने, सदाकाल के लिए जलकर मरजीवा बनने में सदा होशियार हैं। पक्के परवाने हो ना? परवानों को देखकर शमा भी खुश होती है। शमा को भी नाज़ होता है, ऐसे परवानों के ऊपर। तो सदा बाप के स्मृति-स्वरूप बच्चे हो! जैसे आप बाप को याद करते हो वैसे बाप भी आपको याद करते हैं। आप लोगों ने तो बाप को इनडायरेक्ट जड़ चित्रों द्वारा चैतन्य को मालायें पहनाने की कोशिश की और बाप सदा बच्चों के गुणों की माला सुमिरण करते रहते हैं। तो कितने लकी हो! बाप को आत्मायें याद करती हैं और आप महान आत्माओं को बाप याद करते हैं। तो बाप से भी ऊंचे हो गये। इसलिए बच्चों का स्थान बाप के ताज में है। ताज के भी वैल्युएबुल मणके हो। जो रीयल मणियाँ होती हैं या जो रीयल हीरे होते हैं, वह कितने चमकते हैं। आजकल के तो सच्चे मोती भी झूठे के समान हैं। सतयुग में तो हरेक बल्ब के मुआफिक लाइट देगा। बहुत चमकीला होगा। जैसे यहाँ कोई भी रंग की लाइट करने के लिए बल्ब के ऊपर कागज़ लगाते हो। हरी लाइट के लिए हरा कागज़, लाल लाइट के लिए लाल कागज़, ऐसे वहाँ जितने रंग के हीरे होंगे उतनी नैचुरल लाइट भिन्न-भिन्न रंग की होगी। ज़रा-सी रोशनी आई और जगमगाते हुए कमरे का अनुभव होगा। तो आप सब बाप-दादा के सिर के ताज के सच्चे हीरे हो। एक हीरा चमकने वाला और एक हीरा सबसे श्रेष्ठ मेन पार्ट बजाने वाला, हीरो हीरोइन। तो डबल हीरा हो गये ना। सदा इसी नशे में रहो कि हम डबल हीरा हैं।
नैरोबी की खुशबू वतन तक अच्छी आ रही है। हिम्मत वाले बच्चे हैं। इतना बड़ा ग्रुप हिम्मत का ही सबूत है ना। इससे सिद्ध होता है कि नैराबी वाले बाप-समान सेवाधारी हैं - तब तो सबकी सेवा करके यहाँ तक लाये हैं ना। यह सेवा का प्रत्यक्ष प्रूफ है। दृढ़ निश्चय का फल मिला है ना। निश्चय बुद्धि बने और बाप की मदद से असम्भव सम्भव हो गया। छोटी-सी झोपड़ी से महल मिल गया। बाप-दादा, आपने महल (सेन्टर) देखा हैं बाप-दादा तो अपना काम नहीं छोड़ते हैं। बाप सदा बच्चों की सम्भाल करते हैं। लौकिक में भी देखो माँ बच्चे के आसपास चक्र ज़रूर लगायेगी, क्योंकि स्नेह है। तो बाप-दादा व माता-पिता बच्चों के यहाँ चक्र कैसे नहीं लगायेंगे। इसलिए रोज़ चक्र लगाते हैं। बाप-दादा दोनों साकार शरीर से अशरीरी हैं। वह अव्यक्त शरीरधारी, वह निराकार। दोनों को नींद की आवश्यकता नहीं हैं, इसलिए जहाँ भी चाहें वहाँ पहुँच सकते हैं।
अभी अफ्रीका में कितने सेन्टर हैं? अफ्रीका की एरिया तो बहुत बड़ी है, जगहजगह पर जाओ और सेवा को आगे बढ़ाते जाओ। जिससे आपको कोई भी उलाहना न दे सके। ऐसे भी नहीं, जहाँ तहाँ सेवा केन्द्र खोलो, सेवा की, सन्देश दिया और गीतापाठ शाला खोलकर आगे बढ़ते जाओ।
मन,वचन,कर्म की सेवा का बैलेंस
टीचर्स के साथ - टीचर्स का अर्थ ही है - बाप-समान अपने संकल्प, बोल और हर कर्म द्वारा अनेकों का परिवर्तन करने वाली। सिर्फ बोल से नहीं लेकिन संकल्प से भी सेवाधारी, कर्म से भी सेवधारी। जो तीनों ही सेवा में सफलतामूर्त होते हैं, वही पास विद आनर बन जाते हैं। तीनों में मार्क्स समान हों। तो ऐसे ही पास विद आनर होने वाली टीचर्स हो ना? पास होने वाले तो बहुत होंगे लेकिन पास विद आनर विशेष ही होंगे। तो क्या लक्ष्य रखा है? रोज़ अपनी दिनचर्या को चेक करो कि आज सारे दिन में तीनों सेवाओं का बैलेन्स रहा। बैलेन्स रखने से सर्वगुणों की अनुभूति करते रहेंगे। चलते-फिरते स्वयं को और सर्व को सर्वगुणों का अनुभव करा सकेंगे। सब कहेंगे, ये गुणदान करती हैं क्योंकि दिव्यगुणों का श्रृंगार स्पष्ट दिखाई देगा। तभी तो अन्त में देवी जी, देवी जी कहकर नमस्कार करेंगे और यही अन्त के संस्कार द्वापर से देवी की पूजा के रूप में चलेंगे। तो ऐसे हो ना? एक-दूसरे को बाप के गुणों का वा स्वयं की धारणा के गुणों का सहयोग देते हुए गुणमूर्त बनाना, यह सबसे बड़े-ते-बड़ी सेवा है। गुणों का भी दान है। जैसे ज्ञान का दान है वैसे गुणों का भी दान है।
अभी एक-एक को 8-8, 10-10 सेन्टर सम्भालने पड़ेंगे - तब कहेंगे सर्विस हुई। अभी एक-एक सेन्टर 4-5 सम्भालते हैं फिर एक-एक को अनेकों की सम्भाल करनी पड़ेगी। अभी सर्विस को और आगे बढ़ाओ।
17-12-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
होली हंस और अमृतबेला रूपी मानसरोवर
आज चारों ओर के रूहानी हंसों वा होली हंसों के संगठन को देख रहे हैं। सभी होली हंस सदा ज्ञान रतन ग्रहण करते और कराते हैं। हँसों का भोजन अमूल्य मोती होते हैं। ऐसे ही आप सब होली हँसों के बुद्धि का भोजन ज्ञान रतन है। अमृतबेले से बापदादा के साथ रूह-रूहान द्वारा, रूहानी मिलन द्वारा ज्ञान रतनों को धारण व्रते हो। शक्तियों को धारण करते हो। ऐसे ही सारा दिन मनन शक्ति द्वारा धारण किये हुए रत्नों को व शक्तियों को अपने जीवन में धारण कर और औरों को कराते हो।
अमृतबेले मिलन मनाने की शक्ति, ग्रहण करने अर्थात् धारण करने की शक्ति, बाप द्वारा हर रोज के विशेष शुद्ध संकल्प रूपी प्रेरणा को केच करने की शक्ति सबसे ज्यादा आवश्यक है। अमृतबेले के समय हरेक धारण करने की शक्ति द्वारा धारणामूर्त बन जाते हैं। अमृतबेले विशेष दो मूर्तियाँ चाहिए - एक धारणामूर्त्त दूसरा अनुभवि मूर्त्त। क्योंकि अमृतबेले बाप-दादा विशेष बच्चों के प्रति दाता के स्वरूप और मिलन मनाने के लिए सर्व सम्बन्धों के स्नेह सम्पन्न स्वरूप, सर्व खज़ानों से झोली भरने वाले भोले भण्डारी के रूप में होते हैं। उस समय जो भी करना चाहो, बाप को मनाना चाहो, रिझाना चाहो, सम्बन्ध निभाना चाहो, सहज विधि का अनुभव चाहो, सर्व विधियाँ और सिद्धियाँ सहज प्राप्त कर सकते हो। प्राप्ति के भण्डार और देने वाला दाता सहज ही प्राप्त हो सकता है। सर्व गुणों की खानें, सर्व शक्तियों की खानें बच्चों के लिए खुली हैं। अमृतबेले के एक सेकेण्ड का अनुभव सारे दिन और रात में सर्व प्राप्ति के स्वरूप के अनुभव का आधार है। बाप दादा भी हरेक को जी-भर करके बातें करने के लिए, फरियाद सुनने के लिए, कमज़ोरी मिटाने के लिए, अनेक प्रकार के पाप बख्शाने के लिए, लाड़-प्यार देने के लिए सब बातों के लिए फ्री हैं। वह समय ऑफीशीयल नहीं है। भोले-भण्डारी के रूप में हैं। इतना गोल्डन चान्स होते हुए भी कोई बच्चे चान्स ले रहे हैं। और कोई किनारे चान्स लेने वालों को देख रहे हैं। क्यों चाहना भी है फिर भी क्यों बीच में क्या रूकावट है - उसको जानते हो?
चाहते हुए भी प्राप्तियों से वंचित क्यों?
माया भी बड़ी चतुर है। विशेष उस समय बाप से किनारे करने के लिए आ जाती है। विशेष बहाने बाज़ी के खेल में बच्चों को रिझा लेती है। जैसे बाज़ीगर अपनी बाज़ी में लोगों को आकर्षित कर लेते हैं, वैसे माया भी अनेक प्रकार के अलबेलेपन, आलस्य और व्यर्थ संकल्पों की बहाने बाज़ी में रिझा लेती है। इसलिए गोल्डन चान्स को गँवा लेते हैं। और फिर ऐसे समय को गँवाने के कारण सहज प्राप्ति से वंचित होने के कारण सारा दिन का कमज़ोर फाउन्डेशन हो जाता है। सारे दिन में चाहे कितना भी पुरूषार्थ करें लेकिन सारे दिन की आदि अर्थात् फाउन्डेशन समय कमज़ोर होने के कारण मेहनत ज्यादा करनी पड़ती, प्राप्ति कम होती हैं। प्राप्ति कम होने के कारण दो प्रकार की अवस्था का अनुभव करते हैं। एक तो चलते-चलते थकावट अनुभव करते हैं, दूसरा चलते-चलते दिल शिकस्त हो जाते हैं। और फिर क्या सोचते हैं। ना मालूम मंजिल पर कब पहुँचेंगे? समय नज़दीक है या दूर है? कब प्रत्यक्षता होगी और सतयुगी सृष्टि में जावेंगे? यह प्रवृत्ति के बन्धन कब तक रहेंगे? वर्तमान की प्राप्ति को छोड़ भविष्य को देखते हैं।
प्राप्ति का सहज साधन
वर्तमान प्राप्ति की लिस्ट सदा सामने रखो, ‘तो कब होगा’ यह खत्म होकर हो रहा है में आ जायेंगे। दिल शिकस्त होने के बजाए दिल-खुश हो जावेंगे। वर्तमान से किनारा नहीं करो। माया की बहानेबाज़ी को पहचानो। माया बहाने में आप को राज़ी कर देती हैं। इसलिए बाप को रिझा नहीं सकते हो अर्थात् सहज साधन अपना नहीं सकते हो। वरदान के रूप में जो प्राप्ति करनी चाहिए उसकी बजाए मेहनत कर प्राप्ति करने में लग जाते हो। इसलिए अमृतबेले की सहज प्राप्ति की बेला को जानते हुए उसका लाभ उठाओ। खुले भण्डारों से प्रारब्ध की झोली भर लो वरदाता और भाग्य विधाता से अमृतबेले के समय जो तकदीर की रेखा खिंचवाना चाहो, वह खींचने के लिए तैयार हैं। तकदीर की रेख वरदाता से सहज व श्रेष्ठ खिंचवा लो। उस समय यह भोले भगवान के रूप में हैं लवफुल है तो लव के आधार से श्रेष्ठ लकीर खिंचवा लो। जो चाहे, जितने जन्मों के लिए चाहे, चाहे अष्ट रत्नों में चाहे 108 की माला में, बाप-दादा की खुली आफर हैं - और क्या चाहिए!
मालिक बनो और अधिकार लो। कोई भी खज़ाने पर तालाचाबी नहीं है। मेहनत की चाबी नहीं है। नहीं तो फिर सारे दिन में मेहनत को चाबी लगानी पड़ती है, उस समय सिर्फ एक संकल्प करो कि जो भी हूँ जैसी भी हूँ, आपकी हूँ। माया की बाज़ी को पार कर साथ में आकर के बैठ जाओ। बस। यह माया की बाज़ी साइडसीन है। उनमें रूकना नहीं। आ जाओ और बैठ जाओ। संकल्प और बुद्धि अर्थात् मन और बुद्धि बाप के हवाले कर दो। यह करना नहीं आता? बाप की दी हुई वस्तु बाप को देने में मुश्किल क्यों? कभी तेरी कभी फिर मेरी कहते हो इस तेरी मेरी के चक्र में आ जाते हो अमृतबेला हुआ ऑख खुली और सेकेण्ड में जम्प लगाकर बाप के साथ बैठ जाओ। साथ के कारण जो बाप के खज़ाने सो आपके खज़ाने अनुभव होंगे। नालेज़ के आधार पर नहीं लेकिन प्राप्ति के आधार पर। अधिकार के तख्त पर बैठे हुए होने के कारण अधिकारी पन का अनुभव होगा। तो बाप खुदा दोस्त के रूप में अधिकार का तख्त ऑफर कर रहे हैं। उठो और तख्त पर बैठ जाओ। थोड़े समय के अधिकार के तख्त निवासी होने से भी जो चाहो वह बना सकते हो। जैसे हद के राजा थोड़े समय की राजाई क्या अधिकार में नहीं कर लेते हैं? अब बेहद तख्तनशीन इस गोल्डन समय पर वर्तमान समय सहज ही अपनी गोल्डन एज स्थिति बना सकते हो। और भविष्य गोल्डन एज दुनिया में श्रेष्ठ पद प्राप्त कर सकते हो। समझा, सहज पुरूषार्थ का समय और सहज साधन। फिर सहज को छोड़ मुश्किल में क्यों जाते हो? अब सहज पुरूषार्थ बनेंगे या मुश्किल? जब बाप सहज मिला तो मार्ग मुश्किल कैसे होगा! सहज पुरूषार्थ बनो। मुश्किल का नाम-निशान खत्म करो तो दुनिया की मुश्किलातों को खत्म कर सकेंगे।
ऐसे सदा अधिकारी, तख्तनशीन, माया की बाज़ी से अपने को सदा पास रखने वाले, सदा बाप के राज़ो को जानने वाले, ‘मेहनत’ शब्द को ‘मोहब्बत में परिवर्तन करने वाले, दिलशिकस्त के बदले दिल-खुश रहने वाले, अपने दिल-खुश से जहान को खुश करने वाले ऐसे सदा बाप के साथ रहने वाले सर्व श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।
पार्टियों के साथ
1. मन्सा सेवा का सहज साधन अटूट निश्चय :- जो भी सदा निश्चय बुद्धि होकर विजयी रहते हैं, उन निश्चय बुद्धियों द्वारा वायुमण्डल शुद्ध होता जाता है। वह मन्सा सेवा करते हैं क्योंकि चारों ओर के व्यक्ति निश्चय बुद्धि आत्माओं को देख समझते हैं कि इनको कुछ मिला है। चाहे कितना भी घमण्डी हों, ज्ञान को न भी सुनते हों लेकिन अन्दर में यह समझते जरूर हैं कि इनका जीवन कुछ बना है। तो जो शुरू से अटल निश्चय बुद्धि रहे हैं। उनकी यह सेवा चलती रहती है। यह भी मन्सा सेवा है।
2. माया से सेफ रहने का साधन - अटेन्शन रूपी चौकीदार सुजाग रहे :- सभी सदा स्वदर्शन चक्रधारी बनकर चलते हो? सदा अपना स्व-स्वरूप, स्व-दर्शन चक्रधारी का याद रहता है? जो सदा स्वदर्शनचक्रधारी हैं वह अनेक प्रकार के माया के चक्र से सदा मुक्त रहते हैं। एक स्वदर्शनचक्र अनेक व्यर्थ चक्रों को खत्म करने वाला है, माया को भगाने वाला है। स्वदर्शन चक्रधारी के आगे माया ठहर नहीं सकती। स्वदर्शनचक्रधारी सदा सम्पन्न होने के कारण अचल रहते हो। ऐसे सदा सम्पन्न अर्थात् मालामाल रहने वाले हो? माया खाली करने की कोशिश करती है लेकिन जो सदा खबरदार है, सुजाग है, जागती ज्योति है तो माया कुछ नहीं कर पाती। अटेन्शन रूपी चौकीदार सुजाग हों तो सदा सेफ रहेंगे। तो सदा जागती ज्योत बनो इसीलिए यादगार मन्दिरों में भी अखण्ड ज्योति जगाते हैं। बुझने नहीं देते। अखण्ड ज्योति जगाने का फैशन पड़ा कहाँ से? संगम पर तुम सब चेतना में जागती ज्योति बने हो तभी यह यादगार चला आता है। अगर खण्डन हो जाती हैं तो बुरा मानते हैं। तो चैतन्य में आप सब क्या हैं? अखण्ड ज्योति, खण्डित चीज़ कभी भी पूज्य हो नहीं सकती।
सार :- अमृतबेले के एक सेकेण्ड का अनुभव सारे दिन और रात में सर्व प्राप्ति के स्वरूप के अनुभव का आधार है। अमृतबेला का समय आफीशल नहीं है बाप भोले भण्डारी के रूप में है। हर प्रकार के पाप बख्शाने के लिये, कमज़ोरी मिटाने के लिए सब बातों के लिये बाप फ्री है।
19-12-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सहज याद का साधन - स्वयं को खुदाई खिदमतगार समझो
बाप-दादा आज अपने सहयोगी वा सहजयोगी बच्चों को, जिनका नाम ही है - खुदाई खिदमतगार, ऐसे बच्चों को देख सदा हर्षित होते हैं। खुदाई खिदमतगार अर्थात् जो खुदा व बाप ने खिदमत अर्थात् सेवा दी है उसी सेवा में सदा तत्पर रहने वाले। बच्चों को यह भी विशेष नशा होना चाहिए कि हम सभी को खुदा ने जो खिदमत दी है, हम उसी सेवा में लगे हुए हैं। कार्य करते हुए, जिसने कार्य दिया है, उसको कभी भूला नहीं जाता। चाहे स्थूल कर्त्तव्य भी करने हो लेकिन यह कर्मणा सेवा भी खुदाई खिदमत है। डायरेक्ट बाप डायरेक्शन दिये हैं तो कर्मणा सेवा में भी यह स्मृति रहे कि बाप के डायरेक्शन के अनुसार कर रहे हैं तो कभी भी बाप को भूल नहीं सकेंगे। जैसे कोई विशेष आत्मा से कोई विशेष कार्य मिलता है - जैसे आज कल का प्रेजीडेन्ट अगर किसी को कहे कि तुम्हें यह कार्य करना है तो वह व्यक्ति उस कार्य को करते हुए प्रेज़ीडेन्ट को कभी नहीं भूलेगा। सहज और स्वत: ही उसकी याद रहेगी। न चाहते हुए भी सामने वही आता रहेगा। ऐसे आप सब को यह कार्य ऊंचे-से-ऊंचे बाप ने दिया कार्य करते हुए देने वाले को भूल कैसे सकेंगे? तो सहज याद का साधन है - सदा स्वयं को खुदाई खिदमतगार समझो।
पत्ते-पत्ते को भगवान हिलाता है - इस गायन का रहस्य
भक्ति मार्ग में बिना समझ के भी कहावत है और उनकी मान्यता भी है अगर पत्ता भी हिल रहा है उस पत्ते को हिलाने वाला भी बाप है। लेकिन इस रहस्य को आप जानते हो कि उन पत्तों को बाप नहीं हिलाता लेकिन ड्रामा अनुसार यह सब चल रहा है। यह गायन कोई स्थूल पत्तों से नहीं लगता, लेकिन कल्प वृक्ष के आप सब पहले पत्ते हो। संगमयुगी आप सब गोल्डन एजेड पत्ते जो बाप द्वारा लोहे से पारस बन गये हो, इन चैतन्य पत्ते को इस समय डायरेक्ट बाप चला रहे हैं। बाप की डायरेक्शन है कि संकल्प भी जो बाप का हो, वह आपका संकल्प हो। हर संकल्प बाप-समान, हर बोल बापसमान, हर कर्म बाप-समान हो अर्थात् इसी श्रीमत के आधार पर आप सभी का संकल्प चलता है। तो इस समय आप सभ् पत्तों को श्रीमत के आधार पर हर समय बाप चला रहे हैं। पत्ते-पत्ते को हिला रहा है अर्थात् चला रहा है। अगर श्रीमत के सिवाए संकल्प भी करते हो तो वह व्यर्थ संकल्प हो जाता है तो यह जो कहावत है, वह भक्ति के समय की नहीं लेकिन संगम समय का गायन है। तो आप सभी पत्ते बाप की श्रीमत पर ही हिल रहे हो अर्थात् चल रहे हो ना। ऐसे ही चल रहे हो ना? चलाने का काम भी बाप का, फिर भी इतना मुश्किल क्यों लगता है? बोझ सारा बाप ने ले लिया फिर भी सदा उड़ते क्यों नहीं हो? हल्की चीज़ तो सदा ऊपर उड़ती है। इतने हल्के जो हर संकल्प भी बाप चलायेंगे तो चलाना है। जैसे चलायेंगे वैसे चलेंगे यह सभी का वायदा है और बाप की गारन्टी है कि चलायेंगे। तो बुद्धि को क्या आर्डर दिया हुआ है? बुद्धि को बाप ने क्या कार्य दिया है - उसको जानते हो ना? बुद्धि के बैठने का स्थान बाप के पास में है। कर्त्तव्य विश्व सेवा का है। तो जो वायदा किया है जहाँ बिठायेंगे जैसे चलायेंगे वैसे चलेंगे। शरीर से या बुद्धि से? तन के साथ मन भी दिया है या सिर्फ तन दिया है? तन और बुद्धि से जहाँ बिठायें, जैसे चलायें, जो करायें, जो खिलायें, वहीं करेंगे - यह वायदा किया हुआ है ना? तो बुद्धि का भोजन है - शुद्ध संकल्प। जो खिलाएं वही खायेंगे - यह वायदा है तो फिर व्यर्थ संकल्प का भोजन क्यों करते हो? जैसे मुख द्वारा तमोगुणी भोजन, अशुद्ध भोजन नहीं खा सकते हो, ऐसे ही बुद्धि द्वारा व्यर्थ संकल्प वा विकल्प का अशुद्ध भोजन कैसे खा सकते हो? जो खिलायेंगे, वह खायेंगे फिर तो यह राँग हो जाता है। कहना और करना समान करने वाले हो ना? तो मन बुद्धि के लिए सदा यह भी वायदा याद रखो तो सहज योगी बन जावेंगे। बाप ने कहा और किया। अपना बोझ अपने ऊपर न रखो। कैसे करूँ, कैसे चलूँ, इस बोझ से हल्के होकर के ऊंची स्थिति पर जा नहीं सकते हो। इसलिए श्रीमत से संकल्प तक भी चलते चलो तो मेहनत से बच जाओगे।
मिलावट से भारीपन
कई बच्चों की मेहनत के भिन्न-भिनन पोज़ बाप-दादा देखते रहते हैं। सारे दिन में अनेक बच्चों के अनेक पोज़ देखते हैं। ऑटोमेटिक कैमरा है। साइन्स वालों ने सब वतन से ही तो कापी की है। कभी वतन में आकर देखना क्या-क्या चीजें वहाँ है। जो चाहिए, वह हाजिर मिलेगी। आप सब कहेंगे कि मँगाओ। बाप पूछते हैं वतन को देखना चाहते हो या रहना चाहते हो। (ट्रायल करेंगे) शक है क्या जो ट्रायल करेंगे? आप सबको बुलाने के लिए ही ब्रह्मा बाप रूके हुए हैं। तो क्यों नहीं सम्पन्न बन जाते हो। बहुत सहज ही सम्पन्न बन सकते हो, लेकिन द्वापर से मिक्स करने के संस्कार बहुत रहे हैं। पहले पूजा में मिक्स किया, देवताओं को बन्दर का मुँह लगा दिया। शास्त्रों में मिक्स किया जो बाप की जीवन-कहानी में बच्चे की जीवन-कहानी मिक्स की। ऐसे ही गृहस्थी में पवित्र प्रवृत्ति के बजाए अपवित्रता मिक्स कर दी। अभी भी श्रीमत में मन मत मिक्स कर देते हो। इसलिए मिक्स होने के कारण, जैसे रीयल सोना हल्का होता है और जब उसमें मिक्स करते हैं तो भारी हो जाता है ऐसे ही श्रीमत अर्थात् श्रेष्ठ मत बनाती हैं। मनमत मिक्स होने से भारी हो जाते हो। इसलिए चलने में मेहनत लगती है। अत: श्रीमत में मिक्स नहीं करो। सदा हल्के रहने से वतन की सभी सीन-सीनरियाँ यहाँ रहते हुए भी देख सकेंगे। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे इस दुनिया की कोई भी सीन स्पष्ट दिखाई देती है। सिर्फ संकल्प शक्ति अर्थात् मन और बुद्धि सदा मनमत से खाली रखो। मन को चलाने की आदत बहुत है ना। एकाग्र करते हो फिर भी चल पड़ता है। फिर मेहनत करते हो । चलाने से बचने का साधन है जैसे आजकल अगर कोई कन्ट्रोल में नहीं आता, बहुत तंग करता है, बहुत उछलता है, या पागल हो जाता है तो उनको ऐसा इन्जेक्शन लगा देते हैं जो वह शान्त हो जाता है। तो ऐसे अगर संकल्प शक्ति आपके कन्ट्रोल में नहीं आती तो अशरीरी भव का इन्जेक्शन लगा दो। बाप के पास बैठ जाओ। तो संकल्प शक्ति व्यर्थ नहीं उछलेगी बैठना भी नहीं आता है क्या? सिर्फ बैठने का ही काम दिया है, और कुछ नहीं। अभी तो समझ रहे हैं कि बहुत सहज है। बुद्धि का लगाम देकर के फिर ले लेते हो इस लिए मन व्यर्थ की मेहनत में डाल देता है। व्यर्थ मेहनत से छूट जाओ। बाप को बच्चों की मेहनत देख तरस तो पड़ेगा ना।
साहेब, बीबी और गुलाम
बाप कहते हैं हर बच्चा बाप के साथ तख्त पर आराम से बैठ जाओ। तख्तनशीन होकर अपनी स्थूल शक्तियों और सूक्ष्म को अर्थात् कर्मइन्द्रियों को और मन, बुद्धि संस्कार सूक्ष्म इन शक्तियों को भी आर्डर सें चलाओ। तख्तनशीन होंगे तो आर्डर चला सकेंगे। तख्त से नीचे उतर आर्डर करते हो इसलिए कर्मेन्द्रियाँ भी मानती नहीं हैं। आजकल काँटों की कुर्सी की भी हलचल कर रहे हैं। आपको तो तख्तनशीन की ऑफर है। फिर भी नीचे क्यों आ जाते हो। नीचे आना अर्थात् सर्वेन्ट बनना। किसका सर्वेन्ट? अपने ही अनेक कर्मेन्द्रियों के सर्वेन्ट के भी सर्वेन्ट हो जाते हैं। इसीलिए मेहनत करते हो। ईश्वरीय सर्वेन्ट बनो, ईश्वरीय सेवाधारी बनो। सर्वेन्ट के भी सर्वेन्ट नहीं बनो। ईश्वरीय सेवा तख्त पर बैठे हुए भी कर सकते हो। नीचे आने की जरूरत् नहीं। बाप अपने साथ बिठाना चाहते हैं लेकिन करते क्या हो? संगमयुगी साहेब और बीबी बनने की बजाए गुलाम बन जाते हो। तो सच्चे साहिब की सच्ची बीबीयाँ बनो। गुलाम नहीं बनो। जो सदा सबकी नज़र से बची हुई पर्दापोश में रहती, उन पर किसी की नज़र नहीं पड़ती। तो माया से पर्दापोश और साहेब के साथ बैठ जाओ। तो सभी गुलाम आपकी सेवा में हाज़र रहेंगे। समझा - क्या करना है? आज मेहनत से किनारा कर दो। सदा सहजयोगी तख्तनशीन बाप के साथ-साथ बैठ जाओ।
अभी गुजरात और इन्दौर आया है ना। तो पर्देपोश हो जाओ अर्थात् इनडोर हो जाओ। इन्दौर वाले तो सदा ‘इन-डोर’ रहते हैं ना। बाहर तो नहीं आते हैं ना। हरेक ज़ोन अपना-अपना विस्तार अच्छा ही कर रहे हैं। गुजरात ने हाल तो फुल कर दिया है अभी गुजरात वाले को फुल करो और जल्दी फिर वतन में आराम से बैठेंगे। अब तो समय के प्रमाण ब्रह्मा बाप बच्चों का आह्वान कर रहे हैं। गुजरात वाले क्या करेंगे? गुजरात वाले बड़े आवाज़ वाले माइक यहाँ लाओ स्थूल वाले माइक नहीं, चैतन्य माइक। ऐसे पॉवरफुल माइक के सेट लाओ जो प्रत्यक्षता का आवाज़ बुलन्द करें। अच्छा, इन्दौर ज़ोन क्या लावेगा! इन्दौर ज़ोन ऐसे पावरफुल टी.वी. सेट लाओ जिस द्वारा विश्व को विनाश काल स्पष्ट दिखाई दे और भविष्य उज्वल दिखाई दे। समझा, क्या करना है? ऐसे-ऐसे व्यक्तियों को तैयार करो - जिनके अनुभव की टी.वी. द्वारा दुनिया को विनाश और स्थापना का साक्षात्कार हो जाए। तो दोनों ही ज़ोन ऐसे सेट तैयार करके आना। ऐसे खुदाई खिदमतगार, सदा मेहनत से मुक्त, सदा युक्तियुक्त संकल्प और कर्म करने वाले, सदा बाप की श्रीमत प्रमाण हर संकल्प और कर्म करने वाले, सदा कहने और करने को समान करने वाले, ऐसे सदा बाप के साथी बच्चों को बाप-दादा की याद, प्यार और नमस्ते।
महीन पुरुषार्थी भव
(अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य विशेष टीचर्स प्रति)
टीचर्स का विशेष पुरुषार्थीर् किस बात का होना चाहिए? सर्विसएबुल बच्चों का महीन पुरूषार्थ क्या है? महीन पुरूषार्थ है - संकल्प की भी चैंकिग। संकल्प में याद और सेवा का बैलेन्स रहा! हर संकल्प पावरफुल रहा। सर्विसएबुल बच्चों के संकल्प कभी भी व्यर्थ नहीं होने चाहिए क्योंकि आप विश्व कल्याणकारी हो, विश्व की स्टेज पर एक्ट करने वाले हो। आपको सारी विश्व कॉपी करती है। अगर आपका एक संकल्प भी व्यर्थ हुआ तो सभी उसको कॉपी करने वाले हैं। अपने प्रति नहीं किया लेकिन अनेकों के प्रति निमित्त बन गए। जैसे आपको सेवा के लिफ्ट की गिफ्ट मिलती है, अनेकों की सेवा का शेयर मिल जाता है। वैसे ही अगर कोई ऐसा कार्य करते हो तो अनेकों को व्यर्थ सिखाने के निमित्त भी बन जाते हो। इसलिए अब व्यर्थ का खाता समाप्त। जैसे आजकल साइन्स के साधनों द्वारा मन की एकाग्रता को चैक करते हैं ना। लण्डन वा अन्य स्थानों पर किया ना - ये हैं साइन्स के साधन। लेकिन आपको हर कदम में अपनी चैकिंग के साधन साथ-साथ रखने चाहिए। जैसे वह चैकिंग के औज़ार साथ में रखते हैं और चैक करते समय ऊपर डालते हैं। सर्विसएबुल बच्चों को हर समय चैकिंग का साधन साथ रखना चाहिए। तो टीचर्स बनना कोई छोटी-सी बात नहीं है, नाम ही नहीं है लेकिन नाम के साथ काम भी है।
सर्व खज़ानों की इकॉनामी का बजट बनाओ।
सविसएबुल बच्चों का व्यर्थ कभी नहीं चलना चाहिए। अगर आप ही यह कहें कि व्यर्थ संकल्प आते हैं तो और क्या करेंगे? और तो विकल्प में चले जायेंगे। ऐसे तो हरेक अटेन्शन रखता ही है लेकिन अब महीन अटेन्शन चाहिए। संकल्प से भी सेवा हो। अगर संकल्प शक्ति को सेवा में बिज़ी कर देते हो तो व्यर्थ ऑटोमेटिकली खत्म हो जायेगा। जैसे आजकल के यूथ ग्रुप को कोई-न-कोई कार्य में बिज़ी करने की कोशिश करते हैं जिससे युवा शक्ति नुकसानकारक कार्य में न चली जाए। कहीं बारिश का पानी व्यर्थ जाता है तो बाँध बनाकर व्यर्थ भी सफल कर देते हैं। ऐसे संकल्प शक्ति जो व्यर्थ चली जाती है उसको सेवा में बिज़ी रखेंगे तो व्यर्थ के बजाए समर्थ हो जायेगा। संकल्प, बोल, कर्म व ज्ञान की शक्तियाँ कुछ भी व्यर्थ न जानी चाहिए। तो ऐसे हर संकल्प, कर्म, बोल और सर्व शक्तियों की इकॉनामी करने वाले हो ना? वैसे भी लौकिक रीति से अगर इकॉनामी वाला घर न हो तो ठीक रीति से चल नहीं सकता। ऐसे ही अगर निमित्त बने हुए बच्चे इकॉनामी वाले नहीं हैं तो सेन्टर ठीक नहीं चलता, वह हुई हद की प्रवृत्ति यह है बेहद की। तो चैक करना चाहिए एक्स्ट्रा खर्च क्या-क्या किया - संकल्प में, बोल में, शक्तियों में। फिर उसको चेन्ज करना चाहिए। महीन पुरूषार्थ है सर्व खज़ानों की इकॉनामी का बजट बनाना और उसी के अनुसार चलना। बजट बनाना तो आता है ना? जैसे स्थूल खज़ाने का पोतामेल बनाते हो, ऐसे यह सूक्ष्म पोतामेल बनाओ। निमित्त बने हो, त्याग किया है उसका यह प्रत्यक्षफल है जो सेन्टर मिल गया, जिज्ञासु मिल गये, अभी और आगे बढ़ो। जितना किया है उतना मिला है। अभी फिर पूजा और भक्त आपके चरणों पर झुकें। अभी यह प्रत्यक्ष फल दिखाओ। बाप-समान टाइटिल भी मिल गया, प्रकृति भी यथाशक्ति दासी होती रहती है अभी इससे भी आगे चलो। यह प्रत्यक्षफल प्राप्त ज़रूर होता है लेकिन इसे स्वीकार नहीं करना। अब संकल्प से भी सेवाधारी बनो। वाचा सेवा तो सात दिन के कोर्स वाले भी करते हैं। कर्मणा सेवा भी सब करते हैं लेकिन आपकी विशेषता है मन्सा सेवा। इस विशेषता को अपना कर विशेष नम्बर ले लो। सभी सन्तुट तो रह रहे हो और सन्तुष्ट रहना भी है। जहाँ डायरेक्शन मिले उसी अनुसार चलना। यह भी अनेकों को पाठ सिखाने के निमित्त बन जाते हो। प्रैक्टिकल पाठ सिखाने वाली हो, मुख से नहीं। जम्प तो अच्छा लगाया है अभी क्या करना है? जम्प के बाद की स्टेज है उड़ने की।
अभी व्यक्त में रहते अव्यक्त में उड़ते रहो। उड़ना सीखो। जम्प के बाद उड़ने की स्टेज है। जम्प तो सेकेण्ड में लगा दिया। अभी का पुरूषार्थ ही है उड़ने का। सदा अव्यक्त वतन में विदेही स्थिति में उड़ते रहो। अशरीरी स्टेज पर उड़ते रहो। जम्प के बाद भी तो स्टेज है ना अभी उस स्टेज पर चलो।
‘‘अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात’’ (इन्दौर और गुजरात ज़ोन)
1. बाप द्वारा की गई महिमा का सुमिरण करने से समर्थ स्टेज का अनुभव - सदा अपने भाग्य की महिमा के गीत गाते रहते हो? जैसे स्थूल साधारण गीत भी गाते हैं तो कितना खुशी में आ जाते हैं। भक्तिमार्ग में कीर्तन करते हैं तो भी कितना खुश होते हैं। तो आप सभी भी बाप द्वारा की गई महिमा के गीत सदा गाते रहो। पहले हम क्या थे और बाप ने क्या बना दिया, उसी का सुमिरण करते सदा हर्षित रहो। इसी सुमिरण में समर्थी समाई हुई है। क्योंकि बाप ने समर्थ बनाया है ना। जो स्वप्न में बनना न था, वह साकार स्वरूप में अनुभव कर रहे हो इसीलिए बाप-दादा सभी बच्चों को लकी सितारे कहते हैं। तो लकी सितारे हो ना?
सितारा कहा ही उसको जाता है जो सदा जगमगाता रहे। जो बाप द्वारा शक्तियाँ व ज्ञान का खज़ाना मिला है उसमें जगमगाते रहो। ऐसे हो? बादलों में छिपने वाले तो नहीं हो? सदा अपनी चमक से विश्व को रोशन करने वाले हो ना? खुशी-खुशी से पुरानी दुनिया से किनारा कर लिया है। अब पुरानी दुनिया के निवासी नहीं हो, संगम युगी निवासी हो। तो पुरानी दुनिया से किनारा हो गया है या करना है - क्या समझते हो? कोई पुराने मित्र से मिलने के लिए पुरानी दुनिया की चीज़ें खरीदने तो नहीं जाते हो। आजकल बार्डर पर खड़े हुए भी कभी-कभी जानबूझ कर दुश्मन के देश में चले जाते हैं। आप बार्डर क्रास कर पुरानी दुनिया में चले तो नहीं जाते हो? नई दुनिया सामने खड़ी है, पुरानी दुनिया का किनारा कर चुके हो। संकल्प से भी पुरानी दुनिया में नहीं जाना। गये तो फँस जायेंगे। इसलिए सदा अपने को संगमयुगी समझो। संगम पर बाप याद आयेगा, वर्सा याद आयेगा।
पुरूषार्थ में स्व की उन्नति और सेवा की भी वृद्धि - दोनों का बैलेन्स चाहिए। दोनों के प्लैन्स बनाते रहते हो? अभी क्या प्लैन बनाया है? (उज्जैन में कुम्भ मेले पर आध्यात्मिक मेला) मेले की धूमधाम से तैयारी कर रहे हो। अच्छा है। लेकिन उसमें यह विशेष अटेन्शन रखना - मेले का वातावरण ऐसा शान्तमय हो जो हलचल से घमसान की वृत्ति लेकन आने वाले महसूस करें कि कोई भिन्न स्थान पर आये हैं। चारों ओर आवाज़ हो और आपके पास ऐसा अनुभव करें जैसे शान्ति के कुण्ड में पहुँच गये। बाहर जो ड्युटी पर हो वह भी शान्ति के वरदानी होकर रहें। आपके शान्ति के वायब्रेशन्स उनको शान्त कर दें। इससे सारे मेले में यह आवाज़ हो जायेगा कि दो मिनट के लिए गये लेकिन अच्छी ही शान्ति का अनुभव करके आये। जैसे शुरू-शुरू में स्थापना के समय जो आते थे, तो ओम की ध्वनि से महसूस करते थे कि यह कोई शान्ति का स्थान है। ऐसे इस मेले में शान्ति का अनुभव करें। मेले में जो आते हैं उनका मूड ही कुछ ओर होता है। वह मेला तो है जैसे बाज़ार, उसी रूप से अशान्ति से आते हैं ऐसे को शान्ति का अनुभव कराना बहुत जरूरी है जिससे विशेषता लगे।
सभी को स्नेह से निमंत्रण जरूर देना - आपका स्नेह देख करके सब खुश होंगे। कोई कैसे भी बोले लेकिन आप लोग शान्ति से, स्नेह से बोलेंगे तो उसका भी प्रभाव पड़ेगा। समय प्रति समय स्टेज पर आये हुए देख अन्दर से मानते हैं। अभी सबकी ऑखें थोड़ा नीचे हुई हैं, सिर नहीं झुका है। अभी साँडो मुआफिक ऐसे नहीं देखते हैं। आखिर तो सब झुकने वाले हैं। सबका झुकना अर्थात् जय-जयकार होना। फिर क्रान्ति के बाद शान्ति हो जायेगी। अभी झुकने का पहला पोज़ हुआ है, आखिरिन पाँव तक झुकेंगे।
2. रहम दिल बाप के रहम दिल बच्चों का कर्त्तव्य है - सभी को ठिकाना देना :- सभी ने भिखारीपन की जीवन का भी अनुभव किया और अब मालामाल बन गये हो। मालामाल बनने वाले बच्चे किसी को भी देखेंगे तो रहम आयेगा कि इस आत्मा को ठिकाना मिल जाए। इनका भी कल्याण हो जाए। तो जो भी सम्पर्क में आये उसे बाप का परिचय जरूर देना। जैसे कोई घर में आता है तो उसे पानी तो पूछा जाता है ना! अगर ऐसे ही चला जाए तो बुरा समझते हैं ना! ऐसे ही सम्पर्क में जो आये तो उसे बाप के परिचय का पानी जरूर पूछो। थोड़ा सुनाया तो पानी पूछा - सप्ताह कोर्स कराया तो ब्रह्मा भोजन कराया। कुछ-न-कुछ देना जरूर। क्योंकि दाता के बच्चे हो।
24-12-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
जहान को रोशन करने वालों की महफिल
आज बाप दादा हरेक बच्चे को देख हर्षित हो रहे हैं। क्योंकि बाप दादा जानते हैं कि हरेक बच्चा कितनी श्रेष्ठ आत्मा है। हरेक बच्चा जहान का नूर है अर्थात् नूरे-जहान है। बाप-दादा के भी नयनों के सितारे हैं। बच्चों को नयनों पर बिठा कर ही चलते हैं। अर्थात् नयनों में समाये हुए हैं। नयनों की महिमा बहुत गाई हुई है। अगर नयन नहीं तो मानव-जीवन के लिए जहान नहीं। जैसे शरीर में नयनों का महत्व है ऐसे तुम हरेक बच्चे जहान के नूर हो। आप नूरे-जहान के बिना भी जहान का कोई मूल्य नहीं। जहान के नूर अपनी इस स्थिति पर स्थित होते हैं तो जहान भी सुखमय बन जाता है, श्रेष्ठ बन जाता है। और जहान के नूर अपनी श्रेष्ठ स्थिति से नीचे आ जाते हैं तो जहान भी असार संसार बन जाता है। इतना आप सबके ऊपर आधार है। जैसे कहावत है आप जागे तो संसार जागा, आप सोये तो संसार सोया ऐसे संसार के आधार मूर्त हो। आपकी चढ़ती कला से सर्व की चढ़ती का सम्बन्ध है। आपकी गिरती कला से विश्व की गिरती कला का सम्बन्ध है। इतनी जिम्मेवारी हरेक के ऊपर है। ऐसे समझ करके चलते हो? ऐसी स्मृति रहती है? बाप-दादा हरेक बच्चे की वर्तमान स्थिति को देखते हैं। हरेक जहान का नूर कहाँ तक जग को रोशन कर रहे हैं। आँखों को ही जीवन की ज्योति कहते हैं। आप सब जग की ज्योति हो। अगर जग की ज्योति स्वयं ही हिलती रहेगी तो जग का क्या हाल होगा। यहाँ भी यह हद की लाइट नहीं जलती या हिलती है तो क्या महसूस करते हो? क्या उस समय अच्छा लगता है? ऐसे ही अगर आप जहान की ज्योति हलचल में आती हो तो विश्व की आत्माओं का क्या हाल होता होगा?
आँख खुली और परिवर्तन हुआ
जहान के सितारे वा जहान के नूर, आप सबके ऊपर सबकी नज़र है। सबको इन्तज़ार है। किस बात का? भक्ति मार्ग में एक शंकर के लिए कह दिया है कि आँख खोली और परिवर्तन हो गया लेकिन यह गायन आप शिववंशी नूर जहान का है। यह जहान की आँखें जब अपनी सम्पूर्ण स्टेज तक पहुँचेंगी अर्थात् सम्पूर्णता की आँख खोलेंगी तो सेकेण्ड में परिवर्तन हो जायेगा। तो जहान के नूर, बताओ, सम्पूर्णता की ऑख कब खोलेंगे? ऑख खोली तो अब भी है लेकिन अभी बीच-बीच में माया की धूल पड़ जाती है तो ऑखें हिलती रहती हैं। जैसे स्थूल ऑखों में भी धूल पड़ जाती है तो ऑख का क्या हाल होता है। एकाग्र रीति से दृष्टि नहीं दे सकेंगे। सारा विश्व आप जहान के ऑखों की एक सेकेण्ड की दृष्टि लेने के लिए इन्तज़ार में है कि कब हमारे इष्ट देवों वा देवियों की हमारे ऊपर दृष्टि पड़ेगी। जो हम नज़र से निहाल हो जायेंगे। ऐसे नज़र से निहाल करने वाले अगर स्वयं अपनी ऑख मलते रहेंगे तो नज़र से निहाल कैसे करेंगे। नज़र से निहाल होने वालों की लम्बी क्यू हैं। इसलिए सदा सम्पूर्णता की ऑख खुली रहे। बाप दादा जहान के नूरों का वन्डरफुल दृश्य देखते हैं। जहान के नूर भी अपने नयनों को एकाग्र नहीं रख सकते। कोई निहाल करते-करते हल्के से झुटके भी खा लेते हैं। अब झुटके वाले नज़र से निहाल कैसे करेंगे। संकल्पों का घुटका ही झुटका है। आपके भक्त आपको देख रहे हैं। और दर्शनीय मूर्त झुटके खा रहे हैं। तो भक्तों का क्या हाल होगा। इसलिए ऑखों का मलना और झुटका खाना बन्द करना पड़े, तब दर्शनीय मूर्त बन सकते हो।
अमृतबेले जहान के नूर को बाप-दादा देखते हैं कि जहान के नूर हिल रहे हैं या एकाग्र हैं। अनेक प्रकार की रूप रेखायें देखते हैं। वह तो आप सब जानते हो ना? वर्णन भी क्या करें। बीती सो-बीती। अब से अपने महत्व को जान कर्तव्य को जान सदा जागती ज्योति बनकर रहो। सेकेण्ड में स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन कर सकते हो। इसकी प्रैक्टिस करो अभी-अभी कर्मयोगी, अभी-अभी कर्मातीत स्टेज। जैसे पुरानी दुनिया का दृष्टान्त देते हैं। आपकी रचना कछुआ सेकेण्ड में सब अंग समेट लेता है। समेटने की शक्ति रचना में भी है। आप मास्टर रचता समेटने की शक्ति के आधार से सेकेण्ड में सर्व संकल्पों को समाकर एक संकल्प में सेकेण्ड में स्थित हो सकते हो।
अन्तिम दृश्य और दृष्टा की स्थिति
चारों ओर की हलचल की परिस्थितियाँ हों फिर भी सेकेण्ड में हलचल होते हुए भी अचल बन जाओ। फुल स्टॉप लगाना आता है? फुलस्टॉप लगाने में कितना समय लगता है? फुलस्टॉप लगाना इतना सहज होता है जो बच्चा भी लगा सकता है। क्वेश्चन मार्क नहीं लगा सकेगा, लेकिन फुलस्टॉप लगा सकेगा। तो वर्तमान समय हलचल बढ़ने का समय है। लेकिन प्रकृति की हलचल और प्रकृतिपति का अचल होना। अब तो प्रकृति भी छोटे-छोटे पेपर ले रही है लेकिन फाइनल पेपर में पाँचों तत्वों का विकराल रूप होगा। एक तरफ प्रकृति का विकाराल रूप, दूसरी तरफ पाँचों ही विकारों का अन्त होने 185 के कारण अति विकराल रूप होगा। अपना लास्ट वार आज़माने वाले होंगे। तीसरी तरफ सर्व आत्माओं के भिन्न-भिन्न रूप होंगे। एक तरफ तमोगुणी आत्माओं का वार, दूसरी तरफ भक्त आत्माओं की भिन्न-भिन्न पुकार। चौथी तरफ क्या होगा? पुराने संस्कार। लास्ट समय वह भी अपना चान्स लेंगे। एक बार आकर फिर सदा के लिए विदाई लेंगे। संस्कार का स्वरूप क्या होगा? किसी के पास कर्मभोग के रूप में आयेंगे, किसी के पास कर्म सम्बन्ध के बन्धन के रूप में आयेंगे। किसी के पास व्यर्थ संकल्प के रूप में आयेंगे। किसी के पास विशेष अलबेलेपन और आलस्य के रूप में आयेंगे। ऐसे चारों ओर का हलचल का वातावरण होगा। राज्य सत्ता, धर्म सत्ता, विज्ञान सत्ता और अनेक प्रकार के बाहुबल सब अपनी सत्ताओं की हलचल में होंगे। ऐसे समय पर फुलस्टॉप लगाना आयेगा या क्वेश्चन मार्क सामने आयेगा? क्या होगा? इतनी समेटने की शक्ति अनुभव करते हो। देखते हुए न देखो, सुनते हुए न सुनो। प्रकृति की हलचल देख प्रकृतिपति बन प्रकृति को शान्त करो। अपने फुल स्टाप की स्टेज से प्रकृति की हलचल को स्टाप करो। तमोगुणी से सतोगुणी स्टेज में परिवर्तन करो। ऐसा अभ्यास है? ऐस समय का आह्वान कर रहे हो ना? समेटने की शक्ति बहुत अपने पास जमा करो। इसके लिए विशेष अभ्यास चाहिए। अभी-अभी साकारी, अभी-अभी आकारी, अभी-अभी निराकारी। इन तीनों स्टेंजेस में स्थित रहना इतना सहज हो जाए। जैसे साकार रूप में सहज ही स्थित हो जाते हो वैसे आकारी और निराकारी स्थिति भी मेरी स्थिति है, तो अपनी स्थिति में स्थित होना तो सहज होना चाहिए। जैसे सकार रूप में एक ड्रेस चेन्ज कर दूसरी ड्रेस धारण करते हो ऐसे यह स्वरूप की स्थिति परिवर्तन कर सको। साकार स्वरूप की स्मृति को छोड़ आकारी फरिश्ता स्वरूप बन जाओ। तो फरिश्तेपन की ड्रेस सेकेण्ड में धारण कर लो। ड्रेस चेन्ज करना नहीं आता? ऐसे अभ्यास बहुत समय से चाहिए। तब ऐसे समय पर पास हो जायेंगे। समझा, समय की गति कितनी विकराल रूप लेने वाली है। ऐसे समय के लिए एवररेडी हो ना? या डेट बतायेंगे। तब तैयार होंगे। डेट का मालूम होने से सोल कान्शंस के बजाए डेट कान्शंस हो जायेंगे। फिर फुल पास हो नहीं सकेंगे। इसलिए डेट बताई नहीं जायेगी लेकिन डेट स्वयं ही आप सबको टच होगी। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे इन ऑखों के आगे कोई दृश्य देखते हो तो कितना स्पष्ट दिखाई देता है। ऐसे इनएडवान्स भविष्य स्पष्ट रूप में अनुभव करेंगे। लेकिन इसके लिए जहान के नूरों की आँखें सदा खुली रहें। अगर माया की धूल होगी तो स्पष्ट देख नहीं सकेंगे। समझा, क्या अभ्यास करना है? ड्रेस बदली करने का अभ्यास करो।
अनूठा संगम
आज मधुबन में तीन नदियों का संगम हैं। देहली, यू.पी. और फारेन। त्रिवेणी का संगम है। आज सागर गंगा में नहाने आये हैं। बाप तो गंगाओं को ही आगे करेंगे। तीनों ही नदियाँ अपनी-अपनी रफ़्तार से पावन बनाने की सेवा में लगी हैं। हरेक की महिमा एक दूसरे से महान है। क्योंकि फॉरेन से आवाज़ निकलना है। देहली में राजधानी बननी है और यू.पी. में यादगार बनने हैं। तो तीनों का महत्व अपना-अपना श्रेष्ठ हुआ ना। फॉरेन का आवाज़ अभी शुरू होने वाला है और देहली की पुरानी गद्दी अभी हिलने वाली है। और यू.पी. के भक्त सब अपने इष्ट देवों को ढूँढ भक्ति का फल लेने के लिए तड़प रहे हैं। भक्त भी तैयार हो रहे हैं अपने इष्ट देवों से मिलने के लिए। अभी, मास्टर भगवान तैयार हो जाओ। तो दर्शन का पर्दा खुले। दर्शन का पर्दा है - समय। अब तीनों ही अपने कार्य की वृद्धि में तीव्रता लाओ। वह आवाज़ जल्दी पहुँचावे, वह राजधानी जल्दी तैयार करें और वह भक्तों की प्यास जल्दी पूर्ण करें। तब जय-जय कार हो जावेगी। समझा, तीनों नदियों को क्या करना है। फॉरेन को फौरन करना है। फॉरेन वालों ने पुरूषार्थ अच्छा किया है। गहने तो तैयार कर लिए हैं। अभी तो क्या करना है? अभी जेवरों के बीच हीरे लगाने हैं। हीरो तथा हीरोइन पार्ट बजाने वाले। अच्छा, यू.पी. क्या करेगी? जैसे यू.पी. में गली-गली में मन्दिर हैं ऐसे यू.पी. में गली-गली में सेवाकेन्द्र हों। तब भक्ति और ज्ञान का मुकाबला होगा। भक्ति, ज्ञान के आगे नमस्कार करेगी। देहली क्या करेगी? जमुना के किनारे पर अभी राजयोग महल बनेंगे तब जमुना के किनारे पर फिर महल बनेंगे। अभी राजयोग प्लेस बनाओ फिर पैलेस बनेंगे। फाउन्डेशन तो अभी डालना है ना। अभी राजयोग भवन बनेगा। यू.पी. को धर्म युद्ध का खेल दिखाना चाहिए। सुनाया ना, अभी तो सिर्फ धर्म नेताए जो ऊंची ऑखे करके सामना करते थे, अभी ऑखें नीचे की हैं। लेकिन अब सिर झुकाना है। अब आप लोगों की स्टेज पर आते हैं। लेकिन अपनी स्टेज पर आपको चीफ गेस्ट कर बुलावें, तब कहेंगे कि सिर झुकाया है।
बाप-दादा के सर्व संकल्पों को पूर्ण करने वाले, श्रेष्ठ शुभ आशाओं के दीपक, सदा फुल स्टॉप लगाने वाले, सदा एवररेडी बहुत समय के अभ्यासी, स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन करने वाले, त्रिवेणी नदियों को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।
पार्टियो से
1. ज्ञानी तू आत्माओं का विशेष कर्तव्य है - भक्ति-स्थान को ज्ञान-स्थान बनाना :- सभी आत्माओं को यह अनुभव करा रहे हो कि सिवाए बाप की नॉलेज के और जो भी नॉलेज है वह बिना रस के है अर्थात् कोई रस नहीं हैं? यह अनुभव करें कि हम क्या कर रहे हैं और यह क्या पा रहे हैं। हम सुनने, वे सुनाने वाले हैं। हम भटकने वाले हैं और यह पाने वाले हैं। जब ऐसा अनुभव करें तब जय-जय कार हो। जितना आप सेवा के अर्थ निमित्त बनी हुई श्रेष्ठ आत्माएं सर्व अनुभवों के रस में रहेंगी उतना वह अपने को नीरस अनुभव करेंगे। तो क्या समझते हो? अभी उनको ऐसा संकल्प आता है कि यह मक्खन खाने वाले हैं और हम सभी छाछ पीने वाले हैं?
जैसे सुनाया कि गली-गली में मन्दिर के बजाए राजयोग केन्द्र हों, अनुभव केन्द्र हो। भक्ति-स्थान को ज्ञान-स्थान बनाना यही ज्ञानी-तू-आत्माओं का विशेष कर्तव्य है। कब बनेगा ज्ञान स्थान जब भक्ति से वैराग्य आ जाए तब ज्ञान का बीज पड़े। ऐसा अपनी मन्सा सेवा से भी वातावरण बनाओ जो यह अनुभव करें कि भक्ति से मिला कुछ नहीं। ऐसा उपराम हो जाएं तब फिर ज्ञान का बीज सहज पड़ेगा। इसके लिए कौन-सा साधन अपनाना पड़े। इसके लिए जो नामीग्रामी हैं और उनमें से भी जो स्नेह वाली आत्माए हैं, एक हैं स्वार्थ वाली और एक हैं स्नेह वाली। स्नेह वाली आत्माओं को समीप लाते रहो। बार-बार स्नेह मिलन के सम्पर्क से उनको नज़दीक लायेंगे तो उन द्वारा अनेकों का कल्याण होगा। पहले आपको थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी फिर वह स्वयं ही अपना संगठन बढ़ाते जायेंगे। जैसे फॉरेन से आवाज़ निकलेगा प्रत्यक्षता का, वैसे धर्म-स्थानों से यह आवाज़ निकले कि भक्ति होते भी कुछ और चाहिए। भक्ति से जो चाहना थी, वह पूर्ण नहीं हो रही है - क्यों? यह क्वेश्चन उठे तो यह क्वेश्चन ही प्रत्यक्षता करेगा। जैसे अभी धर्म-नेताओं में यह हलचल है कि आखिर भी धर्म में फूट क्यों होती जा रही है, टुकड़े-टुकड़े क्यों होते जा रहे हैं? मन में यह उलझन तो उत्पन्न हुई है लेकिन इस उलझन का ठिकाना मालूम पड़े - यह नहीं हुआ है। यह समझते हैं कि हमें जो करना चाहिए वह नहीं हो रहा है। लेकिन यह होना चाहिए, ऐसा नहीं उठता। भक्ति का फल क्यों नही मिल रहा है? भक्ति में जो होना चाहिए वह क्यों नहीं हो रहा है? जब ऐसे क्वेश्चन उठेंगे तभी नज़दीक आयेंगे, ढूँढेंगे।
भक्तों के ऊपर तरस आता है? भक्त हैं तो भोले ना। भोलों पर तरस जरूर पड़ता है। अभी संगठित रूप में दृढ़ संकल्प रखो कि भक्तों को, भोलों को ठिकाना जरूर दिखाना है। तब नम्बरवन जा सकेंगे।
(विदेशी बच्चों को क्रिसमस की मुबारक):- सभी किशमिश जैसे मीठे-मीठे बच्चों को नये साल की नई उमंगें और नये खुशी की तरंगों से भरपूर खुशी की मुबारक हो। सारा वर्ष ऐसे सदा साथ का अनुभव करेंगे। क्या क्रिसमस का दिन सदा के लिए बाप के साथ कम्बाइन्ड रहने का वरदान लिए हुए लाया है? कम्बाइन्ड भव। जैसे आज के दिन दो-दो मिलकर डान्स करते हो ना, वैसे सारा वर्ष बाप और आप खुशी में नाचते रहेंगे। सर्वशक्तियों की पैकेट बाप-दादा सौगात दे रहे हैं। मास्टर सर्वशक्तिवान बन सदा माया जीत रहने की बड़े-से-बड़ी सौगात है।
26-12-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
राजयोगी अर्थात् त्रि-स्मृति स्वरूप
बाप-दादा आज तिलकधारी बच्चों को देख रहे हैं। हरेक के मस्तक पर राजयोगी अर्थात् ‘स्मृति भव’ का तिलक और साथ-साथ विश्व-राज्य-अधिकारी का राज-तिलक। राजयोगी तिलक और राजतिलक दोनों तिलक देख रहे हैं। आप सभी भी अपने दोनों तिलक को सदा देखते रहते हो। बाप-दादा सभी के मस्तक पर विशेष राजयोगी तिलक की विशेषता देख रहे हैं। विशेषता देखते हुए अन्तर क्या देखा? किसी राजयोगी के मस्तक पर तीन बिन्दियों का तिलक है। किसी के मस्तक पर दो बिन्दियों का तिलक है और किसी पर एक बिन्दी का भी तिलक है। वास्तव में नॉलेजफुल बाप द्वारा विशेष तीन स्मृतियों का तीन बिन्दियों के रूप में तिलक दिया हुआ है। उन तीन स्मृतियों को त्रिशूल के रूप में यादगार बनाया है।
यह तीन स्मृतियाँ हैं - एक स्वयं की स्मृति, दूसरी बाप की स्मृति और तीसरी ड्रामा के नॉलेज की स्मृति। इन विशेष तीन स्मृतियों में सारे ही ज्ञान का विस्तार समाया हुआ है। नॉलेज के वृक्ष की यह तीन स्मृतियाँ हैं। जैसे वृक्ष का पहले बीज होता है, उस बीज द्वारा पहले दो पत्ते निकलते हैं, फिर वृक्ष का विस्तार होता है ऐसे मुख्य हैं बीज बाप की स्मृति। फिर दो पत्ते अर्थात् विशेष स्मृतियाँ - आत्मा की सारी नॉलेज और ड्रामा की स्पष्ट नॉलेज। इन तीन स्मृतियों को धारण करने वाले ‘स्मृति भव’ के वरदानी बन जाते हैं। इन तीन स्मृतियों के आधार पर मायाजीत जगतजीत बन जाते हैं। तीनों स्मृतियों की संगमयुग पर विशेषता है। इसलिए राजयोगी-तिलक तीन स्मृतियों का अर्थात् तीन बिन्दी के रूप में हरेक के मस्तक पर चमकता है। जैसे - त्रिशूल से अगर एक भाग खत्म हो जाए तो यथार्थ शस्त्र नहीं कहा जावेगा।
सम्पूर्ण विजयी की निशानी है - तीन बिन्दी अर्थात् त्रि-स्मृति स्वरूप। लेकिन होता क्या है एक ही समय पर तीनों स्मृति साथ-साथ और स्पष्ट रहें इसमें अन्तर हो जाता है। कभी एक स्मृति रह जाती, कभी दो और कभी तीन। इसलिए सुनाया कि कोई दो बिन्दी के तिलकधारी देखे और कोई एक बिन्दी के तिलकधारी देखे। बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे भी देखे जो निरन्तर तीन स्मृति्ा तिलकधारी भी हैं, अमिट तिलकधारी भी हैं अर्थात् जिस तिलक को कोई मिटा नहीं सकता। जब स्मृति-स्वरूप हो जाते हैं तो अमिट तिलकधरी बन जाते हैं। नहीं तो बार-बार तिलक लगाना पड़ता है। अभी-अभी मिटता है अभी-अभी लगता है। लेकिन संगमयुगी राजयोगियों को निरन्तर अविनाशी तिलक- धारी होना हैं। माया अविनाशी को विनाश बना न सके। रोज़ अमृतबेले इस त्रि-स्मृति के अविनाशी तिलक को चेक करो तो माया सारे दिन में मिटाने की हिम्मत नहीं रख सकेगी। तीन स्मृति-स्वरूप अर्थात् सर्व समर्थ स्वरूप। यह समर्थ का तिलक है। समर्थ के आगे माया के व्यर्थ रूप समाप्त हो जाते हैं। माया के पाँच रूप पाँच दासियों के रूप में हो जायेंगे। परिवर्तन रूप दिखाई देगा।
विकारों का परिवर्तित रूप
काम विकार शुभ कामना के रूप में आपके पुरूषार्थ में सहयोगी रूप बन जायेगा। काम के रूप में वार करने वाला शुभ कामना के रूप में विश्व-सेवाधारी रूप बन जायेगा। दुश्मन के बजाए दोस्त बन जायेगा। क्रोधाग्नि के रूप में जो ईश्वरीय सम्पत्ति को जला रहा है, जोश के रूप में सबको बेहोश कर रहा है, यही क्रोध विकार परिवर्तित हो रूहानी जोश वा रूहानी खुमारी के रूप में बेहोश को होश दिलाने वाला बन जायेगा। क्रोध विकार सहन-शक्ति के रूप में परिवर्तित हो आपका एक शस्त्र बन जायेगा। जब क्रोध सहन शक्ति का शस्त्र बन जाता है तो शस्त्र सदैव शस्त्रधारी की सेवा अर्थ होते हैं। यही क्रोध अग्नि, योगाग्नि के रूप में परिवर्तन हो जायेगी जो आपको नहीं जलायेगी लेकिन पापों को जलायेगी। इसी प्रकार लोभ विकार ट्रस्टी रूप की अनासक्त वृत्ति के स्वरूप में उपराम स्थिति के स्वरूप में बेहद की वैराग्य वृत्ति के रूप में परिवर्तित हो जावेगी। लोभ खत्म हो जायेगा और सदा ‘चाहिए-चाहिए’ के बदले ‘इच्छा मात्रम् अविद्या’ स्वरूप हो जायेंगे। लोभ को ‘चाहिए’ नहीं कहेंगे लेकिन ‘जाइये’ कहेंगे। ‘लेना है,लेना है’ नहीं। ‘देना है, देना है’ यह परिवर्तन हो जायेगा। यही लोभ अनासक्त वृत्ति वा देने वाला दाता के स्वरूप की स्मृति-स्वरूप में परिवर्तन हो जायेगा। इसी प्रकार मोह विकार वार करने के बजाए स्नेह के स्वरूप में बाप की याद और सेवा में विशेष साथी बन जायेगा। स्नेह ‘याद और सेवा’ में सफलता का विशेष साधन बन जायेगा। ऐसे ही अहंकार विकार देह-अभिमान से परिवर्तित हो स्वाभिमानी बन जायेगा। स्व-अभिमान चढ़ती कला का साधन है। देहाभिमान गिरती कला का साधन है। देहाभिमान परिवर्तित हो स्व-अभिमान के रूप में स्मृति-स्वरूप बनने में साधन बन जायेगा। इसी प्रकार यह विकार अर्थात् विकराल रूपधारी आपकी सेवा के सहयोगी, आपकी श्रेष्ठ शक्तियों के स्वरूप में परिवर्तित हो जायेंगे। ऐसे परिवर्तन करने की शक्ति अनुभव करते हो? इन तीन स्मृतियों के आधार पर पाँचों का परिवर्तन कर सकते हो। काम के रूप में आये शुभ भावना बन जाए, तब माया-जीत जगतजीत का टाइटिल मिलेगा। विजयी, दुश्मन का रूप परिवर्तन जरूर करता है। जो राजा होगा वह साधारण प्रजा बन जायेगा, तब विजयी कहलाया जायेगा। मन्त्री होगा वह साधारण व्यक्ति बन जायेगा तब विजयी कहलाया जायेगा। वैसे भी नियम है कि जो जिस पर विजय प्राप्त करता है उसको बन्दी बनाकर रखते हैं अर्थात् गुलाम बनाके रखते हैं। आप भी इन पाँच विकारें के ऊपर विजयी बनते हो। आप इनको बन्दी नहीं बनाओ। बन्दी बनायेंगे तो फिर अन्दर उछलेंगे। लेकिन आप इन्हें परिवर्तित कर सहयोगी-स्वरूप बना दो। तो सदा आपको सलाम करते रहेंगे। विश्वपरिवर्त न के पहले स्व-परिवर्तन करो। स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन सहज हो जायेगा। परिवर्तन करने की शक्ति सदा अपने साथ रखो। परिवर्तन-शक्ति का महत्व बहुत बड़ा है। अमृतबेले से रात तक परिवर्तन शक्ति को कैसे यूज़ करो यह फिर सुनायेंगे।
ऐसे राजयोगी, तिलकधारी, भविष्य राज-तिलकधारी, सदा मस्तक पर तीन स्मृतिस्व रूप में समर्थ रहने वाले, माया को भी श्रेष्ठ शक्ति के रूप में सहयोगी बनाने वाले, ऐसे माया-जीत जगतजीत कहलाने वाले, सर्व शक्तियों को शस्त्र बनाने वाले, सदा शस्त्रधारी, श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।
एक ही समय में मन, वचन, कर्म से सेवा करने वाले ही बेहद के सेवाधारी
टीचर्स के साथ अव्यक्त बाप-दादा की मुलाकात –
टीचर्स अर्थात् बाप समान निरन्तर सेवाधारी। हर संकल्प और बोल द्वारा अनेक आत्माओं की सेवा के निमित्त। विशेष सेवा है एक ही समय तीनों प्रकार की इकट्ठी सेवा। वाचा के साथ-साथ मन्सा की भी सेवा साथ में हो और कर्मणा अर्थात् सम्पर्क, संग से संग के आधार पर भी रंग लगाने की सेवा, बोल द्वारा भी सेवा और संकल्प द्वारा भी सेवा। तो वर्तमान समय एक-एक सेवा अलग-अलग करने का समय नहीं है। बेहद की सेवा की रफ्तार एक ही समय तीनों प्रकार की सेवा इकट्ठी हो, इसको कहा जाता है - तेज़ रफ्तार से बेहद की तीव्रगति वाली सेवा। तीव्रगति से बेहद के सेवाधारी बनो। सिर्फ अपना हद का स्थान नहीं लेकिन जैसे बाप एक स्थान पर रहते भी बेहद की सेवा करते हैं ऐसे निमित्त मात्र एक स्थान है लेकिन अपने को बेहद की सेवा के निमित्त स्मझ विश्व की आत्मायें सदा इमर्ज रूप में रहें, तब विश्वकल्याणकारी कहलायें जायेंगे। नहीं तो देश-कल्याणकारी व सेन्टर-कल्याणकारी हो जायेंगे। जब हरेक इतना-इतना बेहद के विश्व-कल्याणकारी बनेंगे तब विश्व की आत्मायें अपने अधिकार को प्राप्त कर सकेंगी। नहीं तो थोड़े समय में कैसे पहुँचेगे? 2-4 तो नहीं है सारी विश्व है। तो निमित्त बनी हुई आत्माओं को संगठित रूप में बेहद की सेवा का रूप इमर्ज होना चाहिए। जैसे अपने स्थान का ख्याल रहता है, प्लैन बनाते हो, प्रैक्टिकल में लाते हो, उन्नति का ही ख्याल चलता है ऐसे बेहद की सर्व आत्माओं के प्रति सदा उन्नति का संकल्प इमर्ज रूप में हो तब परिवर्तन होगा।
विश्व-कल्याणकारी के ऊपर कितना कार्य है, स्वप्न में भी फ्री नहीं हो सकते। स्वप्न में भी सेवा ही दिखाई दे, इसको कहा जाता है फुल बिज़ी। क्योंकि सारे दिन का आधार स्वप्न होता है। जो दिन-रात सेवा में बिज़ी रहते है, उनका स्वप्न भी सेवा के अर्थ होगा। स्वप्न में भी कई नई-नई बातें, सेवा के प्लैन व तरीके दिखाई दे सकते हैं। तो इतना बिज़ी रहते हो? व्यर्थ संकल्पों से तो मुक्त हो ना? जितना बिज़ी होंगे, उतना अपने पुरूषार्थ के व्यर्थ से और औरों को भी व्यर्थ से बचा सकेंगे। हर समय चेकिंग हो कि समर्थ है या व्यर्थ। अगर ज़रा भी व्यर्थ का अनुभव हो तो उसी समय परिवर्तन करो। निमित्त बने हुए को देख औरों में भी समर्थ के संकल्प स्वत: ही भरते जायेंगे। समझा?
बेहद के विश्व की आत्मायें सदैव इमर्ज होनी चाहिए। जब आप लोग अभी इमर्ज करो तो उन आत्माओं को भी संकल्प उत्पन्न हो कि हम भी अपना भविष्य बनायें। आपके संकल्प से उनको संकल्प इमर्ज होगा। विश्व-कल्याणकारी का अर्थ ही है विश्व के आधारमूर्त ज़रा भी अलबेलापन विश्व को अलबेला बना देगा। इतना अटेन्शन रहे।
दिल्ली वाले भी कोई नई बातें करो। कान्फ्रेन्स तो बहुत पुरानी बात हो गई है। अभी नई इन्वेन्शन निकालो। कम खर्च बाला नशीन। खर्चा भी कम हो रिज़ल्ट अच्छी निकले। अब देखेंगे यू.पी. ऐसी इन्वेन्शन निकालता है या दिल्ली। अगर खर्चा ज्यादा और रिज़ल्ट कम होती है तो आने वाले स्टूडेन्ट दिलशिकस्त हो जाते हैं। अभी उनको भी उत्साह में लाने के लिए कम खर्चा और अच्छी रिज़ल्ट निकालो। जिसमें बिज़ी भी सब हो जाएं खर्चा भी कम हो। तन और मन बिज़ी हो जाए, धन कम लगेगा।
पार्टियों से
1. स्व-स्थिति से सर्व परिस्थितियों पर विजय :- सभी सदा स्व-स्थिति के द्वारा परिस्थितियों के ऊपर विजयी रहते हो? संगमयुग पर सभी विजयी रतन हो। तो विजय प्राप्त करने का साधन है - स्व-स्थिति द्वारा परिस्थिति पर विजय। यह देह भी पर है, स्व नहीं। तो देह के भान में आना, यह भी स्वस्थिति नहीं है। तो चेक करो सारे दिन में स्व-स्थिति कितना समय रहती है? क्योंकि स्व-स्थिति व स्वधर्म सदा सुख का अनुभव करायेगा और प्रकृति-धर्म अर्थात् पर-धर्म या देह की स्मृति किसी-न-किसी प्रकार के दु:ख का अनुभव जरूर करायेगी। तो जो सदा स्वस्थिति में होगा वह सदा सुख का अनुभव करेगा। सदा सुख का अनुभव होता है कि दु:ख की लहर आती है। संकल्प में भी अगर दुख की लहर आई तो सिद्ध है स्वस्थिति से, स्वधर्म से नीचे आ गये। जब नया जन्म हो गया, सुखदाता के बच्चे बन गये, सुख के सागर के बच्चे सदा सुख में सम्पन्न होंगे। आप सभी मास्टर सागर हो तो सम्पन्न स्थिति का अनुभव होता है? समय के प्रमाण स्व का पुरूषार्थ। समय तेज़ भाग रहा है या स्वयं भी हाई जम्प दे रहे हो? समय की रफ्तार के अनुसार अब हाई जम्प के बिना पहुँच नहीं सकते। अभी दौड़न का समय गया। हाई जम्प लगाओ। पुरूषार्थ में ‘तीव्र’ शब्द एड करो। याद में रहते हो, यह कोई बड़ी बात नहीं लेकिन याद के साथ-साथ सहजयोगी, निरन्तर योगी हो। अगर यह नहीं तो याद भी अधूरी रहेगी।
विश्व-सेवा और स्व की सेवा दोनों का बैलेन्स रखने से सफलता होगी। अगर स्वसेवा को छोड़ विश्व-सेवा में लग जाते, या विश्व-सेवा भूल स्व-सेवा ही करते तो सफलता मिल नहीं सकती। दोनों सेवायें साथ-साथ चाहिए। मन्सा और वाचा - दोनों सेवा इकट्ठी होंगी तो मेहनत से बच जायेंगे। जब भी कोई सेवार्थ जाते हो तो पहले चेक करो कि स्व-स्थिति में स्थित होकर जा रहे हैं। हलचल में तो नहीं जा रहे हैं। अगर स्वयं हलचल में होंगे तो सुनने वाले भी एकाग्र नहीं होते, अनुभव नही करते।
2. ज्ञान के सर्व राजों को जानने वाले कभी नाराज़ नहीं हो सकते :- ज्ञान के सर्व राज़ों को जानने वाली राजयुक्त आत्मायें हो ना? अपने पुरूषार्थ के अनुसार बाप के द्वारा अनेक ज्ञान के राजों को जानते हुए, उसी में रमण करते हुए आगे बढ़ो। तो सदा राजयुक्त, सदा योगयुक्त, सदा स्नेह-युक्त ऐसे हो? ज्ञान के सर्व राजों को जानने वाले स्वयं से राज़ी रहते और औरों को भी राज़ी करने के अभ्यासी रहते हैं। तो सदा राजयुक्त अर्थात् राज़ी करने वाले कभी भी नाराज़ नहीं हो सकते। ऐसे सर्व राजों को जानने वाले बाप के प्रिय हैं, समीप हैं।
3. सतगुरू की कृपा से मालामाल स्थिति:- जैसे भक्ति मर्ग में गुरू कृपा गाई हुई है, तो ज्ञान-मार्ग में सतगुरू की कृपा है - पढ़ाई। पढ़ाई की कृपा से सतगुरू मालामाल बना देते हैं। जिस्के ऊपर सतगुरू की कृपा हो गई, वह सदा मुक्त और जीवनमुक्त बन गया।’’
28-12-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सिद्धि स्वरूप होने कि विधि –
एकाग्रता बाप-दादा सभी तीव्र पुरुषार्थी बच्चों को देख रहे हैं। तीव्र पुरूषार्थ की सहज विधि जिससे सहज सिद्धि प्राप्त हो जाए अर्थात् सदा सिद्धि स्वरूप हो जाए, संकल्प, बोल व कर्म सिद्ध हो जाए, जिससे विश्व के आगे प्रसिद्ध होंगे, वह सहज विधि कौन सी है? एक शब्द की विधि है, जिस एक शब्द को अपनाने से सिद्धि स्वरूप हो जावेंगे। जिससे संकल्प, बोल और कर्म तीनों का सम्बन्ध है - वह एक शब्द है ‘एकाग्रता’! संकल्प में सिद्धि न होने का कारण भी एकाग्रता की कमी है। एकाग्रता कम होने के कारण हलचल होती है। जहाँ एकाग्रता होगी वहाँ स्वत: ही एकरस स्थिति होगी। जहाँ एकाग्रता होगी वहाँ संकल्प, बोल और कर्म का व्यर्थ पन समाप्त हो जाता है और समर्थ पन आ जाता है। समर्थ होने के कारण सब में सिद्धि हो जाती है। एकाग्रता अर्थात् एक ही श्रेष्ठ संकल्प में सदा स्थित रहना। जिस एक बीज रूपी संकल्प में सारा वृक्ष रूपी विस्तार समाया हुआ है। एकाग्रता को बढ़ाओ तो सर्व प्रकार की हलचल समाप्त हो जायेगी। एकाग्रता अपनी तरफ आकर्षित भी करती है। जैसे कोई भी वस्तु स्वयं हलचल वाली होगी तो औरों को भी हलचल में लायेगी। जैसे यहाँ की लाइट हलचल में आ जाती है (बीच-बीच में बिजली बन्द हो जाती थी) कभी बुझती, कभी जलती है तो सबके संकल्प में हलचल आ जाती है, यह क्या हुआ? एकाग्र वस्तु औरों को भी एकाग्रता का अनुभव करायेगी। एकाग्रता के आधार पर ही जो वस्तु जैसी है, वैसी स्पष्ट देखने में आयेगी। ऐसी एकाग्र स्थिति में स्थित होने वाला स्वयं को भी सदा जो है, जैसा है वह स्पष्ट अनुभव करते हैं और इस कारण कैसे हो, क्या हो? यह हलचल समाप्त हो जाती है। जैसे कोई स्पष्ट वस्तु दिखाई देती है तो कभी क्वेश्चन नहीं उठेगा कि यह क्या है, क्वेश्चन समाप्त हो स्पष्ट अनुभव होगा कि यह ये है। ऐसे स्व-स्वरूप व बाप का स्वरूप एकाग्रता के आधार पर सदा स्पष्ट होगा। कैसे आत्मिक रूप में टिकूँ, आत्मा का स्वरूप ऐसा है या वैसा है? यह हलचल अर्थात् क्वेश्चन खत्म हो जाते हैं। जब क्वेश्चन खत्म होंगे, हलचल समाप्त होगी तो हर संकल्प भी स्पष्ट हो जाता है। हर संकल्प, बोल और कर्म का आदि, मध्य आर अन्त तीनों ही काल ऐसे स्पष्ट होते हैं जैसे वर्तमान काल स्पष्ट होता है। संकल्प रूपी बीज शक्तिशाली है तो फलदायक है।
एकाग्रता से सर्व शक्तियाँ सिद्धि स्वरूप में प्राप्त हो जाती हैं। क्योंकि स्परूप स्पष्ट होता है तो स्वरूप की शक्तियाँ भी ऐसे ही स्पष्ट अनुभव होती हैं। समझा, एकाग्रता की महिमा? वैसे भी आजकल की दुनिया में हलचल से तंग आ गये हैं। चाहे राजनीति की हलचल, चाहे वस्तुओं के मूल्य की हलचल, करैन्सी की हलचल, कर्मभोग की हलचल, धर्म की हलचल - ऐसे सर्व प्रकार की हलचल में तंग आ गये हैं। जितने साइन्स के साधन पहले सुख के साधन अनुभव होते थे आज वह साधन भी हलचल अनुभव कराने वाले हो गये हैं। यहाँ भी ब्राह्मण आत्मायें संकल्प में व सम्पर्क में हलचल से ही थकती हैं। इसलिए सहज विधि है - एकाग्रता को अपनाओ। इसके लिए सदा एकान्तवासी बनो। एकान्तवासी से एकाग्र सहज ही हो जायेंगे।
देहली निवासी जैसे स्थापना के कार्य में आदि रत्न बन निमित्त बने। अब सम्पूर्ण समाप्ति के कार्य में भी निमित्त बनो। हर बात की सम्पूर्णता में आदि रत्न निमित्त बनो। सम्पूर्णता ही समाप्ति को लायेगी। देहली के फाउन्डेशन में सब शक्तियों के सहयोग का हाथ पड़ा हुआ है। तो सर्व शक्तियों के सहयोग का हाथ लगने वाली धरती क्या कमाल दिखायेगी? ब्रह्मा बाप और ब्रह्मा की भुजाओं की भी पालना ली हुई धरनी देहली, 80 के वर्ष में क्या कमाल कर दिखायेगी? किस विधि से सम्पूर्णता लायेगी कुम्भकरणों को कैसे जगायेगी? 80 के लिए नई सौगात क्या तैयार की है? जो जनवरी की 18 तारीख को वह सौगात बाप-दादा के सामने लाओ। देखेंगे, 18 जनवरी के दिन किस सेन्टर से क्या सौगात आती है? किसी भी विशेष दिन पर विशेष सौगात दी जाती है ना? तो 18 जनवरी आपका विशेष दिन है, उस दिन पर विशेष क्या सौगात देंगे?
देहली क्या देगी? फारेन क्या देगी? गुजरात क्या देगी? सभी ज़ोन से सौगात आनी चाहिए। स्थापना के आदि में पहले देहली आई है तो सौगात देने में भी देहली को नम्बर वन होना चाहिए। बच्चों को, बाप को सौगात देनी है। बाप की इच्छा को अभी तक जाना नहीं है क्या? हरेक सोचे, कौन-सी सौगात देनी है। क्योंकि हर साल कोई- न-कोई नई इन्वेन्शन ज़रूर होनी चाहिए। जो नवीनता स्वयं में भी और सेवा में भी नवीनता लाए। उसका प्लैन क्या है, प्रैक्टिकल प्लैन बताओ। कुछ भी करो लेकिन सौगात रूप में लाना ज़रूर है। फिर देखेंगे हर ज़ोन से नम्बर वन सौगात किसकी है। देहली में महारथियों की तो कमी नहीं है। इतने सब महारथी तो महान सौगात तैयार करेंगे ना? प्लैन और पुरूषार्थ दोनों ही करना है। रेस तो करनी चाहिए ना? सबका विचार सागर मंथन तो चलेगा। अमृतबेले समीप आकर बैठ जायेंगे तो आपे ही सब टचिंग होगी।
जितनी राजनीति वी देहली में हलचल है, उतनी सत्धर्म की नीति की भी हलचल हो। अभी राज्य की हलचल ज्यादा है और सत्धर्म की हलचल कम है, गुप्त है। पहले देहली हिलेगी तब सब गद्दियाँ हिलेंगी। कोई ऐसा लाइट हाउस बनाओ जो सबकी नज़र जाए। जैसे लाइट हाउस की तरफ सबका अटेन्शन जाता है ऐसे कोई ऊंचा लाइट हाउस का प्लैन बनाओ। जो सबको अनुभव हो कि यही हमारा सहारा है। हलचल के समय सहारा वैसे भी ढूँढते हैं। ऐसा कोई पॉवरफुल प्लैन बनाओ जो उनको लाइट हाउस के मुआफिक एक सहारा मिल जाए। समझा? अब सोचो। सब पुरानी बड़ी-बड़ी टीचर्स देहली में हैं, अनुभवी टीचर्स हैं। अनुभवी टीचर्स द्वारा जरूर प्लैन भी ऐसा ही निकलेगा। देहली से जो आवाज़ निकलेगी तो छोटे-छोटे स्थानों में आपे ही पहुँचेगी। पहले देहली को पॉवरफुल बनाना है। फारेन से आवाज़ निकलेगा तो वह पहुँचेगा कहाँ? देहली ही आवाज़ को रिसीव करेगी। देहली का कनेक्शन बहुत है। अब देहली की शक्तियाँ थोड़ा मैदान पर आए तो आवाज़ सहज निकल सकता है।
‘‘विदेशी भाई बहनों के साथ - अव्यक्त बाप-दादा की मुलाकात’’
लेस्टर पार्टी –
सदा सर्विसएबुल रतन हो? सर्विसएबुल का अर्थ है - हर सेकेण्ड चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा द्वारा वा संग, सम्बन्ध, सम्पर्क द्वारा सेवा करने वाले। सर्विसएबुल अर्थात् ऑलराउण्ड सेवाधारी। सर्विसएबुल कभी भी यह नहीं सोचेंगे कि सर्विस का टाइम नहीं मिलता, चान्स नहीं मिलता। अगर और कोई टाइम न भी हो तो नींद के समय भी सेवा कर सकते हो। ऑलराउण्ड सेवाधारी अर्थात् सदा सर्विसएबुल। सदा सेवा के शौकिन हो वृद्धि करते रहते हो ना? सारे दिन के चार्ट में चेक करो कि सर्व प्रकार की सेवा में मार्क्स ली या सिर्फ वाचा और कर्मणा सेवा की? सब प्रकार की सेवा का खाना भरना चाहिए। ऐसे अपना रोज़ का चार्ट चेक करो क्योंकि यहाँ के ऑलराउण्ड सेवाधारी वहाँ ऑलराउण्ड विश्व के मालिक बनेंगे। जितनी यहाँ सेवा में कमी होगी, उतनी वहाँ भी बेहद और हद स्टेट में अन्तर हो जायेगा। विश्व-महाराजन अर्थात् ऑलराउण्ड सेवाधारी। वैसे लेस्टर निवासियों की महिमा सेवा में अच्छी हैं। एक अनेकों को जगाने की सेवा करते हैं। विदेश की सेवा में लेस्टर का विशेष सहयोग है। विदेश सेवा के बीज से लेस्टर निवासियों का पानी अच्छी तरह पड़ा है। बाप-दादा भी ऐसे सहयोगी आत्माओं को देख खुश होते हैं। इस सेन्टर में सारी सजावट है कुमार भी हैं, कुमारियाँ भी हैं, प्रवृत्ति वाले भी हैं....यही सेन्टर का श्रृंगार है किसी प्रकार के वैराइटी की कमी नहीं हैं। अब कोई नया प्लैन बनाओ - कोई ऐसा परमात्म बाम्ब तैयार किया है? जैसे एक बाम्ब लगाने से सहज ही सबकी दुनिया के हिसाब से गति हो जाती है अर्थात् जो लक्ष्य रखते हैं विनाश का, वह विनाश हो जाता है, तो ऐसा परमात्म बाम्ब तैयार किया है जो सबकी गति सद्गति हो जाए। सभी सिकीलधे हो क्योंकि आप कितना भी देश छोड़कर विदेश गये, इतना दूर चले गये तो भी बाप ने अपना बना लिया। इण्डिया से दूर किनारे हो गये फिर भी किनारे से ढूँढ अपना बना लिया। बाप को ढूँढना पड़ा ना विदेश तक, तो विशेष सिकीलधे हो गये।
अपने को शो केस का शो पीस समझो
युगलों से – युगल मूर्त्त अर्थात् सेवा के लिए सैम्पल रूप। प्रवृत्ति में भी इसीलिए रखा हुआ है कि विश्व के आगे सेवा का एक सैम्पल बन जाए। तो प्रवृत्ति में रहते विश्व के शो केस में विशेष शो पीस होकर चलते हो। एक शो पीस अनेकों का सौदा कराने के निमित्त बन जाता है। तो जो प्रवृत्ति में रहते हैं वह अपने को विशेष शो पीस समझकर रहो तो बहुत सेवा के निमित्त बनेंगे। घर में नहीं रहते हो, शो केस में रहते हो। शो केस में अपने को समझेंगे तो सदैव सजा सजाया रहेंगे। शो केस में गन्दी चीज़ नहीं रखी जाती। अभी थोड़ा समय आगे बढ़ेगा तो सारे विश्व के अन्दर प्रवृत्ति में रहकर निवृत्त रहने वालों का नाम बाला होगा। आप लोगों का दर्शन करने के लिए तड़फते हुए आयेंगे। कहेंगे कौन-सी बहादुर आत्मायें हैं, जो हम नहीं कर पाये वह करके दिखा रही हैं। युगलों की अपरमपार महिमा होगी। बाप के कार्य को प्रत्यक्ष करने के निमित्त बनेंगे। कोई साधारण नहीं हो। विशेष आत्मायें हो।
सेकेण्ड में सोचा और किया - यही हाई जम्प है
कुमारों से :- सभी अविनाशी कुमार हैं। कुमार-कुमारियों को एक्स्ट्रा मार्क्स किस बात की मिलती है और क्यों मिलती है। कुमार कुमारियाँ अपने इस जीवन में सब-कुछ देखते हुए जानते हुए, फिर भी दृढ़ संकल्प कर दृढ़ त्यागी बनते हैं। उस त्याग का भाग्य मिलता है। प्रवृत्ति वाले अल्पकाल का सुख भोगकर फिर त्याग करते हैं और कुमार कुमारी विनाशी अल्पकाल के सुख का पहले ही दृढ़ संकल्प से त्याग कर देते हैं। इसलिए उन्हें चान्स मिलता है हाई जम्प लगाने का। कुमार और कुमारी जीवन लौकिक और अलौकिक दोनों जीवन में निर्बन्धन है। निर्बन्धन होने के कारण जितना आगे बढ़ाना चाहें, बढ़ा सकते हैं। तो सभी हाई जम्प वाले हो ना? सेकेण्ड में सोचा और किया, यही हाई जम्प है। सोचना और करना साथ-साथ हो। कुमार और कुमारियों को देख बाप-दादा विशेष खुश होते हैं व्Ìयोंकि गिरने से बच गये। दु:ख की सीढ़ी चढ़ी ही नहीं। तो बचे हुए को देख खुशी होती है।
अमेरिका पार्टी - सदा बाप के सर्व सम्बन्धों और सर्व खज़ानों का अनुभव करते हो? जैसे बाप के गुण हैं, उन सर्व गुणों का अनुभव होता है? सर्व खज़ानों में से व सर्व सम्बन्धों में से अगर एक भी सम्बन्ध का अनुभव कम हुआ तो वह सम्बन्ध अपनी तरफ आकर्षित कर बाप से दूर कर देता है। इसलिए चेक करो कि सर्व सम्बन्धों का अनुभव किया है। सर्व खज़ानों के मालिक और फिर बालक। कर्म करने के लिए, सेवा करने लिए डायरेक्शन पर चलने वाले बालक और फिर अपनी ऊंची स्थिति में स्थित होने के समय मालिक। बालक और मालिक दोनों ही स्टेज का अनुभव है? जो अभी बाप द्वारा मिले हुए सर्व खज़ानों के मालिक बनते हैं, वही मालिकपन के संस्कार भविष्य में विश्व का मालिक बना देते हैं। सदा अनुभवों की खान से सम्पन्न स्थिति का अनुभव करो। अनुभव जीवन को परिवर्तन करने में सहज साधन बन जायेगा। आजकल आपके देश में मैजॉरटी एक सेकेण्ड की शान्ति का अनुभव करना चाहते हैं। ऐसी तड़फती हुई आत्माओं को सेकेण्ड में शान्ति का अनुभव कराने के लिए सदा अपनी स्थिति शान्ति स्वरूप की रहे तब औरों को अनुभव करा सकेंगे। तो रहम आता है आत्माओं पर। बहुत भिखारी बन करके आपके पास आयेंगे। इतने सम्पन्न होंगे तो अनेक भिखारियों को तृप्त कर सकेंगे।
अमेरिका वाले हाई जम्प लगाने वाले हैं या उड़ाने वाले? एक सेकेण्ड में इस पुरानी दुनिया से उड़कर अपने स्वीट साइलेन्स होम में पहुँच जाना। ऐसे उड़ने वाले हो ना? उड़ते पंछी अर्थात् सदा डबल लाइट स्थिति में स्थित रहें। ऐसे ही उड़ते पंछी उड़ते रहो और अनेकों को उड़ाते रहो।
जो सुख-शान्ति के भिखारी हैं उनकों सुख-शान्ति देकर सम्पन्न बनाओ तो पीस मेकर हो जायेंगे। सभी दिल से आपकी शुक्रिया गायेंगे। अमेरिका में जो सेन्टर खुला है इसमें भी रहस्य है, विशेष कार्य होना है। विनाश और स्थापना दोनों का साक्षात्कार साथसाथ होगा। उस तरफ विनाशकारी और इस तरफ पीस मेकर। साइन्स और साइलेन्स, दोनों शक्तियों का मुकाबला देखेंगे। चारों ओर से अमेरिका को परिवर्तन करने का घेराव डालो। महावीर का दिखाते हैं न कि वह सारी पहाड़ी की पहाड़ी को ले आया, तो आप अमेरिका को परिवर्तन कर साइलेन्स की शक्ति का नाम बाला करो। सदा याद रखो हम शान्ति के सागर के बच्चे शान्ति देवा हैं। जो भी सामने आये उसे पीस मेकर बन शान्ति का दान दो।