13-11-97 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
संगमयुग के प्राप्तियों की प्रालब्ध का अनुभव करो, मास्टर दाता, महा सहयोगी बनो
आज भाग्य विधाता बाप अपने श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे के भाग्य की रेखायें देख-देख भाग्य विधाता बाप भी हर्षित होते हैं क्योंकि सारे कल्प में चक्र लगाओ तो आप जैसा श्रेष्ठ भाग्य किसी धर्म आत्मा, महान आत्मा, राज्य अधिकारी आत्मा, किसी का भी इतना बड़ा भाग्य नहीं है, जितना आप संगमयुगी श्रेष्ठ आत्माओं का है। मस्तक से अपने भाग्य की रेखाओं को देखते हो? बापदादा हर एक बच्चों के मस्तक में चमकती हुई ज्योति की श्रेष्ठ रेखा देख रहे हैं। आप सभी भी अपनी रेखायें देख रहे हो? नयनों में देखो तो स्नेह और शक्ति की रेखायें स्पष्ट हैं। मुख में देखो मधुर श्रेष्ठ वाणी की रेखायें चमक रही हैं। होठों पर देखो रूहानी मुस्कान, रूहानी खुशी की झलक की रेखा दिखाई दे रही है। ह्दय में देखो वा दिल में देखो तो दिलाराम के लव में लवलीन रहने की रेखा स्पष्ट है। हाथों में देखो दोनों ही हाथ सर्व खज़ानों से सम्पन्न होने की रेखा देखो, पांवों में देखो हर कदम में पदम की प्राप्ति की रेखा स्पष्ट है। कितना बड़ा भाग्य है!
भाग्य विधाता बाप ने हर एक बच्चे को पुरूषार्थ से, श्रेष्ठ कर्मो की कलम से यह सब रेखायें खींचने की खुली दिल से, खुली छुट्टी दे दी है। जितनी लकीर लम्बी खींचने चाहो उतनी खींच सकते हो, लेकिन समय के अन्दर। जिसको जितनी लम्बी लकीर खींचनी है वह स्वयं ही खींच सकते हो, बाप ने कलम आपके हाथ में दिया है। तो वह लकीर खींचने आती है? खींची है या खींचना नहीं आती है? सभी को आती है? (हाँ जी) बहुत अच्छा। देखो, अभी के तकदीर की लकीर आपको सारे कल्प में भी श्रेष्ठ बनाती है, 21 जन्म तो सदा सम्पन्न और सुखी रहने की रेखा चलती ही है और द्वापर, कलियुग में भी आपके पूज्य बनने की रेखा श्रेष्ठ रहती है। तो इस समय के भाग्य की रेखा सारा कल्प सदा साथ चलती है क्योंकि अविनाशी बाप की अविनाशी रेखा है। तो सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य की रेखा स्मृति में रहती है? रहती तो है लेकिन कभी इमर्ज रहती है, कभी मर्ज रहती है वा सदा ही इमर्ज रहती है? इसमें कम हाथ उठा रहे हैं। देखना, सदा इमर्ज रहे। इमर्ज रहने की निशानी है कि पुरानी स्मृतियां पुराने संस्कार की रेखायें मर्ज हो जाती हैं। कभी भी पुराने संस्कारों की रेखायें वा पुरानी बातों के स्मृति की रेखायें इमर्ज नहीं हों। मर्ज हों। और मर्ज रहते-रहते समाप्त हो जायें। जहाँ श्रेष्ठ भाग्य की रेखायें इमर्ज हैं, वहाँ पुरानी रेखायें इमर्ज होना असम्भव है। अगर होती हैं तो सिद्ध होता है कि श्रेष्ठ भाग्य की रेखा सदा इमर्ज नहीं रहती। तो क्या समझते हो? इतने श्रेष्ठ भाग्य की रेखायें इमर्ज होनी चाहिए या मर्ज?
बापदादा वर्तमान समय सभी बच्चों को वर्तमान संगमयुग की प्राप्तियों के प्रालब्ध रूप में देखने चाहते हैं। पुरूषार्थ बहुत समय किया, अभी पुरूषार्थ स्वत: चले, मेहनत वाला पुरूषार्थ नहीं। क्या अन्त तक पुरूषार्थ की मेहनत करते रहेंगे? संगमयुग के प्राप्तियों की प्रालब्ध का अनुभव अब नहीं करेंगे तो कब करेंगे! भविष्य की प्रालब्ध अलग चीज़ है। वह तो आपकी इस पुरूषार्थ के प्रालब्ध की परछाई है। वह तो आपके पीछे-पीछे आपेही आयेगी। लेकिन विशेष बात है इस समय के प्रालब्ध प्राप्त करने की। ऐसे नहीं - कोई पूछता है कैसे है? क्या हालचाल है? तो अभी तक यही नहीं कहते रहो कि पुरूषार्थ चल रहा है। पुरूषार्थ तो है लेकिन पुरूषार्थ की प्रालब्ध अभी अनुभव करो। वह प्रालब्ध है सर्व शक्ति सम्पन्न, सर्व ज्ञान सम्पन्न, सर्व विघ्न विनाशक मूर्त, यह अभी की प्रालब्ध भविष्य में स्वत: ही प्राप्त होगी। जैसे भविष्य में सिर्फ प्रालब्ध है, पुरूषार्थ समाप्त है। ऐसे अभी बाकी रहे हुए समय में प्रालब्ध स्वरूप का विशेष अनुभव करो। जब प्रालब्ध कहते हैं तो पुरूषार्थ की ही प्रालब्ध होती है। पुरूषार्थ किया है, उस पुरूषार्थ अनुसार ही प्रालब्ध का अनुभव कर सकते हैं। लेकिन बापदादा बच्चों से क्या चाहते हैं? पूछते हैं ना बापदादा हमसे क्या चाहते हैं? तो बापदादा यही चाहते हैं कि अब थोड़े समय के लिए पुरूषार्थ के प्रालब्ध स्वरूप बन जाओ। बन सकते हो कि पुरूषार्थ की मेहनत अच्छी लगती है? प्रालब्ध वाले बनेंगे? अभी पुरूषार्थ कर रहा हूँ, पुरूषार्थ हो जायेगा, करके दिखायेंगे, यह शब्द समाप्त हों। करके दिखायें क्या, दिखाओ। और कब दिखायेंगे? क्या विनाश के समय दिखायेंगे? इसकी बहुत सहज विधि है कि अब मास्टर दाता बनो। बाप से लिया है और लेते भी रहो लेकिन आत्माओं से लेने की भावना नहीं रखो - यह कर लें तो ऐसा हो। यह बदले तो मैं बदलूं, यह लेने की भावना है। ऐसा हो तो ऐसा हो। यह लेने की भावनायें हैं। ऐसा हो नहीं, ऐसा करके दिखाना है। हो जाए तो नहीं, लेकिन होना ही है और मुझे करना है। मुझे बायब्रेशन देना है। मुझे रहमदिल बनना है। मुझे गुणों का सहयोग देना है, मुझे शक्तियों का सहयोग देना है। मास्टर दाता बनो। लेना है तो एक बाप से लो। अगर और आत्माओं से भी मिलता है तो बाप का दिया हुआ ही मिलेगा। तो दाता बन फरागदिल बनो। देते रहो, देने आता है? या सिर्फ लेने आता है? अब जो जमा किया है वह दो। आपस में ब्राह्मण आत्मायें भी मास्टर दाता बनो। और दे तो मैं दूं, नहीं। मुझे देना है। खज़ाना है आपके पास? भरपूर है? गुणों से भरपूर है? शक्तियों से भरपूर है? है तो देते क्यों नहीं हो? अपने लिए छिपाकर रखा है क्या? जब खज़ानों से भरपूर हो तो देते जाओ। यह क्यों करता? यह क्यों कहता? यह सोच नहीं करो। रहमदिल बन अपने गुणों का, अपनी शक्तियों का सहयोग दो - इसको कहा जाता है मास्टर दाता। महा सहयोगी। सहयोगी भी नहीं, महा सहयोगी बनो। महा दाता बनो। तो समझा बापदादा क्या चाहता है?
बापदादा अभी तक बच्चों के पुरूषार्थ की मेहनत देख नहीं सकते। डायमण्ड जुबली समाप्त हुई और डायमण्ड अभी तक बेदाग बनने के पुरूषार्थ में लगे हुए हैं। डायमण्ड जुबली अर्थात् हर ब्राह्मण आत्मा (डायमण्ड) चमकता रहे। आप सोचेंगे कि डायमण्ड जुबली हमारी तो थी नहीं, वह तो दादियों की हुई। आपकी हुई या दादियों की हुई, किसकी हुई? यज्ञ के स्थापना के कार्य की डायमण्ड जुबली। सिर्फ दादियों की नहीं, स्थापना के कार्य की डायमण्ड जुबली। तो आप सभी चाहे दो साल के हो, चाहे 12 साल के हो चाहे 50 के हो, लेकिन स्थापना के कार्य के निमित्त तो हो ना या नहीं? निमित्त हो? ब्राह्मण माना ही ब्रह्मा बाप के साथ स्थापना के कार्य के निमित्त आत्मा। वही ब्रह्माकुमार या ब्रह्माकुमारी कहला सकते हैं। तो ब्रह्माकुमार, कुमारी सभी हो या पुरुषार्थी कुमार कुमारी हो? क्या हो? ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारियां अर्थात् जन्म लिया और ब्रह्मा बाप के साथी स्थापना के निमित्त आत्मा बनें। तो ऐसे नहीं सोचना हम तो अभी नये हैं। हम तो अभी छोटे हैं। लेकिन समय के अनुसार जब समय समाप्ति के नजदीक है तो छोटों को, नयों को इतना ही तीव्र पुरूषार्थ करना ही है, अगर अब ब्राह्मण हैं तो। अगर क्षत्रिय हैं तो छुट्टी है। लेकिन ब्राह्मण हैं तो ब्राह्मण सो देवता कहा जाता है। क्षत्रिय सो देवता नहीं। तो ब्राह्मण आत्माओं को स्थापना के निमित्त बनना ही है। हैं ही निमित्त। इसलिए अभी मास्टर दाता बनो। दान नहीं करो लेकिन सहयोग दो। ब्राह्मण, ब्राह्मण को दान नहीं कर सकता, सहयोग दे सकता है। तो क्या कहा? महा दाता और महा सहयोगी बनो। अभी एक साल वाला भी है तो भी समय के अनुसार अभी बचपन की बातें समाप्त करो क्योंकि सभी बच्चे वानप्रस्थ अवस्था के समीप हो। समय की गति प्रमाण, ड्रामा के नियम प्रमाण अभी सभी की वानप्रस्थ अवस्था समीप है।
बापदादा जानते हैं कि बच्चों का बाप से जिगरी स्नेह है। जिगरी स्नेह है ना? या ऊपर-ऊपर का स्नेह है? दिल का स्नेह है तब तो भागकर आये हो ना? देखो बेहद के हाल में, बेहद के बाप के बच्चे, बेहद के रूप में विराजमान हैं। यह हाल अच्छा लगता है ना या दूर लगता है? देखो, बैठने में तो दूर है लेकिन बापदादा अपने दिल की बहुत बड़ी स्क्रीन में आप सब दूर बैठे हुए बच्चों को अति समीप देख रहे हैं। दूर नहीं देख रहे हैं। बापदादा के दिल की स्क्रीन बहुत बड़ी है। अभी तक साइंस वालों ने भी नहीं निकाली है। इसीलिए आप दूर नहीं बैठे हो, बापदादा के दिल में बैठे हो। ऐसे समझते हो? कुर्सी पर बैठे हो, दरी पर बैठे हो या दिल में बैठे हो? दृश्य तो बहुत अच्छा सुन्दर लग रहा है। फुल पीछे तक भरा हुआ है या कुछ खाली है? बापदादा देख रहे हैं - पीछे थोड़ा खाली है।
देखो आप लोगों को बापदादा ने काम दिया था। आप भूल गये होंगे लेकिन बापदादा को याद है। कौन सा काम दिया था? (क्रोध मुक्त का) आज वह नहीं पूछेंगे। पहला चांस लिया है ना तो आज क्रोधमुक्त का पूछेंगे तो दिलशिकस्त हो जायेंगे। बापदादा को रिजल्ट पता है। पूछेंगे। आप लोगों से भी वहाँ से रिजल्ट मंगायेंगे। आज छोड़ देते हैं। तो काम दिया था कि 9 लाख तैयार करके दिखाओ। याद है - हर ज़ोन को कहा था। तो किस जोन ने 9 लाख तैयार किये हैं?
बंगाल-बिहार का सेवा का टर्न है। तो बंगाल-बिहार ने 9 लाख तैयार किया है? चुप हैं, बोलते नहीं हैं। चलो एक ज़ोन नहीं, सभी ज़ोन ने, देश विदेश वालों ने मिलकर 9 लाख तैयार किये हैं? विदेश वाले बताओ। 9 लाख हैं? बापदादा तो अपनी डेट फिक्स करते हैं और उसी फिक्स डेट पर आते हैं। आप भी सब बातों की डेट फिक्स करते हो? यह हाल कब तक बनेगा, फंक्शन कब होगा, यह डेट फिक्स करते हो ना? तो इसकी डेट कौन सी है? फिक्स है? विनाश के एण्ड (अन्त) में या पहले? क्या होगा? क्या सोचा है? कौन सी डेट है? कोई डेट है या अभी फिक्स नहीं किया है? यह भी बाप करे। करना आपको है। बापदादा तो कहेंगे कि शुभ कार्य में देरी नहीं करो फिर क्या करेंगे? चलो, इस सीजन के इन्ड में हो जाए तो भी अच्छा। इतनी हिम्मत है? सिर्फ दाता बन जाओ। अगर दाता बनेंगे तो दाता की भावना से आपकी रॉयल फैमिली और समीप वाली प्रजा बहुत जल्दी बनेंगी। वह लोग तो इन्तजार कर रहे हैं, सिर्फ सदा दाता बनने की देरी है। महान सहयोगी बनने की देरी है। ज्यादा खज़ाना स्वयं प्रति वा सिर्फ स्वयं की सेवाओं के प्रति लगाते हो। अपने- अपने सेवाओं के ड्युटीज़ में ज्यादा समय लगाते हो। महान दाता बन, बेहद के दाता बन वर्ल्ड के गोले पर खड़े हो, बेहद की सेवा में वायब्रेशन फैलाओ। विश्व राजा बनना है सिर्फ ज़ोन के वा अपने-अपने ड्युटीज़ के सार्किल के राजा नहीं बनना है। विश्व कल्याणकारी हो। अभी बेहद में जाओ। बेहद में जाने से हदों की बातें स्वत: ही समाप्त हो जायेंगी। मनोबल बहुत श्रेष्ठ बल है, उसको यूज़ नहीं करते हो। वाणी, सम्बन्ध, सम्पर्क उससे सेवा में बिजी रहते हो। अब मनोबल को बढ़ाओ। बेहद की सेवा जो अभी आप वाणी या सम्बन्ध, सहयोग से करते हो, वह मनोबल से करो। तो मनोबल की बेहद की सेवा अगर आपने बेहद की वृत्ति से, मनोबल द्वारा विश्व के गोले के ऊपर ऊंचा स्थित हो, बाप के साथ परमधाम की स्थिति में स्थित हो थोड़ा समय भी यह सेवा की तो आपको उसकी प्रालब्ध कई गुणा ज्यादा मिलेगी।
आजकल के समय और सरकमस्टांश के प्रमाण अन्तिम सेवा यही मन्सा वा मनोबल की सेवा है। इसका अभ्यास अभी से करो। चाहे वाणी द्वारा वा सम्बन्ध सम्पर्क द्वारा सेवा करते हो लेकिन अब इस मन्सा सेवा का अभ्यास अति आवश्यक है, साथ-साथ अभ्यास करते चलो। समझा क्या करना है? यह मन्सा सेवा वही रंगत दिखायेगी जो स्थापना के आदि में बाप की मन्सा द्वारा रूहानी आकर्षण ने बच्चों को आकर्षित किया। और मन्सा सेवा के फल स्वरूप अभी भी देख रहे हो कि वही आत्मायें अब भी फाउण्डेशन हैं। ड्रामा अनुसार यह बाप की मन्सा आकर्षण का सबूत है जो कितने पक्के हैं। तो अन्त में भी अभी बाप के साथ आपकी भी मन्सा आकर्षण, रूहानी आकर्षण से जो आत्मायें आयेंगी वह समय अनुसार समय कम, मेहनत कम और ब्राह्मण परिवार में वृद्धि करने के निमित्त बनेंगी। वही पहले वाली रंगत अन्त में भी देखेंगे। जैसे आदि में ब्रह्मा बाप को साधारण न देख कृष्ण के रूप में अनुभव करते थे। साक्षात्कार अलग चीज़ है लेकिन साक्षात स्वरूप में कृष्ण ही देखते, खाते-पीते चलते थे। ऐसा है ना? तो स्थापना में एक बाप ने किया, अन्त में आप बच्चे भी आत्माओं के आगे साक्षात देवी-देवता दिखाई देंगे। वह समझेंगे ही नहीं कि यह कोई साधारण हैं। वही पूज्यपन का प्रभाव अनुभव करेंगे, तब बाप सहित आप सभी के प्रत्यक्षता का पर्दा खुलेगा। अभी अकेले बाप को नहीं करना है। बच्चों के साथ प्रत्यक्ष होना है। जैसे स्थापना में ब्रह्मा के साथ विशेष ब्राह्मण भी स्थापना के निमित्त बनें, ऐसे समाप्ति के समय भी बाप के साथ-साथ अनन्य बच्चे भी देव रूप में साक्षात अनुभव होंगे। इसके लिए यही जो आज सुनाया अभी से प्रालब्ध स्वरूप में स्थित रहो। छोड़ो छोटी-छोटी बातों को, अब ऊंचे जाओ। विशेष प्रालब्ध स्वरूप का साक्षात्कार स्वयं भी करो और कराओ। समझा।
अभी सभी अपने अनादि स्वरूप में एक सेकण्ड में स्थित हो सकते हो? क्योंकि अन्त में एक सेकण्ड की ही सीटी बजने वाली है। तो अभी से अभ्यास करो। बस टिक जाओ। (ड्रिल कराई) अच्छा।
सभी आराम से रह रहे हो? शान्तिवन अच्छा लगता है? सभी को पसन्द है? डबल फॉरेनर्स हाथ उठाओ। डबल फॉरेनर्स को डबल नशा है वा पदमगुणा नशा है? पदमगुणा नशा है वा डबल नशा है? फॉरेन में तो सुन रहे हैं ना? सभी देशों में सुन रहे हैं? (सेटलाइट-इन्टरनेट द्वारा 50 से भी अधिक देशों में डायरेक्ट बापदादा की मुरली सभी सुन रहे हैं) देखो फॉरेन की इन्वेन्शन फॉरेन में ही पहले काम में आ रही है। बापदादा को खुशी है कि फॉरेन वाले बापदादा को प्रत्यक्ष करने में सहयोगी बन रहे हैं और आगे भी बनेंगे। दिमाग अच्छा चलाते हैं। इन्वेन्शन अच्छी निकालते हैं इसलिए पहला चांस उन्हों को ही मिला है। तो जो भी अपने-अपने देश में सुन रहे हैं। बापदादा सभी बच्चों को इस हाल में फरिश्तों के रूप में हाजिर नाज़िर देख रहे हैं। डबल सभा देख रहे हैं। एक साकार और दूसरी फरिश्तों की सभा। भारत में भी चारों ओर के बच्चे फरिश्ते रूप में शान्तिवन में पहुंच गये हैं। तो सभी बच्चों को साकार रूपधारी बच्चों से पहले अखुट यादप्यार दे रहे हैं। बापदादा देख रहे हैं कि कोने-कोने से बच्चे शान्तिवन निवासी बन अव्यक्त अनुभव कर रहे हैं। बहुत अच्छा साधन मिला है और सदा साधन और साधना दोनों साथ रखना। अच्छा।
सर्व चारों ओर के बच्चों को सदा भाग्य की रेखायें इमर्ज रूप में स्मृति में रखने वाली आत्माओं को, सदा अपने संगमयुगी सर्व प्राप्ति स्वरूप प्रालब्ध को अनुभव करने वाले, सदा मास्टर दाता, महा सहयोगी आत्माओं को, सदा मन्सा सेवा द्वारा विश्व के आत्माओं के कल्याणकारी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
इस्टर्न और तामिलनाडु के सेवाधारियों प्रति - इस्टर्न ज़ोन वा तामिलनाडु दोनों ने मिलकर अपने उमंग-उत्साह से, एक दो के सहयोग से एक दो को आगे रखते हुए जो पार्ट बजाया वह बहुत अच्छा। यह संगठन बहुत शक्ति देता है। सभी की अंगुली से सेवा की सफलता सहज हो जाती है। तो आप सभी जो भी इस्टर्न वा तामिलनाडु के भाई और बहन सेवा में आये हैं, सभी ने जो सहयोग की शक्ति यूज़ करके सभी को जो शान्ति और शक्ति का अनुभव कराया, स्नेह का अनुभव कराया वह बहुत अच्छा है और आगे भी अच्छा रहेगा। इसलिए सभी की तरफ से बापदादा भी मुबारक दे रहे हैं।
अच्छा। ओम् शान्ति।
28-11-97 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
बेहद की सेवा का साधन - रूहानी पर्सनालिटी द्वारा नज़र से निहाल करना
आज बापदादा अपने अनेक कल्प के मिलन मनाने वाले लाडले, सिकीलधे बच्चों से फिर से मिलन मनाने आये हैं। अव्यक्त मिलन तो सदा मनाते ही हो लेकिन अव्यक्त से व्यक्त रूप में मिलन मनाने के लिए सभी बच्चे भारत वा विदेश से फिर से अपने घर पहुंच गये हैं। बापदादा देख रहे हैं कि चारों ओर बच्चे अपने-अपने स्थान पर भी मिलन मना रहे हैं। यह मिलन रूहानी अलौकिक मिलन है। इस मिलन में बापदादा और बच्चों के स्नेह का साकार स्वरूप है।
आज बापदादा अपने बच्चों की रूहानी पर्सनालिटी को देख रहे हैं। हर एक बच्चे की रूहानी पर्सनालिटी कितनी श्रेष्ठ है। ऐसी रूहानी पर्सनालिटी सारे कल्प में और किसी की भी नहीं है क्योंकि आप सबकी पर्सनालिटी बनाने वाला ऊंचे ते ऊंचा बाप है। आप भी अपनी रूहानी पर्सनालिटी को जानते हैं ना? सबसे बड़े ते बड़ी पर्सनालिटी है - स्वप्न वा संकल्प में भी सम्पूर्ण प्युरिटी की पर्सनालिटी। नम्बरवार है लेकिन फिर भी विश्व की सर्व आत्माओं से श्रेष्ठ है। तो बापदादा हर एक के मस्तक से पर्सनालिटी की झलक देख रहे हैं। प्युरिटी के साथ-साथ सबके चेहरे और चलन में रूहानियत की भी पर्सनालिटी है। और पर्सनालिटी क्या होती है? जो खज़ानों से सम्पन्न होते हैं, उसकी भी पर्सनालिटी होती है लेकिन कितने भी बड़े-बड़े सम्पन्न आत्मायें हों, आपके आगे वह सम्पन्न आत्मायें भी कुछ नहीं हैं क्योंकि वह भी अविनाशी सुख-शान्ति के खज़ाने से खाली हैं। आपके पास जो सम्पत्ति है उसके आगे अरब-खरब-पति भी बाप से सुख-शान्ति मांगने वाले हैं और आप सदा अविनाशी खज़ानों से भरपूर हो। वह खज़ाने आज हैं कल नहीं लेकिन आपका खज़ाना न कोई लूट सकता है, न कोई आत्मा खज़ाने को हिला सकती है। अखुट है, अखण्ड है। ऐसी पर्सनालिटी वाले आप बच्चे हो। सबसे ऊंचे ते ऊंची पर्सनालिटी वाले फिर भी आत्माओं द्वारा, विनाशी धन द्वारा, विनाशी आक्यूपेशन द्वारा पर्सनालिटीज़ बनती हैं वा कहलाई जाती हैं। लेकिन आपको ऊंचे ते ऊंचे परम आत्मा ने श्रेष्ठ पर्सनालिटी वाले बना दिया। तो अपने ऊंची पर्सनालिटी का रूहानी नशा रहता है? रहता है तो हाथ हिलाओ।
बापदादा को इतने श्रेष्ठ पर्सनालिटी वाले बच्चे देख कितनी खुशी होती है। आपको भी होती है? बापदादा बच्चों की ऐसी श्रेष्ठता को देख क्या गीत गाते हैं, जानते हो? आप भी गाते हैं, बाप भी गाते हैं। बाप का गीत सुनाई देता है या टेप का गीत सुनाई देता है? बापदादा की टेप न्यारी होगी ना, आटोमेटिक है। चलाने की मेहनत नहीं करनी पड़ती। और दिल का गीत दिल वाले ही सुन सकते हैं। सिर्फ कान वाले नहीं, दिल वाले। तो सभी दिल वाले हो ना? दिलवाला मन्दिर में आपका चित्र है ना? सभी ने अपना चित्र देखा है? बापदादा तो सदा बच्चों के चित्र और चरित्र देखते रहते हैं। तो आज पर्सनालिटी को देख रहे थे। सदा यह पर्सनालिटी स्मृति में इमर्ज रहे। है ही, नहीं। है, दिखाई देवे। अनुभव में आये। सदा ऐसी पर्सनालिटी में रहने वाले की निशानी क्या होगी? जिस निशानी से समझ जाएं कि यह अपने पर्सनालिटी में है? अगर यह रूहानी पर्सनालिटी इमर्ज रूप में रहती है तो उनके नयन, उनका चेहरा, चलन, संकल्प और सम्बन्ध सब प्रसन्नता वाले होंगे। सदा प्रसन्नचित, प्रश्निचित्त नहीं, प्रसन्निचित। अगर प्रश्नचित है तो चलन भी पर्सनालिटी वाली नहीं। चेहरे पर भी प्रसन्नता की झलक नहीं। कुछ भी हो जाए, पर्सनालिटी वाले की प्रसन्नता छिप नहीं सकती। मर्ज नहीं हो सकती। प्रसन्नचित आत्मा; कोई कैसी भी आत्मा परेशान हो, अशान्त हो उसको अपने प्रसन्नता की नज़र से प्रसन्न कर देगी। जो बाप का गायन है ‘‘नजर से निहाल करने वाले'', वह सिर्फ बाप का नहीं है आपका भी यही गायन है। और अभी समय प्रमाण जितना समय समीप आ रहा है तो नज़र से निहाल करने की सेवा करने का समय आयेगा। सात दिन का कोर्स नहीं होगा, एक नज़र से प्रसन्नचित हो जायेंगे। दिल की आश आप द्वारा पूर्ण हो जायेगी। तो सभी क्या समझते हो? आदि सेवा के रत्न क्या समझते हैं? ऐसी सेवा कर सकते हो ना?
अभी देखो आप लोगों ने 40 वर्ष सेवा की या ज्यादा भी की, कोई का एक दो साल कम भी होगा, किसका ज्यादा भी होगा। अभी आप लोगों ने अपने साथियों को यह सेवा सिखा दी और निमित्त भी बना दिया। अभी आप क्या करेंगे? वो सेवा तो वह भी कर रहे हैं। आप आदि रत्न हो तो न्यारी और प्यारी सेवा करेंगे ना? अभी फिर उत्सव मनायेंगे कि नज़र से निहाल कितने किये। 9 लाख में से कितने बनाये? आगे तो 33 करोड़ भी हैं, 9 लाख तो उसके आगे कुछ नहीं हैं। बीज तो यहाँ ही डालना है ना? तो देखेंगे कि आदि सेवा के रत्न अब और क्या कमाल दिखाते हैं। यह कमाल तो दिखाई, सेवाकेन्द्र बनाये, अच्छे-अच्छे प्रोग्राम किये, उसकी तो पदमगुणा मुबारक है। दो प्रकार के बच्चे हैं जो पहले वाले हैं वह हैं स्थापना के निमित्त बच्चे और आप लोग हो विशेष सेवा के आदि के बच्चे। यह (दादियां) हैं जड़ स्थापना वाले और आप सब (सेवा के आदि रत्न) हैं पहला-पहला तना। तो तना तो मजबूत होता है ना। तना पर ही सब आधार होता है। तना से ही सब शाखायें निकलती हैं। जड़ वाले तो सूक्ष्म में शक्ति देते हैं लेकिन जो प्रैक्टिकल में होता है, दिखाई देता है, वह तना दिखाई देता है। तो दादियां अभी गुप्त हो गई हैं, सकाश देने वाली और प्रैक्टिकल में स्टेज पर आने वाले आप निमित्त बनें, (सम्मान समारोह में आई हुई सभी बड़ी बहिनों से बापदादा ने हाथ उठवाया) इसीलिए बापदादा काम दे रहे हैं। समारोह तो बहुत अच्छा मनाया ना। बापदादा ने सब देखा। सजी हुई मूर्तियों को देखा। उस समय तो आप लोगों को भी यही रूहानी अनुभव हो रहा था कि हम चैतन्य मूर्तियां हैं। ऐसे ही लग रहा था जैसे सजी हुई मूर्तियां मन्दिरों से शान्तिवन में पहुंच गई हैं।
तो बापदादा अभी बच्चों से चाहते हैं कि अभी फास्ट सेवा शुरू करो। जो हुआ वह बहुत अच्छा। अब समय प्रमाण औरों को ज्यादा वाणी का चांस दो। अभी औरों को माइक बनाओ, आप माइट बनके सकाश दो। तो आपकी सकाश और उन्हों की वाणी, यह डबल काम करेगी। तब ही 9 लाख सहज बन जायेंगे। अभी आप सभी चाहे फंक्शन में बैठे या और भी महारथी हैं तो महारथियों की अभी सेवा है - सर्व को सकाश देना। बेहद की सेवा के मैदान में आना। जब बाप अव्यक्त वतन, एक स्थान पर बैठे चारों ओर के विश्व के बच्चों की पालना कर सकते हैं, कर रहे हैं तो क्या आप एक स्थान पर बैठे बाप समान बेहद की सेवा नहीं कर सकते हो? आदि रत्न अर्थात् फॉलो फादर। बेहद में सकाश दो। कई बच्चे अपने से भी पूछते हैं और आपस में भी पूछते हैं कि बेहद का वैराग्य कैसे आयेगा? दिखाई तो देता नहीं है, लेकिन बेहद की सेवा में अपने को बिजी रखो तो बेहद का वैराग्य स्वत: ही आयेगा क्योंकि यह सकाश देने की सेवा निरन्तर कर सकते हो, इसमें तबियत की बात, समय की बात - यह सहज हो जाती है। दिन रात इस बेहद की सेवा में लग सकते हो। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा रात को भी कैसे आंख खुली और बेहद की सकाश देने की सेवा होती रही। तो यह बेहद की सेवा इतना बिजी कर देगी जो बेहद का वैराग्य स्वत: ही दिल से आयेगा। प्रोग्राम से नहीं। यह करें, यह करें - यह प्लैन तो बनाते हो, लेकिन बिजी बेहद की सेवा में रहना - यह सबसे सहज साधन है क्योंकि जब बेहद को सकाश देंगे तो नजदीक वाले तो ऑटोमेटिक सकाश लेते रहेंगे। इस बेहद की सकाश देने से वायुमण्डल ऑटोमेटिक बनेगा। अभी यह नहीं सोचो कि इतने सेन्टर के जिम्मेवार हैं वा ज़ोन के जिम्मेवार हैं! आप सभी को स्टेट के राजा बनना है या विश्व का? क्या बनना है? विश्व का ना? आदि रत्न हो तो विश्व को सकाश देने वाले बनो। अगर 20 सेन्टर, 30 सेन्टर या दो अढ़ाई सौ सेन्टर या जोन, यह बुद्धि में रहेगा तो यह भी तना का काम नहीं है। यह तो टाल टालियां भी कर सकती हैं। आप तो तना हो। तना से सबको सकाश पहुंचती है। आप सभी भी यह सोचते हो कि बेहद का वैराग्य आना चाहिए, यह तो बहुत अच्छा। अभी विनाश हो जाए। लेकिन 9 लाख ही तैयार नहीं किये, तो सतयुग के आदि में आने वाली संख्या ही तैयार नहीं है और विनाश हो गया तो कौन आयेगा? क्या 2-3 हजार पर राज्य करेंगे? 4- 5 लाख पर राज्य करेंगे? इसलिए अब बेहद की सेवा का पार्ट प्रारंभ करो। पाण्डव क्या समझते हैं? बेहद की सेवा करेंगे ना? पाण्डव तैयार हैं? अभी यह हद की बातें बेहद में जाने से आपेही छूट जायेंगी। छुड़ाने से नहीं छूटेंगी। बेहद की सकाश से परिवर्तन होना फास्ट सेवा का रिजल्ट है।
बापदादा जानते हैं कि नाज़ुक परिस्थितियों में निमित्त बनी आत्माओं ने सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण दिया है। लेकिन आप सभी का फाउण्डेशन वा सेकण्ड का परिवर्तन का मूल अनुभव यही है कि ब्रह्मा बाप को देखा और ब्राह्मण बन गये। सेवा का वरदान मिला और सेवा में लग गये। बापदादा ने सभी के अनुभव भी सुने। अच्छे अनुभव सुनाये। तो जैसे आप लोगों का अनुभव है, ब्रह्मा बाप को देखा और सोचना भी नहीं पड़ा। सहन करने का भी अनुभव नहीं हुआ कि सहन कर रहे हैं। बड़ी बात नहीं लगी। ऐसे अभी हर श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा को देखें और आत्मा में (ब्राह्मण में) ब्रह्मा बाप देखें। यह है सेवा का फास्ट साधन, क्या ब्रह्मा बाप ने आपको कोर्स कराया? कोर्स तो पीछे किया। लेकिन देखा और हो गये। तो जैसे ब्रह्मा बाप में बाप समाया हुआ था इसीलिए मेहनत नहीं लगी। ऐसे आप सभी भी बापदादा को अपने में समाते हुए नज़र से निहाल करो। जो आप सबका अनुभव है, अनुभवी हो। देखा और फ़िदा हो गये। जैसे अभी सोचते हैं, ट्रेनिंग लेते हैं फिर ट्रायल पर आते हैं, फिर कोई चला जाता है कोई रहता है। इतनी मेहनत आपने ली? ट्रेनिंग की क्या? ट्रायल पर रहे क्या? बस आये और खो गये। ऐसी सेवा जब एक ब्रह्मा बाप ने की तो आप इतने ब्राह्मण आत्मायें नहीं कर सकती हो क्या? आपकी पर्सनालिटी अपना बना दे। ब्रह्मा बाप की भी पर्सनालिटी थी ना। चाहे सूरत की, चाहे सीरत की लेकिन पर्सनालिटी थी तब आकर्षित हुए। तो फॉलो फादर। जब बाप ने आपको आदि में निमित्त बनाया तो जो आदि के हैं, सेवा के निमित्त वा स्थापना के फाउण्डेशन उनको अन्त तक सेवा में रहना ही है। तबियत के कारण शरीर से चक्कर नहीं लगा सकते लेकिन मन से तो लगा सकते हो? उसमें तो खर्चा भी नहीं, वीज़ा लेने की भी जरूरत नहीं। भाग दौड़ की भी जरूरत नहीं। लेटे-लेटे भी कर सकते हो। क्या समझते हो? अब ऐसा कोई प्लैन बनाओ। नया पाठ शुरू करो। अभी एक फंक्शन तो मना लिया ना। जो सेवा की उसका प्रत्यक्ष फल मिल गया। अभी नई सेवा करो। अच्छा।
बापदादा सिर्फ सामने वालों को नहीं कह रहे हैं, सभी बच्चों को कह रहे हैं। विदेश में भी जो सुन रहे हैं उन्हों को भी कह रहे हैं। जहाँ भी सुन रहे हैं, चाहे शान्तिवन में सुन रहे हैं, चाहे ऊपर पाण्डव भवन में, चाहे विदेश में, जहाँ भी हैं वहाँ बापदादा सभी के लिए कह रहे हैं। अब बेहद के सेवाधारी बनो। समय बेहद की सेवा में लगाओ। बेहद की सेवा में समय लगाने से समस्या सहज ही भाग जायेगी क्योंकि चाहे अज्ञानी आत्मायें हैं, चाहे ब्राह्मण आत्मायें हैं लेकिन अगर समस्या में समय लगाते हैं वा दूसरों का समय लेते हैं तो सिद्ध है कि वह कमजोर आत्मायें हैं, अपनी शक्ति नहीं है। जिसको शक्ति नहीं हो, पांव लंगड़ा हो और उसको आप कहो दौड़ लगाओ, तो लगायेगा या गिरेगा? तो समस्या के वश आत्मायें चाहे ब्राह्मण भी हैं लेकिन कमजोर हैं, शक्ति नहीं है, तो वह कहाँ से शक्ति लायें? बाप से डायरेक्ट शक्ति ले नहीं सकता क्योंकि कमजोर आत्मा है। तो क्या करेंगे? कमजोर आत्मा को दूसरे कोई का ब्लड देकर ताकत में लाते हैं, कोई शक्तिशाली इन्जेक्शन देकर ताकत में लाते हैं, तो आप सबमें शक्तियां हैं। तो शक्ति का सहयोग दो, गुण का सहयोग दो। उन्हों में है ही नहीं, अपना दो। पहले भी कहा ना - दाता बनो। वह असमर्थ हैं, उन्हों को समर्थी दो। गुण और शक्ति का सहयोग देने से आपको दुआयें मिलेंगी और दुआयें लिफ्ट से भी तेज राकेट हैं। आपको पुरूषार्थ में समय भी देना नहीं पड़ेगा, दुआओं के रॉकेट से उड़ते जायेंगे। पुरूषार्थ की मेहनत के बजाए संगम के प्रालब्ध का अनुभव करेंगे। दुआयें लेना - वह सीखो और सिखाओ। अपना नेचरल अटेन्शन और दुआयें, अटेन्शन भी टेन्शन मिक्स नहीं होना चाहिए, नेचरल हो। नॉलेज का दर्पण सदा सामने है ही। उसमें स्वत: सहज अपना चित्र दिखाई देता ही रहेगा। इसीलिए कहा कि पर्सनालिटी की निशानी है प्रसन्नचित। यह क्यों, क्या, कैसे। यह के के की भाषा समाप्त। दुआयें लेना और देना सीखो। प्रसन्न रहना और प्रसन्न करना - यह है दुआयें देना और दुआयें लेना। कैसा भी हो आपकी दिल से हर आत्मा के प्रति हर समय दुआयें निकलती रहें - इसका भी कल्याण हो। इसकी भी बुद्धि शान्त हो। यह ऐसा, यह वैसा - ऐसा नहीं। सब अच्छा। यह हो सकता है? दुआयें देने आती हैं? लेने तो आती हैं, देने भी आती हैं? देंगे नहीं तो लेंगे कैसे? दो और लो। यह करे नहीं, मैं करूं। ब्रह्मा बाप का सदा स्लोगन रहा, ब्रह्मा बाप बार-बार याद दिलाते रहे - जो कर्म मैं करूंगा, मुझे देख और करेंगे। जब दूसरे करेंगे तब मैं करूंगा .... यह स्लोगन नहीं। जो मैं करूंगा मुझे देख और करेंगे। नहीं तो स्लोगन चेंज कर दो और जगदम्बा माँ का विशेष स्लोगन रहा - हुक्मी हुक्म चला रहा है। वह चला रहा है, हम निमित्त बन चल रहे हैं। तो दोनों स्लोगन सदा याद रखो, इमर्ज। है ही, सुना है ... याद तो रहता है...., नहीं। कर्म में दिखाई दे। तो क्या करेंगे? दुआयें लेंगे, दुआयें देंगे कि ग्लानी करेंगे, फील करेंगे - यह ऐसा, यह वैसा? नहीं। उसको दुआयें दो। कमजोर है, वशीभूत है। भाषा और संकल्प बदली करो। यह संकल्प मात्र भी न हो कि यह बदले, नहीं। मैं बदलूं। और बातों में तो मैं मैं का आता है लेकिन जिस बात में मैं आना चाहिए, उसमें और करे तो करें, यह क्या? अच्छा काम होगा तो कहेंगे मैं। और ऐसा कोई काम होगा तो कहेंगे इसने किया, इसने कहा। उल्टा हो गया ना। कोई क्या भी करता है, मुझे क्या करना है, मुझे क्या सोचना है, मुझे क्या कहना है, इसमें मैं-पन लाओ। बॉडी कान्सेस वाला मैं नहीं, सेवा का मैं। तो ऐसे ही श्रेष्ठ वायब्रेशन फैलाओ। अभी वाणी कम काम करती है, दिल का सहयोग, दिल के वायब्रेशन बहुत जल्दी काम कर सकते हैं। तो यह हो सकता है?
अगर हो सकता है तो शुभ कार्य में देरी क्यों? अब से हो सकता है? पाण्डव सुनाओ। फिर वहाँ जाकर नहीं बदल जाना। वहाँ जाकर कहेंगे - बापदादा तो कहते हैं लेकिन साकार में तो हम हैं ना। बापदादा को क्या पता, क्या होता है। ऐसे नहीं कहना। मातायें क्या कहेंगी? बापदादा बच्चों को सम्भाले तो पता पड़े, ऐसे सोचेंगी? बापदादा ने आप बड़ों को सम्भाला, छोटे क्या बड़ी बात हैं। तो वहाँ जाकर बदल नहीं जाना। आप लोगों का एक गीत है ना - बदल जाए दुनिया न बदलेंगे हम। यह गीत पक्का है, राइट है? अगर ठीक है तो हाथ उठाओ। फिर तो आपकी जो 21वीं सेंचुरी की कांफ्रेंस है ना वह प्रैक्टिकल हो जायेगी। ठीक है ना! प्रैक्टिकल में सृष्टि को नक्शा दिखाओ। यह होगा, होगा नहीं, हो गया है। क्या हुआ? अगर मानों आपने ग्लानी या डिस्टर्बेंस सहन भी कर लिया, समा भी लिया तो आपका सहन करना, समाना, आपके लिए अपनी राजधानी निश्चित होना। आपको क्या नुकसान हुआ? फायदा ही हुआ। देखने में आता है - बड़ा मुश्किल है। बात बहुत बड़ी है लेकिन आपने सहन किया, समाया और आपका स्टैम्प लग गया, आपकी राजधानी बन गई। तो फायदा हुआ या नुकसान हुआ?
अभी इस सीज़न में बापदादा ऐसा चारों ओर का स्वरूप देखने चाहते हैं। हर सीजन में वही बातें सुनना अच्छा नहीं लगता। वही कथायें, कथायें, कथायें... तो बापदादा भी बच्चों से प्रश्न करते हैं कि आखिर यह बातें कब तक? या तो समय बता दो कि एक साल और चाहिए, दो साल और चाहिए। इसकी भी डेट तो फिक्स करो। फंक्शन की डेट तो जल्दी फिक्स हो गई। सभी के फंक्शन की डेट फिक्स कर ली है, इस फंक्शन की डेट कौन सी है?
सभी दूर-दूर से प्यार से आये हैं। बापदादा विदेश को भी देख रहा है। भिन्न टाइम होते भी बहुत प्यार से समय देकर सुन रहे हैं। (विदेश में 200 स्थानों पर सैटलाइट द्वारा मुरली सुन रहे हैं) देखो यह भी फास्ट गति है ना। यहाँ का आवाज़ विदेश में 200 स्थान पर पहुंच रहा है, यह भी आवाज़ की गति फास्ट है ना। यह भी इन्वेन्शन है ना। तो आप साइलेन्स के पावर की गति फास्ट नहीं कर सकते हो? साइन्स ने भारत का आवाज़ विदेश तक पहुंचाया और आप स्वप्न व संकल्प की पवित्रता ही सबसे बड़े से बड़ी पर्सनालिटी है। 77 अपने दिल की शुभ भावनायें आत्माओं को नहीं पहुंचा सकते हो! पहुंचा सकते हैं ना? नहीं तो साइन्स आगे चली जायेगी, साइलेन्स की पावर थोड़ा कम दिखाई देगी। इसलिए साइलेन्स की शक्ति को प्रत्यक्ष करो। सभी में है। एक ब्राह्मण भी नहीं है जो कहे कि मेरे में साइलेन्स की शक्ति नहीं है। सभी में है, कितने ब्राह्मण हैं? इतने ब्राह्मणों की सकाश क्या नहीं कर सकती? सभी में साइलेन्स की शक्ति है? तो अभी एक मिनट में सभी अपने साइलेन्स की शक्ति इमर्ज करो। एकदम साइलेन्स मन से, तन से इमर्ज करो।
(बापदादा ने डेड साइलेन्स की ड्रिल करवाई) अच्छा।
चारों ओर के सर्व विशेष आत्माओं को सदा रूहानी पर्सनालिटी के नशे में रहने वाली आत्माओं को, सदा बेहद की सेवा में स्वयं को बिजी रखने वाली निमित्त विश्व कल्याणकारी आत्माओं को, सदा ब्रह्मा बाप और जगदम्बा का स्लोगन साकार में लाने वाली, ऊंच ते ऊंच नज़र से निहाल करने की सेवा में सदा रहने वाली बाप समान आत्माओं को बापदादा और जगदम्बा माँ का यादप्यार और नमस्ते।
दादियों तथा बड़े भाईयों से
सभी का दिल का उमंग-उत्साह बहुत अच्छा है। अभी दिल का उमंग- उत्साह इमर्ज करना है। संकल्प बहुत अच्छे-अच्छे करते हैं। लेकिन प्रैक्टिकल में आने में समाने की शक्ति और कल्याण की भावना इसको इमर्ज करना पड़ेगा, तभी संकल्प साकार में होंगे। यह बातें तो एक सागर की लहरे हैं, लहरों को क्या देखना। वह तो अभी-अभी उठती हैं अभी-अभी मर्ज हो जाती हैं। लेकिन सागर समान समाने की शक्ति, साइलेन्स की पावर की शक्ति रत्न पैदा करेगी। तो अच्छा है। अभी आप लोगों की सकाश चाहिए। कमजोरों को बल दो। अपने पुरूषार्थ का समय दूसरों को सहयोग देने में लगाओ। तो आपका पुरूषार्थ स्वत: ही जमा होता जायेगा। दूसरों को सहयोग देना अर्थात् अपना जमा करना। अभी ऐसी लहर फैलाओ - देना है, देना है, देना ही देना है। सैलवेशन लेना नहीं है, सैलवेशन देना है। देने में लेना समाया हुआ है। ठीक है ना। फाउण्डेशन तो पक्का है। बापदादा की सकाश तो है ही। अभी आप आत्माओं के सकाश की आवश्यकता है। बाप की डायरेक्ट इतनी पावर लेने की हिम्मत नहीं है, बाप तो दे रहे हैं लेकिन कमजोर आत्मा ले नहीं पाती है, उन्हों को आप लोगों का सहयोग चाहिए। बस पाठ पक्का कर लो - आज के दिन कितनी आत्माओं को नि:स्वार्थ सहयोग दिया। आप देना शुरू करेंगे, करते भी हो लेकिन और अन्डरलाइन। तो सबके पास वह लहर फैलेगी।
(भूपाल भाई से)- शान्तिवन कितना बड़ा हो गया। अब सारे भारत के सेवाकेन्द्रों से, पाण्डव भवन से, ज्ञान सरोवर से, चारों ओर से शान्तिवन बड़ा हो गया है। तो बड़ी दिल। अच्छा है, मेहनत भी अच्छी कर रहे हैं।
अभी यू.पी. का टर्न है ना। यू.पी. वाले हाथ उठाओ, जो सेवा में हैं खड़े हो जाओ। बहुत अच्छा। सेवा का प्रत्यक्ष फल है खुशी। तो खुशी हो रही है ना? यह प्रत्यक्ष फल अविनाशी रहे। सभी अच्छे सेवा का सबूत दे रहे हैं इसीलिए बापदादा कहते हैं सबूत देने वाले सपूत बच्चे। तो कितनों की दुआयें ली? दिल से सेवा करना अर्थात् दुआओं का दरवाजा खुलना। तो सेवा की अर्थात् दुआयें ली। तो दुआयें जमा करते जाओ। अच्छा।
आदि रत्न भी अच्छा सबूत दे रहे हैं। मधुबन वाले भी सेवा में अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। मधुबन वाले तो सदा बापदादा के साथ का अनुभव सहज करने वाले हैं। मधुबन अर्थात् मधुबन का बाबा। तो मधुबन वाले सदा बाप के साथ हैं। सेवा के लिए बापदादा सदा दिल से दुआयें देते हैं। हर एक बच्चों की सेवा बापदादा सदा देखते हैं। हर एक सेन्टर की सेवा का रिकार्ड बापदादा के पास रहता है। मधुबन का अपना, विदेश का अपना, भारत का अपना, बापदादा तो गीता पाठशालायें भी देखते हैं। आप लोग तो दो चार पांच जगह में चक्कर लगाते हो, बापदादा तो गीता पाठशाला का भी चक्कर लगाते हैं।
अच्छा गीता पाठशाला वाले उठो, खड़े हो जाओ। मुबारक हो। तीन पैर देकर तीनों लोकों के मालिक बन गये। चतुर निकले ना। दिया तीन पैर और लिया तीन लोक। बापदादा तो आपकी गीता पाठशालायें, क्लासेज़ का भी चक्कर लगाते हैं। दादियों को टाइम नहीं मिलता है ना इसीलिए बापदादा चक्र लगाते हैं। इसलिए तो अव्यक्त बने हैं ना। (दादी जी से) आपका काम भी अभी अव्यक्त रूप में बापदादा करता है।
बापदादा सब नोट करते हैं, गीता पाठशाला वाले, क्लास कराने वाले किस विधि से चलते हैं, किस विधि से सोते हैं, किस विधि से खाते-पीते हैं, सब नोट करता है। कहाँ-कहाँ ठीक नहीं होता है। गीता पाठशाला या कहाँ भी सेवा करने वाले हैं, वह स्थान विधि पूर्वक हो, स्वच्छ और मर्यादा पूर्वक भी हो। और जो भी दिनचर्या है, वह ब्राह्मण जीवन के नियम प्रमाण हो, ऐसे चलाओ नहीं, चलता है ....। बापदादा ज्यादा कहते नहीं हैं, समझते हैं थोड़ा मुश्किल लगेगा, इसीलिए कुछ बातें तो छोड़ देते हैं। छोड़ना चाहिए नहीं लेकिन छोड़ देते हैं। ऐसे कभी नहीं समझना कि कौन देखता है, फिर भी हिम्मत रखकर प्रवृत्ति में रहते सेवा के निमित्त बने हैं, यह बापदादा को देखकर खुशी होती है। बाकी चेक करना यह आपका काम है। बाप नहीं कहेंगे, आपका काम है। अगर बाप कहेंगे या दादियां कहेंगी ना तो चार-चार पेज का पत्र आयेगा, ऐसा है, ऐसा है... इसलिए बापदादा कहते नहीं हैं। इशारा देते हैं कि मर्यादापूर्वक अपने आपको चेक करो और चेंज करो। अच्छा। सभी एक दो से प्यारे हो ऐसे नहीं जो आगे बैठे हैं वह प्यारे हैं। आप उन्हों से भी प्यारे हो।
अच्छा-ओम् शान्ति।
14-12-97 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
व्यर्थ और नेगेटिव को अवाइड कर अवार्ड लेने के पात्र बनो
आज बापदादा अपने परमात्म प्यार के पात्र आत्माओं को देख रहे हैं। परमात्म प्यार आनंदमय झूला है जिस सुखदाई झूले में सदा झूलते रहते हैं। परमात्म प्यार अनेक जन्मों के दु:खों को एक सेकण्ड में समाप्त कर देता है। परमात्म प्यार सर्व शक्ति सम्पन्न है, जो निर्बल आत्माओं को शक्तिशाली बना देता है। ऐसे श्रेष्ठ परमात्म प्यार के आप कितनी थोड़ी सी आत्मायें पात्र हो। ऐसी श्रेष्ठ पात्र आत्माओं को बापदादा देख-देख हर्षित होते हैं। जैसे बाप हर्षित होते हैं वैसे बच्चे भी हर्षित होते हैं लेकिन नम्बरवार। बापदादा तो यही हर बच्चे को दिल से वरदान देते हैं कि सदा परमात्म प्यार के झूले में झूलने वाले अविनाशी रत्न भव। इस प्यार के झूले से मन रूपी पांव नीचे नहीं करो क्योंकि सारे विश्व की आत्माओं से परम आत्मा के लाडले हो, प्यारे हो। तो बापदादा यही बच्चों को दुआयें देते हैं इसी परमात्म प्यार में लवलीन रहो। ऐसे लवलीन आत्माओं के पास कोई भी पर-स्थिति वा माया की हलचल आ नहीं सकती। नीचे पांव रखते हो तो माया भी भिन्न-भिन्न खेल खेलने आती है, भिन्न-भिन्न रूप धारण कर आकर्षित करती है। लवलीन आत्माओं के सर्व शक्तियों के आगे माया आंख उठाकर भी नहीं देख सकती। आपका तीसरा नेत्र, ज्वालामुखी नेत्र माया को शक्तिहीन कर देता है। तो आप सब जो विशेष आत्मायें हो, सभी ब्राह्मणों को बापदादा द्वारा जन्मते ही तीसरा नेत्र मिला हुआ है। लेकिन बाप देखते हैं कभी-कभी बच्चों का तीसरा नेत्र बहुत मेहनत का पुरूषार्थ करते-करते थक जाता है और थकने के कारण बंद हो जाता है। माया को भी देखने की आंख बहुत दूरादेशी वाली है, दूर से देख लेती है। अभी तो माया भी समझ गई है कि अब हमारा राज्य गया कि गया, इसलिए माया से घबराओ नहीं। खुशी-खुशी से, सर्व शक्तियों के आधार से उनको विदाई दो। आने का चांस नहीं दो, विदाई दो। वह भी ब्राह्मण आत्माओं से, श्रेष्ठ आत्माओं से वार करतेकरते थक गई है। आप खुद कमजोरी के कारण माया का आह्वान करते हो, वह थक गई है लेकिन आप आह्वान करते हो तो वह भी चांस ले लेती है। अभी शक्तिहीन हो गई है। आप सबका अनुभव क्या कहता है? अभी माया में पहले जैसी शक्ति है? उसमें शक्ति है या आप शक्तिशाली हो? वह ट्रायल तो करेगी क्योंकि आप ही आह्वान करते हो तो वह चांस क्यों नहीं देगी। कमजोर बनते क्यों हो? बाप का यह क्वेश्चन है कि मास्टर सर्वशक्तिवान हो या नहीं? सभी मास्टर सर्वशक्तिवान हो? कभी-कभी सर्वशक्तिवान हो या सदा सर्वशक्तिवान हो? क्या हो? सदा शक्तिशाली हो? तो माया को कह दें कि अभी जाओ? आप उसे नहीं बुलाना। बाप माया को कहते हैं अभी समाप्त करो। तो माया बाप को कहती है कि मुझे आह्वान करते हैं। तो बाप क्या करे? अगर किसी भी प्रकार की कमजोरी चाहे मन में, चाहे वचन में, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क में आती है तो समझो माया को आह्वान किया। उसको भी आह्वान का वायब्रेशन बहुत जल्दी पहुंचता है।
यह महा उत्सव तो बहुत अच्छे मना रहे हो। लेकिन उत्साह सदा रहे इसलिए उत्सव मना रहे हो। इस वर्ष बहुत उत्सव मना रहे हो ना? (इस ग्रुप में ईश्वरीय सेवा के आदि रत्न भाईयों का सम्मान समारोह तथा टीचर्स बहिनों की सिल्वर जुबली का कार्यक्रम रखा गया है) हर ग्रुप में उत्सव मना रहे हैं तो बाप समझते हैं कि यह वर्ष उत्सव मनाना अर्थात् माया को विदाई देना। ऐसे नहीं गोल्डन चुन्नी पहनकर बैठ जाओ, गोल्डन चुन्नी पहनना माना गोल्डन एजड बनना। दृश्य तो बहुत अच्छा लगता है लेकिन सदा गोल्डन स्थिति की चुन्नी वा दुपट्टा पड़ा रहे। ऐसे नहीं दुपट्टा उतरा, उत्सव पूरा हुआ और जैसे थे वैसे रहे। यह उत्साह दिलाने का फंक्शन है। तो जिन्होंने उत्सव मनाया है या मनाने के लिए आये हैं वह हाथ उठाओ। बापदादा खुश है। खूब मनाओ लेकिन मनाना अर्थात् बनना और बनाना। उत्सव मनाने समय अपने आपको अन्डरलाइन करो सदा याद और सेवा के उत्साह में रहने वाली आत्मा हूँ। बापदादा को भी दृश्य अच्छा लगता है। तो यह वर्ष बापदादा माया को विदाई देने का वर्ष मनाने चाहते हैं। तो ऐसा उत्सव मनायेंगे ना? कल जो मनायेंगे, ऐसा ही मनायेंगे ना? सिल्वर जुबली मनायेंगे ना? गोल्डन जुबली हो, सिल्वर जुबली हो लेकिन है तो उत्सव ना! ऐसे नहीं सोचना कि हम तो सिल्वर जुबली वाले हैं, पहले गोल्डन वाले बनें फिर हम बनें। ऐसे नहीं सोचना। और जिन्होंने नहीं भी मनाया है, वह भी ऐसे नहीं समझना कि जो उत्सव मनाने वाले हैं उन्हों के लिए बापदादा कह रहे हैं। सभी के लिए कह रहे हैं। ब्राह्मण जीवन का उत्सव तो मनाया है ना! ब्राह्मण तो सभी बन गये या ब्राह्मण भी बन रहे हैं? बन गये हैं। तो ब्राह्मण जन्म का उत्सव मनाने वाली आत्मायें अर्थात् सदा उत्साह में रहना और औरों को भी उत्साह में लाना। यही ब्राह्मणों का आक्यूपेशन है। वह ब्राह्मण तो मुख से कथा करते हैं, आप ब्राह्मण मुख से भी बोलते तो उत्साह दिलाने के लिए बोलते हैं। कैसी भी आत्मा हो चाहे आपके विरोधी आत्मा हो, क्योंकि हिसाब-किताब भी यहाँ ही चुक्तू होना है। लेकिन कैसी भी आत्मा हो ब्राह्मणों का काम है उत्साह भरी कहानी सुनाना। उत्साह की बातें सुनाना। वह रोता हो, आप उन्हें उत्साह में नचा दो। जब कोई दिल में उत्साह होता है तो क्या होता है? पांव नाचने लगते हैं। जैसे यह फंक्शन करते हो ना। तो लास्ट में क्या करते हो? सब डांस करते हैं ना। यह तो पांव की डांस है। ब्राह्मण आत्मा सिवाए उत्साह दिलाने और उत्साह में रहने के बिना रह नहीं सकती। उत्साह मिटाने वाली बातें होती हैं और होंगी लेकिन बापदादा इस वर्ष में यही सब बच्चों से शुभ आश रखते हैं कि बीती सो बीती, आज तक जो भी कैसी भी आत्मायें सम्बन्ध-सम्पर्क में रही हैं, जैसी भी हैं, चाहे नेगेटिव भी हैं, सामना करने वाली भी हैं, ब्राह्मण जीवन को हिलाने वाली भी हैं लेकिन इस वर्ष में नेगेटिव और वेस्ट दृष्टिकोण समाप्त करो। स्नेह दो, शक्ति दो। अगर स्नेह नहीं दे सकते, शक्ति नहीं दे सकते तो देखते, सुनते, सम्पर्क में आते वेस्ट और नेगेटिव बातों को दिल में धारण करने में अवाइड करो। मन और बुद्धि में धारण नहीं हो, अवाइड करो। परिवर्तन करो। नेगेटिव को वा वेस्ट को परिवर्तन करके दिल में समाओ। ऐसे दोनों बातों को जो अवाइड करेगा उसको बापदादा द्वारा, ब्राह्मण परिवार द्वारा बहुत अच्छे ते अच्छा, बड़े ते बड़ा अवार्ड मिलेगा। और आत्माओं को तो अवार्ड देने वाली आत्मायें होती हैं। अवार्ड मिलता है ना? तो यह परमात्म अवार्ड है। अवाइड करो, अवार्ड लो। हिम्मत है? अच्छा।
पाण्डवों ने जिन्होंने फंक्शन मनाया, उन्हों में हिम्मत है? अवार्ड लेंगे? सभी ने हाथ उठाया, आज की डेट अन्डरलाइन करना। आज कौन सी डेट है? (14 दिसम्बर) तो हर मास की 14 तारीख अपने को चेक करना। अच्छा - सिल्वर जुबली वाले जो समझते हैं अवार्ड लेंगे, वह हाथ उठाओ। ऐसे देखा-देखी नहीं उठाओ। शर्म के कारण नहीं उठाओ। बापदादा चांस देते हैं, अगर कोई में हिम्मत नहीं है तो नहीं उठाओ, कोई हर्जा नहीं। बापदादा और सकाश देगा, ऐसी कोई बात नहीं है। ऐसे कोई हैं जो समझते हैं और थोड़ी हिम्मत चाहिए? कोई सिल्वर जुबली वाली टीचर्स ऐसी हैं? चलो यहाँ हाथ नहीं उठाओ, शर्म आता हो तो लिखकर देना। जब फंक्शन मनाओ तब देना, समझते हो हमको एक्स्ट्रा हिम्मत चाहिए, तो उसके लिए विशेष ट्युशन रखेंगे। जो पढ़ाई में कमजोर होता है तो क्या करते हैं? ट्युशन रखते हैं ना? अच्छा। मधुबन वाले हाथ उठाओ। खड़े हो जाओ। मधुबन वाले चांस अच्छा लेते हैं। अच्छा - मधुबन वाले अवार्ड लेंगे? सभी ने उठाया? ट्युशन नहीं चाहिए? बहादुर हैं। अच्छा - बापदादा हिसाब लेंगे। मुबारक हो मधुबन वालों को।
बाकी जो कोने-कोने से स्नेही, सहयोगी, सम्बन्ध में रहने वाले नये पुराने बच्चे आये हैं, उन्हों को विशेष बापदादा एक तो आने की मुबारक देते हैं, दूसरा मर्यादा में चलने की भी मुबारक देते हैं। कम से कम एक साल तो नये भी मर्यादापूर्वक चले हैं तब यहाँ पहुंचे हैं। कोई चतुर भी होंगे लेकिन मैजारिटी तो मर्यादा को पालन करने वाले हैं। तो प्रवृत्ति में रहते मर्यादा में चलने वाली, मर्यादा रखने वाली आत्माओं को मर्यादा की भी मुबारक है।
अच्छा - मातायें हिम्मत रखती हो कि हम माया को विदाई देंगे? अगर हाँ तो एक हाथ की ताली बजाओ। अच्छा - प्रवृत्ति वाले पाण्डव, हिम्मत है? अवार्ड लेना है? एक हाथ की ताली बजाओ। बापदादा को भी खुशी होती है, देखो बेहद का हाल, बेहद का नशा चढ़ाता है ना। आराम से बैठने की जगह तो है ना? अभी आपका उल्हना होगा कि दूर से देख नहीं सकते हैं। लेकिन अभी तो फिर भी आप बहुत आराम से बैठकर सुन तो सकते, टी.वी. में देख तो सकते। जब 9 लाख तैयार करेंगे तो क्या होगा? फिर बैठने की जगह मिलेगी? इसीलिए जो जितना पहले आया वह भाग्यवान है। तो जैसे अभी आप लोग अपने से पहले वालों का भाग्य गाते हो कि आप बहुत अच्छे हैं। ऐसे बापदादा कहते हैं कि अभी जो आप आये हो ना, उन्हों को भी पीछे वाले कहेंगे, आप बहुत भाग्यवान हैं। वृद्धि तो होनी है ना? नहीं तो राजधानी कैसे बनेगी?
तो यह वर्ष विदाई और बधाई का है और इस वर्ष में विशेष जो बच्चों ने संकल्प किया है, वह प्रैक्टिकल में करने वालों को बापदादा की एक्स्ट्रा मदद भी मिलेगी। सिर्फ दृढ़ रहना। बीच-बीच में ड्रामा पेपर लेगा लेकिन संकल्प में दृढ़ रहना, संकल्प रूपी पांव हिले नहीं, अचल रहे तो बापदादा द्वारा एक्स्ट्रा मदद की अनुभूति होगी। सिर्फ लेने की शक्ति चाहिए। एक बल, एक भरोसा.. कुछ भी हो जाए, बनना ही है। यह संकल्प रूपी पांव मजबूत रखना। तो बातें आयेंगी भी लेकिन ऐसे ही अनुभव करेंगे जैसे प्लेन में बादल नीचे रह जाते हैं और स्वयं बादलों के ऊपर रहते हैं। बादल एक मनोरंजन का दृश्य बन जाता है। ऐसे कितने भी काले बादलों जैसी बातें हों, जिसमें कुछ समस्या का हल या समाधान उस समय दिखाई न भी दे लेकिन यह दृढ़ निश्चय हो कि यह बादल आये हैं जाने के लिए। यह बादल बिखरने वाले ही हैं, रहने वाले नहीं हैं। ऐसे उड़ती कला की स्टेज पर स्थित हो जाओ तो कितने भी गहरे काले बादल बिखर जायेंगे और आप दृढ़ता के बल से सफल हुए ही पड़े हैं। घबराओ नहीं, यह कैसे होगा! अच्छा होगा, क्योंकि बापदादा जानते हैं जितना समय समीप आ रहा है उतना नई-नई बातें, संस्कार, हिसाब-किताब के काले बादल आयेंगे। यहाँ ही सब चुक्तू होना है। कई बच्चे कहते हैं कि दिन-प्रतिदिन और ही ऐसी बातें बढ़ती क्यों हैं? जिन बच्चों को धर्मराजपुरी में क्रास नहीं करना है, उन्हों के संगम के इस अन्तिम समय में स्वभाव-संस्कार के सब हिसाब-किताब यहाँ ही चुक्तू होने हैं। धर्मराजपुरी में नहीं जाना है। आपके सामने यमदूत नहीं आयेंगे। यह बातें ही यमदूत हैं, जो यहाँ ही खत्म होनी हैं इसीलिए बीमारी बाहर निकलकर खत्म होने की निशानी है। ऐसे नहीं सोचो कि यह तो दिखाई नहीं देता है कि समय समीप है और ही व्यर्थ संकल्प बढ़ रहे हैं! लेकिन यह चुक्तू होने के लिए बाहर निकल रहे हैं। उन्हों का काम है आना और आपका काम है उड़ती कला द्वारा, सकाश द्वारा परिवर्तन करना। घबराओ नहीं। कई बच्चों की विशेषता है कि बाहर से घबराना दिखाई नहीं देता है लेकिन अन्दर मन घबराता है। बाहर से कहेंगे नहीं-नहीं, कुछ नहीं। यह तो होता ही है लेकिन अन्दर उसका सेक होगा। तो बापदादा पहले से ही सुना देता है कि घबराने वाली बातें आयेंगी लेकिन आप घबराना नहीं। अपने शस्त्र छोड़ नहीं दो। जो घबराता है ना तो जो भी हाथ में चीज़ होती है वह गिर जाती है। तो जब यह मन में भी घबराते हैं ना तो शस्त्र व शक्तियां जो हैं वह गिर जाती हैं, मर्ज हो जाती हैं। इसीलिए घबराओ नहीं, पहले से ही पता है। त्रिकालदर्शी बनो, निर्भय बनो। ब्राह्मण आपस में सम्बन्ध में निर्भय नहीं बनना, माया से निर्भय बनो। सम्बन्ध में तो स्नेह और निर्माण। कोई कैसा भी हो आप दिल से स्नेह दो, शुभ भावना दो, रहम करो। निर्माण बन उसको आगे रख आगे बढ़ाओ। जिसको कहा जाता है कारण रूपी नेगेटिव को समाधान रूपी पॉजिटिव बनाओ। यह कारण, यह कारण, यह कारण... कारण वा समस्या को पॉजिटिव समाधान बनाओ।
बापदादा को एक बात पर कभी-कभी हंसी आती है। पता है कौन सी बात? जानते हो? एक तरफ तो चैलेन्ज करते हैं - बाबा हम प्रकृति जीत बनेंगे। प्रकृति को भी परिवर्तन करेंगे, यह कहते हो ना? प्रकृति को बदलेंगे ना? ऐसी चैलेन्ज करने वाले प्रकृति को परिवर्तन कर सकते हैं। लेकिन जब सम्बन्ध-सम्पर्क में कोई बातें होती हैं तो उसको समाधान नहीं कर सकते। परिवर्तन नहीं कर सकते। हंसी की बात है ना - प्रकृति जड़ है उसके लिए तो चैलेन्ज है लेकिन ब्राह्मण आत्माओं को परिवर्तन करना, वह नहीं होता है। और फिर क्या सोचते हैं? वह हो नहीं सकता, यह होना ही नहीं है। हो ही नहीं सकता, बदल ही नहीं सकता। तो प्रकृति को कैसे बदलेंगे? खुद बदलकर औरों को बदलो। चलो वह रांग है, 100 परसेन्ट रांग है। लेकिन आपका वायदा क्या है? बाप से क्या वायदा किया है? स्व परिवर्तन से विश्व का परिवर्तन करेंगे? यह वायदा है या भूल गये हैं? हाँ तो सब करते हो। कैसी भी बातें हों, बातों को बदलने के लिए मदद भले लो लेकिन यह बदलना ही मुश्किल है, यह सर्टिफिकेट नहीं दो। किसने आपको अथॉरिटी दी है सर्टिफिकेट देने की? तो यह सोचना कि यह तो होना ही नहीं है, यह तो ठीक होगा ही नहीं। किसने आपको जज बनाया? ऐसे ही जज की कुर्सी पर बैठ जाते हो? या तो वकील बनते, बहुत कायदे कानून बताते, बहस करते, ऐसा नहीं ऐसा। ऐसा नहीं ऐसा। न वकील बनो, न जज बनो। यह अथॉरिटी बापदादा ने दी नहीं है, जो निमित्त हैं उनका सहयोग लो। वह निमित्त आत्मायें भी बापदादा की राय से करती हैं। अपनी मनमत नहीं चलाती हैं।
तो इस वर्ष में यह सब बातें समाप्त करो अर्थात् मन से परिवर्तन करो, अवाइड करो, ऊपर पहुंचाया, जिम्मेवारी खत्म। आपसे परिवर्तन नहीं होता तो निमित्त आत्माओं तक पहुंचाना यह आपका फर्ज है। फिर खुद लॉ हाथ में नहीं उठाओ, तभी अवार्ड के पात्र बनेंगे। तो सदा उत्साह में रहो और उत्साह बढ़ाओ, यही स्मृति में बापदादा इमर्ज कर रहे हैं। जब स्वयं उत्साह में रहेंगे तो सभी को हाथ में हाथ अर्थात् मन के स्नेह का हाथ में हाथ ले नाचेंगे, खुश रहेंगे। स्थूल हाथ नहीं, मन से स्नेह के सहयोग का हाथ। इसको ही हाथ में हाथ मिलाना कहा जाता है। स्नेह क्या नहीं कर सकता और यह परमात्म स्नेह है, परमात्म प्यार है। वह क्या नहीं कर सकता! असम्भव ब्राह्मण डिक्शनरी में है ही नहीं। उत्साह वाला कभी भी किसी भी बात में निराश, दिलशिकस्त नहीं होता।
तो यह पाण्डव जो विशेष उत्सव मना रहे हैं, वह क्या करेंगे? हर एक पाण्डव यह दृढ़ संकल्प करो कि मुझे परिवर्तन करने की जिम्मेवारी है क्योंकि आदि पालना वाले हो ना? तो ब्रह्मा बाप ने क्या किया? जिम्मेवारी उठाई ना? या कहा यह तो बदलना ही नहीं है? यह तो होना ही नहीं है? नहीं। इतनी आत्माओं का परिवर्तन करके दिखाया ना? चलो दूसरों को नहीं देखो, अपने को तो देख सकते हो, आपका परिवर्तन तो किया? या आपकी कमजोरियां देखी? नहीं देखी। तो ब्रह्मा बाप की पालना लेने वाले निमित्त हो, फॉलो ब्रह्मा को करने के लिए। इसमें ऐसे नहीं समझो - यह तो बड़ों की जिम्मेवारी है, हम तो डायरेक्शन पर चलने वाले हैं। नहीं। स्व-परिवर्तन से सर्व के सम्बन्ध-सम्पर्क में परिवर्तन लाने की जिम्मेवारी हर छोटे बड़े की है। जब बापदादा पूछते हैं क्या बनेंगे? तो सभी क्या कहते हैं? विश्व राजन बनेंगे। छोटा-मोटा भी नहीं, विश्व महाराजा बनेंगे। तो जब विश्व महाराजा बनने की जिम्मेवारी है तो सम्बन्ध-सम्पर्क में परिवर्तन करने की जिम्मेवारी नहीं है? हर एक आत्मा बाप की पालना का रिटर्न - परिवर्तन करने में जिम्मेवार है, सहयोगी है। ऐसे है? यह ग्रुप तो पालना लेने वाला है। तो पालना लेना उसका रिटर्न है - बाप समान पालना देना, इसमें छोटे नहीं बनो। इसमें हर एक बड़ा है। चाहे एक साल वाला भी है तो भी जिम्मेवार है। तो आप तो 30 साल से पुराने हो। तो बापदादा इस ग्रुप को परिवर्तक ग्रुप कहते हैं। चलो कहाँ झुकना भी पड़े, क्या ब्रह्मा बाप को झुकना नहीं पड़ा? विरोध नहीं देखा? सबसे ज्यादा गाली तो ब्रह्मा बाप ने खाई। आपोजीशन सबसे बड़ा ब्रह्मा बाप ने देखा। अगर दो चार भी आपोजीशन में हैं तो क्या बड़ी बात है? तो समझा यह ग्रुप कौन सा है? परिवर्तक ग्रुप। ठीक है ना? नाम पसन्द है? काम पसन्द है? सिर्फ नाम नहीं, काम भी। अच्छा –
सिल्वर जुबली वाला ग्रुप क्या करेगा? यह तो हैं ही निमित्त टीचर्स। तो यह सिल्वर जुबली मनाने वाला ग्रुप सदा अपने उत्साह के फीचर्स, हर्षित, खुश रहने के फीचर्स द्वारा अनेक आत्माओं को हर्षायेंगे। टीचर्स का काम ही है, रोता कोई आवे और नाचता जावे। परेशान कोई आवे और अपनी शान में स्थिति हो जाए। परेशान का अर्थ ही है, शान से परे हो जाता है। तो टीचर्स का काम है परेशान को शान में स्थित करना। यह है सिल्वर जुबली मनाने वालों की सेवा। ऐसे नहीं खुद ही परेशान हो। कई ऐसे जिज्ञासु कहते भी हैं कि बाहर से परेशान होकर आते हैं और कभी-कभी कोई-कोई सब नहीं हैं, कोई-कोई टीचर ही परेशान होती हैं, तो हमको क्या शान में स्थित करेंगी। लेकिन नहीं, टीचर्स अर्थात् सदा अपने फीचर्स द्वारा हर आत्मा की सेवा करे। बोलने का टाइम नहीं हो, कोई हर्जा नहीं। एक सेकण्ड में अपने हर्षित दिल से, हर्षित मन से परमात्म स्नेह से (आत्मा का स्नेह नहीं) परमात्म स्नेह द्वारा, दृष्टि द्वारा उसको भी हर्षित बना दे। टीचर्स अगर कभी परेशान होते भी हो गलती से, होना नहीं चाहिए लेकिन गलती से हो भी जाते हो तो फौरन बापदादा से कनेक्शन जोड़कर, रूहरिहान करके उसी समय अपने को ठीक करो। यहाँ बापदादा से कनेक्शन करने का ड्रामा दिखाया ना? (कल बम्बई के छोटे बच्चों ने बापदादा से रूहरिहान का एक ड्रामा किया था) तो आप बापदादा से कनेक्शन नहीं कर सकते हो क्या? आपके पास वायरलेस सेट नहीं है क्या? आजकल तो सेटेलाइट है ना, वह तो फौरन हो जाता है। तो टीचर्स के पास है? सबके पास है सिर्फ समय पर यूज़ करो। समय पर सिर्फ स्मृति का स्विच आन करो बस। फिर देखो सेकण्ड में परिवर्तन होता है या नहीं। जिस समय कोई ऐसी बात हो तो यह ड्रामा याद करना। लगाना कनेक्शन। तो समझा सिल्वर जुबली वालों को क्या करना है? बापदादा को तो टीचर्स सबसे ज्यादा याद रहती हैं। क्यों? जो भी सेवा के निमित्त हैं तो ब्रह्मा बाप की भुजाएं बनकर निमित्त हैं। तो बाप समान सेवा में हैं ना। इसलिए ऐसे निमित्त सेवाधारी बापदादा को सदा याद हैं। ऐसे नहीं समझना कि जिन्हों की गोल्डन जुबली हुई वह याद हैं, आप नहीं। पहले आप। छोटों के ऊपर और ही ज्यादा स्नेह होता है। इसलिए अभी मुझे बदलना है, मुझे बिगड़ी को बनाना है, दूसरा बिगाड़े, मेरा काम है बनाना। यह शिकायत नहीं, यह बिगाड़ते हैं ना, यह करते हैं ना। नहीं। वह बिगाड़ने में होशियार हैं, आप अपने काम में होशियार हो। बिगाड़ने वाला होशियार, बनाने वाला कम क्यों? आप होशियार हो जाओ, बिगाड़ने वाला क्या भी करे। तो बिगड़ी को बनाने वाले बाप समान आप आत्मायें हो। यह काम करेंगे तो हाथ हिलाओ। करेंगे, पक्का? या वहाँ जाकर कहेंगे दादी क्या करें? शिकायत तो नहीं करेंगे? आज सब शिकायत का फाइल यहाँ शान्तिवन के डायमण्ड हाल में खत्म करके जाओ। हर्षित रहना है और हर्षित बनाना है। ठीक है ना? सिल्वर जुबली वालों से मिले ना? अब शिकायत तो नहीं होगी ना, हमसे तो मिले नहीं? आज दो ग्रुप हैं। लेकिन बाप को पाण्डव भी प्यारे हैं तो टीचर्स भी प्यारी हैं। तो क्या समझती हो? हो सकता है? कांध हिलाओ। पाण्डव हो सकता है कि होना ही है? क्या कहेंगे, हुआ ही पड़ा है? एक एक कांध हिलाओ। यही कहो हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा। बापदादा की आशाओं के सितारे आप बच्चे हो। तो आप नहीं करेंगे तो कौन करेगा? अच्छा।
मातायें सब खुश हो? कोई तकलीफ तो नहीं हुई? (सभी ने तालियां बजाई) इन्हों को यह दो हाथ की ताली बजाना अच्छा लगता है। अच्छा पाण्डव सब ठीक हैं? कोई तकलीफ नहीं? शान्तिवन अच्छा बना है, पसन्द है? बापदादा तो खुश होते हैं कि सभी बच्चों के सहयोग से यह शान्तिवन बना है। आप सबके सहयोग से यह स्थान बना है। इसलिए शान्तिवन के सर्व सहयोगी आत्माओं को बापदादा पदमगुणा मुबारक देते हैं।
डबल फॉरेनर्स हाथ उठाओ, देखो डबल फॉरेनर्स से हर सीजन बहुत अच्छी सज जाती है। डबल फॉरेनर्स मधुबन के श्रृंगार हो। आपको देख करके सभी को बहुत खुशी होती है। क्यों खुशी होती है, जानते हो? क्योंकि आप फॉरेनर्स बहुत फॉरेन क्लचर की दीवारें तोड़कर आये हो, यह जो गीत बजता है ना - वह आप डबल फॉरेनर्स के लिए बहुत अच्छा है। भारत वालों ने दीवारें तोड़कर आने की हिम्मत रखी लेकिन डबल फॉरेनर्स ने डबल दीवारें तय करके अपना विशेष पार्ट नूंध लिया। तो जहाँ भी डबल फॉरेनर्स हैं, सुन रहे हैं, उन सबको भी बापदादा पदमगुणा मुबारक देते हैं। डबल फॉरेनर्स इस ब्राह्मण परिवार के विशेष डायमण्ड हो। तो डायमण्ड चमकता है, कितना प्यारा लगता है। ऐसे डबल फॉरेनर्स इस ब्राह्मण परिवार में ब्राह्मण युग में बहुत-बहुत चमकते हुए विशेष आत्मायें हैं। फॉरेन के पत्र भी आये हैं, तो जिन्होंने भी पत्र भेजे हैं, बापदादा के पास तो सबके दिल की बातें पहुंच ही जाती हैं। उमंग-उत्साह और तीव्र पुरूषार्थ की खुशबू अच्छी आ रही है। अभी समय जैसे जैसे बीतता जाता है, तो बापदादा देख रहे हैं कि डबल फॉरेनर्स मैजारिटी अभी नॉलेजफुल अच्छे बन गये हैं। माया को परखने की नज़र अब अच्छी तेज हो रही है। इसलिए बापदादा पत्रों से खुशबू लेते हैं और सच्ची दिल वाले हैं। गिरने की भी सच्चाई लिखते हैं तो उड़ने की भी सच्चाई लिखते हैं। साफ दिल हैं। तो जहाँ साफ दिल है, तो बापदादा सदा कहते हैं साफ दिल मुराद हांसिल। जो उमंगें, आशायें रखते हैं वह प्राप्त हो जाती हैं अर्थात् मुराद हांसिल हो जाती है। बापदादा की मदद को कैच करने में अच्छे हैं इसलिए पत्र भेजने वाले वा अपने अपने स्थान पर सुनने वाले वा चारों ओर के डबल फॉरेनर्स को बापदादा दिल से पदमगुणा यादप्यार, मुबारक दे रहे हैं। अच्छा।
बाम्बे के सेवाधारी ग्रुप हाथ उठाओ। अच्छा किया है। बाम्बे को तो बापदादा नर-देसावर कहते हैं। कमाने वाला बच्चा। बापदादा बाम्बे को सदा याद करता है। अच्छी हिम्मत से कर रहे हो, सब सन्तुष्ट हैं इसकी मुबारक। बाम्बे में अच्छे- अच्छे महारथी हैं, एक दो से आगे हैं। कोई किसी से कम नहीं है। बापदादा विशेषता के आधार से कहते हैं। अच्छी हिम्मत की। बापदादा को खुशी है कि बाम्बे सेवा की स्टेज पर आया। अच्छा लग रहा है ना? सेवा की स्टेज अच्छी है ना? अच्छा। हर एक अपने नाम से समझे कि मेरे को मुबारक और याद-प्यार स्पेशल है। सिर्फ नाम नहीं ले रहे हैं। अगर नाम लेंगे तो माला बन जायेगी। अच्छा।
चारों ओर के परमात्म प्यार के सुखमय, आनंदमय झूले में झूलने वाली लकी और लवली आत्माओं को, सदा दृढ़ संकल्प द्वारा समाधान स्वरूप श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा परमात्म अवार्ड लेने के पात्र हीरो पार्टधारी आत्माओं को, सदा बापदादा की पालना का रिटर्न देने वाले बाप के दिलतख्त नशीन आत्माओं को बापदादा का पदमगुणा, अरब-खरब से भी ज्यादा यादप्यार और नमस्ते।
दादी जानकी तथा सर्व दादियों को दृष्टि देते हुए:-
अच्छी ड्युटी ली है? सभी को खुशी में नचाने की ड्युटी अच्छी है। अभी यही चाहिए। शिक्षा सुनने कोई नहीं चाहता। तो सभी आदि रत्न यह ड्युटी विशेष बजाओ। कोई कैसा भी हो लेकिन आपके सामने आने से खुशी में नाचना शुरू कर दे। डायरेक्ट दाता के बच्चे हो ना और पहली रचना हो। तो आदि रचना का प्रभाव तो है ना। तो बापदादा भी आदि रत्नों को विशेष स्नेह देता है स्पेशल। अभी ऐसे साथियों को तैयार करो जो वायुमण्डल फैलायें।
अच्छा। ओम् शान्ति।
31-12-97 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
इस नये वर्ष को मुक्ति वर्ष मनाओ, सफल करो – सफलता लो
आज बापदादा अपने नव जीवन की श्रेष्ठ आत्माओं को, नव युग रचता आत्माओं को नये वर्ष की मुबारक दे रहे हैं। दुनिया के लिए नया वर्ष आरम्भ हो रहा है, आप बच्चों के मन में नव युग याद आ रहा है। जैसे नया वर्ष कल आने वाला है, ऐसे नव युग भी कल आने वाला है। ऐसे स्मृति आती है कि हमारा नया युग आया कि आया? जैसे आज नये वर्ष के लिए मनुष्य आत्माओं के दिल में खुशी है, अल्पकाल का उत्साह है, ऐसे आप आत्माओं को नव युग आने की सदाकाल की खुशी है। ऐसे लगता है कि बस आज और कल की बात है। आज पुराना युग है, कल नया युग सामने खड़ा है। ड्रामानुसार आज और कल की बात है, ऐसे स्पष्ट स्मृति अनुभव होती है? या सिर्फ नया वर्ष मनाने आये हो? नया वर्ष नव युग की याद दिलाता है। यह उमंग-उत्साह दिल में रहता है कि कल हम क्या होंगे? अपनी नई शरीर रूपी ड्रेस सामने आती है? याद है आपका नया शरीर नये युग में कैसा सुन्दर था? कैसा युग था, कैसे राज्य था, कैसे प्रकृति दासी थी, सतोप्रधान थी! उस राज्य अधिकारी स्थिति की स्मृति स्पष्ट है? दिखाई दे रही है, वह नई दुनिया कितनी सुन्दर है? एक सेकण्ड में अपने राज्य अधिकार का अनुभव कर सकते हो या कर रहे हो? बस एक सेकण्ड में नव युग में चले जाओ। जाना आता है? कितने वार यह राज्य अधिकार प्राप्त किया है, याद है? अनुभव करो अपना राज्य कितना प्यारा है! न्यारा भी है तो प्यारा भी है। तो सेकण्ड में बस हमारा राज्य और हमारा विश्व राज्य अधिकारी स्वरूप स्मृति में आ जाए। वे लोग नये वर्ष में एक दो को अल्पकाल की गिफ्ट देते हैं और बाप गिफ्ट देते हैं नव युग के, विश्व राज्य के अधिकार की। यह अविनाशी गिफ्ट इस समय बाप द्वारा आप सबके लिए अटल भावी बन जाती है। जिस भावी को कोई टाल नहीं सकता। अचल है, अखण्ड है। तो ऐसी गिफ्ट मिल गई है ना? तो यह गिफ्ट सम्भाल कर रखना, कोई डाकू यह गिफ्ट ले नहीं जाये। सबके पास डबल लॉक है ना? आजकल सिंगल लॉक नहीं चलता, डबल लॉक चाहिए। गाडरेज का लॉक नहीं, गॉड का लॉक चाहिए। तो गॉड ने ऐसा लॉक दिया है जो कोई भी तोड़ नहीं सकता। अगर अलबेले हो जायेंगे तो डाकू आयेगा। डाकू भी होशियार होते हैं, उन्हों को पता पड़ जाता है कि इनका लॉक आज ढीला है, इसलिए अलबेले नहीं होना।
तो इस नये वर्ष में स्व के प्रति और सेवा के प्रति कोई नया प्लैन बनाया है? कांफ्रेंस करनी है, डायलॉग करना है, वह तो है ही। नया प्लैन क्या बनाया है? बापदादा इस नये वर्ष में, देश वा विदेश में वैरायटी वर्ग की विशेष आत्माओं का एक गुलदस्ता देखने चाहते हैं। वर्गों की सेवा तो बहुत की है ना, अभी हर वर्ग का ऐसा एक-एक रत्न तैयार करो, एक भी वर्ग मिस नहीं हो, क्यों? अभी जब समय समीप आ रहा है तो कोई भी वर्ग वाले उल्हना नहीं दें कि हमारा वर्ग रह गया। एक-एक वर्ग में विशेष एक-एक क्वालिटी का हो जो माइक का काम कर सके, क्योंकि जैसे समय समीप आ रहा है तो सर्व वर्ग वाले, सर्व धर्म वाले सबके मुख से एक आवाज़ निकले कि बाप आ गया, क्योंकि इस संगमयुग में ही सभी धर्म स्थापक आत्माओं वा सर्व वर्ग की आत्माओं में बीज पड़ना है। वह इतनी पावर अपने में ले जायेंगे जो फिर अपने- अपने समय पर वर्ग वा धर्म के इन्वेन्टर बनेंगे। तो सब बीज आपको तैयार करने हैं, जो समय पर अपने-अपने डिपार्टमेंट के निमित्त बनेंगे क्योंकि बीज बाप है और आप ब्राह्मण आत्मायें तना हो, सर्व आत्मायें बीज और तना द्वारा ही निकलते हैं। तो ऐसा गुलदस्ता बाप के सामने लाओ, विदेश वाले भी और देश वाले भी। एक-एक सैम्पुल लाओ, सैम्पुल से अन्य अनेकों स्वत: ही बनते हैं। लेकिन एक-एक पावरफुल माइक बनें, ऐसे बीज कहो, धर्म या वर्ग कहो वा वैरायटी फूलों का गुलदस्ता कहो तैयार होना चाहिए। एक भी मिस नहीं हो तब कहा जायेगा विश्व कल्याणकारी वा सर्व आत्माओं के निमित्त उद्धार करने वाली आत्मायें। एक शाखा भी कम नहीं, सर्व शाखायें चाहिए। चाहे आपके नव युग में कई वर्ग नहीं होंगे लेकिन उन आत्माओं में भी द्वापर में या कलियुग में जो इन्वेन्टर निमित्त हैं, उन्हों को शक्ति आप द्वारा ही मिलनी है। जैसे सभी धर्म पितायें आपके आगे बाप का झण्डा, प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने में सहयोगी बनेंगे, वैसे ही सर्व वर्ग वाले भी प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने में सहयोगी बनेंगे, तब कहेंगे सर्व के सहयोग से सुखमय दुनिया की स्थापना। सहयोगी बन रहे हैं लेकिन उनमें से अब विशेष आत्मा को सहयोग में आगे बढ़ाओ, निमित्त बनाओ। निमित्त बनाने का बीज डालो। समझा क्या करना है? विदेश में भी अभी आई.पी. या वी.आई.पी. के कनेक्शन तो सहज हो गये हैं ना। मुश्किल नहीं है ना? मुश्किल है या सहज है? तो आप सभी जब दूसरे न्यु ईयर में फिर आयेंगे तो अगले न्यु ईयर की सौगात बापदादा ऐसा गुलदस्ता देखने चाहते हैं। एक साल है, कम नहीं है। देश वाले भी करेंगे, विदेश वाले भी करेंगे ? (हाँ जी) अवश्य करेंगे। कहो हुआ ही पड़ा है। सिर्फ निमित्त बनना है। डबल विदेशी बोलो? सब विदेशी ताली बजाओ। अच्छा-देखेंगे पहले कौन तैयार करता है - देश या विदेश? और कितना बड़ा गुलदस्ता तैयार करते हैं? ठीक है ना? चारों ओर सुन रहे हैं। देश वाले भी सुन रहे हैं, विदेश वाले भी सुन रहे हैं। अभी उमंग आ रहा है, उन्हों के मन में प्लैन बन रहा है - यह करेंगे, यह करेंगे। अच्छा – यह तो हुआ विश्व सेवा।
स्व के लिए क्या करेंगे? वह भी तो प्लैन बनेंगा ना? क्योंकि अगर स्व कल्याण का श्रेष्ठ प्लैन नहीं बनायेंगे तो विश्व सेवा में सकाश नहीं मिल सकेगी। इसलिए बापदादा सबके दिलों के उमंग-उत्साह को जानते हुए यही कहेंगे कि हर एक उत्सव में बच्चों ने चाहे गोल्डन जुबली वाले, चाहे डायमण्ड जुबली वाले, चाहे सिल्वर जुबली वाले, चाहे और भी जो जुबलियां होनी हैं, सभी ने दिल से, उमंग-उत्साह से अपने मन में यह बाप से वायदा किया है कि हम बाप समान बनकर ही दिखायेंगे। सभी ने यह वायदा किया है ना? डबल फॉरेनर्स ने वायदा किया है? (सभी ने हाथ हिलाया) अच्छा, मुबारक हो। वायदा तो बहुत मीठा, बहुत अच्छा, बहुत प्यारा, बहुत शक्तिशाली किया है। अभी सिर्फ निभाते रहना। वायदा करने वाले उस समय बहुत उमंग-उत्साह से करते हैं, हिम्मत भी बहुत अच्छी रखते हैं फिर क्या होता? कभी माया चूहे के रूप में आ जाती, कभी बिल्ली के रूप में आ जाती, बिल्ली क्या करती है? म्याऊं-म्याऊं करती है ना। तो बच्चे क्या करते हैं? मैं मैं मैं, तो यह बिल्ली की म्याऊं-म्याऊं नहीं करना। चूहा क्या करता है? चूहा बेसमझ होकर जो आता है वह खा लेता है, काट लेता है। तो माया भी बच्चों के खज़ानों को काटकर खा लेती है। कभी शेर आ जाता है, शेर क्या करता है? निर्भय वालों को भय पैदा कर देता है। सर्वशक्तिवान बच्चों को दिलशिकस्त बना देता है। ऐसे नहीं करना, आने नहीं देना, डबल लॉक लगाकर ही रखना। इस वर्ष किसी को भी आने नहीं देना।
यह वर्ष सर्व बातों से मुक्त वर्ष मनाओ। मुक्ति वर्ष। जब यह मुक्ति वर्ष मनायेंगे तब मुक्तिधाम में जायेंगे। इसके लिए क्या करेंगे? बहुत छोटी सी बात है, बड़ी बात नहीं है। बापदादा सिर्फ छोटा सा स्लोगन दे रहे हैं ''सफल करो सफलता लो ''। समझा! सफल करो, सफलता लो। क्या सफल करना है? जो भी आपके पास है, अपनी जो प्रॉपर्टी है ना - समय, संकल्प, श्वांस वा तन-मन- धन सफल करो, व्यर्थ न गंवाओ, न आइवेल के लिए सम्भाल कर रखो। संकल्प को भी सफल करो। एक-एक संकल्प - यह आपकी प्रॉपर्टी है। जैसे धन स्थूल प्रॉपर्टी है, वैसे सूक्ष्म प्रॉपर्टी है समय, श्वांस, संकल्प। एक संकल्प भी व्यर्थ नहीं जाये, सफल हो। चाहे मन्सा सेवा द्वारा, चाहे वाचा द्वारा, चाहे कर्म द्वारा - चेक करो, सफल कितना किया? जमा कितना किया? और बापदादा इस वर्ष यह विशेष वरदान दे रहे हैं - सफल करो और पदमगुणा सफलता का अनुभव करो। यह प्रत्यक्ष फल सहज प्राप्त कर सकते हो, सिर्फ सच्ची दिल से। सच्ची दिल पर भोलानाथ बाप बहुत सहज राज़ी हो जाता है, इसलिए सफल करो। ज्ञान धन, शक्तियों का धन, गुणों का धन हर समय सफल करो। सफल करना आता है वा किनारे करना वा सम्भालने बहुत आता है? किनारे नहीं करो, लगाओ। जब कहते हो कि अचानक सब होना है, एवररेडी बनना है। तो जो भी है उसको सफल करो। बापदादा को नहीं चाहिए, अपने लिए जमा करो। बापदादा तो दाता है लेकिन सफल करना अर्थात् जमा करना क्योंकि बापदादा ने समय प्रमाण जमा का खाता देखा, हर एक बच्चे के जमा का खाता बापदादा के पास है। तो जमा के खाते में क्या देखा? कई बच्चे समझते वा कहते बहुत हैं कि हमारा यह भी जमा है, यह भी जमा है, बाहर से जमा का खाता बहुत वर्णन करते हैं लेकिन बाप के जमा के खाते में जो जितना कहते हैं, समझते हैं उससे बहुत कम जमा है। क्यों? वही पहला पाठ ''मैं और मेरा-पन’’। मैंने किया, मेरी यह सेवा है, मेरा यह कार्य है। तो जमा करते समय, वह समझते हैं कि जमा कर रहे हैं लेकिन वह ऑटोमेटिक जमा के खाते से निकल, व्यर्थ के खाते में जमा हो जाता है। यह ऑटोमेटिक सूक्ष्म मशीनरी है। बाबा ने कराया, बाबा की सेवा है, मेरी सेवा नहीं है। मैंने किया, नहीं। वर्णन नहीं करो, मैंने यह किया, मैं यह करती हूँ, मैं यह करता हूँ...यह मैं-मैं नहीं। बाबा, बाबा बोलो तो पदमगुणा जमा होगा। और मैं मेरा बोलेंगे तो ट्रांसफर होकर व्यर्थ के खाते में जमा हो जायेगा। यह ऑटोमेटिक मशीनरी बहुत फास्ट है, आप लोगों को पता भी नहीं पड़ता है। इसकी चेकिंग भी बहुत सच्चे दिल से, मैं-पन से न्यारे होकर करने वाले कर सकते हैं। जब आप आदि रत्न आदि में स्थापना में निकले, सेवा में निकले तो क्या भाव रहता था? क्या बोल निकलता था? मैं-पन था? बाबा-बाबा कहा तभी वारिस बाबा के बने, जो आज सेवा के आदि बनें, यह बाबा-बाबा कहने का सबूत है।
अभी बापदादा के पास वारिस क्वालिटी बहुत कम आती हैं, क्यों? बाबा और मैं-पन मिक्स है। इसलिए इस वर्ष में बापदादा खुली दिल से वरदान दे रहे हैं - जितना जमा करने चाहो उतना कर लो, कर लो, कर लो। सफल करो सफलता मूर्त बनो। अच्छा।
अभी कौन सा उत्सव मनाया? सिल्वर जुबली। सिल्वर जुबली वाले हाथ उठाओ। जिन्हों की सेरीमनी मनाई वह हाथ उठाओ। डबल सेरीमनी मनाई है। भारत की भी तो विदेश की भी। अच्छा है यह सेरीमनी मनाना अर्थात् अपने आपको पक्की प्रतिज्ञा की स्टैम्प लगाना। सेरीमनी मनाई, बापदादा को भी दृश्य अच्छा लगता है। साथ-साथ जो संकल्प करते हो, उसको ऐसी आलमाइटी गवर्मेन्ट की स्टैम्प लगाओ जो सदा अविनाशी, अटल रहे। मनाना अर्थात् वायदा निभाना। तो ऐसी पक्की स्टैम्प लगाई? या कच्ची स्टैम्प लगाई है? पक्की लगाई? यह सिल्वर जुबली वाले कुमार, हाथ तो अच्छा हिला रहे हैं, पक्की मनाई है? अच्छा है। यह दृश्य भूल नहीं जाना। कभी भी कुछ भी कमजोरी आये तो अपने उत्सव का फोटो सामने लाना। हर एक का फोटो निकालते हैं ना। सबको मिलता है? तो ऐसे फोटो नहीं निकलता है, मतलब से निकलता है। फोटो इसीलिए निकलता है कि जब ऐसा कोई समय आवे तो फोटो सामने रखना, ऐसे नहीं अलमारी में बन्द रख दो जो समय पर भी याद नहीं आवे। यह सबसे बड़ी सौगात है, यह स्मृति दिलाने की निशानी है।
तो यह जो सिन्धी ग्रुप आया है वह हाथ उठाओ। अच्छा - आपने उत्सव मनाया? फोटो निकला? अभी क्या करेंगे? सम्भालकर रखेंगे ना? इस ग्रुप का हेड कौन है? (नारी भाई और गोविन्द भाई) हेड तो पावरफुल है। अभी इस ग्रुप को बहुत-बहुत-बहुत पक्का रखना, सम्भालना। उत्सव मनाया है सदा उत्साह में रहने के लिए। यह ज्ञान, योग का उत्साह कम नहीं हो। सदा बढ़ता रहे। शक्तियों में जिम्मेवार कौन है? (त्रिमूर्ति है) सभी की युनिटी बहुत है। अमर रहना। अमर भव। अच्छे हैं। देखो, बापदादा सिन्धी ग्रुप को क्यों आगे रखता? वैसे तो सभी हैं ना? सभी एक दो से आगे और प्यारे हैं लेकिन खास सिन्धी ग्रुप को आगे क्यों रखता? इस सिन्धी ग्रुप को चैरिटी बिगन्स एट होम...., जहाँ से स्थापना हुई, उस कुल को जगाना है। इसलिए बापदादा आप सभी को विशेष याद भी करता, निमित्त भी बनाया है तो निमित्त बन अपने लौकिक कुल सिन्धियों को जगाओ, रह नहीं जावें। फिर भी ब्रह्मा बाप का स्थापना का कार्य सिन्ध में हुआ है। तो जहाँ स्थापना हुई वह आत्मायें वंचित नहीं रह जायें। बापदादा को भी उन आत्माओं पर तरस पड़ता है। ब्रह्मा का तो चैरिटी बिगन्स एट होम है ना। इसलिए ब्रह्मा बाप ने आप बच्चों को निमित्त बनाया है। समझा जिम्मेवारी, है या नहीं? यह होशियार है।
देखो जब स्थापना हुई तो पहला परिवार ब्रह्मा बाप का और साथ में आपका (नारी भाई का) परिवार निमित्त बना। पता है ना? तो अभी आप क्या करेंगे? (उत्तर बहुत अच्छा देता है) बापदादा कहते हैं आपके मुख में गुलाबजामुन। गुलाब नहीं। सिर्फ गुलाब क्या करेंगे, गुलाबजामुन खायेंगे ना। ऐसे नहीं एक को कह रहे हैं, सभी को निमित्त बनना है और दूसरा है सावित्री का परिवार। आप लोगों को पता है, आपका परिवार सेवा में पहले निमित्त बना है। विशेष सेवा को आगे बढ़ाया है तो अभी क्या करना है? फॉलो लौकिक माँ बाप। तो फॉलो करना है? अभी बापदादा देखेंगे दोनों परिवार क्या कमाल करके दिखाते हैं। अच्छा है, निमित्त बने हो, जैसे माँ बाप निमित्त बनें, बड़े निमित्त बनें, ऐसे फॉलो करो। ठीक है ना। देखो स्पेशल बापदादा आपसे मिल रहा है। तो लक है ना। अच्छा।
अभी कुमार क्या करेंगे? (कुमार 5 हजार आये हैं) बहुत अच्छा। कुमार कोई नई कमाल करके दिखाओ, ऐसी कमाल दिखाओ जो असम्भव को सम्भव करके दिखाओ। कुमारों को बापदादा विश्व की स्टेज पर एक्जैम्पुल बनाकर खड़ा करने चाहते हैं। ऐसे कुमार हीरो पार्ट बजायेंगे? पक्का या हाथ उठाने तक? देखो हीरो पार्ट बजाने वाले बेदाग हीरा होना चाहिए। डबल हीरो। बेदाग हीरा भी और हीरो पार्टधारी भी। ऐसे हैं?
डबल फॉरेनर्स क्या कमाल करेंगे? डबल फॉरेनर्स ऐसी कमाल करके दिखाओ जो ऐसी आत्माओं को सन्देश दो जो भारत के लिए माइक बनें, क्योंकि भारत के माइक का भी प्रभाव है लेकिन फॉरेन के माइक का प्रभाव डबल पड़ेगा। तो डबल फॉरेनर्स को ऐसे माइक तैयार करने हैं। करेंगे? अगले वर्ष माइक आना चाहिए। ऐसे नहीं सिर्फ भाषण करके चले जायें, नहीं। सम्बन्ध में समीप हों। भले ज्ञान, योग में नियमित नहीं बनें लेकिन मानें कि सचमुच यह ईश्वरीय कार्य है और जीवन बनानी ऐसी चाहिए लेकिन मेरे में हिम्मत कम है। उसमें भी कोई हर्जा नहीं, औरों के निमित्त माइक बनते-बनते स्वयं बन ही जायेगा। वैसे सीधा स्टूडेन्ट नहीं बनेंगे लेकिन सेवा के बल से दूसरों के निमित्त बनते, उसके प्रभाव से बन जायेंगे। तो सुना डबल फॉरेनर्स ने? अभी देखेंगे कौन सा देश निमित्त बनता है। जो भी देश निमित्त बने, फिर उसको अवार्ड देंगे।
डबल विदेशी वहाँ भी सुन रहे हैं, उन्हों की भी दिल में आ रहा है, ढूंढ रहे हैं किसको निमित्त बनायें। अच्छा। फॉरेन के यूथ ग्रुप हाथ उठाओ। (20 देशों से 170 यूथ ने रिट्रीट में भाग लिया है) अच्छा किया। अभी विदेश के यूथ ऐसी सेवा करके अपना ग्रुप तैयार करो, तो फिर जब महात्माओं का सम्मेलन होगा ना, उसमें आप सभी यूथ ग्रुप को निमन्त्रण देंगे। तो आप यूथ के आगे यह महात्मायें जो हैं वह सिर झुकावें, समझा। तो ऐसा ग्रुप तैयार करो।
(यूथ ग्रुप के मास्टर, जापान के ली भाई से) अच्छा ग्रुप तैयार किया है। अभी ऐसा तैयार करो जो भारत के महात्मायें ब्रह्मचर्य में रहना असम्भव वा मुश्किल समझते हैं, उन्हों को यह यूथ अपने अनुभव से सुनावें कि मुश्किल नहीं है, सहज है और हम सहज योगी, सहज ब्रह्मचारी बने हैं। तो ऐसे पक्के ब्रह्मचारी योगी आत्मायें इन्हों का प्रभाव, उन्हों पर भी पड़ेगा। यह भी प्रत्यक्षता का एक निमित्त दृश्य बनेगा। गवर्मेन्ट को भी दिखायेंगे कि यह यूथ देखो, अपनी मन्सा द्वारा भी विश्व कल्याण के निमित्त हैं। ठीक है ना? अभी पक्का ग्रुप चाहिए। ऐसे नहीं गवर्मेन्ट और सन्यासियों के आगे रखें और कुछ समय के बाद फिर फेल हो जायें। नहीं। पक्के हों। ऐसा पक्का ग्रुप बापदादा को बताना जो गैरन्टी करे कि हम अचल, अडोल, अविनाशी ब्राह्मण आत्मायें हैं। कुछ भी हो जाए हिले नहीं। तो ऐसा ग्रुप बापदादा के सामने लाना। ठीक है ना? अच्छी हिम्मत वाले हैं। जहाँ हिम्मत है वहाँ बाप की मदद है ही है। अच्छा। मुबारक हो।
भारत के यूथ भी ऐसे तैयार हों। ऐसे पक्के यूथ तैयार करो। आज पक्के कल कच्चे नहीं। (सभी ने वायदे लिखकर दिये हैं) बापदादा लिखतें तो बहुत देख चुके हैं। (सभी हंसने लगे) हंसते हैं। वायदे के पत्र बापदादा के पास सभी के बहुत जमा हैं। तो भारत के यूथ बताओ जो आज वायदा किया है, वह फाइल में रहेगा या फाइनल रहेगा? क्या होगा? फाइनल होगा या फाइल में रहेगा? जो पक्के हैं वह हाथ उठाओ। इन्हों का वीडियो निकालो। यह वीडियो आप लोगों को भेजा जायेगा। फाइनल वायदा करने वाले एक्जैम्पुल बनेंगे। बाकी फाइल तो बापदादा के पास बहुत-बहुत हैं। समझा। फाइल में नहीं रखना, फाइनल बनकर दिखाना। अच्छा।
अच्छा - (दिल्ली वालों ने मेला सम्भाला है) सभी को अच्छी सेवा की लाटरी मिली है। तो दिल्ली वालों ने सेवा की लाटरी ले ली और हर समय के लिए सेवा की नूँध, नूँध ली। सेवा पसन्द है? दिल्ली वाले जो सेवा में आये हैं वह उठो। आगरा वाले उठो। अच्छा है, सहयोगी बनना अर्थात् समीप आना। विशेष आत्माओं के समीप आने का चांस मिलता है और साथ-साथ सेवा का बल समय पर कार्य में आता है। तो जमा भी करते हो और श्रेष्ठ आत्माओं के समीप भी आते हो। अनेक ब्राह्मण आत्माओं के सम्पर्क में आते, तो नजदीक आने का यह साधन अच्छा है। सभी को चांस दिया है, अच्छा किया। दिल्ली वालों को पसन्द है ना! अच्छा।
(रतन भाई लण्डन तथा अन्य दो भाईयों से)- ईश्वरीय सेवा का कोई भी कार्य होता है, उसका लक्ष्य आत्माओं को बाप के समीप सम्बन्ध में लाना है। उन्हों का किसी भी प्रकार से जमा कराने का साधन है। तो सभी इसी लक्ष्य से सेवा के निमित्त हो ना? यही लक्ष्य है ना? तो बापदादा देखेंगे कितनी आत्माओं का भविष्य बनाने के निमित्त बने हैं। ग्रुप ले आयेंगे ना? अच्छा गुलदस्ता ले आना। फाउण्डेशन का गुलदस्ता ले आना। पसन्द है? जो कार्य होता है उसमें सेवा समाई हुई है। सिर्फ निमित्त बनना होता है। तो अच्छा किया है। अभी बापदादा के आगे गुलदस्ता ले आना। ठीक है ना? अच्छा उमंग है। हिम्मत वाले को बाप की मदद मिलती ही है। तो कार्य की मुबारक हो और इनएडवांस गुलदस्ते लाने की भी मुबारक। अच्छा।
सभी की मुबारक सुन-सुनकर सब खुश हो रहे हैं तो आप सभी को कितनी मुबारक मिली? अरब खरब से भी ज्यादा मुबारक है। अच्छा।
सर्व नव युग के विश्व अधिकारी, नव जीवन द्वारा विश्व परिवर्तक आत्माओं को, सदा सफल करने से सफलतामूर्त बनने वाली आत्माओं को, सदा अपने किये हुए वायदों को साकार स्वरूप देने वाले अचल, अखण्ड स्वरूप आत्माओं को, सदा उत्सव में रह औरों को भी उत्सव द्वारा उत्साह दिलाने वाले आत्माओं को, बापदादा का नये वर्ष और नये युग के स्थापना की मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। साथ-साथ हिम्मत रख सर्व बच्चे आगे बढ़ने वाले हिम्मते बच्चे और मददे बाप ऐसे सर्व बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
(रात्रि 12 बजे के बाद बापदादा ने सभी बच्चों को पुन: नये वर्ष की बधाई दी)
सर्व विश्व के कोने-कोने में, विश्व के चारों ओर विशेष नव जीवन में रहने वाले सभी को नये वर्ष के साथ-साथ नव युग की भी मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। ब्राह्मण बच्चों के लिए तो हर दिन, हर सेकण्ड नया है। तो अभी पुराने वर्ष की विदाई है और नये वर्ष को बधाई हो। ऐसे सदा हर सेकण्ड जो भी संकल्प करो, कर्म करो हर कर्म, संकल्प बधाई वाले हो। जो भी सम्पर्क में आये वह सदा बधाई हो, बधाई हो, यही गीत गाते रहें। इस नये वर्ष में सभी को जो भी मिले वा जो भी साथ में रहते हैं, उन्हों को सदा खुशी की, दिलखुश मिठाई खिलाते रहना और सदा खुशी में मन से नाचते रहना और सेवा में सभी को खुशी का खज़ाना भर-भरकर बांटते रहना। तो ऐसे नये जीवन, नये उमंग- उत्साह की चारों ओर के बच्चों को नये वर्ष के साथ-साथ मुबारक हो, मुबारक हो। गुडनाईट और गुडमार्निग।
अच्छा। ओम् शान्ति।
18-01-98 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सकाश देने की सेवा करने के लिए लगाव मुक्त बन बेहद के वैरागी बनो
आज का दिन विशेष स्नेह का दिन है। अमृतवेले से लेकर चारों ओर के बच्चे अपने दिल के स्नेह को बापदादा के अर्थ आर्पित कर रहे थे। सर्व बच्चों के स्नेह के मोतियों की मालायें बापदादा के गले में पड़ती जा रही थी। आज के दिन एक तरफ स्नेह के मोतियों की मालायें, दूसरे तरफ मीठे-मीठे उल्हनों की मालायें भी थी। लेकिन इस वर्ष उल्हनों में अन्तर देखा। पहले उल्हनें होते थे हमें भी साथ ले जाते, हमने साकार पालना नहीं ली.....। इस वर्ष मैजारिटी का उल्हना यह रहा कि अब बाप समान बन आपके पास पहुँच जाएं। समान बनने का उमंग-उत्साह मैजारिटी में अच्छा रहा। समान बनने की इच्छा बहुत तीव्र है, बन जायें और आ जायें, यह संकल्प रूहरिहान में बहुत बच्चों का रहा। बापदादा भी यही बच्चों को कहते हैं - समान भव, सम्पन्न भव, सम्पूर्ण भव। इसका साधन सदा के लिए बहुत सहज है, सबसे सहज साधन है - सदा स्नेह के सागर में समा जाओ। जैसे आज का दिन स्नेह में समाये हुए थे और कुछ याद था? सिवाए बापदादा के और कुछ याद रहा? उठते, बैठते स्नेह में समाये रहे। चलते-फिरते क्या याद रहा? ब्रह्मा बाप के चरित्र और चित्र, चित्र भी सामने रहा और चरित्र भी स्मृति में रहे। सभी ने स्नेह का अनुभव आज विशेष किया ना? मेहनत लगी? सहज हो गया ना! स्नेह ऐसी शक्ति है जो सब कुछ भुला देती है। न देह याद आती, न देह की दुनिया याद आती। स्नेह मेहनत से छुड़ा देता है। जहाँ मोहब्बत होती है वहाँ मेहनत नहीं होती है। स्नेह सदा सहज बापदादा का हाथ अपने ऊपर अनुभव कराता है। स्नेह छत्रछाया बन मायाजीत बना देता है। कितनी भी बड़ी समस्या रूपी पहाड़ हो, स्नेह पहाड़ को भी पानी जैसा हल्का बना देता है। तो स्नेह में रहना आता है ना? आज रहकर देखा ना! कुछ याद रहा? नहीं रहा ना! बाबा, बाबा और बाबा.... एक ही याद में लवलीन रहे। तो बापदादा कहते हैं और कोई पुरूषार्थ नहीं करो, स्नेह के सागर में समा जाओ। समाना आता है? कभी-कभी बच्चे स्नेह के सागर में समाते हैं लेकिन थोड़ा सा समय समाया, फिर बाहर निकल आते हैं। अभी-अभी कहेंगे बाबा, मीठा बाबा, प्यारा बाबा और अभी-अभी बाहर निकलते और बातों में लग जाते हैं। बस सिर्फ थोड़ी-सी जैसे कोई डुबकी लगाके निकल आता है ना, ऐसे स्नेह में समाया, डुबकी लगाई, निकल आये। समाये रहो, तो स्नेह की शक्ति सबसे सहज मुक्त कर देगी।
सभी बच्चों को ब्राह्मण जन्म के आदि का अनुभव, स्नेह ने ब्राह्मण बनाया। स्नेह ने परिवर्तन किया। अपने जन्म के आदि समय का अनुभव याद है ना? ज्ञान और योग तो मिला लेकिन स्नेह ने आकर्षित कर बाप का बनाया। अगर सदा स्नेह की शक्ति में रहो तो सदा के लिए मेहनत से मुक्त हो जायेंगे। वैसे भी मुक्ति वर्ष मना रहे हैं ना। तो मेहनत से भी मुक्त, उसका साधन है - स्नेह में समाये हुए रहो। स्नेह का अनुभव सभी को है ना? या नहीं है? अगर किसी से भी पूछेंगे कि बापदादा से सबसे ज्यादा स्नेह किसका है? तो सभी हाथ उठायेंगे मेरा है। (सबने हाथ हिलाया) साइलेन्स का हाथ उठाओ, आवाज़ वाला नहीं। तो बापदादा आज यही कहते हैं कि स्नेह की शक्ति सदा कार्य में लगाओ। सहज है ना! योग लगाते हो - देह भूल जाए, देह की दुनिया भूल जाए, मायाजीत बनें। जब स्नेह की छत्रछाया में रहेंगे, तो स्नेह की छत्रछाया के अन्दर माया नहीं आ सकती है। स्नेह के सागर के बाहर आते हो ना तो माया देख लेती है और अपना बना लेती है, निकलो ही नहीं। समाये रहो। स्नेही कोई भी कार्य करते हुए स्नेही को नहीं भूल सकता। स्नेह में खोया हुआ हर कार्य करता। तो जैसे आज के दिन खोये रहे, ऐसे सदा स्नेह में नहीं रह सकते हो क्या? स्नेह सहज ही समान बना देगा क्योंकि जिसके साथ स्नेह है उस जैसा बनना, यह मुश्किल नहीं होता है।
ब्रह्मा बाप से दिल का प्यार है, ब्रह्मा बाप का भी बच्चों से अति स्नेह है। सदा एक-एक बच्चे को इमर्ज कर विशेष समान बनने की सकाश देते रहते हैं। जैसे पास्ट जीवन में एक-एक रत्न को देखते, हर एक रत्न के मूल्य को जानते विशेष कार्य में लगाते, ऐसे अभी भी एक-एक रत्न को विशेष रूप से विशेषता को कार्य में लगाने का सदा संकल्प देते रहते। और हर एक के विशेषता की वाह-वाह गाते रहते। वाह मेरा अमूल्य रत्न। कई बच्चे सोचते हैं कि ब्रह्मा बाप वतन में क्या करते हैं? हम तो यहाँ सेवा करते रहते और ब्रह्मा बाप वहाँ वतन में क्या करते? लेकिन बाप कहते हैं जैसे साकार रूप में सदा बच्चों के साथ रहे, ऐसे वतन में भी रहते हैं। बच्चों के साथ ही रहते हैं, अकेले नहीं रहते हैं। बच्चों के बिना बाप को भी मजा नहीं आता। जैसे बच्चों को बाप के बिना कुछ सूझता नहीं, ऐसे बाप को भी बच्चों के बिना और कुछ नहीं सूझता। अकेले नहीं रहते हैं, साथ में रहते हैं। साकार में तो साथ का अनुभव साकार रूप में थोड़े बच्चे कर सकते थे, अब तो अव्यक्त रूप में, हर बच्चे के साथ जिस समय चाहे, जब चाहे साथ निभाते रहते हैं। जैसे चित्रों में दिखाते हैं ना - उन्होंने एक-एक गोपी के साथ कृष्ण को दिखा दिया लेकिन यह इस समय का गायन है। अब अव्यक्त रूप में हर बच्चे के साथ जब चाहे, चाहे रात को दो बजे, अढ़ाई बजे हैं, किसी भी टाइम साथ निभाते रहते हैं। साकार में तो सेन्टर्स पर चक्कर लगाना कभी-कभी होता लेकिन अब अव्यक्त रूप में तो पवित्र प्रवृत्ति में भी चक्कर लगाते हैं। बाप को काम ही क्या है, बच्चों को समान बना के साथ ले जाना, यही तो काम है ना और क्या है? तो इसी में ही बिजी रहते हैं।
तो आज के दिन बापदादा बच्चों को विशेष मेहनत से मुक्त भव का वरदान देते हैं। कोई भी कार्य करो तो डबल लाइट बनके कार्य करो, तो मेहनत मनोरंजन अनुभव करेंगे क्योंकि बापदादा को बच्चों की मेहनत करना, युद्ध करना, हार और जीत का खेल करना - यह अच्छा नहीं लगता। तो मुक्त वर्ष मना रहे हो ना! मना रहे हो या मेहनत में लगे हुए हो? आज के दिन विशेष यह वरदान याद रखना - मेहनत से मुक्त भव। यह संगमयुग मेहनत से मुक्त होने का युग है। मौज में रहने का है। अगर मेहनत है तो मौज नहीं हो सकती है। एक ही युग परम आत्मा और आत्माओं का मौज मनाने का युग है। आत्मा, परमात्मा के स्नेह का युग है। मिलन का युग है। तो दृढ़ संकल्प करो कि आज से मेहनत से मुक्त हो जायेंगे। होंगे ना? फिर ऐसे नहीं यहाँ तो हाथ उठाओ और वहाँ जाकर कहो क्या करें, कैसे करें? क्योंकि बापदादा के पास हर एक बच्चे के दृढ़ संकल्प करने का पूरा फाइल है। बापदादा कभी बच्चों का फाइल देखते हैं। बार-बार दृढ़ संकल्प किया है ना। जब से जन्म लिया और अब तक कितने बार संकल्प किया है, यह करेंगे, यह करेंगे... लेकिन उसको पूरा नहीं किया है। रूहरिहान बहुत अच्छी करते हैं, बापदादा को भी खुश कर देते हैं। जैसे जिज्ञासुओं को प्रभावित कर देते हो ना, तो बापदादा को भी प्रभावित तो कर देते हैं लेकिन दृढ़ संकल्प का प्रभाव थोड़ा समय रहता है, सदा नहीं रहता। तो बापदादा का फाइल तो बढ़ता जाता है। जब भी कोई फंक्शन होता है तो बापदादा की फाइल में एक प्रतिज्ञा पत्र तो जमा हो ही जाता है, इसलिए बापदादा लिखाते नहीं हैं।
आज भी सभी संकल्प तो कर रहे हैं, अभी कब तक चलता है, फाइल में कागज कब तक रहता है, बाप भी देखते रहते हैं। बच्चों का बाप समान बनना और फाइल खत्म होके फाइनल हो जायेंगे। अभी तो ढेर के ढेर फाइल हैं। तो सिर्फ स्नेह में डूबे रहो, स्नेह के सागर से बाहर नहीं निकलो। ब्रह्मा बाप से दिल का स्नेह है ना? तो स्नेही को फॉलो करना मुश्किल नहीं होता है। स्नेह के लिए कहते भी हो कि जहाँ स्नेह है, वहाँ जान भी कुर्बान हो जाती है। बापदादा तो जान को कुर्बान करने के लिए नहीं कहते, पुराना जहान कुर्बान कर दो। इसकी फाइनल डेट फिक्स करो। और फंक्शन की डेट तो फिक्स करते हो, 20 तारीख है, 24 तारीख है। इसकी डेट कब फिक्स करेंगे? (इसकी डेट बापदादा फिक्स करें) बापदादा कब शब्द कहते ही नहीं हैं, अब कहते हैं। बापदादा कब पर छोड़ता है क्या? अब कहते है। जो करना है वो अब करो। लेकिन बापदादा तो समर्थ है ना, तो समर्थ के हिसाब से तो अब कहेंगे। बच्चे कब, कब की आदत में हिरे हुए हैं। इसीलिए बापदादा बच्चों को कहते हैं कि यह डेट कब फिक्स करेंगे? आप भी कब, कब कहते हैं तो बाप भी कब कहते हैं।
अभी समय प्रमाण सबको बेहद के वैराग्य वृत्ति में जाना ही होगा। लेकिन बापदादा समझते हैं कि बच्चों का समय शिक्षक नहीं बनें, जब बाप शिक्षक है तो समय पर बनना - यह समय को शिक्षक बनाना है। उसमें मार्क्स कम हो जाती हैं। अभी भी कई बच्चे कहते हैं - समय सिखा देगा, समय बदला देगा। समय के अनुसार तो सारे विश्व की आत्मायें बदलेंगी लेकिन आप बच्चे समय का इन्तजार नहीं करो। समय को शिक्षक नहीं बनाओ। आप विश्व के शिक्षक के मास्टर विश्व शिक्षक हो, रचता हो, समय रचना है तो हे रचता आत्मायें रचना को शिक्षक नहीं बनाओ। ब्रह्मा बाप ने समय को शिक्षक नहीं बनाया, बेहद का वैराग्य आदि से अन्त तक रहा। आदि में देखा इतना तन लगाया, मन लगाया, धन लगाया, लेकिन जरा भी लगाव नहीं रहा। तन के लिए सदा नेचुरल बोल यही रहा - बाबा का रथ है। मेरा शरीर है, नहीं। बाबा का रथ है। बाबा के रथ को खिलाता हूँ, मैं खाता हूँ, नहीं। तन से भी बेहद का वैराग्य। मन तो मनमनाभव था ही। धन भी लगाया, लेकिन कभी यह संकल्प भी नहीं आया कि मेरा धन लग रहा है। कभी वर्णन नहीं किया कि मेरा धन लग रहा है या मैंने धन लगाया है। बाबा का भण्डारा है, भोलेनाथ का भण्डारा है। धन को मेरा समझकर पर्सनल अपने प्रति एक रूपये की चीज़ भी यूज नहीं की। कन्याओं, माताओं की जिम्मेवारी है, कन्याओं-माताओं को विल किया, मेरापन नहीं। समय, श्वांस अपने प्रति नहीं, उससे भी बेहद के वैरागी रहे। इतना सब कुछ प्रकृति दासी होते हुए भी कोई एकस्ट्रा साधन यूज़ नहीं किया। सदा साधारण लाइफ में रहे। कोई स्पेशल चीज़ अपने कार्य में नहीं लगाई। वस्त्र तक, एक ही प्रकार के वस्त्र अन्त तक रहे। चेंज नहीं किया। बच्चों के लिए मकान बनाये लेकिन स्वयं यूज़ नहीं किया, बच्चों के कहने पर भी सुनते हुए उपराम रहे। सदा बच्चों का स्नेह देखते हुए भी यही शब्द रहे - सब बच्चों के लिए है। तो इसको कहा जाता है बेहद की वैराग्य वृत्ति प्रत्यक्ष जीवन में रही। अन्त में देखो बच्चे सामने हैं, हाथ पकड़ा हुआ है लेकिन लगाव रहा? बेहद की वैराग्य वृत्ति। स्नेही बच्चे, अनन्य बच्चे सामने होते हुए फिर भी बेहद का वैराग्य रहा। सेकण्ड में उपराम वृत्ति का, बेहद के वैराग्य का सबूत देखा। एक ही लगन सेवा, सेवा और सेवा..... और सभी बातों से उपराम। इसको कहा जाता है बेहद का वैराग्य। अभी समय प्रमाण बेहद के वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो। बिना बेहद के वैराग्य वृत्ति के सकाश की सेवा हो नहीं सकती। फॉलो फादर करो। साकार में ब्रह्मा बाप रहा, निराकार की तो बात छोड़ो। साकार में सर्व प्राप्ति का साधन होते हुए, सर्व बच्चों की जिम्मेवारी होते हुए, सरकमस्टांश, समस्यायें आते हुए पास हो गये ना! पास विद ऑनर का सर्टिफिकेट ले लिया। विशेष कारण बेहद की वैराग्य वृत्ति। अभी सूक्ष्म सोने की जंजीर के लगाव, बहुत महीन सूक्ष्म लगाव बहुत हैं। कई बच्चे तो लगाव को समझते भी नहीं हैं कि यह लगाव है। समझते हैं - यह तो होता ही है, यह तो चलता ही है। मुक्त होना है, नहीं। लेकिन ऐसे तो चलता ही है। अनेक प्रकार के लगाव बेहद के वैरागी बनने नहीं देते हैं। चाहना है बनें, संकल्प भी करते हैं - बनना ही है। लेकिन चाहना और करना दोनों का बैलेन्स नहीं है। चाहना ज्यादा है, करना कम है। करना ही है - यह वैराग्य वृत्ति अभी इमर्ज नहीं है। बीच-बीच में इमर्ज होती है, फिर मर्ज हो जाती है। समय तो करेगा ही लेकिन पास विद ऑनर नहीं बन सकते। पास होंगे लेकिन पास विद ऑनर नहीं। समय की रफ्तार तेज है, पुरूषार्थ की रफ्तार कम है। मोटा-मोटा पुरूषार्थ तो है लेकिन सूक्ष्म लगाव में बंध जाते हैं।
बापदादा जब बच्चों के गीत सुनते हैं - उड़ आयें, उड़ आयें... तो सोचते हैं उड़ा तो लें लेकिन लगाव उड़ने देंगे या न इधर के रहेंगे न उधर के रहेंगे? अभी समय प्रमाण लगाव-मुक्त बेहद के वैरागी बनो। मन से वैराग्य हो। प्रोग्राम प्रमाण वैराग्य जो आता है वह अल्पकाल का होता है। चेक करो - अपने सूक्ष्म लगाव को। मोटी-मोटी बातें अभी खत्म हुई हैं, कुछ बच्चे मोटे-मोटे लगाव से मुक्त हैं भी लेकिन सूक्ष्म लगाव बहुत सूक्ष्म हैं, जो स्वयं को भी चेक नहीं होते हैं। (मालूम नहीं पड़ते हैं)। चेक करो, अच्छी तरह से चेक करो। सम्पूर्णता के दर्पण से लगाव को चेक करो। यही ब्रह्मा बाप के स्मृति दिवस की गिफ्ट ब्रह्मा बाप को दो। प्यार है ना, तो प्यार में क्या किया जाता है? गिफ्ट देते हैं ना? तो यह गिफ्ट दो। छोड़ो, सब किनारे छोड़ो। मुक्त हो जाओ। बापदादा खुश भी होते हैं कि बच्चों में उमंग-उत्साह उठता है, बहुत अच्छे-अच्छे स्व-उन्नति के संकल्प भी करते हैं। अभी उन संकल्पों को करके दिखाओ। अच्छा।
आज विशेष टीचर्स का संगठन इकठ्ठा हुआ है। सेवा का रिटर्न यह उत्सव रखा जाता है। बापदादा खुश होते हैं कि बच्चों को सेवा का फल मिल रहा है वा मना रहे हैं, खा रहे हैं। सेवा में नम्बरवार सफल रहे हैं और रहते रहेंगे। बापदादा बच्चों के 40 साल की सेवा देख हर्षित होते हैं। हाथ उठाओ जो फंक्शन के लिए आये हैं। बड़ा ग्रुप है। 40 वर्ष भी सेवा में अमर भव के वरदानी रहे हैं इसकी मुबारक हो। आपके संगठन को देख सब बहुत खुश होंगे कि 40 वर्ष सेवा में अमर रहना - यह भी कमाल है। डायमण्ड जुबली हुई, सिल्वर जुबली हुई और यह कौन सी जुबली है? यह विशेष जुबली है। ज्यादा मेहनत इस ग्रुप ने ही की है। यह ग्रुप जैसे बॉर्डर में मिलेट्री जाती है ना और कमान्डर तो पीछे रहते हैं लेकिन बॉर्डर पर महारथी ही जाते हैं। तो सेवा के बॉर्डर में यह ग्रुप रहा है। बापदादा समान सेवाधारी ग्रुप को देख खुश होते हैं। बॉर्डर पर जाने वाले पक्के होते हैं। बहुत अनुभव होते हैं ना। सामना करने की शक्ति ज्यादा होती है। हर ग्रुप की विशेषता अपनी-अपनी है। तो डायमण्ड जुबली वाले स्थापना के निमित्त बनें, गोल्डन जुबली वाले सेवा में आदि रत्न निमित्त बनें। सिल्वर जुबली वाले राइट हैण्ड बन आगे बढ़े और बढ़ाया। और यह विशेष ग्रुप सेवा के सर्व प्रकारों के अनुभवी मूर्त हैं। ज्यादा अनुभव इस ग्रुप को है। मेहनत भी की है लेकिन मोहब्बत में मेहनत की है। इसलिए बापदादा इस ग्रुप को विशेष सेवाधारी, सफलतामूर्त ग्रुप कहते हैं। जो नये-नये आते हैं उनकी पालना के निमित्त आधारमूर्त यह ग्रुप है। इस ग्रुप को एक बात कहें ? सुनने के लिए तैयार हो? आर्डर करेंगे। आर्डर करें? एवररेडी ग्रुप है ना?
बापदादा को विशेष सेवा में सफलता स्वरूप आत्माओं को देख यह संकल्प आता है कि सेन्टर तो अच्छे जमा दिये हैं। जमा दिये हैं ना या हिलने वाले हैं? अभी इस ग्रुप में से बेहद की सेवा के लिए कोई रत्न निकलने चाहिए। एवररेडी हैं या सेन्टर छोड़ना मुश्किल है? मुश्किल है या सहज है? अभी हाथ उठाओ। आप निकलेंगे तो सेन्टर हिलेंगे क्या? यह भी पक्का हो ना। आप कहो हम तो तैयार हैं सेन्टर हिले या नहीं, हमारा क्या जाता। ऐसा नहीं। बापदादा फिर भी 6 मास का टाइम देते हैं, अपने सेन्टर्स पर ऐसा राइट हैण्ड बनाओ जो आप चक्रवर्ती बन सको; क्योंकि बापदादा देखते हैं - चक्रवर्ती बनकर सेवा करने वालों से एक ही जगह पर बैठकर सेवा करने वालों का नम्बर थोड़ा पीछे हो जाता है। वह चक्रवती नम्बरवन राजा बन सकते हैं। और यह ग्रुप ऐसा है जो नम्बर आगे ले सकते हैं। तो नम्बर लेंगे? फिर दादी आर्डर करेगी, एवररेडी। (दादी से) आर्डर करेंगी ना? आपको हैण्डस चाहिए ना? कभी-कभी दादी रूहरिहान करती है - मददगार चाहिए। तो कौन यह फरमाइस पूरी करेंगे? आप लोग ही कर सकते हैं। बापदादा उम्मींदवार आत्मायें समझते हैं। इसलिए अपने- अपने स्थान ऐसे पक्के करो, मजबूत बनाओ जो आप जैसे ही चलें, अन्तर नहीं पड़े। ब्रह्मा बाप ने देखा क्या कि पीछे क्या होगा? नहीं देखा ना! अच्छा ही है और अच्छा ही होना है। तो सेकण्ड में लगावमुक्त आत्मा उड़ गई। कोई लगाव ने खींचा नहीं। तो ऐसा ग्रुप बनाओ, कोई लगाव नहीं। मेरी यह ड्युटी है, मेरे बिना कोई कर नहीं सकेगा - यह संकल्प नहीं आवे, इससे भी वैराग्य। तो सुना बापदादा की बात? ध्यान से सुनी। अच्छा - अभी 6 मास में सभी ऐसे सेन्टर पक्का करना, फिर आर्डर होगा। पसन्द है ना? विश्व महाराजन बनना है कि स्टेट का राजा बनना है? कौन सा राजा बनना है? एक ही सेन्टर सम्भालना तो स्टेट का राजा बनेंगे। चक्रवर्ती बनेंगे तो विश्व के राजा बनेंगे। जैसे आप अनुभवी बने हो वैसे औरों को अनुभवी बनाओ। मुश्किल काम तो नहीं है? मुश्किल हो तो ना कर दें। अगर मुश्किल लगता हो तो बापदादा कहेंगे जहाँ हैं वहाँ ही रहो। यह भी छुट्टी है, जिसकी जो इच्छा हो वह करे, लेकिन बापदादा इस ग्रुप को आगे बढ़ने के उम्मींदवार समझते हैं। ठीक है? पसन्द है?
मनाने के पहले फिक्र तो नहीं हो गया? बेफिक्र बादशाह हैं। जब ब्रह्मा बाप ने कुछ नहीं सोचा, तो फॉलो फादर। बच्चों ने सोचा क्या होगा, कैसे होगा, सेन्टर चलेंगे नहीं चलेंगे, मुरली कहाँ से आयेगी.... कितने क्वेश्चन सोचे, ब्रह्मा बाप ने सोचा? सेकण्ड में व्यक्त से अव्यक्त हो गये। लेकिन और अच्छे ते अच्छा होना ही है, यह निश्चय रहा। और हो रहा है ना? बाकी बापदादा को हर ग्रुप की विशेषता प्यारी लगती है। अच्छा।
चारों ओर देश विदेश के स्नेह में समाये हुए स्नेही बच्चों को, सदा बाप के स्नेह के सागर में समाये हुए रहने वाले अति समीप आत्माओं को, सदा ब्रह्मा बाप की विशेषताओं को स्वयं में धारण करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा मेहनत मुक्त हो, मौज में रहने वाली परमात्म प्यार में उड़ने वाली आत्माओं को, बाप समान बनने के संकल्प को साकार में लाने वाले ऐसे दिलाराम बाप के दिल में समाये हुए बच्चों को, विशेष आज के दिन ब्रह्मा बाप की पदम-पदम गुणा यादप्यार स्वीकार हो। बापदादा तो सदा बच्चों के दिल में रहता है, वतन में रहते भी बच्चों के दिल में रहते हैं, तो ऐसे दिल में समाने वाले बच्चों को बापदादा का स्नेह के मोतियों की थालियां भर-भर कर यादप्यार और नमस्ते।
(गुजरात की सेवा का टर्न है) अच्छा है। गुजरात वाले अनुभवी मूर्त हैं। समीप होने के कारण हर कार्य में एवररेडी हो जाते हैं। हर एक ज़ोन को यह सेवा का चांस भी अच्छा मिला है। सेवा करना अर्थात् सर्व की दुआयें लेना। तो कितनी दुआयें ली हैं? बहुत ली हैं ना? तो गुजरात दुआओं की झोली भर रहे हैं। अच्छा। सभी गुजरात के सेवाधारी हाथ उठाओ। सिर्फ सेवा नहीं कर रहे हो, दुआयें जमा कर रहे हो। अच्छा।
जो भाई-बहिनें कैबिन में बैठे हुए सेवा कर रहे हैं उन सबके प्रति बापदादा बोले:-
यह भी मेहनत बहुत करते हैं। यह डिपार्टमेंट (साउण्ड डिपार्टमेंट) भी मेहनत अच्छी करता है। जो भी सभी कैबिन में बैठे हैं सभी मेहनत अच्छी करते हो, सभी को सुख देते हो। तो सुख देने की दुआयें बहुत मिलती हैं। पुरूषार्थ में यह दुआयें एड हो जाती हैं। निर्विघ्न सेवा, यह बहुत पदमगुणा फल देती है। जितनी निर्विघ्न सेवा होती है उतना ऑटोमेटिक मार्क्स बढ़ती जाती हैं। सबको सुख देना, किसी भी बात से, चाहे कर्म से, चाहे वाणी से, चाहे मन्सा से - कोई भी सुख देता है तो उसकी मार्क्स ऑटोमेटिक बढ़ती जाती हैं। मेहनत से इतनी नहीं बढ़ती जितनी यह ऑटोमेटिक मार्क्स बढ़ती हैं। तो सुख स्वरूप बनकर सुख दो। सुख दो और सुख लो। ऐसे है ना। बहुत अच्छा।
मधुबन निवासियों को दुआयें बहुत मिलती हैं। चाहे सफाई करने वाला भी हो, झाड़ू लगाने वाला हो लेकिन सफाई भी अच्छी देखकर सबकी दुआयें मिलती हैं। सबसे सहज पुरूषार्थ है दुआयें लो, दुआयें दो। इसमें कोई मेहनत नहीं है। बहुत जल्दी मायाजीत बन जायेंगे। किसको मर्यादापूर्वक दु:ख नहीं देना है। ऐसे भी नहीं है कि मर्यादा तोड़ करके इसको सुख दो, नहीं। वह सुख के खाते में जमा नहीं होता है, वह ऑटोमेटिक मशीनरी दु:ख के खाते में जमा हो जाती है। इसलिए दिल से सुख दो, मर्यादापूर्वक दिल से। दिखावा-मात्र नहीं, दिल से। सुख कर्ता के बच्चे एक सेकण्ड में अपनी मन्सा द्वारा, वाणी द्वारा, सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा सुख दे सकते हैं। अच्छा।
(यह इस सीजन का सबसे बड़ा ग्रुप है।)
सभी आराम से रहे हैं। टीचर्स को तो आराम मिलता ही है। टीचर्स तो स्पेशल हैं ना। (डबल फॉरेनर्स भी 150 के लगभग आये हैं) बाप विश्व कल्याणकारी है तो हर ग्रुप में देश-विदेश होना ही चाहिए। विदेश वालों को यह सीजन का पसन्द है? इतनी बड़ी सभा पसन्द है? सभी विदेशियों ने बहुत अच्छे अनुभव के पत्र लिखे हैं। बापदादा के पास पहुंचे हैं। कईयों ने अपना उमंग- उत्साह बहुत अच्छा लिखा है और कहाँ-कहाँ पुरूषार्थ भी लिखा है लेकिन मैजारिटी रिजल्ट अच्छी है। अभी पहले जैसे जल्दी-जल्दी हिलने वाले नहीं हैं, अचल हो गये हैं। इसलिए डबल विदेशियों को आगे बढ़ने की मुबारक हो। (160 स्थानों पर डायरेक्ट सुन रहे हैं) अच्छा है ब्रह्मा बाप ने पहले से ही कहा है कि एक समय आयेगा जो सारे वर्ल्ड में बाप का सन्देश जायेगा। अभी सुनते हैं फिर देखेंगे भी। आप सबका साक्षात्कार करेंगे। जगह-जगह पर आपको जाना नहीं पड़ेगा। एक जगह से ही बापदादा सहित आप सभी बच्चों का साक्षात्कार हो जायेगा। अच्छा।
31-01-98 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
पास विथ आनर बनने के लिए हर खज़ाने का एकाउण्ट चेक करके जमा करो
आज बापदादा हर एक छोटे-बड़े चारों ओर के देश-विदेश के बच्चों का भाग्य देख हर्षित हो रहे हैं। ऐसा भाग्य सारे कल्प में सिवाए ब्राह्मण आत्माओं के किसी का भी नहीं हो सकता। देवतायें भी ब्राह्मण जीवन को श्रेष्ठ मानते हैं। हर एक अपने जीवन के आदि से देखो कि हमारा भाग्य जन्मते ही कितना श्रेष्ठ है। जीवन में जन्मते ही माँ बाप की पालना का भाग्य मिलता है। उसके बाद पढ़ाई का भाग्य मिलता है। उसके आगे गुरू द्वारा मत वा वरदान मिलता है। आप बच्चों को पालना, पढ़ाई और श्रीमत, वरदान देने वाला कौन? परम आत्मा द्वारा यह तीनों ही प्राप्त हैं। पालना देखो - परमात्म पालना कितने थोड़े कोटों में से कोई को मिलती है। परमात्म शिक्षक की पढ़ाई आपके सिवाए किसको भी नहीं मिलती है। सतगुरू द्वारा श्रीमत, वरदान आपको ही प्राप्त है। तो अपने भाग्य को अच्छी तरह से जानते हो? भाग्य को स्मृति में रखते हुए झूलते रहते हो, गीत गाते रहते हो - वाह मेरा भाग्य!
अमृतवेले से लेकर जब उठते हो तो परमात्म प्यार में लवलीन होके उठते हो। परमात्म प्यार उठाता है। दिनचर्या की आदि परमात्म प्यार होता है। प्यार नहीं होता तो उठ नहीं सकते। प्यार ही आपके समय की घण्टी है। प्यार की घण्टी आपको उठाती है। सारे दिन में परमात्म साथ हर कार्य कराता है। कितना बड़ा भाग्य है जो स्वयं बाप अपना परमधाम छोड़कर आपको शिक्षा देने के लिए आते हैं। ऐसे कभी सुना कि भगवान रोज़ अपने धाम को छोड़ पढ़ाने के लिए आते हैं! आत्मायें चाहे कितना भी दूर-दूर से आयें, परमधाम से दूर और कोई देश नहीं है। है कोई देश? अमेरिका, अफ्रीका दूर है? परमधाम ऊंचे ते ऊंचा धाम है। ऊंचे ते ऊंचे धाम से ऊंचे ते ऊंचे भगवन, ऊंचे ते ऊंचे बच्चों को पढ़ाने आते हैं। ऐसा भाग्य अपना अनुभव करते हो? सतगुरू के रूप में हर कार्य के लिए श्रीमत भी देते और साथ भी देते हैं। सिर्फ मत नहीं देते हैं, साथ भी देते हैं। आप क्या गीत गाते हो? मेरे साथ-साथ हो कि दूर हो? साथ है ना? अगर स्नते हो तो परमात्म टीचर से, अगर खाते भी हो तो बापदादा के साथ खाते हो। अकेले खाते हो तो आपकी गलती है। बाप तो कहते हैं मेरे साथ खाओ। आप बच्चों का भी वायदा है - साथ रहेंगे, साथ खायेंगे, साथ पियेंगे, साथ सोयेंगे और साथ चलेंगे..... सोना भी अकेले नहीं है। अकेले सोते हैं तो बुरे स्वप्न वा बुरे ख्यालात स्वप्न में भी आते हैं। लेकिन बाप का इतना प्यार है जो सदा कहते हैं मेरे साथ सोओ, अकेले नहीं सोओ। तो उठते हो तो भी साथ, सोते हो तो भी साथ, खाते हो तो भी साथ, चलते हो तो भी साथ। अगर दफ्तर में जाते हो, बिजनेस करते हो तो भी बिजनेस के आप ट्रस्टी हो लेकिन मालिक बाप है। दफ्तर में जाते हो तो आप जानते हो कि हमारा डायरेक्टर, बॉस बापदादा है, यह निमित्त मात्र है, उनके डायरेक्शन से काम करते हैं। कभी उदास हो जाते हो तो बाप फ्रेंड बनकर बहलाते हैं। फ्रेंड भी बन जाता है। कभी प्रेम में रोते हो, आंसू आते हैं तो बाप पोछने के लिए भी आते हैं और आपके आंसू दिल के डिब्बी में मोती समान समा देते हैं। अगर कभी-कभी नटखट होके रूठ भी जाते हो, रूसते भी हो बहुत मीठा-मीठा। लेकिन बाप रूठे हुए को भी मनाने आते हैं। बच्चे कोई बात नहीं, आगे बढ़ो। जो कुछ हुआ बीत गया, भूल जाओ, बीती सो बीती करो, ऐसे मनाते भी हैं। तो हर दिनचर्या किसके साथ है? बापदादा के साथ। बापदादा को कभी-कभी बच्चों की बातों पर हंसी भी आती है। जब कहते हैं बाबा आप भूल जाते हो, एक तरफ तो कहते हैं कम्बाइन्ड है, कम्बाइन्ड कभी भूलता है क्या? जब साथ-साथ है तो साथ वाला भूल सकता है क्या? तो बाबा कहते हैं शाबास - बच्चों में इतनी ताकत है जो कम्बाइन्ड को भी अलग कर देते हैं! है कम्बाइन्ड और थोड़ा सा माया कम्बाइन्ड को भी अलग कर देती है।
बापदादा बच्चों का खेल देखते यही कहते हैं बच्चे, अपने भाग्य को सदा स्मृति में रखो। होता क्या है? सोचते हो हाँ मेरा भाग्य बहुत ऊंचा है लेकिन सोचना-स्वरूप बनते हो, स्मृति-स्वरूप नहीं बनते हो। सोचते बहुत अच्छा हो मैं तो यह हूँ, मैं तो यह हूँ, मैं तो यह हूँ.... सुनाते भी बहुत अच्छा हो। लेकिन जो सोचते हो, जो कहते हो उसका स्वरूप बन जाओ। स्वरूप बनने में कमी पड़ जाती है। हर बात का स्वरूप बन जाओ। जो सोचो वह स्वरूप भी अनुभव करो। सबसे बड़े ते बड़ा है अनुभवी मूर्त बनना। अनादि काल में जब परमधाम में हैं तो सोचना स्वरूप नहीं हैं, स्मृति स्वरूप हैं। मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ - यह भी सोचने का नहीं है, स्वरूप ही है। आदिकाल में भी इस समय के पुरूषार्थ का प्रालब्ध स्वरूप है। सोचना नहीं पड़ता - मैं देवता हूँ, मैं देवता हूँ... स्वरूप है। तो जब अनादिकाल, आदिकाल में स्वरूप है तो अब भी अन्त में स्वरूप बनो। स्वरूप बनने से अपने गुण, शक्तियां स्वत: ही इमर्ज होते हैं। जैसे कोई भी आक्यूपेशन वाले जब अपने सीट पर सेट होते हैं तो वह आक्यूपेशन के गुण, कर्तव्य ऑटोमेटिक इमर्ज होते हैं। ऐसे आप सदा स्वरूप के सीट पर सेट रहो तो हर गुण, हर शक्ति, हर प्रकार का नशा स्वत: ही इमर्ज होगा। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। इसको कहा जाता है ब्राह्मणपन की नेचुरल नेचर, जिसमें और सब अनेक जन्मों की नेचर्स समाप्त हो जाती हैं। ब्राह्मण जीवन की नेचुरल नेचर है ही गुण स्वरूप, सर्व शक्ति स्वरूप और जो भी पुरानी नेचर्स हैं वह ब्राह्मण जीवन की नेचर्स नहीं हैं। कहते ऐसे हो कि मेरी नेचर ऐसी है लेकिन कौन बोलता है मेरी नेचर? ब्राह्मण वा क्षत्रिय? वा पास्ट जन्म के स्मृति स्वरूप आत्मा बोलती है? ब्राह्मणों की नेचर - जो ब्रह्मा बाप की नेचर वह ब्राह्मणों की नेचर। तो सोचो जिस समय कहते हो मेरी नेचर, मेरा स्वभाव ऐसा है, क्या ब्राह्मण जीवन में ऐसा शब्द - मेरी नेचर, मेरा स्वभाव... हो सकता है? अगर अब तक मिटा रहे हो और पास्ट की नेचर इमर्ज हो जाती है तो समझना चाहिए इस समय मैं ब्राह्मण नहीं हूँ, क्षत्रिय हूँ, युद्ध कर रहा हूँ मिटाने की। तो क्या कभी ब्राह्मण, कभी क्षत्रिय बन जाते हो? कहलाते क्या हो? क्षत्रिय कुमार या ब्रह्माकुमार? कौन हो? क्षत्रिय कुमार हो क्या? ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारियां। दूसरा नाम तो है ही नहीं। कोई को ऐसे बुलाते हो क्या कि हे क्षत्रिय कुमार आओ? ऐसा बोलते हो या अपने को कहते हो कि मैं ब्रह्माकुमार नहीं हूँ, मैं क्षत्रिय कुमार हूँ? तो ब्राह्मण अर्थात् जो ब्रह्मा बाप की नेचर वह ब्राह्मणों की नेचर। यह शब्द अभी कभी नहीं बोलना, गलती से भी नहीं बोलना, न सोचना, क्या करूं मेरी नेचर है! यह बहानेबाजी है। यह कहना भी अपने को छुड़ाने का बहाना है। नया जन्म हुआ, नये जन्म में पुरानी नेचर, पुराना स्वभाव कहाँ से इमर्ज होता है? तो पूरे मरे नहीं हैं, थोड़ा जिंदा हैं, थोड़ा मरे हैं क्या? ब्राह्मण जीवन अर्थात् जो ब्रह्मा बाप का हर कदम है वह ब्राह्मणों का कदम हो।
तो बापदादा भाग्य को भी देख रहे हैं और इतना श्रेष्ठ भाग्य, उस भाग्य के आगे यह बोल अच्छा नहीं होता। इस बारी मुक्ति वर्ष मना रहे हो ना - क्या क्लास कराते हो? मुक्ति वर्ष है। तो मुक्ति वर्ष है या 99 में आना है? 98 का वर्ष मुक्ति वर्ष है? जो समझते हैं यही वर्ष मुक्ति वर्ष है, वह हाथ हिलाओ। देखो हाथ हिलाना बहुत सहज है। होता क्या है? वायुमण्डल में बैठे हो ना, खुशी में झूम रहे हो, तो हाथ हिला देते हो, लेकिन दिल से हाथ हिलाओ, प्रतिज्ञा करो - कुछ भी चला जाए लेकिन प्रतिज्ञा मुक्ति वर्ष की न जाए। ऐसी पक्की प्रतिज्ञा है? देखो सम्भालके हाथ उठाओ। इस टी.वी. में आवे या न आवे, बापदादा के पास तो आपका चित्र निकल रहा है। तो ऐसे-ऐसे कमजोर बोल से भी मुक्ति। बोल ऐसे मधुर हो, बाप समान हो, सदा हर आत्मा के प्रति शुभ भावना के बोल हों, इसको कहा जाता है युक्तियुक्त बोल। साधारण बोल भी चलते-फिरते होना नहीं चाहिए। कोई भी अचानक आ जाए तो ऐसा ही अनुभव करे कि यह बोल हैं या मोती हैं। शुभ भावना के बोल हीरे मोती समान हैं क्योंकि बापदादा ने कई बार यह इशारा दे दिया है कि समय प्रमाण अभी थोड़ा सा समय है सर्व खज़ाने जमा करने का। अगर इस समय में - समय का खज़ाना, संकल्प का खज़ाना, बोल का खज़ाना, ज्ञान धन का खज़ाना, योग की शक्तियों का खज़ाना, दिव्य जीवन के सर्व गुणों का खज़ाना जमा नहीं किया तो फिर ऐसा जमा करने का समय मिलना सहज नहीं होगा। सारे दिन में अपने इन एक-एक खज़ाने का एकाउण्ट चेक करो। जैसे स्थूल धन का एकाउण्ट चेक करते हो ना, इतना जमा है.. ऐसे हर खज़ाने का एकाउण्ट जमा करो। चेक करो। सर्व खज़ाने चाहिए। अगर पास विद आनर बनने चाहते हो तो हर खज़ाने का जमा खाता इतना ही भरपूर चाहिए जो 21 जन्म जमा हुए खाते से प्रालब्ध भोग सको। अभी समय के टू लेट की घण्टी नहीं बजी है, लेकिन बजने वाली है। दिन और डेट नहीं बतायेंगे। अचानक ही आउट होगा - टू लेट। फिर क्या करेंगे? उस समय जमा करेंगे? कितना भी चाहो समय नहीं मिलेगा। इसलिए बापदादा कई बार इशारा दे रहा है - जमा करो-जमा करो-जमा करो। क्योंकि आपका अभी भी टाइटिल है - सर्वशक्तिमान, शक्तिवान नहीं है, सर्वशक्तिमान। भविष्य में भी है सर्वगुण सम्पन्न, सिर्फ गुण सम्पन्न नहीं है। यह खज़ाने जमा करना अर्थात् गुण और शक्तियां जमा हो रही हैं। एक एक खज़ाने का गुण और शक्ति से सम्बन्ध है। जैसे साधारण बोल नहीं तो मधुर भाषी, यह गुण है। ऐसे हर एक खज़ाने का कनेक्शन है।
बापदादा का बच्चों से प्यार है इसलिए फिर भी बार-बार इशारा दे रहे हैं क्योंकि आज की सभा में सब वैरायटी हैं। छोटे बच्चे भी हैं, टीचर्स भी हैं क्योंकि टीचर्स ही तो समर्पण हुई हैं। कुमारियां भी हैं, प्रवृत्ति वाले भी हैं। सब वैरायटी हैं। अच्छा है। सभी को चांस दिया है, यह बहुत अच्छा है। बच्चों की तो काफी समय से अर्जी थी। थी ना बच्चे? हमको मिलने का चांस कब मिलेगा? तो अच्छा हुआ - सर्व वैरायटी का गुलदस्ता बाप के सामने है। तो बच्चे हाथ उठाओ।
बच्चों से तो बड़ों का प्यार होता ही है। तो बाप से भी बच्चों का प्यार है और सभी बच्चे आज के ब्राह्मण हैं कल के क्या बनेंगे? बोलो बच्चे, कल क्या बनेंगे? (देवता बनेंगे) अच्छा, कौन सा देवता बनेंगे, पता है? बच्चों में से कोई देवी नहीं बनेगा, सब देवता बनेंगे? अच्छा है, बच्चों से रौनक होती है। तो आपकी रौनक को देख यह सभी खुश हो रहे हैं, वाह बच्चे वाह! लेकिन एक बात याद रखना - बच्चे, ब्राह्मण आत्मायें बच्चे, तो जो बड़ों का भाग्य है ना वह बच्चों का भी भाग्य है इसलिए बाप के साथ को कभी नहीं भूलना। चाहे कितना भी माया की अट्रैक्शन हो लेकिन बाप को नहीं भूलना। अच्छा सभी बच्चे रोज़ क्लास में जाते हैं या सण्डे-सण्डे जाते हैं? (रोज़ क्लास में जाने वालों ने हाथ उठाया) यह रोज़ जाने वाले हैं। बहुत हैं। अच्छा - टी.वी. देखते हो? सभी हँसते हैं। देखो, अगर अच्छी बातें देखते हो तो ठीक है लेकिन बुरी बातें भी देखते हो तो ठीक नहीं है। आज बुरी बातें न देखने का संकल्प कर लो कि हम कभी अगर टी.वी. देख भी रहे हैं और कोई बुरी बात आ जाती है तो बन्द कर देंगे। कर सकते हो? जो बुरी बातें टी.वी. में नहीं देखते हैं वह हाथ उठाओ। बहुत कम हैं। बच्चों का टीचर कौन है? तो सभी टीचर्स बच्चों का चार्ट देखना। सभी बच्चे मुक्ति वर्ष मनायेंगे? सच्ची दिल से हाथ उठाओ। अच्छा। देखो दादियों ने आपको चांस दिया है तो दादियों को शुक्रिया किया? किया या नहीं? चलो किया तो बहुत अच्छा लेकिन कल दादियों को प्यार से शुक्रिया करना और दादियों ने चांस दिया है ना तो यह प्रतिज्ञा करना कि हम भी मुक्ति वर्ष मनायेंगे। लड़ना नहीं, जोश नहीं करना, क्रोध नहीं करना। बापदादा जानते हैं - कई छोटे-छोटे बच्चे बड़ों से भी प्रतिज्ञा में आगे जाते हैं। तो सभी आगे जाकर दिखाना। अच्छा है बच्चों की महफिल भी अच्छी है। अच्छा।
दूसरा ग्रुप है कुमारियों का - कुमारियां बहुत हैं। (करीब 2000 कुमारियां आई हैं) अच्छा है कुमारियों ने हिम्मत रखी है। कुमारियों के लिए तो बापदादा सदा ही लक्की कुमारी जीवन कहते हैं। देखो कुमार कहते हैं कि कुमारी अगर टीचर बनती हैं, सेन्टर पर जाती हैं तो कुमारी जाते ही दीदी-दीदी कहलाती हैं और कुमार कितने भी पुराने हैं तो दादा-दादा कोई नहीं कहता। कुमारियों के लिए तो ट्रेनिंग होती है निकालें, और कुमार सेन्टर सम्भालने के लिए आफर करते हैं तो दादियाँ सोचती हैं। तो कुमारियों का भाग्य बहुत सहज बना हुआ है। कुमारी ने ट्रेनिंग की, योग्य बनी तो दहेज में सेन्टर मिल जाता है। तो कुमारी जीवन कितनी श्रेष्ठ है, कितने गोल्डन चांस हैं, वह सोचो। अगर अभी से सेवाधारी नहीं बनेंगे तो भविष्य में भी क्या बनेंगे? सेवाधारी किसे मिलेंगे? जो सेवा करेंगे उन्हें मिलेंगे। इसलिए कुमारियों को अपना फैसला जल्दी से जल्दी करना चाहिए। लेकिन बापदादा कुमारियों के लिए एक बात सदा कहते हैं - सच्ची सेवाधारी कुमारी वह है जो शक्ति रूप कुमारी है। अगर निमित्त सेवाधारी शक्तिशाली नहीं है तो औरों को शक्तिशाली नहीं बना सकती। अगर कुमारी शक्तिशाली नहीं है, कोमल है, एक होती है कोमल और दूसरी होती है किसी के प्रभाव में आने वाली। ज्ञान का प्रभाव डालने वाली नहीं लेकिन कोई के प्रभाव में प्रभावित होने वाली। कुमारियों में दादियों को सदा इसी एक बात का डर लगता है। निमित्त बनी बाप के ऊपर प्रभावित करने के लिए लेकिन स्वयं प्रभावित हो जाए तो क्या रिजल्ट निकलेगी? तो बापदादा कहते हैं कुमारियां हाँ तो करती हैं, हाँ जायेंगे, निकलेंगे लेकिन अभी समय के हिसाब से ऐसी कुमारियां चाहिए जो जिस सेन्टर पर जाएं उस सेवाकेन्द्र को निर्विघ्न बनाकर रखें। निर्विघ्न का सर्टिफिकेट स्वयं को भी देवें और साथियों से भी लेवें। तो ऐसी कुमारियां हो या थोड़ी सी वस्तु पर, कोई व्यक्ति पर प्रभावित होने वाली हो? क्या हो? क्या सोचती हो? बापदादा को ऐसी कुमारियां चाहिए जो निर्विघ्न कुमारी, विघ्न-विनाशक कुमारी, कमजोर को शक्तिशाली बनाने वाली कुमारी हो, ऐसे नहीं बापदादा वा दादियां हैण्डस करके भेजें और हैण्डस के बजाए मैं और हेडक (सरदर्द) बन जाएं। तो ऐसी कुमारियां नहीं चाहिए। तो क्या समझती हो? ऐसी कुमारियां तैयार हैं, हिम्मत है कि हम विघ्न-विनाशक बनकर रहेंगे? जो ऐसा बनेंगी वह हाथ उठाओ। दिल से उठा रही हो? संगठन में शर्म के मारे तो नहीं उठा रही हो? जो सेन्टर्स पर जाने के लिए तैयार हैं और ऐसा विघ्न-विनाशक बनेंगी, वही उठो बाकी बैठ जाओ। जो 18 वर्ष की आयु से ऊपर हैं और विघ्न-विनाशक होके सेन्टर पर जाने के लिए तैयार हैं, वह खड़े हो जाओ। यह सब विघ्न-विनाशक निमित्त सेवाधारी हैं? (हाँ जी) फोटो निकालो। अभी दादियों को यह कैसेट देना, फिर आप नोट करना - कौन-कौन हैं? मुबारक हो, मुबारक हो। कुमारियों को बापदादा भी मुबारक देते हैं लेकिन राइट हैण्ड बनना, लेफ्ट हैण्ड नहीं बनना। अच्छा।
तीसरा ग्रुप है - गीता पाठशाला वालों का- वह हाथ उठाओ। खड़े होकर हाथ हिलाओ। (करीब 4000 भाई-बहिन हैं) बहुत हैं। अच्छा - गीता पाठ- शाला के निमित्त बच्चों को भी बापदादा निमित्त सेवाधारी कहते हैं। अपनी प्रवृत्ति भी सम्भाल रहे हैं और अलौकिक सेवा के निमित्त भी बने हैं तो डबल काम कर रहे हैं। लेकिन गीता पाठशाला के निमित्त आत्माओं की विशेषता है सदा अपने को हर कार्य में ट्रस्टी समझकर चलना। क्योंकि बापदादा ने देखा कि गीता पाठशाला खोलने वाले भिन्न-भिन्न संकल्प से गीता पाठशाला खोलते हैं, कोई तो सच्चे दिल से सेवा प्रति गीता पाठशाला खोलते हैं वा चलाते हैं लेकिन कोई-कोई जब वृद्धि होती है तो कहाँ-कहाँ भावनाओं में भी मिक्स हो जाता है। तो बापदादा देखते हैं कि कोई-कोई गीता पाठशाला अपने परिवार की पालना अर्थ भी खोलते हैं, परिवार की पालना भी हो और निमित्त सेवा भी हो। तो गीता पाठशाला का अर्थ है ट्रस्टी बनके सेवा करना क्योंकि जो भी आत्मायें आती हैं वह बाप के स्नेह में आती हैं, इसलिए ट्रस्टी बनकर कारोबार चलाना बहुत आवश्यक है। एकदम नि:स्वार्थ सेवा की भावना वालों को कहेंगे सच्ची गीता पाठशाला। बाकी बापदादा मैजॉरिटी शुभ भावना से सेवा निमित्त चलाने वाली आत्माओं पर बहुत खुश हैं कि अपना समय सफल कर रहे हैं। डबल कार्य उसी शुद्ध भावना से सम्भाल रहे हैं। और कोई भावना मिक्स नहीं है, न नाम की, न लौकिक परिवार के पालना की। तो ऐसी शुद्ध भावना, सेवा की भावना वाली ट्रस्टी आत्माओं को बापदादा बहुत-बहुत-बहुत मुबारक देते हैं। अच्छे हैं और अच्छे ही रहेंगे। लेकिन चेक करना कोई भी और भावना मिक्स नहीं हो। सेवा की भावना के सिवाए और कोई भावना आने नहीं देना। बाकी सेवा करते हो अर्थात् अनेक आत्माओं का कल्याण करते हो। और देखा गया है, गीता पाठशाला वालों की विशेषता है कि प्रवृत्ति वालों को देख प्रवृत्ति वाले हिम्मत रखते हैं। सेन्टर पर फिर भी सोचते हैं कि पता नहीं हमको भी छोड़ना पड़ेगा लेकिन प्रवृत्ति में रहते सेवा के निमित्त बनने वाले बच्चों को देख और भी प्रवृत्ति वालों को हिम्मत, उमंग-उत्साह आता है। इसलिए बापदादा गीता पाठशाला वालों को भी बहुत-बहुत सेवा की मुबारक, यादप्यार दे रहे हैं। एक हाथ की ताली बजाओ। अच्छा।
चौथा ग्रुप - समर्पण वाली टीचर्स का है। अच्छा किया, हिम्मत रख अपने सेवा के निमित्त बनने को प्रत्यक्ष स्टेज पर लाया। और बाप के बनने की, हाथ में हाथ देने की सेरीमनी 5-6 साल पहले हो गई थी लेकिन अभी और हाथ में हाथ पक्का किया, जो छूट नहीं सके। इसलिए बापदादा समर्पण वाली टीचर्स को बधाई देते हैं कि सदा हाथ में हाथ, साथ में साथ पक्का करके विजय माला अपने गले में डालेंगी। अब जिस स्थान पर रहती हो उस स्थान को और स्वयं को निर्विघ्न बनाना। कोई विघ्न की रिपोर्ट नहीं आवे। स्व के पुरूषार्थ में भी विघ्न रूप नहीं बनना। कई बार बाहर से भले विघ्न नहीं भी हो लेकिन मन में तो आता है ना। तो न मन का विघ्न हो, न साथियों का विघ्न हो, न स्टूडेन्टस द्वारा कोई विघ्न हो। स्व निर्विघ्न, सेन्टर निर्विघ्न, साथी निर्विघ्न - यह तीन सर्टिफिकेट इस मुक्ति वर्ष में लेना है। मंजूर है? और विघ्न डालें तो क्या करेंगी? आप तो निर्विघ्न होंगी और कोई विघ्न डालने वाला हो, तो क्या करेंगी? विघ्न विनाशक बनेंगी? तो समर्पण समारोह माना सम्पूर्णता का समारोह। सिर्फ समर्पणता का समारोह याद नहीं करना, वह भी याद करना लेकिन समय प्रमाण अभी सम्पूर्णता का दिवस मनाना ही है, इतना दृढ़ निश्चय का कंगन बांधकर जाना। बापदादा सभी टीचर्स को कह रहे हैं, जो भी सभी टीचर्स हैं चाहे देश की, चाहे विदेश की वह हाथ उठाओ। अच्छा। आज विदेश भी बहुत है, वेलकम हो आने की विदेश के सेन्टर्स को। अच्छा –
बापदादा की टीचर्स के प्रति एक शुभ भावना है, सुनायें? सिर्फ सुनेंगी या करेंगी भी? सिर्फ सोचेंगी या स्वरूप बनेंगी? सुनेंगी, करेंगी.. अच्छा-बहुत छोटी सी शुभ भावना है। बड़ी बात भी नहीं है, बहुत छोटी है। दादी ने सन्देश भेजा कि अभी सभी सेन्टर्स निर्विघ्न हो जाएं उसकी रेसपान्सिबुल टीचर्स हैं। अभी तक टीचर्स की कम्पलेन्स आती हैं। दादियों के पास वह फाइल है ना। आफिस वाली ईशू कहती है सेन्टर्स से इतने फालतू लेटर्स आते हैं जो किचड़े का डिब्बा भर जाता है। ऐसे है ना? यह पढ़ने में भी टाइम लगता, फिर फाड़ने में भी टाइम लगता, फिर बाक्स में डालने में भी टाइम लगता, तो यह मेहनत फालतू हो गई ना। इसलिए बापदादा की शुभ भावना है कि सभी टीचर्स बाप के राइट हैण्डस हैं, लेफ्ट हैण्ड नहीं हैं, राइट हैण्ड हैं। राइट हैण्डस के स्थान से, सेन्टर्स से ऐसे समाचार आवें जो वेस्ट बाक्स ही भर जावे - तो ऐसा अच्छा है? बोलो हाँ या ना? जो समझते हैं इस वर्ष हम हर एक तीन सर्टिफिकेट लेंगे - स्व विघ्न-विनाशक, सेन्टर विघ्न-विनाशक और साथी विघ्न विनाशक। यह तीन सर्टिफिकेट लेने के लिए जो तैयार हैं वह टीचर्स हाथ उठाओ। जो सेन्टर पर पाण्डव रहते हैं, वह भी हाथ उठाओ। (सभी ने हाथ उठाया) थैंक्यू।
अभी वेस्ट पेपर बाक्स खाली रहेंगे। पढ़ना नहीं पड़ेगा। यह (ईशू) कहती है लेटर्स खोल-खोलकर हाथ थक जाता है। तो इसीलिए चाहे यहाँ बैठे हैं, चाहे विदेश में सुन रहे हैं, चाहे देश में सुन रहे हैं, चाहे मुरली सुनेंगे। लेकिन बापदादा की सारे विश्व की निमित्त टीचर्स के प्रति यह शुभ भावना है कि यह वर्ष कोई कम्पलेन्ट नहीं आनी चाहिए। कम्पलेन्ट के फाइल खत्म हो जाएं। बापदादा के पास भी बहुत फाइल हैं। तो इस वर्ष कम्पलेन्ट के फाइल खत्म। सब फाइन बन जाएं। फाइन से भी रिफाइन। पसन्द है ना? कोई कैसा भी हो उनके साथ चलने की विधि सीखो। कोई क्या भी करता हो, बार-बार विघ्न रूप बन सामने आता हो लेकिन यह विघ्नों में समय लगाना, आखिर यह भी कब तक? इसका भी समाप्ति समारोह तो होना है ना? तो दूसरे को नहीं देखना। यह ऐसे करता है, मुझे क्या करना है? अगर वह पहाड़ है तो मुझे किनारा करना है, पहाड़ नहीं हटना है। यह बदले तो हम बदलें - यह है पहाड़ हटे तो मैं आगे बढूं। न पहाड़ हटेगा न आप मंजिल पर पहुंच सकेंगे। इसलिए अगर उस आत्मा के प्रति शुभ भावना है, तो इशारा दिया और मन-बुद्धि से खाली। खुद अपने को उस विघ्न स्वरूप बनने वाले के सोच-विचार में नहीं डालो। जब नम्बरवार हैं तो नम्बरवार में स्टेज भी नम्बरवार होनी ही है लेकिन हमको नम्बरवन बनना है। ऐसे विघ्न वा व्यर्थ संकल्प चलाने वाली आत्माओं के प्रति स्वयं परिवर्तन होकर उनके प्रति शुभ भावना रखते चलो। टाइम थोड़ा लगता है, मेहनत थोड़ी लगती है लेकिन आखिर जो स्व-परिवर्तन करता है, विजय की माला उसी के गले में पड़ती है। शुभ भावना से अगर उसको परिवर्तन कर सकते हो तो करो, नहीं तो इशारा दो, अपनी रेसपान्सिबिल्टी खत्म कर दो और स्व परिवर्तन कर आगे उड़ते चलो। यह विघ्न रूप भी सोने का लगाव का धागा है। यह भी उड़ने नहीं देगा। यह बहुत महीन और बहुत सत्यता के पर्दे का धागा है। यही सोचते हैं यह तो सच्ची बात है ना। यह तो होता है ना। यह तो होना नहीं चाहिए ना। लेकिन कब तक देखते, कब तक रूकते रहेंगे? अब तो स्वयं को महीन धागों से भी मुक्त करो। मुक्ति वर्ष मनाओ। इसलिए बच्चों की जो आशायें हैं, उमंग है, उत्साह है, इसके सभी फंक्शन मनाकर बापदादा पूरे कर रहे हैं। लेकिन इस वर्ष का अन्तिम फंक्शन मुक्ति वर्ष का फंक्शन हो। फंक्शन में दादियों को सौगात भी देते हो। तो बापदादा को इस मुक्त वर्ष के फंक्शन में स्वयं के सम्पूर्णता की गिफ्ट देना। अच्छा।
महाराष्ट्र के सेवाधारियों से - यह रसम अच्छी बनाई है। अच्छा है, सेवा से सभी को ब्राह्मण परिवार के समीप आने का चांस मिलता है। निर्विघ्न सेवा हुई तो हाथ उठाओ। महाराष्ट्र के सेवाधारियों ने बेहद की सेवा की तो बेहद की दुआयें ली। आपके खाते में बेहद की दुआयें जमा हो गई। सबने सेवा का लाभ उठाया ना। सभी को अच्छा लगा ना। बहुत अच्छा। महाराष्ट्र के मुख्य सेवाधारी उठो। बापदादा सभी महाराष्ट्र के निमित्त सेवाधारियों को निर्विघ्न सेवाधारी की मुबारक देते हैं। अच्छा। सिक्युरिटी वालों को रोज़ दादियों से गुडमोर्निंग या गुडनाइट करनी चाहिए। उन्हों की सेवा ज्यादा है। अच्छा। सिक्युरिटी वालों ने निर्विघ्न अपना टर्न पूरा किया है, यह बहुत हिम्मत का काम है।
(डबल विदेशी कहते हैं एक मेला हम भी सम्भाल सकते हैं) कम से कम सभी विदेश का खाना तो खायेंगे। अच्छा है जो सेवा की आफर करते हैं उसको पहले ही इन-एडवांस आफरीन है।
डबल विदेशी विशेष आत्मायें पहुंच गई हैं और पहुंचते जायेंगे। बापदादा विदेश की चारों ओर की सेवा देख, उमंग-उत्साह देख हर्षित होते हैं क्योंकि जब विदेश सेवा आरम्भ हुई तो जो भी मुश्किल बातें लगती थी वह अभी इतनी सहज हो गई हैं जो सभी सेवा में उड़ते रहते हैं। पहले सोचते थे विदेश में बड़ा प्रोग्राम करें तो सुनने वालों से हाल भरना बहुत मुश्किल है। वी.आई.पी. की सेवा बहुत मुश्किल है। लेकिन अभी क्या कहते हैं? अभी तो यू.एन. तक भी पहुंच गये हैं। तो बहुत सहज हो गया है ना। बापदादा सदा कहते हैं कितने भी बड़े हों, उन्हों के पास पावर है, आपके पास परमात्म विल पावर है। परमात्मा ने पावर्स की विल की है, तो विल पावर है। तो परमात्म विल पावर के आगे पावर्स परिवार्तित होना कोई बड़ी बात नहीं है सिर्फ स्वयं में एक संकल्प हो - होना ही है। यह तो नहीं होगा, वह तो नहीं होगा, पता नहीं क्या होगा... यह परमात्म टचिंग उन्हों की बुद्धि में जाने से रूकावट बन जाती है। चाहे देश में, चाहे विदेश में - क्यों, कैसा, ऐसा तो नहीं, इस संकल्प से कभी भी कोई कार्य अर्थ सामने नहीं जाओ। क्यों, क्या, ऐसा, वैसा - यह पहले आपस में सोच के फाइनल करो, वह बात अलग है लेकिन जब सामने जाते हो तो सदा दृढ़ संकल्प से जाओ - होना ही है। आखिर तो सभी को झुकना ही है। तो विदेश भी सेवा में उड़ रहा है, भारत की सेवा और विदेश की सेवा दोनों उड़ती कला में हैं। अभी सेवा में सकाश दे, बुद्धियों को परिवर्तन करने की सेवा एड करो। फिर देखो सफलता आपके सामने स्वयं झुकेगी। ठीक है ना? विदेश में अनुभव है ना? अच्छा है। सेवाओं का समाचार बापदादा के पास पहुंचता है। विघ्न भी आते हैं, लेकिन आगे का पर्दा विघ्न का होता है, पर्दे के अन्दर कल्याण समाया हुआ दृश्य छिपा हुआ होता है। मन्सा-वाचा की शक्ति से विघ्न का पर्दा हटा दो तो अन्दर कल्याण का दृश्य दिखाई दे।
बाकी सभी विदेश के सेन्टर्स के बच्चे बहुत अच्छे-अच्छे कार्ड भी भेजते हैं, पत्र भी भेजते हैं, कोई आता है तो बहुत-बहुत यादप्यार भी भेजते हैं। बापदादा भी कार्ड को रिगार्ड देते हैं। दिल से भेजते हैं, दिखावे से नहीं भेजें। दिखावे से भेजना वह एकानामी होनी चाहिए और दिल से भेजते हैं तो उसका कोई मूल्य नहीं है। तो हर एक के साइन किये हुए बहुत कार्ड बापदादा के पास हर उत्सव के पहुंचते हैं। भारतवासियों के भी पहुंचते हैं। बापदादा सभी कार्डस और पत्रों का एक ही जवाब देते हैं - मुबारक हो, बधाईयां हो, सदा सफल रहो और औरों को भी सफलता स्वरूप बनाते उड़ो। चलो नहीं, उड़ो। अच्छा – जो दूर बैठे सुन रहे हैं उन्हों को भी बापदादा एक-एक देश को नाम सहित, हर एक सेवाकेन्द्र की विशेषता सहित सम्मुख वालों से भी पहले यादप्यार दे रहे हैं। साधन अच्छा निकाला है और भी निकलते रहेंगे। आगे चलकर देखेंगे भी। यह तो सेन्टर्स सुन रहे हैं, वह भी दिन आयेगा जो चारों ओर बाप का सन्देश सभी तरफ पहुंचेगा। साइन्स भी सब आपके लिए ही इन्वेन्शन कर रही है। इसीलिए बापदादा साइन्स के साधन निकालने वाले बच्चों को भी स्नेह से मुबारक देते हैं। दिमाग तो चलाते हैं। साइन्स वाले भी आयेंगे, आपकी अंचली लेंगे। फिर आपकी सेवा में भविष्य में आयेंगे। अच्छा।
बापदादा सभी सेवाकेन्द्रों में सेवा के लिए डायरेक्शन दे रहे हैं कि सितम्बर और अक्टूबर यह दो मास बड़े-बड़े प्रोग्राम करो। जितना भी आवाज़ फैला सकते हो, सभी कोनों में आवाज़ फैलाओ। कोई भी कोना रह नहीं जाये। बड़े-बड़े प्रोग्राम्स में भी लक्ष्य रखो, ऐसी कोई विधि बनाओ जो सिर्फ सुनके नहीं जायें लेकिन बनने की शुभ इच्छा लेकर जायें। कुछ अनुभव करके जायें। वर्तमान समय वायुमण्डल भी चारों ओर सहयोगी है इसलिए सफलता सहज प्राप्त होने का समय है। खूब आवाज़ फैलाओ और साथ-साथ जो छोटे-छोटे स्थान हैं, जिसमें बड़े फंक्शन करने की हिम्मत नहीं है, वहाँ छोटे-छोटे ग्रुप्स का चाहे 10-12 हो लेकिन योग शिविर के प्रोग्राम रखो। अगर स्थान नहीं है तो कोई साथ में स्थान ले सकते हो तो लो, अगर वह भी नहीं है तो एक दिन का भी शिविर रखो। अगर छुट्टी का एक दिन भी रखते हो और उन्हों को अनुभव अच्छा होता है तो वह आपेही दूसरे सण्डे को भी आफर करेंगे। देखा जाता है योग शिविर स्टूडेन्ट बनाता है। कांफ्रेंस और स्नेह मिलन, छोटे-छोटे स्नेह मिलन भी समीप लाते हैं लेकिन बड़े प्रोग्राम प्रभावित करते हैं। नाम बाला होता है। एडवरटाइज अच्छी हो जाती है। तो दोनों ही जरूरी हैं लेकिन छोटे स्थान और छोटे सेन्टर्स या तो छोटे-छोटे स्नेह मिलन करो वा योग शिविर का छोटा सा प्रोग्राम रखो।
उसके साथ बापदादा हर ब्राह्मण की स्व-उन्नति के प्रति जहाँ-जहाँ जब सहज मास निकल सकता है, मौसम के अनुसार, प्रबन्ध के अनुसार एक मास स्व-उन्नति, सर्व खज़ानों को जमा करने के अभ्यास की भट्ठी हो। एक मास स्व- उन्नति के लिए भी निकालना जरूरी है। उसमें कुछ नवीनता निकालो। जैसे अभी भट्ठियाँ होती रही हैं, वह भी अच्छी हैं लेकिन कुछ उसमें नवीनता एड करो। कुछ समय अन्तर्मुखता का मौन, मन का मौन भी हो। मुख का मौन तो दुनिया भी रखती है लेकिन यहाँ व्यर्थ संकल्प से मन का मौन होना चाहिए। जैसे ट्रैफिक कन्ट्रोल करते हो तो व्यर्थ की ट्रैफिक को कन्ट्रोल करते हो वैसे बीचबी च में एक दिन मन के व्यर्थ का ट्रैफिक कन्ट्रोल करो। ज्ञान के मनन के साथ शुभ भावना, शुभ कामना के संकल्प, सकाश देने का अभ्यास, यह मन के मौन का या ट्रैफिक कन्ट्रोल का बीच-बीच में दिन मुकरर करो। अगर किसको छुट्टी नहीं भी मिलती हो, एक दिन सप्ताह में तो छुट्टी मिलती है, उसी प्रमाण अपने- अपने स्थान के प्रोग्राम फिक्स करो। लेकिन एक मास विशेष एकान्तवासी और खज़ानों के एकानामी का प्रोग्राम अवश्य रखो। एकनामी और एकानामी। बाकी बापदादा अपने नियम प्रमाण नवम्बर से आरम्भ करेंगे। देखा गया कि रथ के दृढ़ संकल्प, हिम्मत और सम्भाल से यह वर्ष निर्विघ्न समाप्त हुआ है और हो जायेगा। तो अभी भी बच्ची का उमंग है, जब रथ तैयार है तो रथवान को आने में क्या है। हाँ बीच-बीच में रेस्ट का देखना। रथ को रेस्ट भी देना, ऐसा नहीं कि काम में ज्यादा लगा दो। अच्छा है रेस्ट के टाइम रेस्ट, सेवा के समय सेवा।
अमृतवेले जो मुख्य प्लैनिंग बुद्धि हैं उन्हों को बापदादा कार्य के निमित्त बनाता है, उन्हों को नई विधियां सेवा की टच होंगी, सिर्फ अपनी बुद्धि को बाप के हवाले करके बैठो। बुद्धिवानों की बुद्धि आपकी बुद्धि को टच करेंगे। यह प्लैनिंग बुद्धि वालों को वरदान मिलना ही है। निमित्त बनो। ठीक है ना पाण्डव। देखो सब प्लैनिंग बुद्धि वाले बैठे हैं, टीचर्स भी, विदेशी भी, भारत वाले भी तो क्या हो जायेगा? बहुत-बहुत अच्छा होगा। बाकी गर्मी और बरसात में छोटे-छोटे स्नेह मिलन कर सकते हो। शान्तिवन में भी, बापदादा ने पहले भी कहा था कि कईयों के मित्र सम्बन्धी, समीप वाले योग शिविर करने चाहते हैं तो उन्हों को थोड़ा सा हालों में कम संख्या करके और जो हर हाल में कमरे छोटे-छोटे बनाये हैं, जहाँ अभी टीचर्स रहती हैं वहाँ अगर कोई ऐसे वी.आई.पी. हैं तो उन कमरों में भी अलग में रख सकते हैं और बहुत बड़ा हाल है तो डबल कनात की पार्टीशन भी कर सकते हैं क्योंकि अभी सीजन तक तो बना नहीं सकते हैं लेकिन पीछे कुछ प्रबन्ध कर भी सकते हैं। और जो यहाँ अलग में एक बहनों का, एक भाईयों का भवन बनाया है, वहाँ भी अगर ब्राह्मण आत्मायें अपने को सेट कर सकें, तो विशेष वी.आई.पी. को इस वर्ष में सेट कर सकते हो। ऐसा कोई वी.आई.पी. स्पेशल है तो। बाकी ब्राह्मण तो अपने को एडजेस्ट भी कर सकते हैं और योग शिविर के ग्रुप तो साथी टीचर्स ही ले आती हैं। बाकी दूसरी सीजन में तो वी.आई.पी. के तैयार हो ही जायेंगे। जो ज़ोन अपने ज़ोन का रिफ्रेशर कोर्स शान्तिवन में करना चाहते हैं, उसको शान्तिवन का चांस मिल सकता है। यहाँ-वहाँ स्थान ढूंढने के बजाए चाहे संख्या कम भी हो फिर भी जो सुख-साधन यहाँ है वह बाहर नहीं मिल सकता। तो ज़ोन वालों को आफर है। अपना ग्रुप ले आवे और रिफ्रेश कर जाये क्योंकि यहाँ फिर भी दादियां तो मिलेंगी। वहाँ तो दादियाँ जावें नहीं जावें, यहाँ यह चांस मिल सकता है। और जो ग्रुप आफर करे, जैसे यूथ हैं या प्रवृत्ति वाले हैं, अगर 4-6 ज़ोन मिलके ग्रुप बना सकें तो बना सकते हैं क्योंकि ऊपर तो वर्ग की सेवा होगी लेकिन नीचे छोटे-छोटे ग्रुप के भी ऐसे प्रोग्राम कर सकते हो। शान्तिवन को बिजी रखो। जो चांस लेना चाहे वह ले सकते हैं। मित्र-सम्बन्धियों की सेवा दिल से कर सकते हैं। अच्छा।
चारों ओर के परमात्म पालना, पढ़ाई और श्रीमत के भाग्य के अधिकारी विशेष आत्माओं को, सदा सोचना और स्वरूप बनना दोनों समान करने वाले बाप समान आत्माओं को, सदा परमात्म विल पावर द्वारा स्वयं में और सेवा में सहज सफलता प्राप्त करने वाले निमित्त सेवाधारी बच्चों को, सदा बाप को कम्बाइन्ड रूप में अनुभव करने वाले, सदा साथ निभाने वाले साथी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। अच्छा –
सभी ठीक रहे हुए हैं, कोई तकलीफ हुई है? तकलीफ नहीं हुई ना? खुश हैं? बच्चे खुश हैं? बहुत खुश हैं, नाच रहे हैं बच्चे। कुमारियां खुश हैं? कुमारियां भी मौज में हैं। टीचर्स सबसे खुश हैं और पाण्डव खुशी में उड़ रहे हैं, बहुत अच्छा।
दादियों से:- बच्चे कहते हैं जी बाबा, तो बाप भी कहते हैं जी बच्चे। बाप और बच्चों का यही तो स्नेह का धागा है।
जगदीश भाई से - तबियत अच्छी है। अभी बहुत काम करना है। अभी पाण्डवों को मिलकर कोई नये प्लैन बनाने हैं। नवीनता के निमित्त बनना है। आदि से कोई न कोई कार्य के लिए निमित्त बनते आये हैं, सभी की विशेषता है इसलिए अभी भी और टचिंग होती रहेगी। अच्छा है दिल्ली में भी धूम मचानी है। दिल्ली का सेवाधारी पाण्डव पहला निमित्त बने हुए हो। दिल्ली से नाम बाला होगा ना। सभी के सकाश से दिल्ली से नाम बाला तो करना ही है। कोई ऐसे प्लैन बनाओ, बाम्बे, दिल्ली नई इन्वेन्शन्स निकालो। मधुबन में तो सेवायें ड्रामानुसार बढ़ती ही जाती हैं और बढ़ती जानी हैं। यह विंग्स का सेवा का प्लैन भी अच्छा चल रहा है और चलता रहेगा। जो निमित्त बनता है उसको सेवा की सफलता का शेयर मिल जाता है। इसलिए निमित्त बनते जाओ और शेयर्स जमा करते जाओ। अच्छा है जो भी चारों ओर निमित्त बनते हैं उन्हों को एक्स्ट्रा लिफ्ट मिल जाती है। स्व का पुरूषार्थ तो है लेकिन यह गिफ्ट में लिफ्ट मिलती है। विदेश वालों को भी सेवा की गिफ्ट मिलती रहती है। भारत वाले विदेश को भी सकाश दे रहे हैं। तो अच्छा है, अच्छे-अच्छे पाण्डव भी हैं, अच्छी-अच्छी शक्तियां भी हैं। सेना बहुत अच्छी सुन्दर है। बापदादा तो हर एक की विशेषता की दिल में महिमा करते रहते हैं। ऐसे है ना?
24-02-98 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
बाप से, सेवा से और परिवार से मुहब्बत रखो तो मेहनत से छुट जायेंगे
आज चारों ओर के बच्चे अपने बाप की जयन्ती मनाने के लिए आये हैं। चाहे सम्मुख बैठे हैं, चाहे आकारी रूप में बाप के सामने हैं। बाप सभी बच्चों को देख रहे हैं - एक तरफ मिलन मनाने की खुशी है दूसरे तरफ सेवा का उमंग-उत्साह है कि जल्दी से जल्दी बापदादा को प्रत्यक्ष करें। बापदादा चारों ओर के बच्चों को देखते हुए अरब-खरब गुणा मुबारक दे रहे हैं। जैसे बच्चे बाप की जयन्ती मनाने के लिए कोने-कोने से, दूर-दूर से आये हैं, बापदादा भी बच्चों का जन्म दिन मनाने आये हैं। सबसे दूर देश वाले कौन? बाप या आप? आप कहेंगे - हम बहुत दूर से आये हैं लेकिन बाप कहते हैं मैं आपसे भी दूरदेश से आया हूँ। लेकिन आपको समय लगता है, बाप को समय नहीं लगता है। आप सबको प्लैन या ट्रेन लेनी पड़ती है, बाप को सिर्फ रथ लेना पड़ता है। तो ऐसे नहीं कि सिर्फ आप बाप का मनाने आये हैं लेकिन बाप भी आदि साथी ब्राह्मण आत्मायें, जन्म के साथी बच्चों का बर्थ डे मनाने आये हैं क्योंकि बाप अकेला अवतरित नहीं होते लेकिन ब्रह्मा ब्राह्मण बच्चों के साथ दिव्य जन्म लेते अर्थात् अवतरित होते हैं। सिवाए ब्राह्मणों के यज्ञ की रचना अकेला बाप नहीं कर सकता। तो यज्ञ रचा, ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचे तब आप सब पैदा हुए हैं। तो चाहे दो वर्ष वाले हो, दो मास वाले हो लेकिन आप सभी को भी दिव्य ब्राह्मण जन्म की मुबारक है। कितना यह दिव्य जन्म श्रेष्ठ है। बाप भी हर एक दिव्य जन्मधारी ब्राह्मण आत्माओं के भाग्य का सितारा चमकता हुआ देख हर्षित होते हैं। और सदा यही गीत गाते रहते -’’वाह हीरे तुल्य जीवन वाले ब्राह्मण बच्चे वाह''। वाह-वाह हो ना? बाप ने वाह-वाह बच्चे बना दिया। यह अलौकिक जन्म बाप का भी न्यारा है तो आप बच्चों का भी न्यारा और प्यारा है। यह एक ही बाप है जिसका ऐसा जन्म वा जयन्ती है जो और किसी का भी ऐसे जन्म दिन न हुआ है, न होना है। निराकार और फिर दिव्य जन्म; और सभी आत्माओं का जन्म अपने-अपने साकार शरीर में होता है लेकिन निराकार बाप का जन्म परकाया प्रवेश से होता है। सारे कल्प में ऐसा इस विधि से किसका जन्म हुआ है? एक ही बाप का ऐसा न्यारा जन्म दिन होता है जिसको शिव जयन्ती के रूप में भगत भी मनाते आते हैं। इसलिए इस दिव्य जन्म के महत्व को आप जानते हो, भगत भी जानते नहीं हैं लेकिन जो सुना है उसी प्रमाण ऊंचे ते ऊंचा समझते हुए मनाते आते हैं। आप बच्चे सिर्फ मनाते नहीं हो लेकिन मनाने के साथ स्वयं को बाप समान बनाते भी हो। अलौकिक दिव्य जन्म के महत्व को जानते हो। और किसी भी बाप के साथ बच्चे का, साथ-साथ जन्म नहीं होता लेकिन शिव जयन्ती अर्थात् बाप के दिव्य जन्म के साथ बच्चों का भी जन्म है, इसलिए डायमण्ड जुबली मनाई ना। तो बाप के साथ बच्चों का भी दिव्य जन्म है। सिर्फ इसी जयन्ती को हीरे तुल्य जयन्ती कहते हो लेकिन हीरे तुल्य जयन्ती मनाते स्वयं भी हीरे तुल्य जीवन में आ जाते हो। इस रहस्य को सभी बच्चे अच्छी तरह से जानते भी हो और औरों को भी सुनाते रहते हो। बापदादा समाचार सुनते रहते हैं, देखते भी हैं कि बच्चे बाप के दिव्य जन्म का महत्व कितना उमंग-उत्साह से मनाते रहते हैं। बापदादा चारों ओर के सेवाधारी बच्चों को हिम्मत के रिटर्न में मदद देते रहते हैं। बच्चों की हिम्मत और बाप की मदद है।
आजकल बापदादा के पास सभी बच्चों का एक ही स्नेह का संकल्प बारबार आता है कि अब बाप समान जल्दी से जल्दी बनना ही है। बाप भी कहते हैं हे मीठे बच्चे बनना ही है। हर एक को यह दृढ़ निश्चय है और भी अन्डरलाइन कर दो कि हम नहीं बनेंगे तो और कौन बनेगा। हम ही थे, हम ही हैं और हम ही हर कल्प में बनते रहेंगे। यह पक्का निश्चय है ना?
डबल विदेशी भी शिव जयन्ती मनाने आये हैं? अच्छा है, हाथ उठाओ डबल विदेशी। बापदादा देख रहे हैं कि डबल विदेशियों को सबसे ज्यादा यही उमंग-उत्साह है कि कोई भी विश्व का कोना रह नहीं जाये। भारत को तो काफी समय सेवा के लिए मिला है और भारत ने भी गांव-गांव में सन्देश दिया है। लेकिन डबल विदेशियों को भारत से सेवा का समय कम मिला है। फिर भी उमंग-उत्साह के कारण बापदादा के सामने सेवा का सबूत अच्छा लाया है और लाते रहेंगे। भारत में जो वर्तमान समय वर्गीकरण की सेवायें आरम्भ हुई हैं, उसके कारण भी सभी वर्गो को सन्देश मिलना सहज हो गया है क्योंकि हर एक वर्ग अपने वर्ग में आगे बढ़ना चाहते हैं तो यह वर्गीकरण की इन्वेन्शन अच्छी है। इससे भारत की सेवा में भी विशेष आत्माओं का आना अच्छी रौनक लग जाती है। अच्छा लगता है ना! वर्गीकरण की सेवा अच्छी लगती है? विदेश वाले भी अपने अच्छे-अच्छे ग्रुप ले आते हैं, रिट्रीट कराते हैं, तरीका अच्छा रखा है। जैसे भारत में वर्गीकरण से सेवा में चांस मिला है, वैसे इन्हों की भी यह विधि बहुत अच्छी है। बापदादा को दोनों तरफ की सेवा पसन्द है, अच्छा है। जगदीश बच्चे ने इन्वेन्शन अच्छी निकाली है और विदेश में यह रिट्रीट, डायलॉग किसने शुरू किया? (सभी ने मिलजुलकर किया) भारत में भी मिलजुलकर तो किया है फिर भी निमित्त बने हैं। अच्छा है हर एक को अपने हमजिन्स के संगठन में अच्छा लगता है। तो दोनों तरफ की सेवा में अनेक आत्माओं को समीप लाने का चांस मिलता है। रिजल्ट अच्छी लगती है ना? रिट्रीट की रिजल्ट अच्छी रही? और वर्गीकरण की भी रिजल्ट अच्छी है, देश-विदेश कोई न कोई नई इन्वेन्शन करते रहते हैं और करते रहेंगे। चाहे भारत में, चाहे विदेश में सेवा का उमंग अच्छा है। बापदादा देखते हैं जो सच्ची दिल से नि:स्वार्थ सेवा में आगे बढ़ते जाते हैं, उन्हों के खाते में पुण्य का खाता बहुत अच्छा जमा होता जाता है। कई बच्चों का एक है अपने पुरूषार्थ के प्रालब्ध का खाता, दूसरा है सन्तुष्ट रह सन्तुष्ट करने से दुआओं का खाता और तीसरा है यथार्थ योगयुक्त, युक्तियुक्त सेवा के रिटर्न में पुण्य का खाता जमा होता है। यह तीनों खाते बापदादा हर एक का देखते रहते हैं। अगर कोई का तीनों खाते में जमा होता है तो उसकी निशानी है - वह सदा सहज पुरुषार्थी अपने को भी अनुभव करते हैं और दूसरों को भी उस आत्मा से सहज पुरूषार्थ की स्वत: ही प्रेरणा मिलती है। वह सहज पुरूषार्थ का सिम्बल है। मेहनत नहीं करनी पड़ती, बाप से, सेवा से और सर्व परिवार से मुहब्बत है तो यह तीनों प्रकार की मुहब्बत मेहनत से छुड़ा देती है।
बापदादा सभी बच्चों से यही श्रेष्ठ आशा रखते हैं कि सभी बच्चे सहज पुरुषार्थी सदा रहो। 63 जन्म भक्ति में, उलझनों में भटकने की मेहनत की है, अब यह एक ही जन्म है मेहनत से छूटने का। अगर बहुतकाल से मेहनत करते रहेंगे तो यह संगमयुग का वरदान मुहब्बत से सहज पुरुषार्थी का कब लेंगे? युग समाप्त, वरदान भी समाप्त। तो सदा इस वरदान को जल्दी से जल्दी ले लो। कोई भी बड़े ते बड़ा कार्य हो, कोई भी बड़े ते बड़ी समस्या हो लेकिन हर कार्य, हर समस्या ऐसे पार हो जैसे आप लोग कहते हो माखन से बाल निकल गया। कई बच्चों का थोड़ा-थोड़ा बापदादा खेल देखते हैं, हर्षित भी होते हैं और बच्चों को देखकर रहम भी आता है। जब कोई समस्या या कोई बड़ा कार्य भी सामने आता है तो कभी-कभी बच्चों के चेहरे पर थोड़ा सा समस्या वा कार्य की लहर दिखाई देती है। थोड़ा सा चेहरा बदल जाता है। फिर अगर कोई कहता है क्या हुआ? तो कहते हैं काम ही बहुत है ना! विघ्न-विनाशक के आगे विघ्न न आवे तो विघ्न-विनाशक टाइटल कैसे गाया जायेगा? थोड़ा सा चेहरे पर थकावट या थोड़ा सा मूड बदलने के चिन्ह नहीं आने चाहिए। क्यों? आपके जड़ चित्र जो आधाकल्प पूजे जायेंगे उसमें कभी थोड़ा सा भी थकावट या मूड बदलने के चिन्ह दिखाई देते हैं क्या? जब आपके जड़ चित्र सदा मुस्कुराते रहते हैं तो वह किसके चित्र हैं? आपके ही हैं ना? तो चैतन्य का ही यादगार चित्र है इसलिए थोड़ा सा भी थकावट वा जिसको कहते हो चिड़चिड़ापन, वह नहीं आना चाहिए। सदा मुस्कुराता चेहरा बापदादा को और सभी को भी पसन्द आता है। अगर कोई चिड़चिड़ेपन में है तो उसके आगे जायेंगे? सोचेंगे अभी कहें या नहीं कहें। तो आपके जड़ चित्रों के पास तो भगत बहुत उमंग से आते हैं और चैतन्य में कोई भारी हो जाए तो अच्छा लगता है? अभी बापदादा सभी बच्चों के चेहरे पर सदा फरिश्ता रूप, वरदानी रूप, दाता रूप, रहमदिल, अथक, सहज योगी वा सहज पुरुषार्थी का रूप देखने चाहते हैं। यह नहीं कहो बात ही ऐसी थी ना। कैसी भी बात हो लेकिन रूप मुस्कुराता हुआ, शीतल, गम्भीर और रमणीकता दोनों के बैलेन्स का हो। कोई भी अचानक आ जाए और आप समस्या के कारण वा कार्य के कारण सहज पुरुषार्थी रूप में नहीं हो तो वह क्या देखेगा? आपका चित्र तो वही ले जायेगा। कोई भी समय, कोई भी किसी को भी चाहे एक मास का हो, दो मास का हो, अचानक भी आपके फेस का चित्र निकाले तो ऐसा ही चित्र हो जो सुनाया। दाता बनो। लेवता नहीं, दाता। कोई कुछ भी दे, अच्छा दे वा बुरा भी दे लेकिन आप बड़े ते बड़े बाप के बच्चे बड़ी दिल वाले हो अगर बुरा भी दे दिया तो बड़ी दिल से बुरे को अपने में स्वीकार न कर दाता बन आप उसको सहयोग दो, स्नेह दो, शक्ति दो। कोई न कोई गुण अपने स्थिति द्वारा गिफ्ट में दे दो। इतनी बड़ी दिल वाले बड़े ते बड़े बाप के बच्चे हो। रहम करो। दिल में उस आत्मा के प्रति और एकस्ट्रा स्नेह इमर्ज करो। जिस स्नेह की शक्ति से वह स्वयं परिवार्तित हो जाए। ऐसे बड़ी दिल वाले हो या छोटी दिल है? समाने की शक्ति है? समा लो। सागर में कितना किचड़ा डालते हैं, डालने वाले को, वह किचड़े के बदले किचड़ा नहीं देता। आप तो ज्ञान के सागर, शक्तियों के सागर के बच्चे हो, मास्टर हो।
तो सुना बापदादा क्या देखने चाहते हैं? मैजारिटी बच्चों ने लक्ष्य रखा है कि इस वर्ष में परिवर्तन करना ही है। करेंगे, सोचेंगे नहीं, करना ही है। करना ही है या वहाँ जाकर सोचेंगे? जो समझते हैं करना ही है वह एक हाथ की ताली बजाओ। (सभी ने हाथ हिलाया) बहुत अच्छा। सिर्फ यह हाथ नहीं उठाना, मन से दृढ़ संकल्प का हाथ उठाना। यह हाथ तो सहज है। मन से दृढ़ संकल्प का हाथ सदा सफलता स्वरूप बनाता है। जो सोचा वह होना ही है। सोचेंगे तो पॉजिटिव ना! नेगेटिव तो सोचना नहीं है। नेगेटिव सोचने का सदा के लिए रास्ता बन्द। बन्द करना आता है या खुल जाता है? जैसे अभी तूफान लगा ना तो दरवाजे आपेही खुल गये, ऐसे तो नहीं होता? आप समझते हो बन्द करके आ गये, लेकिन तूफान खोल दे, ऐसा ढीला नहीं करना। अच्छा।
डबल विदेशियों का उत्सव अच्छा हुआ ना! (10 वर्षो से अधिक समय से ज्ञान में चलने वाले करीब 400 डबल विदेशी भाई-बहिनों का सम्मान समारोह मनाया गया) अच्छा लगा? जिसने मनाया और अच्छा लगा वह हाथ उठाओ। पाण्डव भी हैं। इसका महत्व क्या है? मनाने का महत्व क्या है? मनाना अर्थात् बनना। सदा ऐसे ताजधारी, स्व पुरूषार्थ और सेवा की जिम्मेवारी क्या कहें, मौज ही कहें, सेवा के मौज मनाने का ताज सदा ही पड़ा रहे। और गोल्डन चुन्नी भी सभी ने पहनी ना! तो गोल्डन चुन्नी किसलिए पहनाई? सदा गोल्डन एजेड स्थिति, सिल्वर नहीं, गोल्डन। और फिर दो-दो हार भी पहने थे। तो दो हार कौन से पहनेंगे? एक तो सदा बाप के गले का हार। सदा, कभी गले से निकालना नहीं, गले में ही पिरोये रहें और दूसरा सदा सेवा द्वारा औरों को भी बाप के गले का हार बनाना, यह डबल हार है। तो बहुत अच्छा मनाने वाले को भी लगा और देखने वाले को भी लगा। तो इस उत्सव मनाने का, सदा के उत्सव का रहस्य बताया। और साथ-साथ यह भी मनाना अर्थात् और उमंग-उत्साह बढ़ाना। सभी के अनुभव बापदादा ने तो देख लिए। अच्छे अनुभव रहे। खुशी और नशा सभी के चेहरों में दिखाई दे रहा था। बस ऐसा ही अपना शक्ति- शाली, मुस्कुराता हुआ रमणीक और गम्भीर स्वरूप सदा इमर्ज रखते चलो क्योंकि आजकल के समय के हालतों के प्रमाण ज्यादा सुनने वाले, समझने वाले कम हैं, देखकर अनुभव करने वाले ज्यादा हैं। आपकी सूरत में बाप का परिचय, सुनाने के बजाए दिखाई दे। तो अच्छा किया। बापदादा भी देख-देख हर्षित हो रहे हैं। इस वर्ष को वा इस सीजन को विशेष उत्सव की सीजन मनाई है। हर समय एक जैसा नहीं होता है।
(ड्रिल) सभी में रूलिंग पावर है? कर्मेन्द्रियों के ऊपर जब चाहो तब रूल कर सकते हो? स्व-राज्य अधिकारी बने हो? जो स्व-राज्य अधिकारी हैं वही विश्व के राज्य अधिकारी बनेंगे। जब चाहो, कैसा भी वातावरण हो लेकिन अगर मन-बुद्धि को ऑर्डर दो स्टाप, तो हो सकता है या टाइम लगेगा? यह अभ्यास हर एक को सारे दिन में बीच-बीच में करना आवश्यक है। और कोशिश करो जिस समय मन-बुद्धि बहुत व्यस्त है, ऐसे समय पर भी अगर एक सेकण्ड के लिए स्टाप करने चाहो तो हो सकता है? तो सोचो स्टाप और स्टाप होने में 3 मिनट, 5 मिनट लग जाएं, यह अभ्यास अन्त में बहुत काम में आयेगा। इसी आधार पर पास विद आनर बन सकेंगे। अच्छा।
सदा दिल के उमंग-उत्साह का उत्सव मनाने वाले स्नेही आत्मायें, सदा हीरे तुल्य जीवन का अनुभव करने वाले, अनुभव के अथॉरिटी वाले विशेष आत्मायें, सदा अपने सूरत से बाप का परिचय देने वाले बाप को प्रत्यक्ष करने वाले सेवाधारी आत्मायें, सदा गम्भीर और रमणीक दोनों का साथ में बैलेन्स रखने वाले सबके ब्लैसिंग के अधिकारी आत्मायें, ऐसे चारों ओर के देश-विदेश के बच्चों को शिव रात्रि की मुबारक, मुबारक हो। साथ-साथ बापदादा का दिलाराम का दिल व जान सिक व प्रेम से यादप्यार और नमस्ते।
दादियों से
सदा एक जैसा खेल अच्छा भी नहीं लगता है। चेंज होना चाहिए। तो ड्रामा के खेल में भिन्न-भिन्न खेल दिखाई देते रहते हैं। अच्छा है। सभी संकल्प पूरे होते जाते हैं ना। जितना न्यारे और प्यारे बन संकल्प करते हैं तो वह सभी संकल्प पूरे हो जाते हैं। ब्राह्मणों का हर एक संकल्प सफलता के बीज से सम्पन्न होता है। जब बीज ही सफलता का है तो फल सफलता का ही निकलता है।
कर्नाटक की टीचर्स से:- बहुत अच्छा सेवा का पार्ट मिला। सेवा करना अर्थात् अपने एकाउन्ट में दुआयें इकट्ठी करना। तो दुआयें बहुत इकट्ठी की ना। अच्छा किया। जो पार्ट अच्छा बजाते हैं उनकी ड्रामा में नूंध हो जाती है। दीदी दादियों के पास भी नाम नोट हो जाता है और बार-बार निमन्त्रण मिलता है। तो आपने सेवा की अर्थात् बार-बार अपना नाम नोट करा दिया। कितनी आत्माओं से सम्बन्ध-सम्पर्क हुआ, अपनी फैमिली को देखा, मनाया। और आगे भी सेवा में सदा एवररेडी रहने का पार्ट मिला। पार्ट अच्छा लगा? बहुत अच्छा। कर्नाटक में संख्या तो बहुत है और एक हजार को चांस मिला, यह भी भाग्य है। सेवा मिलना भाग्य की निशानी है। तो आप सभी ने अपने भाग्य की लकीर, बार-बार आने की खींच ली। जब आर्डर मिलेगा आ सकते हो। अच्छा है।
(बापदादा ने डायमण्ड हाल की विशाल स्टेज पर खड़े होकर अपने हस्तों से झण्डा फहराया तथा सभी बच्चों को शिव जयन्ती की बधाई दी)
सभी को स्नेह से बाप का झण्डा लहराने की बहुत-बहुत मुबारक हो, बापदादा देख रहे हैं कि सभी के दिल में बाप का झण्डा लहरा रहा है। हर एक के दिल में बाप है और बाप की दिल में हर एक बच्चा है। आप से पूछे कोई आप कहाँ रहते हो? तो क्या कहेंगे? भगवान की दिल में रहने वाले। सभी बाप की दिल में रहने वाले हो, उन्हों के दिल में क्या है? बाप के नाम का झण्डा। यह तो यादगार झण्डा है लेकिन बाप के नाम का झण्डा जल्दी से जल्दी विश्व में लहरायेगा। वह भी दिन दूर नहीं है। अवश्य चाहे अंजान बच्चे हैं, चाहे जानने वाले बच्चे हैं, सभी को बाप का परिचय मिलना ही है। और सबके मुख से आ गया, बाप आ गया, यह आवाज़ निकलना ही है। उसके लिए सभी तैयारी कर रहे हैं। और निश्चित है, होना ही है। होना ही है। होना ही है। ओम् शान्ति।
13-03-98 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
होली शब्द के अर्थ स्वरूप में स्थित होअना अर्थात् बाप समान बनना
आज बापदादा अपने होलीएस्ट, हाइएस्ट और रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड बच्चों को चारों तरफ देख रहे हैं। चाहे साकार में सम्मुख हैं, चाहे दूर बैठे दिल से समीप हैं - चारों ओर के बच्चों को देख हर्षित होते रहते हैं। हर एक बच्चा ऐसा होलीएस्ट बनता है जो सारे कल्प में और कोई भी ऐसा महान पवित्र आत्मा न बना है, न बन सकते हैं। समय प्रति समय धर्म आत्मायें, महान आत्मायें, पवित्र रहे हैं लेकिन उन्हों की पवित्रता और आपकी पवित्रता में अन्तर है। इस समय आप पवित्र बनते हो, इसी पवित्रता की प्राप्ति वा प्रालब्ध भविष्य अनेक जन्म तक तन-मन-धन, सम्बन्ध, सम्पर्क और साथ में आत्मा भी पवित्र है। शरीर भी पवित्र हो और आत्मा भी पवित्र हो - ऐसी पवित्रता आप आत्मायें प्राप्त करती हो। मन-वचन-कर्म तीनों ही पवित्र बनने से ऐसी प्रालब्ध प्राप्त होती है। तो ऐसे होलीएस्ट आत्मायें हो। अपने को ऐसे श्रेष्ठ होलीएस्ट आत्मायें समझते हो? अभी बने हैं वा बन रहे हैं? बनना सहज है या थोड़ा-थोड़ा मुश्किल है? लेकिन कल्प पहले भी बने हैं और अब भी बनना ही है। पक्का या थोड़ा-थोड़ा चलता है? नहीं। स्वप्न मात्र भी अपवित्रता समाप्त होनी ही है, इतना निश्चय है ना कि आज बन रहे हैं और कल बन ही जायेंगे। तो होलीएस्ट भी हैं और हाइएस्ट भी हैं।
ऊंचे ते ऊंचे बाप के बच्चे ऊंचे ते ऊंचे हैं। हाइएस्ट बनते हो तब पूजे जाते हो। चाहे आजकल की हाइएस्ट आत्मायें, सकामी राजे थे, अब तो नहीं हैं। चाहे प्रेजीडेंट हो, चाहे प्राइम मिनिस्टर हो लेकिन वह पूज्य नहीं बनते हैं। आप पूज्य बनने वाली आत्माओं के आगे पुजारी बन नमन और पूजन करते हैं। अभी भी स्व-राज्य अधिकारी बनते हो और भविष्य में भी राजाओं के राजे बनते हो। तो ऐसा हाइएस्ट पद प्राप्त करते हो। साथ में रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड हो। आपका टाइटल ही है पदमा-पदम-पति। और ऐसा खज़ाना है जो अरबपति, खरबपति, अरब-खरब से भी ऐसा खज़ाना प्राप्त नहीं कर सकते। आप श्रेष्ठ आत्माओं का बाप द्वारा ऐसा भाग्य बना रहे हैं जो अनुभव करते हो और वर्णन भी करते हो कि हमारे कदम में पदम हैं। कदम में पदम हैं या सौ हैं, हजार हैं? ऐसा कोई बड़े से बड़ा मिल्यूनर भी इतनी कमाई नहीं कर सकता। कदम में कितना टाइम लगेगा? कदम उठाओ॰ कितना समय लगता है? सेकण्ड। चलो दो सेकण्ड कह दो। अगर दो सेकण्ड भी कहो तो दो सेकण्ड में पदम, तो सारे दिन में कितने पदम हुए? हिसाब करो। ऐसा कोई मिल्यूनर है जो एक दिन में इतनी कमाई करे? ऐसा कोई होगा? तो रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड हो ना! और आपका ऐसा खज़ाना है जो आग भी नहीं जला सकती, पानी डुबो नहीं सकता, चोर लूट नहीं सकता, राजा भी खा नहीं सकते। ऐसा खज़ाना इस पुरूषोत्तम संगमयुग में ही प्राप्त करते हो। तो अपना ऐसा स्वमान स्मृति में रहता है? हाँ या ना? पीछे वाले हाथ हिला रहे हैं। पीछे वाले आराम से बैठे हो ना? रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड हो तो आराम ही आराम है। बड़े से बड़ी युनिवार्सिटी में भी ऐसे कोचों पर पढ़ाई पढ़ने के लिए नहीं बैठते हैं, लेकिन आप बेगर टू प्रिंस हो। बेगर भी हो और प्रिन्स भी हो। सर्व त्याग माना बेगर। सर्व प्राप्तियां अर्थात् प्रिन्स। बिना त्याग के इतना बड़ा भाग्य नहीं मिलता है। त्याग का ही भाग्य मिला है। तन-मन-धन, सम्बन्ध सभी त्याग किया अर्थात् परिवर्तन किया। तन मेरा के बजाए तेरा किया। मन, धन, सम्बन्ध एक शब्द परिवर्तन होने से मेरे के बजाए तेरा किया, है एक शब्द का परिवर्तन लेकिन इसी त्याग से भाग्य के अधिकारी बन गये। तो भाग्य के आगे यह त्याग क्या है? छोटी बात है या थोड़ी बड़ी भी है? कभी-कभी बड़ी हो जाती है। तेरा कहना माना बड़ी बात को छोटा करना और मेरा कहना माना छोटी बात को बड़ी करना। क्या भी हो जाए, 100 हिमालय से भी बड़ी समस्या आ जाए लेकिन तेरा कहना और पहाड़ को रूई बनाना, राई भी नहीं, रूई। जो रूई सेकण्ड में उड़ जाए। सिर्फ तेरा कहना नहीं मानना, सिर्फ मानना भी नहीं चलना। एक शब्द का परिवर्तन सहज ही है ना! और फायदा ही है, नुकसान तो है नहीं। तेरा कहने से सारा बोझ बाप को दे दिया। तेरा तुम ही जानों। आप सिर्फ निमित्त-मात्र हो। इसमें फायदा है ना? न्यारे और परमात्मा के प्यारे बन गये। जो परमात्मा के प्यारे बनते हैं वह विश्व के प्यारे बनते हैं। सिर्फ भविष्य प्राप्ति नहीं है, वर्तमान भी है। एक सेकण्ड में अनुभव किया भी है और करके देखो। कोई भी बात आ जाए तेरा कह दो, मान जाओ और तेरा समझकर करो तो देखो बोझ हल्का होता है या नहीं होता है। अनुभव है ना? सभी अनुभवी बैठे हो ना! सिर्फ क्या होता है, मेरा मेरा कहने की बहुत आदत है ना, 63 जन्मों की आदत है तो तेरा तेरा कहकर फिर मेरा कह देते हो और मेरा माना गये, फिर वह बात तो एक घण्टे में, दो घण्टे में, एक दिन में खत्म हो जाती है लेकिन जो तेरे से मेरा किया उसका फल लम्बा चलता है। बात आधे घण्टे की होगी लेकिन चाहे पश्चाताप के रूप में, चाहे परिवर्तन करने के लक्ष्य से, वह बात बार-बार स्मृति में आती रहती है। इसलिए बाप सभी बच्चों को कहते हैं अगर ‘‘मेरा शब्द'' से प्यार है, आदत है, संस्कार है, कहना ही है तो मेरा बाबा कहो। आदत से मजबूर होते हैं ना। तो जब भी मेरा-मेरा आवे तो मेरा बाबा कहकर खत्म कर दो। अनेक मेरे को एक मेरा बाबा में समा दो।
रशिया वाले एक डॉल लाते हैं ना, तो डॉल में डॉल..... एक डॉल हो जाती है। ऐसे आप भी एक मेरा बाबा में अनेक मेरा समा दो, खत्म। यह कर सकते हो? करते हो लेकिन कभी-कभी मेरे के विस्तार में चले जाते हो। अभी कभी-कभी है, सदा मेरा, तेरा हो जाए उसमें नम्बरवार हैं। नम्बरवन भी हैं, ए वन भी हैं लेकिन फिर भी पीछे के नम्बर भी हैं। तो होली मनाने आये हो ना? तो यही मन्त्र याद करो मैं बाप की हो ली, बन गये। परमात्म परिवार की हो ली अर्थात् हो गई। तो ऐसी होली मनाई? अभी क्या करना है? अभी जलाना है या जला दिया? इसमें हाँ नहीं कहते, सोच रहे हैं?
देखो, भक्ति मार्ग में जो भी उत्सव मनाते हैं, यादगार हैं लेकिन कुछ-कुछ अर्थ से बने हुए हैं। पहले जलाना है फिर मनाना है। पहले मनाना फिर जलाना नहीं। पहले भस्म करो, अशुद्धि को, कमजोरी को, बुराई को जलाओ फिर मनाओ। तो आपने तो बहुत पहले जला दिया ना या अभी भी थोड़ा सा दुपट्टे का कोना रह गया है? पाण्डवों के बुशर्ट या जो चोला पहनते हैं उसका कुछ कोना रह गया हो? साड़ी का कोना तो नहीं रह गया? वास्तव में देखो आत्मिक मनाना और उस मनाने से शक्ति, अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना, वह तभी कर सकते हैं जब पहले जलाया है। मनोरंजन के रूप से मनाना वह अलग चीज़ है। वह तो संगमयुग है मौजों का युग, इसलिए मनोरंजन की रीति से भी मनाते हो और मनाओ, खूब मनाओ। लेकिन परमात्म रंग में रंग जाना अर्थात् बाप समान बन जाना। यह है रंग में रंग जाना। जैसे बाप अशरीरी है, अव्यक्त है वैसे अशरीरी पन का अनुभव करना वा अव्यक्त फरिश्ते पन का अनुभव करना - यह है रंग में रंग जाना। कर्म करो लेकिन अव्यक्त फरिश्ता बनके काम करो। अशरीरीपन की स्थिति का जब चाहो तब अनुभव करो। ऐसे मन और बुद्धि आपके कन्ट्रोल में हो। आर्डर करो - अशरीरी बन जाओ। आर्डर किया और हुआ। फरिश्ते बन जायें। जैसे मन को जहाँ जिस स्थिति में स्थित करने चाहो वहाँ सेकण्ड में स्थित हो जाओ। ऐसे नहीं ज्यादा टाइम नहीं लगा, 5 सेकण्ड लग गये, 2 सेकण्ड लग गये। आर्डर में तो नहीं हुआ, कन्ट्रोल में तो नहीं रहा। कैसी भी परिस्थिति हो, हलचल हो लेकिन हलचल में अचल हो जाओ। ऐसे कन्ट्रोलिंग पावर है? या सोचते - सोचते अशरीरी हो जाऊं, अशरीरी हो जाऊं, उसमें ही टाइम चला जायेगा? कई बच्चे बहुत भिन्न-भिन्न पोज़ बदलते रहते, बाप देखते रहते। सोचते हैं अशरीरी बनें फिर सोचते हैं अशरीरी माना आत्मा रूप में स्थित होना, हाँ मैं हूँ तो आत्मा, शरीर तो हूँ ही नहीं, आत्मा ही हूँ। मैं आई ही आत्मा थी, बनना भी आत्मा है ... अभी इस सोच में अशरीरी हुए या अशरीरी बनने की युद्ध की? आपने मन को आर्डर किया सेकण्ड में अशरीरी हो जाओ, यह तो नहीं कहा सोचो - अशरीरी क्या है? कब बनेंगे, कैसे बनेंगे? आर्डर तो नहीं माना ना! कन्ट्रोलिंग पावर तो नहीं हुई ना! अभी समय प्रमाण इसी प्रैक्टिस की आवश्यकता है। अगर कन्ट्रोलिंग पावर नहीं है तो कई परिस्थितियां हलचल में ले आ सकती हैं। इसलिए एक होली शब्द ही याद करो तो भी ठीक है। होली - बीती सो बीती और हो ली बाप की बन गई। और क्या बन गई? होली अर्थात् पवित्र आत्मा बन गई। एक शब्द होली याद करो तो एक होली शब्द के तीन अर्थ यूज़ करो, वर्णन नहीं करो, हाँ होली माना बीती सो बीती। हाँ बीती सो बीती है - ऐसे नहीं सोचते रहो, वर्णन करते रहो, नहीं। अर्थ स्वरूप में स्थित हो जाओ। सोचा और हुआ। ऐसे नहीं सोचा तो सोच में ही पड़े रहो। नहीं। जो सोचा वह हो गया, बन गये, स्थित हो गये।
(कल 10 वर्षो से पुराने डबल विदेशी भाई-बहिनों की सेरीमनी मनाई गई)
जिन्होंने सेरीमनी मनाई, तो ऐसी सेरीमनी मनाई ना? होली मनाई ना? बापदादा भी हर न्यारे और प्यारे दृश्य देख हर्षित होते हैं। सारा परिवार भी खुश होते हैं। अपना फोटो अच्छी तरह से देखा? अच्छा लगा ना? सिर्फ फेस देखा वा मन की स्थिति भी देखी? इस आइने में तो शक्ल देखी, बहुत अच्छा। अच्छा किया। लेकिन नॉलेज के आइने में अपनी स्थिति भी देखी? अच्छा है बापदादा भी 10-15 वर्ष नहीं देखते, लेकिन इतना समय चलते रहे हैं, अविनाशी रहे हैं, अमर रहे हैं, इसको देख करके खुश होते हैं। कमाल तो की है। कल्चर बदला, देश बदला, रसम-रिवाज बदले, संस्कार डबल फॉरेनर्स के बदले, भारतवासी हो गये। अभी क्या कहेंगे? मधुबन निवासी हो या अमेरिका, लण्डन ... कहाँ के हो? मधुबन के हो? (मधुबन निवासी) अमेरिका, रशिया याद नहीं है? मधुबन आपकी परमानेंट एड्रेस है। और अमेरिका, रशिया, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, जपान... कितने नाम हैं, यह आपके सर्विस स्थान हैं। रहने का परमानेंट एड्रेस मधुबन है, बाकी सेवा के लिए भिन्न नाम, भिन्न रूप, भिन्न भाषा, भिन्न कल्चर में गये हो। नहीं तो देखो अगर आप वहाँ जन्म नहीं लेते तो भारत की बहनों को कितनी भाषायें सीखनी पड़ती। कितनी भाषायें सीखती? तो आप सभी सेवा के लिए गये हो। और बापदादा ने देखा है कि डबल फॉरेनर्स को सेवास्थान खोलने का शौक भी अच्छा है। फ्लैट मिला, सेन्टर खोला। अच्छा है। तब तो देखो इतने देशों में सेवाकेन्द्र खुले हैं।
तो बापदादा डबल विदेशियों के इस उमंग-उत्साह के लिए बहुत-बहुतबहुत मुबारक देते हैं। थोड़े समय में सेवा अच्छी फैलाई है। तो फास्ट हुए ना! विदेश को टोटल कितने वर्ष हुए? लण्डन में स्थापना हुए कितने वर्ष हुए? (27 वर्ष)। भारत में 62 वर्ष और फॉरेन के 27 वर्ष। तो बापदादा सेवा के वृद्धि को देख खुश हैं। अभी सिर्फ एक सेवा रही हुई है। ऐसे बापदादा छोड़ते नहीं हैं, हो गई। नहीं। और रही हुई हैं।
बापदादा सभी डबल विदेशियों को यही भविष्य के लिए इशारा देते हैं कि अभी अखबारों की सेवा ज्यादा करो। फॉरेन की अखबारें, भारत की सेवा करेंगी। अभी थोड़ी-थोड़ी कारणे अकारणें शुरू तो हुई हैं लेकिन जैसे शुरू आदि में स्थापना हुई तो फॉरेन की अखबारों में समाचार पढ़ा। अभी फिर फॉरेन की अखबारों में ऐसी बातें आवें जो भारतवासियों की आंख खुले। भारत की अखबारों में तो पड़ना शुरू हो गया है लेकिन फॉरेन की अखबारें भी भारत को जगायेंगी और दूसरा ऐसा वर्ल्ड के रेडियों में आये, जैसे आप लोगों ने ब्रह्माकुमारीज़ का कम्प्युटर में डाला है ना। तो कोई भी जो चाहे वह देख सकता है। डाला तो बहुत अच्छा है लेकिन उसकी सूचना किसको पता नहीं है, भारत में फायदा ले सकते हैं लेकिन एडवरटाइज नहीं हुई है। इन्वेन्शन अच्छी की है, अच्छा है डबल फॉरेन में प्रकृति के साधनों का लाभ अच्छा लेते हैं। भारत में यह बी.बी.सी. का सब सुनते हैं, उसमें आवे, फिर देखो कितना आवाज़ आता है। करो कमाल। पहचान निकालो, लोकल टी.वी. और रेडियों में तो आपका आता ही है, लेकिन ऐसा आवाज़ फैले जो न सुनने वाले भी सुन लें। अभी हर वर्ष कुछ नया तो करते हो ना, प्लैन तो बनाते हो ना? मीटिंग भी बहुत करते हो। करो, खूब करो। हिम्मत बच्चों की मदद बाप की तो है ही। सिर्फ कोई निमित्त बनें। हर कार्य के लिए कोई न कोई निमित्त बन जाता है और हो भी जाता है क्योंकि ड्रामा में होना नूंधा हुआ है। सिर्फ समय पर कोई निमित्त बन जाता है। तो इस कार्य के लिए भी कोई निमित्त बनना ही है।
(बापदादा ने ड्रिल कराई)
अभी समय के प्रमाण आप हर निमित्त बनी हुई, सदा याद और सेवा में रहने वाली आत्माओं को स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन का वायब्रेशन पावरफुल और तीव्रगति का बढ़ाना है। चारों ओर मन का दु:ख और अशान्ति, मन की परेशानियां बहुत तीव्रगति से बढ़ रही हैं। बापदादा को विश्व की आत्माओं के ऊपर रहम आता है। तो जितना तीव्रगति से दु:ख ही लहर बढ़ रही है उतना ही आप सुख दाता के बच्चे अपने मन्सा शक्ति से, मन्सा सेवा व सकाश की सेवा से, वृत्ति से चारों ओर सुख की अंचली का अनुभव कराओ। बाप को तो पुकारते ही हैं लेकिन आप पूज्य देव आत्माओं को भी किसी न रूप से पुकारते रहते हैं। तो हे देव आत्मायें, पूज्य आत्मायें अपने भक्त आत्माओं को सकाश दो। साइन्स वाले भी सोचते हैं ऐसी इन्वेन्शन निकालें जो दु:ख समाप्त हो जाए, साधन सुख के साथ दु:ख भी देता है लेकिन दु:ख न हो, सिर्फ सुख की प्राप्ति हो उसका सोचते जरूर हैं। लेकिन स्वयं की आत्मा में अविनाशी सुख का अनुभव नहीं है तो दूसरों को कैसे दे सकते हैं। लेकिन आप सबके पास सुख का, शान्ति का, नि:स्वार्थ सच्चे प्यार का स्टॉक जमा है। जमा है या जितना इकठ्ठा करते हो उतना खर्च हो जाता है? यह भी चेक करो जमा तो होता है लेकिन जमा के साथ-साथ खर्च भी तो नहीं हो जाता? ज्ञान के खज़ाने तो खर्च करने से बढ़ते हैं, कम नहीं होते। अगर बार-बार अपने ही स्वभाव-संस्कार वा माया की तरफ से आई हुई समस्याओं में अपनी शक्तियां यूज़ करते हो तो जमा का खाता कम होता है। तो चेक करो - जमा किया लेकिन खर्च भी किया बाकी एकाउन्ट कितना रहा? कमाया और खाया, ऐसा तो नहीं है? दो दिन कमाया और एक दिन इतना ही गँवाया जो जमा किया हुआ भी खर्च करना पड़ा। ऐसा एकाउन्ट तो नहीं है? ऐसे ही कमाया और खाया वा अपने प्रति ही लगाकर खत्म किया तो 21 जन्म के लिए जमा क्या किया? जमा की तो खुशी होती है लेकिन खर्च का हिसाब नहीं निकाला तो समय पर धोखा मिल जायेगा। जमा का खाता भी देखो लेकिन साथ-साथ अपने प्रति खर्च कितना किया। दूसरे को कोई गुण दिया, शक्ति दी, ज्ञान का खज़ाना दिया वह खर्च नहीं है, वह जमा के खाते में जमा होता है लेकिन अपने प्रति समय प्रति समय खर्च किया तो खाता खाली हो जाता है। इसीलिए अच्छे विशाल बुद्धि से चेकिंग करो। जमा का खाता बहुत लम्बा चौड़ा चाहिए। है सहज अगर हर कदम में पदम जमा करते जाओ तो जमा का एकाउण्ट बहुत बड़ा हो जायेगा। तो चेक करो कि हर कर्म व कदम ब्रह्मा बाप समान रहा? अनुभवी हो, जब कोई अच्छा कर्म करते हो तो कर्म का फल उसी समय प्रत्यक्ष रूप में खुशी, शक्ति और सफलता के कारण डबल लाइट रहते हो क्योंकि याद रहता है बाप के साथ से कर्म किया। और अगर अभी कोई विकर्म होता है तो उसका पश्चाताप बहुत लम्बा है। वैसेअभी विकर्म तो कोई होना नहीं चाहिए, वह तो टाइम अभी बीत गया, लेकिनअभी कोई व्यर्थ संकल्प वा व्यर्थ कर्म, व्यर्थ बोल, व्यर्थ सम्बन्ध संपर्क भी न हो। क्योंकि व्यर्थ सम्बन्ध-सम्पर्क भी बहुत धोखा देता है। जैसा संग वैसा रंग लग जाता है। कई बच्चे बड़े चतुर हैं कहते हैं हम तो संग नहीं करते, लेकिन वह मेरे को नहीं छोड़ते, मैं नहीं करती, वह नहीं छोड़ते। तो क्या किनारा करना नहीं आता? अगर कोई बुरी चीज़ दे तो आप लेते क्यों हो! लेने वाला नहीं लेगा तो देने वाला क्या करेगा? इसीलिए व्यर्थ सम्बन्ध और सम्पर्क भी एकाउण्ट खाली कर देता है। और उसी समय अन्दर दिल में आता भी है, दिल खाता है - यह करना नहीं चाहिए। करना नहीं चाहिए फिर भी कर लेते हैं। सुनना नहीं चाहिए लेकिन सुना दिया तो क्या करूं! लेकिन अगर पुरुषार्थी हो तो व्यर्थ कर्म भी न हो। अलबेले हो तो बात ही छोड़ो, फिर तो आराम से सो जाओ, त्रेता में आ जाना। लेकिन अगर पुरूषार्थ है तो उसी समय दिल में आता है, दिल खाता है कि यह नहीं करना चाहिए फिर भी करते हैं तो बापदादा तो कहेंगे कि ऐसे बच्चों की भी कमाल है। न चाहते भी करते रहते हैं, दिल खाता रहता है और सुनते भी रहते, करते भी रहते, तो बहुत पावरफुल आत्मायें हैं! इसलिए व्यर्थ के ऊपर भी चेकिंग अटेन्शन से करो। अलबेले रीति से चेकिंग नहीं, हाँ कोई बात नहीं, यह तो होता ही है, यह तो चलता ही है, अभी सम्पूर्ण कहाँ हुए हैं, हो जायेंगे ..... यह अलबेलापन नहीं। करना है और तीव्रगति से करना है, इसको कहते हैं होली मनाना।
बापदादा को बच्चों के भिन्न-भिन्न खेल देख हँसी भी आती है, रहम भी आता है और बापदादा उस समय टच करता है, यह भी अनुभव करते हैं। नहीं करना चाहिए, श्रीमत नहीं है, यह बाबा समान बनना नहीं है, टच भी होता है लेकिन अलबेलापन सुला देता है। इसलिए अभी स्व के प्रति ज्यादा खज़ाने खर्च नहीं करो। जमा भले करो लेकिन खर्च नहीं करो। सेवा भले करो, व्यर्थ खर्च नहीं करो। बहुत जमा करना है ना! डबल फॉरेनर्स वैसे जमा करने के आदती नहीं हैं, संस्कार नहीं हैं। मिला और खर्च किया, खाओ पिओ मौज करो लेकिन इस कमाई में ऐसे नहीं करना, इसमें जमा सबसे ज्यादा करो।
अव्यक्त रूप से ब्रह्मा बाप भी विशेष डबल विदेशियों को दिल से बहुत प्यार करते हैं। देख-देख खुश होते हैं। तो ब्रह्मा बाप के विशेष स्नेह का रिटर्न करते रहो। रिटर्न करने का साधन है अपने को टर्न करना। डबल विदेशियों को चांस मिला है ना! खास टर्न मिला है। भारतवासियों को ऐसा टर्न नहीं मिला, डबल विदेशियों को टर्न मिला है तो विशेष हो ना! तो रिटर्न भी विशेष करना पड़े। भारतवासी खुश होते हैं। ईर्ष्या नहीं करते हैं, आप लोगों को देखकर खुश होते हैं। देखो मधुबन वालों ने कितना त्याग किया है, मधुबन में बाप मिल रहे हैं और मधुबन वासी नीचे (मेडीटेशन हाल में) बैठे हैं। तो आपको चांस दिया है ना। प्यार है ना! मधुबन वालों का भी बापदादा के पास जमा है। अभी देखो ऊपर-नीचे का हो गया तो जो ऊपर रहते हैं वह भी मिस करते हैं और ऊपर होता है तो नीचे वाले मिस करते हैं और आप दोनों जगह अटेन्ड करते हो। (डबल विदेशी हैं इसलिए डबल मिलता है) यह विदेशी हैं ही नहीं, हैं ही मधुबन निवासी। वह तो सेवास्थान है। जैसे भारत वाले सेवास्थान पर गये हैं लेकिन कहते क्या हैं? हम मधुबन निवासी हैं। तो विदेश सेवा स्थान है बाकी हैं मधुबन निवासी। पसन्द है ना? ठीक है, ऐसे ही रहना। वहाँ विदेश में जाकर विदेशी नहीं हो जाना। भारतवासी रहना, मधुबन वासी। अभी काफी बदल गये हैं। पहले बहुत क्वेश्चन करते थे - विदेश का कल्चर अलग है, भारत का कल्चर और है। अभी यह क्वेश्चन नहीं करते। काफी परिवर्तन भी आया है। पहले जल्दी कन्फ्यूज़ हो जाते थे, अभी अचल हुए हैं। बापदादा भी बच्चों की प्रोग्रेस देख खुश होते हैं। पहले न्यारे-न्यारे लगते थे, अभी बहुत प्यारे बन गये हैं। सभी देश वाले भी सुन रहे हैं, वह भी हँस रहे हैं कि हमारे में परिवर्तन आया है। जो भी सुन रहे हैं, बापदादा सभी देश वालों को हर एक बच्चे को नाम सहित विशेष होली की मुबारक, साथ में मिलन की मुबारक दे रहे हैं। अभी नाम बोलेंगे तो रात बीत जायेगी इसलिए नाम नहीं बोलते हैं। अच्छा है, जर्मनी वालों को मुबारक है जो इन्वेन्शन अच्छी निकाली है। जर्मन ने बापदादा की एक आशा तो पूरी की है। अभी सब आशायें पूरी नहीं की है लेकिन एक आशा पूरी की है। जर्मनी वाले हाथ उठाओ। मुबारक हो। अभी जर्मनी पुरूषार्थ में भी नम्बरवन इनाम लो। जर्मन वाले इनाम लेंगे? बोलो हाँ या ना? कमाल करके दिखाओ। जर्मनी में बापदादा की बहुत उम्मीदें हैं। हलचल में अचल होके दिखाओ। हलचल भी जर्मनी में ज्यादा है और अचल भी जर्मनी वाले बनो। होना ही है। अच्छा।
चारों ओर की होलीएस्ट आत्मायें, सदा हाइएस्ट स्थिति में स्थित रहने वाली हाइएस्ट आत्मायें, सदा सर्व खज़ानों से सम्पन्न रिचेस्ट आत्मायें, सदा हर कदम में पदम जमा करने वाली, बाप समान बनने वाली श्रेष्ठ आत्मायें, सदा रहमदिल, क्षमा के सागर बच्चे मास्टर क्षमा करने वाली आत्मायें, विश्व के दु:खी आत्माओं को सकाश द्वारा सुख-शान्ति की अंचली देने वाली आत्मायें, हर समय अपने जमा के खाते में भरपूर रहने वाले अति तीव्र पुरुषार्थी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादी जी से:- (दादी जी की माइनर सर्जरी (एक छोटा ऑपरेशन) ग्लोबल हॉस्पिटल में 15 तारीख को होना है)
अशरीरी बनने का अभ्यास तो पक्का है ही, इसलिए शरीर का हिसाब सहज चुक्तू हो जाता है। शक्तियां बहुत जमा हैं। बापदादा मस्तक में चमकते हुए शब्दों में देख रहे हैं - बेफिक्र बादशाह। फिक्र बाप को है, आप बेफिक्र बादशाह हैं। आदि से साथी रहे हैं तो साथी का जो भी कुछ होता है वह बाप ले लेता है। सभी की दुआयें आपके साथ हैं। दुआओं का खाता कितना है? बहुत जमा है ना? जितनों को दुआयें सारे दिन में देते हैं तो बहुत गुणा होकर मिलती हैं। इसलिए देने वाले को देना नहीं है, जमा होना है। आपका स्टॉक तो सब जमा है ही। एक्जैम्पुल हो इसलिए एक्जाम में भी एक्स्ट्रा मार्क्स मिलने के अधिकारी हो। यह है बाप और परिवार का स्नेह। आपके हर कदम में दुआयें बिखरी हुई हैं।
सभी एक्जैम्पुल देखकर खुश होते हो ना? खुश होते हो या सोचते हो दादियां ही मिलती हैं, हम तो मिलते नहीं। दादियों को देखकर खुश होते हो? खुश होते हैं, लेकिन खुद भी मिलने चाहते हैं। दो लड्डू खाने चाहते हैं एक लड्डू नहीं। बहुत अच्छा। डबल फॉरेनर्स ने अपना चांस अच्छा ले लिया है, होशियार हैं। आपकी दादी (जानकी दादी) बहुत होशियार है।
फिर भी बहुत लक्की हो, पीछे आने वालों को तो इतना भी नहीं मिलेगा। अभी देखेंगे डबल फॉरेनर्स क्या कमाल करते हैं। इस वर्ष में ही करना है ना? कि 99 में करना है। (6 मास में) इसलिए नवम्बर में पहला चांस फॉरेनर्स को है। अच्छा - सभी ठीक हैं। अच्छी सेवा कर रहे हैं।
ओमशान्ति।
30-03-98 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सर्व प्राप्तियों की स्मृति इमर्ज कर अचल स्थिति का अनुभव करो और जीवन्मुक्त बनो
आज भाग्य विधाता बाप अपने विश्व में सर्व श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को देख रहे हैं। हर बच्चे के भाग्य की महिमा स्वयं भगवान गा रहे हैं। बाप की महिमा तो आत्मायें गाती हैं लेकिन आप बच्चों की महिमा स्वयं बाप करते हैं। ऐसे कभी स्वप्न में भी सोचा कि हमारा इतना श्रेष्ठ भाग्य बना हुआ है लेकिन बना हुआ था, बन गया। दुनिया के लोग कहते हैं भगवान ने हमको रचा लेकिन न भगवान का पता है, न रचना का पता है। आप हर एक भाग्यवान बच्चा अनुभव और फ़खुर से कहते हो कि हम शिव वंशी ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारियां हैं। हमको मालूम है कि हमें बापदादा ने कैसे रचा! चाहे छोटा बच्चा है, चाहे बुजुर्ग पाण्डव है, शक्तियां हैं किसी से भी पूछेंगे आपका बाप कौन है, तो क्या कहेंगे? फ़लक से कहेंगे ना कि हमको शिव बाप ने ब्रह्मा बाप द्वारा रचा इसलिए हम भगवान के बच्चे हैं। भगवान से डायरेक्ट मिलते हैं, न सिर्फ परम आत्मा वा भगवान हमारा बाप है लेकिन वह बाप भी है, शिक्षक भी है और सतगुरू भी है। सबको यह नशा है? (ताली बजाई) एक हाथ की ताली बजाना - अभी यह भी एक्सरसाइज़ बुजुर्गो को सिखानी पड़ेगी। बच्चों को खुश देख बापदादा भी खुशी में झूलते हैं और सदा कहते - वाह मेरे हर एक श्रेष्ठ भाग्यवान विशेष आत्मायें.....। बाप के रूप में परमात्म पालना का अनुभव कर रहे हो। यह परमात्म पालना सारे कल्प में सिर्फ इस ब्राह्मण जन्म में आप बच्चों को प्राप्त होती है, जिस परमात्म पालना में आत्मा को सर्व प्राप्ति स्वरूप का अनुभव होता है। परमात्म प्यार सर्व संबंधों का अनुभव कराता है। परमात्म प्यार अपने देह भान को भी भुला देता, साथ-साथ अनेक स्वार्थ के प्यार को भी भुला देता है। ऐसे परमात्म प्यार, परमात्म पालना के अन्दर पलने वाली भाग्यवान आत्मायें हो। कितना आप आत्माओं का भाग्य है जो स्वयं बाप अपने वतन को छोड़ आप गॉडली स्टूडेन्टस को पढ़ाने आते हैं। ऐसा कोई टीचर देखा जो रोज़ सवेरे-सवेरे दूरदेश से पढ़ाने के लिए आवे? ऐसा टीचर कभी देखा? लेकिन आप बच्चों के लिए रोज़ बाप शिक्षक बन आपके पास पढ़ाने आते हैं और कितना सहज पढ़ाते हैं। दो शब्दों की पढ़ाई है - आप और बाप, इन्हीं दो शब्दों में चक्कर कहो, ड्रामा कहो, कल्प वृक्ष कहो सारी नॉलेज समाई हुई है। और पढ़ाई में तो कितना दिमाग पर बोझ पड़ता है और बाप की पढ़ाई से दिमाग हल्का बन जाता है। हल्के की निशानी है ऊंचा उड़ना। हल्की चीज़ स्वत: ही ऊंची होती है। तो इस पढ़ाई से मन-बुद्धि उड़ती कला का अनुभव करती है। तो दिमाग हल्का हुआ ना! तीनों लोकों की नॉलेज मिल जाती है। तो ऐसी पढ़ाई सारे कल्प में कोई ने पढ़ी है। कोई पढ़ाने वाला ऐसा मिला। तो भाग्य है ना! फिर सतगुरू द्वारा श्रीमत ऐसी मिलती है जो सदा के लिए क्या करूं, कैसे चलूं, ऐसे करूं या नहीं करूं, क्या होगा..... यह सब क्वेश्चन्स समाप्त हो जाते हैं। क्या करूं, कैसे करूं, ऐसे करूं या वैसे करूं... इन सब क्वेश्चन्स का एक शब्द में जवाब है - फॉलो फादर। साकार कर्म में ब्रह्मा बाप को फॉलो करो, निराकारी स्थिति में अशरीरी बनने में शिव बाप को फॉलो करो। दोनों बाप और दादा को फॉलो करना अर्थात् क्वेश्चन मार्क समाप्त होना वा श्रीमत पर चलना। यह मुश्किल है? पूछने की आवश्यकता पड़ती है क्या? कॉपी करना है, अपना दिमाग नहीं चलाना है। बाप समान बनना अर्थात् फॉलो फादर करना। मुश्किल है या सहज है? सहज है ना? 30 साल वाले हाथ उठाओ, अच्छा 30 साल में मुश्किल लगा या सहज है? अभी देखो 30 साल वालों को भी सहज लगा तो आप जो पीछे-पीछे आये उन्हों के लिए मुश्किल है या सहज है? सहज है ना? (गर्मी के कारण सभी के हाथों में रंग-बिरंगी पंखे हैं जो हिला रहे हैं) अच्छा है, पंखों की रिमझिम भी अच्छी लग रही है। सीन अच्छी है। नवीनता होनी चाहिए ना। तो इस ग्रुप की यह भी नवीनता है, यह भी टी.वी. में आ गया। अच्छा है सभी भाग-भाग कर पहुंच गये हैं, बापदादा भी स्नेह की मुबारक देते हैं। देखो, और जो भी हद के गुरू होते हैं कितने वरदान देते हैं, एक या दस, ज्यादा नहीं देते हैं। लेकिन आपको सतगुरू द्वारा रोज़ वरदान मिलता है। ऐसा गुरू कब देखा? नहीं देखा ना! आप लोगों ने ही देखा लेकिन कल्प-कल्प देखा। तो सदा अपने भाग्य की प्राप्तियों को सामने रखो। सिर्फ बुद्धि में मर्ज नहीं रखो, इमर्ज करो। मर्ज रखने के संस्कार को बदलकर इमर्ज करो। अपनी प्राप्तियों की लिस्ट सदा बुद्धि में इमर्ज रखो। जब प्राप्तियों की लिस्ट इमर्ज होगी तो किसी भी प्रकार का विघ्न वार नहीं करेगा। वह मर्ज हो जायेगा और प्राप्तियां इमर्ज रूप में रहेंगी।
बापदादा जब सुनते हैं कि आज किसी भी कारण से कोई-कोई बच्चे मेहनत करते हैं, युद्ध करते हैं, योग लगाने चाहते लेकिन लगता नहीं है, सोल कान्सेस के बदले बॉडी कान्सेस में आ जाते हैं तो बापदादा को अच्छा नहीं लगता है। कारण क्या? अपने भाग्य की प्राप्तियां इमर्ज नहीं रहती, मर्ज रहती हैं। फिर जब कोई याद दिलाता है तो सोचने लगते हैं होना तो ऐसा चाहिए.....! इसलिए बहुत सहज पुरूषार्थ है - प्राप्तियों को इमर्ज रखो। जब से ब्राह्मण बनें तब से अपने भाग्य को स्मृति में रखो। हलचल में नहीं आओ, अचल बनो क्योंकि यहाँ आबू में यादगार क्या है? अचलघर है या हलचल घर है? अचलघर है ना? यह किसका यादगार है? आपका यादगार है ना? तो जब भी कोई सूक्ष्म पुरूषार्थ का मार्ग मुश्किल लगे, बुद्धि ज्यादा हलचल में हो, तो अपने यादगार को स्मृति में लाओ। कई बार बच्चे ज्ञान की प्वाइंट बोलते भी हैं कि मैं आत्मा हूँ, ड्रामा है, यह तो विघ्न है, यह तो साइडसीन है, बोलते भी रहते लेकिन हिलते भी रहते। हिलते-हिलते बोलते रहते। जब ऐसी बुद्धि बन जाए जो अचल नहीं हो सके तो मधुबन का अचलघर याद रखो। यह तो स्थूल चीज़ है ना! सूक्ष्म तो नहीं है। आंखों से देखने की चीज़ है, मेरा यादगार अचलघर है, हलचल घर नहीं है क्योंकि बापदादा इस वर्ष को सर्व बच्चों के प्रति मुक्ति वर्ष मनाना चाहते हैं। ऐसा नहीं हो हाथ उठवायें तो कोई का उठे, कोई का नहीं उठे, नहीं। सभी खुशी-खुशी से हाथ की ताली बजावे, (सभी बजाने लगे) चलो अभी बजा दी तो ठीक है, लेकिन ऐसे ही बापदादा इस वर्ष के समाप्ति में इतनी ज़ोर से ताली बजाते देखे। अभी तो बजाई अच्छा है लेकिन तब भी बजाना। बजायेंगे? देखो हाथ की ताली बजाके तो खुश कर दिया लेकिन बापदादा नये वर्ष में जो अपना 18 जनवरी विशेष ब्रह्मा बाप के शरीर से मुक्त होने का दिन है, तो 18 जनवरी में बापदादा फिर हाथ उठवायेगा कि मुक्ति वर्ष मनाया या सिर्फ सोचा? मनाना है, मनाना है - सोचते तो नहीं रह गये, स्वरूप में लाया वा सोचते-सोचते लास्ट में भी सोचते रहेंगे! यह रिजल्ट बापदादा देखने चाहते हैं। दिखायेंगे? अच्छा। याद रहेगा ना! प्राप्तियों को सामने रखो। बाप की याद के साथ, बाप ने जो दिया वह भी इमर्ज करो - क्या बनाया और क्या मिला!
बापदादा इस वर्ष के बाद हर बच्चे को जीवन-मुक्त स्थिति में देखेंगे। भविष्य में जीवनमुक्त होंगे लेकिन संस्कार जीवनमुक्त के अभी से ही इमर्ज करने हैं। और निरन्तर कर्मयोगी, निरन्तर सहज योगी, निरन्तर मुक्त आत्मा के संस्कार अभी से अनुभव में लाओ, क्यों? बापदादा ने पहले भी इशारा दिया है कि समय का परिवर्तन आप विश्व परिवर्तक आत्माओं के लिए इन्तजार कर रहा है। प्रकृति आप प्रकृतिपति आत्माओं का विजय का हार लेके आवाह्न कर रही है। समय विजय का घण्टा बजाने के लिए आप भविष्य राज्य अधिकारी आत्माओं को देख रहे हैं कि कब घण्टा बजायें, भक्त आत्मायें वह दिन सदा याद कर रही हैं कि कब हमारे पूज्य देव आत्मायें हमारे ऊपर प्रसन्न हो हमें मुक्ति का वरदान देंगी! दु:खी आत्मायें पुकार रही हैं कि कब दु:ख हर्ता सुख कर्ता आत्मायें प्रत्यक्ष होंगी! इसलिए यह सब आपके लिए इन्तजार वा आवाह्न कर रहे हैं। इसलिए हे रहमदिल, विश्व कल्याणकारी आत्मायें अभी इन्हों के इन्तजार को समाप्त करो। आपके लिए सब रूके हैं। आप सब मुक्त हो जाओ तो सर्व आत्मायें, प्रकृति, भगत मुक्त हो जाएं। तो मुक्त बनो, मुक्ति का दान देने वाले मास्टर दाता बनो। अभी विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी के ताजधारी आत्मायें बनो। जिम्मेवार हो ना! बाप के साथ मददगार हो। क्या आपको रहम नहीं आता, दिल में दु:ख के विलाप महसूस नहीं होते। हे विश्व परिवर्तक आत्मायें अभी अपने जिम्मेवारी की ताजपोशी मनाओ। अभी फंक्शन तो बहुत किये, लेकिन फंक्शन की रिजल्ट क्या? बस सिर्फ गोल्डन चुन्नी और ताज पहन लिया, मनाया .... इसमें बापदादा भी खुश है लेकिन चुन्नी पहनना, माला पहनना, चिंदी लगाना, पाण्डवों ने पगड़ी भी ताज मुआिफ़क पहनी, तो यह मनाना अर्थात् जिम्मेवारी सम्भालना। बच्चे खुश हुए, बाप उससे भी ज्यादा खुश हुए लेकिन भविष्य क्या! दुपट्टा अलमारी में, चिंदी अलमारी में सम्भल गई, बस यही मनाना है। नहीं। यह दुपट्टा गोल्डन स्थिति की याद निशानी है। अलमारी में सिर्फ नहीं रख देना लेकिन मन में स्मृति में रखना। मनाना अर्थात् बाप के कार्य में जिम्मेवार बनना। पसन्द है ना! या चुन्नी पहन ली बहुत अच्छा हुआ? अच्छा हुआ भी। बापदादा भी समझते हैं बहुत अच्छा हुआ। लेकिन अविनाशी सहयोगी बनना।
इस वर्ष के लिए जो बापदादा ने इशारा दिया इसके लास्ट में 18 जनवरी में, मुक्ति वर्ष का उत्सव मनायेंगे। ताली बजाने वाले समझते हैं हम बनेंगे? फिर यह नहीं कहना कि बाबा बनने तो चाहते थे लेकिन क्या करें, यह हो गया, वह हो गया। ऐसी बातों से भी मुक्ति। बनना ही है। क्या करें, नहीं। इस भाषा से भी मुक्ति। होना ही है, बनना ही है, कुछ भी हो जाए। बापदादा ने पहले भी कहा 100 हिमालय जितने बड़े ते बड़े विघ्न भी आ जाएं तो भी हटेंगे नहीं, हार नहीं खायेंगे, ताजपोशी मुक्ति वर्ष अवश्य मनायेंगे। बापदादा रोज़ चार्ट देखेगा। ऐसे नहीं यहाँ से जाओ तो ट्रेन में ही कहो पता नहीं क्या हो गया, घर में गये तो बगुले और हंस की लड़ाई लग गई, ऐसे नहीं कहना यह हो गया, यह हो गया ....। यह नहीं सुनेंगे। आपके पत्र वेस्ट पेपर बॉक्स में डालेंगे, सुनेंगे नहीं। दृढ़ संकल्प करो - होना ही है। जहाँ दृढ़ता है वहाँ सफलता नहीं हो, असम्भव है। तो सभी दृढ़ संकल्प वाले हैं ना।टीचर्स हाथ उठाओ, टीचर्स बहुत हैं। सारे सेन्टर्स खाली करके आये हैं क्या?
देखो एक खुशखबरी सुनाते हैं - बापदादा ने देखा, अभी देखा है, सुना है कि सर्व मधुबन वालों ने अपने परिवर्तन का लक्ष्य बहुत अच्छा रखा है, लक्षण तो देखेंगे लेकिन लक्ष्य बहुत अच्छा रखा है, अपने में अन्तर जो आया है वह भी लिखा है लेकिन बापदादा को खुशी है अन्तर आना शुरू हुआ, आगे होता रहेगा। लेकिन सभी ने अपने दृढ़ संकल्प का उमंग-उत्साह अच्छा दिखाया है। अभी कागज में है लेकिन कागज में भी पहला कदम तो है। तो बापदादा को खुशी हुई क्यों? सारे वर्ल्ड के लिए हे अर्जुन मधुबन निवासी हैं। निमित्त मधुबन निवासी हैं, सेकण्ड नम्बर देश-विदेश की निमित्त सेवाधारी टीचर्स हैं और सर्व सहयोगी साथी सारा परिवार ब्राह्मण आत्माये हैं। तो मधुबन का नक्शा बापदादा देखेंगे वह बिल्कुल बदला हुआ दिखाई दे। मधुबन वाले तो कम आये होंगे। कईयों ने तो लिखा ही नहीं है। आगे बैठने वालों ने कम लिखा है, बहुत बिजी रहे हैं। लेकिन जब काम मिलता है तो लिखने में भी मार्क्स जमा होती हैं। अगर नहीं लिखा तो मार्क्स एकस्ट्रा कम हो गई, नुकसान कर दिया। जो भी डायरेक्शन मिलते हैं, डायरेक्ट बाप द्वारा मिलते हैं, चाहे निमित्त आत्मायें दादियों द्वारा मिलते हैं, उसको रिगार्ड देना अति आवश्यक है। इसमें न बहाना देना, न अलबेलापन करना। आगे के लिए बापदादा बता देता है कि मार्क्स जमा नहीं हुई। इसलिए इसको महत्व देना अर्थात् महान बनना। हल्की बात नहीं करो। बच्चे बड़े चतुर हैं, कहेंगे बापदादा तो जानते ही हैं ना। जानते तो हैं लेकिन कहा क्यों? जानते हुए कहा ना! तो ऐसे छुड़ाना नहीं चाहिए, बहुत ऐसे कार्य हैं, छोटे-छोटे जिसको हाँ जी करने में एक्स्ट्रा मार्क्स जमा होती हैं। कई ऐसे स्टूडेन्टस हैं जो किसी भी पास्ट के संस्कार के वश बहुत अच्छे उमंग-उत्साह में बढ़ते हैं लेकिन कोई न कोई सुनहरी धागा, बहुत महीन धागा उनको आगे बढ़ने नहीं देता। वह समझते भी हैं कि यह महीन धागा रहा हुआ है, लेकिन.... लेकिन ही कहेंगे। लेकिन ऐसे भी पुरुषार्थी हैं जो छोटी-छोटी कामन बातों में हाँ जी करने से मार्क्स ले लेते हैं। और हो सकता है कि वह थोड़ी-थोड़ी मार्क्स इकट्ठी होते हुए वह आगे भी निकल सकते हैं, ऐसे भी बापदादा के पास एक्जैम्पुल के रूप में हैं इसलिए सहज तरीका है छोटी-छोटी हाँ जी करने में मार्क्स जमा करते जाओ। कट नहीं करो, जमा करो। बाकी बापदादा ने देखा मैजारिटी ने अपना उमंग-उत्साह अच्छा दिखाया है इसलिए दृढ़ संकल्प के लिए विशेष उन मधुबन निवासी बच्चों को बापदादा हाँ जी करने की मुबारक देते हैं। यादप्यार भी दे रहे हैं। लाख-लाख गुणा यादप्यार दे रहे हैं। क्यों? मधुबन है बापदादा के स्वरूप को प्रत्यक्ष करने का शीशमहल। तो एक बात की तो खुशी है, अभी कागज में आया हुआ, कर्म में लाना ही है। ठीक है ना! अच्छा। मुबारक हो।
30 वर्ष वाले तो बहुत मौज में हैं ना! (1000 आये हैं) देखो बापदादा कहेंगे उठ जाओ, तो मातायें इसके बजाए आगे आ जायेंगी, इसलिए उठाते नहीं हैं। सेरीमनी वाले हाथ खड़ा करो। बापदादा को इस ग्रुप के लिए बहुत-बहुत-बहुत दिल से सम्मान है क्यों? यही पाण्डव हैं, यही मातायें हैं जिन्होंने सेवा की स्थापना में, सेन्टर्स स्थापन करने में जब बेगरी लाइफ थी, बेगरी लाइफ में सेन्टर खुले हैं, ऐसे आईवेल के समय इस सेना ने अपने तन-मन-धन से निमित्त बन के सेवास्थान स्थापन किये हैं। आईवेल के समय जो सहयोगी बनता है उनका आठ आना, आठ करोड़ बन जाते हैं। बापदादा को याद है - खुद बांधेली होते हुए भी एक कटोरी में आटा, एक कटोरी में चीनी, एक कटोरी में घी, ऐसे कटोरी-कटोरी करके लाती थी। तो सोचो कितने सच्ची दिल वाले रहे। अपने घर खर्चे से बापदादा के सेन्टर चलाये हैं, अपने पर्सनल जमा खाते से, अपने खर्चे से बचत करके सेन्टर स्थापन किये हैं, तो कितना भाग्य है इन्हों का! ऐसे समय पर सहयोगी आत्माओं को बापदादा भी नमस्ते कहते हैं। इन्हों के अनुभव बहुत अच्छे हैं, सारा भागवत इन्हों का है। इसलिए बापदादा खुश हैं और सभी बहुत उमंग-उत्साह से प्रयत्न कर पहुंच गये हैं, उसके लिए भी बापदादा खुश हैं। लकड़ियां लेके चली तो आई हैं। आपको दो टांगे हैं, इन्हों को तीन टांगे हैं। जब चलती हैं तो सीन तो अच्छी लगती है ना। इन्हों को चलाके देखो। कल इन्हों की थोड़ी यात्रा निकालना, क्लास से भण्डारे तक बस। देखना कैसे चलती हैं, बहुत अच्छी सीन लगेगी। कोई भी गिरना नहीं। अगर गिरने वाले हो तो बैठ जाना, गिरना नहीं। देखो बापदादा तो चाहते हैं इन्हों को डांस करायें लेकिन आप सब डिस्टर्ब हो जायेंगे, इसलिए बैठे ही बैठे खुशी में नाचो, हाथ पांव से नहीं। अच्छा है। आप लोगों को भी अच्छा लगा ना। बुजुर्गों की दुआयें बहुत अच्छी होती हैं। पाण्डव भी अच्छे हैं, पाण्डवों ने भी सहयोग कम नहीं दिया है। भागदौड़ करने वाले तो पाण्डव ही रहे हैं। इसीलिए पाण्डवों को भी दिल से बापदादा और सर्व परिवार की तरफ से बहुत-बहुत दुआयें हैं। अच्छा।
(बाल ब्रह्मचारी युगल भी बैठे हैं) जो बाल ब्रह्मचारी हैं वह अपनी जगह पर ही उठकर खड़े हो जाओ, अच्छा यह इकट्ठे बैठे हैं। हाथ हिलाओ। देखो अब तक जो विजय का व्रत लिया है उसमें रहने का इनाम तो मिलना ही है, मिला भी है। आगे के लिए सदा स्वप्न मात्र भी, संकल्प मात्र भी पवित्रता का खण्डन नहीं हो। अखण्ड पवित्रता- यह है बाल ब्रह्मचारियों का लक्ष्य और लक्षण। अभी तक की मुबारक है लेकिन आगे भी बापदादा यही कहेंगे कि सदा अमर भव के वरदानी रहना ही है। अमर हैं ना! खण्डित तो नहीं ना! देखो खण्डित मूर्ति का कभी पूजन नहीं होता है, तो कोई भी व्रत अगर खण्डित होता है तो वह अमर वरदानी आत्मा नहीं बन सकता है और ऐसा पूज्य जो द्वापर से कलियुग अन्त तक पूज्य बने, ऐसे इष्ट नहीं बन सकते, इसलिए सदा अमरभव। अच्छी हिम्मत रखी है, हिम्मत की मदद सदा मिलती रहेगी, अधिकारी हो लेकिन अखण्ड बाल ब्रह्मचारी। 5 वर्ष, 10 वर्ष - यह नहीं, अखण्ड। जहाँ तक ब्राह्मण जीवन है, यह अमर भव के वरदानी रहें। ठीक है ना! मंजूर है? हिम्मत है? एक हाथ की ताली बजाओ।
(10 साल वाले 200 डबल विदेशी भाई बहिनों की भी सेरीमनी है)
यह तो बहुत लकी हैं। डबल फॉरेनर्स ने भी नम्बर जीत लिया है। बापदादा को खुशी है कि डबल फॉरेनर्स पीछे नहीं रहे हैं, नम्बर सबमें अच्छा ले रहे हैं। यह दिखाता है कि जैसे अभी थोड़े समय में मेकप कर रहे हैं, ऐसे ही लास्ट में भी तीव्र पुरूषार्थ द्वारा नम्बर अच्छे ते अच्छे ले लेंगे। ऐसे निश्चय है ना! निश्चय है? 108 की माला में आना है ना? अच्छा - 108 की माला डबल फॉरेनर्स की होगी और इन्डिया वालों की? आपकी तो होगी ना। बापदादा ने छुट्टी दी है जितने भी 108 में आने चाहें, चाहे भारत वाले, चाहे विदेश वाले दोनों को छुट्टी है, बापदादा माला बढ़ा लेंगे, लेकिन आपको अवश्य डालेंगे, रहने नहीं देंगे। समझा। ट्रांसलेशन हो रही है। अच्छा है। ट्रांसलेशन करने वाले को भी मुबारक।
बापदादा तो इन्हों को (सामने बैठे हुए मधुबन वालों को) भी मुबारक देते हैं, जो आगे आगे काम के लिए बैठे हैं, कैबिन में भी बैठे हैं, तपस्या अच्छी करते हैं। एक बात में तो मार्क्स ले लेंगे, दिल से सेवा में तो मार्क्स ले लेंगे। यह भी अच्छा है, इस खाते में आपको एक्स्ट्रा मार्क्स मिलेंगी। दिल से करना। तंग होके नहीं करना, अरे क्या करें - यह तो तंग करके रखा है, ऐसे नहीं। कितना भी तंग करें लेकिन आप हर्षित रहना। प्यार से कहो आओ बहिनें, आओ भाई, क्या चाहिए.... ठीक है ना! या नहीं-नहीं, अभी नहीं। भले चीज़ नहीं दो, चीज़ देने की नहीं है, नहीं दे सकते हैं कोई हर्जा नहीं, लेकिन मीठे बोल तो दे सकते हो ना। मीठे बोल भी आधी चीज़ मिलने का अनुभव करा देते हैं। अभी नहीं, अभी नहीं जाओ, जाओ .... ऐसे नहीं। हाँ जी। करेंगे, देखेंगे, देंगे। दिल तो ले लो, चीज़ तो भले नहीं दो और सन्तुष्ट करने का लक्ष्य होगा तो चीज़ भी आ जाती है। बापदादा ने देखा है अगर कोई भी स्टॉक वाले की दिल है कि मुझे यह करना ही है, पता नहीं कहाँ से चीजें ले आते हैं, कहाँ से स्टॉक भर जाता है। सिर्फ दिल हो। मधुबन वाले हैं बहुत होशियार। चीज़ लाने में भी होशियार हैं। होशियार तो हैं, तभी तो ड्युटी मिली है ना। अगर ड्रामा ने निमित्त बनाया है तो कोई न कोई विशेषता तो है जिस विशेषता ने मधुबन में निमित्त बनाया है। सिर्फ उस विशेषता को समय प्रति समय थोड़ा सा शान्त भाव, प्रेम भाव से निमित्त बनो। बाकी अथक तो हैं। मधुबन जैसे अथक और कहाँ भी नहीं हैं। अथक भव का वरदान तो मधुबन को है। अभी इस वर्ष मधुबन क्या करेगा?
अभी मुक्त वर्ष में नम्बरवन मधुबन निवासी। ठीक है? हो सकता है या मुश्किल है? (हाँ जी) फिर तो बापदादा मधुबन वालों को भी गोल्डन बैज देगा। मधुबन वालों को बैज देना है और सभी को दिया है मधुबन वालों को मुक्त वर्ष की प्राइज़ देंगे। अच्छा बैज देंगे आपको। अच्छा।
(राजस्थान ने सेवा सम्भाली है)- राजस्थान ने इतनी भीड़ को सम्भाल लिया ना। देखो बापदादा को कहना नहीं चाहिए, लेकिन इशारा दे रहे हैं सभी इतने आये, बहुत-बहुत मुबारक हो, भले आये। सिर्फ एक बात बापदादा कहे, सुनने के लिए तैयार हो? खास टीचर्स सुनने के लिए तैयार हैं? अच्छा। भले आये, पदमगुणा वेलकम, परन्तु... इतला देना यह टीचर्स का फ़र्ज है। अचानक आ गये, बापदादा को तो खुशी है, बापदादा तो वतन में रहते हैं, लेकिन आप लोग तो साकार में रहते हो ना, तो देखो आप लोगों को ही धूप में टेन्ट में सोना पड़ा, चाहे बच्चों को खुशी है, कोई बुरा नहीं मानते हैं लेकिन टीचर्स का फ़र्ज है संख्या पहले से सुनाना। इतनी तकलीफ जो थोड़ी बहुत हुई है, वह नहीं होती। जो हुआ वह बहुत अच्छा हुआ, यह शान्तिवन का हाल तो भर गया ना। यह तो अच्छा हुआ। सिर्फ इतला करने से आप लोगों का बहुत-बहुत अच्छा प्रबन्ध होता। आगे के लिए आप आयेंगे, आपका स्वागत है, बापदादा ने यह भी सीन देखी कि कितने लोग धूप में स्थान मिलने के पहले बैठे हैं, बापदादा को अच्छा नहीं लगता। पहले से पता होने से आपकी रिजर्वेशन बुक हो जाती, फिर आपको ऐसे बैठना नहीं पड़ता। इसलिए जो थोड़ी बहुत तकलीफ हुई, उसका कारण इतला नहीं हुआ। इसलिए आगे आराम से आना, आओ भले आओ, लेकिन आराम से आना। सुना टीचर्स ने। आगे से ऐसे नहीं करना। पंखे तो ठीक मिले हैं ना। पीछे वाले पंखे हिलाओ। (15 हजार पंखे सबके हाथों में हैं) बाहर बैठने वालों को पहले से ही बापदादा नम्बरवन यादप्यार दे रहे हैं और मधुबन वाले जो त्याग कर खास सिक्युरिटी पर सेवा प्रति बैठे हैं, उन्हों को विशेष लाख गुणा मुबारक हो। सम्भाल रहे हैं ना! और आज जो देश विदेश में दूर बैठे समीप का अनुभव कर रहे हैं, उन सभी देश वालों को बापदादा खास-खास-खास यादप्यार दे रहे हैं। अच्छा साधन है। अच्छा।
राजस्थान, कानपुर किदवई नगर वाले, इन्दौर वाले जिन्होंने भी मदद की है उठो। अच्छा है देखो डबल पुण्य मिल गया। वर्तमान सेवा की दुआयें मिली और भविष्य सेवा की प्रालब्ध जमा हुई। तो राजस्थान या जो भी मददगार बने, उन सभी को बाप्दादा दिल से सदा सेवा में तख्त पर रह दुआयें लेते रहो, दुआयें देते रहो ऐसे अमर रहो, अच्छा पार्ट बजाया, उसके लिए सभी खुशी से आपको धन्यवाद दे रहे हैं।
डबल विदेशियों की सीजन अच्छी रही? सभी डबल विदेशी इस सीजन में विशेष जमा का खाता बढ़ा के जा रहे हैं! ऐसे है? जमा किया है? बहुत अच्छा।
अच्छा। अभी अगर आप सभी को अचानक डायरेक्शन मिले कि अभी-अभी अशरीरी बन जाओ तो बन सकते हो कि हलचल होगी? क्यों? लास्ट समय का यही अभ्यास पास विद आनर बनायेगा। तो अभी बापदादा भी कहते हैं एक सेकण्ड में सब बातों को किनारे कर अशरीरी भव। (ड्रिल) अच्छा।
चारों ओर के अति श्रेष्ठ भाग्यवान, परमात्म पालना के अधिकारी आत्मायें, परमात्म पढ़ाई के अधिकारी, परमात्मा सतगुरू के वरदानों के अधिकारी, सदा दृढ़ता द्वारा सफलता के अधिकारी, सदा अखण्ड योगी, अचल योगी, सदा विश्व सकाश देने के लिए अविनाशी सुख, शान्ति व सच्चे प्यार का स्टाक जमा हो।परिवर्तन की जिम्मेवारी के ताजधारी, सदा सर्व प्राप्तियों को इमर्ज रूप में अनुभव करने वाले ऐसे विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
(आज बापदादा को दादी जी ने पूरे डायमण्ड हाल में चक्र लगवाया, बापदादा ने सभी भाई बहिनों को दृष्टि दी - सभा में करीब 20-21 हजार भाई बहिनें हाल के अन्दर-बाहर उपस्थित थे)
दादियों से:- सीजन की समाप्ति निर्विघ्न हुई? बापदादा यही वर्तमान समय देखने चाहते हैं कि जो विशेष निमित्त आत्मायें हैं, जैसे मुख का आवाज़ साइन्स के साधनों से दूर बैठे पहुंचता है, ऐसे मन का आवाज़ संकल्प यह भी ऐसे ही पहुंचे, जैसे यह साइन्स द्वारा मुख का आवाज़ पहुंचता है। जैसे शुरू में साक्षात्कार होते थे, इशारे मिलते थे, और उसी इशारे से कईयों को जागृति भी आई, ऐसे अभी जो आदि में हुआ वह अन्त में, पहले तो स्थापना थी तो एक ब्रह्मा बाप द्वारा साक्षात्कार हुआ, लेकिन अभी प्रैक्टिकल में शक्तियों का पार्ट है, ब्रह्मा बाप शिव बाप गुप्त है, बैकबोन है लेकिन स्टेज पर शक्तियों का पार्ट है, तो शक्तियां अनन्य भी बहुत हैं। वह एक ब्रह्मा बाप ने किया, अभी ऐसी मनोबल की शक्ति प्रत्यक्ष हो जैसे मुख का आवाज़ क्लीयर पहुंचता है ना। ऐसे मन का आवाज़ धीरे-धीरे पहुंचता जाए, बाप आ गया। सिर्फ यह आवाज़ भी पहुंच गया तो ढूढ़ने तो लगेंगे। फिर आपेही पहुंचेंगे। लेकिन यह मनोबल की सेवा अभी होनी चाहिए। यह सारे विश्व तक आवाज़ कुछ साइन्स और कुछ साइलेन्स की शक्ति द्वारा ही पहुंचेगा, जिसको मन का आवाज़ पहुंचेगा वह समझो ज्यादा समीप आयेंगे और जिसको मुख का आवाज़ पहुंचेगा, उनमें से नम्बरवार होंगे। इसलिए अभी यह साइलेन्स की विशेषता क्या है और साइलेन्स के बल से क्या-क्या कर सकते हैं, हो सकता है इस विषय पर ज्यादा अटेन्शन क्योंकि समय कम है और सेवा विश्व की हर आत्मा को सन्देश पहुंचाना है। इसलिए बापदादा ने कहा कि कुछ सुनायेंगे क्योंकि निमित्त तो आप हो वायुमण्डल में लहर फैलाने के निमित्त तो आप ही हैं। हैं ना? तो ऐसी लहर फैलाओ। सभी सहयोगी बन जाओ। अभी मन का आवाज़ मुख के आवाज़ से भी ज्यादा काम कर सकता है। तो ऐसे ग्रुप बनाओ जो इस कार्य के रूचि वाले हों और इसकी रिहर्सल करते रहें। जैसे पहले शुरू में याद का अभ्यास किया, सेवा के नये-नये प्लैन्स बनाये तो उससे इतनी वृद्धि हुई है ना। अभी जैसे पहली रचना हुई, मुख द्वारा डायरेक्ट, फिर हुई मन्सा संकल्प द्वारा ब्रह्मा द्वारा, अभी है शक्तियों द्वारा, जो कहते हैं कि शक्तियों ने बाण चलाये। तो यह बाण जो संकल्प द्वारा स्पष्ट आवाज़ पहुंच जाए, कोई बुला रहा है, कोई कुछ कह रहा है। जैसे कोई-कोई को स्वप्न पीछे पड़ जाता है, जब तक वह काम पूरा नहीं करता तो बार-बार स्वप्न उसको जागृत करता रहता। कई रिद्धि-सिद्धिवाले भी कुछ विधि से करते हैं। लेकिन योग की विधि द्वारा यह आवाज़ फैले। ऐसे सेवा के प्लैन बनाओ। जैसे अभी यह उत्सवों का वर्ष मनाया ना। अभी वह तो हो गया, अभी फिर ऐसी कोई लहर फैलाओ जो विहंग मार्ग की सेवा हो। मुख की विहंग मार्ग की सेवायें तो बहुत की। उसकी रिजल्ट तो है ही। अभी फिर कोई नवीनता। समझा। देखेंगे कौन-कौन इसमें नम्बर लेता है।
अच्छा। सभी ठीक हैं? सभी मिलकर सेवा कर रहे हैं। तो सेवा का पहाड़ भी पार हो जाता है।
अच्छा। ओम् शान्ति।