04-11-2001 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"सत्यवादी बनो और समय प्रमाण रहमदिल बन बेहद की वृत्ति, दृष्टि और कृति बनाने के दृढ़ संकल्प का दीप जलाओ"
आज प्यार के सागर बापदादा अपने अति प्यारे सिकीलधे मीठे-मीठे बच्चों से मिलन मनाने आये हैं। आप सब भी मिलन मनाने आये हैं ना! भाग-भाग कर आये हैं। तो बापदादा भी बच्चों से मिलने के लिए भाग-भाग के आये हैं। आप सभी तो इस लोक से आये हो और बापदादा परलोक और सूक्ष्मलोक से आये हैं। तो सबसे दूर से कौन आया है? कौन दूरदेशी है? डबल फारेनर्स दूरदेशी हैं? नहीं। सबसे दूर से दूर, दूरदेशी तो बाप ही है। बापदादा को इस बारी डबल विदेशी वा भारतवासी बच्चों की एक बात पर बहुत नाज़ है। कौन-सी बात पर नाज़ है? बोलो। विशेष डबल विदेशी बच्चों की हिम्मत देख बापदादा को नाज़ है कि कैसी भी परिस्थिति में बाप से मिलने के लिए पहुँच ही गये हैं। ड्रामा ने खेल भी दिखाया लेकिन बाप और बच्चों के मिलन को ड्रामा भी रोक नहीं सका। तो ऐसे हिम्मत वाले बच्चों पर बापदादा विशेष वरदानों की वर्षा कर रहे हैं।
आज इस घड़ी जो भी बच्चा जो भी वरदान चाहे वह वरदान मिलेगा। सहज मिलेगा लेकिन इस वरदान को रोज़ अमृतवेले और कर्मयोगी स्थिति में बार-बार दिल से याद करना। दिलशिकस्त नहीं होना। वरदान प्राप्त है सिर्फ जैसे स्थूल नयनों के बीच में निरन्तर बिन्दी चमकती है ना! ऐसे सदा नयनों में बाप बिन्दी को समाकर रखना। रख सकते हो या मुश्किल है? (सहज है) तो जैसे स्थूल बिन्दी निरन्तर है, ऐसे नयनों में निरन्तर बाप बिन्दी भी समाया हुआ हो। समा लिया? फिट हो गया? निकल तो नहीं जायेगा? अगर नयनों में निरन्तर बाप बिन्दी समाया हुआ है तो और किसी तरफ भी नयन आकर्षित नहीं होंगे। मेहनत से छूट जायेंगे। और तरफ नज़र जायेगी ही नहीं। बिल्कुल सेफ हो जायेंगे। कुछ भी हो जाए लेकिन नयनों में सदा बिन्दी बाप समाया हुआ हो। सदा नयनों में समाया हुआ होगा तो दिल में भी वही समाया हुआ होगा। तो दिल में और नयनों में समाने की विधि है - बापदादा, साहेब को राज़ी करना। तो साहेब राज़ी है? आप समझते हो बापदादा साहेब आपके ऊपर राज़ी है? कितने परसेन्ट राज़ी है? (कोई ने कहा 99, कोई ने कहा 75 परसेन्ट) आफरीन है। बापदादा को राज़ी करना बहुत सहज है। बापदादा को राज़ी करने का सहज साधन है ‘‘सच्ची दिल’’। सच्ची दिलपर साहेब राज़ी है। हर कर्म में सत्यवादी। सत्यता महानता है। जो सच्ची दिल वाला है, वह सदा संकल्प, वाणी और कर्म में, सम्बन्ध-सम्पर्क में राज़युक्त होगा अर्थात् राज़ को समझ करने वाले, चलने वाले; और हम कहाँ तक राज़युक्त हैं - उसको परखने की निशानी है - अगर राज़ जानता है तो वह कभी भी अपने स्व-स्थिति से नाराज़ नहीं होगा अर्थात् दिलशिकस्त नहीं होगा और संकल्प में भी, वृत्ति से भी, स्मृति से भी, दृष्टि से भी किसी को नाराज़ नहीं करेगा; क्योंकि वो सबके वा अपने संस्कार-स्वभाव को जानने वाला राज़युक्त है। तो बाप को राज़ी करने की विधि है - राज़युक्त चलना और राज़युक्त अर्थात् न अपने अन्दर नाराज़गी आये, न औरों को नाराज़ करे।
सदा समय अनुसार अपने मन, बुद्धि को स्वप्न तक भी सदा शुभ और शुद्ध रखो। कई बच्चे रूहरूहान में कहते हैं - बापदादा तो शक्तियां देता है लेकिन समय पर शक्ति यूज़ नहीं होती। बापदादा विशेष सब बच्चों के साथी होने के सम्बन्ध से विशेष ऐसे समय पर एकस्ट्रा मदद देते हैं, क्यों? बाप जिम्मेवार है बच्चों को सम्पन्न बनाए साथ ले जाने के लिए। तो बाप अपनी जिम्मेवारी विशेष ऐसे समय पर निभाते हैं लेकिन कभी-कभी बच्चों के मन की कैचिंग पावर का स्विच आफ होता है, तो बाप क्या करे? बाप तो फिर भी स्विच आन करने की, खोलने की कोशिश करते हैं लेकिन टाइम लग जाता है। इसलिए जब फिर स्विच आन हो जाता है तो कहते हैं - करना तो नहीं चाहिए था, लेकिन हो गया। तो सदा अपने मन की कैचिंग पावर, जिसको आप कहते हैं टचिंग, उस टचिंग व कैचिंग पावर का स्विच आन रखो। माया कोशिश करती है आफ करने की, सेकण्ड में आफ करके चली जाती है, इसीलिए जैसा समय नाज़ुक होता जायेगा, अभी होना है और। डरते तो नहीं हो ना? बापदादा ने पहले भी कहा कि आप सबने वर्ष क्यों मनाया है? कौन-सा वर्ष मनाया है? संस्कार से संसार परिवर्तन का। पक्का है ना! मनाया है ना! या भूल गये हैं? (मना रहे हैं) तो जब बच्चों ने संसार परिवर्तन का पक्का संकल्प लिया है तो प्रकृति बाप से पूछती है कि मैं तैयारी करती हूँ, सफाई करने की लेकिन सफाई करने वाले जो निमित्त हैं वह करते-करते सोच में पड़ जाते हैं, दुविधा में पड़ जाते हैं करें या नहीं करें। जल्दी करें, धीरे से करें, तो मैं क्या करूं! प्रकृति पूछती है, तो बापदादा प्रकृति को क्या जवाब दे? डबल विदेशी बोलो। (थोड़ा इन्तजार करे) यह तो ठीक जवाब नहीं है। अगर डबल विदेशी इन्तजार करेंगे तो फिर प्लेन नहीं मिलेंगे। अभी तो प्लेन मिल गये ना। सोते-सोते आये हो ना प्लेन में! आराम से आ गये ना। सारी सभा में से किसी को भी आने में मुश्किल हुई? हाथ उठाओ। (एक ने कहा कि हमारा प्लेन एक बार वापस चला गया) टाइम पर पहुँच तो गई। यह हिम्मत की बात है। जो थोड़ा डरे तो बैठ गये। आप लोगों ने दृढ़ संकल्प किया, जाना ही है तो पहुँच गये। सिर्फ एक का प्लेन लौटा, बस ना। उसकी कोई बात नहीं, फिर अच्छा मिलेगा। अभी आगे तो प्रकृति को, सफाई करने वालों को सोच में नहीं डालो क्योंकि स्थापना वाले अभी भी कभी-कभी सोच में पड़ जाते हैं। क्या करें, ऐसे करें, नहीं करें! ठीक होगा या नहीं ठीक होगा? एकदम स्पष्ट हो हाँ या ना। यह राइट है, यह रांग है - क्लीयर हो। तो प्रकृति आपके वर्ष मनाने के कारण तैयारी तो करेगी। अभी भी करा रही है लेकिन स्थापना के निमित्त बनी हुई आत्माओं को अभी किसी भी बातों में चाहे स्व प्रति, चाहे औरों के प्रति सोचने में समय नहीं लगाना चाहिए। सेकण्ड में क्लीयर टचिंग हो। बिन्दी लगाने में कितना टाइम लगता है? (सेकण्ड) तो जब प्रैक्टिकल लाइफ में बिन्दी लगाते हो तो सेकण्ड लगता है? कोई भी बात में बिन्दी लगाने में या बिन्दू नयनों में बिन्दी बाप को समाओ तो मेहनत से छूट जायेंगे रूप स्थिति में स्थित होने में सेकण्ड लगता है? मानो कोई बात आपके सामने आ गई, उसको बिन्दी लगाने में सेकण्ड लगता है? पाण्डवों को सेकण्ड लगता है? (कभी-कभी) पाण्डवों को बिन्दी लगाने में टाइम लगता है? यह तो कह रही हैं सेकण्ड लगता है। शक्तियों में शक्ति है। (पाण्डव सच बोलते हैं) नहीं, दोनों सच्चे हैं, क्योंकि उन्हों की बिन्दी अभी लगती होगी, आपकी अभी नहीं लगती होगी, इसलिए फर्क हो गया। बाकी तो सब सच्चे हैं। सच्चे दिल वाले हैं। अच्छा।
हाल तो फुल है। (नीचे पाण्डव भवन में भी बैठे हैं) नीचे तो बैठे हैं लेकिन बापदादा के सामने हैं। जो देश-विदेश में इसी याद में बैठे हैं - बापदादा मधुबन में आ गये। अपने-अपने दूरदेशी दृष्टि, दूरबीन से देख रहे हैं। तो वह भी अभी बाबा के सामने आ रहे हैं कि कैसे दूर बैठे भी मन से मधुबन में हैं। आपके इस साकार वतन के यह साधन तो नीचे-ऊपर हो सकते हैं लेकिन यह आध्यात्मिक दूर दृष्टि, दूरादेशी दृष्टि कभी खराब नहीं हो सकती। तो बापदादा के सामने सभी चारों ओर के सेवाकेन्द्र के बच्चे दिखाई दे रहे हैं। अच्छा।
दीवाली मना ली? संगमयुग है ही मनाने का युग। चाहे अन्तर्मुखी हो, अतीन्द्रिय सुख की मौज़ मनाओ। चाहे सेवा में महादानी बन आत्माओं के प्रति महादान देते हुए मनाओ, चाहे आपस में रूहरूहान करो, डांस करो, सम्बन्ध-सम्पर्क से एक-दो की विशेषता को देखो, विशेषता की खुशबू लो, सदा मनाना ही मनाना है। गंवाने का समय समाप्त हो गया। गंवाने का युग तो नहीं है ना? अभी मनाने का और कमाने का युग है, जमा करने का युग है। तो बापदादा सदा हर बच्चे को यही देखता रहता, तो मना रहे हैं, किसी भी रूप में मनाना ही है क्योंकि संगम पर ही गंवाना और मनाना, दोनों का नॉलेज है। इसीलिए गंवा के फिर मनाना उसका महत्त्व होता है। अभी गंवाने को बिन्दी लगाओ। स्टॉप। गंवाना नहीं है। एक संकल्प भी गंवाना नहीं है। कमाने के समय पर गंवायेंगे तो कमायेंगे कब? फिर तो समय मिलना नहीं है। चेक करो जो भी खज़ाने हैं, सबसे बड़ा खज़ाना कौन-सा है? संकल्प, समय, ज्ञान का खज़ाना, प्रत्यक्ष जीवन में आये। ज्ञान सुनाना और सुनना यह फर्स्ट स्टेज है लेकिन ज्ञान अर्थात् नॉलेज। नॉलेज को क्या कहते हो? नॉलेज लाइट है, माइट है, कहते हो ना! तो ज्ञान वा नॉलेज का अर्थ है, इस संकल्प में, बोल में, कर्म में लाइट और माइट है तब कहेंगे नॉलेजफुल।
कुमारियां नॉलेजफुल बनने वाली हैं ना? सिर्फ कोर्स कराने वाली नहीं बनना। भाषण करने वाली नहीं बनना। साथ-साथ नॉलेज की लाइट-माइट, संकल्प, बोल और कर्म में हो। कुमारियों से तो बापदादा का विशेष प्यार है। क्यों? अपने जीवन का फैंसला कर लिया। कर लिया है या करना है? अच्छी तरह से सोच लिया या वहाँ जाके सोचेंगी? पक्का सोच लिया है तो मुबारक हो। देखो इतने हैण्डस तैयार मिलेंगे आपको। जो कुमारियां ट्रेनिंग कर रही हैं वह हाथ उठाओ। कितनी संख्या है? (80) जो अभी सेवा में नहीं लगी हुई हैं, सेन्टर नहीं सम्भालती हैं, वह हाथ उठाओ। गिनती करो, आधे हैं। अच्छा इतने हैण्ड तो मिलेंगे ना! राइट हैण्ड या लेफ्ट हैण्ड? राइट हैण्ड बनेंगे ना! अच्छा है। कुमारियां हैं ना तो बापदादा कुमारियों को सेन्टर का घर भी देता और वर तो मिला ही है। हमेशा घर और वर दो चाहिए। कुमारियों को वर तो मिल गया, अभी घर भी मिलेगा, सेन्टर मिलेगा। कुमारों को भी मिलता है। कुमार समझते हम पीछे क्यों। पीछे नहीं आगे हो। कुमारों के बिना भी सेवा कहाँ चलती है। कोई भी सेन्टर पर देखो, अगर हार्ड वर्कर कुमार नहीं हों तो बहनें कुछ नहीं कर सकती। दोनों ही ज़रूरी हैं। इसीलिए पाण्डवों का भी नाम है तो शक्तियों का भी नाम है। दोनों का नाम है। अच्छा।
आप सबके देश-विदेश की मीटिंग्स का समाचार बापदादा के पास पहुँचा। इस वर्ष में चाहे देश में, चाहे विदेश में, देश में कान्फ्रेन्सेज़, स्नेह मिलन ज्यादा हुए हैं और विदेश में भिन्न-भिन्न प्रोजेक्ट चला रहे हैं। लेकिन बापदादा ने देखा कि सेवा में लगन भी है और सेवा की गति में तीव्रता भी है। दोनों हैं। समय अनुसार हर प्रोजेक्ट या कान्फ्रेन्स या स्नेह मिलन कहो, कोई नयनों में बिन्दी बाप को समाने की विधि है - बापदादा साहेब को राज़ी करना भी प्रोग्राम जो भी चलता है, उसमें सिर्फ समय प्रमाण टॉपिक को उसी रूप से रखना ज़रूरी है क्योंकि जिस समय किसको पानी की प्यास है, और आप उसको 36 प्रकार का भोजन दे दो तो वह स्वीकार करेगा? तो प्रोजेक्ट कोई भी है, टापिक कोई भी है लेकिन इस समय सर्व आत्माओं को चाहिए - शान्ति और स्नेह। शान्ति के भी प्यासी हैं तो स्नेह के भी प्यासी हैं। तो अच्छी सेवा कर रहे हैं, जो भी प्लैन बनाये हैं, वह अच्छे बनाये हैं, जो चल रहे हैं वह अच्छे चल रहे हैं। रिज़ल्ट भी है और हिम्मत भी है। इसलिए बापदादा सेवा के समाचार सुनते हर्षित होते हैं। और गीत कौन-सा गाते हैं? बापदादा गीत गाते हैं, कौन-सा? वाह बच्चे वाह! और इस समय प्रोग्राम्स तो चलने ही हैं, प्रोग्राम्स को नहीं रोकना है। समय के सरकमस्टांश प्रोग्राम को रोकते हैं तो रोकें। लेकिन आप नहीं प्रोग्राम्स रोक सकते हो। अच्छा, अगर मानो कोई प्रोग्राम्स रखते हो और समस्या बदल जाती है तो प्रोग्राम में आने वाले भी समझते हैं, जाने वाले भी समझते हैं। आप क्यों ना करो। दाता के बच्चे हैं ना, तो आप देने में, प्रोग्राम करने में ना नहीं कर सकते हो। आओ, भले आओ, खुशी से आओ। स्वागत करेंगे। जब सरकमस्टांश होंगे तो सरकमस्टांश ही उन्हों को रोंकें, आप नहीं रोको। अभी भी देखो अमेरिका के पीस विलेज में, हंगामा होते हुए भी अमेरिका में भी प्रोग्राम चल रहे हैं ना और बहुत अच्छे चले हैं। रूके हैं? नहीं रूके हैं ना! अभी 4 तारीख तक जो भी प्रोग्राम आपने बनाये, वह कोई रूका है! बाम्ब्स भी चल रहे हैं, चलने दो। लड़ाई तो चल रही है ना! सुनते रहो। अच्छा है, सुनने से आप सब ब्राह्मणों के जो विशेष संस्कार वा स्वभाव है - रहमदिल, मर्सीफुल के वह इमर्ज होंगे और होना ही ज़रूरी है। इस समय आप हर एक को, आत्माओं प्रति रहमदिल और दाता बन कुछ न कुछ देना ही है, चाहे मनसा सेवा द्वारा दो, चाहे शुभ भावना से दो, श्रेष्ठ सकाश देने की वृत्ति से दो, चाहे आध्यात्मिक शक्ति सम्पन्न बोल से दो, चाहे अपने स्नेह सम्पन्न सम्बन्ध-सम्पर्क से दो लेकिन कोई भी आत्मा वंचित नहीं रहे। दाता बनो, रहमदिल बनो। चिल्ला रहे हैं। बाप के आगे अपनी-अपनी भाषा में चिल्ला रहे हैं - शान्ति दो, स्नेह दो, दिल का प्यार दो, सुख की किरणें दिखाओ। तो बाप कैसे देंगे? आप बच्चों द्वारा ही देंगे ना! बाप के आप सभी राइट हैण्ड हो। कोई को कुछ भी देना होता है तो हैण्ड द्वारा देते हैं ना! तो आप सभी बाप के राइट हैण्ड हो ना! पाण्डव राइट हैण्ड हो? आप राइट हैण्डस का यादगार है। पता है कौन-सा यादगार है? विराट रूप का चित्र देखा है, तो उसमें कितने हाथ दिखाते हैं? तो आप राइट हैण्ड का चित्र है ना! कुमारियां, उसमें आप लोगों का चित्र है ना? तो अभी बाप राइट हैण्डस द्वारा आत्माओं को सुख-शान्ति की अंचली तो दिलायेगा ना! बिचारों को अंचली भी नहीं देंगे तो कितने तड़फेंगे! अभी सभी हद की बातों से ऊँचे हो जाओ। हद की बातों में, हद के संस्कारों में समय नहीं गंवाओ। बापदादा आज भी सभी बच्चों को, चाहे यहाँ बैठे हैं, चाहे सेन्टर्स पर बैठे हैं, चाहे देश में हैं, चाहे विदेश में हैं लेकिन रहमदिल भावना से इशारा दे रहे हैं – बापदादा हर बच्चे की हद की बातें, हद के स्वभाव-संस्कार, नटखट वा चतुराई के संस्कार, अलबेलेपन के संस्कार बहुत समय से देख रहे हैं, कई बच्चे समझते हैं सब चल रहा है, कौन देखता है, कौन जानता है लेकिन अभी तक बापदादा रहमदिल है, इसलिए देखते हुए भी, सुनते हुए भी रहम कर रहा है। लेकिन बापदादा पूछते हैं आखिर भी रहमदिल कब तक? कब तक? क्या और टाइम चाहिए? बाप से समय भी पूछता है, आखिर कब तक? प्रकृति भी पूछती है। जवाब दो आप। जवाब दो। अभी तो सिर्फ बाप का रूप चल रहा है, शिक्षक और सतगुरू तो है ही। लेकिन बाप का रूप चल रहा है। क्षमा के सागर का पार्ट चल रहा है। लेकिन धर्मराज़ का पार्ट चला तो? क्या करेंगे? बापदादा यही चाहते हैं कि धर्मराज़ के पार्ट में भी वाह! बच्चे वाह! का आवाज कानों में गूंजे। फिर बाप को उलहना नहीं देना। बाबा, आपने सुनाया नहीं, हम तैयार हो जाते थे ना! इसलिए अभी हद की छोटी-छोटी बातों में, स्वभाव में, संस्कारों में समय नहीं गंवाओ। चल रहे हैं, चलता है, नहीं, जमा होता जाता है। दुगुना, तीगुना, सौगुना जमा होता जाता है, चलता बाप को राज़ी करने की विधि है - राज़युक्त होकर चलना है नहीं। इसलिए इस दृढ़ संकल्प का दिल में दीप जगाओ। हद से बेहद में वृत्ति, दृष्टि, कृति बनानी ही है। इसीलिए बापदादा कहते हैं बनानी पड़ेगी। आज यह कह रहे हैं बनानी पड़ेगी फिर क्या कहेंगे? टू लेट। समय को देखो, सेवा को देखो, सेवा बढ़ रही है, समय आगे दौड़ रहा है। लेकिन स्वयं हद में हैं या बेहद में हैं? हद की बातों के पीछे आप नहीं दौड़ो। तो बेहद की वृत्ति, स्वमान की स्थिति आपके पीछे दौड़ेगी।
बापदादा इस वर्ष में जो इस समय तक किया, उसमें सन्तुष्ट हैं, आफरीन भी देते हैं। लेकिन अभी सेवा में अनुभूति कराना, शमा के ऊपर परवाने बनाना, चाहे सहयोगी बनाओ, चाहे साथी बनाओ, कुछ बनें। अनुभूति की खान खोलो। अच्छा है - यहाँ तक ठीक है। लेकिन सिर्फ चक्कर लगाने वाले परवाने नहीं बनें। पक्के परवाने बनेंगे - अनुभूति का कोर्स कराने से। इतने तक अनुभूति होती है - बहुत अच्छा है, स्वर्ग है। यही यथार्थ ज्ञान है, नॉलेज है, इतना सेवा का रिज़ल्ट अच्छा है। अभी अनुभूति स्वरूप बन अनुभव कराओ। अनुभव करने वाले अर्थात् बाप से डायरेक्ट सम्बन्ध रखने वाले। ऐसे अनुभवी परवाने तैयार करो। सहयोगी बनाये हैं, उसकी मुबारक है और बनाओ। यह स्थान है, यहाँ से ही प्राप्ति हो सकती है, इतने तक भी मानते हैं लेकिन बाप के साथ ज़रा-सा कनेक्शन तो जोड़ो, जो शमा के पीछे ही भागते रहें। तो इस वर्ष विशेष बापदादा सेवा में अनुभूति कराने का कोर्स कराने चाहते हैं। इससे ही साक्षात्कार भी होंगे और साक्षात बाप प्रत्यक्ष होंगे। सुना, क्या करना है? प्लैन मिला?
अभी इस वर्ष की रिज़ल्ट देखेंगे, कितनों को बाप शमा के परवाने बनाये। चलो चक्कर तो लगायें, स्वाहा नहीं हों, बाबा-बाबा का चक्कर तो लगायें। अच्छा। कुमारियां ठीक है ना! अच्छा।
चारों ओर के बच्चों के पत्र भी बापदादा को मिलते रहते हैं। वह बच्चे लिखना शुरू करते हैं और बाप के पास पहले ही पहुँच जाता है। दिल का आवाज है ना! यह तो हाथों से लिखते हैं, लेकिन पहले दिल का आवाज दिलाराम के पास पहुँच जाता है। यह भी अच्छा है, बापदादा की याद तो आती है ना! समाचार लिखने के टाइम कितनी खुशी होती है। तो बापदादा जिन्होंने भी पत्र, ई-मेल, किसी भी साधन द्वारा याद-प्यार या समाचार भेजा है उन सभी को, एक-एक को नाम सहित स्पेशल याद-प्यार और मुबारक दे रहे हैं। आप सब तो सम्मुख दे रहे हो ना! उन्हों को देना पड़ेगा ना। तो सभी को, चारों ओर के बच्चों को दीवाली मुबारक भी दे रहे हैं, कौन-सी दीवाली मनानी है वह तो सुना ही दिया। अच्छा।
चारों ओर के अति प्यारे बापदादा के दिलतख्त नशीन श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा हद के स्वभाव, संस्कार परिवर्तन करने वाले बेहद की परिवर्तक आत्माओं को, सदा एक सेकण्ड, एक संकल्प भी व्यर्थ न गंवाने वाले, जमा करने वाले तीव्र पुरुषार्थी बच्चों को, सदा रहमदिल बन, दाता बन हर आत्मा को, चाहे ब्राह्मण आत्मा, चाहे प्यासी आत्माओं को कुछ-न-कुछ अंचली देने वाले, सकाश देने वाले, ऐसे बड़ी दिल रखने वाले बच्चों को बापदादा का बहुत-बहुत-बहुत-बहुत याद-प्यार और नमस्ते।
25-11-2001 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"दुआयें दो-दुआयें लो, कारण का निवारण कर, समस्याओं का समाधान करो"
आज प्यार के सागर बापदादा अपने प्यार स्वरूप बच्चों के प्यार की डोरी में खींचकर मिलन मनाने आये हैं। बच्चों ने बुलाया और हज़ूर हाज़िर हो गये। अव्यक्ति मिलन तो सदा मनाते रहते हैं, फिर भी साकार में बुलाया तो बापदादा बच्चों के विशाल मेले में पहुँच गये हैं। बापदादा को बच्चों का स्नेह, बच्चों का प्यार देख खुशी होती है और दिल ही दिल में चारों ओर के बच्चों के लिए गीत गाते हैं –“वाह! श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चे वाह! भगवान के प्यार के पात्र आत्मायें वाह”! इतना बड़ा भाग्य और इतना साधारण रूप में सहज प्राप्त होना है, यह स्वप्न में भी नहीं सोचा था। लेकिन आज साकार रूप में भाग्य को देख रहे हो। बापदादा देख रहे हैं कि दूर बैठे भी बच्चे मिलन मेला मना रहे हैं। बापदादा उन्हों को देख मिलन मना रहे हैं। मैजारिटी माताओं को गोल्डन चांस मिला है और बापदादा को भी विशेष शक्ति सेना को देख खुशी होती है कि चार दीवारों में रहने वाली मातायें बाप द्वारा विश्व कल्याणकारी बन, विश्व की राज्य अधिकारी बन गई हैं। बन गये हैं या बन रहे हैं, क्या कहेंगे? बन गये हैं ना! विश्व के राज्य का माखन का गोला आप सबके हाथ में है ना! बापदादा ने देखा कि जो भी मातायें मधुबन में पहुँची हैं उन्हों को एक बात की बहुत खुशी है, कौन-सी खुशी है? कि बापदादा ने हम माताओं को विशेष बुलाया है। तो माताओं से विशेष प्यार है ना! नशे से कहती हैं - बापदादा ने बुलाया है। हमको बुलाया है, हम क्यों नहीं आयेंगे! बापदादा भी सबकी रूहरूहान सुनते रहते हैं, यह खुशी का नशा देखते रहते हैं। वैसे तो पाण्डव भी कम नहीं हैं, पाण्डवों के बिना भी विश्व के कार्य की समाप्ति नहीं हो सकती। लेकिन आज विशेष माताओं को पाण्डवों ने भी आगे रखा है।
बापदादा सभी बच्चों को बहुत सहज पुरूषार्थ की विधि सुना रहे हैं। माताओं को सहज चाहिए ना! तो बापदादा सब माताओं, बच्चों को कहते हैं, सबसे सहज पुरूषार्थ का साधन है – “सिर्फ चलते-फिरते सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हर एक आत्मा को दिल से शुभ भावना की दुआयें दो और दूसरों से भी दुआयें लो”। चाहे आपको कोई कुछ भी दे, बददुआ भी दे लेकिन आप उस बददुआ को भी अपने शुभ भावना की शक्ति से दुआ में परिवर्तन कर दो। आप द्वारा हर आत्मा को दुआ अनुभव हो। उस समय अनुभव करो जो बददुआ दे रहा है वह इस समय कोई-न-कोई विकार के वशीभूत है। वशीभूत आत्मा के प्रति वा परवश आत्मा के प्रति कभी भी बददुआ नहीं निकलेगी। उसके प्रति सदा सहयोग देने की दुआ निकलेगी। सिर्फ एक ही बात याद रखो कि हमें निरन्तर एक ही कार्य करना है – “संकल्प द्वारा, बोल द्वारा, कर्मणा द्वारा, सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा दुआ देना और दुआ लेना। अगर किसी आत्मा के प्रति कोई भी व्यर्थ संकल्प वा निगेटिव संकल्प आवे भी तो यह याद रखो मेरा कर्त्तव्य क्या है! जैसे कहाँ आग लग रही हो और आग बुझाने वाले होते हैं तो वह आग को देख जल डालने का अपना कार्य भूलते नहीं, उन्हों को याद रहता है कि हम जल डालने वाले हैं, आग बुझाने वाले हैं, ऐसे अगर कोई किसी भी विकार की आग वश कोई भी ऐसा कार्य करता है जो आपको अच्छा नहीं लगता है तो आप अपना कर्त्तव्य याद रखो कि मेरा कर्त्तव्य है - किसी भी प्रकार की आग बुझाने का, दुआ देने का। शुभ भावना की भावना का सहयोग देने का। बस एक अक्षर याद रखो, माताओं को सहज एक शब्द याद रखना है –“दुआ देना, दुआ लेना”। मातायें यह कर सकती हो? (सभी मातायें हाथ उठा रही हैं) कर सकती हो या करना ही है? पाण्डव कर सकते हैं? पाण्डव कहते हैं - करना ही है। गाया हुआ है पाण्डव अर्थात् सदा विजयी और शक्तियां सदा विश्व कल्याणकारी नाम से प्रसिद्ध हैं।
बापदादा को चारों ओर के बच्चों से अभी तक एक आश रही हुई है। हर आत्मा को दिल से शुभभावना की दुआयें दो और दुलायें लो बतायें वह कौन-सी आश है? जान तो गये हो! टीचर्स जान गई हो ना! सभी बच्चे यथा शक्ति पुरूषार्थ तो कर रहे हो। बापदादा पुरूषार्थ देख करके मुस्कराते हैं। लेकिन एक आश यह है कि पुरूषार्थ में अभी तीव्रगति चाहिए। पुरूषार्थ है लेकिन अभी तीव्रगति चाहिए। इसकी विधि है – ‘कारण’ शब्द समाप्त हो जाए और निवारण स्वरूप सदा बन जायें। कारण तो समय अनुसार बनते ही हैं और बनते रहेंगे। लेकिन आप सब निवारण स्वरूप बनो क्योंकि आप सभी बच्चों को विश्व के निवारण कर सभी को, मैजारिटी आत्माओं को निर्वाणधाम में भेजना है। तो जब स्वयं को निवारण स्वरूप बनाओ तब विश्व की आत्माओं को निवारण स्वरूप द्वारा सब समस्याओं का निवारण कर निर्वाणधाम में भेज सकेंगे। अभी विश्व की आत्मायें मुक्ति चाहती हैं तो बाप द्वारा मुक्ति का वर्सा दिलाने वाले निमित्त आप हो। तो निमित्त आत्मायें पहले स्वयं को भिन्न-भिन्न समस्याओं के कारण को निवारण कर मुक्त बनायेंगे तब विश्व को मुक्ति का वर्सा दिला सकेंगे। तो मुक्त हैं? किसी भी प्रकार की समस्या का कारण आगे नहीं आये, यह कारण है, यह कारण है, यह कारण है.... जब कोई कारण सामने बनता है तो कारण का सेकण्ड में निवारण सोचो, यह सोचो कि जब विश्व का निवारण करने वाली हूँ तो क्या स्वयं की छोटी-छोटी समस्याओं का स्वयं निवारण नहीं कर सकती! नहीं कर सकता! अभी तो आत्माओं की क्यू आपके सामने आयेगी “हे मुक्तिदाता मुक्ति दो” क्योंकि मुक्ति दाता के डायरेक्ट बच्चे हो, अधिकारी बच्चे हो। मास्टर मुक्तिदाता तो हो ना। लेकिन क्यू के आगे आप मास्टर मुक्ति दाताओं के तरफ से एक रूकावट का दरवाजा बन्द है। क्यू तैयार है लेकिन कौन-सा दरवाजा बन्द है? पुरूषार्थ में कमज़ोर पुरूषार्थ का, एक शब्द का दरवाजा है, वह है ‘क्यों’। क्वेश्वन मार्क,(?) क्यों, यह क्यों शब्द अभी क्यू को सामने नहीं लाता। तो बापदादा अभी देशविदेश के सभी बच्चों को यह स्मृति दिला रहे हैं कि आप समस्याओं का दरवाजा “क्यों”, इसको समाप्त करो। कर सकते हैं? टीचर्स कर सकती हैं? पाण्डव कर सकते हैं? सभी हाथ उठा रहे हैं या कोई-कोई? फारेनर्स तो एवररेडी हैं ना! हाँ या ना? अगर हाँ तो सीधा हाथ उठाओ। कोई ऐसे-ऐसे कर रहे हैं। अभी कोई भी सेवाकेन्द्र पर समस्या का नाम-निशान न हो। ऐसे हो सकता है? हर एक समझे मुझे करना है। टीचर्स समझें मुझे करना है, स्टूडेन्ट समझें मुझे करना है, प्रवृत्ति वाले समझें मुझे करना है, मधुबन वाले समझें हमें करना है। कर सकते हैं ना? समस्या शब्द ही समाप्त हो जाये, कारण खत्म होके निवारण आ जाए, यह हो सकता है! क्या नहीं हो सकता है, जब पहले-पहले स्थापना के समय में सभी आने वाले बच्चों ने क्या प्रॉमिस किया था और करके दिखाया! असम्भव को सम्भव करके दिखाया। दिखाया ना? तो अभी कितने साल हो गये? स्थापना को कितने वर्ष हो गये? (65) तो इतने वर्षो में असम्भव से सम्भव नहीं हो सकता है? हो सकता है? मुख्य टीचर्स हाथ उठाओ। पंजाब नहीं उठा रहा है, शक्य है क्या? थोड़ा सोच रहे हैं, सोचो नहीं। करना ही है। औरों का नहीं सोचो, हर एक अपना सोचे, अपना तो सोच सकते हो ना? दूसरे को छोड़ो, अपना सोचकर अपने लिए तो हिम्मत रख सकते हो ना? कि नहीं? फारेनर्स रख सकते हैं? (हाथ उठाया) मुबारक हो। अच्छा, अभी जो समझते हैं, वह दिल से हाथ उठाना, दिखावे से नहीं। ऐसे नहीं सब उठा रहे हैं तो मैं भी उठा लूं। अगर दिल से दृढ़ संकल्प करेंगे कि कारण को समाप्त कर निवारण स्वरूप बनना ही है, कुछ भी हो, सहन करना पड़े, माया का सामना करने पड़े, एक-दो के सम्बन्ध-सम्पर्क में सहन भी करना पड़े, मुझे समस्या नहीं बनना है। हो सकता है? अगर दृढ़ निश्चय है तो वह पीछे से लेकर आगे तक हाथ उठाओ। (बापदादा ने सभी से हाथ उठवाया और सारा दृश्य टी.वी. पर देखा) अच्छा है ना एक्सरसाइज़ हो गई! हाथ इसीलिए उठाते हैं, जैसे अभी एक दो को देख करके हाथ उठाने में उमंग आता है ना! ऐसे ही जब भी कोई समस्या आवे तो सामने बापदादा को देखना, दिल से कहना बाबा, और बाबा हाजिर हो जायेगा, समस्या खत्म हो जायेगी। समस्या सामने से हट जायेगी और मेरा कर्त्तव्य है - किसी भी प्रकार की आग बुझाने का, दुआ देने का बापदादा सामने हाजिर हो जायेगा। ‘‘मास्टर सर्वशक्तिवान’’ अपना यह टाइटल हर समय याद करो। नहीं तो बापदादा अभी याद-प्यार में मास्टर सर्वशक्तिवान न कहकर सर्वशक्तिवान कहे? शक्तिवान बच्चों को याद- प्यार, अच्छा लगेगा? मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, मास्टर सर्वशक्तिवान क्या नहीं कर सकते हैं! सिर्फ अपना टाइटल और कर्त्तव्य याद रखो। टाइटल है ‘‘मास्टर सर्वशक्तिवान’’ और कर्त्तव्य है ‘‘विश्व-कल्याणकारी’’। तो सदा अपना टाइटल और कर्त्तव्य याद करने से शक्तियां इमर्ज हो जायेंगी। मास्टर बनो, शक्तियों के भी मास्टर बनो, आर्डर करो, हर शक्ति को समय पर आर्डर करो। वैसे शक्तियां धारण करते भी हो, हैं भी लेकिन सिर्फ कमी यह हो जाती है कि समय पर यूज़ नहीं करने आती। समय बीतने के बाद याद आता है, ऐसे करते तो बहुत अच्छा होता। अब अभ्यास करो जो शक्तियां समाई हुई हैं, उसको समय पर यूज़ करो। जैसे इन कर्मेन्द्रियों को आर्डर से चलाते हो ना, हाथ को, पांव को चलाते हो ना! ऐसे हर शक्ति को आर्डर से चलाओ। कार्य में लगाओ। समा के रखते हो, कार्य में कम लगाते हो। समय पर कार्य में लगाने से शक्ति अपना कार्य ज़रूर करेगी। और खुश रहो, कभी-कभी कोई बच्चों का चेहरा बड़ा सोच-विचार में, थोड़ा ज़्यादा गम्भीर दिखाई देते हैं। खुश रहो, नाचो-गाओ, आपकी ब्राह्मण जीवन है ही खुशी में नाचने की और अपने भाग्य और भगवान के गीत गाने की। तो नाचने-गाने वाले जो होते हैं ना वह ऐसा गम्भीर होके नाचे तो कहेंगे नाचना नहीं आता। गम्भीरता अच्छी है लेकिन टू मच गम्भीरता, थोड़ा-सा सोचवि चार का लगता है।
बापदादा ने तो अभी सुना कि देहली का उद्घाटन हो रहा है (9 दिसम्बर को देहली में ओम् शान्ति रिट्रीट सेन्टर का उद्घाटन रखा गया है) लेकिन बापदादा अभी कौन-सा उद्घाटन देखने चाहता है? वह डेट तो फिक्स करो, यह छोटे-मोटे उद्घाटन तो हो ही जायेंगे। लेकिन बापदादा उद्घाटन चाहते हैं ‘‘सब विश्व की स्टेज पर बाप समान साक्षात फरिश्ते सामने आ जाएं और पर्दा खुल जाए।’’ ऐसा उद्घाटन आप सबको भी अच्छा लगता है ना! रूहरूहान में भी सभी कहते रहते हैं, बाप भी सुनते रहते हैं, बस अभी यही इच्छा है - बाप को प्रत्यक्ष करें और बाप की इच्छा है कि पहले बच्चे प्रत्यक्ष हों। बाप बच्चों के साथ प्रत्यक्ष होगा। अकेला नहीं होगा। तो बापदादा वह उद्घाटन देखने चाहते हैं। उमंग भी अच्छा है, जब रूहरूहान करते हैं तो रूहरूहान के समय सबके उमंग बहुत अच्छे होते हैं। लेकिन जब कर्मयोगी बनते हैं तो थोड़ा फर्क पड़ जाता। तो मातायें क्या करेंगी? बड़ा झुण्ड है माताओं का। और माताओं को देख बापदादा को बहुत खुशी होती है। किसने भी माताओं को इतना आगे नहीं लाया है लेकिन बापदादा माताओं को आगे बढ़ते देख खुश होते हैं। माताओं का विशेष यह संकल्प है कि जो किसी ने नहीं करके दिखाया वह हम मातायें बाप के साथ करके दिखायेंगे। करके दिखायेंगी? अभी एक हाथ की ताली बजाओ। मातायें, सब कुछ कर सकती हैं। माताओं में उमंग अच्छा है। कुछ भी नहीं समझें लेकिन यह तो समझ लिया है ना कि मैं बाबा की हूँ, बाबा मेरा है। यह तो समझ लिया है ना! मेरा बाबा तो सब कहते हैं ना? बस दिल से यही गीत गाते रहो - मेरा बाबा, मेरा बाबा, मेरा बाबा....
अच्छा - टीचर्स हाथ उठाओ। टीचर्स बहुत आई हैं (1300 टीचर्स आई हैं) टीचर्स माताओं को अच्छी तरह से ले आई ना! यह भी अपने पुण्य की पूंजी जमा कर ली। आपको फायदा हुआ ना। आपके पुण्य का खाता बढ़ गया। अच्छा - डबल फारेनर्स हाथ उठाओ। डबल फारेनर्स की स्पेशल एक विशेषता बापदादा ने देखी है। कोई ऐसा ग्रुप नहीं होता जिसमें डबल फारेनर्स नहीं हों। सर्वव्यापी हो गये हैं। मधुबन निवासी और बापदादा आप डबल फारेनर्स को देखकर खास खुश होते हैं इसलिए भले आओ। अच्छा। इसमें जो सारी सभा में कुमारियां हैं, वह हाथ उठाओ। बहुत कुमारियां हैं। कुमारियां तो कमाल करने वाली हैं ना? कुमारियों को एकस्ट्रा लक मिला हुआ है। यह पाण्डव हंसते हैं, उलहना देते हैं कि कुमारी अगर सेन्टर पर आती तो दीदी कारण शब्द को समाप्त कर निवारण स्वरूप बनो बन जाती और पाण्डव सेन्टर पर आते तो दादा नहीं बनते हैं, तो देखो कुमारियों को विशेष यह एक लिफ्ट है, सरेन्डर मन से हुई और बापदादा का मुरली बजाने का तख्त मिल जाता है। यह तख्त कम नहीं है। पाण्डव भी मुरली सुनाते हैं लेकिन मैजारिटी बहिनें। तो यह कुमारियों का लक है। कुमारी अपनी गिफ्ट जितनी चाहें उतनी ले सकती हैं। अच्छा – कुमार कितने हैं? कुमार भी कम नहीं हैं। कुमार अभी सुकुमार बन गये हैं। और कुमारों के बिना सेन्टर नहीं चल सकता है। टीचर्स बताओ कुमारों के बिना सेन्टर चल सकता है? नहीं चल सकता। कुमारों की एक विशेषता बहुत अच्छी है, कुमार जो दृढ़ संकल्प करें वह प्रैक्टिकल में ला सकते हैं क्योंकि सुकुमार उल्टा तो करेंगे नहीं, सुल्टा ही करेंगे। तो कुमारों में दृढ़ संकल्प की गिफ्ट है, जो चाहते हैं वह कर सकते हैं - यह गिफ्ट है। बाकी यूज़ करना आपके हाथ में है। गवर्मेन्ट भी चाहती है कि सुकुमारों का ग्रुप बड़े ते बड़ा बने, कुमारों का नहीं। अभी बापदादा का यह इशारा प्रैक्टिकल में नहीं लाया है, सारे विश्व के कुमारों का ग्रुप मधुबन में इकट्ठा हो और प्राइम मिनिस्टर, मिनिस्टर यहाँ आवें। आ सकते हैं। अच्छा है। कुमार अपना जलवा दिखा सकते हैं। कुमारों का ऐसा ग्रुप साथ ले जाओ, कोई कहाँ का, कोई कहाँ का.. और डायरेक्ट निमन्त्रण देवें, सब देशों के हों और निमन्त्रण देवें, डेट फिक्स करें। कुमारों में तो बापदादा की बहुत-बहुत-बहुत शुभ उम्मीदें हैं और पूर्ण होनी ही हैं। अच्छा।
(भारत के कोने-कोने से दो मास माताओं के अभियान निकले) तब तो मातायें इतनी आई हैं, पौना हाल तो मातायें हैं। (13 हज़ार मातायें आई हैं) सारे हाल की शोभा मातायें हैं। अच्छा, मातायें या कन्यायें जो अभियान में गई थीं, वह उठो। थोड़े आये हैं। उन्हों को याद मिल जायेगी। बापदादा उन्हों को भी टी.वी में देख रहे हैं। उन सबको भी मुबारक है। अच्छी यात्रा निकाली और चारों ओर सेवा भी बहुत अच्छी हुई, इसलिए बहुत-बहुत मुबारक हो। प्रवृत्ति वाले अधरकुमार हाथ उठाओ। अच्छा, अधरकुमारों की विशेषता क्या है? अधरकुमारों ने विश्व के आत्माओं की एक विशेष भ्रांति मिटाई है, लोग समझते थे कि ब्राह्मण बनना अर्थात् घर गृहस्थ छोड़ना लेकिन जब से अधरकुमार और अधर कुमारियों को देखते हैं तो वह प्रेरणा लेते हैं कि हम भी ब्राह्मण बन सकते हैं इसलिए पहली जो भ्रांतियां थी, ब्रह्माकुमारियों के पास कोई जावे नहीं, तो अधर कुमारों ने सेवा की वृद्धि का दरवाजा खोला है। (सभी ने तालियां बजाई) भले खूब ताली बजाओ। अधरकुमार भी कम नहीं हैं। हर एक वर्ग का बापदादा के पास ब्राह्मण जीवन में महत्त्व है।
अच्छा - छोटे बच्चे कितने आये हैं। छोटे बच्चों को देखकर सब खुश होते हैं क्योंकि छोटेपन में कितना बड़ा भाग्य पा लिया है। हर एक छोटा बच्चा फलक से कहता है मैं ब्रह्माकुमार हूँ। और छोटे बच्चे अनुभव बहुत अच्छा सुनाते हैं, हम भगवान से मिलते हैं, बातें करते हैं। तो छोटे बच्चों की बातें सबको बहुत अच्छी लगती हैं इसलिए छोटे नहीं हो लेकिन आप छोटे बच्चे भी सेवा करने निमित्त बहुत अच्छे हो। इसलिए बापदादा छोटे बच्चों को बहुत-बहुत, बहुत-बहुत प्यार करते हैं। अच्छा।
सेवाधारियों से - यह सिस्टम बहुत अच्छी बनाई है, हर एक को सेवा का, खाता जमा करने का चांस मिलता है। सेन्टर पर सेवा करते हो, वह तो करते ही हो। लेकिन यज्ञ की सेवा का विशेष महत्त्व है, तो अभी यह महत्त्व पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर को मिला है, बहुत बड़ा ज़ोन लिया है। अचल, प्रेम, राज यह जो भी बैठी हैं, पंजाब की मुख्य टीचर्स उठो। फर्स्ट और सेकण्ड के बिना गति नहीं है। अच्छा, बापदादा को तो पंजाब को देख करके पंजाब की शेरनी (दादी चन्द्रमणि) याद आ रही है। पंजाब को भी याद आती है। तो बहुत अच्छा, मेहनत ज्यादा करनी पड़ी ना। पांच ज़ोन मिलकर पंजाब कहलाते हैं, पंजाब में पांच नदियां भी मशहूर हैं। तो आपको बड़ा ग्रुप मिला है और पहला ग्रुप मिला है, तो पहला नम्बर ले लिया ना। अच्छा और जो पंजाब के सेवाधारी आये हैं वह उठो। बहुत सेवाधारी हैं। बहुत अच्छा सेवा की मुबारक हो, मुबारक हो। यज्ञ सेवा का महत्त्व क्यों है? कमज़ोर पुरूषार्थ का एक शब्द का दरवाजा है वह है क्यों वैसे तो सेन्टर भी यज्ञ ही है ना! लेकिन मधुबन को महायज्ञ कहा जाता है। हैं तो सभी यज्ञ, महायज्ञ का महान सेवा का प्रसाद मिलता है क्योंकि महायज्ञ में कितनी महान आत्मायें आती हैं। तो इतनी महान आत्माओं की सेवा का चांस मिलता है इसलिए महायज्ञ की सेवा का महत्त्व है। पंजाब ज़ोन ने एक तो कमाल की है। बताओ, कौन-सी कमाल की है? याद आता है, क्या कमाल की है? बोलो। आतंकवाद खत्म कर दिया। छोटा-मोटा तो छोड़ो। वह तो जहाँ-तहाँ है लेकिन जितना ही आतंकवाद का चक्कर चला, उतना चक्कर को छोटा कर दिया। तो यह भी अच्छी कमाल है, आपके कोने-कोने की तपस्या की। अभी डर तो नहीं है ना! बाकी तो विश्व में ही आतंकवाद है। फारेन में भी है। अच्छा फारेन वाले, फारेन की विशेषता है - जो भी बाप ने कहा वह फौरन करने वाले। फारेन माना फौरन। बाप ने कहा और डबल फारेनर्स ने फौरन किया। यह है फारेन की निशानी। ठीक है ना! अच्छा - अभी कोई रह गया? सब आ गये। सभी सोचते हैं हमसे बापदादा मिला ही नहीं। अब तो सबसे मिल लिया ना। एक स्थान पर बैठकर सबसे मिल गये।
अच्छा - अभी एक सेकण्ड बापदादा देता है, सब अलर्ट होकर बैठो। बापदादा से सभी का प्यार 100 परसेन्ट है ना! प्यार तो परसेन्ट में नहीं है ना। 100 परसेन्ट है? तो 100 परसेन्ट प्यार का रिटर्न देने के लिए तैयार हो? 100 परसेन्ट प्यार है ना। जिसका थोड़ा सा कम हो, वह हाथ उठा लो। पीछे बच जायेंगे। अगर कम हो तो हाथ उठा लो। 100 परसेन्ट प्यार नहीं है तो वो हाथ उठाओ। प्यार की बात कर रहे हैं। (एक-दो ने हाथ उठाया) अच्छा प्यार नहीं है, कोई हर्जा नहीं, हो जायेगा। जायेंगे कहाँ, प्यार तो करना ही पड़ेगा। अच्छा - अभी सभी अलर्ट होकर बैठे हैं ना! अभी सभी प्यार के रिटर्न में एक सेकण्ड बाप के सामने अन्तर्मुखी हो अपने आपसे दिल से, दिल में संकल्प कर सकते हो कि अब हम स्वयं के प्रति वा औरों के प्रति समस्या नहीं बनेंगे। यह दृढ़ संकल्प प्यार के रिटर्न में कर सकते हो? जो समझते हैं - कुछ भी हो जाए, अगर कुछ हो भी गया तो सेकण्ड में स्वयं को परिवर्तन कर देंगे, वह दिल में संकल्प दृढ़ करें। जो कर सकता है दृढ़ संकल्प, बापदादा मदद देंगे लेकिन मदद लेने की विधि है दृढ़ संकल्प की स्मृति। बापदादा के सामने संकल्प लिया है, यह स्मृति की विधि आपको सहयोग देगी। तो कर सकते हो? कांध हिलाओ। देखो, संकल्प से क्या नहीं हो सकता है, घबराओ नहीं, बापदादा की एकस्ट्रा मदद ज़रूर मिलेगी।
बापदादा ने तो सिर्फ अपना शुभ संकल्प सुनाया। अभी करना बच्चों का काम है। जो जितना करता है उतना उसका खाता जमा होता है। बापदादा समझते हैं कि सब बच्चों का खाता सारे कल्प के लिए इतना जमा हो जाए जो राज्य भी करें और आधा कल्प पूज्य भी बनें। पूज्य बनने का खाता और राज्य अधिकारी बनने का खाता दोनों ही जमा हो जायें। किसी भी बच्चे का खाता कम नहीं हो। सब भरपूर हों। सम्पन्न हों, सम्पूर्ण हों।
अच्छा - आज साइन्स के साधन से दूर-दूर में भी बच्चे सुन रहे हैं, देख रहे हैं। (आज बापदादा की मुरली भारत में टी.वी. पर तथा विदेश में इन्टरनेट द्वारा सभी सुन वा देख रहे हैं) तो उन सभी बच्चों को बापदादा भी देख रहे हैं।
अच्छा, सभी बच्चों को बापदादा मिलन मेले की मुबारक दे रहे हैं। चाहे कोई ने पत्र द्वारा मिलन मेला मनाया, चाहे कार्ड द्वारा मिलन मेला मनाया, चाहे सम्मुख मिलन मेला मना रहे हैं। चाहे अपने स्थान पर बैठे मिलन मेला मना रहे हैं। चारों ओर का एक-एक बच्चा बाप का अति प्यारा है। बापदादा एक-एक बच्चे को देख बहुत हर्षित होते हैं। बच्चे कहते हैं बाप का प्यार गिनती करने में नहीं आता, वर्णन करने में नहीं आता तो बाप भी कहते हैं कि सिकीलधे, लाडले, विशेष आत्मायें बच्चों का प्यार भी वर्णन करने में नहीं आता। ऐसे बच्चे भी सारे कल्प में किसको नहीं मिलेंगे।
ऐसे सर्व तीव्र पुरुषार्थी श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के प्यार का रिटर्न करने वाले हिम्मतवान बच्चों को, सदा अपने विशेषताओं द्वारा औरों को भी विशेष आत्मा बनाने वाले पुण्य आत्मायें बच्चों को, सदा समस्या समाधान स्वरुप विशेष आगे उड़ने वाले बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
विदाई के समय
आज विशेष जो मधुबन में ऊपर सिक्यूरेटी के कार्य में बिजी हैं, वह बापदादा के सामने आ रहे हैं। यज्ञ की रखवाली करने वालों की बहुत ही बड़ी ड्युटी है तो रखवाली कर रहे हैं, दूर बैठे भी याद कर रहे हैं, तो खास बापदादा जो ऊपर कोई भी सेवा अर्थ बैठे हैं, चाहे ज्ञान सरोवर में, चाहे पाण्डव भवन में, चाहे शान्तिवन में जो भी रखवाली करने वाले हैं, उन्हों को बापदादा विशेष याद-प्यार दे रहे हैं। म्यूजियम वाले, मानेसर वाले जो भी ड्युटी में हैं उन सबको भी बहुत-बहुत याद। मेहनत बहुत अच्छी कर रहे हैं।
(रोज़ी बहन ने विशेष याद दी है) जिन्होंने भी खास याद दी है उन सबको खास-खास-खास याद। बाकी मानेसर में भी अच्छी मेहनत कर रहे हैं। दिल्ली वाले जलवा दिखायेंगे। दिखायेंगे ना जलवा? सेवा की नई झलक दिखायेंगे। अच्छी मेहनत है और मन से मेहनत कर रहे हैं। जो इन्जीनियर निमित्त हैं, अभी तैयार कर रहे हैं, उन्हों की हिम्मत पर भी बापदादा बलिहार जा रहे हैं। दिखाई नहीं देता है लेकिन दिखायेंगे, यह भी तो हिम्मत है ना। तो बापदादा ने जो दिल्ली को गिफ्ट दी है उस गिफ्ट को सहयोग दिया है, इसके लिए बहुत-बहुत मुबारक हो। आप सबकी दिल्ली है। सिर्फ दिल्ली वालों की नहीं, आप सबकी दिल्ली है। राज्य तो करना है ना। दिल्ली में राज्य करेंगे या फारेन में राज्य करेंगे, फारेनर्स?
(अभी सोनीपत का भी कार्य शुरू करना है) सब हो जायेगा। सबमें सफलता है ही। (हैदराबाद की जमीन का भी फाइनल हो गया है) थोड़ा-बहुत तो जमीनों के ऊपर खिटखिट होती है, यह तो वरदान है ब्राह्मणों को खिटखिट का भी लेकिन सफलता साथ है। खिटखिट के साथ, सफलता का भी वरदान साथ है इसलिए थोड़ा टाइम लग जाता है। होना तो है ही। हुआ ही पड़ा है। जो हैदराबाद के निमित्त बने हैं चीफ मिनिस्टर्स या जो भी आफिसर्स उन सबको याद भेजना, टोली भेजना। हिम्मत अच्छी रखी है। अभी तो सबमें हिम्मत आ गई है। चाहे छोटे हैं, चाहे बड़े हैं लेकिन हिम्मत से कर रहे हैं। अच्छा कर रहे हैं। जहाँ भी बन रहा है, बापदादा, ड्रामा, सर्व परिवार की दुआयें हैं ही हैं। इसलिए सफलता है ही। (सारनाथ, आगरा, लण्डन आदि में भवन बन रहे हैं) जहाँ भी बन रहा है, सेवा पहले ही तैयार है। आप सबके, सर्व के अंगुली देने से चारों ओर कार्य चल रहा है, सफलता हो रही है। और आगे बढ़के और सफलता होनी ही है। तो आप सब बना रहे हो या वहाँ बनाने वाले बना रहे हैं। आप सब भी साथी हो ना! जहाँ भी जो भी बनता है, हमारा बन रहा है। ऐसे नहीं दिल्ली में बन रहा है, हैदराबाद में बन रहा है। हमारे बाबा का है, हमारा है। हमारा पन सब तरफ होना चाहिए। इसको कहा जाता है बेहद परिवार, बेहद की भावना और इसी भावना का फल मिलता है। (बोरीवली में भी जमीन का साइन हुआ है) अच्छा है ना - समाचार सुनके खुशी होती है ना। अच्छा।
(बहुत ही मातायें टेन्ट में रही हुई हैं) टेन्ट में रहने वालों को टेन्ट तो मिला ना और नीचे कुछ बिछौना तो मिला ना। भक्ति में तो मिट्टी में सोते हैं, आपको मिट्टी तो नहीं मिली ना। कम्बल तो मिला ना, वह तो ठण्ड में सोते हैं। आपको बहुत-बहुत मौज हैं बस बाप की गोदी में सो जाओ। टेन्ट नहीं देखो, बाप की गोदी देखो। बापदादा पहले-पहले टेन्ट में ही चक्कर लगाता है क्योंकि देखो टेन्ट वालों ने सहन तो किया ना। तो सहन करने का फल मिलता है। अच्छा है टेन्ट में सोने वाले हाथ उठाओ। अच्छा है, बापदादा टेन्ट वालों को अपने वतन में बुलाके मसाज़ करेंगे। खुश हैं। देखो, सबकी नज़र, दादियों से पूछो सबसे ज्यादा किसको याद किया? टेन्ट वालों को याद किया ना। (दादियों ने सब टेन्ट में चक्कर लगाया) इसीलिए आप भाग्यवान हो। अच्छा। सभी देश-विदेश वालों ने, जिसने भी याद भेजी है, वह समझें हमको विशेष रूप से बापदादा ने याद दी है। अच्छा।
15-12-2001 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"एकव्रता बन पवित्रता की धारणा द्वारा रूहानियत में रह मनसा सेवा करो"
आज रूहानी बाप चारों ओर के रूहानी बच्चों की रूहानियत को देख रहे हैं। हर एक बच्चे में रूहानियत की झलक कितनी है? रूहानियत नयनों से प्रत्यक्ष होती है। रूहानियत की शक्ति वाली आत्मा सदा नयनों से औरों को भी रूहानी शक्ति देती है। रूहानी मुस्कान औरों को भी खुशी की अनुभूति कराती है। उनकी चलन, चेहरा फ़रिश्तों के समान डबल लाइट दिखाई देता है। ऐसी रूहानियत का आधार है पवित्रता। जितनी-जितनी मन-वाणी-कर्म में पवित्रता होगी उतना ही रूहानियत दिखाई देगी। पवित्रता ब्राह्मण जीवन का शृंगार है। पवित्रता ब्राह्मण जीवन की मर्यादा है। तो बापदादा हर बच्चे की पवित्रता के आधार पर रूहानियत को देख रहे हैं। रूहानी आत्मा इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक फ़रिश्ता दिखाई देगी।
तो अपने आपको देखो, चेक करो - हमारे संकल्प, बोल में रूहानियत है? रूहानी संकल्प अपने में भी शक्ति भरने वाले हैं और दूसरों को भी शक्ति देते हैं। जिसको दूसरे शब्दों में कहते हो रूहानी संकल्प मनसा सेवा के निमित्त बनते हैं। रूहानी बोल स्वयं को और दूसरे को सुख का अनुभव कराते हैं। शान्ति का अनुभव कराते हैं। एक रूहानी बोल अन्य आत्माओं के जीवन में आगे बढ़ने का आधार बन जाता है। रूहानी बोल बोलने वाला वरदानी आत्मा बन जाता है। रूहानी कर्म सहज स्वयं को भी कर्मयोगी स्थिति का अनुभव कराते हैं और दूसरों को भी कर्मयोगी बनाने के सैम्पुल बन जाते हैं। जो भी उनके सम्पर्क में आते हैं वह सहजयोगी, कर्मयोगी जीवन का अनुभवी बन जाते हैं। लेकिन सुनाया रूहानियत का बीज है पवित्रता। पवित्रता स्वप्न तक भी भंग न हो तब रूहानियत दिखाई देगी। पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं, लेकिन हर बोल ब्रह्माचारी हो, हर संकल्प ब्रह्माचारी हो, हर कर्म ब्रह्माचारी हो। जैसे लौकिक में कोई-कोई बच्चे की सूरत बाप समान होती है तो कहा जाता है कि इसमें बाप दिखाई देता है। ऐसे ब्रह्माचारी ब्राह्मण आत्मा के चेहरे में रूहानियत के आधार पर ब्रह्मा बाप समान अनुभव हो। जो सम्पर्क वाली आत्मायें अनुभव करें - यह बाप समान है। चलो 100 परसेन्ट नहीं भी हो तो समय अनुसार कितनी परसेन्ट दिखाई दे? कहाँ तक पहुँचे हैं? 75 परसेन्ट, 80 परसेन्ट, 90 परसेन्ट, कहाँ तक पहुँचे हैं? यह आगे की लाइन बताओ, देखो बैठने में तो आपको नम्बर आगे मिला है। तो ब्रह्माचारी बनने में भी नम्बर आगे होंगे ना! हैं आगे कि नहीं?
बापदादा हर बच्चे की पवित्रता के आधार पर रूहानियत देखने चाहते हैं। बापदादा के पास सबका चार्ट है। बोलते नहीं हैं लेकिन चार्ट है, क्या-क्या करते हैं, कैसे करते हैं, सब बापदादा के पास चार्ट है। पवित्रता में भी अभी कोई-कोई बच्चों की परसेन्टेज़ बहुत कम है। समय के अनुसार विश्व की आत्मायें आप आत्माओं को रूहानियत का सैम्पुल देखने चाहती हैं। इसका सहज साधन है - सिर्फ एक शब्द अटेन्शन में रखो, बार-बार उस एक शब्द को अपने आप अण्डरलाइन करो, वह एक शब्द है - एकव्रता भव। जहाँ एक है वहाँ एकाग्रता स्वत: ही आ जाती है। अचल, अडोल स्वत: ही बन जाते हैं। एकव्रता बनने से एकमत पर चलना बहुत सहज हो जाता है। जब है ही एकव्रता तो एक की मत से एकमती सद्गति सहज हो जाती है। एकरस स्थिति स्वत: ही बन जाती है। तो चेक करो - एकव्रता हैं? सारे दिन में मनबुद्धि एकव्रता रहता है? हिसाब में भी आदि हिसाब एक से शुरू होता है। एक बिन्दी और एक शब्द, एक अंक लगाते जाओ, एक बिन्दी लगाते जाओ तो कितना बढ़ता जायेगा! तो और कुछ भी याद नहीं आवे, एक शब्द तो याद रहेगा ना! समय, आत्मायें आप एकव्रता आत्माओं को पुकार रहे हैं। तो समय की पुकार, आत्माओं की पुकार - हे देव आत्मायें सुनने नहीं आती? प्रकृति भी आप प्रकृतिपति को देख-देख पुकार रही है - हे प्रकृतिपति रूहानी संकल्प स्वयं में व दूसरों में शक्ति भरने वाले हैं आत्मायें, अब परिवर्तन करो। यह तो बीच-बीच में छोटे-छोटे झटके लग रहे हैं। बिचारी आत्माओं को बार-बार दु:ख के, भय के झटके नहीं खिलाओ। आप मुक्ति दिलाने वाली आत्मायें मास्टर मुक्तिदाता कब इन आत्माओं को मुक्ति दिलायेंगे? क्या मन में रहम नहीं आता? कि समाचार सुन करके चुप हो जाते हो, बस, हो गया, सुन लिया। इसलिए बापदादा हर बच्चे का अभी मर्सीफुल स्वरूप देखने चाहते हैं। अपनी हद की बातें अभी छोड़ दो, मर्सीफुल बनो। मनसा सेवा में लग जाओ। सकाश दो, शान्ति दो, सहारा दो। अगर मर्सीफुल बन औरों को सहारा देने में बिजी रहेंगे तो हद की आकर्षणों से, हद की बातों से स्वत: ही दूर हो जायेंगे। मेहनत से बच जायेंगे। वाणी की सेवा में बहुत समय दिया, समय सफल किया, सन्देश दिया। आत्माओं को सम्बन्ध सम्पर्क में लाया, ड्रामानुसार अब तक जो किया वह बहुत अच्छा किया। लेकिन अभी वाणी के साथ मनसा सेवा की ज्यादा आवश्यकता है। और यह मनसा सेवा हर एक नया, पुराना, महारथी, घोड़ेसवार, प्यादा सब कर सकते हैं। इसमें बड़े करेंगे, हम तो छोटे हैं, हम तो बीमार हैं, हम तो साधनों वाले नहीं हैं..... कोई भी आधार नहीं चाहिए। यह छोटे-छोटे बच्चे भी कर सकते हैं। बच्चे, मनसा सेवा कर सकते हैं ना? (हाँ जी) इसलिए अभी वाचा और मनसा सेवा का बैलेन्स रखो। मनसा सेवा से आप करने वालों को भी बहुत फायदा है। क्यों? जिस आत्मा को मनसा सेवा अर्थात् संकल्प द्वारा शक्ति देंगे, सकाश देंगे वह आत्मा आपको दुआ देगी। और आपके खाते में स्व का पुरूषार्थ तो है ही लेकिन दुआओं का खाता भी जमा हो जायेगा। तो आपका जमा खाता डबल रीति से बढ़ता जायेगा। इसलिए चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं, क्योंकि इस बारी नये बहुत आये हैं ना! नये जो पहले बारी आये हैं, वह हाथ उठाओ। पहले बारी आये हुए बच्चों से भी बापदादा पूछते हैं कि आप आत्मायें मनसा सेवा कर सकती हो? (बापदादा ने पाण्डवों से, माताओं से सबसे अलग-अलग पूछा आप मनसा सेवा कर सकते हो?) यह तो बहुत अच्छा हाथ उठाया, चाहे कोई टी.वी. से देख सुन रहे हैं, चाहे सम्मुख सुन रहे हैं, अभी बापदादा सभी बच्चों को जिम्मेवारी देते हैं कि रोज़ सारे दिन में कितने घण्टे मनसा सेवा यथार्थ रीति से की, उसका हर एक अपने पास चार्ट रखना। ऐसे नहीं कहना हाँ कर ली। यथार्थ रूप में कितने घण्टे मनसा सेवा की, वह हर एक चार्ट रखना। फिर बापदादा अचानक चार्ट मंगायेंगे। डेट नहीं बतायेंगे। अचानक मंगायेंगे, देखेंगे कि जिम्मेवारी का ताज पहना या हिलता रहा है? जिम्मेवारी का ताज पहनना है ना! टीचर्स ने तो जिम्मेवारी का ताज पहना हुआ है ना! अभी उसमें यह एड करना। ठीक है ना! डबल फारेनर्स हाथ उठाओ। यह जिम्मेवारी का ताज अच्छा लगता है, तो ऐसे हाथ उठाओ। टीचर्स भी हाथ उठाओ आपको देखकर सबको प्रेरणा मिलेगी। तो चार्ट रखेंगे? अच्छा, बापदादा अचानक एक दिन पूछेगा, अपना- अपना चार्ट लिखकर भेजो, फिर देखेंगे क्योंकि वर्तमान समय बहुत आवश्यकता है। अपने परिवार का दु:ख, परेशानी आप देख सकते हो! देख सकते हो? दु:खी आत्माओं को अंचली तो दो। जो आपका गीत है - एक बूंद की प्यासी हैं हम... आज के समय में सुख शान्ति के एक बूंद की आत्मायें प्यासी हैं। एक सुख-शान्ति के अमृत की बूंद मिलने से भी खुश हो जायेंगी। बापदादा बार-बार सुनाते रहते हैं - समय आपका इन्तजार कर रहा है। ब्रह्मा बाप अपने घर का गेट खोलने का इन्तजार कर रहा है। प्रकृति तीव्रगति से सफाया करने का इन्तजार कर रही है। तो हे फ़रिश्ते, अभी अपने डबल लाइट से इन्तजार को समाप्त करो। एवररेडी शब्द तो सब बोलते हो लेकिन सम्पन्न और सम्पूर्ण बनने में एवररेडी बने हो? सिर्फ शरीर छोड़ने के लिए एवररेडी नहीं बनना है, लेकिन बाप समान बनकर जाने में एवररेडी बनना है।
यह मधुबन के सब आगे-आगे बैठते हैं, अच्छा है। सेवा भी करते हैं। मधुबन वाले एवररेडी हैं? हंसते हैं, अच्छा पहली लाइन वाले महारथी एवररेडी हैं? बाप समान बनने में एवररेडी? ऐसे जाना तो एडवांस पार्टी में जायेंगे। एडवांस पार्टी तो न चाहते बढ़ती जाती है। अभी वाणी और मनसा सेवा के जहाँ एक है वहाँ एकाग्रता स्वतः ही आ जाती है बैलेन्स में बिजी हो जायेंगे तो ब्लैसिंग बहुत मिलेंगी। डबल खाता जमा हो जायेगा - पुरूषार्थ का भी और दुआओं का भी। तो संकल्प द्वारा, बोल द्वारा, वाणी द्वारा, कर्म द्वारा, सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा दुआयें दो और दुआयें लो। एक ही बात करो बस दुआयें देनी हैं। चाहे कोई बद्दुआ दे तो भी आप दुआ दो क्योंकि आप दुआओं के सागर के बच्चे हो। कोई नाराज़ हो आप नाराज़ नहीं हो। आप राज़ी रहो। ऐसे हो सकता है? 100 जने आपको नाराज़ करें और आप राज़ी रहो, हो सकता है? हो सकता है? दूसरी लाइन वाले बताओ हो सकता है? अभी और भी नाराज़ करेंगे, देखना! पेपर तो आयेगा ना। माया भी सुन रही है ना! बस यह व्रत लो, दृढ़ संकल्प लो - ‘‘मुझे दुआयें देनी हैं और लेनी हैं, बस’’। हो सकता है? माया भले नाराज़ करे ना! आप तो राज़ी करने वाले हो ना? तो एक ही काम करो बस। नाराज़ न होना है, नकरना है। करे तो वह करे, हम नहीं होवें। हम न करें न होवें। हर एक अपनी जिम्मेवारी ले। दूसरे को नहीं देखें, यह करती है, यह करता है, हम साक्षी होके खेल देखने वाले हैं, सिर्फ राज़ी का खेल देखेंगे क्या, नाराज़गी का भी तो बीच-बीच में देखना चाहिए ना। लेकिन हर एक अपने आपको राज़ी रखे।
मातायें, पाण्डव हो सकता है? बापदादा नक्शा देख लेंगे। बापदादा के पास बहुत बड़ी टी.वी. है, बहुत बड़ी है। एक एक का देख सकते हैं, किस समय कोई क्या कर रहा है, बापदादा देखता है लेकिन बोलता नहीं है, आपको सुनाता नहीं है। बाकी रंग बहुत देखते हैं। छिप-छिपकर क्या करते हो वह भी देखता है। बच्चों में चालाकी भी बहुत है ना! चालाक बहुत हैं। अगर बापदादा बच्चों की चालाकियां सुनायें ना तो सुनकर ही आप थोड़ा सा सोचने लगेंगे, इसलिए नहीं सुनाते हैं। आपको सोच में क्यों डालें। लेकिन करते बहुत होशियारी से हैं। अगर सबसे होशियार देखना हो तो भी ब्राह्मणों में देखो। लेकिन अभी किसमें होशियार बनेंगे? मनसा सेवा में। नम्बर आगे ले लो। पीछे नहीं रहना। इसमें कोई कारण नहीं। समय नहीं मिलता, चांस नहीं मिलता, तबियत नहीं चलती, पूछा नहीं गया, यह कुछ नहीं। सब कर सकते हो। बच्चों ने दौड़ लगाने का खेल खेला था ना, अभी इसमें दौड़ लगाना। मनसा सेवा में दौड़ लगाना। अच्छा।
कनार्टक का टर्न है - कर्नाटक वाले जो सेवा में आये हैं, वह उठो। इतने सब सेवा के लिए आये हैं। अच्छा है, यह भी सहज श्रेष्ठ पुण्य जमा करने का गोल्डन चांस मिलता है। भक्ति में कहा जाता है - एक ब्राह्मण की भी सेवा करो तो बड़ा पुण्य होता है और यहाँ कितने सच्चे ब्राह्मणों की सेवा करते हो। तो यह अच्छा चांस मिलता है ना! अच्छा लगा कि थकावट हुई? थके तो नहीं! मज़ा आया ना! अगर सच्ची दिल से पुण्य समझ करके सेवा करते हैं तो उसका प्रत्यक्ष फल है, उसको थकावट नहीं होगी, खुशी होगी। यह प्रत्यक्षफल पुण्य के जमा का अनुभव होता है। अगर थोड़ा भी किसी कारण से थकावट होती या थोड़ा सा महसूस करते तो समझो सच्ची दिल से सेवा नहीं है। सेवा अर्थात् प्रत्यक्षफल, मेवा। सेवा नहीं करते मेवा खाते हैं। तो कनार्टक के सभी सेवाधारियों ने अपनी अच्छी सेवा का पार्ट बजाया और सेवा का फल खाया।
अच्छा सभी टीचर्स ठीक हैं। टीचर्स को तो कितने बारी सीजन में टर्न मिलता है। यह टर्न मिलना भी भाग्य की निशानी है। अभी टीचर्स को मनसा सेवा में रेस करनी है। लेकिन ऐसे नहीं करना कि सारा दिन बैठ जाओ, मैं मनसा सेवा कर रही हूँ। कोई कोर्स करने वाला आवे तो आप कहो नहीं, नहीं मैं तो मनसा सेवा कर रही हूँ। कोई कर्मयोग का टाइम आवे तो कहो मनसा सेवा कर रही हूँ, नहीं। बैलेन्स चाहिए। कोई कोई को ज्यादा नशा चढ़ जाता है ना! तो ऐसा नशा नहीं चढ़ाना। बैलेन्स से ब्लैसिंग है। बैलेन्स नहीं तो ब्लैसिंग नहीं। अच्छा।
दिल्ली के सेवाधारी भी आये हैं, उठो कौन-कौन आये हैं? इन्जीनियर्स आये हैं। उद्घाटन तो कर लिया ना! अच्छा किया। सभी ठीक हैं। थक तो नहीं गये हैं? नहीं, और मकान भी बनाने के लिए देवें, एवररेडी हैं? और मकान बनाने का आर्डर देवें? अच्छा। यह तो एवररेडी हैं, विश्वकर्मा के समान जो आप आर्डर करो वह बन जायेंगे। हैं ना! ब्राह्मण परिवार के संगमयुगी विश्वकर्मा का पार्ट बजाने वाले। द्वापर वाले नहीं, संगम वाले। बहुत अच्छा है। सभी बहुत खुश हुए। मुहूर्त में सब खुश होकर आये, इसलिए सफलता है। थोड़ा-बहुत तो होता ही है। लेकिन मैजारिटी सब देख देख खुश हुए। इसलिए आप सबको दुआयें मिली। आपके खाते में दुआयें जमा हुई। ठीक है ना! एक-एक विशेष आत्मा है। किसी भी ड्युटी पर रहे लेकिन विशेष आत्मायें हैं। इसीलिए देखो आप लोगों को विशेष निमन्त्रण मिला। बहुत अच्छा किया, बापदादा और परिवार खुश है। ठीक है ना?
अभी सभी एक सेकण्ड में मनसा सेवा का अनुभव करो। आत्माओं को शान्ति और शक्ति की अंचली दो। अच्छा।
चारों ओर के सर्व श्रेष्ठ रूहानियत का अनुभव कराने वाले रूहानी आत्माओं को, सर्व संकल्प और स्वप्न में भी पवित्रता का पाठ पढ़ने वाले ब्रह्माचारी बच्चों को, सर्व दृढ़ संकल्पधारी, मनसा सेवाधारी तीव्र पुरुषार्थी आत्माओं को, सदा दुआयें देने और लेने वाले पुण्य आत्माओं को बापदादा का, दिलाराम बाप का दिल व जान, सिक व प्रेम सहित याद-प्यार और नमस्ते।
दादी जी, दादी जानकी जी से पर्सनल मुलाकात
बापदादा ने त्रिमूर्ति ब्रह्मा का दृश्य दिखाया। आप सबने देखा? क्योंकि बाप समान, बाप के हर कार्य में साथी हो ना! इसलिए यह दृश्य दिखाया। बापदादा ने आप दोनों को विशेष पावर्स की विल की है। विल पावर भी दी और सर्व पावर्स की विल भी की। इसलिए वह पावर्स अपना काम कर रही हैं। करावनहार करा रहा है, और आप निमित्त बन कर रहे हो। मजा आता है ना! करन करावनहार बाप करा रहा है। इसलिए कराने वाला करा रहा है, आप बेफिकर होकर कर रहे हैं। फिकर नहीं रहता है ना! बेफिकर बादशाह। (दादी जानकी ने कहा कि बापदादा से मास्टर डिग्री लेनी है)
मास्टर डिग्री तो पास करना ही है। हुई पड़ी है। सिर्फ थोड़ा रिपीट करना है। पास हुई पड़ी है ना! अनेक कल्प अनेक बार पास की है, अभी सिर्फ रिपीट करना है। रिपीट करने में मुश्किल नहीं होता है। नहीं तो मास्टर डिग्री प्राप्त करने वाले कौन होंगे! और आपके साथी होंगे। साथी तो चाहिए ना! लेकिन बनना तो है ही। पास हुआ पड़ा है। कितने बार पास किया है? (अनेक बार) अनेक बार किया है और हुआ ही पड़ा है। अच्छा।
तबियत के भी नॉलेजफुल। थोड़ा-थोड़ा नटखट होता है। इसमें भी नॉलेजफुल बनना ही पड़ेगा क्योंकि सेवा बहुत करनी है ना। तो तबियत भी साथ देती है। तो डबल नॉलेजफुल। अच्छा।
ओम् शान्ति।
31-12-2001 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"इस नये वर्ष में सफलता भव के वरदान द्वारा बाप और स्वयं की प्रत्यक्षता को समीप लाओ"
आज नव युग का रचता अपने मास्टर नव युग रचता बच्चों से नव वर्ष मनाने के लिए आये हैं। नव वर्ष मनाना, यह तो विश्व में सभी मनाते हैं। लेकिन आप सभी नव युग बना रहे हो। नव युग की खुशी हर बच्चे के अन्दर है। जानते हो कि नव युग अभी आया कि आया। दुनिया वालों का नव वर्ष एक दिन मनाने का है और आप सबका नव युग पूरा ही संगमयुग मनाने का है। नव वर्ष में खुशी मनाते, एक-दो को गिफ्ट देते हैं। वह गिफ्ट भी क्या है! थोड़े समय के लिए वह गिफ्ट है। नव युग रचता बाप आप सब बच्चों के लिए कौन-सी गिफ्ट लाते हैं? गोल्डन गिफ्ट, जिस गोल्डन गिफ्ट अर्थात् गोल्डन युग में सब स्वत: ही गोल्ड हो जाता है, नया हो जाता है। थोड़े समय के बाद नया वर्ष शुरू होगा लेकिन सब नया नहीं हो जायेगा। आपके नव युग में प्रकृति भी नई बन जायेगी। आत्मा भी नये वस्त्र (शरीर) धारण करेगी। हर वस्तु नई अर्थात् सतोप्रधान गोल्डन एज वाली होगी। तो नये वर्ष को मनाते आपके मन में, बुद्धि में नया युग ही याद आ रहा है। नव युग याद है ना, कि आज के दिन नया वर्ष याद है?
बापदादा पहले मुबारक देते हैं नव युग की फिर साथ में मुबारक देते हैं नये वर्ष की, क्योंकि आप सब नव वर्ष मनाने के लिए आये हो ना! मनाओ, खूब मनाओ। अविनाशी गिफ्ट जो बापदादा द्वारा मिली है, उसकी अविनाशी मुबारक मनाओ। सदा ही एक-दो को शुभ भावना की मुबारक दो। यही सच्ची मुबारक है। मुबारक जब देते हो तो स्वयं भी खुश होते हो और दूसरे भी खुश होते हैं। तो सच्चे दिल की मुबारक है - एक-दो के प्रति दिल से शुभ भावना, शुभ कामना की मुबारक। शुभ भावना ऐसी श्रेष्ठ मुबारक है जो कोई भी आत्मा की कैसी भी भावना हो, अच्छी भावना वा अच्छा भाव न भी हो, लेकिन आपकी शुभ भावना उनका भाव भी बदल सकती है, स्वभाव भी बदल सकती है। वैसे स्वभाव शब्द का अर्थ ही है – स्व (सु) अर्थात् शुभ भाव। हर समय हर आत्मा को यही अविनाशी मुबारक देते चलो। कोई आपको कुछ भी दे लेकिन आप सबको शुभ भावना दो। अविनाशी आत्मा के अविनाशी आत्मिक स्थिति में स्थित होने से आत्मा परिवर्तित हो ही जायेगी। तो इस नये वर्ष में क्या विशेषता करेंगे? स्वयं में भी, सर्व में भी और सेवा में भी। जब नया वर्ष नाम है तो कोई नवीनता करेंगे ना! तो क्या नवीनता करेंगे? हर एक ने अपना नवीनता का प्लैन बनाया है या अभी सिर्फ नया वर्ष मना लेंगे? मिलन मनाया, नया वर्ष मनाया, नवीनता का क्या प्लैन बनाया?
बापदादा हर एक बच्चे को इस वर्ष के लिए विशेष यही इशारा देते हैं कि समय प्रमाण अभी सब बच्चों को चाहे यहाँ साकार में सम्मुख बैठे हैं, चाहे देश, विदेश में विज्ञान के साधन द्वारा सुन रहे हैं, देख रहे हैं, बापदादा भी सभी को देख रहे हैं। सभी बड़े आराम से, मजे से देख रहे हैं। तो सर्व विश्व के, बापदादा के अति प्यारे अति मीठे बच्चों को बापदादा यही इशारा देते हैं कि ‘‘अभी अपने इस ब्राह्मण जीवन में अमृतवेले से लेकर रात तक बचत का खाता बढ़ाओ, जमा का खाता बढ़ाओ।’’ हर एक अपने कार्य के प्रमाण अपना प्लैन बनावे, जो भी ब्राह्मण जीवन में खज़ाने मिले हैं, उस हर एक खज़ाने की बचत वा जमा का खाता बढ़ाओ क्योंकि बापदादा ने आज वर्ष के अन्त तक चारों ओर के बच्चों की रिज़ल्ट देखी। क्या देखा, जान तो गये हो। टीचर्स भी जान गई हैं। डबल फारेनर्स भी जान गये हैं। महारथी भी जान गये हैं। जमा का खाता जितना होना चाहिए उतना.... क्या कहें? आप खुद ही बोलो, क्योंकि बापदादा जानते हैं कि सर्व खज़ाने जमा करने का समय सिर्फ अब संगम है। इस छोटे से युग में जितना जमा किया उसी प्रमाण सारा कल्प प्रालब्ध प्राप्त करते रहेंगे। जो आप सबका स्लोगन है ना - कौन-सा स्लोगन है? अब नहीं तो... पीछे क्या है? ‘‘अब नहीं तो कब नहीं’’। यह स्लोगन दिमाग में तो बहुत याद है। लेकिन दिल में, याद में भूलता भी है तो याद भी रहता है। सबसे बड़े से बड़ा खज़ाना इस ब्राह्मण जीवन की श्रेष्ठता का आधार है - संकल्प का खज़ाना, समय का खज़ाना, शक्तियों का खज़ाना, ज्ञान का खज़ाना, बाकी स्थूल धन का खज़ाना तो कामन है। तो बापदादा ने देखा जितना आप हर एक ब्राह्मण श्रेष्ठ संकल्प के खज़ाने द्वारा स्वयं को वा सेवा को श्रेष्ठ बना सकते हो, उसमें अभी और अण्डरलाइन लगानी पड़ेगी।
आप ब्राह्मणों के एक श्रेष्ठ संकल्प में, शुभ संकल्प में इतनी शक्ति है जो आत्माओं को बहुत सहयोग दे सकते हो। संकल्प शक्ति का महत्त्व अभी और जितना चाहो उतना बढ़ा सकते हो। जब साइंस का साधन राकेट, दूर बैठे जहाँ चाहे, जब चाहे, जिस स्थान पर पहुँचाने चाहे, एक सेकण्ड में पहुँचा सकते हैं। आपके शुभ श्रेष्ठ संकल्प के आगे यह राकेट क्या है! रिफाइन विधि से कार्य में लगाके देखो, आपके विधि की सिद्धि बहुत श्रेष्ठ है। लेकिन अभी अन्तर्मुखता की भट्ठी में बैठो। तो इस नये वर्ष में अपने आप सर्व खज़ानों की बचत की स्कीम बनाओ। जमा का खाता बढ़ाओ। सारे दिन में स्वयं ही अपने प्रति अन्तर्मुखता की भट्ठी के लिए समय फिक्स करो। आपेही आप कर सकते हो, दूसरा नहीं कर सकता है।
बापदादा प्रत्यक्षता वर्ष के पहले इस वर्ष को ‘‘सफलता भव का वर्ष’’ कहते हैं। सफलता का आधार हर खज़ाने को सफल करना। सफल करो, सफलता प्राप्त करो। सफलता प्रत्यक्षता को स्वत: ही प्रत्यक्ष करेगी। वाचा की सेवा बहुत अच्छी की लेकिन अब सफलता के वरदान द्वारा बाप की, स्वयं की प्रत्यक्षता को समीप लाओ। हर एक ब्राह्मणों की जीवन में सर्व खज़ानों की सम्पन्नता का आत्माओं को अनुभव हो। आजकल की आत्मायें आपके अनुभवी मूर्त द्वारा अनुभूति करने चाहती हैं। सुनने कम चाहती हैं, अनुभूति ज़्यादा चाहती हैं। ‘‘अनुभूति का आधार है - खज़ानों का जमा खाता।’’ अभी सारे दिन में बीच-बीच में यह अपना चार्ट चेक करो, सर्व खज़ाने जमा कितने किये? जमा का खाता निकालो, पोतामेल निकालो।
एक मिनट में कितने संकल्प चलते हैं? संकल्प की फास्ट गति है ना। कितने सफल हुए, कितने व्यर्थ हुए? कितने समर्थ रहे, कितने साधारण रहे? चेक करने की मशीन तो आपके पास है ना या नहीं है? सबके पास चेकिंग मशीन है? टीचर्स के पास है? आपके सेन्टर्स पर जैसे कम्प्यूटर है, ई-मेल है वैसे यह चेकिंग मशीन है? डबल फारेनर्स के पास है? चलती है या बन्द पड़ी है? पाण्डवों के पास चेकिंग मशीन है? सबके पास है, कोई के पास नहीं हो तो अप्लीकेशन डालो। जैसे कहाँ आफिस खोलते हो तो पहले ही सोचते हो कि आफिस बनाने के पहले, आजकल के जमाने में कम्प्यूटर चाहिए, ई-मेल चाहिए, टाइप मशीन चाहिए, कापी निकालने वाली मशीन चाहिए। चाहिए ना? तो ब्राह्मण जीवन में, आपके दिल के आफिस में यह सब मशीन हैं या नहीं हैं?
बापदादा ने पहले भी सुनाया कि बापदादा के पास प्रकृति भी आती है कहने के लिए कि मैं एवररेडी हूँ, समय भी ब्राह्मणों को बार-बार देखता रहता है कि ब्राह्मण तैयार हैं? बार-बार ब्राह्मणों का चक्कर लगाता है। तो बापदादा पूछते हैं, हाथ तो बहुत अच्छे उठाते हो, बापदादा भी खुश हो जाते हैं। अब ऐसे एवररेडी बनो जो हर संकल्प, हर सेकण्ड, हर श्वास जो बीते वह वाह, वाह हो। व्हाई नहीं हो, वाह, वाह हो। अभी कोई समय वाह-वाह होता है, कोई समय वाह के बजाए व्हाई हो जाता है। कोई समय बिन्दी लगाते हैं, कोई समय क्वेश्चन मार्क और आश्चर्य की मात्रा लग जाती है। आप सबका मन भी कहे वाह! और जिसके भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हो, चाहे ब्राह्मणों के, चाहे सेवा करने वालों के वाह! वाह! शब्द निकले। अच्छा।
इस सीज़न के लास्ट टर्न में कितने मास हैं, (तीन मास)। तो तीन मास के बाद बापदादा हर एक बच्चे के बचत का एकाउन्ट चेक करेगा। ठीक है? जो समझते हैं तीन मास में चेक कराने के लिए तैयार हो जायेंगे, वह एक हाथ उठाओ। तैयार हो जायेंगे? कितने परसेन्ट में तैयार होंगे? उमंग अच्छा हिम्मत और मेहनत में आपको मुबारक हो है। कोई नहीं उठा रहे हैं, सोच रहे हैं क्या? तीन मास में एकाउन्ट चेक होगा। आप अपना एकाउन्ट चेक करना, फिर बापदादा चेक करेगा। बापदादा को तो देरी नहीं लगती। यहाँ तो एकाउन्ट में कितना माथा लगाना पड़ता है। लगाना पड़ता है ना? थक जाते हैं। बापदादा को मालूम पड़ता है, हो जायेगी मालिश। मधुबन वाले एकाउन्ट रखने में तो होशियार हैं ना? सब वाह, वाह हो जायेगा। कोई बात नहीं।
बापदादा टीचर्स को देखकर बहुत खुश होता है। (सभी ने ताली बजाई) तालियां तो बहुत अच्छी बजाई। वैसे तो आप सब टीचर हो ना, या यह टीचर्स ही टीचर हैं। जब कोर्स कराते हो वा मैसेज देते हो तो क्या बनते हो? टीचर बनते हो ना? बापदादा इस वर्ष में एक नवीनता देखने चाहते हैं, सुनायें। करेंगे? पाण्डव करेंगे? पक्का? पक्का करेंगे? कुछ भी हो जाए करना पड़ेगा। तैयार हैं? सभी पाण्डव तैयार हैं? यूथ भी तैयार हैं? बापदादा सुनाये करेंगे? मातायें करेंगी? (सभी ने कहा हाँ जी) अच्छा है, बापदादा बच्चों की हिम्मत पर मुबारक दे रहे हैं। अभी सुनो एक बात, दो हाथ की ताली नहीं बजाओ, एक हाथ की ताली बजाओ। घमसान हो जाता है ना?
तो आज ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फ़ादर ब्रह्मा बाप की एक शुभ आशा रही, ब्रह्मा बाप बोले कि मेरे ग्रेट ग्रेट ग्रैण्ड सन्स को विशेष एक बात कहनी है, वह क्या? कि सदा हर बच्चे के चेहरे पर, सदा एक तो रूहानियत की मुस्कराहट हो, सुना! अच्छी तरह से कान खोल के सुनना। और दूसरा - मुख में सदा मधुरता हो। एक शब्द भी मधुरता के बिना नहीं हो। चेहरे पर रूहानियत हो, मुख में मधुरता हो और मन-बुद्धि में सदा शुभ भावना, रहमदिल की भावना, दातापन की भावना हो। हर कदम में फालो फादर हो। तो यह कर सकते हो? टीचर्स यह कर सकते हो? यूथ कर सकते हो? (ज्ञान सरोवर में देशविदेश के यूथ की रिट्रीट चल रही है) बापदादा के पास यूथ ग्रुप की रिज़ल्ट बहुत अच्छी आई है। पदमगुणा मुबारक हो। अच्छा रिज़ल्ट है। अनुभव भी अच्छे किये हैं, बापदादा खुश हुए। बापदादा ने अनुभव भी सुने। सुनी सुनाई नहीं, डायरेक्ट बापदादा ने आपके अनुभव सुने, लेकिन अभी इन अनुभवों को अमर भव के वरदान से अविनाशी रखना। कुछ भी हो जाए लेकिन अपने रूहानी अनुभवों को सदा आगे बढ़ाते रहना। कम नहीं करना। तीन मास के बाद मधुबन में आओ, नहीं आओ। तीन मास के बाद फारेन से तो आयेंगे नहीं लेकिन अपना एकाउन्ट रखना और बापदादा के पास भेजना, बापदादा राइट करेगा। या जो होगा वह परसेन्टेज़ देंगे। ठीक है? हाँ, एक हाथ की ताली बजाओ। अच्छा।
आज मुबारक का दिन है तो और खुशखबरी बापदादा ने सुनी, देखी भी। छोटे-छोटे बच्चे ताजधारी बनके बैठे हैं। आपको तो ताज मिलेगा, इन्हों को अभी मिल गया है। खड़े हो जाओ। देखो, ताजधारी ग्रुप देखो। बच्चे सदा दिल के सच्चे। सच्ची दिल वाले हो ना! अच्छा है बच्चों की रिज़ल्ट भी बापदादा ने अच्छी देखी। मुबारक हो। अच्छा।
डबल फारेनर्स - इन्हों के पत्र और चिटकियाँ भी देखी। उमंग की चिटकियां हैं। लेकिन एक बात बापदादा ने देखी, जो चिटकियों में कोई- कोई में हैं। कोई ने तो बहुत अच्छे उमंग-उत्साह से परिवर्तन भी लिखा है, उमंग भी लिखा है लेकिन कोई-कोई ने थोड़ा-सा अपना अलबेलापन दिखाया है। अलबेले कभी नहीं बनना। अलर्ट। एक बापदादा को अलबेलापन नहीं अच्छा लगता और दूसरा दिलशिकस्त होना नहीं अच्छा लगता। कुछ भी हो जाए दिल बड़ी रखो। दिलशिकस्त छोटी दिल होती है। दिलखुश बड़ी दिल होती है। तो दिलशिकस्त नहीं बनना, अलबेला नहीं बनना। उमंग-उत्साह में सदा उड़ते रहना। बापदादा को डबल विदेशियों में अरब-खरब जितनी उम्मीदें हैं। डबल फारेनर्स ऐसा जलवा दिखायेंगे जो इन्डिया की आत्मायें चकित हो जायेंगी। आना है, वह भी दिन आना है, जल्दी आना है। आना है ना? वह दिन आने वाला है ना? आयेगा वह दिन? (जल्दी-जल्दी आयेगा) हाँ जी तो बोलो। बापदादा इन एडवांस मुबारक की थालियां भरकर दे रहे हैं। इतनी हिम्मत बापदादा डबल फारेनर्स में देख रहे हैं, ऐसे है ना? फारेन में जो कर्म, जो बोल, जो वृत्ति, जो विधि हम करेंगे, हमें देख सर्व करेंगे बहुत उम्मीदें हैं। अच्छा है। यूथ भी अच्छे हैं, प्रवृत्ति वाले भी बहुत हैं, कुमारियां भी बहुत हैं, कमाल ही कमाल है। ठीक है? यह सिन्धी परिवार बोलो, क्या कमाल करेंगे? निमित्त मात्र सिन्धी हैं लेकिन हैं ब्राह्मण। क्या करेंगे, बोलो? (बाबा का नाम रोशन करेंगे) कब करेंगे? (इस वर्ष में) आपके मुख में गुलाबजामुन। हिम्मत वाले हैं। (आपका वरदान साथ में है) वरदाता ही साथ में है तो वरदान क्या बड़ी बात है। अच्छा।
जो भी इस कल्प में पहली बार आये हैं, वह उठो। जो पहली बार आये हैं, उन बच्चों को बापदादा कहते हैं कि आये पीछे हैं लेकिन जाना आगे है, इतना आगे बढ़ो जो सब आपको देख करके खुश होवें और सबके मुख से यही शब्द निकले - कमाल है, कमाल है, कमाल है। ऐसी हिम्म्त है? पहली बार आने वालों में हिम्मत है ना! नया वर्ष मनाने आये हो, तो नये वर्ष में कोई कमाल करेंगे ना! फिर भी बापदादा को सभी बच्चे अति प्यारे हैं। फिर भी बहुत अक्ल का काम किया है, टू लेट के पहले आ गये हो। अभी फिर भी इस हाल में बैठने की सीट तो मिली है ना! रहने का पलंग या पट तो मिला है ना! और जब टू लेट का बोर्ड लग जायेगा तो क्यू में खड़ा करना पड़ेगा। इसीलिए फिर भी अच्छे समय पर बापदादा को पहचान लिया, यह अक्ल का काम किया। अच्छा।
जो पुराने पाण्डव हैं, वह उठो। पाण्डवों की महिमा भी कम नहीं है। बापदादा का टाइटल है पाण्डव पति। तो पाण्डवों की महिमा है ना, पाण्डव पति और विजयी पाण्डव गाये हुए हैं। शक्तियां वरदानी गाई हुई हैं लेकिन विजयी पाण्डव गाये हुए हैं। तो हर एक पाण्डव के मस्तक पर कौन-सा तिलक लगा हुआ है? विजय का। आप अपने मस्तक में विजय का तिलक देखते हो कि भूल जाते हो? सदा अपने मस्तक में विजयी पाण्डव, विजय का तिलक चमकता हुआ देखो। विजय हर पाण्डव का जन्म सिद्ध अधिकार है। अधिकारी हैं ना? तो बापदादा पाण्डवों को विजयी रत्न के रूप में मुबारक दे रहे हैं। बहुत अच्छे हैं, बहुत हैं। पाण्डव कम नहीं हैं।
अच्छा पुरानी मातायें जो पहले आती रही हैं, वह उठो। माताओं की विशेषता क्या है? माताओं के चरणों में यह सब बड़े-बड़े मर्तबे वाले आप सबके चरणों में झुकेंगे। यह माता गुरू जो गाया हुआ है, वह सच्चा पार्ट आप मातायें बजायेंगी। जैसे अभी कोई भी बड़ा दिन होता है ना! तो भारत माता की जय गाते हैं ना! आगे चलकर आप माताओं की जय-जय गायेंगे। इतना ऊंच मर्तबा बापदादा ने माताओं को दिया है। तो मातायें जय-जयकार का आवाज सुनेंगी। माता गुरू का जो गायन है वह प्रत्यक्ष रूप में दिखायेंगी। ऐसी मातायें हो ना! सोई हुई आत्माओं को जगायेंगी। माताओं का बहुत अच्छा पार्ट है। जिन्होंने आपकी निंदा की है वह आपका कीर्तन गायेंगे क्योंकि बाप की बन गई हैं ना! ऊँचे ते ऊँचे भगवन की साथी बन गई हो। यह रूहानी नशा है ना? तो ऐसी माताओं को बापदादा भी नमस्ते कहते हैं। अच्छा।
कुमारियों से - कुमारियां हाथ हिलाओ। कुमारियां भी बहुत हैं। अभी साधारण कुमारियां तो नहीं हो। अभी आप सभी सु-कुमारियां बन गई हैं, श्रेष्ठ कुमारियां बन गई हैं। कुमारियों के लिए बापदादा को एक दिल में उमंग है, सुनायें! कुमारियां सुनेंगी? कुमारियों के लिए गायन है - 21 पीढ़ी तारने वाली हैं, तो बापदादा कहते हैं, इस वर्ष में हर एक कुमारी 21 छोड़ो लेकिन एक-एक कुमारी एक-एक वारिस क्वालिटी निकाले, हो सकता है। है हिम्मत? कितनी कुमारियां होंगी? (लगभग 1000) तो इस वर्ष में हजार वारिस तो पैदा हो जायेंगे। (हाँ जी) इन एडवांस मुबारक हो। अभी वारिसों की माला बनायेंगे। मिक्स माल तो आता रहता है। अभी वारिसों की माला बनायेंगे। ठीक है? पहले यह ट्रेनिंग दादियों से लेना कि वारिस किसको कहा जाता है? वारिस क्वालिटी की क्वालिफिकेशन कौन-सी है? समझा! तो इस वर्ष में एक-एक, एक वारिस निकाले, फिर बापदादा वारिसों की माला बनायेंगे। इस वर्ष में कोई नवीनता करेंगे ना! तो वारिस पैदा करेंगे। दिल्ली भी करेगा, तो सब करेंगे। करना ही है? और क्या करना है? यही तो करना जिन्होंने आपकी निंदा की है वह आपके कीर्तन गायेंगे है। अभी देखेंगे जो भी वारिस तैयार करे वह मधुबन में अपना समाचार लिखना, दादी वारिस आ गया। ठीक है कुमारियां? हाँ जी तो कहो।
मधुबन निवासियों से - मधुबन वालों की सेवा का चमत्कार सभी को मधुबन में खींचता है। किसी से भी पूछो तो यही सबके मुख से निकलता है, मधुबन तो मधुबन है। सेवा में नम्बरवन, ऐसे है? नम्बरवन हैं या नम्बरवार हैं? नम्बरवन हैं। बापदादा मधुबन निवासियों को सदा नम्बरवन दृष्टि से देखते हैं। नम्बरवार नहीं, नम्बरवन। है ना नम्बरवन! दादी के पास कोई कम्पलेन नहीं। सब कम्पलीट हो रहे हैं इसलिए कम्पलेन नहीं है। अच्छे हैं, फिर भी अथक तो हैं। मधुबन के सेवाधारी सब मांगते हैं। महामण्डलेश्वर भी कहकर जाते हैं मधुबन के सेवाधारी हमको भेजो। तो नम्बरवन तो हुए ना! अच्छे हैं। पक्के भी हैं, अच्छे भी हैं। ऐसे है ना! ऐसे तो नहीं बापदादा ऐसे ही कह रहा है। बापदादा को तो अच्छे लगते हैं। बाकी कभी-कभी ज्यादा काम हो जाता है, बापदादा देखते हैं कभी-कभी ज्यादा बोझ भी पड़ जाता है। लेकिन फिर भी अमर हैं। अमर भव का वरदान मिला हुआ है। ठीक है ना! अमर हैं? अच्छा। मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।
अच्छा - टीचर्स उठो। बापदादा सदा टीचर्स को इसी नज़र से देखते हैं कि हर टीचर के फीचर्स में बापदादा के फीचर्स दिखाई दें। फेस में ब्रह्मा बाप के फीचर्स और भ्रकुटी में ज्योतिबिन्दु के फीचर, किसी भी टीचर को देखो तो सबके मुख से यही निकले कि यह तो बाप समान हैं। यह तो ब्रह्मा बाबा जैसे लगते हैं, यह तो शिव बाप जैसे लगते हैं। हैं भी और होने ही हैं। तो टीचर्स आधार मूर्त हैं। जैसे बाप के लिए कहते हैं - ब्रह्मा बाप का सदा यही स्लोगन रहा ‘‘जो कर्म मैं करूंगा वह सब करेंगे’’। ऐसे हर एक टीचर को यही स्लोगन सदा याद रहता है कि ‘‘जो कर्म, जो बोल, जो वृत्ति, जो विधि हम करेंगे, हमें देख सर्व करेंगे।’’ बापदादा ने ब्रह्मा बाप की गद्दी आप टीचर्स को बैठने के लिए दी है। मुरली सुनाने के लिए निमित्त टीचर्स हैं, बाप की गद्दी मिली हुई है। ड्रामा ने आप टीचर्स को बहुत-बहुत ऊंचा मर्तबा दिया है।
बापदादा भी सदा टीचर्स को इसी विशेष महत्त्व से देखते हैं। महान हो, महत्त्व वाले हो। है ना ऐसे? कभी स्टूडेन्ट से सर्टीफिकेट लेवें? बापदादा तो देखते रहते हैं। (बाबा टीचर्स को पकड़ो) यह तो प्रेम में पकड़ी हुई हैं तब तो टीचर्स बनी हैं। अभी कान दादी पकड़ेगी, बाप तो प्यार में पकड़ेंगे। फिर भी हिम्मत रखकर निमित्त तो बनी हैं ना! (दादी कह रही हैं टीचर्स बहुत अच्छी हैं) बहुत अच्छी हो, मुबारक हो। अच्छे तो हैं ही। अगर टीचर्स नहीं होते तो इतने सेन्टर्स कैसे खुलते। मुबारक हो आप सबको। बापदादा तो बहुत-बहुत श्रेष्ठ नज़र से देखते हैं। टीचर्स भी बहुत आई हैं। अच्छी हैं - हिम्मत और मेहनत में मुबारक हो।
बाकी हॉस्पिटल वाले रह गये। हॉस्पिटल वालों ने अपने नये साल का उमंग-उत्साह अच्छा लिखा है और बापदादा को सदा निश्चय रहता है और निश्चिंत रहते हैं कि हॉस्पिटल अनेक आत्माओं को ब्राह्मण जीवन में लायेगी। ब्राह्मणों की सेवा भी कर रही है और ब्राह्मण भी बनायेगी। बड़े-बड़े वी.आई.पी. हॉस्पिटल का नाम सुन प्रभावित होंगे। अभी आयेंगे आपके पास। चार्ट अच्छा लिखा है और प्रतिज्ञा भी अच्छी की है। बापदादा खुश है। सबने बहुत अच्छी रूचि से किया है। अच्छा। आप सबका प्रतिज्ञा पत्र पढ़कर बापदादा खुश हुए, इसलिए मुबारक हो।
अभी जो साइंस के साधनों से देख रहे हैं वह भी खुश हो रहे हैं कि बापदादा ने हमारा नाम नहीं लिया। बापदादा कहते हैं जो भी जहाँ देख रहे हैं, सुन रहे हैं, आप भी उठ जाओ। सुनकर खुश हो रहे हैं, मुस्करा रहे हैं। बापदादा को सभी बच्चों का उमंग-उत्साह और दिल का प्यार बहुत श्रेष्ठ लगता है। देखो दिल का प्यार है तो समय प्रमाण पहुँच जाते हैं। बड़े उत्साह से सुनते भी रहते हैं, देखते भी रहते हैं, कोई देखता है, कोई नहीं भी देखता, लेकिन सुनते बहुत हैं। तो बापदादा नव युग की, नये वर्ष की एक-एक बच्चे को नाम सहित, विशेषता सहित मुबारक दे रहे हैं। वह भी हाथ उठा रहे हैं, हिला रहे हैं। अच्छा।
सभी बच्चों के कार्ड और पत्र, नये वर्ष की मुबारकें बहुत-बहुत आई हैं। बापदादा कहते हैं बच्चे आपके कार्ड के पहले आपकी हार्ट पहुँच जाती है| बापदादा सबकी दिल को देख खुश होते हैं। चलो खर्चा तो होता है, हाँ कल के बाद यह कार्ड सब यादगार रूप में रह जायेंगे। लेकिन बापदादा इस बात पर खुश होते हैं, खर्चे को नहीं देखते हैं, बापदादा देखते हैं कि बच्चों के दिल का क्या आवाज निकलता है। क्या दिल का प्यार हाथों से कार्ड में आता है। इसलिए कार्ड बहुत अच्छा एक-दो से अच्छे से अच्छे बनाये हैं। आप लोग देखना यहाँ कार्ड रखे हैं ना! अच्छा।
ज्युरिस्ट से - जो ज्यूरिस्ट मीटिंग में आये हैं वह उठो। बापदादा की एक प्वाइंट जो रही हुई है, पता है। कौन-सी प्वाइंट रही हुई है? (गीता के भगवान की) तो इसका प्लैन कब बनायेंगे? किताब लिखा वह तो अच्छा किया, लेकिन कोई ग्रुप तैयार करो जो कहे कि हाँ यह जो बोलते हैं, वह ठीक है। कोई एक ग्रुप तो छोटा तैयार करो ना। इस वर्ष में लायेंगे ना क्योंकि जो किसने नहीं किया है, वह करके दिखाना है। यह पत्र यहाँ भरवा करके आवे कि हाँ गीता का भगवान जो आपने बताया वह बिल्कुल सही है, कोई ऐसे अथॉरिटी वालों का आवे। बाकी आम जनता के लिए गीता का भगवान कोई भी हो, कृष्ण हो या निराकार हो। कोई ऐसे अथॉरिटी वाले बोलें, सिद्ध करें, कि हाँ आपकी यह बात बहुत आवश्यक है, ऐसा ग्रुप बनाओ। बना सकते हैं कोई बड़ी बात नहीं है। धार्मिक संस्था, जो आपका धार्मिक वर्ग है और जो जस्टिस हैं, वकील हैं, ऐसे धर्म क्षेत्र वालों का ग्रुप बनाओ जो विशेष निमित्त हो। अभी महात्मायें भी तो बहुत आये थे ना। अच्छा-अच्छा तो कहके गये। अभी ऐसी बात उन्हों से लिखवाओ। दोनों ही वर्ग मिल करके करो, हो जायेगा, कोई बड़ी बात नहीं है। ऐसे तो सभी वर्ग वाले एक-दो के सहयोगी तो हैं ही, जिसका भी सहयोग चाहिए वह मिल सकता है। लेकिन कुछ करके दिखाओ। इसी से ही प्रत्यक्षता होगी। लोगों को नई बात चाहिए ना। ठीक है ना! करके दिखायेंगे। होना ही है। जब कल्प पहले हुआ है तो अब भी रिपीट तो होना ही है। भले आये। मुबारक हो। अच्छा है - जब से यह अलग-अलग वर्ग बने हैं तो सेवा में वृद्धि तो हुई है और हर एक को उमंग आता है, हम कुछ करके दिखायें, करके दिखायें। लेकिन वारिस नहीं निकाले हैं। हर एक वर्ग को वारिस निकालने चाहिए। अभी मिक्स तो आते ही रहते हैं, अभी लास्ट में वारिस की माला बनाओ। जैसे आदि में थोड़े से निमित्त वारिस बने, ऐसे अन्त में भी ऐसे वारिस क्वालिटी निमित्त बनेगी। अच्छा।
महाराष्ट्र के सेवाधारी - वैसे तो सबको मुबारक मिल गई है फिर भी जिन्होंने सेवा का बड़े से बड़ा पुण्य जमा किया है उनको सेवा के पुण्य की मुबारक हो। यह पुण्य कम नहीं है। यह भी एक जीवन में सहज जमा का खाता बढ़ जाता है क्योंकि ब्राह्मणों की प्रसन्नता, सन्तुष्टता पुण्य का खाता बढ़ाती है। तो यह भी चांस बहुत अच्छा, हर ज़ोन लेते रहते हैं, यह अच्छा है। अच्छा लगता है ना! पुण्य भी जमा होता है, नजदीक भी आना होता है, तो मुबारक हो महाराष्ट्र को। अच्छा।
विश्व के चारों ओर के सर्व सफलता मूर्त बच्चों को, सर्व सफल करने वाले तीव्र पुरुषार्थी बच्चों को, सदा अपने एकाउन्ट को चेक करने वाले चेकर और भविष्य मेकर ऐसे श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा अपने हर कदम में बाप को प्रत्यक्ष करने वाले ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर के सर्व ग्रैण्ड सन्स को बाप और दादा का बहुत-बहुत-बहुत-बहुत याद-प्यार, मुबारक और नमस्ते।
दिल्ली तथा सोनीपत के भवन निर्माण प्रति बापदादा के इशारे
सभी ब्राह्मण परिवार के समाचार, पत्रों द्वारा समाचार तो सब सुनते रहते हैं। तो आजकल सबके संकल्प में, सहयोग में क्या याद रहता है? कि हमारी राजधानी में, आप सबकी राजधानी कौन-सी है? मधुबन है घर और राज्य कहाँ करना है? दिल्ली में करना है, मधुबन में नहीं। मधुबन में कृष्ण का महल बनेगा या दिल्ली में बनेगा? मधुबन में नहीं बनेगा? तो राजधानी याद रहती है, सभी को राजधानी याद है? तो सभी के सहयोग से अभी राजधानी में विशेष सेवास्थान बन रहा है, आप सबने बीज डाला है? सभी ने डाला है? क्योंकि बीज डालेंगे तभी फल खायेंगे ना। बिना बीज डालने के फल कैसे खायेंगे। तो सभी ने बीज डाला है और भी डालते रहेंगे क्योंकि इस बीज से अनेक प्रकार के प्रत्यक्षता के फल निकलेंगे। इसलिए सबको अपने-अपने तरफ से सफलता वर्ष में सब सफल करना ही है। सर्व खज़ाने सफल करना है। उसके साथ बीज भी डालना है, डालते रहते हैं, डालते रहेंगे। ठीक है ना! डालते रहेंगे ना! हाथ उठाओ कि समझते हैं पूरा हो गया? जब तक सेवा है तो सेवा में बीज डालते जाओ और फिर फल भी आप सबको खाना है। जब प्रत्यक्षता का फल निकलेगा ना तो आप सब खायेंगे, सिर्फ दिल्ली वाले नहीं सब खायेंगे। बापदादा से प्यार है ना! तो सेवा से भी प्यार है। तो सेवा का फल भी बहुत प्यारा है। मानेसर की धरनी के सेवाधारी कौन-कौन आये हैं, वह उठो। अच्छा है, काम ठीक चल रहा है? ठीक चल रहा है और ठीक चलता रहेगा। बाप के सेवास्थानों को बाप का वरदान मिला हुआ ही है। होना ही है। सर्व के सहयोग से सेवा सफल होनी ही है। ठीक है ना! अच्छा है। जैसे उमंग-उत्साह से बेहद की वृत्ति से स्थान बना है, ऐसे ही बेहद की वृत्ति, दृष्टि और सेवा से सफलता भी बेहद की मिलनी है। सब बेहद होना है। तो बेहद में तो आप सभी हो ना! ऐसे कभी नहीं समझना यह दिल्ली का है, हमारा है क्योंकि प्रत्यक्षता का बीज आप सबका है। निमित्त दिल्ली है लेकिन फल आप सबको खाना है, मिल के खायेंगे। इसलिए बापदादा को भी खुशी है कि बेहद के उमंग-उत्साह से बेहद की सेवा बढ़ रही है, बढ़ती जायेगी। अच्छा। सोनीपत का भी तैयार होना है। वह भी दिल्ली है ना, चाहे कोई भी है, है तो दिल्ली ही। (लण्डन में भी डायमण्ड हाउस बन रहा है) देखो, विदेश तो हर समय जम्प देता है। विदेश जम्प नहीं देवे, यह हो ही नहीं सकता। यह डायमण्ड हाउस बना तो वहाँ भी ज़रूर होना ही चाहिए। (मिन्नी मधुबन बन रहा है) छोटे से बड़ा, व्हाइट हाउस जितना भी मिल जायेगा।
बापदादा ने बच्चों से मिलन मनाने के पश्चात नये वर्ष की मुबारक दी
चारों ओर के सफलता के सितारों को पुराने वर्ष की विदाई और नये वर्ष की बधाई के संगम समय की, संगम समय विदाई भी है, बधाई भी है। तो सदा सफल है और सफल रहेंगे। कभी भी असफलता का नाम निशान नहीं रहेगा। बापदादा के अति सिकीलधे, अति प्यारे, अति मीठे, नयनों के नूर हो। सब नम्बरवन बनना ही है, इस दृढ़ संकल्प से हर कदम बाप समान उठाते रहना, पदम गुणा, अरब-खरब गुणा मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।
2002, 1 जनवरी, 31 दिसम्बर रात्रि 12 बजे के बाद दादी जी ने सभी से गुडमार्निंग की।
आज नये साल और पुराने साल के संगम पर बाबा ने तो वायदा कराया हम सभी वायदे को निभायेंगे और सबको बहुत-बहुत प्यार से हैप्पी न्यू ईयर, हैप्पी न्यू ईयर। गुडमार्निंग।
विदाई के समय बापदादा ने सभी बच्चों से गुडमॉर्निंग, डायमण्ड मार्निंग की।
बापदादा के बहुत-बहुत अमूल्य डायमण्डस को, डायमण्ड मार्निंग, डायमण्ड मार्निंग, डायमण्ड मार्निंग।
ओम् शान्ति
18-01-2002 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
स्नेह की शक्ति द्वारा समर्थ बनो, सर्व आत्माओं को सुख-शान्ति की अंचली दो
आज समर्थ बाप अपने स्मृति स्वरूप, समर्थ स्वरूप बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। आज विशेष चारों ओर के बच्चों में स्नेह की लहर लहरा रही है। विशेष ब्रह्मा बाप के स्नेह की यादों में समाये हुए हैं। यह स्नेह हर बच्चे के इस जीवन का वरदान है। परमात्म स्नेह ने ही आप सबको नई जीवन दी है। हर एक बच्चे को स्नेह की शक्ति ने ही बाप का बनाया। यह स्नेह की शक्ति सब सहज कर देती है। जब स्नेह में समा जाते हो तो कोई भी परिस्थिति सहज अनुभव करते हो। बापदादा भी कहते हैं कि सदा स्नेह के सागर में समाये रहो। स्नेह छत्रछाया है, जिस छत्रछाया के अन्दर कोई माया की परछाई भी नहीं पड़ सकती। सहज मायाजीत बन जाते हो। जो निरन्तर स्नेह में रहता है उसको किसी भी बात की मेहनत नहीं करनी पड़ती है। स्नेह सहज बाप समान बना देता है। स्नेह के पीछे कुछ भी समार्पित करना सहज होता है।
तो आज भी अमृतवेले से हर एक बच्चे ने स्नेह की माला बाप को डाली और बाप ने भी स्नेही बच्चों को स्नेह की माला डाली। जैसे इस विशेष स्मृति दिवस में अर्थात् स्नेह के दिन में स्नेह में समाये रहे ऐसे ही सदा समाये रहो, तो मेहनत का पुरूषार्थ करना नहीं पड़ेगा। एक है स्नेह के सागर में समाना और दूसरा है स्नेह के सागर में थोड़े समय के लिए डुबकी लगाना। तो कई बच्चे समाये हुए नहीं रहते हैं, जल्दी से बाहर निकल आते हैं। इसलिए सहज मुश्किल हो जाता है। तो समाना आता है? समाने में ही मज़ा है। ब्रह्मा बाप ने सदा बाप का स्नेह दिल में समाया, इसका यादगार कलकत्ता में दिखाया है।
अब बापदादा सभी बच्चों से यही चाहते हैं कि बाप के प्यार का सबूत समान बनने का दिखाओ। सदा संकल्प में समर्थ हो, अब व्यर्थ के समाप्ति समारोह मनाओ क्योंकि व्यर्थ समर्थ बनने नहीं देंगे और जब तक आप 49 निमित्त बने हुए बच्चे सदा समर्थ नहीं बने हैं तो विश्व की आत्माओं को समर्थी कैसे दिलायेंगे! सर्व आत्मायें शक्तियों से बिल्कुल खाली हो, शक्तियों की भिखारी बन चुकी हैं। ऐसे भिखारी आत्माओं को हे समर्थ आत्मायें, इस भिखारीपन से मुक्त करो। आत्मायें आप समर्थ आत्माओं को पुकार रही हैं - हे मुक्तिदाता के बच्चे मास्टर मुक्तिदाता, हमें मुक्ति दो। क्या यह आवाज आपके कानों में नहीं पड़ता? सुनने नहीं आता? अब तक अपने को ही मुक्त करने में बिजी हैं क्या? विश्व की आत्माओं को बेहद स्वरूप से मास्टर मुक्तिदाता बनने से स्वयं की छोटी-छोटी बातों से स्वत: ही मुक्त हो जायेंगे। अब समय है कि आत्माओं की पुकार सुनो। पुकार सुनने आती है या नहीं आती है? परेशान आत्माओं को सुख-शान्ति की अंचली दो। यही है ब्रह्मा बाप को फॉलो करना।
आज विशेष ब्रह्मा बाप को याद ज्यादा किया ना! ब्रह्मा बाप ने भी सभी बच्चों को स्मृति और समर्थी स्वरूप से याद किया। कई बच्चों ने ब्रह्मा बाप से रूहरूहान करते मीठा-मीठा उलहना भी दिया कि आप इतना जल्दी क्यों चले गये? और दूसरा उलहना दिया कि हम सब बच्चों से छुट्टी लेकर क्यों नहीं गये? तो ब्रह्मा बाप ने बोला कि मैंने भी शिव बाप से पूछा कि हमें अचानक क्यों बुला लिया? तो बाप ने बोला - अगर आपको कहते कि छुट्टी लेके आओ तो क्या आप बच्चों को छोड़ सकते थे, या बच्चे आपको छोड़ सकते थे? आप अर्जुन का तो यही यादगार है कि अन्त में नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप ही रहे हैं। तो ब्रह्मा बाप मुस्कराये और बोले कि यह तो कमाल थी जो बच्चों ने भी नहीं समझा कि जा रहे हैं और ब्रह्मा ने भी नहीं समझा जा रहा हूँ। सामने होते भी दोनों तरफ चुप रहे क्योंकि समय प्रमाण सन शोज़ फादर का पार्ट ड्रामा की नूंध थी, इसको कहते हैं वाह ड्रामा वाह! सेवा का परिवर्तन नूंधा हुआ था। ब्रह्मा बाप को बच्चों का बैकबोन बनना था। तो अव्यक्त रूप में फास्ट सेवा का पार्ट बजाना ही था।
विशेष आज डबल विदेशियों ने बहुत मीठे-मीठे उलहने दिये हैं। डबलप् फारेनर्स ने उलहने दिये? डबल फारेनर्स ने ब्रह्मा बाप को बोला तीन साल आप रूक जाते तो हम देख तो लेते। तो ब्रह्मा बाप ने हंसी में बोला, हंसी की - तो ड्रामा से बात करो, ड्रामा ने ऐसा क्यों किया? लेकिन यह लास्ट सो फास्ट का एक्जैम्पुल बनना ही था - चाहे भारत में, चाहे विदेश में। इसलिए अभी लास्ट सो फास्ट का प्रत्यक्ष सबूत दिखाओ। जैसे आज समर्थ दिवस मनाया, ऐसे ही अब हर दिन समर्थ दिवस हो। किसी भी प्रकार की हलचल न हो। जो ब्रह्मा बाप ने आज के दिन तीन शब्दों में शिक्षा दी, (निराकारी, निर्विकारी और निरंहकारी) इन तीन शब्दों के शिक्षा स्वरूप बनो। मनसा में निराकारी, वाचा में निरहंकारी, कर्मणा में निर्विकारी। सेकण्ड में साकार स्वरूप में आओ, सेकण्ड में निराकारी स्वरूप में स्थित हो जाओ। यह अभ्यास सारे दिन में बार-बार करो। ऐसे नहीं सिर्फ याद में बैठने के टाइम निराकारी स्टेज में स्थित रहो लेकिन बीच-बीच में समय निकाल इस देहभान से न्यारे निराकारी आत्मा स्वरूप में स्थित होने का अभ्यास करो। कोई भी कार्य करो, कार्य करते भी यह अभ्यास करो कि मैं निराकार आत्मा इस साकार कर्मेन्द्रियों के आधार से कर्म करा रही हूँ। निराकारी स्थिति करावनहार स्थिति है। कर्मेन्द्रियां करनहार हैं, आत्मा करावनहार है। तो निराकारी आत्म स्थिति से निराकारी बाप स्वत: ही याद आता है। जैसे बाप करावनहार है ऐसे मैं आत्मा भी करावनहार हूँ। इसलिए कर्म के बन्धन में बंधेंगे नहीं, न्यारे रहेंगे क्योंकि कर्म के बन्धन में फंसने से ही समस्यायें आती हैं। सारे दिन में चेक करो - करावनहार आत्मा बन कर्म करा रही हूँ? अच्छा! अभी मुक्ति दिलाने की मशीनरी तीव्र करो।
अच्छा - इस बारी जो इस कल्प में इस बार आये हैं, वह हाथ उठाओ। तो नये-नये आने वाले बच्चों को बापदादा विशेष याद-प्यार दे रहे हैं कि समय पर बाप को पहचान बाप से वर्से के अधिकारी बन गये हैं। सदा अपने इस भाग्य को याद रखना कि हमने बाप को पहचान लिया।
अच्छा - डबल फारेनर्स हाथ उठाओ। बहुत अच्छा। डबल फारेनर्स को बापदादा कहते हैं कि ब्रह्मा के संकल्प की पैदाइस हैं। एक हैं डायरेक्ट मुख द्वारा वंशावली और दूसरे हैं संकल्प द्वारा वंशावली। तो संकल्प शक्ति बड़ी 51 महान होती है। जैसे संकल्प शक्ति फास्ट है, ऐसे ही आपकी रचना डबल फारेनर्स फास्ट पुरूषार्थ और फास्ट प्रालब्ध अनुभव करने वाले हैं इसलिए सारे ब्राह्मण परिवार में डबल फारेनर्स डबल सिकीलधे हो। भारत के भाई- बहनें आपको देख करके खुश होते हैं, वाह डबल फारेनर्स वाह! डबल फारेनर्स को खुशी होती है ना? कितनी खुशी है? बहुत है? कोई ऐसी चीज़ ही नहीं है जिससे तुलना कर सकें। डबल फारेन में भी सुन रहे हैं, देख भी रहे हैं। अच्छा है, यह साइंस के साधन आपको बेहद की सेवा करने में बहुत साथ देंगे और सहज सेवा करायेंगे। आपकी स्थापना के कनेक्शन से ही यह साइंस की भी तीव्रगति हुई है।
अच्छा - सभी पाण्डव समर्थ हैं ना? कमज़ोर तो नहीं, सब समर्थ हैं? और शक्तियां, समान बाप? शक्ति सेना हो। शक्तियों की शक्ति मायाजीत बनाने वाली है।
अच्छा। आज विशेष शृंगार करने वाले भी आये हैं (कलकत्ता के भाई-बहनें फूल लेकर आये हैं, सब जगह फूलों से बहुत अच्छा शृंगार किया है) यह भी स्नेह की निशानी है। अच्छा है अपना स्नेह का सबूत दिया। अच्छा। टीचर्स हाथ उठाओ। हर ग्रुप में टीचर्स बहुत आती हैं। टीचर्स को चांस अच्छा मिल जाता है। सेवा का प्रत्यक्ष फल मिल जाता है। अच्छा है अभी अपने फीचर्स द्वारा सभी को फ्यूचर का साक्षात्कार कराओ। सुना, क्या करना है? अच्छा।
मधुबन वाले हाथ उठाओ - बहुत अच्छा। मधुबन वालों को चांस बहुत मिलते हैं। इसीलिए बापदादा कहते हैं मधुबन वाले हैं रूहानी चांसलर्स। चांसलर हो ना? सेवा करनी पड़ेगी। फिर भी सबको मधुबन निवासी राज़ी तो कर लेते हैं ना! इसीलिए बापदादा मधुबन वालों को कभी भूलते नहीं हैं। मधुबन निवासियों को खास याद करते हैं। मधुबन वालों को क्यों याद करते हैं? क्योंकि मधुबन वाले बाप के प्यार में मैजारिटी पास हैं। मैजारिटी, बाप से प्यार अटूट है। कम नहीं हैं मधुबन वाले, बहुत अच्छे हैं।
इन्दौर ज़ोन के सेवाधारी आये हैं - इन्दौर ज़ोन वाले हाथ उठाओ। बहुत हैं, अच्छा है। सेवा करना अर्थात् समीप आने का फल खाना। सेवा का चांस लेना अर्थात् पुण्य जमा करना। दुआयें जमा करना। तो सभी सेवाधारियों ने अपना पुण्य का खाता जमा किया। यह दुआयें वा पुण्य एकस्ट्रा लिफ्ट का काम करती हैं।
अच्छा - देश वा विदेश जो दूर बैठे भी समीप हैं, सभी बच्चों को बापदादा स्नेह के दिवस के रिटर्न में पदमगुणा स्नेह का याद-प्यार दे रहे हैं। बापदादा देखते हैं कि कहाँ क्या बजता है, कहाँ क्या टाइम होता है लेकिन जागती ज्योति अथक बन सुन रहे हैं और खुश हो रहे हैं। बापदादा बच्चों की खुशी देख रहे हैं। बोलो, सभी खुशी में नाच रहे हो ना? सभी कांध हिला रहे हैं, हाँ बाबा। जनक बच्ची भी बहुत मीठा-मीठा मुस्करा रही है। वैसे तो सब बाप को याद हैं लेकिन कितनों का नाम लें। अनेक बच्चे हैं इसलिए बापदादा कहते हैं हर एक बच्चा अपने नाम से पर्सनल याद-प्यार स्वीकार कर रहे हैं और करते रहना। अच्छा - अभी एक सेकण्ड में निराकारी स्थिति में स्थित हो जाओ। (बापदादा ने ड्रिल कराई)
लिविंग वैल्यूज़ की ट्रेनिंग चल रही है:- अच्छा सेवा का साधन है। लिविंग वैल्यू कराते-कराते अपनी लवली लिविंग का अभ्यास बढ़ाते रहना।
अच्छा - बापदादा आज एक बात गुल्ज़ार बच्ची को कह रहे थे, विशेष मुबारक दे रहे थे कि ब्रह्मा तन की सेवा जैसा इस रथ ने भी 33 वर्ष पूरे किये। यह भी ड्रामा में पार्ट है। बाप की मदद और बच्ची की हिम्मत, दोनों मिलकर पार्ट बजाते हैं। अच्छा - सर्व सदा स्नेह के सागर में समाये हुए, सदा लव में लीन रहने वाले, सदा करावनहार आत्मा स्वरूप में स्थित रहने वाले, सदा तीन शब्दों के ‘‘शिव-मंत्र’’ को प्रत्यक्ष जीवन में लाने वाले, सदा बाप के समान मास्टर मुक्तिदाता बन विश्व की आत्माओं को मुक्ति दिलाने वाले ऐसे सर्व श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
दादी जी से
आज के दिन बाप ने बच्चों को विशेष विश्व के सामने प्रत्यक्ष किया। बाप करावनहार बने और बच्चों को करनहार बनाया। अच्छा है, यह स्नेह की लहर सभी को समा देती है। अच्छा - शरीर को चलाने की विधि आ गई है ना! चलाते-चलाते बाप समान अव्यक्त बन जायेंगी। सहज पुरूषार्थ है - दुआयें। सारे दिन में कोई भी नाराज़ नहीं हो, दुआयें मिलें - यह है फर्स्ट क्लास पुरूषार्थ। सहज भी है, फर्स्ट भी है। ठीक है ना! शरीर कैसे भी हो लेकिन आत्मा तो शक्तिशाली है ना! तो जो आप सभी बच्चों ने 14 वर्ष तपस्या की, वह तपस्या का बल सेवा करा रहा है। अभी तो आपके बहुत साथी बन गये हैं। अच्छे-अच्छे सेवा के साथी हैं। बस आपको देखकर खुश होते हैं, यही बहुत है। ठीक है।
(वरिष्ठ बड़े भाइयों से) - ड्रामानुसार जो सेवा के प्लैन बनते हैं, वह अच्छे बन रहे हैं और हर एक सदा संगठन में स्नेह वा दुआयें लेने के लिए बालक सो मालिक का पाठ पक्का कर एक दो को आगे बढ़ाते हुए, एक दो के विचारों को भी सम्मान देते हुए आगे बढ़ते हैं तो सफलता ही सफलता है। सफलता तो होनी ही है। लेकिन अभी जो निमित्त आत्मायें हैं उन्हों को विशेष स्नेह के सम्बन्ध में लाना; यह सबके पुरूषार्थ को तीव्र बनाना है। स्नेह, नि:स्वार्थ स्नेह, जहाँ नि:स्वार्थ स्नेह है वह सम्मान देंगे भी और लेंगे भी। वर्तमान समय स्नेह की माला में सबको पिरोना, यही विशेष आत्माओं का कार्य है और इससे ही, स्नेह संस्कारों को परिवर्तन भी करा सकता है। ज्ञान हर एक के पास है लेकिन स्नेह कैसे भी संस्कार वाले को समीप ला सकता है। सिर्फ स्नेह के दो शब्द सदा के लिए उनके जीवन का सहारा बन सकता है। नि:स्वार्थ स्नेह जल्द से जल्द माला तैयार कर देगा। ब्रह्मा बाप ने क्या किया? स्नेह से अपना बनाया। तो आज इसकी आवश्यकता है। है ना ऐसे!
(सोनीपत के लिए मीटिंग हो रही है, वहाँ अनुभूति कराने के लिए साधनों का उपयोग कैसे करें) वह तो प्लैन बना रहे हैं, हर एक के संकल्प, विचारों को जो विशेष मैजारिटी स्वीकार करें, वह बनाओ। अनुभूति तब करा सकेंगे जब अनुभूति स्वरूप बनेंगे। अच्छा।
03-02-2002 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
लक्ष्य और लक्षण को समान बनाओ, सर्व खज़ानों में सम्पन्न बनो
आज सर्व खज़ानों के मालिक अपने खज़ानों से सम्पन्न बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा सर्व खज़ानों से सम्पन्न है। जो सम्पन्न होता है उनकी निशानी सदा प्राप्ति स्वरूप, तृप्त आत्मा दिखाई देगी। सदा खुश नज़र आयेगी क्योंकि भरपूर है। तो हर एक अपने से पूछे कि हमारे पास कितने खज़ाने जमा हैं? यह अविनाशी खज़ाने अब भी प्राप्त हैं और भविष्य में अनेक जन्म साथ रहेंगे। यह खज़ाने खत्म नहीं होने वाले हैं। सबसे पहला खज़ाना है - ज्ञान का खज़ाना, जिस ज्ञान के खज़ाने से इस समय भी आप सभी मुक्ति और जीवनमुक्ति का अनुभव कर रहे हो। जीवन में रहते, पुरानी दुनिया में रहते, तमोगुणी वायुमण्डल में रहते ज्ञान के खज़ाने के आधार से इन सब वायुमण्डल, वायब्रेशन से न्यारे मुक्त हो, कमल पुष्प समान न्यारे मुक्त आत्मायें दु:ख से, चिंताओं से, अशान्ति से मुक्त हो। जीवन में रहते बुराइयों के बन्धनों से मुक्त हो। व्यर्थ संकल्पों के तूफान से मुक्त हो। हैं मुक्त? सभी हाथ हिला रहे हैं।
तो मुक्ति और जीवनमुक्ति इस ज्ञान के खज़ाने का फल है, प्राप्ति है। चाहे व्यर्थ संकल्प आने की कोशिश करते हैं, निगेटिव भी आते हैं लेकिन ज्ञान अर्थात् समझ है कि व्यर्थ संकल्प वा निगेटिव का काम है आना और आप ज्ञानी तू आत्माओं का काम है इनसे मुक्त, न्यारे और बाप के प्यारे रहना। तो चेक करो - ज्ञान का खज़ाना प्राप्त है? भरपूर है? सम्पन्न है या कम है? अगर कम है तो उसको जमा करो, खाली नहीं रहना।
ऐसे ही योग का खज़ाना - जिससे सर्व शक्तियों की प्राप्ति होती है। तो अपने को देखो योग के खज़ाने द्वारा सर्व शक्तियां जमा हैं? सर्व? एक भी शक्ति अगर कम होगी तो समय पर धोखा दे देगी। आप सबका टाइटल – मास्टर सर्वशक्तिवान है, शक्तिवान नहीं, सर्वशक्तिवान। तो सर्व शक्तियों का खज़ाना योगबल द्वारा जमा है? भरपूर है, प्राप्ति स्वरूप है वा कमी है? क्यों? अभी अपनी कमी को भर सकते हो। अभी चांस है। फिर सम्पन्न करने का समय समाप्त हो जायेगा तो कमी रह जायेगी। चेक करो - एक- एक शक्ति को सामने लाओ और सारे दिन की दिनचर्या में चेक करो - अगर परसेन्टेज़ भी कम है तो फुल पास नहीं कहेंगे क्योंकि आप सबका लक्ष्य है, किसी भी बच्चे से पूछते हैं कि फुल पास होना है या हाफ पास? तो सभी कहते हैं कि हम तो सूर्यवंशी बनेंगे, चन्द्रवंशी नहीं बनेंगे। चन्द्रवंशी बनेंगे? बापदादा बहुत अच्छा तख्त देंगे, बनेंगे चन्द्रवंशी? इण्डिया वाले सूर्यवंशी बन जाएं, फारेन वाले चन्द्रवंशी बन जाएं, बनेंगे? नहीं बनेंगे? सूर्यवंशी बनना है? बनना ही है। यह तो बापदादा चिटचैट कर रहे हैं। जब सूर्यवंशी बनना ही है, दृढ़ निश्चय है, बाप से और स्वयं से प्रतिज्ञा कर ली है तो अब से किसी भी शक्ति की परसेन्टेज़ कम नहीं हो। अगर कहेंगे सरकमस्टांश अनुसार, समस्याओं अनुसार परसेन्टेज़ कम रह गई तो 14 कला बन जायेंगे। इसलिए आजकल बापदादा चारों ओर के सभी बच्चों का पोतामेल, रजिस्टर चेक कर रहा है। बापदादा के पास भी हर एक का रजिस्टर है क्योंकि समय के अनुसार पहले ही बापदादा बच्चों को सुना रहे हैं कि समय की रफ्तार अनुसार अभी कब नहीं कहो, अब। कब हो जायेगा, कर लेंगे....होना तो है ही.. यह नहीं सोचो। होना तो है नहीं, अभी-अभी करना ही है। समय की रफ्तार तीव्र हो रही है इसलिए जो लक्ष्य रखा है बाप समान बनने का, फुल पास होने का, 16 कला सम्पन्न बनने का, तो बापदादा भी यही चाहते हैं कि लक्ष्य और प्रैक्टिकल में लक्षण समान हों। जब लक्ष्य और लक्षण दोनों समान होंगे तब ही बाप समान सहज बन जायेंगे। तो चेक करो - हो जायेगा, बन ही जायेंगे...यह अलबेलापन है। जो करना है, जो बनना है, जो लक्ष्य है, वह अभी से ही करना है, बनना है। कभी शब्द नहीं लगाओ, अभी-अभी।
तो ज्ञान का खज़ाना, योग का खज़ाना और भी धारणाओं का खज़ाना है। जिससे (धारणाओं से) गुणों का खज़ाना जमा हो जाता है। गुणों में भी जैसे सर्व शक्तियां हैं, ऐसे ही सर्वगुण हैं, सिर्फ गुण नहीं हैं, सर्वगुण हैं। तो सर्व गुण हैं या सोचते हो एक दो गुण कम हुआ, तो क्या हुआ, चलेगा? नहीं चलेगा। तो सर्व गुणों का खज़ाना जमा है? कौन से गुण की कमी है उसको चेक करके भरपूर हो जाओ।
चौथी बात है - सेवा। सेवा द्वारा सभी को अनुभव है, जब भी मनसा सेवा या वाणी द्वारा वा कर्म द्वारा भी सेवा करते हो तो उसकी प्राप्ति आत्मिक खुशी मिलती है। तो चेक करो सेवा द्वारा खुशी की अनुभूति कहाँ तक की है? अगर सेवा की और खुशी नहीं हुई, तो वह सेवा यथार्थ सेवा नहीं है। सेवा में कोई न कोई कमी है, इसलिए खुशी नहीं मिलती। सेवा का अर्थ है आत्मा अपने को खुशनुम:, खिला हुआ रूहानी गुलाब, खुशी के झूले में झूलने वाला अनुभव करेगी। तो चेक करो - सारा दिन सेवा की लेकिन सारे दिन की सेवा की तुलना में इतनी खुशी हुई या सोच-विचार ही चलते रहे, यह नहीं ये, यह नहीं ये...? और आपकी खुशी का प्रभाव एक तो सेवा स्थान पर, दूसरा सेवा साथियों पर, तीसरा जिन आत्माओं की सेवा की उन आत्माओं पर पड़े, वायुमण्डल भी खुश हो जाए। यह है सेवा का खज़ाना खुशी।
और बात - चार सबजेक्ट तो आ ही गई। और है सम्बन्ध-सम्पर्क, वह भी बहुत ज़रूरी है, क्यों? कई बच्चे समझते हैं बापदादा से तो सम्बन्ध है ही। परिवार में हुआ नहीं हुआ, क्या बात है, (क्या हर्जा है) बीज से तो है ही। लेकिन आपको विश्व का राज्य करना है ना! तो राज्य में सम्बन्ध में आना ही होगा। इसलिए सम्बन्ध-सम्पर्क में आना ही है लेकिन सम्बन्ध-सम्पर्क में यथार्थ खज़ाना मिलता है दुआयें। बिना सम्बन्ध-सम्पर्क के आपके पास दुआओं का खज़ाना जमा नहीं होगा। माँ बाप की दुआयें तो हैं, लेकिन सम्बन्ध-सम्पर्क में भी दुआयें लेनी हैं। अगर दुआयें नहीं मिलती, फीलिंग सर्व खज़ानों से सम्पन्न आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते नहीं आती तो समझो सम्बन्ध-सम्पर्क में कोई कमी है। यथार्थ रीत अगर सम्बन्ध-सम्पर्क है तो दुआओं की अनुभूति होनी चाहिए। और दुआओं की अनुभूति क्या होगी? अनुभवी तो हो ना! अगर सेवा से दुआयें मिलती हैं तो दुआयें मिलने का अनुभव यही होगा जो स्वयं भी सम्बन्ध में आते, कार्य करते डबल लाइट (हल्का) होगा, बोझ नहीं महसूस करेगा और जिनकी सेवा की, सम्बन्ध-सम्पर्क में आये वह भी डबल लाइट फील करेगा। अनुभव करेगा कि यह सम्बन्ध में सदा हल्का अर्थात् इज़ी है, भारी नहीं रहेगा। सम्बन्ध में आऊं, नहीं आऊं... लेकिन दुआयें मिलने के कारण दोनों तरफ नियम प्रमाण, ऐसा इज़ी भी नहीं - जैसे कहावत है, ज्यादा मीठे पर चींटियाँ बहुत आती हैं। तो इतना इज़ी भी नहीं, लेकिन डबल लाइट रहेगा। तो बापदादा कहते हैं - अपने खज़ाने चेक करो। समय दे रहे हैं। अभी समाप्ति का बोर्ड नहीं लगा है। इसलिए चेक करो और बढ़ते चलो।
बापदादा का बच्चों से प्यार है ना! तो बापदादा समझते हैं कोई भी बच्चा पीछे नहीं रह जाए। हर एक बच्चा आगे से आगे जाए। चलते-चलते देह- अभिमान आ जाता है। स्वमान और देह-अभिमान। देह-अभिमान का कारण है स्वमान में कमी हो जाती है। तो देह-अभिमान को मिटाने का बहुत सहज साधन है - देह-अभिमान आने का एक ही अक्षर है, एक ही शब्द है, वह जानते भी हो। देह-अभिमान का एक शब्द कौन-सा है? (मैं) अच्छा तो कितना बारी मैं-मैं कहते हो? सारे दिन में कितने बारी ‘‘मैं’’ बोलते हो, कभी नोट किया है? अच्छा एक दिन नोट करना। बार-बार मैं शब्द तो आता ही है। लेकिन मैं कौन? पहला पाठ है, मैं कौन? जब देह-अभिमान में मैं कहते हो, लेकिन वास्तव में मैं हूँ कौन? आत्मा या देह? आत्मा ने देह धारण की, या देह ने आत्मा धारण की? क्या हुआ? आत्मा ने देह धारण की। ठीक है ना? तो आत्मा ने देह धारण की, तो मैं कौन? आत्मा ना! तो सहज साधन है, जब भी मैं शब्द बोलो, तो यह याद करो कि मैं कौन-सी आत्मा हूँ? आत्मा निराकार है, देह साकार है। निराकार आत्मा ने साकार देह धारण की, तो जितना बारी भी मैं-मैं शब्द बोलते हो, उतना समय यह याद करो कि मैं निराकार आत्मा साकार में प्रवेश किया है। जब निराकार स्थिति याद होगी तो निरंहकारी स्वत: हो जायेंगे। देह-भान खत्म हो जायेगा। वही पहला पाठ मैं कौन? यह स्मृति में रख करके मैं कौन-सी आत्मा हूँ, आत्मा याद आने से निराकारी स्थिति पक्की हो जायेगी। जहाँ निराकारी स्थिति होगी वहाँ निरहंकारी, निर्विकारी हो ही जायेंगे। तो कल से नोट करना - जब मैं शब्द कहते हो तो क्या याद आता है? और जितना बारी मैं शब्द यूज़ करो उतना बारी निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी स्वत: हो जायेंगे।
अच्छा - आज यूथ ग्रुप आया है। यूथ बहुत हैं। बापदादा यूथ ग्रुप को वरदान देते हैं कि सदा आबाद रहना। एक भी खज़ाना बरबाद नहीं करना, आबाद रहना, आबाद करना। लौकिक गुरू लोग आशीर्वाद देते हैं आयुश्वान भव और बापदादा कहते हैं शरीर की आयु तो जितनी है उतनी रहेगी इसीलिए शरीर की आयु के हिसाब से आयुश्वान भव का वरदान नहीं देते हैं लेकिन इस ब्राह्मण जीवन में सदा आयुश्वान भव। क्यों? ब्राह्मण सो देवता बनेंगे। तो आयुश्वान तो होंगे ना! यूथ की एक विशेषता होती है। आप यूथ अपनी विशेषता को जानते हो? क्या विशेषता होती है, जानते हो? क्या विशेषता है आपमें? (जो चाहे वह कर सकते हैं) अच्छा - कर सकते हो? अच्छी बात है, दुनिया के हिसाब से कहते हैं, यूथ जिद्दी बहुत होते हैं, जो सोचेंगे वह करके दिखायेंगे। वह लोग उल्टा कहते हैं लेकिन यहाँ ब्राह्मण यूथ जिद्दी नहीं हैं लेकिन अपनी प्रतिज्ञा पर पक्के रहने वाले हैं। हटने वाले नहीं हैं। ऐसे हो यूथ? हाथ उठाना तो बहुत सहज है। बापदादा खुश है हाथ उठाना, यह भी हिम्मत है ना। लेकिन रोज़ अमृतवेले बाप से की हुई प्रतिज्ञा कि हम इस ब्राह्मण जीवन की प्राप्ति से, सेवा से कभी भी संकल्प में भी हटेंगे नहीं। इस हिम्मत को, प्रतिज्ञा को रोज़ दोहराओ और बार-बार चेक करो कि हिम्मत जो रखी, संकल्प किया वह प्रैक्टिकल में हो रहा है?
गवर्मेन्ट तो कहती है, बस दो चार लाख बन जाएं तो भी ठीक है। आप कौन हो! ब्राह्मण हो ना! कहते हैं - यह ब्राह्मण यूथ एक-एक लाख के समान हैं। इतने मजबूत हैं? देखो, ऐसे नहीं घर जाकर फिर लिख दो बाबा माया आ गई, संस्कार आ गया, समस्या आ गई। समस्याओं के समाधान स्वरूप बनो। समस्यायें तो आयेंगी लेकिन अपने से पूछो मैं कौन? समाधान स्वरूप हूँ या समस्या से हार खाने वाला हूँ? आप सबका टाइटल क्या है - विजयी रत्न या हार खाने वाले रत्न? विजयी रत्न हैं। ब्राह्मण जन्म होते ही बापदादा ने हर ब्राह्मण के मस्तक में विजय का तिलक अमर लगा दिया। तो अमरभव के वरदानी हो। अभी यह अपने से वायदा करो, ऐसे तो वायदा कहलायेंगे तो सब कर लेंगे लेकिन अपने मन में अपने से वायदा करो - कभी भी संस्कार के वश नहीं होंगे जो बाप के संस्कार वह मुझ ब्राह्मण आत्मा के संस्कार। जो द्वापर, कलियुग के संस्कार हैं वह मेरे संस्कार नहीं क्योंकि बाप के संस्कार नहीं हैं। यह तमोगुणी संस्कार ब्राह्मणों के संस्कार हैं? नहीं है ना! तो आप कौन हो? ब्राह्मण हो ना!
बापदादा को भी यूथ ग्रुप पर नाज़ है। देखो, दादियों को भी यूथ पर नाज़ है। दादी को प्यार है ना यूथ से। एकस्ट्रा प्यार है। कुमार हैं सुकुमार। कुमार नहीं, सुकुमार हैं। एक-एक कुमार विश्व के कुमारों का परिवर्तन कर दिखाने वाले। अच्छा, कुमारों को काम दें? हिम्मत है? करना पड़ेगा। कुमारियां करेंगी?
तो काम दे रहे हैं ध्यान से सुनना। तो जो अगली सीज़न होगी, अगली सीजन में कुमारों का ऐसे ही स्पेशल प्रोग्राम रखेंगे लेकिन.... लेकिन भी है। ज्यादा काम नहीं देते हैं एक-एक कुमार 10-10 कुमारों का, छोटा-सा हाथ का कंगन तैयार करके लाना। हाथ में कंगन पड़ता है ना। ब्रह्मा बाप को सदैव हाथ में फूलों का कंगन डालते हैं। तो एक-एक कुमार, कच्चे-कच्चे नहीं लाना, पक्के-पक्के लाना। तो मधुबन में तो आयें फिर घर जायें तो बदल जाएं! नहीं। ऐसे पक्के बनाकर लाना जो बापदादा देख-देख कहे वाह कुमार वाह! ऐसे तैयार हैं? करेंगे, ऐसे? थोड़ा सोचो। ऐसे ही हाथ नहीं उठा लो। करना पड़ेगा। बनाना पड़ेगा। डबल फारेनर्स भी करेंगे? डबल फारेनर्स में कुमार हाथ उठाओ। तो आप भी 10 लायेंगे ना? फारेनर्स भी लायेंगे, 61 इण्डिया वाले भी लायेंगे। फिर जो फर्स्टक्लास क्वालिटी लायेंगे उसको इनाम देंगे। इनाम बढ़िया देंगे, घटिया नहीं देंगे। प्यार है ना कुमारों से। अगर गवर्मेन्ट को ज्यादा में ज्यादा कुमार पॉजिटिव कर्म करने वाले मिल जाएं तो गवर्मेन्ट कितना खुश होगी। अगर आप 10-10 कुमार लायेंगे तो सारा हाल कुमारों से भरेंगे फिर गवर्मेन्ट को बुलायेंगे, देखो यह कुमार। लेकिन लाने पड़ेंगे, बनाने पड़ेंगे। अगर अपनी स्थिति, लक्ष्य और लक्षण को समान रखेंगे तो सेवा में सफलता होगी या नहीं होगी - यह संकल्प भी नहीं उठ सकता। हुई पड़ी है। सिर्फ आपको निमित्त बनना पड़ेगा। यह प्रतिज्ञा सदा रिवाइज करते रहना। कमाल तो करनी ही है। अच्छा।
डबल विदेशी भी आये हैं। बापदादा कहते हैं कि डबल विदेशियों ने बापदादा का एक टाइटल प्रैक्टिकल में प्रत्यक्ष किया है, वह कौन-सा? (विश्व-कल्याणकारी) पहले जब स्थापना हुई तो भारत कल्याणकारी बने लेकिन जब से डबल फारेनर्स ब्राह्मण आत्मायें बने तो बाप का विश्वकल् याणकारी टाइटल प्रैक्टिकल में प्रत्यक्ष हुआ। इसलिए बापदादा को डबल फारेनर्स के ऊपर भी विशेष नाज़ है। बापदादा ने देखा है कि डबल फारेनर्स को एक सेवा की धुन लगी हुई है, कोई भी कोना रह नहीं जाए।
(मुरली के बीच अचानक बापदादा के सामने दो कुमार स्टेज पर आ गये, जिन्हें हटाया गया)
अच्छा। अभी खेल में खेल देखा। अभी बापदादा कहते हैं साक्षी होकर खेल देखा, इन्जाय किया, अभी एक सेकण्ड में एकदम देह से न्यारे पावरफुल आत्मिक रूप में स्थित हो सकते हो? फुलस्टाप।
(बापदादा ने बहुत पावरफुल ड्रिल कराई)
अच्छा - यही अभ्यास हर समय बीच-बीच में करना चाहिए। अभी- अभी कार्य में आये, अभी-अभी कार्य से न्यारे, साकारी सो निराकारी स्थिति में स्थित हो जाएं। ऐसे ही यह भी एक अनुभव देखा, कोई समस्या भी आती है तो ऐसे ही एक सेकण्ड में साक्षी दृष्टा बन, समस्या को एक साइडसीन समझ, तूफान को एक तोहफा समझ उसको पार करो। अभ्यास है ना? आगे चलकर तो ऐसे अभ्यास की बहुत आवश्यकता पड़ेगी। फुलस्टाप। क्वेश्चन मार्क नहीं, यह क्यों हुआ, यह कैसे हुआ? हो गया। फुलस्टाप और अपने फुल शक्तिशाली स्टेज पर स्थित हो जाओ। समस्या नीचे रह जायेगी, आप ऊंची स्टेज से समस्या को साइडसीन देखते रहेंगे। अच्छा।
जो दूर से दूर बैठे देख रहे हैं, चाहे भारत में चाहे फारेन में सुन भी रहे हैं, देख भी रहे हैं, उन सभी दूर बैठे दिल के समीप बच्चों को बापदादा पहले याद-प्यार दे रहे हैं क्योंकि बापदादा जानते हैं कोई का क्या टाइम होता है, कोई का क्या टाइम होता है, फिर भी रात को दिन बनाके, दिन को रात बनाकर बैठ रहे हैं। यह है बच्चों और बाप का प्यार और बीच में बापदादा विज्ञानी बच्चों को भी मुबारक देते हैं कि आप बच्चों के लिए यह साइंस के साधन निकाले हैं। इसीलिए उन बच्चों को भी बापदादा मुबारक दे रहे हैं। आपके लिए ही यह साधन 100 वर्ष के अन्दर-अन्दर निकले हैं। तो कमाल है ना साइंस वालों की, थैंक्स है ना! अच्छा।
चारों ओर के सर्व खज़ानों से सम्पन्न आत्माओं को, सदा हर समय प्राप्तियों से भरपूर, मुस्कराते हुए हर्षित रहने वाली आत्माओं को, सदा बाप से की हुई प्रतिज्ञा को जीवन में प्रत्यक्ष करने वाले ज्ञानी तू आत्मायें, योगी तू आत्मायें बच्चों को, सदा लक्ष्य और लक्षण को समान करने वाले बाप समान आत्माओं को, सदा हर समय सर्व खज़ानों का स्टॉक और स्टॉप लगाने वाले तीव्र पुरुषार्थी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार, दिलाराम का दिल से याद-प्यार और नमस्ते।
ईस्टर्न, तामिलनाडु के सेवाधारी आये हैं - अच्छा जो सेवाधारी आये हैं वह हाथ उठाओ। बंगाल, बिहार, नेपाल, आसाम, उड़ीसा, तामिलनाडु....तामिलनाडु की (रोज़ी बहन) आ गई है (रोज़ी बहन की तबियत काफी समय से ठीक नहीं थी) देखो नया जीवन मिल गया है। मुबारक हो नये जीवन की। एक हाथ की ताली बजाओ।
तो सभी ने जो भी पाण्डव वा शक्तियां आई हैं, सेवा के निमित्त बनी हैं, उनको सेवा का प्रत्यक्ष फल खुशी तो मिल ही गई है। बापदादा कहते हैं यह बच्चों की होशियारी है, सहज पुरूषार्थ में दुआयें लेने के लिए पुण्य का खाता जमा करने का यह चांस बहुत अच्छा ले लेते हैं और जो जितना अथक सेवा करते हैं, उस अथक सेवाधारी का मनसा, वाचा, कर्मणा तीनों खाते में जमा होता है। इसलिए जमा करने की सभी सेवाधारियों को मुबारक हो, मुबारक हो। अच्छा। सभी पहुँच जाते हैं।
दादी जी, दादी जानकी से
एक टर्न मिस किया। सेवा की तो मिस नहीं किया। बापदादा आप दोनों के जिम्मेवारी के ताज में सदा ही अमूल्य रत्न लगाते रहते हैं। जितनाजितना जिम्मेवारियां साकार रूप में बढ़ती जाती हैं, उतनी आप डबल लाइट बन पार्ट बजाती हो। बापदादा को विशेष खुशी है कि शक्तियों ने विजय का झण्डा अच्छा बुलन्द किया है। बाप तो गुप्त रहे, लेकिन बच्चों ने प्रत्यक्ष रूप में झण्डा लहराया है। (दादी जानकी कह रही हैं बाबा एक आश है, शान्तिधाम जाने के पहले सब भारत में इकट्ठे हों) हो जायेगा, वह भी कहाँ जायेंगे, होना ही है। अच्छा।
डा.अब्दुल कलाम, डा.पिल्लई, डा.सेल्वामूर्ति भारत के साइंटिस्टों से
बापदादा आप सबका भाग्य देख हर्षित हो रहे हैं। आप आत्माओं द्वारा भी विशेष सेवा होनी है। कौन-सी सेवा करेंगे? (30 परसेन्ट लोग गरीब हैं, उसको दूर करने का संकल्प आ रहा है) हो जायेगी। आपका जो संकल्प है वह अभी समय आने वाला ही है, यह गरीबी रहनी ही नहीं है। जैसे भारत सबसे साहूकार था, वैसे ही अभी बनना ही है। तो आपका यह संकल्प पूरा होना है। अच्छा संकल्प है। कोई आत्मा सम्पर्क में आये तो आप सिर्फ मैसेन्जर बन यही मैसेज दो कि साइलेन्स और साइंस दोनों का बैलेन्स कैसे रहे, यह परमात्मा की ब्लैसिंग दिला देंगे। अभी यही मैसेज देना है। बापदादा को खुशी है, तो आप चाहते हो कि बच्चों में उन्नति हो, बच्चे योग्य बनें, उसका प्लैन भी यहाँ बना रहे हैं। एज्युकेशन डिपार्टमेंट में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं तो आप भी सहयोगी बन जायेंगे और यह सब बच्चे सहयोगी रहेंगे तो एक दिन आयेगा जो आप कहेंगे वाह भारत वाह! भारत की आध्यात्मिक नॉलेज सभी को सुख-शान्ति का वरदान देगी। (साइंस और साइलेन्स का बैलेन्स भारत को स्वार्णिम बनायेगा) फालो ब्रह्मा बाबा। आपमें एक विशेषता है, उस विशेषता को काम में ले सकते हो, आपकी विशेषता नेचुरल यह है कि जो काम करते हो, वह पूरा करते हो, अधूरा नहीं छोड़ते। इसीलिए इस विशेषता से आपका संकल्प पूरा हो जायेगा। यह दोनों साथी भी बहुत अच्छे हैं। त्रिमूर्ति हो गये ना! तो जहाँ त्रिमूर्ति है वहाँ शिव बाबा है ही है। (यह भी कुमार हैं) ब्रह्मचारी भी है, ब्रह्माचारी भी है। (भ्राता सेल्वामूर्ति जी से) अच्छा है, यह हेल्थ का कर रहे हैं। हेल्थ में भी देखो सभी का दु:ख दूर होता है ना! तो सबका दु:ख दूर करना, यह भी कितना अच्छा कार्य है। इसीलिए हेल्थ वालों को नेक्स्ट गॉड कहा जाता है। इसलिए अच्छा है। हेल्थ के साथ, ज्ञान की वेल्थ भी मिल जायेगी आत्माओं को। अच्छी - निमित्त आत्मायें हो।
(डा. पिल्लई को पदम श्री का टाइटल मिला है और डा. अब्दुल कलाम जी को भारत रत्न का मिला है)
बाप तो पदमा, पदमा, पदमापति का टाइटल देते हैं। इनको भारत रत्न का टाइटल मिला है इसलिए भारत से प्यार है। अच्छा - अभी माइक बनेंगे। रूहानी माइक बनकर सेवा करेंगे।
आशा बहन से - अच्छा चल रहा है ना। सभी की दुआयें हैं। दुआयें ऐसी चीज़ हैं जो हर कार्य सहज कर देती हैं। अच्छा है।
रोज़ी बहन से - कितना अच्छा पार्ट आपका ड्रामा में है। यह भी हिसाब पूरा हुआ। जो हिसाब रहा हुआ था, वह पूरा किया। खुशी-खुशी से पूरा किया। यह हिसाब तो होता ही है सेवा के लिए। जो सेवाधारी हैं ना वह कहाँ 65 भी जायेंगे सेवा के बिना तो रह नहीं सकते और वह सेवा का फल दुआयें मिलती हैं। अच्छा है। (साथ में डा. भी आये हैं) बहुत अच्छा किया। ब्राह्मण आत्माओं की सेवा करने से दुआयें हैं। खुशी-खुशी से सेवा की, इसलिए सेवा का जमा हो गया।
मद्रास की टीचर्स से - यह सेवा सम्भाल रही हैं। अच्छा है, सेवा का चांस मिलना यह भी भाग्य की निशानी है तो सब भाग्यवान हो।
विदेश की बड़ी बहनों से - बापदादा को विशेष खुशी होती है कि हर एक अपना-अपना अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। हर एक अपना-अपना पार्ट बजाते स्वयं को भी आगे बढ़ा रहे हैं और सेवा को भी आगे बढ़ा रहे हैं। ड्रामानुसार निमित्त बने। अभी आगे भी प्लैन बनायेंगे ना! क्या करना है। कोई नवीनता करेंगे ना! अच्छा बापदादा खुश है|
24-02-2002 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
बाप को प्रत्यक्ष करने के लिए अपनी व दूसरों की वृत्ति को पॉजिटिव बनाओ
आज विश्व कल्याणी बापदादा अपने चारों ओर के बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। हर एक बच्चे के मन के उमंग देख भी रहे हैं और सुन भी रहे हैं। सभी के मन में लक्ष्य एक ही है कि जल्दी से जल्दी बाप समान बनें। लक्ष्य को देख, हिम्मत को देख, श्रेष्ठ संकल्प को देख बापदादा खुश हैं। साथ-साथ यह भी देख रहे हैं कि लक्ष्य सबका बहुत ऊँचे ते ऊंचा है लेकिन प्रत्यक्ष रूप में लक्षण नम्बरवार हैं। लक्ष्य और लक्षण समान होना अर्थात् बाप समान बनना। जो सेवा की स्टेज पर निमित्त बच्चे हैं, वह सदा एक ही संकल्प में रहते कि बाप को प्रत्यक्ष कैसे करें, कब होगा! ऐसे संकल्प चलता है ना? बाप फिर बच्चों से पूछते हैं, कि बच्चे आप सभी सम्पन्न, सम्पूर्ण स्वरूप में स्वयं कब प्रत्यक्ष होंगे? बाप का क्वेश्चन है बच्चों प्रति कि वह डेट भी फिक्स की है? कि वह डेट फिक्स नहीं होनी है?
डबल फारेनर्स कहते हैं कोई भी प्रोग्राम की डेट एक साल पहले फिक्स किया जाता है, ऐसे कहते हैं ना! तो बाप कहते हैं स्वयं को प्रत्यक्ष करने की डेट फिक्स की है? मीटिंग्स तो बहुत की हैं ना! करते ही रहते हैं। आज फलानी मीटिंग है, कल फलानी। अभी भी कितने मीटिंग वाले आये हैं, तीन मीटिंग वाले आज भी बैठे हैं। यह तो बहुत अच्छा, लेकिन इस मीटिंग की डेट कौन-सी है? जो सोचें वही बोल हो, वही कर्म हो। संकल्प, बोल और कर्म तीनों श्रेष्ठ लक्ष्य प्रमाण हो। बापदादा देखते हैं कि यह सर्व विश्व कल्याण के निमित्त बने हुए बच्चे, सर्व आत्माओं के कल्याणकारी प्रत्यक्ष रूप में स्टेज पर कब आयेंगे? हर एक गुप्त पुरूषार्थ में हैं, लगन में हैं, यह भी बापदादा देखते हैं। लेकिन इस विशेष संकल्प की लगन में मगन कब होंगे? लगन तो 67 है लेकिन निरन्तर इस संकल्प को सम्पन्न करने में मगन रहना अर्थात् निरन्तर इसी संकल्प को पूर्ण करने के प्रैक्टिकल स्वरूप में हो। अभी संकल्प और प्रत्यक्ष कर्म में अन्तर है। होना तो है ही और करना भी बच्चों को ही है। बाप तो बैकबोन है ही।
तो बापदादा देख रहे थे कि सबसे तीव्रगति की सेवा है - ‘‘वृत्ति द्वारा वायब्रेशन फैलाना’’। वृत्ति बहुत तीव्र राकेट से भी तेज है। वृत्ति द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन कर सकते हो। जहाँ चाहो, जितनी आत्माओं के प्रति चाहो वृत्ति द्वारा यहाँ बैठे-बैठे पहुँच सकते हो। वृत्ति द्वारा दृष्टि और सृष्टि परिवर्तन कर सकते हो। लेकिन एक बात वृत्ति द्वारा सेवा करने में रूकावट डाल रही है, वृत्ति द्वारा वायब्रेशन फैलता है। आपके जड़ चित्र अब तक, लास्ट जन्म तक वायब्रेशन द्वारा सेवा कर रहे हैं ना! देखा है ना! मन्दिर देखे हैं ना! डबल फारेनर्स ने मन्दिर देखे हैं? नहीं देखे हों तो देख लेना क्योंकि आपके ही मन्दिर हैं ना! कुमारियां आपके मन्दिर हैं या इन्डिया वालों के मन्दिर हैं? सभी के मन्दिर हैं, अच्छा। मुबारक हो। मन्दिर की मूर्तियां प्रत्यक्ष रूप में वायब्रेशन द्वारा सेवा कर रहे हैं अर्थात् आप आत्मायें मन्दिर की मूर्तियां सेवा कर रही हैं। कितने भक्त वायब्रेशन द्वारा अपनी सर्व इच्छायें पूर्ण कर रहे हैं। तो हे चैतन्य मूर्तियां, अब अपने शुभ भावना की वृत्ति, शुभ कामनाओं की वृत्ति से वायुमण्डल में वायब्रेशन फैलाओ। लेकिन, लेकिन कहना अच्छा नहीं लगता लेकिन कहना पड़ता है। पाण्डव लेकिन शब्द अच्छा लगता है? नहीं अच्छा लगता। लेकिन, लेकिन है या खत्म हो गया? इसके लिए सबसे सहज विधि है पहले हर एक अपने अन्दर चेक करो - एक सेकण्ड में चेक कर सकते हो। अभी-अभी करो। सेकण्ड देवें क्या? कि बोलने में सेकण्ड मिल गया। अभी अपने अन्दर चेक करो - मेरी वृत्ति में किसी आत्मा के प्रति भी कोई निगेटिव वायब्रेशन है? अगर विश्व का वायुमण्डल परिवर्तन करना है, लेकिन अपने मन में किसी एक आत्मा के प्रति भी अगर व्यर्थ वायब्रेशन वा सच्चा वायब्रेशन भी निगेटिव है तो वह विश्व परिवर्तन कर नहीं सकेगा। बाधा पड़ता रहेगा, समय लग जायेगा। वायुमण्डल में पावर नहीं आयेगी। कई बच्चे कहते हैं वह है ही ऐसा ना! है ही ना! तो वायब्रेशन तो होगा ना! बाप को भी ज्ञान देते हैं, बाबा आपको पता नहीं है, वह आत्मा है ही ऐसी। लेकिन बाप पूछते हैं कि वह खराब है, रांग है, होना नहीं चाहिए लेकिन खराब को अपने वृत्ति में रखो, क्या यह बाप की छुट्टी है? जो समझते हैं यह बाप की छुट्टी नहीं है, वह एक हाथ उठाना। टी.वी. में दिखाओ। (दादी को) आप देख रही हो ना! अच्छा। याद रखना हाथ उठाया था। डबल फारेनर्स ने हाथ उठाया! बापदादा की टी.वी. में तो आ ही रहा है। जब तक हर ब्राह्मण आत्मा के स्वयं की वृत्ति में कैसी भी आत्मा के प्रति वायब्रेशन निगेटिव है तो विश्व कल्याण प्रति वृत्ति से वायुमण्डल में वायब्रेशन फैला नहीं सकेंगे। यह पक्का समझ लो। कितनी भी सेवा कर लो, रोज़ आठ-आठ भाषण कर लो, योग शिविर करा लो, कई प्रकार के कोर्स करा लो लेकिन किसी के प्रति भी अपनी वृत्ति में कोई पुराना निगेटिव वायब्रेशन नहीं रखो। अच्छा वह खराब है, बहुत गलतियां करता है, बहुतों को दु:ख देता है, तो क्या आप उसके दु:ख देने में जिम्मेवार बनने के बजाए, उसको परिवर्तन करने में मददगार नहीं बन सकते! दु:ख में मदद नहीं करना है, उसको परिवर्तन करने में आप मददगार बनो। अगर कोई ऐसी भी आत्मा है जो आप समझते हैं, बदलना नहीं है। चलो, आपकी जजमेंट में वह बदलने वाली नहीं है, लेकिन नम्बरवार तो हैं ना! तो आप क्यों सोचते हो यह तो बदलने वाली है ही नहीं। आप क्यों जजमेंट देते हो, वह तो बाप जज है ना। आप सब एक दो के जज बन गये हो। बाप भी तो देख रहा है, यह ऐसे हैं, यह ऐसे हैं, यह ऐसे हैं....। ब्रह्मा बाप को प्रत्यक्ष में देखा कैसी भी बार-बार गलती करने वाली आत्मा रही लेकिन बापदादा (विशेष साकार रूप में ब्रह्मा बाप) ने सर्व बच्चों प्रति याद-प्यार देते, सर्व बच्चों को मीठे-मीठे कहा। दो चार कडुवे और बाकी मीठे...क्या ऐसे कहा? फिर भी ऐसी आत्माओं के प्रति भी सदा रहमदिल बने। क्षमा के सागर बने। लेकिन अच्छा आपने अपनी वृत्ति में किसी के प्रति भी अगर निगेटिव भाव रखा, तो इससे आपको क्या फायदा है? अगर आपको इसमें फायदा है, फिर तो भले रखो, छुट्टी है। अगर फायदा नहीं है, परेशानी होती है..., वह बात सामने आयेगी। बापदादा देखते हैं, उस समय उसको आइना दिखाना चाहिए। तो जिस बात में अपना कोई फायदा नहीं है, नॉलेजफुल बनना अलग चीज़ है, नॉलेज है - यह रांग है, यह राइट है। नॉलेजफुल बनना रांग नहीं है, लेकिन वृत्ति में धारण करना यह रांग है क्योंकि अपने में ही मूड आफ, व्यर्थ संकल्प, याद की पावर कम, नुकसान होता है। जब प्रकृति को भी आप पावन बनाने वाले हो तो यह तो आत्मायें हैं। वृत्ति, वायब्रेशन और वायुमण्डल तीनों का सम्बन्ध है। वृत्ति से वायब्रेशन होते हैं, वायब्रेशन से वायुमण्डल बनता है। लेकिन मूल है वृत्ति। अगर आप समझते हो कि जल्दी-जल्दी बाप की प्रत्यक्षता हो तो तीव्रगति का प्रयत्न है सब अपनी वृत्ति को अपने लिए, दूसरों के लिए पॉजिटिव धारण करो। नॉलेजफुल भले बनो लेकिन अपने मन में निगेटिव धारण नहीं करो। निगेटिव का अर्थ है किचड़ा। अभी-अभी वृत्ति पावरफुल करो, वायब्रेशन पावरफुल बनाओ, वायुमण्डल पावरफुल बनाओ क्योंकि सभी ने अनुभव कर लिया है, वाणी से परिवर्तन, शिक्षा से परिवर्तन बहुत धीमी गति से होता है, होता है लेकिन बहुत धीमी गति से। अगर आप फास्ट गति चाहते हो तो नॉलेजफुल बन, क्षमा स्वरूप बन, रहमदिल बन, शुभ भावना, शुभ कामना द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करो। देखो, प्रत्यक्ष देखा है आप सबने, मधुबन में जो भी आते हैं, सबसे ज्यादा प्रभाव किस बात का पड़ता है? वायुमण्डल का। यहाँ भी चाहे सभी नम्बरवार हैं लेकिन ब्रह्मा बाप की कर्मभूमि है, बापदादा की वरदान भूमि है, वह वायुमण्डल परिवर्तन कर देता है। अनुभव है ना! तो वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल बनाना, यह है तीव्रगति का दिल का छाप। वायुमण्डल दिल में छप जाता है। सुनी हुई बातें भूल सकती हैं लेकिन वायुमण्डल का दिल पर छाप लग जाता है, वह भूल नहीं सकता। ऐसे है? तो बापदादा सुनते रहते हैं, प्रत्यक्षता कब होगी, आपस में रूहरूहान तो अच्छी करते हो। अच्छा है। बोलो, पाण्डव अभी क्या करेंगे? वायुमण्डल पावरफुल बनाना। चाहे सेवाकेन्द्र हैं, चाहे जो भी स्थान हैं, प्रवृत्ति में हो तो भी वायुमण्डल पावरफुल। चारों ओर का वायुमण्डल अगर सम्पूर्ण निर्विघ्न, रहमदिल, शुभ भावना, शुभ कामना वाला बन जायेगा तो प्रत्यक्षता में कोई देरी नहीं।
अभी बापदादा ने जो डेट दी, वह बापदादा को याद है। हिसाब तो पूछेंगे ना! हर एक ने अपना एकाउन्ट तो रखा है ना! तो एकाउन्ट में बापदादा यही चेक करेंगे - वृत्ति में, दृष्टि में, बोल में रहमदिल, शुभ भावना और शुभ कामना वाली आत्मा कितने परसेन्ट में रही? अभी भी 15 दिन तो होंगे ना! ज्यादा हैं। अच्छा, जिसने नहीं भी किया हो तो 15 दिन भी कर लेना, तो भी पास कर लेंगे। बीती को बिन्दी लगाना और रहम के सिन्धु बन जाना। क्षमा के सिन्धु बन जाना।
(बापदादा ने ड्रिल कराई) सुना सभी ने! अच्छा। तीन मीटिंग वाले जो आये हैं, स्पार्क वाले एक हाथ उठाओ। अच्छा। बहुत अच्छा। अभी इसी विषय पर रिसर्च करो, वायुमण्डल कैसे प्रैक्टिकल में श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बना सकते हैं! रिसर्च कर रहे हो ना! ऐसा वायुमण्डल बनाने के लिए क्या-क्या बुद्धि में रखना है, क्या-क्या कर्म में करना है, सम्बन्ध-सम्पर्क में करना है। अच्छा है अपने आपको बिजी रखते हो, अच्छी बात है। लेकिन बापदादा यह प्रैक्टिकल अनुभव देखने चाहते हैं कि कैसे प्रैक्टिकल किया और उसका परिणाम क्या निकला? अगर बीच में कुछ भी रूकावट आई तो क्या आई? यह अनुभव प्रैक्टिकल करके देखो, सिर्फ प्वाइंट्स नहीं निकालना, यह करना है, यह करना है। नहीं। करो। अनुभव करके एक्जैम्पुल बनकर दिखाओ और वह एक्जैम्पुल औरों को भी सहयोग देगा। ठीक है ना! यह (रमेश भाई) निमित्त है ना! अच्छा है। अभी भी 15 दिन पड़ा है, अभी लास्ट नहीं हुआ है। अभी बहुत गया, लेकिन थोड़ा रहा है तो स्पार्क वाले ऐसा प्रैक्टिकल करके देखो और औरों को दिखाओ। ठीक है? कर सकेंगे? हो सकेगा? अच्छा, ठीक है, बहुत अच्छा। अच्छा।
दूसरी मीटिंग है ट्रांसपोर्ट की - ट्रांसपोर्ट वाले तो सबको सुख देंगे। ट्रांसपोर्ट वाले हाथ उठाओ। अच्छा। बहनें, बहनों के बिना तो गति नहीं है। तो ट्रांसपोर्ट वाले क्या करेंगे? सिर्फ यात्रा करायेंगे? ट्रांसपोर्ट वाले ऐसे आपस में प्रोग्राम बनाओ जो किसी भी आत्मा को कम से कम समय में दु:ख की दुनिया से पार करके थोड़े समय के लिए भी शान्ति की यात्रा करा सको। चलो, परमधाम तक तो पहुँचना मुश्किल है लेकिन दु:ख के दुनिया की शान्ति की यात्रा तो कर सकते हैं। वह प्लैन तो बहुत बनाओ, चारों प्रकार की यात्राओं वालों को बापदादा का सन्देश तो पहुँचा रहे हो, पहुँचायेंगे ही; क्योंकि कोई भी वर्ग रह नहीं जाये ना। यह अच्छा है जो वर्गो की इन्वेन्शन निकाली है, यह अच्छी है, उलहना नहीं मिलेगा। कोई भी वर्ग रह नहीं जायेगा, हर एक अपने वर्ग को आगे बढ़ाने का उमंग तो रखते हैं ना! यह बहुत अच्छा है। लेकिन अभी जो भी वर्ग बने हैं, कितने समय से वर्ग चल रहे हैं, डेढ़ दो साल हो गये या ज्यादा हो गये? (10-12 साल) वर्गो की सेवा को 10-12 साल हो गये, अच्छा। बहुत टाइम हो गया है। वर्ग वालों के लिए बापदादा का एक संकल्प है। बापदादा ने 2-3 बार कहा है लेकिन हुआ नहीं है कि हर वर्ग ने जो भी जितने समय में भी सेवा की है, उस एक-एक वर्ग के विशेष सर्विसएबुल चाहे सहयोगी हैं, चाहे हाफ योगी हैं, कभी-कभी आते हैं, रेग्युलर नहीं है, ऐसे कोई हर वर्ग वाले कम से कम 5 तो सब वर्ग के सामने आने चाहिए। मधुबन में वह सभी देखें कि वर्ग वालों ने, चाहे 10-12 हों लेकिन 5 तो लाओ पक्के, अच्छे सहयोगी, सेवा के निमित्त बनने वाले 5-5 तो निकल सकते हैं या नहीं! निकल सकते हैं तो लाओ। (कब लायें?) वह दादियों के ऊपर हैं। (बापदादा के प्रोग्राम में लायें?) वह फिर ऐसे बापदादा से मिलने के लायक हों, 5 तो निकल ही सकते हैं। ज्यादा नहीं कहते, 5 बस। तो यह दादियां पास करेंगी।
तीसरी मीटिंग - इन्जीनियर्स की है, बहुत अच्छा। इन्जीनियर्स का तो काम ही है प्लैन बनाना। तो तीव्र पुरूषार्थ का कोई प्लैन बनाया कि सिर्फ सेवा का बनाया? इन्जीनियर्स को हर मास तीव्र पुरूषार्थ का कोई नया-नया प्लैन बनाना चाहिए। राय देनी चाहिए फिर फाइनल तो दादियां करेंगी। दादियां आपके साथी हैं, लेकिन इन्जीनियर्स और साइंस, विज्ञान वालों को ऐसा कोई प्लैन बनाना चाहिए जो जल्दी-जल्दी नई दुनिया आ जाए। बस यही मीटिंग करते रहेंगे, प्लैन बनाते रहेंगे, कब तक? कोई तीव्रगति के प्लैन बनाओ क्योंकि लक्ष्य तो आपके वर्ग का यही है कि ऐसे प्लैन बनें जो अपना राज्य जल्दी से जल्दी आये। तो ऐसा भी प्लैन बनाओ और सेवा में भी थोड़े समय में ज्यादा सफलता प्रत्यक्ष दिखाई दे, ऐसे प्लैन बनाओ। ऐसे प्लैन बनायेंगे ना! लास्ट टर्न में सब रिपोर्ट सुनेंगे कि हर एक वर्ग ने सफलता को तीव्र बनाने का क्या प्लैन बनाया! सिर्फ बनाना नहीं है, 15 दिन उसका अभ्यास करना है, प्रैक्टिकल में लाना है। ठीक है ना। अभी प्रैक्टिकल होना है ना! एक दो में सभी कहते हैं, बापदादा तो सबकी रूहरूहान सुनते रहते हैं। सभी कहते हैं प्रत्यक्ष हो, प्रत्यक्ष हो। लेकिन पहले प्रत्यक्ष आप तो हो जाओ। बाप भी आप द्वारा प्रत्यक्ष होगा ना! अच्छा।
अभी कुमारियों की सेरीमनी है। बहुत अच्छा लग रहा है। उठ जाओ। गुलदस्ता हिलाओ। बैठ जाओ। सभी ने देख लिया। कुमारियों के ऊपर तो बापदादा को सबसे ज्यादा नाज़ है। कुमारियां और डबल फारेनर्स कुमारियां 110 निकलें, यह बापदादा को बहुत अच्छा लग रहा है। पदम-पदम-पदम गुणा मुबारक है, कुमारियों को। अच्छा। कुमारियों से बापदादा का वैसे पर्सनल विशेष प्यार है। क्यों? कारण? कारण बापदादा समझते हैं कि विदेश में रहते कुमारी सुकुमारी बन गई, बच गई, कितनी बातों से बच गई। तो कुमारियों का बचना, बापदादा को बहुत अच्छा लगता है और देखो कुमारियों से विशेष प्यार है इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि कुमारी को पहलेपहले सबसे जल्दी दहेज मिलता है सेन्टर। इसमें देखो कितनी टीचर्स हैं सेन्टर्स सम्भालने वाली, इसमें जो कुमारियां सेन्टर सम्भालने वाली हैं, वह उठो। आपको तो वर, घर, दहेज सब मिल गया। तो विशेषता है ना कुमारियों की! बापदादा को खुशी होती है, एक-एक कुमारी को क्लास में अपना परिचय देना है, मैं कौन! और पक्की स्टैम्प लग जायेगी ना! तो बापदादा को कुमारियों का संगठन बहुत प्यारा है। एक-एक कुमारी कितने परिवारों का कल्याण करेगी। इन्डिया में कहते हैं कुमारी वह जो 21 कुल का कल्याण करे। बापदादा कहते हैं कुमारी, ब्रह्माकुमारी वह जो आत्माओं के 21 जन्मों का कल्याण करे। बहुत अच्छा किया। इनकी टीचर्स कौन हैं? कुमारियों की टीचर कौन? डबल फारनेर्स जो भी हैं, उन्हों ने सेवा कराई। बहुत अच्छा किया और बापदादा ने रिज़ल्ट देखी है, अच्छे उमंग-उत्साह से किया है और कराने वालों ने भी कराया है। इसीलिए पास हो, मुबारक हो। अच्छा।
डबल फारेनर्स में जो विशेष पाण्डव सेन्टर सम्भालने के निमित्त हैं, वह उठो। पाण्डवों को भी बहुत-बहुत मुबारक हो। ऐसे नहीं कि बापदादा को पाण्डव प्यारे नहीं हैं, पाण्डव तो पाण्डवपति के साथी हैं। यह तो यादगार भी बताता है। पाण्डवों का यादगार सदा ही पाण्डवपति बापदादा के साथ रहा है। लेकिन बापदादा को खुशी है कि बहुत अच्छे एक्जैम्पुल बन, सेवाधारी बन सेवा कर रहे हैं और सदा करते रहेंगे। इसलिए बाप दिलाराम दिल से धन्यवाद दे रहे हैं। अच्छा। डबल फारेनर्स की कमाल यह है कि जॉब भी करते, सेन्टर भी सम्भालते, डबल कार्य करते हैं। चाहे बहिनें हैं चाहे भाई हैं। जैसा नाम है डबल फारेनर्स वैसे काम भी डबल है। इसलिए बापदादा सभी डबल फारेनर्स को बहुत-बहुत-बहुत-बहुत याद दे रहे हैं। सुना। गुजरात के सेवाधारी - कहावत है जो समीप है वह सदा याद रहते हैं। तो सबसे समीप मुख्य स्थान गुजरात का है। अच्छा गुजरात वाले उठो। बहुत सेवाधारी हैं। गुजरात की विशेषता है - जब भी बुलाओ तो पहुँच जाते हैं। ऐसे है ना! जब भी सेवा के लिए बुलाओ आ जाते हैं। नजदीक का फायदा है। नजदीक का फायदा यह भी है कि सब मुरलियों में पहुँच जाते हैं। अच्छा।
गुजरात सेवा में तो अच्छा सदा ही रहा है और सदा ही रहने वाले हैं। संख्या भी ज्यादा है। बापदादा ने सुना कि अभी तक गुजरात में एक लाख नहीं बनाये हैं, तो यह थोड़ा सा रहा हुआ है। 9 लाख में से जो भी बड़े-बड़े ज़ोन हैं वह एक-एक लाख बनावें तो 9 लाख हो जाएं। डबल फारेनर्स भी कितने हैं, 50 हज़ार तक हैं? कितने हैं? (20 हज़ार) अभी 50 तक तो आओ। चलो इन्डिया को लाख तो फारेन वालों को 50 तो लाना चाहिए। (विदेश में भी गुजराती बहुत हैं) लेकिन हैं तो फारेनर्स ना! यह ज़रूर है कि फारेन में भी जहाँ-जहाँ गुजराती हैं या इन्डियन हैं वहाँ-वहाँ भण्डारी और भण्डारा भरपूर है। अभी-अभी बापदादा खुशखबरी डबल फारेनर्स की भी सुनते हैं कि डबल फारेनर्स को भी रहा हुआ वर्सा मिलता रहता है। तो डबल फारेनर्स को यह भी एक भविष्य बनाने का चांस अच्छा मिल रहा है। अच्छा है। समाचार तो बापदादा सब सुनते हैं। अच्छा है, हर एक की भारतवासी की, चाहे डबल फारेनर्स की विशेषतायें तो बहुत हैं लेकिन कहाँ तक सुनायें। इसलिए हर एक स्थान की कोई न कोई विशेषता है, ऐसा कोई स्थान नहीं जहाँ कोई विशेषता नहीं हो। विशेष आत्मायें हो और विशेषता है।
आज फारेन में सुन वा देख रहे हैं या नहीं? (देख रहे हैं) अच्छा है। आपके यज्ञ की स्थापना के बाद ही साइंस ने वृद्धि को प्राप्त किया है तो उसका फायदा तो कुछ लेंगे ना! लेकिन विधिपूर्वक फायदा लेना है। तो जो साइंस के साधनों द्वारा देख रहे हैं, सुन रहे हैं उन सभी बच्चों को सबसे पहले बापदादा सदा याद करते हैं। जितना-जितना याद का बल शक्तिशाली होगा उतना ऐसे ही महसूस करेंगे या कर रहे हैं जैसे बापदादा हमसे ही बात कर रहे हैं। लेकिन फिर भी मधुबन-मधुबन है।
अच्छा - अभी-अभी अपनी वृत्ति को एकाग्र कर सकते हो? कहाँ भी वृत्ति हलचल में नहीं आये। अचल, एकाग्र, शक्तिशाली रहे। (बापदादा ने ड्रिल कराई) अच्छा –
चारों ओर के सर्व सर्विसएबुल बच्चों को, सदा अपने श्रेष्ठ वायब्रेशन द्वारा सेवा करने वाले तीव्रगति का पुरूषार्थ करने वाले बच्चों को सदा क्षमा के मास्टर सागर, सदा शुभ भावना, शुभ कामना द्वारा बहुत कमज़ोर आत्माओं को भी शक्तिशाली बनाने वाले ऐसे मास्टर सर्वशक्तिवान बच्चों को बापदादा का बहुत-बहुत याद-प्यार और नमस्ते।
दादी जी, दादी जानकी जी से
आप बताओ सबसे ज्यादा खुश कौन होता है? बाप खुश होते हैं या आप खुश होती हैं? (एक दो से ज्यादा) अच्छा है, बापदादा जब आप निमित्त आत्माओं की सेवा को देखते हैं तो सेवा पर बलिहार जाते हैं। सम्भालने की विधि अच्छी है। बापदादा आप दोनों का सारे विश्व के आगे स्नेह, सहयोग और एक दो में सहानुभूति देख हर्षित होते हैं। (गुलजार दादी भी है, त्रिमूर्ति हैं) वह तो निमित्त हो गई। आपको देख करके, एक दो में कहा और माना। यह मानना ही माननीय बनाता है। हाँ जी, हाँ जी करके हजूर को भी अपना बना लेते हैं। (बाबा ने कूट-कूट कर भर दिया है) 14 वर्ष की पालना में सब कूट-कूट कर डाल दिया है। (अभी भी छोड़ता नहीं है) आप छोड़ सकती हो तो बाप क्यों छोड़ेगा! बहुत अच्छा। यह साथी भी आपके अच्छे हैं। सबका साथ है तभी आगे बढ़ रहे हैं। एक छोटी का भी साथ नहीं हो तो हलचल हो जाए। सबका चाहिए ना! चाहे पाण्डव, चाहे शक्तियाँ, एक- एक का सहयोग, सफलता को प्राप्त करा रहा है। आप यह नहीं समझना हम तो सिर्फ देखने वाले हैं, नहीं। करने वाले हैं। सर्व के सहयोग से बेहद का कार्य चल रहा है। ब्रह्मा बाप ने फाउण्डेशन क्या डाला? सहयोग का फाउण्डेशन डाला, क्या अकेला बापदादा कर नहीं सकता क्या? लेकिन फाउण्डेशन सहयोग का डाला। तो सहयोग से ही संसार बदल रहा है। अच्छा। सबका सहयोग है, एक-एक रतन विशेष है।
अच्छा - ओम् शान्ति।
11-03-2002 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
विशेषतायें परमात्म-देन हैं - इन्हें विश्व सेवा में अर्पण करो
आज ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर ब्रह्मा बाप और शिव बाप अपने विश्व के चारों ओर के श्रेष्ठ भाग्यवान ब्राह्मण कुल को बहुत-बहुत अरब-खरब बार दिव्य अलौकिक जन्म की मुबारक दे रहे हैं। साथ-साथ अति स्नेह के, दिल के प्यार के रूहानी पुष्पों से जन्म की बधाई दे रहे हैं। हर एक ब्राह्मण आत्मा की विशेषता देख-देख हर्षित हो रहे हैं। दिल ही दिल में गीत गा रहे हैं - वाह बच्चे वाह! आज के दिन अमृतवेले से सभी के दिल में यही खुशी की लहरें दिखाई दे रही हैं - वाह बाप का और हमारा अलौकिक जन्म! बाप भी सभी बच्चों की अमृतवेले से बधाइयों की मालायें देख-देख खुश हो रहे हैं। यह बर्थ डे सारे कल्प में इस संगमयुग में ही मनाते हैं। सतयुग में भी ऐसा अलौकिक जन्म दिन नहीं मनायेंगे। वहाँ भी ऐसा विचित्र जन्म दिन नहीं होगा, जो बाप और बच्चों का एक ही साथ जन्म हो। अब तक सुना है क्या कि बाप और बच्चे का जन्म एक दिन हुआ? लेकिन आज का दिन आप बच्चों का और बापदादा का जन्म एक दिन मना रहे हो। तो वाह-वाह! के गीत गा रहे हो ना!
आज बापदादा अमृतवेले एक माला बना रहे थे। कौन-सी माला? 108 की फाइनल माला नहीं बना रहे थे जो आप सोचो हमारा नाम था, हमारा नाम था... लेकिन आज आदि से, स्थापना के समय से अब विनाश के समीप समय तक कौन-से, कौन-से बच्चे अमर भव के वरदानी रहे हैं! उन्हों की माला बना रहे थे। यह भी ड्रामा अनुसार उन आत्माओं को ऊँचे-ते- ऊँचे भगवन के साथ सर्व चरित्र देखने, सुनने का श्रेष्ठ पार्ट है लेकिन वह कितने थोड़े हैं! आप सबका भी पार्ट है, क्यों? बापदादा ब्राह्मण वंशावली बना रहे हैं। इसलिए विश्व के हिसाब से जो भी ब्राह्मण आत्मायें हैं वह बहुत बहुत-बहुत भाग्यवान हैं, क्यों? कोटों में कोई की लाइन में और कोई में भी कोई, एक तरफ विश्व की कोटों आत्मायें, दूसरे तरफ आप हर एक ब्राह्मण एक हो। तो जन्म दिन पर बापदादा हर एक बच्चे को, कोई-कोई को नहीं सभी बच्चों की जन्मपत्री देख हर एक के विशेषताओं की मालायें गले में डाल रहे थे। आप सभी चाहे नये हैं, चाहे आदि के हैं, चाहे मध्य के हैं लेकिन विशेष हैं और विशेष रहेंगे ही। सारा कल्प विशेष रहेंगे। सारा कल्प विश्व की सर्व आत्माओं की आप श्रेष्ठ आत्माओं के ऊपर महानता की नज़र रहती है। तो आप हर एक अपनी विशेषताओं को जानते हो? अगर हाँ तो एक हाथ उठाओ। बहुत अच्छा। उस विशेषताओं को क्या करते हो? जानते हो बहुत अच्छा, मानते हो बहुत अच्छा लेकिन उन विशेषताओं को क्या करते हो? (सेवा में लगाते हैं) और रीति से यूज़ तो नहीं करते ना? यह विशेषतायें परमात्म-देन हैं। परमात्म-देन सदा विश्व सेवा में अर्पण करनी है। विशेषतायें अगर निगेटिव रूप में यूज़ किया तो अभिमान का रूप बन जाता है क्योंकि ज्ञान में आने के बाद, ब्राह्मण जीवन में आने के बाद बाप द्वारा विशेषतायें बहुत प्राप्त होती हैं क्योंकि बाप का बनने से विशेषताओं के खज़ाने के अधिकारी बन जाते हो। एक दो विशेषतायें नहीं हैं, बहुत विशेषतायें हैं। जो यादगार में भी आपकी विशेषताओं का वर्णन है - 16 कला सम्पन्न, तो सिर्फ 16 नहीं हैं, 16 माना सम्पूर्ण। सर्व गुण सम्पन्न। सम्पूर्ण निर्विकारिता का डिटेल है। कहने में आता है सम्पूर्ण निर्विकारी लेकिन सम्पूर्ण में कई डिटेल हैं। तो विशेषतायें तो बाप द्वारा हर ब्राह्मण को वर्से में प्राप्त होती ही हैं। लेकिन उन विशेषताओं को धारण करना और फिर सेवा में लगाना। मेरी यह विशेषता है, नहीं, परमात्म-देन है। परमात्म-देन समझने से विशेषता में परमात्म शक्तियाँ भर जाती हैं। मेरी कहने से अभिमान और अपमान दोनों का सामना करना पड़ता है। किसी भी प्रकार का अभिमान, चाहे ज्ञान का, चाहे योग का, चाहे सेवा का, चाहे बुद्धि का, चाहे कोई गुण का, जिसमें भी अभिमान होगा उसकी निशानी है - उसको अपमान बहुत जल्दी फील होगा।
तो विशेष आत्मायें हो अर्थात् परमात्म-देन के अधिकारी हो। तो आज आप सभी बापदादा का बर्थ डे मनाने आये हो ना! और बापदादा आप सबका बर्थ डे मनाने आये हैं। आप तो सिर्फ बापदादा का बर्थ डे मनायेंगे लेकिन बापदादा सारे ब्राह्मण कुल का बर्थ डे मनाने आये हैं। चाहे देश में दूर बैठे हैं, चाहे विदेश के कोने में दूर में बैठे हैं लेकिन जो भी ब्राह्मण आत्मा, ब्राह्मण कुल की बन गई, उन सबका बर्थ डे बापदादा भी मना रहे हैं, आप भी मना रहे हैं। सबका मना रहे हो या सिर्फ यहाँ बैठने वालों का मना रहे हो? सभी याद हैं ना! सभी देख रहे हैं कि हमारा भी मना रहे हैं या नहीं? तो सबका मना रहे हैं। सबको मुबारक, मुबारक, मुबारक हो। मनाना अर्थात् उमंग-उत्साह में आना। तो दिल में उत्साह है ना, वाह! हमारा अलौकिक जन्म दिन!
तो आज अमृतवेले से जन्म दिन का उत्साह-उमंग सभी में बहुत-बहुत रहा ना! बापदादा ने कार्ड भी देखे, आप इन आंखों से देखते हो, बापदादा तो सूक्ष्म में ही आपसे पहले ही देख लेते हैं। लेकिन बापदादा ने देखा सभी अपने दिल का उमंग दिखाने के लिए कितना उमंग-उत्साह रखते हैं। आजकल तो ई-मेल बहुत सस्ता है ना! तो ई-मेल भी सभी बहुत करते हैं। बापदादा के पास सब पहुँचता है। चाहे ई-मेल हो, चाहे कार्ड हो, चाहे पत्र हो, चाहे दिल के संकल्प हों। अमृतवेले से वतन में अगर चारों ओर के कार्ड, पत्र, ई-मेल, संकल्प सब इकट्ठे करो तो देख-देखकर बड़ा मजा आयेगा। यह एग्जीविशन विचित्र होती है। तो बर्थ डे पर भविष्य के लिए संकल्प किया जाता है। जैसे बर्थ का नम्बर आगे बढ़ता है, 65 से 66 पर गया ना! तो जैसे वर्ष आगे बढ़ता है ऐसे ही पुरूषार्थ में वा अपने अमूल्य जीवन में, मन में अर्थात् संकल्प में, बुद्धि के निर्णय शक्ति में, वाणी में, सेकण्ड में सफलता मूर्त बनाने की शक्ति में, सम्बन्ध-सम्पर्क में हर समय सम्पर्क-सम्बन्ध वाले को कोई-न-कोई प्राप्ति की अनुभूति हो, ऐसा अपने भविष्य वर्ष के लिए दृढ़ संकल्प का व्रत लिया? क्योंकि विशेष शिव जयन्ती के दिन दो लक्ष्य ब्राह्मण आत्माओं के रहते हैं - एक स्वयं से प्रतिज्ञा का और दूसरा बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने का, यह दो विशेष लक्ष्य इस दिन हर एक के अन्दर रहता है। तो बापदादा ने आप सबकी की हुई प्रतिज्ञाओं का (जो बीते हुए समय में की हैं) पोतामेल देखा। हर साल हर एक ने विधिपूर्वक संकल्प से, वाणी से प्रतिज्ञा की है। बहुत अच्छा किया है। लेकिन अभी आज के बाद अर्थात् जन्म दिन मनाने के बाद एक शब्द को विशेष अण्डरलाइन करना। कामन शब्द है, नया नहीं है। वह शब्द है -निरन्तर दृढ़ता। कभी दृढ़ता और कभी दृढ़ता में भी अलबेलापन, नहीं। अगर निरन्तर दृढ़ता है तो उसकी निशानी है - निरन्तर हर संकल्प, बोल, कर्म द्वारा स्व में, सेवा में और सम्बन्ध में 100 परसेन्ट सफलता। जब तक इन सभी बातों में ब्राह्मणों में सदा सफलता कम है तब तक प्रत्यक्षता ड्रामा अनुसार रूकी हुई है। सफलता प्रत्यक्षता का आधार है। हर बोल सफलता पूर्वक हो, हर संकल्प सफलतापूर्वक हो। इसलिए आजकल के यादगार में भी गुरू कहलाने वालों को सत वचन महाराज कहा जाता है। चाहे झूठ भी बोल रहे हों लेकिन भक्त कहते हैं सत वचन। तो यह आपके वचन का गायन है। महाराज, महान तो आप ही बनते हो ना! इसीलिए सत वचन महाराज माना महान आत्मायें। ऐसे कभी नहीं सोचो कि मेरा भाव नहीं था लेकिन बोल दिया, निकल गया, बिना भाव के, भावना के बोल नहीं निकलते हैं, यह तो चलाने की बात है। कभी कहते हैं निकल गया, क्यों निकल गया? क्यों, कन्ट्रोलिंग पावर नहीं है क्या जो निकल गया? हो गया, तो राजा नहीं हैं? कोई-कोई कर्मेन्द्रियों के वशीभूत हो गये ना - जो निकल गया, हो गया!
तो इस वर्ष में मुबारक के साथ निरन्तर हर बात में दृढ़ता को अण्डरलाइन करना। आज बर्थ डे है इसलिए बापदादा आज नहीं सुनाते हैं लेकिन सभी के चार्ट से बापदादा ने एक बात नोट की, लेकिन लास्ट बारी में सुनायेंगे। आज तो मनाना है, सुनाना नहीं है। 15 दिन के बाद सुनायेंगे। (बापदादा सुनाये तो 15 दिन में सब ठीक हो जायेंगे) अच्छा पहले कहो 15 दिन में करेक्शन हो जायेगी फिर तो सुनाना ठीक है। अगर 15 दिन में परिवर्तन हो जाए तो बापदादा तो पता नहीं क्या कर देंगे! तो सुनायें क्या? तो 15 दिन में 80 अव्यक्त संदेश परिवर्तन हो जायेगा? संकल्प करेंगे? अच्छा, पाण्डव करेंगे सुनायें? सुनना तो सहज है, करेंगे? करना पड़ेगा। (बापदादा ने पीछे वालों से, माताओं से, टीचर्स से, डबल फारेनर्स सबसे पूछा, सभी ने हाथ हिलाया) हाथ तो सब बहुत अच्छा उठा लेते हैं।
डबल फारेनर्स के तीन ग्रुप हैं ना?
(अन्तर्मुखी, मस्ताना, शक्ति ग्रुप)
अच्छा, अन्तर्मुखी ग्रुप हाथ उठाओ। अन्तर्मुखी में थोड़े हैं। दूसरा ग्रुप है मस्ताना, अच्छा मस्ताना ग्रुप वाले खड़े हो जाओ। सदा मस्त रहने वाले ना! मस्ताना का अर्थ क्या हुआ? सदा मस्त रहने वाले ना! तीसरा ग्रुप - शक्ति। शक्ति ग्रुप शक्तिशाली है ना! नाम तो बहुत अच्छे रखे हैं। देखो शुरू-शुरू में जब भट्ठी थी तो आपके ग्रुप्स के नाम क्या थे? (डिवाइन युनिटी, मनोहर पार्टी, सुप्रीम पार्टी) नाम तो सुन्दर हैं ना? तो यह भी ग्रुप अच्छे बने हैं। नाम याद रहेगा तो नाम के साथ कर्त्तव्य भी याद रहेगा। अच्छा डबल फारेनर्स कुमार उठो। अच्छा, यह कुमारों का ग्रुप है। अच्छा किया है, बापदादा ने डबल फारेनर्स के रिफ्रेशमेंट का समाचार बहुत अच्छा सुना है। बापदादा दिल से मुबारक भी दे रहे हैं लेकिन सभी ग्रुप्स को जो आज अण्डरलाइन किया है, वह याद भी दिला रहे हैं।
डबल फारेन की टीचर्स बहुत हैं। टीचर बनना बहुत-बहुत श्रेष्ठ भाग्य की निशानी है क्योंकि बापदादा टीचर्स को गुरू-भाई के रूप में देखते हैं, इतना समान रूप में देखते हैं क्योंकि बाप के आसन पर बैठते हैं, टीचर्स को यह हक मिलता है। जैसे गुरू की गद्दी होती है ना तो यह मुरली का तख्त, मुरली धारण कराना और मुरली सुनाना। सुनाना सिर्फ नहीं लेकिन मुरली धारण कराना, यह टीचर्स को बापदादा ने गुरूभाई का तख्त दिया है और फारेन में तो देखा जाता है कि बहुत जल्दी से जल्दी तख्तनशीन हो जाते हैं। बापदादा खुश होते हैं, जिम्मेवारी का ताज धारण कर लेना, हिम्मत रखना, यह भी कोई कम बात नहीं है लेकिन गुरूभाई अर्थात् बाप समान। वैसे तो सभी को बाप समान बनना ही है लेकिन फिर भी टीचर्स को विशेष जिम्मेवारी का ताज है। बापदादा को भी टीचर्स का संगठन बहुत अच्छा लगता है। लेकिन आज का विशेष शब्द ‘‘निरन्तर अटेन्शन’’।
अच्छा - भारत की टीचर्स उठो, भारत की टीचर्स भी कम नहीं हैं। तो सुना, टीचर्स को बाबा किस नज़र से देखते हैं। यह क्लास की, मुरली सुनाने की सीट... बहुत भाग्यवान हैं। बहुत-बहुत-बहुत लक्की हो क्योंकि साकार रूप में निमित्त कौन हैं? अच्छा दादियां तो एक फारेन रहती है एक मधुबन रहती है लेकिन हर स्थान पर साकार रूप में निमित्त टीचर्स हैं या निमित्त पाण्डव भी हैं। ऐसे नहीं सिर्फ टीचर्स (बहनें) हैं, पाण्डव भी हैं, जिसको बड़े भाई कहते हो ना। पाण्डव तो ज़रूरी हैं ही। शक्तियां और पाण्डव दोनों के साथ से ही आदि से कार्य चला है, चाहे थोड़े पाण्डव थे लेकिन विश्वकिशोर तो थे ना। आनंदकिशोर, विश्वकिशोर शुरू के हैं। तो पाण्डवों का साथ तो है ना। लेकिन मैजारिटी टीचर्स ज्यादा हैं जो निमित्त बन जाती हैं। आप बैकबोन हो, टीचर्स के भी बैकबोन हो। हर एक का पार्ट है। लेकिन विदेश में यह विशेषता है कि पाण्डव भी टीचर बनते हैं, भारत में कम बनते हैं। तो टीचर्स को सदा बापदादा कहते हैं टीचर अर्थात् अपने फीचर्स द्वारा बाप का साक्षात्कार कराने वाली। फीचर्स द्वारा फ्यूचर स्पष्ट दिखाने वाली। तो ऐसी टीचर्स हो ना? जो आपको देख बापदादा के पालना की अनुभूति हो। परमात्म-गुण, परमात्म-शक्तियां आपके चेहरे से दिखाई दें, बोल से दिखाई दें। ऐसे नहीं फलानी टीचर ने बोला, नहीं। बापदादा ने टीचर्स के फीचर्स द्वारा अनुभव कराया। बाप से हर एक का कनेक्शन जोड़ना - यही है टीचर्स का कर्त्तव्य। हर एक के दिल से हर समय बाबा निकले।
यह ग्रुप्स भी अच्छे बनाये हैं क्योंकि पर्सनल रिफ्रेशमेंट मिलने से अनुभूति अच्छी करते हैं। ग्रुप्स में रिज़ल्ट अच्छी निकली ना! अच्छा है।
सेवा का चांस यू.पी. का है:- अच्छा, गोल्डन चांसलर उठो। पाण्डव भी हैं, शक्तियां भी हैं, तो आप सबको इस सेवा का टाइटल मिला है, गोल्डन चांसलर। तो अभी यू.पी. कमाल करके दिखायेगी ना! धूम मचाओ यू.पी. में। यू.पी. में पुराने-पुराने भी अच्छे हैं, नये भी काफी आये हैं। अभी ऐसा कोई प्रोग्राम बनाओ जो देश-विदेश के ब्राह्मणों की नज़र यू.पी. की तरफ हो जाये। यू.पी. में निशानी है - जो ब्रह्मा बाप ने भी देखी। ब्रह्मा ने बीज डाला था, उस स्थान में साकार रूप में कोशिश की थी, जमीन लेके कुछ बनाने की, लेकिन अभी तक बना नहीं है। कमाल करो, बन जायेगा। (बनारस वाले म्यूजियम बना रहे हैं, आगरा वाले भी बना रहे हैं।) देखेंगे, कितने वारिस निकलते हैं और कितने सहयोगी निकलते हैं, कितने रेग्युलर स्टूडेन्ट निकलते हैं! रिज़ल्ट देखेंगे। बाकी अच्छा है, हिम्मत अच्छी रखी है, मदद मिलती रहेगी। तो यू.पी. वाले क्या कमाल करेंगे? कमाल करना है या नहीं? करना है ना, तो देखेंगे यू.पी. वाले क्या कमाल करते हैं। सब कहेंगे यू.पी. में चलो, यू.पी. में चलो। वह विनाशकारी विनाश करें, स्थापना वाले स्थापना। तो देखेंगे, प्लैन बनाना। ठीक है ना! प्लैन बनेगा ना।
मीडिया वालों की मीटिंग है - मीडिया वाले क्या कर रहे हैं? मीडिया का अर्थ ही है हर बात को प्रत्यक्ष करने वाले। तो मीडिया वालों ने क्या प्रत्यक्षता का प्लैन बनाया? इस साल प्रत्यक्षता हो जायेगी? मीडिया वाले चैनल बनाओ या कुछ भी बनाओ लेकिन यह आना चाहिए कि यही है, यही है, यही है...। अभी तक तो यह भी है, यही है, नहीं आया है। यह भी अच्छे हैं..., अच्छे-ते-अच्छे यही हैं, वह अखबार में निकले। चैनल में आवे तब बाप कहेंगे मीडिया है। फिर भी बढ़ तो रहा है, जितना भी किया है, वृद्धि तो हुई है लेकिन लक्ष्य तो वह है ना? मेहनत अच्छी कर रहे हैं, नाम तो हो गया है लेकिन अभी काम नहीं हुआ है। हो जायेगा, ज़रूर। अच्छा।
सिन्धी ग्रुप बहुत बड़ा आया है - बहुत अच्छा किया। अपने घर में आये हो ना? समझते हो अपने घर में आये हैं कि ब्रह्माकुमारियों के पास आये हैं? अपना घर है क्योंकि सिन्ध से स्थापना हुई, तो स्थापना के निमित्त बने हुए स्थान से आपका सम्बन्ध है। इसलिए आये हैं तो बहुत अच्छा, आये हैं और आते रहना। अपने सम्बन्ध-सम्पर्क वालों को जगाते रहना। बापदादा ने देखा है सेवा अच्छी करते हैं, अब तक की भी है। एक दो को परिचय देते रहते हो लेकिन और सेवा को बढ़ाओ। अभी इतने आये हैं ना, फिर दूसरी बारी और ज्यादा आना। सिन्धी लोगों को देख करके सबको खुशी होती है - यह सिन्ध वाले हैं जहाँ स्थापना हुई थी, आपको देखकर खुश होते हैं। तो अच्छा किया है। वृद्धि हो रही है ना? अच्छी वृद्धि है। बहुत अच्छा किया। अच्छा, डबल फारेनर्स को मुबारक तो मिली। (50 देशों से 1000 डबल विदेशी आये हैं) डबल विदेशियों ने विश्व कल्याण करने की जो हिम्मत रखी है, उसकी बापदादा विशेष डबल विदेशी बच्चों को बधाई देते हैं। कोई भी कोना छोड़ने वाले नहीं हैं। हिम्मत रख सेवा में बढ़ते ही रहते हैं। बापदादा ने देखा सेवा की रिज़ल्ट में जो काल आफ टाइम, लिविंग वैल्यू, पीस आफ माइन्ड... जो भी करते हो वह अच्छा कर रहे हैं। अच्छा है। रिज़ल्ट भी अच्छी है और आगे बढ़ भी रहे हैं। भारत को तो वरदान है गांवगांव में झण्डा लहराना। भारत में मुश्किल नहीं है लेकिन डबल फारेनर्स हर देश में साथ-वात (परिस्थितियां) न देख करके भी स्थापना करने का तरीका बहुत अच्छा है। भारत तो है ही बाप का, इसलिए उसको तो वरदान है ही।
टर्की से बहुत अच्छा ग्रुप आया है - अच्छा, टर्की वाले उठो - देखो, आपके लिए बाप को बहुत-बहुत प्यार है, तब तो टर्की में पहुँच गया ना! अच्छे मस्त हैं। गुप्त और मस्त। गुप्त भी रहना है और अपनी मस्ती में भी रहना है। तो अच्छा पार्ट बजा रहे हो। अच्छा। डबल विदेश की टीचर्स ने मेहनत अच्छी की है। आर.सी.ओ. ग्रुप उठो। डबल फारेन में आर.सी.ओ. कौन हैं, आप सबको पता तो होना चाहिए। टाइम भी दिया है और मेहनत भी अच्छी की है, मुबारक हो। बहुत अच्छा किया है। बैकबोन तो है। (दादी जानकी) आप भी उठो, देखो आपके लिए सबका प्यार है ना, इसलिए तालियां बजाई। अच्छा है। (एन.सी.ओ. भी है) अच्छा है जो भी हैं वह सब अच्छे हो। एन.सी.ओ, आर.सी.ओ जो भी हैं। समय दिया है। समय देने से सफलता होती है। अच्छा।
गुजरात का क्या हाल है? अच्छी हिम्मत है ना? डर तो नहीं है ना? शक्तियों को क्या डर है। यह तो होना ही है। लेकिन रीयल रूका हुआ है, यह तो रिहर्सल है। घबराते तो नहीं हो ना! कोई घबराता है? नहीं। आराम से ड्रामा की हर सीन देखते चलो। सिर्फ साक्षीपन की सीट से नीचे आकर नहीं देखो। सीट पर अच्छी रीति से सेट होकर बैठो।
मधुबन वालों से:- अच्छा, मधुबन वाले ठीक हैं? बहुत सेवा की सीजन चल रही है। मधुबन वाले उठो। मधुबन वाले सबसे प्यार-ते-प्यारे हैं क्योंकि जो चुल पर होता है वह दिल पर होता है। बापदादा मधुबन निवासी बच्चों को सदा ही इमर्ज कर याद-प्यार देते हैं क्योंकि इतनी आत्माओं को बाप से मिलने का सुख देते हैं। सेवा वरना अर्थात् बाप समान सुखदाई बन सुख देना। मधुबन को सेवा करने का बहुत-बहुत-बहुत परमात्म चांस है। मधुबन वालों के ऊपर परमात्मा की मेहर है, गुरूकृपा है। तो सदा चाहे ऊपर सुन रहे हैं, चाहे सम्मुख हैं लेकिन बापदादा सभी मधुबन निवासी सेवाधारी सो बाप के दिल पर, तख्त पर बैठने वाले बच्चों को बहुत-बहुत सेवा के रिटर्न में वरदान दे रहे हैं - अथक भव। सदा अथक भव का अपना चित्र सबको दिखाने वाले। ऐसे हो ना! सुखदाई हो ना? कितनी दुआयें मिलती हैं। जो सच्ची दिल वाला है उसको दुआयें स्वत: ही मिलती हैं। मधुबन वालों को दुआयें जमा करने का चांस बहुत अच्छा है। जितनी चाहे उतनी करो। तो दुआओं का स्टाक इकट्ठा हो रहा है ना? मधुबन निवासियों से बापदादा का स्पेशल प्यार है। अलग मिलते नहीं हैं लेकिन दिल से सदा मिलते रहते हैं। बहुत अच्छा। बहनें भी हैं। अच्छा।
ग्लोबल हॉस्पिटल के ट्रस्टी भी आये हैं –
ग्लोबल हॉस्पिटल से सबसे ज्यादा फायदा, बापदादा ने देखा ब्राह्मणों को बहुत है। ब्राह्मणों के लिए सहज साधन बन गया। इसलिए बापदादा हॉस्पिटल वालों को भी खास याद दे रहे हैं। अच्छा - ट्रस्टी उठो। अच्छा है बापदादा एक हंसी की बात सुनाते हैं। कामन बात है लेकिन हंसने की है, सभी से ज्यादा हॉस्पिटल का फायदा बापदादा ने देखा मधुबन वालों को है, क्यों? कोई भी शरीर छोड़ता है ना, तो मधुबन वालों का नाश्ता बंद नहीं होता है और यहाँ तो हर सीजन में दो-चार तो होते ही हैं। फायदा है ना मधुबन वालों को, खाना तो बंद नहीं होता है ना! और बच्चों को भी फायदा है। लेकिन सोशल वर्क के हिसाब से भी आबू निवासियों की वृत्ति चेंज होना, इसके निमित्त हॉस्पिटल है। हॉस्पिटल के सेवाधारी आये हैं, उठो। बहुत-बहुत सेवा की मुबारक हो। अच्छी सेवा करते हैं और दिनप्रतिदिन अनुभवी भी बनते जाते हैं। फिर भी हिम्मत तो रखी है ना? अच्छा, अभी तो बाम्बे में भी हॉस्पिटल खुल रही है। अच्छा है देखो ग्लोबल हॉस्पिटल को अच्छा-सा वारिस मिल गया है। (भुवनेश्वर में भी एक हॉस्पिटल खुली है) सभी को अच्छा लगता है? हाथ तो हिलाओ। टीचर्स को चेक कराना सहज हो गया है ना! अच्छा है। देश-विदेश में यह नाम भी बहुत सेवा करता है। विदेश में जानकी फाउण्डेशन है, अच्छा है, यह भी सेवा का साधन है और एक-दो में कनेक्शन जो रखा है वह भी अच्छा है। ट्रस्टी भी अच्छे-अच्छे हैं। अच्छा।
चारों ओर के जन्म उत्सव मनाने वाले श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माओं को, सदा अलौकिक जन्म के अलौकिक दिव्य कर्त्तव्य करने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा एक बाप दूसरा न कोई, ऐसे एकनामी और सर्व खज़ानों के एकानामी के अवतार बच्चों को सदा हर वरदान और वर्से को जीवन द्वारा प्रत्यक्ष करने वाले उमंग-उत्साह में रहने वाले बच्चों को, बापदादा का अलौकिक जन्म के मुबारक सहित याद-प्यार और नमस्ते।
दादियों से
दादी जी ने बापदादा को बर्थ डे की बहुत-बहुत बधाई दी। आज माला में आप सब आये। माला याद की ना! आदि की स्थापना हर एक अपने को मुक्त करो, दूसरे को नहीं देखो के रत्न, तो उसमें आप माला के मणके थे। अच्छा है स्थापना में भी निमित्त बने, पालना में भी निमित्त बने, अभी बाप के साथ चलने में भी निमित्त बनेंगे। क्या दरवाजा बापदादा अकेला खोलेगा? (नहीं) आपके लिए रूके हुए हैं। आओ तो दरवाजा खोलें। लेकिन सेवा पूरी करनी पड़ेगी ना क्योंकि साकार में आप लोगों को निमित्त बनाया है। तो साकार का कार्य तो पूरा करना पड़ेगा ना। आजकल सब किसको देखते हैं? सबकी नजर कहाँ जाती है? आप लोगों के ऊपर ही तो जाती है। जो निमित्त बने हुए हैं, उन्हों के ऊपर ही सबकी नज़र जाती है। नज़रों में तो सभी को बिठाया क्योंकि बाप की नज़र कोई छोटी तो है ही नहीं, बेहद की नज़र है। तो सभी नज़र में हैं। सभी नूरे रत्न हैं। बहुत अच्छा। हर एक अपना-अपना पार्ट बजा रहे हैं और बजाना ही है। ड्रामा में बंधे हुए हो। मजा आता है ना! बहुत अच्छा है!
बापदादा ने अपने हस्तों से शिव ध्वज फहराया, केक काटी और सब बच्चों को बधाइयाँ दी
सभी बच्चों के दिल में बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहरा रहा है और आप सब बच्चों के दिल में लहराया हुआ झण्डा दुनिया में लहराया जायेगा। सभी के मुख से यही निकलेगा - वाह शिव-शक्ति पाण्डव सेना वाह! बापदादा को सभी के खुशनुमा: चेहरे देख बहुत-बहुत खुशी है। खुशनसीब हो और सदा खुशनुम: चेहरा है और औरों को भी सदा दिलखुश मिठाई खिलाते रहना। अमृतवेले यह मिठाई सभी याद से खा लो। तो सारा दिन इस मिठाई की शक्ति रहेगी, खुशी रहेगी। अच्छा। सबको मुबारक हो। (सबके तरफ से बाबा को मुबारक हो, मुबारक हो)
ओम् शान्ति।
28-03-2002 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
इस वर्ष को निर्माण, निर्मल वर्ष और व्यर्थ से मुक्त होने का मुक्ति वर्ष मनाओ
आज बापदादा अपने चारों ओर के बच्चों के मस्तक में चमकती हुई तीन लकीरें देख रहे हैं। एक लकीर है प्रभु पालना की, दूसरी लकीर है श्रेष्ठ पढ़ाई की और तीसरी लकीर है श्रेष्ठ मत की। तीनों ही लकीर चमक रही हैं। यह तीनों लकीर सर्व के भाग्य की लकीरे हैं। आप सभी भी अपनी तीनों लकीरें देख रहे हो ना! प्रभु पालना का भाग्य सिवाए आप ब्राह्मण आत्माओं के और किसी को भी प्राप्त नहीं होता है। परमात्म पालना जिस पालना से कितने श्रेष्ठ पूज्यनीय बन जाते हो। कभी स्वप्न में भी ऐसा सोचा था कि मुझ आत्मा को परमात्म पढ़ाई का अधिकार प्राप्त होना है। लेकिन अभी साकार में अनुभव कर रहे हो। स्वयं सतगुरू अमृतवेले से रात तक हर कर्म की श्रेष्ठ मत दे कर्म बन्धन के परिवर्तन में, कर्म सम्बन्ध में आने की श्रीमत देने के निमित्त बनायेंगे - यह भी स्वप्न में नहीं था। लेकिन अभी अनुभव से कहते हो हमारा हर कर्म श्रीमत पर चल रहा है। ऐसा अनुभव है? ऐसा श्रेष्ठ भाग्य हर बच्चों का बापदादा भी देख-देख हर्षित होते हैं। वाह मेरे श्रेष्ठ भाग्यवान वाह! बच्चे कहते वाह बाबा वाह! और बाप कहते वाह बच्चे वाह!
आज अमृतवेले से बच्चों के दो संकल्पों से याद बापदादा के पास पहुँची। एक तो कई बच्चों को अपना एकाउन्ट देने की याद थी। दूसरी - बाप के संग के रंग की होली याद थी। तो सभी होली मनाने आये हो ना! ब्राह्मणों की भाषा में मनाना अर्थात् बनना। होली मनाते हैं अर्थात् होली बनते हैं। बापदादा देख रहे थे ब्राह्मण बच्चों का होलीएस्ट बनना कितना सर्व से न्यारा और प्यारा है। वैसे द्वापर के आदि की महान आत्मायें और समय प्रति समय आये हुए धर्म पितायें भी पवित्र, होली बने हैं। लेकिन आपकी पवित्रता सबसे श्रेष्ठ भी है, न्यारी भी है। कोई भी सारे कल्प में चाहे महात्मा है, चाहे धर्म आत्मा है, धर्म पिता है लेकिन आप की आत्मा भी पवित्र, शरीर भी पवित्र, प्रकृति भी सतोप्रधान पवित्र, ऐसा होलीएस्ट कोई न बना है, न बन सकता है। अपना भविष्य स्वरूप सामने लाओ। सबके सामने अपना भविष्य रूप आया? या पता ही नहीं है कि बनूंगा या नहीं बनूंगा! क्या बनूंगा! कुछ भी बनेंगे लेकिन होंगे तो पवित्र ना! शरीर भी पवित्र, आत्मा भी पवित्र और प्रकृति भी पवित्र पावन, सुखदाई.... निश्चय की कलम से अपना भविष्य चित्र सामने ला सकते हैं। निश्चय है ना! टीचर्स को निश्चय है? अच्छा एक सेकण्ड में अपना भविष्य चित्र सामने ला सकते हो? चलो कृष्ण नहीं बनेंगे, लेकिन साथी तो बनेंगे ना! कितना प्यारा लगता है। आार्टिस्ट बनना आता है या नहीं आता है? बस सामने देखो। अभी साधारण हूँ, कल (ड्रामा का कल, यह कल नहीं जो कल आयेगा) तो कल यह पवित्र शरीरधारी बनना ही है। पाण्डव क्या समझते हो? पक्का है ना, शक्य तो नहीं है - पता नहीं बनेंगे या नहीं बनेंगे? शक्य है? नहीं है ना! पक्का है। जब राजयोगी हैं तो राज्य अधिकारी बनना ही है। बापदादा कई बार याद दिलाते हैं कि बाप आपके लिए सौगात लाये हैं तो सौगात क्या लाये हैं? सुनहरी दुनिया, सतोप्रधान दुनिया की सौगात लाये हैं। तो निश्चय है, निश्चय की निशानी है रूहानी नशा। जितना अपने राज्य के समीप आ रहे हो, घर के भी समीप आ रहे हो और अपने राज्य के भी समीप आ रहे हो, तो बार-बार अपने स्वीट होम और अपने स्वीट राज्य की स्मृति स्पष्ट आनी ही चाहिए। यह समीप आने की निशानी है। अपना घर, अपना राज्य ऐसा ही स्पष्ट स्मृति में आये, तीसरे नेत्र द्वारा स्पष्ट दिखाई दे। अनुभव हो आज यह, कल यह। कितने बार पार्ट पूरा कर अपने घर और अपने राज्य में गये हो, याद आता है ना! और अब फिर से जाना है। डबल फारेनर्स स्पष्ट याद आता है कि खींचना पड़ता है, पता नहीं क्या बनेगा, कैसा होगा! खींचना पड़ता है या स्पष्ट है? याद है? स्पष्ट है? पीछे वालों को याद है? गैलरी में बैठने वालों को याद है? (आज की सभा 16-17 हज़ार की है) बापदादा देख रहे हैं, बाहर भी बैठे हैं और विश्व के कोने-कोने में भी बैठे हैं। तो होली मना ली ना? हो ही होली, तो होली क्या मनायेंगे! यह तो संगमयुग के सुहेज हैं।
तो बापदादा आज सबका एकाउन्ट देखेंगे ना! भूला नहीं है। सबने अपना एकाउन्ट रखा, जिन्होंने एक्यूरेट अपना एकाउन्ट रखा है, नियम प्रमाण, काम चलाऊ नहीं, यथार्थ रूप से जैसा भी है लेकिन एकाउन्ट अपना पूरा रखा है, सच्चा-सच्चा एकाउन्ट, चलाऊ नहीं, वह बड़ा हाथ उठाओ। जिन्होंने रखा है, लिखा है नहीं, रखा है। थोड़ों ने रखा है। अच्छा पीछे वाले जिन्होंने रखा है, खड़े हो जाओ। अच्छा। डबल फारेनर्स जिन्होंने रखा है वह उठो। अच्छा मुबारक हो। अच्छा - जिन्होंने नहीं रखा है उन्हों से हाथ नहीं उठवाते हैं। उठाना अच्छा नहीं लगेगा ना। लेकिन जिन्होंने सच्चा-सच्चा एकाउन्ट रखा है, बापदादा के पास तो स्पष्ट हो ही जाता है। कइयों ने थोड़ा हिसाब से नहीं, जैसे एवरेज निकाला जाता है ना, ऐसे भी रखा है। एक्यूरेट बहुत थोड़ों ने लिखा है या रखा है। फिर भी बाप के डायरेक्शन को माना इसलिए बापदादा ने दो प्रकार की एक्स्ट्रा मार्क्स उन्हों की बढ़ाई, क्योंकि श्रीमत पर चलना यह भी एक सब्जेक्ट है। तो श्रीमत पर चलने की सब्जेक्ट में पास हुए इसलिए फर्स्ट नम्बर वालों को बापदादा ने अपने तरफ से 25 मार्क्स बढ़ाई, जो पहला नम्बर हैं और जो दूसरा नम्बर हैं उसको 15 मार्क्स बढ़ाई। यह एक्स्ट्रा लिफ्ट बापदादा ने अपने तरफ से दी। तो फाइनल पेपर में आपकी यह मार्क्स जो हैं वह जमा होंगी। पास विद आनर होने में मदद मिलेगी। लेकिन जिन्होंने नहीं रखा है, कोई भी कारण है, है तो अलबेलापन और तो कुछ नहीं है लेकिन फिर भी कोई भी कारण से अगर नहीं रखा है तो बापदादा कहते हैं कि फिर भी एक मास अपना एकाउन्ट अभी से रखो और अगर अभी भी एक मास एक्यूरेट, नम्बरवन वाला एकाउन्ट रखेंगे, तो बापदादा उसकी मार्क्स कट नहीं करेंगे, जो श्रीमत प्रमाण नहीं कर सके हैं। समझा। कट नहीं करेंगे लेकिन करना ज़रूरी है। श्रीमत न मानने से मार्क्स तो कट होती हैं ना! अन्त में जब आप अपना पोतामेल ड्रामा अनुसार दिल है के टी.वी. में देखेंगे और टी.वी. नहीं, अपने ही दिल की टी.वी. में बापदादा दिखायेंगे, तो उसमें इस श्रीमत की मार्क्स कट नहीं करेंगे। फिर भी बापदादा का प्यार है। समझते हैं कि बहुत जन्म के अलबेलेपन के संस्कार पक्के हैं ना, तो हो जाता है। लेकिन अभी अलबेले नहीं बनना, नहीं तो फिर पीछे बतायेंगे क्या होगा, अभी नहीं बताते हैं क्योंकि बापदादा ने सभी की वर्तमान समय की रिज़ल्ट देखी। चाहे डबल फारेनर्स, चाहे भारतवासी, सभी बच्चों की रिज़ल्ट में देखा कि वर्तमान समय अलबेलेपन के बहुत नये-नये प्रकार बच्चों में हैं। अनेक प्रकार का अलबेलापन है। मन ही मन में सोच लेते हैं, सब चलता है..। आजकल का सब बातों में यह विशेष स्लोगन है - ‘‘सब चलता है’’ - यह अलबेलापन है। साथ में थोड़ा-थोड़ा भिन्न-भिन्न प्रकार का पुरूषार्थ वा स्व-परिवर्तन में अलबेलेपन के साथ कुछ परसेन्ट में आलस्य भी है। हो जायेगा, कर ही लेंगे... बापदादा ने नये-नये प्रकार की अलबेलेपन की बातें देखी हैं। इसलिए अपना सच्चा, सच्ची दिल से अलबेले रूप से नहीं, एकाउन्ट ज़रूर रखो।
आज इस सीजन का लास्ट टर्न है ना! तो बापदादा रिज़ल्ट सुना रहे हैं। सुनाये ना! कि नहीं सिर्फ प्यार करें? यह भी प्यार है। हर एक से बापदादा का इतना प्यार है कि सभी बच्चे ब्रह्मा बाप के साथ-साथ अपने घर में चलें। पीछे-पीछे नहीं आवें, साथी बनके चलें। तो समान तो बनना पड़े ना! बिना समानता के साथी बनके नहीं चल सकेंगे और फिर अपने राज्य का पहला जन्म, पहला जन्म तो पहला ही होगा ना! अगर दूसरे-तीसरे जन्म में आ भी गये, अच्छा राजा भी बन गये, लेकिन कहेंगे तो दूसरा-तीसरा ना! साथ चलें और ब्रह्मा बाप के साथ पहले जन्म के अधिकारी बनें - यह है नम्बरवन पास विद आनर वाले। तो पास-विद्-आनर बनना है या पास मार्क्स वाले भी ठीक हैं? कभी भी यह नहीं सोचना कि जो हम कर रहे हैं, जो हो रहा है वह बापदादा नहीं देखते हैं। इसमें कभी अलबेले नहीं होना। अगर कोई भी बच्चा अपने दिल का चार्ट पूछे तो बापदादा बता सकते हैं लेकिन अभी बताना नहीं है। बापदादा हर एक महारथी, घोड़ेसवार... सबका चार्ट देख रहे हैं। कई बार तो बापदादा को बहुत तरस आता है, हैं कौन और करते क्या हैं? लेकिन जैसे ब्रह्मा बाप कहते थे ना - याद है क्या कहते थे? गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने। शिव बाबा जाने और ब्रह्मा बाबा जाने क्योंकि बापदादा को तरस बहुत पड़ता है लेकिन ऐसे बच्चे बापदादा के रहम के संकल्प को टच नहीं कर सकते, कैच नहीं कर सकते। इसीलिए बापदादा ने कहा - भिन्न-भिन्न प्रकार का रॉयल अलबेलापन बाप देखते रहते हैं। आज बापदादा कह ही देते हैं कि तरस बहुत पड़ता है। कई बच्चे ऐसे समझते हैं कि सतयुग में तो पता ही नहीं पड़ेगा कौन क्या था, अभी तो मौज मना लो। अभी जो कुछ करना है कर लो। कोई रोकने वाला नहीं, कोई देखने वाला नहीं। लेकिन यह गलत है। सिर्फ बापदादा नाम नहीं सुनाते, नाम सुनायें तो कल ठीक हो जाएं।
आज धुरिया मना रहे हैं ना। धुरिये में एक-दो को जो भी होता है स्पष्ट दे देते हैं। तो समझा क्या करना है, पाण्डव समझा कि नहीं समझा! चल जायेगा? चलेगा नहीं क्योंकि बापदादा के पास हर एक की हर दिन की रिपोर्ट आती है। बाप-दादा आपस में भी रूहरूहान करते हैं। तो बापदादा सभी बच्चों को फिर से इशारा दे रहे हैं कि समय सब प्रकार से अति में जा रहा है। माया भी अपना अति का पार्ट बजा रही है, प्रकृति भी अपना अति का पार्ट बजा रही है। ऐसे समय पर ब्राह्मण बच्चों का अपने तरफ अटेन्शन भी अति अर्थात् मन-वचन-कर्म में अति में चाहिए। साधारण पुरूषार्थ नहीं। बापदादा ने इशारा दिया भी है कि 66 वर्ष में अभी तक 6 लाख तैयार किये हैं। अभी 9 लाख भी नहीं हुए हैं। तो विश्व कल्याणी आत्मायें विश्व की सर्व आत्माओं का कल्याण कब करेंगे? और 66 वर्ष चाहिए क्या? 66 वर्ष और नहीं चाहिए? डबल फारेनर्स को चाहिए? नहीं चाहिए? तो क्या करेंगे? चलो आधा, 33 वर्ष चाहिए? नहीं चाहिए। 33 वर्ष भी नहीं चाहिए तो क्या करेंगे? वैसे बापदादा ने देखा है कि सेवा से लगन अच्छी है। सेवा के लिए एवररेडी हैं, चांस मिले तो प्यार से सेवा के लिए एवररेडी हैं। लेकिन अभी सेवा में एडीशन करो - वाणी के साथ-साथ मनसा, अपनी आत्मा को विशेष कोई-न-कोई प्राप्ति के स्वरूप में स्थित कर वाणी से सेवा करो। मानो भाषण कर रहे हो तो वाणी से तो भाषण अच्छा करते ही हो लेकिन उस समय अपने आत्मिक स्थिति में विशेष चाहे शक्ति की, चाहे शान्ति की, चाहे परमात्म-प्यार की, कोई न कोई विशेष अनुभूति की स्थिति में स्थित कर मनसा द्वारा आत्मिक-स्थिति का प्रभाव वायुमण्डल में फैलाओ और वाणी से साथ-साथ सन्देश दो। वाणी द्वारा सन्देश दो, मनसा आत्मिक स्थिति द्वारा अनुभूति कराओ। भाषण के समय आपके बोल आपके मस्तक से, नयनों से, सूरत से उस अनुभूति की सीरत दिखाई दे कि आज भाषण तो सुना लेकिन परमात्म प्यार की बहुत अच्छी अनुभूति हो रही थी। जैसे भाषण की रिज़ल्ट में कहते हैं बहुत अच्छा बोला, बहुत अच्छा, बहुत अच्छी बातें सुनाई, ऐसे ही आपके आत्म-स्वरूप की अनुभूति का भी वर्णन करें। मनुष्य आत्माओं को वायब्रेशन पहुँचे, वायुमण्डल बने। जब साइंस के साधन ठण्डा वातावरण कर सकते हैं, सबको महसूस होता है बहुत ठण्डाई अच्छी आ रही है। गर्म वायुमण्डल अनुभव करा सकते हैं। साइंस सर्दी में गर्मी का अनुभव करा सकती है, गर्मी में सर्दी का अनुभव करा सकती, तो आपकी साइन्स क्या प्रेम स्वरूप, सुख स्वरूप, शान्त स्वरूप वायुमण्डल अनुभव नहीं करा सकती! यह रीसर्च करो। सिर्फ अच्छा-अच्छा किया लेकिन अच्छे बन जायें, तब समाप्ति के समय को समाप्त कर अपना राज्य लायेंगे। क्यों, आपको अपना राज्य याद नहीं आता? संगमयुग श्रेष्ठ है वह ठीक है, हीरे तुल्य है। लेकिन हे रहमदिल, विश्व कल्याणी बच्चे, अपने दु:खी अशान्त भाई बहनों पर रहम नहीं आता? उमंग नहीं आता, दु:खमय संसार को सुखमय बना दें, यह उमंग नहीं आता? दु:ख देखने चाहते, दूसरों का दु:ख देखकर भी रहम नहीं आता? आपके भाई हैं, आपकी बहिनें हैं तो दु:ख देखना अच्छा लगता है? अपना दयालु, कृपालु स्वरूप इमर्ज करो। सिर्फ सेवा में नहीं लग जाओ, यह प्रोग्राम किया, यह प्रोग्राम किया... चलो वर्ष पूरा हुआ। अभी मर्सीफुल बनो। चाहे दृष्टि से, चाहे अनुभूति से, चाहे आत्मिक स्थिति के प्रभाव से, मर्सीफुल बनो। रहमदिल बनो। 66 वर्ष समाप्त हो चुके हैं। कम नहीं हैं 66 वर्ष। ब्रह्मा बाप को अव्यक्त होते भी 33 वर्ष हो गये हैं। ब्रह्मा बाप कब-कब कहते भी हैं, कब बच्चे आयेंगे, दरवाजा खोलने के लिए। तो घर का दरवाजा साथ में खोलेंगे या पीछे-पीछे आयेंगे? इन्तजार कर रहा है। तो सेवा में एडीशन करो। इससे बापदादा गैरन्टी दे रहे हैं कि थोड़े समय में अगर इस विधि से सेवा की तो आपके पास क्वालिटी की वर्षा हो जायेगी। वारिस क्वालिटी की बारिश पड़ेगी। इतनी मेहनत करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। कहना ही नहीं पड़ेगा - अभी यह कार्य होना है, इसमें सहयोगी बनो, नहीं। सहयोग की स्वयं आफर करने वाले होंगे। लेकिन साधारण पुरूषार्थ, साधारण विधि की सेवा को परिवर्तन करो। छिम-छिम होनी चाहिए। होनी तो है ही। सिर्फ अनुभूति कराने की विधि सोचो, सिर्फ भाषण और कोर्स कराने की नहीं, वह बहुत करा लिए। वर्गाकरण के प्रोग्राम भी बहुत कर लिये। जो आये उस पर छाप लगे, 9 लाख की छाप लग जाए। समझा। क्या करना है? कहते थे सर्विस का प्लैन सुनाना, कहा था ना? अभी कोई छिम-छिम करके दिखाओ। अभी धीमी चाल है। जैसे लक्ष्मी के लिए कहते हैं ना, दोनों हाथों से सम्पत्ति की छिम-छिम हो रही है, तो आप अभी श्रेष्ठ ब्राह्मण बन अनुभूतियों की छिम-छिम करो। लेकिन अनुभूति वह करा सकेंगे जो और व्यर्थ चिंतन, व्यर्थ दर्शन और व्यर्थ समय गंवाने वाले नहीं होंगे। आजकल थोड़ा-थोड़ा, बापदादा ने थोड़ा देखा है। वह भी सुनायें क्या? अच्छा आज सब सुना देते हैं। होली है ना! तो होली में बुरा नहीं मानते हैं। अच्छा।
बापदादा ने एक बात और भी देखी है, सुनाना अच्छा नहीं लगता। कभीकभी कोई-कोई बच्चे, अच्छे-अच्छे भी दूसरों की बातों में बहुत पड़ते हैं। दूसरों की बातें देखना, दूसरों की बातें वर्णन करना... और देखते भी व्यर्थ बातें हैं। विशेषता एक दो की वर्णन करना, वह कम है। हर एक की वि्शेषता देखना, विशेषता वर्णन करना, उनकी विशेषता द्वारा उनको उमंग उत्साह दिलाना, यह कम है। लेकिन व्यर्थ बातें जिन बातों को, बापदादा कहते हैं छोड़ दो, अपनी तो छोड़ने की कोशिश करते, लेकिन दूसरे की देखने की भी आदत है। उसमें टाइम बहुत जाता है। बापदादा एक विशेष श्रीमत दे रहे हैं - है कामन बात लेकिन टाइम बहुत वेस्ट जाता है। बोल में निर्माण बनो। बोल में निर्माणता कम नहीं होनी चाहिए। भले साधारण शब्द बोलते हैं, समझते हैं, इसमें तो बोलना ही पड़ेगा ना! लेकिन निर्माणता के बजाए अगर कोई अथॉरिटी से, निर्माण बोल नहीं बोलते तो थोड़ा कार्य का, सीट का, 5 परसेन्ट अभिमान दिखाई देता है। निर्माणता ब्राह्मणों के जीवन का विशेष शृंगार है। निर्माणता मन में, वाणी में, बोल में, सम्बन्ध-सम्पर्क में....हो। ऐसे नहीं तीन बातों में तो मैं निर्माण हूँ, एक में कम हूँ तो क्या हुआ! लेकिन वह एक कमी पास विद आनर होने नहीं देगी। निर्माणता ही महानता है। झुकना नहीं है, झुकाना है। कई बच्चे हंसी में ऐसे कह देते हैं क्या मुझे ही झुकना है, यह भी तो झुके। लेकिन यह झुकना नहीं है वास्तव में परमात्मा को भी अपने ऊपर झुकाना है, आत्मा की तो बात ही छोड़ो। निर्माणता निरंहकारी स्वत: ही बना देती है। निरंहकारी बनने का पुरूषार्थ करना नहीं पड़ता है। निर्माणता हर एक के मन में, आपके लिए प्यार का स्थान बना देती है। निर्माणता हर एक के मन से आपके प्रति दुआयें निकालेगी। बहुत दुआयें मिलेंगी। दुआयें, पुरूषार्थ में लिफ्ट से भी राकेट बन जायेंगी। निर्माणता ऐसी चीज़ है। कैसा भी कोई होगा, चाहे बिजी हो, चाहे कठोर दिल वाला हो, चाहे क्रोधी हो, लेकिन निर्माणता आपको सर्व द्वारा सहयोग दिलाने के निमित्त बन जायेगी। निर्माण, हर एक के संस्कार से स्वयं को चला सकता है। रीयल गोल्ड होने के कारण स्वयं को मोल्ड करने की विशेषता होती है। तो बापदादा ने देखा है कि बोल-चाल में भी, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी, सेवा में भी एक दो के साथ निर्माण स्वभाव विजय प्राप्त करा देता है। इसलिए इस वर्ष में विशेष बापदादा इस वर्ष को निर्माण, निर्मल वर्ष का नाम दे रहे हैं। वर्ष मनायेंगे ना। मनाना माना बनना। सिर्फ कहना नहीं, हाँ यह वर्ष है। बनना है। बनना है ना? बस ऐसे बोलो जो सब कहें और भी मोती हमको सुनाओ, मोती दो। ऐसे नहीं कहें - नहीं, नहीं यह तो सुनो नहीं, जाओ। ऐसे नहीं। हीरे-मोती मुख से निकलें। अभिमान से बोलने से किसको दु:ख क्यों देते हो! दु:ख के खाते में जमा तो होगा ना। आप समझते हो क्या हुआ बोल दिया, ऐसे ही तो है। लेकिन दु:ख के खाते में जमा होता है। समझा। इसीलिए एकाउन्ट रखना। ऐसे नहीं अभी तो एकाउन्ट दे दिया? रखने से फायदा है।
बापदादा ने देखा कइयों ने पुरूषार्थ अच्छा किया है। अटेन्शन दिया है। तो क्या याद रखेंगे? निर्माण। तब निर्माण का कर्त्तव्य फटाफट होगा। निर्माण बनो, निर्माण करो। फिर आपेही बोलेंगे, बाबा अभी तो छिम-छिम हो गई है। होनी ही है। सारे विश्व की आत्मायें अहो प्रभु कहके भी आपके आगे झुकनी हैं। तो सुना वर्ष की सेवा का सुनाया ना! अभी देखेंगे कौन-सा सेन्टर, कौन-सा ज़ोन, ज़ोन में भी कौन-सा सेन्टर इस विधि से वारिस निकालते हैं। अभी कोई वारिसों की छिम-छिम करो। वह होगी अनुभूति कराने से। सबसे बड़े ते बड़ी अथॉरिटी अनुभव है। अनुभवी को कोई बदल नहीं सकता। अच्छा। डबल फारेनर्स को एक सेकण्ड में कोई भी व्यर्थ बात, कोई भी निगेटिव बात, कोई भी बीती बात, उसको मन से बिन्दी लगाना आता है?
डबल फारेनर्स जो समझते हैं कि कैसी भी बीती हुई बात, अच्छी बात तो भूलनी है ही नहीं, भूलनी तो व्यर्थ बातें ही होती हैं। तो कोई भी बात जिसको भूलने चाहते हैं, उसको सेकेण्ड में बिन्दी लगा सकते हैं? जो फारेनर्स लगा सकते हैं, वह सीधा, लम्बा हाथ उठाओ। मुबारक हो। अच्छा, जो समझते हैं कि एक सेकण्ड में नहीं एक घण्टा तो लगेगा ही? सेकण्ड तो बहुत थोड़ा है ना! एक घण्टे के बाद बिन्दी लग सकती है, वह हाथ उठाओ। जो घण्टे में बिन्दी लगा सकते हैं, वह हाथ उठाओ। देखा, फारेनर्स तो बहुत अच्छे हैं। भारतवासी भी जो समझते हैं एक घण्टे में नहीं आधे दिन में बिन्दी लग सकती है, वह हाथ उठाओ। (कोई ने हाथ नहीं उठाया) हैं तो सही, बापदादा को पता है। बापदादा तो देखता रहता है, हाथ नहीं उठाते, लेकिन लगता है। लेकिन समझो आधा दिन लगे, एक घण्टा लगे और आपको एडवांस पार्टी का निमन्त्रण आ जाए तो? तो क्या रिज़ल्ट होगी? अन्त मते सो गति क्या होगी? समझदार तो हो ना? इसलिए अपनी मनसा को बिज़ी रखेंगे ना, मनसा सेवा का टाइमटेबुल बनायेंगे अपना तो बिन्दी लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। बस, होंगे ही बिन्दी रूप। इसलिए अभी अपने मन का टाइमटेबुल फिक्स करो। मन को सदा बिज़ी रखो, खाली नहीं रखो। फिर मेहनत करनी पड़ती है। ऊँचे-ते-ऊँचे भगवन के बच्चे हो, तो आपका तो एक-एक सेकण्ड का टाइमटेबुल फिक्स होना चाहिए। क्यों नहीं बिन्दी लगती, उसका कारण क्या? ब्रेक पावरफुल नहीं है। शक्तियों का स्टॉक जमा नहीं है इसीलिए सेकण्ड में स्टॉप नहीं कर सकते। कई बच्चे कोशिश बहुत करते हैं, जब बापदादा देखते हैं मेहनत बहुत कर रहे हैं, यह नहीं हो, यह नहीं हो... कहते हैं नहीं हो लेकिन होता रहता है। बापदादा को बच्चों की मेहनत अच्छी नहीं लगती। कारण यह है, जैसे देखो रावण को मारते भी हैं, लेकिन सिर्फ मारने से छोड़ नहीं देते हैं, जलाते हैं और जलाके फिर हड्डियाँ जो हैं, वह आजकल तो नदी में डाल देते हैं। कोई भी मनुष्य मरता है तो हड्डियाँ भी नदी में डाल देते हैं तभी समाप्ति होती है। तो आप क्या करते हो? ज्ञान की प्वाइंटस से, धारणा की प्वाइंट्स से उस बात रूपी रावण को मार तो देते हो लेकिन योग अग्नि में स्वाहा नहीं करते हो। और फिर जो कुछ बातों की हड्डियाँ बच जाती हैं ना - वह ज्ञान सागर बाप के अर्पण कर दो। तीन काम करो - एक काम नहीं करो। आप समझते हो पुरूषार्थ तो किया ना, मुरली भी पढ़ी, 10 बारी मुरली पढ़ी फिर भी आ गई क्योंकि आपने योग अग्नि में जलाया नहीं, स्वाहा नहीं किया। अग्नि के बाद नाम निशान गुम हो जाता है फिर उसको भी बाप सागर में डाल दो, समाप्त। इसलिए इस वर्ष में बापदादा हर बच्चे को व्यर्थ से मुक्त देखने चाहते हैं। मुक्त वर्ष मनाओ। जो भी कमी हो, उस कमी को मुक्ति दो, क्योंकि जब तक मुक्ति नहीं दी है ना, तो मुक्तिधाम में बाप के साथ नहीं चल सकेंगे। तो मुक्ति देंगे? मुक्ति वर्ष मनायेंगे? जो मनायेगा वह ऐसे हाथ करे। मनायेंगे? एक-दो को देख लिया ना, मनायेंगे ना! अच्छा है। अगर मुक्ति वर्ष मनाया तो बापदादा जौहरातों से जड़ी हुई थालियों में बहुतबहुत मुबारक, ग्रीटिंग्स, बधाइयाँ देंगे। अच्छा है, अपने को भी मुक्त करो। अपने भाई-बहनों को भी दु:ख से दूर करो। बिचारों के मन से यह तो खुशी का आवाज निकले - हमारा बाप आ गया। ठीक है। अच्छा।
बाकी दादियां पूछती हैं - बापदादा का प्रोग्राम क्या होगा? यही क्वेश्चन है ना! तो बापदादा कहते हैं जैसे अब तक प्रोग्राम चल रहा है, उसी विधि से चलना ही है। बाकी कभी आवश्यकता हुई तो दादियों की दिल पूरी करेंगे, लेकिन आवश्यकता हुई तो। दादी समझती है बाप का आना तो बहुत सहज है ना। क्यों नहीं बापदादा आवे। लेकिन रथ को भी तो देखो। 33 वर्ष पार्ट बजाना भी आफरीन है। इतनी बड़ी शक्तियों को धारण करना, छोटी बात नहीं है। दादी क्या करती है बतायें, कोई भी बात होगी कहेगी अभी-अभी जाओ, सन्देश लेके आओ। तो बच्ची कहती है दादी अभी तो दिन है, रात को जायेंगे। नहीं, नहीं, अभी-अभी जाओ। मरना तो पड़ता है ना। शरीर से तो मरना पड़ता है ना। चाहे सन्देश हो, चाहे बापदादा की पधरामनी हो। पधरामनी तो बड़ी बात है लेकिन सन्देश में भी अशरीरी, मीठा मरना है लेकिन मरना तो है ना! इसलिए फिर भी बापदादा का दादियों के लिए बहुतबहुत- बहुत रिगार्ड और प्यार है। प्यार की रस्सी में बांधना अच्छी तरह से आता है। अच्छा।
मीटिंग के भाई-बहनों से जो भी मीटिंग के लिए आये हैं वह उठो। अच्छा। और भी आने वाले होंगे। मीटिंग में इसी विधि से सर्विस के प्लैन बनाना और मुक्त वर्ष मनाने की सहज विधि बताना - एक दो को राय देना। इस वर्ष में सब मुक्त हो जाएं। हो सकता है? एक वर्ष में हो सकता है? बोलो, हो सकता है? हाँ तो बहुत अच्छी कर रहे हैं, दिल खुश कर दिया। ऐसे ही खुश करना। बस हर एक अपने को मुक्त करो, दूसरे को नहीं देखो। अपनी जिम्मेवारी तो ले सकते हो ना। अगर हर एक ने अपनी-अपनी जिम्मेवारी ले ली तो सब हो जायेगा। आपको फालो करने वाले आपेही फालो करेंगे। एक्जैम्पुल तो बनो ना। अच्छा। तो ऐसा प्लैन बनाना। यह कांफरेंस हुई, यह भाषण हुआ, यह नहीं। मन की स्थिति के प्रोग्राम बनाना। अच्छा।
सेवा का टर्न - राजस्थान, इन्दौर का है - सेवाधारी बहुत हैं। ग्रुप भी बड़ा है ना! अच्छा सभी ने अपने पुण्य का खाता जमा किया! दुआयें ली? यह बहुत सहज विधि है, जमा करने में सबसे सहज विधि है, दुआयें दो अर्थात् दुआयें लो। दुआयें देना ही दुआ लेना है। तो आप सबने दुआओं का खाता जमा किया, तो आपके खाते में मार्क्स जमा हो गई हैं। अच्छा है, यह भी एक चांस मिलता है। तो पहले सुनाया था ना - वह होते हैं युनिवर्सिटी के चांसलर, आप हो पुण्य के खाते का चांस लेने वाले चांसलर। तो बहुत अच्छा किया। सभी ने अच्छी सेवा की। सबको सुख दिया। ठीक रहे ना! सेवा ठीक रही? सेवा में कोई तकलीफ तो नहीं हुई? नहीं। बहुत अच्छा।
कल्चरल विंग, सोशल विंग और सिक्यूरिटी विंग की मीटिंग चल रही है
कल्चरल वर्ग - कल्चरल वर्ग वाले सभी कल्चरल करने वाली आत्माओं को ब्राह्मण कल्चर भी सिखाते हो ना! तो कल्चरल और कल्चर दोनों ही सिखाते सभी आत्माओं को बाप के समीप लाते रहो। कल्चरल तो मनोरंजन है, तो सदा मनोरंजन कैसे रहे, वह शिक्षा वा वह विधि भी सिखाके सभी को सदा खुश बनाना। अच्छा है यह भी सर्विस का साधन अच्छा है। लेकिन दोनों साथ-साथ हों। तो सब सेवा में सन्तुष्ट हो ना! सन्तुष्ट हो?
सिक्यूरिटी वाले - मन की सिक्यूरिटी, तन की सिक्यूरिटी और धन की सिक्यूरिटी तीनों ही सिक्यूरिटी आज के जमाने में बहुत आवश्यक हैं। 99 सिक्यूरिटी वालों को पहले आत्माओं को मन से विकारों की सिक्यूरिटी और तन से बुरे कर्म करने की सिक्यूरिटी और धन को सफल करने की सिक्यूरिटी.. तो तीनों ही काम करते हो ना! या सिर्फ सिक्यूरिटी स्थूल तो नहीं करते ना, पहले मन की सिक्यूरिटी, जितनी अपने मन की सिक्यूरिटी होगी, उतनी ही दूसरे को भी मन की सिक्यूरिटी में आगे बढ़ा सकेंगे। अच्छा काम है, बहुत आवश्यक कार्य है। सिक्यूरिटी सबसे आवश्यक है और ऐसे सिक्यूरिटी वाले तो विश्व के लिए बहुत कल्याणकारी आत्मायें हैं। तो बहुत अच्छा कार्य कर रहे हो और सदा आगे बढ़ते रहना, बढ़ाते रहना। अच्छा।
सोशल वर्ग - हर वर्ग का कार्य तो बहुत सुन्दर है। वर्तमान समय में सोशल वर्ग का कार्य भी आवश्यक है। और सोशल वर्कर में विशेषता होती अथक और प्यार से हर कार्य में सोशल वर्क करना। तो आप तो मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, इसलिए अथक भी हैं और हर कार्य में हर विधि से सोशल वर्ग द्वारा आत्माओं का कल्याण कर भी रहे हैं और करते भी रहेंगे। ठीक है ना? बहुत अच्छा। अभी हर एक वर्ग जो बापदादा ने विधि सुनाई उसी विधि प्रमाण प्रोग्राम बनाना। ठीक है ना! अच्छा।
चारों ओर के सर्व होलीएस्ट आत्माओं को, सदा निर्माण बन निर्माण करने वाले बापदादा के समीप आत्माओं को, सदा अपने पुरूषार्थ की विधि को फास्ट, तीव्र कर सम्पन्न बनने वाले स्नेही आत्माओं को, सदा अपने बचत का खाता बढ़ाने वाले तीव्र पुरुषार्थी, तीव्र बुद्धि वाले बच्चों को विशाल बुद्धि की मुबारक भी है और होली की भी अर्थात् सेकण्ड में हो ली, बिन्दी लगाने वाले बच्चों को बहुत-बहुत याद-प्यार, कोने-कोने के बच्चों को बापदादा विशेष याद-प्यार दे रहे हैं। आपके पोतामेल भी मिले हैं, याद-प्यार के पत्र भी मिले हैं, कार्ड भी मिले हैं और दिल के संकल्प भी पहुँचे हैं, दिल की रूहरूहान भी पहुँची है, उन सबके रिटर्न में बापदादा पदमगुणा याद- प्यार दे रहे हैं। याद-प्यार के साथ सभी बच्चों को नमस्ते।
दादियों से बापदादा की मुलाकात
अभी भी जितना नजदीक से आप मिलते हो, उतना कौन मिलता है! (निर्मलशान्ता दादी से) अच्छा पार्ट बजा रही हो। प्रकृति को चलाने का ढंग अच्छा है। (बाबा चलाता है) और आप चल रही हो। चलाने वाला चला रहा है। सभी अच्छे चल रहे हैं। शरीर को अच्छा चलाने का ढंग आ गया है। अच्छा है, जो हो रहा है अच्छा है। अच्छा।
ओम् शान्ति।