17-10-03 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“पूरा वर्ष - सन्तुष्टमणि बन सदा सन्तुष्ट रहना और सबको सन्तुष्ट करना”
आज दिलाराम बापदादा अपने चारों ओर के, सामने वालों को भी और दूर सो समीप वालों को भी हर एक राज दुलारे, अति प्यारे बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। हर एक बच्चा राजा है इसलिए राज-दुलारे हैं। यह परमात्म प्यार, दुलार विश्व में बहुत थोड़ी सी आत्माओं को प्राप्त होता है। लेकिन आप सभी परमात्म प्यार, परमात्म दुलार के अधिकारी हैं। दुनिया की आत्मायें पुकार रही हैं आओ, आओ लेकिन आप सभी परमात्म प्यार अनुभव कर रहे हो। परमात्म पालना में पल रहे हो। ऐसा अपना भाग्य अनुभव करते हो? बापदादा सभी बच्चों को डबल राज्य अधिकारी देख रहे हैं। अभी के भी स्व राज्य अधिकारी राजे हो और भविष्य में तो राज्य आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। तो डबल राजे हो। सभी राजा हो ना, प्रजा तो नहीं! राजयोगी हो या कोई-कोई प्रजायोगी भी है? है कोई प्रजा योगी, पीछे वाले राजयोगी हो? प्रजायोगी कोई नहीं है ना! पक्का? सोच के हाँ करना! राज अधिकारी अर्थात् सर्व सूक्ष्म और स्थूल कर्मेन्द्रियों के अधिकारी क्योंकि स्वराज्य है ना? तो कभी-कभी राजे बनते हो या सदा राजे रहते हो? मूल है अपने मन-बुद्धि-संस्कार के भी अधिकारी हो? सदा अधिकारी हो या कभी-कभी? स्व राज्य तो सदा स्वराज्य होता है या एक दिन होता है दूसरे दिन नहीं होता है। राज्य तो सदा होता है ना? तो सदा स्वराज्य अधिकारी अर्थात् सदा मन-बुद्धि-संस्कार के ऊपर अधिकार। सदा है? सदा में हाँ नहीं करते? कभी मन आपको चलाता है या आप मन को चलाते? कभी मन मालिक बनता है? बनता है ना! तो सदा स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी।
सदा चेक करो - जितना समय और जितनी पावर से अपने कर्मेन्द्रियों, मन-बुद्धि-संस्कार के ऊपर अभी अधिकारी बनते हो उतना ही भविष्य में राज्य अधिकार मिलता है। अगर अभी परमात्म पालना, परमात्म पढ़ाई, परमात्म श्रीमत के आधार पर यह एक संग-मयुग का जन्म सदा अधिकारी नहीं तो 21 जन्म कैसे राज्य अधिकारी बनेंगे? हिसाब है ना! इस समय का स्वराज्य, स्व का राजा बनने से ही 21 जन्म की गैरन्टी है। मैं कौन और क्या बनूंगा, अपना भविष्य वर्तमान के अधिकार द्वारा स्वयं ही जान सकते हो। सोचो, आप विशेष आत्माओं की अनादि आदि पर्सनैलिटी और रॉयल्टी कितनी ऊंची है! अनादि रूप में भी देखो जब आप आत्मायें परमधाम में रहती तो कितनी चमकती हुई आत्मायें दिखाई देती हो। उस चमक की रॉयल्टी, पर्सनैलिटी कितनी बड़ी है। दिखाई देती है? और बाप के साथ-साथ आत्मा रूप में भी रहते हो, समीप रहते हो। जैसे आकाश में कोई-कोई सितारे बहुत ज्यादा चम-कने वाले होते हैं ना! ऐसे आप आत्मायें भी विशेष बाप के साथ और विशेष चमकते हुए सितारे होते हो। परमधाम में भी आप बाप के समीप हो और फिर आदि सतयुग में भी आप देव आत्माओं की पर्सनैलिटी, रॉयल्टी कितनी ऊंची है। सारे कल्प में चक्कर लगाओ, धर्म आत्मा हो गये, महात्मा हो गये, धर्म पितायें हो गये, नेतायें हो गये, अभिनेतायें हो गये, ऐसी पर्सनैलिटी कोई की है, जो आप देव आत्माओं की सतयुग में है? अपना देव स्वरूप सामने आ रहा है ना? आ रहा है या पता नहीं हम बनेंगे या नहीं? पक्का है ना! अपना देव रूप सामने लाओ और देखो, पर्सनैलिटी सामने आ गई? कितनी रॉयल्टी है, प्रकृति भी पर्सनैलिटी वाली हो जाती है। पंछी, वृक्ष, फल, फूल सब पर्सनैलिटी वाले, रॉयल। अच्छा फिर आओ नीचे, तो अपना पूज्य रूप देखा है? आपकी पूजा होती है! डबल फारेनर्स पूज्य बनेंगे कि इन्डिया वाले बनेंगे? आप लोग देवियां, देवतायें बने हो? सूंढ वाला नहीं, पूंछ वाला नहीं। देवियां भी वह काली रूप नहीं, लेकिन देवताओं के मन्दिर में देखो, आपके पूज्य स्वरूप की कितनी रॉयल्टी है, कितनी पर्सनैलिटी है? मूर्ति होगी, 4 फुट, 5 फुट की और मन्दिर कितना बड़ा बनाते हैं। यह रॉयल्टी और पर्सनैलिटी है। आजकल के चाहे प्राइम मिनि-स्टर हो, चाहे राजा हो लेकिन धूप में बिचारे का बुत बनाके रख देंगे, क्या भी होता रहे। और आपके पूज्य स्वरूप की पर्सनैलिटी कितनी बड़ी है। है ना बढ़िया! कुमारियां बैठी हैं ना! रॉयल्टी है ना आपकी? फिर अन्त में संगमयुग में भी आप सबकी रॉयल्टी कितनी ऊंची है। ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी कितनी बड़ी है! डायरेक्ट भगवान ने आपके ब्राह्मण जीवन में पर्सनैलिटी और रॉयल्टी भरी है। ब्राह्मण जीवन का चित्रकार कौन? स्वयं बाप। ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी रॉयल्टी कौन सी है? प्युरिटी। प्युरिटी ही रॉयल्टी है। है ना! ब्राह्मण आत्मायें सभी जो भी बैठे हो तो प्युरिटी की रॉयल्टी है ना! हाँ, कांध हिलाओ। पीछे वाले हाथ उठा रहे हैं। आप पीछे नहीं हो, सामने हो। देखो नजर पीछे जाती है, आगे तो ऐसे देखना पड़ता है पीछे आटोमेटिक जाती है।
तो चेक करो - प्युरिटी की पर्सनैलिटी सदा रहती है? मन्सा-वाचा-कर्मणा, वृत्ति, दृष्टि और कृति सबमें प्युरिटी है? मन्सा प्युरिटी अर्थात् सदा और सर्व प्रति शुभ भावना, शुभ कामना - सर्व प्रति। वह आत्मा कैसी भी हो लेकिन प्युरिटी की रॉयल्टी की मन्सा है - सर्व प्रति शुभ भावना, शुभ कामना, कल्याण की भावना, रहम की भावना, दातापन की भावना। और दृष्टि में या तो सदा हर एक के प्रति आत्मिक स्वरूप देखने में आये वा फरिश्ता रूप दिखाई दे। चाहे वह फरिश्ता नहीं बना है, लेकिन मेरी दृष्टि में फरिश्ता रूप और आत्मिक रूप ही हो और कृति अर्थात् सम्पर्क सम्बन्ध में, कर्म में आना, उसमें सदा ही सर्व प्रति स्नेह देना, सुख देना। चाहे दूसरा स्नेह दे, नहीं दे लेकिन मेरा कर्तव्य है स्नेह देकर स्नेही बनाना। सुख देना। स्लोगन है ना - ना दु:ख दो, ना दु:ख लो। देना भी नहीं है, लेना भी नहीं है। देने वाले आपको कभी दु:ख भी दे दें लेकिन आप उसको सुख की स्मृति से देखो। गिरे हुए को गिराया नहीं जाता है, गिरे हुए को सदा ऊंचा उठाया जाता है। वह परवश होके दु:ख दे रहा है। गिर गया ना! तो उसको गिराना नहीं है और भी उस बिचारे को एक लात लगा लो, ऐसे नहीं। उसको स्नेह से ऊंचा उठाओ। उसमें भी फर्स्ट चैरिटी बिगन्स एट होम। पहले तो चैरिटी बिगन्स एट होम है ना, अपने सर्व साथी, सेवा के साथी, ब्राह्मण परिवार के साथी हर एक को ऊंचा उठाओ। वह अपनी बुराई दिखावे भी लेकिन आप उनकी विशेषता देखो। नम्बरवार तो हैं ना! देखो, माला आपका यादगार है। तो सब एक नम्बर तो नहीं है ना! 108 नम्बर हैं ना! तो नम्बरवार हैं और रहेंगे लेकिन मेरा फर्ज क्या है? यह नहीं सोचना अच्छा मैं 8 में तो हूँ ही नहीं, 108 में शायद आ जाऊंगी, आ जाऊंगा। तो 108 में लास्ट भी हो सकता है तो मेरे भी तो कुछ संस्कार होंगे ना, लेकिन नहीं। दूसरे को सुख देते-देते, स्नेह देते-देते आपके संस्कार भी स्नेही, सुखी बन ही जाने हैं। यह सेवा है और यह सेवा फर्स्ट चैरिटी बिगन्स एट होम।
बापदादा को आज एक बात पर हंसी आ रही थी, बतायें। देखना आपको भी हंसी आयेगी। बापदादा तो बच्चों का खेल देखते रहते हैं ना! बापदादा एक सेकण्ड में कभी किस सेन्टर का टी.वी. खोल देता है, कभी किस सेन्टर का, कभी फॉरेन का, कभी इन्डिया का स्विच ऑन कर देता है, पता पड़ जाता है, क्या कर रहे हैं क्योंकि बाप को बच्चों से प्यार है ना। बच्चे भी कहते हैं समान बनना ही है। पक्का है ना, समान बनना ही है! कुमारियां समान बनना है या ड्रामा में कुछ भी बन गये ठीक है? नहीं। समान बनना है, सभी कुमारियों को बनना ही है। मरना पड़े, क्या भी करना पड़े! सोच के हाथ उठाओ। हाँ जो समझते हैं, मरना पड़े, झुकना पड़े, सहन करना पड़े, सुनना पड़े, वह हाथ उठाओ। कुमारियां सोच के हाथ उठाना। इन्हों का फोटो निकालो। कुमारियां बहुत हैं। मरना पड़ेगा? झुकना पड़ेगा? पाण्डव उठाओ। सुना, समान बनना है। समान नहीं बनेंगे तो मजा नहीं आयेगा। परमधाम में भी समीप नहीं रहेंगे। पूज्य में भी फर्क पड़ जायेगा, सतयुग के राज्य भाग्य में भी फर्क पड़ जायेगा।
ब्रह्मा बाप से आपका प्यार है ना, डबल विदेशियों का सबसे ज्यादा प्यार है। जिसका ब्रह्मा बाबा से जिगरी, दिल का प्यार है वह हाथ उठाओ। अच्छा, पक्का प्यार है ना? अभी क्वेश्चन पूछेंगे, प्यार जिससे होता है, तो प्यार की निशानी है जो उसको अच्छा लगता, वह प्यार करने वाले को भी अच्छा लगता, दोनों के संस्कार, संकल्प, स्वभाव टैली खाते हैं तभी वह प्यारा लगता है। तो ब्रह्मा बाप से प्यार है तो 21 ही जन्म, पहले जन्म से लेकर, दूसरे तीसरे में आये तो अच्छा नहीं है लेकिन फर्स्ट जन्म से लेके लास्ट जन्म तक साथ रहेंगे, भिन्न-भिन्न रूप में साथ रहेंगे। तो साथ कौन रह सकता है? जो समान होगा। वह नम्बरवन आत्मा है। तो साथ कैसे रहेंगे? नम्बरवन बनेंगे तब तो साथ रहेंगे, सबमें नम्बरवन, मन्सा में, वाणी में, कर्मणा में, वृत्ति में, दृष्टि में, कृति में, सबमें। तो नम्बरवन हैं या नम्बरवार हैं? तो अगर प्यार है तो प्यार के लिए कुछ भी कुर्बानी करना मुश्किल नहीं होता। लास्ट जन्म कलियुग के अन्त में भी बॉडी कान्सेस प्यार वाले जान भी कुर्बान कर देते हैं। तो आपने अगर ब्रह्मा बाबा के प्यार में अपने संस्कार परिवर्तन किया तो क्या बड़ी बात है! बड़ी बात है क्या? नहीं है। तो आज से सबके संस्कार चेंज हो गये! पक्का? रिपोर्ट आयेगी, आपके साथी लिखेंगे, पक्का? सुन रही हैं दादियां, कहते हैं संस्कार बदल गये। या टाइम लगेगा? क्या? मोहिनी (न्युयार्क) सुनावे, बदलेंगे ना! यह सभी बदलेंगे ना? अमेरिका वाले तो बदल जायेंगे। हंसी की बात तो रह गई।
हंसी की यह बात है - तो सभी कहते हैं कि पुरूषार्थ तो बहुत करते हैं, और बापदादा को देख करके रहम भी आता है पुरूषार्थ बहुत करते हैं, कभी-कभी मेहनत बहुत करते हैं और कहते क्या हैं - क्या करें, मेरे संस्कार ऐसे हैं! संस्कार के ऊपर कहकर अपने को हल्का कर देते हैं लेकिन बाप ने आज देखा कि यह जो आप कहते हो कि मेरा संस्कार है, तो क्या आपका यह संस्कार है? आप आत्मा हो, आत्मा हो ना! बॉडी तो नहीं हो ना! तो आत्मा के संस्कार क्या हैं? और ओरीज्नल आपके संस्कार कौन से हैं? जिसको आज आप मेरा कहते हो वह मेरा है या रावण का है? किसका है? आपका है? नहीं है? तो मेरा क्यों कहते हो! कहते तो ऐसे ही हो ना कि मेरा संस्कार ऐसा है? तो आज से यह नहीं कहना, मेरा संस्कार। नहीं। कभी यहाँ वहाँ से उड़के किचड़ा आ जाता है ना! तो यह रावण की चीज़ आ गई तो उसको मेरा कैसे कहते हो! है मेरा? नहीं है ना? तो अभी कभी नहीं कहना, जब मेरा शब्द बोलो तो याद करो मैं कौन और मेरा संस्कार क्या? बॉडी कान्सेस में मेरा संस्कार है, आत्म-अभिमानी में यह संस्कार नहीं है। तो अभी यह भाषा भी परिवर्तन करना। मेरा संस्कार कहके अलबेले हो जाते हो। कहेंगे भाव नहीं है, संस्कार है। अच्छा दूसरा शब्द क्या कहते हैं? मेरा स्वभाव। अभी स्वभाव शब्द कितना अच्छा है। स्व तो सदा अच्छा होता है। मेरा स्वभाव, स्व का भाव अच्छा होता है, खराब नहीं होता है। तो यह जो शब्द यूज करते हो ना, मेरा स्वभाव है, मेरा संस्कार है, अभी इस भाषा को चेंज करो, जब भी मेरा शब्द आवे, तो याद करो मेरा संस्कार ओरीज्नल क्या है? यह कौन बोलता है? आत्मा बोलती है यह मेरा संस्कार है? तो जब यह सोचेंगे ना तो अपने ऊपर ही हंसी आयेगी, आयेगी ना हंसी? हंसी आयेगी तो जो खिटखिट करते हो वह खत्म हो जायेगी। इसको कहते हैं भाषा का परिवर्तन करना अर्थात् हर आत्मा के प्रति स्वमान और सम्मान में रहना। स्वयं भी सदा स्वमान में रहो, औरों को भी स्वमान से देखो। स्वमान से देखेंगे ना तो फिर जो कोई भी बातें होती हैं, जो आपको भी पसन्द नहीं हैं, कभी भी कोई खिटखिट होती है तो पसन्द आता है? नहीं आता है ना? तो देखो ही एक दो को स्वमान से। यह विशेष आत्मा है, यह बाप के पालना वाली ब्राह्मण आत्मा है। यह कोटों में कोई, कोई में भी कोई आत्मा है। सिर्फ एक बात करो - अपने नयनों में बिन्दी को समा दो, बस। एक बिन्दी से तो देखते हो, दूसरी बिन्दी भी समा दो तो कुछ भी नहीं होगा, मेहनत करनी नहीं पड़ेगी। जैसे आत्मा, आत्मा को देख रही है। आत्मा, आत्मा से बोल रही है। आत्मिक वृत्ति, आत्मिक दृष्टि बनाओ। समझा - क्या करना है? अभी मेरा संस्कार कभी नहीं कहना, स्वभाव कहो तो स्व के भाव में रहना। ठीक है ना।
बापदादा इस सीजन के पहले टर्न में, पहला टर्न तो आप सबका है ना, तो जब पहला टर्न लिया है, तो पहला नम्बर रिटर्न भी देना है। देना पड़ेगा ना! और डबल विदेशियों की यह विशेषता तो जन्म से है - जो भी करेंगे वह पक्का ही करेंगे। अधूरा नहीं करते हैं, पक्का ही करते हैं। हाँ या ना। हाँ ना के बीच में लटकते नहीं हैं। तो रिटर्न करना है ना! बस इस सीजन में, पूरी सीजन में, आज फर्स्ट चांस है, बापदादा यही चाहते हैं कि यह पूरा वर्ष चाहे सीजन 6 मास चलती है लेकिन पूरा ही वर्ष सभी को जब भी मिलो, जिससे भी मिलो, चाहे आपस में, चाहे और आत्माओं से लेकिन जब भी मिलो, जिससे भी मिलो उसको सन्तुष्टता का सहयोग दो। स्वयं भी सन्तुष्ट रहो और दूसरे को भी सन्तुष्ट करो। इस सीजन का स्वमान है - सन्तुष्टमणि। सदा सन्तुष्ट-मणि। भाई भी मणि हैं, मणा नहीं होता है, मणि होता है। एक एक आत्मा हर समय सन्तुष्टमणि है। और स्वयं सन्तुष्ट होंगे तो दूसरे को भी सन्तुष्ट करेंगे। सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना। ठीक है, पसन्द है? कुमारियों को पसन्द है? जिसको पसन्द है और करेगा, सिर्फ सुनने में पसन्द नहीं, करने में पसन्द है - वह सभी हाथ उठाओ। हाथ देख करके तो बापदादा की दिल खुश हो गई। बहुत अच्छा, मुबारक हो, मुबारक हो। कुछ भी हो जाए, अपने स्वमान की सीट पर एकाग्र रहो, भटको नहीं, कभी किस सीट पर, कभी किस सीट पर, नहीं। अपने स्वमान की सीट पर एकाग्र रहो। और एकाग्र सीट पर सेट होके अगर कोई भी बात आती है ना तो एक कार्टून शो के मुआिफक देखो, कार्टून देखना अच्छा लगता है ना, तो यह समस्या नहीं है, कार्टून शो चल रहा है। कोई शेर आता है, कोई बकरी आती है, कोई बिच्छू आता है, कोई छिपकली आती है गंदी - कार्टून शो है। अपनी सीट से अपसेट नहीं हो। मजा आयेगा। अच्छा शेर भी आया, कुत्ता भी आया, बिल्ली भी आई, आने दो - देखते रहो।
बापदादा ने सुनाया था - तो आप सब अपने स्वमान के शान की सीट पर रहो तो परेशान नहीं होंगे। स्वमान की शान में नहीं रहते हो तो परेशान होते हो। छोटा सा पेपर टाइगर होता है लेकिन परेशान हो जाते हैं। तो इस वर्ष एकाग्र होके स्वमान की सीट पर रहना, ऐसे नहीं कहना मैं जानती तो हूँ, सुना भी है, जाना भी है, लेकिन .... नहीं। सुनना और जानना तो ठीक है लेकिन अपने को मान कर एकाग्र होके सीट पर बैठना, मान करके नहीं चलते हो, सिर्फ जानते और सुनते हो। सीट पर स्वरूप में स्थित होके बैठो। समझा।
बापदादा को समाचार मिला था - कि यह चार ग्रुप हैं ना। एक कुमारियों का, एक कम्प्युटर ग्रुप, एक मैनेजमेंट ग्रुप, एक हेल्थ का.... चार ही ग्रुप का समाचार मिला, अच्छा है लेकिन कम्प्युटर चलाते भी कम्प्युटर वाली कुर्सा पर भले बैठना लेकिन अपने स्वमान की सीट को छोड़ना नहीं। डबल सीट पर बैठना, सिर्फ कम्प्युटर की सीट पर नहीं। तो डबल सेवा हो जायेगी। बहुत सेवा कर सकते हो। हेल्थ वाले भी बहुत सेवा कर सकते हैं। दिखाया था, किताब बनाया है ना, सब समाचार सुना है। किताब किसने बनाया है? अच्छा बनाया है। लेकिन हेल्थ के साथ स्वमान पहले। स्वमान की सीट को नहीं छोड़ना, कभी किस सीट पर, कभी किस सीट पर नहीं। श्रेष्ठ स्वरूप के स्मृति की सीट पर। अपनी सीट नहीं छोड़ना। कुमारियों ने भी जो प्रॉमिस किया है, बहुत अच्छा किया है। बापदादा अभी प्रॉमिस की मुबारक दे रहे हैं लेकिन लेनी कौन सी मुबारक है? प्रैक्टिकल की। तो आज सिर्फ प्रॉमिस की मुबारक दे रहे हैं फिर प्रैक्टिकल रिजल्ट की मुबारक देंगे। वह मुबारक लेनी है ना। अच्छे-अच्छे बैठे हैं, दिखाई दे रहा है। अच्छी स्वमान वाली कुमारियां हैं। (10 साल वाले भी बैठे हैं) यह भी बहुत कमाल है, 10 साल अमर रहे हैं। तो अमरनाथ बाबा की तरफ से अमर भव का वरदान है। हाथ उठाओ 10 साल वाले। आंटी अंकल को तो बहुत साल हो गये।
तो 10 साल वालों को बापदादा 9 रत्नों की माला पहना रहे हैं। 9 रत्न निर्विघ्न बनाने के होते हैं। 8 शक्तियां और बाप, सदा स्मृति में रहे। अच्छा है। फॉरेन में रहते अभी 10 साल पास किया तो अमर हो गये ना! कि समझते हो पता नहीं आगे क्या हो? अच्छा 10 साल वालों ने जो हाथ उठाया, उन्हों को अपने फ्युचर का भी निश्चय है कि समझते हैं पता नहीं चल सकेंगे या नहीं चल सकेंगे? जो समझते हैं अन्त तक साथ रहना ही है, अमर रहना है, कुछ भी हो जाए, हिमालय जितना पहाड़ भी गिर जाए, गिरेगा, पक्के हैं? बहुत अच्छा। अच्छा इन्डिया वालों ने उठाया। इन्डिया वाले समझते हैं हम हैं ही पक्के? यह 10 साल वाले नहीं लेकिन सभी को अपना निश्चय चाहिए कुछ भी हो जाए, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे, साथ राज्य में आयेंगे। पक्का है ना! साथ रहेंगे ना! बाप को अकेला छोड़के नहीं चले जाना। अकेला थोड़ेही अच्छा लगेगा। आपको भी अच्छा नहीं लगेगा, बाप को भी अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए छोड़ना नहीं। कोई भी बात आवे आप दिल से बोलो बाबा, मेरा बाबा, बाबा हाजिर है। आपकी समस्या को हल कर देंगे। दिल से बोलना, बाबा यह बात है, बाबा यह करो, बाबा यह... बाप बंधा हुआ है। लेकिन दिल से, ऐसे नहीं मतलब के टाइम याद करो और फिर भूल जाओ।
तो सभी डबल फारेनर्स अपने भाग्य को देख के खुश हो रहे हैं। पहला चांस मिला है और स्पेशल चांस मिला है। तो पूरा सीजन जो बाप ने कहा वह निभायेंगे ना। सोचने वाले नहीं बनना, निभाने वाले। जब मेरा कह दिया, मेरा बाबा और बाबा ने भी कहा मेरा बच्चा, पक्का सौदा हो गया ना! दादियां ठीक है? फारेनर्स को देखके खुशी हो रही है ना! बहुत खुशी। दादी को तो बहुत उमंग आता है। अगर कुछ हो सके ना, तो दादी सबको यहाँ ही बिठा देवे। यह सब हाजिर हैं कि सोचेंगे, लण्डन के डायमण्ड हॉल का क्या होगा? नहीं, यह सब एवररेडी हैं। अगर बापदादा आर्डर करे आ जाओ, कुछ भी सोचो नहीं, सेवा को, सेन्टर को, साथियों को कुछ नहीं सोचो, आ जाओ, तो आ जायेंगे? (हाँ जी) अच्छा है। वह भी दिन आयेगा, आर्डर आयेगा आ जाओ क्योंकि बाप का प्यार है ना, तो अलग-अलग नहीं करके, साथ चलेंगे। जो पक्के होंगे वह रहेंगे। तो सभी निर्विघ्न, कि अभी कोने में कोई विघ्न रह गया। नहीं ना! कोई विघ्न अभी अन्दर है? थोड़ा थोड़ा तो है? नहीं है? सभी निर्विघ्न हैं? आज सब यहाँ छोड़ के जाओ, ओम् शान्ति भवन है ना, तो ओम् शान्ति हो जायेगा। क्या करना है? कांटे को फौरन निकाला जाता है। अगर कांटा जल्दी नहीं निकालो तो टांग कटवानी पड़ती है, इसलिए विघ्न को समाप्त करो। अपने ओरीज्नल संस्कार को इमर्ज करो। अच्छा - सब ग्रुप ठीक है।
अभी ग्रुप-ग्रुप हाथ उठाओ।
कुमारियों का ग्रुप हाथ उठाओ। कम्प्युटर ग्रुप पीछे बैठे हैं, हेल्थ वाले, एस.एम.एल. वाले, अच्छा है, चारों ही ग्रुप का समाचार अच्छा है। अच्छा। सामने पत्र भी रखे हैं।
चारों ओर के पत्र और कार्ड भी आये हैं, दिल के पत्र भी आये हैं, कागज के पत्र भी आये हैं, दोनों ही बापदादा के पास पहुंचते हैं। बापदादा को अपने दिल का प्यार भी भेजते और साथ-साथ कोई-कोई सेवा का समाचार भी अपना अच्छा भेजते हैं। कोई-कोई थोड़ा सा याद के साथ फरियाद भी करते हैं, बाबा यह कर लेना, यह कर लेना। लेकिन अच्छा है - अगर लिखते हैं तो लिखने वाले को सहयोग भी मिलता है। सच्ची दिल और साफ दिल होती है ना, तो साफ दिल मुराद हांसिल हो जाती है। अभी भी चारों ओर सुनते भी हैं, कोई-कोई देखते भी हैं लेकिन सुनते तो काफी हैं। आप इस हॉल में बैठे हो वह अपने देश के हाल में बैठे हैं। यह भी साइंस के साधन आप ब्राह्मणों के लिए ही निकले हैं। आप स्थापना के कार्य में लगाते और कोई फिर विनाश के कार्य में लगाते। लेकिन बापदादा साइंस वाले बच्चों को भी मुबारक देते हैं कि इन्वेन्शन अच्छी निकाली है जो दूर बैठे भी बच्चे सुन रहे हैं, देख रहे हैं। अच्छा।
चारों ओर के राज दुलारे बच्चों को, सर्व स्नेही, सहयोगी, समान बनने वाले बच्चों को, सदा अपने श्रेष्ठ स्व भाव और संस्कार को स्वरूप में इमर्ज करने वाले बच्चों को, सदा सुख देने, सर्व को स्नेह देने वाले बच्चों को, सदा सन्तुष्टमणि बन सन्तुष्टता की किरणें फैलाने वाले बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादी जी से:- बहुत अच्छी तन्दरूस्त हो गई। कोई ऐसी बात नहीं, बाकी भी ठीक हो जायेगा। (बाबा का वरदान है) खुद भी वर-दानी है ना, इसलिए वरदान जल्दी लग जाता है। सभी का आपसे बहुत प्यार है। सभी का प्यार है क्योंकि बाप ने आपको निमित्त बनाया है। बाप स्वयं तो अव्यक्त हुए, लेकिन साकार रूप में आपको निमित्त बनाया।
गंगें दादी से:- महारथियों की महफिल अच्छी लगती है। अभी सभी महारथी इकट्ठे हुए ना। बापदादा को भी बहुत अच्छा लगा।
रूकमणी दादी से:- वर्तमान भविष्य अच्छा बना रही हो।
विदेश की बड़ी बहिनों से:- सभी अच्छी सर्विस में लगे हुए हैं। बापदादा को भी खुशी होती है कि वृद्धि कर रहे हैं और विधि पूर्वक चल रहे हैं। विधि भी है, वृद्धि भी है। जहाँ तहाँ प्रोग्राम तो बहुत अच्छे हो ही रहे हैं। आपस में मिलकर विश्व में आवाज फैलाने का प्लैन बनाते ही रहते हैं।
(कम्प्युटर से सेवा का प्लैन बना रहे हैं) कोने कोने में कम्प्युटर तो है ही, समय भी कम और चारों ओर फैल जाता। कुमारियां भी अच्छी-अच्छी हैं। अच्छे प्लैन बनाये हैं, बापदादा खुश हैं। चारों तरफ के बनाये हैं, हेल्थ भी आ गई, कम्प्युटर भी आ गये, कोर्स भी आ गये।
विदेश के मुख्य भाईयों से:- बहुत अच्छा, पाण्डव सेना भी कम नहीं हैं। शक्तियां, शक्तियां हैं लेकिन पाण्डव सुभान अल्लाह। पाण्डवों के साथ तो पाण्डवपति है ही। देखो एक-एक की अपनी-अपनी विशेषता है, बापदादा तो एक-एक की विशेषता को देख रहे हैं और हर एक अपनी विशेषता का पार्ट अच्छा बजा रहे हैं। ऐसे है ना। अंकल भी अपना पार्ट अच्छा बजा रहे हैं, यह रोबिन भी बजा रहे हैं, गोबिन्द, निजार भी बजा रहे हैं। अच्छा पार्ट बजाया ना। अच्छे-अच्छे पाण्डव भी निकले हैं तो शक्तियां भी निकली हैं। बापदादा को यही खुशी है कि डबल फॉरेनर्स का ग्रुप सेवा के लिए बहुत अच्छा तैयार हुआ है। सबमें सेवा का उमंग है। है ना उमंग? अंकल फाउण्डेशन है। अच्छे हैं। सदा अमर भव। याद और सेवा में अमर भव। अच्छा। आज से क्वेश्चन पूछना खत्म। मायाजीत हैं ये क्वेश्चन पूछेंगे क्या? मायाजीत हो गये ना! अभी कोई किससे यह नहीं पूछना कि मायाजीत हैं? हैं नहीं लेकिन मायाजीत के नशे में बहुत उड़ रहे हैं। उड़ती कला वाले हैं, किससे भी पूछो तो कहो दिलखुश फरिश्ता है। माया का नाम ही नहीं लो। नाम सहित खत्म करो क्योंकि कुछ समय मायाजीत बनके रहने का अभ्यास जरूर करना पड़े। जो बहुतकाल मायाजीत रहते हैं उन्हें बहुतकाल राज्य भाग्य मिलता है। इसलिए सदा मायाजीत। हैं ही मायाजीत। बापदादा की नजर है, संगठन को नजर से निहाल तो होना ही है। अच्छा।
ओम् शान्ति।
15-11-03 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“मन को एकाग्र कर, एकाग्रता की शक्ति द्वारा फरिश्ता स्थिति का अनुभव करो”
आज सर्व खज़ानों के मालिक अपने चारों ओर के सम्पन्न बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे को सर्व खज़ानों के मालिक बनाया है। ऐसा खज़ाना मिला है जो और कोई दे नहीं सकता। तो हर एक अपने को खज़ानों से सम्पन्न अनुभव करते हो? सबसे श्रेष्ठ खज़ाना है ज्ञान का खज़ाना, शक्तियों का खज़ाना, गुणों का खज़ाना, साथ-साथ बाप और सर्व ब्राह्मण आत्माओं द्वारा दुआओं का खज़ाना। तो चेक करो यह सर्व खज़ाने प्राप्त हैं? सर्व खज़ानों से जो सम्पन्न आत्मा है उसकी निशानी सदा नयनों से, चेहरे से, चलन से खुशी औरों को भी अनुभव होगी। जो भी आत्मा सम्पर्क में भी आयेगी वह अनुभव करेगी कि यह आत्मा अलौकिक खुशी से, अलौकिक न्यारी दिखाई देती है। आपकी खुशी को देख दूसरी आत्मायें भी थोड़े समय के लिए खुशी अनुभव करेंगी। जैसे आप ब्राह्मण आत्माओं की सफेद ड्रेस सभी को कितनी न्यारी और प्यारी लगती है। स्वच्छता, सादगी और पवित्रता अनुभव होती है। दूर से ही जान जाते हैं यह ब्रह्माकुमार कुमारी है। ऐसे ही आप ब्राह्मण आत्माओं के चलन और चेहरे से सदा खुशी की झलक, खुशनसीब की फलक दिखाई दे। आज सर्व आत्मायें महान दु:खी हैं, ऐसी आत्मायें आपका खुशनुम: चेहरा देख, चलन देख एक घड़ी की भी खुशी की अनुभूति करें, जैसे प्यासी आत्मा को अगर एक बूंद पानी की मिल जाती है तो कितना खुश हो जाता है। ऐसे खुशी की अंचली आत्माओं के लिए बहुत आवश्यक है। ऐसे सर्व खज़ानों से सदा सम्पन्न हो। हर ब्राह्मण आत्मा स्वयं को सर्व खज़ानों से सदा भरपूर अनुभव करते हो वा कभी-कभी? खज़ाने अविनाशी हैं, देने वाला दाता भी अविनाशी है तो रहना भी अविनाशी चाहिए क्योंकि आप जैसी अलौकिक खुशी सारे कल्प में सिवाए आप ब्राह्मणों के किसको भी प्राप्त नहीं होती। यह अभी की अलौकिक खुशी आधाकल्प प्रालब्ध के रूप में चलती है, तो सभी खुश हैं! इसमें तो सभी ने हाथ उठाया, अच्छा - सदा खुश हैं? कभी खुशी जाती तो नहीं? कभी-कभी तो जाती है! खुश रहते हो लेकिन सदा एकरस, उसमें अन्तर आ जाता है। खुश रहते हो लेकिन परसेन्टेज में अन्तर आ जाता है।
बापदादा ऑटोमेटिक टी.वी. से सब बच्चों के चेहरे देखते रहते हैं। तो क्या दिखाई देता है? एक दिन आप भी अपने खुशी के चार्ट को चेक करो - अमृतवेले से लेकर रात तक क्या एक जैसी परसेन्टेज खुशी की रहती है? वा बदलती है? चेक करना तो आता है ना, आजकल देखो साइंस ने भी चेकिंग की मशीनरी बहुत तेज कर दी है। तो आप भी चेक करो और अविनाशी बनाओ। सभी बच्चों का बापदादा ने भी वर्तमान पुरूषार्थ चेक किया। पुरूषार्थ सब कर रहे हैं - कोई यथा शक्ति, कोई शक्तिशाली। तो आज बापदादा ने सभी बच्चों के मन की स्थिति को चेक किया क्योंकि मूल है ही मनमनाभव। सेवा में भी देखो तो मन्सा सेवा श्रेष्ठ सेवा है। कहते भी हो मन जीत जगतजीत, तो मन की गति को चेक किया। तो क्या देखा? मन के मालिक बन मन को चलाते हो लेकिन कभी-कभी मन आपको भी चलाता है। मन परवश भी कर देता है। बापदादा ने देखा मन से लगन लगाते हैं लेकिन मन की स्थिति एकाग्र नहीं होती है।
वर्तमान समय मन की एकाग्रता, एकरस स्थिति का अनुभव करायेगी। अभी रिजल्ट में देखा कि मन को एकाग्र करने चाहते हो लेकिन बीच-बीच में भटक जाता है। एकाग्रता की शक्ति अव्यक्त फरिश्ता स्थिति का सहज अनुभव करायेगी। मन भटकता है, चाहे व्यर्थ बातों में, चाहे व्यर्थ संकल्पों में, चाहे व्यर्थ व्यवहार में। जैसे कोई-कोई को शरीर से भी एकाग्र होकर बैठने की आदत नहीं होती है, कोई को होती है। तो मन जहाँ चाहो, जैसे चाहो, जितना समय चाहो उतना और ऐसा एकाग्र होना इसको कहा जाता है मन वश में है। एकाग्रता की शक्ति, मालिकपन की शक्ति सहज निर्विघ्न बना देती है। युद्ध नहीं करनी पड़ती है। एकाग्रता की शक्ति से स्वत: ही एक बाप दूसरा न कोई - यह अनुभूति होती है। स्वत: होगी, मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। एकाग्रता की शक्ति से स्वत: ही एकरस फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति होती है। ब्रह्मा बाप से प्यार है ना - तो ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात् फरिश्ता बनना। एकाग्रता की शक्ति से स्वत: ही सर्व प्रति स्नेह, कल्याण, सम्मान की वृत्ति रहती ही है क्योंकि एकाग्रता अर्थात् स्वमान की स्थिति। फरिश्ता स्थिति स्वमान है। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, वर्णन भी करते हो जैसे सम्पन्नता का समय समीप आता रहा तो क्या देखा? चलता-फिरता फरिश्ता रूप, देहभान रहित। देह की फीलिंग आती थी? सामने जाते रहे तो देह देखने आती थी या फरिश्ता रूप अनुभव होता था? कर्म करते भी, बातचीत करते भी, डायरेक्शन देते भी, उमंग-उत्साह बढ़ाते भी देह से न्यारा, सूक्ष्म प्रकाश रूप की अनुभूति की। कहते हो ना कि ब्रह्मा बाबा बात करते-करते ऐसे लगता था जैसे बात कर भी रहा है लेकिन यहाँ नहीं है, देख रहा है लेकिन दृष्टि अलौकिक है, यह स्थूल दृष्टि नहीं है। देह-भान से न्यारा, दूसरे को भी देह का भान नहीं आये, न्यारा रूप दिखाई दे, इसको कहा जाता है देह में रहते फरिश्ता स्वरूप। हर बात में, वृत्ति में, दृष्टि में, कर्म में न्यारापन अनुभव हो। यह बोल रहा है लेकिन न्यारा-न्यारा, प्यारा-प्यारा लगता है। आत्मिक प्यारा। ऐसे फरिश्तेपन की अनुभूति स्वयं भी करे और औरों को भी कराये क्योंकि बिना फरिश्ता बने देवता नहीं बन सकते हैं। फरिश्ता सो देवता है। तो नम्बरवन ब्रह्मा की आत्मा ने प्रत्यक्ष साकार रूप में भी फरिश्ता जीवन का अनुभव कराया और फरिश्ता स्वरूप बन गया। उसी फरिश्ते रूप के साथ आप सभी को भी फरिश्ता बन परमधाम में चलना है। तो इसके लिए मन की एकाग्रता पर अटेन्शन दो। ऑर्डर से मन को चलाओ। करना है तो मन द्वारा कर्म हो, नहीं करना है और मन कहे करो, यह मालिकपन नहीं है। अभी कई बच्चे कहते हैं, चाहते नहीं हैं लेकिन हो गया। सोचते नहीं हैं लेकिन हो गया, करना नहीं चाहिए लेकिन हो जाता है। यह है मन के वशीभूत अवस्था। तो ऐसी अवस्था अच्छी तो नहीं लगती है ना! फालो ब्रह्मा बाप। ब्रह्मा बाप को देखा सामने खड़े होते भी क्या अनुभव होता? फरिश्ता खड़ा है, फरिश्ता दृष्टि दे रहा है। तो मन के एकाग्रता की शक्ति सहज फरिश्ता बना देगी। ब्रह्मा बाप भी बच्चों को यही कहते हैं - समान बनो। शिव बाप कहते हैं निराकारी बनो, ब्रह्मा बाप कहते हैं फरिश्ता बनो। तो क्या समझा? रिजल्ट में क्या देखा? मन की एकाग्रता कम है। बीच-बीच में चक्कर बहुत लगाता है मन, भटकता है। जहाँ जाना नहीं चाहिए वहाँ जाता है तो उसको क्या कहेंगे? भटकना कहेंगे ना! तो एका-ग्रता की शक्ति को बढ़ाओ। मालिकपन के स्टेज की सीट पर सेट रहो। जब सेट होते हैं तो अपसेट नहीं होते, सेट नहीं हैं तो अप-सेट होते हैं। तो भिन्न-भिन्न श्रेष्ठ स्थितियों की सीट पर सेट रहो, इसको कहते हैं एकाग्रता की शक्ति। ठीक है? ब्रह्मा बाप से प्यार है ना! कितना प्यार है? कितना है? बहुत प्यार है! तो प्यार का रेसपान्ड बाप को क्या दिया है? बाप का भी प्यार है तब तो आपका भी प्यार है ना! तो रिटर्न क्या दिया? समान बनना - यही रिटर्न है। अच्छा।
यह सीजन का फर्स्ट टर्न है। तो फर्स्ट में फर्स्ट नम्बर आ गये हैं। बापदादा को भी जितने ज्यादा बच्चे दिखाई देते तो अच्छा लगता है। जितना हाल बनाया है उतने ही आते हैं। अभी बड़ा हाल बनाओ तो बहुत आवें। अभी देखो तो फुल हो गया है ना! फुल होना इशारा करता है कि और बड़ा बनाओ। हाल सज जाता है ना! और ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं से हाल सजा हुआ है तो कितना अच्छा लगता है। मधुबन वालों को भी, चाहे शान्तिवन हो, चाहे पाण्डव भवन हो, अगर खाली-खाली होता है तो अच्छा नहीं लगता है ना। भरा हुआ होता है तो अच्छा लगता है कि मधुबन वालों को एकान्त चाहिए? एकान्त चाहिए वा संगठन, रिमझिम अच्छी लगती है? फिर भी बीच में एकान्त भी मिल जाती है। अच्छा।
डबल विदेशी भी आये हैं। अच्छा है, डबल विदेशियों से भी मधुबन का श्रृंगार हो जाता है। इन्टरनेशनल हो जाता है ना! अच्छा है, बापदादा ने दादी का संकल्प सुना। (आज सवेरे क्लास में दादी जी ने सभी को देश-विदेश में सेवा की धूम मचाने का संकल्प दिया था, भारत का कोई भी गांव, कोई भी देश इस वर्ष सन्देश से वंचित न रहे, ऐसा प्लैन बनाओ) संकल्प दिया है ना - अच्छा है। देखेंगे विदेश पूरा करता है या भारत पूरा करता है! सन्देश तो मिलना चाहिए। इतनी आपको प्राप्ति हुई, बाप मिला, खज़ाना मिला, पालना मिली, कम से कम अपने भाई-बहिनों को सन्देश तो पहुंचाना चाहिए। उल्हना तो नहीं देंगे ना कि हमको पता ही नहीं। तो सन्देश जरूर देना, आवश्यक है। और मुश्किल क्या है? हर एक जोन अपने-अपने जोन के साइड को बांटो, और क्या है! हर जोन में कितने सेन्टर हैं, एक-एक सेन्टर को भी बांटों तो क्या बड़ी बात है। देखो, मधुबन में वर्गाकरण की सेवा होती है, उससे आवाज चारों ओर फैलता है। आप देखेंगे जब से यह वर्गाकरण की सेवा शुरू की है तो आई.पी. क्वालिटी में आवाज ज्यादा फैला है। वी.वी.आई.पी. की तो बात छोड़ो, उन्हों को फुर्सत कहाँ है। और बड़े-बड़े प्रोग्राम किये हैं उससे भी आवाज तो फैलता है। अभी देहली और कलकत्ता कर रहे हैं ना! अच्छे प्लैन बना रहे हैं। मेहनत भी अच्छी कर रहे हैं। बापदादा के पास समाचार पहुंचता रहता है। देहली का आवाज फॉरेन तक पहुंचना चाहिए। मीडिया वाले क्या करते हैं? सिर्फ भारत तक। फॉरेन से आवाज आये कि देहली में यह प्रोग्राम हुआ, कलकत्ता में यह प्रोग्राम हुआ। यह वहाँ का आवाज इन्डिया में आवे। इन्डिया के कुम्भकरण तो विदेश से जागने हैं ना! तो विदेश की खबर का महत्व होता है। प्रोग्राम भारत में हो और समाचार विदेश की अखबारों से पहुंचे तब फैलेगा। भारत का आवाज विदेश में पहुंचे और विदेश का आवाज भारत में पहुंचे, उसका प्रभाव होता है। अच्छा है। प्रोग्राम जो बना रहे हैं, अच्छे बना रहे हैं। बापदादा देहली वालों को भी मुहब्बत के मेहनत की मुबारक देते हैं। कलकत्ता वालों को भी इनएड-वांस मुबारक है क्योंकि सहयोग, स्नेह और हिम्मत जब तीनों बातें मिल जाती हैं तो आवाज बुलन्द होता है। आवाज फैलेगा, क्यों नहीं फैलेगा। अभी मीडिया वाले यह कमाल करना, सभी ने टी.वी. में देखा, यह टी.वी. में आया, सिर्फ यह नहीं। वह तो भारत में आ रहा है। अभी और विदेश तक पहुंचो। अभी देखेंगे यह साल आवाज फैलाने का कितना हिम्मत और जोर-शोर से मनाते हो। बापदादा को समाचार मिला कि डबल फारेनर्स को बहुत उमंग है। है ना? अच्छा है। एक दो को देख और उमंग आता है, जो ओटे वह ब्रह्मा समान। अच्छा है। तो दादी को भी संकल्प आता है, बिजी करने का तरीका अच्छा आता है। अच्छा है, निमित्त है ना।
अच्छा - सभी उड़ती कला वाले हो? उड़ती कला फास्ट कला है। चलती कला, चढ़ती कला यह फास्ट कला नहीं है। उड़ती कला फास्ट भी है और फर्स्ट लाने वाली भी है। अच्छा -
मातायें क्या करेंगी? मातायें अपने हमजिन्स को जगाओ। कम से कम मातायें कोई उल्हना देने वाली नहीं रह जायें। माताओं की संख्या सदा ज्यादा होती है। बापदादा को खुशी होती है और इस ग्रुप में सभी की संख्या अच्छी आई है। कुमारों की संख्या भी अच्छी आई है। देखो, कुमार अपने हमजिन्स को जगाओ। अच्छा है। कुमार यह कमाल दिखावें कि स्वप्न मात्र पवित्रता में परिपक्व हैं। बापदादा विश्व में चैलेन्ज करके बताये कि ब्रह्माकुमार यूथ कुमार, डबल कुमार हैं ना। ब्रह्माकुमार भी हो और शरीर में भी कुमार हो। तो पवित्रता की परिभाषा प्रैक्टिकल में हो। तो आर्डर करें, आपको चेक करें पवित्रता के लिए। करें आर्डर? इसमें हाथ नहीं उठा रहे हैं। मशीनें होती हैं चेक करने की। स्वप्न तक भी अपवित्रता हिम्मत नहीं रखे। कुमारियों को भी ऐसे बनना है, कुमारी अर्थात् पूज्य पवित्र कुमारी। कुमार और कुमारियां यह बापदादा को प्रॉमिस करें कि हम सभी इतने पवित्र हैं जो स्वप्न में भी संकल्प नहीं आ सकता, तब कुमार और कुमारियों की पवित्रता सेरीमनी मनायेंगे। अभी थोड़ा-थोड़ा है, बापदादा को पता है। अपवित्रता की अविद्या हो क्योंकि नया जन्म लिया ना। अपवित्रता आपके पास्ट जन्म की बात है। मरजीवा जन्म, जन्म ही ब्रह्मा मुख से पवित्र जन्म है। तो पवित्र जन्म की मर्यादा बहुत आवश्यक है। कुमार कुमारियों को यह झण्डा लहराना चाहिए। पवित्र हैं, पवित्र संस्कार विश्व में फैलायेंगे, यह नारा लगे। सुना कुमारियों ने। देखो कुमारियां कितनी हैं। अभी देखेंगे कुमारियां यह आवाज फैलाती हैं या कुमार? ब्रह्मा बाप को फॉलो करो। अपवित्रता का नाम निशान नहीं, ब्राह्मण जीवन माना यह है। माताओं में भी मोह है तो अपवित्रता है। मातायें भी ब्राह्मण हैं ना। तो ना माताओं में, ना कुमारियों में, ना कुमारों में, न अधर कुमार कुमारियों में। ब्राह्मण माना ही है पवित्र आत्मा। अपवित्रता का अगर कोई कार्य होता भी है तो यह बड़ा पाप है। इस पाप की सजा बहुत कड़ी है। ऐसे नहीं समझना यह तो चलता ही है। थोड़ा बहुत तो चलेगा ही, नहीं। यह फर्स्ट सबजेक्ट है। नवीनता ही पवित्रता की है। ब्रह्मा बाप ने अगर गालियां खाई तो पवित्रता के कारण। हो गया, ऐसे छूटेंगे नहीं। अलबेले नहीं बनो इसमें। कोई भी ब्राह्मण चाहे सरेण्डर है, चाहे सेवाधारी है, चाहे प्रवृत्ति वाला है, इस बात में धर्मराज भी नहीं छोड़ेगा, ब्रह्मा बाप भी धर्मराज को साथ देगा। इसलिए कुमार कुमारियां कहाँ भी हो, मधुबन में हो, सेन्टर पर हो लेकिन इसकी चोट, संकल्प मात्र की चोट बहुत बड़ी चोट है। गीत गाते हो ना - पवित्र मन रखो, पवित्र तन रखो.. गीत है ना आपका। तो मन पवित्र है तो जीवन पवित्र है इसमें हल्के नहीं होना, थोड़ा कर लिया क्या है! थोड़ा नहीं है, बहुत है। बापदादा आफीशियल इशारा दे रहा है, इसमें नहीं बच सकेंगे। इसका हिसाब-किताब अच्छी तरह से लेंगे, कोई भी हो। इसलिए सावधान, अटेन्शन। सुना - सभी ने ध्यान से। दोनों कान खोल के सुनना। वृत्ति में भी टचिंग नहीं हो। दृष्टि में भी टचिंग नहीं। संकल्प में नहीं तो वृत्ति दृष्टि क्या है! क्योंकि समय सम्पन्नता का समीप आ रहा है, बिल्कुल प्युअर बनने का। उसमें यह चीज़ तो पूरा ही सफेद कागज पर काला दाग है।
अच्छा - सभी जहाँ-जहाँ से भी आये हैं, सब तरफ से आये हुए बच्चों को मुबारक हो।
सेवा का टर्न कर्नाटक का है:- अच्छा चांस है। कर्नाटक के सेवाधारी उठो। बहुत सेवाधारी आ गये हैं। आधी सभा तो कर्नाटक है। बहुत अच्छा। (2500 कर्नाटक के हैं) अच्छा है, वृद्धि अच्छी है। तो विधि और वृद्धि दोनों का बैलेन्स रखने वाले। अभी कर्ना-टक ने नाटक में हीरो पार्ट नहीं बजाया है। कर्नाटक नाम ही है, नाटक करने वाले, नाटक में भी हीरो पार्ट करने वाले। तो हीरो पार्ट नहीं बजाया है। संख्या अच्छी है, उसकी मुबारक है। अभी कोई हीरो पार्ट बजाओ जो किसी जोन ने नहीं किया हो। लाख को इकट्ठा करना यह तो कॉमन हो गया। कोई नवीनता करके दिखाओ जो सभी हियर-हियर करें। कर सकते हैं लेकिन अभी गुप्त हैं, प्रत्यक्ष नहीं हुए हैं। तो टीचर्स करना है ना! कोई हीरो पार्ट करके दिखाओ। सेन्टर खोला, गीता पाठशाला खोली - यह तो कॉमन हो गया। नई बात करके दिखाओ। पाण्डव करेंगे ना नई बात। नई बात करेंगे ना! हाँ, अच्छे अच्छे पुराने-पुराने सर्विसएबुल हैं। करो कमाल। जो सारे जोन तालियां बजावें। बापदादा की कर्नाटक में उम्मीदें बहुत हैं। लेकिन अभी उम्मीदों के ही तारे हैं, अभी उम्मीदों के तारे से सफलता के तारे प्रत्यक्ष हो जाओ। होना है, ठीक है? टीचर्स भी बहुत हैं। सिर्फ टीचर्स हाथ उठाओ। देखो, कितनी टीचर्स हैं। पाण्डव भी हैं। जोन के हेड भी हैं ना, वह भी हाथ उठाओ। देखो कितने हैण्डस हैं। बहुत अच्छे-अच्छे हैण्डस हैं सिर्फ अभी पर्दे के अन्दर हैं, स्टेज पर नहीं आये हैं। अच्छा - मुबारक हो।
इन्दौर कन्या छात्रावास की कुमारियों से :- कुमारियां अभी कमाल करेंगी या सिर्फ डांस करेंगी? अभी जितनी छोटी उतनी कमाल करके दिखाओ। छोटी कुमारी चैलेन्ज करे। अनुभव के आधार से चैलेन्ज करे तो सब लोग प्रभावित हो जाते हैं। अच्छा है अपनी जीवन को सेफ तो कर लिया है। दुनिया के संग से बच गई हो। अभी आपस में ऐसे प्लैन बनाओ। कोई सेवा का नया प्लैन सोचो, छोटे होते भी कमाल का प्लैन बनाके दिखाओ। कर सकते हैं। देखो, जब स्थापना हुई तो छोटी-छोटी कुमारियों ने ही तो कमाल की ना। आप भी कोई कमाल का प्लैन बनाओ। अच्छा है। संग अच्छा है, वातावरण अच्छा है, सेफ्टी भी है, समय भी है, अभी प्लैन बनाना। ठीक है ना। बनायेंगी प्लैन? ऐसा प्लैन बनाओ जो बड़े तो बड़े रहें छोटे सुभानअल्ला हो जाएं। अच्छा।
अच्छा - मन को आर्डर से चलाओ। सेकण्ड में जहाँ चाहो वहाँ मन लग जाये, टिक जाये। यह एक्सरसाइज करो। (ड्रिल) अच्छा - कई जगह बच्चे सुन रहे हैं। याद भी कर रहे हैं, सुन भी रहे हैं। यह सुनकर खुश भी हो रहे हैं कि साइंस के साधन वास्तव में सुख-दाई आप बच्चों के लिए हैं।
चारों ओर के सर्व खज़ानों से सदा सम्पन्न बच्चों को, सदा खुशनसीब, खुशनुम: चेहरे और चलन से खुशी की अंचली देने वाले विश्व कल्याणकारी बच्चों को, सदा मन के मालिक बन एकाग्रता की शक्ति द्वारा मन को कन्ट्रोल करने वाले मनजीत, जगतजीत बच्चों को, सदा ब्राह्मण जीवन की विशेषता पवित्रता के पर्सनैलिटी में रहने वाले पवित्र ब्राह्मण आत्माओं को, सदा डबल लाइट बन फरिश्ता जीवन में ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले, ऐसे ब्रह्मा बाप समान बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। चारों ओर सुनने वाले, याद करने वाले सर्व बच्चों को भी बहुत-बहुत दिल की दुआओं सहित यादप्यार, सर्व को नमस्ते।
दादियों से:- ड्रामा में हर एक को अच्छा पार्ट मिला हुआ है। अच्छा लगता है ना अपना पार्ट। बापदादा भी खुश होते हैं। आपके (दादी जी के) अच्छे सहयोगी हैं ना, राइट हैण्ड हैं ना। है ना राइट हैण्ड? देखो यह सारा ग्रुप, यह सब आप के राइट हैण्ड हैं। कितने अच्छे राइट हैण्ड हैं। देखो, आपके भी (दादी जानकी जी के) राइट हैण्ड हैं। विदेश की सेवा के भी राइट हैण्ड हैं। (तीन चार को स्टेज पर बुलाओ) आप लोगों के ऊपर, राइट हैण्डस के ऊपर जिम्मेवारी है। निमित्त यह हैं लेकिन जिम्मेवार आप हो (विदेश की बहनों से) क्योंकि हैण्ड ही तो काम करते हैं ना। आप देखो शरीर में सबसे ज्यादा काम कौन करता है? हैण्ड। तो आप सब राइट हैण्डस हो और हैण्डस जितना चाहें उतना कर सकते हैं। इनका काम है (दादियों का) मस्तक का काम, आपका है हैण्डस का काम। यह प्रेरणा देंगी, राय देंगी, डायरेक्शन देंगी लेकिन करने वाले आप हैं। अभी यह थोड़ेही जाके कोर्स करायेंगी। अभी इनका भी (बड़ी बहनों का) पार्ट पूरा हुआ कोर्स कराने का। मधुबन के राइट हैण्डस भी अच्छे हैं तो फारेन के भी अच्छे हैं। कमाल करने वाले हैं। बापदादा खुश होते हैं देखो, एक-एक कितना अच्छा रत्न है।
(सभा से) आप सभी भी राइट हैण्डस हो ना? राइट हैण्ड। राइट हैण्ड अर्थात् सदा राइट कर्म करने वाले। कभी भी वेस्ट कर्म करने वाले नहीं, राइट कर्म करने वाले। बापदादा को अच्छा लगता है, आप सभी श्रृंगार हो। निमित्त जितने हैं, और भी हैं। लेकिन बाप-दादा जब देखते हैं ना सभी एक दो के सहयोगी बन बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं, खुश होते हैं। आप निमित्त बनने वालों की युनिटी और प्युरिटी दोनों सारे परिवार को हिम्मत देती है। पाण्डव भी हैं। पाण्डवों को स्टेज पर बुलाया नहीं है, लेकिन हैं पाण्डव भी साथ। कितना अच्छा चांस सभी ने लिया । पहुंच गये तो चांस ले लिया। देखो, बापदादा जब देखते हैं ना एक-एक को, तो सोचते हैं इनको बुलाके बात करें लेकिन साकार शरीर माना बंधन। साकार शरीर के बंधन में आ गये ना, साकार शरीर के बंधन में इतना कर नहीं सकते लेकिन वतन में कर सकते हैं इसीलिए तो बंधनमुक्त हो गये ना। वहाँ जगह का सवाल नहीं, समय का सवाल नहीं लेकिन आपको पता है, एक गुप्त बात बताते हैं, बापदादा वतन में ग्रुप-ग्रुप को बुलाते हैं और उनसे रूहरिहान भी करते हैं। जैसे साकार में याद है - ब्रह्मा बाप ने एक एक ग्रुप को अपने पास भोजन पर बुलाया था, याद है? (क्लिफ्टन पर) ऐसे बापदादा वतन में बुलाते जरूर हैं लेकिन साकार में नहीं कर सकते। अच्छा। मधुबन के कितने अच्छे-अच्छे, सेवाधारी बैठे हैं, देखो कितने अच्छे-अच्छे डिपार्टमेंट के बैठे हैं। डबल फारेनर्स देखो कितने अच्छे-अच्छे हैं। मातायें देखो सभी अच्छे ते अच्छी हैं, लेकिन सभी को कैसे बुलायें। स्टेज पर सभी आ सकते हो? नहीं आ सकते। अच्छा है मधुबन की आकर्षण सभी को छत्रछाया का काम कराती है। जब पहुंच जाते हैं तो कितना अच्छा अनुभव करते हैं।
ओम् शान्ति।
30-11-03 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“चारों ही सबजेक्ट में अनुभव की अथॉरिटी बन समस्या को समाधान स्वरूप में परिवर्तन करो”
आज ब्राह्मण संसार का रचता अपने चारों ओर के ब्राह्मण बच्चों को देख रहे हैं। यह ब्राह्मण संसार छोटा सा संसार है, लेकिन अति श्रेष्ठ, अति प्यारा संसार है। यह ब्राह्मण संसार सारे विश्व की विशेष आत्माओं का संसार है। हर एक ब्राह्मण कोटों में कोई, कोई में भी कोई आत्मा है क्योंकि अपने बाप को पहचान, बाप के वर्से के अधिकारी बने हैं। जैसे बाप ऊंचे ते ऊंचा है तो बाप को पहचान बाप का बनने वाली आत्मायें भी विशेष आत्मायें हैं। हर ब्राह्मण आत्मा के जन्मते ही भाग्य विधाता बाप ने मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खींच ली है, ऐसी श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हैं। ऐसे भाग्यवान अपने को समझते हो? इतना बड़ा रूहानी नशा अनुभव होता है? हर एक ब्राह्मण के दिल में दिलाराम, दिल का दुलार, दिल का प्यार दे रहे हैं। यह परमात्म प्यार सारे कल्प में एक द्वारा और एक समय ही प्राप्त होता है। यह रूहानी नशा सदा हर कर्म में रहता है? क्योंकि आप विश्व को चैलेन्ज करते हो कि हम कर्मयोगी जीवन वाले विशेष आत्मायें हैं। सिर्फ योग लगाने वाले योगी नहीं, योगी जीवन वाले हो। जीवन सदाकाल की होती है। नेचुरल और निरन्तर होती है। 8 घण्टे, 6 घण्टे के योगी जीवन वाले नहीं। योग अर्थात् याद तो ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है। जीवन का लक्ष्य स्वत: ही याद रहता है और जैसा लक्ष्य होता है वैसे लक्षण भी स्वत: ही आते हैं।
बापदादा हर ब्राह्मण आत्मा के मस्तक में चमकता हुआ भाग्य का सितारा देखते हैं। बापदादा सदा हर बच्चे को श्रेष्ठ स्वमानधारी, स्वराज्यधारी देखते हैं। तो आप सभी भी अपने को स्वमानधारी आत्मा हूँ, स्वराज्यधारी आत्मा हूँ - ऐसे ही अनुभव करते हो? सेकण्ड में अगर स्मृति में लाओ कि मैं स्वमानधारी आत्मा हूँ, तो सेकण्ड में स्वमान की कितनी लिस्ट आ जाती! अभी भी अपने स्वमान की लिस्ट स्मृति में आई? लम्बी लिस्ट है ना! स्वमान, अभिमान को खत्म कर देता है क्योंकि स्वमान है श्रेष्ठ अभिमान। तो श्रेष्ठ अभिमान अशुद्ध भिन्न-भिन्न देह-अभिमान को समाप्त कर देता है। जैसे सेकण्ड में लाइट का स्विच ऑन करने से अंधकार भाग जाता है, अंधकार को भगाया नहीं जाता है या अंधकार को निकालने की मेहनत नहीं करनी पड़ती है लेकिन स्विच आन किया अंधकार स्वत: ही समाप्त हो जाता है। ऐसे स्वमान की स्मृति का स्विच ऑन करो तो भिन्न-भिन्न देह-अभिमान समाप्त करने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। मेहनत तब तक करनी पड़ती है जब तक स्वमान के स्मृति स्वरूप नहीं बनते। बापदादा बच्चों का खेल देखते हैं - स्वमान को दिल में वर्णन करते हैं - ``मैं बापदादा के दिल तख्तनशीन हूँ'', वर्णन भी कर रहे हैं, सोच भी रहे हैं लेकिन अनुभव की सीट पर सेट नहीं होते। जो सोचते हैं वह अनुभव होना जरूरी है क्योंकि सबसे श्रेष्ठ अथॉरिटी अनुभव की अथॉरिटी है। तो बापदादा देखते हैं - सुनते बहुत अच्छा हैं, सोचते भी बहुत अच्छा हैं लेकिन सुनना और सोचना अलग चीज़ है, अनुभवी स्वरूप बनना - यही ब्राह्मण जीवन की श्रेष्ठ अथॉरिटी है। यही भक्ति और ज्ञान में अन्तर है। भक्ति में भी सुनने की मस्ती में बहुत मस्त होते हैं। सोचते भी हैं लेकिन अनुभव नहीं कर पाते हैं। ज्ञान का अर्थ ही है, ज्ञानी तू आत्मा अर्थात् हर स्वमान के अनुभवी बनना। अनुभवी स्वरूप रूहानी नशा चढ़ाता है। अनुभव कभी भी जीवन में भूलता नहीं है, सुना हुआ, सोचा हुआ भूल सकता है लेकिन अनुभव की अथॉरिटी कभी कम नहीं होती है।
तो बापदादा यही बच्चों को स्मृति दिलाते हैं - हर सुनी हुई बात जो भगवान बाप से सुनी, उसके अनुभवी मूर्त बनो। अनुभव की हुई बात हजार लोग भी अगर मिटाने चाहें तो मिट नहीं सकती। माया भी अनुभव को मिटा नहीं सकती। जैसे शरीर धारण करते ही अनुभव करते हो कि मैं फलाना हूँ, तो कितना पक्का रहता है! कभी अपनी देह का नाम भूलता है? कोई आपको कहे नहीं आप फलानी या फलाना नहीं हो, तो मान सकते हो? ऐसे ही हर स्वमान की लिस्ट अनुभव करने से कभी स्वमान भूल नहीं सकता। लेकिन बापदादा ने देखा वि अनुभव हर स्वमान का वा हर प्वाइंट का, अनुभवी बनने में नम्बरवार हैं। जब अनुभव कर लिया कि मैं हूँ ही आत्मा, आत्मा के सिवाए और हो ही क्या! देह को तो मेरा कहते हो लेकिन मैं हूँ ही आत्मा, जब हो ही आत्मा तो देहभान कहाँ से आया? क्यों आया? कारण, 63 जन्म का अभ्यास, मैं देह हूँ, उल्टा अभ्यास पक्का है। यथार्थ अभ्यास अनुभव में भूल जाता है। बापदादा बच्चों को जब मेहनत करता देखते हैं तो बच्चों पर प्यार आता है। परमात्म बच्चे और मेहनत! कारण, अनुभव मूर्त की कमी है। जब देहभान का अनुभव कुछ भी हो जाए, कोई भी कर्म करते देहभान भूलता नहीं है, तो ब्राह्मण जीवन अर्थात् कर्म-योगी जीवन, योगी जीवन का अनुभव भूल कैसे सकता!
तो चेक करो - हर सबजेक्ट को अनुभव में लाया है? ज्ञान सुनना सुनाना तो सहज है लेकिन ज्ञान स्वरूप बनना है। ज्ञान को स्वरूप में लाया तो स्वत: ही हर कर्म नॉलेजफुल अर्थात् नॉलेज की लाइट माइट वाला होगा। नॉलेज को कहा ही जाता है लाइट और माइट। ऐसे ही योगी स्वरूप, योगयुक्त, युक्तियुक्त स्वरूप। धारणा स्वरूप अर्थात् हर कर्म, हर कर्मेन्द्रिय, हर गुण के धारणा स्वरूप होगी। सेवा के अनुभवी मूर्त, सेवाधारी का अर्थ ही है निरन्तर स्वत: ही सेवाधारी, चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क हर कर्म में सेवा नेचुरल होती रहे, इसको कहा जाता है चार ही सबजेक्ट में अनुभव स्वरूप। तो सभी चेक करो - कहाँ तक अनुभवी बने हैं? हर गुण का अनुभवी, हर शक्ति का अनुभवी। वैसे भी कहावत है कि अनुभव समय पर बहुत काम में आता है। तो अनुभवी मूर्त का अनुभव कैसी भी समस्या हो, अनुभवी मूर्त अनुभव की अथॉरिटी से समस्या को सेकण्ड में समाधान स्वरूप में परिवर्तन कर लेता है। समस्या, समस्या नहीं रहेगी, समाधान स्वरूप बन जायेगी। समझा।
अभी समय की समीपता, बाप समान बनने की समीपता समाधान स्वरूप का अनुभव कराये। बहुत समय समस्या का आना, समा-धान करना यह मेहनत की, अब बापदादा हर एक बच्चे को स्वमानधारी, स्वराज्य अधिकारी, समाधान स्वरूप में देखने चाहते हैं। अनुभवी मूर्त सेकण्ड में परिवर्तन कर सकता है। अच्छा।
सब तरफ के पहुंच गये हैं। डबल फारेनर्स भी हर ग्रुप में अपना चांस अच्छा ले रहे हैं। अच्छा - इस ग्रुप में पाण्डव भी कम नहीं हैं। पाण्डव सभी हाथ उठाओ। मातायें, कुमारियां, टीचर्स हाथ उठाओ। पहले ग्रुप में मातायें ज्यादा थी लेकिन इस ग्रुप में पाण्डवों ने भी रेस अच्छी की है। पाण्डवों का नशा और निश्चय अभी तक गायन में भी गाया हुआ है। क्या गाया हुआ है? जानते हो? 5 पाण्डव लेकिन नशा और निश्चय के आधार से विजयी बने, यह गायन अभी तक है। तो ऐसे पाण्डव हो? अच्छा - नशा है? तो पाण्डव जब भी सुनते होंगे आप पाण्डव हो, तो पाण्डवों को पाण्डवपति तो नहीं भूलता है ना! कभी-कभी भूलता है? पाण्डव और पाण्डवपति, पाण्डवों को कभी भी पाण्डवपति भूल नहीं सकता। पाण्डवों को यह नशा होना चाहिए, हम कल्प-कल्प के पाण्डव, पाण्डवपति के प्यारे हैं। यादगार में पाण्डवों का भी नाम कम नहीं है। पाण्डवों का टाइटिल ही है विजयी पाण्डव। तो ऐसे पाण्डव हैं? बस हम विजयी पाण्डव हैं, सिर्फ पाण्डव नहीं, विजयी पाण्डव। विजय का तिलक अविनाशी मस्तक पर लगा हुआ ही है।
माताओं को क्या नशा रहता है? बहुत नशा रहता है! मातायें नशे में कहती हैं कि बाबा आया ही है हमारे लिए। ऐसे है ना! क्योंकि आधाकल्प में माताओं को मर्तबा नहीं मिला है, अभी संगम पर राजनीति में भी माताओं को अधिकार मिला है। हर डिपार्टमेंट में आप शक्तियों को बाप ने आगे रखा ना, तो संसार में भी हर वर्ग में अब माताओं को अधिकार मिलता है। कोई भी ऐसा वर्ग नहीं है जिसमें मातायें नहीं हो। यह संगमयुग का मर्तबा है। तो माताओं को रहता है - हमारा बाबा। रहता है - मेरा बाबा? नशा है? मातायें हाथ हिला रही हैं। अच्छा है। भगवान को अपना बना लिया तो जादूगरिनी तो मातायें हुई ना! बापदादा देखता है मातायें चाहे पाण्डव, बापदादा के सर्व सम्बन्धों से, प्यार तो सर्व संबंधों से है लेकिन किसको कौन सा विशेष संबंध प्यारा है, वह भी देखते हैं। कई बच्चों को खुदा को दोस्त बनाना बहुत अच्छा लगता है। इसीलिए खुदा दोस्त की कहानी भी है। बापदादा यही कहते, जिस समय जिस संबंध की आवश्यकता हो तो भगवान को उस संबंध में अपना बना सकते हो। सर्व संबंध निभा सकते हो। बच्चों ने कहा बाबा मेरा, और बाप ने क्या कहा, मैं तेरा।
मधुबन की रौनक अच्छी लगती है ना! चाहे कितना भी दूर बैठे सुने भी, देखें भी लेकिन मधुबन की रौनक अपनी है। मधुबन में बापदादा तो मिलते ही हैं लेकिन और कितनी प्राप्तियां होती हैं? अगर लिस्ट निकालो तो कितनी प्राप्ति है? सबसे बड़े ते बड़ी प्राप्ति सहज योग, स्वत: योग रहता है। मेहनत नहीं करनी पड़ती। अगर कोई मधुबन के वायुमण्डल का महत्व रखे, तो मधुबन का वायुमण्डल, मधुबन की दिनचर्या सहजयोगी स्वत:योगी बनाने वाली है। क्यों? मधुबन में बुद्धि में सिर्फ एक ही काम है, सेवाधारी ग्रुप आता है वह अलग बात है लेकिन जो रिफ्रेश होने के लिए आते हैं तो मधुबन में क्या काम है? कोई जिम्मेवारी है क्या? खाओ, पिओ, मौज करो, पढ़ाई करो। तो मधुबन, मधुबन ही है। विदेश में भी सुन रहे हैं। लेकिन वह सुनना और मधुबन में आना, इसमें रात-दिन का फर्क है। बापदादा साधनों द्वारा सुनने, देखने वालों को भी यादप्यार तो देते हैं, कोई बच्चे तो रात जागकर भी सुनते हैं। ना से अच्छा जरूर है लेकिन अच्छे ते अच्छा मधुबन प्यारा है। मधुबन में आना अच्छा लगा है, या वहाँ बैठकर मुरली सुन लो! क्या अच्छा लगता है? वहाँ भी तो मुरली सुनेंगे ना। यहाँ भी तो पीछे-पीछे टी.वी. में देखते हैं। तो जो समझते हैं मधुबन में आना ही अच्छा है, वह हाथ उठाओ। (सभी ने उठाया) अच्छा। फिर भी देखो भक्ति में भी गायन क्या है? मधुबन में मुरली बाजे। यह नहीं है लण्डन में मुरली बाजे। कहाँ भी हो, मधुबन की महिमा का महत्व जानना अर्थात् स्वयं को महान बनाना।
अच्छा - सब जो भी आये हैं वो योगी जीवन, ज्ञानी तू आत्मा जीवन, धारणा स्वरूप का अनुभव कर रहे हैं। अभी पहले टर्न में इस सीजन के लिए विशेष अटेन्शन दिलाया था कि यह पूरा सीजन सन्तुष्टमणि बन रहना है और सन्तुष्ट करना है। सिर्फ बनना है नहीं, करना भी है। साथ में अभी समय अनुसार कभी भी कुछ भी हो सकता है, प्रश्न नहीं पूछो कब होगा, एक साल में होगा, 6 मास में होगा। अचानक कुछ भी किसी समय भी हो सकता है इसलिए अपने स्मृति का स्विच बहुत पावरफुल बनाओ। सेकण्ड में स्विच ऑन और अनुभव स्वरूप बन जाओ। स्विच ढीला होता है ना तो घड़ी-घड़ी ऑन-ऑफ करना पड़ता है और समय लगता है, ठीक होने में। लेकिन सेकण्ड में स्विच ऑन स्वमान का, स्वराज्य अधिकारी का, अन्तर्मुखी होकर अनुभव करते जाओ। अनुभवों के सागर में समा जाओ। अनुभव की अथॉरिटी को कोई भी अथॉरिटी जीत नहीं सकती। समझा, क्या करना है? बापदादा इशारा तो दे देता है लेकिन इन्तजार नहीं करो, कब-कब-कब नहीं अब। एवररेडी। सेकण्ड में स्मृति का स्विच ऑन कर सकते हो? कर सकते हो? कैसे भी सरकमस्टांश हों, कैसी भी समस्या हो, स्मृति का स्विच ऑन करो। यह अभ्यास करो क्योंकि फाइनल पेपर सेकण्ड का ही होना है, मिनट भी नहीं। सोचने वाला नहीं पास कर सकेगा, अनुभव वाला पास हो जायेगा। तो अभी सेकण्ड में सभी ``मैं परमधाम निवासी श्रेष्ठ आत्मा हूँ'', इस स्मृति के स्विच को ऑन करो और कोई भी स्मृति नहीं हो। कोई बुद्धि में हलचल नहीं हो, अचल। (ड्रिल) अच्छा।
चारों ओर के श्रेष्ठ स्वमानधारी, अनुभवी आत्माओं को, सदा हर सबजेक्ट को अनुभव में लाने वाले, सदा योगी जीवन में चलने वाले निरन्तर योगी आत्माओं को, सदा अपने विशेष भाग्य को हर कर्म में इमर्ज स्वरूप में रखने वाले कोटों में कोई, कोई में भी कोई विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
सेवा का टर्न पंजाब का है:- पंजाब वाले कितने आये हैं, उठो। टीचर्स बहुत आई हैं। पाण्डव भी हैं। यज्ञ सेवा का चांस कितना श्रेष्ठ अनुभव है क्योंकि श्रेष्ठ यज्ञ है और यज्ञ सेवा करना अर्थात् पुण्य का खाता अपने खाते में जमा करना। तो हर एक ने कितने पुण्य जमा किये हैं? अगर दिल से सेवा की तो एक का 100 गुणा पुण्य जमा किया। अच्छा है। पंजाब भी कम नहीं है, होशियार है। पंजाब की यह कमाल है कि पंजाब के वायुमण्डल को शान्त कर दिया। अभी लड़ाई झगड़ा होता है क्या? नहीं होता है ना। कॉमन की बात दूसरी है। विशेष आतंकवाद तो नहीं है ना! और सेवा भी बढ़ाते रहते हैं। सेवा की वृद्धि का शौक अच्छा है। पाण्डव भी निर्विघ्न हैं ना? निर्विघ्न, जो समझते हैं माया का काम है आना और हमारा काम है विजय पाना, वह हाथ उठाओ। मातायें टीचर्स, माया तो सबके पास आती है। टीचर्स के पास भी आती है क्योंकि टीचर्स को आगे बढ़ना है ना, तो माया तो आयेगी ना! अच्छा है। यह सेवा का चांस एक्स्ट्रा आपके पुण्य का खाता बढ़ाती है और दुआयें कितनी मिलती हैं? सन्तुष्ट होके जाना अर्थात् दुआयें मिलना। तो पंजाब ने दुआओं का खाता जमा किया। अच्छा है लेकिन पंजाब से कोई माइक और वारिस नहीं मिला है। जबसे बापदादा ने कहा है तो कोई भी जोन ने अभी माइक और वारिस नहीं लाया है। स्टेज पर तो लाये। पंजाब तो होशियार है। वारिस निकालने में, माइक तैयार करने में तो होशियार हैं। देखो, पंजाब का कॉमन नारा है - वहाँ कहते हैं ना जो बोले सो निहाल, तो पंजाब लावे तो पंजाब निहाल। लाना है, लाना है। देख रहे हैं बापदादा, कौन सा जोन पहले लाता है। उसका महत्व है ना? अभी किसी ने लाया नहीं है। बना रहे हैं, विदेश वाले भी कोशिश तो बहुत कर रहे हैं, लायेंगे। डबल विदेशी, वारिस लाना है ना? कहाँ हैं, डबल विदेशी हाथ उठाओ। अभी देखेंगे डबल विदेशी नम्बर पहला लेते हैं, या भारत नम्बर पहला लेते हैं? कोई भी लेवे। बाप-दादा अब यह चाहते हैं कि ब्रह्माकुमारियों का परिचय और संबंध जोड़ने का काम अभी माइक करें। आपने तो काफी समय कर लिया ना। अभी आप दृष्टि दो वह माइक बोले, यह भी होना ही है। तो पंजाब वालों को मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। अच्छा।
दादी जी से:- सभी को उमंग-उत्साह में लाने का अच्छा कार्य कर रही हो। (अभी तो करोड़ों को सन्देश देने का प्लैन चल रहा है) करोड़ क्या सारे विश्व की आत्माओं को सन्देश मिलना है। अहो प्रभू तो कहेंगे ना! अहो प्रभू कहने के लिए भी तो तैयार करना है ना! (दादियों से) यह भी सहयोग दे रही हैं। अच्छा है, मधुबन को सम्भाल रहे हैं। अच्छा सहयोगी ग्रुप मिला है ना! एक-एक की विशेषता है। फिर भी आदि रत्नों का प्रभाव पड़ता है। चाहे कितनी भी आयु हो जाए, नये-नये भी आगे बढ़ रहे हैं लेकिन फिर भी आदि रत्नों की पालना अपनी है। इसीलिए ग्रुप अच्छा है। (मोहिनी बहन को देखकर) यह भी आदि रत्नों में है ना! अच्छा है। (रत-नमोहिनी दादी ने उड़ीसा की सेवा का समाचार सुनाया, मोहिनी बहन ने आसाम की सेवा का समाचार सुनाया, सभी ने आपको बहुत-बहुत याद दी है) सेवा तो चारों ओर अच्छी है। उन्हों को भी याद देना। सेवा तो बढ़नी ही है क्योंकि अभी सभी को आवश्य-कता है। अच्छा।
नलिनी बहन, संतोष बहन, सरला बहन, अचल बहन, प्रेम बहन आदि पुरानी बड़ी बहिनों से:- सभी अपने को जिम्मेवार समझते हो? तो आप सबके ऊपर बेहद की जिम्मेवारी है। सिर्फ पंजाब, गुजरात, बॉम्बे नहीं, बेहद की जैसे दादियाँ हैं ना, तो बेहद में हैं ना। ऐसे निमित्त कहाँ के भी हो लेकिन सदा बेहद की जिम्मेवारी अपने ऊपर समझो। कोई भी समय कहाँ भी आवश्यकता हो तो एवररेडी हो। जैसे दादियाँ हैं वैसे आपका भी ग्रुप है। अभी कोई हैं, कोई नहीं हैं, लेकिन ऐसा सेकण्ड ग्रुप भी बहुत बुद्धिवान है, सर्विसएबुल है, बहुत काम कर सकते हैं। तो ये सदा समझो कि हम बेहद के हैं, हद के नहीं। तो एवररेडी हो? कोई समय भी बुलाया तो आ जायेंगी! या कहेंगी जोन का बहुत बड़ा काम है, तबियत नहीं ठीक है! नहीं। तबियत को बापदादा आपेही चलायेगा। कोई भी जिम्मेवार हो, बापदादा की नजर में हैं इसीलिए खास बुलाया है। (विशेष क्या आश है?) सोच चलाओ, क्या-क्या होना चाहिए, जैसे दादी को आता है ना वैसे आप भी समझो हमारी भी जिम्मेवारी है। मनन करो क्या होना चाहिए, कैसे होना चाहिए। कैसे नजदीक आवें, वारिस निकलें, माइक निकलें, सेवा में थोड़ा नवीनता आवे, यह सोचो। अच्छा।
(दिल्ली और कलकत्ते में बड़े कार्यक्रम होने वाले हैं) बापदादा ने विशेष दिल्ली और कलकत्ते वालों को याद किया। दोनों जगह पर ही कार्य की तैयारियाँ हो रही हैं। बापदादा ने देखा है कि दोनों तरफ मेहनत अच्छी हो रही है और सभी मिलजुल करके दिल से सेवा के उमंग से कर रहे हैं इसलिये बापदादा जो भी निमित्त हैं, उन सबको, नाम नहीं लेते हैं लेकिन एक-एक को नाम से विशेषता सहित याद-प्यार दे रहे हैं। सफलता तो है ही और सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, इस निश्चय और नशे से सफलता प्रत्यक्ष हो ही जायेगी। यह सन्देश सबको देते रहना। अच्छा।
अच्छा, आस्ट्रेलिया को याद-प्यार दिया था, लेकिन जनक बच्ची वहाँ है इसलिये उसके साथ आस्ट्रेलिया वालों को भी विशेष याद। आस्ट्रेलिया में ही तीन रिट्रीट हाउस हैं जो और कोई स्थान पर नहीं हैं, तो विशेष आत्मायें भी हैं, विशेषतायें भी हैं लेकिन वो गुप्त रहते हैं। तो स्टेज पर अपना पार्ट बजायेंगे तो बहुत सेवा में भी सहयोग मिलेगा। और उन आत्माओं को, निमित्त जो बनेंगे उनको भी विशेष दुआयें मिलेंगी। इसलिये आस्ट्रेलिया वाले और बहुत कुछ कर सकते हैं लेकिन गुप्त से अभी स्टेज पर आवें। अच्छा जनक बच्ची को खास याद। ऐसे तो सभी को नाम सहित याद है, कितने नाम लेवें। इसलिये एक मुख्य को दिया तो सबको दिया।
(परदादी की याद दी) अच्छा-कलकत्ता तक तैयार हो जायेगी। अच्छा है एक सैम्पल तो है ना। ब्रहमा बाप का सैम्पुल है। तो नाम भी देखो आप सबने परदादी रखा है। दादी भी नहीं परदादी। विशेषता है ना। अच्छा। तबियत ठीक हो रही है, हो जायेगी। नारायण दादा ने भी याद दी है, उसका भी आपरेशन हुआ है। उसको भी याद देना। याद करने वालों को याद का रेसपान्ड जरूर देना। आप सबको भी याद का रेसपान्ड मिल रहा है ना। आपको सम्मुख मिल रहा है, उन्हों को माइक द्वारा मिल रहा है। अच्छा। ओम् शान्ति।
15-12-03 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“प्रत्यक्षता के लिए साधारणता को अलौकिकता में परिवर्तन कर दर्शनीय मूर्त बनो”
आज बापदादा अपने चारों ओर के ब्राह्मण बच्चों के मस्तक के बीच भाग्य के तीन सितारे चमकते हुए देख रहे हैं। कितना श्रेष्ठ भाग्य है और कितना सहज प्राप्त हुआ है। एक है अलौकिक श्रेष्ठ जन्म का भाग्य, दूसरा है - श्रेष्ठ सम्बन्ध का भाग्य, तीसरा है - सर्व प्राप्तियों का भाग्य। तीनों भाग्य के चमकते हुए सितारों को देख बापदादा भी हर्षित हो रहे हैं। जन्म का भाग्य देखो - स्वयं भाग्य विधाता बाप द्वारा आप सबका जन्म है। जब जन्म-दाता ही भाग्य-विधाता है तो जन्म कितना अलौकिक और श्रेष्ठ है। आप सबको भी अपने इस भाग्य के जन्म का नशा और खुशी है ना! साथ-साथ सम्बन्ध की विशेषता देखो - सारे कल्प में ऐसा सम्बन्ध अन्य किसी भी आत्मा का नहीं है। आप विशेष आत्माओं को ही एक द्वारा तीन सम्बन्ध प्राप्त हैं। एक ही बाप भी है, शिक्षक भी है और सतगुरू भी है। ऐसे एक द्वारा तीन सम्बन्ध सिवाए ब्राह्मण आत्माओं के किसी के भी नहीं हैं। अनुभव है ना? बाप के सम्बन्ध से वर्सा भी दे रहे हैं, पालना भी कर रहे हैं। वर्सा भी देखो कितना ऊंचा और अविनाशी है। दुनिया वाले कहते हैं - हमारा पालनहार भगवान है लेकिन आप बच्चे निश्चय और नशे से कहते हो हमारा पालनहार स्वयं भगवान है। ऐसी पालना, परमात्म पालना, पर-मात्म प्यार, परमात्म वर्सा किसको प्राप्त है! तो एक ही बाप भी है, पालनहार भी है और शिक्षक भी है।
हर आत्मा के जीवन में वि्शेष तीन सम्बन्धी आवश्यक हैं लेकिन तीनों सम्बन्ध अलग-अलग होते हैं। आपको एक में तीन सम्बन्ध हैं। पढ़ाई भी देखो - तीनों काल की पढ़ाई है। त्रिकालदर्शी बनने की पढ़ाई है। पढ़ाई को सोर्स ऑफ इन्कम कहा जाता है। पढ़ाई से पद की प्राप्ति होती है। सारे विश्व में देखो - सबसे ऊंचे ते ऊंचा पद, राज्य पद गाया हुआ है। तो आपको इस पढ़ाई से क्या पद प्राप्त होता है? अब भी राजे और भविष्य भी राज्य पद। अभी स्व-राज्य है, राजयोगी स्वराज्य अधिकारी हो और भविष्य का राज्य भाग्य तो अविनाशी है ही। इससे बड़ा पद कोई होता नहीं। शिक्षक द्वारा शिक्षा भी त्रिकालदर्शी की है और पद भी दैवी राज्य पद है। ऐसा शिक्षक का संबंध सिवाए ब्राह्मण जीवन के न किसका हुआ है, न हो सकता है। साथ में सतगुरू का सम्बन्ध, सतगुरू द्वारा श्रीमत, जिस श्रीमत का गायन आज भी भक्ति में हो रहा है। आप निश्चय से कहते हो हमारा हर कदम किसके आधार से चलता है? श्रीमत के आधार से हर कदम चलता है। तो चेक करो - हर कदम श्रीमत पर चलता है? भाग्य तो प्राप्त है लेकिन भाग्य के प्राप्ति का जीवन में अनुभव है? हर कदम श्रीमत पर है वा कभी-कभी मनमत या परमत तो नहीं मिक्स होती? इसकी परख है - अगर कदम श्रीमत पर है तो हर कदम में पदमों की कमाई जमा का अनुभव होगा। कदम श्रीमत पर है तो सहज सफलता है। साथ-साथ सतगुरू द्वारा वरदानों की खान प्राप्त है। वरदान है उसकी पहचान - जहाँ वरदान होगा वहाँ मेहनत नहीं होगी। तो सतगुरू के सम्बन्ध में श्रेष्ठ मत और सदा वरदान की प्राप्ति है। और विशेषता सहज मार्ग की है, जब एक में तीन सम्बन्ध हैं तो एक को याद करना सहज है। तीन को अलग-अलग याद करने की जरूरत नहीं इसीलिए आप सब कहते हो एक बाबा दूसरा न कोई। यह सहज है क्योंकि एक में विशेष सम्बन्ध आ जाते हैं। तो भाग्य के सितारे तो चमक रहे हैं क्योंकि बाप द्वारा तो सर्व को प्राप्तियाँ हैं ही।
तीसरा भाग्य का सितारा है - सर्व प्राप्तियाँ | गायन है अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के खज़ाने में। याद करो अपने खज़ानों को। ऐसा खज़ाना वा सर्व प्राप्तियाँ और कोई द्वारा हो सकती हैं! दिल से कहा मेरा बाबा, खज़ाने हाजिर। इसलिए इतने श्रेष्ठ भाग्य सदा स्मृति में रहें, इसमें नम्बरवार हैं। अभी बापदादा यही चाहते कि हर बच्चा जब कोटों में भी कोई है तो सब बच्चे नम्बरवार नहीं, नम्बरवन होने हैं। तो अपने से पूछो नम्बरवार में हो या नम्बरवन हो? क्या हो? टीचर्स नम्बरवन या नम्बरवार? पाण्डव नम्बरवन हो या नम्बरवार हो? क्या हो? जो समझते हैं हम नम्बरवन हैं और सदा रहेंगे, ऐसे नहीं आज नम्बरवन और कल नम्बर-वार में आ जाओ, जो इतने निश्चयबुद्धि हैं कि हम सदा जैसे बाप ब्रह्मा नम्बरवन, ऐसे फॉलो ब्रह्मा बाप नम्बरवन हैं और रहेंगे वह हाथ उठाओ। हैं? ऐसे ही नहीं हाथ उठा लेना, सोच समझके उठाना। लम्बा उठाओ, आधा उठाते हैं तो आधा हैं। हाथ तो बहुतों ने उठाया है, देखा, दादी ने देखा। अभी इन्हों से (नम्बरवन वालों से) हिसाब लेना। जनक (दादी जानकी) हिसाब लेना। डबल फारेनर्स ने हाथ उठाया। उठाओ, नम्बरवन? बापदादा की तो हाथ उठाके दिल खुश कर दी। मुबारक हो। अच्छा - हाथ उठाया इसका मत-लब है कि आपको अपने में हिम्मत है और हिम्मत है तो बापदादा भी मददगार है ही। लेकिन अभी बापदादा क्या चाहते हैं? नम्बर-वन हो, यह तो खुशी की बात है। लेकिन.... लेकिन बतायें क्या या लेकिन है ही नहीं? बापदादा के पास लेकिन है।
बापदादा ने देखा कि मन में समाया हुआ तो है लेकिन मन तक है, चेहरे और चलन तक इमर्ज नहीं है। अभी बापदादा नम्बरवन की स्टेज चलन और चेहरे पर देखने चाहते हैं। अब समय अनुसार नम्बरवन कहने वालों को हर चलन में दर्शनीय मूर्ति दिखाई देनी चाहिए। आपका चेहरा बतावे कि यह दर्शनीय मूर्त है। आपके जड़ चित्र अन्तिम जन्म तक भी, अन्तिम समय तक भी दर्शनीय मूर्त अनुभव होते हैं। तो चैतन्य में भी जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, साकार स्वरूप में, फरिश्ता तो बाद में बना, लेकिन साकार स्वरूप में होते हुए आप सबको क्या दिखाई देता था? साधारण दिखाई देता था? अन्तिम 84 वाँ जन्म, पुराना जन्म, 60 वर्ष के बाद की आयु, फिर भी आदि से अन्त तक दर्शनीय मूर्त अनुभव की। की ना? साकार रूप में की ना? ऐसे जिन्होंने नम्बरवन में हाथ उठाया, टी.वी. में निकाला है ना? बापदादा उनका फाइल देखेंगे, फाइल तो है ना बापदादा के पास। तो अब से आपकी हर चलन से अनुभव हो, कर्म साधारण हो, चाहे कोई भी काम करते हो, बिजनेस करते हो, डॉक्टरी करते हो, वकालत करते हो, जो भी कुछ करते हो लेकिन जिस स्थान पर आप सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हो वह आपकी चलन से ऐसे महसूस करते हैं कि यह न्यारे और अलौकिक हैं? या साधारण समझते हैं कि ऐसे तो लौकिक भी होते हैं? काम की विशेषता नहीं लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ की विशेषता। बहुत अच्छा बिजनेस है, बहुत अच्छा वकालत करता है, बहुत अच्छा डायरेक्टर है...., यह तो बहुत हैं। एक बुक निक-लता है जिसमें विशेष आत्माओं का नाम होता है। कितनों का नाम आता है, बहुत होते हैं। इसने यह विशेषता की, यह इसने विशे-षता की, नाम आ गया। तो जिन्होंने भी हाथ उठाया, उठाना तो सबको चाहिए लेकिन जिन्होंने उठाया है और उठाना ही है। तो आपकी प्रैक्टिकल चलन में चेंज देखें। यह अभी आवाज नहीं निकला है, चाहे इन्डस्ट्री में, चाहे कहाँ भी काम करते हो, एक-एक आत्मा कहे कि यह साधारण कर्म करते भी दर्शनीय मूर्त हैं। ऐसे हो सकता है, हो सकता है? आगे वाले बोलो, हो सकता है? अभी रिजल्ट में कम सुनाई देता है। साधारणता ज्यादा दिखाई देती है। हाँ कभी जब कोई विशेष कार्य करते हो, विशेष अटेन्शन रखते हो तब तो ठीक दिखाई देता है लेकिन आपको बाप से प्यार है, बाप से प्यार है? कितनी परसेन्ट? टीचर्स हाथ उठाओ। यह तो बहुत टीचर्स आ गई हैं। हो सकता है? कि कभी साधारण कभी विशेष? शब्द भी जो निकलता है ना, कोई भी कार्य करते भाषा भी अलौकिक चाहिए। साधारण भाषा नहीं।
अभी बापदादा की सभी बच्चों में यह श्रेष्ठ आशा है - फिर बाप की प्रत्यक्षता होगी। आपका कर्म, चलन, चेहरा स्वत: ही सिद्ध करेगा, भाषण से नहीं सिद्ध होगा। भाषण तो एक तीर लगाना है। लेकिन प्रत्यक्षता होगी, इनको बनाने वाला कौन! खुद ढूढेंगे, खुद पूछेंगे आपको बनाने वाला कौन? रचना, रचता को प्रत्यक्ष करती है।
तो इस वर्ष क्या करेंगे? दादी ने तो कहा है गांव की सेवा करना। वह भले करना। लेकिन बापदादा अभी यह परिवर्तन देखने चाहता है। एक साल में सम्भव है? एक साल में? दूसरे वारी जब सीजन शुरू होगी तो कान्ट्रास्ट दिखाई दे, सब सेन्टरों से आवाज आवे कि महान परिवर्तन, फिर गीत गायेंगे परिवर्तन, परिवर्तन...। साधारण बोल अभी आपके भाग्य के आगे अच्छा नहीं लगता। कारण है `मैं'। यह मैं, मैं-पन, मैंने जो सोचा, मैंने जो कहा, मैं जो करता हूँ... वही ठीक है। इस मैं पन के कारण अभिमान भी आता है, क्रोध भी आता है। दोनों अपना काम कर लेते हैं। बाप का प्रसाद है, मैं कहाँ से आया! प्रसाद को कोई मैं पन में ला सकता है क्या? अगर बुद्धि भी है, कोई हुनर भी है, कोई विशेषता भी है। बापदादा विशेषता को, बुद्धि को आफरीन देता है लेकिन `मैं' नहीं लाओ। यह मैं पन को समाप्त करो। यह सूक्ष्म मैं पन है। अलौकिक जीवन में यह मैं पन दर्शनीय मूर्त नहीं बनने देता। तो दादियां क्या समझती हो? परिवर्तन हो सकता है? तीनों पाण्डव (निवzर भाई, रमेश भाई, बृजमोहन भाई) बताओ। विशेष हो ना तीन। तीनों बताओ हो सकता है? हो सकता है? हो सकता है? अच्छा - अभी इसके कमाण्डर बनना और बात में कमाण्डर नहीं बनना। परिवर्तन में कमाण्डर बनना। मधुबन वाले बनेंगे? बनेंगे? मधुबन वाले हाथ उठाओ। अच्छा - बनेंगे? बॉम्बे वाले हाथ उठाओ, योगिनी भी बैठी है। (योगिनी बहन पार्ला) बॉम्बे वाले बनेंगे? अगर बनेंगे तो हाथ हिलाओ। अच्छा दिल्ली वाले हाथ उठाओ। तो दिल्ली वाले करेंगे? टीचर्स बताओ। देखना। हर मास बापदादा रिपोर्ट लेंगे। हिम्मत है ना? मुबारक हो।
अच्छा, इन्दौर वाले हाथ उठाओ। इन्दौर की टीचर्स हाथ उठाओ। तो टीचर्स करेंगी? इन्दौर करेगा? हाथ हिलाओ। सारे हाथ नहीं हिले। करेंगे, करायेंगे? दादियां देखना। देख रहे हैं टी.वी. में। गुजरात हाथ उठाओ। गुजरात करेगा? हाथ हिलाना तो सहज है। अभी मन को हिलाना है। क्यों, आपको तरस नहीं आता, इतना दु:ख देख करके? अभी परिवर्तन हो तो अच्छा है ना? तो अभी प्रत्यक्षता का प्लैन है - प्रैक्टिकल जीवन। बाकी प्रोग्राम करते हो, यह तो बिजी रहने के लिए बहुत अच्छा है लेकिन प्रत्यक्षता होगी आपके चलन और चेहरे से। और भी कोई जोन रह गया? यू.पी. वाले हाथ उठाओ। यू.पी. थोड़े हैं। अच्छा यू.पी. करेंगे? महाराष्ट्र वाले हाथ उठाओ। लम्बा उठाओ। अच्छा। महाराष्ट्र करेगा? मुबारक हो। राजस्थान उठाओ। टीचर्स हाथ हिलाओ। कर्नाटक उठाओ। अच्छा - कर्नाटक करेगा? आन्ध्र प्रदेश हाथ उठाओ। चलो यह चिटचैट की। डबल विदेशी हाथ उठाओ। जयन्ती कहाँ है? करेंगे डबल विदेशी? अभी देखो सभा के बीच में कहा है। सभी ने हिम्मत बहुत अच्छी दिखाई, इसके लिए पदमगुणा मुबारक हो। बाहर में भी सुन रहे हैं, अपने देशों में भी सुन रहे हैं, वह भी हाथ उठा रहे हैं।
वैसे भी देखो जो श्रेष्ठ आत्मायें होती हैं उन्हों के हर वचन को सत वचन कहा जाता है। कहते हैं ना सत वचन महाराज। तो आप तो महा महाराज हो। आप सबका हर वचन जो भी सुने वह दिल में अनुभव करे सत वचन है। मन में बहुत कुछ आपके भरा हुआ है, बापदादा के पास मन को देखने का टी.वी. भी है। यहाँ यह टी.वी. तो बाहर का शक्ल दिखाती है ना। लेकिन बापदादा के पास हर एक के हर समय के मन के गति का यन्त्र है। तो मन में बहुत कुछ दिखाई देता है, जब मन का टी.वी. देखते हैं तो खुश हो जाते हैं, बहुत खज़ाने हैं, बहुत शक्तियां हैं। लेकिन कर्म में यथा शक्ति हो जाता है। अभी कर्म तक लाओ, वाणी तक लाओ, चेहरे तक लाओ, चलन में लाओ। तभी सभी कहेंगे, जो आपका एक गीत है ना, शक्तियां आ गई....। सब शिव की शक्तियां हैं। पाण्डव भी शक्तियां हो। फिर शक्तियां शिव बाप को प्रत्यक्ष करेंगी। अभी छोटे-छोटे खेलपाल बन्द करो। अब वानप्रस्थ स्थिति को इमर्ज करो। तो बापदादा सभी बच्चों को, इस समय बापदादा की आशाओं को पूर्ण करने वाले आशाओं के सितारे देख रहे हैं। कोई भी बात आवे तो यह स्लोगन याद रखना - "परिवर्तन, परिवर्तन, परिवर्तन"।
अच्छा - दिल्ली वालों ने अच्छी सेवा का सबूत दिया। क्यों, बापदादा सेवा में जो एडीशन चाहते थे वह आरम्भ किया है क्योंकि जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हैं, वह अभी तक यही कहते हैं कि आपका कार्य अच्छा है लेकिन एडवरटाइज अच्छी नहीं है। गुप्त रहे हैं इसीलिए बाप प्रत्यक्ष भी नहीं हुआ है। तो दिल्ली में इस बारी यह जो मीडिया की सेवा हुई है, वह अभी आरम्भ हुई है। यह अच्छा नाम निकला, कि ब्रह्माकुमारियों का विशाल प्रोग्राम हुआ। तो मुबारक है दिल्ली वालों को, जो भी दिल्ली के आये हैं ना वह आगे आकर खड़े हो जाओ। बहुत बड़ा ग्रुप आ गया है। (करीब 900 का ग्रुप दिल्ली से आया है) देखो जो स्टेज पर हैं, उसको बाप-दादा नहीं देखता, आप सामने वालों को देखता। इसलिए अपना नाम सबसे पहले समझना। हर एक समझे, सेवा में बापदादा ने हमें नम्बरवन दिया। देखो बहुत आये हैं तो बहुतों को स्टेज पर तो नहीं बुला सकते हैं, सूक्ष्मवतन में आओ तो आ सकते हो। पीछे वाले यह नहीं समझना कि हम पीछे हैं, आप सबसे आगे हैं। जो भी टीचर्स हैं, एक-एक को नाम सहित बापदादा यादप्यार और मुबारक दे रहे हैं। नाम की माला नहीं जपेंगे लेकिन दिल में बापदादा हर एक की माला जप रहे हैं। इसलिए कभी भी नहीं सोचना हमारा नाम नहीं आया। सबका नाम है। साकार वतन है ना, तो साकार में साकार के समान विधि करनी पड़ती है। अभी इतनों को कैसे स्टेज पर बुलायेंगे। स्टेज ही दब जायेगी। जो पीछे वाले हैं ना, हाथ उठाओ। आप दिल पर हो, यह स्टेज पर हैं। तो बापदादा ने विशेषता क्या देखी? एक तो एकता, यह एकता की शक्ति, हाँ जी, हाँ जी, विचार दिया, फिर एकता के बन्धन में बंध गये। तो एकता सफलता का साधन है। आप एक-एक सफलता के सितारे हो। पीछे वालों को खास। एक-एक बाप के सामने हैं। अभी खुश हो गये या कहेंगे हमारा नाम नहीं आया। सभी ने मेहनत की है, जो छोटी-छोटी टीचर्स हैं उन्होंने ज्यादा की है। भाईयों ने भी बहुत मेह-नत की है। जिन्होंने जो भी ड्युटी उठाई वह सफलता पूर्वक की है, इसीलिए सफलता है। दिल्ली है, बापदादा की दिल है। तो पीछे वाले सामने आये, या पीछे रहे? उल्हना नहीं देना, हमको नहीं बुलाया, हमको नहीं बुलाया। नहीं, सब बाप के नयनों में हो। बाप के सम्मुख हो। छोटी टीचर्स को डबल मुबारक हो और पाण्डवों को सदा बाप का साथ रहेगा। अच्छा, खुश हो गये, सदा खुश रहना।
अभी विदेश कमाल करे। विदेश में प्रोग्राम हो और भारत में दिखाई दे। बड़ी बात नहीं है। चाहे लाख इकट्ठे नहीं हो, उसकी बात नहीं है लेकिन मीडिया का प्रभाव अच्छा हो। लाखों का अन्दाज वहाँ इकट्ठा होना और बात है लेकिन मीडिया द्वारा भारत में दिखाई दे, तब कुम्भकरण जागेंगे। अच्छा।
कलकत्ता वालों ने भी यादप्यार भेजा है। हर एक स्थान का अपना-अपना प्रभाव होता है। देहली में इन्टरनेशनल साधन हैं। कलकत्ता की विशेषता फिर और होगी। कलकत्ता भी कम नहीं है। मेहनत अच्छी कर रहे हैं। और जो पुरूषार्थ करते हैं उसकी प्रालब्ध तो मिलती ही है। और सफलता तो बच्चों का जन्म सिद्ध अधिकार है। तो कलकत्ते वाले भी खूब धूम मचा रहे हैं, और धूम मचाते रहेंगे। इसलिए कलकत्ता दिल्ली से कम नहीं जायेगा, वह भी आगे जायेगा। हर एक स्थान की अपनी-अपनी रूपरेखा होती है। अभी बापदादा फॉरेन को कह रहा है, फॉरेन में प्रोग्राम हो और भारत देखे। भोपाल भी कर रहा है। आगरा तो म्युजियम है ना, वह परमा-नेंट होगा ना।
आस्ट्रेलिया के रॉबिन भाई से:- अभी बापदादा कह रहे हैं फॉरेन में ऐसा प्रोग्राम करो जो मीडिया द्वारा भारत में दिखाई दे। हो सकता है ना? तो अभी निमित्त बनना। कर सकते हैं, फॉरेन में तो छम-छम है। फॉरेन किसमें कम है। ताली बजाये, हाजिर। होना ही है। होना ही है। हर एक स्थान में उमंग-उत्साह है, वह टर्न बाई टर्न कर रहे हैं। जिसका होता है उसका दिखाई देता है। बाकी सभी अच्छी मेहनत कर रहे हैं। चाहे भोपाल है, चाहे आगरा है। सब मेहनत कर रहे हैं और करनी ही है और सफलता है ही है। ठीक है ना! अच्छा - जो भी विंग्स मीटिंग के लिए आये हैं, वह हाथ उठाओ।
इन्जीनियर्स-साइंटिस्ट विंग, मेडिकल विंग, सोशल सर्विस विंग, यूथ विंग तथा गांव की सेवा के निमित्त राजस्थान के भाई बहिनें मीटिंग के लिए आये हैं :- अच्छा है, यह विंग्स की सेवा में अच्छी रिजल्ट दिखाई देती है क्योंकि हर एक विंग मेहनत करते हैं, सम्पर्क बढ़ाते जाते हैं। लेकिन बापदादा चाहते हैं जैसे मेडिकल विंग ने मेडीटेशन द्वारा हार्ट का प्रैक्टिकल करके दिखाया है। सबूत दिया है कि मेडीटेशन से हार्ट की तकलीफ ठीक हो सकती है और प्रूफ दिया है, दिया है ना प्रूफ! आप सबने सुना है ना! ऐसे दुनिया वाले प्रत्यक्ष सबूत चाहते हैं। इसी प्रकार से जो भी विंग आये हो, प्रोग्राम तो करना ही है, करते भी हो लेकिन ऐसा कोई प्लैन बनाओ, जिससे प्रैक्टिकल रिजल्ट सबकी सामने आवे। सभी विंग के लिए बापदादा कह रहे हैं। यह गवर्मेन्ट तक भी पहुंच तो रहा है ना! और यहाँ-वहाँ आवाज तो फैला है कि मेडीटेशन द्वारा भी हो सकता है। अभी इसको और बढ़ाना चाहिए लेकिन शुरू तो किया है ना! डाक्टर गुप्ता कहाँ है? और बढ़ाना चाहिए इसको, लेकिन फिर भी प्रैक्टिकल रूपरेखा तो है ना! ऐसे हर वर्ग को कोई प्रैक्टिकल प्रमाण दिखाना चाहिए। कॉन्टैक्ट बढ़ाया है, आवाज फैलाया है, इसके लिए बापदादा मुबारक देते हैं। और मेहनत भी कर रहे हैं, सफलता भी है लेकिन ऐसा कोई प्लैन बनाओ, जैसे बड़े-बड़े चित्रों में बापदादा साकार में लिखाते थे, अंधों के आगे आइना। ऐसे प्रैक्टिकल सुन-करके ही समझ जायें कि हाँ यह ऐसा है। तो सभी विंग जो भी आये हैं, चाहे सोशल आया है, चाहे इन्जीनियर-साइंस है, चाहे मेडि-कल है, यूथ है, जो भी आये हो, ऐसा कोई नक्शा बनाओ, प्रैक्टिकल का सबूत दो जो सब फैल जाये कि मेडीटेशन द्वारा सब कुछ हो सकता है। सबका अटेन्शन मेडीटेशन के तरफ हो, आध्यात्मिकता की तरफ हो। समझा। विंग के हेड उठो। तो ऐसा कोई प्लैन बनाओ। मेडिकल वाले भी और आगे बीमारियों का भी कर सकते हैं। थोड़ा ट्रायल करते जायेंगे तो फैलता जायेगा। दुआ भी सब कुछ कर सकती है - यह प्रत्यक्ष करो। ठीक है। बहुत अच्छा किया है।
सेवा का टर्न इन्दौर का है:- अच्छा है, चांस मिलता है, चांसलर बनने के लिए। चांसलर का मर्तबा आगे होता है ना। तो जो भी चांस मिलता है उसमें एक तो अपना वर्तमान भी बनता है और समीप भी आते हैं। हर एक जोन सबकी नजरों में आ जाते हैं। सेवा करते हो तो सबकी नजरों में आटोमेटिकली आ जाते हो। ब्राह्मण परिवार का सम्पर्क बहुत अच्छा हो जाता है। तो इन्दौर वालों ने भी अच्छा पार्ट बजाया है। वैसे रिजल्ट में देखने में आता है कि जो भी जोन सेवा का चांस लेते हैं, तो अभी तक सभी जोन ने बहुत अच्छा पार्ट बजाया है। सहयोग का सहयोग हो जाता है और समीपता की समीपता हो जाती है। दादियों की नजर में आ जाते हैं ना। तो मुबारक है। इन्दौर जोन के सेवाधारी या निमित्त बने हुओं को। जितनी भी आत्मायें हैं, उन्होंने आपका फायदा तो उठाया ना। और जितनों ने फायदा उठाया उसका शेयर, कितनी भी मात्रा में, थोड़े या बहुत, आपके खाते में शेयर जमा हो गया। तो बहुत अच्छा चांस लिया है। बहुत अच्छा। अच्छा -
आज के बापदादा के बोल का एक शब्द नहीं भूलना, वह कौन सा? परिवर्तन। मुझे बदलना है। दूसरे को बदलकर नहीं बदलना है, मुझे बदलके औरों को बदलाना है। दूसरा बदले तो मैं बदलूं, नहीं। मुझे निमित्त बनना है। मुझे हे अर्जुन बनना है तब ब्रह्मा बाप समान नम्बरवन लेंगे। (पीछे वाले हाथ उठाओ) पीछे वालों को बापदादा पहला नम्बर यादप्यार दे रहे हैं। अच्छा -
चारों ओर के बहुत-बहुत-बहुत भाग्यवान आत्माओं को, सारे विश्व के बीच कोटों में कोई, कोई में भी कोई विशेष आत्माओं को, सदा अपने चलन और चेहरे द्वारा बापदादा को प्रत्यक्ष करने वाले विशेष बच्चों को, सदा सहयोग और स्नेह के बन्धन में रहने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा ब्रह्मा बाप समान हर कर्म में अलौकिक कर्म करने वाले अलौकिक आत्माओं को, बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
31-12-03 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“इस वर्ष निमित्त और निर्माण बन जमा के खाते को बढ़ाओ और अखण्ड महादानी बनो”
आज अनेक भुजाधारी बापदादा अपने चारों ओर की भुजाओं को देख रहे हैं। कोई भुजायें साकार में सम्मुख हैं और कई भुजायें सूक्ष्म रूप में दिखाई दे रही हैं। बापदादा अपनी अनेक भुजाओं को देख हर्षित हो रहे हैं। सभी भुजायें नम्बरवार बहुत आलराउण्डर, एवररेडी, आज्ञाकारी भुजायें हैं। बापदादा सिर्फ इशारा करते तो राइट हैण्डस कहते - हाँ बाबा, हाजिर बाबा, अभी बाबा। ऐसे मुरब्बी बच्चों को देख कितनी खुशी होती! बापदादा को रूहानी फखुर है कि सिवाए बापदादा के और किसी भी धर्म आत्मा, महान आत्मा को ऐसी और इतनी सहयोगी भुजायें नहीं मिलती। देखो सारे कल्प में चक्कर लगाओ ऐसी भुजायें किसको मिली हैं? तो बापदादा हर भुजा की विशेषता को देख रहे हैं। सारे विश्व से चुनी हुई विशेष भुजायें हो, परमात्म सहयोगी भुजायें हो। देखो आज इस हाल में भी कितने पहुंच गये हैं! (आज हाल में 18 हजार से भी अधिक भाई बहिनें बैठे हैं) सभी अपने को परमात्म भुजा हैं, यह अनुभव करते हो? फखुर है ना!
बापदादा को खुशी है कि चारों ओर से नया वर्ष मनाने के लिए सभी पहुंच गये हैं। लेकिन नया वर्ष क्या याद दिलाता है? नया युग, नया जन्म। जितना ही अति पुराना लास्ट जन्म है उतना ही नया पहला जन्म कितना सुन्दर है! यह श्याम और वह सुन्दर। इतना स्पष्ट जैसे आज के दिन पुराना वर्ष भी स्पष्ट है और नया वर्ष भी सामने स्पष्ट है। ऐसे अपना नया युग, नया जन्म स्पष्ट सामने आता है? आज लास्ट जन्म में हैं, कल फर्स्ट जन्म में होंगे। क्लीयर है? सामने आता है? जो आदि बच्चे हैं उन्होंने ब्रह्मा बाप का अनुभव किया। ब्रह्मा बाप को जैसे अपना नया जन्म, नये जन्म का राजाई शरीर रूपी वस्त्र सदा सामने खूंटी पर लटका हुआ दिखाई देता था। जो भी बच्चे मिलने जाते वह अनुभव करते, ब्रह्मा बाप का अनुभव रहा, आज बूढ़ा हूँ कल मिचनू सा बन जाऊंगा। याद है ना! पुरानों को याद है? है भी आज और कल का खेल। इतना स्पष्ट भविष्य अनुभव हो। आज स्वराज्य अधिकारी हैं कल विश्व राज्य अधिकारी। है नशा? देखो, आज बच्चे ताज पहनकर बैठे हैं। (रिट्रीट में आये हुए डबल विदेशी छोटे बच्चे ताज पहनकर बैठे हैं) तो क्या नशा है? ताज पहनने से क्या नशा है? यह फरिश्ते के नशे में हैं। हाथ हिला रहे हैं, हम नशे में हैं।
तो इस वर्ष क्या करेंगे? नये वर्ष में नवीनता क्या करेंगे? कोई प्लैन बनाया है? नवीनता क्या करेंगे? प्रोग्राम तो करते रहते हैं, लाख का भी किया, दो लाख का भी किया, नवीनता क्या करेंगे? आजकल के लोग एक तरफ स्व प्राप्ति के लिए इच्छुक भी हैं, लेकिन हिम्मतहीन हैं। हिम्मत नहीं है। सुनने चाहते भी हैं, लेकिन बनने की हिम्मत नहीं है। ऐसी आत्माओं को परिवर्तन करने के लिए पहले तो आत्माओं को हिम्मत के पंख लगाओ। हिम्मत के पंख का आधार है अनुभव। अनुभव कराओ। अनुभव ऐसी चीज़ है, जरा सा अंचली मिलने के बाद अनुभव किया तो अनुभव के पंख कहो, या अनुभव के पांव कहो उससे हिम्मत में आगे बढ़ सकेंगे। इसके लिए विशेष इस वर्ष निरन्तर अखण्ड महादानी बनना पड़े, अखण्ड। मन्सा द्वारा शक्ति स्वरूप बनाओ। महादानी बन मन्सा द्वारा, वायब्रेशन द्वारा निरन्तर शक्तियों का अनुभव कराओ। वाचा द्वारा ज्ञान दान दो, कर्म द्वारा गुणों का दान दो। सारा दिन चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्म तीनों द्वारा अखण्ड महादानी बनो। समय प्रमाण अभी दानी नहीं, कभी-कभी दान किया, नहीं, अखण्ड दानी क्योंकि आत्माओं को आवश्यकता है। तो महादानी बनने के लिए पहले अपना जमा का खाता चेक करो। चार ही सबजेक्ट में जमा का खाता कितनी परसेन्ट में है? अगर स्वयं में जमा का खाता नहीं होगा तो महादानी कैसे बनेंगे! और जमा के खाते को चेक करने की निशानी क्या है? मन्सा, वाचा, कर्म द्वारा सेवा तो की लेकिन जमा की निशानी है - सेवा करते हुए पहले स्वयं की सन्तुष्टता। साथ-साथ जिन्हों की सेवा करते, उन आत्माओं में खुशी की सन्तुष्टता आई? अगर दोनों तरफ सन्तुष्टता नहीं तो समझो सेवा के खाते में आपकी सेवा का फल जमा नहीं हुआ।
बापदादा कभी-कभी बच्चों के जमा का खाता देखते हैं। तो कहाँ-कहाँ मेहनत ज्यादा है, लेकिन जमा का फल कम है। कारण? दोनों तरफ की सन्तुष्टता की कमी। अगर सन्तुष्टता का अनुभव नहीं किया, चाहे स्वयं, चाहे दूसरे तो जमा का खाता कम होता है। बापदादा ने जमा का खाता बहुत सहज बढ़ाने की गोल्डन चाबी बच्चों को दी है। जानते हो वह चाबी क्या है? मिली तो है ना! सहज जमा का खाता भरपूर करने की गोल्डन चाबी है - कोई भी मन्सा-वाचा-कर्म, किसी में भी सेवा करने के समय एक तो अपने अन्दर निमित्त भाव की स्मृति। निमित्त भाव, निर्माण भाव, शुभ भाव, आत्मिक स्नेह का भाव, अगर इस भाव की स्थिति में स्थित होकर सेवा करते हो तो सहज आपके इस भाव से आत्माओं की भावना पूर्ण हो जाती है। आज के लोग हर एक का भाव क्या है, वह नोट करते हैं। क्या निमित्त भाव से कर रहे हैं, वा अभिमान के भाव से! जहाँ निमित्त भाव है वहाँ निर्मान भाव ऑटोमेटिकली आ जाता है। तो चेक करो - क्या जमा हुआ? कितना जमा हुआ? क्योंकि इस समय संगमयुग ही जमा करने का युग है। फिर तो सारा कल्प जमा की प्रालब्ध है।
तो इस वर्ष क्या विशेष अटेन्शन देना है? अपने-अपने जमा का खाता चेक करो। चेकर भी बनो, मेकर भी बनो क्योंकि समय की समीपता के नजारे देख रहे हो। और सभी ने बापदादा से वायदा किया है कि हम समान बनेंगे। वायदा किया है ना? जिन्होंने वायदा किया है, वह हाथ उठाओ। किया है पक्का? कि परसेन्टेज में? पक्का किया है ना? तो ब्रह्मा बाप समान खाता जमा चाहिए ना! ब्रह्मा बाप के समान बनना है तो ब्रह्मा बाप का विशेष चरित्र क्या देखा? आदि से लेकर अन्त तक हर बात में, मैं कहा या बाबा कहा? मैं कर रहा हूँ, नहीं, बाबा करा रहा है। किससे मिलने आये हो? बाबा से मिलने आये हो। मैं पन का अभाव, अविद्या, यह देखा ना! देखा? हर मुरली में बाबा, बाबा कितना बार याद दिलाते हैं? तो समान बनना, इसका अर्थ ही है पहले मैं पन का अभाव हो। पहले सुनाया है - कि ब्राह्मणों का मैं-पन भी बहुत रॉयल है। याद है ना? सुनाया था ना! सब चाहते हैं कि बापदादा की प्रत्यक्षता हो। बापदादा की प्रत्यक्षता करें। प्लैन बहुत बनाते हो। अच्छे प्लैन बनाते हो, बापदादा खुश है। लेकिन यह रॉयल रूप का मैं-पन प्लैन में, सफलता में कुछ परसेन्टेज कम कर देता है। नेचुरल संकल्प में, बोल में, कर्म में, हर संकल्प में बाबा, बाबा स्मृति में हो। मैं-पन नहीं। बापदादा करावनहार करा रहा है। जगत-अम्बा की यही विशेष धारणा रही। जगत अम्बा का स्लोगन याद है, पुरानों को याद होगा। है याद? बोलो, (हुक्मी हुक्म चलाए रहा) यह थी विशेष धारणा जगत अम्बा की। तो नम्बर लेना है, समान बनना है तो मैं पन खत्म हो जाए। मुख से ऑटोमेटिक बाबा-बाबा शब्द निकले। कर्म में, आपकी सूरत में बाप की मूरत दिखाई दे तब प्रत्यक्षता होगी।
बापदादा यह रॉयल रूप के मैं-मैं के गीत बहुत सुनते हैं। मैंने जो किया वही ठीक है, मैंने जो सोचा वही ठीक है, वही होना चाहिए, यह मैं पन धोखा दे देता है। सोचो भले, कहो भले लेकिन निमित्त और निर्माण भाव से। बापदादा ने पहले भी एक रूहानी ड्रिल सिखाई है, कौन सी ड्रिल? अभी-अभी मालिक, अभी-अभी बालक। विचार देने में मालिक पन, मैजारिटी के फाइनल होने के बाद बालक पन। यह मालिक और बालक... यह रूहानी ड्रिल बहुत-बहुत आवश्यक है। सिर्फ बापदादा के तीन शब्द शिक्षा के याद रखो - सबको याद हैं! मन्सा में निराकारी, वाचा में निरंहकारी, कर्म में निर्विकारी। जब भी संकल्प करते हो तो निराकारी स्थिति में स्थित होके संकल्प करो और सब भूल जाए लेकिन यह तीन शब्द नहीं भूलो। यह साकार रूप की तीन शब्दों की शिक्षा सौगात है। तो ब्रह्मा बाप से साकार रूप में भी प्यार रहा है। अभी भी डबल फारेनर्स कई अनुभव सुनाते हैं कि ब्रह्मा बाप से बहुत प्यार है। देखा नहीं है तो भी प्यार है। है? हाँ डबल फारनेर्स ब्रह्मा बाप से प्यार ज्यादा है ना? है ना? तो जिससे प्यार होता है ना उसकी सौगात बहुत सम्भाल के रखते हैं। चाहे छोटी सी भी सौगात होगी ना, तो जिससे अति प्यार होता है उसकी सौगात को छिपाके रखते हैं, सम्भाल के रखते हैं। तो ब्रह्मा बाप से प्यार है तो इन तीन शब्दों की शिक्षा से प्यार। इसमें सम्पन्न बनना या समान बनना बहुत सहज हो जायेगा। याद करो ब्रह्मा बाप ने क्या कहा!
तो नये वर्ष में वाचा की सेवा भले करो, धूमधाम से करो लेकिन अनुभव कराने की सेवा सदा अटेन्शन में रखो। सब अनुभव करें कि इस बहन द्वारा या भाई द्वारा हमें शक्ति का अनुभव हुआ, शान्ति का अनुभव हुआ, क्योंकि अनुभव कभी भूलता नहीं है। सुना हुआ भूल जाता है। अच्छा लगता है लेकिन भूल जाता है। अनुभव ऐसी चीज़ है जो खींच के उसको आपके नजदीक लायेगी। सम्पर्क वाला सम्बन्ध में आता रहेगा। क्योंकि सम्बन्ध के बिना वर्से के अधिकारी नहीं बन सकते हैं। तो अनुभव सम्बन्ध में लाने वाला है। अच्छा।
समझा, क्या करेंगे? चेक करो, चेकर भी बनो मेकर भी बनो। अनुभव कराने के मेकर बनो, जमा के खाते चेक करने के चेकर बनो। अच्छा।
सब पहुंच गये हो तो बापदादा सभी को दिल की दुआओं सहित पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं। देखो पटरानी, पटराने बन गये हो ना? कुर्सी राना नहीं कहा जाता है, पटरानी कहा जाता है। आज सारी सभा मैजारटी पटरानी, पटराने बन गये हैं। बैठ-बैठकर थक तो नहीं गये हैं। कुर्सा पर बैठने वालों को पट मिल गया है, तो थकावट तो नहीं, दर्द तो नहीं हो रहा है? खुशी में सब भूल जाता है। अच्छा - आज समाचार में सुनाया है कि एक तो बच्चों का ग्रुप आया है। बच्चे सब उठो। सभी को इन्हों का ताज दिखाई दे रहा है? तो ताजधारी बच्चे हैं। देखो, झण्डियां लहरा रहे हैं। अच्छा है। बच्चों को देख करके खुशी होती है ना! और सुना कि बच्चों ने भी रिट्रीट की है। अच्छा कितने बच्चे हैं? (रिट्रीट के लिए 11 देशों से 26 बच्चे आये हुए हैं) तो जो रिट्रीट की वह अपने-अपने देश में जाके औरों को भी रिट्रीट करायेंगे? हाँ जी की झण्डी हिलाते हैं। भूल नहीं जाना। ऐसा एक्जाम्पुल बनना जो सभी कहें वाह बच्चे वाह! सभी देशों से रिजल्ट आयेगी ना। जो पाठ पढ़ा वह कर्म तक लाना। सिर्फ कान तक नहीं, कर्म तक। अच्छा है। बच्चों को जैसा संग मिलता है वैसा रंग लगता है। तो बच्चों को देखकर बापदादा खुश होते हैं। खास मुबारक देते हैं। पहले तो ताज की मुबा-रक हो। सजधज के आये हैं। देखो आप बैठे यहाँ हो लेकिन सभी देश वाले आपको देख रहे हैं। अमेरिका भी देख रही है, लण्डन भी देख रहा है, आस्ट्रेलिया भी देख रहा है, सब आपको देख रहे हैं। कितने भाग्यवान हो! दूसरा ग्रुप है - यूथ ग्रुप। डबल फारेनर्स यह अच्छा करते हैं, ग्रुप ग्रुप की रिट्रीट कर लेते हैं। डबल फायदा उठाते हैं। बापदादा से भी मिलते हैं और साथ-साथ रिट्रीट भी करते हैं। (26 देशों से 160 यूथ आये हैं) आपको तो बहुत कुछ सेवा में दिखाना है। इन्टरनेशनल यूथ ग्रुप बनाया है। इसमें इन्टरनेशनल है ना! अच्छा यह तीन टीचर मिली हैं, त्रिमूर्ति। अच्छा है। बापदादा ने समाचार सुना था और रिजल्ट भी यूथ ग्रुप की सुनी। बापदादा को एक बात बहुत अच्छी लगी, जो सभी के लिए बहुत अच्छी है। यूथ ग्रुप ने लक्ष्य रखा है कि हम सोल कान्सेसनेस, आत्म-अभिमानी ज्यादा में ज्यादा रहेंगे। आत्मा का पाठ पक्का किया है। किया है पक्का? हाथ हिलाओ। मधुबन तक रहेगा या वहाँ भी रहेगा? बच्ची ने सुनाया तो बापदादा ने पहले-पहले छोटे बच्चों की बो\डग में भी आत्मा का पाठ पक्का कराया था, इन्होंने भी लक्ष्य रखा है कि बाडीकान्सेस नहीं होंगे, सोलकान्सेसनेस में रहेंगे। पक्का है ना? तो कैसे पता पड़ेगा कि पक्का है या कच्चा है? टीचर्स रिपोर्ट लिखेंगे? हर मास की चारों ओर की रिपोर्ट अपने पास मंगाओ और फिर वह रिपोर्ट मधुबन में भेजो। दादी दीदी के नाम से नहीं भेजना, उन्हों को काम बहुत होता है। आफिस में भेजना। और जब भी कोई समाचार का लेटर भेजते हो तो उसमें ऊपर से लिखो - इस डिपार्टमेंट के लिए यह समाचार है। यूथ रिजल्ट। तो पता पड़ेगा कि कहाँ तक प्रैक्टिकल में लाया है। आप लोग करेंगे तो सभी को उमंग आयेगा, उत्साह बढ़ेगा। अच्छी टॉपिक रखी है। कुछ भी हो जाए बाडीकान्सेस में नहीं आना। बापदादा को पसन्द आया। रिपोर्ट अच्छी है। अभी ऐसे ही अपना संगठन अपने-अपने देश में बढ़ाओ। उन्हों को भी उमंग-उत्साह मे लाओ। अगर यूथ आत्म-अभिमानी स्टेज में पक्के पास हो गये तो गवर्मेन्ट भी इनाम देगी, यह प्रेजीडेंट जो है ना, वह इनाम देगा। वह अच्छा है, जानता है। आपको इनाम की कोई आवश्यकता नहीं है लेकिन इससे सेवा होती है। टी.वी. में, रेडियो में आवाज फैलता है ना। ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियां यह प्रतिज्ञा करके प्रैक्टिकल में चल रहे हैं। करेंगे ना, ऐसा शो करेंगे? करेंगे? अच्छा - चलो, बड़े तो बड़े हैं यूथ नम्बरवन हो जायें। बापदादा बहुत-बहुत इनएडवांस हर एक यूथ को दुआयें दे रहे हैं। तो बाप की दुआयें सदा साथ रखना। अच्छा है डबल फायदा लेते हैं, यह बहुत अच्छा है।
सेवा का टर्न गुजरात का है:- गुजरात की सभी टीचर्स खड़ी हो जाओ। टीचर्स ही बहुत हैं। टीचर्स की संख्या सबसे ज्यादा नम्बर-वन कौन सा जोन है? (पहला महाराष्ट्र, सेकण्ड नम्बर गुजरात है) फर्स्ट नम्बर महाराष्ट्र है! महाराष्ट्र में दूसरे भी हैं ना, आन्ध्र प्रदेश भी है। आन्ध्रप्रदेश छोटा नहीं है, काफी बड़ा है तो दोनों मिलाके नम्बरवन हैं और आप एक ही गुजरात के हो। मुबारक हो। इतनी निर्विघ्न सेवा है ना! जितनी टीचर्स हैं, जितने सेवा में नम्बरवन हो, वन हो गया ना। इतना ही निर्विघ्न में भी नम्बरवन। इस वर्ष सेवा का गोल्डन चांस मिला है, आपकी सेवा में नया वर्ष शुरू हो जायेगा। तो यह नवीनता करके गुजरात दिखाना। पूरा साल सारा गुजरात निर्विघ्न, नम्बरवन। हो सकता है? तो बापदादा सभी जोन को आपका एक्जैम्पुल देंगे। बड़ा भी है और निर्विघ्न भी है। दोनों में नम्बरवन। ठीक है? सभी टीचर्स ने हाथ उठाया? फिर से उठाओ। सिर्फ हाथ नहीं उठाना, मन को उड़ाना। हाथ मन सहित है ना! ठीक है? फिर तो मुबारक है। इनएडवांस मुबारक और दुआयें हैं। दादियों की भी दुआयें हैं। देखो जनक बच्ची भी दुआयें दे रही है, बेड पर बैठकर भी दुआयें दे रही है। कमाल दिखाना। कोई भी बात हो समा देना। अन्दर मन में बापदादा को दे करके समा देना। एक - सहनशक्ति, दूसरी - समाने की शक्ति, अगर यह दोनों विशेष शक्तियां आपमें हैं तो पास विद आनर हो जायेंगी। इसको इमर्ज रखना। सहनशक्ति को भी और समाने की शक्ति को भी। ऐसे नहीं समाना जो बीमार हो जाओ, ऐसे नहीं। कई अन्दर समाने की कोशिश करते हैं ना तो बीमार हो जाते हैं, दिमाग खराब हो जाता है। ऐसे नहीं समाना। समाने की शक्ति से समाना। अच्छा है। गुजरात वाले कर सकते हैं। करना ही है। ठीक है ना! क्या, कहो करना ही है। बापदादा भी कहते हैं हुआ ही पड़ा है। अच्छा।
गुजरात के सेवाधारी तो बहुत हैं इसलिए उठाते नहीं हैं, बहुत संख्या है। अच्छा उठने चाहते हैं, चलो उठो। अच्छा, बहुत हैं। (3000 सेवाधारी हैं) देखो गुजरात को सब जोन में से एक वरदान ज्यादा है। कौन सा ज्यादा है? (समीप रहने का) सबसे ज्यादा वरदान एक्स्ट्रा है कि गुजरात की धरनी पर भाग्यविधाता ब्रह्मा बाप की नजर पड़ी। यह गुजरात भाग्य-विधाता ब्रह्मा बाप की नजर से पैदा हुआ है। तो विशेष वरदान है। गुजरात ने आपेही सेन्टर नहीं खोले, बापदादा ने खुलवाये। इसलिए गुजरात को लिफ्ट है। अभी इसी लिफ्ट की गिफ्ट से सहज निर्विघ्न बन जाना। अच्छा। बहुत अच्छी सेवा की। गुजरात की दिल बड़ी है ना तो देखो संगठन भी बड़ा हो गया है। अच्छा।
ज्युरिस्ट विंग:- सभी ने देखा, आपके ब्राह्मण परिवार में एक ही ग्रुप में कितने वकील और जज हैं। देखा? बहुत वकील जज हैं। अभी आप लोगों ने बापदादा की एक आशा पूरी की नहीं है। की है? वकील और जज हैं तो हिलाओ। जनता को थोड़ा हिला के दिखाओ ना। गीता के भगवान पर हिलाके दिखाओ। कोई ऐसा प्लैन नहीं बनाया है। चलो थोड़ा-थोड़ा आवाज तो फैलाओ। इन्डीविज्युअल ट्रायल तो करो हिलाके देखने की। बिचारे इसी एक गलती के कारण परमात्मा के वर्से से वंचित हैं। ऐसे वंचित आत्माओं को वर्सा दिलाने के निमित्त बनो। ठीक है ना! कोई प्लैन बनाओ। थोड़ा-थोड़ा भी रिहर्सल करो, हिलाके देखो क्या कहते हैं! जैसे देखो साइंस और साइलेन्स दोनों का मेल आजकल दुनिया समझती है होना चाहिए। ऐसे मेडीटेशन और मेडीसन इसका भी मेल समझते हैं। ऐसे ज्युरिस्ट क्या सिद्ध करेंगे? बापदादा ने पहले भी कहा है कि हर वर्ग को कुछ ऐसा स्लोगन बनाना चाहिए। जैसे साइंस साइलेन्स, ऐसे कुछ प्रैक्टिकल में स्लोगन बनाओ। याद है - पहले-पहले जब प्रदर्शनी शुरू की थी तब प्रोब रखते थे, प्रोब के रूप में ऐसी प्वाइंटस रखते थे, अभी नहीं रखते हैं लेकिन शुरू-शुरू में प्रोब रखते थे। अभी प्रदर्शनी में नहीं तो इन्डीविज्युअल ही सही। केस के लिए बापदादा नहीं कह रहे हैं, पहले तैयारी तो हो। पहले थोड़ी छेड़छाड़ करो, लोगों को मिलाओ। वह आपकी तरफ से तैयार होवें। अच्छा। तो बापदादा कहते हैं कि आप सेल्फ जज हो, तो ``जज योर सेल्फ'' इस टॉपिक को थोड़ा और आगे बढ़ाओ। जजेस को कहो सेल्फ योर जज बन करके सृष्टि का परिवर्तन करो। वह केस करने वाला जज भी और जज योर सेल्फ भी, दोनों हैं। ऐसे कुछ इन्वेंशन करो, स्लोगन बनाओ जो दो-दो शब्द मिलते हों। ऐसे कुछ टापिक बनाओ। ठीक है थोड़ा ट्रायल करो इन्डिपिडेंट। पहले थोड़ा ग्रुप तैयार करो, पीछे सोचो। रिट्रीट करते हो, इकट्ठे होते हो, कुछ सोचते हो इसकी मुबारक हो। (कानफ्रेंस भी बहुत करते हैं) करो बहुत अच्छा है। माइक कौन से निकले हैं, वह बाप के सामने नहीं आये हैं। माइक माना जिसके आवाज में ताकत हो, माइक उसको कहा जाता है। चाहे प्रेजीडेंट हो, प्राइममिनिस्टर हो लेकिन आवाज में ताकत नहीं तो माइक नहीं। माइक वह जिसकी आवाज में ताकत हो, ऐसा माइक तैयार करो। किसी भी रीति से बेधड़क होके माइक बनके आवाज करे, ऐसे माइक चाहिए। ऐसा माइक नहीं जो अपने ही समाज में करे। माइक तो बड़े आवाज वाला चाहिए। अच्छा।
कलचरल विंग:- कलचरल विंग ने क्या नया प्लैन बनाया? कोई नया प्लैन बनाया? (अभियान निकालने का और कान्फ्रेंस करने का प्लैन बनाया है) यह तो ठीक है, नया क्या बनाया? यह तो अच्छा है भले करो लेकिन कुछ नवीनता करो। (प्रदर्शनी बनाई है, इससे बापदादा की प्रत्यक्षता करेंगे) बापदादा यही चाहते हैं कि हर एक विंग कोई नया प्लैन बनाये, कितने समय से कान्फ्रेन्स की है, कितना टाइम हुआ है कान्फ्रेन्स करते, बहुत साल हो गये और प्रदर्शनी, अभियान यह तो करते रहते हो, अभी कोई नया प्लैन बनाओ। (कलचरल कार्निवल करने का विचार है) बनाओ प्लैन। अच्छा। सभी वर्ग के लिए बापदादा कह रहे हैं कि कोई नया प्लैन बनाओ। यह तो सभी को पता पड़ गया है कि ब्रह्माकुमारियां कानफ्रेन्स करती हैं, अभियान भी निकालती हैं, यह सबको पता पड़ गया है। अभी कोई नया प्लैन ऐसा बनाओ जो सब समझें कि यह देखना जरूरी है क्योंकि आजकल नवीनता को पसन्द करते हैं। तो सोचो, टच हो जायेगा कोई बड़ी बात नहीं है और देखेंगे कौन सा वर्ग नवीनता दिखाता है। नम्बरवन एक तो बनेगा ना। तो करो। अमृतवेले योग के बाद, योग के टाइम नहीं करना लेकिन योग के बाद दिमाग में ताकत होती है उस समय सोचो, तो टचिंग हो जायेगी। बाकी जो किया है उसकी मुबारक है, जो प्लैन बनाया है वह भी करो लेकिन कुछ नया करके दिखाना। सोचो। बहुत अच्छा।
(यू.पी. और राजस्थान में बड़ा मेला करने का उमंग दादी जी को आ रहा है) करना चाहिए क्योंकि राजस्थान और यू.पी. में बहुत समय हुआ है, ऐसा बड़ा प्रोग्राम नहीं हुआ है। अभी राजस्थान का माइक उमंग में है। (वाइसप्रेजीडेंट के लिए) उसका आवाज मदद कर सकता है क्योंकि सीट पर है तो फायदा लेना चाहिए। सीट पर बैठने वाली आत्मा का आवाज थोड़ा बुलन्द होता है, एडवरटा-इज हो जाती है। करना चाहिए, यह संकल्प ठीक है। मदद चाहिए, तो एक दो की मदद ले लो लेकिन करना चाहिए।
(कलकत्ता में बहुत बड़ा प्रोग्राम हुआ, भोपाल में बड़ा मेला होने वाला है) वैसे हर जगह के बड़े प्रोग्राम जो हुए हैं, हर जगह की अपनी-अपनी विशेषता रही है, कहाँ संख्या की, कहाँ प्रोप्रोगण्डा आलराउण्ड हुई है, जैसे दिल्ली में विदेश तक आवाज गया, कलकत्ता में दो लाख हो गये। अलग-अलग विशेषता हुई ना। ऐसे ही गुजरात ने पहला नम्बर लिया, इन्वेंशन की ना। बाम्बे में भी अच्छा आवाज फैला। मद्रास में तो ऐसा तीन दादियों का चित्र बनाया जो सब तरफ चला। (पहले गुजरात ने बनाया था) मद्रास ने थोड़ा अच्छा बनाया, शोभा थी। सभी जगह अच्छा बना। बापदादा तो बच्चों की यूनिटी, एकता और एकाग्रता पर दुआयें देता है। चाहे संख्या कितनी भी आई लेकिन नाम तो हुआ ना। ब्रह्माकुमारियां मैदान में तो आई ना, इसीलिए सभी स्थान की अपनी-अपनी विशेषता रही और सभी ने मिल करके संगठित रूप में किया, इसकी पहला नम्बर मुबारक है। अच्छा। भोपाल भी फंक्शन करने में होशियार है। करेंगे, वह भी कमाल करेंगे क्योंकि भोपाल में आई.पीज का कने-क्शन अच्छा है। काफी आई.पी इनके कनेक्शन में हैं, अभी उन्हों को कार्य में कितना लगाते हैं, वह प्रोग्राम बनाया होगा। बाकी वह भी होशियार हैं, कर लेंगे। अच्छा हो जायेगा।
अच्छा। अभी सभी क्या करेंगे? बापदादा को नये वर्ष की कोई गिफ्ट देंगे या नहीं? नये वर्ष में क्या करते हो? एक दो को गिफ्ट देते हो ना। एक कार्ड देते हैं, एक गिफ्ट देते हैं। तो बापदादा को कार्ड नहीं चाहिए, रिकार्ड चाहिए। सब बच्चों का रिकार्ड नम्बरवन हो, यह रिकार्ड चाहिए। निर्विघ्न हो, अभी यह कोई-कोई विघ्न की बातें सुनते हैं ना, तो बापदादा को एक हंसी का खेल याद आता है। मालूम है कौन सा हंसी का खेल है? वह खेल है - बूढ़े-बूढ़े गुड़ियों का खेल कर रहे हैं। हैं बूढ़े लेकिन खेल करते हैं गुड़ियों का, तो हंसी का खेल है ना। तो अभी जो छोटी-छोटी बातें सुनते हैं, देखते हैं ना तो ऐसे ही लगता है, वानप्रस्थ अवस्था वाले और बातें कितनी छोटी हैं! तो यह रिकार्ड बाप को अच्छा नहीं लगता। इसके बजाए, कार्ड के बजाए रिकार्ड दो - निर्विघ्न, छोटी बातें समाप्त। बड़े को छोटा बनाना सीखो और छोटी को खत्म करना सीखो। बापदादा एक-एक बच्चे का चेहरा, बापदादा का मुखड़ा देखने का दर्पण बनाने चाहते हैं। आपके दर्पण में बापदादा दिखाई दे। तो ऐसा विचित्र दर्पण बापदादा को गिफ्ट में दो। दुनिया में तो ऐसा कोई दर्पण है ही नहीं जिसमें परमात्मा दिखाई दे। तो आप इस नये वर्ष की ऐसी गिफ्ट दो जो विचित्र दर्पण बन जाओ। जो भी देखे, जो भी सुने तो उसको बापदादा ही दिखाई दे, सुनाई दे। बाप का आवाज सुनाई दे। तो सौगात देंगे? देंगे? जो देने का दृढ़ संकल्प करते हैं, वह हाथ उठाओ। दृढ़ संकल्प का हाथ उठाओ। डबल फारेनर्स भी उठा रहे हैं। सिन्धी ग्रुप भी उठा रहा है। सोच के उठा रहे हैं। सिंधी ग्रुप सोच के उठा रहे हो?
सिंधी ग्रुप उठो। तो बापदादा को गिफ्ट देंगे? अगर देंगे तो बड़ा हाथ उठाओ। अच्छा। सभी ने उठाया है। देखना, रिपोर्ट मिल जायेगी। रिपोर्ट मिलेगी ना! आपेही रिपोर्ट लिखना। हर मास में दो अक्षर लिखना - प्रॉमिस ओ.के.। जो प्रॉमिस किया है वह ओ.के. है। कार्ड में ही लिखना, ज्यादा लिफाफा नहीं भेजना, खर्चा नहीं करना, कार्ड में ही भेजना। ठीक है ना। कांध तो हिलाओ। अच्छा है। बापदादा की सिन्धी ग्रुप में उम्मींद है, बतायें कौन सी उम्मींद है? यही उम्मींद है कि सिन्धी ग्रुप में से एक ऐसा माइक निकले जो चैलेन्ज करे कि क्या था और क्या बन गये हैं। जो सिन्धियों को जगावे। बिचारे, बिचारे हैं। पहचानते ही नहीं हैं। देश के अवतार को ही नहीं जानते हैं। तो सिन्धी ग्रुप में ऐसा माइक निकले जो चैलेन्ज से कहे हम सुनाते हैं यथार्थ क्या है। ठीक है? उम्मींद पूरी करेंगे? अभी थोड़े आये हैं लेकिन औरों को उमंग में लाके ऐसे उम्मीदों के सितारे बनो। उम्मींद को पूरा करने वाले सफलता के सितारे बनो। कोई को भी तैयार करो। ठीक है? देखेंगे। बोलो करेंगे? अच्छा है। कुमारियां भी करेंगी। हिम्मत अच्छी है, मुबारक हो। (जुलाई में सिन्धी सम्मेलन करेंगे) माइक तैयार करके दिखाओ कोई सिन्धी। अच्छा है, सिन्धी पार्टी आती है ना तो रौनक हो जाती है।
अच्छा - अभी सभी को याद है - क्या देना है? गिफ्ट और रिकार्ड। वैसे तो अगर दर्पण बन गये तो रिकार्ड आ ही जायेगा। अभी बापदादा मेहनत का पुरूषार्थ देखने नहीं चाहते हैं। अब छोटी-छोटी बातों में मेहनत नहीं, अभी उड़ो। ऊपर ही रहेंगे तो बाकी सब बातें नीचे रह जायेंगी।
अच्छा -मधुबन वाले सब ठीक हैं। चार पांच सब भुजायें हैं? पाण्डव भवन, ज्ञान सरोवर से थोड़े-थोड़े आये हैं। अच्छा - सभी को शान्तिवन, ज्ञान सरोवर, चाहे पाण्डव भवन, चाहे हॉस्पिटल सभी को बापदादा दिल से बहुत-बहुत मुबारक देते हैं। जो भी आते हैं उनकी सेवा अच्छी करते हैं। सेवा करने में नम्बर अच्छा है। और फिर पीछे सुनायेंगे लेकिन सेवा में नम्बर अच्छा है। अथक बनके सेवा करने में एक नेचुरल आदत हो गई है। फिर भी देखो कितनी संख्या है। अभी की संख्या कितनी है? (15-16 हजार आये हैं, सभी मिलकर करीब 18 हजार हाल में बैठे हैं) इतने सबको सम्भाल रहे हैं ना। आये हुए जो भी डबल विदेशी या देश वाले सब ठीक हो? खाना ठीक मिला है, ठीक रहे हुए हो, ठण्डी तो नहीं लगी? कम्बल मिले हैं? मातायें, मातायें सुख से रह रही हैं? मातायें ठीक रही पड़ी हैं?
अच्छा - तो याद रखना, नये वर्ष की नवीनता दिखाना। बाहर भी जो बैठे हैं, वह भी सुन-सुन करके खुश हो रहे हैं। इन्टरनेट पर सुनते ज्यादा हैं, देखने वाले तो थोड़े होंगे, लेकिन सुनने वाले बहुत हैं। तो बापदादा खुश होते हैं कि दूर बैठे भी ऐसे ही लगन से बैठते हैं जैसे सम्मुख बैठे हैं और समय का अन्तर होते भी हिम्मत और उत्साह से बैठते हैं।
बाकी सभी तरफ से कार्ड तो बहुत आये हैं। यहाँ रखे हुए हैं ना! बापदादा ने देखे। तो कार्ड वालों को बापदादा रेसपान्ड में, याद-प्यार दुआओं के साथ कार्ड के बदले रिकार्ड दिखाओ, यह कह रहे हैं। कार्ड भेजने की मुबारक है लेकिन रिकार्ड दिखायेंगे तो बहुत-बहुत-बहुत-बहुत मुबारकें मिलेंगी। खिलौने भी भेजते हैं, पत्र भी भेजते हैं। डबल फारेनर्स की मैजारिटी की एक विशेषता है जो बापदादा को बहुत प्यारी लगती है। जनक बच्ची भी फॉरेन की रिजल्ट सुन रही है, खुश हो रही है। एक विशेषता यह है कि सच बोलते हैं। सच्ची दिल पर साहेब राजी होता है। हिलते भी हैं, झूलते भी हैं लेकिन बोलते सच हैं। और जो सच बोलता है ना उसकी आधी गलती माफ हो जाती है। इसलिए बापदादा को यह विशेषता अच्छी लगती है क्योंकि जो झूठ बोलते हैं ना, तो झूठ ऐसी चीज़ है वो अन्दर खाता जरूर है। जैसे कांटा पांव में चुब जाता है ना तो क्या होता रहता है? अन्दर ही अन्दर काटता रहता है ना। ऐसे झूठ बोलने वाले के अन्दर खुशी कभी नहीं होगी। कोई न कोई प्राबलम ही प्राबलम होगी। इसीलिए स्पष्ट आत्मा बनने से स्पष्टता श्रेष्ठ बना देती है। मदद मिल जाती है, लिफ्ट हो जाती है। तो अपनी विशेषता कभी कम नहीं करना। इस विशेषता की आप लोगों को बहुत मदद है। अच्छा।
चारों ओर के सदा अखण्ड महादानी बच्चों को, चारों ओर के बाप के राइट हैण्ड, आज्ञाकारी भुजाओं को, चारों ओर के सदा सर्व आत्माओं को हिम्मत के पंख लगाने वाले हिम्मतवान आत्माओं को, चारों ओर के सदा बाप समान हर कर्म में फालो करने वाले ब्रह्मा बाप और जगत अम्बा के शिक्षाओं को सदा प्रैक्टिकल जीवन में लाने वाले सर्व बच्चों को बहुत-बहुत यादप्यार, दुआयें और नमस्ते।
रात्रि 12 बजे के बाद प्यारे अव्यक्त बापदादा ने नये वर्ष 2004 की बधाईयां सभी बच्चों को दी
इस समय संगम है, पुराने वर्ष और नये वर्ष का संगम है। इस नये वर्ष और पुराने वर्ष के संगम समय पर बापदादा सभी विश्व के अति प्रिय, अति लाडले, अति सिकीलधे बच्चों को बहुत-बहुत-बहुत दिल की दुआओं सहित यादप्यार दे रहे हैं। मुबारक की बहुत-बहुत थालियां भरकर दे रहे हैं। सारा वर्ष खुश रहना, अपने खुशनसीब भाग्य को सदा स्मृति में रख मास्टर भाग्यविधाता बनना। अभी संगमयुग की यादप्यार। डबल विदेशियों के प्रति और भारत के बच्चों के प्रति डबल गुडनाइट और गुडमार्निग दोनों ही दे रहे हैं। जैसे अभी खुश हो रहे हो ना! तो जब कोई बात ऐसी आवे तो आज के दिन को याद करके खुशी में झूमना। खुशी के झूले में सदा झूलते रहना। कभी दु:ख की लहर नहीं आवे। दु:ख देखने वाले तो दुनिया में अनेक आत्मायें हैं, आप सुख देखने, सुख देने वाले, सुखदाता के बच्चे सुख स्वरूप हो। कभी सुख के झूले में झूलो, कभी प्यार के झूले में झूलो, कभी शान्ति के झूले में झूलो। झूलते ही रहो। नीचे मिट्टी में पांव नहीं रखना। झूलते ही रहना। खुश रहना और सभी को खुश रखना और लोगों को खुशी बांटना। अच्छा।
ओम् शान्ति।
18-01-04 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“वर्ल्ड अथॉरिटी के डायरेक्ट बच्चे हैं - इस स्मृति को इमर्ज रख सर्व शक्तियों को ऑर्डर से चलाओ''
आज चारों ओर स्नेह की लहरों में सभी बच्चे समाये हुए हैं। सभी के दिल में विशेष ब्रह्मा बाप की स्मृति इमर्ज है। अमृतवेले से लेके साकार पालना वाले रत्न और साथ में अलौकिक पालना वाले रत्न दोनों के दिल के यादों की मालायें बापदादा के पास पहुंच गई हैं। सभी के दिल में बापदादा के स्मृति की तस्वीर दिखाई दे रही है। और बाप के दिल में सर्व बच्चों की स्नेह भरी दिल समाई हुई है। सभी के दिल से एक ही स्नेह भरा गीत बज रहा है - ``मेरा बाबा'' और बाप की दिल से यही गीत बज रहा है -``मेरे मीठे-मीठे बच्चे''। यह आटोमेटिक गीत, अनहद गीत कितना प्यारा है। बापदादा चारों ओर के बच्चों को स्नेह भरी स्मृति के रिटर्न में दिल के स्नेह भरी दुआयें पदमगुणा दे रहे हैं।
बापदादा देख रहे हैं अभी भी देश वा विदेश में बच्चे स्नेह के सागर में लवलीन हैं। यह स्मृति दिवस विशेष सभी बच्चों के प्रति समर्थ बनाने का दिवस है। आज का दिन ब्रह्मा बाप द्वारा बच्चों की ताजपोशी का दिन है। ब्रह्मा बाप ने निमित्त बच्चों को विश्व सेवा की जिम्मेवारी का ताज पहनाया। स्वयं अननोन बनें और बच्चों को साकार स्वरूप में निमित्त बनाने का, स्मृति का तिलक दिया। स्वयं समान अव्यक्त फरिश्ते स्वरूप का, प्रकाश का ताज पहनाया। स्वयं करावनहार बन करनहार बच्चों को बनाया। इसलिए इस दिवस को स्मृति दिवस सो समर्थी दिवस कहा जाता है। सिर्फ स्मृति नहीं, स्मृति के साथ-साथ सर्व समार्थियाँ बच्चों को वरदान में प्राप्त हैं। बापदादा सभी बच्चों को सर्व स्मृतियों स्वरूप देख रहे हैं। मास्टर सर्व शक्तिवान स्वरूप में देख रहे हैं। शक्तिवान नहीं, सर्व-शक्तिवान। यह सर्व शक्तियां बाप द्वारा हर एक बच्चे को वरदान में मिली हुई हैं। दिव्य जन्म लेते ही बापदादा ने वरदान दिया - सर्वशक्तिवान भव! यह हर जन्म दिवस का वरदान है। इन शक्तियों को प्राप्त वरदान के रूप से कार्य में लगाओ। हर एक बच्चे को मिली हैं लेकिन कार्य में लगाने में नम्बरवार हो जाते हैं। हर शक्ति के वरदान को समय प्रमाण आर्डर कर सकते हो। अगर वरदाता के वरदान के स्मृति स्वरूप बन समय अनुसार किसी भी शक्ति को आर्डर करेंगे तो हर शक्ति हाजर होनी ही है। वरदान की प्राप्ति के, मालिकपन के स्मृति स्वरूप में हो आप आर्डर करो और शक्ति समय पर कार्य में नहीं आये, हो नहीं सकता। लेकिन मालिक, मास्टर सर्वशक्तिवान के स्मृति की सीट पर सेट हो, बिना सीट पर सेट के कोई आर्डर नहीं माना जाता है। जब बच्चे कहते हैं कि बाबा हम आपको याद करते तो आप हाजर हो जाते हो, हजूर हाजर हो जाता है। जब हजूर हाजर हो सकता तो शक्ति क्यों नहीं हाजर होगी! सिर्फ विधि पूर्वक मालिकपन के अथॉरिटी से आर्डर करो। यह सर्व शक्तियां संगमयुग की विशेष परमात्म प्रॉपर्टी है। प्रॉपर्टी किसके लिए होती है? बच्चों के लिए प्रॉपर्टी होती है। तो अधिकार से स्मृति स्वरूप की सीट से आर्डर करो, मेह-नत क्यों करो, आर्डर करो। वर्ल्ड अथॉरिटी के डायरेक्ट बच्चे हो, यह स्मृति का नशा सदा इमर्ज रहे।
अपने आपको चेक करो - वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी की अधिकारी आत्मा हूँ, यह स्मृति स्वत: ही रहती है? रहती है या कभी-कभी रहती है? आजकल के समय में तो अधिकार लेने के ही झगड़े हैं और आप सबको परमात्म अधिकार, परमात्म अथॉरिटी जन्म से ही प्राप्त है। तो अपने अधिकार की समर्थी में रहो। स्वयं भी समर्थ रहो और सर्व आत्माओं को भी समर्थी दिलाओ। सर्व आत्मायें इस समय समर्थी अर्थात् शक्तियों की भिखारी हैं, आपके जड़ चित्रों के आगे मांगते रहते हैं। तो बाप कहते हैं ``हे समर्थ आत्मायें सर्व आत्माओं को शक्ति दो, समर्थी दो।'' इसके लिए सिर्फ एक बात का अटेन्शन हर बच्चे को रखना आवश्यक है - जो बापदादा ने इशारा भी दिया, बापदादा ने रिजल्ट में देखा कि मैजारिटी बच्चों का संकल्प और समय व्यर्थ जाता है। जैसे बिजली का कनेक्शन अगर थोड़ा भी लूज हो वा लीक हो जाए तो लाइट ठीक नहीं आ सकती। तो यह व्यर्थ की लीकेज समर्थ स्थिति को सदाकाल की स्मृति बनाने नहीं देती, इसलिए वेस्ट को बेस्ट में चेन्ज करो। बचत की स्कीम बनाओ। परसेन्टेज निकालो - सारे दिन में वेस्ट कितना हुआ, बेस्ट कितना हुआ? अगर मानो 40 परसेन्ट वेस्ट है, 20 परसेन्ट वेस्ट है तो उसको बचाओ। ऐसे नहीं समझो थोड़ा सा ही तो वेस्ट जाता है, बाकी तो सारा दिन ठीक रहता है। लेकिन यह वेस्ट की आदत बहुत समय की आदत होने के कारण लास्ट घड़ी में धोखा दे सकती है। नम्बरवार बना देगी, नम्बरवन नहीं बनने देगी। जैसे ब्रह्मा बाप ने आदि में अपनी चेकिंग के कारण रोज रात को दरबार लगाई। किसकी दरबार? बच्चों की नहीं, अपनी ही कर्मेन्द्रियों की दरबार लगाई। आर्डर चलाया - हे मन मुख्य मंत्री यह तुम्हारी चलन अच्छी नहीं, आर्डर में चलो। हे संस्कार आर्डर में चलो। क्यों नीचे ऊपर हुआ, कारण बताओ, निवारण करो। हर रोज आफीशल दरबार लगाई। ऐसे रोज अपनी स्वराज्य दरबार लगाओ। कई बच्चे बापदादा से मीठी-मीठी रूहरिहान करते हैं। पर्सनल रूहरिहान करते हैं, बतायें। कहते हैं हमको अपने भविष्य का चित्र बताओ, हम क्या बनेंगे? जैसे आदि रत्नों को याद होगा कि जगत अम्बा माँ से सभी बच्चे अपना चित्र मांगते थे, मम्मा आप हमको चित्र दो हम कैसे हैं। तो बापदादा से भी रूहरिहान करते अपना चित्र मांगते हैं। आप सबकी भी दिल तो होती होगी कि हमको भी चित्र मिल जाए तो अच्छा है। लेकिन बापदादा कहते हैं - बापदादा ने हर एक बच्चे को एक विचित्र दर्पण दिया है, वह दर्पण कौन सा है? वर्तमान समय आप स्वराज्य अधिकारी हो ना! हो? स्वराज्य अधिकारी हो? हो तो हाथ उठाओ। स्व-राज्य, अधिकारी हो? अच्छा। कोई-कोई नहीं उठा रहे हैं। थोड़ा-थोड़ा हैं क्या? अच्छा। सभी स्वराज्य अधिकारी हो, मुबारक हो। तो स्वराज्य अधिकार का चार्ट आपके लिए भविष्य पद की शक्ल दिखाने का दर्पण है। यह दर्पण सबको मिला हुआ है ना? क्लीयर है ना? कोई ऐसे काले दाग तो नहीं लगे हुए हैं ना! अच्छा, काले दाग तो नहीं होंगे, लेकिन कभी-कभी जैसे गर्म पानी होता है ना, वह कोहरे के मुआफिक आइने पर आ जाता है। जैसे फागी होती है ना, तो आइने पर ऐसा हो जाता है जो आइना क्लीयर नहीं दिखाता है। नहाने के समय तो सबको अनुभव होगा। तो ऐसा अगर कोई एक भी कर्मेन्द्रिय अभी तक भी आपके पूरे कन्ट्रोल में नहीं है, है कन्ट्रोल में लेकिन कभी-कभी नहीं भी है। अगर मानों कोई भी कर्मेन्द्रिय, चाहे ऑख हो, चाहे मुख हो, चाहे कान हो, चाहे पाँव हो, पाँव भी कभी-कभी बुरे संग के तरफ चला जाता है। तो पाँव भी कन्ट्रोल में नहीं हुआ ना। संगठन में बैठ जायेंगे, रामायण और भागवत की उल्टी कथायें सुनेंगे, सुल्टी नहीं। तो कोई भी कर्मेन्द्रिय संकल्प, समय सहित अगर कन्ट्रोल में नहीं है तो इससे ही चेक करो जब स्वराज्य में कन्ट्रोलिंग पावर नहीं है तो विश्व के राज्य में कन्ट्रोल क्या करेंगे! तो राजा कैसे बनेंगे? वहाँ तो सब एक्यूरेट है। कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर सब स्वत: ही संग-मयुग के पुरूषार्थ की प्रालब्ध के रूप में है। तो संगमयुग अर्थात् वर्तमान समय अगर कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर कम है, तो पुरू-षार्थ कम तो प्रालब्ध क्या होगी? हिसाब करने में तो होशियार हो ना! तो इस आइने में अपना फेस देखो, अपनी शक्ल देखो। राजा की आती है, रॉयल फैमिली की आती है, रॉयल प्रजा की आती है, साधारण प्रजा की आती है, कौन सी शक्ल आती है? तो मिला चित्र? इस चित्र से चेक करना। हर रोज चेक करना क्योंकि बहुतकाल के पुरूषार्थ से, बहुतकाल के राज्य भाग्य की प्राप्ति है। अगर आप सोचो कि अन्त के समय बेहद का वैराग्य तो आ ही जायेगा, लेकिन अन्त समय आयेगा तो बहुतकाल हुआ या थोड़ा काल हुआ? बहुतकाल तो नहीं कहेंगे ना! तो 21 जन्म पूरा ही राज्य अधिकारी बनें, तख्त पर भले नहीं बैठें, लेकिन राज्य अधि-कारी हों। यह बहुतकाल (पुरूषार्थ का), बहुतकाल की प्रालब्ध का कनेक्शन है। इसीलिए अलबेले नहीं बनना, अभी तो विनाश की डेट फिक्स ही नहीं है, पता ही नहीं। 8 वर्ष होगा, 10 वर्ष होगा, पता तो है ही नहीं। तो आने वाले समय में हो जायेंगे, नहीं। विश्व के अन्तकाल सोचने के पहले अपने जन्म का अन्तकाल सोचो, आपके पास डेट फिक्स है, किसके पास पता है कि इस डेट पर मेरा मृत्यु होना है? है किसके पास? नहीं है ना! विश्व का अन्त तो होना ही है, समय पर होगा ही लेकिन पहले अपनी अन्तकाल सोचो और जगदम्बा का स्लोगन याद करो - क्या स्लोगन था? हर घड़ी अपनी अन्तिम घड़ी समझो। अचानक होना है। डेट नहीं बताई जायेगी। ना विश्व की, ना आपके अन्तिम घड़ी की। सब अचानक का खेल है। इसलिए दरबार लगाओ, हे राजे, स्वराज्य अधिकारी राजे अपनी दरबार लगाओ। आर्डर में चलाओ क्योंकि भविष्य का गायन है, लॉ एण्ड आर्डर होगा। स्वत: ही होगा। लव और लॉ दोनों का ही बैलेन्स होगा। नेचरल होगा। राजा कोई लॉ पास नहीं करेगा कि यह लॉ है। जैसे आजकल लॉ बनाते रहते हैं। आजकल तो पुलिस वाला भी लॉ उठा लेता है। लेकिन वहाँ नेचरल लव और लॉ का बैलेन्स होगा।
तो अभी आलमाइटी अथॉरिटी की सीट पर सेट रहो। तो यह कर्मेन्द्रियां, शक्तियां, गुण सब आपके जी हजूर, जी हजूर करेंगे। धोखा नहीं देंगे। जी हाजिर। तो अभी क्या करेंगे? दूसरे स्मृति दिवस पर कौन सा समारोह मनायेंगे? यह हर एक जोन तो समारोह मनाते हैं ना। सम्मान समारोह भी बहुत मना लिये। अब सदा हर संकल्प और समय के सफलता की सेरीमनी मनाओ। यह समारोह मनाओ। वेस्ट खत्म क्योंकि आपके सफलतामूर्त बनने से आत्माओं को तृप्ति की सफलता प्राप्त होगी। निराशा से चारों ओर शुभ आशाओं के दीप जगेंगे। कोई भी सफलता होती है तो दीपक तो जगाते हैं ना! अब विश्व में आशाओं के दीप जगाओ। हर आत्मा के अन्दर कोई न कोई निराशा है ही, निराशाओं के कारण परेशान हैं, टेन्शन में हैं। तो हे अविनाशी दीपकों अब आशाओं के दीपकों की दीवाली मनाओ। पहले स्व फिर सर्व। सुना!
बाकी बापदादा बच्चों के स्नेह को देख खुश हैं। स्नेह की सबजेक्ट में परसेन्टेज अच्छी है। आप इतनी मेहनत करके यहाँ क्यों पहुंचे हो, आपको कौन लाया? ट्रेन लाई, प्लेन लाया या स्नेह लाया? स्नेह के प्लेन से पहुंच गये हो। तो स्नेह में तो पास हो। अभी आल-माइटी अथॉरिटी में मास्टर हैं, इसमें पास होना, तो यह प्रकृति, यह माया, यह संस्कार, सब आपके दासी बन जायेंगे। हर घड़ी इन्त-जार करेंगे मालिक क्या आर्डर है! ब्रह्मा बाप ने भी मालिक बन अन्दर ही अन्दर ऐसा सूक्ष्म पुरूषार्थ किया जो आपको पता पड़ा, सम्पन्न कैसे बन गया? पंछी उड़ गया। पिंजड़ा खुल गया। साकार दुनिया के हिसाब-किताब का, साकार के तन का पिंजड़ा खुल गया, पंछी उड़ गया। अभी ब्रह्मा बाप भी बहुत सिक व प्रेम से बच्चों का जल्दी आओ, जल्दी आओ, अभी आओ, अभी आओ, यह आह्वान कर रहे हैं। तो पंख तो मिल गये हैं ना! बस सभी एक सेकण्ड में अपने दिल में यह ड्रिल करो, अभी-अभी करो। सब संकल्प समाप्त करो, यही ड्रिल करो ``ओ बाबा मीठे बाबा, प्यारे बाबा हम आपके समान अव्यक्त रूपधारी बनें कि बनें।'' (बापदादा ने ड्रिल कराई)
अच्छा - चारों ओर के स्नेही सो समर्थ बच्चों को, चारों ओर के स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी बच्चों को, चारों ओर के मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी के सीट पर सेट रहने वाले तीव्र पुरूषार्थी बच्चों को, सदा मालिक बन प्रकृति को, संस्कार को, शक्तियों को, गुणों को आर्डर करने वाले विश्व राज्य अधिकारी बच्चों को, बाप समान सम्पूर्णता को, सम्पन्नता को समीप लाने वाले देश विदेश के हर स्थान के कोने-कोने के बच्चों को समर्थ दिवस का, बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
अभी-अभी बापदादा को विशेष कौन याद आ रहा है? जनक बच्ची। खास सन्देश भेजा था कि मैं सभा में हाजिर अवश्य हूंगी। तो चाहे लण्डन, चाहे अमेरिका, चाहे आस्ट्रेलिया, चाहे अफ्रीका, चाहे एशिया और सर्व भारत के हर देश के बच्चों को एक-एक को नाम और विशेषता सहित यादप्यार। आपको तो सम्मुख यादप्यार मिल रहा है ना! अच्छा।
सेवा का टर्न महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश का है:- (5000 आये हैं) अच्छा - महाराष्ट्र अर्थात् सर्व से महान। जैसे देश महान है वैसे आत्मायें भी महान हैं। बापदादा हर बच्चे को महान रूप में ही देखते हैं। सेवा का फल भी मिला, पुण्य जमा हुआ और बल भी मिला। इतने ब्राह्मण आत्माओं का साथ मिला। एक दो को देख-देख हर्षित हुए। एक दो के स्नेह का बल कम नहीं है। तो फल भी मिला, बल भी मिला। अच्छा पार्ट बजाया। बापदादा तो सदा अच्छा, अच्छा, अच्छा कहते आगे उड़ाते ही रहते हैं। तो सेवा का चांस अच्छा लगा ना। बहुत अच्छा लगा। समीप आने का चांस है। सेवा का प्रत्यक्ष मेवा मिलता है। अच्छा है। अभी कोई महान कर्तव्य भी करके दिखायेंगे ना! महाराष्ट्र है तो महान कर्तव्य के निमित्त भी बनेंगे। सेवा बहुत अच्छी करो लेकिन सेवा और स्व दोनों कम्बा-इन्ड हों। जैसे बापदादा कम्बाइण्ड है ना। आत्मा और शरीर कम्बाइण्ड है ना! ऐसे स्व स्थिति और सेवा दोनों कम्बाइण्ड। परसेन्टेज में कोई कमी नहीं हो। कभी सेवा की परसेन्टेज ज्यादा, कभी स्व की परसेन्टेज ज्यादा, नहीं, सदा बैलेन्स। तो आपके बैलेन्स द्वारा विश्व की आत्माओं को ब्लैसिंग मिलती रहेगी। तो अभी विश्व की आत्माओं को ब्लैसिंग चाहिए। मेहनत नहीं चाहिए, ब्लैसिंग चाहिए। तो आपका बैलेन्स स्वत: ही ब्लैसिंग दिलायेगी। अच्छा।
आज मधुबन वालों को भी याद किया। यह आगे-आगे बैठते हैं ना। हाथ उठाओ मधुबन वाले। मधुबन की सभी भुजायें। मधुबन वालों को विशेष त्याग का भाग्य सूक्ष्म में तो प्राप्त होता है क्योंकि रहते पाण्डव भवन में, मधुबन में, शान्तिवन में हैं लेकिन मिलने वालों को चांस मिलता है, मधुबन साक्षी होके देखता रहता है। लेकिन दिल पर सदा मधुबन वाले याद हैं। आज आपका ग्रुप (गोलक भाई को) टोली लेने आना। मेहनत करते हैं ना! सभी मधुबन वाले सभी भुजाओं सहित मेहनत बहुत अच्छी करते हैं। मेह-नत में मार्क्स बहुत अच्छी हैं। अभी नम्बरवन बनने में मार्क्स लेंगे। मधुबन के रहने वालों में एक-एक नम्बरवन महान हैं, यह नारा लगायें। मधुबन से वेस्ट का नाम-निशान समाप्त हो। सेवा में, स्थिति में सबमें महान। ठीक है ना! मधुबन वालों को भूलते नहीं हैं लेकिन मधुबन को त्याग का चांस देते हैं। ऐसे तो सभी, सब जोन वाले बहुत सेवा में आगे बढ़ रहे हैं। सबने प्रोग्राम किये बहुत अच्छे किये, भोपाल ने भी अच्छा किया। हर एक स्थान की विशेषता अपनी-अपनी है। देखो भोपाल वालों को प्रकृति ने कितना सहयोग दिया। एक दिन बारिश, हवा, ठण्डी रूकी रही, आपका कार्य सम्पन्न हुआ और शुरू हो गया। तो प्रकृति ने सहयोग दिया। ऐसे ही प्रकृतिजीत बनना ही है, मायाजीत बनना ही है। आप नहीं बनेंगे तो और कौन बनेगा। तो बनना ही है। अच्छा।
दादी जी से:- बहुत मेहनत करती हैं, थक जाती हैं। अच्छा, बहुत अच्छा। आदि रत्नों से श्रंगार है। आदि रत्नों को देख बापदादा को खुशी होती है। अच्छा।
दादा नारायण से:- सब ठीक है। याद और मन्सा सेवा करते चलो, इसी कार्य में बिजी रहो। बाबा भूल नहीं सकता। खुश रहना। खुशी कभी नहीं गंवाना।
एकाउन्ट ग्रुप से:- सभी जो भी सेवायें कर रहे हो, वह अपनी समझकर बहुत अच्छी कर रहे हो। इसकी मुबारक हो। सिर्फ सेवा करते डबल लाइट रहना। कोई भी बोझ अपने ऊपर नहीं रखना। जैसे ब्रह्मा बाप के पास कितनी जिम्मेवारियां थी, फिर भी डबल लाइट रहा, ऐसे फालो फादर। कोई भी बोझ हो, बाप को देकर हल्के हो जाना, बाप आये ही हैं बोझ लेने के लिए, तो बोझ देना आता है ना। तो बोझ देकर डबल लाइट बन उड़ते रहना। अच्छा।
ओम् शान्ति।
02-02-04 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“पूर्वज और पूज्य के स्वमान में रह विश्व की हर आत्मा की पालना करो, दुआयें दो, दुआयें लो”
आज चारों ओर के सर्वश्रेष्ठ बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा पूर्वज भी है और पूज्य भी है। इसलिए इस कल्पवृक्ष के आप सभी जड़ हैं, तना भी हैं। तना का कनेक्शन सारे वृक्ष के टाल टालियों से, पत्तों से स्वत: ही होता है। तो सभी अपने को ऐसी श्रेष्ठ आत्मा सारे वृक्ष के पूर्वज समझते हो? जैसे ब्रह्मा को ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर कहा जाता है, उनके साथी आप भी मास्टर ग्रेट ग्रैण्ड फादर हो। पूर्वज आत्माओं का कितना स्वमान है! उस नशे में रहते हो? सारे विश्व की आत्माओं से चाहे किसी भी धर्म की आत्मायें हैं लेकिन सर्व आत्माओं के आप तना के रूप में आधारमूर्त पूर्वज हो। इसीलिए पूर्वज होने के कारण पूज्य भी हो। पूर्वज द्वारा हर आत्मा को सकाश स्वत: ही मिलती रहती है। झाड़ को देखो, तना द्वारा, जड़ द्वारा लास्ट पत्ते को भी सकाश मिलती रहती है। पूर्वज का कार्य क्या होता है? पूर्वजों का कार्य है सर्व की पालना करना। लौकिक में भी देखो पूर्वजों द्वारा ही चाहे शारीरिक शक्ति की पालना, स्थूल भोजन द्वारा वा पढ़ाई द्वारा शक्ति भरने की पालना होती है। तो आप पूर्वज आत्माओं की पालना, बापद्वारा मिली हुई शक्तियों से सर्व आत्माओं की पालना करना है।
आज के समय अनुसार सर्व आत्माओं को शक्तियों द्वारा पालना की आवश्यकता है। जानते हो आजकल आत्माओं में अशान्ति और दु:ख की लहर छाई हुई है। तो आप पूर्वज और पूज्य आत्माओं को अपने वंशावली के ऊपर रहम आता है? जैसे जब कोई विशेष अशान्ति का वायुमण्डल होता है तो विशेष रूप से मिलेट्री या पुलिस अलर्ट हो जाती है। ऐसे ही आजकल के वातावरण में आप पूर्वज भी विशेष सेवा के अर्थ स्वयं को निमित्त समझते हो! सारे विश्व की आत्माओं के निमित्त हैं, यह स्मृति रहती है? सारे विश्व की आत्माओं को आज आपके सकाश की आवश्यकता है। ऐसे बेहद के विश्व की पूर्वज आत्मा अपने को अनुभव करते हो? विश्व की सेवा याद आती है वा अपने सेन्टर्स की सेवा याद आती है? आज आत्मायें आप पूर्वज देव आत्माओं को पुकार रही हैं। हर एक अपने-अपने भिन्न-भिन्न देवियां वा देवताओं को पुकार रहे हैं - आओ, क्षमा करो, कृपा करो। तो भक्तों का आवाज सुनने आता है? आता है सुनने या नहीं? कोई भी धर्म की आत्मायें हैं, जब उनसे मिलते हो तो अपने को सर्व आत्माओं के पूर्वज समझकर मिलते हो? ऐसे अनुभव होता है कि यह भी हम पूर्वज की ही टाल-टालियां हैं! इन्हों को भी सकाश देने वाले आप पूर्वज हो। अपने कल्प वृक्ष का चित्र सामने लाओ, अपने को देखो आपका स्थान कहाँ है! जड़ में भी आप हो, तना भी आप हो। साथ में परमधाम में भी देखो आप पूर्वज आत्माओं का स्थान बाप के साथ समीप का है। जानते हो ना! इसी नशे से कोई भी आत्मा से मिलते हो तो हर धर्म की आत्मा आपको यह हमारे हैं, अपने हैं, उस दृष्टि से देखते हैं। अगर उस पूर्वज के नशे से, स्मृति से, वृत्ति से, दृष्टि से मिलते हो, तो उन्हों को भी अपनेपन का आभास होता है क्योंकि आप सर्व के पूर्वज हो, सबके हो। ऐसी स्मृति से सेवा करने से हर आत्मा अनुभव करेगी कि यह हमारे ही पूर्वज वा ईष्ट फिर से हमें मिल गये। फिर पूज्य भी देखो कितनी बड़ी पूजा है, कोई भी धर्मात्मा, महात्मा की ऐसी आप देवी-देवताओं के समान विधि-पूर्वक पूजा नहीं होती। पूज्य बनते हैं लेकिन तुम्हारे जैसी विधि-पूर्वक पूजा नहीं होती। गायन भी देखो कितना विधि-पूर्वक कीर्तन करते हैं, आरती करते हैं। ऐसे पूज्य आप पूर्वज ही बनते हो। तो अपने को ऐसे समझते हो? ऐसा नशा है? है नशा? जो समझते हैं हम पूर्वज आत्मायें हैं, यह नशा रहता है, यह स्मृति रहती है वह हाथ उठाओ। रहती है? अच्छा। रहती है वह तो हाथ उठाया? बहुत अच्छा। अभी दूसरा क्वेश्चन कौन सा होता है? सदा रहता है?
बापदादा सभी बच्चों को हर प्राप्ति में अविनाशी देखने चाहते हैं। कभी-कभी नहीं। क्यों? जवाब बहुत चतुराई से देते हैं, क्या कहते हैं? रहते तो हैं..., अच्छा रहते हैं। फिर धीरे से कहते हैं थोड़ा कभी-कभी हो जाता है। देखो बाप भी अविनाशी, आप आत्मायें भी अविनाशी हो ना! प्राप्तियां भी अविनाशी, ज्ञान अविनाशी द्वारा अविनाशी ज्ञान है। तो धारणा भी क्या होनी चाहिए? अविनाशी होनी चाहिए या कभी-कभी?
बापदादा अभी सभी बच्चों को समय के सरकमस्टांश अनुसार बेहद की सेवा में सदा बिजी देखने चाहते हैं क्योंकि सेवा में बिजी रहने के कारण अनेक प्रकार की हलचल से बच जाते हैं। लेकिन जब भी सेवा करते हो, प्लैन बनाते हो और प्लैन अनुसार प्रैक्टि-कल में भी आते हो, सफलता भी प्राप्त करते हो। लेकिन बापदादा चाहते हैं कि एक समय पर तीनों सेवा इकट्ठी हो, सिर्फ वाचा नहीं हो, मन्सा भी हो, वाचा भी हो और कर्मणा अर्थात् सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हुए भी सेवा हो। सेवा का भाव, सेवा की भावना हो। इस समय वाचा के सेवा की परसेन्टेज ज्यादा है, मन्सा है लेकिन वाचा की परसेन्टेज ज्यादा है। एक ही समय पर तीनों सेवा साथ-साथ होने से सेवा में सफलता और ज्यादा होगी।
बापदादा ने समाचार सुना है कि इस ग्रुप में भी भिन्न-भिन्न वर्ग वाले आये हुए हैं और सेवा के प्लैन अच्छे बना रहे हैं। अच्छा कर रहे हैं, लेकिन तीनों सेवा इकट्ठी होने से सेवा की स्पीड और वृद्धि को प्राप्त होगी। सभी चारों ओर से बच्चे पहुंच गये हैं, यह देख बापदादा को भी खुशी होती है। नये-नये बच्चे उमंग-उत्साह से पहुंच जाते हैं।
अभी बापदादा सभी बच्चों को सदा निर्विघ्न स्वरूप में देखने चाहते हैं, क्यों? जब आप निमित्त बने हुए निर्विघ्न स्थिति में स्थित रहो तब विश्व की आत्माओं को सर्व समस्याओं से निर्विघ्न बना सको। इसके लिए विशेष दो बातों पर अण्डरलाइन करो। करते भी हो लेकिन और अण्डरलाइन करो। एक तो हर एक आत्मा को अपने आत्मिक दृष्टि से देखो। आत्मा के ओरीज्नल संस्कार के स्वरूप में देखो। चाहे कैसे भी संस्कार वाली आत्मा है लेकिन आपकी हर आत्मा के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना, परिवर्तन की श्रेष्ठ भावना, उनके संस्कार को थोड़े समय के लिए परिवर्तन कर सकती है। आत्मिक भाव इमर्ज करो। जैसे शुरू-शुरू में देखा तो संगठन में रहते आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति, आत्मा-आत्मा से मिल रही है, बात कर रही है, इस दृष्टि से फाउण्डेशन कितना पक्का हो गया। अभी सेवा के विस्तार में, सेवा के विस्तार के सम्बन्ध में आत्मिक भाव से चलना, बोलना, सम्पर्क में आना मर्ज हो गया है। खत्म नहीं हुआ है लेकिन मर्ज हो गया है। आत्मिक स्वमान, आत्मा को सहज सफलता दिलाता है क्योंकि आप सभी कौन आकर इकट्ठे हुए हो? वही कल्प पहले वाले देव आत्मायें, ब्राह्मण आत्मायें इकट्ठे हुए हो। ब्राह्मण आत्मा के रूप में भी सभी श्रेष्ठ आत्मायें हो, देव आत्माओं के हिसाब से भी श्रेष्ठ आत्मायें हो। उसी स्वरूप से सम्बन्ध-सम्पर्क में आओ। हर समय चेक करो - मुझ देव आत्मा, ब्राह्मण आत्मा का श्रेष्ठ कर्तव्य, श्रेष्ठ सेवा क्या है? ``दुआओं देना और दुआयें लेना।'' आपके जड़ चित्र क्या सेवा करते हैं? कैसी भी आत्मा हो लेकिन दुआयें लेने जाते, दुआयें लेकर आते। और कोई भी अगर पुरूषार्थ में मेहनत समझते हैं तो सबसे सहज पुरूषार्थ है, सारा दिन दृष्टि, वृत्ति, बोल, भावना सबसे दुआयें दो, दुआयें लो। आपका टाइटल है, वरदान ही है महा-दानी, सेवा करते, कार्य में सम्बन्ध-सम्पर्क में आते सिर्फ यही कार्य करो - दुआयें दो और दुआयें लो। यह मुश्किल है क्या? कि सहज है? जो समझते हैं सहज है, वह हाथ उठाओ। कोई आपका आपोजीशन करे तो? तो भी दुआ देंगे? देंगे? इतनी दुआओं का स्टॉक है आपके पास? आपोजीशन तो होगी क्योंकि आपोजीशन ही पोजीशन तक पहुंचाती है। देखो, सबसे ज्यादा आपोजीशन ब्रह्मा बाप की हुई। हुई ना? और पोजीशन किसने नम्बरवन पाई? ब्रह्मा ने पाई ना! कुछ भी हो लेकिन मुझे ब्रह्मा बाप समान दुआयें देनी हैं। क्या ब्रह्मा बाप के आगे व्यर्थ बोलने, व्यर्थ करने वाले नहीं थे? लेकिन ब्रह्मा बाप ने दुआयें दी, दुआयें ली, समाने की शक्ति रखी। बच्चा है, बदल जायेगा। ऐसे ही आप भी यही वृत्ति दृष्टि रखो - यह कल्प पहले वाले हमारे ही परिवार के, ब्राह्मण परिवार के हैं। मुझे बदल इसको भी बदलना है। यह बदले तो मैं बदलूं, नहीं। मुझे बदलके बदलना है, मेरी जिम्मेवारी है। तब दुआ निकलेगी और दुआ मिलेगी।
अभी समय जल्दी से परिवर्तन की ओर जा रहा है, अति में जा रहा है लेकिन समय परिवर्तन के पहले आप विश्व परिवर्तक श्रेष्ठ आत्मायें स्व परिवर्तन द्वारा सर्व के परिवर्तन के आधारमूर्त बनो। आप भी विश्व के आधारमूर्त, उद्धारमूर्त हो। हर एक आत्मा लक्ष्य रखो - मुझे निमित्त बनना है। सिर्फ तीन बातों का स्व में संकल्प मात्र भी न हो, यह परिवर्तन करो। एक - परचिन्तन। दूसरा - परदर्शन। स्वदर्शन के बजाए परदर्शन नहीं। तीसरा - परमत या परसंग, कुसंग। श्रेष्ठ संग करो क्योंकि संगदोष बहुत नुक-सान करता है। पहले भी बापदादा ने कहा था - एक पर-उपकारी बनो और यह तीन पर काट दो। पर दर्शन, पर चिंतन, परमत अर्थात् कुसंग, पर का फालतू संग। पर-उपकारी बनो तब ही दुआयें मिलेंगी और दुआयें देंगे। कोई कुछ भी दे लेकिन आप दुआयें दो। इतनी हिम्मत है? है हिम्मत? तो बापदादा चारों ओर के सर्व सेन्टर्स वाले बच्चों को कहते हैं - अगर आप सब बच्चों ने हिम्मत रखी, कोई कुछ भी दे लेकिन हमें दुआयें देनी हैं, तो बापदादा इस वर्ष एकस्ट्रा आपको हिम्मत के, उमंग के कारण मदद देंगे। एकस्ट्रा मदद देंगे। लेकिन दुआयें देंगे तो। मिक्स नहीं करना। बापदादा के पास तो सारा रिकार्ड आता है ना! संकल्प में भी दुआओं के बदले और कुछ न हो। हिम्मत है? है तो हाथ उठाओ। करना पड़ेगा। सिर्फ हाथ नहीं उठाना। करना पड़ेगा। करेंगे? मधुबन वाले, टीचर्स करेंगे? अच्छा, एक्स्ट्रा मार्क्स जमा करेंगे? मुबारक हो। क्यों? बापदादा के पास एडवांस पार्टी बार-बार आती है। वह कहती है कि हमें तो एडवांस पार्टी का पार्ट दिया, वह बजा रहे हैं लेकिन हमारे साथी एडवांस स्टेज क्यों नहीं बनाते? अभी उत्तर क्या दें? क्या उत्तर दें? एडवांस स्टेज और एडवांस पार्टी का पार्ट, जब दोनों मिलें तब तो समाप्ति होगी। तो वह पूछते हैं तो क्या जवाब दें? कितने साल में बनेंगी? सब मना लिया, सिल्वर जुबली, गोल्डन जुबली, डायमण्ड जुबली सब मना लिया। अभी एड-वांस स्टेज सेरीमनी मनाओ। उसकी डेट फिक्स करो। पाण्डव बताओ, डेट होगी उसकी? पहली लाइन वाले बोलो। डेट फिक्स होगी कि अचानक होगा? क्या होगा? अचानक होगा कि हो जायेगा? बोलो, कुछ बोलो। सोच रहे हैं क्या? निवzर से पूछ रहे हैं? सेरीमनी होगी या अचानक होगा? आप दादी से पूछ रहे हो? यह दादी को देख रहा है कि दादी कुछ बोले। आप बताओ, रमेश को कहते हैं बताओ? (आखिर तो यह होना ही है) आखिर भी कब? (आप डेट बताओ, उस डेट तक कर लेंगे) अच्छा - बापदादा ने एक साल की एक्स्ट्रा डेट दी है। हिम्मत से एक्स्ट्रा मदद मिलेगी। यह तो कर सकते हैं ना, यह करके दिखाओ फिर बाप डेट फिक्स करेगा। (आपका डायरेक्शन चाहिए तो इस 2004 को ऐसा मना लेंगे) मतलब यह है कि अभी इतनी तैयारी नहीं है। तो एडवांस पार्टी को अभी एक वर्ष तो रहना पड़ेगा ना। अच्छा। क्योंकि अभी से लक्ष्य रखेंगे - करना ही है, तो बहुतकाल एड हो जायेगा क्योंकि बहुतकाल का भी हिसाब है ना! अगर अन्त में करेंगे तो बहुतकाल का हिसाब ठीक नहीं होगा। इसलिए अभी से अटेन्शन प्लीज। अच्छा - अभी सभी वर्ग वाले कहेंगे कि हमको भी सुनना है।
अच्छा जो भी वर्ग वाले आये हैं, जिन्होंने भी मीटिंग की है, सभी उठो। अच्छा। यह टीचर्स भी आये हैं। सभी इकट्ठे होकर बैठे हो बहुत अच्छा किया। ग्राम वाले हाथ उठाओ। यह ग्राम वाले आगे बैठे हैं। अच्छा मीडिया वाले हाथ उठाओ। अच्छा - हार्ट वालों ने अपने ऊपर टाइटल रखा है, दिल वाले। तो दिलवाला ग्रुप उठो। अच्छा यह दिल वाले हैं। टाइटल अच्छा रखा है ना! अच्छा इन्होंने प्लैन बहुत अच्छा बनाया है। बापदादा के पास समाचार पहुंचा है। बापदादा समझते हैं कि प्रैक्टिकल का अनुभव प्रभाव जल्दी डालता है इसलिए जो प्लैन बनाया है वो बापदादा को पसन्द है। अच्छा है इस सेवा को बढ़ाओ और इस द्वारा चारों ओर आवाज फैलाओ। हिम्मत अच्छी रखी है। संगठन बनाया है, यह बहुत अच्छा किया है। यह दिल वाले उनको बापदादा टाइटल देते हैं ``अनुभव के अथॉरिटी वाले।'' अच्छा है।
अच्छा जो भी वर्ग आये हैं, सभी उठो। (मीडिया विंग, बिजनेस विंग, ट्रांसपोर्ट विंग, रूरल डेवलपमेन्ट विंग तथा कैड ग्रुप की मींटिग चल रही है) मीटिंग्स तो बहुत अच्छी की है लेकिन बापदादा की एक बात अभी तक कोई भी वर्ग वाले ने नहीं की है। याद आता है कौन सी? (गीता के भगवान को सिद्ध करने की) ये गीता वाली बात छोड़ो, वह तो बापदादा ने कहा भी है कि यह बात बहुत श्रेष्ठ है परन्तु यह बहुत सम्भाल कर करनी है। पहले एक ग्रुप ऐसा तैयार करो जो आपके साथी बनें। और वह माइक बनें और आप माइट बनो। पहले ऐसा कोई तैयार करो। जो भी वर्ग सेवा कर रहे हो, कर रहे हो उसकी मुबारक है। लेकिन हर एक वर्ग से कौन सी विशेष आत्मायें जो सेवा में आगे बढ़ सकें वह अभी तक बापदादा के सामने नहीं आयी हैं। चलो सामने नहीं आवें, लिस्ट तो आवे। अभी तक लिस्ट भी नहीं आई है। उन्हों का संगठन, हर एक वर्ग के निकले हुए संगठन में आवें। वह भी नहीं किया है। पहले लिस्ट निकालो अभी तक के वर्ग की सेवा से हमारी सेवा में सहयोगी साथी कौन-कौन बने हैं! तो बापदादा देखे कि आवाज कितने तक पहुंचा है। जैसे देखो मेडिकल दिल वालों ने प्रैक्टिकल एग्जैम्पुल दिखाया है और प्रैक्टिकल में आवाज फैल रहा है, गवर्मेन्ट भी मान रही है। ऐसे कोई तैयार करो। कर रहे हो बहुत अच्छा, करते चलो। रिजल्ट निकालो। सुना। जो भी वर्ग आये हैं उन्हों को ऐसा करना है। अच्छा।
सेवा का टर्न ईस्टर्न, नेपाल, तामिलनाडु का है:- तीनों को चांस मिला है। अच्छा तीनों की टीचर्स खड़ी हो जाएं। टीचर्स तो बहुत हैं, इतने ही सेन्टर्स होंगे ना! जब टीचर्स की संख्या इतनी है तो सेन्टर्स की संख्या भी इतनी ही होगी ना। अच्छा है, सबसे बड़ा विस्तार का जोन है आवाज फैलाने का, अगर तीनों जगह पर आवाज पहुंच जाए, तो कितनी सेवा आटोमेटकली सहज हो जायेगी।
अभी बापदादा की यही सभी बच्चों को शुभ राय है वा श्रीमत है कि ऐसा ग्रुप तैयार करो जो यह आवाज फैलाये कि यही परमात्म कार्य है। ऐसा ग्रुप तैयार करो जो निर्भय होकर, निरसंकोच बाप को प्रत्यक्ष करे, दृढ़ता से बोले, अथॉरिटी से बोले। आजकल के जमाने में स्थूल अथॉरिटी भी काम में आती है। लौकिक अथॉरिटी और परमात्म अथॉरिटी दोनों अथॉरिटी वाले आवाज फैला सकते हैं। तो ऐसा ग्रुप तैयार करो। चाहे हर वर्ग अपने-अपने वर्ग से तैयार करे, चाहे कोई भी करे लेकिन अभी अथॉरिटी से बोलने वाले निकालो। जिनके आवाज का, अनुभव का, अथॉरिटी का प्रभाव पड़े। समझा क्या करना है?
चाहे छोटा ग्रुप लाओ लेकिन सभी के सामने तो आये। जो भी वर्ग वाले बैठे हो, वो सभी वर्ग वाले बोलें कि हमारे वर्ग में ऐसे कोई तैयार हैं? कोई ऐसा निकला है, वह हाथ उठाओ। जिस वर्ग में ऐसा कोई निकला है, तैयार है वह हाथ उठाओ। है कोई? कोई नहीं। अभी तैयार कर रहे हैं। बिजनेस वाली (योगिनी बहन) उठो। (दो भाईयों ने कुछ समाचार सुनाया) अच्छा।
अभी रूहानी ड्रिल याद है? एक सेकण्ड में अपने पूर्वज स्टेज में आए परमधाम निवासी बाप के साथ-साथ लाइट हाउस बन विश्व को लाइट दे सकते हो? तो एक सेकण्ड में सभी चारों ओर देश-विदेश में सुनने वाले, देखने वाले लाइट हाउस बन विश्व के चारों ओर सर्व आत्माओं को लाइट दो, सकाश दो, शक्तियां दो। अच्छा।
चारों ओर के विश्व के पूर्वज और पूज्य आत्माओं को, सदा दाता बन सर्व को दुआयें देने वाले महादानी आत्माओं को, सदा दृढ़ता द्वारा स्वपरिवर्तन से सर्व का परिवर्तन करने वाले विश्व परिवर्तक आत्माओं को, सदा लाइट हाउस बन सर्व आत्माओं को लाइट देने वाले समीप आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और दिल की दुआओं सहित नमस्ते।
मोहिनी बहन से - चांस लेने वाले चांसलर बन जाते हैं।
शान्तामणी दादी से -(तबियत ठीक नहीं है) हिसाब चुक्तू हो रहा है। (ग्रहचारी है) आप जैसे रत्न को ग्रहचारी नहीं हो सकती। शुरू से वरदानों से पली हो, इसलिए आगे बढ़ती रहेंगी। बढ़ रही हो। कोई बात नहीं है। कम नहीं होंगी, आगे जायेंगी। (दादी रतन-मोहिनी, मनोहर दादी, मोहिनी बहन, ईशू दादी, मुन्नी बहन सब बापदादा के सामने हैं) देखो आप सभी विशेष सहयोगी आत्मायें हो, बापदादा जब दोनों को (दादी जी, दादी जानकी जी को) याद भेजते हैं तो आप सभी साथ में जरूर होते हैं क्योंकि सहयोगी हो ना! हैं ना सहयोगी? आपका पार्ट इन्हों से ज्यादा सेवा का है। शुरू से लेके बेहद की सेवा के निमित्त आप लोग बने हो। इसलिए आप सभी के महत्व से इन्हों का भी महत्व है। सदा अपने को बाप के समीप रत्न समझो। समझते भी हो लेकिन और अति समीप हैं, सदा समीप रहेंगे, यह गैरेन्टी है। है ना गैरन्टी? अच्छा है, पार्ट अच्छा बजा रही हो। चाहे नाम विशेष आत्माओं का आता है लेकिन आप सब उसमें समाये हुए हैं। अलग कुछ नहीं कर सकते हैं। आपसे यज्ञ की शोभा है। इसलिए अपने को बहुत बड़े जिम्मेवार समझो। जिम्मेवारी है। बापदादा जिम्मेवार आत्माओं के रूप में देखते हैं। ठीक है ना! सब विशेष हैं, विशेषतायें भी हैं। उन विशेष-ताओं से सबको चलाओ और आगे बढ़ाओ। अच्छा।
दादी जी, दादी जानकी जी से:- अच्छा है, दोनों दादियां बहुत अच्छी पालना कर रहे हो। अच्छी पालना हो रही है ना! बहुत अच्छा। सेवा के निमित्त बनी हुई है ना! तो आप सबको भी दादियों को देखके खुशी होती है। खुशी होती है ना! जिम्मेवारी का सुख भी तो मिलता है ना! सबकी दुआयें कितनी मिलती हैं। सभी को खुशी होती है, (दोनों दादियाँ बापदादा को गले लगी) जैसे यह देखकर खुशी होती है वैसे इन्हों जैसे बनके कितनी खुशी होगी क्योंकि बापदादा ने निमित्त बनाया है तो कोई विशेषता है तब निमित्त बनाया है। और वही विशेषतायें आप हर एक में आ जाएं तो क्या हो जायेगा? अपना राज्य आ जायेगा। जो बापदादा डेट कहते हैं ना, वह आ जायेगी। अभी याद है ना डेट फिक्स करनी है। हर एक समझे मुझे करनी है। तो सभी निमित्त बन जायेंगे तो विश्व का नवनिर्माण हो ही जायेगा। निमित्त भाव, यह गुणों की खान है। सिर्फ हर समय निमित्त भाव आ जाए तो और सभी गुण सहज आ सकते हैं क्योंकि निमित्त भाव में मैं पन नहीं है और मैं पन ही हलचल में लाता है। निमित्त बनने से मेरा पन भी खत्म, तेरा, तेरा हो जाता है। सहजयोगी बन जाते हैं। तो सभी का दादियों से प्यार है, बापदादा से प्यार है, तो प्यार का रिटर्न है - विशेषताओं को समान बनाना। तो ऐसे लक्ष्य रखो। विशेषताओं को समान बनाना है। किसी में भी कोई विशेषता देखो, विशेषता को भले फालो करो। आत्मा को फालो करने में दोनों दिखाई देंगे। विशेषता को देखो और उसमें समान बनो। अच्छा।
17-02-04 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“शिवरात्रि जन्म उत्सव का विशेष स्लोगन - सर्व को सहयोग दो और सहयोगी बनाओ, सदा अखण्ड भण्डारा चलता रहे”
आज बापदादा स्वयं अपने साथ बच्चों का हीरे तुल्य जन्म दिन शिव जयन्ती मनाने आये हैं। आप सभी बच्चे अपने पारलौकिक, अलौकिक बाप का बर्थ डे मनाने आये हैं तो बाप फिर आपका मनाने आये हैं। बाप बच्चों के भाग्य को देख हर्षित होते हैं वाह मेरे श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चे वाह! जो बाप के साथ-साथ अवतरित हुए विश्व के अन्धकार को मिटाने के लिए। सारे कल्प में ऐसा बर्थ डे किसी का भी नहीं हो सकता, जो आप बच्चे परमात्म बाप के साथ मना रहे हो। इस अलौकिक अति न्यारे, अति प्यारे जन्म दिन को भक्त आत्मायें भी मनाती हैं लेकिन आप बच्चे मिलन मनाते हो और भक्त आत्मायें सिर्फ महिमा गाते रहते हैं। महिमा भी गाते, पुकारते भी, बापदादा भक्तों की महिमा और पुकार सुनकर उन्हें भी नम्बरवार भावना का फल देते ही हैं। लेकिन भक्त और बच्चे दोनों में महान अन्तर है। आपका किया हुआ श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ भाग्य का यादगार बहुत अच्छा मनाते हैं इसीलिए बापदादा भक्तों के भक्ति की लीला देख उन्हें भी मुबारक देते हैं क्योंकि यादगार सब अच्छी तरह से कॉपी की है। वह भी इसी दिन व्रत रखते हैं, वह व्रत रखते हैं थोड़े समय के लिए, अल्पकाल के खान-पान और शुद्धि के लिए। आप व्रत लेते हो सम्पूर्ण पवित्रता, जिसमें आहार-व्यवहार, वचन, कर्म, पूरे जन्म के लिए व्रत लेते हो। जब तक संगम की जीवन में जीना है तब तक मन-वचन-कर्म में पवित्र बनना ही है। न सिर्फ बनना है लेकिन बनाना भी है। तो देखो भक्तों की बुद्धि भी कम नहीं है, यादगार की कॉपी बहुत अच्छी की है। आप सभी सब व्यर्थ समर्पण कर समर्थ बने हो अर्थात् अपने अपवित्र जीवन को समर्पण किया, आपकी समर्पणता का यादगार वह बलि चढ़ाते हैं लेकिन स्वयं को बलि नहीं चढ़ाते, बकरे को बलि चढ़ा देते हैं। देखो कितनी अच्छी कॉपी की है, बकरे को क्यों बलि चढ़ाते हैं? इसकी भी कॉपी बहुत सुन्दर की है, बकरा क्या करता है? में-में-में करता है ना! और आपने क्या समर्पण किया? मैं, मैं, मैं। देह-भान का मैं-पन, क्योंकि इस मैं-पन में ही देह-अभिमान आता है। जो देह-अभिमान सभी विकारों का बीज है।
बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि सर्व समार्पित होने में यह देह भान का मैं-पन ही रूकावट डालता है। कॉमन मैं-पन, मैं देह हूँ, वा देह के सम्बन्ध का मैं-पन, देह के पदार्थों का समर्पण यह तो सहज है। यह तो कर लिया है ना? कि नहीं, यह भी नहीं हुआ है! जितना आगे बढ़ते हैं उतना मैं-पन भी अति सूक्ष्म महीन होता जाता है। यह मोटा मैं-पन तो खत्म होना सहज है। लेकिन महीन मैं-पन है - जो परमात्म जन्म सिद्ध अधिकार द्वारा विशेषतायें प्राप्त होती हैं, बुद्धि का वरदान, ज्ञान स्वरूप बनने का वरदान, सेवा का वरदान वा विशेषतायें, या प्रभु देन कहो, उसका अगर मैं-पन आता तो इसको कहा जाता है महीन मैं-पन। मैं जो करता, मैं जो कहता वही ठीक है, वही होना चाहिए, यह रॉयल मैं-पन उड़ती कला में जाने के लिए बोझ बन जाता है। तो बाप कहते इस मैं-पन का भी समर्पण, प्रभु देन में मैं-पन नहीं होता, न मैं न मेरा। प्रभु देन, प्रभु वरदान, प्रभु विशेषता है। तो आप सबकी समर्पणता कितनी महीन है। तो चेक किया है? साधारण मैं-पन वा रॉयल मैं-पन दोनों का समर्पण किया है? किया है या कर रहे हैं? करना तो पड़ेगा ही। आप लोग आपस में हंसी में कहते हो ना, मरना तो पड़ेगा ही। लेकिन यह मरना भगवान की गोदी में जीना है। यह मरना, मरना नहीं है। 21 जन्म देव आत्माओं के गोदी में जन्मना है। इसीलिए खुशी-खुशी से समार्पित होते हो ना! चिल्ला के तो नहीं होते? नहीं। भक्ति में भी चिल्लाया हुआ बलि स्वीकार नहीं होती है। तो जो खुशी से समार्पित होते हैं, हद के मैं और मेरे में, वह जन्म-जन्म वर्से के अधिकारी बन जाते हैं।
तो चेक करना - किसी भी व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ चलन के परिवर्तन करने में खुशी से परिवर्तन करते वा मजबूरी से? मुहब्बत में परिवर्तन होते या मेहनत से परिवर्तन होते? जब आप सभी बच्चों ने जन्म लेते ही अपने जीवन का आक्युपेशन यही बनाया है - विश्व परिवर्तन करने वाले, विश्व परिवर्तक। यह आप सबका, ब्राह्मण जन्म का आक्युपेशन है ना! है पक्का तो हाथ हिलाओ। झण्डे हिला रहे हैं, बहुत अच्छा। (सभी के हाथों में शिवबाबा की झण्डियां हैं जो सभी हिला रहे हैं) आज झण्डों का दिन है ना, बहुत अच्छा। लेकिन ऐसे ही झण्डा नहीं हिलाना। ऐसे झण्डा हिलाना तो बहुत सहज है, मन को हिलाना है। मन को परिवर्तन करना है। हिम्मत वाले हो ना। हिम्मत है? बहुत हिम्मत है, अच्छा।
बापदादा ने एक खुशखबरी की बात देखी, कौन सी, जानते हो? बापदादा ने इस वर्ष के लिए विशेष गिफ्ट दी थी कि ``इस वर्ष अगर थोड़ी भी हिम्मत रखेंगे, किसी भी कार्य में, चाहे स्व-परिवर्तन में, चाहे कार्य में, चाहे विश्व सेवा में, अगर हिम्मत से किया तो इस वर्ष को वरदान मिला है एकस्ट्रा मदद मिलने का।'' तो बापदादा ने खुशी की खबर या नजारा क्या देखा! कि इस बारी की शिव जयन्ती की सेवा में चारों ओर बहुत-बहुत-बहुत अच्छी हिम्मत और उमंग-उत्साह से आगे बढ़ रहे हैं। (सभी ने ताली बजाई) हाँ ताली भले बजाओ। सदा ऐसे ताली बजायेंगे या शिवरात्रि पर? सदा बजाते रहना। अच्छा। चारों ओर से तो मधु-बन में समाचार लिखते हैं और बापदादा तो वतन में ही देख लेते हैं। उमंग अच्छा है और प्लैन भी अच्छे बनाये हैं। ऐसे ही सेवा में उमंग और उत्साह विश्व की आत्माओं में उमंग-उत्साह बढ़ायेगा। देखो निमित्त दादी की कलम ने कमाल तो की है ना! अच्छी रिजल्ट है। इसलिए बापदादा अभी एक-एक सेन्टर का नाम तो नहीं लेंगे लेकिन विशेष सभी तरफ के सेवा की रिजल्ट की, बाप-दादा हर एक सेवाधारी बच्चे की विशेषता और नाम ले लेकर पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं। देख भी रहे हैं, बच्चे अपने-अपने स्थान पर देख के खुश हो रहे हैं। विदेश में भी खुश हो रहे हैं क्योंकि आप सभी तो वही विश्व की आत्माओं के लिए इष्ट देवी और देव-तायें हो ना। बापदादा जब बच्चों की सभा को देखते हैं तो तीन रूपों से देखते हैं:-
1- वर्तमान स्वराज्य अधिकारी, अभी भी राजे हो। लौकिक में भी बाप बच्चों को कहते हैं मेरे राजे बच्चे, राजा बच्चा। चाहे गरीब भी हो तो भी कहते हैं राजा बच्चा। लेकिन बाप वर्तमान संगम पर भी हर बच्चे को स्वराज्य अधिकारी राजा बच्चा देखते हैं। राजे हो ना! स्वराज्य अधिकारी। तो वर्तमान स्वराज्य अधिकारी।
2- भविष्य में विश्व राज्य अधिकारी और
3- द्वापर से कलियुग अन्त तक पूज्य, पूजन के अधिकारी - इन तीनों रूपों में हर बच्चे को बापदादा देखते हैं। साधारण नहीं देखते हैं। आप कैसे भी हो लेकिन बापदादा हर एक बच्चे को स्वराज्य अधिकारी राजा बच्चा देखते हैं। राजयोगी हो ना! कोई इसमें प्रजा योगी है क्या? प्रजायोगी है? नहीं। सब राजयोगी हैं। तो राजयोगी अर्थात् राजा। ऐसे स्वराज्य अधिकारी बच्चों का बर्थ डे मनाने स्वयं बाप आये हैं। देखो, आप डबल विदेशी तो विदेश से आये हो, बर्थ डे मनाने। हाथ उठाओ डबल विदेशी। तो ज्यादा में ज्यादा दूरदेश कौन सा है? अमेरिका या उससे भी दूर है? और बापदादा कहाँ से आया है? बापदादा तो परमधाम से आये हैं। तो बच्चों से प्यार है ना! तो जन्म दिन कितना श्रेष्ठ है, जो भगवान को भी आना पड़ता है। हाँ यह (बर्थ डे का एक बैनर सभी भाषाओं का बनाया हुआ दिखा रहे हैं) अच्छा बनाया है, सभी भाषाओं में लिखा है। बापदादा सभी देश के सभी भाषाओं वाले बच्चों को बर्थ डे की मुबारक दे रहे हैं।
देखो, बाप की शिव जयन्ती मनाते हैं लेकिन बाप है क्या? बिन्दी। बिन्दी की जयन्ती, अवतरण मना रहे हैं। सबसे हीरे तुल्य जयन्ती किसकी है? बिन्दू की, बिन्दी की। तो बिन्दी की कितनी महिमा है! इसीलिए बापदादा सदा कहते हैं कि तीन बिन्दू सदा याद रखो - आठ नम्बर, सात नम्बर तो फिर भी गड़बड़ से लिखना पड़ेगा लेकिन बिन्दू कितना इजी है। तीन बिन्दू - सदा याद रखो। तीनों को अच्छी तरह से जानते हो ना। आप भी बिन्दू, बाप भी बिन्दू, बिन्दू के बच्चे बिन्दू हो। और कर्म में जब आते हो तो इस सृष्टि मंच पर कर्म करने के लिए आये हो, यह सृष्टि मंच ड्रामा है। तो ड्रामा में जो भी कर्म किया, बीत गया, उसको फुलस्टाप लगाओ। तो फुलस्टाप भी क्या है? बिन्दू। इसलिए तीन बिन्दू सदा याद रखो। सारी कमाल देखो, आजकल की दुनिया में सबसे ज्यादा महत्व किसका है? पैसे का। पैसे का महत्व है ना! माँ बाप भी कुछ नहीं हैं, पैसा ही सब कुछ है। उसमें भी देखो अगर एक के आगे, एक बिन्दी लगा दो तो क्या बन जायेगा! दस बन जायेगा ना। दूसरी बिन्दी लगाओ, 100 हो जायेगा। तीसरी लगाओ-1000 हो जायेगा। तो बिन्दी की कमाल है ना। पैसे में भी बिन्दी की कमाल है और श्रेष्ठ आत्मा बनने में भी बिन्दी की कमाल है। और करनकरावनहार भी बिन्दू है। तो सर्व तरफ किसका महत्व हुआ! बिन्दू का ना। बस बिन्दू याद रखो और विस्तार में नहीं जाओ, बिन्दू तो याद कर सकते। बिन्दू बनो, बिन्दू को याद करो और बिन्दू लगाओ, बस। यह है पुरूषार्थ। मेहनत है? या सहज है? जो समझते हैं सहज है वह हाथ उठाओ। सहज है तो बिन्दू लगाना पड़ेगा। जब कोई समस्या आती है तब बिन्दू लगाते हो या क्वेश्चन मार्क? क्वेश्चन मार्क नहीं लगाना, बिन्दू लगाना। क्वेश्चन मार्क कितना टेढ़ा होता है। देखो, लिखो क्वेश्चन मार्क, कितना टेढ़ा है और बिन्दू कितना सहज है। तो बिन्दू बनना आता है? आता है? सभी होशियार हैं।
बापदादा ने विशेष सेवाओं के उमंग-उत्साह की मुबारक तो दी, बहुत अच्छा कर रहे हैं, करते रहेंगे लेकिन आगे के लिए हर समय, हर दिन - वर्ल्ड सर्वेन्ट हूँ - यह याद रखना। आपको याद है - ब्रह्मा बाप साइन क्या करते थे? वर्ल्ड सर्वेन्ट। तो वर्ल्ड सर्वेन्ट हैं, तो सिर्फ शिवरात्रि की सेवा से वर्ल्ड की सेवा समाप्त नहीं होगी। लक्ष्य रखो कि मैं वर्ल्ड सर्वेन्ट हूँ, तो वर्ल्ड की सेवा हर श्वांस में, हर सेकण्ड में करनी है। जो भी आवे, जिससे भी सम्पर्क हो, उसको दाता बन कुछ न कुछ देना ही है। खाली हाथ कोई नहीं जावे। अखण्ड भण्डारा हर समय खुला रहे। कम से कम हर एक के प्रति शुभ भाव और शुभ भावना, यह अवश्य दो। शुभ भाव से देखो, सुनो, सम्बन्ध में आओ और शुभ भावना से उस आत्मा को सहयोग दो। अभी सर्व आत्माओं को आपके सहयोग की बहुत-बहुत आवश्यकता है। तो सहयोग दो और सहयोगी बनाओ। कोई न कोई सहयोग चाहे मन्सा का, चाहे बोल से कोई सहयोग दो, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क से सहयोग दो, तो इस शिवरात्रि जन्म उत्सव का विशेष स्लोगन याद रखो - ``सहयोग दो और सहयोगी बनाओ''। कम से कम जो भी सम्पर्क-सम्बन्ध में आवे उसे सहयोग दो, सहयोगी बनाओ। कोई न कोई तो सम्बन्ध में आता ही है, उसकी और कोई खातिरी भल नहीं करो लेकिन हर एक को दिलखुश मिठाई जरूर खिलाओ। यह जो यहाँ भण्डारे में बनती है वह नहीं। दिल खुश कर दो। तो दिल खुश करना अर्थात् दिल खुश मिठाई खिलाना। खिलायेंगे! उसमें तो कोई मेहनत नहीं है। न टाइम एकस्ट्रा देना है, न मेहनत है। शुभ भावना से दिल खुश मिठाई खिलाओ। आप भी खुश, वह भी खुश और क्या चाहिए। तो खुश रहेंगे और खुशी देंगे, कभी भी आप सभी का चेहरा ज्यादा गम्भीर नहीं होना चाहिए। टूमच गम्भीर भी अच्छा नहीं लगता है। मुस्क-राहट तो होनी चाहिए ना। गम्भीर बनना अच्छा है, लेकिन टूमच गम्भीर होते हैं ना, तो वह ऐसे होते हैं जैसे पता नहीं कहाँ गायब हैं। देख भी रहे हैं लेकिन गायब। बोल भी रहे हैं लेकिन गायब रूप में बोल रहे हैं। तो वह चेहरा अच्छा नहीं। चेहरा सदा मुस्कराता रहे। चेहरा सीरियस नहीं करना। क्या करें, कैसे करें तो सीरियस हो जाते हो। बहुत मेहनत है, बहुत काम है... सीरियस हो जाते हो लेकिन जितना बहुत काम उतना ज्यादा मुस्कराना। मुस्कराना आता है ना? आता है? आपके जड़ चित्र देखो कभी ऐसे सीरियस दिखाते हैं क्या! अगर सीरियस दिखावे तो कहते हैं आार्टिस्ट ठीक नहीं है। तो अगर आप भी सीरियस रहते हो तो कहेंगे इसको जीने का आर्ट नहीं आता है। इसलिए क्या करेंगे? टीचर्स क्या करेंगे? अच्छा बहुत टीचर्स हैं, टीचर्स मुबारक हो। सेवा की मुबा-रक हो।
अच्छा - बापदादा ने और भी आप पूज्य आत्माओं की खुशखबरी सुनी। आप पूज्य आत्माओं को आज 36 प्रकार का भोग लगना है। क्यों? आपके जड़ चित्रों को भोग लगाते हैं लेकिन आप तो खाते नहीं हो। इसलिए अभी चैतन्य में भोग लगा लो। अच्छा किया, बापदादा को खुशी है कि हर एक बच्चा 36 प्रकार का भोग तो स्वीकार करेगा। थैली दिखा रहे हैं। जो बाहर बैठे हैं विदेश में या अपने-अपने सेन्टर पर। तो वह यहाँ टी.वी. में जब थैला देखो ना, थैला बांटेंगे ना तो आप थैले के अन्दर से वासना ले लेना। बाप-दादा सब सेन्टर वाले चाहे देश वाले, चाहे विदेश वाले सभी को इन सभी बच्चों से पहले खिला रहे हैं। खा लो, खा लो। और ऐसे करना जिस भी सेन्टर की टीचर आई है, जहाँ तक भेज सको वहाँ तक भेजना, एक-एक थैली भेजना। ज्यादा नहीं भेजना। एक-एक थैली सैम्पल के मात्र भेज देना। तो जब भी आप भोग स्वीकार करो तो किस स्वरूप से स्वीकार करेंगे? अपना पूज्य स्वरूप इमर्ज करना और पूज्य बन भोग स्वीकार करना। अच्छी बात की है। दादी को मुबारक ज्यादा है। अच्छा।
एक सेकण्ड में अपना पूर्वज और पूज्य स्वरूप इमर्ज कर सकते हो? वही देवी और देवताओं के स्वरूप के स्मृति में अपने को देख सकते हो? कोई भी देवी या देवता। मैं पूर्वज हूँ, संगमयुग में पूर्वज हैं और द्वापर से पूज्य हैं। सतयुग, त्रेता में राज्य अधिकारी हैं। तो एक सेकण्ड में सभी और संकल्प समाप्त कर अपने पूर्वज और पूज्य स्वरूप में स्थित हो जाओ। अच्छा।
भोपाल जोन की सेवा का टर्न है: अच्छा - भोपाल वाले उठो। झण्डी हिलाओ। सेवा का एकस्ट्रा फल और बल दोनों अनुभव किया? किया? क्योंकि यज्ञ सेवा का गोल्डन चांस कम भाग्य नहीं है। बहुत बड़ा भाग्य है। एकस्ट्रा बल, वायुमण्डल शक्तिशाली का बल मिलता है। और यज्ञ सेवा करने से जिन ब्राह्मण आत्माओं की सेवा करते हो उनकी दुआओं का फल मिलता है। तो यह चांस मिलना अर्थात् सेवा का एकस्ट्रा बल और फल खाना। तो सभी ने ऐसा अनुभव किया! किया? कितनी दुआयें जमा की? कितने जन्म यह दुआयें चलेंगी? वैसे तो सदा दुआओं के पात्र हो लेकिन यह दुआओं की भर-भर थालियां मिलती हैं। संगठन होता है ना। तो यह दुआयें अगर कायम रखेंगे तो आपके पुरूषार्थ में एक लिफ्ट की गिफ्ट हो जायेगी। अच्छा किया है। सबकी दुआयें खुशी बढ़ाती हैं। तो सदा इस दुआओं को साथ रखना। तो मुबारक हो। सेवा की मुबारक हो।
एज्युकेशन विंग की मीटिंग चल रही है:- एज्युकेशन वाले उठो। अच्छा - एज्युकेशन द्वारा हर एक आत्मा को मैं कौन हूँ, यह नॉलेज देने का कार्य कर भी रहे हो लेकिन अभी और भी सेवा रही हुई है। कम से कम यह तो नॉलेज सबको मिल जाए, मैं कौन हूँ और मेरा पिता कौन है। मैं कौन हूँ, यही नहीं जानते हैं, आश्चर्य की तो यही बात है। सारा समय मैं-मैं कहते लेकिन मैं कौन यह जानते नहीं। इसलिए एज्युकेशन वर्ग, अभी जगह-जगह पर जाकर यह पहला पाठ तो पक्का कराओ। बिचारे बेसमझ नहीं रह जायें, इतनी तो समझ मिले। तो रहमदिल आत्मायें हो ना। जैसे बाप कृपालु है, दयालु है तो आप भी मास्टर दयालु, कृपालु हो। तो इस समझ की कृपा करो। प्लैन बनाया है ना? नये-नये प्लैन बनाये! समय अनुसार सेवा की गति और फास्ट होगी क्योंकि समय बहुत फास्ट भाग रहा है। जैसे समय फास्ट भाग रहा है तो सेवा भी फास्ट होनी ही है। अच्छा है, वर्ग-वर्ग अलग होने से विश्व की आलराउण्ड आत्माओं के सेवा की तरफ अटेन्शन जाता है। तो बापदादा को वर्गाकरण की सेवा अच्छी लगती है। बहुत अच्छा, आये मिलन भी मनाया, मीटिंग भी की और प्रैक्टिकल तो करेंगे ही। मुबारक हो। अच्छा।
चारों ओर के कार्ड और पत्र बापदादा के पास बहुत पहुंच गये हैं। आप सबके कार्ड सभी ब्राह्मण आत्मायें भी देखकर खुश हो रही हैं। तो जिन्होंने भी कार्ड और पत्र भेजे हैं, उन सभी सिकीलधे, लाडले बच्चों को बाप के जन्म दिन और आप बच्चों के जन्म दिन की विशेष सम्मुख वालों से भी पहले आप सबको मुबारक हो। बहुत दिल से भेजते हैं तो दिल की बात तो दिलाराम जाने। अच्छा। कई इन्डिया के सेन्टर्स के सेवा के उमंग-उत्साह के और बापदादा को विशेष याद के पत्र, सन्देश, फोन आये हैं। बापदादा नाम कितनों का लेवे, लेकिन जिन्होंने भी अपने उमंग-उत्साह का समाचार दिया है, उन सभी को भी बापदादा सम्मुख दृष्टि में इमर्ज कर उमंग-उत्साह का रिटर्न बहुत-बहुत दिल की यादप्यार दे रहे हैं। सेवा में सदा ही ऐसे उमंग-उत्साह में उड़ते रहो। अच्छा।
चारों ओर के अलौकिक दिव्य अवतरण वाले बच्चों को बाप के जन्म दिन और बच्चों के जन्म दिन की दुआयें और यादप्यार, दिलाराम बाप की दिल में राइट हैण्ड सेवाधारी बच्चे सदा समाये हुए हैं। तो ऐसे दिल तख्तनशीन श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बिन्दी के महत्व को जानने वाले श्रेष्ठ बिन्दी स्वरूप बच्चों को, सदा अपने स्वमान में स्थित रह सर्व को रूहानी सम्मान देने वाले स्वमानधारी आत्माओं को, सदा दाता के बच्चे मास्टर दाता बन हर एक को अपने अखण्ड भण्डार से कुछ न कुछ देने वाले मास्टर दाता बच्चों को बापदादा की बहुत-बहुत पदमगुणा, कोहिनूर हीरे से भी ज्यादा प्रभु नूर बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।
सभी दादियों से,(दादी जानकी से):- चक्रवर्ती के संस्कार ज्यादा हैं। चक्रवर्ती बनके चक्कर लगाना अच्छा लगता है। (बाबा को सब देखें ना) देखना ही है। सिर्फ बच्चे थोड़े से एवररेडी हो जायें ना। एवरी टाइम एवररेडी, तो ठका हो जायेगा। देखेंगे, बोलेंगे भी। अहो प्रभू भी तो बोलेंगे। लेकिन खुशी से नहीं, पश्चाताप के रूप में। लेकिन बोलेंगे जरूर। सभी ठीक हैं, बहुत मजे में! बस देखो, आपके संगठन को देख सभी कितने खुश होते हैं। आप कुछ कहो, करो नहीं तो भी खुशी देते हो। पिल्लर्स हैं ना। सभी देखो कितने पक्के पिल्लर्स हैं। पिल्लर्स के मजबूती से आगे भी मजबूत होके चल रहे हैं। थोड़ा हिलते भी हैं तो पिल्लर्स उनका आधार बन जाता है। अच्छा।
हैदराबाद के भ्राता के.एस. राजू जी से:- अभी जल्दी-जल्दी आया करो तो सब काम ठीक हो जायेगा। अभी काम के पीछे नहीं पड़ो, काम आपके पीछे पड़े। अभी जल्दी-जल्दी आना। इतना समय नहीं लगाना। काम सब सहज हो जायेगा। (जो आज्ञा) आते रहेंगे शक्ति लेते रहेंगे तो कर्म में योग काम में आयेगा। ठीक है ना। वर्मयोगी। ज्यादा पीछे पड़ने से ठीक नहीं होता। जैसे परछाई होती है ना उसके पीछे पड़ो तो आगे-आगे जाती है, और आगे चलो तो पीछे-पीछे आती है, ऐसे यह है।
कर्नाटक हाई कोर्ट के जज से:- यहाँ जो कार्य चल रहा है विश्व परिवर्तन का, उसमें आप भी सहयोगी आत्मा हो। आपका भी कार्य अच्छा है। आत्माओं को समझ मिलती है। परिवर्तन सब चाहते हैं। तो यहाँ परिवर्तन की धुन लगी हुई है। उसमें आप भी बहुत अच्छे सहयोगी हैं और सहयोगी से योगी रहेंगे। सिर्फ सहयोगी नहीं रहना, योगी सहयोगी दोनों रहना। कर्मयोगी बनना। कर्म को नहीं छोड़ना है, कर्म और योग का बैलेन्स हो। जितना बैलेन्स रखेंगे उतनी ब्लैसिंग मिलेगी और मेहनत कम प्राप्ति ज्यादा होगी। (युगल से) यह भी साथ में है।
विदेश की बड़ी बहिनों से:- अभी तो विदेशियों को विशेष टर्न मिलना है। लाडले हैं ना। बापदादा खुश होते हैं। कोने-कोने में रही हुई आत्मायें वंचित न रह जाएं, यह सेवा उमंग-उत्साह से आप कर रहे हो और रिजल्ट अच्छे ते अच्छी निकल रही है। कोई उल्हना नहीं रहेगा। तो बापदादा खुश हैं। (अभी कुछ देश रहे हैं, वहाँ भी अक्टूबर तक सन्देश देने का प्लैन बना रहे हैं) होना ही है, अपने ही भाई-बहन हैं, तो मर्सीफुल तो बनना ही है। सन्देश तो मिल जाए फिर उन्हों का भाग्य।
प्यारे बापदादा ने अपने हस्तों से स्टेज पर झण्डा फहराया तथा सभी बच्चों को 68 वीं त्रिमूर्ति शिवजयन्ती की मुबारक दी:-
आप सबके दिलों में तो बाप की याद का झण्डा लहराता ही रहता है। यह झण्डा तो यादगार के रूप में मनाते हैं। लेकिन आपके दिल में बाप के प्रत्यक्षता का झण्डा लहरा रहा है। हर एक की दिल सदा क्या कहती! हर श्वांस क्या गाता? मेरा बाबा। और बाप-दादा भी हर सेकण्ड क्या गाता? मेरे मीठे-मीठे बच्चे। अभी वह दिन समीप लाना है जो हर एक आत्मा के दिल में बाप के प्रत्यक्षता का झण्डा लहराये। हर दिल कहे मेरा बाबा। जो पाना था वह पा लिया, इस गीत पर डांस करें। वह दिन भी दूर नहीं है। वाह! बाबा वाह! वाह! बाप के सिकीलधे बच्चे वाह! यह खूब नारा लगेगा। तो आज बापदादा सिर्फ यह झण्डा नहीं देख रहे हैं लेकिन हर एक बच्चे के दिल में जो बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहरा रहा है वह देख रहे हैं। आपके दिल में लहर गया है। अभी लहराना नहीं है, लहर रहा है। एक ही बाप संसार है, संसार बना दिया। ऐसे है ना। और कोई संसार है क्या! बाप ही संसार है। बाप के संस्कार ही मेरे संस्कार हैं। संसार भी है, संस्कार भी हैं। हैं ना? बहुत-बहुत सभी देश-विदेश के बच्चों को बाप के बर्थ डे का झण्डा लहराने की मुबारक हो, मुबारक हो।
05-03-04 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"कमज़ोर संस्कारों का संस्कार कर सच्ची होली मनाओ तब संसार परिवर्तन होगा"
आज बापदादा अपने चारों ओर के राज दुलारे बच्चों को देख रहे हैं। यह परमात्म दुलार आप कोटों में कोई श्रेष्ठ आत्माओं को ही प्राप्त है। हर एक बच्चे के तीन राज तख्त देख रहे हैं। यह तीन तख्त सारे कल्प में इस संगम पर ही आप बच्चों को प्राप्त होते हैं। दिखाई दे रहे हैं तीन तख्त? एक तो यह भ्रकुटी रूपी तख्त, जिस पर आत्मा चमक रही है। दूसरा तख्त है - परमात्म दिल तख्त। दिल तख्त नशीन हो ना! और तीसरा है - भविष्य विश्व तख्त। सबसे भाग्यवान बने हो दिल तख्तनशीन बनने से। यह परमात्म दिल तख्त आप तकदीरवान बच्चों को ही प्राप्त है। भविष्य विश्व का राज्य तख्त तो प्राप्त होना ही है। लेकिन अधिकारी कौन बनता? जो इस समय स्वराज्य अधिकारी बनता है। स्वराज्य नहीं तो विश्व का राज्य भी नहीं क्योंकि इस समय के स्व राज्य अधिकार द्वारा ही विश्व राज्य प्राप्त होता है। विश्व के राज्य के सर्व संस्कार इस समय बनते हैं। तो हर एक अपने को सदा स्वराज्य अधिकारी अनुभव करते हो? जो भविष्य राज्य का गायन है - जानते हो ना! एक धर्म, एक राज्य, लॉ एण्ड ऑर्डर, सुख-शान्ति, सम्पत्ति से भरपूर राज्य, याद आता है - कितने बार यह स्वराज्य और विश्व राज्य किया है? याद है कितने बार किया है? क्लीयर याद आता है? कि याद करने से याद आता है? कल राज्य किया था और कल राज्य करना है - ऐसे स्पष्ट स्मृति है? यह स्पष्ट स्मृति उस आत्मा को होगी जो अभी सदा स्वराज्य अधिकारी होगा। तो स्वराज्य अधिकारी हो? सदा हो या कभी-कभी? क्या कहेंगे? सदा स्वराज्य अधिकारी हो? डबल फारेनर्स का टर्न है ना। तो स्वराज्य अधिकारी सदा हो? पाण्डव सदा हैं? सदा शब्द पूछ रहे हैं? क्यों? जब इस एक जन्म में, छोटा सा तो जन्म है, तो इस छोटे से जन्म में अगर सदा स्वराज्य अधिकारी नहीं हैं तो 21 जन्म का सदा स्वराज्य कैसे प्राप्त होगा! 21 जन्म का राज्य अधिकारी बनना है कि कभी-कभी बनना है? क्या मंजूर है? सदा बनना है? सदा? कांध तो हिलाओ। अच्छा, 21 जन्म ही राज्य अधिकारी बनना है? राज्य अधिकारी अर्थात् रॉयल फैमिली में भी राज्य अधिकारी। तख्त पर तो थोड़े बैठेंगे ना, लेकिन वहाँ जितना तख्त अधिकारी को स्वमान है, उतना ही रॉयल फैमिली को भी है। उन्हों को भी राज्य अधिकारी कहेंगे। लेकिन हिसाब अभी के कनेक्शन से है। अभी कभी-कभी तो वहाँ भी कभी-कभी। अभी सदा तो वहाँ भी सदा। तो बापदादा से सम्पूर्ण अधिकार लेना अर्थात् वर्तमान और भविष्य का पूरा-पूरा 21 जन्म राज्य अधिकारी बनना। तो डबल फारेनर्स पूरा अधिकार लेने वाले हो या आधा या थोड़ा? क्या? पूरा अधिकार लेना है? पूरा। एक जन्म भी कम नहीं। तो क्या करना पड़ेगा?
बापदादा तो हर एक बच्चे को सम्पूर्ण अधिकारी बनाते हैं। बने हैं ना? पक्का? कि बनेंगे या नहीं बनेंगे क्वेश्चन है? कभी-कभी क्वेश्चन उठता है - पता नहीं बनेंगे, नहीं बनेंगे? बनना ही है। पक्का? जिसको बनना ही है वह हाथ उठाओ। बनना ही है? अच्छा, यह सब किस माला के मणके बनेंगे? 108 के? यहाँ तो कितने आये हुए हैं? सभी 108 में आने हैं? तो यह तो 1800 हैं। तो 108 की माला को बढ़ायेंगे? अच्छा। 16 हजार तो अच्छा नहीं लगता। 16 हजार में जायेंगे क्या? नहीं जायेंगे ना! यह निश्चय और निश्चित है, ऐसा अनुभव हो। हम नहीं बनेंगे तो कौन बनेगा। है नशा? आप नहीं बनेंगे तो और कोई नहीं बनेगा ना। आप ही बनने वाले हो ना! बोलो, आप ही हो ना! पाण्डव आप ही बनने वाले हो? अच्छा। अपना दर्पण में साक्षात्कार किया है? बापदादा तो हर बच्चे का निश्चय देख बलिहार जाते हैं। वाह! वाह! हर एक बच्चा वाह! वाह वाह वाले हो ना! वाह! वाह! कि व्हाई। व्हाई तो नहीं? कभी-कभी व्हाई हो जाता? या तो है व्हाई और हाय और तीसरा क्राय। तो आप तो वाह! वाह! वाले हो ना!
बापदादा को डबल फारेनर्स के ऊपर विशेष फखुर है। क्यों? भारतवासियों ने तो बाप को भारत में बुला लिया। लेकिन डबल फारेनर्स के ऊपर फखुर इसलिए है कि डबल फारेनर्स ने बापदादा को अपने सच्चाई के प्यार के बंधन में बांधा है। मैजारिटी सच्चाई वाले हैं। कोई-कोई छिपाते भी हैं लेकिन मैजारिटी अपनी कमज़ोरी सच्चाई से बाप के आगे रखते हैं। तो बाप को सबसे बढ़िया चीज़ लगती है - सच्चाई। इसलिए भक्ति में भी कहते हैं गाड इज टत्र्थ। सबसे प्यारी चीज़ सच्चाई है क्योंकि जिसमें सच्चाई होती है उसमें सफाई रहती है। क्लीन और क्लीयर रहता है। इसलिए बापदादा को डबल फारेनर्स के सच्चाई की प्रेम की रस्सी खींचती है। थोड़ा बहुत मिक्स तो होता है, कोई-कोई। लेकिन डबल फारेनर्स अपनी यह सच्चाई की विशेषता कभी नहीं छोड़ना। सत्यता की शक्ति एक लिफ्ट का काम करती है। सबको सच्चाई अच्छी लगती है ना! पाण्डव अच्छी लगती है? ऐसे तो मधुबन वालों को भी अच्छी लगती है। सभी चारों ओर के मधुबन वाले हाथ उठाओ। दादी कहती है ना भुजायें हैं। तो मधुबन, शान्तिवन सब हाथ उठाओ। बड़ा हाथ उठाओ। मधुबन वालों को सच्चाई अच्छी लगती है? जिसमें सच्चाई होगी ना, उसको बाप को याद करना बहुत सहज होगा। क्यों? बाप भी सत्य है ना! तो सत्य बाप की याद जो सत्य है उसको जल्दी आती है। मेहनत नहीं करनी पड़ती है। अगर अभी भी याद में मेहनत लगती है तो समझो कोई न कोई सूक्ष्म संकल्प मात्र, स्वप्न मात्र कोई सच्चाई कम है। जहाँ सच्चाई है वहाँ संकल्प किया बाबा, हजूर हाजर है। इसलिए बापदादा को सच्चाई बहुत प्रिय है।
तो बापदादा सभी बच्चों को यही इशारा देते हैं - कि पूरा वर्सा 21 ही जन्मों का लेना है तो अभी स्वराज्य को चेक करो। अब का स्वराज्य अधिकारी बनना, जितना जैसा बनेंगे उतना ही अधिकार प्राप्त होगा। तो चेक करो - जैसे गायन है एक राज्य...., एक ही राज्य होगा, दो नहीं। तो वर्तमान स्वराज्य की स्थिति में सदा एक राज्य है? स्वराज्य है वा कभी-कभी पर-राज्य भी हो जाता है? कभी माया का राज्य अगर है तो पर-राज्य कहेंगे या स्वराज्य कहेंगे? तो सदा एक राज्य है, पर-अधीन तो नहीं हो जाते? कभी माया का, कभी स्व का? इससे समझो कि सम्पूर्ण वर्सा अभी प्राप्त हो रहा है, हुआ नहीं है, हो रहा है। तो चेक करो सदा एक राज्य
है? एक धर्म - धर्म अर्थात् धारणा। तो विशेष धारणा कौन सी है? पवित्रता की। तो एक धर्म है अर्थात् संकल्प, स्वप्न में भी पवि-त्रता है? संकल्प में भी, स्वप्न में भी अगर अपवित्रता की परछाई है तो क्या कहेंगे? एक धर्म है? पवित्रता सम्पूर्ण है? तो चेक करो, क्यों? समय फास्ट जा रहा है। तो समय फास्ट जा रहा है और स्वयं अगर स्लो है तो समय पर मंज़िल पर तो नहीं पहुंच सकेंगे ना! इसलिए बार-बार चेक करो। एक राज्य है? एक धर्म है? लॉ और आर्डर है? कि माया अपना आर्डर चलाती है? पर-मात्म बच्चे श्रीमत के लॉ और आर्डर पर चलने वाले। माया के लॉ एण्ड आर्डर पर नहीं। तो चेक करो - सभी भविष्य के संस्कार अभी दिखाई दें क्योंकि संस्कार अभी भरने हैं। वहाँ नहीं भरने हैं, यहाँ ही भरने हैं। सुख है? शान्ति है? सम्पत्तिवान हैं? सुख अभी साधनों के आधार पर तो नहीं है? अतीन्द्रिय सुख है? साधन, इन्द्रियों का आधार है। अतीन्द्रिय सुख साधनों के आधार पर नहीं है। अखण्ड शान्ति है? खण्डित तो नहीं होती है? क्योंकि सतयुग के राज्य की महिमा क्या है? अखण्ड शान्ति, अटल शान्ति। सम्प-न्नता है? सम्पत्ति से क्या होता है? सम्पन्नता होती है। सर्व सम्पत्ति है? गुण, शक्तियां, ज्ञान यह सम्पत्ति है। उसकी निशानी क्या होगी? अगर मैं सम्पत्ति में सम्पन्न हूँ - तो उसकी निशानी क्या? सन्तुष्टता। सर्व प्राप्ति का आधार है सन्तुष्टता, असन्तुष्टता अप्राप्ति का साधन है। तो चेक करो - एक भी विशेषता की कमी नहीं होनी चाहिए। तो इतना चेक करते हो? सारा संसार आप अभी के संस्कार द्वारा बनाने वाले हो। अभी के संस्कार अनुसार भविष्य का संसार बनेगा। तो आप सभी क्या कहते हो? कौन हो आप? विश्व परिवर्तक हो ना! विश्व परिवर्तक हो? तो विश्व परिवर्तक के पहले स्व-परिवर्तक। तो यह सब संस्कार अपने में चेक करो। इससे समझ जाओ कि मैं 108 की माला में हूँ या आगे पीछे हूँ? यह चेकिंग एक दर्पण है, इस दर्पण में अपने वर्तमान और भविष्य को देखो। देख सकते हो?
अभी तो होली मनाने आये हो ना! होली मनाये आये हो, अच्छा। होली के अर्थ को वर्णन किया है ना! तो बापदादा आज विशेष डबल फारेनर्स को कहते हैं, मधुबन वाले साथ में हैं, यह बहुत अच्छा है। मधुबन वालों को भी साथ में कह रहे हैं। जो भी आये हैं, चाहे बॉम्बे से आये हैं, चाहे दिल्ली से आये हो, लेकिन इस समय तो मधुबन निवासी हो। डबल फारेनर्स भी इस समय कहाँ के हो? मधुबन निवासी हो ना! मधुबन निवासी बनना अच्छा है ना! तो सभी बच्चों को चाहे यहाँ सामने बैठे हैं, चाहे अपने अपने चारों तरफ के स्थानों पर बैठे हैं, बापदादा एक परिवर्तन चाहते हैं - अगर हिम्मत हो तो बापदादा बतावे। हिम्मत है? हिम्मत है? हिम्मत है? करना पड़ेगा। ऐसे नहीं हाथ उठा लिया तो हो गया, ऐसा नहीं। हाथ उठाना तो बहुत अच्छा है लेकिन मन का हाथ उठाना। आज सिर्फ यह हाथ नहीं उठाना, मन का हाथ उठाना।
डबल फारेनर्स नजदीक बैठे हैं ना, तो नजदीक वालों को दिल की बातें सुनाई जाती हैं। मैजारिटी देखने में आता है, कि सभी का बापदादा से, सेवा से बहुत अच्छा प्यार है। बाप के प्यार के बिना भी नहीं रह सकते और सेवा के बिना भी नहीं रह सकते हैं। यह मैजारिटी का सर्टीफिकेट ठीक है। बापदादा चारो ओर देखते हैं लेकिन...., लेकिन आ गया। मैजारिटी का यही आवाज आता है कि कोई न कोई ऐसा संस्कार, पुराना जो चाहते नहीं हैं लेकिन वह पुराना संस्कार अभी तक भी आकर्षित कर लेता है। तो जब होली मनाने आये हो तो होली का अर्थ है - बीती सो बीती। हो ली, हो गई। तो कोई भी जरा भी कोई संस्कार 5 परसेन्ट भी हो, 10 परसेन्ट हो, 50 परसेन्ट भी हो, कुछ भी हो। कम से कम 5 परसेन्ट भी हो तो आज संस्कार की होली जलाओ। जो संस्कार समझते हैं सभी कि थोड़ा सा यह संस्कार मुझे बीच-बीच में डिस्टर्ब करता है। हर एक समझता है। समझते हैं ना? तो होली एक जलाई जाती है, दूसरी रंगी जाती है। दो प्रकार की होली होती है और होली का अर्थ भी है, बीती सो बीती। तो बापदादा चाहते हैं - कि जो भी कोई ऐसा संस्कार रहा हुआ है, जिसके कारण संसार परिवर्तन नहीं हो रहा है, तो आज उस कमज़ोर संस्कार को जलाना अर्थात् संस्कार कर देना। जलाने को भी संस्कार कहते हैं ना। जब मनुष्य मरता है तो कहते हैं संस्कार करना है अर्थात् सदा के लिए खत्म करना है। तो क्या आज संस्कार का भी संस्कार कर सकते हैं? आप कहेंगे कि हम तो नहीं चाहते कि संस्कार आवें, लेकिन आ जाता है, क्या करें? ऐसे सोचते हो? अच्छा। आ जाता है, गलती से। अगर किसको दी हुई चीज़, गलती से आपके पास आ जाए तो क्या करते हो? सम्भाल के अलमारी में रख देते हो? रख देंगे? तो अगर आ भी जाये तो दिल में नहीं रखना क्योंकि दिल में बाप बैठा है ना! तो बाप के साथ अगर वह संस्कार भी रखेंगे, तो अच्छा लगेगा? नहीं लगेगा ना! इसलिए अगर गलती से आ भी जाये, तो दिल से कहना बाबा, बाबा, बाबा, बस। खत्म। बिन्दी लग जायेगी। बाबा क्या है? बिन्दी। तो बिन्दी लग जायेगी। दिल से कहेंगे तो। बाकी ऐसे ही मतलब से याद करेंगे - बाबा ले लो ना, ले लो ना, रखते हैं अपने पास और कहते हैं ले लो ना, ले लो ना। तो कैसे लेंगे? आपकी चीज़ कैसे लेंगे? पहले आप अपनी चीज़ नहीं समझो तब लेंगे। ऐसे थोड़ेही दूसरे की चीज़ ले लेंगे। तो क्या करेंगे? होली मनायेंगे? हो ली, हो ली। अच्छा, जो समझते हैं कि दृढ़ संकल्प कर रहे हैं, वह हाथ उठाओ। आप घड़ी-घड़ी निकाल देंगे ना, तो निकल जायेगी। अन्दर रख नहीं दो, क्या करें, कैसे करें, निकलता नहीं है। यह नहीं, निकालना ही है। तो दृढ़ संकल्प करेंगे? जो करेगा वह मन से हाथ उठाना, बाहर से नहीं उठाना। मन से। (कोई-कोई नहीं उठा रहे हैं) यह नहीं उठा रहे हैं। (सभी ने उठाया) बहुत अच्छा, मुबारक हो, मुबारक हो। क्या है कि एक तरफ एडवांस पार्टी बापदादा को बार-बार कहती है - कब तक, कब तक, कब तक? दूसरा - प्रकृति भी बाप को अर्जा करती है, अभी परिवर्तन करो। ब्रह्मा बाप भी कहते हैं कि अब कब परमधाम का दरवाजा खोलेंगे? साथ में चलना है ना, रह तो नहीं जाना है ना! साथ चलेंगे ना! साथ में गेट खोलेंगे! चाहे चाबी ब्रह्मा बाबा लगायेगा, लेकिन साथ तो होंगे ना! तो अभी यह परिवर्तन करो। बस, लाना ही नहीं है। मेरी चीज़ ही नहीं है, दूसरे की, रावण की चीज़ क्यों रखी है! दूसरे की चीज़ रखी जाती है क्या? तो यह किसकी है? रावण की है ना! उसकी चीज़ आपने क्यों रखी है? रखनी है? नहीं रखनी है ना, पक्का? अच्छा। तो रंग की होली भले मनाना लेकिन पहले यह होली मनाना। आप देखते हो, आपका गायन है - मर्सीफुल। आप मर्सीफुल देवियां और देवतायें हो ना! तो रहम नहीं आता है? अपने भाई-बहिनें इतने दु:खी हैं, उन्हों का दु:ख देख करके रहम नहीं आता? आता है रहम? तो संस्कार बदलो, तो संसार बदल जायेगा। जब तक संस्कार नहीं बदले हैं, तब तक संसार नहीं बदल सकता। तो क्या करेंगे?
आज खुशखबरी सुनी थी कि सबको दृष्टि लेनी है। अच्छी बात है। बापदादा तो बच्चों के आज्ञाकारी हैं लेकिन... लेकिन सुनकर हंसते हैं। भले हंसो। दृष्टि के लिए कहते हैं - दृष्टि से सृष्टि बदलती है। तो आज की दृष्टि से सृष्टि परिवर्तन करना ही है, क्योंकि सम्पन्नता वा जो भी प्राप्तियां हुई हैं, उसका बहुत समय से अभ्यास चाहिए। ऐसे नहीं समय पर हो जायेगा, नहीं। बहुत समय का राज्य भाग्य लेना है, तो सम्पन्नता भी बहुत समय से चाहिए। तो ठीक है? डबल फारेनर्स खुश हैं? अच्छा।
इस बारी शान्तिवन के बेहद घर में रहे हो ना! देखो हर स्थान का अपना-अपना लाभ है। ऊपर का लाभ अपना है और शान्तिवन का लाभ अपना है। यहाँ परिवार के समीप हैं, दादियों के समीप हैं, और वहाँ बापदादा की कर्मभूमि के समीप होते हैं। लेकिन अच्छा लगता है या नहीं? थोड़ा-थोड़ा याद आता है? बापदादा को तो यही खुशी है कि डबल फारेनर्स की एक ही समय की संख्या बढ़ रही है। संख्या के कारण ऊपर नहीं रह सके ना। तो संख्या बढ़ना तो खुशी की बात है ना! और एक ही समय पर आपस में एक साथ रहना, यह भी तो अनुभव है ना! और मधुबन वालों को डबल फारेनर्स को थैंक्स देना चाहिए कि डबल फारेनर्स ने अपने टाइम पर विशेष मधुबन निवासियों को चांस दिया है। मधुबन वाले ताली बजाओ। देखो, मधुबन वाले कितने खुश हो रहे हैं। नहीं तो मधुबन वालों को पूरी सीजन में चांस कहाँ मिला है और डबल फारेनर्स ने चांस दिया, तो बापदादा भी थैंक्स देते हैं। अच्छा।
डबल फारेनर्स के सेवा के प्रोग्राम्स भी सुने हैं। अच्छे प्रोग्राम्स बनाये हैं। जिन्होंने भी सेवाओं के सन्देश भेजे हैं वह बापदादा ने सुने हैं और अच्छा है क्योंकि फारेन में अगर बड़े-बड़े प्रोग्राम्स करेंगे तो फारेन का आवाज अभी मीडिया द्वारा भारत में पहुंच सकता है क्योंकि अभी भारत वालों ने ट्रायल की है ना, कि भारत का आवाज मीडिया द्वारा फारेन में पहुंचे। तो फारेन वालों को भी मीडिया द्वारा भारत में आवाज फैलाना है। मीडिया का साधन अच्छा है। तो जो भी प्रोग्राम्स बनाये हैं वह बापदादा को पसन्द हैं। प्रैक्टिकल में लाओ। तो प्रैक्टिकल में लाने से आवाज फैलेगा। ठीक है ना! अच्छा है। और एक बात देखी - कि फारेन की बापदादा को लिस्ट मिली है। किस बात की लिस्ट मिली? जो बापदादा ने कहा था कि जो भी सेवा से स्नेही, सहयोगी बने हैं, चाहे वर्गीकरण की सेवा से, चाहे कॉनफ्रेन्स की सेवा से, तो कौन-कौन स्नेही सहयोगी बने हैं, वह लिस्ट दो। तो आज बापदादा के पास नम्बरवन लिस्ट फारेन से मिली, इसके लिए मुबारक हो। अच्छी मेहनत की है। यू.के. की, यूरोप की और कहाँ की लिस्ट है? अच्छा है भारत वालों को भी लिस्ट निकालनी चाहिए तो कभी इन्टरनेशनल स्नेही सहयोगियों का संगठन करेंगे। एक दो का अनुभव सुनकर भी उमंग में आते हैं। तो यह भी नम्बरवन फारेन की लिस्ट आई है, इसलिए बापदादा खुश हैं। बाकी सभी के पत्र और कार्ड तो आते ही हैं। आजकल तो ईमेल बहुत आते हैं। तो जिन बच्चों ने भी समाचार दिये हैं, चाहे भारत के चाहे विदेश के। भारत में भी शिवरात्रि के प्रोग्राम्स बहुत धूमधाम से किये हैं और समाचार भी दिये हैं। अभी समय की रफ्तार से आगे रफ्तार करो। अच्छा।
बापदादा ने सुना कि बहुत देशों के आये हुए हैं। सब देशों के मुख्य डबल फारेन से जो भी आये हैं, तो हर एक देश के एक-एक मुख्य निमित्त टीचर उठो। 77 देशों से आये हुए हैं। अच्छा। पाण्डव भी हैं, बहनें भी हैं। सबको टी.वी. में दिखाओ। अच्छा किया है, मुबारक हो। अपने-अपने ग्रुप को ले आये हैं, यहाँ तक बनाके तैयार किया है, इसके लिए बापदादा आप एक-एक को पर्सनल मुबारक दे रहे हैं। अच्छी सेवा की है। अच्छा। (सभी की ग्रुप वाइज भट्ठी चली है) यह अच्छा किया है। स्पेशल एक-एक संगठन की जो भट्ठी रखी, उसमें हर एक को अपने-अपने डिपार्टमेंट में रहकर, संगठन में रहकर मजा भी आता है। तो यह जो विधि रखी, वह अच्छा है। बहुत अच्छा है। अच्छा लगा ना! (पहली बार युगलों की, कुमारों की अलग भट्ठी हुई है) कुमार उठो। अच्छा लगा? अलग भट्ठी की तो अच्छा लगा। वैसे कुमारों की होती भी रहती है। अच्छा है। सभी कुमार अमर भव के वरदानी हो ना। अमर भव का वरदान मिला हुआ है ना! अमर ही रहना। अच्छा।
(युगल उठो) बहुत अच्छा। (विष्णु के सिम्बल का झण्डा सबके हाथ में है) बहुत अच्छा। बापदादा को अच्छा लगा। अभी सदा ही प्रवृत्ति को प्रवृत्ति नहीं, पर वृत्ति, पर वृत्ति माना न्यारी और प्यारी वृत्ति में रहना। तो प्रवृत्ति वाले नहीं, पर वृत्ति वाले युगल हैं। बहुत अच्छा, मुबारक हो।
(अधर कुमार उठो) सभी अधरकुमार जो भी हैं उन्हों को क्या नशा रहता है? हमारा कम्पेनियन आलमाइटी अथॉरिटी है। कम्पेनियन भी बाप है, कम्पन्नी भी बाप की। तो अधर कुमार सदा इसी नशे में रहना। बाप के साथ कम्बाइन्ड हैं। अपने को सिंगल नहीं समझना। कम्बाइन्ड हैं। बाप और आप कम्बाइन्ड हैं। बहुत अच्छा।
(कुमारियां उठो) कुमारियां भी हैं तो ब्रह्माकुमारियां भी हैं। वैसे भी कुमारी हैं और ब्रह्माकुमारी तो हैं ही। तो कुमारियां क्या करेंगी? कमाल करके दिखायेंगी? अभी बापदादा के सेवा के राइट हैण्ड हैं। राइट हैण्ड हो ना! अच्छा है कुमारियों को देख करके बापदादा बहुत खुश होते हैं कि यह कितनी आत्माओं के कल्याण के निमित्त बनेंगी। विश्व कल्याणकारी बनेंगी। बहुत अच्छा।
(मातायें उठो) मातायें होशियार बहुत हैं। देखो बापदादा ने माताओं को ही विशेष आगे बढ़ने का चांस दिया है। तो चांस को प्रैक्टि-कल में लाया इसके लिए बहुत-बहुत मुबारक हो। बहुत अच्छा शक्ति अवतार, अपने संगठन को और बढ़ाओ। जहाँ तहाँ माताओं की संख्या ज्यादा है। डबल फारेन में भी माताओं की संख्या अभी भी ज्यादा है, भारत में भी माताओं की संख्या ज्यादा है। सारे कल्प में अभी तो चांस मिला है तो अपना चांस अच्छा लिया है।
(सेन्टर निवासी और एन.सी.ओ. मीटिंग के भाई बहिनें उठो) बहुत अच्छा - सेन्टर निवासी अर्थात् पुण्य का खाता बढ़ाने वाले। जो भी आता है उनको बाप का परिचय देके बाप का बनाते हो, यह पुण्य जमा होता है। तो सेन्टर निवासी सदा अपने को मैं पुण्य आत्मा हूँ, पुण्य जमा करने का चांस मिला है। जितना-जितना पुण्य जमा होता जायेगा तो जरा भी स्वप्न मात्र, अगर थोड़ा भी पाप की रेखा रह गई, वह खत्म हो जायेगी। तो पुण्य आत्माओं का ग्रुप है। अच्छा है कुमार, पाण्डव भी सेवा के निमित्त बने हैं, यह भी बहुत अच्छा चांस मिला है। सदा सेवा को बढ़ाने के निमित्त आत्मायें हैं। पाण्डव, चाहे शक्तियां दोनों को बापदादा सेवा की मुबारक दे रहे हैं। अच्छा।
(छोटे बच्चों ने भी रिट्रीट की है, बच्चे उठो) अच्छा लगा, बच्चों को बहुत अच्छा लगा! अच्छा है। बच्चे कमाल करके दिखायेंगे। बच्चे ऐसी सेवा करेंगे जो कोई बड़ों ने नहीं की हो क्योंकि बच्चों से सबको प्यार होता है। तो बहुत अच्छा किया है, बहुत अच्छा। अच्छा।
स्पार्क ग्रुप भी आया है :- बहुत अच्छा है। अनुभवी मूर्त बन, अनुभव कराने का प्रैक्टिकल में रिसर्च कर रहे हैं। और इसी को, अनुभूति कराने की रीसर्च को और बढ़ाओ। प्रैक्टिकल में सबूत लाओ तो दुनिया एक्जैम्पुल देख करके सहज मान जाती है। अच्छा है। आगे बढ़ते चलो और एक्जैम्पुल बन औरों को भी एक्जैम्पुल बनाओ। बहुत अच्छा।
मधुबन निवासी उठो:- (सभी ने खूब तालियां बजाई) देखो, सभी का मधुबन निवासियों से कितना प्यार है। मधुबन निवासियों की सेवा को देख सब बहुत खुश होते हैं। लोग भी कहते हैं कि यह कौन चलाता है, कौन डायरेक्शन दे रहा है, यह पता ही नहीं पड़ता है। जैसे मशीन चल रही है। तो मधुबन निवासियों की यह सेवा का भाग्य बहुत बड़ा है। जो भी ग्रुप आता है, उसके आगे एक्जैम्पुल तो मधुबन निवासी होते हैं। चाहे भाषण नहीं करो, सेन्टर पर बैठकर मुरली नहीं सुनाओ, लेकिन एक्जैम्पुल बनना, यह सबसे बड़ी सेवा है। सबको सन्तुष्टता का अनुभव कराना, यह बहुत बड़ी सेवा है। इसलिए मधुबन वालों से चाहे फारेनर्स, चाहे भारत के सबका प्यार है। और कहाँ भी मधुबन वाले जाते हैं, तो मधुबन की हर आत्मा को बहुत रिगार्ड से देखते हैं। सबके मुख से निकलता है - मधुबन से आये हैं। तो मधुबन वाले कम नहीं हैं। साकार ब्रह्मा बाबा कहते थे ``जो चुल पर है वह दिल पर है।'' तो मधुबन निवासी चुल पर भी हैं, दिल पर भी हैं। बापदादा का हर एक मधुबन निवासी से प्यार है। प्यार के पात्र हैं क्योंकि सेवा में सन्तुष्ट करने का लक्ष्य रखा है। अच्छा है। संगठन भी देखो कितना बड़ा है। तो सेवा और संगठन की मुबारक। डबल फारेनर्स को खुशी हो रही है। मधुबन वालों को देख के खुशी होती है।
अच्छा - बापदादा की बात याद रखना - भूल नहीं जाना। अभी पुराने संस्कार की समाप्ति की सेरीमनी मनायेंगे, पसन्द है ना! उस सेरीमनी में आपको बुलायेंगे। जो करेगा, उसको बुलायेंगे। अच्छा।
चारों ओर के सर्व तीन तख्त नशीन, विशेष आत्माओं को, सदा स्वराज्य अधिकारी विशेष आत्माओं को, सदा रहमदिल बन आत्माओं को सुख-शान्ति की अंचली देने वाले महादानी आत्माओं को, सदा दृढ़ता और सफलता का अनुभव करने वाले बाप समान आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादियों से:- बेफिकर बादशाह हैं। बापदादा सदा ही बेफिकर बादशाह के रूप में देखते हैं। कारण क्या है? बेफिकर क्यों हैं? क्योंकि दिल बड़ी है। जहाँ दिल बड़ी होती है ना तो जो होना है वह हो जाता है। जो आना है वह आ जाता है। (बड़ा बाबा, बड़ी दिल, बड़ा परिवार)
(परदादी से) बहुत अच्छा, संगठन में आ गई बहुत अच्छा किया। सभी याद तो करते हैं ना! बहुत अच्छा। दिल में बातें बहुत करती है। सब दिल से कह देती है। रूहरिहान बहुत करती है ना! रूहरिहान बहुत करती है। बहुत अच्छा। तबियत को भी चला तो रही है ना! यह ठीक है। अच्छा है ना! पुराना शरीर है, लेकिन पुराने शरीर में भी आपको देखकर सब खुश होते हैं। आदि रत्न हैं ना, तो सब खुश होते हैं। सबका नाम लेते हैं कितना आपको याद करते हैं। अच्छा है।
(मनोहर दादी से) सभी को अपना-अपना पार्ट अच्छा मिला है। जहाँ भी रहते हैं वह स्थान शानदार स्थान हो जाता है। सबको खुशी होती है कोई दादी बैठी है। मधुबन के श्रृंगार हो। हैं ना! अच्छा।
विदेश की बड़ी बहिनों से:- यह ग्रुप भी बहुत अच्छा निकला है। अच्छा है, सभी आलराउण्ड सेवाधारी हैं। सेवा में मजा आता है ना! अच्छा है विश्व के चारों कोनों में आवाज तो फैलाया ना। ठीक है, सबकी तबियत ठीक है? बहुत अच्छा ग्रुप है। बापदादा का सेवा से प्यार है, बच्चों से प्यार है। बहुत अच्छा, जो भी आये हैं, उनकी सेवा का प्लैन भी बहुत अच्छा बनाया है, मुबारक हो। सभी ने मिलकर बहुत अच्छा बनाया है।
अच्छा - ओम् शान्ति।
20-03-04 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“इस वर्ष को विशेष जीवनमुक्त वर्ष के रूप में मनाओ, एकता और एकाग्रता से बाप की प्रत्यक्षता करो”
आज स्नेह के सागर चारों ओर के स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। बाप का भी बच्चों से दिल का अविनाशी स्नेह है और बच्चों का भी दिलाराम बाप से दिल का स्नेह है। यह परमात्म स्नेह, दिल का स्नेह सिर्फ बाप और ब्राह्मण बच्चे ही जानते हैं। परमात्म स्नेह के पात्र सिर्फ आप ब्राह्मण आत्मायें हो। भक्त आत्मायें परमात्म प्यार के लिए प्यासी हैं, पुकारती हैं। आप भाग्यवान ब्राह्मण आत्मायें उस प्यार की प्राप्ति के पात्र हो। बापदादा जानते हैं कि बच्चों का विशेष प्यार क्यों हैं, क्योंकि इस समय ही सर्व खज़ानों के मालिक द्वारा सर्व खज़ाने प्राप्त होते हैं। जो खज़ाने सिर्फ अब का एक जन्म नहीं चलते लेकिन अनेक जन्मों तक यह अविनाशी खज़ाने आपके साथ चलते हैं। आप सभी ब्राह्मण आत्मायें दुनिया के मुआफिक हाथ खाली नहीं जायेंगे, सर्व खज़ाने साथ रहेंगे। तो ऐसे अविनाशी खज़ानों की प्राप्ति का नशा रहता है ना! और सभी बच्चों ने अविनाशी खज़ाने जमा किये हैं ना! जमा का नशा, जमा की खुशी भी सदा रहती है। हर एक के चेहरे पर खज़ानों के जमा की झलक नजर आती है। जानते हो ना - कौन से खज़ाने बाप द्वारा प्राप्त हैं? कभी अपने जमा का खाता चेक करते हो? बाप तो सभी बच्चों को हर एक खज़ाना अखुट देते हैं। किसको थोड़ा, किसको ज्यादा नहीं देते हैं। हर एक बच्चा अखुट, अखण्ड, अविनाशी खज़ानों के मालिक हैं। बालक बनना अर्थात् खज़ानों का मालिक बनना। तो इमर्ज करो कितने खज़ाने बापदादा ने दिये हैं।
सबसे पहला खज़ाना है - ज्ञान धन, तो सभी को ज्ञान धन मिला है? मिला है या मिलना है? अच्छा - जमा भी है? या थोड़ा जमा है थोड़ा चला गया है? ज्ञान धन अर्थात् समझदार बन, त्रिकालदर्शी बन कर्म करना। नॉलेजफुल बनना। फुल नॉलेज और तीनों कालों की नॉलेज को समझ ज्ञान धन को कार्य में लगाना। इस ज्ञान के खज़ाने से प्रत्यक्ष जीवन में, हर कार्य में यूज करने से विधि से सिद्धि मिलती है - जो कई बंधनों से मुक्ति और जीवनमुक्ति मिलती है। अनुभव करते हो? ऐसे नहीं कि सतयुग में जीवनमुक्ति मिलेगी, अभी भी इस संगम के जीवन में भी अनेक हद के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है। जीवन, बंधन मुक्त बन जाती है। जानते हो ना, कितने बन्धनों से फ्री हो गये हो! कितने प्रकार के हाय-हाय से मुक्त हो गये हो! और सदा हाय-हाय खत्म, वाह! वाह! के गीत गाते रहते हो। अगर कोई भी बात में जरा भी मुख से नहीं लेकिन संकल्प मात्र भी, स्वप्न मात्र भी हाय.. मन में आती है तो जीवन-मुक्त नहीं। वाह! वाह! वाह! ऐसे है? मातायें, हाय-हाय तो नहीं करती? नहीं? कभी-कभी करती हैं? पाण्डव करते हैं? मुख से भले नहीं करो लेकिन मन में संकल्प मात्र भी अगर किसी भी बात में हाय है तो फ्लाय नहीं। हाय अर्थात् बंधन और फ्लाय, उड़ती कला अर्थात् जीवन-मुक्त, बंधन-मुक्त। तो चेक करो क्योंकि ब्राह्मण आत्मायें जब तक स्वयं बन्धन मुक्त नहीं हुए हैं, कोई भी सोने की, हीरे की रॉयल बंधन की रस्सी बंधी हुई है तो सर्व आत्माओं के लिए मुक्ति का गेट खुल नहीं सकता। आपके बंधन-मुक्त बनने से सर्व आत्माओं के लिए मुक्ति का गेट खुलेगा। तो गेट खोलने की वा सर्व आत्माओं के दु:ख, अशान्ति से मुक्त होने की जिम्मेवारी आपके ऊपर है।
तो चेक करो - अपनी जिम्मेवारी कहाँ तक निभाई है? आप सबने बापदादा के साथ विश्व परिवर्तन का कार्य करने का ठेका उठाया है। ठेकेदार हो, जिम्मेवार हो। अगर बाप चाहे तो सब कुछ कर सकता है लेकिन बाप का बच्चों से प्यार है, अकेला नहीं करने चाहते, आप सर्व बच्चों को अवतरित होते ही साथ में अवतरित किया है। शिवरात्रि मनाई थी ना! तो किसकी मनाई? सिर्फ बाप-दादा की? आप सबकी भी तो मनाई ना! बाप के आदि से अन्त तक के साथी हो। यह नशा है - आदि से अन्त तक साथी हैं? भग-वान के साथी हो।
तो बापदादा अभी इस वर्ष की सीजन के अन्त के पार्ट बजाने में यही सब बच्चों से चाहते हैं, बतायें क्या चाहते हैं? करना पड़ेगा। सिर्फ सुनना नहीं पड़ेगा, करना ही होगा। ठीक है टीचर्स? टीचर्स हाथ उठाओ। टीचर्स पंखें भी हिला रही हैं, गर्मी लगती है। अच्छा, सभी टीचर्स करेंगी और करायेंगी? करायेंगी, करेंगी? अच्छा। हवा भी लग रही है, हाथ भी हिला रहे हैं। सीन अच्छी लगती है। बहुत अच्छा। तो बापदादा इस सीजन के समाप्ति समारोह में एक नये प्रकार की दीपमाला मनाने चाहते हैं। समझा! नये प्रकार की दीपमाला मनाने चाहते हैं। तो आप सभी दीपमाला मनाने के लिए तैयार हैं? जो तैयार हैं वह हाथ उठाओ। ऐसे ही हाँ नहीं करना। बापदादा को खुश करने के लिए हाथ नहीं उठाना, दिल से उठाना। अच्छा। बापदादा अपने दिल की आशाओं को सम्पन्न करने के दीप जगे हुए देखने चाहते हैं। तो बापदादा के आशाओं के दीपकों की दीपमाला मनाने चाहते हैं। समझा, कौन सी दीपावली? स्पष्ट हुआ?
तो बापदादा के आशाओं के दीपक क्या हैं? अगले वर्ष से लेकर, यह वर्ष भी सीजन का पूरा हो गया। बापदादा ने कहा था - आप सबने भी संकल्प किया था, याद है? कोई ने वह संकल्प सिर्फ संकल्प तक पूरा किया है, कोई ने संकल्प को आधा पूरा किया है और कोई सोचते हैं लेकिन सोच, सोचने तक है। वह संकल्प क्या? कोई नई बात नहीं है, पुरानी बात है - स्व-परिवर्तन से सर्व परिवर्तन। विश्व की तो बात छोड़ो लेकिन बापदादा स्व-परिवर्तन से ब्राह्मण परिवार परिवर्तन, यह देखने चाहते हैं। अभी यह नहीं सुनने चाहते कि ऐसे हो तो यह हो। यह बदले तो मैं बदलूं, यह करे तो मैं करूं... इसमें विशेष हर एक बच्चे को ब्रह्मा बाप विशेष कह रहा है कि मेरे समान हे अर्जुन बनो। इसमें पहले मैं, पहले यह नहीं, पहले मैं। यह ``मैं'' कल्याणकारी मैं है। बाकी हद की मैं, मैं नीचे गिराने वाली है। इसमें जो कहावत है - जो ओटे सो अर्जुन, तो अर्जुन अर्थात् नम्बरवन। नम्बरवार नहीं, नम्बरवन। तो आप नम्बर दो बनने चाहते हो या नम्बरवन बनने चाहते हो? कई कार्य में बापदादा ने देखा है - हँसी की बात, परिवार की बात सुनाते हैं। परिवार बैठा है ना! कोई ऐसे काम होते हैं तो बापदादा के पास समाचार आते हैं, तो कई कार्य ऐसे होते हैं, कई प्रोग्राम्स ऐसे होते हैं जो विशेष आत्माओं के निमित्त होते हैं। तो बापदादा के पास दादियों के पास समाचार आते हैं, क्योंकि साकार में तो दादियां हैं। बापदादा के पास तो संकल्प पहुंचते हैं। तो क्या संकल्प पहुंचता है? मेरा भी नाम इसमें होना चाहिए, मैं क्या कम हूँ! मेरा नाम क्यों नहीं! तो बाप कहते हैं - हे अर्जुन में आपका नाम क्यों नहीं! होना चाहिए ना! या नहीं होना चाहिए? होना चाहिए? सामने महारथी बैठे हैं, होना चाहिए ना! होना चाहिए? तो ब्रह्मा बाप ने जो करके दिखाया, किसको देखा नहीं, यह नहीं करते, यूं नहीं करते, नहीं। पहले मैं। इस मैं में जो पहले सुनाया था अनेक प्रकार के रॉयल रूप के मैं, सुनाया था ना! वह सब समाप्त हो जाते हैं। तो बापदादा की आशायें इस सीजन के समाप्ति की यही हैं कि हर एक बच्चा जो ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी कहलाते हैं, मानते हैं, जानते हैं, वह हर एक ब्राह्मण आत्मा जो भी संकल्प रूप में भी हद के बन्धन हैं, उस बंधनों से मुक्त हो। ब्रह्मा बाप समान बन्धनमुक्त, जीवन-मुक्त। ब्राह्मण जीवन मुक्त, साधारण जीवन मुक्त नहीं, ब्राह्मण श्रेष्ठ जीवनमुक्त का यह विशेष वर्ष मनायें। हर एक आत्मा जितना अपने सूक्ष्म बंधनों को जानते हैं, उतना और नहीं जान सकता है। बापदादा तो जानते हैं क्योंकि बापदादा के पास तो टी.वी. है, मन की टी.वी., बॉडी की नहीं, मन की टी.वी. है। तो क्या अभी जो फिर से सीजन होगी, सीजन तो होगी ना या छुट्टी करें? एक वर्ष छुट्टी करें? नहीं? एक साल तो छुट्टी होनी चाहिए? नहीं होनी चाहिए? पाण्डव एक साल छुट्टी करें? (दादी जी कह रही हैं, मास में 15 दिन की छुट्टी) अच्छा। बहुत अच्छा, सभी कहते हैं, जो कहते हैं छुट्टी नहीं करनी है वह हाथ उठाओ। नहीं करनी है? अच्छा। ऊपर की गैलरी वाले हाथ नहीं हिला रहे हैं। (सारी सभा ने हाथ हिलाया) बहुत अच्छा। बाप तो सदा बच्चों को हाँ जी, हाँ जी करते हैं, ठीक है। अभी बाप को बच्चे कब हाँ जी करेंगे! बाप से तो हाँ जी करा ली, तो बाप कहते हैं, बाप भी अभी एक शर्त डालते हैं, शर्त मंजूर होगी? सभी हाँ जी तो करो। पक्का? थोड़ा भी आनाकानी नहीं करेंगे? अभी सबकी शक्लें टी.वी. में निकालो। अच्छा है। बाप को भी खुशी होती है कि सभी बच्चे हाँ जी, हाँ जी करने वाले हैं।
तो बापदादा यही चाहते हैं कि कोई कारण नहीं बताये, यह कारण है, यह कारण है, इसलिए यह बंधन है! समस्या नहीं, समाधान स्वरूप बनना है और साथियों को भी बनाना है क्योंकि समय की हालत को देख रहे हो। भ्रष्टाचार का बोल कितना बढ़ रहा है। भ्रष्टाचार, अत्याचार अति में जा रहा है। तो श्रेष्ठाचार का झण्डा पहले हर ब्राह्मण आत्मा के मन में लहराये, तब विश्व में लह-रेगा। कितनी शिवरात्रि मना ली! हर शिवरात्रि पर यही संकल्प करते हो कि विश्व में बाप का झण्डा लहराना है। विश्व में यह प्रत्य-क्षता का झण्डा लहराने के पहले हर एक ब्राह्मण को अपने मन में सदा दिल-तख्त पर बाप का झण्डा लहराना होगा। इस झण्डे को लहराने के लिए सिर्फ दो शब्द हर कर्म में लाना पड़ेगा। कर्म में लाना, संकल्प में नहीं, दिमाग में नहीं। दिल में, कर्म में, सम्बन्ध में, सम्पर्क में लाना होगा। मुश्किल शब्द नहीं है कॉमन शब्द है। वह है-एक सर्व सम्बन्ध, सम्पर्क में आपस में एकता। अनेक संस्कार होते, अनेकता में एकता। और दूसरा - जो भी श्रेष्ठ संकल्प करते हो, बापदादा को बहुत अच्छा लगता है, जब आप संकल्प करते हो ना, तो बापदादा वह संकल्प देखकर, सुनकर बहुत खुश होते हैं, वाह! वाह! बच्चे वाह! वाह! श्रेष्ठ संकल्प वाह! लेकिन, लेकिन... आ जाता है। आना नहीं चाहिए लेकिन आ जाता है। संकल्प मैजारिटी, मैजारिटी अर्थात् 90 परसेन्ट, कई बच्चों के बहुत अच्छे-अच्छे होते हैं। बापदादा समझते हैं आज इस बच्चे का संकल्प बहुत अच्छा है, प्रोग्रेस हो जायेगी लेकिन बोल में थोड़ा आधा कम हो जाता, कर्म में फिर पौना कम हो जाता, मिक्स हो जाता है। कारण क्या? संकल्प में एकाग्रता, दृढ़ता नहीं। अगर संकल्प में एकाग्रता होती तो एकाग्रता सफलता का साधन है। दृढ़ता सफलता का साधन है। उसमें फर्क पड़ जाता है। कारण क्या? एक ही बात बापदादा देखते हैं रिजल्ट में, दूसरे के तरफ ज्यादा देखते हैं। आप लोग बताते हो ना, (बापदादा ने एक अंगुली आगे करके दिखाई) ऐसे करते हैं, तो एक अंगुली दूसरे तरफ, चार अपने तरफ हैं। तो चार को नहीं देखते, एक को बहुत देखते हैं। इसीलिए दृढ़ता और एकाग्रता, एकता हिल जाती है। यह करे, तो मैं करूं, इसमें ओटे अर्जुन बन जाते, उसमें दूजा नम्बर बन जाते हैं। नहीं तो स्लोगन अपना बदली करो। स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन के बजाए करो - विश्व परिवर्तन से स्व परिवर्तन। दूजे परिवर्तन से स्व परिवर्तन। बदली करें? बदली करें? नहीं करें? तो फिर बापदादा भी एक शर्त डालता है, मंजूर है, बतायें? बाप-दादा 6 मास में रिजल्ट देखेंगे, फिर आयेंगे, नहीं तो नहीं आयेंगे। जब बाप ने हाँ जी किया, तो बच्चों को भी हाँ जी करना चाहिए ना! कुछ भी हो जाए, बापदादा तो कहता है, स्व परिवर्तन के लिए इस हद के मैं पन से मरना पड़ेगा, मैं पन से मरना, शरीर से नहीं मरना। शरीर से नहीं मरना, मैं पन से मरना है। मैं राइट हूँ, मैं यह हूँ, मैं क्या कम हूँ, मैं भी सब कुछ हूँ, इस मैं पन से मरना है। तो मरना भी पड़े तो यह मृत्यु बहुत मीठा मृत्यु है। यह मरना नहीं है, 21 जन्म राज्य भाग्य में जीना है। तो मंजूर है? मंजूर है टीचर्स? डबल फारेनर्स? डबल फारेनर्स जो संकल्प करते हैं ना, वह करने में हिम्मत रखते हैं, यह विशेषता है। और भारतवासी ट्रिपल हिम्मत वाले हैं, वह डबल तो वह ट्रिपल। तो बापदादा यही देखने चाहते हैं। समझा! यही बापदादा की श्रेष्ठ आशाओं का दीपक, हर बच्चे के अन्दर जगा हुआ देखने चाहते हैं। अभी इस बारी यह दीवाली मनाओ। चाहे 6 मास के बाद मनाओ। फिर जब बापदादा दीपावली का समारोह देखेंगे फिर अपना प्रोग्राम देंगे। करना तो है ही। आप नहीं करेंगे तो और पीछे वाले करेंगे क्या! माला तो आपकी है ना! 16108 में तो आप पुराने ही आने हैं ना। नये तो पीछे-पीछे आयेंगे। हाँ कोई-कोई लास्ट सो फास्ट आयेंगे। कोई-कोई मिसाल होंगे जो लास्ट सो फास्ट जायेंगे, फर्स्ट आयेंगे। लेकिन थोड़े। बाकी तो आप ही हैं, आप ही हर कल्प बने हो, आप ही बनने हैं। चाहे कहाँ भी बैठे हैं, विदेश में बैठे हैं, देश में बैठे हैं लेकिन जो आप पक्के निश्चय बुद्धि बहुतकाल के हैं, वह अधिकारी हैं ही हैं। बापदादा का प्यार है ना, तो जो बहुतकाल वाले अच्छे पुरूषार्थी, सम्पूर्ण पुरूषार्थी नहीं, लेकिन अच्छे पुरूषार्थी रहे हैं उनको बापदादा छोड़ के जायेगा नहीं, साथ ही ले चलेगा। इसीलिए पक्का, निश्चय करो हम ही थे, हम ही हैं, हम ही साथ रहेंगे। ठीक है ना! पक्का है ना? बस सिर्फ शुभचिंतक, शुभचिंतन, शुभ भावना, परिवर्तन की भावना, सहयोग देने की भावना, रहम दिल की भावना इमर्ज करो। अभी मर्ज करके रखी है। इमर्ज करो। शिक्षा बहुत नहीं दो, क्षमा करो। एक दो को शिक्षा देने में सब होशियार हैं लेकिन क्षमा के साथ शिक्षा दो। मुरली सुनाने, कोर्स कराने या जो भी आप प्रोग्राम्स चलाते हो, उसमें भले शिक्षा दो, लेकिन आपस में जब कारोबार में आते हो तो क्षमा के साथ शिक्षा दो। सिर्फ शिक्षा नहीं दो, रहमदिल बनके शिक्षा दो तो आपका रहम ऐसा काम करेगा जो दूसरे की कमज़ोरी की क्षमा हो जायेगी। समझा।
बाकी सेवायें तो सभी ने बहुत प्रकार की की हैं और अभी कर भी रहे हैं लेकिन बापदादा एक इशारा देते हैं कि क्वान्टिटी और क्वालिटी, क्वान्टिटी की भी सेवा करो लेकिन क्वान्टिटी को सेवा के सहयोगी बनाओ। क्वालिटी वालों को सामने लाओ, सेवा की स्टेज पर लाओ। क्वालिटी और क्वान्टिटी दोनों की सेवा साथ-साथ हो। ऐसे नहीं क्वान्टिटी के पीछे क्वालिटी रह जाये क्योंकि समय समीप आ रहा है। बाप की प्रत्यक्षता तब होगी जब क्वालिटी वाले कार्य को और बाप को प्रत्यक्ष करें। सन्देश देना वह भी जरूरी है लेकिन सन्देश वाहक बनाना वह भी आवश्यक है। अभी भी भिन्न-भिन्न वर्ग वाले आये हैं। बापदादा ने सुना, जो भी भिन्न-भिन्न वर्ग वाले आये हैं वह एक एक हाथ उठाओ।
(स्पोर्ट, एडमिनिस्टेटर, यूथ, आई. टी. ग्रुप, सभी वर्ग वालों से बापदादा ने हाथ उठवाये) जो भी वर्ग वाले आये हैं, मीटिंग तो की लेकिन बापदादा को हर वर्ग ने अपना सेवा में नम्बरवन आई.पी. सामने नहीं दिखाया है। कौन से वर्ग का कोई माइक तैयार हुआ है, बताओ। हर एक वर्ग का कोई ऐसा माइक तैयार किया है जो आप माइट बनो और वह माइक बनें? किस वर्ग वाले ने किया है? हाथ उठाओ। कौन किया है? अभी जो वर्गो का प्रोग्राम होगा, उसमें हर एक वर्ग अपने छोटे माइक ग्रुप को मधुबन में सामने लावे। यह तो कर सकते हैं ना! बापदादा भी देखे तो सही, कौन से बच्चे तैयार हुए हैं। बाप-दादा के आगे नहीं लाना, पहले दादियों के आगे लाओ। फिर वह पास करेंगे फिर बापदादा के सामने लाना। अच्छा है। अच्छा - सुना तो बहुत है। अभी सुनना अर्थात् समाना। समाना अर्थात् स्वरूप में लाना। अभी 6 लाख ब्राह्मण परिवार एक दो में सदा स्नेही, सहयोगी और सदा हिम्मत बढ़ाने वाले हों। अच्छा।
सेवा का टर्न राजस्थान का है, यू.पी. मददगार है:- अच्छा है ना, राजस्थान को बहुत चांस मिला है - ज्यादा पुण्य जमा करने का। देखो जितनी संख्या बढ़ गई, उतनी आत्माओं का पुण्य सेवाधारियों के खाते में जमा हुआ। तो राजस्थान को बिना संकल्प किये गोल्डन लाटरी पुण्य की मिली है। अच्छा है। राजस्थान को मिली तो सभी खुश हो रहे हैं। अच्छा है सबने अच्छा समय दे करके निभाया। और सेवा में सफलता प्राप्त की, इसकी मुबारक हो। अच्छा। (सभा से, आज सभा में 25 हजार से भी ज्यादा भाई बहिनें पहुंचे हैं) आप सभी ने भी दादियों को, सेवाधारियों को मुबारक दी। इतनी मेहनत कराई है। खूब तालियां बजाओ। अच्छा।
अभी एक सेकेण्ड में मन के मालिक बन मन को जितना समय चाहे उतना समय एकाग्र कर सकते हो? कर सकते हो? तो अभी यह रूहानी एक्सरसाइज करो। बिल्कुल मन की एकाग्रता हो। संकल्प में भी हलचल नहीं। अचल। अच्छा -
चारों ओर के सर्व अविनाशी अखण्ड खज़ानों के मालिक, सदा संगमयुगी श्रेष्ठ बन्धनमुक्त, जीवनमुक्त स्थिति पर स्थित रहने वाले, सदा बापदादा की आशाओं को सम्पन्न करने वाले, सदा एकता और एकाग्रता के शक्ति सम्पन्न मास्टर सर्व शक्तिवान आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
चारों ओर दूर बैठने वाले बच्चों को, जिन्होंने यादप्यार भेजी है, पत्र भेजे हैं, उन्हों को भी बापदादा बहुत-बहुत दिल के प्यार सहित यादप्यार दे रहे हैं। साथ-साथ बहुत बच्चों ने मधुबन की रिफ्रेशमेंट के पत्र बहुत अच्छे-अच्छे भेजे हैं, उन बच्चों को भी विशेष याद-प्यार और नमस्ते।