ओम् शान्ति 12-10-18 मधुबन
प्राणप्यारे अव्यक्त बापदादा के अति स्नेही, सदा परमात्म प्रेम के पात्र, स्नेह के अलौकिक विमान द्वारा तीनों लोकों की सैर करने वाले, अखण्ड खजानों के मालिक सर्व निमित्त सेवाधारी टीचर्स बहिनें तथा देश विदेश के सभी ब्रह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,
ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद मधुबन बेहद घर से स्वीकार करना जी। बाद समाचार - प्यारे बापदादा की यह अलौकिक मिलन की सीज़न आज से प्रारम्भ हुई है। इस पहले टर्न में चारों ओर से डबल विदेशी भाई बहिनें पहुंचे हुए हैं। पिछले 4 दिनों से ज्ञान योग की गहरी क्लासेज़, भिन्न-भिन्न विषयों पर वर्कशाप तथा योग तपस्या की अनुभूतियां कर रहे हैं। सेवाओंमें महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश के भाई बहिनें पहुंचे हुए हैं। आज 12 तारीख विशेष अव्यक्त मिलन का दिन है। सवेरे से ही सभी मन और मुख का मौन रख अव्यक्त वतन की सैर कर रहे हैं। चारों ओर बहुत शान्त सुखद वातावरण है। चारों ओर सफेद पोशधारी फरिश्ते शान्तिवन के विशाल प्रागंण में चलते फिरते नज़र आ रहे हैं। सभी के दिल में प्यारे अव्यक्त बापदादा के साथ-साथ हमारी मीठी दादी गुल्जार जी की भी याद समाई हुई है। पिछले 49 वर्षो से दादी जी के द्वारा प्यारे अव्यक्त बापदादा ने हम बच्चों को अनेकानेक वरदानों से भरपूर किया है। ज्ञान रत्नों की अखुट खान दी है। अभी तक दादी जी मुम्बई गामदेवी सेवाकेन्द्र पर स्वास्थ्य लाभ ले रही हैं। हम सभी की सूक्ष्म प्यार भरी सकाश दादी जी को बहुत शीघ्र ही शान्तिवन में खींचकर ले आयेगी, ऐसी सभी के दिल की शुभ भावनायें बापदादा के पास पहुंच रही हैं। जरूर बच्चों की आश बाबा पूरी करेंगे। आज क्लास के बाद विशेष प्यारे बापदादा को भोग लगाया गया। उसके बाद प्राण अव्यक्त बापदादा के 30-10-06 के विशेष महावाक्य जो डबल विदेशी भाई बहिनों प्रति बापदादा ने उच्चारण किये हैं, वह वीडियो द्वारा सभी ने सुने। बहुत शक्तिशाली योग का वातावरण है। सब परमात्म स्नेह में समाये हुए हैं। मुरली के पश्चात मधुर वाणी ग्रुप ने प्यारे बापदादा को मधुबन की इस बगिया में साकार रूप से बच्चों के मिलन महफिल में पधारने निमित्त स्नेह भरा गीत गाया। फिर सभी दादियों तथा भाईयों ने अपने दिल के उर्ार व्यक्त किये। इस ग्रुप में विदेश से बहुत नये नये बच्चे भी आये हैं। उन्हें भी बापदादा वतन से विशेष सर्व शक्तियों वरदानों से भरपूर कर रहे हैं। अव्यक्त महावाक्य जो वीडियो द्वारा हम सबने सुने हैं, वह आपके पास भेज रहे हैं। अपने-अपने क्लास में सुनाना जी।
12-10-18 - ओम शान्ति वीडियो द्वारा रिवाइज 31-10-06 मधुबन
''सदा स्नेही के साथ अखण्ड महादानी बनो तो विघ्न-विनाशक, समाधान स्वरूप बन जायेंगे''
आज प्रेम के सागर अपने परमात्म प्रेम के पात्र बच्चों से मिलने आये हैं। आप सब भी स्नेह के अलौकिक विमान से यहाँ पहुंच गये हो ना! साधारण प्लेन में आये हो वा स्नेह के प्लेन में उड़कर पहुंच गये हो? सभी के दिल में स्नेह की लहरें लहरा रही हैं और स्नेह ही इस ब्रह्मण जीवन का फाउण्डेशन है। तो आप सभी भी जब आये तो स्नेह ने खींचा ना! ज्ञान तो पीछे सुना, लेकिन स्नेह ने परमात्म स्नेही बना दिया। कभी स्वप्न में भी नहीं होगा कि हम परमात्म स्नेह के पात्र बनेंगे। लेकिन अब क्या कहते हो? बन गये। स्नेह भी साधारण स्नेह नहीं है, दिल का स्नेह है। आत्मिक स्नेह है, सच्चा स्नेह है, नि:स्वार्थ स्नेह है। यह परमात्म स्नेह बहुत सहज याद का अनुभव कराता है। स्नेही को याद करना मुश्किल नहीं, भूलना मुश्किल होता है। स्नेह एक अलौकिक चुम्बक है। स्नेह सहज योगी बना देता है, मेहनत से छुड़ा देता है। स्नेह से याद करने में मेहनत नहीं लगती। मुहब्बत का फल खाते हैं। स्नेह की निशानी विशेष चारों ओर के बच्चे तो हैं ही लेकिन डबल विदेशी स्नेह में दौड़-दौड़ कर पहुंच गये हैं। देखो, 90 देशों से कैसे भागकर पहुंच गये2 हैं! देश के बच्चे तो हैं ही प्रभु प्रेम के पात्र, लेकिन आज विशेष डबल विदेशियों को गोल्डन चांस है। आप सबका भी विशेष प्यार है ना! स्नेह है ना! कितना स्नेह है? किसी से तुलना कर सकते हो? कोई तुलना नहीं हो सकती। आप सबका एक गीत है ना - न आसमान में इतने तारे हैं, ना सागर में इतना जल है..., बेहद का प्यार, बेहद का स्नेह है। बापदादा भी स्नेही बच्चों से मिलने पहुंच गये हैं। आप सब बच्चों ने स्नेह से याद किया और बापदादा आपके प्यार में पहुंच गये हैं। जैसे इस समय हर एक के चेहरे पर स्नेह की रेखा चमक रही है। ऐसे ही अब एडीशन क्या करना है? स्नेह तो है, यह तो पक्का है। बापदादा भी सर्टीफिकेट देते हैं कि स्नेह है। अभी क्या करना है? समझ तो गये हो। अभी सिर्फ अण्डरलाइन करना है - सदा स्नेही रहना है, सदा। समटाइम नहीं। स्नेह है अटूट लेकिन परसेन्टेज़ में अन्तर पड़ जाता है। तो अन्तर मिटाने के लिए क्या मन्त्र है? हर समय महादानी, अखण्डदानी बनो। सदा दाता के बच्चे विश्व सेवाधारी समान। कोई भी समय मास्टर दाता बनने के बिना नहीं रहे क्योंकि विश्व कल्याण के कार्य प्रति बाप के साथ-साथ आपने भी मददगार बनने का संकल्प किया है। चाहे मन्सा द्वारा शक्तियों का दान वा सहयोग दो। वाचा द्वारा ज्ञान का दान दो, सहयोग दो। कर्म द्वारा गुणों का दान दो और स्नेह सम्पर्क द्वारा खुशी का दान दो। कितने अखण्ड खजानों के मालिक, रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड हो। अखुट और अखण्ड खजाने हैं। जितने देंगे उतने बढ़ते जाते हैं। कम नहीं होंगे, बढ़ेंगे क्योंकि वर्तमान समय इन खजानों के मेजोरिटी आप सबके आत्मिक भाई और बहनें प्यासी हैं। तो क्या अपने भाई बहिनों के ऊपर तरस नहीं पड़ता! क्या प्यासी आत्माओंकी प्यास नहीं बुझायेंगे? कानों में आवाज नहीं आता ''हे हमारे देव देवियां हमें शक्ति दो, सच्चा प्यार दो''। आपके भक्त और दु:खी आत्मायें दोनों ही - दया करो, कृपा करो, हे कृपा के देव और देवियां कहकर चिल्ला रहे हैं। समय की पुकार सुनाई देती है ना! और समय भी देने का अब है। फिर कब देंगे? इतना अखुट अखण्ड खजाने जो आपके पास जमा हैं, तो कब देंगे? क्या लास्ट टाइम, अन्तिम समय देंगे? उस समय सिर्फ अंचली दे सकेंगे। तो अपने जमा हुए खजाने कब कार्य में लगायेंगे? चेक करो हर समय कोई न कोई खजाना सफल कर रहे हैं! इसमें डबल फायदा है, खजाने को सफल करने से आत्माओं का कल्याण भी होगा और साथ में आप सब भी महादानी बनने के कारण विघ्न-विनाशक, समस्या स्वरूप नहीं, समाधान स्वरूप सहज बन जायेंगे। डबल फायदा है। आज यह आया, कल यह आया, आज यह हो गया, कल वह हो गया। विघ्न-मुक्त, समस्या मुक्त सदा के लिए बन जायेंगे। जो समस्या के पीछे समय देते हो, मेहनत भी करते हो, कभी उदास बन जाते, कभी उल्हास में आ जाते, उससे बच जायेंगे क्योंकि बापदादा को भी बच्चों की मेहनत अच्छी नहीं लगती। जब बापदादा देखते हैं, बच्चे मेहनत में हैं, तो बच्चों की मेहनत बाप से देखी नहीं जाती। तो मेहनत मुक्त। पुरुषार्थ करना है लेकिन कौन सा पुरुषार्थ? क्या अभी तक अपनी छोटी-छोटी समस्याओंमें पुरुषार्थी रहेंगे! अब पुरुषार्थ करो अखण्ड महादानी, अखण्ड सहयोगी। ब्रह्मणों में सहयोगी बनो और दु:खी आत्मायें, प्यासी आत्माओंके लिए महादानी बनो। अब इस पुरुषार्थ की आवश्यकता है। पसन्द है ना! पसन्द है? पीछे वाले पसन्द है! तो अभी कुछ चेंज भी करना चाहिए ना, वही स्व प्रति पुरुषार्थ बहुत टाइम किया। कैसे पाण्डव! पसन्द है? तो कल से क्या करेंगे? कल से ही शुरू करेंगे या अब से? अब से संकल्प करो - मेरा समय, संकल्प विश्व की सेवा प्रति है। इसमें स्व का ऑटोमेटिक हो ही जायेगा, रहेगा नहीं, बढ़ेगा। क्यों? किसी को भी आप उसकी आशायें पूरी करेंगे, दु:ख के बजाए सुख देंगे, निर्बल आत्माओंको शक्ति देंगे, गुण देंगे, तो वह कितनी दुआयें देंगे। और सबसे दुआयें लेना यही आगे बढ़ने का सबसे सहज साधन है। चाहे भाषण नहीं करो, प्रोग्राम ज्यादा नहीं कर सकते हो, कोई हर्जा नहीं, कर सकते हो तो और ही करो। लेकिन नहीं भी कर सकते हो तो कोई हर्जा नहीं, खजानों को सफल करो। सुनाया ना - मन्सा से शक्तियों का खजाना देते जाओ। वाणी से ज्ञान का खजाना, कर्म से गुणों का खजाना और बुद्धि से समय का खजाना, सम्बन्ध-सम्पर्क से खुशी का खजाना सफल करो। तो सफल करने से सहज सफलता मूर्त बन ही जायेंगे। सहज उड़ते रहेंगे क्योंकि दुआयें एक लिफ्ट का काम करती हैं, सीढ़ी का नहीं। समस्या आई, मिटाया, कभी दो दिन लगाया, कभी दो घण्टा लगाया, यह सीढ़ी चढ़ना है। सफल करो, सफलता मूर्त बनो, तो दुआओंकी लिफ्लाट से जहाँ चाहो वहाँ सेकण्ड में पहुंच जायेंगे। चाहे सूक्ष्मवतन में पहुंचो, चाहे परमधाम में पहुंचो, चाहे अपने राज्य में पहुंचो, सेकण्ड में। लण्डन में प्रोग्राम किया था ना वन मिनट। बापदादा तो कहते हैं वन सेकण्ड। वन सेकण्ड में दुआओंकी लिपÌट में चढ़ जाओ। सिर्फ स्मृति का स्वीच दबाओ बस, मेहनत मुक्त। आज डबल विदेशियों का दिन है ना तो बापदादा पहले डबल विदेशियों को किस स्वरूप में देखने चाहते हैं? मेहनत मुक्त, सफलता मूर्त, दुआओंके पात्र। बनेंगे ना? क्योंकि डबल विदेशियों का बाप से प्यार अच्छा है, शक्ति चाहिए लेकिन प्यार अच्छा है। कमाल तो की है ना? देखो 90 देशों से अलग-अलग देश, अलग-अलग रसम-रिवाज लेकिन 5 ही खण्डों के एक चन्दन के वृक्ष बन गये हैं। एक वृक्ष में आ गये हैं। एक ही ब्रह्मण कल्चर हो गया, अभी इंगलिश कल्चर है क्या? हमारा कल्चर इंगलिश है... नहीं ना! ब्रह्मण है ना? जो समझते हैं अभी तो हमारा ब्रह्मण कल्चर है वह हाथ उठाओ। ब्रह्मण कल्चर और एडीशन नहीं। एक हो गये ना! बापदादा इसकी मुबारक दे रहे हैं कि सभी एक वृक्ष के बन गये। कितना अच्छा लगता है! किसी से भी पूछो, अमेरिका से पूछो, यूरोप से पूछो, आप कौन हो? तो क्या कहेंगे? ब्रह्मण हैं ना! या कहेंगे यू.के. के हैं, अफ्रीकन हैं, अमेरिकन हैं नहीं, सब एक ब्रह्मण हो गये, एक मत हो गये, एक स्वरूप के हो गये। ब्रह्मण और एक मत श्रीमत। इसमें मज़ा आता है ना! मज़ा है या मुश्किल है? मुश्किल तो नहीं है ना! कांध हिला रहे हैं, अच्छा है। बापदादा सेवा में नवीनता क्या चाहता है? जो भी सेवा कर रहे हो - बहुत-बहुत-बहुत अच्छी कर रहे हो, उसकी तो मुबारक है ही। लेकिन आगे एडीशन क्या करना है? आप लोगों के मन में है ना कोई नवीनता चाहिए। तो बापदादा ने देखा, जो भी प्रोग्राम किये हैं, समय भी दिया है, और मुहब्बत से ही किया है, मेहनत भी मुहब्बत से की है और अगर स्थूल धन भी लगाया है तो वह तो पदमगुणा होके आपके परमात्म बैंक में जमा हो गया है। वह लगाया क्या, जमा किया है। रिजल्ट में देखा गया कि संदेश पहुंचाने का कार्य, परिचय देने का कार्य सभी ने बहुत अच्छा किया है। चाहे कहाँ भी किया, अभी दिल्ली में हो रहा है, लण्डन में हुआ और डबल फारेनर्स जो कॉल ऑफ टाइम वा पीस ऑफ माइण्ड का प्रोग्राम करते हैं, वह सब प्रोग्राम बापदादा को बहुत अच्छे लगते हैं। और जो भी काम कर सको करते रहो। सन्देश तो मिलता है, स्नेही भी बनते हैं, सहयोगी भी बनते हैं, सम्बन्ध में भी कोई-कोई आ जाते हैं लेकिन अभी एडीशन चाहिए - जब भी कोई बड़ा प्रोग्राम करते हो उसमें सन्देश तो मिलता है, लेकिन कुछ अनुभव करके जायें, वह अनुभव बहुत जल्दी आगे बढ़ाता है। जैसे यह कॉल ऑफ टाइम में या पीस ऑफ माइन्ड में अनुभव थोड़ा ज्यादा करते हैं। लेकिन जो बड़े प्रोग्राम होते हैं उसमें सन्देश तो अच्छा मिल जाता है, लेकिन जो भी आवे उसकी पीठ करके अनुभव कराने का लक्ष्य रखो, कुछ न कुछ अनुभव करे, क्योंकि अनुभव कभी भूलता नहीं है और अनुभव ऐसी चीज़ है जो न चाहते हुए भी उस तरफ खीचेंगे। तो बापदादा पूछते हैं - पहले जो सभी ब्रह्मण हैं, वह ज्ञान की जो भी प्वाइंटस हैं, उनके स्वयं अनुभवी बने हो? हर शक्ति का अनुभव किया है, हर गुण का अनुभव किया है? आत्मिक स्थिति का अनुभव किया है? परमात्म प्यार का अनुभव किया है? ज्ञान समझना इसमें तो पास हो, नाॅलेजफुल तो बन गये हो, इसमें तो बापदादा भी रिमार्क्स देते हैं, ठीक है। आत्मा क्या, परमात्मा क्या, ड्रामा क्या, ज्ञान तो समझ लिया है, लेकिन जब चाहे जितना समय चाहे, जिस भी परिस्थिति में हो, उस परिस्थिति में आत्मिक बल का अनुभव हो, परमात्म शक्ति का अनुभव हो, वह होता है? जिस समय, जितना समय, जैसे अनुभव करने चाहो वैसे होता है? कि कभी कैसे, कभी कैसे? सोचो आत्मा हूँ, और फिर बार-बार देहभान आ जाए, तो अनुभव क्या काम में आया? अनुभवी मूर्त हर सब्जेक्ट के अनुभवी मूर्त, हर शक्तियों के अनुभवी मूर्त। तो स्वयं में भी अनुभव को और बढ़ाओ। है, ऐसे नहीं कि नहीं है, लेकिन कभी-कभी है, समटाइम। तो बापदादा समटाइम नहीं चाहते हैं, समथिंग हो जाता है, तो समटाइम भी हो जाता है क्योंकि आप सबका लक्ष्य है, पूछते हैं क्या बनने का लक्ष्य है? तो कहते हो बाप समान। एक ही जवाब सभी देते हो। तो बाप समान, अब बाप तो समटाइम और समथिंग नहीं था, ब्रह्मा बाप सदा राज़युक्त, योगयुक्त, हर शक्ति में सदा, कभी-कभी नहीं। अनुभव जो होता है, वह सदाकाल चलता है, वह सम टाइम नहीं होता है। तो स्वयं अनुभवी मूर्त बन हर बात में, हर सबजेक्ट में अनुभवी, ज्ञान स्वरूप में अनुभवी, योगयुक्त में अनुभवी, धारणा स्वरूप में अनुभवी। आलराउण्ड सेवा मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क सबमें अनुभवी, तब कहेंगे पास विद आनर। तो क्या बनने चाहते हो? पास होने चाहते हो या पास विद ऑनर बनने चाहते हो? पास करने वाले तो पीछे भी आयेंगे, आप तो टूलेट से पहले आ गये हो, चाहे अभी नये भी आये हैं लेकिन टूलेट का बोर्ड नहीं लगा है। लेट का लगा है, टूलेट का नहीं लगा है। इसीलिए चाहे कोई नये भी हैं लेकिन अभी भी तीव्र पुरुषार्थ करे, पुरुषार्थ नहीं तीव्र, तो आगे जा सकता है क्योंकि नम्बर आउट नहीं हुआ है। सिर्फ दो नम्बर आउट हुए हैं, बाप और माँ। अच्छा - अभी सेकण्ड में जिस स्थिति में बापदादा डायरेक्शन दे उसी स्थिति में सेकण्ड में पहुंच सकते हो! कि पुरुषार्थ में समय चला जायेगा? अभी प्रैक्टिस चाहिए सेकण्ड की क्योंकि आगे जो फाइनल समय आने वाला है, जिसमें पास विद ऑनर का सर्टीफिकेट मिलना है, उसका अभ्यास अभी से करना है। सेकण्ड में जहाँ चाहे, जो स्थिति चाहिए उस स्थिति में स्थित हो जाएं। तो एवररेडी। रेडी हो गये। अभी पहले एक सेकण्ड में पुरुषोत्तम संगमयुगी श्रेष्ठ ब्रह्मण हूँ, इस स्थिति में स्थित हो जाओ.... अभी मैं फरिश्ता रूप हूँ, डबल लाइट हूँ..., अभी विश्व कल्याणकारी बन मन्सा द्वारा चारों ओर शक्ति की किरणें देने का अनुभव करो। ऐसे सारे दिन में सेकण्ड में स्थित हो सकते हैं! इसका अनुभव करते रहो क्योंकि अचानक कुछ भी होना है। ज्यादा समय नहीं मिलेगा। हलचल में सेकण्ड में अचल बन सकें इसका अभ्यास स्वयं ही अपना समय निकाल बीचबीच में करते रहो। इससे मन का कन्ट्रोल सहज हो जायेगा। कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर बढ़ती जायेगी। अच्छा! चारों ओर के बच्चों के पत्र भी बहुत आये हैं, अनुभव भी बहुत आये हैं, तो बापदादा बच्चों को रिटर्न में बहुत-बहुत दिल की दुआयें और दिल का याद प्यार पदम-पदमगुणा दे रहे हैं। बापदादा देख रहे हैं - चारों ओर के बच्चे सुन भी रहे हैं, देख भी रहे हैं। जो नहीं भी देख रहे हैं, वह भी याद में तो हैं। सबकी बुद्धि इस समय मधुबन में ही है। तो चारों ओर के हर एक बच्चे को नाम सहित यादप्यार स्वीकार हो। सभी सदा उमंग-उत्साह के पंखों द्वारा ऊंची स्थिति में उड़ते रहने वाले श्रेष्ठ आत्माओंको, सदा स्नेह में लवलीन रहने वाले समाये हुए बच्चों को, सदा मेहनत मुक्त, समस्या मुक्त, विघ्न-मुक्त, योगयुक्त, राज़युक्त बच्चों को, सदा हर परिस्थिति में सेकण्ड में पास होने वाले, हर समय सर्व शक्ति स्वरूप रहने वाले मास्टर सर्वशक्तिवान बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
| | |
ओम् शान्ति 15-12-18 मधुबन
प्राणप्यारे अव्यक्तमूर्त मात-पिता बापदादा के अति स्नेही, सदा लक्ष्य और लक्षण को समान बनाने वाले, सम्बन्ध, संस्कार, सम्बन्ध सबमें हल्का रह अपनी कर्मातीत स्थिति की समीपता का अनुभव करने वाले, इस अलौकिक अव्यक्त पालना का रिटर्न देने वाली निमित्त टीचर्स बहिनें तथा सर्व ब्रह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,
ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार करना जी।
बाद समाचार - प्यारे बापदादा के अवतरण का यह पांचवा ग्रुप गुजरात ज़ोन का है। बापदादा कहते गुजरात तो मधुबन का दूसरा कमरा है। यज्ञ की हर सेवा में सभी सदा हाँ जी करते, तन-मन-धन से सदा सहयोगी रहते हैं। समय प्रमाण मीठे बापदादा हमारी मीठी दादी प्रकाशमणि जी का उदाहरण देते हुए अब सभी को डबल लाइट रहने की विशेष प्रेरणा दे रहे हैं।
अभी तो जनवरी मास समीप आ रहा है। यह 2019 अव्यक्त पालना की गोल्डन जुबिली का वर्ष है। वैसे तो जनवरी मास में सभी बाबा के स्नेही बच्चे अन्तर्मुखता की गुफा में बैठ विशेष तपस्या करते ही हैं। चारों ओर बहुत अच्छी लहर होती है। परन्तु इस वर्ष विशेष सबको 50 दिन के लिए योग तपस्या का कार्यक्रम अपने-अपने स्थानों पर रखना है।
अभी तो हम सबके अन्दर यही शुभ संकल्प है कि अब जल्दी से जल्दी विश्व में बापदादा की प्रत्यक्षता हो क्योंकि परमात्म प्रत्यक्षता ही विश्व परिवर्तन का आधार है। इसके लिए वाचा सेवाओंके साथ अभी आवश्यकता है पावरफुल मन्सा सेवा की। जितना हमारी मन्सा शुद्ध शक्तिशाली, शुभ भावनाओंसे सम्पन्न होगी उतना ही प्रकृति सहित सर्व आत्माओंतक सकाश पहुंचेंगी। तो जरूर आप सभी नये वर्ष में नवीनता सम्पन्न योग तपस्या के कार्यक्रम बनाना जी। कम से कम हर सेवाकेन्द्र पर 50 दिन अखण्ड योग तपस्या के प्रोग्राम चलें ताकि छोटी मोटी बातें जो पुरुषार्थ में विघ्न रूप बनती हैं वह सब समाप्त हो जाएं। इसके लिए मन की शुद्धता, बुद्धि की एकाग्रता, वाणी की मधुरता का विशेष हर एक चार्ट भी रखे और प्रतिदिन कम से कम 4 घण्टा पावरफुल योग करते विश्व को सकाश देने की सेवा करे। तो बापदादा की रही हुई सब आशायें सहज पूरी हो जायेंगी।
प्यारे बापदादा से तो सभी का जिगरी प्यार है इसलिए अव्यक्त अनुभूतियां करने के लिए सभी अपने-अपने टर्न अनुसार मधुबन पहुंच जाते हैं। बापदादा भी वतन से बच्चों को हर प्रकार की भासना वा पालना का अनुभव कराते हैं। आने वाले सभी भाई बहिनें बहुत अच्छी अनुभूतियां करते हैं।
हम सबने जो इस टर्न में अव्यक्त महावाक्य वीडियो द्वारा सुने हैं वह आपके पास भेज रहे हैं। सभी को रिफ्रेश करना जी। ओम् शान्ति।
ओम् शान्ति 15-12-18 ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज-वीडियो 5-2-09 मधुबन
''सेवा करते डबल लाइट स्थिति द्वारा फरिश्तेपन की अवस्था में रहो, अशरीरी बनने का अभ्यास करो''
आज बापदादा चारों ओर के बच्चों के तीन रूप देख रहे हैं - जैसे बाप के तीन रूप जानते हो, ऐसे बच्चों के भी तीन रूप देख रहे हैं। जो इस संगमयुग का लक्ष्य और लक्षण है, पहला स्वरूप ब्रह्मण, दूसरा फरिश्ता, तीसरा देवता। ब्रह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता। तो वर्तमान समय अभी विशेष क्या लक्ष्य सामने रहता है? क्योंकि फरिश्ता बनने के बिना देवता नहीं बन सकते। तो वर्तमान समय और स्वयं के पुरुषार्थ प्रमाण अभी लक्ष्य यही है फरिश्ता। संगमयुग का सम्पन्न स्वरूप फरिश्ता सो देवता बनना है। फरिश्ते की परिभाषा जानते भी हो, फरिश्ता अर्थात् पुरानी दुनिया के सम्बन्ध, संस्कार, संकल्प से हल्का हो। पुराने संस्कार सबमें हल्के हों। सिर्फ अपने संस्कार स्वभाव, संसार में हल्कापन नहीं, लेकिन फरिश्ता अर्थात् सर्व के सम्बन्ध में आते सर्व के स्वभाव संस्कार में हल्कापन। इस हल्केपन की निशानी क्या है? वह फरिश्ता आत्मा सर्व के प्यारे होंगे। कोई कोई के प्यारे नहीं, सर्व के प्यारे। जैसे ब्रह्मा बाप को हर एक समझता है मेरा है। मेरा बाबा कहते हैं। ऐसे फरिश्ता अर्थात् सर्व के प्रिय। कई बच्चे सोचते हैं कि ब्रह्मा बाबा तो ब्रह्मा ही था, लेकिन आप सबने आप समान ब्रह्मण आत्माओं में देखा कि आप सबकी प्यारी दादी, जिसको सभी प्यार से अनुभव करते रहे कि मेरी दादी है। सर्व तरफ स्वभाव, संस्कार और इस पुराने संसार में रहते न्यारी और प्यारी, सब हक से कहते हमारी दादी। तो कारण क्या? स्वयं स्वभाव, संस्कार में हल्के। सबको मेरापन अनुभव कराया। तो एक्जैम्पुल रहा। जगत अम्बा का भी देखा लेकिन कई सोचते हैं वह तो जगत अम्बा थी ना। लेकिन दादी आप ब्रह्मण परिवार जैसी साथी थी। उनसे अगर पुरुषार्थ सुनते वा पूछते तो उनके मुख में सदैव एक ही शब्द रहा - ''अब कर्मातीत बनना है।'' कर्मातीत बनने की लगन में औरों को भी यही शब्द बार-बार याद दिलाती रही। तो हर ब्रह्मण का अभी लक्ष्य और लक्षण विशेष यही रहना चाहिए, है भी लेकिन नम्बरवार है। यही लगन हो अब फरिश्ता बनना ही है। फरिश्ता अर्थात् इस देह, साकार देह से न्यारा, सदा लाइट के देहधारी। फरिश्ता अर्थात् इस कर्मेन्द्रियों के राजा।
बापदादा ने पहले भी सुनाया कि सारे सृष्टि चक्र के अन्दर एक ही बापदादा है जो फलक से कहते हैं कि मेरा एक एक बच्चा राजा बच्चा है, स्वराज्य अधिकारी है। तो फरिश्ता अर्थात् स्वराज्य अधिकारी। ऐसा स्वराज्य अधिकारी आत्मा, लाइट के स्वरूपधारी। कोई भी ऐसे लाइट के डबल हल्केपन की स्थिति में स्थित होंके अगर कोई को भी मिलते हैं तो उनके मस्तक में आत्मा ज्योति का भान चलते फिरते भी दिखाई देगा। अभी यह तीव्र पुरुषार्थ का लक्ष्य और लक्षण सदा इमर्ज रखो। जैसे ब्रह्मा बाप में देखा अगर कोई भी मिलता, दृष्टि लेता तो बात करते-करते क्या दिखाई देता? और लास्ट में अनुभव किया कि ब्रह्मा बाप बात करते-करते भी मीठी अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाता। चाहे कितना भी सर्विस समाचार हो, लेकिन दूसरों को भी सेकण्ड में अशरीरीपन का अनुभव कराते रहे और कोई भी मुरली में चेक करो, तो बार-बार मैं अशरीरी आत्मा हूँ, आत्मा का पाठ एक ही मुरली में कितने बार याद दिलाते रहे। तो अभी समय अनुसार छोटी-छोटी विस्तार की बातें, स्वभाव-संस्कार की बातें अशरीरी अवस्था से दूर कर देती हैं। अभी इसमें परिवर्तन चाहिए।
बापदादा ने देखा सेवा में रिजल्ट अच्छी हो रही है, सेवा के लिए मैजारिटी को उमंग-उत्साह है, प्लैन भी बनाते रहते हैं, सन्देश देना यह भी आवश्यक है और बापदादा ने आज भी भिन्न-भिन्न वर्ग की, भिन्न-भिन्न स्थान के सेवा की अच्छी रिजल्ट देखी लेकिन सेवा के साथ अशरीरीपन का वायुमण्डल मेहनत कम और प्रभाव ज्यादा डालता है। सुना हुआ अच्छा तो लगता है, लेकिन वायुमण्डल से अशरीरीपन की दृष्टि से अनुभव करते हैं और अनुभव भूलता नहीं है। तो फरिश्तेपन की धुन अभी सेवा में विशेष एडीशन करो। कोई न कोई शान्ति का, खुशी का, सुख का, आत्मिक प्रेम का अनुभव कराओ। चलन में प्यार प्रेम और जो खातिरी करते हो, सम्बन्ध से, परिवार से वह तो अनुभव करके जाते हैं लेकिन अतीन्द्रिय सुख की फीलिंग, शान्ति का रूहानी नशा अभी वायुमण्डल और वायब्रेशन द्वारा विशेष अटेन्शन में रखो। विशेष अनुभव कराओ, कोई न कोई अनुभव कराओ। जैसे सिस्टम में प्रभावित होके जाते हैं ऐसी सिस्टम परिवार के प्यार की और कहाँ भी नहीं मिलती, ऐसे अभी कोई न कोई शक्ति का, कोई न कोई प्राप्ति का अनुभव करके जायें।
अभी तक ब्रह्माकुमारियां काम कर रही हैं, ब्रह्माकुमारियों का ज्ञान अच्छा है। देने वाला कौन! चलाने वाला कौन! सोर्स कौन! आप सबसे बाबा शब्द सुन करके कहते भी हैं बाबा है इन्हों का, लेकिन मेरा वही बाबा है, बाप की प्रत्यक्षता अभी गुप्त रूप में है। बाबा बाबा कहते हैं, लेकिन मेरा बाबा, मैं बाबा का, बाबा मेरा, यह कोटों में कोई के मुख से निकलता है।
तो संगमयुग का लक्ष्य क्या है? हम सब आत्माओंका बाप आ गया, वर्सा तो बाप द्वारा मिलेगा ना! वह प्रभाव फरिश्ता अवस्था से वायुमण्डल फैलेगा। इन्हों की दृष्टि से लाइट मिलती है, इन्हों की दृष्टि में रूहानियत की लाइट नज़र आती है, तो अभी तीव्र पुरुषार्थ का यही लक्ष्य रखो मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ, चलते फिरते फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति को बढ़ाओ। अशरीरीपन के अनुभव को बढ़ाओ। सेकण्ड में कोई भी संकल्पों को समाप्त करने में, संस्कार स्वभाव में डबल लाइट। कई बच्चे कहते हैं हम तो हल्के रहते हैं लेकिन हमको दूसरे जानते नहीं हैं। लेकिन ऐसे डबल लाइट फरिश्ता, तो डबल लाइट की लाइट क्या छिप सकती है? छोटी सी स्थूल लाइट टार्च हो या माचिस की तीली हो लाइट कहाँ भी जलेगी, छिपेगी नहीं और यह तो रूहानी लाइट है, तो अपने वायुमण्डल से उन्हों को अनुभव कराओ कि यह कौन हैं! चाहे जगदम्बा चाहे दादी ने कहा नहीं कि मुझे जानते नहीं हैं। अपने वायुमण्डल से सर्व की प्यारी रही। इसीलिए दादी का मिसाल देते हैं क्योंकि ब्रह्मा बाप के लिए भी सोचते हैं ब्रह्मा बाबा में तो शिवबाबा था, शिव बाप के लिए भी सोचते कि वह तो है ही निराकार, न्यारा और निराकार, हम तो स्थूल शरीरधारी हैं। इतने बड़े संगठन में रहने वाले हैं, हर एक के संस्कार के बीच में रहने वाले हैं, संस्कार को मिलाना अर्थात् फरिश्ता बनना। संस्कार को देख कई बच्चे दिलशिकस्त भी हो जाते हैं, बाबा बहुत अच्छा, ब्रह्मा बाप बहुत अच्छा, ज्ञान बहुत अच्छा, प्राप्तियां बहुत अच्छी, लेकिन संस्कार स्वभाव मिलाना अर्थात् सर्व के प्यारे बनना। कोई कोई के प्यारे नहीं, क्योंकि कई बच्चे कहते हैं कि कोई कोई से प्यार विशेषता को देख करके भी हो जाता है। इनका भाषण बहुत अच्छा है, इसमें फलानी विशेषता बहुत अच्छी है, वाणी बहुत अच्छी है, फरिश्ता बनने में यह विघ्न आता है। प्यारा भले बनाओ, लेकिन मैं आत्मा न्यारी हूँ, न्यारी स्टेज से प्यारा बनाओ। विशेषता से प्यारा नहीं। यह इसका गुण मुझे बहुत अच्छा लगता है ना, वह धारण भले करो लेकिन इसके कारण सिर्फ प्यारा बनना वह रांग है। फरिश्ता सभी का प्यारा। हर एक कहे मेरा, अपनापन अनुभव हो। ऐसी फरिश्ते अवस्था में विघ्न दो चीज़ें डालती हैं। एक तो देह भान, वह तो नेचुरल सबको अनुभव है, 63 जन्म का फिर फिर देहभान प्रगट हो जाता है और दूसरा है देह अभिमान, देह भान और देह अभिमान, ज्ञान में जितना आगे जाते हैं, तो स्वयं के प्रति भी कभी कभी देह-अभिमान आ जाता है, वह अभिमान नीचे गिराता है, देह अभिमान क्या आता है? जो भी कोई विशेषता है ना, उस विशेषता के कारण अभिमान रहता है, मैं कोई कम हूँ, मेरा भाषण सबको पसन्द आता है। मेरी सेवा का प्रभाव पड़ता है, कोई भी कला, मेरी हैण्डलिंग बहुत अच्छी है, मेरा कोर्स कराना बहुत अच्छा है।कोई न कोई ज्ञान में आगे बढ़ने में, सेवा में आगे बढ़ने में यह अभिमान अपने प्रति भी आता और दूसरे के गुण या कला या विशेषता प्रति भी प्यार हो जाता। लेकिन याद कौन आयेगा? देहभान ही याद आयेगा ना, फलाना बुद्धि का बहुत अच्छा है, मेरी हैण्डलिंग बहुत अच्छी है, यह अभिमान सेवा वा पुरुषार्थ में आगे बढ़ने वालों को अभिमान के रूप में आता है। तो यह भी चेक करना है और अभिमान वाले को अभिमान है तो इसको चेक करने का साधन है, अभिमान वाले को जरा भी कोई ने अपमान किया, उसके विचार का, उसकी राय का, उसकी कला का, उसकी हैण्डलिंग का अपमान बहुत जल्दी महसूस होगा। और अपमान महसूस हुआ, उसकी और सूक्ष्म निशानी क्रोध का अंश पैदा होता है, रोब। वह फरिश्ता बनने नहीं देता। तो वर्तमान समय के हिसाब से बापदादा फिर से इशारा दे रहा है, अपना संगमयुग का लास्ट स्वरूप फरिश्ता अब जीवन में प्रत्यक्ष करो, साकार में लाओ। फरिश्ता बनने से अशरीरी बनना बहुत सहज हो जायेगा। अपनी चेकिंग करो, कि अपनी विशेषता या और किसकी विशेषता से सूक्ष्म रूप में भी कोई लगाव वा अभिमान तो नहीं है? कई बच्चों की अवस्था कोई छोटी सी बात भी होगी ना तो नीचे ऊपर हो जाती है। दिलखुश, चेहरा खुश.. उसके बजाए या चिंतन वाला चेहरा या चिंता वाला चेहरा हो जाता और चलते-चलते दिलशिकस्त भी हो जाते। दिलखुश के बजाए दिलशिकस्त। तो समझा, अब अपने संगमयुग की लास्ट स्टेज फरिश्तेपन के संस्कार इमर्ज करो। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, फालो फादर करना है ना। बात करतेकरते लास्ट में कई बच्चों को अनुभव है, सुनाने आये समाचार लेकिन समाचार से परे, आवाज से परे स्थिति का अनुभव किया हुआ देखा है। कई बातों का समाचार सुनाने, बहुत प्लैन बनाकर आते यह बताऊंगा, यह बताऊंगा, यह पूछूंगा.. लेकिन सामने आते क्या बोलना था वही भूल जाता। तो यह है फरिश्ता अवस्था। तो आज क्या पाठ पक्का किया? मैं कौन? फरिश्ता। किसी बातों से, किसी की विशेषताओंसे वा अपनी विशेषता से, देह अभिमान से परे डबल लाइट फरिश्ता क्योंकि फरिश्ता बनने के बिना देवता का ऊंचा पद नहीं मिलेगा। सतयुग में तो आ जायेंगे, क्योंकि बच्चे बने हैं, वर्सा तो मिलेगा लेकिन श्रेष्ठ पद नहीं। जो वायदा है सदा साथ रहेंगे, साथ-साथ राज्य करेंगे, तख्त पर भले नहीं बैठे लेकिन राज्य अधिकारी बनें, वहाँ की राज्य सभा देखी है ना। जो भी राज्य सभा के अधिकारी हैं, वह तिलक और ताजधारी, राज्य का तिलक, राज्य की निशानी ताज। तो बहुत समय से स्वराज्य अधिकारी, बीच-बीच में नहीं। बहुत समय के स्वराज्य अधिकारी तख्त पर भले नहीं बैठे लेकिन रॉयल फैमिली के अधिकारी बन जाते हैं। अच्छा।
अच्छा, आज जो पहली बारी आये हैं वह उठो। अच्छा, पौनी सभा तो उठी हुई है। अच्छा जो भी पहली बारी आये हैं, उन सभी को बाप से साकार में मिलने की, पहले बारी की जन्म की मुबारक हो।
सेवा का टर्न गुजरात का है:-
अच्छा गुजरात के जो नये पहली बारी आये हैं वह उठो। जो बाप से पहले बारी मिलने आये हैं गुजरात के, हाथ हिलाओ। अच्छा हुआ, आ तो गये। अपना मधुबन, बापदादा का मधुबन तो देखा। इसकी भी मुबारक हो। अच्छा, अभी सभी गुजरात के उठो। बापदादा शुरू से गुजरात को मधुबन का कमरा समझते हैं।
जैसे सेवा पर अटेन्शन देते हो तो सेवा वृद्धि को तो पाई है ना, बापदादा खुश है लेकिन अभी धारणा के ऊपर अटेन्शन और चाहिए क्योंकि अन्त में सेवा चाहेंगे तो भी नहीं कर सकेंगे, अभी कर ली सो कर ली। उस समय फरिश्ता लाइफ या अशरीरी बनने का सेकण्ड में बिन्दु लगाने का, यही काम में आना है। और अचानक होना है। इसका अभ्यास अगर कम होगा, सेवा में ही लगे रहे तो रिजल्ट क्या होगी! सेवा में लगना है लेकिन दोनों का बैलेन्स चाहिए।
बापदादा बार-बार इशारा दे रहा है कि अचानक होना है और ऐसी सरकमस्टांश में होना है इसीलिए बाप को उल्हना कोई नहीं दे कि आपने बताया नहीं। बार-बार भिन्न-भिन्न इशारे दे रहे हैं। सेवा का फल मिलता है, सेवा की मार्क्स हैं, क्योंकि चार सबजेक्ट हैं ना, तो सेवा के सबजेक्ट की मार्क्स मिलेंगी लेकिन और तीन सबजेक्ट! अगर एक सबजेक्ट में आपने मार्क्स ले ली और तीन में कम ली तो नम्बर क्या मिलेगा? चार ही में फर्स्ट नम्बर आना चाहिए। यह बापदादा की हर बच्चों के प्रति शुभ आश है। अच्छा।
चारों ओर के दिलखुश, दिल सच्ची, दिल साफ वालों को हर संकल्प, मुराद हासिंल। इसका अर्थ है जो भी संकल्प किया उसकी सफलता प्राप्त होना। तो ऐसे तीनों विशेषता, बड़ी दिल, साफ दिल और सच्ची दिल वाले, ऐसे चारों ओर के बच्चों को बापदादा देख पदमगुणा से भी ज्यादा खुश होते हैं और ऑटोमेटिक गीत बजता है, वाह! वाह मेरे बच्चे वाह! सदा मुबारक के पात्र बच्चे वाह!
दादी जानकी जी:-
ओम शान्ति। जैसा लक्ष्य रखा है उस लक्ष्य अनुसार लक्षण भी आ जाये, आ गये हैं ना, बोलो बाबा की कमाल है ना। आज के दिन ऐसे सहजयोगी, राजयोगी चलते फिरते, खाते खिलाते, फरिश्ते की लाइफ अब न बनेगी तो कब बनेगी। संगयमुग के दिन कितने प्यारे हैं, बाबा हमारे साथ है, साथ है साथी बनने के लिए, कमाल है बाबा आपकी। बाबा दवाई भी दे रहे हैं, दुआयें भाr दे रहे हैं। आज का दिन कितना वण्डरफुल है। मुरली तो अच्छी है सुनते जाओ, अपने दिल को लगाते जाओ। दिलाराम बाबा कितना वण्डरफुल है। मैं तो यही कहूँगी कि हम सो फरिश्ता अभी बन जाये, देवता पीछे बनेंगे। फरिश्ता अभी बनेंगे या बने हुए हैं? मैं पूछती हूँ साथी बहनों से भाईयों से। शान्ति और शक्ति, प्रेम और खुशी चारों बातों का वायुमण्डल है। शब्द क्या बोलूं बाबा। हम खुश है, राजी है, खुशराजी की महफिल है। खुशराजी हैं सभी, नाराज कोई नहीं है न होता है न होने देता है। बाबा आपने ऐसे हमारे को सम्भाला है 100 साल के भी ऊपर हो गई, अच्छा! बोलो मेरा बाबा, मीठा बाबा प्यारा बाबा, शुक्रिया बाबा। बाबा कहेगा मेरी बच्ची। मैं कौन, मेरा कौन बस और कुछ नहीं सोचो, मैं कौन - आत्मा में मन बुद्धि संस्कार है मन बिचारा शान्त हो गया है। बुद्धि कहती है चारों ओर शान्ति का वातावरण बनाने में दृष्टि वृत्ति स्मृति तीनों इकट्ठी सेवा करती हैं। ओम शान्ति।
नीलू बहन मुम्बई से फोन पर:-
गुल्जार दादी जी ने सभी को बहुत-बहुत प्यार से ओम शान्ति बोला। दादी जी सभा को देख बहुत खुश हो रहीं है।
| | |
ओम् शान्ति 31-12-18 मधुबन
प्राणप्यारे अव्यक्त बापदादा के अति स्नेही, सदा नये उमंग-उत्साह में रहने वाले विश्व परिवर्तन के निमित्त बने हुए, कारण व समस्या शब्द को सदा के लिए विदाई देकर समाधान स्वरूप बनने वाले निमित्त बेहद सेवाधारी टीचर्स बहिनें तथा देश विदेश के सर्व ब्रह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,
ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद के साथ आज नये वर्ष की बहुत-बहुत मुबारक हो, मुबारक हो। नया वर्ष नया उमंग-उत्साह लेकर आया है। सभी बहुत प्यार से एक दो को नये वर्ष की बधाईयां दे रहे हैं। प्यारे बापदादा ने भी सभी को नये वर्ष और नये युग की बधाई दी। प्यारे बापदादा की सभी बच्चों प्रति यही शुभ आश है कि पुराने वर्ष को विदाई देने के साथ-साथ बच्चे पुराने संस्कारों को भी सदा के लिए विदाई देकर स्व परिवर्तन और विश्व परिवर्तन के महान कार्य के निमित्त बनें। सभी का जो लक्ष्य है हमें बाप समान बनना है, तो इस वर्ष सभी मिलकर नवीनता सम्पन्न ऐसा तीव्र पुरुषार्थ करें जो सम्पन्नता और सम्पूर्णता की मंजिल को प्राप्त कर लेवें। देखो, प्यारे बापदादा कैसे सभी बच्चों को अपनी भासना देते सबकी अलौकिक पालना कर रहे हैं। इस बार सेवाओंका टर्न दिल्ली और आगरा ज़ोन का है। करीब 20 हजार भाई बहिनें इस ग्रुप में पहुंचे हैं। डबल विदेशी भी करीब 450 हैं। छोटे बच्चों की, युवाओंकी रिट्रीट भी बहुत अच्छी चली, सभी सभा में बैठे हैं। सभी बापदादा के साथ बहुत उमंग-उत्साह के साथ नया वर्ष मना रहे हैं। बापदादा ने सबको यही होम वर्क दिया है कि बच्चे अब दृढ़ता और परिवर्तन की शक्ति से कारण और समस्या शब्द को सदा के लिए समाप्त कर समाधान स्वरूप बनें। बापदादा के यह मधुर महावाक्य जो हम सबने वीडियो द्वारा सुने हैं, उन्हें आप भी अपनी क्लासेज़ में सुनाकर सबको रिफ्रेश करना जी। बापदादा के मधुर महावाक्य सुनने के पश्चात दादी जानकी जी ने सबको नये वर्ष की मुबारक दी। फिर सभी बड़े भाई बहिनों ने मिलकर मोमबत्ती जलाई तथा केक काटी। सबका मुख मीठा कराया। अच्छा - सभी को बहुत-बहुत याद। ओम् शान्ति।
ओम् शान्ति 31-12-18 ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज-वीडियो 31-12-06
“नये वर्ष की नवीनता - दृढ़ता और परिवर्तन शक्ति से कारण व समस्या शब्द को विदाई दे निवारण व समाधान स्वरूप बनो” आज नवयुग रचता बापदादा अपने चारों ओर के बच्चों को नया वर्ष और नवयुग दोनों की मुबारक देने आये हैं। चारों ओर के बच्चे भी मुबारक देने पहुंच गये हैं। क्या सिर्फ नये वर्ष की मुबारक देने आये हो वा नवयुग की भी मुबारक देने आये हो? जैसे नये वर्ष की खुशी होती है और खुशियां देते हैं। तो आप ब्रह्मण आत्माओंको नवयुग भी इतना याद है? नवयुग नयनों के सामने आ गया है? जैसे नये वर्ष के लिए दिल में आ रहा है कि आया कि आया, ऐसे ही अपने नवयुग के लिए इतना अनुभव करते हो कि आया कि आया? उस नवयुग की स्मृति इतनी समीप आती है? वह शरीर रूपी अपनी ड्रेस चमकती हुई सामने नज़र आ रही है? बापदादा डबल मुबारक देते हैं। बच्चों के मन में, नयनों में नवयुग की सीन सीनरियां इमर्ज हैं, कितना अपने नवयुग में तन-मन-धन-जन श्रेष्ठ है, सर्व प्राप्तियों के भण्डार हैं। खुशी है कि आज पुरानी दुनिया में हैं और अभी-अभी अपने राज्य में होंगे! याद है अपना राज्य? जैसे आज डबल कार्य के लिए आये हो, पुराने को विदाई देने और नये वर्ष को बधाई देने आये हो। तो सिर्फ पुराने वर्ष को विदाई देने आये हो वा पुरानी दुनिया के पुराने संस्कार, पुराने स्वभाव, पुरानी चाल उसको भी विदाई देने आये हो? पुराने वर्ष को विदाई देना तो सहज है, लेकिन पुराने संस्कार को विदाई देना भी इतना सहज लगता है? क्या समझते हो? माया को भी विदाई देने आये हो वा वर्ष को विदाई देने आये हैं? विदाई देना है ना! या माया से थोड़ा प्यार है? थोड़ा-थोड़ा रखने चाहते हो?2 बापदादा आज चारों ओर के बच्चों से पुराने संस्कार स्वभाव से विदाई दिलाने चाहते हैं। दे सकते हो? हिम्मत है कि सोचते हो कि विदाई देने चाहते हैं लेकिन फिर माया आ जाती है! क्या आज के दिन दृढ़ संकल्प की शक्ति से पुराने संस्कार को विदाई दे नये युग के संस्कार को, जीवन को बधाई देने की हिम्मत है? है हिम्मत? जो समझते हैं हो सकता है, हो सकता है, वा होना ही है, है हिम्मत वाले? जो समझते हैं हिम्मत है वह हाथ उठाओ। हिम्मत है? अच्छा जिन्होंने नहीं उठाया है वह सोच रहे हैं? डबल फ़ौरेनर्स ने उठाया हाथ, जिसमें हिम्मत है वह हाथ उठाओ, सभी नहीं। अच्छा, डबल फ़ौरेनर्स तो होशियार हैं। डबल नशा है इसीलिए। देखना, बापदादा हर मास रिजल्ट देखेगा। बापदादा को खुशी है कि हिम्मत वाले बच्चे हैं। चतुराई से जवाब देने वाले बच्चे हैं। क्यों? क्योंकि जानते हैं कि एक कदम हमारी हिम्मत का और हजारों कदम बाप की मदद का तो मिलना ही है। अधिकारी हो। हजार कदम मदद के अधिकारी हो। सिर्फ हिम्मत को माया हिलाने की कोशिश करती है। बापदादा देखते हैं कि हिम्मत अच्छी रखते हैं, बापदादा दिल से मुबारक भी देते हैं लेकिन हिम्मत रखते फिर साथ में अपने अन्दर ही व्यर्थ संकल्प उत्पन्न कर लेते, कर तो रहे हैं, होना तो चाहिए, करेंगे तो जरूर, पता नहीं.... पता नहीं का संकल्प आना यह हिम्मत को कमजोर कर देता है। तो तो आ जाता है ना, करते तो हैं, करना तो है.. आगे उड़ना तो है..। यह हिम्मत को हिला देते हैं। तो नहीं सोचो, करना ही है। क्यों नहीं होगा! जब बाप साथ है, तो बाप के साथ में तो-तो नहीं आ सकता। तो इस नये वर्ष में नवीनता क्या करेंगे? हिम्मत के पांव को मजबूत बनाओ। ऐसी हिम्मत का पांव मजबूत बनाओ जो माया खुद हिल जाये लेकिन पांव नहीं हिलें। तो नये वर्ष में नवीनता करेंगे, या जैसे कभी हिलते कभी मजबूत रहते, ऐसे तो नहीं करेंगे ना! आप सभी का कर्तव्य वा आक्यूपेशन क्या है? अपने को क्या कहलाते हो? याद करो। विश्व कल्याणी, विश्व परिवर्तक, यह आपका आक्यूपेशन है ना! तो बापदादा को कभी-कभी मीठीमीठी हंसी आती है। विश्व परिवर्तक टाइटिल तो है ना! विश्व परिवर्तक हो? या लण्डन परिवर्तक, इण्डिया परिवर्तक? विश्व परिवर्तक हो ना, सभी? चाहे गांव में रहते हैं चाहे लण्डन या अमेरिका में रहते हैं लेकिन विश्व कल्याणकारी हो ना? हो तो कांध हिलाओ। पक्का ना! कि 75 परसेन्ट हो। 75 परसेन्ट विश्व कल्याणी और 25 परसेन्ट माफ है, ऐसे? आपकी चैलेन्ज क्या है? प्रकृति को भी चैलेन्ज की है कि प्रकृति को भी परिवर्तन करना ही है। तो अपना आक्यूपेशन याद करो। कभी-कभी अपने लिए भी सोचते हो - करना तो नहीं चाहिए लेकिन हो जाता है। तो विश्व परिवर्तक, प्रकृति परिवर्तक, स्व परिवर्तक नहीं बन सकते? शक्ति सेना क्या सोचते हो? इस वर्ष में अपना आक्यूपेशन विश्व परिवर्तक का याद रखना। स्व प्रति वा अपने ब्रह्मण परिवार प्रति भी परिवर्तक बनना क्योंकि पहले तो चैरिटी बिगन्स एट होम है ना! तो अपने आक्यूपेशन का प्रैक्टिकल स्वरूप प्रत्यक्ष करेंगे ना! स्व परिवर्तन जो स्वयं भी चाहते हो और बापदादा भी चाहते हैं, जानते तो हो ना! बापदादा पूछते हैं कि आप सभी बच्चों का लक्ष्य क्या है? तो मैजाॅरिटी एक ही जवाब देते हैं कि बाप समान बनना है। ठीक है ना! बाप समान बनना ही है ना, कि देखेंगे, सोचेंगे...! तो बाप भी यही चाहते हैं कि इस नये वर्ष में कोई कमाल करके दिखाओ। सब इतनी सेवा के उमंग में भिन्न-भिन्न प्रोग्राम बनाते रहते हैं, सफल भी होते रहते हैं, बापदादा को खुशी भी होती है कि मेहनत जो करते हैं उसकी सफलता मिलती है। व्यर्थ नहीं जाती है लेकिन सेवा किसलिए करते हो? तो क्या जवाब देते हैं? बाप को प्रत्यक्ष करने के लिए। तो बाप आज बच्चों से प्रश्न पूछते हैं, कि बाप को प्रत्यक्ष तो करना ही है, करेंगे ही। लेकिन बाप को प्रत्यक्ष करने के पहले स्व को प्रत्यक्ष करो। बोलो, शिव शक्तियां यह वर्ष शिव शक्ति के रूप में स्व को प्रत्यक्ष करेंगी? करेंगी? जनक बोलो? करेंगे? (करना ही है) साथी, पहली लाइन दूसरी लाइन में बैठी हुई टीचर्स हाथ उठाओ जो इस वर्ष में करके दिखायेंगे। करेंगे नहीं, करके दिखाना ही है। अच्छा - सभी टीचर्स ने उठाया या कोई ने नहीं उठाया। अच्छा - मधुबन वाले। करना ही है, करना पड़ेगा क्योंकि मधुबन तो नजदीक है ना। तारीख नोट कर देना, 31 तारीख है। टाइम भी नोट करना। और पाण्डव सेना, पाण्डवों को क्या दिखाना है? विजयी पाण्डव। कभी-कभी के विजयी नहीं, है ही विजयी पाण्डव। तो इस वर्ष में ऐसा बनकर दिखाना या कहेंगे क्या करें? माया आ गई ना, चाहते नहीं थे आ गई! बापदादा ने पहले भी कहा है - माया अपना लास्ट टाइम तक आना बन्द नहीं करेगी। लेकिन माया का काम है आना और आपका काम क्या है? विजयी बनना। बापदादा यही चाहते हैं कि इस वर्ष एक शब्द को सदा के लिए विदाई दो। वह कौन सा? बतायें, बोलें? देनी पड़ेगी। इस वर्ष बापदादा कारण शब्द को विदाई दिलाने चाहते हैं। निवारण हो, कारण खत्म। समस्या खत्म, समाधान स्वरूप। चाहे स्वयं का कारण हो, चाहे साथी का कारण हो, चाहे संगठन का कारण हो, चाहे कोई सरकमस्टांश का कारण हो, ब्रह्मणों की डिक्शनरी में कारण शब्द, समस्या शब्द परिवर्तन हो, समाधान और निवारण हो जाए क्योंकि बहुतों ने आज अमृतवेले भी बापदादा से रूहरिहान में यही बातें की, कि नये वर्ष में कुछ नवीनता करें। तो बापदादा चाहते हैं कि यह नया वर्ष ऐसा मनाओ जो यह दो शब्द समाप्त हो जाएं। पर-उपकारी बनो। स्वयं कारण बनते हैं या दूसरा कोई कारण बनता है, लेकिन पर-उपकारी आत्मा बन, रहमदिल आत्मा बन, शुभ भावना, शुभ कामना के दिल वाले बन सहयोग दो, स्नेह लो। नये वर्ष में नवीनता करनी ही है - स्व के, सहयोगियों के और विश्व के परिवर्तन की। पीछे वाले सुन रहे हैं? तो करना है ना, यह नहीं सोचना पहले तो बड़े करेंगे ना, हम तो छोटे हैं ना। छोटे समान बाप। हर एक बच्चा बाप के अधिकारी है, चाहे पहले बारी भी आये हो लेकिन मेरा बाबा कहा तो अधिकारी हो। श्रीमत पर चलने के भी अधिकारी और सर्व प्राप्तियों के भी अधिकारी। टीचर्स आपस में प्रोग्राम बनाना, फ़ौरेन वाले भी बनाना, भारत वाले भी मिलकर बनाना। ठीक है अच्छा - बापदादा देखेंगे, हर सप्ताह, हर ज़ोन, अपनी रिजल्ट ओ.के. या ओ.के. में लाइन लगाकर भेजे। अगर नहीं हैं ओ.के. तो, और कुछ नहीं लिखना, पत्र कोई नहीं पढ़ेगा। बहुत लम्बे पत्र भेजते हैं तो पढ़ने की फुर्सत नहीं होती है इसलिए सिर्फ ओ.के. लिखें और ओ.के. नहीं हैं, तो बीच में लाइन लगा दें, बस।उसी से पता पड़ जायेगा कि अभी मार्जिन है। ज़ोन नहीं तो हर एक सेन्टर लिखे, सभी सेवा में भक्तों की, दु:खियों की, ब्रह्मणों की आपसी, तीनों सेवा में ओ.के. या लाइन। परिवर्तन शक्ति, दृढ़ता की शक्ति अच्छी तरह से यूज़ करना। अच्छा।
सेवा का टर्न, दिल्ली, आगरा का है:-
अच्छा है, देखो स्थापना के कार्य में निमित्त पहले दिल्ली बनी, बाम्बे भी साथ में थोड़ा-थोड़ा बनी, लेकिन दिल्ली स्थापना के कार्य में निमित्त बनी तो स्थापना वाले गोल्डन कप लेने में भी निमित्त बनेंगे? बनेंगे? इस बारी बापदादा गोल्डन कप बनवा रहे हैं, कितने लेते हैं, वह देखेंगे। लेकिन दिल्ली को नम्बरवन जाना ही है, ऐसे है ना! जायेंगे नहीं, जाना ही है राइट बोल रहे हैं तो हाथ उठाओ। जाना ही है कि देखेंगे, सोचेंगे, गे गे वाले तो नहीं हैं? बहादुर हैं। दिल्ली वालों में हिम्मत है लेकिन संगठित रूप में हिम्मत प्रत्यक्ष करके दिखाओ। सबकी नज़र दिल्ली के ऊपर जाती है। अच्छा है। सेवा का शौक रखा है, इसकी मुबारक है। अपने पुण्य का खाता जमा कर लिया है। अच्छा।
डबल विदेशी:-
फारेनर्स वृद्धि भी कर रहे हैं और भिन्न-भिन्न देश जो रहे हुए हैं, उसमें उमंग-उत्साह से बढ़ रहे हैं। बापदादा को यह खुशी है कि प्रैक्टिकल रहमदिल बन आत्माओंके ऊपर रहम कर रहे हैं। सेवा का उमंग भी है और सेवा का प्रत्यक्ष रुप भी दिखा रहे हैं। अभी डबल तीव्र पुरुषार्थ कर गोल्डन कप फ़ौरेन वाले लेवें। ले सकते हैं। सभी की तरफ से ईमेल आयेगा आपके पास, ओ.के. ओ.के, ज्यादा नहीं आयेगा। पढ़ना पड़ता है ना आपको। (दादी जानकी को), बस सिर्फ ओ.के. बाप भी ओ.के. वालों को गुप्त में बहुत स्नेह की दुआओंकी वर्षा करते हैं। वाह! बच्चे वाह! का गीत गाते हैं। अच्छा। अभी हर एक अपने को मन के मालिक अनुभव कर एक सेकण्ड में मन को एकाग्र कर सकते हो? आर्डर कर सकते हो? एक सेकण्ड में अपने स्वीट होम में पहुंच जाओ। एक सेकण्ड में अपने राज्य स्वर्ग में पहुंच जाओ। मन आपका आर्डर मानता है वा हलचल करता है? मालिक अगर योग्य है, शक्तिवान है, तो मन नहीं माने, हो नहीं सकता। तो अभी अभ्यास करो एक सेकण्ड में सभी अपने स्वीट होम में पहुंच जाओ। यह अभ्यास सारे दिन में बीच-बीच में करने का अटेन्शन रखो। मन की एकाग्रता स्वयं को भी और वायुमण्डल को भी पावरफुल बनाती है। अच्छा। चारों ओर के अति सर्व के स्नेही, सर्व के सहयोगी श्रेष्ठ आत्माओंको, चारों ओर के विजयी बच्चों को, चारों ओर के परिवर्तन शक्तिवान बच्चों को, चारों ओर के सदा स्वयं को प्रत्यक्ष कर बाप को प्रत्यक्ष करने वाले बच्चों को, सदा समाधान स्वरूप विश्व परिवर्तक बच्चों को बापदादा का यादप्यार और दिल की दुआयें स्वीकार हों। साथ में सभी बच्चों को जो बाप के भी सिरताज हैं, ऐसे सिरताज बच्चों को बापदादा की नमस्ते।
दादी जानकी:-
ओम् शान्ति। आप बहुत अच्छी तरह से शान्ति से बाबा के सामने बैठे थे। बाबा के एक एक बोल में क्या शक्ति भरी हुई थी! वन्डरफुल। एक मिनट भी शान्त रहने में कितना फायदा है। मुझे यह अच्छा लगता है थोड़ा समय भी सारे दिन में शान्त में रहना और स्वरूप बनना। अन्दर में शान्ति है और बाहर वायुमण्डल में शान्ति चारों ओर फैल रही है। इतने सब भाई बहनें यहाँ क्लास में हाज़िर हैं, मुझे अच्छा लगता है। बाबा हमारी भावना को जानता है कि बच्ची की क्या भावना है। एक तरफ है बाबा और दूसरे तरफ है हमारा भाग्य। बाबा मेरे साथ है, यह सदा खींच होती है। बाबा को यह सभी मीत बहुत प्यारे लगते हैं। बाबा हमारा है परन्तु हम उनके मित्र हैं यानी जो उनकी श्रीमत है वह सिरमाथे पर है इसलिए सिर कभी भारी नहीं होता है, यह भाग्य है। बाबा ऐसा मीठा है प्यारा है। नया साल आज रात से शुरू होगा परन्तु एडवांस में बाबा ने ऐसी शक्ति भर दी है। हमको साक्षी होकर रहने में बाबा ने अच्छा साथ दिया है। बाबा कहता है मैं तुम्हारा साथी हूँ, तुम भाग्यवान हो जो साक्षी होकरके इतना वन्डरफुल पार्ट बजा रही हो। बाबा की हमारे ऊपर खास नज़र है, यह भी मैं अपना नाज़ समझती हूँ, बाबा मुझे क्या समझता है जो अच्छी भासना मुझे देता है। बाबा जैसा है वैसा हमको बनाने के लिए सदा
हाज़िर रहता है। बाबा तेरा बनने में सुख मिलता इलाही है। इलाही शब्द के दो अर्थ हैं - एक है अल्लाह के तरफ से, दूसरा इतना है जिसका माप नहीं कर सकते, अथाह मिला है। मिलता रहेगा। समय का इतना कदर है। बाबा जो देता है उसको लेना माना नई दुनिया में चले जाना। पहले स्वीट होम में जाना है फिर सतयुग में आना है। सतयुग में आने की तैयारी अलग है, यहाँ से जाने की तैयारी पहले करनी है। शान्तिधाम, परमधाम, निर्वाणधाम में पहले जाना है फिर सतयुग में आना है, फिर वहाँ कैसे रहना है, वहाँ कितने जन्म होंगे।
बाबा देख रहा है बच्चे चारों ओर सच्चाई और प्रेम में मस्त हैं। कोई आवाज नहीं, हाँ हूँ नहीं। ताली भी बजाने की जरूरत नहीं। यह तालियां बजाते हैं, भले बजाओ। हैपी न्यु ईयर, यह शब्दों में भी आना मुझे नहीं आता है। बाकी शब्दों से पार जहाँ बाबा खींचता है वहाँ हम
हाज़िर हैं बाबा के सामने। नवयुग, नव वर्ष की मुबारक यह शब्द भी सबके दिल से आपेही निकल रहा है। कल क्या होगा, नया साल आ रहा है। जहाँ भी हूँ जैसे भी हूँ, बाबा और परिवार मुझे प्यार करता है, यह भासना आती है। सिर्फ भावना नहीं हैपर भासना भी ऐसी मिली हुई है। तो सभी बोलो, हैपी न्यु ईयर। अच्छा - ओम् शान्ति।
| | |
ओम शान्ति 17-02-2019 मधुबन
प्राणप्यारे अव्यक्त मूर्त मात-पिता बापदादा के अति स्नेही, सदा ऊचे स्वमान में स्थित रह एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाने वाले, फरिश्ता सो देवता बनने के पुरुषार्थ में तत्पर, निमित्त टीचर्स बहिनें तथा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,
ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार करना जी।
बाद समाचार - अव्यक्त मिलन की यह सुहावनी घड़िया हर एक के मन को लुभाने वाली हैं। जो भी बाबा के बच्चे मधुबन घर में आते हैं, उन्हें बाबा खूब भरपूर कर देते हैं। अभी सेवाओं का टर्न राजस्थान का है। इनके साथ अन्य कई जोन के भाई बहिनें तथा डबल विदेशी भाई बहिनें भी काफी संख्या में पहुचे हुए हैं। विदेश के मुख्य भाई बहिनों की अलग-अलग मीटिग्स भी चल रही हैं। जिसमें विशेष स्व-उन्नति, यज्ञ के विस्तार तथा देश विदेश की सेवाओं में तीव्रता लाने हेतु बहुत अच्छे-अच्छे विचार निकल रहे हैं। प्यारे बापदादा एक ओर सेवाओं के प्रति विशेष इशारे भी देते, साथ-साथ एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाने तथा समय प्रमाण शक्तिशाली मन्सा द्वारा प्रकृति सहित विश्व की सर्व दु:खी अशान्त आत्माओं को सकाश देने की भी प्रेरणा देते हैं। हम सभी शिववंशी ब्रह्माकुमार कुमारियों के लिए सबसे बड़ा त्योहार त्रिमूर्ति शिवजयन्ती अभी समीप है। सब तरफ बहुत प्यार से शिवबाबा का ध्वज फहराते, प्रभातफेरी, प्रदर्शनी मेले तथा सम्मेलन आदि द्वारा भी बापदादा के अवतरण का दिव्य सन्देश देते हैं।
इस बार अपने शान्तिवन के विशाल प्रागण में, कान्फ्रेन्स हाल के सामने बहुत सुन्दर आध्यात्मिक मेला लगाया जा रहा है। उसके प्रचार-प्रसार हेतु अभी से ही आबू के आस-पास के 200 गावों में 4 अभियान निकाले गये हैं - 1) स्वच्छ स्वस्थ भारत अभियान 2) जलप्रबन्धन अभियान, 3) ग्राम जागृति अभियान 4) व्यसनमुक्ति अभियान। यह चारों अभियान आबू के चारों दिशाओं में भ्रमण करते हुए ईश्वरीय सन्देश दे रहे हैं।
इस बार प्रयागराज (इलाहाबाद) में कुम्भ मेले के अन्तर्गत विशेष ब्रह्माकुमारीज की ओर से दो पण्डाल लगाये गये थे, एक हर वर्ष की भांति बहुत सुन्दर आकर्षक “सत्यम् शिवम् सुन्दरम् आध्यात्मिक मेला”, जिसमें देवियों की झांकी तथा सागर मंथन और अनेक मूविंग मॉडल्स आदि का विशेष आकर्षण था। इस एक मास के मेले में कई वर्गो के कार्यक्रम भी रखे गये, लाखों लोगों ने मेले से ईश्वरीय सन्देश प्राप्त किया। दूसरा - सरकार की ओर से 15 दिन के लिए “कुम्भ विराट किसान मेले” का आयोजन किया गया था, जिसमें अपनी ओर से “स्वर्णिम भारत का आधार शाश्वत योगिक खेती” नाम से बहुत सुन्दर पण्डाल लगाया गया था। उससे भी अनेक सरकारी अधिकारियों तथा किसानों की बहुत अच्छी सेवायें हुई। समापन के अवसर पर वहाँ के मुख्य अधिकारियों द्वारा प्रथम पुरस्कार अपने पण्डाल को मिला। इस प्रकार बापदादा खूब सेवायें करा रहे हैं। सेवाओं के साथ, योग भट्ठी के कार्यक्रम भी समय प्रति समय सब तरफ चलते रहते हैं। अच्छा - सभी को बहुत-बहुत याद ओम शान्ति।
16-11-06 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“अपने स्वमान की शान में रहो और समय के महत्व को जान एवररेडी बनो”
आज बापदादा चारों ओर के अपने परमात्म प्यार के पात्र स्वमान की सीट पर सेट बच्चों को देख रहे हैं। सीट पर सेट तो सब बच्चे हैं लेकिन कई बच्चे एकाग्र स्थिति में सेट हैं और कोई बच्चे संकल्प में थोड़ा-थोड़ा अपसेट हैं। बापदादा वर्तमान समय के प्रमाण हर बच्चे को एकाग्रता के रूप में स्वमानधारी स्वरूप में सदा देखने चाहते हैं। सभी बच्चे भी एकाग्रता की स्थिति में स्थित होना चाहते हैं। अपने भिन्न-भिन्न प्रकार के स्वमान जानते भी हैं, सोचते भी हैं लेकिन एकाग्रता हलचल में ले आती है। सदा एकरस स्थिति कम रहती है। अनुभव होता है और यह स्थिति चाहते भी हैं लेकिन कब-कब क्यों होती है, कारण! सदा अटेन्शन की कमी। अगर स्वमान की लिस्ट निकालो तो कितनी बड़ी है। सबसे पहला स्वमान है - जिस बाप को याद करते रहे, उनके डायरेक्ट बच्चे बने हो, नम्बरवन सन्तान हो। बापदादा ने आप कोटों में से कोई बच्चों को कहाँ-कहाँ से चुनकर अपना बना लिया। 5 ही खण्डों से डायरेक्ट बाप ने अपने बच्चों को अपना बना लिया। कितना बड़ा स्वमान है। सृष्टि रचता की पहली रचना आप हो। जानते हो ना इस स्वमान को! बापदादा ने अपने साथ-साथ आप बच्चों को सारे विश्व की आत्माओं के पूर्वज बनाया है। विश्व के पूर्वज हो, पूज्य हो। बापदादा ने हर बच्चे को विश्व के आधारमूर्त, उदाहरणमूर्त बनाया है। नशा है? थोड़ा-थोड़ा कभी कम हो जाता है। सोचो, सबसे अमूल्य जो सारे कल्प में ऐसा मूल्य तख्त किसको नहीं प्राप्त होता। वह परमात्म तख्त, लाइट का ताज, स्मृति का तिलक दिया। स्मृति आ रही है ना - मैं कौन! मेरा स्वमान क्या! नशा चढ़ रहा है ना! कितना भी सारे कल्प में सतयुगी अमूल्य तख्त है लेकिन परमात्म दिलतख्त आप बच्चों को ही प्राप्त होता है।
बापदादा सदा लास्ट नम्बर बच्चे को भी फरिश्ता सो देवता स्वरूप में देखते हैं। अभी-अभी ब्राह्मण हैं, ब्राह्मण से फरिश्ता, फरिश्ता से देवता बनना ही है। जानते हो अपने स्वमान को? क्योंकि बापदादा जानते हैं कि स्वमान को भूलने के कारण ही देहभान, देह अभिमान आता है। परेशान भी होते हैं, जब बापदादा देखते हैं देह-अभिमान वा देहभान आता है तो कितने परेशान होते हैं। सभी अनुभवी हैं ना! स्वमान की शान में रहना और इस शान से परे परेशान रहना, दोनों को जानते हो। बापदादा देखते हैं कि सभी बच्चे मैजॉरिटी नॉलेजफुल तो अच्छे बने हैं, लेकिन पावर में फुल, पावरफुल नहीं हैं। परसेन्टेज में हैं।
बापदादा ने हर एक बच्चे को अपने सर्व खज़ानों के बालक सो मालिक बनाया, सभी को सर्व खज़ाने दिये हैं, कम ज्यादा नहीं दिये हैं क्योंकि अनगिनत खज़ाना है, बेहद खज़ाना है। इसलिए हर बच्चे को बेहद का बालक सो मालिक बनाया है। तो अभी अपने आपको चेक करो - बेहद का बाप, हद का बाप नहीं है, बेहद का बाप है, बेहद खज़ाना है। तो आपके पास भी बेहद है? सदा है कि कभी-कभी कुछ चोरी हो जाता है? गुम हो जाता है? बाबा क्यों अटेन्शन दिला रहे हैं? परेशान न हो, स्वमान की सीट पर सेट रहो, अपसेट नहीं। 63 जन्म तो अपसेट का अनुभव कर लिया ना! अभी और करने चाहते हो? थक नहीं गये हो? अभी स्वमान में रहना अर्थात् अपने ऊंचे ते ऊंचे शान में रहना। क्यों? कितना समय बीत गया।
तो स्वयं की पहचान अर्थात् स्वमान की पहचान, स्वमान में स्थित रहना। समय अनुसार अभी सदा शब्द को प्रैक्टिकल लाइफ में लाना, शब्द को अण्डरलाइन नहीं करना लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ में अण्डरलाइन करो। रहना है, रहेंगे, कर तो रहे हैं.. कर लेंगे। यह बेहद के बालक और मालिक का बोल नहीं है। अभी तो हर एक के दिल से यह अनहद शब्द निकले, पाना था वह पा लिया। पा रहे हैं, यह बेहद खज़ाने के बेहद बाप के बच्चे नहीं बोल सकते। पा लिया, जब बापदादा को पा लिया, मेरा बाबा कह दिया, मान लिया, जान भी लिया, मान भी लिया, तो यह अनहद शब्द पा लिया... क्योंकि बापदादा जानते हैं कि बच्चे स्वमान कभी-कभी होने के कारण समय के महत्व को भी स्मृति में कम रखते हैं। एक स्वयं का स्वमान, दूसरा है समय का महत्व। आप साधारण नहीं हो, पूर्वज हो, आप एक-एक के पीछे विश्व की आत्माओं का आधार है। सोचो, अगर आप हलचल में आयेंगे तो विश्व की आत्माओं का क्या हाल होगा! ऐसे नहीं समझो कि जो महारथी कहलाये जाते हैं, उनके पीछे विश्व का आधार है, अगर नये-नये भी हैं, क्योंकि आज नये भी बहुत आये होंगे। नये हैं, जिसने दिल से माना ‘‘मेरा बाबा’’। मान लिया है? जो नये नये आये हैं वह मानते हैं? जानते हैं नहीं, मानते हैं ‘‘मेरा बाबा’’ वह हाथ उठाओ। लम्बा उठाओ। नये नये हाथ उठा रहे हैं। पुराने तो पक्के ही हैं ना, जिसने दिल से माना मेरा बाबा और बाप ने भी माना मेरा बच्चा, वह सभी जिम्मेवार हैं। क्यों? जब से आप कहते हो मैं ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी हूँ, ब्रह्माकुमार और कुमारी हो वा शिवकुमार शिवकुमारी हो, या दोनों के हो? फिर तो बंध गये। जिम्मेवारी का ताज पड़ गया। पड़ गया है ना? पाण्डव बताओ जिम्मेवारी का ताज पड़ा है? भारी तो नहीं लग रहा है? हल्का है ना! है ही लाइट का। तो लाइट कितनी हल्की होती है।
तो समय का भी महत्व अटेन्शन में रखो। समय पूछ के नहीं आना है। कई बच्चे अभी भी कहते हैं, सोचते हैं, कि थोड़ा सा अन्दाज मालूम होना चाहिए। चलो 20 साल हैं, 10 साल हैं, थोड़ा मालूम हो। लेकिन बापदादा कहते हैं समय का फाइनल विनाश का छोड़ो, आपको अपने शरीर के विनाश का पता है? कोई है जिसको पता है कि मैं फलाने तारीख में शरीर छोडूंगा है पता? और आजकल तो ब्राह्मणों के जाने का भोग बहुत लगाते हो। कोई भरोसा नहीं। इसलिए समय का महत्व जानो। यह छोटा सा युग है आयु में छोटा, लेकिन बड़े ते बड़ी प्राप्ति का युग है क्योंकि बड़े ते बड़ा बाप इस छोटे से युग में ही आता है और बड़े युगो में नहीं आता। यही छोटा सा युग है जिसमें सारे कल्प की प्राप्ति का बीज डालने का समय है। चाहे विश्व का राज्य प्राप्त करो, चाहे पूज्य बनो, सारे कल्प के बीज डालने का समय यह है और डबल फल प्राप्त करने का समय है। भविÌत का फल भी अभी मिलता और प्रत्यक्षफल भी अभी मिलता है। अभी-अभी किया, प्रत्यक्ष फल मिलता है और भविष्य भी बनता है। ऐसा सारे कल्प में देखो, है कोई युग ऐसा? क्योंकि इस समय ही बाप ने हर बच्चे की हथेली पर बड़े ते बड़ी सौगात दी है, याद है सौगात अपनी? स्वर्ग का राज़-भाग। नई दुनिया के स्वर्ग की गिफ्ट, हर बच्चे की हथेली में दी है। इतनी बड़ी गिफ्ट कोई नहीं देता और कभी नहीं दे सकता। अभी मिलती है। अभी आप मास्टर सर्वशक्तिवान बनते हो और कोई युग में मास्टर सर्वशक्तिवान का मर्तबा नहीं मिलता है। तो स्वयं के स्वमान में भी एकाग्र रहो और समय के महत्व को भी जानो। स्वयं और समय, स्वयं को स्वमान है, समय का महत्व है। अलबेला नहीं बनना। 70 साल बीत चुके हैं, अभी अगर अलबेले बनें तो बहुत कुछ अपनी प्राप्ति कम कर देंगे। क्योंकि जितना आगे बढ़ते हैं ना उतना एक अलबेलापन, बहुत अच्छे हैं, बहुत अच्छे चल जायेंगे, पहुंच जायेंगे, देखना पीछे नहीं रहेंगे, हो जायेगा, यह अलबेलापन और रॉयल आलस्य। अलबेलापन और आलस्य। कब शब्द है आलस्य, अब शब्द है तुरत दान महापुण्य।
तो बापदादा अटेन्शन खिंचवा रहा है। इस सीजन में न स्वमान से उतरना है, न समय के महत्व को भूलना है। अलर्ट, होशियार, खबरदार। प्यारे हैं ना! जिससे प्यार होता है ना उसकी जरा भी कमज़ोरी-कमी देखी नहीं जाती है। सुनाया ना कि बापदादा का लास्ट बच्चा भी है तो उससे भी अति प्यार है। बच्चा तो है ना। तो अभी इस चलती हुई सीजन में, सीजन भले इन्डिया वालों की है लेकिन डबल विदेशी भी कम नहीं हैं, बापदादा ने देखा है, कोई भी टर्न ऐसा नहीं होता जिसमें डबल विदेशी नहीं हो। यह उन्हों की कमाल है। अभी हाथ उठाओ डबल विदेशी। देखो कितने हैं! स्पेशल सीजन बीत गई, फिर भी देखो कितने हैं! मुबारक है। भले पधारे, बहुत-बहुत मुबारक है।
तो सुना अभी क्या करना है? इस सीजन में क्या-क्या करना है, वह होम वर्क दे दिया। स्वयं को रियलाइज करो, स्वयं को ही करो, दूसरे को नहीं और रीयल गोल्ड बनो क्योकि बापदादा समझते हैं जिसने मेरा बाबा कहा वह साथ में चले। बराती होके नहीं चले। बापदादा के साथ श्रीमत का हाथ पकड़ साथ चले और फिर ब्रह्मा बाप के साथ पहले राज्य में आवे। मजा तो पहले नये घर में होता है ना। एक मास के बाद भी कहते, एक मास पुराना है। नया घर, नई दुनिया, नई चाल, नया रसम रिवाज और ब्रह्मा बाप के साथ राज्य में आये। सभी कहते हैं ना, ब्रह्मा बाप से हमारा बहुत प्यार है। तो प्यार की निशानी क्या होती है? साथ रहे, साथ चले, साथ आये। यह है प्यार का सबूत। पसन्द है? साथ रहना, साथ चलना, साथ आना, पसन्द है? है पसन्द? तो जो चीज़ पसन्द होती है उसको छोड़ा थोड़ेही जाता है! तो बाप की हर बच्चे के साथ प्रीत की रीत यही है कि साथ चलें, पीछे-पीछे नहीं। अगर कुछ रह जायेगा तो धर्मराज की सजा के लिए रूकना पड़ेगा। हाथ में हाथ नहीं होगा, पीछे-पीछे आयेंगे। मजा किसमें है? साथ में है ना! तो पक्का वायदा है ना? पक्का वायदा है साथ चलना है या पीछे-पीछे आना है? देखो हाथ तो बहुत अच्छा उठाते हैं। हाथ देख करके बापदादा खुश तो होते हैं लेकिन श्रीमत का हाथ उठाना। शिवबाबा को तो हाथ होगा नहीं, ब्रह्मा बाबा, आत्मा को भी हाथ नहीं होगा, आपको भी यह स्थूल हाथ नहीं होगा, श्रीमत का हाथ पकड़कर साथ चलना। चलेंगे ना! कांध तो हिलाओ। अच्छा हाथ हिला रहे हैं। बापदादा यही चाहते हैं एक भी बच्चा पीछे नहीं रहे, सब साथ-साथ चलें। एवररेडी रहना पड़ेगा। अच्छा।अब बापदादा चारों ओर के बच्चों का रजिस्टर देखता रहेगा। वायदा किया, निभाया अर्थात् फायदा उठाया। सिर्फ वायदा नहीं करना, फायदा उठाना। अच्छा। अभी सभी दृढ़ संकल्प करेंगे! दृढ़ संकल्प की स्थिति में स्थित होकर बैठो, करना ही है, चलना ही है। साथ चलना है। अभी यह दृढ़ संकल्प अपने से करो, इस स्थिति में बैठ जाओ। गे गे नहीं करना। करना ही है। अच्छा।
सेवा का टर्न का राजस्थान का है: अच्छा जो भी सेवा के लिए आये हैं, सब उठो। अच्छा है, आधा क्लास तो सहयोगी है। सहयोग देना, देना नहीं है बहुत-बहुत दुआयें लेना है क्योंकि जिसकी भी सेवा करते हैं, वह खुश होते हैं। तो जो खुश होते हैं, उनकी दुआयें ऑटोमेटिकली निकलती हैं, तो कितनी दुआयें जमा की! राजस्थान है ना। निमित्त राजस्थान है तो यह गोल्डन चांस मिलता है, पुण्य का खाता जमा करने का। अच्छा है, राजस्थान को तो सहज नशा है कि बापदादा राजस्थान में ही आया है। बापदादा को राजस्थान अच्छा लगा ना।
डबल विदेशी भाई बहिनें: तो डबल विदेशियों का डबल पुरूषार्थ चलता है, एक है सेवा का, दूसरा है स्वयं का। तो टाइटल तो डबल विदेशी अच्छा है, डबल सेवा चल रही है सबकी, इन्डिविज्युअल। डबल सेवा। किस समय एक चलती, किस समय दूसरी चलती या साथ-साथ चलती है! जो समझते हैं कि दोनों ही सेवा स्वयं की और साथ की जो भी आत्मायें हैं उनकी सेवा साथ-साथ चलती है वह हाथ उठाओ। मैजारिटी पास हैं। ठीक रफ्तार से चलती है और आगे बढ़ाओ क्योंकि अभी समय के अनुसार एक ही समय डबल सेवा चाहिए। विश्व की भी और स्वयं की भी। सारे वर्ल्ड में सुख शान्ति की किरणें देना है।
सब तरफ के डबल सेवाधारी बच्चों को, चारों ओर के सदा एकाग्र स्वमान की सीट पर सेट रहने वाले बापदादा के मस्तक मणियां, चारों ओर के समय के महत्व को जान तीव्र पुरूषार्थ का सबूत देने वाले सपूत बच्चों को, चारों ओर के उमंग-उत्साह के पंखों से सदा उड़ते, उड़ाने वाले डबल लाइट फरिश्ते बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादी जानकी के वरदानी बोल:
ओम् शान्ति। देखो, उड़ती कला हो गई ना। मीठे बाबा ने कितनी मीठी मीठी बातें सुनाई। बाबा ने कहा अब समय अनुसार क्या करने का है, कैसे रहने का है। बाबा ने दृष्टि देकर के नजरों से निहाल कर दिया। हम कोई बेहाल होते नहीं हैं। बाबा आपकी दृष्टि ने कमाल कर दिया। बाबा मैं क्या कहूँ, कैसे कहूँ। हमारी सभा इतनी बड़ी बैठी है। सभी बाबा की याद में बैठे हैं। याद के सिवाए और कुछ भी नहीं है। याद का बल और योग का फल फौरन मिलता है। हम सबके सामने एक बाबा ही बैठा है और कोई याद आता ही नहीं है। गुलजार दादी ने भी देखा होगा ना बाम्बे में। कैसे बाबा ने हम सबको रिफ्रेश किया। थैंक्यू दादी। बाबा ने आपके रथ से अच्छी सेवा दी है। आपने बाबा की मिसिंग अनुभव होने नहीं दिया। ऐसी हमारी दादी कम नहीं है। अच्छा।
| | |
05-03-08 ओम शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
‘‘संगम की
बैंक में
साइलेन्स की
शक्ति और
श्रेष्ठ कर्म
जमा करो, शिवमन्त्र
से मैं-पन का
परिवर्तन करो’’
आज
बापदादा
चारों ओर के
बच्चों के
स्नेह को देख
रहे हैं। आप
सभी भी स्नेह
के विमान में
यहाँ पहुंच
गये हो। यह
स्नेह का
विमान बहुत
सहज स्नेही के
पास पहुंचा
देता है।
बापदादा देख
रहे हैं कि आज
विशेष सभी
लवलीन
आत्मायें
परमात्म प्यार
के झूले में
झूल रही हैं।
बापदादा भी
चारों ओर के
बच्चों के
स्नेह में
समाये हुए
हैं। यह
परमात्म
स्नेह बाप
समान अशरीरी
सहज बना देता
है। व्यक्त
भाव से परे
अव्यक्त स्थिति
में अव्यक्त
स्वरूप में
स्थित कर देता
है। बापदादा
भी हर बच्चे
को समान
स्थिति में
देख हर्षित हो
रहे हैं।
आज
के दिन सभी
बच्चे
शिवरात्रि,
शिवजयन्ती
बाप और अपना
जन्मदिन
मनाने आये हैं।
बापदादा भी
अपने-अपने वतन
से आप सभी
बच्चों का
जन्म दिन
मनाने पहुंच
गये हैं। सारे
कल्प में यह
जन्म दिन बाप
का वा आपका
न्यारा और अति
प्यारा है।
सारे कल्प में
कोई का भी
बर्थ डे परम
आत्मा नहीं
मनाते, आत्मा,
आत्मा का
मनाते हैं
लेकिन यह
अलौकिक जन्म
परम आत्मा आप
आत्माओं का
मनाते हैं।
साथ में इस जन्म
की विशेषता और
भी अलौकिक है,
जो सारे
कल्प में हो
नहीं सकती।
ऐसा कभी नहीं सुना
होगा कि बाप
और बच्चों का
एक ही दिन
बर्थ डे होता
है। तो इस
जन्मदिन का यह
भी महत्व है कि
बाप और बच्चों
का एक ही दिन
जन्मदिन, आप
सभी बाप के
साथ मना रहे
हो। इस
जन्मदिन को शिवजयन्ती
भी कहते हैं
और शिवरात्रि
भी कहते हैं।
तो जन्म के
साथ कर्तव्य
का भी यादगार
है। अंधकार
मिटने का और
प्रकाश फैलने
का यादगार है।
तो ऐसे अलौकिक
जन्म दिन आप
बापदादा के
साथ मनाने
वाले
भाग्यवान
आत्मायें हो।
बाप बच्चों को
पदम-पदम गुणा
इस दिव्य जन्म
की बधाईयां भी
दे रहे हैं,
दुआयें भी
दे रहे हैं और
दिल का
यादप्यार भी दे
रहे हैं।
मुबारक हो, पदमगुणा
मुबारक हो, मुबारक हो।
भक्त
लोग भी इस
उत्सव को बड़ी
भावना और
प्यार से
मनाते हैं। आपने
जो इस दिव्य
जन्म में
श्रेष्ठ
अलौकिक कर्म किया
है, अभी भी कर
रहे हो। वह
यादगार रूप
में चाहे अल्पकाल
के लिए अल्प
समय के लिए
मनाते हैं
लेकिन भक्तों
की भी कमाल
है। यादगार
मनाने वालों,
यादगार
बनाने वालों
की भी देखो
कितनी कमाल है।
जो कापी करने
में होशियार
तो निकले हैं
क्योंकि आपके
ही भक्त हैं
ना। तो आपकी
श्रेष्ठता का
फल उन यादगार
बनाने वालों
को वरदान रूप
में मिला है।
आप एक जन्म के
लिए एक बार
व्रत लेते हो,
सम्पूर्ण
पवित्रता का।
कापी तो की है
एक दिन के लिए
पवित्रता का
व्रत भी रखते
हैं। आपका पूरा
जन्म पवित्र
अन्न का व्रत
है और वह एक
दिन रखते हैं।
तो बापदादा आज
अमृतवेले देख
रहे थे कि आप
सबके भक्त भी
कम नहीं हैं।
उन्हों की भी
विशेषता
अच्छी रही है।
तो आप सभी ने
पूरे जन्म के
लिए पक्का
व्रत चाहे
खान-पान का,
चाहे मन के
संकल्प की
पवित्रता का,
वचन का,
कर्म
का, सम्बन्ध-सम्पर्क
में आते हुए
कर्म का पूरे
जन्म के लिए
पक्का व्रत
लिया है? लिया
है या
थोड़ा-थोड़ा
लिया है? पवित्रता
ब्राह्मण
जीवन का आधार
है। पूज्य बनने
का आधार है।
श्रेष्ठ
प्राप्ति का
आधार है।
तो
जो भी
भाग्यवान
आत्मायें
यहाँ पहुंच
गये हैं वह
चेक करो कि यह
जन्म का उत्सव
पवित्र बनने
का चारों
प्रकार से,
सिर्फ
ब्रह्मचर्य
की पवित्रता
नहीं, लेकिन
मन-वचन-कर्म-सम्बन्ध
सम्पर्क में
भी पवित्रता।
यह पक्का व्रत
लिया है? लिया
है? जिन्होंने
लिया है पक्का,
थोड़ा-थोड़ा
कच्चा नहीं,
वह हाथ
उठाओ। पक्का,
पक्का?
पक्का?
कितना
पक्का? कोई
हिलावे तो, हिलेंगे? हिलेंगे? नहीं
हिलेंगे? कभी-कभी
तो माया आ
जाती है ना,
कि नहीं, माया
को विदाई दे
दी है? या
कभी कभी
छुट्टी दे
देते हो, आ
जाती है! चेक
करो - तो पक्का
व्रत लिया है?
सदा का व्रत
लिया है? वा
कभी कभी का?
कभी थोड़ा,
कभी बहुत,
कभी पक्का,
कभी कच्चा -
ऐसे तो नहीं
हो ना!
क्योंकि
बापदादा से
प्यार में सभी
100 परसेन्ट
से भी ज्यादा
मानते हैं।
अगर बापदादा
पूछते हैं कि
बाप से प्यार
कितना है? सब
बहुत उमंग
उत्साह से हाथ
उठाते हैं।
प्यार में
परसेन्टेज कम
ही की होती है,
मैजारिटी
की है। तो
जैसे प्यार
में पास हो,
बापदादा भी
मानते हैं कि
मैजारिटी
प्यार में पास
हैं, लेकिन
पवित्रता के
व्रत में
चारों रूप में
मन्सा-वाचा-कर्मणा,
सम्बन्ध-सम्पर्क
चारों ही रूप
में सम्पूर्ण पवित्रता
का व्रत
निभाने में
परसेन्टेज आ
जाती है।
अभी
बापदादा क्या
चाहते हैं?
बापदादा यही
चाहते कि जो
प्रतिज्ञा की
है, समान
बनने की, तो
हर एक बच्चे
की सूरत में
बाप की मूर्त
दिखाई दे। हर
एक बोल में
बाप समान बोल
हो, बापदादा
के बोल वरदान
रूप बन जाते
हैं। तो आप सब
यह चेक करो,
हमारी सूरत
में बाप की
मूर्त दिखाई
देती है? बाप
की मूर्त क्या
है? सम्पन्न,
सब बात में
सम्पन्न। ऐसे
हर एक बच्चे
के नयन, हर
एक बच्चे का
मुखड़ा बाप
समान है? सदा
मुस्कराता
हुआ चेहरा है?
कि कभी सोच
वाला, कभी
व्यर्थ
संकल्पों की
छाया वाला, कभी उदास,
कभी बहुत
मेहनत वाला,
ऐसा चेहरा
तो नहीं है?
सदा गुलाब,
कभी गुलाब
जैसा खिला हुआ
चेहरा, कभी
और नहीं बन
जाये। क्योंकि
बापदादा ने यह
भी जन्मते ही
बता दिया है
कि माया आपके
इस श्रेष्ठ
जीवन का सामना
करेगी। लेकिन
माया का काम
है आना, आप
सदा पवित्रता
के व्रत लेने
वाली आत्माओं
का काम है दूर
से ही माया को
भगाना।
बापदादा
ने देखा है कई
बच्चे माया को
दूर से भगाते
नहीं, माया
आ जाती, आ
जाने दे देते
हैं अर्थात्
माया के
प्रभाव में आ
जाते हैं। अगर
दूर से नहीं
भगाते तो माया
की भी आदत पड़
जाती है
क्योंकि वह
जान जाती है
कि यहाँ हमको
बैठने देंगे,
बैठने देने
की निशानी है
माया आती है,
सोचते हैं
कि माया है,
लेकिन फिर
भी क्या सोचते?
अभी सम्पूर्ण
थोड़ेही बने
हैं, कोई
नहीं
सम्पूर्ण बना
है। अभी तो बन
रहे हैं, बन
जायेंगे, गें
गें करने लग
जाते हैं तो
माया को बैठने
की आदत पड़
जाती है। तो
आज जन्मदिन तो
मना रहे हैं,
बाप भी
दुआयें, मुबारक
तो दे रहे हैं
लेकिन बाप हर
एक बच्चे को
लास्ट नम्बर
वाले बच्चे को
भी किस रूप
में देखने
चाहते हैं? लास्ट नम्बर
भी बाप का
प्यारा तो है
ना! तो बाप लास्ट
नम्बर वाले
बच्चे को भी
सदा गुलाब
देखने चाहते
हैं, खिला
हुआ। मुरझाया
हुआ नहीं।
मुरझाने का
कारण है थोड़ा
सा अलबेलापन।
हो जायेगा, देख लेंगे,
कर ही लेंगे,
पहुंच ही
जायेंगे.... तो
यह गें गें की
भाषा नीचे
गिरा देती है।
तो चेक करो -
कितना समय बीत
गया, अभी
समय की समीपता
का और अचानक
होने का इशारा
तो बापदादा ने
दे ही दिया है,
दे रहा है
नहीं, दे
ही दिया है।
ऐसे समय के
लिए एवररेडी,
अलर्ट
आवश्यक है।
अलर्ट रहने के
लिए चेक करो - हमारा
मन और बुद्धि
सदा क्लीन और
क्लियर है? क्लीन भी
चाहिए, क्लियर
भी चाहिए।
इसके लिए समय
पर विजय प्राप्त
करने के लिए
मन में, बुद्धि
में कैचिंग
पावर और टचिंग
पावर दोनों
बहुत आवश्यक
हैं। ऐसे
सरकमस्टांश
आने हैं जो
कहाँ दूर भी
बैठे हो लेकिन
क्लीन और
क्लियर मन और
बुद्धि होगा
तो बाप का
इशारा, डायरेक्शन,
श्रीमत जो
मिलनी है, वह
कैच कर
सकेंगे। टच
होगा यह करना
है, यह
नहीं करना है।
इसीलिए
बापदादा ने
पहले भी सुनाया
है तो वर्तमान
समय साइलेन्स
की शक्ति अपने
पास जितनी हो
सके जमा करो।
जब चाहो, जैसे
चाहो वैसे मन
और बुद्धि को
कन्ट्रोल कर
सको। व्यर्थ
संकल्प
स्वप्न में भी
टच नहीं करे,
ऐसा माइन्ड
कन्ट्रोल
चाहिए।
इसीलिए कहावत
है मन जीते
जगतजीत। जैसे
स्थूल
कर्मेन्द्रिय
हाथ है, जहाँ
चाहो जब तक
चाहो तब तक
आर्डर से चला
सकते हो। ऐसे
मन और बुद्धि
की
कन्ट्रोलिंग
पावर आत्मा
में हर समय
इमर्ज हो। ऐसे
नहीं योग के
समय अनुभव
होता है लेकिन
कर्म के समय,
व्यवहार के
समय, सम्बन्ध
के समय अनुभव
कम हो। अचानक
पेपर आने हैं
क्योंकि
फाइनल रिजल्ट
के पहले भी
बीच-बीच में
पेपर लिये
जाते हैं।
तो
इस बर्थ डे पर
विशेषता क्या
करेंगे? साइलेन्स
की शक्ति
जितना जमा कर
सको, एक
सेकण्ड में
स्वीट
साइलेन्स की
अनुभूति में
खो जाओ
क्योंकि
साइन्स और
साइलेन्स, साइंस
भी अति में जा
रही है। तो
साइंस पर साइलेन्स
के शक्ति की
विजय
परिवर्तन
करेगी। साइलेन्स
की शक्ति से
दूर बैठे किस
आत्मा को
सहयोग भी दे
सकते हो। सकाश
दे सकते हो।
भटका हुआ मन शान्त
कर सकते हो।
ब्रह्मा बाबा
को देखा जब भी
कोई अनन्य
बच्चा थोड़ा
हलचल में वा
शारीरिक
हिसाब-किताब
में रहा तो
सवेरे-सवेरे
उठकर बच्चे को
साइलेन्स के
शक्ति की सकाश
दिया और वह
अनुभव करते थे।
तो अन्त में
इस साइलेन्स
की सेवा का
सहयोग देना
पड़ेगा।
सरकमस्टांश
अनुसार यह बहुत
ध्यान में रखो,
साइलेन्स
की शक्ति या
अपने श्रेष्ठ
कर्मो की शक्ति
जमा करने की
बैंक सिर्फ
अभी खुलती है
और कोई जन्म
में जमा करने
की बैंक नहीं
है। अभी अगर
जमा नहीं किया
फिर बैंक ही
नहीं होगी तो
किसमें जमा
करेंगे! इसलिए
जमा की शक्ति
को जितना
इकठ्ठा
करने चाहो उतना
कर सकते हो।
वैसे लोग भी
कहते हैं जो
करना है वह अब
कर लो। जो
सोचना है अब
सोच लो। अभी
जो भी सोचेंगे
वह सोच, सोच
रहेगा और कुछ
समय के बाद जब
समय की सीमा
नजदीक आयेगी
तो सोच
पश्चाताप के
रूप में बदल
जायेगा। यह
करते थे, यह
करना था... तो
सोच नहीं
रहेगा, पश्चाताप
में बदल
जायेगा।
इसीलिए
बापदादा पहले
से ही इशारा
दे रहा है।
साइलेन्स की
शक्ति, एक
सेकण्ड में
कुछ भी हो, साइलेन्स
में खो जाओ।
यह नहीं
पुरूषार्थ कर
रहे हैं! जमा
का पुरूषार्थ
अभी कर सकते
हो।
तो
बापदादा का
बच्चों से
स्नेह है,
बापदादा
एक-एक बच्चे
को साथ ले जाना
चाहते हैं। जो
वायदा है साथ
रहेंगे, साथ
चलेंगे... वह
वायदा निभाने
के लिए समान
साथ चलेगा।
सुनाया था ना -
डबल फारेनर्स
को हाथ में
हाथ देके चलना
अच्छा लगता है,
तो श्रीमत
का हाथ में
हाथ हो, बाप
की श्रीमत वह
आपकी मत इसको
कहते हैं हाथ
में हाथ। तो
ठीक है - आज बर्थ
डे उत्सव
मनाने आये हो
ना! बापदादा
को भी खुशी है
कि मेरे बच्चे,
फखुर है बाप
को कि मेरे
बच्चे सदा
उत्साह में रहते
उत्सव मनाते
रहते हैं। हर
रोज उत्सव मनाते
हो या विशेष
दिन पर? संगमयुग
ही उत्सव है।
युग ही उत्सव
का है। और कोई
युग संगमयुग
जैसा नहीं है।
तो सबको
उमंग-उत्साह
है ना कि हमें
समान बनना ही
है। है? बनना
ही है, या
देखेंगे, बनेंगे,
करेंगे,
गें
गें तो नहीं
है? जो
समझते हैं
बनना ही है,
वह हाथ
उठाओ। बनना ही
है, त्याग
करना पड़ेगा,
तपस्या करनी
पड़ेगी। तैयार
है कुछ भी
त्याग करना
पड़े। सबसे बड़ा
त्याग क्या है?
त्याग करने
में सबसे बड़े
ते बड़ा एक
शब्द विघ्न
डालता है।
त्याग तपस्या
वैराग्य, बेहद
का वैराग्य,
इसमें एक ही
शब्द विघ्न
डालता है, जानते
तो हो। कौन सा
एक शब्द है? ‘मैं’, बॉडी
कान्सेस की
मैं। इसलिए
बापदादा ने
कहा जैसे अभी
जब भी मेरा
कहते हो तो
पहले क्या याद
आता? मेरा
बाबा। आता
मेरा बाबा आता
है ना! भले
मेरा और कुछ
भी करो लेकिन
मेरा कहने से
आदत पड़ गई है
पहले बाबा आता
है। ऐसे ही जब
मैं कहते हैं,
जैसे मेरा
बाबा भूलता
नहीं है, कभी
किसको मेरा
कहो ना तो
बाबा शब्द आता
ही है, ऐसे
ही जब मैं कहो
तो पहले आत्मा
याद आवे। मैं कौन,
आत्मा। मैं
आत्मा यह कर
रही हूँ। मैं
और मेरा, हद
का बदल बेहद
का हो जाए। हो
सकता है? हो
सकता है? कांध
तो हिलाओ। आदत
डालो, मैं,
फौरन आवे
आत्मा। और जब
मैं-पन आता है
तो एक शब्द
याद आवे -
करावनहार कौन?
बाप
करावनहार करा
रहा है।
करावनहार
शब्द करने के
समय सदा याद रहे।
मैं-पन नहीं
आयेगा। मेरा
विचार, मेरी
ड्युटी, ड्युटी
का भी बहुत
नशा होता है।
मेरी ड्युटी... लेकिन
देने वाला
दाता कौन! यह
ड्युटीज
प्रभु की देन
हैं। प्रभु की
देन को मैं
मानना, सोचो
अच्छा है?
तो
बापदादा अभी
लास्ट दो टर्न
है, एक मास
सीजन समझो, इस वर्ष की
सीजन समाप्त
होने में। तो
समाप्ति में
बापदादा क्या
समाप्ति
कराना चाहता
है? एवररेडी
हैं कि सोचना
पड़ेगा? चाहे
यहाँ आवे या
नहीं आवे
लेकिन हर एक
स्थान से
बापदादा
रिजल्ट चाहते
हैं। यह एक
मास ऐसा नेचरल
नेचर बनाओ
क्योंकि
नेचरल नेचर
जल्दी में
बदलती नहीं
है। तो नेचरल नेचर
बनाओ जो बताया
ना - सदा आपके
चेहरे से बाप के
गुण दिखाई दें,
चलन से बाप
की श्रीमत
दिखाई दे। सदा
मुस्कराता
हुआ चेहरा हो।
सदा सन्तुष्ट
रहने और
सन्तुष्ट
करने की चाल
हो। हर कर्म
में, कर्म
और योग का
बैलेन्स हो।
कई बच्चे
बापदादा को
बहुत
अच्छी-अच्छी
बातें सुनाते
हैं, बतायें
क्या कहते हैं?
कहते हैं
बाबा आप समझ
लो ना मेरी यह
नेचर है, और
कुछ नहीं है,
मेरी नेचर
ही यह है। अभी
बापदादा क्या
कहे? मेरी
नेचर है? मेरा
बोल ऐसा है,
कई ऐसे कहते
हैं, क्रोध
थोड़ेही किया,
मेरा बोल
थोड़ा बड़ा है,
थोड़ा तेज
बोला, क्रोध
थोड़ेही किया
सिर्फ तेज
बोला। देखो
कितनी
मीठी-मीठी
बातें हैं।
बापदादा कहते
हैं जिसको आप
मेरी नेचर
कहते हो मेरा
कहना ही रांग
है। मेरी नेचर
यह रावण की
नेचर है या
आपकी नेचर है।
आपकी नेचर
अनादिकाल आदि
काल, पूज्य
काल यह
ओरीज्नल नेचर
है। रावण की चीज़
को मेरा-मेरा
कहते हो ना
इसीलिए जाती
नहीं है। पराई
चीज़ को अपना
बनाकर रखा है
ना, कोई
पराई चीज़ को
अपने पास
सम्भालकर रखे,
छिपाकर रखे,
अच्छा माना
जाता है? तो
रावण की नेचर,
पराई नेचर
उसको मेरा
क्यों कहते हो?
बड़े फखुर से
कहते हैं मेरा
दोष नहीं है,
मेरी नेचर
है। बापदादा
को भी रिझाने
की कोशिश करते
हैं। अभी यह
समाप्ति
समारोह
करेंगे! करेंगे?
करेंगे?
देखो,
दिल से कहो,
मन से करो,
जहाँ मन
होगा ना, वहाँ
सब कुछ हो
जायेगा। मन से
मानो कि यह
मेरी नेचर
नहीं है। यह
दूसरे की चीज़
है, वह
नहीं रखनी है।
आप तो मरजीवा
बन गये ना।
आपकी
ब्राह्मण
नेचर है या
पुरानी नेचर
है? तो
समझा बापदादा
क्या चाहते
हैं? भले
मनोरंजन मनाओ,
डांस करो,
खेल करो
लेकिन... लेकिन
है। सब कुछ
करते भी समान बनना
ही है। समान
बनने के बिना
साथ चलेंगे
कैसे! कस्टम
में, धर्मराजपुरी
में ठहरना
पड़ेगा, साथ
नहीं चलेंगे।
तो क्या, बताओ
दादियां, एक
मास रिजल्ट देखें!
देखें? बोलो,
देखें।
देखें? एक
मास अटेन्शन
रखेंगे। एक
मास अगर
अटेन्शन रखा
तो नेचरल हो
जायेगा। मास
का एक दिन भी
छोड़ना नहीं।
अच्छा
जिम्मेवारी
उठाती हैं
दादियां। सभी इकट्ठे
होके एक दो के
प्रति शुभ
भावना शुभ
कामना का हाथ
फैलाओ। जैसे
कोई गिरता है
ना तो उसको
हाथ से प्यार
से उठाते हैं
तो शुभ भावना
और शुभ कामना
का हाथ, एक
दो को सहयोग
देके आगे
बढ़ाते चलो।
ठीक है? सिर्फ
आप चेक कम
करते हो, करके
पीछे चेक करते
हो, हो गया
ना! पहले सोचो,
पीछे करो।
पहले करो पीछे
सोचो नहीं।
करना ही है।
डबल
विदेशी क्या
समझते हैं?
करेंगे? करेंगे?
डबल विदेशी
करेंगे? बहुत
अच्छा। अगर
डबल विदेशी
एक्जैम्पुल
बन जायें तो
बापदादा
बहुत-बहुत
दुआओं की
वर्षा करेगा।
क्या सोचा डबल
विदेशियों ने?
एक्जैम्पुल
बनेंगे? बनेंगे
तो दो हाथ
उठाओ। कमाल है,
बापदादा
डबल
विदेशियों को
अभी से हिम्मत
और उमंग
उत्साह की दुआयें
दे रहे हैं।
भारत वाले भी
कम नहीं हैं,
वह भी
अन्दर-अन्दर
सोच रहे हैं।
वह सोचते हैं करके
ही
दिखायेंगे।
ठीक है ना
भारत वाले।
देखो। भारत ने
क्या नहीं
किया? भारत
वाले बाप को
ऊपर से नीचे
ले आये। कमाल
तो की ना भारत
वालों ने।
उसके आगे यह
क्या बड़ी बात
है। अच्छा - जो
समझते हैं कि
बाप से और
दादी से भी
बहुतबहुत
प्यार है वह
हाथ उठाओ।
प्यार है, अच्छा।
कितना प्यार
है? अभी
आपका दिल कौन
सा गीत गाता
है? इतना
प्यार करेगा
कौन? जितना
बच्चे करते
बाप को, बाप
करता बच्चों
को। इतना
प्यार कोई
करेगा। तो
प्यार के पीछे
क्या छोड़ना थोड़ेही
है, यह तो
पाना है, छोड़ना
नहीं है।
बापदादा
शिव मन्त्र
चलाके सभी को
सम्पन्न रूप
में देखते
हैं। आपके पास
भी शिव मन्त्र
है ना! है? है
ना? छू
मन्त्र नहीं,
शिव
मन्त्र। तो
शिव मन्त्र
चलाओ। तो अगली
बार सोच समझ
करके अपना
प्लैन आपेही
बनाओ। बनाके देते
हैं ना तो
बहाने बहुत
करते हैं, यह
हो गया, यह
हो गया.. अपना
प्लैन आप ही
बनाओ। आज बाप
का जन्म दिन
मना रहे हो ना,
तो जन्म दिन
पर क्या करते
हैं? कोई न
कोई गिफ्ट
देते हैं।
देते हैं ना?
तो बाप को
क्या गिफ्ट
देंगे? जो
बाप ने कहा वह
करके दिखाना,
यही गिफ्ट
देना। और
बापदादा भी आप
सबको गिफ्ट दे
रहा है, आपका
भी तो जन्म
दिन है ना, क्या
गिफ्ट दे रहे
हैं? पक्का,
जो लेने
चाहे वह ले
सकते हैं।
विशेष वरदान
है, लेकिन
वरदान काम में
तब आयेगा जब
रोज अमृतवेले
इस वरदान को
रिवाइज
करेंगे।
गिफ्ट को
रिवाइज
करेंगे। तो
बापदादा यही
गिफ्ट दे रहे
हैं - एक कदम
हिम्मत का कभी
नहीं छोड़ना,
तो बापदादा
हजार कदम मदद
का देगा। ऐसे
नहीं देखना
देखें बाबा
मदद करता है
या नहीं, इम्तहान
नहीं लेना।
बंधा हुआ है
बाप। आप भी बंधे
हुए हो बाप भी
बंधा हुआ है।
तो इस गिफ्ट
को रोज
बार-बार
देखना। कोई
बढ़िया गिफ्ट
होती है तो
उसको बार बार
देखते हैं
बहुत बढ़िया,
बहुत बढ़िया।
तो रोज
अमृतवेले
देखना और कर्म
करते
कर्मयोगी
जीवन में भी
बीच-बीच में
रिवाइज करना।
अच्छा। गिफ्ट
ली, गिफ्ट
दी। अच्छा है।
बापदादा
तो चारों ओर
देख रहे हैं,
सब अपनी
अपनी कुटिया
में, स्क्रीन
में देख रहे
हैं, सामने
दिखाई दे रहे
हैं। जो नहीं
भी आये हैं,
सभी को
बापदादा यह
गिफ्ट दे रहे
हैं। बापदादा देखते
हैं, सभी
को चाहे दिन
है, चाहे
रात है, चाहे
टाइम का फर्क
है लेकिन
प्यार जागरण
करा देता है।
बाकी सभी
बच्चों का
कार्ड भेजा
नहीं भेजा, ईमेल भेजा
नहीं भेजा, लेकिन दिल
के संकल्प का
ईमेल बापदादा
के पास सभी का
पहुंच गया है।
उत्साह में
नाच रहे हैं,
यह भी
बापदादा देख
रहे हैं। तो
जो भी जहाँ भी
हैं, एक
बच्चे का भी
यादप्यार
नहीं पहुंचा
हो, यह है
ही नहीं। सबका
पहुंच गया है।
और बापदादा
रेसपान्ड कर
रहे हैं सदा
उमंग-उत्साह
का उत्सव
मनाते रहना।
अच्छा।
अभी
बापदादा कौन
सी ड्रिल
कराने चाहते
हैं? एक
सेकण्ड में
शान्ति की
शक्ति स्वरूप
बन जाओ।
एकाग्र
बुद्धि, एकाग्र
मन। सारे दिन
में एक सेकण्ड
बीच-बीच में
निकाल अभ्यास
करो।
साइलेन्स का
संकल्प किया
और स्वरूप
हुआ। इसके लिए
समय की
आवश्यकता नहीं।
एक सेकण्ड का
अभ्यास करो,
साइलेन्स।
अच्छा।
सेवा
का टर्न
इन्दौर जोन का
है:- अच्छा है
शक्ति सेना
ज्यादा है।
पाण्डव भी कम
नहीं हैं। तो
देखो नाम ही
है इन्डोर,
सदा
अन्तर्मुखता
की तपस्या में
रहने वाले। अच्छा
है, देखो
इन्दौर की
स्थापना में
विशेषता है।
जानते हो ना -
ब्रह्मा बाप
के अव्यक्त
होने से पहले
ब्रह्मा बाप
की प्रेरणा से
यह इन्दौर का
फाउण्डेशन
पड़ा है। कितना
लक्की हैं और
ब्रह्मा बाप
की आशाओं को
पूर्ण कर रहे
हैं ना! जिस
उमंग से, जिस
विशेषता से
बापदादा ने
प्रेरणा दी
उसी प्रेरणा
प्रमाण सभी
बापदादा को
रेसपाण्ड कर
रहे हैं ना!
अच्छा है -
सेवा का उमंग
उत्साह अच्छा
रहा है और
रहता रहेगा।
अभी इन्दौर
कमाल करे, क्या
कमाल करेंगे
टीचर्स? पहला
नम्बर लेंगे!
परिवर्तन। जो
बापदादा ने कहा
है उसमें पहला
नम्बर इन्दौर
ले। लेंगे!
लेंगे? क्योंकि
संगठन की
शक्ति तो है।
संगठन की शक्ति
देखो, 5
पाण्डव, तो
5 के संगठन
ने क्या कमाल
की? तो
संगठन में
शक्ति होती
है। तो इतना
बड़ा संगठन है
तो क्या नहीं
कर सकते हैं!
जो चाहे वह कर
सकते हैं। तो
कमाल करके
दिखाओ, जो
अभी तक नहीं
किया है वह
करके दिखाओ।
है हिम्मत!
हिम्मत है ना
टीचर्स! है
हिम्मत? अच्छी
हैं। देखो
हिम्मत कर
बड़े-बड़े
प्रोग्राम्स
भी तो करते हो
ना। तो नम्बरवन
हर सबजेक्ट
में बनना ही
है, यह दृढ़
संकल्प करो।
बापदादा ने
देखा है जो
हिम्मत रखते
हैं, उनको
बाप की मदद का
अनुभव होता
जरूर है।
लेकिन
अलबेलापन बीच
में आता है,
यह तो होता
ही है। तीव्र
पुरूषार्थ के
बजाए कभी पुरूषार्थी,
कभी तीव्र पुरूषार्थी
बन जाते हैं।
सदा तीव्र
पुरूषार्थ की
लहर स्वयं में
भी और सर्व को
भी दिलावे, यह नहीं
समझो हम तो
ठीक चल रहे
हैं। एक दो को
सहयोग देके
संगठित रूप
में नम्बरवन
बनें। कैसा भी
गिरा हुआ हो,
उसको भी
साथी बनाके
चलना सिखाओ।
सहयोगी बनो। तो
क्या करेंगे
इन्दौर? संगठन
को निर्विघ्न,
विघ्न का
नाम-निशान
नहीं हो।
जिसको भी देखो
उसके चेहरे
में बापदादा
की चलन दिखाई
दे। क्या समझते
हैं पाण्डव?
करेंगे? करेंगे।
शक्तियां
क्या समझती
हैं? यही
सोचो हम नहीं
करेंगे तो कौन
करेगा। हम ही करेंगे।
ऐसे उमंग
उत्साह सदा
रखो। और कर
सकते हो।
संगठन में
बहुत ताकत होती
है। अच्छा।
नम्बरवन
विजयी भव का
वरदान सदा याद
रखना।
55 देशों से 1 हजार डबल
विदेशी आये
हैं:-
बापदादा ने
देखा है कि
डबल विदेशी
अपना नियम बहुत
अच्छा निभाते
हैं। आना है
तो आते ही हैं और
सभी ने मधुबन
के सीजन की
रौनक बढ़ाने का
संकल्प कर
लिया है तो हर
टर्न में देखा
गया है डबल
विदेशियों का
श्रृंगार
मधुबन में
होता ही है।
ताली बजाओ।
अच्छा है।
दिनप्रतिदन
विदेश के
सेवास्थानों
में भी एक दो
को उमंग
उत्साह मिलन
मनाते हुए,
उमंग-उल्हास
दिलाने में भी
बापदादा ने
देखा कि इस
समय एक दो के
स्थान में भी
आके शुभ भावना
रखने का अच्छा
कर रहे हैं।
सिस्टम भी
अच्छी बनाते
रहते हैं।
बापदादा खुश
होते हैं कि
कैसे भी पहुंच
जाते हैं।
दूरदेशी नहीं
लगते हैं, जैसे
यहाँ के ही
लगते हैं।
वैसे तो सबसे
दूरदेश वाला
कौन है? डबल
फारेनर्स कि
बापदादा? तो
दूरदेशी को
अपने हमजिन्स
दूरदेशी
प्यारे लगते
हैं। अच्छा।
डबल
विदेशी कुछ
प्रॉमिस करना
चाहते हैं
(न्युयार्क की
मोहिनी बहन ने
वायदे पढ़े और
सभी ने रिपीट
किया) दृढ़
संकल्प है कि
•
हम हर कदम पर
श्रीमत की
पालना
करेंगे।
•
मैं सब
विघ्नों से
सदा के लिए
दूर
रहूंगी/रहूंगा।
•
स्वमान की
सीट पर रहेंगे
और सदा सबको
सम्मान देंगे।
•
बापदादा की
जो उम्मीदें
हैं वह सब
पूरा करेंगे।
मीठा
बाबा, प्यारा
बाबा, शुक्रिया
बाबा।)
शुक्रिया
बच्चे।
(माताओं
की रिट्रीट भी
चली)
बापदादा ने
सुना था
समाचार अच्छा
है। बहुत अच्छा।
अच्छा है,
डबल
फारेनर्स आगे
से आगे उड़ते
चलो और उड़ाते
चलो। अच्छा।
चारों
ओर के जन्म
उत्सव मनाने
वाले
भाग्यवान आत्माओं
को सदा उत्साह
में रहने वाले
संगमयुग के
उत्सव को
मनाने वाले,
ऐसे सर्व
उमंग उत्साह
के पंखों से
उड़ने वाले बच्चों
को, सदा मन
और बुद्धि को
एकाग्रता के
अनुभवी बनाने
वाले महावीर
बच्चों को, सदा समान
बनने के उमंग
को साकार रूप
में लाने वाले
फॉलो फादर
करने वाले
बच्चों को, सदा एक दो के
स्नेही
सहयोगी
हिम्मत
दिलाने वाले
बाप से मदद का
वरदान दिलाने
वाले वरदानी
बच्चों को, महादानी
बच्चों को
बापदादा का
यादप्यार और पदम
पदम पदम
पदमगुणा
मुबारक हो, मुबारक हो,
मुबारक हो।
दादियों
से:- बापदादा के
दिल में तो आप
एक एक रतन
महान हो क्योंकि
अनेक आत्माओं
के उमंग
उत्साह बढ़ाने
के निमित्त
हो। आपका उमंग
देख स्वत: ही
उन्हों में
उमंग आता है।
दिलाना नहीं
पड़ता है, नेचरल
पहुंच जाता
है। आपका
संगठन
बहुत-बहुत पक्का
है। पक्का
करना नहीं है,
है। एक-एक
रत्न संगठन का
श्रृंगार है।
(मनोहर
दादी से)
क्लास में
जाती तो है,
आज्ञाकारी
रही, बाप
ने कहा आपने
किया इसीलिए
आज्ञाकारी
लिस्ट में है।
और आप तो सारा
संगठन जी हाँ,
जी हाँ करने
वाले हो।
(दादी
जानकी ने कहा
कि बाबा आपने
कहा था - सदा
हजूर हाजिर
रहेगा, वही
अनुभव होता
रहता है)
बंधा हुआ है
बाप। देखो
निमित्त बने
हुए ग्रुप पर
तो विशेष नज़र रहती
है ना।
निमित्त
वालों के ऊपर
बापदादा का प्यार
और नज़र सदा
रहती है।
(बाबा आंखे
गुलाबी हो
जाएं तो हर्जा
तो नहीं है) वह
प्यार है,
आंसू नहीं
है। (अभी क्या
करना है) बनके
बनाना है।
आपको बनाने की
ड्युटी है।
उड़ाने की
ड्युटी है।
सहज है।
(मोहनी
बहन ने अंकल
आंटी, परदादी
आदि सबकी याद
बापदादा को
दी) सभी की
याद बाप के
पास पहुंच गई।
बापदादा
ने अपने
हस्तों से
झण्डा फहराया
और सभी बच्चों
को शिव जयन्ती
की बधाईयां
दी:
आज
के दिन तो इस
हाल में यह
झण्डा लहराया
लेकिन अभी वह
भी दिन आयेगा,
आना ही है जब
सारे विश्व
में जगह-जगह
पर यह झण्डा
लहराने की
सेरीमनी भी
होगी। और सभी
आत्माओं के
दिल में यह
ऑटोमेटिक गीत
बजेगा - ‘‘हमारा
बाबा आ गया।
हमारा
मुक्तिदाता
वरदाता बाप आ
गया।’’ सारे
वर्ल्ड में यह
आटोमेटिक
सबके दिलों
में गीत बजने शुरू
हो जायेगा।
आपके दिल में
तो यह गीत बज
रहा है ना। आ
गया, मिल
गया। वरदान
मिल गये, दुआयें
मिल गई, तो
यह झण्डा, जैसे
आपके दिल में
लहराता रहता
है ऐसे विश्व
की आत्माओं के
दिल में
लहराना ही है।
प्राप्ति नहीं
कर सकें वर्से
की, लेकिन
अहो प्रभु, अहा प्रभु,
आप आ गये, यह
गीत तो गाना
ही है। तो
बहुत अच्छा है,
आप सबका
भाग्य है, जो
बाप के साथ
झण्डा लहरा
रहे हैं और
सभी जगह देख
रहे हैं, जैसे
आप देख रहे हो
वहाँ बापदादा
भी देख रहा है।
जगह-जगह पर
झण्डा देख रहे
हैं। आपके भाई
बहन ऐसे कांध
हिला रहे हैं।
अच्छा।
ओम् शान्ति 18-03-2019 मधुबन
प्राणप्यारे अव्यक्त बापदादा के अति स्नेही, सदा होली हैपी मूड में रह, खुशियों के झूले में झूलने वाली निमित्त टीचर्स बहिनें तथा देश विदेश के सर्व बाबा के अमूल्य नूरे रत्नों प्रति
ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर यादप्यार स्वीकार हो।
बाद समाचार - आप सभी ने शिवबाबा के यादगार दिवस को खूब धूमधाम से मनाया, अनेकानेक स्थानों पर शिवबाबा के ध्वज फैहराये, प्रदर्शनिया की, बहुत सुन्दर समाचार फोटोज आदि मिल रहे हैं। अभी होली का पावन पर्व सामने है। कल हम सबने होलीएस्ट बाप के बहुत सुन्दर अनेक रहस्यों से भरे हुए अव्यक्त महावाक्य सुने। बाबा बोले बच्चे होली मनाना अर्थात् अपवित्रता वा बुराई को भस्म करना अथवा जलाना। जब अपवित्रता को सम्पर्णू समाप्त कर देते हो तब पवित्रता का रंग चढ़ता है। यह रंगो का उत्सव है। सभी अनेक प्रकार के भाव स्वभाव को भूलकर एक ही परिवार के, समान रूप से आपस में खेलते, खुशिया मनाते हैं। बाबा हम बच्चों को सदा इसके सुन्दर आध्यात्मिक अर्थ बताते बच्चे, तुम्हारी दिव्य बुद्धि रूपी पिचकारी में अविनाशी रंग भरा हुआ हो। अपनी बुद्धि की पिचकारी से किसी भी आत्मा को दृष्टि द्वारा, वृत्ति द्वारा, मुख द्वारा इस रंग में रंग दो। सिर्फ होली मनाओ नहीं लेकिन होली बनो। आपकी होली मूड सदा हल्की, सदा निश्चिन्त, सदा सर्व खजानों से सम्पन्न हो। सदा खुश रहो, हल्के रहो। कभी मूड आफ नहीं करना। ऐसे अनमोल महावाक्य आप सबने भी पढे वा सुने होंगे। मीठे बाबा ने तो हम सबकी मूड सदा होली, हैपी बना ही दी है। तो ऐसे पावन पर्व की सबको बहुत-बहुत दिल से हार्दिक बधाईया।
बापदादा के बेहद घर की रौनक तो आप सबने अनुभव की है। कैसे अव्यक्त वतन वासी बाबा साकार में न आते भी अपने देश विदेश के अनेकानेक बच्चों को मधुबन में बुलाकर उन्हें बहुत सुन्दर अनुभूतियां करा देते हैं। इस टर्न में भी देश विदेश के करीब 18 हजार भाई बहिनें पहुचे हुए हैं। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू कश्मीर, उत्तराखण्ड के भाई बहिनों की सेवा का टर्न है। साथ में अन्य कई जोन के भाई बहिनें तथा 5-6 सौ डबल विदेशी भाई बहिनें बाबा के घर में आकर बहुत अच्छी अनुभूतियां कर रहे हैं।
आज जो बापदादा के अवतरण के समय वीडियो द्वारा महावाक्य हम सभी ने सुने हैं, वह आपके पास भेज रहे हैं। अपने-अपने क्लास को रिफ्रेश करना जी। अच्छा - सभी को बहुत-बहुत याद ओम् शान्ति।
02-04-08 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“इस वर्ष चारों ही सबजेक्ट में अनुभव की अथॉरिटी बनो, लक्ष्य और लक्षण को समान बनाओ”
आज बापदादा अपने चारों ओर के सन्तुष्ट रहने वाले, सन्तुष्ट मणियों को देख रहे हैं। हर एक के चेहरे पर सन्तुष्टता की चमक दिखाई दे रही है। सन्तुष्ट मणियां स्वयं को भी प्रिय हैं, बाप को भी प्रिय हैं और परिवार को भी प्रिय हैं क्योंकि सन्तुष्टता महान शक्ति है। सन्तुष्टता तब धारण होती है जब सर्व प्राप्तियां प्राप्त होती हैं। अगर प्राप्तियां कम तो सन्तुष्टता भी कम होती है। सन्तुष्टता और शक्तियों को भी आह्वान करती है। सन्तुष्टता का वायुमण्डल औरों को भी यथा शक्ति सन्तुष्टता का वायब्रेशन देता है। जो सन्तुष्ट रहता है उसकी निशानी सदा प्रसन्नचित दिखाई देता है। सदा चेहरा हर्षितमुख स्वत: ही रहता है। सन्तुष्ट आत्मा के सामने कोई भी परिस्थिति स्व स्थिति को हिला नहीं सकती। कितनी भी बड़ी परिस्थिति हो लेकिन सन्तुष्ट आत्मा के लिए कार्टून शो का मनोरंजन दिखाई देता है।इसा लिए वह परिस्थिति में परेशान नहीं होता आरै परिस्तिथितियाँ उसके ऊपर वार नहीं कर सकती, हार जाती है। इसलिए अतीन्द्रिय सुखमय मनोरंजन की जीवन अनुभव करता है। मेहनत नहीं करनी पड़ती। मनोरंजन अनुभव होता है। तो हर एक अपने को चेक करे। चेक करना तो आता है ना! आता है? जिसको चेक करना आता है अपने को, दूसरे को नहीं अपने को चेक करना आता है, वह हाथ उठाओ। चेक करना आता है? अच्छा। मुबारक हो।
बापदादा का वरदान भी हर बच्चे को रोज अमृतवेले भिन्न-भिन्न रूपों से यही मिलता है, खुश रहो आबाद रहो। रोज का वरदान मिलता सभी को है, बापदादा सभी को एक ही जैसा एक ही साथ वरदान देता है। लेकिन फर्क क्या हो जाता है? नम्बरवार क्यों बन जाते? दाता एक है, और देन भी एक है, किसको थोड़ा किसको बहुत नहीं देते हैं, फ्राकदिली से देते हैं लेकिन फर्क क्या पड़ जाता है? इसका अनुभव भी सभी को है क्योंकि अभी तक बापदादा के पास यह आवाज पहुंचता है। जानते हो ना क्या? कभी-कभी थोड़ा-थोड़ा, यह आवाज अभी तक भी आता है - बापदादा ने कहा है कि ब्राह्मण आत्माओं के जीवन रूपी डिक्शनरी में यह दोनों शब्द निकल जाना चाहिए। अविनाशी बाप है, अविनाशी खज़ाने हैं, आप सब भी अविनाशी श्रेष्ठ आत्मायें हो। तो कौन सा शब्द होना चाहिए? कभी-कभी कि सदा? हर खज़ाने के आगे चेक करो - सर्व शक्तियां सदा है? सर्व गुण सदा है? आप सबके भक्त जब आपके गुण गाते तो क्या कहते हैं? कभी-कभी गुणदाता, ऐसे कहते हैं? बापदादा ने हर वरदान में सदा शब्द कहा है। सदा सर्वशक्तिवान, कभी शक्तिवान, कभी सर्वशक्तिवान नहीं कहा है। हर समय दो शब्द आप भी कहते हो, बाप भी कहते हैं, समान बनो। यह नहीं कहते थोड़ा-थोड़ा समान बनो। सम्पन्न और सम्पूर्ण, तो बच्चे कभी-कभी क्या करते हैं? बापदादा भी खेल तो देखते हैं ना! बच्चों का खेल तो देखते ही रहते हैं। बच्चे क्या करते, कोई-कोई, सब नहीं। जो वरदान मिला उस वरदान को सोचकर, वर्णन कर कापी में नोट करते, याद भी करते लेकिन वरदान रूपी बीज को फलीभूत नहीं करते। बीज से फल नहीं निकाल सकते। सिर्फ वर्णन करते खुश होते बहुत अच्छा वरदान है। वरदान है बीज लेकिन बीज को जितना फलीभूत करते हैं उतना ही वह वृद्धि को पाता है। फलीभूत करने का रहस्य क्या है? समय पर कार्य में लगाना। कार्य में लगाना भूल जाते, सिर्फ कापी में देख, वर्णन करते बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। बाबा ने वरदान बहुत अच्छा दिया है। लेकिन किसलिए दिया है? उसको फलीभूत करने के लिए दिया है। बीज से फल का विस्तार होता है। वरदान को सिमरण करते हैं, लेकिन वरदान स्वरूप बनने में नम्बरवार बन जाते हैं। और बापदादा हर एक के भाग्य को देख हर्षित होते रहते हैं लेकिन बापदादा की दिल की आश पहले भी सुनाया है। सभी ने हाथ उठाया था, याद है कि हम कारण को समाप्त कर समाधान स्वरूप बनेंगे | याद है होमवर्क? कई बच्चों ने रूहारिहान में या पत्रों द्वारा, ईमेल द्वारा रिजल्ट लिखा भी है। अच्छा है, अटेन्शन गया है लेकिन जो बापदादा को शब्द अच्छा लगता है, सदा। वह है?
जब बापदादा पूछते हैं कि बापदादा से प्यार किसका है? और कितना है? तो क्या जवाब देते हैं? बाबा, इतना है जो कह नहीं सकते। जवाब बहुत अच्छा देते हैं | बापदादा भी खुश हो जाते हैं | लेकिन प्यार का सबूत क्या ? जिससे प्यार होता है, आजकल की दुनिया वालों का बॉडीकान्सेस का प्यार तो जान कुर्बान कर देते हैं। परमात्म प्यार उनके पीछे बाप ने कहा और बच्चों को करना मुश्किल क्यों? गीत बहुत अच्छे-अच्छे गाते हो। बाबा हम न्योछावर करने वाले परवाने हैं, शमा पर फिदा होने वाले हैं। तो यह कारण शब्द को स्वाहा नहीं कर सकते?
आपका टाइटल क्या है? आपका कर्तव्य क्या है? किस कर्तव्य के लिए ब्राह्मण बनें? विश्व परिवर्तक आपका टाइटल है। विश्व परिवर्तन आपका कार्य है और साथी कौन है? बापदादा के साथ-साथ इस कार्य में निमित्त बने हो। तो क्या करना है? अभी भी हाथ उठवायेंगे, करेंगे तो हाथ तो सभी उठा देते हैं। लक्ष्य रखा है, बापदादा ने देखा, टोटल इस वर्ष की सीजन में सभी ने संकल्प किया लेकिन सफलता की चाबी दृढ़ता - करना ही है, उसके बजाए कभी-कभी कर रहे हैं, चल रहे हैं, कर ही लेंगे। यह संकल्प दृढ़ता को साधारण बना देता है। दृढ़ता में कारण शब्द आता ही नहीं है। निवारण हो जाता है। कारण आते भी हैं लेकिन चेकिंग होने के कारण, कारण निवारण में बदल जाता है।
बापदादा ने रिजल्ट में चेक किया तो क्या देखा? ज्ञानी, योगी, धारणा स्वरूप, सेवाधारी, चार ही सबजेक्ट में हर एक यथाशक्ति ज्ञानी भी है, योगी भी है, धारणा भी कर रहा है, सेवा भी कर रहा है। लेकिन चार ही सबजेक्ट में अनुभव स्वरूप, अनुभव के अथॉरिटी - उसकी कमी दिखाई दी। अनुभवी स्वरूप, ज्ञान स्वरूप में भी अनुभवी स्वरूप अर्थात् ज्ञान को नॉलेज कहा जाता है तो अनुभवी मूर्त आत्मा में नॉलेज अर्थात् समझ क्या करना है, क्या नहीं करना है, नॉलेज की लाइट और माइट, तो अनुभवी स्वरूप का अर्थ ही है ज्ञानी तू आत्मा के हर कर्म में लाइट और माइट नेचुरल होना चाहिए। ज्ञानी माना ज्ञान, नॉलेज को जानना, वर्णन करना, उसके साथ-साथ हर कर्म में लाइट माइट हो। अनुभवी स्वरूप से हर कर्म नेचुरल श्रेष्ठ और सफल होगा। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी क्योंकि ज्ञान के अनुभवीमूर्त हैं। अनुभव की अथॉरिटी सब अथॉरिटी से श्रेष्ठ है। ज्ञान को जानना और ज्ञान के अनुभव स्वरूप के अथारिटी में हर कर्म करना, उसमें अन्तर है | तो अनुभवी स्वरूप हैं ? चेक करो। चार ही सबजेक्ट में, आत्मा हूँ लेकिन अनुभवी स्वरूप होके हर कर्म करते हैं? अनुभव की अथॉरिटी की सीट पर सेट हैं तो श्रेष्ठ कर्म, सफलता स्वरूप कर्म अथॉरिटी के सामने नेचुरल नेचर दिखाई देगी। सोचते हैं लेकिन अनुभवी स्वरूप बनना, योगयुक्त राज़युक्त नेचर हो जाए, नेचुरल हो जाए। धारणा में भी सर्व गुण स्वत: ही हर कर्म में दिखाई दें। ऐसे अनुभवी स्वरूप में सदा रहना, अनुभव की सीट पर सेट होना इसकी आवश्यकता का अटेन्शन रखना, यह आवश्यक है | अनुभव के अथॉरिटी की सीट बहुत महान है। अनुभवी को माया भी मिटा नहीं सकती क्योंकी माया की अथॉरिटी से अनुभव की अथॉरिटी पदमगुणा ऊंची है। सोचना अलग है, मनन करना अलग है, स्वरूप अनुभवी स्वरूप बनकर चलना, अभी इसकी आवश्यकता है।
तो अभी इस वर्ष में क्या करेंगे? बापदादा ने देखा एक सबजेक्ट में मैजारिटी पास हैं। कौन सी सबजेक्ट? सेवा की सबजेक्ट। चारों ओर से बापदादा के पास सेवा के रिकार्ड बहुत अच्छे अच्छे आये हैं। और सेवा का उमंग उत्साह इस वर्ष के सेवा समाचारों के हिसाब से अच्छा दिखाई दिया। हर एक वर्ग ने, हर एक जोन ने भिन्न-भिन्न रूप से सेवा में सफलता प्राप्त की है। इसकी बापदादा हर एक जोन, हर एक वर्ग को पदम पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं। मुबारक हो। प्लैन भी अच्छे-अच्छे बनाये हैं। लेकिन अभी समय के प्रमाण अचानक की सीजन है। आपने देखा सुना होगा कि इस वर्ष में कितने ब्राह्मण अचानक गये हैं। तो अचानक की घण्टी अभी तेज हो रही है। उसी अनुसार अभी इस वर्ष मैं चार ही सबजेक्ट में अनुभवी स्वरूप कहाँ तक बना हूँ, क्योंकि चार ही सबजेक्ट में अच्छी मार्क्स चाहिए, अगर एक भी सबजेक्ट में पास मार्क्स से कम होंगी तो पास विद ऑनर माला का मणका, बापदादा के गले का हार कैसे बनेगा! किसी भी रूप में हार खाने वाला बाप के गले का हार नहीं बन सकता। और यहाँ हाथ उठवाते हैं तो सभी क्या कहते हैं? लक्ष्मी नारायण बनेंगे। चलो लक्ष्मी-नारायण वा लक्ष्मी-नारायण के परिवार में साथी वह भी बनना श्रेष्ठ पद है। इसलिए बापदादा सिर्फ एक शब्द कहते हैं, अभी तीव्र गति से उड़ती कला में उड़ते रहो और अपने उड़ती कला के वायब्रेशन से वायुमण्डल में सहयोग का वायुमण्डल फैलाओ। क्या जब प्रकृति के लिए आप सबने चैलेन्ज की है, कि प्रकृति को भी परिवर्तन करके ही छोड़ेंगे। है ना वायदा? वायदा किया है? किया है। कांध हिलाओ, हाथ नहीं। तो क्या अपने हमजिन्स मनुष्यात्माओं को दु:ख और अशान्ति से परिवर्तन नहीं कर सकते? एक तो आपने चैलेन्ज किया है और दूसरा बापदादा को भी वायदा किया है, हम सभी अभी भी आपके कार्य में साथी हैं, परमधाम में भी साथी हैं और राज्य में भी ब्रह्मा बाप के साथी रहेंगे। यह वायदा किया है ना! तो साथ चलेंगे, साथ रहेंगे, और अभी भी साथ हैं। तो बाप का इशारा समय प्रति समय प्रैक्टिकल देख रहे हो - अचानक एवररेडी। क्या दादी के लिए सोचा था कि जा सकती है? अचानक का खेल देखा ना।
तो इस वर्ष एवररेडी। बाप के दिल की आशाओं को पूर्ण करने वाले आशाओं के दीपक बनना ही है। बाप की आशाओं को तो जानते ही हो। बनना है? कि बन जायेंगे, देख लेंगे... जो समझते हैं बनना ही है, वह हाथ उठाओ। देखो कैमरे में आ रहा है। बापदादा को खुश तो बहुत अच्छा करते हो। बापदादा भी बच्चों के बिना अकेला जा नहीं सकता। देखो ब्रह्मा बाबा भी आप बच्चों के लिए मुक्ति का गेट खोलने के लिए इन्तजार कर रहे हैं। एडवांस पार्टी भी इन्तजार कर रही है। आप इन्तजाम करने वाले हैं। आप इन्तजार करने वाले नहीं, इन्तजाम करने वाले हैं। तो इस वर्ष लक्ष्य रखो लेकिन लक्ष्य आरै लक्षण को समान रखना। ऐसे नहीं हो लक्ष्य बहुत ऊंचा और लक्षण में कमज़ोरी, नहीं। लक्ष्य और लक्षण समान हो। जो आपके दिल की आश है समान बनने की, वह तब पूर्ण होगी जब लक्ष्य और लक्षण समान होंगे। अभी थोड़ा-थोड़ा अन्तर पड़ जाता है, लक्ष्य और लक्षण में। प्लैन बहुत अच्छे बनाते हो, आपस में रूहरिहान भी बहुत अच्छी-अच्छी करते हो। एक दो को अटेन्शन भी दिलाते हो। अभी दृढ़ता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, इस संकल्प को अनुभव के स्वरूप में लाओ। चेक करो - जो कहते हैं उसका अनुभव भी करते हैं? पहला शब्द मैं आत्मा हूँ, इसी को ही चेक करो। इस आत्मा स्वरूप के अनुभव की अथॉरिटी हूँ, क्योंकि अनुभव की अथॉरिटी नम्बरवन है।
अच्छा। अभी किसी भी परिस्थिति में स्व-स्थिति पर स्थित रह सकते हो? मन की एकाग्रता (ड्रिल) अच्छा। तीन बिन्दियों का स्मृति स्वरूप बन सकते हो ना! बस फुलस्टाप। अच्छा।
सेवा का टर्न पंजाब जोन का है, (पंजाब हिमाचल, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, उत्तराचंल):-
अच्छा जो कहा हुआ है ना पंजाब शेर, वह संख्या भी बहुत अच्छी लाये हैं। सभी को मालूम पड़ गया तो पंजाब शेर है इसलिए सभी उमंग-उत्साह से पहुंच गये हैं और पंजाब का कितना बड़ा पुण्य बन गया। एक ब्राह्मण की सेवा करते वह भी कैसा ब्राह्मण, और आपने कितने ब्राह्मणों की, सच्चे ब्राह्मणों की सेवा की। रोज अपना पुण्य का खाता जमा किया। यह भी ड्रामा में एक पुण्य के खाते में सहज वृद्धि का साधन है। जो इस उमंग उत्साह से आता है वह थोडे दिनों में बहुत अपना पुण्य का खाता जमा कर सकता है। और अब संगमयुग के समय का पुण्य का खाता बहुत समय काम में आयेगा बाकी पंजाब के सेवा की रिपोर्ट भी देखी। बापदादा पहले ही मुबारक दे चुके हैं। सेवाकेन्द्र भी हैं, गीता पाठशालायें भी हैं, वृद्धि भी हो रही है और सभी के मन में इस बारी शिवरात्रि के समय की बहुत सेवा के उमंग उत्साह की लहर है। अभी जहाँ जहाँ भी चाहे मीडिया द्वारा, चाहे फंक्शन्स द्वारा सेवा का उमंग उत्साह अच्छा दिखाया है। अभी क्या करना है? अभी जो हर एक ने संकल्प किया है, बाप को प्रत्यक्ष करना ही है। उसकी डेट अपने परिवर्तन की कलम से सेट करो। पैन्सिल से सेट नहीं होगा, यह आपके परिवर्तन के तीव्र पुरूषार्थ की कलम से प्रत्यक्षता की डेट सहज ही फिक्स हो जायेगी।
अच्छा डबल विदेशी, बापदादा खुश है लेकिन खुश है एक और बात की खुशी लानी है, कभी भी अपने को कम्बाइण्ड रूप से अकेला नहीं करना। अकेला करना अर्थात् माया को वेलकम करना। इसलिए कम्बाइण्ड सर्वशक्तिवान का फायदा उठाना और समय पर ही माया अकेला करती है, यह अटेन्शन रखना। सदा कम्बाइण्ड, बापदादा ने पहले भी कहा है तो डबल विदेशियों को कम्पनी अच्छी लगती है, कम्पेनियन अच्छा लगता है। तो कभी भी अकेला नहीं बनना। जब बाप ऑफर कर रहा है, मैं साथ देने के लिए सदा साथ हूँ। अच्छी रिजल्ट है। रिजल्ट अच्छी है लेकिन और अच्छे ते अच्छी दिखानी ही है। अच्छा। हर टर्न में आना, यह बहुत अच्छी सिस्टम बनाई है। अभी तो विदेश ऐसे हो गया है जो इन्डिया और ही दूर लगता है, विदेश नजदीक लगता है।
जो पहले बारी आये हैं वह हाथ उठाओ। तो पहले बारी आने वाले सिकीलधे बच्चों को पहले बारी की मुबारक है। और सभी को बापदादा विशेष वरदान दे रहा है, वरदान है कि जैसे अभी पुरूषार्थ कर आने के पात्र बने हो, यह भाग्य लिया है ऐसे ही अमर भव रहना। माया आवे तो माया का गेट बन्द कर देना। माया का गेट जानते हो? बॉडीकान्सेस का मैं और मेरा। इस गेट को बन्द कर देंगे तो अमर रहेंगे। तो अमर हैं ना। अमर हैं? माया आयेगी तो क्या करेंगे? तीव्र पुरूषार्थ करेंगे? अमर रहना और औरों को भी अमर बनाना। अच्छा।
अभी एक सेकण्ड में अपने श्रेष्ठ स्वमान बापदादा के दिलतख्त नशीन हैं, इस रूहानी स्वमान के नशे में स्थित हो जाओ। तख्तनशीन आत्मा हूँ, इस अनुभव में लवलीन हो जाओ। अच्छा।
चारों ओर के अति लवली सदा बाप के लव में लीन रहने वाले, सदा स्वमानधारी, स्वराज्यधारी विशेष आत्माओं को चारों आरे के उमंग-उत्साह के पखों से उडने वाले आरै अपने मन के वायब्रेशन से वायुमण्डल को शान्त श्रेष्ठ बनाने वाले सभी को बाप का सन्देश दे दु:ख से छुड़ाए मुक्ति का वर्सा दिलाने वाले, सदा दृढ़ता द्वारा सफलता प्राप्त करने वाले ऐसे चारों ओर के दिल के समीप रहने वाले और सम्मुख आने वाले सभी बच्चों को दिल का दुलार और दिल की दुआयें, यादप्यार और नमस्ते।
दादी जानकी जी के वरदानी बोल:-
वंडरफुल बाबा, वंडरफुल हमारी दादी, देखो, यह सभी भाई बहिनें भी हाजिर हो गये हैं। बाबा ने कितना नजरों से निहाल किया है। जी चाहता है हम यहाँ बैठे रहें। बाबा की मुरली कितनी वंडरफुल है। परिवर्तन होना है तो हमको होना है। अब परिवर्तन होना है। हम परिवर्तन होंगे तब बाबा प्रत्यक्ष होगा। मीठा बाबा, प्यारा बाबा, वंडरफुल बाबा। कैसे यहाँ बैठकर बाबा हमको सुख शान्ति आनंद प्रेम में बिठा दिया है। मेरे बाबा को हमारे से कुछ नहीं चाहिए। सिर्फ कहता है बच्चे सदा खुश रहो, आबाद रहो। पुरानी कोई भी बातें हैं भूल जाओ और जो काम की बात है, वह ऐसे सबके साथ व्यवहार में आओ। अच्छा - ओ के ओम शान्ति।
| | |
ओम् शान्ति 02-04-19 मधुबन
प्राणप्यारे अव्यक्त बापदादा के अति स्नेही, अपने दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा तीनों लोकों की सैर करने वाले, सदा अव्यक्त मिलन की अनुभूतियों में रहने वाले, डायरेक्ट वरदाता बाप के दिव्य वरदानों से पलने वाली निमित्त टीचर्स बहिनें तथा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण भाई बहिनें
ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार करना जी।
बाद समाचार - प्यारे अव्यक्त बापदादा की इस सीजन का आज यह लास्ट टर्न भोपाल ज़ोन की सेवाओं का है। इस टर्न में भी देश विदेश से करीब 16-17 हजार भाई बहिनें अपने प्यारे मधुबन घर में पहुचे हुए हैं। गर्मी की सीजन प्रारम्भ हो गई है। इस बार इस अलौकिक मिलन मेले के 12 ही टर्न में जो भी भाई बहिनें अपने बेहद घर मधुबन में आये, सभी ने बहुत अच्छे अच्छे अनुभव किये। भले साकार रूप द्वारा अव्यक्त मिलन नहीं हो सका, फिर भी साइन्स के साधन वीडियो द्वारा परोक्ष अपरोक्ष सभी को बहुत अच्छी भासना मिली है। बापदादा के हर अवतरण दिन पर सभी ने विशेष अपनी अव्यक्त स्थिति बनाने तथा अव्यक्त मिलन का अनुभव करने के लिए मन और मुख का मौन रखा, बहुत अच्छा वायुमण्डल रहा। हर ग्रुप में महारथी भाई बहिनों के अनुभवों की बहुत सुन्दर क्लासेज द्वारा भी सब खूब रिफ्रेश हुए। इस ग्रुप में प्यारे अव्यक्त बापदादा हम बच्चों को सर्व खजानों से सम्पन्न बनाने के लिए 3 मुख्य विधिया बता रहे हैं - एक स्वयं के पुरुषार्थ से प्रालब्ध का खजाना जमा करना। दूसरा - सदा सन्तुष्ट रह, सबको सन्तुष्ट करके पुण्य का खाता जमा करना और तीसरा सदा अथक, नि:स्वार्थ और बड़ी दिल से सेवा करके दुआओं का खाता जमा करना। बोलो, हमारे मीठे भाई बहिनें यह तीनों खाते सभी जमा कर रहे हो ना। मीठे बापदादा ने आज हम सबका विशेष ध्यान खिचवाया है कि जैसे ड्रामा का अटेन्शन रहता, आत्मिक स्वरूप का, धारणाओं का अटेन्शन रहता है, ऐसे ही कर्मों की गुह्य गति का भी अटेन्शन आवश्यक है। अब कोई भी संकल्प, बोल वा कर्म साधारण न हो, इतना अटेन्शन रख पुरुषार्थ की रेस करनी है। हलचल की परिस्थितियों में भी अचल-अडोल स्थिति बनानी है। अभी तो विशेष योग तपस्या के कार्यक्रम द्वारा स्वयं को और सर्व को शक्तिशाली बनाकर मन्सा सकाश देने की सेवा करनी है।
बापदादा ने जो भी होमवर्क दिये हैं, जो भी शिक्षायें मिली हैं, उन्हें प्रैक्टिकल जीवन में उतारना है। बाकी 2019-20 में स्व-उन्नति और विश्व सेवा के लिए भारत और नेपाल के भाई बहिनों की वार्षिक मीटिंग 9 अप्रैल से शुरू हो रही है। इस वर्ष में स्व-उन्नति और सेवाओं की कोई नई थीम अवश्य निकलेगी, जो समाचार तो आप सबके पास पहुँच ही जायेंगे। मीटिंग के पश्चात शान्तिवन में राजयोग शिविर तथा योग भट्टियों के कार्यक्रम चलेंगे। अच्छा। सभी को बहुत-बहुत याद ओम् शान्ति।
15-12-07 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“समय के महत्व को जान, कर्मों की गुह्य गति का अटेन्शन रखो, नष्टोमोहा, एवररेडी बनो”
आज सर्व खज़ानों के दाता, ज्ञान का खज़ाना, शक्तियों का खज़ाना, सर्व गुणों का खज़ाना, श्रेष्ठ संकल्पों का खज़ाना देने वाला बापदादा अपने चारों ओर के खज़ाने के बालक सो मालिक अधिकारी बच्चों को देख रहे हैं। अखण्ड खज़ानों के मालिक बाप सभी बच्चों को सर्व खज़ानों से सम्पन्न कर रहा है। हर एक को सर्व खज़ाने देते हैं। किसको कम, किसको ज्यादा नहीं देते क्योंकि अखण्ड खज़ाना है। चारों ओर के बच्चे बापदादा के नयनों में समाये हुए हैं। सभी खज़ानों से भरपूर हर्षित हो रहे हैं।
आजकल के समय प्रमाण सबसे अमूल्य श्रेष्ठ खज़ाना है - पुरूषोत्तम संगम का समय क्योंकि इस संगम पर ही सारे कल्प की प्रालब्ध बना सकते हो। इस छोटे से युग का एक सेकण्ड प्राप्तियों और प्रालब्ध के प्रमाण एक सेकण्ड की वैल्यु एक वर्ष के समान है। इतना यह अमूल्य समय है। इस समय के लिए ही गायन है - अब नहीं तो कब नहीं क्योंकि इस समय ही परमात्म पार्ट नूंधा हुआ है। इसलिए इस समय को हीरे तुल्य कहा जाता है। सतयुग को गोल्डन एज कहा जाता है। लेकिन इस समय, समय भी हीरे तुल्य है और आप सब बच्चे भी हीरे तुल्य जीवन के अनुभवी आत्मायें हो | इस समय ही बहुतकाल की बिछुड़ी हुई आत्मायें परमात्म मिलन, परमात्म प्यार, परमात्म नॉलेज, परमात्म खज़ानों के प्राप्ति के अधिकारी बनते हैं। सारे कल्प में देव आत्मायें, महान आत्मायें हैं लेकिन इस समय परमात्म ईश्वरीय परिवार है। इसलिए जितना इस वर्तमान समय का महत्व है, इस महत्व को जान, जितना अपने को श्रेष्ठ बनाने चाहे उतना बना सकते हैं। आप सब भी इस महान युग के परमात्म भाग्य को प्राप्त करने वाले पदमापदम भाग्यवान हो ना! ऐसे अपने श्रेष्ठ भाग्य के रूहानी नशे और भाग्य को जानते, अनुभव कर रहे हो ना! खुशी होती है ना! दिल में क्या गीत गाते हो? वाह मेरा भाग्य वाह! क्योंकि इस समय के श्रेष्ठ भाग्य के आगे और कोई भी युग में ऐसा श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त हो नहीं सकता।
तो बोलो, सदा अपने भाग्य को स्मृति में रखते हर्षित होते हो ना! होते हो? जो समझते हैं कि सदा हर्षित होते हैं, कभी-कभी वाले नहीं, जो सदा हर्षित रहते हैं वह हाथ उठाओ। सदा, सदा....। अण्डरलाइन करना सदा। अभी टी.वी. में आपका फोटो आ रहा है। सदा वालों का फोटो आ रहा है। मुबारक हो। मातायें उठायें, शक्तियां उठायें, डबल फारेनर्स...। क्या शब्द याद रखेंगे? सदा। कभी-कभी वाले तो पीछे आने वाले हैं।
बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि समय की रफ्तार बहुत तीव्र गति से आगे बढ़ रही है। समय की गति को जानने वाले अपने को चेक करो कि मास्टर सर्वशक्तिवान हमारी गति तीव्र है? पुरूषार्थ तो सब कर रहे हैं लेकिन बापदादा क्या देखने चाहते? हर बच्चा तीव्र पुरूषार्थी, हर सबजेक्ट में पास विद आनर है वा सिर्फ पास है? तीव्र पुरूषार्थी के लक्षण विशेष दो हैं - एक - नष्टोमोहा, दूसरा - एवररेडी। सबसे पहले नष्टोमोहा, इस देहभान, देह-अभिमान से है तो और बातों में नष्टोमोहा होना कोई मुश्किल नहीं है। देह-भान की निशानी है वेस्ट, व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ समय, यह चेकिंग स्वयं ही अच्छी तरह से कर सकते हो। साधारण समय वह भी नष्टोमोहा होने नहीं देता। तो चेक करो हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर कर्म, सफल हुआ? क्योंकि संगमयुग पर विशेष बाप का वरदान है, सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। तो अधिकार सहज अनुभूति कराता है। और एवररेडी, एवररेडी का अर्थ है- मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में समय का आर्डर हो अचानक तो एवररेडी और अचानक ही होना है। जैसे अपनी दादी को देखा अचानक एवररेडी। हर स्वभाव में, हर कार्य में इजी रहे हैं। सम्पर्क में इजी, स्वभाव में इजी, सेवा में इजी, सन्तुष्ट करने में इजी, सन्तुष्ट रहने में इजी। इसीलिए बापदादा समय की समीपता का बार-बार इशारा दे रहा है। स्व-पुरूषार्थ का समय बहुत थोड़ा है, इसलिए अपने जमा के खाते को चेक करो। तीन विधियां खज़ानों को जमा करने की पहले भी बताई हैं, फिर से सुना रहे हैं। उन तीनों विधियों को स्वयं चेक करो। एक है – स्वयं के पुरूषार्थ से प्रालब्ध का खज़ाना जमा करना। प्राप्तियों का खज़ाना जमा करना। दूसरा है- सन्तुष्ट रहना, इसमें भी सदा शब्द एड करो और सर्व को सन्तुष्ट करना, इससे पुण्य का खाता जमा होता है। और यह पुण्य का खाता अनेक जन्मों के प्रालब्ध का आधार रहता है। तीसरा है - सदा सेवा में अथक, नि:स्वार्थ और बड़ी दिल से सेवा करना, इससे जिसकी सेवा करते हैं उनसे स्वत: ही दुआयें मिलती हैं। यह तीन विधियां हैं, स्वयं का पुरूषार्थ, पुण्य और दुआ। यह तीनों खाते जमा हैं? तो चेक करो क्योंकि अगर अचानक कोई भी पेपर आ जाए, क्योंकि आजकल के समय अनुसार प्रकृति के हलचल की छोटी-छोटी बातें कभी भी आ सकती हैं। इसलिए कर्मो के गति का नॉलेज विशेष अटेन्शन में रहे। कर्मो की गति बड़ी गुह्य है। जैसे ड्रामा का अटेन्शन रहता, आत्मिक स्वरूप का अटेन्शन रहता, धारणाओं का अटेन्शन रहता, ऐसे ही कर्मो की गुह्य गति का भी अटेन्शन आवश्यक है। साधारण कर्म, साधारण समय, साधारण संकल्प इससे प्रालब्ध में फर्क पड़ जाता है। इस समय आप सभी जो पुरूषार्थी हैं वह श्रेष्ठ विशेष आत्मायें हैं, साधारण आत्मायें नहीं हो। विश्व कल्याण के निमित्त, विश्व परिवर्तन के निमित्त बनी हुई आत्मायें हो। सिर्फ अपने को परिवर्तन करने वाले नहीं हो, विश्व के परिवर्तन के जिम्मेवार हो। इसलिए अपने श्रेष्ठ स्वमान के स्मृति स्वरूप बनना ही है।
बापदादा ने देखा सभी का बापदादा और सेवा से अच्छा प्यार है। सेवा का वातावरण चारों ओर कोई न कोई प्लैन प्रमाण चल रहा है। साथ-साथ अभी समय के प्रमाण विश्व की आत्मायें जो दु:खी, अशान्त हो रही हैं उन आत्माओं को दु:ख अशान्ति से छुड़ाने के लिए अपनी शक्तियों द्वारा सकाश दो। जैसे प्रकृति का सूर्य सकाश से अंधकार को दूर कर रोशनी में लाता। अपनी किरणों के बल से कई चीजों को परिवर्तन करता। ऐसे ही मास्टरज्ञानसूर्य अपने प्राप्त हुए सुख-शान्ति की किरणों से, सकाश से दुख-अशान्ति से मुक्त करो | मन्सा सेवा से, शक्तिशाली वृत्ति से वायुमण्डल को परिवर्तन करो। तो अभी मन्सा सेवा करो। जैसे वाचा सेवा का विस्तार किया है, वैसे मन्सा सकाश द्वारा आत्माओं में, जो आपकी टॉपिक रखी है, हैप्पी और होप, यह फैलाओ, हिम्मत दिलाओ, उमंग-उत्साह दिलाओ। बाप का वर्सा, इन बातों से मुक्ति तो दिलाओ। अभी आवश्यकता सकाश देने की ज्यादा है। इस सेवा में मन को बिजी रखो तो मायाजीत विजयी आत्मा स्वत: ही बन जायेंगे | बाकी छाटी- छाटी बातें तो साइडसीन हैं | साइडसीन में कुछ अच्छा भी आता है, कुछ बुरी चीज़ें भी आती हैं। तो साइडसीन को क्रास कर मंज़िल पर पहुंचना होता है। साइडसीन देखने के लिए साक्षीदृष्टा की सीट पर सेट रहो, बस। तो साइडसीन मनोरंजन हो जायेगी।
तो एवररेडी हो ना? कल भी कुछ हो जाए, एवररेडी हैं? पहली लाइन एवररेडी है? कल भी हो जाए तो? टीचर्स तैयार हैं तो अच्छा। यह वर्ग वाले तैयार हैं। जितने भी वर्ग आये हो, एवररेडी। सोचना। देखना दादियां, देख रही हो सब हाथ हिला रहे हैं। अच्छा है, मुबारक हो। अगर नहीं भी हैं ना तो आज की रात तक हो जाना। क्योंकि समय आपका इन्तजार कर रहा है। बापदादा मुक्ति का गेट खोलने का इन्जार कर रहा है। एडवांस पार्टी आपका आह्वान कर रही है। क्या नहीं कर सकते हो? मास्टर सर्वशक्तिवान तो हो ही। दृढ़ संकल्प करो यह करना है, यह नहीं करना है, बस। नहीं करना है, तो दृढ़ संकल्प से ‘नहीं’ को ‘नहीं’ करके दिखाओ। मास्टर तो हो ही ना! अच्छा।
अभी पहली बार कौन आये हैं? जो पहली बार आये हैं वह हाथ उठाओ। ऊंचा हाथ उठाओ, हिलाओ। इतने आये हैं। अच्छा है। जो भी पहले बारी आये हैं उनको पदमगुणा मुबारक है, मुबारक है। बापदादा खुश होते हैं, कि कल्प पहले वाले बच्चे फिर से अपने परिवार में पहुंच गये। इसलिए अभी पीछे आने वाले कमाल करके दिखाना। पीछे रहना नहीं, पीछे आये हो लेकिन पीछे नहीं रहना। आगे से आगे रहना। इसके लिए तीव्र पुरूषार्थ करना पड़ेगा। हिम्मत है ना! हिम्मत है? अच्छा है। हिम्मते बच्चे मददे बापदादा और परिवार है। अच्छा है क्योंकि बच्चे घर का श्रृंगार हो। तो जो भी आये हैं वह मधुबन के श्रृंगार हैं। अच्छा।
सेवा का टर्न भोपाल जोन का है:-
अच्छा, बहुत आये हैं। (झण्डियां हिला रहे हैं) अच्छा है गोल्डन चांस तो मिला है ना। अच्छा जो भी सेवा के निमित्त आये हुए हैं इनमें से सभी ने सेवा का जो बल है, फल है, अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति का, वह अनुभव किया? किया? अभी भले हाँ के लिए झण्डी हिलाओ, जिसने किया हो। अच्छा अभी तो अतीन्द्रिय सुख का अनुभव किया, यह सदा रहेगा? या थोड़ा समय रहेगा? जो दिल से प्रॉमिस करता है, देखा देखी हाथ नहीं उठाना, जो दिल से समझता है कि मैं इस प्राप्ति को सदा कायम रखूंगा, विघ्न विनाशक बनूंगा, वह झण्डी हिलाओ भले। अच्छा। देखो, आप टी.वी. में आ रहे हो फिर यह टी.वी. का फोटो भेजेंगे। अच्छा। यह चांस जो रखा है वह बहुत अच्छा है। चांस लेते भी खुशी से हैं और टर्न बाई टर्न सभी को खुली दिल से छुट्टी भी मिल जाती है आने की। अच्छा। बापदादा को भी खुशी है, अच्छा है। देखो कितनों को चांस मिलता है। आधा क्लास तो सेवा करने वालों की तरफ का होता है। अच्छा।
अभी कोई नवीनता करके दिखायेंगे। अभी बहुत समय हो गया है, कोई नई इन्वेन्शन नहीं निकाली है। वरगीकरण भी अभी पुराना हो गया है। प्रदर्शनियां, मेला, कांफ्रेंस, स्नहे मिलन यह सब हो गये हैं | अभी कोई नई बात निकालो | शोर्ट और स्वीट , खर्चा कम आरै सेवा ज्यादा। रायबहादुर हो ना! तो रायबहादुर नई राय निकालो। जैसे प्रदर्शनी निकली, फिर मेला निकला, फिर वर्गीकरण निकला, ऐसे कोई नई इन्वेन्शन निकालो। देखेंगे कौन निमित्त बनता है। अच्छा है, हिम्मत वाले हैं इसीलिए बापदादा हिम्मत रखने वालों को सदा एडवांस में मदद की मुबारक दे रहे हैं। अच्छा।
डबल विदेशी: आपका यह तो नाम प्रसिद्ध हो गया है, डबल फारेनर्स। अभी डबल पुरूषार्थी यह नाम रखें? डबल पुरूषार्थी, रखें? पक्का। डबल पुरूषार्थ करेंगे? करने वाले हैं। अच्छा। एक एक्साम्पल दिखाओ कि फारेन में कोई भी विघ्न नहीं आवे। न मन्सा संकल्प का, न वाणी का, न बोल का, न सम्बन्धसम्पर्क का। बापदादा सभी भारत के जोन को भी कहता है, डबल विदेशियों को तो कह रहा है लेकिन भारत के सभी जोन को भी कहते हैं कोई ऐसा एक्जैम्पुल बनाओ जो सभी जोन और सब डबल विदेशी निर्विघ्न, निरविकल्प, निरव्यर्थ संकल्प हों। करो रेस। हर एक जोन रेस करे, फारेन भी तो एक जोन हो गया ना। उसको बापदादा बहुत प्राइज देगा। पूरे जोन में विघ्न का नाम निशान न हो। एक-दो को सहयोग देंगे तो हो जायेगा। जहाँ भी कुछ हो वहाँ एक दो के सहयोगी बनके भी उन्हें निर्विघ्न बनाओ। हिम्मत दो। उमंग-उल्हास दो। ऐसा नक्शा बापदादा देखने चाहते हैं।
डबल फारेनर्स जब भी मधुबन के संगठन में आते हो तो मधुबन के संगठन में रौनक हो जाती है क्योंकि इन्टरनैशनल संगठन हो जाता है, नहीं तो सिर्फ भारत का संगठन होता है। तो बापदादा को अभी देख करके खुशी होती है कि हर सीजन के टर्न में डबल विदेशी होते ही हैं। यह प्रोग्रेस अच्छी की है। और बापदादा का विशेष प्यार तो है ही क्यों? भारतवासी त्याग करते हैं लेकिन आपका डबल त्याग है। आपका कल्चर भी अलग है। भारत का कल्चर तो वही होता है। इसीलिए बापदादा को खुशी होती है तो अभी अनुभव करते हैं कि हम भारत के थे, भारत के रहने वाले हैं।
अभी एक सेकण्ड में सभी बहुत मीठी मीठी स्वीट साइलेन्स की स्टेज के अनुभव में खो जाओ। (बापदादा ने ड्रिल कराई) अच्छा।
चारों ओर के सर्व तीव्र पुरूषार्थी, सदा दृढ़ संकल्प द्वारा सफलता को प्राप्त करने वाले, सदा विजय के तिलकधारी, बापदादा के दिल तख्तधारी, डबल ताजधारी, विश्व कल्याणकारी, सदा लक्ष्य और लक्षण को समान करने वाले परमात्म प्यार में पलने वाले ऐसे सर्व श्रेष्ठ बच्चों को बापदादा का यादप्यार, दिल की दुआयें और नमस्ते।
दादी जानकी- मेरे बाबा ने बहुत अच्छा सुनाया। बाबा का एक-एक अक्षर मुझे लग रहा था। बाबा जो कह रहा है, जो बात जरूरी है, वह बात हमारे ध्यान पर दे दी। अभी जो बाबा चाहता है वही प्रैक्टिकल लाइफ में करना है और करते रहेंगे। थैंक्यू बाबा।
| | |