05-04-70
ओम शान्ति
अव्यक्त
बापदादा
मधुबन
"सर्व
पॉइंट का सार
पॉइंट
(बिन्दी) बनो"
सभी
सुनने चाहते
हो वा
सम्पूर्ण
बनने चाहते हो?
सम्पूर्ण
बनने के बाद
सुनना होता
होगा? पहले
है सुनना फिर
है सम्पूर्ण
बन जाना। इतनी
सभी पॉइंट
सुनी है उन
सभी पॉइंट का
स्वरुप क्या
है जो बनना है? सर्व सुने
हुए पॉइंट का
स्वरुप क्या
बनना है? सर्व
पॉइंट का सार
व स्वरुप
पॉइंट(बिंदी)
ही बनना है।
सर्व पॉइंट का
सार भी पॉइंट
में आता है तो
पॉइंट बनना है।
पॉइंट अति
सूक्ष्म होता
है जिसमे सभी
समाया हुआ है।
इस समय मुख्य
पुरुषार्थ
कौन-सा चल रहा
है? अभी
पुरुषार्थ है
विषार को
समाने का।
जिसको
विस्तार को
समाने का
तरीका आ जाता
है वाही
बापदादा के
समान बन जाते
हैं। पहले भी
सुनाया था ना
कि समाना और
समेटना है। जिसको
समेटना आता है
उनको समाना भी
आता है। बीज
में कौन सी
शक्ति है? वृक्ष
के विस्तार को
अपने में
समाने की। तो
अब क्या
पुरुषार्थ
करना है? बीज
स्वरुप
स्थिति में
स्थित होने का
अर्थात् अपने
विस्तार को
समाने का। तो
यह चेक करो। विस्तार
करना तो सहज
है लेकिन
विस्तार को
समाना सरल हुआ
है? आजकल
साइंस वाले भी
विस्तार को
समेटने का ही
पुरुषार्थ कर
रहे हैं। साइंस
पॉवर वाले भी
तुम साइलेंस
की शक्ति वालों
से कॉपी करते
हैं। जैसे-जैसे
साइलेंस की
शक्ति सेना
पुरुषार्थ करती
है वैसा ही वह
भी पुरुषार्थ
कर रहे हैं। पहले
साइलेंस की
शक्ति सेना
इन्वेंशन
करती है फिर
साइंस अपने
रूप से
इन्वेंशन
करती है। जैसे-जैसे
यहाँ रिफाइन
होते जाते हैं
वैसे ही साइंस
भी रिफाइन
होती जाती है।
जो बातें पहले
उन्हों को भी
असंभव लगती थी
वह अब संभव
होती जा रही
हैं। वैसे ही
यहाँ भी असंभव
बातें सरल और
संभव होती
जाती हैं। अब
मुख्य
पुरुषार्थ
यही करना है
कि आवाज़ में लाना
जितना सहज है
उतना ही आवाज़
से परे जाना
सहज हो। इसको
ही सम्पूर्ण
स्थिति के
समीप की
स्थिति कहा
जाता है।
यह
ग्रुप कौन-सा
है? इस ग्रुप
के हरेक मूरत
में अपनी-अपनी
विशेषता है। विशेषता
के कारन ही
सृष्टि में
विशेष आत्माएं
बने हैं। विशेष
आत्माएं तो हो
ही। अब क्या
बनना है? विशेष
हो, अब
श्रेष्ठ बनना
है। श्रेष्ठ
बन्ने के लिए
भट्ठी में
क्या करेंगे? इस ग्रुप
में एक
विशेषता है जो
कोई में नहीं
थी। वह कौन सी
एक विशेषता है? अपनी
विशेषता जानते
हो? इस
ग्रुप की यही
विशेषता देख
रहे हैं कि
पुरुषार्थी
की लेवल में
एक दो के
नजदीक हैं। हरेक
के मन में कुछ
करके दिखाने
का ही उमंग है।
इसलिए इस
ग्रुप को
बापदादा यही
नाम दे रहे
हैं – होवनहार
और उम्मीदवार
ग्रुप और यही
ग्रुप है जो
सृष्टि के
सामने अपना
असली रूप
प्रत्यक्ष
करके दिखा
सकते हैं। मैदान
में कड़ी हुई
सेना यह है। आप
लोग तो बैकबोन
हो। तो
बापदादा के
कर्त्तव्य को
प्रत्यक्ष
करने की यह
भुजाएं हैं। मालूम
है कि भुजाओं
में क्या-क्या
अलंकार होते
हैं? बापदादा
की भुजाएं
अलंकारधारी
हैं। तो अपने
आप से पूछो कि
हम भुजाएं
अलंकारधारी
हैं? कौन-कौन
से अलंकार
धारण किये हुए
मैदान पर उपस्थित
हो? सर्व
अलंकारों को
जानते हो ना? तो
अलंकारधारी
भुजाएं हो?
अलंकारधारी
शक्तियां ही
बापदादा का शो
करती हैं। शक्तियों
की भुजाएं कभी
भी खली नहीं
दिखाते। अलंकार
कायम होंगे तो
ललकार होगी। तो
बापदादा आज
क्या देख रहे
है? एक-एक
भुजा के
अलंकार और
रफ़्तार। इस
ग्रुप को
भट्ठी में
क्या
करायेंगे? शक्तियों
का मुख्य गुण
क्या है? इस
ग्रुप में एक
शक्तिपन का
पहला गुण
निर्भयता और
दूसरा
विस्तार को एक
सेकंड में
समेटने की
युक्ति भी
सिखाना। एकता
और एकरस। अनेक
संस्कारों को
एक संस्कार
कैसे बनायें। यह
भी इस भट्ठी
में सिखाना है।
कम समय और कम
बोल लेकिन
सफलता अधिक हो।
यह भी तरीका
सिखाना है। सुनना
और स्वरुप बन
जाना है। सुनना
अधिक और
स्वरुप बनना
कण, नहीं। सुनते
जाना और बनते
जाना। जब
साक्षात्कार
मूर्त्त बनकर
जाना, वाचा
मूर्ति नहीं। जो
भी आप सभी को
देखे तो आकरी
और अलंकारि
देखे। सेन्स
बहुत है लेकिन
अब क्या करना
है? ज्ञान
का जो इसेन्स
है उसमे रहना
है। सेन्स को
इसेन्स में
लगा देना है। तब
ही जो बापदादा
उम्मीद रखते
हैं वह
प्रत्यक्ष
दिखायेंगे। इसेन्स
को जानते हो
ना। जो इस
ज्ञान की आवश्यक
बातें हैं वही
इसेन्स है। अगर
वह
आवश्यकताएं
पूरी हो
जाएंगी। अभी
कोई-न-कोई
आवश्यकएं हैं।
लेकिन
आवश्यकताओं
को सदा के लिए
पूर्ण करने के
लिए दो आवश्यक
बातें हैं। जो
बताई – आकारी
और अलंकारी
बनना। आकारी
और अलंकारी
बन्ने के लिए
सिर्फ एक शब्द
धारण करना है।
वह कौन-सा
शब्द है जिसमे
आकारी और
अलंकारी दोनों
आ जायें? वह
एक शब्द है
लाइट। लाइट का
अर्थ एक तो
ज्योति भी है
और लाइट का अर्थ
हल्का भी है। तो
हल्कापन और
प्रकाशमय भी। अलंकारी
भी और आकारी
भी। ज्योति
स्वरुप भी,
ज्वाला
स्वरुप भी और
फिर हल्का,
आकारी। तो एक
ही लाइट शब्द
में दोनों
बातें आ गई ना।
इसमें
कर्त्तव्य भी
आ जाता है। कर्त्तव्य
क्या है? लाइट
हाउस बनना। लाइट
में स्वरुप भी
आ जाता है। कर्त्तव्य
भी आ जाता है।
हरेक
टीचर्स को
बापदादा
द्वारा
पर्सनल ज्ञान
रत्नों की
सौगात मिली
टिका
क्यों लगाया
जाता है? जैसे
तिलक मष्तिष्क
पर ही लगया
जाता है,
ऐसे ही बिन्दी
स्वरुप यह भी
तिलक है जो
सदैव लगा ही
रहे। दूसरा
भविष्य का
राज्तिकल यह
भी तिलक ही है।
दोनों की
स्मृति रहे। उसकी
निशानी यह
तिलक है। निशानी
को देख नशा
रहे। यह
निशानी सदा
काल के लिए दी
जाती है। जैसे
सुनाया था
पॉइंट,
वैसे यह तिलक
भी पॉइंट है। समेटना
और समाना आता
है? समेटना
और समाना यह
जादूगरी का
काम है। जादूगर
लोग कोई भी
चीज़ को समेट
कर भी दिखाते, समाकर भी
दिखाते। इतनी
बड़ी चीज़ छोटी
में भी समाकर
दिखाते। यही
जादूगरी
सीखनी है। प्रैक्टिस
यह करो। विस्तार
में जाते फिर
वहां ही समाने
का पुरुषार्थ
करो। जिस समय
देखो कि
बुद्धि बहुत
विस्तार में
गई हुई है उस
समय यह अभ्यास
करो। इतना
विस्तार को
समा सकते हो? तब आप बाप के
समान बनेंगे। बाप
को जादूगर
कहते हैं ना। तो
बच्चे क्या
हैं? शीतल
स्वरुप और
ज्योति
स्वरुप,
दोनों ही
स्वरुप में
स्थित होना
आता है? अभी-अभी
ज्योति
स्वरुप,
अभी-अभी शीतल
स्वरुप। जब
दोनों स्वरुप
में स्थित
होना आता है। तब
एकरस स्थिति
रह सकती है। दोनों
की समानता
चाहिए यही
वर्तमान
पुरुषार्थ है।
यह
पुष्प क्यों
दे रहे हैं? अनेक
जन्मों में जो
बाप की पूजा
की है वह रेतुर्न
एक जन्म में
बापदादा देता
है। जो न्यारा
होता है वही
अति प्यारा
होता है। अगर
सर्व का अति
प्यारा बनना
है, तो
सर्व बातों से
जितना न्यारा
बनेंगे उतना सर्व
का प्यारा। जितना
न्यारापन
उतना ही
प्यारापन। और
ऐसे जो न्यारे
प्यारे होते
हैं उनको
बापदादा का
सहारा मिलता
है। न्यारे
बनते जाना
अर्थात्
प्यारे बनते
जाना। अगर
मानो कोई
आत्मा के
प्यारे नहीं
बन सकते हैं
उसका कारन यही
होता है कि उस
आत्मा के
संस्कार और
स्वभाव से
न्यारे नहीं
बनते। जितना
जिसका
न्यारापन का
अनुभव होगा
उतना स्वतः
प्यारा बनता
जायेगा। प्यारे
बनने का
पुरुषार्थ
नहीं,
न्यारे बनने
का पुरुषार्थ
करना है। न्यारे
बनने की
प्रालब्ध है
प्यारा बनने। यह
अभी की
प्रालब्ध है। जैसे
बाप सभी को
प्यारा है
वैसे बच्चों
को सारे जगत
की आत्माओं का
प्यारा बनने
है। उसका
पुरुषार्थ
सुनाया कि
उसकी चलन में
न्यारापन। तो
यह पुष्प है
जग से न्यारे
और जग से प्यारे
बनने का। इस
ग्रुप में
हर्ष-पन भी है, अभी हर्ष
में क्या ऐड
करना है? आकर्षणमूर्त
बने हैं वही
आकारी
मूर्त्त बनते
हैं। बाप
आकारी होते
हुए भी
आकर्षणमूर्त
थे ना। जितना-जितना
आकारी
उतना-उतना
आकर्षण। जैसे
वह लोग पृथ्वी
से परे स्पेस
में जाते हैं
तब पृथ्वी की
आकर्षण से परे
जाते हैं। तुम
पुरानी
दुनिया के
आकर्षण से परे
जायेंगे। फिर
न चाहते हुए
भी
आकर्षणमूर्त
बन जायेंगे। साकार
में होते हुए
भी सभी को
आकारी देखना
है। सर्विस का
भी बहुत बल
मिलता है। एक
है अपने
पुरुषार्थ का
बल। एक औरों
की सर्विस
करने से भी बल
मिलता है। तो
दोनों ही बल
प्राप्त होते
हैं। बापदादा
का स्नेह कैसे
प्राप्त होता
है, मालूम
हैं? जितना-जितना
बाप के
कर्त्तव्य
में सहयोगी बनते
हैं उतना-उतना
स्नेह। कर्त्तव्य
के सहयोग से
स्नेह मिलता
है। ऐसा अनुभव
है? जिस
दिन
कर्त्तव्य के
अधिक सहयोगी
होते हैं,
उस दिन स्नेह
का विशेष अधिक
अनुभव होता है? सदा सहयोगी
सदा स्नेही। स्वमान
कैसे प्राप्त
होता है? जितना
निर्माण उतना
स्वमान। और
जितना-जितना
बापदादा के
समान उतना ही
स्वमान। निर्माण
भी बनना है, समान भी
बनना है। ऐसा
ही पुरुषार्थ
करना है। निर्माणता
में भी कमी
नहीं तो
समानता में भी
कमी नहीं। फिर
स्वमान में भी
कमी नहीं। अपनी
स्वमान की परख
समानता से
देखनी है।
बापदादा
का अपने से
साक्षात्कार
कराने लिए क्या
बनना पड़ेगा? कोई
भी चीज़ का
साक्षात्कार
किस में होता
है? दर्पण
में। तो अपने
को दर्पण
बनाना पड़ेगा। दर्पण
तब बनेंगे जब
सम्पूर्ण अर्पण
होंगे। सम्पूर्ण
अर्पण तो
श्रेष्ठ
दर्पण, जिस
दर्पण में
स्पष्ट
साक्षात्कार
होता है। अगर
यथायोग्य
यथाशक्ति
अर्पण हैं तो
दर्पण भी
यथायोग्य
यथाशक्ति है। सम्पूर्ण
अर्थात्
स्वयं के भान
से भी अर्पण। अपने
को क्या समझना
है? विशेष
कुमारी का
कर्त्तव्य
यही है जो सभी
बापदादा का
साक्षात्कार
कराएं। सिर्फ
वाणी से नहीं
लेकिन अपनी
सूरत से। जो
बाप में
विशेषताएं
थीं साकार में, वे अपने में
लानी हैं। यह
है विशेष
ग्रुप। इस
ग्रुप को जैसे
साकार में
कहते थे जो
ओटे सो अर्जुन
समान अल्ला। तो
इस ग्रुप को
भी समान अल्ला
बनना है। ऐसे
करके दिखाना
जैसे
मस्तिष्क में
यह तिलक चमकता
है ऐसे सृष्टि
में स्वयं को
चमकाना है। ऐसा
लक्ष्य रखना
है। सर्विस
में सहयोगी
होने के कारण
बापदादा का विशेष
स्नेह भी है। सहयोग
और स्नेह के
साथ अभी शक्ति
भरनी है। अभी
शक्तिरूप
बनना है। शक्तियों
में विशेष कौन
सी शक्ति भरनी
है? सहनशक्ति।
जिसमे सहन
शक्ति कम उसमे
सम्पूर्णता
भी कम। विशेष
इस शक्ति को
धारण करके
शक्ति स्वरुप
बन जाना है। तृप्त
आत्मा जो होती
है उनका विशेष
गुण है निर्भयता
और संतुष्ट
रहना। जो
स्वयं
संतुष्ट रहता
है और दूसरों
को संतुष्ट
रखता है उसमे
सर्वगुण आ
जाते हैं। जितना-जितना
शक्तिस्वरुप
होंगे तो
कमजोरी सामने
रह नहीं सकती।
तो शक्तिरूप
बनकर जाना। ब्रह्माकुमारी
भी नहीं,
कुमारी रूप
में कहाँ-कहाँ
कमजोरी आ जाती
है। शक्ति-रूप
में संहार की
शक्ति है। शक्ति
सदैव विजयी है।
शक्तियों के
गले में सदैव
विजय की माला
होती है। शक्ति-रूप
की विस्मृति
से विजय भी
दूर हो जाती है
इसलिए सदा
अपने को शक्ति
समझना।
बच्चे
बाप से बड़े
जादूगर है। बापसे
बड़े जादूगर
इसलिए, जो
बाप को जो
बनाने चाहते
वह बना सकते
हैं। बाप के
लिए तो गायन
है कि जो चाहे
सो बना सकते लेकिन
को जो चाहे सो
बना सकते,
वह कौन? बच्चे।
अव्यक्त होते
भी व्यक्त में
लाते यह
जादूगरी कहें? अव्यक्त
होने के दिन
नजदीक हैं तब
तो अव्यक्त की
लिफ्ट मिली है।
ज्ञानमूर्त्त
और
यादमूर्त्त
दोनों में समान
बनना है। जब
चाहे तब ज्ञान
मूर्त्त जब
चाहे तब याद
मूर्त्त बनें।
जितना जो खुद
याद मूर्त्त
हो रहता रहता
है उतना ही वह
औरों को बाप
की याद दिला
सकते हैं। याद
मूर्त्त बन
सभी को याद
दिलाना है। समय
का इंतज़ार
करती हो या
समय तुम्हारा
इंतज़ार करता
है? समय के
लिए अपने को
इंतज़ार नहीं
करना है। अपने
को सदैव ऐसे
ही एवररेडी
रखना है जो
कभी भी समय आ
जाये। इंतज़ार
को ख़त्म करके
इंतज़ाम रखना
है। जब अपना
इंतज़ाम पूरा
होता है फिर
इंतज़ार करने की
आवश्यकता
नहीं रहती। उसको
ही कहा जाता
है एवररेडी। सब
में एवररेडी। सिर्फ
सर्विस में
नहीं,
पुरुषार्थ
में भी
एवररेडी। संस्कारों
को समीप करने
में भी
एवररेडी। विशेष
स्नेह है
इसलिए विशेष
बनाने की
बातें चल रही
हैं। वृक्ष
में जो
पीछे-पीछे फुल
और पत्ते लगते
हैं वे कैसे
होते हैं? पहलेवाले
पुराने होते
हैं और पीछे
वाले बड़े सुंदर
होते हैं। तो
यह भी पीछे
आये हैं लेकिन
प्यारे बहुत
हैं। पीछे
वाले नर्म
बहुत हैं। यहाँ
नर्म में क्या
है? जितना
नर्म उतना
गर्म। अगर
सिर्फ नर्म
होंगे कोई छीन
भी लेगा। कोमल
बनने के साथ
कमाल करनी है।
कोमलता और
कमाल दोनों ही
संग होने से
कमाल कर दिखाते
हैं? यह
सारा ग्रुप
कमाल करके
दिखानेवाला
है। ऐसा
लक्ष्य रखना
है जो कोई
कमाल करके
दिखाए। तब
कहेंगे बड़े, बड़े हैं
लेकिन छोटे
समान अल्ला। जैसा-जैसा
कर्म करेंगे
वैसा नाम
पड़ेगा। अगर
श्रेष्ठ काम
करेंगे तो नाम
पड़ेगा। श्रेष्ठमणि।
श्रेष्ठमणि
को सर्व कार्य
श्रेष्ठ करने
पड़ते हैं। मन, वाणी,
कर्म में
सरलता और
सहनशीलता यह
दोनों आवश्यक हैं।
अगर सरलता है
सहनशीलता
नहीं तो भी
श्रेष्ठ नहीं।
इसलिए सरलता
और सहनशीलता
दोनों साथ-साथ
चाहिए। अगर
सहनशीलता के
बिना सरलता आ
जाती है तो
भोलापन कहा
जाता है। सरलता
के साथ
सहनशीलता है
तो शक्ति
स्वरुप कहा
जाता है। शक्तियों
में सरलता और
सहनशीलता
दोनों ही गुण
चाहिए। अभी की
रिजल्ट में
यही देखते हैं
कि कहाँ सहनशीलता
अधिक है कहाँ
सरलता अधिक है।
अब इन दोनों
को समान बनाना
है। मधुरता भी
चाहिए। शक्ति
रूप भी चाहिए।
देवियों के
चित्र बहुत
देखते हैं तो
उसमें क्या
देखते हैं?
जितना ज्वाला
उतनी शीतलता। कर्त्तव्य
ज्वाला का है
सूरत शीतलता
की है। यह है
अन्तिम
स्वरुप।
जैसे
बुद्धि से
छोटा बिन्दु
खिसक जाता है।
ऐसे यह छोटा
बिंदु भी हाथ
से खिसक जाता
है। जितना-जितना
अपने देह से
न्यारे
रहेंगे उतना समय
बात से भी
न्यारे। जैसे
वस्त्र
उतारना और
पहनना सहज है
कि मुश्किल? इस
रीत न्यारे
होंगे तो शरीर
के भान में
आना, शरीर
के भान से
निकलना यह भी
ऐसे लगेगा। अभी-अभी
शरीर का
वस्त्र धारण
किया,
अभी-अभी उतारा।
मुख्य
पुरुषार्थ आज
इस विशेष बाप
पर करना है। जब
यह मुख्य
पुरुषार्थ
करेंगे तब
मुख्य रत्नों
में आएंगे। यह
बिन्दी लगाना
कितना सहज है।
ऐसे ही बिन्दी
रूप हो जाना
सहज है।
ब्राहमणों
की लेन देन
कौन सी होती
है? स्नेह
लेना और स्नेह
देना। स्नेह
देने से ही
स्नेह मिलता
है। स्नेह के
देने लेने से
बाप का स्नेह
भी लेते और
ऐसे ही स्नेही
समीप होते हैं।
स्नेह वाले
दूर होते भी
समीप हैं। बापदादा
के समीप आने
लिए स्नेह की
लेन-देन करके
समीप आना है। इस
लेन-देन में
रात दिन
बिताना है। यही
ब्राह्मणों
का कर्त्तव्य
है, तो
ब्राह्मणों
का लक्षण भी
हैं। स्नेही
बनने लिए क्या
करना पड़ेगा? जितना जो
विदेही होगा
उतना वो
स्नेही होगा। तो
विदेही बनना
अर्थात्
स्नेही बनना
क्योंकि बाप
विदेही है ना।
ऐसे ही देह
में रहते भी
विदेही रहने
वाले सर्व के
स्नेही रहते
हैं। यही नोट
करना है कितना
विदेही रहते
हैं। ऐसा
श्रेष्ठ
सौभाग्य कब
स्वप्न में भी
था? तो
जैसे यह
स्वप्न में भी
संकल्प नहीं
था ऐसे ही जो
भी कमजोरियां
हैं उन्हों का
भी स्वप्न में
संकल्प नहीं
रहना चाहिए। ऐसा
पुरुषार्थ
करना है। लक्ष्य
भी रखो कि यह
कमजोरियां
पूर्व जन्म के
बहुत जन्मों
की हैं। वर्तमान
जन्म के लिए
ऐसी
कमजोरियों का
प्रायःलोप
करो। मास्टर
सर्वशक्तिमान
हो? सर्वशक्तिमान
के बच्चे
अर्थात्
सर्वशक्तिमान।
ऐसे कभी नहीं
कहें कि मैं
यह नहीं कर
सकती। सब कुछ
कर सकती हूँ। कोई
भी असंभव बाप
नहीं। कोई
मुश्किल बात
भी सहज। उनके
लिए कुछ
मुश्किल होता
है? नहीं। मास्टर
सर्वशक्तिमान
बनना है। एक
शक्ति की भी
कमी न रहे। जहाँ
अकेला बनो
वहाँ साथ समझो।
कहाँ अकेला
भेजें तो साथ
समझेंगे ना। अगर
शिवबाबा साथ
है तो फिर
कहाँ अकेली हो
तो अकेलापन
लगेगा नहीं। अकेले
रहते भी साथ
का अनुभव हो। यह
अभ्यास ज़रूर
करना चाहिए। और
साथ रहते भी
अकेला समझे, यह भी
अभ्यास चाहिए।
साथ भी रह
सकें और अकेला
भी रह सकें। अकेला
अर्थात्
न्यारा। संगठन
अर्थात्
प्यारा। न्यारे
भी हों तो
प्यारे भी हों।
अभ्यास दोनों
चाहिए। बाप
अकेला रहता है
या साथ में
रहता है? अकेला
रहना ही साथ
है। बाहर का
अकेलापन और
अन्दर का साथ।
बाहर के साथ
से अकेलापन
भूल जाते हैं।
लेकिन बाहर से
अकेले अन्दर
से अकेले नहीं।
सभी
से श्रेष्ठ
मणि कौन होते
हैं? मस्तकमणि
कौन बनता है? जो मस्तक
में विराजमान
हुई आत्मा में
ज्यादा समय
उपस्थित रहता
है। वह थोड़े
होते हैं। मस्तक
में थोड़े,
ह्रदय में
बहुत होते हैं।
सभी से पहले
नज़र कहाँ जाती
है? ऐसे
मस्तकमणि
बनना है। मस्तकमणि
वह बनते हैं
जो सदैव
आस्तिक रहते
हैं। वह सदैव
हाँ करते हैं।
जो आस्तिक है, वही
मस्तकमणि हैं।
कोई भी बात
में ना शब्द
संकल्प में भी
न हो। ऐसे गुण
वाले मस्तक
में आ जाते
हैं।
गायन
योग्य कौन
बनते हैं और
पूजन योग्य
कौन बनते हैं? एक
ही बात से
दोनों योग्य
बनते हैं या
दोनों के लिए
दो विशेष
बातें हैं?
कई ऐसी भी
देवियाँ हैं
जिनका गायन
बहुत है पूजन
कम है। और कई
देवियों का
दोनों होता है।
तो जो कब कैसे, कब कैसे
रहते हैं उनका
पूजा एकरस
नहीं रहता और
जो सदा पानी
स्थिति में
रहते तो उनका
पूजन भी सदा
रहता है। एकरस
रहनेवाले का
पूजन एकरस
होता है। पुरुषार्थ
में कब शब्द
नहीं रहना
चाहिए। तीव्र
पुरुषार्थी
की निशानी है
जो कब न कह अब कहते
हैं। जो
पुरुषार्थ
में कब कहेंगे
तो उनकी पूजा
भी कम। इसलिए
कोई भी बात
में कब
देखेंगे,
नहीं। लेकिन
अब दिखाऊंगा। इसको
कहा जाता है
तीव्र
पुरुषार्थी। सम्पूर्ण
स्थिति जो
होती है उसमे
सर्व शक्तियां
संपन्न होती
हैं। सर्व
शक्ति संपन्न
बनने से सर्व
गुण संपन्न बनेंगे।
भविष्य में
बनना है
सर्वगुण
संपन्न, अब
बनना है सर्व शक्ति
संपन्न। जितना
सर्व शक्ति
संपन्न उतना
सर्व गुण संपन्न
बनेंगे।
कितनी
शक्तियां
होती है? मालूम
हैं? कौन
सी शक्तियां
सुनाई थीं?
एक है स्नेह
शक्ति,
सम्बन्ध
शक्ति,
सहयोग शक्ति, सहन शक्ति। यह
चार शक्तियाँ
हैं, तो
संबंद समीप है।
चारों समान
हों। ज्यादा
साहस है व सहन
शक्ति है? साहस
अर्थात्
हिम्मत। जो
हिम्मत वाले
होते हैं उनको
मदद मिलती है।
मदद मांगने से
नहीं मिलती। हिम्मत
रखनी पड़ती है।
हिम्मत पुरु
रखते हैं मदद
बहुत मिलती है।
हिम्मत है तो
सर्व बातों
में मदद है। सदैव
हिम्मतवान
बनना है फिर
बापदादा,
दैवी परिवार
की मदद आपे ही
मिलेगी। स्नेहमूर्त्त
हो? शक्तिमूर्त्त
हो? स्नेह
और शक्ति
दोनों की
आवश्यकता है। शक्तिरूप
से विजयी और
स्नेह रूप से
सम्बन्ध में
आते हो। अगर
शक्ति नहीं
होती तो माया
पर विजय नहीं
पाते हो। इसलिए
शक्ति रूप से
विजयी और
स्नेह रूप से
सम्बन्ध भी
चाहिए। दोनों
चाहिए। बाप को
सर्वशक्तिमान
और प्यार का
सागर भी कहते
हिं। तो स्नेह
और शक्ति
दोनों चाहिए।
सितारे
कितने होते
हैं? आप अपने
को क्या समझती
हो? बापदादा
ने कौन से नाम
रखे हैं? लकी
सितारे हो। अपने
को लकी समझते
हो? लकी तो
सभी हैं जब से
बाप के बने हो।
लेकिन लकी में
भी सदैव सफलता
के सितारे। कोई
समीप के
सितारे,
कोई उम्मीद के
सितारे। वह
हरेक का अपना
है। अब सोचना
है कि मैं कौन
हूँ? अपने
को सफलता का
सितारा समझना
है। प्रत्यक्षफल
की कामना नहीं
रखनेवाले
सफलता पाते
हैं।
ओम
शांति