26-06-70 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“कामधेनु का अर्थ”
अपने
को साक्षात्कार मूर्त समझती हो? मूर्ति के पास किसलिए जाते
हैं? अपने मन की कामनाओं की पूर्ति के लिए । ऐसे साक्षात्कार
मूर्त बने हो जो कोई आत्मा में किसी भी प्रकार की कामनाएं हों,
उनकी पूर्ति कर सको । अल्पकाल की कामनाएं नहीं, सदाकाल की
कामनाएं पूरी कर सकती हो? कामधेनु माताओं को कहा जाता है ना ।
कामधेनु का अर्थ ही है – सर्व की मनोकामनाएं पूरी करनेवाली ।
जिसकी अपनी सर्व कामनाएं पूरी होंगी, वही औरों की कामनाएं पूरी
कर सकेंगी । सदैव यही लक्ष्य रखो कि हमको सर्व की कामनाएं
पूर्ण करनेवाली मूर्ति बनना है । सर्व की इच्छाएं पूर्ण करने
वाले स्वयं इच्छा मात्रं अविद्या होंगे । ऐसा अभ्यास करना है ।
प्राप्ति स्वरुप बनने से औरों को प्राप्ति करा सकते हो । तो
सदैव अपने को दाता अथवा महादानी समझना है । महाज्ञानी बनने के
बाद महादानी का कर्तव्य चलता है । महाज्ञानी की परख महादानी
बनने से होती है । सैर करना अच्छा लगता है । जिन्हों को सैर
करने की आदत होती है, वह सदैव सैर करते हैं । यहाँ भी ऐसे है ।
जितना स्वयं सैर करेंगे उतना औरों को भी बुद्धियोग से सैर
कराएँगे । आप लोगों से साक्षात्कार होना है । जैसे साकार रूप
के सामने आने से हरेक को भावना अनुसार साक्षात्कार वा अनुभव
होता था । ऐसे आप लोगों द्वारा भी सेकंड बाई सेकंड अनेक अनुभव
वा साक्षात्कार होंगे । ऐसे दर्शनीय मूर्त वा साक्षात्कार
मूर्त तब बनेंगे जब अव्यक्त आकृति रूप दिखायेंगे । कोई भी सामने
आये तो उसे शरीर न दिखाई दे लेकिन सूक्ष्मवतन में प्रकाशमय रूप
दिखाई दे । सिर्फ मस्तक की लाइट नहीं लेकिन सारे शरीर द्वारा
लाइट के साक्षात्कार होंगे । जब लाइट ही लाइट देखेंगे तो स्वयं
भी लाइट रूप हो जायेंगे ।
अच्छा !!!