21-01-72
ओम शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
निरन्तर
योगी बनने की सहज़
विधि
जैसे
एक सेकेण्ड
में स्वीच ऑन और
ऑफ किया जाता है,
ऐसे ही एक सेकेण्ड
में शरीर का आधार
लिया और फिर एक
सेकेण्ड में शरीर
से परे अशरीरी
स्थिति में स्थित
हो सकते हो? अभी-अभी
शरीर में आये, फिर
अभी-अभी अशरीरी
बन गये - यह प्रैक्टिस
करनी है। इसी को
ही कर्मातीत अवस्था
कहा जाता है। ऐसा
अनुभव होगा। जब
चाहे कोई कैसा
भी वस्त्र
धारण
करना वा न करना
- यह अपने हाथ में
रहेगा। आवश्यकता
हुई धारण किया,
आवश्यकता न हुई
तो शरीर से अलग
हो गये। ऐसे अनुभव
इस शरीर रूपी वस्त्र
में हो।
कर्म करते हुए
भी अनुभव ऐसा ही
होना चाहिए जैसे
कोई वस्त्र
धारण
कर और कार्य कर
रहे हैं। कार्य
पूरा हुआ और वस्त्र
से न्यारे
हुए। शरीर और आत्मा
- दोनों का न्यारापन
चलते-फिरते भी
अनुभव होना है।
जैसे कोई प्रैक्टिस
हो जाती है ना।
लेकिन यह प्रैक्टिस
किनको हो सकती
है? जो शरीर के साथ
वा शरीर के सम्बन्ध
में जो भी बातें
हैं, शरीर की दुनिया,
सम्बन्ध वा अनेक
जो भी वस्तुएं
हैं उनसे बिल्कुल
डिटैच होंगे,ज़रा भी
लगाव नहीं होगा,
तब न्यारा हो सकेंगे।
अगर सूक्ष्म संकल्प
में भी हल्कापन
नहीं है, डिटैच
नहीं हो सकते तो
न्यारेपन का अनुभव
नहीं कर सकेंगे।
तो अब महारथियों
को यह प्रैक्टिस
करनी है। बिल्कुल
ही न्यारेपन का
अनुभव हो। इसी
स्टेज पर रहने
से अन्य आत्माओं
को भी आप लोगों
से न्यारेपन का
अनुभव होगा, वह
भी महसूस करेंगे।
जैसे योग में बैठने
के समय कई आत्माओं
को अनुभव होता
है ना -- यह ड्रिल
कराने वाले न्यारी
स्टेज पर हैं।
ऐसे चलते-फिरते
फरिश्तेपन के साक्षात्कार
होंगे। यहाँ बैठे
हुए भी अनेक आत्माओं
को, जो भी आपके सतयुगी
फैमिली में समीप
आने वाले होंगे
उन्हों को आप लोगों
के फिरिश्ते रूप
और भविष्य राज्य-पद
के - दोनों
इकट्ठे
साक्षात्कार
होंगे। जैसे शुरू
में ब्रह्मा में
सम्पूर्ण स्वरूप
और श्रीकृष्ण का
- दोनों साथ-साथ
साक्षात्कार करते
थे, ऐसे अब उन्हों
को तुम्हारे डभले
रूप का साक्षात्कार
होगा। जैसे-जैसे
नंबरवार इस
न्यारी स्टेज पर
आते जायेंगे तो
आप लोगों के भी
यह डभले साक्षात्कार
होंगे। अभी यह
पूरी प्रैक्टिस
हो जाए तो
यहाँ-वहाँ
से यही समाचार
आने शुरू हो जायेंगे।
जैसे शुरू में
घर बैठे भी अनेक
समीप आने वाली
आत्माओं को साक्षात्कार
हुए ना। वैसे अब
भी साक्षात्कार
होंगे। यहाँ बैठे
भी बेहद में आप
लोगों का सूक्ष्म
स्वरूप
सर्विस
करेगा।
अब यही
सर्विस
रही हुई
है। साकार में
सभी इग्जाम्पल
तो देख लिया। सभी
बातें
नंबरवार ड्रामा
अनुसार होनी हैं।
जितना-जितना स्वयं
आकारी फरिश्ते
स्वरूप में होंगे
उतना आपका फरिश्ता
रूप
सर्विस
करेगा।
आत्मा को सारे
विश्व
का चक्र
लगाने में कितना
समय लगता है? तो
अभी आपके सूक्ष्म
स्वरूप भी
सर्विस
करेंगे।
लेकिन जो इस न्यारी
स्थिति में होगें,
स्वयं फरिश्ते
रूप में
स्थित होगें। शुरू
में सभी साक्षात्कार
हुए हैं। फरिश्ते
रूप में सम्पूर्ण
स्टेज और
पुरुषार्थी
स्टेज
- दोनों अलग-अलग
साक्षात्कार होता
था। जैसे साकार
ब्रह्मा और सम्पूर्ण
ब्रह्मा का अलग-अलग
साक्षात्कार होता
था, वैसे अन्य बच्चों
के साक्षात्कार
भी होंगे। हंगामा
जब होगा तो साकार
शरीर द्वारा तो
कुछ कर नहीं सकेंगे
और प्रभाव भी इस
सर्विस
से पड़ेगा।
जैसे शुरू में
भी साक्षात्कार
से ही प्रभाव हुआ
ना। परोक्ष-अपरोक्ष
अनुभव ने प्रभाव
डाला वैसे अन्त
में भी यही
सर्विस
होनी
है। अपने सम्पूर्ण
स्वरूप का साक्षात्कार
अपने आप को होता
है? अभी शक्तियों
को पुकारना शुरू
हो गया है। अभी
परमात्मा को कम
पुकारते हैं, शक्तियों
की पुकार तेज
रफ़्तार
से चालू
हो गई है। तो ऐसी
प्रैक्टिस बीच-बीच
में करनी है। आदत
पड़ जाने से फिर
बहुत आनन्द फील
होगा। एक सेकेण्ड
में आत्मा शरीर
से न्यारी हो जायेगी,
प्रैक्टिस हो जायेगी।
अभी यही पुरूषार्थ
करना है। अच्छा!
वर्तमान
समय पुरूषार्थ
की तीन स्टेज हैं;
उन तीनों स्टेजेस
से हरेक अपनी-अपनी
यथा शक्ति पास
करता हुआ चल रहा
है। वह तीन स्टेजेस
कौनसी हैं? एक है
वर्णन, दूसरा मनन
और तीसरा मगन।
मैजारिटी वर्णन
में ज्यादा हैं।
मनन और मगन की कमी
होने के कारण आत्माओं
में विल-पावर कम
है। सिर्फ वर्णन
करने से बाह्यमुखता
की शक्ति दिखाई
पड़ती है लेकिन
उससे प्रभाव नहीं
पड़ता है। मनन करते
भी हैं लेकिन अन्तर्मुख
होकर के मनन करना,
उसकी कमी है। प्वाइंटस
का मनन भले करते
हैं लेकिन हर प्वाइंट
द्वारा मनन अथवा
मंथन करने से शक्ति
स्वरूप मक्खन निकलना
चाहिए, जिससे
शक्ति
बढ़ती है। भले प्लैंनिग
करते हैं, उनके
साथ-साथ सर्व शक्तियों
की सजावट जो होनी
चाहिए वह नहीं
है। जैसे कोई
चीज़
कितनी
भी अमूल्य हो लेकिन
उनको अगर उस रूप
से सजाकर न रखा
जाए तो उस
चीज़
के मूल्य
का मालूम नहीं
पड़ सकता। इसी रीति
नॉलेज
का भले
मनन चलता भी है
लेकिन अपने में
एक-एक प्वाइंट
द्वारा जो शक्ति
भरनी है वह कम भरते
हो, इसलिए मेहनत
ज्यादा और रिजल्ट
कम हो जाती है।
मन में, प्लैनिंग
में उमंग- उत्साह
बहुत अच्छा रहता
है लेकिन प्रैक्टिकल
रिजल्ट देखते तो
मन में अविनाशी
उमंग-उत्साह, उल्लास
नहीं रहता। एकरस
जो फोर्स की स्टेज
रहनी
चाहिए वह
नहीं रहती। एक-एक
प्वाइंट को मनन
करने द्वारा अपनी
आत्मा में शक्ति
कैसे भरी जाती
है -- इस अनुभव में
बहुत अनजान हैं।
इसलिए यह अन्तर्मुखता,
अतीन्द्रिय सुख
की प्राप्ति का
अनुभव नहीं करते
हैं। जब तक अतीन्द्रिय
सुख की, सर्व प्राप्तियों
की भासना नहीं
तब तक अल्पकाल
की कोई भी वस्तु
अपने तरफ
ज़रूर आकर्षण
करेगी। तो वर्तमान
समय मनन शक्ति
से आत्मा में सर्व
शक्तियाँ भरने
की आवश्यकता है,
तब मगन अवस्था
रहेगी और विघ्न
टल सकते हैं। विघ्नों
की लहर तब आती है
जब
रूहानियत की
तरफ फोर्स कम हो
जाता है। तो वर्तमान
समय शिवरात्रि
की
सर्विस
के पहले
स्वयं में शक्ति
भरने का फोर्स
चाहिए। भले योग
के प्रोग्रामस
रखते हैं लेकिन
योग द्वारा शक्तियों
का अनुभव करना-कराना
- अब ऐसे क्लासेज
की आवश्यकता है।
प्रैक्टिकल अपने
भले के आधार से
औरों को भले देना
है। सिर्फ बाहर
की
सर्विस
के प्लैन
नहीं सोचने हैं
लेकिन पूरी ही
नजर
चाहिए सभी तरफ।
जो निमित्त बने
हुए हैं उन्हों
को यह ख्यालात
चलना चाहिए कि
हमारी इस तरफ की
फुलवारी किस बात
में कमजोर है।
किसी भी रीति अपने
फुलवारियों की
कमजोरी पर कड़ी
दृष्टि रखनी चाहिए।
समय देकर भी कमजोरियों
को खत्म करना है।
शक्तियों के प्रभाव
की कमी होने के
कारण
चलते-फिरते
सभी बातों में
ढीलापन आ जाता
है। इसलिए विनाश
की तैयारियाँ भी
फोर्स में होते
फिर ढीले हो जाते
हैं। जब स्थापना
में फोर्स नहीं
तो विनाश में फोर्स
कैसे भर सकता है?
जैसे शुरू में
तुमको शक्तिपन
का कितना नशा था!
अपने ऊपर कड़ी नजर
थी! यह विघ्न क्या
है! माया क्या
है! कितना
कड़ा नशा था! अभी
अपने ऊपर कड़ी नजर
नहीं है। अपने
कर्मों की गति
पर अटेन्शन चाहिए।
ड्रामा अनुसार
नंबरवार तो
बनना ही है। कोई
न कोई कारण से
नंबर
नीचे
होना ही है लेकिन
फिर भी फोर्स भरने
का कर्त्तव्य करना
है। जैसे साकार
रूप को देखा, कोई
भी ऐसी लहर का समय
जब आता था तो दिन-रात
सकाश देने की विशेष
सर्विस, विशेष
प्लैन्स चलते थे,
निर्बल आत्माओं
को भले भरने का
विशेष अटेन्शन
रहता था, जिससे
अनेक आत्माओं को
अनुभव भी होता
था। रात-रात को
भी समय निकाल आत्माओं
को सकाश भरने की
सर्विस
चलती
थी। भरना है। तो
अभी विशेष सकाश
देने की
सर्विस
करनी
है। लाइट-हाउस
माइट-हाउस बनकर
यह
सर्विस
खास करनी
है, जो चारों ओर
लाइट माइट का प्रभाव
फैल जाए। अभी यह
आवश्यकता है। जैसे
कोई साहूकार होता
है तो अपने नज़दीक सम्बन्धियों
को मदद देकर ऊंचा
उठा लेता है, ऐसे
वर्तमान समय जो
भी कमजोर आत्मायें
सम्पर्क और सम्बन्ध
में हैं उन्हों
को विशेष सकाश
देनी है। अच्छा!
निरन्तर
देह का भान भूल
जाए -- उसके लिए हरेक
यथा शक्ति
नंबरवार पुरूषार्थ
अनुसार मेहनत कर
रहे हैं। पढ़ाई
का लक्ष्य ही है
देह- अभिमान से
न्यारे हो देही-अभिमानी
बनना। देह-अभिमान
से छूटने के लिए
मुख्य
युक्ति
यह है-सदा अपने
स्वमान - में रहो
तो देह-अभिमान
मिटता जायेगा।
स्वमान में स्व
का भान भी रहता
है अर्थात् आत्मा
का भान। स्वमान
- मैं कौन हूँ! अपने
इस संगमयुग के
और भविष्य के भी
अनेक प्रकार के
स्वमान जो समय
प्रति समय अनुभव
कराये गये हैं,
उनमें से अगर कोई
भी स्वमान में
स्थित रहते रहें
तो देह-अभिमान
मिटता जाए। मैं
ऊंच ते ऊंच ब्राह्मण
हूँ - यह भी स्वमान
है। सारे
विश्व
के अन्दर
ब्रह्माण्ड और
विश्व
का मालिक
बनने वाली मैं
आत्मा हूँ - यह भी
स्वमान है। जैसे
आप लोगों को शुरू-शुरू
में
स्त्रपन के,
देह के भान से परे
होने का लक्ष्य
रहता था; मैं आत्मा
पुरूष हूँ- इस पुरूष
के स्वभाव में
स्थित कराने से
स्त्रपन का
भान
नंबरवार पुरूषार्थ
अनुसार निकलता
गया। ऐसे ही सदैव
अपनी बुद्धि के
अन्दर वर्तमान
वा भविष्य स्वमान
की स्मृति रहे
तो देह-अभिमान
नहीं रहेगा। सिर्फ
शब्द चेन्ज होने
से स्वमान से स्वभाव
भी अच्छा हो जाता
है। स्वभाव का
टक्कर होता ही
तब है
जब एक दो को स्व
का भान नहीं रहता।
तो स्वमान अर्थात्
स्व का मान, उससे
एक तो देह-अभिमान
समाप्त हो जाता
है और स्वभाव में
नहीं आयेंगे। साथ-साथ
जो स्वमान में
स्थित होता है
उनको स्वत: ही मान
भी मिलता है। आजकल
दुनिया में भी
मान से स्वमान
मिलता है ना। कोई
प्रेजीडेन्ट है,
उनका मान बड़ा होने
के कारण स्वमान
भी ऐसा मिलता है
ना। स्वमान से
ही
विश्व
का महाराजन्
बनेंगे और उनको
विश्व
सम्मान
देंगे। तो सिर्फ
अपने स्वमान में
स्थित होने से
सर्व प्राप्ति
हो सकती है। इस
स्वमान में स्थित
वह रह सकता है जिनको,
जो अनेक प्रकार
के स्वमान सुनाये,
उसका अनुभव होगा।
‘‘मैं शिव शक्ति
हूँ’’-यह भी स्वमान
है। एक होता है
सुनना, एक होता
है उस स्वमान-स्वरूप
का अनुभव। तो अनुभव
के आधार पर एक सेकेण्ड
में देह- अभिमान
से स्वमान में
स्थित हो जायेंगे।
जो अनुभवीमूर्त
नहीं हैं, सिर्फ
सुनकर के अभ्यास
करते ही रहते हैं
लेकिन अनुभवी अब
तक नहीं बने हैं,
उन्हों की स्टेज
ऐसे ही होती है।
एक अपने स्वमान
की लिस्ट निकालो
तो लिस्ट बड़ी है!
उन एक-एक बात को
लेकर अनुभव करते
जाओ तो माया की
छोटी-छोटी बातों
में कमजोर नहीं
बनेंगे। माया कमजोर
बनाने के लिए पहले
तो देह- अभिमान
में लाती है। देह-अभिमान
में ही न आयें तो
कमजोरी कहाँ से
आयेगी। तो सभी
को अपने स्वमान
की स्मृति दिलाओ
और उस स्वरूप के
अनुभवी बनाओ। जैसे
समझते हो -- ‘‘मैं मास्टर
सर्वशक्तिवान
हूँ’’; तो संकल्प
करने से स्थिति
बन जाती है ना।
लेकिन बनेगी उनकी
जिनको अनुभव होगा।
अनुभव नहीं तो
स्थित होते-होते
वह रह ही जाते हैं,
स्थिति बन नहीं
सकती और थकावट,
मुश्किल मार्ग
अनुभव करते हैं।
कैसे करें - यह क्वेश्चन
उठता है। लेकिन
जो अनुभवीमूर्त
हैं वह कड़ी परीक्षा
आते समय भी अपने
स्वमान में स्थित
होने से सहज उसको
कट कर सकते हैं।
तो अपने स्वमान
की स्मृति दिलाओ।
अनुभवीमूर्त बनने
की क्लास कराओ।
जो आपके समीप सम्पर्क
में आते हैं उन
आत्माओं को यह
अनुभव कराने का
सहयोग दो। अभी
आत्माओं को यह
सहयोग चाहिए। जैसे
साकार द्वारा अनुभवीमूर्त
बनाने की सेवा
होती रही है, ऐसे
अभी आप लोगों के
समीप जो आत्मायें
हैं उन्हों की
निर्बलता को, कमजोरियों
को अपनी शक्तियों
के सहयोग से उन्हें
भी
अनुभवीमूर्त
बनाओ। चेक करो
कि जिन आत्माओं
के प्रति निमित
बने हुए हैं वह
आत्मायें स्वमान
की स्थिति के अनुभवी
हैं? अगर नहीं तो
उन्हों को बनाना
चाहिए।
यह मेहनत करनी
है। अगर राजधानी
के समीप सम्बन्ध
में आने वाली आत्मायें
ही कमजोर होंगी
तो प्रजा क्या
होगी? ऐसी कमजोर
आत्मायें सम्बन्ध
में नहीं आ सकतीं।
अब अपनी राजधानी
को जल्दी-जल्दी
तैयार करना है।
पिछली प्रजा तो
जल्दी बन जायेगी
लेकिन जो राजाई
के सम्बन्ध में,
सम्पर्क में आने
वाले हैं उन्हों
को तो ऐसा बनाना
है ना। ऐसा ध्यान
हरेक स्थान पर
निमित बनी हुई
श्रेष्ठ आत्माओं
को देना है। मेरे
सम्पर्क में आने
वाली कोई भी आत्मा
इस स्थिति से वंचित
न रह जाए, यह ध्यान
रखना चाहिए। खुद
ही अपने में कोई
शक्ति का अनुभव
अगर नहीं करते
हैं तो औरों को
क्या शक्ति दे
सकेंगे? जो आत्मायें
चाहती हैं, समीप
आती हैं, समय देती
हैं, सहयोगी बनी
हुई हैं - ऐसी आत्माओं
को अब मात-पिता
द्वारा तो पालना
नहीं मिल सकती,
इसलिए निमित बनी
हुई अनुभवी मूर्तियों
द्वारा यह पालना
मिले। अगर यह चेकिंग
रखो तो कितनी आत्मायें
ऐसी शक्तिशाली
निकलेंगी? आधा
हिस्सा निकलेंगी।
जिन्होंने डायरेक्ट
पालना ली है उन्हों
में फिर भी अनुभवों
की रसना भरी हुई
है। औरों की यह
पालना होनी आवश्यक
है। तो हरेक टीचर
को अपने क्लास
का यह ध्यान रखना
चाहिए। अच्छा!