14-06-72
ओम शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
स्वस्थिति
में स्थित होने
क पुरूषार्थ वा
निशानियां
अपने आदि
और अनादि स्व-स्थिति
को जानते हो? सदा
अपनी स्व- स्थिति
में स्थित रहने
का अटेन्शन रहता
है? जो स्व-स्थिति
अर्थात् अपनी अनादि
स्थिति हैं उस
स्व-स्थिति में
स्थित होना मुश्किल
लगता
है? और स्थिति
में स्थित होना
मुश्किल हो भी
सकता है, लेकिन
स्व-स्थिति में
स्थित होना तो
स्वत: ही और सरल
है ना। स्व-स्थिति
में सदा स्थित
रहें इसके लिए
मुख्य
चार बातें
आवश्यक हैं। अगर
वह चारों ही बातें
सदैव कायम हैं
तो स्व-स्थिति
सदा रहती। अगर
चारों में से कोई
की भी कमी है तो
स्व-स्थिति में
भी कम स्थित हो
सकता है। स्व-स्थिति
का जो वर्णन करते
हो उसको सामने
रखते हुए फिर सोचो
कि कौन-सी चार बातें
सदा साथ होनी
चाहिए? स्व-स्थिति
के लक्षण क्या
होते हैं? जो भी
बाप के गुण हैं
उन गुणों का स्वरूप
होना इसको कहते
हैं - स्व-स्थिति
वा अनादि स्थिति।
तो ऐसी स्थिति
सदा रहे इसके लिए
चार बातें कौनसी
आवश्यक हैं। स्मृति
में आता है जिन
चार बातों के होने
से अनादि स्थिति
आटोमेटिकली रहती
है? सुख- शान्ति-आनन्द-प्रेम
की स्थिति स्वत:
ही रहती है। पहले
यह सोचो कि अनादि
स्थिति से मध्य
की स्थिति में
आते ही क्यों हो?
इसका कारण क्या
है? (देह- अभिमान)
देह-अभिमान में
आने से क्या होता
है, देह-अभिमान
में आने के कारण
क्या होते हैं?
पर-स्थिति सहज
और स्व-स्थिति
मुश्किल क्यों
लगती है? देह भी
तो स्व से अलग है
ना। तो देह में
सहज स्थित हो जाते
हो और स्व में स्थित
नहीं होते हो, कारण?
वैसे भी देखो तो
सदा सुख वा शान्तिमय
जीवन तब बन सकती
है जब जीवन में
चार बातें हों।
वह चार बातें हैं
- हैल्थ, वैल्थ, हैपी
और होली। अगर यह
चार बातें सदा
कायम रहें तो दु:ख
और अशान्ति कभी
भी जीवन में अनुभव
न करें। ऐसे स्व-स्थिति
का स्वरूप भी है
- सदा सुख-शान्ति-आनन्द-प्रेम
स्वरूप में स्थित
रहना। तो स्व-स्थिति
से भी विस्मृति
में आते हो इसका
कारण क्या होता
है? वैल्थ की कमी
वा हैल्थ की
कमज़ोरी वा
होली नहीं बनते
हो। इसके साथ-साथ
हैपी अर्थात्
हर्षित
नहीं
रह सकते हो। तो
हैल्थ, वैल्थ कौनसी?
आत्मा सदा निरोगी
रहे, माया की कोई
भी व्याधि आत्मा
पर असर ना करे इसको
कहा जाता है हेल्दी।
और फिर वेल्दी
भी हो अर्थात्
जो
खज़ाना
मिलता
रहता है वा जो सर्व-शक्तियां
बाप द्वारा वर्से
में प्राप्त हुए
हैं उस प्राप्त
हुए ज्ञान खज़ाने को
वा सर्व-शक्तियों
के
खज़ाने को सदा
कायम रखो तो बताओ
स्व-स्थिति से
नीचे आ सकते हो?
इतना ही फिर होली।
संकल्प, स्वप्न
में भी कोई अपवित्रता
ना हो तो स्व-स्थिति
स्वत: ही हो जाएगी।
इन चार बातों की
कमी होने कारण
स्व-स्थिति में
सदा नहीं रह सकते
हो। यह चार बातें
चैक करो - हेल्दी,
वेल्दी कहां तक
बने हैं? हेल्दी,
वेल्दी और होली
- यह तीनों ही बातें
हैं तो हैपी आटोमेटिकली
होंगे। तो इन चार
बातों को सदा ध्यान
में रखो। वैसे
भी रोगी कब भी अपने
को सुखी नहीं समझते।
रोगी होने कारण
दु:ख की लहर ना चाहते
हुए भी उठती रहती।
तो यहां भी सदा
हेल्दी नहीं हैं,
तब दु:ख की वा अशान्ति
की लहर उत्पन्न
होती है। तो यह
चारों ही बातें
सदा कायम रहें
इसका कौन-सा पुरूषार्थ
है जो
यह कब भी गायब
न हों? इसके लिए
सहज पुरूषार्थ
सुनाओ जो सभी कर
सकें।
ज़रा भी मुश्किल
बात होती है तो
कर नहीं पाते हो।
सहज चाहते हो ना।
क्योंकि आत्मा
में आदि देवता
धर्म के संस्कार
होने कारण आधा
कल्प बहुत सहज
सुखों में रहते
हो, कोई मेहनत नहीं
करते हो, तो वह आधे
कल्प के संस्कार
आत्मा में होने
कारण अभी कोई मुश्किल
बात होती है तो
वह कर नहीं पाते
हो। सदा सहज की
इच्छा रहती है।
तो वह सहज पुरूषार्थ
कौन-सा है? याद भी
सहज कैसे हो? याद
सहज और सदा रहे
और हेल्दी, वेल्दी,
हैपी, होली भी कायम
रहें इसका पुरूषार्थ
सुनाओ। चारों ही
बातें साथ-साथ
रहें। जैसे आप
भी निराकार और
साकार दोनों रूप
में हो ना। निराकार
आत्मा और साकार
शरीर दोनों के
सम्बन्ध से हर
कार्य कर सकते
हो। अगर दोनों
का सम्बन्ध ना
हो तो कोई भी कार्य
नहीं कर सकते।
ऐसे ही निराकार
और साकार बाप दोनों
का साथ वा सामने
रखते हुए हर कर्म
वा हर संकल्प करो
तो यह
चारों बातें
आटोमेटिकली आ जाएगी।
सिर्फ निराकार
को वा सिर्फ साकार
को
याद करने से चारों
बातें नहीं आयेगी। लेकिन
निराकार और साकार
दोनों ही
सदा साथ
रहें तो साथ होने
से जो संकल्प करेंगे
वह पहले
ज़रूर उनसे
वेरीफाय करायेंगे,
वेरीफाय कराने
के बाद कोई भी कर्म
करने से निश्चय
बुद्धि होकर करेंगे।
जैसे देखो साकार
में अगर कोई निमित्त
श्रेष्ठ आत्मा
साथ में है तो उनसे
कोई भी बात वेरीफाय
कराये फिर करेंगे,
तो निश्चय-बुद्धि
होकर करेंगे ना।
निर्भयता और निश्चय
दोनों गुणों को
सामने रख करेंगे।
तो जहाँ सदा निश्चय
और निर्भयता है
वहां सदैव श्रेष्ठ
संकल्प की विजय
है। जो भी संकल्प
करते हो, अगर सदा
निराकार और साकार
साथ वा सम्मुख
है, तो वेरीफाय
कराने के बाद निश्चय
और निर्भयता से
वह करेंगे। समय
भी वेस्ट नहीं
करेंगे। यह काम
करें वा ना करें,
सफ़ल
होगा
वा नहीं होगा? यह
व्यर्थ संकल्प
सभी खत्म हो जायेंगे।
वर्तमान समय आत्मा
में जो कमज़ोरी की
व्याधि है वह कौन-सी
है? व्यर्थ संकल्पों
में व्यर्थ समय
गंवाने की, यही
वर्तमान समय आत्मा
की कमज़ोरी है। इस
बीमारी के कारण
सदा हेल्दी नहीं
रहते। कब रहते
हैं, कब कमज़ोर बन जाते
हैं। सदा हेल्दी
रहने का साधन यह
है। समय भी बच जायेगा।
आप प्रैक्टिकल
में ऐसे अनुभव
करेंगे जैसे साकार
में कोई साकार
रूप में
वेरीफाय कराते।
है कॉमन बात, लेकिन
इसी कामन बात को
प्रैक्टिकल में
कम लाते हो। सुना
बहुत समय है, लेकिन
अनुभवी नहीं बने
हो। बापदादा सदा
साथ है यह अनुभव
करो तो हेल्दी
वेल्दी नहीं रहेंगे?
बापदादा निराकार
और साकार दानों
के साथ होने से
हैल्थ और वैल्थ
दोनो आ जाती हैं
और हैपी तो आटोमेटिकली
होंगे। तो सहज
पुरूषार्थ कौन-सा
हुआ? निराकार और
साकार दोनों को
सदा साथ में रखो।
सदा साथ न रखने
कारण यह रिजल्ट
है। क्या साथ रखना
मुश्किल लगता है?
जब जान लिया और
पहचान लिया, मान
लिया कि सभी सम्बन्ध
एक साथ हैं, दूसरा
ना कोई तो उसमें
चलने में क्या
मुश्किल है? साथ
क्यों छोड़ते हो?
सीता का साथ क्यों
छूटा? कारण
-- लकीर
को उल्लंघन किया।
यह चन्द्रवंशी
सीता का काम है,
लक्ष्मी का नहीं।
तो मर्यादा के
लकीर के बाहर बुद्धि
जरा भी ना जाए।
नहीं तो चन्द्रवंशी
बनेंगे। बुद्धि
रूपी पांव मर्यादा
की लकीर से संकल्प
वा स्वप्न में
भी बाहर निकलता
है तो अपने को चन्द्रवंशी
सीता समझना चाहिए,
सूर्यवंशी लक्ष्मी
नहीं। सूर्यवंशी
अर्थात् शूरवीर।
जो शूरवीर होता
है वह कब कोई के
वश नहीं होता
है। तो
सदा साथ रखने लिए
अपने को मर्यादा
की लकीर के अन्दर
रखो, लकीर के बाहर
ना निकलो। बाहर
निकलते हो तो फकीर
बन जाते हो। फिर
मांगते रहते हो
- यह मदद मिले, यह
सैलवेशन मिले तो
यह हो सकता है।
मांगता हुआ ना!
फकीर बनने का अर्थ
ही है -- हैल्थ, वैल्थ
गवाँ देते हो, इसलिए
फकीर बन जाते हो।
तो ना लकीर को पार
करो ना फकीर बनो।
लकीर के अन्दर
रहने से मायाजीत
बन सकते हो। लकीर
को पार करने से
माया से हार खा
लेते हो। इसलिए
सदा हेल्दी, वेल्दी,
हैपी और होली बनो।
चेक करो कि - इन चारों
में से आज किस बात
की कमी रही, आज हैल्थ
ठीक है, वैल्थ है,
हैपी है, होली है?
न है तो क्यों? उस
रोग को जानकर फौरन
ही उसकी दवाई करो
और तो सभी प्रकार
की दवाई मिल चुकी
है। सभी प्राप्तियां
हैं। तो सभी प्राप्ति
होते भी समय पर
क्यों नहीं कर
पाते हो? समय के
बाद स्मृति में
क्यों आते हो? यह
कमज़ोरी है जो समय
पर काम नहीं करते।
समय के बाद भी करते
हो तो समय तो बीत
जाता है ना। समय
पर सभी स्मृति
रहे, उसके लिए अपनी
बुद्धि इतनी विशाल
वा नॉलेजफुल नहीं
बनी है। तो फिर
कोई सहारा चाहता
है, वह सहारा सदा
साथ रखो तो कब हार
नहीं होगी। तो
कब भी अपने को रोगी
ना बनाना
ज़रा भी
किसी प्रकार का
रोग प्रवेश हो
गया तो एक व्याधि
फिर अनेक व्याधियों
को लाती है। एक
को ही खत्म कर दिया
तो अनेक आयेंगी
ही नहीं। एक में
अलबेले रहते हो,
हल्की बात समझते
हो, लेकिन वर्तमान
समय के प्रमाण
हल्की व्याधि भी
बड़ी व्याधि है।
इसलिए हल्के को
ही बड़ा समझ वहां
ही खत्म कर दो तो
आत्मा कब निर्बल
नहीं होगी, हेल्दी
रहेगी। साकार में
भी सदा साथ रहने
के अनभवी हो। अकेले
रहना पसन्द नहीं
करते हो। जब संस्कार
ही साथ रहने के
हैं तो ऐसे साथ
रखने में कमी क्यों
करते हो,
निवृत्ति
मार्ग
वाले क्यों बनते
हो? जैसे वह
निवृत्ति
मार्ग
वाले प्राप्ति
कुछ भी नहीं करते,
ढूंढते ही रहते
हैं। ऐसी हालत
हो जाती है, वास्तविक
प्राप्ति को प्राप्त
नहीं कर पाते हो।
तो सदा साथ रखो,
सम्बन्ध में रहो।
परिवार की पालना
में रहो तो जो पालना
के अन्दर सदैव
रहते हैं वह सदा
निश्चित और
हर्षित
रहते
हैं। पालना के
बाहर क्यों निकलते
हो?
निवृत्ति
में कब
ना जाओ। तो साथ
का अनुभव करने
से स्वत: ही सर्व
प्राप्ति हो जायेंगी।
सन्यासियों
को इतना ठोकते
हो और स्वयं सन्यासी
बन जाते हो? सन्यासियों
को कहते हो ना यह
भिखारी हैं। इन
मांगने वालों से
हम अच्छे हैं।
शुरू का गीत है
ना --’मेहतर उनसे
बेहतर है...’ तो जिस
समय आप लोग भी साथ
छोड़ देते हो तो
बापदादा वा परिवार
को छोड़ आप भी कांटों
के जंगल में चले
जाते हो। जैसे
वह जंगलों में
ढूंढते रहते हैं,
वैसे ही माया के
जंगलों में स्वयं
ही साथ छोड़ फिर
परेशान हो ढूंढते
हो कि कहीं सहारा
मिल जाए।
निवृत्ति
मार्ग
वाले अकेले होने
के कारण कब भी कर्म
की
सफ़लता
नहीं
पा सकते हैं। जो
भी कर्म करते, उनकी
सफ़लता
मिलती
है? तो जैसे उन्हें
कोई भी कर्म की
सफ़लता
नहीं
मिलती इसी प्रकार
अगर आप भी साथ छोड़
अकेले
निवृत्ति
मार्ग
वाले बन जाते हो
तो कर्म की
सफ़लता
नहीं
होती है। फिर कहते
हो
सफ़लता
कैसे
हो? अकेले में उदास
होते हो तो माया
के दास बन जाते
हो। न अकेले बनो,
न उदास बनो, न माया
के दास बनो। अच्छा।