16-07-72
ओम शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
स्वच्छ
और आत्मिक बल वाली
आत्मा ही
आकर्षण
मूर्त्त है
अपने को
इस श्रेष्ठ ड्रामा
के अन्दर हीरो
एक्टर और
मुख्य
एक्टर
समझते हो?
मुख्य
एक्टर्स
के तरफ सभी का अटेन्शन
होता है। तो हर
सेकेण्ड की एक्ट
अपने को
मुख्य
एक्टर
समझते हुये बजाते
हो? जो
नामीग्रामी
एक्टर्स होते हैं
उन्हों में
मुख्य 3 बातें
होती हैं। वह कौनसी
हैं? एक तो वह एक्टिव
होगा, दूसरा एक्युरेट
होगा और अट्रेक्टिव
होगा। यह तीनों
बातें नामी-ग्रामी
एक्टर्स में अवश्य
होती हैं। तो ऐसे
अपने को नामीग्रामी
वा
मुख्य
एक्टर
समझते हो? अट्रेक्ट
किस बात पर करेंगे?
हर कर्म में, हर
चलन में
रूहानियत
की अट्रेक्शन हो।
जैसे कोई शरीर
में सुन्दर होता
है तो वह भी अट्रैक्शन
करते हैं ना अपने
तरफ। ऐसे ही जो
आत्मा स्वच्छ है,
आत्मिक-बल वाली
है, वह भी अपने तरफ
आकर्षित
करते
हैं। जैसे आत्मा-ज्ञानी
महात्माएं आदि
भी द्वापर आदि
में अपने सतोप्रधान
स्थिति वाले थे
तो उन्हों में
भी
रूहानी आकर्षण
तो था ना, जो अपने
तरफ आकर्षित करके
औरों को भी इस दुनिया
से अल्पकाल के
लिये वैराग्य तो
दिला देते थे ना।
जब उलटे ज्ञान
वालों में भी इतनी
अट्रैक्शन थी,
तो जो यथार्थ और
श्रेष्ठ ज्ञान-स्वरूप
हैं उन्हों में
भी रूहानी आकर्षण
वा अट्रैक्शन रहेगी।
शारीरिक ब्यूटी
नजदीक वा सामने
आने से आकर्षण
करेगी। रूहानी
आकर्षण दूर बैठे
भी किसी आत्मा
को अपने तरफ
आकर्षित
करती।
इतनी अट्रैक्शन
अर्थात् रूहानियत
अपने आप में अनुभव
करते हो? ऐसे ही
फिर एक्युरेट भी
हो। एक्युरेट किसमें?
जो मन्सा अर्थात्
संकल्प के लिये
भी श्रीमत मिली
हुई है - वाणी के
लिये भी जो श्रीमत
मिली हुई है और
कर्म के लिये भी
जो श्रीमत मिली
हुई है इन सभी बातों
में एक्युरेट।
मन्सा भी अनएक्युरेट
न हो। जो नियम हैं,
मर्यादा हैं, जो
डायरेक्शन हैं
उन सभी में एक्युरेट
और एक्टिव। जो
एक्टिव होता है
वह जिस समय जैसा
अपने को बनाने
चाहे, चलाने चाहे
वह चला सकते हैं
वा ऐसा ही रूप धारण
कर सकते हैं। तो
जो
मुख्य
पार्टधारी
है उन्हों में
यह तीनों ही विशेषताएं
भरी
हुई रहती हैं।
इसमें ही देखना
है कि इन में से
कौनसी विशेषता
किस परसेन्टेज
में कम है? स्टेज
के साथ-साथ परसेन्टेज
को भी देखना है।
रूहानियत है,
आकर्षित
कर सकते
हैं, लेकिन जितनी
परसेन्टेज होनी
चाहिए वह है? अगर
परसेन्टेज की कमी
है तो इसको सम्पूर्ण
तो नहीं कहेंगे
न्। पास तो हो गये,
फिर भी मार्क्स
के आधार पर
नंबर
तो होते
हैं ना। थर्ड डिवीजन
वाले को भी पास
तो कहते हैं लेकिन
कहाँ थर्ड वाला,
कहाँ फर्स्ट क्लास
- फर्क तो है ना।
तो अब चेक करना
परसेन्टेज को।
स्टेज तो अब नेचरल
बात हो गई। क्योंकि
प्रैक्टिकल एक्ट
में स्टेज पर हो
ना। अब सिर्फ परसेन्टेज
के आधार पर
नंबर
होने
हैं। आज बहुत बड़ा
संगठन हो गया है।
जैसे बाप को भी
समान बच्चे प्रिय
लगते हैं, आप लोग
आपस में भी एक समान
मिलते हो तो यह
सितारों का मेला
भी बहुत अच्छा
लगता है ना। संगमयुगी
मेला तो है ही।
लेकिन उस मेले
में भी यह मेला
है। मेले के अन्दर
जो विशेष मेला
लगता है वह फिर
ज्यादा प्रिय लगता
है। बड़े बड़े मेलों
के अन्दर भी फिर
एक विशेष स्थान
बनाते हैं जहाँ
सभी का मिलन होता
है। संगमयुग बेहद
का मेला तो है ही
लेकिन उसके अन्दर
भी यह स्थूल विशेष
स्थान है, जहाँ
समान आत्माएं आपस
में मिलती हैं।
हरेक को अपने समान
वा समीप आत्माओं
से मिलना- जुलना
अच्छा लगता है।
विशेष आत्माओं
से मेला बनाने
लिये स्वयं को
भी विशेष बनना
पड़े। कोई विशेष
हो, कोई साधारण
हो, वह कोई मेला
नहीं कहा जाता।
बाप के समान दिव्य
धारणाओं की विशेषता
धारण करनी है।
बाप से जो पालना
ली है इसका सबूत
देना है। बाप ने
पालना किस लिये
की? विशेषताएं
भरने लिये। लक्ष्य
हो और लक्षण न आवे;
तो इसको क्या कहा
जाये? ज्यादा समझदार।
एक होते हैं समझदार,
दूसरे होते हैं
बेहद के समझदार।
बेहद में कोई लिमिट
नहीं होती है।
अच्छा!