02-08-72
ओम शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
हर कर्म
विधिपूर्वक करने
से सिद्धि की प्राप्ति
अपने को
विधि द्वारा सिद्धि
प्राप्त समझते
हो? क्योंकि जो
भी पुरूषार्थ करते
हैं, पुरूषार्थ
का लक्ष्य ही है
सिद्धि को पाना।
जैसे दुनिया वालों
के पास आजकल ऋद्धि-सिद्धि
बहुत है। उस तरफ
है ऋद्धि-सिद्धि
और
यहां है विधि
से सिद्धि। यथार्थ
है विधि और सिद्धि,
इनको ही दूसरे
रूप में लेने कारण
ऋद्धि-सिद्धि में
चले गये हैं। तो
अपने को सिद्धि-स्वरूप
समझते हो? जो भी
संकल्प करते हो
अगर यथार्थ विधिपूर्वक
है तो उनकी रिजल्ट
क्या निकलेगी?
सिद्धि। तो हर
संकल्प वा कर्म
अगर विधिपूर्वक
है तो सिद्धि
ज़रूर होती
है। अगर सिद्धि
नहीं है तो विधिपूर्वक
भी नहीं है। इसलिये
भक्ति में भी जो
कार्य करते हैं
वा कराते हैं, वैल्यू
उसकी विधि पर होती
है। विधिपूर्वक
होने कारण उस सिद्धि
का अनुभव करते
हैं। सभी शुरू
तो यहां हुआ है
ना। इसलिये पूछ
रहे हैं सिद्धिस्वरूप
अपने को समझते
हो वा अभी बनना
है? समय के प्रमाण
दोनों ही फील्ड
में रिजल्ट अब
तक 95%
ज़रूर होनी
चाहिए।
क्योंकि जैसे समय
की रफ्तार को देख
रहे हो; और चैलेंज
भी करते हो तो जो
चैलेंज की है वह
सम्पन्न तब होगी
जब आप लोगों की
स्थिति सम्पन्न
होगी। यह जो चैलेंज
करते हो वह परिवर्तन
किसके आधार पर
होगा? उसका फाउन्डेशन
कौन है? आप लोग ही
फाउन्डेशन हो ना।
अगर फाउन्डेशन
तैयार हो जाये
तब फिर उसके बाद
नंबरवार राजधानी
भी तैयार हो। तो
जिन्हों को राज्य
करने का अधिकारी
बनना है वह अपना
अधिकार नहीं लेंगे
तो दूसरों को फिर
नंबरवार अधिकार
कैसे प्राप्त होगा?
और 4 वर्ष की जो चैलेंज
देते हो उसके हिसाब
से जो
विश्व-परिवर्तन
का कार्य होना
है, वह, जब तक आप लोगों
की स्थिति विधि
द्वारा सिद्धि
को प्राप्त न हुई
होगी, तो इस
विश्व-कल्याण
के कर्त्तव्य में
भी कैसे सिद्ध
होंगे? पहले स्वयं
की सिद्धि होगी।
इतना बड़ा कर्त्तव्य
इतने थोड़े समय
में सम्पन्न करना
है तो कितनी तेज
स्पीड होनी चाहिए?
जबकि 35 वर्ष की स्थापना
के कार्य में 50% तक
पहुँचे
हैं तो
अब वर्ष में 100% तक
लाना है, तो उसके
लिये क्या करना
पड़ेगा? इसके लिये
कोई प्लैन बनाते
हो? स्पीड को कैसे
पूरा करेंगे? सिद्धि-स्वरूप
बने अर्थात् संकल्प
किया और सिद्धि
प्राप्त हो। यह
है 100% सिद्धिस्वरूप
की निशानी। कर्म
किया और सिद्धि
प्राप्त। जब साधारण
नॉलेज के आधार
से
ऋद्धि-सिध्दि
को प्राप्त कर
सकते हैं, तो यह
श्रेष्ठ
नॉलेज
के आधार
पर विधि से सिद्धि
को नहीं प्राप्त
कर सकते? यह चेकिंग
चाहिए -- कौनसी विधि
में कमी रह जाती
है जो फिर सिद्धि
भी सम्पूर्ण नहीं
होती? विधि को चेक
करने से सिद्धि
आटोमेटिकली ठीक
हो जावेगी। इसमें
भी सिद्धि ना प्राप्त
होने का
मुख्य
कारण
यह है जो एक ही समय
तीनों रूप से
सर्विस
नहीं
करते। तीनों
रूपों
और तीनों रीति
से एक समय करना
है। नॉलेजफुल,
पावरफुल और लवफुल।
लव और लॉ - दोनों
साथ-साथ आ जाते
हैं। इन तीनों
रूप से तो
सर्विस
करनी
ही है लेकिन तीनों
रीति से भी करनी
है। अर्थात् मन्सा,
वाचा, कर्मणा - तीनों
रीति से और एक ही
समय तीनों रूप
से करनी है। जब
वाणी द्वारा
सर्विस
करते
हो तो मन्सा भी
पावरफुल हो। पावरफुल
स्टेज से उनकी
मन्सा को भी चेंज
कर देंगे और वाणी
द्वारा उनको नॉलेजफुल
बना देंगे और फिर
कर्मणा
सर्विस
अर्थात्
जो उनके सम्पर्क
में आते हैं, वह
सम्पर्क ऐसा फुल
हो जो आटोमेटिकली
वह महसूस करे कि
यह कोई अपने गॉडली
फैमिली में पहुंच
गया हूं। वह चलन
ही ऐसी हो जिससे
वह फील करें कि
यह मेरी असली फैमिली
है। अगर इन तीनों
रीति से उनकी मन्सा
को भी कंट्रोल
कर लो और वाणी से
नॉलेज दे लाइट-माइट
का वरदान दो और
कर्मणा अर्थात्
सम्पर्क द्वारा,
अपनी स्थूल एक्टिविटी
द्वारा गॉडली फैमिली
का अनुभव कराओ
- तो इस विधिपूर्वक
सर्विस
करो तो
सिद्धि नहीं होगी?
एक ही समय तीनों
रीति और तीन रूप
से
सर्विस
नहीं
करते हो। जब वाचा
में आते हो तो मन्सा
जो पावरफुल होनी
चाहिए वह कम हो
जाती है। जब रमणीक
एक्टिविटी से किसको
सम्पर्क में लाते
तो भी मन्सा जो
पावरफुल होनी चाहिए
वह नहीं रहती है।
तो एक ही समय तीनों
अगर
इकट्ठी
हों तो
सिद्धि
ज़रूर मिलेगी।
इस रीति से
सर्विस
करने
का अभ्यास और अटेन्शन
होना चाहिए। सम्बन्ध
में नहीं आते, डीप
सम्पर्क में नहीं,
ऊपर-ऊपर के सम्पर्क
में आते हैं। वह
ऊपर का
समय
अल्पकाल
का रहता है। भले
लव में लाते भी
हो लेकिन लवफुल
के साथ पावरफुल
हो, उन आत्माओं
में भी पावर भरे
जिससे वह समस्याओं,
वायुमण्डल, वायब्रेशन
का सामना कर सदाकाल
सम्बन्ध में रहें,
वह नहीं होता।
या तो नॉलेज पर
अट्रैक्टिव होते
हैं वा लव पर होते
हैं। ज्यादा लव
पर होते हैं, सेकण्ड
नंबर
नॉलेज।
लेकिन पावरफुल
ऐसा हो जो कोई भी
बात सामने आवे
तो हिले नहीं, यह
कमी अजुन है। जो
सर्विसएबल निमित्त
बनते हैं उन्हों
में भी नॉलेज ज्यादा
है, लव भी है लेकिन
पावर कम है। पावरफुल
स्टेज की निशानी
क्या होगी? एक सेकेण्ड
में कोई भी वायुमण्डल
वा वातावरण को,
माया के कोई भी
समस्या को खत्म
कर देंगे। कब हार
नहीं खावेंगे।
जो भी आत्मायें
समस्या का रूप
बन कर आती हैं वह
उनके ऊपर बलिहार
जावेंगे, जिसको
दूसरे शब्दों में
प्रकृति दासी कहें।
जब 5 तत्व दासी बन
सकते हैं तो मनुष्य
आत्मायें बलिहार
नहीं जावेंगी?
तो पावरफुल स्टेज
का प्रैक्टिकल
रूप यह है। इसलिये
कहा कि एक ही समय
तीनों रूपों से
सर्विस
करने
की जब रूपरेखा
बन जावेगी तब हरेक
कर्त्तव्य में
सिद्धि दिखाई देगी।
विधि का कारण सिद्धि
हुआ ना। विधि में
कमी होने कारण
सिद्धि में कमी
है। अब सिद्धि-स्वरूप
बनने लिये इस विधि
को पहले ठीक करो।
भक्ति-मार्ग में
करते हैं साधना,
यहां है साधन।
साधन कौनसा? बापदादा
की हरेक विशेषता
को अपने में धारण
करते-करते विशेष
आत्मा बन जावेंगे।
जैसे इम्तिहान
के दिन जब नजदीक
होते हैं तो जो
कुछ स्टडी की हुई
होती है थ्योरी
वा प्रैक्टिकल,
दोनों को रिवाइज
कर और चेक करते
हैं कि कौनसी सब्जेक्ट
में क्या-क्या
कमी रही हुई है?
इसी प्रकार अब
जबकि समय नजदीक
आ रहा है, तो हर सब्जेक्ट
में अपने आपको
देखो कि कौनसी
कमी और कितनी परसेन्ट
तक कमी रही हुई
है? थ्योरी में
भी और प्रैक्टिकल
में - दोनों में
चेक करना है। हरेक
सब्जेक्ट की कमी
को देखते हुये
अपने आपको कम्पलीट
करते जाओ, लेकिन
कम्पलीट तब होंगे
जब पहले रिवाइज
करने से अपनी कमी
का मालूम पड़ेगा।
सब्जेक्ट्स को
तो जानते हो। सब्जेक्ट
को बुद्धि में
धारण किया है वा
नहीं, उसकी परख
क्या है? जैसे-जैसे
सिद्धि की परसेन्टेज
बढ़ती जावेगी तो
टाइम भी वेस्ट
नहीं जावेगा। थोड़े
टाइम में
सफ़लता
जास्ती
मिलेगी। इसको
कहा जाता
है सिद्धि। अगर
समय ज्यादा, मेहनत
भी ज्यादा करते
हो फिर
सफ़लता
मिलती
है तो इसको भी परसेन्ट
कम कहेंगे। सभी
रीति से कम लगना
चाहिए।
तन भी कम, मन के संकल्प
भी कम लगें। नहीं
तो संकल्प करते
हो, प्लैन बनाते-बनाते
मास डेढ़ लग जाता
है। तो समय और संकल्प
वा अपनी जो भी सर्व
शक्तियां हैं,
उन सर्व शक्तियों
के
खज़ाने को ज्यादा
काम में नहीं लगाना
है। कम खर्च बाला
नशीन। संकल्प वही
उत्पन्न होगा जिससे
सिद्धि प्राप्त
हो ही जावेगी।
समय भी वही निश्चित
होगा जिसमें सफलता
हुई पड़ी है। इसको
ही कहते हैं सिद्धि-स्वरूप।
तो सर्व सब्जेक्ट्स
में हम कहां तक
पास हैं, इसकी परख
क्या है? जो जितना
जिस सब्जेक्ट में
पास होगा, उतना
ही उस सब्जेक्ट
के आधार पर ऑब्जेक्ट
और रेस्पेक्ट मिलेगा।
एक तो प्राप्ति
का अनुभव होगा।
जैसे ज्ञान के
सब्जेक्ट हैं तो
उससे जो आब्जेक्ट
प्राप्त होती है
लाइट और माइट, वह
प्राप्ति का अनुभव
करेंगे। उस नॉलेज
के सब्जेक्ट के
आधार पर रेस्पेक्ट
भी इतना मिलेगा
चाहे दैवी परिवार
से, चाहे अन्य आत्माओं
से। जैसे देखो,
आजकल के महात्माएं
हैं, उन्हों को
इतना रेस्पेक्ट
क्यों मिलता है?
क्योंकि जो साधना
की है, जो भी सब्जेक्ट
अध्ययन करते हैं
उनकी ऑब्जेक्ट
‘रेस्पेक्ट’ उन्हों
को मिलती है, प्रकृति
दासी होती है।
तो यह एक ज्ञान
की बात सुनाई।
वैसे योग की भी
सब्जेक्ट है। उनसे
क्या ऑब्जेक्ट
होनी चाहिए? योग
अर्थात् याद की
शक्ति द्वारा ऑब्जेक्ट
प्राप्त होनी चाहिए-
वह जो भी संकल्प
करेंगे वह समर्थ
होगा और जो भी कोई
समस्या आने वाली
होगी, उनका पहले
से ही योग की शक्ति
से अनुभव होगा
कि यह होने वाला
है, तो पहले से ही
मालूम होने कारण
कभी भी हार नहीं
खावेंगे। ऐसे ही
योग की शक्ति द्वारा
अपने पिछले संस्कारों
का बीज खत्म होता
है। कोई भी संस्कार
अपने पुरूषार्थ
में विघ्न नहीं
बनेगा, जिसको नेचर
कहते हो वह भी विघ्न
रूप नहीं बनेंगे
पुरूषार्थ में।
तो जिस सब्जेक्ट
की जो ऑब्जेक्ट
है, वह अनुभव होनी
चाहिए। आब्जेक्ट
है तो इसका परिणाम
रेस्पेक्ट
ज़रूर मिलेगी।
आप मुख से जो भी
शब्द रिपीट करेंगे
वा जो भी प्लैन
बनावेंगे वह समर्थ
होने कारण सभी
रेस्पेक्ट देंगे
अर्थात् जो भी
एक-दो को राय देते
हैं उस राय को सभी
रेस्पेक्ट देंगे
क्योंकि समर्थ
है। इस प्रकार
हर सब्जेक्ट का
देखो। दिव्य
गुणों
की वा
सर्विस
की सब्जेक्ट
है तो उसकी प्राप्ति
यह है जो नजदीक
सम्पर्क में और
सम्बन्ध में आना
चाहिए। नजदीक सम्पर्क-सम्बन्ध
में आने से आटोमेटिकली
रेस्पेक्ट
ज़रूर मिलेगा।
ऐसे हर सब्जेक्ट
की ऑब्जेक्ट को
चेक करो और आब्जेक्ट
को चेक करने का
साधन है रेस्पेक्ट।
अगर मैं नॉलेजफुल
हूँ तो जि्ासको
भी नॉलेज देती
हूँ वह उस नॉलेज
को इतना रेस्पेक्ट
देते हैं? नॉलेज
को रेस्पेक्ट देना
अर्थात् नॉलेजफुल
को रेस्पेक्ट देना
है। अगर नॉलेज
की सब्जेक्ट में
आबजेक्ट है तो
और भी किसके संकल्प
को परिवर्तन में
ला समर्थ बना सकते
हैं, तो
ज़रूर रेस्पेक्ट
देंगे। तो इस रीति
हर सब्जेक्ट में
चेकिंग करनी है।
हर संकल्प में
ऑब्जेक्ट और रेस्पेक्ट
दोनों की प्राप्ति
का अनुभव करते
हैं तो परफेक्ट
कहेंगे। परफेक्ट
अर्थात् कोई भी
इफेक्ट से दूर
परफेक्ट। इफेक्ट
से परे है तो परफेक्ट
है। चाहे शरीर
का, चाहे संकल्पों
का, चाहे कोई भी
सम्पर्क में आने
से किसके भी वायब्रेशन
वा वायुमण्डल
- सभी प्रकार के
इफेक्ट से परे
हो जावेंगे। तो
समझो सब्जेक्ट
में पास अर्थात्
परफेक्ट हैं। ऐसे
बन रहे हो ना। लक्ष्य
तो यही है ना। अब
अपनी चेकिंग ज्यादा
होनी
चाहिए। जैसे
दूसरों को कहते
हो कि समय के साथ
स्वयं को भी परिवर्तन
में लाओ, वैसे ही
सदैव अपने को भी
यह स्मृति में
रहे कि समय के साथ-साथ
स्वयं को भी परिवर्तन
लाना है। अपने
को परिवर्तन में
लाते-लाते सृष्टि
परिवर्तन हो जावेगी।
अपने परिवर्तन
के आधार से सृष्टि
में परिवर्तन लाने
का कार्य कर सकेंगे।
यही श्रेष्ठता
है जो दूसरे लोगों
में नहीं है। वह
सिर्फ दूसरों को
परिवर्तन करने
के यत्न में हैं।
यहां स्वयं के
आधार से सृष्टि
को परिवर्तन करते
हो। तो जो आधार
है उसके लिये अपने
ऊपर इतना अटेन्शन
देना है -- सदैव यह
स्मृति रहे कि
हमारे हर संकल्प
के पीछे
विश्व-कल्याण
का संबंध है। जो
आधारमूर्त हैं
उनके संकल्प में
समर्थी
नहीं
तो समय के परिवर्तन
में भी कमजोरी
पड़ जाती। इस कारण
जितना-जितना समय
समर्थ बनेंगे उतना
ही सृष्टि के परिवर्तन
का समय समीप ला
सकेंगे। ड्रामा
अनुसार भले निश्चित
है लेकिन वह भी
किस आधार से बना
है? आधार तो होगा
ना। तो आधारमूर्त
आप हो। अभी तो आप
सभी की नजरों में
हो। चैलेंज की
है ना 4 वर्ष की! जब
यह बातें सुनते
हो तो थोड़ा-बहुत
संकल्प चलता है
कि - ‘‘अगर सचमुच नहीं
हुआ तो,
यह भी हो सकता है
कि 4 वर्ष में ना
हो-यह संकल्प रूप
में नहीं
चलता
है? सामना कर लेंगे,
वह दूसरी बात है।
इसका मतलब यह संकल्प
में कुछ है तब तो
आता है ना। बिल्कुल
पक्का है कि 4 वर्ष
में होगा? अच्छा,
समझो आप लोगों
से कोई पूछते हैं
कि विनाश न हो तो
क्या होगा? फिर
आप क्या कहेंगे?
जिस समय समझाते
हो तो यह स्पष्ट
समझाना चाहिए
- ऐसे नहीं 4 वर्ष
में कम्पलीट विनाश
हो जावेगा। नहीं,
4 वर्ष में ऐसे नज़ारे हो
जावेंगे जिससे
लोग समझेंगे कि
बरोबर यह विनाश
हो रहा है, विनाश
शुरू हो गया। एक
बात सहज लग गई तो
दूसरी बातें भी
सहज लगेंगी ही।
विनाश में भी समय
तो लगेगा। स्वयं
सम्पूर्ण हो जावेंगे
तो कार्य भी सम्पूर्ण
होगा कि सिर्फ
स्वयं सम्पूर्ण
होंगे? एडवांस
पार्टी
का कार्य
चल रहा है। आप लोगों
के लिये सारी फील्ड
तैयार करेंगे।
उनके परिवार में
जाओ, ना जाओ, लेकिन
जो स्थापना का
कार्य होना है
उसके लिये वह निमित्त
बनेंगे। कोई पावरफुल
स्टेज लेकर निमित्त
बनेंगे। ऐसी पावर्स
लेंगे जिससे स्थापना
के कार्य में मददगार
बनेंगे। आजकल आप
देखेंगे दिन-प्रतिदिन
न्यू-ब्लड का रिगार्ड
ज्यादा है। जितना
आगे बढ़ेंगे उतना
छोटों की बुद्धि
जो काम करेगी वह
बूढ़ों की नहीं,
यह चेंज
होगी। बड़े भी बच्चों
की राय को रिगार्ड
देंगे। अब भी जो
बड़े हैं वह समझते
हैं - ‘‘हम तो पुराने
जमाने के हैं, यह
हैं आजकल के। उन्हों
को रिगार्ड ना
देंगे, बड़ा समझ
न चलायेंगे तो
काम न चलेगा।’’ पहले
बच्चों को रोब
से चलाते थे, अभी
ऐसे नहीं। बच्चे
को भी मालिक समझ
चलाते हैं। तो
यह भी
ड्रामा है। छोटे
ही कमाल कर दिखायेंगे।
एडवांस
पार्टी
का तो
अपना कार्य चल
रहा है। लेकिन
वह भी आपकी स्थिति
एडवांस में जाने
लिये रूके हुए
हैं। उनका कार्य
ही आपके कनेक्शन
से चलना है। सारे
कार्य का आधार
विशेष आत्माओं
के ऊपर है। चलते-चलते
ठंडाई हो जाती
है। आग लगती है,
फिर शीतल हो जाते
हैं। लेकिन शीतल
तो नहीं होनी चाहिए
ना? बाहर का जो रूप
होता है, मनुष्य
तो वह देखते हैं।
समझते हैं - ‘‘यह तो
चलता आता है, बड़ी
बात क्या है? परम्परा
का खेल चलता आ रहा
है।’’ लेकिन
यह चलते-चलते
शीतलता क्यों आती
है? इसका कारण क्या
है? परसेन्टेज
बहुत कम है। लेक्चर्स
तो करते हैं लेकिन
लेक्चर के साथ-साथ
फीचर्स भी
अट्रैक्ट
करें तक लेक्चर
का इफेक्ट हो।
तो अपने को हर सब्जेक्ट
में चेक करो। आजकल
लेक्चर में आपका
कम्पीटीशन करें
तो इसमें कई और
भी जीत लेंगे।
लेकिन जो प्रैक्टिकल
में है उसमें सभी
आपसे हार लेंगे।
मुख्य
विशेषता
प्रैक्टिकल लाइफ
की है। प्रैक्टिकल
कोई भी बात आप बताओ
तो एकदम चुप हो
जावेंगे। तो लेक्चर्स
से फिर प्रैक्टिकल
का भाव प्रकट हो
जावेगा। तब वह
लेक्चर देने से
न्यारा दिखाई दे।
जो शब्द बोलते
हो वह नैनों से
दिखाई दें।
यह जो
बोलते हैं वह प्रैक्टिकल
है, यह अनुभवीमूर्त
हैं। तब उसका प्रभाव
पड़ सकता है। बाकी
सुन-सुन कर तो सभी
थक गये हैं। बहुत
सुना है। अनेक
सुनाने वाले होने
कारण सुनने से
सभी थके हुये हैं।
कहते हैं -- सुना
तो बहुत है, अब अनुभव
करना चाहते हैं,
कोई ‘प्राप्ति’
कराओ। तो लेक्चर
में ऐसी पावर होनी
चाहिए
जो वह एक-एक शब्द
अनुभव कराने वाला
हो। जैसे आप समझाते
हो न कि अपने को
आत्मा समझो, ना
कि शरीर। तो ये
शब्द बोलने में
भी इतनी पावर होनी
चाहिए जो सुनने
वालों को आपके
शब्दों की पावर
से अनुभव हो। एक
सेकेण्ड के लिये
भी अगर उनको अनुभव
हो जाता है; तो अनुभव
को वह कब छोड़ नहीं
सकते,
आकर्षित
हुआ आपके
पास पहुँचेगा।
जैसे बीच-बीच में
आप भाषण करते-करते
उनको साइलेंस में
ले जाने का अनुभव
कराते हो, तो इस
प्रैक्टिस को बढ़ाते
जाओ। उन्हों को
अनुभव में ले जाते
जाओ। इस पुरानी
दुनिया से बेहद
का वैराग दिलाना
चाहते हो तो भाषण
में जो प्वाईंटस
देते हो वह देते
हुये वैराग्य-वृति
के अनुभव में ले
आओ। वह फील करें
कि सचमुच
यह सृष्टि
जाने वाली है, इससे
तो दिल लगाना व्यर्थ
है। तो
ज़रूर प्रैक्टिकल
करेंगे। उन पंडितों
आदि के बोलने में
भी पावर होती है।
एक सेकेण्ड में
खुशी दिला देते,
एक सेकेण्ड में
रूला देते। तब
कहते हैं इनका
भाषण इफेक्ट करने
वाला है। सारी
सभा को हंसाते
भी हैं, सभी को श्मशानी
वैराग्य में लाते
भी हैं ना। जब उन्हों
के भाषण में इतनी
पावर होती है; तो
क्या आप लोगों
के भाषण में वह
पावर नहीं हो सकती
है? अशरीरी बनाना
चाहो तो वह अनुभव
करा सकते हैं? वह
लहर छा जावे। सारी
सभा के बीज बाप
के स्नेह की लहर
छा जावे। उसको
कहा जाता है प्रैक्टिकल
अनुभव कराना। अब
ऐसे भाषण होने
चाहिए, तब कुछ चेंज
होगी। वह समझें
कि इन्हों के भाषण
तो दुनिया से न्यारे
हैं।
वह भले भाषण में
सभा को हंसा लेते,
रूला लेते, लेकिन
अशरीरीपन का अनुभव
नहीं करा सकते,
बाप से स्नेह नहीं
पैदा करा सकते।
कृष्ण से स्नेह
करा सकते, लेकिन
बाप से नहीं करा
सकते। उन्हों को
पता नहीं है। तो
निराली बात होनी
चाहिए। समझो, गीता
के भगवान् पर प्वाइंट्स
देते हो, लेकिन
जब तक उनको बाप
क्या
चीज़
है, हम
आत्मा हैं वह परमात्मा
है - जब तक यह अनुभव
ना कराओ तब तक यह
बात भी सिद्ध कैसे
होगी? ऐसा कोई भाषण
करने वाला हो जो
उन्हों को अनुभव
करावे - आत्मा और
परमात्मा में रात-
दिन का फर्क है।
जब अन्तर महसूस
करेंगे तो गीता
का भगवान् सिद्ध
हो जावेगा। सिर्फ
प्वाइंट्स से उन्हों
की बुद्धि में
नहीं बैठेगा, और
ही लहरें उत्पन्न
होंगी। लेकिन अनुभव
कराते जाओ तो अनुभव
के आगे कोई बात
जीत नहीं सकता।
भाषण में अब यह
तरीका चेंज करें।
अच्छा!