30-05-73 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
संगम युग-पुरूषोत्तम युग
निर्बल को बल देने वाले, विश्व का मालिक बनाने वाले, विश्व-कल्याणकारी, विश्व का परिवर्तन करने वाले बाबा बोले :-
सभी अपने को पाण्डव सेना के महावीर या महावीरनियाँ समझते हो? महावीर अर्थात् अपने को शक्तिशाली समझते हो? कोई निर्बल आत्मा सामने आये तो क्या निर्बल को बल देने वाले बने हो, या अभी तक स्वयं में ही बल भरते जा रहे हो? दाता हो या लेने वाले बने हो? सर्व-शक्तियों का वर्सा प्राप्त कर चुके हो या अभी प्राप्त करना है? अभी तक प्राप्ति करने का समय है या कराने का समय है? महान् बनने के लिये मेहनत लेने का समय है या बाप से ली हुई सेवा का रिटर्न करने का समय है? अगर अन्त तक किसी भी द्वारा किसी भी प्रकार की सेवा लेते रहेंगे तो सेवा का रिटर्न क्या भविष्य में करेंगे? भविष्य में प्रारब्ध भोगने का समय है या रिटर्न का फल देने का समय है? ये सभी बातें बुद्धि में रखते हुए अपने आप को चेक करो की हमारा अन्तिम पार्ट व भविष्य क्या होगा? जब अभी से सर्व-आत्माओं को बाबा का खज़ाना देने वाले दाता बनेंगे, अपनी शक्तियों द्वारा प्यासी व तड़पती हुई आत्माओं को जी-दान देंगे, वरदाता बन प्राप्त हुए वरदानों द्वारा उन्हें भी बाप के समीप लायेंगे और बाबा के सम्बन्ध में लायेंगे, तब यहाँ के दातापन के संस्कार भविष्य में इक्कीस जन्मों तक राज्यपद अर्थात् दातापन के संस्कार भर सकेंगे। इस संगमयुग को पुरूषोत्तम संगमयुग व सर्वश्रेष्ठ युग क्यों कहते हो? क्योंकि आत्मा के हर प्रकार के धर्म की, राज्य की, श्रेष्ठ संस्कारों की, श्रेष्ठ सम्बन्धों की और श्रेष्ठ गुणों की सर्व- श्रेष्ठता अभी रिकार्ड के समान भरता जाता है। चौरासी जन्मों की चढ़ती कला और उतरती कला उन दोनों के संस्कार इस समय आत्मा में भरते हो। रिकार्ड भरने का समय अभी चल रहा है।
जब हद के रिकार्ड भरते हैं तो भी कितना अटेन्शन रखते हैं। हद का रिकार्ड भरने वाले भी तीन बातों का ध्यान रखते हैं। वह कौन-सी है? वह लोग वायुमण्डल, अपनी वृत्ति और वाणी इन तीनों के ऊपर अटेन्शन देते हैं। अगर वृत्ति चंचल होती है और वह एकाग्र नहीं होती है तो भी वाणी में आकर्षण करने का रस नहीं रहता। जिस प्रकार का गीत गाते हैं, उसी रूप में स्थित होकर गाते हैं। अगर कोई दु:ख का गीत होता है तो दु:ख का रूप धारण कर गीत न गाये तो सुनने वालों को उस गीत से कोई रस नहीं आयेगा। जब हद का गीत गाने वाले व रिकार्ड भरने वाले भी इन सभी बात्ं का ध्यान देते हैं तो आप बेहद का रिकार्ड भरने वाले, सारे कल्प का रिकार्ड भरने वाले क्या हर समय इन सभी बातों के ऊपर अटेन्शन देते हो? यह अटेन्शन रहता है कि हर सेकेण्ड रिकार्ड भर रहा हूँ? क्या इतना अटेन्शन रहता है? रिकार्ड भरते-भरते अगर उल्लास के बजाय आलस्य आ जाय तो रिकार्ड कैसे भरेगा? रिकार्ड भरने के समय क्या कोई आलस्य करता है? तो आप लोग भी जब रिकार्ड भर रहे हो तो भरते-भरते आलस्य आता है या सदैव उल्लास में रहते हो? कभी अपने भरे हुए सारे दिन के रिकार्ड को साक्षी होकर देखते हो कि आज का रिकार्ड कैसा भरा है?
जैसे टेप में भी पहले भर कर फिर देखते हैं और सुनते हैं कि देखें कैसा भरा है, ठीक है या नहीं? वैसे ही क्या आप भी साक्षी हो कर देखते हो? देखने से क्या लगता है? अपने आप को जंचता है कि ठीक भरा है? या अपने आपको देखते हुए सोचते हो की इससे अच्छा भरना चाहिए। रिजल्ट तो देखते हो ना? जो समझते हैं कि सदैव अपने आप को साक्षी होकर रोज चेक करते हैं कि कभी भी चेक करना मिस नहीं होता है- वह हाथ उठाओ? (थोड़ां ने हाथ उठाया)। अभी चेकर ही नहीं बने हो? जो चेकर न बना है वह मैकर क्या बनेंगे? भूल जाते हो क्या? टाईम ऊपर-नीचे हो जाये यह हो सकता है लेकिन भूल जाय यह हो नहीं सकता। तो आत्मा की दिनचर्या जो अमृतवेले बनाते हो, फिक्स करते हो वह चेक करना क्यों भूल जाते हो? या फिक्स करना ही नहीं आता है? आत्मा को दिनचर्या फिक्स करनी आती है? यह तो बहुत कॉमन) बात है। इस कॉमन नियम पर भी अगर विस्मृत है तो इससे क्या सिद्ध होता है कि आत्मा अभी तक भी निर्बल है। जो अपने आपको ईश्वरीय नियम, ईश्वरीय मर्यादाओं में नहीं चला सकते वह क्या विश्व की मर्यादापूर्वक लाफुल (Lawful) राज्य को चला सकेंगे? जो संगमयुगीय राज्य-पद के अधिकारी न बने हैं वह भविष्य राज्य-पद कैसे पा सकते हैं? इस संगठन की टीचर्स कौन हैं? इतनी कम रिजल्ट की जिम्मेवार कौन? क्या आये हुए टीचर स्वयं चेकर हैं? कोई हिम्मत से नहीं उठाती हैं। अगर अभी-अभी विश्व-युद्ध छिड़ जाय तो? (किसी ने कहा कि उसी समय खड़े हो जायेंगे) अगर समय पर खड़े हो जायेंगे तो इसको क्या कहा जायेगा? प्रकृति के आधार पर जो पुरूष चले तो उस पुरूष को क्या कहा जाता है? समय भी प्रकृति है ना? तो यदि पुरूष प्रकृति के आधार पर चलने वाला हो तो उसको क्या पास विद् ऑनर कहा जायेगा? समय का धक्का लगने से जो चल पड़े उसको क्या कहा जायेगा? क्या यही सोचा है, कि धक्के से चलने वाले बनेंगे? वर्तमान संगठन तो बहुत कमजोर है। मैजॉरिटी कमजोर है। अच्छा फिर भी बीती सो बीती, लेकिन अभी से आप अपने आप को परिवर्तन कर लो। अभी फिर भी समय है, लेकिन बहुत थोड़ा है। अभी तो बापदादा और सहयोगी श्रेष्ठ आत्मायें आप पुरुषार्थी आत्माओं को एक का हज़ार गुना सहयोग देकर, सहारा देकर, स्नेह देकर और सम्बन्ध के रूप में बल देकर आगे बढ़ा सकते हैं। लेकिन थोड़े समय के बाद यह बातें अर्थात् लिफ्ट का मिलना भी बन्द हो जायेगा। इसलिए अभी जो-कुछ भी लेना चाहो वह ले सकते हैं। फिर बाद में बाप के रूप का स्नेह बदल कर सुप्रीम जस्टिस का रूप हो जायेगा।
जस्टिस के आगे चाहे कितना भी स्नेही सम्बन्धी हो लेकिन ‘लॉ इज़ लॉ’ (Law is Law)। अभी लव का समय है फिर लॉ का समय होगा। फिर उस समय लिफ्ट नहीं मिल सकेगी। अभी है प्राप्ति का समय और फिर थोड़े समय के बाद प्राप्ति का समय बदलकर पश्चाताप का समय आयेगा। तो क्या उस समय जागेंगे? बापदादा फिर भी सभी बच्चों को कहेंगे कि थोड़े समय में बहुत समय की प्रालब्ध बना लो। समय के इन्तज़ार में अलबेले न बनो। सदैव यह स्मृति में रखो कि हमारा हर कर्म चौरासी जन्मों के रिकार्ड भरने का आधार है। अपनी वृत्ति, अपने वायुमण्डल और अपनी वाणी को यथार्थ रूप में सैट करो। जैसे वह लोग भी वातावरण को बनाते हैं ऐसे आप लोग भी अपने वातावरण को, अपनी अन्तर्मुखता की शक्ति से श्रेष्ठ बनाओ। वृत्ति को श्रेष्ठ और वाणी को भी राज़युक्त और युक्ति-युक्त बनाओ तब ही यह रिजल्ट बदल सकेगी। बदलता तो है ना? क्या ऐसे ही मन्जूर है? चैलेन्ज तो बहुत बड़ी करते हो कि हम पाँच तत्वों को भी बदलेंगे। तो बिना चेकर के मेकर कैसे बनेंगे? अभी से कम्पलेन्ट कम्पलीट हो जानी चाहिये। जो समझते हैं कि अभी से यह कमजोरी छूट फिर अन्त तक कभी भी यह न रहेगी वह हाथ उठावें। इसकी जिम्मेवारी किस पर (कोई ने कहा दीदी पर, कोई ने कहा बापदादा पर) बापदादा करेंगे तो बापदादा पावेंगे। करने के समय बापदादा पर और पाने के समय? भविष्य पद पाने का त्याग करो तो फिर करने का भी त्याग करो। लेकिन वह कर नहीं सकते क्योंकि मुक्तिधाम के हो ही नहीं। हरेक को अपनी जिम्मेवारी आप उठानी है। अगर यह सोचेंगे कि दीदी, दादी व टीचर जिम्मेवार हैं तो इससे सिद्ध होता है कि आप को भविष्य में उन ही की प्रजा बनना है, राजा नहीं बनना है। यह भी अधीन रहने के संस्कार हुए न? जो अधीन रहने वाला है वह अधिकारी नहीं बन सकता। विश्व का राज्यभाग्य नहीं ले पाता। इसलिये स्वयं के जिम्मेवार, फिर सारे विश्व की जिम्मेवारी लेने वाले विश्व महाराजन बन सकते हैं। विश्वकल्याणकारी बाप की सन्तान होकर और अपना कल्याण नहीं कर सकते हो? क्या यह शोभता है? यह तो कलियुग के कर्मभोग की निशानी बताते हो कि कोई लखपति है लेकिन एक रूपये का भी सुख स्वयं नहीं ले सकता। तो सर्वशक्तियों के खजाने का मालिक हो लेकिन स्वयं के प्रति एक छोटी-सी शक्ति भी यूज़ नहीं कर पाते हो इसको क्या कहा जाये? संगमयुग पर ब्राह्मणों की क्या यह निशानी है? अभी संगमयुगी हो या एक पाँव कलियुग में रख दिया है कि कहीं संगमयुग पर न टिक सकेंगे, तो कहाँ चले जायेंगे? संगमयुग की यह निशानी नहीं है। इसलिए अभी से तीव्र पुरुषार्थी बन दृढ़- संकल्प लो कि करना ही है और बनना ही है। करेंगे और प्लान बनायेंगे इसको भी तीव्र पुरुषार्थी नहीं कहा जाता। क्या प्लान बनावेंगे? क्या बना हुआ नहीं है? त्रिकालदर्शी को तो प्लान बनाने में समय नहीं लगेगा क्योंकि उसको तो तीनों ही काल स्पष्ट हैं। सभी कार्य सेकेण्ड में हों ऐसी तीव्र- गति अपनी बनाओ, तीव्र-गति वाले ही सद्गति को पायेंगे।
अच्छा ऐसे उम्मीदवार, बापदादा के श्रेष्ठ संकल्प को साकार करने वाले, हर संकल्प, कर्म और बोल को चेक करने वाले, हर सेकेण्ड में, हर संकल्प में स्वयं का कल्याण और विश्व का कल्याण करने वाले, विश्व-कल्याणकारी, विश्व-परिवर्तक आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
इस वाणी का सार
1. अभी जो समय चल रहा है वो है रिकार्ड भरने का। रिकार्ड भरते समय विशेष तीन बातों पर अटेन्शन दिया जाता है-वातावरण, वृत्ति और वाणी। जब हद का रिकार्ड भरने वाले ही इतना अटेन्शन रखते हैं तो हमको भी बहुत ध्यान रखना चाहिए। वातावरण को अपनी अन्तर्मुखता की शक्ति से श्रेष्ठ बनाओ; वृत्ति को श्रेष्ठ और वाणी को भी राजयुक्त एवं युक्तियुक्त बनाओ। ऐसा करने से ही रिजल्ट बदल सकता है।
2. स्वयं का स्वयं चेकर बन कर हर रोज ये चेक करो कि जो मेरा रिकार्ड भर गया है क्या वह ठीक है या नहीं? अपने आपको जंचता है या नहीं? क्योंकि चेकर ही मेकर बन सकता है। यदि इस कॉमन नियम पर अभी तक भी विस्मृत हैं तो सिद्ध है आत्मा अभी तक निर्बल है।