21-07-73   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


रूहानी जज़ और जिस्मानी जज़

सदा सफलतामूर्त्त बनाने वाले, शक्तियों से सम्पन्न कर मास्टर सर्वशक्तिवान् बनाने वाले, सर्व धारणायें कराके धारणा मूर्त्त बनाने वाले, सुप्रिम जस्टिस प्यारे बाबा बोले:-

अपने को जस्टिस  समझते हो? क्या अपने आपको और सर्व- आत्माओं को जज़ कर सकते हो? वह जस्टिस तो सिर्फ बोल और कर्म को ही जज़ करते हैं लेकिन आप तो संकल्प को भी जज़ कर सकते हो। ऐसे जस्टिस जो अपने और दूसरी आत्माओं के भी संकल्प को जज़ कर सकें व परख सकें, ऐसे बन गये हो? ऐसा जस्टिस कौन बन सकता है? जिसकी बुद्धि का काँटा एकाग्र हो। जैसे तराजू की सही परख तब होती है जब काँटा एकाग्र हो जाता है, हलचल बन्द हो जाती है और दोनों तरफ समान हो जाती है। ऐसे ही जिसका बुद्धि-योग रूपी काँटा एकाग्र है, जिसकी बुद्धि में कोई हलचल नहीं और निर्विकल्प स्टेज व स्थिति है और जिसके बोल और कर्म में, लव और लॉ में, और स्नेह और शक्ति में अर्थात् इन दोनों का बैलेन्स है, तो ऐसा जस्टिस यथार्थ जज़मेन्ट  दे सकता है। ऐसी आत्मा सहज ही किसी को परख सकती है। क्या ऐसी परखने की शक्ति व जज़मेन्ट करने की शक्ति अपने में अनुभव करते हो?

लौकिक जज़ अगर जज़मेन्ट राँग करते हैं तो किसी आत्मा का एक जन्म व्यर्थ गँवा सकते हैं या उसका कुछ समय व्यर्थ गँवा सकते हैं अथवा उसको कई प्रकार के नुकसान पहुँचाने के निमित्त बन सकते हैं, लेकिन आप रूहानी जस्टिस अगर किसी को परख न सकें तो आत्मा के अनेक जन्मों की तकदीर को नुकसान पहुँचाने के निमित्त बन जायेंगे। क्या अपने ऊपर ऐसी जिम्मेवारी महसूस करते हो? जब आप लोग सर्व-आत्माओं के कल्याण के निमित्त बनते हो, अनेक आत्माओं का बाप से मिलन मनाने के निमित्त बनते हो, तो ऐसी आत्माओं को अपने ऊपर कितनी बड़ी जिम्मेवारी महसूस करनी चाहिए? यदि कोई तड़पती हुई प्यासी आत्मा आपके सामने आये, उनकी तड़प या प्यास को समाप्त कर उसकी प्यास मिटाने के निमित्त कौन हैं? बाप या आप? बाप तो बैकबोन  हैं, लेकिन निमित्त शक्ति सेना और पाण्डव सेना ही है। तो निमित्त बनने वालों के ऊपर इतनी बड़ी जिम्मेवारी है जो किसी भी आत्मा को किसी भी बात से या किसी प्रॉपर्टी से भी वंचित नहीं कर सकते - क्या ऐसे सर्व के महादानी और वरदानी बने हो? क्या एक सेकेण्ड में किसी को परख सकते हो? अगर किसी को आवश्यकता हो शान्ति की और आप उसको सुख का रास्ता बताओ (परखने की शक्ति कम होने के कारण) तो भी वह सन्तुष्ट नहीं होगा। इसलिये हरेक की प्राप्ति की इच्छा को परखने वाला ही सम्पूर्ण और यथार्थ जज़मेन्ट कर सकता है। ऐसी सर्व की इच्छाओं को जानने वाले की विशेष क्वॉलिफिकेशन्स कौन-सी होगी कि जिससे बुद्धि रूपी काँटा एकाग्र हो? लव और लॉ का बैलेन्स हो, उसके लिये मुख्य विशेष धारणा क्या होगी? (सभी ने बताया) बातें तो बहुत अच्छी-अच्छी सुनाई। इन सभी का सार हुआ कि स्वयं जो इच्छा मात्रम् अविद्याकी स्थिति में स्थित होगा, वही किसी की भी इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है।

अगर स्वयं में ही कोई इच्छा रही होगी तो वह दूसरे की इच्छाओं को पूर्ण नहीं कर सकते। इच्छा मात्रम् अविद्याकी स्टेज तब रह सकती है जब स्वयं युक्ति-युक्त, सम्पन्न, नॉलेज़फुल और सदा सक्सेसफुल अर्थात् सफलता-मूर्त्त होंगे। जो स्वयं सफलता-मूर्त्त नहीं होगा तो वह अनेक आत्माओं में संकल्प को भी सफल नहीं कर सकता। इसलिये जो सम्पन्न नहीं तो उसकी इच्छायें ज़रूर होंगी क्योंकि सम्पन्न होने के बाद ही इच्छा मात्रम् अविद्याकी स्टेज आती है। तब कोई अप्राप्त वस्तु नहीं रह जाती तो ऐसी स्टेज को ही कर्मातीतअथवा फरिश्तेपनकी स्टेज कहा जाता है। ऐसी स्थिति वाला ही हर आत्मा को यथार्थ परख सकता है और दूसरों को प्राप्ति करा सकता है। तो ऐसी स्टेज अपने समीप अनुभव करते हो या कि अभी तक यह स्टेज बहुत दूर है? सामने है या समीप है? इतने समीप है कि अभी-अभी चाहो तो वहाँ पहुंच जाओ अथवा उसको भी अभी समीप ला रहे हो? विनाश की ताली व सीटी बजे और आप अपनी स्टेज पर स्थित हो जाओ जैसे कि सिंहासन पर समीप आ गये और सिर्फ चढ़कर बैठना ही बाकी रह जाये अर्थात् सीटी बजे और सीट पर बैठ जाओ।

जैसे चेयर्स का खेल होता है ना? दौड़ते रहते हैं, सीटी बजी और कुर्सी पर बैठ गये। जिसने कुर्सी ली वह विजयी, नहीं तो हार। यह भी कुर्सी का खेल चल रहा है। तो इसमें आप क्या समझते हो? अभी तीन तालियाँ बजेंगी और तीसरी पर चेयर पर बैठ जाओ - क्या इतनी तैयारी है? लेकिन ये तीन तालियाँ जल्दी-जल्दी बजती हैं, उनके बीच में ज्यादा टाईम नहीं होता है। तो क्या इतनी तैयारी है कि जो तीसरी पर झट चेयर पर बैठ जाओ? ऐसी गॉरन्टी है ना? ‘कोशिशशब्द कहना तो मानो कि शक है कोई। कल्प पहले सीट पर नहीं बैठे थे क्या? कोई-न-कोई कुर्सी लेना-वह कोई बड़ी बात नहीं है। कोई-न-कोई कुर्सी तो प्रजा को भी मिलेगी। जब सोलह हज़ार को सीट मिलेगी तो 9 लाख वालों को भी सीट मिलेगी। लेकिन फर्स्ट सीट के लिये सदा अपने को एवर-रेडी बनाना पड़े। अगर निमित्त बनने वाले ही सेकेण्ड स्टेज तक पहुंचे तो जिनकी आप निमित्त बनेंगी वह कहाँ तक पहुंचेंगे? इसलिये जो अपने को विश्व-कल्याणकारी समझ कर चल रहे हैं, उनको तो सदैव ताली अथवा सीटी का इन्तजार करना चाहिए। इन्तज़ार वह करेगा जिसका पहले से ही अपना इन्तज़ाम हुआ पड़ा होगा। अगर इन्तज़ाम नहीं है तो वह इन्तज़ार नहीं कर सकता तो पहले से ही इन्तज़ाम करना-यह है महारथियों की व महावीरों की निशानी। तो अभी एवर-रेडी बनने के लिये अभी से ही अपनी चैकिंग करो।

जैसे सारी नॉलेज का रिवाइज़ कोर्स कर रहे हो, वैसे ही अपनी प्राप्ति व पुरूषार्थ का चार्ट भी शुरू से रिवाइज़ करके देखो। उसमें मुख्य चार सब्जेक्ट्स हैं। चारों को सामने रखो और हर सब्जेक्ट्स में पास हो उसको देखो। जैसे चार सब्जेक्ट्स हैं -- ज्ञान, योग, दैवी गुणों की धारणा और ईश्वरीय सेवा। वैसे ही यहाँ चार सम्बन्ध भी हैं, तीन सम्बन्ध तो स्पष्ट हैं -- सत् बाप, सत् शिक्षक और सद्गुरू परन्तु चौथा सम्बन्ध है साजन और सजनी का। यह भी एक विशेष सम्बन्ध है-आत्मा-परमात्मा का मिलन अर्थात् सगाई। यह सम्बन्ध भी पुरूषार्थ को सहज कर देता है। जैसे चार सब्जेक्ट्स हैं, वेसे ही चार सम्बन्ध सामने लाओ और इन चार सम्बन्धों के आधार से मुख्य चार धारणायें हैं। एक तो बाप के सम्बन्ध में-फरमान वरदार’, शिक्षक के सम्बन्ध में-इर्मानदारऔर गुरू के सम्बन्ध में-आज्ञाकारीऔर साजन के सम्बन्ध में-वफादार।जो यह चारों सम्बन्ध और चार विशेष धारणायें इन सभी को रिवाइज करके देखो।

इसके साथ-साथ चार सलोगन्स भी स्मृति में रखो-वह कौन-से? बाबा के सम्बन्ध में सलोगन है-सन शोज फादर’, अर्थात् सपूत बन सबूत देना है। शिक्षक के रूप में सलोगन है-जब तक जीना है तब तक पढ़ना है, अर्थात् लास्ट घड़ी तक पढ़ना है। यह लक्ष्य अगर मजबूत है तो फिर सर्व प्राप्तियाँ स्वत: ही होती हैं। और गुरू के रूप में सलोगन है-जहाँ बिठाये, जैसे बिठाये, जो सुनाये, जैसे सुनावें, जैसे चलावे और जैसे सुलावे अर्थात् जैसे कि सभी हुकमी हुकम चला रहा है-यह है सद्गुरू का सलोगन। अभी साजन के रूप में क्या सलोगन है-तुम्हीं से बैठूँ, तुम्हीं से खाऊं और तुम्हीं से श्वाँसोंश्वाँस साथ रहूँ। यह है साजन के रूप का सलोगन। यह सभी बातें अपने सामने लाकर अपने पुरूषार्थ को चेक करो। इन सभी को रिवाईज़ करना है।

यह भी चेक करना है कि बहुत समय से और एक-रस अर्थात् लगातार क्या चारों ही सम्बन्ध निभाते रहे हैं या बीच-बीच में कट हुआ है? अगर बीच में कुछ मार्जिन रह गयी है तो बार-बार कटी हुई चीज़ कमजोर होती है। इसलिये अपने जीवन को इन चारों ही बातों के आधार पर रिवाईज़ कर के देखो। इस चैकिंग को करके अपने-आप को परख सकेंगे कि मेरी प्राप्ति व प्रारब्ध क्या है? सूर्यवंशी है या चन्द्रवंशी है? सूर्यवंशी में राजाई फैमिली में हैं या स्वयं महाराजा महारानी बनने वाले हैं? अभी जबकि समय नजदीक है फाइनल पेपर का तो जैसे लौकिक पढ़ाई में भी सभी सब्जेक्ट्स को रिवाइज किया जाता है और एक-एक सबजेक्ट्स को रिवाइज कर अपनी कमी को सम्पन्न करते हैं, इसी प्रकार सभी को अपने पुरूषार्थ को इसी रीति रिवाइज करना है। कैसे स्वयं का जस्टिस बनो अभी वह तरीका सुना रहे हैं। जब स्वयं को जज करना आ जायेगा तो फिर दूसरों को भी सहज ही परख सकेंगे। जब स्वयं प्राप्ति-सम्पन्न होंगे तो दूसरों को भी प्राप्ति करा सकेंगे। यह चेक करना तो सहज है ना? एक सब्जेक्ट् अथवा एक सम्बन्ध व एक धारणा व एक सलोगन में भी कमी नहीं होनी चाहिए।

जबकि अभी रिजल्ट आउट होने का समय आ रहा है, तो रिजल्ट आउट होने से पहले कम्पलेन्ट्स को कम्पलीट करो। अपनी कम्प्लेन्ट भी आप स्वयं ही करते हो। अमृत वेले से अपनी कम्पलेन्ट करते हो। जब तक अपनी कम्पलेन्ट्स हैं, तब तक कम्पलीट नहीं हो सकेंगे। इसलिये स्वयं ही मास्टर सर्वशक्तिवान् बन अपनी कम्पलेन्ट को कम्पलीट करो। अभी फिर भी लास्ट चान्स का समय है। फिर नहीं तो टू लेट का बोर्ड लग जायेगा। अभी प्राप्ति का समय भी-बहुत गई, थोड़ी रही है’ -- नहीं तो पश्चाताप का समय आ जायेगा फिर पश्चाताप के समय प्राप्ति नहीं कर सकेंगे। इसलिये अभी जो थोड़ी रही हुई है, यह चान्स भी चाहे किसी और के निमित्त, आप लोगों को भी यह चान्स मिला है। फिर भी किसी प्रकार का चान्स तो है ना? तो चान्स को गँवाना वा लेना, अपने प्रयत्न से आप जो चाहो वह कर सकते हो। इसलिये अभी से रिवाइज करो। यह तो सुना दिया कि जब रिवाइज करो व जज़ करो तो किस रूप में करना है। विधि तो सुना ही दी है। क्योंकि विधि-पूर्वक करने से सिद्धि की प्राप्ति तो हो ही जायेगी।

जो सम्पूर्ण स्टेज के अति नजदीक होंगे उनके संकल्प में, बोल में और कर्म में एक नशा रहेगा। वह कौन-सा? ईश्वरीय नशा तो सबको है ही। ईश्वरीय नशे का वर्सा तो ईश्वरीय गोद ली और प्राप्त हुआ। वह तो है ही। लेकिन वह विशेष क्या नशा रहेगा? उनके संकल्प में, बोल में नशे की कौन-सी बात होगी? नशा यह होगा कि जो भी कुछ कर रहा हूँ उसमें सम्पूर्ण सफलता हुई ही पड़ी है। होनी हैहोगीऐसा नहीं, परन्तु हुई ही पड़ी है। संकल्प में भी यह नशा होगा कि मेरे हर संकल्प की सिद्धि हुई ही पड़ी है। कर्म में भी यह नशा होगा कि मेरे हर कर्म में पीछे सफलता मेरी परछाई की तरह है। मेरे बोल की सिद्धि हुई ही पड़ी है। सफलता मेरे पीछे-पीछे आने वाली है। सफलता मुझसे अलग हो ही नहीं सकती। ऐसा नशा हर संकल्प में, हर बोल और हर कर्म में जब होता है, तब समझो अति समीप है। होना तो चाहिए, लॉ तो ऐसे कहता है व कर्म की फिलॉसाफी व ज्ञान तो यह कहता है-यह है समीप। अभी इससे जज करो तो अति समीप हैं या समीप हैं या सामने हैं। ये तीन स्टेजिस हो गई न? अच्छा।

सभी के अन्दर एक संकल्प की हलचल है - वह कौन-सी? तो न मालूम यह मिलन भी कब तक? इस हलचल का रेसपॉन्स कौन-सा है? देखो पहले भी सुनाया कि प्राप्ति का समय अभी बहुत गया, थोड़ा रहा, थोड़े का भी थोड़ा है। जबकि प्राप्ति का समय थोड़ा है और कई आत्मायें आने वाली हैं जिनके निमित्त आप लोगों को भी चान्स है। ऐसी आत्माओं के प्रति अभी बाप भी बन्धन में बन्धे हुए हैं। इसलिये जब नये-नये रत्न आ रहे हैं अपना कल्प पहले का हक नम्बरवार ले रहे हैं तो बापदादा को भी हक देने आना ही पड़े ना? तो ऐसी हलचल नहीं मचाओ कि न मालूम क्या होना है? लेकिन अव्यक्त मिलन का अव्यक्त रूप से अनुभव कराने के लिये बीच-बीच में मार्जिन दी जाती है व समय दिया जाता है कि जिससे कभी अचानक व्यक्त द्वारा अव्यक्त मिलन का पार्ट समाप्त हो तो अव्यक्त स्थिति द्वारा अव्यक्त मिलन का अनुभव कर सको। जब तक बाप की सम्पूर्ण प्रत्यक्षता नहीं हो जाती तब तक बच्चों और बाप का मिलन तो होना ही है। लेकिन चाहे व्यक्त द्वारा अव्यक्त मिलन और चाहे अव्यक्त स्थिति द्वारा अव्यक्त मिलन, लेकिन मिलन तो अन्त तक है ना? इसलिये ऐसा समय आने वाला है कि जिसमें अव्यक्त स्थिति द्वारा अव्यक्त मिलन का अनुभव न होगा तो बाप के मिलन का, प्राप्ति का और सर्वशक्तियों के वरदान का जो सुन्दर मिलन का अनुभव है, उससे वंचित रह जायेंगे। इसलिये यह दोनों मिलन अभी तक तो साथसाथ चल रहे हैं लेकिन लास्ट स्टेज क्या है? लास्ट स्टेज की तैयारी कराने के लिये बाप को ही समय देना पड़ता है और सिखलाना पड़ता है। अभी समझा क्या होने वाला है? अभी इतने हलचल में नहीं आओ। जब होने वाला होगा तो अव्यक्त स्थिति में स्थित रहने वालों को स्वयं ही आवाज़ आयेगा, टचिंग होगी, सूक्ष्म संकल्प होगा, तार पहुंचेगी या ट्रंक-काल होगा। समझा? जब लाइन क्लियर होगी तभी तो पकड़ सकेंगे। जब अव्यक्त मिलन का अनुभव होगा तब तो पहचानेंगे व पहुंचेंगे। इसके बीच-बीच में यह चान्स दे अभ्यास कराते हैं। बाकी घबराने की कोई बात नहीं। समझा? अच्छा।

ऐसे सदा सफलता-मूर्त्त, ज्ञान स्वरूप, शक्ति-सम्पन्न, दिव्य धारणा सम्पन्न, योग-युक्त, युक्ति-युक्त संकल्प और कर्म करने वाले, परखने की शक्ति को हर आत्मा के प्रति कर्म में लाने वाले, रूहानी जस्टिस श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा वरदानी मूर्त्त आत्माओं को और बापदादा के नूरे रत्नों को याद-प्यार और नमस्ते।

महावाक्यों का सार

1. स्वयं जो इच्छा मात्रम् अविद्या की स्थिति में स्थित होगा वो ही किसी के इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है।

2. इन्तज़ार वह करेगा जिनका पहले से ही अपना इन्तज़ाम हुआ पड़ा होगा।