28-01-74   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


महिमा को स्वीकार करने से रूहानी ताकत में कमी

एक बच्चे को मनोहर शिक्षायें देते हुए रूहानी पिता परमात्मा शिव बोले:-

बच्चे तुम युद्ध-स्थल पर उपस्थित रूहानी योद्धा हो, फिर कहीं योद्धापन भूल अपनी सहज-सुखाली जीवन बिताते हुए अपने जीवन के प्रति साधन और सम्पत्ति लगाते हुए समय व्यतीत तो नहीं कर रहे हो? जैसे वारियर को धुन लगी ही रहती है विजय प्राप्त करने की, क्या ऐसी मायाजीत बनने की लगन, अग्नि की तरह प्रज्वलित है? बच्चे! अब आपके सामने सेवा का फल साधनों के रूप में और महिमा के रूप में प्राप्त होने का समय है। इसी समय अगर यह फल स्वीकार कर लिया तो फिर कर्मातीत स्टेज का फल, सम्पूर्ण तपस्वीपन का फल और अतीन्द्रिय सुख की प्राप्ति का फल प्राप्त न हो सकेगा।

कोई भी आधार पर जीवन का आधार नहीं होना चाहिए, अथवा पुरूषार्थ भी कोई भी आधार पर नहीं होना चाहिए। इससे योगबल की शक्ति के प्रयोग में कमी हो जाती है और जितना ही योगबल की शक्ति का प्रयोग नहीं करते, उतनी ही वह शक्ति बढ़ती नहीं। योगबल अभ्यास से बढ़ता ज़रूर है। जैसे कोई भी बात सामने आती है, तो स्थूल साधन फौरन ध्यान में आ जाते हैं। लेकिन स्थूल साधन होते हुए भी ट्रायल (प्रयत्न) योगबल की ही करनी है।

उपरामवृत्ति व ज्वाला रूप के दृढ़ संकल्प से विनाश का कार्य सम्पन्न करो