13-09-74 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
मुरब्बी बच्चे बन अपनी स्टेज को योग-युक्त व युक्ति-युक्त बनाओ
निर्बल को बलवान बनाने वाले, सर्व-आत्माओं के संस्कार व स्वभाव को श्रेष्ठ बनाने वाले, ज्ञान सागर बाबा बोले:-
आज विशेष रूप से बाप किन लोगों से मिलने के लिये आये हुए हैं? आज का यह संगठन कौन-सा संगठन है? बाप-दादा इस संगठन को देखते और हर्षित होते हुए यही सबको टाइटल देते कि यह बाप-दादा के मुरब्बी बच्चों का संगठन है। मुरब्बी बच्चे जो होते हैं, वह बाप के साथ कदम के साथ कदम उठाते हुए और हर कार्य में सदा सहयोगी स्वत: ही बन जाते हैं, उन्हें बनना नहीं पड़ता और उन्हें बनने के लिये सोचना भी नहीं पड़ता। मुरब्बी बच्चा, स्नेही होने के नाते, सदा सहयोगी होता ही है। मुरब्बी बच्चों को, ड्रामानुसार स्नेह का रिटर्न, वरदान रूप में सहयोगी बनने का, सहज ही प्राप्त होता रहता है। अगर यह वरदान स्वत: ही प्राप्त है, तो समझो कि मैं मुरब्बी बच्चा हूँ। मुरब्बी बच्चे की स्टेज, सदा योग-युक्त और युक्ति-युक्त होती है। मुरब्बी बच्चा अर्थात् बाप के समान सर्वगुणों का स्वरूप जो बाप के गुण हैं, उन गुणों को साकार करने वाला ही मुरब्बी बच्चा कहलाता है। यह ऐसा ही ग्रुप है और यह सर्विस के निमित्त बनी हुई ज़िम्मेवार आत्मायें हैं।
यह तो सब कहेंगे कि सर्विस-अर्थ निमित्त अर्थात् बाप के गुणों को साकार करने के निमित्त-इसको ही सर्विस कहा जाता है। बाकी ज्ञान को वर्णन करना, यह तो कॉमन बात है। यह विशेष सर्विस नहीं है। सर्विस की विशेषता अर्थात् बाप के सर्वगुणों का स्वरूप बन कर, बाप का साक्षात्कार अपने स्वरूप द्वारा कराना। सुनना-सुनाना, यह तो द्वापर युग से चला आ रहा है। लेकिन आप विशेष आत्माओं की विशेषता किस बात में हैं? बाप-समान बन, सर्व को बाप का साक्षात्कार कराना और साक्षात् बन साक्षात्कार कराना। यह सिर्फ विशेष आत्मायें ही कर सकती हैं, यह और कोई आत्मा नहीं कर सकती। न भक्तिमार्ग वाले और न ज्ञान मार्ग में आने वाली साधारण आत्मायें। मुरब्बी बच्चों का फर्ज भी विशेष यही है।
साधारण आत्माओं और विशेष आत्माओं में मुख्य कौन-सी बात का अन्तर होता है? कोई गुह्य अन्तर सुनाओ। मुख्य अन्तर यह है-विशेष आत्माओं के मुख से और उनके अनुभव से, हर आत्मा का एक सेकेण्ड में और अति सहज ही डायरेक्ट बाप से कनेक्शन जुट जायेगा। और जो साधारण आत्मा होगी, वह बीच में दलाल जो बनते हैं, तो पहले दलाल में रूक कर फिर बाद में बाप से डायरेक्ट जुटेगा। साधारण आत्माओं के सर्विस की रिज़ल्ट में, आने वाली आत्मा इतनी शक्तिशाली नहीं बनती, जो सहज और बहुत जल्दी बाप से कनेक्शन जोड़ने के निमित्त बनेगी, लेकिन जिनके निमित्त बनती हैं, उनको मुश्किल जरूर अनुभव होगा। मेहनत, मुश्किल और समय लगेगा। क्या करें, कैसे करें, यह हो सकता है अथवा नहीं-उनके सामने यह क्वेश्चन आवेंगे; लेकिन विशेष आत्मा अपनी विशेषता के आधार से, अपनी शक्ति के आधार से यह क्यों और कैसे के क्वेश्चन समाप्त कर देंगी। वे मुश्किल और मेहनत का अनुभव नहीं करने देंगी। आने से ही हरेक यह अनुभव करेंगे कि यह तो मेरा गंवाया हुआ परिवार या भूला हुआ बाप, मुझे फिर से मिल गया है। भूलने पर आश्चर्य लगेगा कि मैं भूला कैसे? ऐसे बाप को, मैं भूल गया! यह है मुख्य अन्तर, विशेष आत्माओं और साधारण आत्माओं का। साधारण आत्मा प्रयत्न करती है कि बाप से डायरेक्ट कनेक्शन जुट जावे। लेकिन आजकल की निर्बल आत्माओं को सिर्फ अपना बल नहीं चाहिए क्योंकि वे सिर्फ ज्ञान और योग के आधार से नहीं चल पाते हैं बल्कि उन्हों को निमित्त बनी हुई आत्माओं की शक्ति का सहयोग चाहिए, जिससे कि वह जम्प दे सकें।
दिन प्रतिदिन आपके पास जो आत्मायें आयेंगी वह अति निर्बल स्टेज वाली ही आवेंगी। जैसे पहले ग्रुप में आप लोग निकले तो पहले ग्रुप की शक्ति, हिम्मत और दूसरे ग्रुप की शक्ति, हिम्मत और तीसरे ग्रुप की शक्ति और हिम्मत में अन्तर दिखाई देता है ना। ऐसे ही फिर नई-नई आत्माएं जो अब निकल रही हैं उनकी शक्ति और हिम्मत में भी अन्तर दिखाई देता है। तन से भी और मन से भी हर ग्रुप में अन्तर दिखाई देता जाता है। यह तो सबका अनुभव है ना? हिसाब से सोचो कि अब जो लास्ट की आत्मायें आवेंगी, वह क्या होंगी? अति निर्बल होंगी ना? तो, ऐसी निर्बल आत्माओं को सिर्फ ज्ञान दे दिया, उन्हें कोर्स करा दिया व योग में बैठा दिया, वे इससे आगे नहीं बढ़ेगी। अब तो निमित्त बनी हुई आत्माओं को, अपनी प्राप्त की हुई शक्तियों के आधार से ही निर्बल आत्माओं को सहयोग देते हुए, आगे बढ़ाना पड़ेगा। इसके लिये अभी से ही अपने में सर्वशक्तियों का स्टॉक जमा करो। जैसे स्थूल भोजन का लंगर लगता है ना, ऐसे ही आपके पास शक्ति लेने का दृश्य बहुत जल्दी सामने आयेगा अर्थात् आप लोगों को भी शक्ति देने का लंगर लगाना पड़ेगा। उसके लिये आप को अपने में पहले से ही स्टॉक जमा करना पड़ेगा। जो गायन है-द्रोपदी के देगड़े का। द्रोपदियाँ तो आप सब हो न? द्रोपदी अर्थात् यज्ञमाता का देगड़ा दोनों बातों में प्रसिद्ध है। एक तो स्थूल साधनों की कोई कमी नहीं और दूसरे सर्वशक्तियों की कोई कमी नहीं। सर्व-शक्तियों से सम्पन्न देगड़ा कब खाली नहीं होता। भल कितने भी आ जाएं। कितना बड़ा लंगर लग जावे कोई भूखा नहीं जा सकता।
आगे चल कर, जब प्रकृति के प्रकोप होंगे और आपदायें आवेंगी, तब सबका पेट भरने के लिये कौन-सी चीज काम आयेगी? उस समय सबके अन्दर कौन-सी भूख होगी? अन्न की कमी या धन की? तब तो, शान्ति और सुख की भूख होगी। क्योंकि प्राकृतिक आपदाओं के कारण, धन होते हुए भी, धन काम में नहीं आयेगा। साधन होते हुए भी साधनों द्वारा प्राप्ति नहीं हो सकेगी। जब सब स्थूल साधनों से व स्थूल धन से प्राप्ति की कोई आशा नहीं रहेगी, तब उस समय सबका संकल्प क्या होगा कि कोई शक्ति देवे, जो कि इन आपदाओं से पार हो सकें और कोई हमें शान्ति देवे। तो ऐसे-ऐसे लंगर बहुत लगने वाले हैं। उस समय पानी की एकादा बूंद भी कहीं दिखाई नहीं देगी। अनाज भी प्राकृतिक आपदाओं के कारण खाने योग्य नहीं होगा, तो फिर उस समय आप लोग क्या करेंगे? जब ऐसी परीक्षायें आपके सामने आयें तो, उस समय आप क्या करेंगे? क्या ऐसी परीक्षाओं को सहन करने की इतनी हिम्मत है? क्या उस समय योग लगेगा या कि प्यास लगेगी। अगर कूएँ भी सूख जावेंगे, फिर क्या करेंगे? जब यह विशेष आत्माओं का ग्रुप है, तो उनका पुरूषार्थ भी विशेष होना चाहिए ना? क्या इतनी सहनशक्ति है? यह क्यों नहीं समझते-जैसा कि गायन है कि चारों ओर आग लगी हुई थी, लेकिन भट्ठी में पडे हुए पूंगरे, ऐसे ही सेफ रहे, जो कि उनको सेक तक नहीं आया। आप इस निश्चय से क्यों नहीं कहते? अगर योग-युक्त हैं, तो भल नजदीक वाले स्थान पर नुकसान भी होगा, पानी आ जायेगा लेकिन बाप द्वारा जो निमित्त बने हुए स्थान हैं, वह सेफ रह जावेंगे, यदि अपनी गफलत नहीं है तो। अगर अभी तक कहीं भी नुकसान हुआ है, तो वह अपनी बुद्धि की जजमेन्ट की कमजोरी के कारण। लेकिन अगर महारथी, विशाल बुद्धि वाले और सर्वशक्तियों के वरदान प्राप्त करने वाले, किसी भी स्थान में रहते हैं, तो वहाँ सूली से काँटा बन जाता है अर्थात् वे सेफ रह जाते हैं। कैसा भी समय हो यदि शक्तियों का स्टॉक जमा होगा, तो शक्तियाँ आपकी प्रकृति को दासी जरूर बनावेंगी अर्थात् साधन स्वत: जरूर प्राप्त होंगे।
शुरू-शुरू में अखबार में निकाला गया था कि ‘ओम् मण्डली इज दि रिचेस्ट इन दि वर्ल्ड (Om Mandali Is Richest In The World)’ तो यही बात फिर अन्त में, सबके मुख से निकलेगी। लेकिन यह अटेन्शन जरूर रखना कि अगर किसी भी शक्ति की कमी होगी, तो कहीं-न-कहीं धोखा खाने का भी अनुभव होगा। इसलिये पुरूषार्थ अभी इन महीन बातों पर ही करना चाहिए। किसी को दु:ख तो नहीं दिया, हैन्डालिंग करना आया अथवा नहीं। यह तो सब छोटी-छोटी बातें हैं। मुरब्बी बच्चों का पुरूषार्थ अभी तक इन बातों का नहीं होना चाहिए। अभी का पुरूषार्थ सर्व-शक्तियों के स्टॉक के भरने का होना चाहिए। मुरब्बी बच्चों के रोज के चार्ट की चैकिंग, यह नहीं होनी चाहिए कि किसी पर क्रोध तो नहीं किया या कोई असन्तुष्ट तो नहीं हुआ, ऐसी मोटी-मोटी बातें चैक करना-यह तो घुड़सवार व प्यादों का काम है। मुरब्बी बच्चों का पुरूषार्थ अभी तक इन बातों का नहीं होना चाहिए। अभी का पुरूषार्थ सर्व-शक्तियों के भरने का होना चाहिए। कोई भी एक शक्ति का न होना अर्थात् मुरब्बी बच्चों की लिस्ट से निकलना। ऐसे नहीं कि छ: शक्तियाँ तो मेरे में हैं ही और आठ शक्तियों में से दो नहीं हैं, तो फिर 50% से तो आगे हो गये हैं। इसमें भी खुश नहीं होना है। अष्ट शक्तियाँ तो मुख्य कहा जाता है। लेकिन होनी तो सर्व-शक्तियाँ चाहिए। सिर्फ अष्ट शक्तियाँ तो नहीं हैं ना, हैं तो बहुत। बाकी यह तो सिर्फ सुनाने के लिये सहज हो जाये इसलिये अष्ट शक्तियाँ सुना दी गई हैं। अब कोई एक शक्ति को भी कमी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि अब जिस भी शक्ति की कमी होगी, वही परीक्षा के रूप में आयेगी। अर्थात् हरेक के सामने ड्रामानुसार पेपर में वही क्वेश्चन आयेगा। इसलिये सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पन्न और मास्टर सर्वशक्तिमान् बनो। अगर एक शक्ति की भी कमी है, तो फिर शक्तियाँ कहेंगे न कि सर्वशक्तियाँ। मुरब्बी बच्चे अर्थात् मास्टर सर्वशक्तिमान्। मुरब्बी बच्चा अर्थात् मर्यादा पुरूषोत्तम। जो है ही मर्यादा पुरूषोत्तम, उसका संकल्प भी विपरीत नहीं चल सकता। जब आप लोगों की चलन को मर्यादा व ईश्वरीय नियम समझ कर चलते हैं, तो आप लोग भी मर्यादा पुरूषोत्तम हुए ना?
बाप-दादा ने इस संगठन की रूप-रेखा सुनी भी और देखी भी। बहुत अच्छा देखा और बहुत अच्छा सुना। हरेक ने अपना घाट तो बहुत अच्छा तैयार किया है। जब जेवर बनते हैं तो पहले सोने का घाट तैयार करते हैं, फिर ही उसमें हीरे जवाहिरात जुड़ते हैं। तो जेवर तो बहुत अच्छे-अच्छे ज्वेलर्स ने तैयार किये, डिजाइन भी बहुत अच्छे बनाए, लेकिन उनमें जो रत्न जड़ने हैं, वह अभी तक नहीं जड़े। वह जड़ित तब होंगे जब प्लैन को प्रैक्टिकल में लावेंगे। जेवर अच्छे तैयार किये हैं अर्थात् प्लैन अच्छे बनाये हैं। अब यह देखना है कि हरेक कितने अमूल्य हीरों से अपने को अर्थात् जेवरों को श्रेष्ठ बनाते हैं। अभी वह रिज़ल्ट देखेंगे। नॉलेजफुल तो बने हो, लेकिन समय के अनुरूप अब आवश्यकता है, पॉवरफुल बनने की। नॉलेजफुल के तो जेवर तैयार किये हैं और अब पॉवरफुल के नग तैयार करके लगाने बाकी हैं। घेराव अच्छा डाला है। एकदो के हाथ में हाथ मिलाया है, तब तो घेराव हुआ है ना? अभी आगे क्या करना है? यदि कभी भी हाथ मिलाने वाला, हाथ कमजोर हो जाये व थक जाए तो भी, उसको कमजोर बनने नहीं देना वा ऐसे थके हुए हाथ को भी अथक बनाता, तब ही सफलता होगी। इस संगठन की सफलता, सिर्फ स्वयं को बनाने में नहीं है अपितु संगठन को मजबूत करना, सर्व-साथियों को उमंग व उत्साह में लाना, यह है इस संगठन की सफलता। जब दूसरे की कमी को, अपनी कमी समझेंगे तब ही संगठन को सफल बना सकेंगे। एक की कमी को, थकावट व कमजोरी को देखते हुए, स्वयं को ऐसे के संग की लहर में नहीं लाना है। फलानी ऐसे करती है तो फिर मैं भी कर लूँ। फलानी ने किया, यदि मैंने भी किया तो क्या हुआ? यह संकल्प स्वप्न तक भी नहीं आने देना, तब समझो कि सफलता है।
मधुबन निवासी भी लक्की हैं। मधुबन निवासियों की रिज़ल्ट उमंग, उत्साह और अथकपन में अच्छी है, बाकी आगे के लिये और भी मायाप्रुफ बनो। जैसे वाटरप्रूफ होता है ना? ऐसे ही मधुबन निवासियों को मायाप्रूफ बनना है, समझा।
ऐसे स्वयं को और सर्व-आत्माओं को शक्तिशाली बनाने वाले, निर्बल को बलवान बनाने वाले, संगठन में दूसरे की कमी को स्वयं की कमी समझकर मिटाने वाले, सर्वशक्तियों के भण्डार मास्टर सर्वशक्तिमान्, सदा स्वयं से और सर्व से संतुष्ट रहने वाली संतुष्ट मणियाँ, बाप-दादा और सर्व के दिल पर विजय प्राप्त करने वाले अर्थीत सर्व-आत्माओं के संस्कार और स्वभाव को बाप-समान बनाने वाले, ऐसे विजयी रत्नों को बाप-दादा का याद प्यार, गुड नाइट और नमस्ते!
मुरली का सार
(1) मुरब्बी बच्चे स्नेही होने के नाते बाप के हर कार्य में सहयोगी और बाप के सर्व-गुणों व शक्तियों को साकार करने वाले होते हैं। ऐसे बच्चों की स्टेज सदा योग-युक्त और युक्ति-युक्त होती है।
(2) अब तो निमित्त बनी हुई विशेष आत्माओं को, अपनी प्राप्त की हुई शक्तियों के आधार से, निर्बल आत्माओं को सहयोग देते हुए ही आगे बढ़ना पड़ेगा। इसके लिये अभी से ही अपने में सर्व-शक्तियों का स्टॉक जमा करो।
(3) अगर महारथी, विशाल बुद्धि वाले और सर्व-शक्तियों का वरदान प्राप्त करने वाले, किसी भी स्थान में रहते हैं, तो उनके लिये सूली से काँटा बन जाता है अर्थात् विपत्ति व परीक्षाओं के समय वे सुरक्षित रहते हैं।
(4) जब दूसरे की कमी को अपनी कमी समझेंगे तब ही संगठन को मजबूत व सफल बना सकेंगे।