03-08-75 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
शिव-शक्ति व पाण्डव सेना को तैयार होने के लिये सावधानी
माया से युद्ध में विजय प्राप्त कराने वाले, सर्व आत्माओं का कल्याण करने वाले, सर्व प्रकार के बन्धनों व आकर्षणों से परे रहने वाले, सर्वोच्च सेनापति शिव बाबा ने रूहानी योद्धाओं के प्रति मनोहर शिक्षायें व सावधानियाँ देते हुए ये मधुर और अनमोल महावाक्य उच्चारे -
सभी योग-युक्त और युक्तियुक्त स्थिति में स्थित होते हुए अपना कार्य कर रहे हैं? क्योंकि वर्तमान समय-प्रमाण संकल्प, वाणी और कर्म ये तीनों ही युक्तियुक्त चाहिए। तब ही सम्पन्न व सम्पूर्ण बन सकेंगे। चारों तरफ का वातावरण योग-युक्त और युक्तियुक्त हो। जैसे युद्ध के मैदान में जब योद्धे युद्ध के लिये दुश्मन के सामने खड़े हुए होते हैं तो उनका अपने ऊपर और अपने शस्त्र के ऊपर अर्थात् अपनी शक्तियों के ऊपर कितना अटेन्शन रहता है। अभी तो समय समीप आता जा रहा है, यह मानो युद्ध के मैदान में सामने आने का समय है। ऐसे समय में चारों ओर सर्व-शक्तियों का स्वयं में अटेन्शन चाहिए। अगर जरा भी अटेन्शन कम होगा तो जैसे-जैसे समय-प्रमाण चारों ओर टेन्शन बढ़ता जाता है ऐसे ही चारों ओर टेन्शन के वातावरण का प्रभाव, युद्ध में उपस्थित हुए रूहानी पाण्डव सेना में भी पड़ सकता है। दिनप्रतिदिन जैसे सम्पूर्णता का समय नजदीक आता जायेगा तो दुनिया में टेन्शन और भी बढ़ेगा, कम नहीं होगा। खींचातान के जीवन का चारों ओर अनुभव होगा जैसे कि चारों ओर से खींचा हुआ होता है। एक तरफ से प्रकृति की छोटी-छोटी आपदाओं का नुकसान का टेन्शन, दूसरी तरफ इस दुनिया की गवर्नमेन्ट के कड़े लॉज का टेन्शन, तीसरी तरफ व्यवहार में कमी का टेन्शन, और चौथी तरफ जो लौकिक सम्बन्धी आदि से स्नेह और फ्रीडम होने के कारण खुशी की भासना अल्प काल के लिये रहती है वह भी समाप्त हो कर भय की अनुभूति के टेन्शन में, चारों ओर का टेन्शन लोगों में बढ़ना है। चारों ओर के टेन्शन में आत्मायें तड़फेंगी। जहाँ जायेंगी वहाँ टेन्शन। जैसे शरीर में भी कोई नस खिंच जाती है तो कितनी परेशानी होती है। दिमाग खिंचा हुआ रहता है। ऐसे ही यह वातावरण बढ़ता जायेगा। जैसे कि कोई ठिकाना नजर नहीं आयेगा कि क्या करें? अगर हाँ करे तो भी खिंचावट - ना करें तो भी खिंचावट - कमायें तो भी मुश्किल, न कमायें तो भी मुश्किल। इकठ्ठा करें तो भी मुश्किल, न करे तो भी मुश्किल। ऐसा वातावरण बनता जायेगा। ऐसे टाइम पर चारों ओर के टेन्शन का प्रभाव रूहानी पाण्डव सेना पर न हो। स्वयं को टेन्शन में आने की समस्यायें न भी हों, लेकिन वातावरण का प्रभाव कमज़ोर आत्मा पर सहज ही हो जाता है। भय का सोच कि क्या होगा? कैसे होगा? इन बातों का प्रभाव न हो - उसके लिये कोई-न-कोई बीच-बीच में ईश्वरीय याद की यात्रा का विशेष प्रोग्राम मधुबन द्वारा ऑफिशियल जाते रहना चाहिए। जिससे कि आत्माओं का किला मजबूत रहेगा। आजकल सर्विस भी बहुत बढ़ेगी। लेकिन बढ़ने के साथ-साथ युक्ति-युक्त भी बहुत चाहिए।
आजकल कोई सभी ज्ञानी तू आत्मा बनने नहीं आते हैं। एक क्वालिटी है बाप समान बनने वाली, जो बाप स्वरूप मास्टर बन जाते हैं। तो फर्स्ट क्वॉलिटी है बाप समान बनना, दूसरी क्वालिटी है सिर्फ बाप के सम्बन्ध में रहने वाले और तीसरी क्वालिटी है सिर्फ बाप व सेवा के सम्पर्क में रहने वाले। आजकल सम्बन्ध और सम्पर्क में रहने वाले ज्यादा आयेंगे। स्वरूप बनने वाले कम आयेंगे। सब एक जैसे नहीं निकलेंगे। दिन-प्रतिदिन क्वालिटी भी कमज़ोर आत्माओं अर्थात् प्रजा की संख्या ज्यादा आयेगी उन्हें एक ही बात अच्छी लगेगी, दो नहीं लगेगी। सब बातों में निश्चय नहीं होगा। तो सम्पर्क वालों को भी, उन्हों को जो चाहिए-उसी प्रमाण उन्हों को सम्पर्क में रखते रहना है। समय जैसे नाज़ुक आता जायेगा वैसे समस्या प्रमाण भी उनके लिये रेग्युलर स्टुडेण्ट बनना मुश्किल होगा। लेकिन सम्पर्क में ढेर के ढेर आयेंगे। क्योंकि लास्ट समय है न। तो लास्ट पोज कैसा होता है? जैसे पहले उछल, उमंग, उत्साह होता है - वह विरला कोई का होगा। मैजॉरिटी सम्बन्ध और सम्पर्क वाले आयेंगे। तो यह अटेन्शन चाहिए। ऐसे नहीं कि सम्पर्क वाली आत्माओं को न परखते हुए सम्पर्क से भी उन्हें वंचित कर देवें। खाली हाथ कोई भी न जाये, नियमों पर भल नहीं चल पाते हैं, लेकिन वह स्नेह में रहना चाहते हों, तो ऐसी आत्माओं का भी अटेन्शन ज़रूर रखना है। समझ लेना चाहिए कि यह ग्रुप इसी प्रमाण तीसरी स्टेज वाला है, तो उन्हों को भी उसी प्रमाण हैंडलिंग मिलनी चाहिए। तो समय के प्रमाण वातावरण को पावरफुल बनाने की आवश्यकता है।
ब्राह्मण बच्चों की साधारण रीति से दिनचर्या बीते वह आजकल के समय प्रमाण न होना चाहिये, नहीं तो वह प्रभाव बढ़ जायेगा। इसलिये विशेष रीति से वातावरण को याद की यात्रा से पावरफुल बनाने में सब बच्चों का अटेन्शन खिंचवाना चाहिए। अपने को उस दुनिया के वातावरण से कैसे बचा सकें? वह स्टेज क्या है? कर्म योगी होते हुए भी योगीपन की स्टेज किसको कहा जाता है? इसी प्रकार की प्वाइण्ट्स के ऊपर अब विशेष अटेन्शन देना है। क्योंकि अब ड्रामानुसार चारों ओर बड़ी-बड़ी सर्विस करने का टाइम कुछ समय के लिये मर्ज है ना। बड़े-बड़े प्रोग्रामस बाहर के नहीं कर पाते हो-तो टीचर्स फ्री हुई-बाहर की सर्विस नहीं तो बाकी रही सेन्टर्स पर आने वालों की सेवा। बाहर की सर्विस से बुद्धि फ्री है। नहीं तो कहते हैं बहुत बिजी रहते हैं - प्लैन्स बनाना, मंथन करना। लेकिन अब तो वह भी नहीं है। तो अब याद की यात्रा की सब्जेक्ट के ऊपर ज्यादा अटेन्शन देना है। कोई-न-कोई प्रोग्राम हर सेन्टर पर चलना चाहिए-जो आने वालों में बल भर जाये। ऐसे समय पर वह भी न्यारे रहे, साक्षी होकर समस्या का सामना करें। उसके लिये याद का बल चाहिए। तो जब तक बाहर की सर्विस का, नये-नये प्लैन्स का फोर्स कम है तो कोई प्वाइन्ट का जोर होना चाहिए। नहीं तो फ्री होकर फिर व्यर्थ का साइड ज्यादा हो जायेगा। सर्विस में बिजी रहने से व्यर्थ की बातों से बचे रहते हैं। अभी वह सर्विस का स्कोप कम है, तो ज़रूर समय बचेगा-वह फिर व्यर्थ वातावरण में समय जायेगा। इसलिये ब्राह्मणों को खबरदार, होशियार करने के लिये व स्वयं की सेफ्टी के लिये कुछ ऐसी प्वाइन्ट्स व क्लासेज के प्रोग्राम्स बनाओ, जिससे वह यह समझें कि हमें मधुबन लाइट हाऊस से विशेष लाइट आ रही है। अच्छा।
कारोबार तो ड्रामानुसार ठीक ही चल रही है। अभी की कारोंबार से राज्य चलाने के संस्कार बढ़ते जा रहे हैं ना। राज-सिंहासन और यह है राज-आसन। राज्य करने वाले बनकर फिर उस सिंहासन पर बैठेंगे। राज्य करने वाले अर्थात् अधिकारी बन गये। कोई भी आकर्षण के, कर्म भोग या कर्म इन्द्रियों के अधीन न हो अधिकारी बनना है। अभी है राज-आसन। योग के लिये आसन होता है ना, आसन पर स्थित होते हैं। आसन होता ही है बैठने के लिये, स्थिति होने के लिये। तो स्थिति में स्थित होना अर्थात् आसन पर बैठना। तो जितना-जितना आसन पर बैठने का अभ्यास होगा, उतना ही राज-सिंहासन पर बैठने का अभ्यास प्राप्त होगा। अभ्यास हो रहा है ना। नैचुरल रूप लेता जा रहा है। करना नहीं पड़ता, लेकिन हो ही जाता है। स्वभाव ही ऐसा हो गया है। जैसे और कोई स्वभाव के वश कोई भी कार्य करना स्वत: हो ही जाता है, वैसे ही यह भी स्वभाव हो जाये। अधिकारी बने रहने का स्वभाव। योग लगाने का संकल्प किया और हुआ। बाबा कहा और योग लगा। यही समीपता की स्थिति है। बैठे ही आसन पर हैं। जैसे सिंहास पर बैठा हुआ कब भूल नहीं सकता कि मैं राजा हूँ - ऐसे ही आसन पर अर्थात् इस स्थिति पर स्थित हुआ यह भूल नहीं सकता कि हम अधिकारी हैं।
सभी यथार्थ और युक्ति-युक्त हैं? थोड़ा-बहुत तो होता ही है और होना भी चाहिए। नहीं तो लास्ट पेपर्स कैसे होंगे? यह भी प्रैक्टिकल पेपर्स ही हैं। यह पेपर्स ही मार्क्स जमा कराते हैं। मार्क्स जमा होते-होते पास विद ऑनर की लिस्ट में आयेंगे। यह जो कुछ होता है वह पेपर्स के मार्क्स जमा होने के लिए हैं। सब बातों में जमा होना चाहिए न सिर्फ याद की यात्रा में नहीं, लेकिन चारों सब्जेक्टस में मार्क्स जमा होनी चाहिए। तब ही पास विद ऑनर होंगे।
सफलता तो हर कार्य में पहले से ही नूंधी हुई है। फिर चाहे पर्दे के अन्दर हो, चाहे पर्दे के बाहर हो। कोई हालत में पर्दे के अन्दर सफलता होती है और कोई हालत में प्रत्यक्ष सफलता होती है। है तो दोनों हालत में सफलता व प्रत्यक्षता। कुछ समय गुप्त को भी देखना पड़ता है। छिपे हुए को प्रत्यक्ष होने में कुछ समय लगता है। प्रत्यक्ष तो उसी समय दिखाई पड़ती है। यह भल छुपी हुई है, परन्तु है तो सफलता ही। वह तो मिट नहीं सकती। अच्छा।