01-10-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


एकान्त, एकाग्रता और दृढ़-संकल्प से सिद्धि की प्राप्ति

सिद्धि स्वरूप बनाने वाले, भविष्य फल के साथ-साथ वर्तमान प्रत्यक्ष फल देने वाले, प्राणेश्वर शिव बाबा बोले -

आज बापदादा कोई-कोई विशेष आत्माओं को किसी कार्य-अर्थ इस संगठन से चुन रहा है। किस कार्य-अर्थ चुन रहा है वह समझते हो? आज बापदादा  सृष्टि की सैर पर निकले, एक तो खास विदेशी बच्चों द्वारा विदेश सेवा और भिन्न-भिन्न प्रकार के कनवर्ट (दूसरे धर्म में बदले हुए) हुए बच्चों को देखने के लिए। सेवा-केन्द्र और सेवाधारी बच्चे, जिन्हों के मन में दिनरात प्रत्यक्षता का बोल बाला करने का एक ही संकल्प है। ऐसे सेवाधारी अथक लगन से दिन-रात मेहनत में लगे हुये हैं। बच्चों को देख बापदादा हर्षित होते थे। नए-नए बच्चों की फास्ट लगन की उमंग की, मिलने अर्थ तड़पने की, पतंगे समान बाप पर हाई-जम्प लगाने की सूरत और सीरत देखी। गुलदस्ता अच्छा था - वैरायटी फूलों की शोभा सुन्दर लग रही थी - कलियाँ और पत्ते वैरायटी देखे कई आत्मायें मीठे उलहाने वाली भी देखी। कई आत्मायें मिलन की खुशी में अंसुवन मोती की मालायें बापदादा के प्रति पहनाते हुए भी देखी। ऐसी पहचानती हुई मूर्त जो बार-बार मिलन के गीत गाने वाली भी थी और फिर विदेश का सैर किया।

दूसरा था चारों ओर की अज्ञानी व भक्त आत्माओं का सैर। उसमें क्या देखा? एक तरफ अनेक आत्माएँ अपने शरीर निर्वाह-अर्थ जीवन के साधनों अर्थ किसी-न-किसी यन्त्रों द्वारा स्वयं में व्यस्त थी। साथ-साथ कुछ आत्मायें विनाश- अर्थ यन्त्र रिफाइन करने में व्यस्त थी। दूसरी तरफ कई गृहस्थी और भक्त आत्मायें अपने जन्त्र-मन्त्र से अपनी भावना का फल पाने के लिए व अल्पकाल की प्रत्यक्ष प्राप्ति करने के लिए अपने-अपने कार्य में व्यस्त थी। इन सबमें विशेष भारत और कुछ विदेश में भी सिद्धि प्राप्त करने की कामना से देवियों का विशेष आह्वान कर रही थी। मैजॉरिटी  सिद्धि के पीछे ज्यादा व्यस्त थी। सिद्धि प्राप्त करने के लिए स्वयं को समर्पण करने को भी तैयार हो जाते। सिद्धि की विधि में मुख्य दो बातें करते हैं। कोई भी सिद्धि के लिए एक तो एकान्त दूसरी एकाग्रता, दोनों की विधि द्वारा सिद्धि को पाते हैं।

तो आज बापदादा सिद्धि स्वरूप बच्चों को चुन रहे थे। जिन्हों के यादगार चित्रों द्वारा भी अब तक अनेकों को अनेक सिद्धियाँ प्राप्त हो रही हैं। उस समय सिद्धि की प्राप्ति का दृश्य देखने वाला होता है। जैसे आप लोगों को याद द्वारा अतिइन्द्रिय सुख का अनुभव होता है वैसे ही भक्तों को भी सिद्धि प्राप्त करने के समय के अल्पकाल का सुख उस समय के लिए कम अनुभव नहीं होता। ऐसा सैर करने के बाद साकार स्वरूप-धारी बच्चों को देखा। भक्त जिन देवियों द्वारा सिद्धि प्राप्त कर रहे हैं, वही देवियाँ कब स्वयं भी सिद्धि प्राप्त करने का संकल्प रख रही हैं। यह क्यों? चलते-चलते यह संकल्प ज़रूर उत्पन्न होता है, कि मेहनत करते हुए भी सिद्धि क्यों नहीं? समय प्रमाण सम्पूर्ण स्टेज की प्रत्यक्षता कम क्यों? तो बाप भी प्रश्न  करते हैं - क्यों? सिद्धि स्वरूप की मुख्य बात कौन-सी अपनानी पड़े? जैसे कल्प पहले पाण्डवों का गायन है कि सेकेण्ड में जहाँ तीर लगाया वहाँ गंगा प्रगट हुई अर्थात् सेकेण्ड में असम्भव भी सम्भव प्रत्यक्ष फल के रूप में दिखाई दिया। इसको ही सिद्धि कहा जाता है। यह नहीं होता, क्योंकि प्रत्यक्ष-फल की प्राप्ति के लिए हर सेकेण्ड अपनी सम्पूर्ण सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप की स्मृति प्रत्यक्ष संकल्प रूप में नहीं रहती। मैं पुरुषार्थी हूँ, सम्पन्न हो ही जाऊंगा, होना तो ज़रूर है-नम्बरवार होना ही है। हमारा काम है मेहनत करना, वह तो यथाशक्ति कर ही रहे हैं - यह हर सेकेण्ड का संकल्प रूपी बीज सर्व शक्ति सम्पन्न नहीं होता है। उस समय के संकल्प में हो ही जायेगा अर्थात् भविष्य का संकल्प भरा हुआ होता है। दृढ़ निश्चय व प्रत्यक्ष फल के रस का बल भरा हुआ न होने के कारण सिद्धि भी प्रत्यक्ष नहीं। लेकिन दो घड़ी बाद, घण्टे बाद या कुछ दिनों बाद भविष्य प्राप्ति हो जाती है - तो इसका कारण समझा? आपके संकल्प रूपी बीज के कारण ही प्रत्यक्ष सिद्धि नहीं होती। अनेक प्रकार के साधारण संकल्प होते हैं। जैसे कि समय प्रमाण होना ही है, अभी सारे तैयार कहाँ हुये है? अभी तो आगे के नम्बर ही तैयार नहीं हुए हैं। फाइनल तो आठ ही होने हैं। ऐसे-ऐसे भविष्य नॉलेज के साधारण संकल्प आपके बीज को कमज़ोर कर देते हैं और यही भविष्य संकल्प जो उस समय यूज़ नहीं करना चाहिए, लेकिन उस समय न सोचते हुए भी यूज़ कर लेते हो - जिस कारण प्रत्यक्ष फल भी भविष्य फल के स्वरूप में परिवर्तन हो जाता है।

तो प्रत्यक्ष-फल पाने के लिए ही संकल्प रूपी बीज को दृढ़ निश्चय रूपी जल से कि यह तो हुआ ही पड़ा है - होना ही है - इस जल से पॉवर फुल बनाओ। तब ही प्रत्यक्ष सिद्धि-स्वरूप हो जायेंगे। जैसे आपके यादगार चित्रों द्वारा सिद्धि प्राप्त करने वालों की विशेष दो बातों की विधि सुनाई। एकान्तवासी और एकाग्रता। यही विधि कल्प पहले मुआफिक साकार में अपनाओ। एकाग्रता कम होने के कारण ही दृढ़ निश्चय की कमी होती है। एकान्तवासी कम होने के कारण ही साधारण संकल्प बीज को कमज़ोर बना देता है। इसलिए इस विधि द्वारा सिद्धि-स्वरूप बनो, जो सैर पर देखे वही आप हो ना? तो यादगार रूप को अब याद रूप बनाओ। पाण्डवों की यादगार से भी भक्त लोग सिद्धि माँगते हैं। अच्छा।

ऐसे अनेक आत्माओं को सिद्धि प्राप्त कराने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप मास्टर विधाता और वरदाता, अपने हर संकल्प द्वारा अनेकों की अनेक कामनायें पूर्ण करने वाले सर्व प्राप्ति स्वरूप ऐसे सर्व-महान् आत्माओं को, विदेशी आत्माओं सहित सर्व को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

इस मुरली के विशेष तथ्य

1. किसी भी सिद्धि के लिये एक तो एकान्त और दूसरे एकाग्रता दोनों की विधि द्वारा सिद्धि की प्राप्ति होती है। 2. दृढ़ निश्चय की कमी व हर सेकेण्ड अपनी सम्पूर्ण सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप की स्मृति प्रत्यक्ष संकल्प रूप में नहीं रहती है, इसी कारण सिद्धि भी प्रत्यक्ष नहीं होती।

3. प्रत्यक्ष फल पाने के लिये संकल्प रूपी बीज को दृढ़ निश्चय रूपी जल से पॉवरफुल बनाओ तो प्रत्यक्ष सिद्धि स्वरूप हो ही जायेंगे।