03-10-75 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
विशाल बुद्धि
बेगमपुर के बादशाह बनाने वाले, सर्व खुशियों के खज़ानों की चाबी प्रदान करने वाले शिव बाबा बच्चों के प्रति बोले:-
सभी अपने को विधाता बाप द्वारा विधि और विधान को जानने वाले समझते हो? विधि और विधान को जानने वाले हर संकल्प और हर कर्म में सिद्धि स्वरूप होते हैं। ऐसे अपने को अनुभव करते हो? सिद्धि स्वरूप अर्थात् बेगमपुर का बादशाह। भविष्य राज्य-भाग्य प्राप्त करने के पहले वर्तमान समय भी बेगमपुर के बादशाह हो। अर्थात् संकल्प में भी गम अर्थात् दु:ख की लहर न हो, क्योंकि दु:खधाम से निकल अब संगमयुग पर खड़े हो। ऐसे संगमयुगी बेगमपुर के बादशाह अपने को समझते हो ना? बेगमपुर का बादशाह अर्थात् सर्व खुशियों के खज़ाने का मालिक। खुशियों का खज़ाना ब्राह्मणों का जन्मसिद्ध अधिकार है। इस अधिकार के कारण ही आज श्रेष्ठ आत्माओं के नाम और रूप का सत्कार होता रहता है। ऐसे बेगमपुर के बादशाह, जिन्हों का नाम लेने से ही अनेक आत्माओं के अल्पकाल के लिए दु:ख दूर हो जाते हैं, जिनके चित्रों को देखते चरित्रों का गायन करते हैं और दु:खी आत्मा खुशी का अनुभव करने लगती हैं, ऐसे चैतन्य आप स्वयं बेगमपुर के बादशाह हो?
अपने खज़ानों को जानते हो? सर्व खज़ानों को स्मृति में रखते हुए सदा हर्षित अर्थात् सदा प्रकृति और पाँच विकारों के आक्रमण से परे। इसी खुशी के खज़ानों से सम्पन्न-स्वरूप ‘‘एक बाप दूसरा न कोई ‘‘ - ऐसा अनुभव करते हो? खज़ानों की चाबी तो मजबूत रखते हो ना? चाबी को खो तो नहीं देते हो? समय और समय के प्रमाण आत्माओं की सूक्ष्म पुकार सुनने में आती है वा अपने में ही सदा बिजी रहते हो? कल्प पहले वाले आप के भक्त आत्मायें अपने-अपने इष्ट का आह्वान कर रही हैं। ‘‘आ जा, आ जा’’ की धुन लगा रही हैं। दिन-प्रतिदिन अपनी पुकार साजों से सजाते हुए अर्थात् खूब गाजे बाजे बजाते हुए जोर शोर से प्कारना शुरू करते हैं। आप सभी को राजी करने के अनेक साधन अपनाते रहते हैं। तो चैतन्य में गुप्त रूप में सुनते हुए, देखते हुए रहम नहीं आता वा अब तक अपने ऊपर रहम करने में बिज़ी हो? विश्व कल्याणकारी, महादानी, वरदानी स्वरूप में स्थित होने से ही रहम आयेगा। स्वयं को जगत्-माता व जगत पिता के स्वरूप में अनुभव करने से ही रहम उत्पन्न होगा। किसी भी आत्मा का दु:ख व भटकना सहन नहीं होगा। लेकिन इस स्वरूप में बहुत कम समय ठहरते हो। समय प्रमाण सेवा का स्वरूप बेहद और विशाल होना चाहिए। बेहद का स्वरूप कौन-सा है? अभी जो कर रहे हो, इसको बेहद कहेंगे? मेला बेहद का हुआ। पहले की भेंट में अब बेहद समझते हो लेकिन अंतिम बेहद का स्वरूप क्या है?
समय की रफ्तार प्रमाण सिर्फ सन्देश देने के कार्य में भी अब तक कितने परसेन्ट को सन्देश दिया है? सतयुग के आदि की नौ लाख प्रजा आपके सामने दिखाई देती है। आदि की प्रजा की भी कुछ विशेषताएँ होंगी ना? ऐसी विशेषता-सम्पन्न आत्मायें सभी सेवा-केन्द्रों में भी दिखाई देती हैं कि वह भी अभी घूंघट में ही हैं? सोलह हजार की माला दिखाई देती है? टीचर्स ने सोलह हजार की माला तैयार की है? घूंघट खोलने की डेट कौन-सी है? समय प्रमाण अब होना तो है ही लेकिन ऐसे समझकर भी अलबेले मत बनना। अब बेहद के प्लैन्स बनाओ। बेहद के प्लैन्स अर्थात् जिन भी आत्माओं की सेवा करते हो वह हर-एक आत्मा अनेकों के निमित्त बनने वाली हो। एक-एक आत्मा बेहद की आत्माओं की सेवा के प्रति निमित्त बने। अब तक तो आप स्वयं एक-एक आत्मा के प्रति समय दे रहे हो। आप ऐसी ही आत्माओं की सेवा करो जो वह आत्मा ही अनेकों की सेवा-अर्थ निमित्त बनें। उन के नाम से सेवा हो, जैसे कई आत्मायें अपने सम्बन्ध, सम्पर्क और सेवा के आधार पर अनेकों में प्रसिद्ध होती हैं अर्थात् उनके गुणों और कर्त्तव्य की छाप अनेकों प्रति पहले से ही होती है इसमें सिर्फ धनवान की बात नहीं वा सिर्फ पोजीशन की बात नहीं। लेकिन कई साधारण भी अपने गुण और सेवा के आधार पर अपनी-अपनी फील्ड में प्रसिद्ध होते हैं। चाहे राजनीतिक हों, चाहे धार्मिक हों लेकिन प्रभावशाली हों। ऐसी आत्माओं को चुनों। जो आप लोगों की तरफ से वे आत्माएँ सेवा-अर्थ निमित्त बनती जायें। ऐसी क्वॉलिटी की सर्विस अभी रही हुई है।
नाम के प्रसिद्ध दो प्रकार के होते हैं - एक पोजीशन की सीट के कारण, दूसरे होते हैं गुण और कर्त्तव्य के आधार पर। सीट के आधार पर नाम वालों का प्रभाव अल्पकाल के लिए पड़ेगा। गुण और कर्त्तव्य के आधार पर आत्माओं का प्रभाव सदाकाल के लिए पड़ेगा। इसलिए रूहानी सेवा के निमित्त ऐसी प्रसिद्ध आत्माओं को निकालो तब थोड़े समय में बेहद की सर्विस कर सकेंगे। इसको कहते है विहंग मार्ग। जो एक द्वारा अनेकों को तीर लग जाए। ऐसी आत्माओं के आने से अनेक आत्माओं का आना ऑटोमेटिकली होता है। तो अब ऐसी सर्विस की रूप-रेखा बनाओ। ऐसी सेवा के निमित्त बनने वाली आत्मायें आप गॉडली स्टूडेन्ट्स की तरह रेग्युलर स्टुडेण्ट्स नहीं बनेंगी, सिर्फ उनका सम्बन्ध और सम्पर्क समीप और स्नेह युक्त होगा। ऐसी आत्माओं को विशाल बुद्धि बन उनकी इच्छा प्रमाण, उन की प्राप्ति का आधार समझते हुए, उनके अनुभव द्वारा अनेकों की सेवा के निमित्त बनाना पड़े। इस बेहद की सेवा-अर्थ परखने की शक्ति की आवश्यकता है। इसलिए अब ऐसी विशाल बुद्धि बन सेवा का विशाल रूप बनाओ - अब देखेंगे ऐसी विशाल सर्विस का सबूत कौन से सपूत बच्चे देते हैं। ऐसी सर्विस के निमित्त बनने वाले राज्य-पद के अधिकारी बनते हैं। कौन-सा ज़ोन नम्बर वन जाता है, यह रिजल्ट से पता पड़ जायेगा। अच्छा!
ऐसे सर्विस-एबल, बेहद के विशाल बुद्धि वाले, संकल्प द्वारा भी अनेक आत्माओं प्रति सेवा करने वाले, ऐसे बाप समान सदा अथक सेवाधारी, सबूत दिखाने वाले सपूत बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
इस मुरली के विशेष तथ्य
1. विधि और विधान को जानने वाले हर संकल्प और हर कर्म में सिद्धि स्वरूप होते हैं।
2. अपने को बेगमपुर के बादशाह समझते हो! अर्थात् संकल्प में भी गम अर्थात् दु:ख की लहर न हो। संगम युगी बेगमपुर के बादशाह अर्थात् सर्व खुशी के खज़ाने का मालिक।
3. समय प्रमाण अब बेहद के प्लैन्स बनाओ अर्थात् जिन भी आत्माओं की सेवा करते हो वह हर-एक आत्मा बेहद की आत्माओं की सेवा के प्रति निमित्त