15-10-75 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
टीचर बनना अर्थात् सौभाग्य की लॉटरी लेना
पाण्डव शिव-शक्ति सेना तथा टीचर्स प्रति अव्यक्त बापदादा के अव्यक्त मधुर महावाक्य: -
आप हर कर्म करके दिखाने के निमित्त हैं। हर टीचर के पीछे देख कर चलने वाले, करने वाले, आगे बढ़ने वालों की कितनी बड़ी लाइन होती है? तो टीचर सही लाइन पर चलाने के निमित्त है। वह रूकती है तो सारी लाइन रूक जाती है, तुम्हारी लाइन की जिम्मेवारी है। ऐसी जिम्मेवारी समझ कर चले तो हर कर्म कैसा करेंगे? वैसे भी कहा जाता है - ज़िम्मेवारी बड़े से बड़ा टीचर है। जैसे टीचर लाइफ बनाते हैं ना, वैसे जिम्मेवारी भी लाइफ बनाने की शिक्षा देती है। तो हर टीचर के ऊपर इतनी विशाल जिम्मेवारी है। ऐसा समझने से भी अपने ऊपर अटेन्शन रहेगा। अब अटेन्शन रहेगा तो बाप और सेवा के सिवा और कुछ बुद्धि में रहेगा ही नहीं। जिम्मेवारी बड़ापन लाती है। यदि जिम्मेवारी नहीं तो बचपन हो जाता है। जिम्मेवारी होने से अलबेलापन समाप्त हो जाता है। टीचर को हर संकल्प, हर कदम पीछे, सोचना चाहिए कि मेरे पीछे कितनी जिम्मेवारी है। ऐसे भी नहीं कि यह जिम्मेवारी भारी करेगी-बोझ रहेगा। नहीं, जितनी यह जिम्मेवारी उठायेगे उतना जो अनेकों की आशीर्वाद मिलती है तो वह बोझ खुशी में बदल जाता है। वह बोझ महसूस नहीं होता, हल्के रहते हैं। जैसे ब्रह्मा बाप निमित्त बने वैसे आप सब निमित्त हैं। तो आप सबको ब्रह्मा बाबा को फॉलो करना चाहिए। जिम्मेवारी और हल्कापन दोनों का बैलेन्स था, ऐसे ही फॉलो फादर। टीचर्स का स्लोगन फॉलो फादर। ‘फॉलो फादर’ नहीं तो सफल टीचर्स नहीं। टीचर का पहला सर्टिफिकेट है स्वयं संतुष्ट रहना और दूसरों को सन्तुष्ट करना। फर्स्ट नम्बर टीचर की निशानी सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना। टीचर सन्तुष्ट क्यों नहीं रहेगी? टीचर्स को चांस कितने हैं? एक चांस समर्पण होने का, दूसरा सेवा का चान्स, तीसरा निमित्त बनने से अपने ऊपर अटेन्शन का चान्स और चौथा जितनों को आप-समान बनायेंगी, उसमें पुरूषार्थ की सफलता का चान्स। सबसे ज्यादा पुरूषार्थ में नम्बर लेने का चान्स। आने वाले स्टुडेण्ट को तो हंस बगुला इकठ्ठा रहना पड़ता है। टीचर्स को वातावरण का भी चान्स अच्छा मिलता है। तो टीचर बनना अर्थात् लॉटरी लेना। टीचर्स का ड्रामा में बहुत अच्छा पार्ट है। टीचर्स को अपने भाग्य को देख खुश होना चाहिए। अपने प्राप्ति की लिस्ट सामने रखो कि क्या मिला है? कितना मिला है? वह देखते हो? अमृत वेले रूह-रूहान सब करती हो? जो रूह-रूहान करने से रस का अनुभव कर लेते हैं वह सारे दिन में सफल रहेगे। अलबेले तो नहीं रहते। सदा अपने ऊपर अटेन्शन रहता है और रस भी आता है? एक है नियम निभाने वाले, दूसरे प्राप्ति करने वाले। आप सब तो प्राप्ति करने वाली हो ना?
इस मुरली का सार
1. जिम्मेवारी बड़े से बड़ा टीचर है। जैसे टीचर लाइफ बनाते हैं वैसे जिम्मेवारी भी लाइफ बनाने की शिक्षा देती है। जिम्मेवारी बड़ापन लाती है और इससे अलबेलापन समाप्त हो जाता है।
2. टीचर्स का स्लोगन है - फॉलो फादर। फॉलो फादर नहीं तो सफल टीचर