31-10-75 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
महारथी की सर्व विशेषताओं को इस वर्ष धारण करो
मीटिंग में आये हुए सभी जोन्स के महारथी भाई-बहनों के साथ अव्यक्त बापदादा ने यह मधुर महावाक्य उच्चारे:-
प्लानिंग-बुद्धि पार्टी है, साथ-साथ सफलतामूर्त्त भी हैं। प्लैनिंग-बुद्धि के बाद सफलता-मूर्त्त बनने में जो टाइम देते हो, मेहनत करते हो वह रिजल्ट निकालने के लिए। महारथियों की सफलता विशेष एक बात में है, वह एक बात कौनसी है? महारथी की विशेषता क्या होती है? जिस विशेषता से महारथी बना जाय, वह क्या है? महारथियों की विशेषता यह है जो सर्व की सन्तुष्टता का सर्टिफिकेट लेवें। तब कहेंगे महारथी। सन्तुष्टता ही श्रेष्ठता व महानता है। प्रजा भी इस आधार से बनेगी। सन्तुष्ट हुई आत्मायें उनको राजा मानेंगी। कोई-न-कोई सेवा सहयोग द्वारा प्राप्त कराई हो - स्नेह की, सहयोग की, हिम्मत-उल्लास की और शक्ति दिलाने की प्राप्ति कराई हो तो महारथी और अगर सन्तुष्टता न कराई है तो नाम के महारथी हैं, वे काम के नहीं। बड़े भाई-बहन तो माता-पिता समान होते हैं। माता-पिता सबको सन्तुष्ट करते हैं। तो महारथी को यह अटेन्शन पहले देना है। इसके लिए स्वयं को परिवर्तन करना पड़े। परन्तु यह सन्तुष्टता का सर्टिफिकेट ज़रूर लेना है। यह चेकिंग करो कि - ‘‘कितनी आत्मायें मेरे से सन्तुष्ट हैं? मुझे क्या करना है जो मेरे से सब सन्तुष्ट रहें?’’
महारथी में स्वयं को मोल्ड करने की शक्ति होनी चाहिए। मोल्ड करने वाला ही गोल्ड होता है। जो मोल्ड नहीं कर सकते वो रीयल गोल्ड नहीं हैं, मिक्स हैं। मिक्स होना अर्थात् घोड़ेसवार। महारथी मोल्ड होता है। प्लैन बनाना अर्थात् बीज बोना। तो बीज पॉवरफुल होना चाहिए। सर्व के सन्तुष्टता की और स्नेह की दुआयें, आशीर्वाद और स्नेह का पानी ज़रूर चाहिये। नहीं तो प्लैनिंग रूपी बीज तो पॉवरफुल होता है, लेकिन स्नेह और सहयोग रूपी पानी न मिलने से पेड़ नहीं निकलता है। कभी पेड़ निकल आता है तो फल नहीं लगता, अगर फल लगता भी है तो सेकेण्ड या थर्ड किस्म का। इसका कारण पानी का नहीं मिलना है। महारथी - जिसमें सर्व-सिफ्तें हों अर्थात् सर्व गुण सम्पन्न, सर्व कलायें और सर्व विशेषतायें हों - अगर एक-दो कला कम हैं तो सर्व कला सम्पूर्ण नहीं। सर्व गुण नहीं तो महारथी के टाइटिल से निकल जाते हैं। ये ग्रुप महारथियों का है। निमन्त्रण महारथियों को मिला है।
सफलता-मूर्त्त बनने के लिये मुख्य दो ही विशेषतायें चाहियें - एक प्योरिटी, दूसरी यूनिटी। अगर प्योरिटी की भी कमी है तो यूनिटी में भी कमी है। प्योरिटी सिर्फ ब्रह्मचर्य व्रत को नहीं कहा जाता, संकल्प, स्वभाव, संस्कार में भी प्योरिटी। मानों एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या या घृणा का संकल्प है; तो प्योरिटी नहीं, इमप्योरिटी कहेंगे। प्योरिटी की परिभाषा में सर्व विकारों का अंश-मात्र तक न होना है। संकल्प में भी किसी प्रकार की इमप्योरिटी न हो। आप बच्चे निमित्त बने हुए हो बहुत ऊंचे कार्य को सम्पन्न करने के लिये। निमित्त तो महारथी रूप से बने हुए हो ना। अगर लिस्ट निकालते हैं तो लिस्ट में भी तो सर्विसएबल तथा सर्विस के निमित्त बने ब्रह्मा-वत्स ही महारथी की लिस्ट में गिने हुए हैं। महारथी की विशेषता कहाँ तक आयी हुई है - सो तो हर-एक स्वयं जाने। महारथी जो लिस्ट में गिना जाता है वो आगे चल कर महारथी होगा अथवा वर्तमान की लिस्ट में महारथी है। तो इन दोनों बातों के ऊपर अटेन्शन चाहिए।
यूनिटी अर्थात् संस्कार-स्वभाव के मिलन की यूनिटी। कोई का संस्कार और स्वभाव न भी मिले तो भी कोशिश करके मिलाओ। यह है यूनिटी। सिर्फ संगठन को यूनिटी नहीं कहेंगे। सर्विसएबल निमित्त बनी आत्मायें इन दो बातों के सिवाय बेहद की सर्विस के निमित्त नहीं बन सकती हैं, हद के हो सकते हैं। बेहद की सर्विस के लिये ये दोनों बातें चाहियें। सुनाया था ना - रास में ताल मिलाने पर ही होती है - वाह! वाह! तो यहाँ भी ताल मिलाना अर्थात् रास मिलाना है। इतनी आत्मायें जो नॉलेज वर्णन करती हैं तो सबके मुख से यह निकलता है - ये एक ही बात कहते हैं, इन सब का एक ही टॉपिक, एक ही शब्द है यह सब कहते हैं ना। इसी प्रकार सबके स्वभाव और संस्कार एक-दो में मिलें, तब कहेंगे रास मिलाना। इसका प्लैन बनाया है? (प्लैन सुनाये गये)।
ऐम तो रखी है स्थापना के कार्य को प्रख्यात करने की। प्रख्यात करने का जो प्लैन बनाया है वह अच्छा है। प्रख्यात करने के लिये प्लैन तो दूसरे वर्ष का बनाया है, लेकिन इस वर्ष का जो कुछ समय अभी रहा हुआ है, इस समय ही हर एक स्थान पर वर्तमान वातावरण के अनुसार सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति ज़रूर चाहिएँ। दूसरे वर्ष की सर्विस की सफलता इस वर्ष के आधार पर होगी। कोई भी प्रोपेगण्डा में ऐसी सहयोगी आत्माओं का सहयोग चाहिये, जिससे एक तो ‘कम खर्च बाला नशीन’ द्वारा मेहनत कम सफलता अधिक होती है। समय प्रमाण आप उन्हों की सेवा करेंगे तो सहयोग नहीं मिल सकेगा। लेकिन समय के पहले सेवा कर सहयोग लेने का प्रभाव पड़ता है। प्लैन्स तो सब ठीक-ठाक हैं, सर्व प्लैन्स जो सुनाये। तो हर डिपार्टमेन्ट के व्यक्ति ज़रूर सम्पर्क में आने चाहियें। जैसे एज्युकेशन के व्यक्ति सम्पर्क में आने से बनी-बनाई स्टेज मिलेगी। कोई भी प्लैन की विहंग मार्ग की सर्विस के लिए यह ज़रूरी है। गीता की प्वॉइन्टस से या तो हाहाकार होगा या जयजयकार होगी। लेकिन पहले हलचल होती है पीछे जयजयकार होती है। ऐसी प्वॉइन्टस को क्लियर करने के लिए सबका सहयोग चाहिये। मिनिस्टर, वकील और जज सब चाहियें। जैसे यहाँ भी सब आ रहे हैं। डॉक्टर, वकील आदि। तो इसके लिये भी सबका सम्पर्क ज़रूर चाहिये – मिनिस्ट्री एसोसियेशन आदि का। अभी सभी सुनने की इच्छा रखते हैं लेकिन उनमें चलने की हिम्मत नहीं है। सहयोगी बन सकते हैं। पहले उनकी सेवा से धरनी तैयार कर पीछे विशाल कार्य का बीज डालो।
प्लैन अच्छे हैं। इस वर्ष में कोई नई बात ज़रूर होनी है। सन् 76 में जिसका प्लैन बनाया है। लेकिन निमित्त बनना पड़ता है। परन्तु होना तो ड्रामानुसार है लेकिन जो निमित्त बनता है, उसका सारे ब्राह्मण कुल में नाम बाला होता है। यह भी प्राइज है। हर-एक अपने-अपने जोन की तरफ मीटिंग का रिजल्ट निकालो। प्लैन सेट कर फिर रिजल्ट की मीटिंग करो। प्लैन में सब हाँ-हाँ करते हैं। रिजल्ट में सिर्फ पाँच निकलते हैं। तो रिजल्ट की भी मीटिंग रखो। उत्साह बढ़ाने का भी लक्ष्य रखो। सबको बिजी रखो, ताकि उनको भी खुशी हो कि हमने भी अंगुली दी। चाहे हार्ड-वर्कर हो, चाहे प्लैनिंग बुद्धि हो -- छोटों को भी आगे बढ़ाना है। नहीं तो एक उमंग और उत्साह में सर्विस करते हैं और दूसरों का वायब्रेशन, सफलता में विघ्न डालता है। तो सबकी मदद चाहिए। हर-एक को कोई-न-कोई ड्यूटी बाँटों ज़रूर। जैसे प्रसाद सबको देते हैं। तो यह सेवा का प्रसाद भी सबको बाँटो। सबके उत्साह का वायुमण्डल रहेगा तो वायुमण्डल के प्रभाव से कोई भी बाहर नहीं निकलेगा। चाहे चक्कर लगाने वाला हो और चाहे फिदा होने वाला हो। तो इस वर्ष में यह विशेषता हो। जैसे सब कहते हैं कि मेरा बाबा। वैसे कहे कि मेरी सेवा, मेरा प्रोग्राम बना हुआ है। ऐसे नहीं कहे कि बड़ों ने बनाया है, चलेगा व नहीं? नहीं, मेरा प्रोग्राम है। ऐसा सबका आवाज हो, तब सफलता निकलेगी। सबको सर्विस का चांस दो। अच्छा!
इस मुरली के विशेष ज्ञान-बिन्दु
1. महारथियों की विशेषता यह है कि जो सर्व की सन्तुष्टता का सर्टिफिकेट लेवें।
2. सन्तुष्टता ही श्रेष्ठता व महानता है।
3. महारथी में स्वयं को मोल्ड करने की शक्ति होनी चाहिये। जो मोल्ड होते हैं वे ही रीयल गोल्ड हो सकते हैं।
4. सफलता-मूर्त्त बनने के लिए मुख्य दो विशेषताओं की धारणा चाहिए- एक प्योरिटी और दूसरी यूनिटी।
5. प्योरिटी अर्थात् सर्व विकारों के अंश मात्र का जीवन में न होना और यूनिटी अर्थात् संस्कार, स्वभाव के मिलन की यूनिटी होगी।