18-01-76 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
समर्थी दिवस के रूप में स्मृति-दिवस सर्व आत्माओं के परम स्नेही परमपिता शिव बोले:-
आज बाप-दादा अपने सर्व लवलीन बच्चों को देख बच्चों के स्नेह का रेसपान्स दे रहे हैं। सदा बाप-समान विधाता और वरदाता भव! सदा विश्व-कल्याणकारी, विश्व के राज्य-अधिकारी भव! सदा माया, प्रकृति और सर्व परिस्थितियों के विजयी भव! आज बाप-दादा सर्व विजयी बच्चों के मस्तक के बीच विजय का तिलक चमकता हुआ देख रहे हैं। सर्व बच्चों के हस्तों में यही विजय का झण्डा देख रहे हैं। हर-एक के दिल की आवाज ‘विजय हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है’ - यह नारा गूंजता हुआ सुन रहे हैं। आज अमृतवेले सर्व बच्चों के स्नेह और आह्वान के मीठे-मीठे आलाप सुन रहे थे। दूर-दूर बिछुड़ी हुई, तड़पती हुई गोपिकायें नदी के समान सागर में समा रही थीं। बापदादा भी बच्चों के स्नेह के स्वरूप में समा गये। हर-एक के मीठे-मीठे मोती ह्दय का हार बन बाप-दादा के गले में समा गये। हर-एक के भिन्न-भिन्न संकल्प, वैरायटी, मधुर साजों के रूप में सुनाई दे रहे थे। अभी-अभी चारों ओर बाप-दादा को याद की मालायें अनेक बच्चे डाल रहे हैं। आज के दिन को ‘स्मृति दिवस’ के साथ-साथ ‘समर्थी-दिवस’ भी कहते हैं। आज के इस यादगार दिवस पर बाप-दादा ने जैसे आदि में बच्चों के सिर पर ज्ञान-कलश रखा, साकार द्वारा शक्तियों को तन, मन, धन विल (Will) किया, वैसे ही साकार तन द्वारा साकार पार्ट के अन्तिम समय शक्ति सेना को विश्व-कल्याण के विल-पॉवर की विल की। स्वयं सूक्ष्मवतन निवासी बन साकार में बच्चों को निमित्त बनाया। इसीलिये यह समर्थी-दिवस है।
आज बाप सर्व बच्चों के स्नेह में, आवाज से परे स्वयं में समाने जा रहा है। इस समय चारों ओर सबका फुल-फोर्स से उलाहने और आह्वान के मन का आवाज़ आ रहा है। सब स्वयं में समाने जा रहे हैं। आप सबको सुनाई दे रहा है? नये-नये बच्चों को विशेष रूप से बाप-दादा याद का रिटर्न दे रहे हैं। जैसे पुराने बच्चों को डबल इन्जन की लिफ्ट मिली, वैसे नये बच्चों को गुप्त मदद की प्राप्ति के अनुभव की, खुशी के खजाने की विशेष लिफ्ट, (Lift) बाप-दादा गिफ्ट (Gift) में दे रहे हैं। उनके अनेक उलाहनों को सेवा और सदा साथ के अनुभव द्वारा उलाहने उमंग-उत्साह के रूप में परिवर्तन कर रहे हैं। जैसे नये बच्चों का विशेष लगाव बाप और सेवा से हैं, वैसे बापदादा की भी विशेष सहयोग की नजर नये बच्चों पर है। बाप भी ऐसे बच्चों की कमाल के गुण गा रहे हैं। अच्छा!
सर्व स्नेही, सदा एक बाप के लव में लीन रहने वाले, बाप-दादा को प्रख्यात करने वाले, सर्व आत्माओं द्वारा जय-जयकार की विजय मालायें धारण करने के निमित्त बने हुए, ऐसे विजयी, बाप-समान सर्व गुणों को साकार रूप में प्रत्यक्ष करने वाले, सर्व सिद्धियों को सेवा प्रति लगाने वाले, ऐसे विश्व-कल्याणकारी बाप-दादा के भी दिलतख्त अधिकारी बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।
दीदी जी तथा वत्सों को सामने देख बाप-दादा बोले –
‘‘आज बच्चों का विशेष स्वरूप कौन-सा रहा? स्नेह के स्वरूप के साथ-साथ उलाहने भी दिये। जैसे बाप ज्ञान का सागर है, तो सागर की विशेषता क्या होती है? जितनी लहरें, उतना ही शान्त। लेकिन एक ही समय दोनों विशेषतायें हैं। वैसे ही बाप के समान बनने वालों की भी यह विशेषता है कि बाहर से स्मृति-स्वरूप और अन्दर से समर्थी-स्वरूप। जितना ही साकार स्वरूप में स्मृति-स्वरूप उतना ही अन्दर समर्थी स्व रूप हो। दोनों का साथ-साथ बैलेन्स हो। ऐसा बैलेन्स रहा? जैसा समय व जैसा दिन वैसा स्वरूप तो होता ही है। लेकिन अलौकिकता यह है कि दोनों के बैलेन्स का स्वरूप स्पष्ट दिखाई दे। पार्ट भी बजा रहे हैं, लेकिन साथ-साथ साक्षीपन की स्टेज भी हो। ‘साक्षीपन’ की स्टेज होने से पार्ट भी एक्यूरेट (Accurate) बजायेंगे। लेकिन पार्ट का स्वरूप नहीं बन जायेंगे अर्थात् पार्ट के वश नहीं होंगे। विल-पॉवर होगी।
जो चाहें, जिस घड़ी चाहें, वैसा अपना स्वरूप धारण कर सकते हो। इसको कहते हैं विल-पॉवर। प्रेम-स्वरूप में भी शक्तिशाली-स्वरूप साथ-साथ समाया हुआ हो। सिर्फ प्रेम-स्वरूप बन जाना - यह लौकिकता हो गई। अलौकिकता यह है कि जो प्रेम-स्वरूप के साथ-साथ शक्तिशाली स्वरूप भी रहे। इसलिए शक्तिशाली स्वरूप का अन्तिम दृश्य ‘नष्टोमोह: स्मृति-स्वरूप’ का दिखाया है। जितना ही अति स्नेह, उतना ही अति नष्टोमोह:। तो लास्ट पेपर क्या देखा? स्नेह होते हुए भी नष्टोमोह: स्मृति-स्वरूप। यही लास्ट पेपर यादगार में भी गायन रूप में है, यही प्रैक्टिकल कर्म करके दिखाया। साकार सम्बन्ध सम्मुख होते हुए समाने की भी शक्ति और सहन करने की भी शक्ति। यही दोनों शक्तियों का स्वरूप देखा। एक तरफ स्नेह को समाना, दूसरे तरफ रहा हुआ लास्ट का हिसाब-किताब सहन शक्ति से समाप्त करना। समाना भी और सहन भी करना-दोनों का स्वरूप कर्म में देखा। क्या बाप का बच्चों में स्नेह नहीं होता? स्नेह का सागर होते हुये भी शान्त! अपने शरीर से भी उपराम! यही लास्ट स्टेज है। यह प्रैक्टिकल में कर्म करके दिखलाया। यही (रात्रि का) समय था ना। लास्ट पेपर को फर्स्ट नम्बर में प्रैक्टिकल में किया। स्वरूप में लाना सहज होता है, लेकिन समाना, इसमें विल-पॉवर चाहिये। सारा पार्ट समाने का देखा। कर्मभोग को भी समाना और स्नेह को भी समाना। यही विल-पॉवर है। यही विल-पॉवर अन्त में बच्चों को ‘विल’ की। अच्छा!
वाणी का सार
1. बाबा बोले - यह दिवस केवल स्मृति-दिवस नहीं, ‘समर्थी दिवस’ भी है क्योंकि स्वयं सूक्ष्मवतन निवासी बन बाबा ने साकार में बच्चों को निमित्त बनाया।
2. बाबा कहते हैं कि जैसे पुराने बच्चों को डबल इंजन की लिफ्ट मिली, वैसे नये बच्चों को गुप्त मदद, प्राप्ति के अनुभव की खुशी के खज़ाने की विशेष लिफ्ट बापदादा गिफ्ट में देते हैं।
3. जो चाहें जिस घड़ी चाहें, वैसा अपना स्वरूप धारण कर सको, इसको कहते हैं ‘विल पॉवर।’ प्रेम-स्वरूप में शक्तिशाली-स्वरूप भी साथ-साथ समाया हुआ हो - यही अलौकिकता है। सिर्फ प्रेम-स्वरूप बन जाना तो लौकिकता हो गई।