07-02-76 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
अव्यक्त फरिश्तों की सभा
सभी आत्माओं को सुख, शान्ति व शक्ति की अंजली देकर, वरदान देकर तृप्त करने वाले, जन्म-जन्म की प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाने वाले, सर्व को ठिकाने पर लगाने वाले रूहानी बाप बोले:-
बाप-दादा सदा हर्षित, सदा हद के आकर्षणों से परे अव्यक्त फरिश्तों को देख रहे हैं। यह फरिश्तों की सभा है। हर फरिश्ते के चारों ओर लाइट का क्राउन (Crown) कितना स्पष्ट दिखाई देता है अर्थात् हर फरिश्ता लाइट-हाउस (Light House) और माइट-हाउस (Might House) कहाँ तक बना है, यह आज बापदादा देख रहे हैं।
जैसे भविष्य स्वर्ग की दुनिया में सब देवता कहलायेंगे, वैसे वर्तमान समय संगम पर फरिश्ते समान सब बनते हैं लेकिन नम्बरवार। जैसे वहाँ हर-एक अपनी स्थिति प्रमाण सतोप्रधान होते हैं, वैसे यहाँ भी हर पुरुषार्थी फरिश्तेपन की स्टेज को प्राप्त ज़रूर करते हैं। तो आज बाप-दादा हर एक की रिजल्ट को देख रहे थे। क्योंकि अब अन्तिम रियलाइजेशन कोर्स (Realization Course) चल रहा है। रियलाइजेशन कोर्स में हर एक अपने आपको कहाँ तक रियलाइज कर रहे हैं? तो रिजल्ट में दो विशेष बातें देखीं। वह कौनसी?
हर एक किस पोजीशन (Position) तक पहुँचे हैं? ऑपोजीशन (Opposition) ज्यादा है अथवा पोज़ीशन की स्टेज ज्यादा है? दूसरा - पुरानी देह और पुरानी दुनिया से स्मृति को कहाँ तक ट्रॉन्सफर (Transfer) किया है? साथ-साथ ट्रान्सफर के आधार पर ट्रान्सपेरेन्ट (Transparent) कहाँ तक बने हैं? चारों ही सब्जेक्ट्स में कहाँ तक प्रैक्टिकल स्वरूप बने हैं? बाप-दादा के तीनों स्वरूप - साकार, आकार और निराकार द्वारा ली हुई पालना और पढ़ाई का रिटर्न (Return) कहाँ तक किया है? आदि से अब तक जो बाप-दादा से वायदे किये हैं, उन सब वायदों को निभाने का स्वरूप कहाँ तक है? जितना कायदा, उतना फायदा उठाया है? ऐसी चेकिंग (Checking) हर-एक अपनी करते हो? चारों ही सब्जेक्ट्स की चेकिंग का सहज साधन आपकी गाई हुई महिमा से सिद्ध हो जाता है। वह महिमा जानते हो? वह कौन-सी महिमा है जिससे चारों ही सब्जेक्ट्स चेक कर सकते हो? वह महिमा तो सबको याद है ना। (सर्व गुण सम्पन्न...) इन चारों ही बातों में चारों ही सब्जेक्ट्स की रिजल्ट आ जाती है। तो यही चेक करो कि इन चारों ही बातों में सम्पन्न बने हैं? अब तक सोलह कला बने हैं अथवा चौदह कला तक पहुँचे हैं? सर्व गुण सम्पन्न बने हैं या गुण सम्पन्न बने हैं अर्थात् कोई- कोई गुण धारण किया है? सब मर्यादायें धारण कर मर्यादा पुरूषोत्तम बने हैं? सम्पूर्ण आहिंसक बने हैं? संकल्प द्वारा भी किसी आत्मा को दु:ख देना व दु:ख लेना - यह भी हिंसा है। सम्पूर्ण आहिंसक अर्थात् संकल्प द्वारा भी किसी को दु:ख न देने वाला। पुरूषोत्तम अर्थात् हर संकल्प और हर कदम उत्तम अर्थात् श्रेष्ठ हो, साधारण न हो, लौकिक न हो और व्यर्थ न हो। ऐसे कहाँ तक बने हैं? बाप-दादा ने क्या देखा? अब तक विशेष दो शक्तियों की बहुत आवश्यकता है। वह कौन-सी हैं?
एक स्वयं को परखने की शक्ति, दूसरी स्वयं को परिवार्तित करने की शक्ति। इन दोनों शक्तियों की रिजल्ट में जितना तीव्र पुरुषार्थी तीव्र गति से आगे बढ़ना चाहते हैं, उतना बढ़ नहीं पाते। इन दोनों शक्तियों की कमी के कारण ही कोई-न-कोई रूकावट गति को तीव्र करने नहीं देती है। दूसरे को परखने की गति तीव्र है दूसरे को परिवर्तन होना चाहिये - यह संकल्प तीव्र है; इसमें ‘पहले आप’ का पाठ पक्का है। जहाँ ‘पहले मैं’ होना चाहिये, वहाँ ‘पहले आप’ है और जहाँ ‘पहले आप’ होना चाहिये, वहाँ ‘पहले मैं’ है। तीसरा नेत्र जो हर एक को वरदान में प्राप्त है उस तीसरे नेत्र द्वारा जो बाप-दादा ने कार्य दिया है, उसी कार्य में नहीं लगाते। तीसरा नेत्र दिया है रूह को देखने, रूहानी दुनिया को देखने के लिए व नई दुनिया को देखने के लिये। उसके बदले जिस्म को देखना, जिस्मानी दुनिया को देखना - इसको कहा जाता है कि यथार्थ रीति कार्य में लगाना नहीं आया है। इसलिये अब समय की गति को जानते हुए परिवर्तन-शक्ति को स्वयं प्रति लगाओ। समय का परिवर्तन न देखो लेकिन स्वयं का परिवर्तन देखो। समय के परिवर्तन का इन्तज़ार बहुत करते हो। स्वयं के परिवर्तन के लिए कम सोचते हो और समय के परिवर्तन के लिये सोचते हो कि होना चाहिये। स्वयं रचयिता हैं, समय रचना है। रचयिता अर्थात् स्वयं के परिवर्तन से रचना अर्थात् समय का परिवर्तन होना है। परिवर्तन के आधारमूर्त्त स्वयं आप हो। समय की समाप्ति अर्थात् इस पुरानी दुनिया के परिवर्तन की घड़ी आप हो। सारे विश्व की आत्माओं की आप घड़ियों के ऊपर नजर है कि कब यह घड़ियाँ समाप्ति का समय दिखाती हैं। आपको मालूम है कि आपकी घड़ी में कितना बज़ा है? आप बताने वाले हो या पूछने वाले हो? इन्तज़ार है क्या? समय दिखाने वालों को समय के प्रति हलचल तो नहीं है ना? हलचल है अथवा अचल हो? ‘‘क्या होगा, कब होगा, होगा या नहीं होगा?’’ ड्रामा अनुसार समय-प्रति-समय हिलाने के पेपर्स आते रहे हैं और आयेंगे भी।
जैसे वृक्ष को हिलाते हैं ना। तो निश्चय की नींव अर्थात् फाउन्डेशन (Foundation) को हिलाने के पेपर्स भी आयेंगे। फिर पेपर देने के लिये तैयार हो अथवा कमजोर हो? पाण्डव सेना तैयार है या शक्तियाँ तैयार हैं अथवा दोनों तैयार हैं? होशियार स्टूडेण्ट पेपर का आह्वान करते हैं और कमजोर डरते हैं। तो आप कौन हो? निश्चयबुद्धि की निशानी यह है कि वह हर बात व हर दृश्य को निश्चित जानकर सदा निश्चिन्त होगा, ‘‘क्यों, क्या और कैसे’’ की चिन्ता नहीं होगी। फरिश्तेपन की लास्ट स्टेज की निशानी है - सदा शुभचिन्तक और सदा निश्चिन्त। ऐसे बने हो? रियलाइजेशन कोर्स में स्वयं को रियलाइज करो। और अब अन्तिम थोड़े-से पुरूषार्थ के समय में स्वयं में सर्वशक्तियों को प्रत्यक्ष करो।
प्रत्यक्षता वर्ष मना रहे हो ना। बाप को प्रत्यक्ष करने से पहले स्वयं में (जो स्वयं की महिमा सुनाई) इन सब बातों की प्रत्यक्षता करो, तब बाप को प्रत्यक्ष कर सकेंगे। यह वर्ष विशेष ज्वाला-स्वरूप अर्थात् लाइट-हाउस और माइट-हाउस स्थिति को समझते हुए इसी पुरूषार्थ में रहो - विशेष याद की यात्रा को पॉवरफुल (Powerful) बनाओ, ज्ञान-स्वरूप के अनुभवी बनो। ऐसा स्वयं की उन्नति के प्रति विशेष प्रोग्राम बनाओ। जिस द्वारा आप श्रेष्ठ आत्माओं की शुभ वृत्ति व कल्याण की वृत्ति और शक्तिशाली वातावरण द्वारा अनेक तड़पती हुई, भटकती हुई, पुकार करने वाली आत्माओं को आनन्द, शान्ति और शक्ति की अनुभूति हो। समझा? अब क्या करना है? सिर्फ सुनाना नहीं है, अनुभव करना है। अनुभव कराने के लिये पहले स्वयं अनुभवीमूर्त्त बनो। इस वर्ष का विशेष संकल्प लो। स्वयं को परिवर्तन कर विश्व को परिवर्तन करना ही है। समझा? दृढ़ संकल्प की रिजल्ट (RESULT) सदा सफलता ही है। अच्छा।
ऐसे दृढ़ संकल्प द्वारा सृष्टि का नव-निर्माण करने वाले, अपनी रूहानी वृत्ति द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाले, हर आत्मा को सुख, शान्ति व शाक्ति की अन्जली देकर एवं वरदान देकर, तृप्त आत्मा बनाने वाले, जन्म-जन्म की प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाने वाले, सर्व को अपने ठिकाने पर लगाने वाले, सदा निश्चयबुद्धि, हलचल में भी अचल रहने वाले, ज्ञान-स्वरूप एवं याद-स्वरूप आत्माओं को बाप-दादा का यादप् यार और नमस्ते।
इस अव्यक्त वाणी का सार
1. सर्व गुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण, मर्यादा पुरूषोत्तम, सम्पूर्ण आहिंसक - इन चारों बातों में चारों सब्जेक्ट्स का रिजल्ट आ जाता है। तो यह चेक करो कि इन चारों ही बातों में कहाँ तक सम्पन्न बने हैं?
2. बाबा कहते - तुम्हें तीसरा नेत्र दिया है रूह को, रूहानी दुनिया को व नई दुनिया को देखने के लिये। अगर उसके बदले जिस्म को, जिस्मानी दुनिया को देखते हो तो माना तीसरे नेत्र को यथार्थ रीति कार्य में लगाना नहीं आया है।
3. स्वयं रचयिता हो, समय रचना है, रचयिता अर्थात् स्वयं के परिवर्तन से ही रचना अर्थात् समय का परिवर्तन होना है।
4. परखने की शक्ति व स्वयं को परिवार्तित करने की शक्ति में कमी होने के कारण ही कोई-न-कोई थकावट गति को तीव्र करने नहीं देती है। समय की गति को जानते हुए परिवर्तन-शक्ति को स्वयं प्रति लगाओ।