07-01-77 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
विश्व-कल्याणकारी कैसे बनें?
विश्व-कल्याणकारी शिव बाबा अपने बच्चों को भी आप समान विश्व-कल्याणकारी स्थिति में स्थित होने की विधि बताते हुए बोले :-
सभी आवाज़ से परे अपने शान्त स्वरूप स्थिति में स्थित रहने का अनुभव बहुत समय कर सकते हो? आवाज़ में आने का अनुभव ज्यादा कर सकते हो वा आवाज़ से परे रहने का अनुभव ज्यादा समय कर सकते हो? जितना लास्ट स्टेज़ (Last Stage) अथवा कर्मातीत स्टेज समीप आती जाएगी उतना आवाज़ से परे शान्त स्वरूप की स्थिति अधिक प्रिय लगेगी इस स्थिति में सदा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति हो। इसी अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति द्वारा अनेक आत्माओं का सहज ही आह्वान कर सकेंगे। यह पॉवरफुल (Powerful) स्थिति ‘विश्व-कल्याणकारी स्थिति’ कही जाती है। जैसे आजकल साईन्स के साधनों द्वारा सब चीजें समीप अनुभव होती जाती हैं - दूर की आवाज़ टेलीफोन के साधन द्वारा समीप सुनने में आती है, टी.वी. (दूर दर्शन) द्वारा दूर का दृश्य समीप दिखाई देता है, ऐसे ही साईलैन्स की स्टेज द्वारा कितने भी दूर रहती हुई आत्मा को सन्देश पहुँचा सकते हो? वो ऐसे अनुभव करेंगे जैसे साकार में सम्मुख किसी ने सन्देश दिया है। दूर बैठे हुए भी आप श्रेष्ठ आत्माओं के दर्शन और प्रभु के चरित्रों के दृश्य ऐसे अनुभव करेंगे जैसे कि सम्मुख देख रहे हैं। संकल्प के द्वारा दिखाई देगा अर्थात् आवाज़ से परे संकल्प की सिद्धि का पार्ट (Part) बजाएंगे। लेकिन इस सिद्धि की विधि ज्यादा-से-ज्यादा अपने शान्त स्वरूप में स्थित होना है। इसलिए कहा जाता है - साइलेन्स इज़ गोल्ड (Silence Is Gold), यही गोल्डन ऐजड स्टेज (Golden Aged Stage) कही जाती है।
इस स्टेज पर स्थित रहने से ‘कम खर्च बाला नशीन’ बनेंगे। समय रूपी खज़ाना, एनर्जी का खज़ाना और स्थूल खज़ाना में ‘कम खर्च बाला नशीन’ हो जायेंगे। इसके लिए एक शब्द याद रखो। वह कौन-सा है? ‘बैलेन्स’ (Balance)। हर कर्म में, हर संकल्प और बोल, सम्बन्ध वा सम्पर्क में बैलेन्स हो। तो बोल, कर्म, संकल्प, सम्बन्ध वा सम्पर्क साधारण के बजाए अलौकिक दिखाई देगा अर्थात् चमत्कारी दिखाई देगा। हर एक के मुख से, मन से यही आवाज़ निकलेगा कि यह तो चमत्कार है। समय के प्रमाण स्वयं के पुरूषार्थ की स्पीड और विश्व सेवा की स्पीड तीव्र गति की चाहिए तब विश्व कल्याणकारी बन सकेंगे।
विश्व की अधिकतर आत्मएं बाप की और आप इष्ट देवताओं की प्रतयक्षता का आह्वान ज्यादा कर रही हैं और इष्ट देव उनका आह्वान कम कर रहे हैं। इसका कारण क्या है? अपने हद के स्वभाव, संस्कारों की प्रवृत्ति में बहुत समय लगा देते हो। जैसे अज्ञानी आत्माओं को ज्ञान सुनने की फुर्सत नहीं वैसे बहुत से ब्राह्मणों को भी इस पावरफुल स्टेज पर स्थित होने की फुर्सत नहीं मिलती। इसलिए ज्वाला रूप बनने की आवश्यकता है।
बाप-दादा हर एक की प्रवृत्ति को देख मुस्कराते रहते हैं कि कैसे टू मच (Too Much;बहुत ज्यादा) बिजी (Busy) होगए हैं। बहुत बिजी रहते हो ना? वास्तविक स्टेज में सदा फ्री (Free) रहेंगे। सिद्धि भी होगी और फ्री भी रहेंगे।
जब साईन्स के साधन धरती पर बैठे हुए स्पेस (Space;अंतरिक्ष) में गए हुए यन्त्र को कन्ट्रोल कर सकते हैं, जैसे चाहे जहाँ चाहे वहाँ मोड़ सकते हैं, तो साईलेन्स के शक्ति-स्वरूप, इस साकार सृष्टि में श्रेष्ठ संकल्प के आधार से जो सेवा चाहे, जिस आत्मा की सेवा करना चाहे वो नहीं कर सकते? लेकिन अपनी-अपनी प्रवृत्ति से परे अर्थात् उपराम रहो।
जो सभी खज़ाने सुनाए वह स्वयं के प्रति नहीं, विश्व-कल्याण के प्रति युज़ (USE;प्रयोग) करो। समझा, अब क्या करना है? आवाज़ द्वारा सर्विस, स्थूल साधनों द्वारा सर्विस और आवाज़ से परे ‘सूक्ष्म साधन संकल्प’ की श्रेष्ठता, संकल्प शक्ति द्वारा सर्विस का बैलेन्स प्रत्यक्ष रूप में दिखाओ तब विनाश का नगाड़ा बजेगा। समझा?
प्लान्स (Plans;योजनाएं) बहुत बना रहे हो, बाप-दादा भी प्लान बता रहे हैं। बैलेन्स ठीक न होने के कारण मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है। विशेष कार्य के बाद विशेष रेस्ट (REST) भी लेते हो ना। फाईनल प्लान में अथकपन का अनुभव करेंगे।
ऐसे सर्व शक्तियों को विश्व-कल्याण के प्रति कार्य में लगाने वाले, संकल्प की सिद्धि स्वरूप, स्वयं की प्रवृत्ति से स्वतन्त्र, सदा शान्त और शक्ति स्वरूप स्थिति में स्थित रहने वाले सर्व श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।