23-01-77   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


महीनता ही महानता है

एक सेकेण्ड में इस लोक से परलोक निवासी बनने वाली, इन्द्रसभा की परियों प्रति अव्यक्त बाप-दादा बोले:-

गायन है इन्द्रप्रस्थ की इन्द्रसभा। इन्द्र अर्थात् सदा ज्ञान की बरसात बरसाने वाले, कांटों के जंगल में हरियाली लाने वाले - ऐसी इन्द्रसभा, जिसका गायन है परियों की सभा, अर्थात् सदा उड़ने वाली। परियों के पंख प्रसिद्ध हैं। इन्द्रपस्थ में सिवाए परियों के और कोई भी मनुष्य निवास नहीं कर सकता। मनुष्य अर्थात् जो अपने को आत्मा न समझ, मानव अर्थात् देह समझते हैं। ऐसे देह-अभिमानी इन्द्रप्रस्थ में निवास नहीं कर सकते। इन्द्रप्रस्थ निवासियों को देह-अभिमानी मनुष्यों की बदबू फौरन अनुभव होती है। ऐसे इन्द्रप्रस्थ निवासी मनुष्य के बदबू अर्थात् देह की बदबू से भी दूर अपने को इन्द्रसभा की परियां समझते हो? ज्ञान और योग के पंख मजबूत हैं? अगर पंख मजबूत नहीं होते तो उड़ना चाहते भी बार-बार नीचे आ जाते हैं। देह-अभिमान और देह की पुरानी दुनिया, पुराने सम्बन्धों से सदा ऊपर उड़ते रहते हो अर्थात् इससे परे ऊँची स्थिति में रहते हो? जरा भी देह-अभिमान अर्थात् मनुष्यपन की बदबू तो नहीं? देह- अभिमान, इन्द्रप्रस्थ निवासी नहीं हो सकता। ऐसे अनुभव होता है कि देह-अभिमान बहुत गन्दी बदबू है? जैसे बदबू से किनारा किया जाता है, वा मिटाने के साधन अपनाए जाते हैं, वैसे अपने को देह-अभिमान से मिटाने के साधन अपनाते हो? यह साधारण सभा नहीं - यह अलौकिक सभा है, फरिश्तों की सभा है। अपने को फरिश्ता अनुभव करते हो? एक सेकेण्ड में इस देह की दुनिया से परे अपने असली स्थिति में स्थित हो सकते हो? यह ड्रिल (Drill) करनी आती है? जब चाहो, जहाँ चाहो, जितना समय चाहो, वैसे स्थित हो सकते हो?

आज अमृतवेले बाप-दादा बच्चों की ड्रिल देख रहे थे, क्या देखा? ड्रिल करने के लिए समय की सीटी पर पहुँचने वाले नम्बरवार पहुँच रहे थे। पहुँचने वाले काफी थे लेकिन तीन प्रकार के बच्चे देखे। एक थे - समय बिताने वाले; दूसरे थे - संयम निभाने वाले; तीसरे थे - स्नेह निभाने वाले। हरेक का पोज (Pose) अपना-अपना था। बुद्धि को ऊपर ले जाने वाले बाप से, बाप समान बन, मिलन मनाने वाले कम थे। रूहानी ड्रिल करने वाले ड्रिल करना चाहते थे लेकिन कर नहीं पा रहे थे। कारण क्या होगा? जैसे आजकल स्थूल ड्रिल करने के लिए भी हल्कापन चाहिए, मोटापन नहीं चाहिए, मोटापन भी बोझ होता है। वेसे रूहानी ड्रिल में भी भिन्न-भिन्न प्रकार के बोझ वाले अर्थात् मोटी बुद्धि - ऐसे बहुत प्रकार के थे। जैसे मोटे शरीर की भी वैरायटी (Variety) होती है, वैसे ही आत्माओं के भारीपन के पोज भी वैरायटी थे। अगर अलौकिक कैमरा (Camera) से फोटो निकालो वा शीश महल में यह वैरायटी पोज देखो तो बड़ी हंसी आए। जैसे आपकी दुनिया में वैरायटी पोज का खूब हँसी का खेल दिखाते हैं ना, वैसे यहाँ भी खूब हँसते हैं। देखेंगे हँसी का खेल? बहुत ऐसे भी थे जो मोटेपन के कारण अपने को मोड़ना चाहते भी मोड़ नहीं सकते। ऊपर जाने के बदले बार-बार नीचे आ जाते थे। बीज रूप स्टेज को अनुभव करने के बदले, विस्तार रूपी वृक्ष में अर्थात् अनेक संकल्पों के वृक्ष में उलझ जाते हैं। यह मोटी बुद्धि वालों के पोज सुना रहे हैं। रूह-रूहान करने बैठते हैं लेकिन रूह-रूहान के बदले स्वयं की वा अन्य आत्माओं की शिकायतों की पूरी फाइल खोल कर बैठते हैं। बैठते हैं चढ़ती कला का अनुभव करने के लिए हैं, लेकिन बाप-दादा को बहाने-बाज़ी की कलायें बहुत दिखाते हैं। बाप-दादा के आगे बोझ उतारने आते हैं, लेकिन बोझ उतारने की बजाय बाप की श्रीमत के प्रमाण न चलने के कारण अनेक प्रकार की अवज्ञाओं का बोझ अपने ऊपर चढ़ाते रहते हैं। ऐसे अनेक प्रकार के बोझ वाली भारी आत्माओं के दृश्य देखे।

संयम निभाने वाली आत्माओं का दृश्य भी बहुत हँसी वाला होता है। वह क्या होता है, मालूम है? बाप के आगे गुणगान करने के बजाय, बाप द्वारा सर्व शक्तियों की प्राप्ति करने के बजाय, निन्द्रा के नशे की प्राप्ति ज्यादा आकर्षण करती है। सेमी (Semi) नशा भी होता है। समय की समाप्ति का इन्तजार होता है। बाप से लगन के बजाय सेमी निन्द्रा के नशे की लगन ज्यादा होती है। इन सभी का कारण? आत्मा का भारीपन अर्थात् मोटापन। जैसे आजकल के डाक्टर्स (Doctors) मोटेपन को कम कराते हैं, वजन कम कराते हैं, हल्का बनाते हैं, वैसे ब्राह्मणों की भी आत्मा के ऊपर जो वजन अथवा बोझ है अर्थात् मोटी बुद्धि है, उस बोझ को हटाकर महीन बुद्धिबनो। वर्तमान समय यही विशेष परिवर्तन चाहिए। तब ही इन्द्रप्रस्थ की परियां बनेंगे। मोटेपन को मिटाने के लिए श्रेष्ठ साधन कौन-सा है? खान-पान का परहेज और एक्सरसाइज (Exercise)। परहेज में भी अन्दाज फिक्स (Fix) होता है। वैसे यहाँ भी बुद्धि द्वारा बार-बार अशरीरीपन की एक्सरसाइज करो और बुद्धि का भोजन संकल्प है उनकी परहेज रखो। जिस समय जो संकल्प रूपी भोजन स्वीकार करना हो उस समय वही स्वीकार करो। व्यर्थ संकल्प रूपी एक्सट्रा (Extra) भोजन न हो। तो व्यर्थ संकल्पों के भोजन की परहेज हो। परहेज के लिए सेल्फ कन्ट्रोल (Self Control;स्वयं पर नियन्त्रण) चाहिए। नहीं तो परहेज पूर्ण रीति नहीं कर सकते। तो सेल्फ कन्ट्रोल अर्थात् जिस समय जैसे चाहे, वहाँ बुद्धि लगा सके तब ही महीन बुद्धि बन जायेंगे। महीनता ही महानता है।जैसे शरीर की रीति से हल्कापन परसनैलिटी (Personality) है; वैसे बुद्धि की महीनता व आत्माओं का हल्कापन ब्राह्मण जीवन की परसनैलिटी है। तो अब क्या करना है? अनेक प्रकार के मोटेपन को मिटाओ। मोटेपन का विस्तार फिर सुनायेंगे कि किस प्रकार का मोटापन है। बोझ के अनेक प्रकार हैं उसका विस्तार फिर सुनायेंगे। तो आज के ड्रिल का समाचार क्या हुआ? बोझ का मोटापन। इसको मिटाने का ही लक्ष्य रख स्वयं को फरिश्ता अर्थात् हल्का बनाओ। अच्छा।

ऐसे इन्द्रप्रस्थ की परियाँ, सेकेण्ड में इस लोक से पार परलोक निवासी बनने वाली, सदा बाप समान बन बाप से मिलन मनाने वाली महीन बुद्धि अर्थात् महान आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

पार्टियों के साथ :-

अभी-अभी ऊपर, अभी-अभी नीचे, इतनी एक्सरसाईज करने की प्रैक्टिस है? जिसको प्रैक्टिस नहीं होती है वे मुश्किल ही कर पाते हैं। रूहानी एक्सरासईज़ के अनुभवी हो? अभी-अभी डायरेक्शन मिले एक सेकेण्ड में बीज रूप स्थिति में स्थित हो जाओ। जैसे डायरेक्शन देते हैं तो सेकेण्ड में करते हैं ना, ऐसे ही डायरेक्शन मिले कि ऊँची से ऊँची स्थिति में स्थित हो जाओ तो हो सकते हो या टाईम लगेगा? अगर टीचर हैंड्स अप (Hands Up;हाथ ऊपर) कहे और हैंड्स अप न कर सकें तो टीचर क्या कहेगा कि लाईन से किनारे हो जाओ। लाईन से बाहर निकाल देते हैं ना? तो यहाँ भी निकालना नहीं पड़ता लेकिन ऑटोमेटीकली (AUTOMATICALLY;स्वत:) तीव्र पुरूषार्थ की लाईन से किनारे हो जाते हैं। पुरूषार्थ के लाईन में आ जाते हैं। अगर कोई अच्छी स्टेज पर एक्सरसाईज दिखानी पड़ती हो तो जो होशियार होंगे वही ग्रुप स्टेज पर आयेगा ना। इसके लिए फर्स्ट प्राइज़ विन (Win) करने वाला ग्रुप चाहिए। तो फर्स्ट (First) अर्थात् फास्ट (Fast;तीव्र) पुरुषार्थी। अगर फास्ट पुरुषार्थी नहीं तो फर्स्ट नहीं; सेकेण्ड ग्रुप हो गया। जो भारी होता है वो फास्ट नहीं जा सकता है। कोई भी प्रकार का भारीपन वा बोझ नहीं हो। निरन्तर योग नहीं लगता इसका मतलब भारीपन है, बोझ है। बोझ नीचे ले आता है। नीचे ले आना ही सिद्ध करता है कि बोझ है। बॉडी- कोन्सेस(Body-Conscious;देह-अभिमान) नीचे ले आता है। जैसे बाप ऊँचे से ऊँचा है, उनका निवास स्थान ऊँचे से ऊँचा है, उनका कर्त्तव्य व गुण ऊँचे से ऊँचा है, तो आप सबके भी निवास स्थान, गुण और कर्त्तव्य ऊँचे से ऊँचा है ना? बाप समान हो ना? ऊँचे निवास स्थान वाले, ऊँचे गुण व कर्त्तव्य वाले, नीचे कैसे आ सकते हैं? आना नहीं चाहिए लेकिन आ जाते हैं। उसको क्या कहेंगे - फर्स्ट पुरुषार्थी या सेकेण्ड? लक्ष्य फर्स्ट क्लास का और लक्षण सेकेण्ड का, यह कैसे होगा? बैठना है फर्स्ट क्लास में और टिकट ली है सेकेण्ड क्लास की तो फर्स्ट में बैठ सकेंगे? मातायें और कन्यायें तो विशेष लक्की हैं। क्योंकि ये सबसे गरीब हैं। बाप को भी गरीब-निवाज गाया हुआ है। साहुकार-निवाज नहीं। तो गरीब जल्दी पद पा सकते हैं। साहुकार नहीं। तकदीर वान गरीब ही हैं। तो कुमारियाँ और मातायें तकदीरवान हैं जो संगमयुग पर कुमारी वा माता बनी हैं। चरित्र भी ज्यादा गोपी वल्लभ के साथ गोपियों के ही गाये गये हैं, गोपों के कम। तो लक्की हो जो गोपी तन में हो। संगमयुग में शक्ति फर्स्टका बाप-दादा का नारा है। स्वयं ब्रह्मा बाप ने भी माताओं को समर्पण किया। सुनाया ना कि ब्रह्मा बाप की भी माता गुरूहै। तो इतने तकदीरवान हो। इतना अपनी तकदीर को जानती हो या मानकर चलती हो? एक होता है जानना, दूसरा होता है मानना और चलना। माताओं का मर्तबा कोई कम नहीं है, ऐसी माताएं जिनका शिवबाबा के साथ पार्ट है। इतना नशा है? इतनी खुशी है? इस स्टेज पर रहो तो खुशी में उड़ते रहेंगे। परियाँ सदा उड़ती रहती हैं। तो ऐसे संगमयुग की परियाँ जो बाप के साथ-साथ अव्यक्त वतन, मूलवतन में उड़ती रहती हैं। उड़ना माना ध्यान में जाना नहीं, लेकिन बुद्धि के विमान में सदा उड़ते रहो। बुद्धि का विमान बहुत बड़ा है। बुद्धि द्वारा जब चाहो, जहाँ चाहो पहुँच जाओ। मोटी बुद्धि नहीं, लेकिन महीन बुद्धि। तो अभी क्या करना है? बिल्कुल इस लोक के लगाव से परे। ऐसा ही पुरूषार्थ है ना? इस लोक में है ही क्या? असार संसार से क्या काम है? तो फिर क्यों जाते हो? जहाँ कोई काम नहीं होता है वहाँ जाना होता है क्या? तो अब बुद्धि द्वारा जाना बन्द करो। जब कोई प्राप्ति नहीं, कोई फायदा नहीं तो बुद्धि क्यों जाती है? टाईम वेस्ट होगा ना? फिर वापस लौटना पड़ेगा। वापस लौटने में समय और एनर्जी (Energy;शक्ति) वेस्ट (Waste;व्यर्थ) जायेगी। तो वेस्ट क्यों करते हो? अभी तो 21 जन्मों के लिए जमा करना है सिर्फ थोड़े से समय में। तो क्या इतना थोड़ा-सा मिला टाईम व्यर्थ करना चाहिए? एक सेकेण्ड वेस्ट करना अर्थात् एक जन्म की प्रालब्ध वेस्ट करना। इतना महत्व संगम के समय का है। अच्छा, सदा खुशी में तो रहती हो ना? कभी रोती तो नहीं हो? एक होता है आंख के आंसू, दूसरा होता है मन के आँसू। तो मन के आँसू भी नहीं आने चाहिए। मन में दु:ख की लहर आना माना मन के आँसू। दोनों प्रकार के आँसू नहीं बहाना। रोने से मुक्त होना है। अभी जो रोते हैं, वे खोते हैं। जो हंसते हैं वह पाते हैं। तो कभी भी गलती से भी दु:ख की दुनिया नहीं देखनी चाहिए। अनुभवी फिर धोखा खाते हैं क्या? धोखा खा कर अनुभव कर लिया, तो फिर धोखा खायेंगे? फिर दु:ख की दुनिया में क्यों जाती हो? एक बार खेल में गिरने वाला दोबारा गिरता है क्या? यह खेल तो एकदम रौरव नर्क है। इसमें गिरने का संकल्प तो स्वप्न में भी न आना चाहिए। तो माताएं पद्मापद्म भाग्यशाली हैं। बाप तो उसी श्रेष्ठ नज़र से देखते हैं। सौभाग्यशाली नहीं, लेकिन पद्मापद्म भाग्यशाली। सौभाग्यशाली बनना तो साधारण बात है। लेकिन पद्मापद्म भाग्यशाली बनना है। सदा खुश रहो। बाप के खज़ाने को सुमिरण करते हुए सदा हर्षित रहो। इतना खज़ाना सारे कल्प में किसी जन्म में भी नहीं मिलेगा। तो कितनी खुशी में उड़ना चाहिए? परियां नीचे नहीं आती, ऊपर उड़ती रहती है। सदा एक की लगन में रहने वाली हो ना? सिवाए एक बाप के और कोई लगन नहीं। एक बाप दूसरा न कोई, गलती से भी दूसरी जगह बुद्धि नहीं जानी चाहिए। सब संग तोड़ एक संग जोड़ - यही बाप का डायरेक्शन है। सदा मन से यही आलाप निकलता रहे - एक बाप दूसरा न कोई। इसी को अजपाजाप कहते हैं। एक दूसरे से आगे जाना है। जिसको देखो वही नम्बर- वन नज़र आए। बाप की सदैव बच्चों प्रति यही आशा रहती है; सब नम्बर-वन हो। नम्बर-वन अर्थात् सदैव विजयी। विजयी रत्न हार खिलाने वाले होते हैं, हार खाने वाले नहीं। शक्ति अर्थात् विकर्माजीत। अच्छा।