31-01-77 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
भक्तों को सर्व प्राप्ति कराने का आधार है- इच्छा मात्रम् अविद्या की स्थिति
साक्षात् बाप समान, सदा साक्षात्कार मूर्त्त, सर्व आत्माओं की कामनाओं को सम्पन्न करने वाले, सदा अपने भाग्य के गुणगान करने वाले दाता के समान सदा देने वाले महादानी, वरदानी आत्माओं प्रति बाबा बोले:-
अपने को हाइएस्ट अथॉरिटी (Highest Authority;ऊँच ते ऊँच हस्ती) समझते हो? अपनी प्यूरिटी (Purity;पवित्रता) की पर्सनालिटी (Personality;व्यक्तित्व) को जानते हो? अपनी अविनाशी प्रॉपर्टी (Property;सम्पत्ति) को बाप द्वारा प्राप्त कर सम्पन्न अनुभव करते हो? इस पुरानी दुनिया में अल्प काल के हद की पढ़ाई और हद के पोजिशन (Position) की अथॉरिटी समझते हैं, उनके आगे आप सभी की ऑलमाईटी अथॉरिटी (ALMIGHTY Authority;सर्वशक्तिवान्) बेहद की और अविनाशी है। ऐसी अथॉरिटी में सदा रहते हुए हर कर्म करते हो? बाप-दादा हर बच्चे को बेहद का मालिक बनाता है। बेहद की मालिकपन में बेहद की खुशी रहती है। अपने खुशी के खज़ाने को जानते हो ना? बाप बच्चों के भाग्य की रेखाएं देखते हुए हर्षित होते हैं कि श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले कोटों में कोई-कोई आत्माएं हैं।
बाप बच्चों को देख ज्यादा हर्षित होते हैं या बच्चे अपने भाग्य को देख ज्यादा हर्षित होते हैं? कौन ज्यादा हर्षित होते हैं? आप ऐसी श्रेष्ठ आत्माएं हो जो आपके हर कर्म चरित्र के रूप में गाए जाते हैं। हर चरित्र की अभी तक भी पूजा होती रहती है। अभी तक भी भक्त लोग आप दर्शनीय मूर्तियों का एक सेकेण्ड दर्शन करने के लिए तड़फ रहे हैं। ऐसे भक्तों की तड़फ अनुभव करते हो? भक्तों को प्रसन्न करने के लिए दिल में रहम और कल्याण की शुभ भावना उत्पन्न होती है? भक्तों को प्रसन्न करने का साधन कौन-सा है, उसको जानते हो? भक्तों को आप देवताओं द्वारा क्या प्राप्त होने की इच्छा है, इसको जानते हो ना? भक्तों की सर्व प्राप्ति करने का आधार ‘भक्तों की भावना’ है। भक्तों को सर्व प्राप्ति कराने का आधार - आपकी ‘इच्छा मात्रम् अविद्या’ की स्थिति है। जब स्वयं ‘इच्छा मात्रम् अविद्या’ हो जाते हो, तब ही अन्य आत्माओं की सर्व इच्छाएं पूर्ण कर सकते हो। ‘इच्छा मात्रम् अविद्या’ अर्थात् सम्पूर्ण शक्तिशाली बीज रूप स्थिति। जब तक मास्टर बीज रूप नहीं बनते, बीज के बिना पत्तों को कुछ प्राप्ति नहीं हो सकती। अनेक भक्त आत्माएं रूपी पत्ते जो सूख गए हैं, मुरझा गए हैं, उनको फिर से अपने बीज रूप स्थिति द्वारा शक्तियों का दान दो। जैसे जड़ चित्रों के दर्शन पर भक्तों की क्यू (Queue;लाईन) लग जाती हैं, वैसे आपको चैतन्य में भी अपने भक्तों की क्यू अनुभव होती है? क्या अभी तक भी भक्तों के पुकार के गीत सुनना अच्छा लगता है? बाप-दादा जब विश्व का सैर करते हैं तो भक्तों का भटकना, पुकारना देखते और सुनते हैं तो तरस आता है। आप कहेंगे कि बाप-दादा ही साक्षात्कार करा दे, और भक्तों की इच्छा पूर्ण कर दे। ऐसे सोचते हो? लेकिन ड्रामा में नाम बच्चों का, काम बाप का है। तो बच्चों को निमित्त बनना ही पड़ता है। विश्व के मालिक बच्चे बनेंगे या बाप बनेगा? प्रजा आपकी बनेगी या बाप की बनेगी? तो जो पूज्य होते हैं उनकी प्रजा बनती है, उनके ही फिर बाद में भक्त बनते हैं। तो अपनी प्रजा को या अपने भक्तों को अब भी निमित्त बन शान्ति और शक्ति का वरदान दो।
जैसे बाप बच्चों के आगे प्रत्यक्ष हुए, वैसे अब आप इष्टदेव भी अपने भक्तों के आगे प्रत्यक्ष होवो। देवता व देवी अर्थात् देने वाले, तो विधाता के बच्चे विधाता बनो। अपने लाईट का क्राउन (Crown) दिखाई देता है? रत्न जड़ित ताज इस लाईट के ताज के आगे कोई बड़ी बात नहीं लगेगी। जितना-जितना संकल्प, बोल और कर्म में प्यूरिटी को धारण करते जाते हैं, उतना यह लाईट का क्राउन स्पष्ट होता जाता है। बापदादा भी सभी बच्चों के नम्बरवार क्राउन देखते हैं। जैसे भविष्य में राज्य के ताज भी नम्बरवार होंगे, वैसे यहाँ भी नम्बरवार हैं। तो अपने नम्बर जानते हो? छोटा ताज है या बड़ा ताज? ताज है तो सभी के ऊपर! जब से बाप के बच्चे बने, पवित्रता की प्रतिज्ञा की, तो रिटर्न (Return;बदले) में ताज प्राप्त हो ही जाता है। सुनाया था ना- आलमाइटी अथॉरिटी के बच्चे बनने से अर्थात् अलौकिक जन्म होते ही ताज, तख्त और तिलक जन्मसिद्ध अधिकार के रूप में प्राप्त होता है। ऐसे अपने भाग्य के चमकते हुए सितारे को देखते हो? अगर सदा अपने भाग्य और भाग्य विधाता के गुण गाते रहो तो सदा गुण सम्पन्न बन ही जायेंगे। अपनी कमजोरियों के गुण नहीं गाओ, भाग्य के गुण गाते रहो। ‘प्रश्न से पार हो प्रसन्न चित्त रहो।’ जब तक खुद के प्रति कोई न कोई प्रश्न है, कैसे करें? क्या करे? तब तक दूसरों को प्रसन्न नहीं कर सकेंगे। समझा? अब अपना नहीं सोचो, भक्तों का ज्यादा सोचो। अब तक लेना नहीं सोचो, लेकिन देना सोचो। कोई भी इच्छाएं अपने प्रति न रखो लेकिन अन्य आत्माओं की इच्छाएं पूर्ण करने का सोचो। तो स्वयं स्वत: ही सम्पन्न बन जायेंगे। अच्छा।
ऐसे साक्षात् बाप समान सदा साक्षात्कार मूर्त्त, सर्व आत्माओं की कामनाओं को सम्पन्न करने वाले, सदा हाइएस्ट अथॉरिटी की स्थिति में स्थित, प्यूरिटी के पर्सनेलिटी में रहने वाले, सदा अपने भाग्य के गुणगान करने वाले, दाता के समान सदा देने वाले महादानी, सर्व वरदानों से सम्पन्न वरदानी, ऐसे महान आत्माओं को बाप-दादा का याद- प्यार और नमस्ते।