06-02-77 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
रियलाइजेशन द्वारा लिबरेशन
विश्व अधिकारी, सर्वगुण सम्पन्न बनने वाली श्रेष्ठ आत्माओं के प्रति बाप-दादा बोलेः-
आज बाप-दादा हर एक गाडली स्टुडेंट की रिजल्ट (परिणाम) को देख रहे हैं। कोर्स किया, रिवाईज कोर्स (REVISE Course) भी किया। रियलाइजेशन कोर्स (REALIZATION Course) भी किया। उसका रिजल्ट क्या हुआ? हर एक ने अपने को रियलाईज (Realise;अनुभव) किया कि पढ़ाई के अनुसार किस स्टेज को पा सकेंगे। राज्य-पद के संस्कार या प्रजा-पद के संस्कार दोनों में से मुझ आत्मा में कौन से संस्कार भरे हैं, यह जानते हो? राज्य-पद के संस्कार अर्थात् श्रेष्ठ पद के संस्कार क्या दिखाई देंगे? ‘अधिकारी और सत्कारी, निराकारी और निरहंकारी।’ ये विशेष धारणायें राज्य-पद का विशेष आसन है। यह आसन ही सिंहासन की प्राप्ति कराता है। चारों ही बातों का बैलेन्स हो। ऐसा आसन मजबूत है या हिलता रहता है? बाप-दादा आज रिजल्ट पूछ रहे हैं। रियलाइजेशन कोर्स का होम-वर्क दिया था, उसका क्या रिजल्ट हुआ? आप सब तो फाइनल पेपर के लिए तैयार थे, फिर अपना रिजल्ट क्या देखा, अपनी स्थिति का क्या अनुभव किया? बाप समान बाप के साथ-साथ जाने वाले बने हो? अगर समान नहीं तो साथ के बजाय वाया (Via) में रूकना पड़ेगा। वाया इसलिए करना पड़ेगा क्योंकि खाता क्लीयर (Clear;चुक्ता) नहीं हुआ होगा। रिफाइन (Refine;स्वच्छ) नहीं तो फाईन (दण्ड) भरना पड़ेगा। इसलिए साथ नहीं चल सकेंगे। वायदा किया है? साथ चलेंगे या रूककर चलेंगे? बाप से पूछते हैं कि आप पुराने बच्चों से क्यों नहीं मिलते; तो बाप भी रिजल्ट पूछते हैं - रिफाइन बने हो? क्या अभी कोई कोर्स की आवश्यकता है? रियलाइजेशन के बाद और क्या रह जाता है? अन्तिम रिजल्ट का स्वरूप है - लिबरेशन (Liberation) अर्थात् सबसे मुक्त।
आज बाप-दादा बाप और बच्चों का अन्तर देख रहे थे। बाप क्या कहते हैं और बच्चे क्या करते हैं। रिजल्ट क्या देखी होगी? मजेदार रिजल्ट होगी ना! बतायें या समझते हो? समझते हुए भी करते रहें तो क्या कहेंगे? मैजोरिटी (Majority;अधिकतर) साधारण पुरुषार्थी हैं। मुख्य कारण क्या है? बाप कहते हैं प्रभु-पसन्द बनो, विश्व-पसन्द बनो। लेकिन करते क्या हैं? आराम-पसन्द बन जाते। हो जायेगा, किसने किया है, सब ऐसे ही हैं। औरों से फिर भी हम ठीक हैं। ऐसी अनेक प्रकार की गिरती कला के डनलप के तकिए लगा कर आराम-पसन्द हो गए हैं। बाप कहते हैं कनेक्शन जोड़ो, गुणों और शक्तियों का वरदान लो और दो, लेकिन कई बच्चे कनेक्शन के महत्व को नहीं जानते। कनेक्शन जोड़ना आता नहीं, लेकिन करेक्शन करना (Correction;गलतियां निकालना) बहुत आता है। दूसरों की करेक्शन करने वाले कनेक्शन का अनुभव नहीं कर सकते। बाप कहते सदा याद की साधना में रहो लेकिन साधना के स्थान पर अल्पकाल के साधनों में ज्यादा बिजी रहते हैं। साधनों के आधार पर साधना बना देते हैं। साधन ज्यादा आकर्षित करते हैं। ऐसे साधकों की साधना सफल नहीं होती। जीवन मुक्त के स्थान पर बन्धन मुक्त आत्मा बन जाते हैं। समझा? बाप क्या कहते और बच्चे क्या करते हैं? रिजल्ट सुनी?
बाप-दादा श्रेष्ठ आत्माओं को सदा श्रेष्ठ नज़र से देखते हैं। श्रेष्ठ तकदीर की रेखाएं देखते हैं। यही आत्माएं विश्व के सामने चमकते हुए सितारे हैं। विश्व आपके कल्प पहले वाले सम्पन्न-स्वरूप, पूज्य-स्वरूप का सुमिरण कर रहा है, इसलिए अपना सम्पन्न स्वरूप प्रैक्टीकल में प्रख्यात करो। बीती हुई कमज़ोरियों पर फुल स्टाप लगाओ तब सम्पन्न रूप का साक्षात्कार होगा। सब पुराने संस्कार और स्वभाव दृढ़ संकल्प रूपी आहुति से समाप्त करो। दूसरों की कमज़ोरी की नकल मत करो। अवगुण धारण करने वाली बुद्धि का नाश करो, दिव्य गुण धारण करने वाली सतोप्रधान बुद्धि धारण करो। अधिकारी और सत्कारी दोनों का बैलेन्स बराबर रखना है। दूसरों की कमज़ोरी को विस्तार में नहीं लाओ और अपनी कमज़ोरी को छिपाओ नहीं। सफलता में स्वयं और असफलता में दूसरों को दोषी मत बनाओ। शान और मान का त्याग, साधनों का त्याग यही महान त्याग है। साकार बाप के समान अल्पकाल की महिमा के त्यागी बनो तब ही श्रेष्ठ भाग्यवान बन सकेंगे। शिव बाबा इन सब बातों से लिबरेशन चाहते हैं। इस अन्तिम फोर्स के कोर्स के लिए समय मिला है।
ऐसे विश्व अधिकारी, सत्कार दे विश्व के द्वारा सत्कारी बनने वाले, निर्माण से विश्व द्वारा नमन योग्य बनने वाले, बीती को समाप्त करने वाले, सर्व गुणों में सम्पन्न बनने वाले सदा समान और साथी रहने वाले, श्रेष्ठ भाग्यशाली आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।
टीचर्स के प्रति
जो कुछ सुना है उन सबका सार अपने जीवन में ला रही हो ना? क्योंकि टीचर का अर्थ ही है ‘राजयुक्त और सारयुक्त’। टीचर की विशेषता यह है - (1) जो विस्तार को सेकेण्ड में सार में लायें। जैसे इसेन्स (Essence;खुशबू) की एक बूंद होती है लेकिन वो बहुत कार्य कर लेती है, वैसे टीचर्स अर्थात् इसेंसफुल (Essenceful)। यर्थ के विस्तार को सेकेण्ड में सार रूप में करने वाली और अन्य को कराने वाली। (2) टीचर्स भी पावर हाउस (Power House) बाप के समान सब-स्टेशन हैं। तो जैसे पावर हाउस में सदा अटेंशन और चेकिंग रहती है कि कहीं भी फ्यूज न हो जाये। ऐसे टीचर्स को भी क्या चैकिंग करनी है? कभी भी कोई परिस्थिति में कनफ्यूज (Confuse) न हो जाएं। जैसे पॉवर हाउस की छोटी सी हलचल सारे एरिया (Area) की लाईट को हिला देती है। वैसे ही टीचर के कनफ्यूज होने से वातावरण में प्रभाव पड़ जाता है और वातावरण का प्रभाव आने वालों पर पड़ता है तो टीचर्स को अपने-आपको अनेक आत्माओं के चढ़ाने और डगमग करने के निमित्त समझना चाहिए। (3) टीचर्स अथक हो ना। छोटी-सी बातों में थकने वाली तो नहीं हो? पुरूषार्थ में अपने-आप से भी थकना होता है? कोई भी प्रकार के संस्कार या स्वभाव को परिवर्तन करने में दिल शिकस्त होना या अलबेलापन होना भी थकना है। यह तो होता ही रहता है, यह तो होगा ही, यह है अलबेलापन। बहुत मुश्किल है, कहाँ तक चलेंगे यह है दिल शिकस्त होना। तो पुरूषार्थ में अलबेलापन होना या दिल शिकस्त होना भी थकना है। (4) जिसमें परिस्थितियों को सामना करने की शक्ति है, वे सदा उमंग उत्साह में रहेंगे, कनफ्यूज नहीं होंगे। (5) टीचर्स हैं ही बाप के समान सेवाधारी, तो समान वाले हो ना? समानता की भी खुशी होती है। टीचर्स इस खुशी में रहती है कि बाप समान ‘मास्टर शिक्षक’ हैं, बाप समान निमित्त बने हुए हैं। बाप समान अनेक आत्माओं के कल्याण की जिम्मेवारी भी है तो बाप समान हैं। यह खुशी बहुत आगे बढ़ा सकती है। टीचर्स को देख बाप-दादा भी खुश होते हैं। समान को कहते हैं ‘फ्रेन्डशिप ग्रुप’ (Friendship Group) तो फ्रेन्डस का ग्रुप हो गया। (6) टीचर्स को सदा नया प्लान बनाना चाहिए। प्लानिंग बुद्धि हो और बहुत सहज प्लानिंग बुद्धि बन भी सकती हो। कैसे? अमृतवेले प्लान बुद्धि हो तो बाप-दादा द्वारा प्लान टच होंगे। तो प्लानिंग बुद्धि बनते जायेंगे। साकार आधार लेती हो इसलिए प्लानिंग बुद्धि नही बनती। नहीं तो टीचर्स का सम्बन्ध फ्रेन्डशिप होने के कारण समीप का है। तो बहुत सहयोग ले सकती हो। जब बाप देखते हैं हद के आधार बना रखे हैं, तो बाप क्यों मदद करें? (7) टीचर्स की विशेषता क्या है? टीचर्स इन्वेंटर (Inventor;आविष्कारक), क्रियेटर (Creator;रचयिता), प्लानिंग बुद्धि है; अनेक आत्माओं को उमंग उल्लास दिलाने वाली है, इन सब विशेषताओं को अब इमर्ज करो। तो हद की बातें मर्ज हो जायेंगी। समझा? (8) टीचर की विशेषता है अनुभवी मूर्त्त। बोलने वाली मूर्त्त नहीं, अनुभवी मूर्त्त। बोलना भी अनुभव के आधार पर। इतनी सब विशेषताओं से सम्पन्न नज़र से बाप-दादा देखते हैं। तो कितने महान हो गये! महानता को मेहमान समझ कर चलाना। महानता को अपनी प्रॉपर्टी नहीं समझ लेना। महानता को अपना समझ, बाप का नहीं समझा तो नुकÌसान है। बाप द्वारा मिली हुई महानता है तो बाप को बीच में से नहीं भूलना। अच्छा।
सदा खुश रहने का साधन
सर्व खज़ानों से सम्पन्न आत्मा की निशानी कौन सी होगी? जो खज़ानों से सम्पन्न होगा वा सदा अति इन्द्रिय सुख में मगन रहेगा। उसे बाप और सेवा के सिवाए कुछ भी याद नहीं रहेगा। वह हद की प्रवृत्ति को सम्भालते हुए ईश्वरीय सेवा अर्थ अपने को ट्रस्टी समझ करके प्रवृत्ति का कार्य करेगा। उसका हर कर्म श्रीमत प्रमाण होगा - उसमें जरा भी मनमत या परमत मिक्स नहीं करेगा। श्रीमत में अगर जरा भी मनमत या परमत मिक्स है तो उसकी रिजल्ट क्या दिखाई देगी? अगर श्रीमत के अन्दर मनमत या परमत मिक्स है तो जैसे शुद्ध चीज़ में कोई अशुद्ध चीज़ मिक्स हो जाती है तो कोई न कोई नुकसान हो जाता है। ऐसे यहाँ भी श्रीमत में मनमत या परमत मिक्स होती है तो सेवा से जो प्राप्ति होनी चाहिए वो नहीं होती। खुशी, सफलता, शक्ति का अनुभव भी नहीं होगा, श्रीमत की रिजल्ट है सफलता अर्थात् सर्व प्राप्ति। यह अनुभव भी करते होंगे कि किसीकिसी समय मेहनत बहुत करते हो लेकिन सफलता कम मिलती, अनुभव कम होता और कभी मेहनत कम पुरूषार्थ कम होते भी प्राप्ति ज्यादा होती है, इसका कारण यथार्थ और मिक्स। तो यह सूक्ष्म चेकिंग चाहिए। क्योंकि मनमत बहुत सूक्ष्म है। माया मनमत को ईश्वरीय मत में रॉयल रूप से मिक्स करती, आप समझेंगे यह ईश्वरीय मत है लेकिन होगी मनमत। इसके लिए परखने और निर्णय करने की शक्ति चाहिए। अगर यह दोनों शक्तियां पॉवरफुल हैं तो धोखा नहीं खायेंगे।
शान और मानका त्याग, साधनों का त्याग- यही महान त्याग है।
जिनमें रोने की आदत है वे बच्चे बाप से स्वत: ही विमुख हो जाते हैं। मन में दु:ख की लहर आना यह भी रोना हुआ। रोने वाले को बाप की प्राप्ति वाला नहीं कहा जाएगा। जब बाप के सम्बन्ध से वंचित होता है तब दु:ख की लहर आती है। तो रोना अर्थात् बाप से नाता तोड़ना। बाप से अपना मुख मोड़ लेना। जब कोई रोता है तो देखा होगा - किसके आगे मुख नहीं करेगा, छिपायेगा जरूर। तो जैसे स्थूल रोने से स्वत: मुख छिपाया जाता तो मन से रोने से भी बाप से विमुख स्वत: हो जाते। बाप की ओर पीठ हो जाती है। कभी भी दु:ख की लहर संकल्प में भी नहीं आना चाहिए। सुख दाता के बच्चे और दु:ख की लहर हो यह शोभता नहीं। मूड ऑफ करना भी मुख से रोना है। तो मूड ऑफ (Mood Off) करते हो? कभी कोई सर्विस का चान्स कम मिला, तो मूड ऑफ नहीं होती? अथक और आलस्य रहित अपने को समझते हो? आलस्य सिर्फ सोने का नहीं होता। अथक का अर्थ ही है जिसमें आलस्य नहीं हो। तो सदा अथक ही रहना अर्थात् सदा बाप के सम्मुख रहना तो सदा खुश रहेंगे।
फॉस्ट स्पीड (Fast Speed;तीव्र गति) वाले किसी भी समस्या में रूकेंगे नहीं। समस्या रोकने की कोशिश करेगी लेकिन वो जम्प देकर निकल जायेंगे। समस्याओं के सोच में समय नहीं गवाएंगे। फॉस्ट स्पीड अर्थात् जो बाप ने कहा वो किया। दूर से ही अनुभव होगा कि यह कोई अलौकिक व्यक्ति है।
शक्ति और खुशी प्राप्त करने का आधार है - श्रेष्ठ कर्म। श्रेष्ठ कर्म तभी होते हैं जब कर्म और योग दोनों साथ-साथ हो। सदैव चेक करो कि कर्म करते भी योगी हैं। कर्म करते योग भूलता तो नहीं? जैसे आत्मा और शरीर साथ-साथ है, अलग हो जाए तो मुर्दा बन जाते। वैसे अगर कर्म के साथ योग नहीं तो वो कर्म बेकार हो जाते। बन्धन डालने वाली आत्मा भी पुरूषार्थ में सहयोगी है। बन्धन से और ही अधिक इच्छा बढ़ती है तो बन्धन, बन्धन नहीं लकिन सहयोग हुआ ना! अगर सहयोग की दृष्टि से देखो तो मजा आयेगा। बन्धन को बन्धन की दृष्टि देखेंगे तो कमजोर बन जायेंगे।