14-04-77 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
श्रेष्ठ तकदीर की तस्वीर
अपनी तकदीर की तस्वीर द्वारा तकदीर बनाने वाले, हर परिस्थिति के पेपरों में एवररेडी, सदा महावीर रहने वाले बच्चों प्रति बाबा बोले :-
आज बाप-दादा हर बच्चे के तकदीर की तस्वीर देख रहे हैं। हर एक ने यथा- शक्ति अपनी-अपनी तस्वीर तैयार की है। तस्वीर के अन्दर विशेषता रूहानियत की चाहिए। रूहानियत भरी तस्वीर हर आत्मा को रूहानी बाप की राह बता देती है। जैसे लौकिक में बहुत सुन्दर बनी हुई तस्वीर अपनी रचयिता की स्मृति दिलाती है कि इसको बनाने वाला कौन? ऐसे ही रूहानी तस्वीर अर्थात् श्रेष्ठ तकदीर-वाली तस्वीर बनाने वाले बाप के तरफ स्वत: ही आकर्षित करती है। आपका भाग्य, भाग्य बनाने वाले भगवान की स्वत: याद दिलाता है। ऐसे श्रेष्ठ तकदीर की तस्वीर बनाई है? रूहानी तकदीर अर्थात् चलता-फिरता लाईट हाउस (Light House)। लाईट हाउस का कर्त्तव्य है - हरेक को सही राह दिखाना। चलते-फिरते इतने लाईट हाउस क्या कमाल करेंगे? ऐसे बने हो वा अब तक बनने के प्लान बना रहे हो?
इस बार बाप-दादा रिजल्ट लेने के लिए आए हैं। जब पेपर अर्थात् इम्तहान के दिन होते हैं तो उस समय पढ़ाई पढ़ायी नहीं जाती है, लेकिन पढ़े हुए का इम्तहान होता है। तो बाप-दादा ने भी संकल्प द्वारा, वाणी द्वारा, कर्म द्वारा पढ़ाई बहुत पढ़ायी है, अब उसकी रिजल्ट देखेंगे। हरेक अपनी रिजल्ट से संतुष्ट हैं? चैक किया है कि समय प्रमाण वा बाप की पढ़ाई प्रमाण, विश्व के आगे स्वयं को प्रत्यक्ष प्रमाण बनाया है? कोई भी बात को स्पष्ट करने के लिए अनेक प्रकार के प्रमाण दिए जाते हैं। लेकिन सभी प्रमाण में श्रेष्ठ प्रमाण, ‘पत्यक्ष प्रमाण’ ही है। तो ऐसे बने हो? जो कोई भी देखे तो अनुभव करे कि इन्हें पढ़ाने वाला वा बनाने वाला सर्वशक्तिवान बाप है। प्रत्यक्ष प्रमाण ही बाप को प्रत्यक्ष करने का सहज और श्रेष्ठ साधन है। इस साधन को अपनाया है? प्रत्यक्षता वर्ष तो मनाया लेकिन स्वयं को प्रत्यक्ष प्रमाण बनाया? सहज है वा मुश्किल है? क्योंकि प्रत्यक्ष प्रमाण अर्थात् जो हो, जिसके हो उसी स्मृति में रहना। वह मुश्किल होता है? अपने आपको याद करना किसको मुश्किल लगता है? टेम्पररी? (Temporary;अस्थायी) पार्ट बजाने के समय अपना टेम्पररी टाईम का स्मृति में रखना मुश्किल होता है। जैसे कोई फीमेल (Female) से मेल (Male) बनेगा तो फिर भी पार्ट बजाते-बजाते फीमेल का रूप कब स्मृति में आ जायेगा। लेकिन निजी स्वरूप कब भूलता नहीं है। तो आप जो हो, जिसके हो और जहाँ के हो वह अनादि निजी स्वरूप, अनादि बाप, अनादि स्थान है, न कि टेम्पररी। अनादि की स्मृति सहज होती है वा मुश्किल? प्रत्यक्ष प्रमाण अर्थात् अनादि रूप में स्थित रहना। फिर भी भूल जाते हो? वास्तव में भूलना मुश्किल होना चाहिए। क्योंकि भूलकर जो स्वरूप स्मृति में लाते हो वह अनादि नहीं, मध्यकाल का है। मध्यकाल अर्थात् द्वापर का समय, तो मध्यकाल का स्वरूप मुश्किल याद आता है। यह यथार्थ नहीं लेकिन अयथार्थ है।
बाप-दादा रिजल्ट लेने आये हैं, खास पुरानों से। जिन्होंने विशेष उल्हनों द्वारा आह्वान किया है। पुरानों का आह्वान करना अर्थात् रिजल्ट देने के लिए तैयार रहना। क्योंकि बाप-दादा ने पहले ही कह दिया था। जैसे नयों को सुनाते हो, बाप का आना अपने आपको जीते जी मरने का साहस रखना। क्योंकि बाप का आना अर्थात् वापस ले जाना वा पुरानी दुनिया का परिवर्तन करना। वैसे ही आपको बाप का बुलाना अर्थात् रिजल्ट देने के लिए तैयार रहना। तो पेपर के लिए तैयार हो ना? विश्व को परिवर्तन करने की हलचल देखते हुए अचल हो? स्वयं को हलचल कराने वाले निमित्त समझते हो वा अब तक अपने ही हलचल में हो? बाप-दादा हिलाने के पेपर लेवे? अचल रहेंगे वा डगमग होंगे? रेडी (REady) हो या एवररेडी (Eveready;सदा तैयार) हो? रिजल्ट क्या है? स्वयं के संस्कारों के पेपर, स्वयं के व्यर्थ संकल्पों के पेपर वा कोई न कोई शक्ति की कमी के कारण पेपर, सर्व से संस्कार मिलाने के पेपर, अब तक इन छोटे-छोटे हद के पेपर में भी हलचल में आते हो वा अचल हो? बेहद के पेपर अर्थात् अनादि तत्वों द्वारा पेपर, बेहद के विश्व के हलचल द्वारा पेपर, बेहद के वातावरण द्वारा पेपर, बेहद सृष्टि के तमोप्रधान अशुद्ध वायब्रेशन (Vibration) वायुमण्डल द्वारा पेपर। ऐसे बेहद के पेपर देने के लिए पहले है - ‘स्वयं द्वारा स्वयं का पेपर’, छोटे से ब्राह्मण संसार द्वारा वा ब्राह्मणों के संस्कारों द्वारा आया हुआ पेपर, यह कच्चा इम्तहान है वा पक्का इम्तहान है? जैसे छ: मास का और बारह मास का पक्का इम्तहान होता है ना! तो हद का पेपर दे पास हो गये हो? अभी बेहद का पेपर शुरू हो? इसी तरह अपने आपको चैक करो कि - किसी भी सब्जेक्ट के पेपर में पास मार्कस (Marks;नम्बर) लेने योग्य बने हैं वा पास विद् ऑनर (Pass With Honour;सम्मान सहित पास) बने हैं। समझा, क्या करना है? घबराते बहुत हो और घबराते किससे हो? माया के बुदबुदों से। जो अभी-अभी हैं, अभी-अभी नहीं होंगे। छोटे बच्चे भी बुदबुदों से नहीं डरते हैं। खेलते हैं न कि डरते हैं। मास्टर सर्वशक्तिवान बुदबुदों से खेलने वाले हैं न कि डरने वाले। अच्छा फिर आगे सुनाते रहेंगे। अच्छा।
ऐसे चलते-फिरते लाईट हाउस, अपने तकदीर की तस्वीर द्वारा तकदीर बनाने वाले, बाप को हर समय प्रत्यक्ष करने वाले, हर परिस्थिति के पेपरों में एवररेडी रहने वाले, सदा प्रत्यक्ष प्रमाण बन अन्य को प्रेरणा देने वाले, ऐसे सदा महावीर रहने वाले बच्चों को याद-प्यार और नमस्ते।
दीदी जी से वार्तालाप
आप सभी विशेष आत्माएं बाप-दादा के कार्य में सहयोगी हो। सहयोग के रिटर्न में विशेष सर्व और सहज प्राप्तियां होती हैं। जितना समय जो सर्व प्रकार से सहयोगी बनते हैं, उसका प्रत्यक्ष-फल सर्व प्राप्तियों का अनुभव सहज होता है। जैसे समय प्रति समय बाप के सहयोगी बनते हैं तो बाप भी रिटर्न में मदद करते हैं। हिम्मत का संकल्प एक बच्चे का और हज़ार श्रेष्ठ संकल्पों का सहयोग बाप का। ऐसा सहयोग समय पर देते रहते हैं। बच्चों ने सोचा और बाप के सहयोग से हुआ। यह है विशेष आत्माओं को सहयोगी बनने का प्रत्यक्ष फल। प्रत्यक्ष फल प्राप्त करने वाली आत्मा कब मुश्किल का अनुभव नहीं करेगी - इतना सहज लगेगा जैसे अभी-अभी की हुई बात को रिपीट कर रहे हैं। कल्प पहले की है - नहीं, अभी-अभी की है, अभी-अभी रिपीट कर रहे हैं। कल की बात को भी सोचना पड़ेगा, खेंचना पड़ेगा - लेकिन अभी-अभी की है। इसमें बुद्धि पर बोझ नहीं आयेगा। करना है, कैसे होगा यह बोझ भी नहीं। अभी-अभी किया है और अभी-अभी रिपीट करना है। ऐसा प्रत्यक्ष फल प्राप्त होता है। तो प्रत्यक्ष फल खाने वाले हो ना भविष्य के आधार पर सोच रहे हो। भविष्य तो है ही। लेकिन भविष्य से भी श्रेष्ठ ‘प्रत्यक्ष फल’ है। प्रत्यक्ष को छोड़ भविष्य के इन्तजार में नहीं रहना है। अभी-अभी बाप के बने और अभी-अभी मिला। बाप से दूर रहने वाली आत्माएं भविष्य अर्थात् दूर की बातें सोचेंगे। समीप रहने वाली आत्माएं सदा प्रत्यक्षफल का अनुभव करेंगी। एक का लाख गुणा के रूप में रिटर्न में अनुभव करेंगी। ऐसे होता है ना।
चल नहीं रहे हैं लेकिन कोई चला रहा है। अपनी गोदी में बिठाकर चला रहे हैं, तो मुश्किल थोड़े ही होगा! जैसे बच्चा अगर बाप की गोदी में घूमता है तो उसको कब थकावट नहीं होगी, मजा आयेगा। अपने पांव से चले तो थकेगा भी, रोयेगा भी, चिल्लायेगा भी। यह तो बाप चलाने वाला चला रहा है। बाप की गोदी में बैठे हुए चल रहे हैं। कितना अति इन्द्रिय सुख व आनन्द का अनुभव होता है! जरा भी मेहनत वा मुश्किल का अनुभव नहीं। प्राप्ति है वा मेहनत है? संगमयुगी सदा साथी बनने वाली आत्माओं को मेहनत क्या होती है, वह ‘अविद्या मात्रम्’ होते हैं। ऐसे बहुत थोड़े होंगे जिन्हों को मेहनत अविद्या मात्रम् होगी। यह है फाईनल स्टेज की निशानी। उसके समीप आ रहे हैं। पुरूषार्थ भी एक नैचुरल कर्म हो जाए। जैसे और कर्म नैचुरल है ना। उठना, बैठना, चलना, सोना नैचुरल कर्म हैं, वैसे स्वयं को सम्पन्न बनाने का पुरूषार्थ भी नैचुरल कर्म अनुभव हो तब इस नेचर को परिवर्तन कर सकेंगे। अभी तो वह सर्विस रही हुई है। अभी आप सब जा रहे हो, सभी को फाईनल पेपर देने लिए तैयार करने। क्योंकि आप सब निमित्त हो ना। ऐसे एवररेडी बन जाओ जो कोई भी छोटी वा बड़ी परीक्षा में अचल रहे। अभी तो छोटे पेपर में हलचल में आ जाते हैं। स्वयं के पेपर्स द्वारा ही हलचल में हैं। तो अब ऐसी तैयारी कर भेजना जो पुराने यहाँ आवें तो एवररेडी दिखाई पड़े। बाप-दादा ने रियलाइजेशन कोर्स दिया है तो उसकी रिजल्ट भी लेंगे। अनुभवी बनाते जाओ। उच्चारण करने वाले बन जाते हैं लेकिन अनुभवी कम बनते हैं। अगर अनुभवी मूर्त्त बन जाए तो अनुभवी कब धोखा नहीं खायेंगे। धोखा खाना अर्थात् अनुभवी नहीं। ऐसा ही लक्ष्य रख करके सभी में ऐसे लक्षण भरते जाओ। यह रिजल्ट देख लेंगे। अभी तो यही उमंग सर्व का होना चाहिए कि ‘सम्पन्न बन विश्व परिवर्तन का कार्य सम्पन्न करेंगे।’ नहीं तो विश्व परिवर्तन का कार्य भी हलचल में है। अभी-अभी बादल भरते हैं, थोड़ा बरसते हैं - फिर बिखर जाते हैं। कारण? स्थापना करने वाले विश्व परिवर्तक ही हिलते रहते हैं। अपने निशाने से बिखर जाते हैं तो परिवर्तन के बादल भी बिखर जाते हैं। गरजते हैं लेकिन बरसते नहीं। अच्छा।