18-04-77 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
योग्य शिक्षक का हर कर्म रूपी बीज फलदायक होगा, निष्फल नहीं
सेवा केन्द्रों पर निमित्त बनी बहनों प्रति बाबा बोले:-
टीचर्स अर्थात् शिक्षक है। शिक्षक का अर्थ क्या है? शिक्षक का यहाँ अर्थ है, ‘शिक्षा स्वरूप।’ बड़े से बड़ा शिक्षा देने का सहज साधन कौन-सा है? अनेक प्रकार के शिक्षा देने के साधन होते हैं ना। तो शिक्षा देने का सबसे सहज साधन कौनसा है? स्वरूप द्वारा शिक्षा देना, मुख द्वारा नहीं। साकार बाप ने सबसे सहज साधन ‘स्वरूप’ द्वारा ही शिक्षा दी ना? सिर्फ बोल में नहीं, कर्म से। कहेंगे वह सीखेंगे नहीं। लेकिन ‘जो करेंगे वह देख और भी करेंगे।’ यह मंत्र है। तो सबसे सहज तरीका, स्वरूप द्वारा शिक्षा देना। किसको कितना भी समझाओ तुम आत्मा हो, तुम शान्त स्वरूप, ज्ञानस्व रूप हो लेकिन वह समझेंगे तब तक नहीं, जब तक स्वयं उस स्वरूप में स्थित नहीं होंगे। ऐसे अनुभव की पढ़ाई पढ़ने वालों को कोई भी हरा नहीं सकते। पढ़ाई इतनी अविनाशी हो जाती है। तो कैसे शिक्षा देती हो - वाणी से या स्वरूप से?
हर कदम द्वारा अनेक आत्माओं को शिक्षा देना - यह है योग्य टीचर। भाषण द्वारा व सप्ताह कोर्स द्वारा किसको शिक्षा-स्वरूप बनाना। ऐसे शिक्षक के हर बोल - वाक्य नहीं, लेकिन ‘महावाक्य’ कहे जाते हैं। क्योंकि हर बोल महान बनाने वाला है तो महावाक्य कहेंगे। हर कर्म अनेकों को श्रेष्ठ बनाने का फल निकालने वाला हो। कर्म को बीज कहा जाता है, और रिजल्ट को कर्म का फल कहा जाता है। ऐसे शिक्षक का कर्म रूपी बीज फलदायक होगा। बीज अगर पावरफुल होता है तो फल भी इतना अच्छा निकलता है। हर कर्म रूपी बीज फलदायक होगा, निष्फल नहीं। इसको कहा जाता है ‘योग्य शिक्षक।’ उनका हर संकल्प, जैसे ब्रह्मा के संकल्प के लिए गायन है कि ब्रह्मा के एक संकल्प ने नई सृष्टि रच ली, वैसे ऐसी शिक्षक के संकल्प, नई सृष्टि के अधिकारी बनाने वाला है। समझा? शिक्षक की परिभाषा यह है।
टीचर्स को एक ‘लिफ्ट की गिफ्ट’ भी है। कौन-सी? टीचर्स बनना अर्थात् पुराने सम्बन्ध से त्याग करना। इस त्याग के भाग्य के लिफ्ट की गिफ्ट टीचर को है, पहले त्याग तो कर दिया ना। पहला त्याग है सम्बन्ध का। वो तो कर लिया। आगे भी त्याग की लिफ्ट लम्बी है। लेकिन इस त्याग का, हिम्मत रखने का, सहयोगी बनने का संकल्प किया, यह ‘लिफ्ट ही गिफ्ट’ बन जाती है। लेकिन सम्पूर्ण त्याग कर दो तो बाप के लिए गिफ्ट, दुनिया के लिए लिफ्ट बन जाओ। ऐसी लिफ्ट बन जाओ जो बैठा और पहऊँचा। मेहनत नहीं करनी पड़े। टीचर्स को चान्स बहुत है, लेकिन लेने वाला लेवे। टीचर्स बनने के भाग्य का तो सब गायन करते हुए, इच्छा रखते हैं। इच्छा रखते हैं अर्थात् श्रेष्ठ भाग्य है ना। उसको सदा श्रेष्ठ रखना वह है हरेक का नम्बरवार। टीचर्स जितना चाहे उतना अपना भविष्य सहज उज्वल बना सकती है - लेकिन वह टीचर जो योग्य टीचर हो। थोड़े में खुश होने वाली टीचर तो नहीं हो ना? बाप-दादा तो टीचर्स को किस नज़र से देखते हैं? हमजिन्स की नज़र से। क्योंकि बाप भी टीचर है ना। टीचर, टीचर को देखेंगे तो हमजिन्स की नज़र से देखेंगे। हमजिन्स को देख खुश होंगे। टीचर्स तो सदा सन्तुष्ट होंगी। पूछना अर्थात् हमजिन्स की इनसल्ट करना। अच्छा।