23-04-77   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


बाप द्वारा प्राप्त सर्व खज़ानों को बढ़ाने का आधार है - महादानी बनना

सदा सर्व खज़ानों से सम्पन्न, व्यर्थ को समर्थ बनाने वाले, सदा प्राप्ति स्वरूप, हर सेकेण्ड और संकल्प् में पद्मापति बनने वाले, ऐसे अखुट खज़ाने के अधिकारी आत्माओं प्रति बाबा बोले :-

बापदादा सभी बच्चों को सब खज़ानों से सम्पन्न स्वरूप में देख रहे हैं। एक ही सर्व अधिकार देने वाला, एक ही समय सभी को समान अधिकार देते हैं। अलग-अलग नहीं देते हैं। किसको गुप्त विशेष खज़ाना अलग नहीं देते हैं। लेकिन रिजल्ट में नम्बर वार ही बनते हैं। सर्व खज़ानों के अधिकार होते भी, देने वाला सागर और सम्पन्न होते हुए भी, नम्बर क्यों बनते हैं? क्या कारण बनता है? समाने की शक्ति अपनी परसेंटेज में है। इस कारण सभी सेंट-परसेंट (Cent-Percent;सम्पूर्ण) नहीं बन पाते। अर्थात् सर्व बाप समान नहीं बन सकते। संकल्प सभी का है, लेकिन स्वरूप में ला नहीं सकते। हर एक को अपने खज़ानें की परसेंटेज चैक करनी चाहिए कि सभी से ज्यादा कौनसा खज़ाना है, जिसको व्यर्थ करने से सर्व खज़ानों में भी कमी हो जाती है - और वह खज़ाना मैजारिटी (Majority;अधिकतर) व्यर्थ करते हैं। वह कौनसा खज़ाना है? वह है समय का खज़ाना।मगर समय के खज़ाना को सदा स्वयं के वा सर्व के कल्यण के प्रति लगाते रहो तो अन्य सर्व खज़ाने स्वत: ही जमा हो जाए। संकल्प के खज़ाने में सदा कल्याणकारी भावना के आधार पर, हर सेकेण्ड में अनेक पद्मों की कमाई कर सकते हो। सर्व शक्तियों के खज़ाने को कल्याण करने के कार्य में लगाते रहने से, महादानी बनने के आधार से एक का पद्म गुणा सर्व शक्तियों का खज़ाना बढ़ता जायेगा। एक देना दस पानानहीं, लेकिन एक देना पद्म पाना।

ज्ञान का खज़ाना समय की पहचान के कारण अब नहीं तो कब नहीं दे सकते। अब देंगे तो भविष्य में अनेक जन्म प्राप्त होगा। इस आधार पर समय के महत्व के कारण सदा विश्व-सेवाधारी बनने से सेवा का प्रत्यक्ष फल खुशी का खज़ाना अखुट बन जाता है। स्वासों का खज़ाना, समय के महत्व प्रमाण एक का पद्म गुणा या बनने के वरदान का समय समझने से अर्थात् कर्म और फल की गुह्य गति समझने से, व्यर्थ स्वासों को सफल बनाने की सदा स्मृति रहने से, श्रेष्ठ कर्मों का खाता वा श्रेष्ठ कर्मों का सूक्ष्म संस्कार रूप में बना हुआ खज़ाना स्वत: ही भरता जाता है। तो सर्व खज़ानों के जमा का आधार समय के श्रेष्ठ खज़ानों को सफल करोतो सदा और सर्व सफलता मूर्त्त सहज बन जाएंगे। लेकिन करते क्या हो? अलबेला अर्थात् करने के समय करते हुए भी उस समय जानते नहीं हो कि कर रहे हैं, पीछे पश्चात्ताप करते हो। इस कारण डबल, ट्रिपल समय एक बात में गंवा देते हो। एक करने का समय, दूसरा महसूस करने का समय, तीसरा पश्चात्ताप करने का समय, चौथा फिर उसको चैक करने के बाद चेंज करने का समय। तो एक छोटी सी बात में इतना समय व्थर्थ कर देते हो। और फिर बार-बार पश्चात्ताप करते रहने के कारण, कर्मों का फल संस्कार रूप में पश्चात्ताप के संस्कार बन जाते हैं। जिसको साधारण भाषा में मेरी आदतया नेचर (Nature;प्रकृति व स्वभाव) कहते हो। नेचुरल नेचर ब्राह्मणों की सदा सर्व प्राप्ति की है। अर्थात् ब्राह्मणों के आदि अनादि संस्कार विजय के हैं अर्थात् सम्पन्न बनने के हैं। पश्चात्ताप के संस्कार ब्राह्मणों के नहीं हैं। यह क्षत्रियपन के संस्कार हैं। चंद्रवंशी के संस्कार हैं। सूर्यवंशी सदा सर्व प्राप्ति सम्पन्न स्वरूप है। चंद्रवंशी बार-बार अपने आप में वा बाप से इन शब्दों में पश्चात्ताप करते हैं - ऐसे सोचना नहीं चाहिए था, बोलना नहीं चाहिए था, करना नहीं चाहिए था, लेकिन हो गया, अब से नहीं करेंगे। कितने बार सोचते वा कहते हो। यह भी रॉयल रूप का पश्चात्ताप ही है। समझा? कौन से संस्कार हैं? सूर्यवंशी के वा चंद्रवंशी के? बहुत समय के संस्कार समय पर धोखा दे देते हैं। तो पहले स्वयं को स्वयं के धोखे से बचाओ तो समय के धोखे से भी बच जायेंगे। माया के अनेक प्रकार के धोखे से भी बच जायेंगे। दु:ख के अंश मात्र के महसूसता से सदा बच जायेंगे, लेकिन सर्व का आधार - ‘समय को व्यर्थ नहीं गंवाओ।हर सेकेण्ड का लाभ उठाओ। समय के वरदानों को स्वयं प्रति और सर्व के प्रति कार्य में लगाओ। अच्छा।

सदा सर्व खज़ानों से सम्पन्न, व्यर्थ को समर्थ बनाने वाले, सदा प्राप्ति स्वरूप, हर सेकेण्ड और संकल्प में पद्मापति बनने वाले, ऐसे अखुट खज़ाने के अधिकारी आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

पार्टियों से:-

सूर्यवंशी संस्कार हैं ना? बार-बार एक ही भूल करने से संस्कार पक्के हो जाते हैं। तो सूर्यवंशी अर्थात् सूर्य समान मास्टर सूर्य हो। अपनी शक्तियों की किरणों द्वारा किसी भी प्रकार का किचड़ा अर्थात् कमी व कमजोरी है, तो सूर्य का काम है सेकेण्ड में किचड़े को भस्म करना। ऐसा भस्म कर देना जो नाम, रूप, रंग सदा के लिए समाप्त हो जाए। जैसे शरीर को अग्नि द्वारा जलाते हैं, तो सदा के लिए नाम, रूप, रंग समाप्त हो जाता है। तो भस्म करना अर्थात् भस्मबना देना। राख को भस्म भी कहते हैं। तो सूर्यवंशी का यह कर्त्तव्य है। न सिर्फ अपनी लेकिन औरों की कमजोरियों को भी भस्म बना देना, इतनी शक्ति है ना? सूर्य की शक्ति से और कोई शक्तिवान है क्या? चन्द्रमा के ऊपर सूर्य है, सूर्य के ऊपर तो और कोई नहीं है ना? चन्द्रमा में भस्म करने की शकि्त नहीं, लेकिन सूर्य में भस्म करने की शक्ति है। तो ऐसे हो ना? मास्टर सूर्य हो कि चन्द्रमा हो? या समय पर चन्द्रमा, समय पर सूर्य बन जाते हो? मास्टर सर्व शक्तिवान अर्थात् मास्टर ज्ञानसूर्य की हर शक्ति बहुत कमाल कर सकती है - लेकिन समय पर यूज़ करना आता है? तो समय है सहन शक्ति का और यूज़ करो निर्णय करने में समय ही गंवा दो तो रिजल्ट क्या होगी? जिस समय जिस शक्ति की आवश्यकता है उस समय उसी शक्ति से काम लेना पड़े। समय पर वही शक्ति श्रेष्ठ गाई जाती है। तो समय प्रमाण यूज़ करने का तरीका हो तो हर शक्ति कमाल कर सकती है; दो-चार शक्तियाँ भी यूज़ करने आवे तो बहुत-कुछ कर सकते हैं। दो-चार में राजी नहीं होना है, बनना तो सम्पन्न है, लेकिन अगर दो भी हैं तो भी कमाल कर सकते हो। हर शक्ति का महत्व है। भक्ति मार्ग में देखा होगा - हर शक्ति को, प्रकृति की शक्ति को भी देवता के रूप में दिखाया है। सूर्य देवता, वायु देवता, पृथ्वी देवता। तो इन सब शक्तियों को देवताओं व देवियों के रूप में दिखाया है; अर्थात् इनका इतना महत्व दिखाया है। जब कि आपकी हर शक्ति का भी पूजन होता है - जैसे निर्भयता की शक्ति का स्वरूप काली देवीहै। सामना करने की शक्ति का स्वरूप दुर्गाहै। यह भिन्न-भिन्न नाम से आपके हर शक्ति का गायन और पूजन हो रहा है। संतुष्ट रहना और करने की शक्ति है तो संतोषीमाता के रूप में गायन हो रहा है। सन्तुष्ट रहना अर्थात् सहन शक्ति। इतनी महिमा है आपकी।

वायु समान हल्के बनने की, अथवा डबल लाईट बनने की शक्ति आप में है तो उसका पूजन वायु देवता रूप में कर रहे हैं वा पवनपुत्रके रूप में पूजन कर रहे हैं। है यह आपके डबल लाईट रहने का पूजन। समझा? तो जिसके हर शक्ति का इतना पूजन है वह स्वयं क्या होगा? इतना महत्व अपना जानो। जानते हो अपना महत्व! अनगिनत देवी-देवताएं हैं, नाम भी याद नहीं कर सकेंगे। इतने परम-पूज्य हो! जानते हो अपने को कि साधारण ही समझते हो? अगर अपने पूजन को भी स्मृति में रखो तो हर कर्म पूज्य हो जाएगा।

हरेक को स्वयं को देखना है कि मैं रेस में किस नम्बर पर जा रहा हूँ। रेस कर रहा हूँ, यह कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन नम्बर कौनसा है? चल तो रहे हैं लेकिन कहाँ चींटी की चाल चलना, कहाँ शेर की चाल चलना! फर्क कितना है! चल तो सभी रहे हैं लेकिन चाल कौनसी है? शेर अर्थात् राजा। तो राजा किसके अधीन नहीं होता। ऐसे हो? कभी किसी भी प्रकृति या माया के अधीन तो नहीं होते? अधीन न होना अर्थात् शेर व शेरनी की चाल चलना। चींटी की चाल से तो बकरी की चाल अच्छी।

मधुबन निवासियों के साथ:-

सबसे समीप कौन है? कहावत है सिन्धी में - जो चूल्हे पर वो दिल पर।तो सबसे समीप रहने वाले मधुवन निवासी हैं। तो समीप रहने का रिटर्न क्या है? भक्ति में भी पुकारते हैं तो यही कहते हैं, ‘अपने सदा चरणों में बैठने दो’, वह तो हुए भक्त। लेकिन ज्ञानी तू आत्मा तो सदा दिल पर रहते। तो ऐसे समीप ते समीप रहने वाले जैसे सब स्थानों से समीप हो, वेसे स्थिति में भी समीप हो? स्थिति में समीप रहने वालों का स्थान दिल तख्तहै। स्थान में समीप रहने वाले स्थिति में भी समीप रहने वाले हैं? सभी ने सुना तो बहुत है अब कर्त्तव्य क्या रहा है? सुना हुआ जो है उसका रिटर्न देना। वह रिटर्न दे रहे हो। सुनाया ना एक हैं हार्ड-वर्कर (Hard Worker;अधिक मेहनती), दूसरे हैं चलते-फिरते योगी हो? अगर सिर्फ हार्ड-वर्कर हो तो हार्ड-वर्क करने के टाईम स्थिति भी हार्ड रहती है या लाइट रहती है? जैसे हार्ड-वर्क करने के समय शरीर हलचल में होता है, वैसे स्थिति भी हलचल में होती है या फरिश्ते रूप में होती है? काम बहुत अच्छा करते हो, कर्त्तव्य की महिमा सब करते हैं, लेकिन कर्त्तव्य के साथ स्थिति की भी सब महिमा करें। जो कुछ करते हो तो किए हुए श्रेष्ठ कार्यों का फल यहाँ के साथ भविष्य के लिए भी जमा करते हो? वा यहाँ ही किया, यहाँ ही खाया? संगम युग पर कार्य का फल अतीन्द्रिय सुखहै इसके सिवाय अल्प काल का नाम, मान, शान व प्रकृति दासी का फल स्वीकार किया तो भविष्य खत्म हो जाता है। जो जैसा और जितना बाप ने कहा है, उसका प्रत्यक्ष फल यहाँ भी लें तो भविष्य खत्म हो जाता है। तो चैक करो यहाँ ही किया, यहाँ ही खाया, या जमा भी होता है? जो जैसा और जितना बाप ने कहा है उसका प्रत्यक्ष-फल यहाँ भी लें और भविष्य जमा भी हो। जिस फल के लिए बाप ने कहा है, वह स्वीकार करने के सिवाय और कोई फल स्वीकार कर लेते तो नुकसान हो जाता। तो समीप रहने वाले अर्थात् समान बनने वाले। समीपता का लाभसमान बन करके दिखाना। लक्ष्य को लक्षण में लाओ। हर लक्षण लक्ष्य को स्पष्ट करे। लक्ष्य तो बहुत ऊँचा है ना। तो लक्षण भी इतने ऊँच हो। ऐसे सैम्पल बन दिखाओ जो बाप-दादा चैलेंज कर सके कि जैसे यह चल रहे हैं ऐसे चलो।

मधुवन के वायुमंडल का प्रभाव आटोमेटीकली (स्वत:) चारों ओर फैलता ही है जैसे मधुवन के वातावारण को कोई स्वर्ग का माडल कह करके वर्णन करते हैं। वैसे ही ब्राह्मण परिवार में चारों ओर मधुवन का वातावरण बाप समान चलते फिरते योगीपन का फैलता है। मधुवन निवासियों का सिर्फ कर्त्तव्य नहीं कि अपने आप में ठीक चल रहे हैं। आपका कर्त्तव्य है चारों ओर मधुवन के वातावरण और वायब्रेशन (Vibration) द्वारा सर्व को सहयोग देना। जैसे चान्स डबल, ट्रिपल है तो कर्त्तव्य भी डबल। मधुवन निवासियों का हर संकल्प और कर्म वरदान योग्य होना चाहिए। क्योंकि मधुवन है वरदान भूमि। आखिर वह दिन भी आएगा जो सबके मुख से यह शब्द निकलेगा कि मधुबन निवासी हर संकल्प व कर्म में वरदानी हैं संगठित रूप में।अभी बाप इस डेट को देख रहे हैं। अच्छा।