30-04-77   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


हाईएस्ट अथॉरिटी की स्थिति का आधार - कम्बाइन्ड रूप की स्मृति है

सदा प्रीति की रीति निभाने वाले, मर्यादाओं की लकीर में रहने वाले, आर्टाफिशल सोने हिरण के पीछे सच्चे साथी को किनारा न कर साथी से एक सेकेण्ड भी दूर न रहने वाले, सदा स्मृति की अंगुली साथी के साथ देते हुए चलने वाले, ऐसे वर्तमान और भविष्य तख्तनशीन आत्माओं प्रति बाबा बोले:-

अपने कम्बाइन्ड (Combined;मिला-जुला) रूप की स्थिति में सदा स्थित रहते हो? पहले, आत्मा और शरीर यह कम्बाइन्ड स्वरूप है जो अनादि सृष्टि चक्र में अनादि पार्ट बजाते रहते हैं। दूसरा, इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर ब्राह्मण आत्माएं अर्थात् बच्चों और बाप का सदा साथ कम्बाइन्ड रूप है। तीसरा, यादगार रूप में भी चतुर्भुज रूप दिखाया है। सदैव कम्बाइन्ड रूप की नॉलेज को धारण करते हुए चलो तो सदा हाइएस्ट अथॉरिटी अपने को अनुभव करेंगे।

पहले अपने शरीर और आत्मा के कम्बाइन्ड रूप को सदा स्मृति में रखो। शरीर रचना है, आत्मा रचता है। रचता और रचना का कम्बाइन्ड रूप है। तो स्वत: ही मालिक पन स्मृति में रहेगा। मालिक की स्मृति अर्थात् हाइएस्ट अथॉरिटी में रहेंगे। चलाने वाले होंगे न कि उनके वश चलने वाले। लेकिन चलते-चलते जैसे लोगों ने आत्मा परमात्मा को मिलाकर एक कर लिया, वैसे आत्मा और शरीर को अलग-अलग के बजाए मिलाकर एक मान लिया है। अर्थात् अपनी अथॉरिटी की स्मृति समाप्त कर दी। चलते- चलते बॉडी-कानसेस (Body-Conscious;देह अभिमान) हो गये तो कम्बाइन्ड के बजाए एक ही मानने लगे। लो अपने को भूला उसकी रिजल्ट क्या होगी! सब कुछ गंवाया तो बेहोश की स्टेज में अपना सब कुछ लुटा दिया।

ऐसे ही वर्तमान संगमयुग पर बाप और बच्चे के कम्बाइन्ड रूप की स्मृति भूल जाते हो तो हाईएस्ट अथॉरिटी के बदले अपने को निर्बल, शक्तिहीन, उदास, उलझी हुई आत्मा वा वशीभूत हुई आत्मा अनुभव करते हो। कम्बाइन्ड रूप की स्मृति समर्थी लाती है। किसी भी प्रकार के माया के विघ्नों को कम्बाइन्ड रूप की स्मृति से सामना करने की अथॉरिटी आटोमेटीकली अनुभव करते हैं। चाहे स्वयं कमजोर आत्मा भी हो लेकिन बाप के साथ के कारण सर्वशक्तिवान के संग वा स्मृति से मास्टर सर्वशक्तिवान अनुभव करते। तो कम्बाइन्ड रूप में स्मृति में रहेंगे तो यादगार स्वरूप सदा स्मृति में रहेगा। अलंकारी स्वरूप मायाजीत की निशानी है। अलंकारी सदा अपने को शक्तिशाली अनुभव करेंगे तो तीनों ही प्रकार के कम्बाइन्ड रूप को स्मृति में रखो।

युगल रूप से अकेले नहीं बनो। जैसे दुनिया में आजकल विशेष सभी कम्पैनियन (Companion;साथी) Dर कंपनी (साथ) चाहते हैं। इसके पीछे ही अपना समय, तन-मन-धन लगाते हैं। तो आपको बाप जैसा कम्पैनियन और कम्पनी सारे कल्प में नहीं मिल सकेगी। लौकिक में कम्पैनियन धोखा भी दे देते, दु:ख भी देते, मूड भी बदलते, कभी हंसेंगे, कभी रूलायेंगे। लेकिन अलौकिक कम्पैनियन तो सदा हर्षाते हैं। कब मूड ऑफ (Mood Off;बदलते) नहीं करते। धोखे से बचाते हैं। सदा एक का हजार गुना देने वाला दाता है, फिर भी कम्पैनियन को न पहचानने कारण सदा साथ के बजाय किनारा कर लेते। नखरे बहुत करते हैं। कभी मन को मोड़ लेते, कभी बुद्धि से यहाँ वहाँ भटकने लग जाते हैं। कभी संकल्प से तलाक भी दे देते हैं। किसी भी व्यक्ति या वैभव के वशीभूत हो जाना अर्थात् प्रभावित हो जाना। तो इतना समय अपने कम्पैनियन को संकल्प से तलाक देना हुआ। किनारा करना अर्थात् तलाक देना। दिल के सिंहासन पर सच्चे साथी के बजाय अल्पकाल के साथ निभाने वाले, हद की प्राप्ति का लोभ देकर धोखा खिलाने वाला अर्थात् आर्टिफिशल (Artificial;बनावटी) सोने का हिरण अपने तरफ आकर्षित कर देता है। तो तख्तनशीन सच्चे साथी के बजाए धोखेबाज साथी बना देते हैं। संकल्प में आकर्षित होना अर्थात् तलाक देना। वास्तव में बार-बार संकल्प में तलाक देना सदाकाल के राज्य भाग्य का तलाक लेना है।

कोई-कोई रूसते भी बहुत हैं। रूसने को एक मनोरंजन समझते हैं। बार-बार साथी को रोब भी बहुत दिखाते हैं - हम तो ऐसे चलेंगे ही। हम तो यह करेंगे ही। आपको भी करना है। आपने वायदा किया है आपको लेकर ही जाना है। सर्वशक्तिवान हो तो शक्ति दो। मदद देना आपका काम है। लेकिन मदद लेना मेरा काम है - यह याद नहीं रखते। एक कदम मेरा हज़ार कदम साथी का’ - यह भूल जाते हैं। जो बातें साथी ने सुनाई हैं वहीं बातें फिर साथी को ही याद दिलाते हैं। तो यह रोब हुआ ना? स्मृति की अंगुली बार-बार खुद छोड़ देते हैं और फिर कहते आप अंगुली क्यों नहीं पकड़ते हो। ऐसे नाज़ नखरेली बहुत हैं। लेकिन याद रखो ऐसा कम्पैनियन जो नयनों पर बिठाकर ले जाए ऐसा कब मिलेगा? तो कम्पैनियन से सदा तोड़ निभाओ। अर्थात् कम्बाइन्ड रूप में रहो।

साथ-साथ ब्राह्मणों की कम्पनी सबसे श्रेष्ठ कम्पनी है जो ड्रामा के भाग्य प्रमाण आप थोड़ी सी आत्माओं को ही प्राप्त है। लेकिन कम्पनी में भी देखा जाता है कि यह कंपनी लाभ देने वाली है वा प्राप्ति कराने वाली है। तो ब्राह्मण कंपनी सर्व प्राप्ति कराने वाली है। ब्राह्मणों में फुल कास्ट (Full Caste) ब्राह्मण और हाफ कास्ट (Half Caste) ब्राह्मण दोनों ही हैं। हाफ कास्ट अर्थात् क्षत्रिय - तो कम्पनी भी ब्राह्मणों की चाहिए। जो साथी की कंपनी वहीं कंपनी चाहिए। अगर हाफ कास्ट ब्राह्मणों की कंपनी कर लेते हैं तो सच्चे साथी से स्वत: समीप के बजाए दूर हो जाते हैं। ब्राह्मणों की कंपनी चढ़ती कला होती है। क्षत्रियों की कंपनी में ठहरती कला हो जाती है। जो जितना श्रेष्ठ होता है उसको कंपनी भी श्रेष्ठ होती है। तो ब्राह्मण श्रेष्ठ, क्षत्रियों को कम कर देते हैं। जो कम्पनी साथी को मंजूर नहीं। वफादार साथी कभी ऐसी कम्पनी नहीं करेंगे। ऐसे नहीं कहना कि क्या करें? कम्पनी तो चाहिए लेकिन कौन सी कम्पनी चाहिए यह भी सोचना। तो सदा कम्पैनियन और कंपनी को समझकर साथ निभाओ। कम्पैनियनन से प्रीति की रीति निभाओ। और कंपनी में मर्यादाएं निभाओ। समझा! इसको ही कहा जाता है कम्बाइन्ड रूप की स्मृति में हाईएस्ट अथॉरिटी की स्थिति में रहना। अच्छा।

सदा प्रीति की रीति निभाने वाले, मर्यादाओं की लकीर में रहने वाले, आर्टाफिशल सोने हिरण के पीछे सच्चे साथी को किनारा न कर साथी से एक सेकेण्ड भी दूर न रहने वाले, सदा स्मृति की अंगुली साथी के साथ देते हुए चलने वाले, ऐसे वर्तमान और भविष्य तख्तनशीन आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

दीदी जी से:-

इस बार ड्रामानुसार पुरानों से मिलने का पार्ट न चाहते भी हो गया है। महूर्त्त ही महारथियों से हुआ। और जो महारथी, बाप और बाप के गुह्य ईशारों को जान सकते हैं वह और सुनते हुए भी नहीं जान सकते। चाहे कितनी भी पब्लिक हो लेकिन बाप पब्लिक में भी पर्सनल मुलाकात भी करते हैं। लेकिन गुह्यता के रहस्य को समझ नहीं सकेंगे। जैसे वर्षा एक ही समय चारों तरफ पड़ती है लेकिन अगर धरती योग्य है तो वह वर्षा पड़ने से मालामाल हो जाती है। अगर धरती ही योग्य नहीं तो वर्षा पड़ते हुए भी मालामाल नहीं होगी।

तो महारथियों को बाप सदैव आदि से लेकर किस नज़र से देखते? बच्चे नहीं लेकिन भाई-भाई हैं। बड़े बच्चे भाई के ही समान हैं। जैसे बाप दाता हैं, वैसे महारथियों को भी बाप, दाता की नज़र से देखते हैं, न लेने वाले लेकिन बाप समान देने वाले हैं। जैसे बाप भाग्य विधाता हैं तो महारथियों को भी कौन सी कंपनी अच्छी लगती है? वैसे भी अगर कम्पैनियनशिप (Companionship;साथीपन) में एक लम्बा एक छोटा हो तो क्या होगा? कार्टून लगेगा ना? तो स्थिति में भी अगर कम्पैनियन समान नहीं होते अर्थात् मास्टर सर्वशक्तिवान नहीं बनते, साथी सर्वशक्तिवान और वह कमजोर तो यह भी एक कार्टून हो गया ना? लम्बे और छोटे की जोड़ी हो गई ना। वैसे लौकिक दुनिया में भी अगर साथी दोनों समान नहीं होते, चाहे शरीर के हिसाब से, चाहे नॉलेज के हिसाब से, चाहे लक्षण के हिसाब से वा मर्यादाओं के हिसाब से तो कभी भी साथी उनको साथ नहीं रखेंगे। किनारे रख देंगे। दुनिया के आगे उसको नहीं लायेंगे। तो बाप भी सदा साथी किसको बनायेंगे - जो समान होंगे। दुनिया के आगे सैम्पुल किसको रखेंगे? कार्टून को? तो महारथी अर्थात् समान साथी। ऐसे साथियों को ही हर कार्य में बाप साथ रखते वा और ही आगे रखते हैं। अगर कम्पैनियन की लाईन लगाकर बाप देखे तो क्या दिखाई देता होगा? कैसी सीन लगती होगी? लेकिन फिर भी बाप सागर होने कारण जैसे भी है समा लेते। सागर में तो सब समा जाते हैं ना। लेकिन नम्बर वार तो कहेंगे ना। हर एक को अपने आपको देखना है कि मैं कैसा साथी हूँ, कितने बार तलाक देते, कितने बार नाज़ नखरे करते, कितने बार रोब दिखाते? सारे दिन की दिनचर्या में देखें तो क्या-क्या करते हैं।

पार्टियों से:-

निरन्तर स्मृति में रहने का साधन है - मेरापन भूल जाना।सब कुछ बाप का है। यह तन भी आपका नहीं - बाप का है। बाप ने सेवा अर्थ दिया है - तो मेरापन निकल गया न? मेरापन खत्म तो देही अभिमानीस्वत: बन गए। अगर बाप की स्मृति थोड़ी भी किनारे हो जाती तो माया आती। सदा कम्बाइन्ड रहो तो माया की हिम्मत नहीं देहभान में लाने की। सदा बाप के सिवाए और कुछ सूझे ही नहीं।

जब बाप के साथ से किनारा करते तब कमज़ोर होते हो। जिस समय सोचते हो क्या करें? कैसे करें? माया पर जीत पाना मुश्किल है, यह सोचना अर्थात् किनारा करना। सर्वशक्तिवान बाप साथ हो तो क्या यह संकल्प आ सकता है? माया, बाप से अलग कराने लिए भिन्न-भिन्न रूप से आती हैं। मैं नहीं कर सकता? मैं कमजोर हूँ - कैसे करूँ? यह कमजोरी के संकल्प माया रावण की सेना के अकासुर-बकासुर हैं। उनसे डरना नहीं हैं सदैव सोचो मैं हँ ही विजयी-पहले भी रहा हूँ और अब भी हूँ।

इस ड्रामा के अन्दर विशेष पार्ट बजाने वाली विशेष आत्माएं आप बच्चे हो; क्योंकि सबसे विशेष ते विशेष है बाप। बाप के साथ पार्ट बजाने वाली आत्माएं आटोमेटीकली विशेष होंगी। दुनिया में भी अगर कोई विशेष आत्माओं के साथ थोड़ा सा भी समय रहता है तो उससे नशा रहता है। अगर प्राईम-मिनिस्टर (Prime Minister;प्रधान मंत्री) के साथ थोड़ा भी समय रहे तो कितना नशा रहता है। वह तो आज है कल नहीं। लेकिन यह कितना ऊँचा है, वह भी अविनाशी है। तो इतना नशा रहता है? सदा एक रस नशा - मैं बाप का, बाप मेरा।बाप सदा सागर और दाता, तो बच्चे भी सागर और दाता हो। बाबा मदद करो यह भी नहीं। बाप ने अपने पास कुछ रखा है क्या? अगर दे ही दिया फिर मांगेंगे क्या? जन्मते ही बाप ताज, तख्त, तिलक सब दे देता है। फिर मांगे क्यों? सदैव यह सोचो कि हमारे जैसे खुश-नसीब कोई नहीं, न हुआ है न होगा। तो सदा झूमते रहेंगे।

कर्मयोग का फल है, सहजयोग और खुशी जो कुछ करता उसका प्रत्यक्षफल यहाँ ही पद्मगुणा मिलता है। दुनिया में जो कुछ करते हैं खुशी के लिए। यह बेहद की अविनाशी खुशी है। मन के खुश रहने से शरीर की व्याधी भी सूली से कांटाहो जाती है। ज्यादा सोचना नहीं; सोचने से निर्णय शक्ति कम हो जाती है। पेपर आना माना परिपक्व होना। घबराना नहीं। पेपर्स फाउन्डेशन (Foundation;नींव) को पक्का करते। फाउन्डेशन को कूटते हैं - वह कूटना नहीं लेकिन मजबूत करना है।

कितनी भी बाहर की हलचल हो लेकिन एक सेकेण्ड में स्टाप, कितना विस्तार हो एक सेकेण्ड में समेट लें। स्वभाव, संस्कार, संकल्प, सम्बन्ध सब एक सेकेण्ड में समेट लें - यह प्रैक्टिस बहुत चाहिए। भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी सब कुछ होते हुए संस्कार प्रकट न हों। स्वभाव भी समय पर धोखा देते हैं। इसलिए स्वभाव, संकल्प, संस्कार सब समेट लो, इसे कहा जाता है - समेटने की शक्ति।जैसे प्रैक्टिस सदा कायम रखो। बहुत समय के अभ्यासी होंगे तब पास हो सकेंगे। अच्छा।