11-05-77 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सम्पन्न स्वरूप की निशानी - शुभ चिन्तन और शुभ चिन्तक
बाप समान सम्पूर्ण स्वरूप बच्चों को देख बाबा बोले:-
बाप-दादा सदैव बच्चों को सम्पूर्ण स्वरूप में देखते हैं। हरेक बच्चा बाप समान आनन्द, प्रेम-स्वरूप, सुख, शान्ति स्वरूप है। हरेक के मस्तक से, नयनों से क्या नज़र आते हैं? जो बाप के गुण है, वही गुण बच्चों से नज़र आते है? हरेक गुणों और शक्ति का भंडार है। अपने को भी सदैव ऐसे सम्पन्न समझकर चलते हो? सम्पन्न स्वरूप की निशानी, सर्व आत्माओं को दो बातों से दिखाई देगी। वह दो बातें कौन-सी हैं? ऐसी सम्पन्न आत्मा, सदैव स्वयं प्रति शुभ-चिन्तन में रहेगी और अन्य आत्माओं के प्रति शुभ-चिन्तक रहेगी। तो ‘शुभ-चिन्तन और शुभ-चिन्तक’ - यह दोनों ही निशानियाँ सम्पन्न आत्माओं में दिखाई देंगी। सम्पन्न आत्मा के पास अशुभ चिन्तन, वा व्यर्थ चिन्तन स्वत: ही समाप्त हो जाता है, क्योंकि शुभ चिन्तन का खज़ाना, सत्य ज्ञान, ऐसी आत्मा के पास बहुत होता है। जैसे रॉयल फैमिली (ROYAL FAMILY;राज्य परिवार) के बच्चे अशुभ चिन्तन वा व्यर्थ चिन्तन के पत्थरों वा मिट्टी से नहीं खेलते। शुभ चिन्तन के लिए कितना अथाह खज़ाना मिला है, उस को जानते हो ना? अखुट खज़ाना है ना? ‘शुभ चिन्तन अर्थात् समर्थ संकल्प।’ तो समर्थ और व्यर्थ, दोनों नहीं रह सकते। जैसे रात और दिन नहीं होते। अमृतवेले उठते और आंख खोलते ही, क्या शुभ संकल्प वा चिन्तन करना है, यह भी बाप ने सुना दिया है। जैसे अमृतवेले शक्तिशाली बाप के स्नेह सहित शुभ संकल्प करेंगे, वैसा ही सारे दिन पर प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि अमृतवेला आदि काल है; सतो प्रधान समय है। बाप द्वारा बच्चों को विशेष वरदानों, वा विशेष सहयोग का समय है। इसलिए अमृतवेले के, पहले संकल्प का आधार, सारे दिन की दिनचर्या पर होता है। जैसे गायन है - ‘ब्रह्मा ने संकल्प से सृष्टि रची’, संकल्प का इतना महत्व दिखाया हुआ है। ब्रह्मा आदि काल में रचना रचते हैं। वैसे तुम ब्राह्मण आदि काल अर्थात् अमृतवेले, जैसा संकल्प रचेंगे, वैसा ही सारे दिन की दिनचर्या रूपी सृष्टि ऑटोमेटिकली (AUTOMATICALLY;स्वत:) होती रहेगी।
ब्राह्मणों का पहला संकल्प कौन-सा है? उस समय कौन-सी स्टेज होती है? बाप समान स्थिति में स्थित हो मिलते हो ना? आँख खोलते, कौन-सा संकल्प आता है? बाप के सिवाए और कोई दिखाई देता है? जब गुडमार्निंग (Good Morning) करते हो, तो बच्चा समझ बाप को गुड मार्निंग करते हो ना? तो बच्चा अर्थात् मालिक। और बाप भी बच्चों को क्या रेसपांड (Respond;जवाब) करते हैं - ‘बालक सो मालिक बच्चे।’ बाप के भी सिरताज बच्चे। तो पहला ही संकल्प समर्थ हुआ ना। पहली मुलाकात बाप से होती है, और पहले मिलन में बाप हर रोज़, ‘समान भव’ का वरदान देता है। जिसमें सब वरदान समाए हुए हैं। तो जिसका आरम्भ ही इतना महान् हो तो उनका सारा दिन कैसा होगा? व्यर्थ हो सकता है?
लेकिन ऐसी श्रेष्ठ मुलाकात सदा कौन कर सकता है? जिसका संकल्प भी बाबा और संसार भी बाबा है। ऐसे बाप के समीप बच्चों की मुलाकात समीप से होती है। नहीं तो समीप की मुलाकात नहीं, लेकिन सामने की मुलाकात होती है। सब बच्चे, मुलाकात जरूर करते हैं, लेकिन (1) नम्बर वन बच्चे समान स्वरूप से, समीप अर्थात् साथ का अनुभव करते हैं, साथ भी इतना जैसे कि दो नहीं, लेकिन एक हैं। (2) सेकेण्ड नम्बर, बाप के स्नेह को, बाप के वरदानों को, बाप के मिलन को, समान स्वरूप से नहीं, लेकिन समान बनने के शुभ संकल्प स्वरूप होकर मिलते हैं। सम्मुख का अनुभव अर्थात् बाप से सर्व प्राप्ति हो रही हैं, ऐसी अनुभूति करते हैं। तो फर्स्ट नम्बर, समान बनकर मिलते; सेकेण्ड नम्बर, समान बनने के संकल्प से मिलते हैं। तीसरे नम्बर की तो बात ही नहीं पूछो। (3) तीसरे नम्बर वालों की लीला, विचित्र होती है। अभी-अभी बच्चा बन मिलेंगे, और अभी-अभी मांगने वाले बन जायेंगे। बहुरूपी होते हैं, कब किस रूप में मिलेंगे, कब किस रूप में। तो बच्चों में भी मिलन मनाने में नम्बर वार हो जाते हैं।
लेकिन जिनका संकल्प सदा श्रेष्ठ है अर्थात् बाप के समान-स्वरूप का मिलन है, उन्हों का अमृतवेले का पहला संकल्प सारे दिन की दिनचर्या पर प्रभाव डालता है। ऐसी आत्माएँ, निरन्तर शुभ चिन्तन में स्वत: ही रहती हैं। सेकेण्ड नम्बर स्वत: नहीं रहते, लेकिन बार-बार अटेंशन रखने से शुभ चिन्तन में रहते। तीसरा नम्बर शुभ चिन्तन और व्यर्थ चिन्तन दोनों युद्ध में रहते, कब विजयी, कब दिलशिकस्त हो जाते। सदा शुभ चिन्तन में रहो। उसका साधन सुनाया - ‘आदि काल का समर्थ संकल्प।’ ऐसे शुभ चिन्तन में रहने वाला, सारे दिन में, सम्बन्ध-सम्पर्क में आई हुई आत्मा प्रति सदा शुभ चिन्तक रहता है। कैसी भी कोई आत्मा, चाहे सतोगुणी, चाहे तमोगुणी सम्पर्क में आवे, लेकिन सभी के प्रति शुभ-चिन्तक अर्थात् अपकारी के ऊपर भी उपकार करने वाले। कभी किसी आत्मा के प्रति घृणा दृष्टि नहीं होगी, क्योंकि जानते हैं कि अज्ञान के वशीभूत हैं। अर्थात् बेसमझ बच्चा है। बेसमझ बच्चे के कोई भी कर्म पर घृणा नहीं होती है, और ही बच्चे के ऊपर रहम, वा स्नेह आयेगा। ऐसा शुभ चिन्तक सदैव अपने को विश्वपरिवर्त क, विश्व-कल्याणकारी समझते हुए आत्माओं के ऊपर रहम दिल होने के कारण, घृणा भाव नहीं, लेकिन सदा शुभ भाव और भावना रखेंगे। इसी कारण सदा शुभ चिन्तक होंगे। इसने ऐसा क्यों किया, यह नहीं सोचेंगे, लेकिन इस आत्मा का कल्याण कैसे हो, वह सोचेंगे। ऐसी शुभ चिन्तक स्टेज सदा होती है? अगर शुभ चिन्तन नहीं, तो शुभ चिन्तक भी नहीं। दोनों का सम्बन्ध है। ऐसे सम्पन्न बनने के लक्ष्य रखने वाले, इन दोनों लक्षण को धारण करो। समझा? अगर व्यर्थ संकल्प चलेंगे, तो शुभ चिन्तन की स्टेज ठहर नहीं सकेगी। इसलिए अपनी चैतन्य शक्ति को देखो। शुभ चिन्तक बनने का अभ्यासी बनो, आपकी ही शक्तियां हैं ना!
जो सेवा करते हैं, ऐसे सेवाधारियों के प्रति बाप का सदा विशेष स्नेह रहता है, क्योंकि त्याग मूर्त्त हैं ना। तो त्याग का भाग्य स्वत: ही मिल जाता है। क्या और कैसे मिलता है, उसको जानते हो? जैसे एक होता है मेहनत से कमाना और दूसरा होता है अचानक कोई लॉटरी मिल जाए तो अपने पुरूषार्थ की शक्तियों वा सर्वगुणों की अनुभूति करना, यह तो सभी करते हैं, लेकिन विशेष सहयोग का प्रत्यक्ष फल, ऐसी अनुभूति होगी, जैसे मेरे पुरूषार्थ की स्टेज से प्राप्ति अधिक है। जिस अनुभूतियों के पुरूषार्थ का लक्ष्य बहुत समय से रखते आए, वह अनुभूतियाँ ऐसे सहज और पॉवरफुल स्टेज की होगी, जो न चाहते हुए मन से यही निकलेगा कि - कमाल है बाबा की! मैंने जो सोचा भी नहीं कि ऐसे हो सकता है - वह साकार में अनुभव कर रहे हैं। तो ऐसे बाप के विशेष वरदान की प्राप्ति का अनुभव, सहयोगी आत्माओं को होता है। ऐसे अनुभव जीवन का एक विशेष यादगार रूप बन जाता हैं। अच्छा।
ऐसे बाप के सदा सहयोगी आत्माएं, हर कदम से फालो फादर करते हुए बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, सदा स्वयं की गुणों की प्राप्ति की लहरों में लहराते हर्षित रहने वाले, बाप के स्नेह में समाए हुए, ऐसी समान आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पार्टियों से
सदा इन कर्म इन्द्रियों से न्यारे अर्थात् अपने को ‘आत्मा मालिक’ समझ, बाप के प्यारे बन चलते हो? बाप के प्यारे कौन हैं? जो न्यारे हैं। बाप भी सर्व का प्यारा क्यों है? क्योंकि न्यारा है। अगर न्यारा नहीं होता, आप जैसे जन्म-मरण में आता तो सर्व का प्यारा नहीं हो सकता। तो आप भी सब बाप के प्यारे तब बनेंगे जब सदा अपने को शरीर के भान से न्यारे समझकर चलेंगे। बिना न्यारे बनने के, प्यारे नहीं बन सकते। जितना जो न्यारे अर्थात् आत्मिक स्मृति में रहते उतना ही बाप का प्यारे होते। इसलिए नम्बर वार याद-प्यार देते हैं ना। नम्बर का आधार है - न्यारे बनने पर। अपने नम्बर को न्यारेपन की स्थिति से जान सकते हो? बाप बच्चों की माला सुमरते हैं। माला सुमरने में नम्बर वन कौन आएंगे? जो न्यारे अथवा समान होंगे। ऐसे नहीं - हम तो पीछे आए हैं हमको कोई जानते नहीं है। बाप तो सब बच्चों को जानते हैं। इसिलए प्यारा बनने का आधार न्यारा बनना है - यह पक्का करो। इसी पहले पाठ के पेपर में फुल मार्क्स मिलने हैं। इसलिए चेक करो - चल रहा हूँ, बोल रहा हूँ जो भी कर रहा हूँ वह करते हुए, कराने वाला बन करके करा रहे हैं। आत्मा कराने वाली है और कर्म इन्द्रियां करने वाली हैं। इसी पाठ को पक्का करने से सदा सर्व खज़ाने के मालिकपन का नशा रहेगा। कोई अप्राप्त वस्तु अनुभव नहीं होगी। बाप मिला, सब मिला। सिर्फ कहने मात्र नहीं - उसे सर्व प्राप्ति का अनुभव होगा, सदा खुशी, शान्ति, आनन्द में मगन रहेगा। ‘मिल गया, पा लिया’ - यही नशा रहेगा।
सदा अपने स्वभाव के सीट (Seat;आसन) पर सेट रहते हो? स्वमान की सीट कौन-सी है? ऊँचे ते ऊँचा बाप के ऊँचे बच्चे व ब्राह्मण हैं। इस श्रेष्ठ स्वमान पर सदा सटे रहते हो या सीट हिलती है? माया सीट को हिलाने की कोशिश करती है। जब हैं ही ऊँचे ते ऊँच बाप के बच्चे तो फिर यह भूलना क्यों चाहिए? यह ब्राह्मण जन्म भी नेचुरल लाइफ (Natural Life;स्वाभाविक जीवन) है। नेचुरल लाइफ की बात भूलती नहीं। टेम्पररी (Temporary;अल्पकालिक) बात भूलती है। शुभ चिन्तन का खज़ाना, जो बाप देते हैं, उस खज़ाने का बार-बार सुमिरन करना अर्थात् यूज़ (USE) करना। यूज़ करने से खुशी होगी।
शुभ चिन्तन में रहना भी मनन है। मनन से जो खुशी रूपी मक्खन निकलेगा, वह जीवन को शक्तिशाली बना देगा। फिर कोई हिला नहीं सकता। माया हिलेगी, खुद नहीं हिलेगा। अंगद का मिसाल किन्हों का है? महारथियों का। तो आप महारथी हो ना? जब कल्प पहले नहीं हिले थे तो अभी कैसे हिलेंगे? सदा अचल, ‘अंगद समान’ सदा एक रस स्थिति में स्थित, जरा भी संकल्प में भी हिलता नहीं-’यह है अंगद।’
सदा शस्त्रधारी बन माया का सामना करते चल रहे हो? जो शस्त्रधारी होते हैं वह सदा निर्भय होते हैं। किससे? दुश्मन से। जैसे पहरे वाला चौकीदार अगर शस्त्रधारी होता है और उसको निश्चय है कि - मेरा शस्त्र दुश्मन को भगाने वाला है, हार खिलाने वाला है तो वह कितना निर्भय हो करके चलता रहता है। तो यहाँ भी माया कितना भी सामना करे लेकिन शस्त्रधारी हैं तो माया से कभी घबड़ायेंगे नहीं, डरेंगे नहीं, हार नहीं खायेंगे, अर्थात् सदा विजयी होंगे। तो सर्व शस्त्र सदा कायम रहते हैं? एक भी कम हुआ तो हार हो सकती है। शस्त्र है शक्तियाँ, तो सर्व शक्तियाँ रूपी शस्त्र सदा कायम रहते हैं? संभालने आते हैं? पाण्डवों की बहादुरी को बहुत लम्बे चौड़े रूप में दिखा दिया है - शक्तियों की बहादुरी शस्त्र दिखाये हैं। पाण्डव सदा प्रभु के साथी थे और साथ के कारण विजयी हुए। आपको भी सदा बाप के साथ का अनुभव होता है? जब साथ का अनुभव होगा तो जो बाप के गुण, बाप की शक्तियाँ वह आपकी हैं। जैसे बाप रूहानी है वैसे साथ में रहने वाले भी रूहानियत में रहेंगे। शरीर को देखते भी रूह को देखेंगे।
अमृतवेले का अनुभव सभी करते हो? अगर किसी को घर बैठे लॉटरी मिले और फिर भी उसको वह छोड़ दे तो उसको क्या कहेंगे? वह भी घर बैठे लॉटरी मिलती है, अगर अभी इस लॉटरी को न लेंगे तो यह दिन भी याद करेंगे। अभी यह प्राप्ति के दिन हैं, थोड़े समय के बाद यही दिन पश्चात्ताप के हो जाएंगे! तो जितना चाहो उतना लो। स्पीड तेज करो। सदैव याद रखो - ‘अब नहीं तो कभी नहीं।’ आज भी नहीं, लेकिन अभी - उसको कहा जाता है ‘तीव्र पुरुषार्थी।’
घर चलने की तैयारी की है? तैयार होना अर्थात् सब रस्सियां टूटी हुई हों। तो सब टूटी हुई हैं? अगर रस्सियां टूटी हुई होंगी तो घर जाएंगे नहीं तो जन्म लेना पड़ेगा। सर्विस में समाप्ति की है? ज्यादा उलहने वाले रहे हैं या सन्देश वाले? जब तक विश्व को सन्देश नहीं दिया तो विश्व-कल्याणकारी नाम कैसे पड़ेगा? फिर तो इण्डिया के कल्याणकारी हुए।
इतने अभ्यासी हुए हो कि कुछ भी हो - सहज ही शरीर से निकल जाएंगे। यह प्रेक्टिस है? कोई भी सम्बन्ध व संस्कार कसमकसा न करे। जाना तो सबको है लेकिन एक जाएंगे सहज, एक जाएंगे युद्ध करते-करते। तो जाने के लिए तैयार हो - यह तो ठीक, लेकिन सहज जाएंगे, यह तैयारी है? डायरेक्ट जायेंगे या वाया जायेंगे? ‘धर्मराजपुरी कस्टमपुरी है।’ अगर कुछ साथ में रह गया तो कस्टम में रूकना पड़ेगा। तो जाने के साथ यह भी तैयारी चाहिए। देखना कस्टम क्लियर है? पासपोर्ट आदि सब चेक करना, बैग-बैगेज सब चेक करना।
अच्छा। ओम् शान्ति।