02-06-77 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सर्व आत्माओं के आधार मूर्त्त, उद्धार मूर्त्त और पूर्वज ‘‘ब्राह्मण सो देवता है’’
सदा अपने पूर्वज की पोजीशन में स्थित रहनेवाले, सर्व के आधार मूर्त्त आत्माओं प्रति अव्यक्त बाप-दादा बोले:-
बापदादा चारों ओर के बच्चों को उन्हों के विशेष दो रूपों से देख रहे हैं। वह दो रूप कौनसे हैं, जानते हो? वह दो रूप हैं - एक सर्व के पूर्वज, दूसरा सर्व के पूजनीय। पूर्वज और पूजनीय! पूजन के साथ-साथ गायन योग्य तो हैं ही। ऐसे अपने दोनों की स्मृति रहती है कि हम ही सर्व धर्म स्थापक व सर्व धर्म की आत्माओं के पूर्वज हैं? ‘ब्राह्मण सो देवता’ अर्थात् आदि सनातन धर्म की आत्माएं बीज अर्थात् बाप द्वारा डायरेक्ट तना के रूप में हैं। सृष्टि वृक्ष के चित्र में भी आपका स्थान कहां है? मूल स्थान है ना। तो मूल तना, जिस द्वारा ही सर्व धर्म रूपी शाखाएं उत्पन्न हुई हैं। तो मूल आधार अर्थात् सर्व के पूर्वज ‘ब्राह्मण सो देवता’ हैं, ऐसे पूर्वज अर्थात् आदि देव द्वारा आदि रचना हो। हर एक को अपने पूर्वज का रिगार्ड और स्नेह रहता है। हर कर्म का आधार, कुल की मर्यादाओं का आधार, रीति-रस्म का आधार, पूर्वज होते हैं। तो सर्व आत्माओं के आधार मूर्त्त और उद्धार मूर्त्त आप पूर्वज हो। ऐसे अपने श्रेष्ठ स्वमान में स्थित रहते हो?
पूर्वज का स्वमान होने के कारण पूर्वजों के स्थान का भी स्वमान हैं। किसी भी धर्म वाले न जानते हुए भी भारत भूमि अर्थात् पूर्वजों के स्थान को महत्व की नज़र से देखते हैं। साथ-साथ सर्व महान् प्राप्तियों का आधार सहजयोग वा किसी भी प्रकार का योग वा आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति का केन्द्र भारत को ही मानते हैं। भारत के यादगार गीता शास्त्र को भी सर्व शास्त्रों के श्रेष्ठ स्वमान का शास्त्र मानते हैं। साइंस और साइलेन्स दोनों को प्रेरणा देने वाले गीता शास्त्र को मानते हैं। अपने पूर्वजों का चित्र और चारित्र देखने और सुनने की मन में इच्छा उत्पन्न होती है। पूरी पहचान न होने का कारण, स्मृति न होने का कारण, इच्छा होते हुए भी धर्म और देश की भिन्नता होने कारण, इतने समीप नहीं आ पाते हैं। इन सब बातों का कारण, उन सबके पूर्वज आप हो। जैसे लौकिक रीति में भी अपने पूर्वजों की भूमि अर्थात् स्थान से, चित्रों से, वस्तुओं से, बहुत स्नेह होता है, ऐसे ही जाने अनजाने भारत की पुरानी वस्तुओं और पुराने चित्रों का मूल्य और धर्म वालों को अब तक भी है।
ऐसे निमित्त बने हुए पूर्वज आत्माएं सदा यह महामंत्र याद रखते हैं कि जो इस समय अपना संकल्प अर्थात् मन्सा, वाचा और कर्मणा द्वारा कर्म व संकल्प चलता है वह सर्व आत्माओं तक पहुँचता है? तना द्वारा ही सर्व शाखाओं को शक्ति प्राप्त होती है। ऐसे आप आत्माओं द्वारा ही सर्व आत्माओं को श्रेष्ठ संकल्पों की शक्ति वा सर्वशक्तियों की प्राप्ति ऑटोमेटीकली होती रहती है। इतना अटेंशन रहता है? पूर्वज को ही सब फॉलो करते हैं। तो जो संकल्प, जो कर्म आप करेंगे उसको स्थूल वा सूक्ष्म रूप में सब फॉलो करते हैं। इतनी बड़ी जिम्मेवारी समझते हुए संकल्प व कर्म करते हो? आप पूर्वज आत्माओं के आधार से सृष्टि का समय और स्थिति का आधार है। जैसे आप सतो प्रधान हैं। गोल्डन एज प्रकृति वा वायुमंडल सारे विश्व का सतो प्रधान है। तो समय और स्टेज का आधार, प्रकृति का आधार आप पूर्वज के ऊपर है। ऐसे नहीं समझो कि हमारे कर्म का आधार सिर्फ अपने कर्म के हिसाब से प्रालब्ध प्रति है। लेकिन पूर्वज आत्माओं के कर्मों की प्रालब्ध स्वयं के साथ-साथ सर्व आत्माओं के और सृष्टि चक्र के साथ सम्बन्धित हैं। ऐसे महान आत्माएं हो? ऐसी स्मृति में रहने से सदा स्वत: ही अटेंशन रहेगा। किसी भी प्रकार का अलबेलापन नहीं आयेगा। साधारण वा व्यर्थ संकल्प वा कर्म नहीं होगा। सदा इस श्रेष्ठ पाज़ीशन में रहो। आपकी पोज़ीशन के आगे माया नमस्कार करेगी। पांच विकार और पांच तत्व आपके आगे दास रूप में बन जायेंगे। और आप पांच विकारों को ऑर्डर करेंगे कि आधा कल्प के लिए विदाई ले जाओ। प्रकृति सतो प्रधान सुखदाई बन जायेगी। अगर पूर्वज की पोजीशन से संकल्प द्वारा आर्डर करेंगे तो वह न माने, यह हो नहीं सकता। अर्थात् प्रकृति परिवर्तन में न आए व पांच विकार विदाई न लें, यह हो नहीं सकता। समझा! ऐसा श्रेष्ठ स्वमान बाप चारों ओर के महावीर बच्चों को दे रहे हैं। नम्बरवार तो सब हैं ही। अच्छा।
ऐसे सर्व के आधार मूर्त्त, माया और प्रकृति के भी बन्धनों से मुक्त, सदा अधिकारी सदा अपने पूर्वज की पोजीशन में स्थित रहने वाले, अपने हर संकल्प और कर्म द्वारा सर्व आत्माओं को श्रेष्ठ और शक्तिशाली बनाने के निमित्त समझने वाले, ऐसे मास्टर रचता, मास्टर सर्वशक्तिवान, नॉलेजफुल आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।
निर्मलशान्ता दादी जी से
स्वयं को पूर्वज समझती हो? अभी विदेश में भी जो निमित्त दादी गई है लेकिन किस लिए गई है? सर्व धर्म वालों को अपने पूर्वज की नज़र से देखेंगी। भासना आएगी, वायब्रेशन आयेगी कि यह आत्माएं हमारे सम्बन्धी हैं। हमारे हैं। लेकिन कैसे हैं, वह जब सम्पर्क में आयेंगे तो समझ सकेंगे। लेकिन वायब्रेशन जरूर आयेगा। हर स्थान पर ऊँची नज़र से ऊँच आत्माओं की भावना से वायब्रेशन द्वारा, दृष्टि द्वारा कुछ प्राप्त हो जाए, इस भावना से देखेंगे। और देख भी रहे हैं। जैसे बादलों के बीच छिपा हुआ चाँद आकर्षित कर रहा है। ऐसे बहुत श्रेष्ठ वस्तु वा श्रेष्ठ व्यक्ति हैं ऐसे अनुभव करेंगे। लेकिन नॉलेज न होने के कारण बादलों के बीच में अभी अनुभव करेंगे। बादलों के बीच थोड़ी किरणें थोड़ी शीतलता नज़र आयेगी और आकर्षण होंगे स्पष्ट पाने लिए। तो पूर्वजों की प्रत्यक्षता की सेवा अर्थ निमित्त बन रहे हैं - कोई साकार में कोई आकार में। लेकिन सदा एक दो के सहयोगी हैं - ऐसा है ना? आप सभी भी स्वयं को सहयोगी समझते हो ना? निमित्त तो एक ही बनता है - लेकिन साक्षात्कार तो शक्ति सेना का होगा कि एक का होगा? जैसे बाप द्वारा बच्चों का साक्षात्कार होता है, बच्चों द्वारा बाप का होता है, वैसे ही निमित्त एक आत्मा द्वारा सर्व सहयोगी आत्माओं का भी साक्षात्कार होता है। अगर सब वहाँ चले जाएं तो बाकी यहाँ देखने किसको आयेंगे? सुनेंगे, और भी ऐसे हैं - तो आकर्षण होगी। सब चीज़ एक बारी थोड़ी दिखाई जाती है। सौदागर भी होता है तो सब चीज़ एक ही बार बाहर निकाल देता है क्या? एक-एक बात का महत्व रखते हुए फिर उसको आगे करते हैं। ड्रामानुसार हर रत्न की वैल्यू अलग-अलग समय और अलग-अलग स्टेज पर प्रत्यक्ष होती है। इसलिए चारों ओर यादगार मन्दिर बने हुए हैं। सिर्फ एक स्थान पर है क्या? फिर तो एक ही स्थान पर सबका मन्दिर बन जाए। लेकिन हर रत्न का हर स्थान भिन्न-भिन्न सेवा के महत्व का है, इसलिए चारों ओर मन्दिर है। चारों ओर यादगार है ना। गाँव में भी यादगार होगा। ऐसा कोई नहीं होगा जहाँ आप पूर्वजों का यादगार न हो। है कोई ऐसा गाँव?
दीदी जी से: -
आपका विमान तेज है वा दादी का? उनका विमान तो स्थूल है और आपका? वह है साइंस का विमान और आपका साइलेन्स का। साइंस का रचता है साइलेन्स। साइलेन्स की शक्ति से ही साइंस निकली है। रचता तो पॉवरफुल होता है ना! जैसे निमित्त बनी हुई साथी विशेष इस समय किस स्थिति में स्थित है? साक्षात्कार वा वरदानी मूर्त्त, महादानी मूर्त्त हैं, जो भी खज़ाने हैं उनको (महादानी मूर्त्त) बाप से शक्ति लेते सहज स्वयं की शक्ति द्वारा सर्व को संकल्प द्वारा वायब्रेशन द्वारा लाइट-माइट का अनुभव कराना यह वरदान है। तो जैसे निमित्त एक रत्न बना ऐसे और भी रत्न बनेंगे। विशेष इस सेवा का कंगन बाँधना चाहिए। तब ही सर्विस का नया मोड़ प्रैक्टीकल में दिखाई देगा। निमित्त बनी हुई आत्माएं जो पर्दे के अन्दर हैं, वह स्टेज पर आने की हिम्मत दिखायेगी तब तो नया मोड़ होगा। सारा समय पूर्वज की पोजीशन पर स्थित हो, स्वयं को तना समझ सर्व शाखाओं को शक्तियों का जल दो। नहीं तो सूखी पड़ी हुई हैं, उन्होंको फिर फिर से ताजा बनाओ। अच्छा।
पार्टियों से: -
हरेक स्वयं को विश्व कल्याणकारी समझते हुए, हर संकल्प और कर्म द्वारा विश्व का कल्याण हो, ऐसे संकल्प वा कर्म करते हो? जब हर संकल्प श्रेष्ठ होगा तब ही स्वयं का और विश्व का कल्याण होगा। अपनी ड्यूटी सदा स्मृति में रहनी चाहिए कि मैं विश्व कल्याण की इन्चार्ज हूँ। इन्चार्ज अपनी ड्यूटी को नहीं भूलता। लौकिक रीति में भी कोई ड्यूटी वाला अपनी ड्यूटी को अच्छी तरह न सम्भाले तो उसको क्या करते हैं (निकाल देते हैं) यहाँ किसी को भी निकाला नहीं जाता लेकिन स्वत: ही निकल जाता। वहाँ तनख्वाह कट कर देंगे, या वार्निंग देंगे निकाल भी, लेकिन यहाँ अगर अपनी ड्यूटी ठीक नहीं बजाते तो ड्रामानुसार प्राप्ति की तनख्वाह कट ही जाती है, खुशी कम हो जाती, शक्ति कम हो जाती। स्वत: ही अनुभव करते - नामालूम खुशी कम क्यों हो गयी? कारण क्या होता? किसी न किसी प्रकार से अपनी ड्यूटी यथार्थ रीति बजाते नहीं। कुछ मिस जरूर करते। तो ड्यूटी पर अच्छी तरह से लगे हुए हो? विश्व कल्याण के सिवाए और कोई संकल्प चले, यह हो नहीं सकता। अगर चलता है तो ड्यूटी पूरी हुई है क्या? तो अपनी ड्यूटी पर सदा कायम रहते हो? कि हद की जिम्मेवारी निभाते इस अलौकिक जिम्मेवारी को भूल जाते हो? सदा यह निश्चय रहे कि मैं विश्वकल्याणकारी हूँ, जितना निश्चय उतना नशा। अगर नशा कम तो सेवा भी कम करेंगे। इसलिए सदा ड्यूटी पर एक्यूरेट रहो। जो ड्यूटी पर एक्यूरेट रहता है उसको सभी ईमानदार की नज़र से देखते हैं। फेथफुल की नज़र से देखते हैं ना। बाप भी समझते हैं, जो एक्यूरेट अपनी सेवा में रहते हैं वही बाप के फेथफुल हैं।। एक होता है बाप के निश्चय में पूर्ण, लेकिन बाप के निश्चय के साथ-साथ सेवा में भी फेथफुल। यह भी सब्जेक्ट है ना। जैसे ज्ञान की सब्जेक्ट है वैसे सेवा की भी सब्जेक्ट है। तो इसमें फेथफुल ही नम्बर आगे जा सकता। नम्बर टोटल मार्क्स का होता है। लेकिन दूसरों की सेवा करते स्वयं की भी सेवा करो, ऐसे नहीं कि अपनी सेवा करते दूसरों की भूल जाओ; या दूसरों की करते अपनी भूल जाओ। दोनों का बैलेंस चाहिए; ऐसे को कहा जाता है विश्व कल्याणकारी। तो आत्मज्ञानी भी हो। लेकिन विश्व-कल्याणकारी, बाप द्वारा निमित्त बच्चे ही हो सकते। तो माताएं व शक्ति सेना शक्ति रूप से सेवा में उपस्थित रहती हो, स्वयं की कमज़ोरी होंगी तो सेवा में भी कमज़ोरी हो जाएगी। इसलिए शक्ति स्वरूप हो सेवा करो तब सफलता निकले। अपने को साधारण माता नहीं समझो - जगत् माता समझो, जगतमाता अर्थात् विश्व-कल्याणकारी।
पांडव भी महावीर समझ सेवा में उपस्थित हो? महावीर मुश्किल को सहज बनाता, यादगार देखा ना, संजीवनी बूटी लाना कितना मुश्किल था, लेकिन सारा पहाड़ ही ले आया। महावीर अर्थात् पहाड़ को राई बनाने वाला। ऐसे महावीर बन सेवा की स्टेज पर आओ। जैसी स्टेज होगी वैसा रेस्पान्ड मिलेगा। एक्टर जब कोई एक्ट करता तो अगर स्टेज अच्छी होगी तो एक्ट की भी वैल्यू होगी। काम भला कितना करो लेकिन कौनसी? स्टैज पॉवरफुल है, कि सिर्फ एक्ट करते रहते? स्टेज पर स्थित रहते हर एक्ट करो फिर देखो कितनी सफलता मिलतती।
मधुबन वासी: -
निर्विघ्न हो ना? अखण्ड योगी हो? योग कब खंडन तो नहीं होता? जिससे प्रीत होती, वह प्रीत की रीति निभाने वाले अखंड योगी होते। आजकल जो महान आत्माएं भी कहलाती हैं उन्हों के नाम भी अखंडानन्द हैं, लेकिन सब में अखंड स्वरूप तो आप हो ना! आनन्द में भी अखंड, सुख में भी अखंड..... सबमें अखंड हो? वातावरण और वायब्रेशन का भी सहयोग है, भूमि का भी सहयोग है, तो मधुबन निवासियों के लिए सहज है - सिर्फ संगदोष में न आएं, दूसरा - दूसरे के अवगुणों को देखते-सुनते ‘डोन्ट केयर।’ तो इस विशेषता से अखंड योगी बन सकते। अगर कोई के संगदोष में आ जाते या अवगुण देखते तो योग खंडित होता। जो अखंड योगी नहीं वह पूज्य नहीं हो सकते, अगर योग खंडित होता तो थोड़े समय के लिए पूज्य होंगे; सदा का पूज्य बनना है ना। आधा कल्प स्वयं पूज्य-स्वरूप, आधा कल्प जड़ चित्रों का पूजन। ऐसे हो? अच्छा।