18-06-77 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
योग की पॉवरफुल स्टेज कैसे बने?
सदा बाप के हर आज्ञा का पालन करने वाले, आज्ञाकारी, वफादार, सदा स्वयं को अभ्यास में बिजी रखने वाले, सम्पूर्ण ज्ञान और योग की हर विशेषता को जीवन में लाने वाली आत्माओं के प्रति बाप-दादा ने ये महावाक्य उच्चारे:-
रूहानी मिलन मनाने के लिए वरदान भूमि पर आये हो। रूहानी मिलन वाणी से परे स्थिति में स्थित होने से होता है वा वाणी द्वारा होता है? वाणी से परे स्थिति प्रिय लगती है वा वाणी में आने की स्थिति प्रिय लगती है? वाणी से परे स्थिति शक्तिशाली है और सर्व की सेवा के निमित्त बनाती वा वाणी द्वारा सर्व की सेवा करने से स्थिति शक्तिशाली अनुभव होती है? बेहद की सेवा वाणी से परे स्थिति द्वारा होती है वा वाणी से होती है? अन्तिम सम्पूर्ण स्टेज जिसमें सर्व शक्तियों से सम्पन्न मास्टर सर्वशक्तिवान, मास्टर नॉलेजफुल की स्थिति प्रैक्टिकल रूप में होती है। ऐसी सम्पूर्ण स्थिति वाणी से परे की होती है वा वाणी में आने से होती है? सर्व आत्माओं के प्रति विश्व कल्याणकारी, महादानी, वरदानी, सर्व प्रति सर्व कामनाओं की पूर्ति करने वाली स्टेज वाणी से परे स्थिति की है वा वाणी में आने की? दोनों के अनुभवी दाेनों स्टेजेस को जानने वाले हो? दोनों में से ज्यादा समय किसमें स्थित हो सकते हो? कौन-सी स्थिति सहज अनुभव होती है? ऐसे एवररेडी हो जो सेकेण्ड में जिस स्थिति में स्थित होने का डायरेक्शन मिले तो उसी समय स्वयं को स्थित कर सको वा स्थित होने में ही समय निकल जाएगा? क्योंकि जैसे समय सम्पन्न होने का समीप आ रहा है, तो समय के पहले स्वयं में यह विशेषता अनुभव करते हो? अन्तिम समय फुल स्टॉप (Full Stop;पूर्ण विराम) होने सर्वश्रेष्ठ साधन यही है, जो डायरेक्शन मिले उसी प्रमाण, इसी घड़ी उस स्थिति में स्थित हो जाना। इस साधन के प्रैक्टिस को अनुभव में ला रहे हो? प्रैक्टिस है? बाप-दादा ने अभ्यास तो बहुत समय से सिखाया है और सिखा रहे हैं लेकिन इस अभ्यास में स्वयं को सम्पन्न कितने समझते हो? अभी इस वर्ष के अन्त तक स्वयं को ऐसे एवररेडी बना सकेंगे? तैयार हो वा समय को देखते स्वयं का अभ्यास करने में और ही अलबेल हो गए हो? नाम रूप कब विनाश होगा? इस बात को सोचते हुए पुरूषार्थ में सम्पन्न होने के बजाए, व्यर्थ चिन्तन वा व्यर्थ संकल्पों की कमज़ोरी में आराम पसन्द हो गए हो?
आजकल बच्चों के पुरूषार्थ की रफ्तार देखते हुए बाप-दादा मुस्कराते रहते हैं। सर्व आत्माओं को बार-बार सन्देश यही देते रहते कि ‘योगी बनो, ज्ञानी बनो’ और सन्देश देने वाले स्वयं को यह सन्देश देते हो? मैजारिटी आत्माएं विशेष सब्जैक्ट याद की यात्रा वा योगी बनो कि स्टेज में कमज़ोर दिखाई दे रही हैं। बार-बार एक ही शिकायत बाप-दादा के आगे वा निमित्त बनी हुई आत्माओं के आगे करते हैं - योग क्यों नहीं लगता वा निरन्तर योग क्यों नहीं रहता? योग की पॉवरफुल स्टेज कैसे बने? अनेक बार अनेक प्रकार की युक्तियां मिलते हुए भी बार-बार यही चिटकियां बाप-दादा के मिलती हैं। उससे क्या समझा जाए? सर्व शक्तिवान के बच्चे बन शक्तिहीन आत्मा होना, जो स्वयं को भी कंट्रोल न कर सके, वे विश्व के राज्य का कन्ट्रोल कैसे करेंगे? कारण क्या है? योग तो सीखा, लेकिन योगयुक्त रहने की युक्तियों को प्रयोग करना नहीं आता है। योग-योग करते परन्तु प्रयोग में लाने का अटेन्शन नहीं रखते।
वर्तमान समय विशेष एक लहर दिखाई देती है। कोई भी बात सामने आती तो बाप द्वारा मिली हुई सामना करने की शक्ति का स्वयं प्रयोग नहीं करते, लेकिन बाप को सामने कर देते हैं कि, आपको साथ ले जाना है, हमें शक्ति दो, मदद देना आप का काम है, आप न करेंगे तो कौन करेगा? थोड़ी सी आशीर्वाद कर दो, आप तो सागर हो, हम को थोड़ी सी अंचली दे दो। स्वयं की सामना करने की हिम्मत छोड़ देते हैं, और हिम्मतहीन बनने के कारण मदद से भी वंचित रह जाते हैं। ब्राह्मण जीवन का विशेष आधार है - ‘हिम्मत।’ जैसे श्वास नहीं तो जीवन नहीं, वैसे हिम्मत नहीं तो ब्राह्मण नहीं। बाप का भी वायदा है - ‘हिम्मते बच्चे मदत् दे बाप’ सिर्फ मदत् दे बाप नहीं है। आजकल की लहर में बाप के ऊपर छोड़ देते हैं। और स्वयं अलबेले रह जाते हैं। अब करना क्या है? विशेष कमज़ोरी यह है जो हर शक्ति को वा हर ज्ञान की युक्ति को सुनते हुए वा मिलते हुए स्वयं के प्रति यूज़ नहीं करते अर्थात् अभ्यास में नहीं लाते। सिर्फ वर्णन करने तक लाते। लेकिन अन्तर्मुख हो हर शक्ति की धारणा करने के अभ्यास में जाओ। जैसे कोई नई इन्वेंशन (Invention;आविष्कार) करने वाला व्यक्ति दिन रात उसी इन्वेंशन की लगन में खोया हुआ रहता है वैसे हर शक्ति के अभ्यास में खोए हुए रहना चाहिए। जैसे सहनशक्ति वा सामना करने की शक्ति किसको कहा जाता है? सहन शक्ति से प्राप्ति क्या होती है, सहनशक्ति को किस समय यूज़ किया जाता है? सहनशक्ति न होने के कारण किस प्रकार के विघ्नों के वशीभूत हो जाते हैं? अगर कोई माया का रूप क्रोध के रूप में सामना करने आये तो किस रीति से विजयी बन सकते हो? कौन-कोन सी परिस्थितियों के रूप में माया सहनशक्ति के पेपर ले सकती है? वन इन एडवान्स (One In Advance;पहले से ही) विस्तार से बुद्धि द्वारा सामने लाओ। रीयल पेपर हॉल में जाने के पहले स्वयं का मास्टर बन स्वयं का पेपर लो, तो रीयल इम्तहान में कभी फेल नहीं होंगे। ऐसे एक-एक शक्ति के विस्तार और अभ्यास में जाओ। अभ्यास कम करते हैं, ‘व्यास’ सब बन गए हो, लेकिन अभ्यास नहीं करते हो। इसी प्रकार स्वयं को बिज़ी (Busy;व्यस्त) रखने नहीं आता, इसलिए माया आपको बिज़ी कर देती है। अगर सदा अभ्यास में बिजी रहो तो व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन्ट भी समाप्त हो जाए। साथ-साथ आपके अभ्यास में रहने का प्रभाव आपके चेहरे से दिखाई दे। क्या दिखाई देगा? ‘अन्तर्मुखी सदा हर्षितमुखी’ दिखाई देंगे, क्योंकि माया का सामना करना समाप्त हो जाएगा। जैसे अनुभवों को बढ़ाते चलने से बार-बार एक ही शिकायत करने से छूट जाएंगे। जैसे सर्वशक्तियों के अभ्यास के लिए सुनाया वैसे ही स्वयं को योगी तू आत्मा कहलाते हो, लेकिन योग की परिभाषा जो औरों को सुनाते हो उसका स्वयं को अभ्यास है?
योग की मुख्य विशेषताएं - सहज योग है, कर्म योग है, राजयोग है, निरन्तर योग है, प्रमात्म योग है। जो वर्णन करते हो वे सब बातें स्वयं के अभ्यास में लाए हो? सहज योग क्यों कहा जाता है? उसका स्पष्टीकरण अच्छी तरह से जानते हो? वा अभ्यास में भी लाया है? अगर सिर्फ नॉलेजफुल हो, तो अभ्यास में लाओ। और सर्व विशेषताओं का अभ्यास चाहिए तब सम्पूर्ण योगी बन सकेंगे। सहज योग का अभ्यास है और राजयोग का नहीं, तो फुल पास नहीं हो सकेंगे। इसलिए हर योग की विशेषता का, हर शक्ति का और हर एक ज्ञान की मुख्य प्वाइंट का अभ्यास करो। यही कमी होने के कारण मैजोरिटी कमज़ोर बन जाती है, वैसे अभ्यास की कमी के कारण कमज़ोर आत्मा बन जाते हैं। अभ्यासी आत्मा, लगन में मगन रहने वाली आत्मा के सामने किसी भी प्रकार का विघ्न सामने नहीं आता। लगन की अग्नि से विघ्न दूर से ही भस्म हो जाते हैं। जैसे आप लोग मॉडल बनाते हो ना - शक्ति-स्वरूप के, शक्ति से असुर वा पांच विकार भस्म हुए दिखाते हो ना, या भागते हुए दिखाते हो। तो यह मॉडल किस का बनाते हो? अभी क्या करेंगे? हर बात का प्रयोग करने की विधि में लग जाओ। अभ्यास की प्रयोगशाला मे बैठे रहो तो एक बाप का सहारा और माया के अनेक प्रकार के विघ्नों का किनारा अनुभव करेंगे। अभी ज्ञान के सागर, गुणों के सागर, शक्तियों के सागर में ऊपर-ऊपर की लहरों में लहरा रहे हो। इसलिए अल्पकाल की रिफ्रेशमेंट अनुभव करते हो। लेकिन अब सागर के तले में जाओ तो अनेक प्रकार के विचित्र अनुभव कर रत्न प्राप्त कर सकेंगे। स्वयं भी समर्थ बनो। अब यही चिटकियाँ नहीं लिखना, बाप को हंसी आती है। छोटी-छोटी बातें और वही-वही बातें लिखते हो। विनाशी डाक्टर का कार्य भी बाप के ऊपर रखते हैं। रचना अपनी, कर्मबन्धन अपना बनाया हुआ और तोड़ने की ड्यूटी फिर बाप के ऊपर। बाप की ड्यूटी है युक्ति बताना वा खुद ही करना? बाप बताने के लिए निमित्त है वा करने के लिए भी निमित्त है? नटखट हो जाते हैं ना। नटखट बच्चे सब बाप के ऊपर ही छोड़ देते हैं। कहते हैं - लौकिक बच्चा कहना नहीं मानता आप इसको ठीक करो। बाप तो ठीक करने का तरीका सुना रहे हैं। ‘करेंगे तो पायेगे।’ बाप को वर्ल्ड सर्वेंट समझते हुए सब बाप के ऊपर छोड़ना चाहते हैं, इसलिए जो डायरेक्शन मिलते हैं उस पर ध्यान देकर प्रैक्टिकल में लाओ तो सब विघ्नों से मुक्त हो जायेंगे। समझा? अच्छा।
सदा बाप के हर आज्ञा का पालन करने वाले आज्ञाकारी, ‘एक बाप दूसरा न कोई’ इस पाठ का पालन करने वाले, सदा स्वयं को अभ्यास में बिजी रखने वाले, सम्पूर्ण ज्ञान और योग की हर विशेषता को जीवन में लाने वाले ऐसी विशेष आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
विदाई के समय:-
महारथियों की स्पीड सबसे फास्ट अर्थात् तीव्र है, लेकिन साथ-साथ ब्रेक भी इतनी पॉवरफुल हो। हर सेकेण्ड में संकल्प द्वारा सारी विश्व तो क्या, तीनों लोंकों के चक्र को सामने लाते, तीनों लोंकों का चक्कर भी लगावें और ऊपर स्टॉप करें तो बुद्धि बिल्कुल बीज रूप स्थिति में सेकेण्ड में स्थित हो जावें - ऐसी प्रैक्टिस हो। अति विस्तार और स्टॉप। ब्रेक इतनी पॉवरफुल हो; स्टॉप करने में टाईम न लगे। जैसे स्थूल मिलिट्री वालों को अगर मार्शल (Marshal) आर्डर करता है, दौड़ रहे हैं फुल फोर्स में और मार्शल ऑर्डर करे - ‘स्टॉप’ - कोई सेकेण्ड भी लगावे तो शूट किया जाए। तो जैसे वह शारीरिक प्रैक्टिस है, वैसे यह है सूक्ष्म प्रैक्टिस। महारथियों के पुरूषार्थ की गति भी तीव्र और ब्रेक भी पॉवरफुल हो, तब अन्त में ‘पास विद् ऑनर’ बनेंगे। क्योंकि उस समय की परिस्थितियां बुद्धि में संकल्प लाने वाली होगी, उस समय सब संकल्पों से परे एक संकल्प में होने की स्थिति चाहिए। परिस्थितियां खींचेंगी। ऐसे टाइम पर ब्रेक पॉवरफुल न होगी तो पास न हो सकेंगे। इसलिए महारथियों की प्रैक्टिस ऐसी होनी चाहिए, जिस समय विस्तार में बिखरी हुई बुद्धि हो और उसी समय स्टॉप की पैक्टिस करें। जैसे ड्राईवर को जब मोटर चलाने की प्रैक्टिस कराते हैं तो जान-बूझ कर ऐसा रास्ता बना हुआ होता है जिससे मालूम पड़े कि यह कहां तक एक्सीडेन्ट से परे रह सकते हैं। इसी रीति से यह भी पहले से ही प्रैक्टिस चाहिए। स्टॉप कहना और होना। यह हैं अष्ट रत्नों की सौगात। एक सेकेण्ड भी यहाँ-वहाँ नहीं। इसलिए सिर्फ 8 निकलते हैं। ऐसी प्रैक्टिस है? बिल्कुल ऐसे अनुभवी हो जैसे स्थूल हाथ आदि कंट्रोल में हैं, वैसे सूक्ष्म शक्तियां तथा संकल्प कंट्रोल में हो। वास्तव में हैं यह विस्तार के संकल्प को कंट्रोल करने की बात, लेकिन उन लोंगों ने श्वास को कंट्रोल करने का साधन बना दिया है। यहाँ है विस्तार के बजाए एक संकल्प में स्थित होना, उन लोंगों ने श्वास को कंट्रोल करने का अभ्यास चालू कर दिया है। अब महारथियों के याद की यात्रा की ऐसी सिद्धि चाहिए। ऐसे एक संकल्प को धारण करने वाले, जो जितना समय चाहे बुद्धि को स्थित करें। अच्छा।
सदा बाप के हर आज्ञा को पालन करने वाले, आज्ञाकारी, ‘एक बाप दूसरा न कोई’ - इस पाठ को प्रैक्टिकल में लाने वाले वफादार, सदा अपने को अभ्यास में बिज़ी रखने वाले, सम्पूर्ण ज्ञान और योग की हर विशेषता को जीवन में लाने वाले, ऐसी विशेष आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।