25-01-1980 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"बिन्दु (ज्ञान सिन्धु परमात्मा) का बिन्दु (आत्मा) से मिलन"
आज बाप-दादा मिलने के लिए आये हैं। मुरली तो बहुत सुनी है। सर्व मुरलियों का सार एक ही शब्द है - ``बिन्दु'' जिसमें सारा विस्तार समया हुआ है। बिन्दु तो बन गये हो ना? बिन्दु बनना, बिन्दु को याद करना और जो कुछ बीता उसको बिन्दु लगाना। यह सहज अनुभव होता है ना? यह अति सूक्ष्म और अति शक्तिशाली है। जिससे आप सब भी सूक्ष्म फरिश्ता बन, मास्टर सर्व शक्तिवान बन पार्ट बजाते हो। सार तो सहज है ना या मुश्किल है? डबल फॉरेनर्स क्या समझते हैं? सहज है या डबल फॉरेनर्स को डबल इजी है? अब तो बाप-दादा सार स्वरूप देखना चाहते हैं।
हरेक बच्चा ऐसा दिव्य दर्पण हो जिस दर्पण द्वारा हर मनुष्य आत्मा को अपने तीनों काल दिखाई दें। ऐसे त्रिकालदर्शन कराने वाले दर्पण हो? जिस दर्पण से, `क्या था' और `अभी क्या हूँ'और `भविष्य में क्या मिलना है' - यह तीनों काल स्पष्ट दिखाई देने से सहज ही बाप से वर्सा लेने के लिए आकर्षित होते हुए आयेंगे। जब साक्षात्कार करेंगे अर्थात् जानेंगे और ऐसे जानेंगे जैसे स्पष्ट देखने का अनुभव हो। तो जब जानेंगे अर्थात् अनुभव करेंगे व देखेंगे कि अनेक जन्मों की प्यास व अनेक जन्मों की आशायें - मुक्ति में जाने की व स्वर्ग में जाने की, अभी पूर्ण होने वाली हैं तो सहज ही आकर्षित होते आयेंगे। दो प्रकार की आत्मायें हैं। भक्त आत्मायें प्रेम में लीन होना चाहती हैं और कोई आत्मायें ज्योति में लीन होना चाहती हैं। दोनों ही लीन होना चाहती हैं। ऐसी आत्माओं को सेकेण्ड में बाप का परिचय, बाप की महिमा और प्राप्ति सुनाए, सम्बन्ध की लवलीन अवस्था का अनुभव कराओ। लवलीन होंगे तो सहज ही लीन होने के राज को भी समझ जायेंगे। तो वर्तमान समय `लवलीन' का अनुभव कराओ। भविष्य लीन का रास्ता बताओ। तो सहज ही प्रजा बनाने का कार्य हो जायेगा। ऐसे त्रिकालदर्शी बनाने का दिव्य दर्पण बने हो? ऐसे दिव्य दर्पण में अपने पुरूषार्थ के हर समय की रिजल्ट का चित्र खींचो कि समर्थ रहे या व्यर्थ में गये। व्यर्थ का पोज और समर्थ का पोज दोनों ही दिखाई देंगे। समर्थ का पोज क्या होगा - मास्टर सर्व शक्तिवान व दिलतख्तनशीन। व्यर्थ का पोज क्या होगा - सदा युद्ध के रूप में योद्धे का पोज होगा। तख्तनशीन नहीं लेकिन युद्ध स्थल पर खड़े हैं। तख्तनशीन सफलता मूर्त और युद्ध स्थल में खड़े हुए मेहनती की मूर्त होंगे। छोटी-सी बात में भी मेहनत ही करते रहेंगे। वह याद स्वरूप होंगे, वह फरियाद स्वरूप। ऐसे अपना भी स्वरूप देखते रहेंगे और दूसरे को भी तीनों काल का दर्शन करायेंगे। ऐसे दिव्य दर्पण बनो। समझा।
आज तो डबल फॉरेनर्स और गुजरात से मिलना है। दोनों की डान्स करने में राशी एक ही है। वह भ् नाचते हैं और यह भी खूब नाचते हैं। गुजरात वाले भी प्रेम स्वरूप हैं और डबल फॉरेनर्स भी प्यार के अनुभव के आधार पर भागते हैं। ज्ञान के साथ-साथ प्यार मिला है। उस रूहानी प्यार ने ही इन्हें प्रभु का बनाया है। डबल प्यार मिलता है। एक बाप का दूसरा परिवार का। तो प्यार के अनुभव ने परवाना बनाया है। प्यार विदेशियों के लिए चुम्बक का काम करता है। फिर सुनने व मरने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। यह मरना तो पसन्द है ना। ये मरना अर्थात् स्वर्ग में जाना। इसलिए मरने वाले के लिए कहते हैं - स्वर्ग गया। वह मरने वाले नहीं जाते हैं, लेकिन संगम पर जो मरा, वह स्वर्ग गया। इसकी कॉपी करके जो देह से मरते हैं उसके लिए अखबार में डालते हैं कि फलाना स्वर्ग गया। तो मरना पसन्द है ना! अपनी मर्जा से मरे हो ना, मजबूरी से तो नहीं। यह सारी सभा मरजीवा बनने वालों की है। कहाँ साँस रूका हुआ तो नहीं है ना पुरानी दुनिया में। यही वन्डर है जो मरे हुए भी हँसते हैं। (फॉरेनर्स बाबा की बातों से हँस रहे थे।)
आप लोगों की क्रिश्चियन फिलासाफी में भी है कि मुर्दो में आकर जान डालते हैं। पहले मुर्दे बने फिर जान पड़ गई। नया जन्म हो गया। इस मरने में मजा है, डर नहीं है।
दीदी जी से - वर्तमान समय महावीरों की वतन में विशेष महफिल लगती है। क्यों लगती है, वह जानती हो? आजकल बाप-दादा ने जैसे स्थापना में ब्रह्मा के सम्पूर्ण स्वरूप द्वारा साक्षात्कार कराने की सेवा ली, ऐसे आजकल अष्ट रतन सो इष्ट रतन उनको भी शक्ति के रूप में साथ-साथ साक्षात्कार कराने की सेवा कराते हैं। स्थूल शरीर द्वारा साकारी ईश्वरीय सेवा में बिजी रहते हो लेकिन आजकल अनन्य श्रेष्ठ आत्माओं की डबल सेवा चल रही है। जैसे ब्रह्मा द्वारा स्थापना की वृद्धि हुई वैसे अभी शिव शक्ति के कम्बाइन्ड साक्षात्कार द्वारा साक्षात्कार और सन्देश मिलने का कार्य आपके सूक्ष्म शरीरों द्वारा भी हो रहा हैं। तो बाप-दादा अनन्य बच्चों को इस सेवा में भी सहयोगी बनाते हैं। इसलिए सूक्ष्म सेवा के प्रैक्टिकल प्लैन के कारण वहाँ महफिल लगती है। इसलिए महावीर बच्चों को कर्म करते भी किसी भी कर्मबन्धन से मुक्त, सदा डबल लाईट रूप में रहना है। बाप ने सूक्ष्म वतन में इमर्ज किया, सेवा कराई - उसकी अनुभूति आगे चलकर बहुत करेंगे। डबल सेवा का पार्ट चल रहा है। बाप-दादा अनन्य बच्चों के संगठन द्वारा भक्तों को और वैज्ञानिकों को, दोनों को टचिंग कराने की सेवा कराते रहते हैं। उनमें अनन्य भक्ति के संस्कार भर रहे हैं जो आधा कल्प भक्ति मार्ग को चलाते रहेंगे। और वैज्ञानिकों को परिवर्तन करने और रिफाइन साधन बनाने में। जो साधन जैसे ही सम्पन्न होंगे तो उसका सुख सम्पूर्ण आत्मायें लेंगी। ये (वैज्ञानिक) नहीं ले सकेंगे। तो दोनों ही कार्य सूक्ष्म सेवा द्वारा हो रहे हैं। समझा।
सारे दिन में सूक्ष्म वतन वासी कितना समय होकर रहती हो? कि स्थूल सेवा ज्यादा है। आप लोग कितना भी बिजी रहो, बाप तो अपना कार्य करा ही लेते हैं। अपने सम्पूर्ण आकार का अनुभव किया है? जैसे साकार आकार हो गये, आप सबका भी सम्पूर्ण आकारी स्वरूप है। जो नम्बरवार हरेक साकार आकार बन जायेंगे। आकार बन करके सेवा करना अच्छा है या साकार शरीर परिवर्तन कर सेवा करना अच्छा। एडवान्स पार्टी तो साकार शरीर परिवर्तन कर सेवा कर रही है। लेकिन कोई कोई का पार्ट अन्त तक साकारी और आकारी रूप द्वारा भी चलता है। आपका क्या पार्ट है? किसका एडवान्स पार्टी का पार्ट है, किसका अन्त: वाहक शरीर द्वारा सेवा का पार्ट है। दोनों पार्ट का अपना-अपना महत्व है। फर्स्ट सेकेण्ड की बात नहीं। वैराइटी पार्ट का महत्व है। एडवान्स पार्टी का भी कार्य कोई कम नहीं है। सुनाया ना वह जोर-शोर से अपने प्लैन बना रहे हैं। वहाँ भी नामीग्रामी हैं।
पार्टीयों से - सभी सदा मणी के समान चमकते हो? मणी सदा चमकती है ना। एक-एक मणी की कितनी वैल्यू होती है। वो अमूल्य रतन हैं जिसकी कीमत आज के मानव कुछ कर नहीं सकते क्योंकि बाप के बन गये ना, जो बाप के बने वह अमूल्य रतन हो गये। सारे विश्व के अन्दर सर्वश्रेष्ठ आत्मा हो गये। इतनी खुशी रहती है? जैसे शरीर का आक्यूपेशन सदा याद रहता है वैसे आत्मा का आक्यूपेशन भी कभी भूलना न चाहिए। संगमयुग का श्रेष्ठ भाग्य ही है - बाप के अमूल्य रतन बनना। इस भाग्य को भूल कैसे सकते हैं! सभी सेवा में सहयोग देते हैं। ऑलराउण्ड सेवाधारी। सेवा का चान्स मिलना, यह भी ड्रामा में एक लिफ्ट है। जितनी यज्ञ सेवा करते हैं उतना प्राप्तियों का प्रसाद स्वत: ही प्राप्त हो जाता है। निर्विघ्न रहते हैं। एक बारी सेवा की और हजार बारी सेवा का फल प्राप्त हो गया। सदा स्थूल सूक्ष्म लंगर लगा रहे। किसी को सन्तुष्ट करना यह सबसे बड़ी सेवा है। मेहमान निवाजी करना, यह सबसे बड़ा भाग्य है, कहते भी हैं - मेहमान भाग्यशाली के घर में आते हैं।
2. सभी माया को जानते हुए माया से अनजान रहते हो? जैसे देवतायें `माया' शब्द को ही नहीं जानते, उनसे पूछो कि माया क्या है - तो अनजान है ना। ऐसे आप माया को जानते हुए ``माया'' के वार से अनजान रहो। माया को ऐसे समाप्त कर दो जो नामनिशान ही खत्म हो जाए। माया कभी मेहमान तो नहीं बनती हैं ना। दरवाजा बन्द है? अगर किला मजबूत होता है तो दुश्मन नहीं आता है। ऊँच स्टेज पर रहना अर्थात् ऊँची दीवार। कभी भी नीचे की स्टेज में नहीं आना। जब बाप के बन गये तो बाप का बनना अर्थात् मेरा पन समाप्त होना। मोह की उत्पत्ति का आधार है - `मेरा'। जब मेरा ही नहीं तो मोह कहाँ से आया। जब अपने को हद का रचयिता समझते हो तो विकारों की उत्पत्ति होती है। सदा भाई-भाई की स्मृति में रहो तो कोई भी विकार उत्पन्न नहीं हो सकते।