15-03-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"स्वदर्शन चक्रधारी तथा चक्रवर्ता ही विश्व-कल्याणकारी"
आज नालेजफुल बाप अपने मास्टर नालेजफुल बच्चों को देखकर हर्षित हो रहे हैं हरेक बच्चा, बाप द्वारा मिली हुई नालेज में अच्छी तरह से रमण कर रहे हैं। हरेक नम्बरवार यथा योग यथा शक्ति अनुसार नालेजफुल स्टेज का अनुभव कर रहे हैं। नालेजफुल स्टेज अर्थात् सारी नालेज के हरेक पाइंट के अनुभवी स्वरूप बनना। जब बाप-दादा डायरेक्शन देते हैं कि नालेजफुल स्टेज पर स्थित हो जाओ तो एक सेकेण्ड में उस स्थिति में स्थित हो सकते हो? हो सकते हो वा हो गये हो? उस स्थिति में स्थित होकर फिर विश्व की आत्माओं तरफ देखो। क्या अनुभव करते हो? सर्व आत्मायें कैसे दिखाई देती हैं, अनुभव कर रहे हो? विश्व का दृश्य क्या दिखाई देता है? आज बापदादा के साथ-साथ नालेजफुल स्टेज पर स्थित हो जाओ। अनुभव करो कि इतनी शक्तिशाली विशाल बुद्धि की स्टेज है। त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, दूरांदेशी, वर्ल्ड आलमाइटी अथार्टी, सर्व गुण और प्राप्ति सम्पन्न खज़ाने के मालिक पन की कितनी ऊंची स्टेज है! उस ऊंची स्टेज पर बैठ नीचे देखो। सब प्रकार की आत्माओं को देखो। पहले-पहले अपनी भक्त आत्माओं को देखो - क्या दिखाई दे रहा है? हरेक ईष्ट देव के अनेक प्रकार की भक्ति करने वाले भिन्न-भिन्न प्रकार के भक्तों की लाइनें हैं। अनगिनत भक्त हैं। कोई सतोप्रधान भक्त हैं अर्थात् भावना पूर्वक भक्ति करने वाले भक्त हैं। कोई रजो, तमोगुणी अर्थात् स्वार्थ अर्थ भक्त। लेकिन हैं वह भी भक्तों की लाइन में। बिचारे ढूंढ़ रहे हैं, भटक रहे हैं, चिल्ला रहे हैं। क्या उन्हों की पुकार सुन सकते हो? (एक मक्खी बाबा के आगे घूम रही थी।) जैसे यह मक्खी भटक रही है तो जैसे इनको ठिकाना देने का संकल्प आता है वैसे भक्तों के लिए ऐसा तीव्र संकल्प आता है? अच्छा - भक्तों को तो देख लिया।
अब धार्मिक लोगों को देखो। कितने प्रकार के नाम, वेष और कार्य की विधि है, कितने वैरायटी प्रकार के आकर्षण करने वाले साधन अपनाये हुए हैं। यह भी बड़ी अच्छी रौनक की धर्म की बड़ी बाजार लगी हुई है। हरेक के शोकेस में अपने-अपने विधि का शोपीस दिखाई देता है। कोई खूब खा पी रहा है। कोई खाना छोड़ के तपस्या कर रहा है। एक की विधि है खाओ पियो मौज करो, दूसरे की विधि है - सबका त्याग करो। वन्डरफुल दृश्य है ना! कोई लाल तो कोई पीला। भाँति-भाँति की थ्योरी है। उन्हों को देख - हे मास्टर नालेजफुल! क्या संकल्प आता है? धर्म आत्माओं के भी कल्याणकारी मास्टर परमात्मा, क्या सोच चलता है? विश्व के उद्धारमूर्त्त को इन आत्माओं के भी उद्धार का संकल्प उत्पन्न होता है। वा स्व के उद्धार में ही बिजी हो। अपने सेवाकेन्द्रों में ही बिजी हो? सर्व आत्माओं के पिता के बच्चे हो, सर्व आत्मायें आपके भाई हैं। हे मास्टर नालेजफुल, अपने भाइयों के तरफ संकल्प की नजर भी कब जाती है? विशाल बुद्धि दूरांदेशी अनुभव करते हो? छोटी-छोटी बातों में तो समय नहीं जा रहा है, ऊंची स्टेज पर स्थित हो विशाल कार्य दिखाई देता है?
अब तीसरे तरफ भी देखो। वर्त्तमान संगम समय पर और साथ-साथ भविष्य में भी आपके राज्य में सहयोग देने वाले विज्ञानी आत्मायें, वह भी कितनी मेहनत कर रहे हैं। क्या-क्या इन्वेन्शन निकाल रहे हैं। अभी भी आप जो सुन रहे हो, वैज्ञानियों के सहयोग (माइक, हैडफोन आदि) कारण सुन रहे हो। रिफाइन इन्वेन्शन तैयार कर आप श्रेष्ठ आत्माओं को गिफ्ट में दे चले जायेंगे। इन आत्माओं का भी कितना त्याग है! कितनी मेहतनत है! कितना दिमाग है! मेहनत खुद करते और प्रालब्ध आपको देते। इन आत्माओं को भी आफरीन और थैंक्स तो देंगे ना! विश्व कल्याणकारी इन आत्माओं के कल्याण की भी विधि संकल्प में आती है? वा यह समझकर छोड़ देते कि यह तो नास्तिक हैं, यह क्या जानें? लेकिन नास्तिक हैं वा आस्तिक हैं, फिर भी बच्चे तो हैं ना! आपके भाई तो हैं! ब्रदरहुड के नाते से भी इन आत्माओं को भी किसी प्रकार से वर्सा तो मिलेगा ना! विश्व-कल्याणकारी के रूप में इस तरफ आपके कल्याण की नजर नहीं तो जायेगी! वा इन आत्माओं के तरफ कल्याण की नजर नहीं डालेंगे? यह भी अधिकारी हैं। हरेक के अधिकार लेने का रूप अपना-अपना है। अच्छा, चलो आगे।
देश और विदेश के राज्य अधिकारियों को देखो। देखा? राज्य हिल रहा है वा अचल है? राजनीति का दृश्य क्या नजर आता है? कल्प पहले के यादगार में एक खेल दिखाया हुआ है, जानते हो कौन-सा खेल? जो साकार बाप का भी प्रिय खेल था। चौपड़ का खेल। अभी-अभी किसके तरफ पऊं बारह, अभी-अभी फिर इतनी हार जो अपने परिवार को पालने की भी हिम्मत नहीं। अभी- अभी बेताज बादशाह और अभी-अभी वोट के भिखारी। ऐसा खेल देख रहे हो। नाम और शान के भूखे हैं। ऐसी आत्माओं को भी कुछ तो अंचली देंगे। इन्हों पर भी रहम दिल आत्मायें बन रहम की दृष्टि, दाता के स्वरूप से कुछ कणा दाना देकर सन्तुष्ट करेंगे ना। हर सेक्शन की सेवा अपनी-अपनी है। वह फिर विस्तार आप करना। आगे चलो।
चारों ओर की आम पब्लिक जिसमें बहुत प्रकार की वैरायटी है। कोई क्या गीत गा रहे हैं कोई क्या गीत गा रहे हैं। चारों ओर ‘‘चाहिए'' ‘‘चाहिए'' के गीत बज रहे हैं। अब ऐसे गीत गाने वालों को कौन-सा गीत सुनाओ जो यह गीत समाप्त हो जाए? सर्व आत्माओं के प्रति महाज्ञानी, महादानी, महाशक्ति स्वरूप, वरदानी मूर्त्त, मास्टर दाता, सेकेण्ड के दृष्टि विधाता, ऐसे कल्याण करने का श्रेष्ठ संकल्प उत्पन्न होता है? फुर्सत है चारों तरफ देखने की? सर्च लाइट बने हो वा लाइट हाउस बने हो? अब चारों ओर चक्र लगाया।
ऐसे विश्व कल्याणकारी त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, मास्टर नालेजफुल, मास्टर विश्व रचयिता, विश्व के चारों आरे परिक्रमा लगाओ। नजर डालो। रोज विश्व का च्रक लगाओ तब स्वदर्शन चक्रधारी कहलायेंगे। साथ-साथ चक्रवर्ता कहलायेंगे। सिर्फ स्वदर्शन चक्रधारी हो वा चक्रवर्ता भी हो? दोनों ही हो ना!
ऐसे मास्टर नालेजफुल, विश्व परिक्रमा देने वाले, चक्रवर्ता स्वराज्य अधिकारी, सदा सर्व आत्माओं के प्रति रहमदिल, कल्याण की भावना रखने वाले, ऐसे बाप समान श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
(आज दीदी-दादी दोनों ही बापदादा के सम्मुख बैठी हैं)
बापदादा विशेष निमित्त आत्माओं को देख क्यों खुश होते हैं? कोई भी बाप अपने बच्चों को तख्त देने के बाद कैसे तख्त पर बैठ राज्य चला रहे हैं। वह इस कलियुगी दुनिया में नहीं देखते हैं लेकिन अलौकिक बाप, पारलौकिक बाप, बच्चे सेवा के तख्तनशीन बन कैसे सेवा का कार्य चला रहे हैं, वह प्रैक्टिकल में देख हर्षित होते हैं। यह संगमयुग की विशेषता है जो बाप स्वयं बच्चों को देख सकते हैं। यही परम्परा सतयुग में भी चलेगी। वहाँ भी बाप बच्चों को राज्य तिलक दे देखेंगे, कलियुग में कोई नहीं देखता। बापदादा तो रोज देखते हैं। हर घड़ी का दृश्य, संकल्प बोल, कर्म, सर्व के सम्पर्क बापदादा के पास इतना स्पष्ट है जो आप लोगों से भी ज्यादा क्लीयर है। हर घड़ी का कार्य देख बाप खुश होते हैं। प्रैक्टिकल रिटर्न देख रहे हैं। बाप ने आप समान बनाया और बच्चों ने रेसपान्ड दिया। इसलिए बच्चों को देख हर्षित होते हैं।
एक दृश्य देख विशेष हर्षाते। रोज की एक वन्डरफुल रास देखते हैं आप लोगों की। जो सारे दिन में बहुत करते हो। करते सभी हैं लेकिन विशेष निमित्त यह हैं। इसलिए निमित्त वालों को भी ज्यादा करनी पड़ती हैं। वह है संस्कार मिलाने की रास। वैसे भी कोई कार्य शुरू करते तो रास मिलाते हैं ना। और रास करने में भी एक दो का मिलन होता है तो सारा दिन यह रास कितना समय करते हो? बापदादा के पास टी.वी. अथवा रेडियो आदि सब हैं, उसमें कैसी सीन लगती होगी? जब संस्कार, संस्कार में टकराते हैं वह भी सीन अच्छी होती है। फिर जैसे फारेन वालों की बाडी इलास्टिक होती है, जहाँ मोड़ने चाहें मोड़ लेते, तो वर्त्तमान समय अपने को मोड़ने में भी इजी होते जा रहे हैं। इसलिए वह भी दृश्य अच्छा लगता है। पहले टाइट होते फिर भी थोड़ा लूज होते फिर लूज होने के बाद मिलन हो जाता। फिर मिलने के बाद खुशी का नाच करते। तो सीन कितनी अच्छी होगी! बापदादा के पास सब आटोमेटिकली चलता है। सब साज, सब साधन एवररेडी हैं। संकल्प किया और इमर्ज हुआ। आजकल की साइन्स भी सब साधनों को बहुत सूक्ष्म कर रही है ना। अति छोटा और अति पावरफुल। सूक्ष्मवतन तो हैं ही पावरफुल वतन। इतनी बिन्दी के अन्दर आप सब देख सकते हो।। विस्तार करो तो बहुत बड़ा देखेंगे, छोटा करो तो बिल्कुल बिन्दी। फिर भी बच्चों की मेहनत और हिम्मत के ऊपर बापदादा भी न्योछावर हो जाते हैं। क्योंकि भले कैसे भी बच्चे हैं लेकिन एक बार जब बाबा कहा तो न्योछावर हो ही गये। फिर भी बच्चे ही हैं। तो जब बच्चे न्योछावर हुए तो बाप भी न्याछावर होता। और बाप सदा बच्चे की भूल में भी भले को ही देखते हैं। भूल को नहीं देखते। भूल से भ्ज्ञला क्या निकला बाप उसको देखते हैं। जैसे आपकी इस साकारी दुनिया में छोटे-छोटे बच्चों को खुश करने के लिए अगर कोई गिरता है तो उनको कहते हैं - क्या मिला? चेन्ज कर लेते हैं। तो यहाँ भी बच्चे अगर चलते-चलते ठोकर खा लेते हैं तो बाप कहते - ठोकर से अनुभवी बन ठाकुर बन गया। बाप ठोकर को नहीं देखते। ठोकर से ठाकुरपन कितना आया, बाप वह देखते हैं। इसलिए बाप को हर बच्चा अति प्रिय है। । चाहे प्यादा है, चाहे घोड़सवार हैं, लेकिन प्यारा न हो तो विजय नहीं पा सकते। इसलिए हरेक आत्मा की आवश्यकता है। बाप तीनों कालों को देखते हैं। सिर्फ वर्त्तमान नहीं देखते। बच्चे सिर्फ वर्त्तमान देखते हैं इसलिए कभी-कभी घबड़ा जाते हैं कि यह क्यों, यह क्या!
टीचर्स के साथ- टीचर्स ने आप समान कितनी टीचर्स तैयार की हैं? बड़े तो बड़े-छोटे समान बाप हैं। जब हैण्डस तैयार हो जायेंगे तो सेवा के बिना रह न सकेंगे। फिर सेवा स्वत: ही बढ़ेगी। बापदादा के एडवांस में जो उच्चारे हुए महावाक्य हैं वह फिर प्रैक्टिकल हो जायेंगे। अभी कहाँ तक पहुँचे हो? जैसे नक्शे में हरेक स्टेट भी बिन्दी माफिक दिखाते हैं। वैसे सेवा में कहाँ तक पहुँचे हो? अभी तो बहुत सेवा पड़ी हुई है। अभी बहुत-बहुत बढ़ाते जाओ। कितने वर्ष पहले के बोल अभी सुन रहे हो। बाप की यही आश है कि एक-एक अनेक सेन्टर सम्भालें। तब कहेंगे नम्बर वन टीचर। जब कलियुगी प्राइम मिनिस्टर एक दिन में कितने चक्र लगाते, तो संगमयुगी टीचर्स को कितने चक्र लगाने चाहिए। तब कहेंगे चक्रवर्ता राजा। तो क्या करना पड़ेगा? प्लैन बनाओ। विदेश की सेवा में इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती, भारत में बहुत मेहनत लगती है। विदेश की धरनी फिर भी सुनी-सुनाई बातों से साफ है। भारत में यह भी मेहनत करनी पड़ती है। दूसरी बात - विदेशी आत्मायें अभी सब कुछ देखकर थक गई हैं, और भारत वालों ने देखना शुरू किया है। भारत वालों के अन्दर अभी इच्छा उत्पन्न हुई है, और उन्हों की पूरी हो गई है। इसलिए भारत की सेवा से विदेश की सेवा इजी है। लकी हो। जल्दी प्रत्यक्षफल निकाल सकते हो।
पार्टियों से - लौकिक में जब कोई घर से जाता है तो घर वालों को खुशी नहीं होती। लेकिन बापदादा बच्चों को बाहर जाते हुए देख खुश होते हैं, क्यों? क्योंकि समझते हैं कि एक-एक सपूत बच्चा सबूत निकालने के लिए जा रहा है? जाते नहीं हो लेकिन दूसरों को लाने के लिए जाते हो। एक जायेंगे अनेकों को लायेंगे तो खुशी होगी ना। कहाँ भी जायेंगे बापदादा साथ छोड़ नहीं सकते। बाप छोड़ने चाहें तो भी नहीं छोड़ सकते, बच्चे छोड़ने चाहें तो भी नहीं छोड़ सकते। दोनों बंधन में बँधे हुए हैं। (सतयुग में तो छोड़ देते) सतयुग में भी राज्यभाग देकर खुश हो जाते हैं। फेथ है ना बच्चों में कि यह अच्छा राज्य करेंगे इसलिए निश्चिन्त रहते हैं। लण्डन वालों ने अपने आस-पास वृद्धि तो अच्छी की है। अभी और भी चारों ओर विश्व में फैलाना चाहिए। जो भी स्थान खाली हैं, लण्डन में इतने हैण्डस हैं जो सेवा में सहयोगी बन सकते हैं। सबूत अच्छा दिया है।
अमृतबेले पावरफुल स्टेज रखने का भिन्न-भिन्न अनुभव करते रहो। कभी नालेजफुल स्टेज की अनुभूति करो, कभी प्रेम स्वरूप की अनुभूति करो। ऐसे भिन्न-भिन्न स्टेज के अनुभव में रहने से एक तो अनुभव बढ़ता जायेगा दूसरा याद में जो कभी-कभी आलस्य व थकावट आती है वह भी नहीं आयेगी। क्योंकि रोज नया अनुभव होगा। भिन्न-भिन्न स्टेज का अनुभव करते रहो। कभी कर्मातीत स्टेज का, कभी फरिश्ते रूप का, कब रूह-रूहाना का अनुभव करो। वैरायटी अनुभव करो। कब सेवाधारी बनकर सूक्ष्म रूप से परिक्रमा लगाओ। इसी अनुभव को आगे बढ़ाते रहो।
न्यूजीलैण्ड पार्टी - न्यूजीलैण्ड वालों को सदा क्या याद रहता है? न्यूजीलैण्ड को सदा याद रहे कि विश्व को क्या न्यू न्यूज दें। न्यूजीलैण्ड को विश्व में रोज न्यू न्यूज देनी चाहिए। तो न्यूजीलैण्ड क्या बन जायेगा? सारी विश्व के लिए लाइट हाउस बन जायेगा। सबकी नजर न्यूजीलैण्ड की तरफ जायेगी कि कहाँ से यह न्यूज आई है! अभी भी देखो अखबारों में कोई न्यू न्यूज आती है तो सबका अटेन्शन कहाँ जाता है? यह न्यूज कहाँ से आई? तो न्यूजीलैण्ड को यह कमाल करनी चाहिए। अब कोई नई बात करो। कोई नया प्लैन बनाओ। कमाल तो यह करो जो वहाँ से इतनी टीचर्स निकलें जो सब तरफ फैल जाएं। फिर कहेंगे जैसा नाम है वैसा काम है। सभी बहुत-बहुत सिकीलधे हो जो दूर-दूर से बाप ने चुन लिया। भारत छोड़ करके भी गये लेकिन भारत के बाप ने नहीं छोड़ा। न्यूजीलैण्ड की फुलवाड़ी भी बहुत खिली हुई है।
ट्रिनीडाड पार्टी- बापदादा सदा बच्चों में क्या विशेषता देखते हैं? बापदादा हरेक बच्चे को देख, हरेक बच्चों में उनके 21 जन्मों की प्रालब्ध को देखते हैं? क्या थे, क्या बने हैं और क्या बनने वाले हैं? तीनों काल देखते हुए भविष्य कितना श्रेष्ठ है, उसको देखकर हर्षित होते हैं। आप हरेक भी अपनी प्रालब्ध को समझकर, अनुभव कर हर्षित होते हो? अपनी प्रालब्ध इतनी स्पष्ट है कि आज हम यह हैं, कल यह बनने वाले हैं। यह तो अवश्य है जब बाप का बन गये तो बाप का बनना अर्थात् ब्राह्मण बनना। ब्राह्मण सो देवता भी अवश्य बनेंगे। बाकी देवता में भी क्या पद मिलना है वह है हरेक के अपने पुरूषार्थ पर।
अभी तो सेवा के अनेक साधन हैं। वाचा के साथ-साथ एक स्थान पर बैठे हुए भी विश्व की सेवा कर सकते हो। मंसा सेवा का भी बहुत अच्छा चांस है। सारा दिन कोई न कोई प्रकार से सेवा में बिजी रहो।। मधुबन में रिफ्रेश होना अर्थात् सेवा के लिए निमित्त बन करके सेवाधारी बनाकर सेवा का चांस लेना। सेवा करने के पहले जो निमित्त बने हुए सेवाधारी हैं उन्हों से सम्पर्क रखते हुए आगे बढ़ते चलो तो सफलता मिलती जायेगी। अभी देखेंगे कितने सेन्टर खोलकर आते हो। बुलेटिन में निकलेगा कि कितने नये सेवाकेन्द्र खोले।
सदा यही स्मृति रहे कि हम सब रूहानी सोशल वर्कर, सभी को भटकने से छुड़ाने वाले हैं। अनेक आत्मायें भटक रही हैं तो भटकती हुई आत्माओं को देख तरस आता है ना। जैसे अपनी पास्ट लाइफ को देखकर समझते हो कितना भटके हैं, कितने जन्मों से भटके हैं, अपने अनुभव के आधार से और ही ज्यादा तरस पड़ना चाहिए। तो सदा अपने अन्दर प्लैन बनाते रहो कि इन आत्माओं को भटकने से कैसे छुड़ायें। रोज नई-नई पाइंट सोचो। कौन-सी ऐसी पोइंट दें जो जल्दी से परिवर्त्तन हो जाएं। अब भक्तों को भक्ति का फल दिलाओ। सदा बाप से मिलाने के सहज रास्ते सोचते रहो। यही मनन चलता रहे।
अमेरिका - सदा अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते रहते हो? बापदादा के सिकीलधे बच्चे हो। तो सिकीलधे बच्चों को माँ बाप सदा ऐसे स्थान पर बिठाते हैं जहाँ कोई भी तकलीफ न हो। बाप-दादा ने आप सिकीलधे बच्चों को कौन सा स्थान बैठने के लिए दिया है? दिलतख्त। यह दिलतख्त कितना बड़ा है? इस तख्त पर बैठकर जो चाहो वह कर सकते हो, तो सदा तख्तनशीन रहो। नीचे नहीं आओ। जैसे फारेन में जहाँ-तहाँ गलीचे लगा देते हैं कि मिट्टी न लगे। बापदादा भी कहते हैं - देहभान की मिट्टी में मैले न हो जाए इसलिए सदा दिल तख्तनशीन रहो। जो अभी तख्तनशीन होंगे वही भविष्य में भी तख्तनशीन बनेंगे। तो चेक करो कि सदा तख्तनशीन रहते हैं या उतरते चढ़ते हैं? तख्त पर बैठने के अधिकारी भी कौन बनते? जो सदा डबल लाइट रूप में रहते हैं। अगर जरा भी भारीपन आया तो तख्त से नीचे आ जायेंगें। तख्त से नीचे आये तो माया से सामना करना पड़ेगा। तख्तनशीन हैं तो माया नमस्कार करेगी। बापदादा द्वारा बुद्धि के लिए जो रोज शक्तिशाली भोजन मिलता है, उसे हजम करते रहो तो कभी भी कमजोरी आ नहीं सकती। माया का वार हो नहीं सकता।