11-04-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"सत्यता की शक्ति से विश्व परिवर्त्तन"
आज की यह सभा कौन सी सभा है? यह है विधि-विधाताओं की सभा। सिद्धि-दाताओं की सभा। अपने को ऐसे विधि-विधाता वा सिद्धि दाता समझते हो? इस सभा की विशेषाताओं को जानते हो? विधि-विधाताओं की विशेष शक्ति है जिस द्वारा सेकेण्ड में सर्व को विधि द्वारा सिद्धि स्वरूप बना सकते। उसको जानते हो? वह है - ‘‘सत्यता अर्थात् रियल्टी''। सत्यता ही महानता है। सत्यता की ही मान्यता है। वह सत्यता अर्थात् महानता स्पष्ट रूप से जानते हो? विशेष विधि ही सत्यता के आधार पर है। पहला फाउन्डेशन अपनी नालेज अर्थात् अपने स्वरूप में स्त्यता देखो। सत्य स्वरूप क्या है और मानते क्या थे? तो पहला सत्य हुआ आत्मा स्वरूप का। जब तक यह सत्य नहीं जाना तो महानता थी? महान थे वा महान के पुजारी थे? जब अपने आपको जाना तो क्या बन गये? महान आत्मा बन गये। सत्यता की अथार्टी से औरों को भी कहते हो - हम आत्मा हैं। इसी प्रकार से सत्य बाप का सत्य परिचय मिलने से अथार्टी से कहते हो - परमात्मा हमारा बाप है। वर्से के अधिकार की शक्ति से कहते हो बाप हमारा और हम बाप के। ऐसे अपनी रचना के वा सृष्टि चक्र के सत्य परिचय को अथार्टी से सुनते हो - अब यह सृष्टि चक्र समाप्त हो फिर से रिपीट होना है। अब संगम का युग है, न कि कलियुग। चाहे सारी विश्व के विद्वान पण्डित और अनक आत्मायें शास्त्र के प्रमाण कलियुग ही मानत लेकिन आप 5 पाण्डव अर्थात् कोटों मे कोई थोड़ी सी आत्मायें चैलेन्ज करते हो कि अभी कलियुग नहीं, संगमयुग है, यह किस अथार्टी से? सत्यता की महानता के कारण। विश्व में मैसेज देते हो कि आओ और आकर समझो। सोये हुए कुम्भकरणों को जगाकर कहते हो - समय आ गया। यही सत् बाप, सत् शिक्षक, सत् गुरू द्वारा सत्यता की शक्ति मिली है। अनुभव करते हो - यही सत्यता है।
सत् के दो अर्थ है। एक सत् अर्थात् सत्य दूसरा सत् अर्थात् अविनाशी। तो बाप सत्य भी है और अविनाशी भी है इसलिए बाप द्वारा जो परिचय मिला वह सब सत् अर्थात् सत्य और अविनाशी है। भक्त लोग भी बाप की महिमा गाते हैं - ‘‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्''। सत्यम् भी मानते और अविनाशी भी मानते। गाड इज टत्र्थ भी मानते। तो बाप द्वारा सत्यता की अथार्टी प्राप्त हो गई है। यह भी वर्सा मिला है ना! सत्यता की अथार्टी प्राप्त हो गई है। यह भी वर्सा मिला हैना। सत्यता की अथार्टी वाले का गायन भी सुना है, उसकी निशानी क्या होगी? सिन्धी में वहावत है - ‘‘सच ते बिठो नच''। और भी कहावत है - ‘‘सत्य की नाव हिलेगी लेकिन डूब नहीं सकती''। आपको भी हिलाने की कोशिश तो बहुत करते हैं ना! यह झूठ है, कल्पना है। लेकिन सच तो बिठो नच। आप सत्यता की महानता के नशे में सदा खुशी के झूल में झूलते रहते। खुशी में नाचते रहते हो ना। जितना वह हिलाने की कोशिश करते उतना ही क्या होता? आपके झूले को हिलाने से और ही ज्यादा झूलते हो। आपको नहीं हिलाते लेकिन झूले को हिलाते। और ही उसको धन्यवाद दो कि हम बाप के साथ झूलें, आप झुलाओ। यह हिलाना नहीं लेकिन झुलाना है। ऐसे अनुभव करते हो। हिलते नहीं हो लेकिन झूलते हो ना! सत्यता की शक्ति सारी प्रकृति को ही सतोप्रधान बना देती है। युग को सतयुगी बना देती है। सर्व आत्माओं के सदगति की तकदीर बना देती है। हर आत्मा आपके सत्यता की शक्ति द्वारा अपने-अपने यथा शक्ति अपने धर्म में, अपने समय पर गति के बाद सदगति में ही अवतरित होंगे। क्योंकि विधि-विधाताओं द्वारा संगमयुग पर अन्त तक भी बाप को याद करने की विधि का सन्देश जरूर मिलना है। फिर किसको वाणी द्वारा, किसको चित्रों द्वारा, किसको समाचारों द्वारा, किसको आप सबके पावरफुल वायब्रेशन द्वारा, किसको अन्तिम विनाश लीला की हलचल द्वारा, वैराग वृत्ति के वायुमण्डल द्वारा। यह सब साइन्स के साधन आपके इस सन्देश देने के कार्य में सहयोगी होंगे।
संगम पर ही प्रकृति सहयोगी बनने का अपना पार्ट आरम्भ कर देगी। सब तरफ से प्रकृति-पति का और मास्टर प्रकृतिपति का आयजान करेगी। सब तरफ से आफरीन और आफर होगी। फिर क्या करेंगे? यह जो भक्ति में गायन है, हर प्रकृति के तत्व को देवता के रूप में दिखाया है। देवता अर्थात् देने वाला। तो अन्त में यह सब प्रकृति के तत्व आप सबको सहयोग देने वाले दाता बन जायेंगे। यह सागर भी आपको सहयोग देंगे। चारों ओर की सामग्री भारत की धरनी पर लाने में सहयोगी होंगे। इसलिए कहते हैं सागर ने रतनों की थालियाँ दी। ऐसे ही धरनी की हलचल सारी वैल्युबल वस्तु आप श्रेष्ठ आत्माओं के लिए एक स्थान भारत में इकठ्ठी कर देने में सहयोगी होगी। इन्द्र देवता कहते हैं ना! तो बरसात भी धरनी की सफाई के सहयोग में हाजिर हो जायेगी। इतना सारा किचड़ा आप तो नहीं साफ करेंगे। यह सारा प्रकृति का सहयोग मिलेगा। कुछ वायु उड़ायेगी, कुछ बरसात साथ ले जायेगी। अग्नि को तो जानते ही हो। तो अन्त में यह सब तत्व आप श्रेष्ठ आत्माओं को सहयोग देने वाले देवता बनेंगे। और सर्व आत्मायें अनुभव करेंगी। फिर भक्ति में जो अब सहयोग देने के कर्त्तव्य के कारण देवता बने उस कर्त्तव्य का अर्थ भूल, देवताओं का मनुष्य रूप दे देते हैं। जैसे सूर्य है तत्व लेकिन मनुष्य रूप दे दिया है। तो समझा विधि-विधाता बन क्या कार्य करना है।
उन्हों की है विधान सभा और यह है विधि-विधाताओं की सभा। वहाँ सभा के मेम्बर होते हैं। यहाँ अधिकारी महान आत्मायें होती हैं। तो समझा सत्यता की महानता कितनी है! सत्यता पारस के समान है। जैसे पारस लोहे को भी पारस बना देता है। आपके सत्यता की शक्ति आत्मा को, प्रकृति को, समय को, सर्व सामग्री को, सबको सतोप्रधान बना देती है। तमोगुण का नाम निशान समाप्त कर देती है। सत्यता की शक्ति आपके नाम को, रूप को सत् अर्थात् अविनाशी बना देती है। आधाकल्प चैतन्य रूप, आधा कल्प चित्र रूप। आधा कल्प प्रजा आपको नाम गायेगी, आधा कल्प भक्त आपका नाम गायेंगे। आपका बोल सत् वचन के रूप में गाया जाता है। आज तक भी एक-आधा वचन लेने से अपने को महान अनुभव करते। आपकी सत्यता की शक्ति से आपका देश भी अविनाशी बन जाता है। वेष भी अविनाशी बन जाता है। आधाकल्प देवताई वेष में रहेंगे, आधाकल्प देवताई वेष का यादगार चलेगा। अब अन्त तक भी भक्त लोग आपके चित्रों को भी ड्रेस से सजाते रहते हैं। कर्त्तव्य और चरित्र - यह सब सत् हो गये। कर्त्तव्य का यादगार भागवत बना दिया है। चरित्रों की अनेक कहानियाँ बना दी हैं। यह सब सत्य हो गये। किस कारण? सत्यता की शक्ति कारण। आपकी दिनचर्या भी सत् हो गई है। भोजन खाना, अमृत पीना सब सत् हो गया है। आपके चित्रों को भी उठाते हैं, बिठाते हैं, परिक्रमा लगवाते हैं, भोग लगाते हैं, अमृत रखते और पीते हैं। हर कर्त्तव्य वा हर कर्म का यादगार बन गया है। इतनी शक्ति को जानते हो? इतनी अथार्टी से सबको चैलेन्ज करते हो वा सेवा करते हो? नये-नये आये हैं ना! ऐसे तो नहीं समझते हम थोड़े हैं, लेकिन आलमाइटी अथार्टी आपका साथी है। सत्यता की शक्ति वाले हो। पाँच नहीं हो लेकिन विश्व का रचयिता आपका साथी है। इसी फलक से बोलो। मानेंगे, नहीं मानेंगे, कहें, कैसे कहें। यह संकल्प तो नहीं आते जहाँ सत्यता है, सत् बाप है वहाँ सदा विजय है। निश्चय के आधार पर अनुभवी मूर्त्त बन बोलो तो सफलता सदा आपके साथ है।
आप सब आये हैं तो बापदादा भी आये हैं, आपको भी आना पड़ता तो बापदादा को भी आना पड़ता। बाप को भी परकाया में बैठना पड़ता है ना! आपको ट्रेन में बैठना पड़ता, बाप को परकाया में बैठना पड़ता। तकलीफ मालूम पड़ती है क्या? अभी तो आपके पोत्रे-धोत्रे सभी आने वाले हैं। भक्त भी आने वाले हैं, फिर क्या करेंगे? भक्त तो आपको बैठने ही नहीं देंगे। अभी तो फिर भी आराम से बैठे हो, फिर आराम देना पड़ेगा। फिर भी तीन पैर पृथ्वी तो मिली है ना। भक्त तो खड़े-खडे तपस्या करते हैं। आपके चित्रों को देखने लिए भक्त क्यू लगाते। तो आप भी अनुभव तो करो। सीजन का फल खाने आये हो ना! नये-नये बच्चों को बापदादा विशेष स्नेह दे रहे हैं। क्योंकि बापदादा जानते हैं कि यह लास्ट वाले भी फास्ट जायेंगे। सदा लगन द्वारा विघ्न विनाशक बन विजयी रतन बनेंगे। जैसे लौकिक रूप में भी बड़ों से छोटे दौड़ लगाने में होशियार होते हैं। तो आप सब भी रेस में खूब दौड़ लगाकर नम्बर वन में आ जाओ। बापदादा ऐसे उमंग उत्साह रखने वाले बच्चों के सदा सहयोगी हैं। आपका योग बाप का सहयोग। दोनों से जितना चाहो उतना आगे बढ़ सकते हो। अभी चांस है फिर यह भी समय समाप्त हो जायेगा।
ऐसे सदा सत्यता की महानता में रहने वाले, सर्व आत्माओं के विधि-विधाता, सदगति दाता, विश्व को स्व के सत्यता की शक्ति द्वारा सतोप्रधान बनाने वाले, ऐसे बापदादा के सदा स्नेही और सहयोगी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
पार्टियों के साथ:-
1- सदा स्वयं को शक्तिशाली आत्मा अनुभव करते हो?शक्तिशाली आत्मा का हर संकल्प शक्तिशाली होगा। हर संकल्प में सेवा समाई हुई हो। हर बोल में बाप की याद समाई हो। हर कर्म में बाप जैसा चरित्र समाया हुआ हो। तो ऐसी शक्तिशाली आत्मा अपने को अनुभव करते हो? मुख में भी बाप, स्मृति में भी बाप और कर्म में भी बाप के चरित्र - इसको कहा जाता है बाप समान शक्तिशाली। ऐसे हैं? एक शब्द ‘‘ बाबा'', लेकिन यह एक ही शब्द जादू का शब्द है। जैसे जादू में स्वरूप परिवर्त्तन हो जाता वैसे एक ‘बाप' शब्द समर्थ स्वरूप बना देता है। गुण बदल जाते, कर्म बदल जाते, बोल बदल जाते। यह एक शब्द ही जादू का शब्द है। तो सभी जादूगर बने हो ना! जादू लगाना आता है ना! बाबा बोला और बाबा का बनाया, यह है जादू।
2. वरदान भूमि पर आकर वरदाता द्वारा वरदान पाने का भाग्य बनाया है? जो गायन है - भाग्य विधाता बाप द्वारा जो चाहो वह अपने भाग्य की लकीर खींच सकते हो। यह इस समय का वरदान है। तो वरदान के समय को, वरदान के स्थान का कार्य में लाया? क्या वरदान लिया? जैसे बाप सम्पन्न है इसलिए सागर कहा जाता है। सागर का अर्थ ही है ‘‘सम्पन्न''। बाप समान बनने का दृढ़ संकल्प किया? बच्चे के लिए गाया जाता है - बालक सो मालिक। तो बालक बाप का मालिक है। मालिकपन के नशे में रहने के लिए बाप समान स्वयं को सम्पन्न बनाना पड़े। बाप की विशेषता है सर्व शक्तिवान अर्थात् सर्व शक्तियों की विशेषता है। तो जो बालक सो मालिक है उनमें भी सर्वशक्तियाँ होंगी। एक शक्ति की भी कमी नहीं। अगर एक भी शक्ति कम रही तो शक्ति- वान कहेंगे, सर्वशक्तिवान नहीं। तो कौन हो? सर्वशक्तिवान अर्थात् जो चाहे वह कर सके, हर कर्मेन्द्रिय अपने कंट्रोल में हो। संकल्प किया और हुआ, क्योंकि मास्टर हैं ना! तो आप सब स्वराज्य अधिकारी हो ना! पहले स्व-राज्य फिर विश्व का राज्य।
देहली राजधानी में रहने वाले स्व-राज्यधारी हैं ना? यह तो बहुत काल का संस्कार चाहिए। अगर अन्त में बनेंगे तो विश्व का राज्य भी कब मिलेगा? अगर विश्व का राज्य आदि में लेना है तो आदिकाल से यह भी संस्कार चाहिए। बहुत समय का राज्य, बहुत समय के संस्कार। मास्टर सर्वशक्तिवान के आगे कोई भी बड़ी बात नहीं। दिल्ली निवासी अभी क्या सोंच रहे हैं? कि सोचते हो महायज्ञ किया, बस। चढ़ती कला की ओर जा रहे हो ना। जो किया उससे और आगे । आगे चलते-चलते अपना राज्य हो जायेगा। अभी तो दूसरे के राज्य में अपना कार्य करना पड़ता है, फिर अपना राज्य हो जायेगा। प्रकृति भी आपको आफर करेगी। प्रकृति जब आफर करेगी तो आत्मायें क्या करेंगी? आत्मायें तो सिर झुकायेंगी। तो क्या करेंगे अभी? फिर भी जो किया ड्रामा अनुसार हिम्मत हुल्लास से कार्य सफल किया। उसके लिए बापदादा हिम्मत के ऊपर खुश हैं। मेहनत जो की वह तो जमा हो गया। वर्त्तमान भी बना और भविष्य भी बना।
सेवा का बीज अविनाशी होने के कारण कुछ आवाज निकला और कुछ निकलता रहेगा। बीज पड़ने से अनेक आत्माओं को गुप्त रूप से सन्देश मिला। सबकी थकावट तो उतर गई है ना! फिर भी बापदादा का स्नेह सहयोग सदा मिलने से आगे बढ़ते रहेंगे। दिल्ली को भी यह वरदान मिला हुआ है। श्रेष्ठ कर्म के निमित्त बनने का। फिर भी सेवा की जन्म-भूमि है ना! सेवा की हिस्ट्री में नाम तो जाता है ना? और अनेकों को सेवा के लिए साधन मिल जाता है। सेवा की भूमि में रहने वाले तो वरदानी हो गये ना! मेहनत बहुत अच्छी की।
मुरली का सार
1. सत्यता की महानता है, सत्यता की मान्यता है। सत् बाप, सत् शिक्षक तथा सत् गुरू आकर आत्मा का, परमात्मा का, सृष्टि चक्र का सत्य परिचय देकर सत्यता की शक्ति भरते हैं।
2. सत्यता की शक्ति प्रकृति को सतोप्रधान, युग को सतयुग बना देती है। सर्व आत्माओं के सदगति की तकदीर बना देती है।।
3. देवता अर्थात् देने वाला। अन्त में सब प्रकृति के तत्व आप सबको सहयोग देने वाले देवता बन जायेंगे। भक्ति में सहयोग देने के कर्त्तव्य के कारण तत्वों को मनुष्य का रूप दे देते हैं।