10-01-82 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"कर्मातीत स्टेज की व्याख्या"
सदा कर्मबन्धन मुक्त शिव बाबा बोले:-
‘‘आज बापदादा ‘राज्य सभा' को देख रहे हैं। हरेक बच्चा स्वराज्य अधिकारी, अपने नम्बरवार ‘कर्मातीत स्टेज' के तख्त अधिकारी हैं। वर्तमान संगमयुगी स्वराज्य अधिकारी आत्माओं का आसन कहो वा सिंहासन कहो, वह है - ‘कर्मातीत स्टेज'। कर्मातीत अर्थात् कर्म करते भी कर्म के बन्धनों से अतीत। कर्मों के वशीभूत नहीं लेकिन कर्मेन्द्रियों द्वारा हर कर्म करते हुए अधिकारीपन के नशे में रहने वाले। बापदादा हर बच्चे के नम्बरवार राज्य अधिकार के हिसाब से नम्बरवार सभा देख रहे हैं। तख्त भी नम्बरवार है और अधिकार भी नम्बरवार है। कोई सर्व अधिकारी है और कोई - अधिकारी है। जैसे भविष्य में विश्वमहाराजा और महाराजा - अन्तर है। ऐसे यहाँ भी सर्व कर्मेन्द्रियों के अधिकारी अर्थात् सर्व कर्मों के बन्धन से मुक्त - इसको कहा जाता है ‘सर्व अधिकारी'। और दूसरे ‘सर्व' नहीं, लेकिन अधिकारी हैं। तो दोनों ही नम्बर की तख्तनशीन दरबार देख रहे हैं। हरेक राज्य अधिकारी के मस्तक पर बहुत सुन्दर रंग-बिरंगी मणियाँ चमक रही हैं। यह मणियाँ हैं - ‘दिव्य गुणों' की। जितना-जितना दिव्य गुणधारी बने हो उतनी ही मणियाँ मस्तक पर चमक रही हैं। किसकी ज्यादा हैं, किसकी कम है। चमक भी हरेक की अपनी-अपनी है। ऐसा अपना राज्य सभा का राज्य अधिकारी चित्र के दर्पण नालेज में दिखाई दे रहा है? सभी के पास दर्पण तो है। कर्मातीत चित्र देख सकते हो ना? देख रहे हो अपना चित्र? कितनी सुन्दर ‘राज्य सभा' है। कर्मातीत स्टेज का तख्त कितना श्रेष्ठ तख्त है। इसी स्टेज की अधिकारी आत्मायें अर्थात् तख्तनशीन आत्मायें विश्व के आगे ईष्ट देव के रूप में प्रत्यक्ष होंगी। स्वराज्य अधिकारी सभा अर्थात् इष्ट देव सभा। सभी अपने को ऐसे इष्ट देव आत्मा समझते हो? ऐसे परम पवित्र, सर्व प्रति रहमदिल, सर्व प्रति मास्टर वरदाता, सर्व प्रति मास्टर रूहानी स्नेह सागर, सर्व प्रति शुभ भावनाओं के सागर, ऐसे पूज्य इष्ट देव आत्मा हो। सभी ब्राह्मण आत्माओं में नम्बरवार यह सब संस्कार समाये हुए हैं। लेकिन इमर्ज रूप में अभी तक कम हैं। अभी इस इष्ट देवात्मा के संस्कार इमर्ज करो। वर्णन करने के साथ ‘स्मृति स्वरूप' सो समर्थ स्वरूप बन, स्टेज पर आओ। इस वर्ष में सर्व आत्मायें यही अनुभव करें कि जिन्हें हम ढूँढते हैं, जिन आत्माओं को हम चाहते हैं, जिन श्रेष्ठ आत्माओं से हम कुछ चाहना रखते थे, वही श्रेष्ठ आत्मायें, यही हैं। सबके मुख से वा मन से यही आवाज निकले, कि यह वही हैं। ऐसे अनुभव करें - बस, इन्हों से मिले तो बाप से मिले। जो कुछ मिला है, इन्हों द्वारा ही मिला है। यही मास्टर हैं, गाइड हैं, एंजिल हैं, मैसेन्जर हैं। बस यही हैं, यही हैं, और वही हैं - यह धुन सबके अन्दर लग जाए। इन्हीं दो शब्दों की धुन हो -’’यही हैं और वही हैं''। मिल गये-मिल गये...यह खुशी की तालियाँ बजायें। ऐसे अनुभव कराओ। ऐसी अनुभूति कराने के लिए विशेष अष्ट शक्ति स्वरूप, अलंकारी शक्ति स्वरूप चाहिए। लेकिन शक्ति स्वरूप भी माँ के स्वरूप में चाहिए। आजकल सिर्फ शक्ति स्वरूप से भी सन्तुष्ट नहीं होंगे लेकिन ‘शक्ति माँ'। जो प्रेम और पालना देकर हर बाप के बच्चे को खुशी के झूले में झुलायें। तब बाप के वर्से के अधिकारी बन सकें। बाप से मिलाने के योग्य बनाने में आप निमित्त शक्ति के रूप में ऐसा पवित्र प्रेम और अपनी प्राप्तियों द्वारा श्रेष्ठ पालना दो, योग्य बनाओ अर्थात् योगी बनाओ। मास्टर रचयिता बनना तो सबको आता है। अल्पकाल प्राप्ति कराने वाले नामधारी जो महान आत्मायें हैं, वे भी रचना तो बहुत रच लेते हैं, प्रेम भी देते हैं लेकिन पालना नहीं दे सकते हैं। इसलिए फालोअर्स बन जाते हैं लेकिन पालना से बड़ा कर बाप से मिलायें अर्थात् पालना द्वारा बाप के अधिकारी योग्य आत्मा बनायें, यह नहीं कर सकते हैं। इसलिए फालोअर्स ही रह जाते, बच्चे नहीं बनते। बाप के वर्से के अधिकारी नहीं बनते हैं। ऐसे ही आप ब्राह्मण आत्माओं में भी रचना बहुत जल्दी रच लेते हो अर्थात् निमित्त बनते हो लेकिन प्रेम और पालना द्वारा उन आत्माओं को अविनाशी वर्से के अधिकारी बनाना, इसमें बहुत कम योग्य आत्मायें हैं। जैसे लौकिक जीवन में माँ बच्चे को पालना द्वारा शक्तिशाली बनाती है, जिससे वह सदा किसी भी समस्या का सामना कर सके। सदा तन्दुरूस्त रहे, सम्पत्तिवान रहे। ऐसे आप श्रेष्ठ आत्मायें जगत माता बन एक दो आत्माओं की माँ नहीं, ‘जगत माँ', बेहद की माँ बन, मन से ऐसा शक्तिशाली बनाओ जो सदा आत्मायें अपने को विघ्न विनाशक, शक्ति सम्पन्न, हेल्दी और वेल्दी अनुभव करें। अब ऐसी पालना की आवश्यकता है। ऐसी पालना वाले बहुत कम हैं। परिवार का अर्थ ही है - ‘प्रेम और पालना' की अनुभूति कराना। इसी पालना की प्यासी आत्मायें हैं। तो समझा, इस वर्ष क्या करना है?
सबके मुख से यही निकले कि हमारे समीप के सम्बन्धी हमें मिल गये हैं। पहले रिलेशन की अनुभूति कराओ फिर कनेक्शन सहज हो जायेगा। ‘‘हमारे हमको मिल गये'' - ऐसी लहर चारों ओर फैल जाए। तब मुख से निकलेगा - जिन्हें पाना था वह पा लिया। जैसे बाप को भिन्न-भिन्न सम्बन्ध से आप अधिकारी आत्मायें अनुभव करती हो। ऐसे वो तड़पती हुई आत्मायें यही अनुभव करें कि जो कुछ मिलना हैं, जो कुछ पाना है, इन्हीं द्वारा ही मिलना है, पाना है। फिर नाम भिन्न-भिन्न कहेंगे। ऐसे वायुमण्डल बनाओ। माँ भी बच्चे को बाप का परिचय स्वयं ही देती है। माँ ही बच्चे को बाप से मिलाती है। अपने तक नहीं बनाना है लेकिन बाप से कनेक्शन जोड़ने योग्य बनाना है। सिर्फ माँ-माँ कहते रहें, ऐसे छोटे बच्चे नहीं बनाना। लेकिन बाबा-बाबा सिखाना। वर्से के अधिकारी बनाना। समझा?
जैसे बाप के लिए सबके मुख से एक ही आवाज निकलती है -’’मेरा बाबा''। ऐसे आप हर श्रेष्ठ आत्मा के प्रति यह भावना हो, महसूसता हो, जो हरेक समझे कि यह - ‘मेरी माँ' है। यह बेहद की पालना। हरेक से मेरे-पन की भावना आये। हरेक समझे कि यह मेरे शुभचिन्तक, सहयोगी सेवा के साथी हैं। इसको कहा जाता है - ‘बाप समान'। इसको ही कहा जाता है - कर्मातीत स्टेज के तख्तनशीन। जो सेवा के कर्म के भी बन्धन में न आओ। हमारा स्थान, हमारी सेवा, हमारे स्टूडेन्ट, हमारी सहयोगी आत्मायें, यह भी सेवा के कर्म का बन्धन है। इस कर्मबन्धन से - ‘कर्मातीत'। तो समझा - इस वर्ष क्या करना है? कर्मातीत बनना है और ‘‘यह वही हैं, यही सब कुछ हैं,'' यह महसूसता दिलाए, आत्माओं को समीप लाना है। ठिकाने पर लाना है। अपने प्रति भी सुनाया और सेवा के प्रति भी सुनाया। अच्छा - सबका संकल्प था ना कि अभी क्या करना है? कौन-सी लहर फैलानी है। अच्छा-
ऐसे स्वराज्य अधिकारी, कर्मातीत स्टेज के तख्तनशीन, सर्व को समीप सम्बन्ध की अनुभूति कराने वाले, बेहद की प्रेम भरी पालना देने वाले, ऐसे इष्ट देव आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।''
शक्ति सेना को देख बाप अति हर्षित होते हैं, शक्तियाँ सदा बाप की साथी हैं इसीलिए गायन ही है - ‘शिव शक्ति'। शक्तियों के साथ बाप का भी यादगार है तो कम्बाइण्ड हो गई ना! शक्ति - शिव से अलग नहीं, शिव -शक्ति से अलग नहीं। ऐसे कम्बाइण्ड। एक-एक जगतजीत हो, कम नहीं हो। सारे जगत पर जीत पाती हो। जगत पर राज्य करना है ना! उस सेना में टुकड़ियाँ होती हैं, दो टुकड़ी, चार टुकड़ी। यहाँ बेहद है। बेहद बाप की सेना और बेहद के ऊपर विजय। बापदादा को भी खुशी होती है, एक-एक बच्चा हद का नहीं, बेहद का मालिक है।
सभी बच्चे, बाप के मुख हो ना? बाप के मुख अर्थात् मुख द्वारा बाप का परिचय देने वाले। इसलिए ‘गऊ मुख' का भी गायन है। सदा मुख द्वारा ‘बाबा-बाबा' निकलता है, तो मुख का भी महत्व हो गया ना!
बापदादा सभी बच्चों को बाप के घर का और बाप का श्रृंगार कहते हैं, तो बाप के घर का श्रृंगार जा रहे हो, औरों को श्रृंगार कराने के लिए। कितनों को श्रृंगार करके लायेंगे? एक-एक को बाप के आगे गुलदस्ता लाना पड़ेगा। सभी रत्न अमूल्य हो क्योंकि बाप को जाना और बाप से सब कुछ पाया। तो सदा अपने को इसी खुशी में रखना और सबको यही खुशी बाँटते रहना। अच्छासंगम युग है ही चलने और चलाने का युग। किसी भी बात में रूकना नहीं है। चलने, चलाने में अपना और सर्व का कल्याण है। संगम पर बापदादा सदा आपके साथ हैं। क्योंकि अभी ही बाप बच्चों के आगे हाजर-नाज़र होते हैं। याद किया और हाजर हुए। देखते हुए न देखो, सुनते हुए न सुनो, बाप की सुनो तो चलते चलेंगे। अच्छा