19-03-82 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“‘कर्म'' - आत्मा का दर्शर्न्न कराने का दर्पण”
कर्मों की गुह्य गति को जानने वाले बापदादा बोले-
‘‘आज सर्वशक्तिवान बाप अपने शक्ति सेना को देख हर्षित हो रहे हैं। हरेक मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं ने सर्वशक्तियों को कहाँ तक अपने में धारण किया है? विशेष शक्तियों को अच्छी तरह से जानते हो और जानने के आधार पर चित्र बनाते हो। यह चित्र, चैतन्य स्वरूप की निशानी है - ‘‘श्रेष्ठता अथवा महानता।'' हर कर्म श्रेष्ठ, महान है इससे सिद्ध है कि शक्तियों को चरित्र अर्थात् कर्म में लाया है। निर्बल आत्मा है वा शक्तिशाली आत्मा है, सर्वशक्ति सम्पन्न है वा शक्ति स्वरूप सम्पन्न है - यह सब पहचान कर्म से ही होती है क्योंकि कर्म द्वारा ही व्यक्ति और परिस्थिति के सम्बन्ध वा सम्पर्क में आते हैं। इसलिए नाम ही है - ‘‘कर्म-क्षेत्र, कर्म-सम्बन्ध, कर्म-इन्द्रियां, कर्म भोग, कर्म योग''। तो इस साकार वतन की विशेषता ही - ‘कर्म' है। जैसे निराकार वतन की विशेषता कर्मों से अतीत अर्थात् न्यारे हैं। ऐसे साकार वतन अर्थात् कर्म। कर्म श्रेष्ठ है तो श्रेष्ठ प्रालब्ध है, कर्म भ्रष्ट होने के कारण दुख की प्रालब्ध है। लेकिन दोनों का आधार ‘कर्म' है। कर्म, आत्मा का दर्शन कराने का दर्पण है। कर्म रूपी दर्पण द्वारा अपने शक्ति स्वरूप को जान सकते हो। अगर कर्म द्वारा कोई भी शक्ति का प्रत्यक्ष रूप दिखाई नहीं देता तो कितना भी कोई कहे कि मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ लेकिन कर्मक्षेत्र पर रहते कर्म में नहीं दिखाया तो कोई मानेगा? जैसे कोई बहुत होशियार योद्धा हो, युद्ध में बहुत होशियार हो लेकिन युद्ध के मैदान में दुश्मन के आगे युद्ध नहीं कर पाये और हार खा ले तो कोई मानेगा कि यह होशियार योद्धा है? ऐसे अगर अपनी बुद्धि में समझते रहें कि मैं शक्ति स्वरूप हूँ लेकिन परिस्थितियों के समय, सम्पर्क में आने के समय, जिस समय जिस शक्ति की आवश्यकता है उस शक्ति को कर्म मे नहीं लाते तो कोई मानेगा कि यह शक्ति स्वरूप हैं? सिर्फ बुद्धि तक जानना वह हो गया घर बैठे अपने को होशियार समझना। लेकिन समय पर स्वरूप न दिखाया, समय पर शक्ति को कार्य में नहीं लगाया, समय बीत जाने के बाद सोचा तो शक्ति स्वरूप कहा जायेगा? यही कर्म में श्रेष्ठता चाहिए। जैसा समय वैसी शक्ति कर्म द्वारा कार्य में लगावें। तो अपने आपको सारे दिन की कर्म लीला द्वारा चेक करो कि हम मास्टर सर्वशक्तिवान कहाँ तक बने हैं!
विशेष कौन सी शक्ति समय पर विजयी बनाती है और विशेष कौन सी शक्ति की कमज़ोरी बार-बार हार खिलाती है? कई बच्चे अपनी कमजोर शक्ति को जानते भी हैं। कभी कोई धारणा युक्त संगठन होता या अपने स्व पुरूषार्थियों का वायुमण्डल होता तो वर्णन भी करेंगे लेकिन साधारण रीति में। मैजारिटी अपनी कमज़ोरी को दूसरों से छिपाने की कोशिश करते हैं। समय पर कोई सुनाते भी हैं फिर भी उसी कमज़ोरी के बीज को कम पहचानते हैं। ऊपर-ऊपर से वर्णन करेंगे। बाहर के रूप के विस्तार का वर्णन करेंगे लेकिन बीज तक नहीं जायेंगे। इसलिए रिजल्ट क्या होती है - उस कमज़ोरी के ऊपर की शाखायें तो काट देते हैं, इसलिए थोड़ा समय तो समाप्त अनुभव होती हैं लेकिन बीज होने के कारण कुछ समय के बाद परिस्थितियों का पानी मिलने से फिर उसी कमज़ोरी की शाखा निकल आती है। जैसे आजकल के वायुमंडल में, दुनिया में बीमारी खत्म नहीं होती है- क्योंकि बीमारी के बीज को डाक्टर नहीं जानते। इसलिए बीमारी दब जाती है लेकिन समाप्त नहीं होती है। ऐसे यहाँ भी बीज को जानकर बीज को समाप्त करो। कई बीज को जानते भी हैं लेकिन जानते हुए भी अलबेलेपन के कारण कहेंगे, हो जायेगा, एक बार से थोड़े ही खत्म होगा? समय तो लगता ही है! ऐसे ज्यादा समझदारी कर लेते हैं। जिस समय पावरफुल बनना चाहिए उस समय नालेजफुल बन जाते हैं। लेकिन नालेज की शक्ति है, उस नालेज को शक्ति रूप में यूज़ नहीं करते। प्वाइन्ट के रूप से यूज़ करते हैं लेकिन हर एक ज्ञान की प्वाइन्ट शस्त्र है, उसे शस्त्र के रूप से यूज़ नहीं करते। इसलिए बीज को जानो। अलबेलेपन में आकर अपनी सम्पन्नता में वा सम्पूर्णता में कमी नहीं करो। और अगर बीज को जानने के बाद स्वयं में जानने की शक्ति अनुभव करते हो लेकिन भस्म करने की शक्ति नहीं समझते हो तो अन्य ज्वाला स्वरूप श्रेष्ठ आत्माओं का भी सहयोग ले सकते हो, क्योंकि कमजोर आत्मा होने कारण डायरेक्ट बाप द्वारा कनेक्शन और करेक्शन नहीं कर पाते तो सेकण्ड नम्बर श्रेष्ठ आत्माओं का सहयोग ले स्वयं को वेरीफाय कराओ। वेरीफाय होने से सहज प्युरीफाय हो जायेंगे। तो समझा क्या चेक करना है और कैसे चेक करना है?
एक तो छिपाओ नहीं। दूसरा जानते हुए टाल नहीं दो, चला नहीं दो। चलाते हो तो चिल्लाते भी हो। तो आज बापदादा शक्ति सेना की शक्ति को देख रहे थे। अभी प्राप्त की हुई शक्तियों को कर्म में लाओ क्योंकि विश्व की सर्व आत्माओं के आगे, ‘कर्म' ही आपकी पहचान कराएंगे। कर्म से वह सहज जान लेंगे। कर्म सबसे स्थूल चीज है। संकल्प सूक्ष्म शक्ति है। आजकल की आत्मायें स्थूल मोटे रूप को जल्दी जान सकती हैं। वैसे सूक्ष्म शक्ति स्थूल से बहुत श्रेष्ठ है लेकिन लोगों के लिए सूक्ष्म शक्ति के बायब्रेशन कैच करना अभी मुश्किल है। कर्म शक्ति द्वारा आपकी संकल्प शक्ति को भी जानते जाएंगे। मंसा सेवा कर्मणा से श्रेष्ठ है। वृत्ति द्वारा वृत्तियों को, वायुमण्डल को परिवर्तन करना यह सेवा भी अति श्रेष्ठ है। लेकिन इससे सहज कर्म है। उसकी परिभाषा तो पहले भी सुनाई है लेकिन आज इस बात को स्पष्ट कर रहे हैं कि कर्म द्वारा शक्ति स्वरूप का दर्शन अथवा साक्षात्कार कराओ तो कर्म द्वारा संकल्प शक्ति तक पहुँचना सहज हो जायेगा। नहीं तो कमजोर कर्म, सूक्ष्म शक्ति बुद्धि को भी, संकल्प को भी नीचे ले आयेंगे। जैसे धरनी की आकर्षण ऊपर की चीज को नीचे ले आती है। इसलिए चित्र को चरित्र में लाओ। अच्छा –
ऐसे हर शक्ति को कर्म द्वारा प्रत्यक्ष दिखाने वाले, अपने शक्ति स्वरूप द्वारा सर्वशक्तिवान बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, सदा परखने और परिवर्तन शक्ति स्वरूप, सदा चरित्र द्वारा विचित्र बाप का साक्षात्कार कराने वाले, ऐसे मास्टर सर्वशक्तिवान, श्रेष्ठ कर्म कर्ता, शक्ति स्वरूप आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।''
पार्टियों के साथ-
1- माया के मेहमान निवाजी की रिजल्ट है - उदासी - सदा अपने को बापदादा के साथी समझते हो? जब सदा बाप का साथ अनुभव होगा तो उसकी निशानी है - ‘सदा विजयी'। अगर ज्यादा समय युद्ध में जाता है, मेहनत का अनुभव होता है तो इससे सिद्ध है - बाप का साथ नहीं। जो सदा साथ के अनुभवी हैं वे मुहब्बत में लवलीन रहते हैं। प्रेम के सागर में लीन आत्मा किसी भी प्रभाव में आ नहीं सकती। माया का आना यह कोई बड़ी बात नहीं लेकिन वह अपना रूप न दिखाये। अगर माया की मेहमान-निवाजी करते हो तो चलते- चलते ‘उदासी' का अनुभव होगा। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे न आगे बढ़ रहे हैं न पीछे हट रहे हैं। पीछे भी नहीं हट सकते, आगे भी नहीं बढ़ सकते - यह माया का प्रभाव है। माया की आकर्षण उड़ने नहीं देती। पीछे हटने का तो सवाल ही नहीं लेकिन अगर आगे नहीं बढ़ते तो बीज को परखो और उसे भस्म करो। ऐसे नहीं - चल रहे हैं, आ रहे हैं, सुन रहे हैं, यथाशक्ति सेवा कर रहे हैं। लेकिन चैक करो कि अपनी स्पीड और स्टेज की उन्नति कहाँ तक है। अच्छा।
2- महाप्रसाद वही बनता जो एक धक से बाप पर बलि चढ़े- सभी बच्चे जीवनमुक्त स्थिति का विशेष वर्सा अनुभव करते हो? जीवनमुक्त हो या जीवनबन्ध? ट्रस्टी अर्थात् जीवनमुक्त। तो मरजीवा बने हो या मर रहे हो? कितने साल मरेंगे? भक्ति मार्ग में भी जड़ चित्र को प्रसाद कौनसा चढ़ता हैं? जो झाटकू होता है। चिलचिलाकर मरने वाला प्रसाद नहीं होता। बाप के आगे प्रसाद वही बनेगा जो झाटकू होगा। एक धक से चढ़ने वाला। सोचा, संकल्प किया, ‘मेरा बाबा, मैं बाबा का' तो झाटकू हो गया। संकल्प किया और खत्म! लग गई तलवार! अगर सोचते, बनेंगे, हो जायेंगे... तो गें...गें अर्थात् चिलचिलाना। गें गें करने वाले जीवनमुक्त नहीं। बाबा कहा - तो जैसा बाप वैसे बच्चे। बाप सागर हो और बच्चे भिखारी हों, यह हो नहीं सकता। बाप ने आफर किया - मेरे बनो तो इसमें सोचने की बात नहीं। अच्छा –