16-04-82 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“संगमयुगी स्वराज्य दरबार ही सर्वश्रेष्ठ दरबार”
बापदादा बोले:-
‘‘आज बापदादा किस दरबार में आये हैं? आज की इस दरबार में बापदादा अपने विश्व के राज्य स्थापना के कार्य में राज्य सहयोगी आत्माओं को अर्थात् अपने राज्य कारोबारी, राज्य अधिकारी बच्चों को देख रहे हैं। संगमयुगी स्वराज्य दरबार देख रहे हैं। स्वराज्य दरबार में सर्व प्रकार की सहयोगी आत्मायें चारों ओर की देख रहे हैं। इस स्वराज्य दरबार के विशेष शिरोमणी रतन बापदादा के सम्मुख साकार रूप में दूर होते हुए भी माला के रूप में राज्य अधिकारी सिंहासन पर सामने दिखाई दे रहे हैं। हरेक राज्य अधिकारी सहयोगी आत्मा अपनी-अपनी विशेषताओं की चमक से चमक रही हैं। हरेक भिन्न-भिन्न गुणों के गहनों से सजे सजाये हैं। सिंहासन की राज्य निशानी कौनसी होती है? सभी दरबार में बैठे हो ना! कोई आगे हैं कोई पीछे हैं लेकिन हैं दरबार में। तो सिंहासन की राज्य निशानी ‘छत्रछाया रूपी छतरी' बड़ी अच्छी चमक रही है। हरेक डबल छत्रधारी है। एक लाइट का क्राउन अर्थात् फरिश्ते स्वरूप की निशानी साथ-साथ विश्व कल्याण के बेहद सेवा के ताजधारी। ताज तो सभी के ऊपर है लेकिन नम्बरवार हैं। कोई के दोनों ताज समान हैं। कोई का एक छोटा तो दूसरा बड़ा है और कोई के दोनों ही छोटे हैं। साथ-साथ हरेक राज्य अधिकारी के प्युरिटी की पर्सनैलिटी भी अपनी-अपनी है। रूहानियत की रॉयल्टी अपनी-अपनी नम्बरवार दिखाई दे रही है ऐसे स्वराज्य अधिकारी सहयोगी आत्माओं की दरबार देख रहे हैं। संगमयुगी श्रेष्ठ दरबार, भविष्य की राज्य दरबार दोनों में कितना अन्तर है! अब की दरबार जन्म-जन्मान्तर की दरबार का फाउन्डेशन है। अभी के दरबार की रूपरेखा भविष्य दरबार की रूपरेखा बनाने वाली है। तो अपने आपको देख सकते हो कि अभी के राज्य अधिकारी सहयोगी दरबार में हमारा स्थान कहाँ है? चेक करने का यन्त्र सभी के पास है? जब साइन्स वाले नये-नये यन्त्रों द्वारा धरनी से ऊपर के आकाशमण्डल के चित्र खींच सकते हैं, वहाँ के वायुमण्डल के समाचार दे सकते हैं, इनएडवांस प्रकृति के तत्वों की हलचल के समाचार दे सकते हैं तो आप सर्व शक्ति-सम्पन्न बाप के अथॉरिटी वाली श्रेष्ठ आत्मायें अपने दिव्य बुद्धि के यन्त्र द्वारा तीन काल की नॉलेज के आधार से अपना वर्तमान काल और भविष्य काल नहीं जान सकते? यन्त्र तो सभी के पास है ना? दिव्य बुद्धि तो सबको प्राप्त है। इस दिव्य बुद्धि रूपी यन्त्र को कैसे यूज़ करना है, किस स्थान पर अर्थात् किस स्थिति पर स्थित हो करके यूज़ करना है, यह भी जानते हो! त्रिकालदर्शी-पन की स्थिति के स्थान पर स्थित हो तीनों काल की नॉलेज के आधार पर यन्त्र को यूज़ करो! यूज़ करने आता है? पहले तो स्थान पर स्थित होने आता है अर्थात् स्थिति में स्थित होने आता है? तो इसी यन्त्र द्वारा अपने आपको देखो कि मेरा नम्बर कौन-सा है? समझा!
आज सर्वस्व त्यागी वाली बात नहीं बता रहे हैं। अभी लास्ट कोर्स रहा हुआ है। आज बापदादा अपने राज्य दरबार वासी साथियों को देख रहे थे। सभी यहाँ पहुँच गये हैं। आज की सभा में विशेष स्नेही आत्मायें ज्यादा हैं तो स्नेही आत्माओं को बापदादा भी स्नेह के रिटर्न में स्नेह देने के लिए स्नेह ही दरबार में पहुँच गये हैं। मिलन मेला मनाने के उमंग उत्साह वाली आत्मायें हैं। बापदादा भी मिलन मनाने के लिए बच्चों के उत्साह भरे उत्सव में पहुँच गये हैं। यह भी स्नेह के सागर और नदियों का मेला है। तो मेला मनाना अर्थात् उत्सव मनाना। आज बापदादा भी मेले के उत्सव में आये हैं। बापदादा मेला मनाने वाले, स्नेह पाने के भाग्यशाली आत्माओं को देख हर्षित हो रहे हैं कि सारे इतने विशाल विश्व में अथाह संख्या के बीच कैसी-कैसी आत्माओं ने मिलन का भाग्य ले लिया! विश्व के आगे ना उम्मीदवार आत्माओं ने अपनी सर्व उम्मीदें पूर्ण करने का भाग्य ले लिया। और जो विश्व के आगे नामीग्रामी उम्मीदवार आत्मायें हैं वह सोचती और खोजती रह गई। खोजना करते-करते खोज में ही खो गये। और आप स्नेही आत्माओं ने स्नेह के आधार पर पा लिया। तो श्रेष्ठ कौन हुआ? कोई शास्त्रार्थ करते शास्त्र में ही रह गये। कोई महात्मायें बन आत्मा और परमात्मा की छोटी सी भ्रान्ति में अपने भाग्य से रह गये। बच्चे बन बाप के अधिकार से वंचित रह गये। बड़े-बड़े वैज्ञानिक खोजना करते उसी में खो गये। राजनीतिज्ञ योजनायें बनाते-बनाते रह गये। भोले भक्त कण-कण में ढूँढते ही रह गये। लेकिन पाया किन्हों ने? भोलेनाथ के भोले बच्चों ने। बड़े दिमाग वालों ने नहीं पाया लेकिन सच्ची दिल वालों ने पाया। इसलिए कहावत है - सच्ची दिल पर साहब राजी। तो सभी सच्ची दिल से दिलतख्तनशीन बन सकते। सच्ची दिल से दिलाराम बाप को अपना बना सकते। दिलाराम बाप सच्ची दिल के सिवाए सेकण्ड भी याद के रूप में ठहर नहीं सकते। सच्ची दिल वाले की सर्वश्रेष्ठ संकल्प रूपी आशायें सहज सम्पन्न होती हैं। सच्ची दिल वाले सदा बाप के साथ का साकार, आकार, निराकार तीनों रूपों में सदा साथ का अनुभव करते हैं। अच्छा –
ऐसे सदा स्नेह के सागर से मिलन मनाने वाली बहती गंगायें, सदा स्नेह के आधार से बापदादा को सर्व सम्बन्ध में अपना अनुभव करने वाले, भोलेनाथ बाप से सदा का सौदा करने वाले, ऐसे स्नेही सच्ची दिल वाली श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।''
टीचर्स के साथः- सेवाधारियों को सदा बुद्धि में क्या याद रहता है? सिर्फ सेवा या याद और सेवा? जब याद और सेवा दोनों का बैलेन्स होगा तो वृद्धि स्वत: होती रहेगी। वृद्धि का सहज उपाय ही है - ‘‘बैलेन्स''। वर्तमान समय के हिसाब से सर्व आत्माओं को सबसे ज्यादा शान्ति की चाहना है, तो जहाँ भी देखो सर्विस वृद्धि को नहीं पाती, वैसे की वैसे रह जाती - वहाँ अपने सेवाकेन्द्र के वातावरण को ऐसा बनाओ जैसे ‘शान्ति-कुण्ड' हो। एक कमरा विशेष इस वायुमण्डल और रूपरेखा का बनाओ जैसे बाबा का कमरा बनाते हो ऐसे ढंग से बनाओ जो घमसान के बीच में शान्ति का कोना दिखाई दे। ऐसा वायुमण्डल बनाने से, शान्ति की अनुभूति कराने से वृद्धि सहज हो जायेगी। म्यूजियम ठीक है लेकिन यह सुनने और देखने का साधन है। सुनने और जानने वालों के लिए म्यूजियम ठीक है लेकिन जो सुन-सुन करके थक गये हैं उन्हों के लिए शान्ति का स्थान बनाओ। मैजारटी अभी यही कहते हैं कि आपका सब कुछ सुन लिया, सब देख लिया। लेकिन ‘‘पा लिया है'' - ऐसा कोई नहीं कहता। अनुभव किया, पाया यह अभी नहीं कहते हैं। तो अनुभव कराने का साधन है - याद में बिठाओ, शान्ति का अनुभव कराओ। दो मिनट भी शान्ति का अनुभव कर लें तो छोड़ नहीं सकते। तो दोनों ही साधन बनाने चाहिए। सिर्फ म्यूजियम नहीं लेकिन ‘शान्ति-कुण्ड' का स्थान भी। जैसे आबू में म्यूजियम भी अच्छा है लेकिन शान्ति का स्थान भी आकर्षण वाला है। अगर चित्रों द्वारा नहीं भी समझते तो ‘दो घड़ी' याद में बिठाने से इम्प्रेशन बदल जाता है। इच्छा बदल जाती है। समझते हैं कि कुछ मिल सकता है। प्राप्ति हो सकती है। जहाँ पाने की इच्छा उत्पन्न होती वहाँ आने के लिए भी कदम उठना सहज हो जाता। तो ऐसे वृद्धि के साधन अपनाओ।
बाकी सेवाधारी जब स्व से और सर्व से सन्तुष्ट होते हैं तो सेवा का, सहयोग का उमंग उत्साह स्वत: होता है। कहना कराना नहीं पड़ता, सन्तुष्टता सहज ही उमंग उल्लास में लाती है। सेवाधारी का विशेष यही लक्ष्य हो कि सन्तुष्ट रहना है और करना है।
2. सदा सागर के कण्ठे में रहने वाले होलीहंस हो। सदा सागर के कण्ठे पर रहते हैं और सदा सागर की लहरों से खेलते रहते हैं। अपने को ऐसे होलीहंस अनुभव करते हो? सदा ज्ञान रतन चुगने वाले अर्थात् धारण करने वाले, सदा बुद्धि में ज्ञान रतन भरपूर। बाकी जो भी व्यर्थ बात, व्यर्थ दृश्य... यह सब कंकड़ हो गये। हंस कभी कंकड़ नहीं लेते - सदा रत्नों को धारण करते। तो कभी भी किसी भी व्यर्थ बात का प्रभाव न हो। अगर प्रभाव में भी आ गये तो वही मनन और वही वर्णन होगा। वर्णन, मनन से वायुमण्डल भी ऐसा बन जाता है। बात कुछ नहीं होती लेकिन वायुमण्डल ऐसा बन जाता है जैसे बड़े से बड़ा पहाड़ गिर गया हो। अगर अपने मन में मनन चलता या मुख से वर्णन होता तो छोटी सी बात भी पहाड़ बन जाती, क्योंकि वायुमण्डल में फैल जाती है। और अगर उस बात को समा दो, साक्षी होकर पार कर लो तो वह बात राई हो जायेगी। तो सदा होलीहंस और सदा सागर के कण्ठे पर रहने वाले। सदा स्वरूप की स्मृति में रहो।
सेवाधारियों को सदा सफलता स्वरूप रहने के लिए बाप समान बनना है। एक ही शब्द याद रहे - फालो फादर। जो भी कर्म करते हो - चेक करो कि यह बाप का कार्य है? अगर बाप का है तो मेरा भी है, बाप का नहीं तो मेरा भी नहीं। यह चेकिंग की कसौटी सदा साथ रहे। तो फालो फादर करने वाले अर्थात् -जो बाप का संकल्प वही मेरा संकल्प, जो बाप का बोल वही मेरा। इससे क्या होगा? जैसे बाप सदा सफलता स्वरूप है वैसे स्वयं भी सदा सफलता स्वरूप हो जायेंगे। तो बाप के कदम पर कदम रखते चलो। कोई चलता रहे उसके पीछेपीछे जाओ तो सहज ही पहुँच जायेंगे ना। तो फालो फादर करने वाले मेहनत से छूट जायेंगे और सदा सहज प्राप्ति की अनुभूति होती रहेगी।
कुमारियों के साथ:- कुमारियों का लक्ष्य क्या है? सेवा करने के लिए पहले स्वयं में सर्व प्राप्ति का अनुभव कर रही हो? क्योंकि जितना खजाना अपने पास होगा उतना औरो को दे सकेंगी। तो रोज इस अलौकिक पढ़ाई पर अटेन्शन देती हो? पढ़ने के साथ-साथ सेवा का भी चांस लेती हो? सदा अपने को गॉडली स्टूडेन्ट समझते हुए स्टडी के तरफ अटेन्शन। जितना स्वयं स्टडी के तरफ अटेन्शन रखेंगी उतना औरों को भी अनुभवी बन स्टडी करा सकेंगी। इस समय के हिसाब से गृहस्थी जीवन क्या है, उसको भी देख रही हो ना! गृहस्थी जीवन माना इस बेहद की जेल में फँसना। अभी फ्री हो ना! कितने बन्धनों से मुक्त हो! तो सदा ही ऐसे बन्धनमुक्त, जीवनमुक्त स्थिति में स्थित रहना। कभी भी यह संकल्प न आये कि गृहस्थी जीवन का भी अनुभव करके देखें। बहुत भाग्यवान हो जो कुमारी जीवन में बाप की बनी हो। तो राइट हैन्ड बनना, लेफ्ट हैन्ड नहीं।
2. सभी कुमारियों ने बाप से पक्का सौदा किया है? क्या सौदा किया है? आपने कहा - बाबा हम आपके और बाप ने कहा बच्चे हमारे, यह पक्का सौदा किया? और सौदा तो नहीं करेंगी ना! दो नांव में पांव रखने वाले का क्या हाल होगा! न यहाँ के न वहाँ के? तो सौदा करने में होशियार हो ना! देखो, देते क्या हो - पुराना शरीर जिसको सुईयों से सिलाई करते रहते, कमजोर मन जिसमें कोई शक्ति नहीं और काला धन... और लेते क्या हो? - 21 जन्म की गैरन्टी का राज्य। ऐसा सौदा तो सारे कल्प में कभी भी नहीं किया? तो पक्का सौदा किया? एग्रीमेंट लिख ली। बापदादा को कुमारियाँ बहुत प्रिय लगती हैं - क्योंकि कुमारी सरेन्डर हुई और टीचर बन गई। कुमार सरेन्डर हुए तो टीचर नहीं कहलायेंगे, सेवाधारी कहलायेंगे। कुमारी को टीचर की सीट मिल जाती है। आज कुमारी कल उसको सब बाप समान निमित्त शिक्षक की नज़र से देखते हैं। तो श्रेष्ठ हो गई ना! कुमारी जीवन में श्रेष्ठ बन जाए तो उल्टी सीढ़ी चढने से बच जाए। आप लोग न चढ़े न उतरने की मेहनत। प्रवृत्ति वालों को मेहनत करनी पड़ती है। तो सदा विश्व कल्याणकारी कुमारी। बापदादा सभी को सफलता स्वरूप समझते हैं - एक दो से आगे जाओ, रेस करना, रीस नहीं करना। हरेक की विशेषता को देखकर विशेष आत्मा बनना। अच्छा –
3. कुमारी वा सेवाधारी के बजाय अपने को शक्ति स्वरूप समझो:- सदा अपना शिव-शक्ति स्वरूप स्मृति में रहता है? शक्ति स्वरूप समझने से सेवा में भी सदा शक्तिशाली आत्माओं की वृद्धि होती रहेगी। जैसी धरनी होती है वैसा फल निकलता है। तो जितनी अपनी स्वयं की शक्तिशाली स्टेज बनाते, वायुमण्डल को शक्ति स्वरूप बनाते उतना आत्मायें भी ऐसी आती हैं। नहीं तो कमजोर आत्मायें आयेंगी और उनके पीछे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। तो सदा अपना ‘शिव-शक्ति स्वरूप' ‘स्मृति भव'। कुमारी नहीं, सेवाधारी नहीं - ‘शिव शक्ति'। सेवाधारी तो बहुत हैं, यह टाइटल तो आजकल बहुतों को मिल जाता है लेकिन आपकी विशेषता है - ‘शिव शक्ति कम्बाइन्ड'। इसी विशेषता को याद रखो। सेवा की वृद्धि में सहज और श्रेष्ठ अनुभव होता रहेगा। सेवा करने के लिफ्ट की गिफ्ट जो मिली है उसका रिटर्न देना है। रिटर्न क्या है? शक्तिशाली - सफलता मूर्त्त।
अच्छा - ओम् शान्ति।