28-12-82 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“सदा एक रस, सम्पूर्ण चमकता हुआ सितारा बनो”
परमशिक्षक, सदगुरू, बाप अपने चमकते हुए सितारों, बच्चों प्रति बोले :-
‘‘बापदादा सभी बच्चों को देख हर बच्चे के वर्तमान लगन में मगन रहने की स्थिति, और भविष्य प्राप्ति को देख हर्षित हो रहे हैं। क्या थे, क्या बने हैं और भविष्य में भी क्या बनने वाले हैं। हरेक बच्चा विश्व के आगे विशेष आत्मा है। हर एक के मस्तक पर भाग्य का सितारा चमक रहा है। ऐसा ही अभ्यास हो, सदा चमकते हुए सितारे को देखते रहें, इसी प्रैक्टिस को सदा बढ़ाते चलो। जहाँ देखो, जब भी किसको देखो, ऐसा नैचुरल अभ्यास हो जो शरीर को देखते हुए न देखो। सदा नज़र चमकते हुए सितारे की तरफ जाये। जब ऐसी रूहानी नज़र सदा नैचुरल रूप में हो जायेगी तब विश्व की नज़र आप चमकते हुए धरती के सितारों पर जायेगी। अभी विश्व की आत्मायें ढूँढ रही हैं। कोई शक्ति कार्य कर रही है, ऐसी महसूसता, ऐसी टाचिंग अभी आने लगी है। लेकिन कहाँ है, कौन है, यहæ ढूँढते हुए भी जान नहीं सकते। भारत द्वारा ही आध्यात्मिक लाइट मिलेगी, यह भी धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है। इस कारण विश्व की चारों तरफ से नज़र हटकर भारत की तरफ हो गई है लेकिन, भारत में किस तरफ और कौन आध्यात्मिक लाइट देने के निमित्त हैं, अभी यह स्पष्ट होना है। सभी के अन्दर अभी यह खोज है कि भारत में अनेक आध्यात्मिक आत्मायें कहलाने वाली हैं, आखिर भी इनमें धर्मात्मा कौन और परमात्मा कौन है? यह तो नहीं है, यह तो नहीं है - इसी सोच में लगे हुए हैं। ‘‘यही है'' इसी फैसले पर अभी तक पहुँच नहीं पाये हैं। ऐसी भटकती हुई आत्माओं को सही निशाना, यथार्थ ठिकाना दिखाने वाले कौन? डबल विदेशी समझते हैं कि हम ही वह हैं। फिर इतना बिचारों को भटकाते क्यों हो? सदा के लिए ऐसी स्थिति बनाओ जो सदा चमकते हुए सितारे देखें। दूर से ही आपकी चमकती हुई लाइट दिखाई दे। अभी तक जो सम्मुख आते हैं, सम्पर्क में आते हैं, उन्हीं को अनुभव होता है लेकिन दूर-दूर तक यह टाचिंग हो, यह वायब्रेशन फैलें - उसमें अभी और भी अभ्यास की आवश्यकता है। अभी निमंत्रण देना पड़ता है कि आओ, आकर अनुभव करो। लेकिन जब चमकते हुए सितारे - सूर्य, चन्द्रमा समान, अपनी सम्पूर्ण स्टेज पर स्थित होंगे फिर क्या होगा? जैसे स्थूल रोशनी के ऊपर परवाने स्वत: ही आते हैं, शमा बुलाने नहीं जाती है लेकिन प्यासे परवाने कहाँ से भी पहुँच जाते हैं। ऐसे आप चमकते हुए सितारों पर भटकती हुई आत्मायें, ढूंढने वाली आत्मायें स्वत: ही पाने के लिए, मिलने के लिए ऐसी फास्ट गति से आयेंगे जो आप सबको सेकेण्ड में बाप द्वारा मुक्ति, जीवनमुक्ति का अधिकार दिलाने की तीव्रगति से सेवा करनी पड़ेगी। इस समय मास्टर दाता का पार्ट बजा रहे हो। मास्टर शिक्षक का पार्ट चल रहा है। लेकिन अभी सतगुरू के बच्चे बन ‘गति और सद्गति' के वरदाता का पार्ट बजाना है। मास्टर सतगुरू का स्वरूप कौन सा है, जानते हो? अभी तो बाप का भी, बाप और शिक्षक का पार्ट विशेष रूप में चल रहा है इसलिए बच्चों के रूप में कभी-कभी बाप को भी नाज़ और नखरे देखने पड़ते हैं। शिक्षक के रूप में बार-बार एक ही पाठ याद कराते रहते हैं। सतगुरू के रूप में ‘गति-सद्गति का सर्टीफिकेट', फाइनल वरदान सेकण्ड में मिलेगा।
मास्टर सतगुरू का स्वरूप अर्थात् सम्पूर्ण फालो करने वाले। सतगुरू के वचन पर सदा सम्पूर्ण रीति चलने वाले - ऐसा स्वरूप अब प्रैक्टिकल में बाप का और अपना अनुभव करेंगें। सतगुरू का स्वरूप अर्थात् सम्पन्न, समान बनाकर साथ ले जाने वाले। सतगुरू के स्वरूप में मास्टर सतगुरू भी नज़र से निहाल करने वाले है। मत दी और गति हुई। इसलिए ‘गुरू मंत्र' प्रसिद्ध है। सेकण्ड का मंत्र लिया और समझते हैं, गति हो गई। मंत्र अर्थात् श्रेष्ठ मत। ऐसी पावरफुल स्टेज से श्रीमत देंगे जो आत्मायें अनुभव करेंगे कि हमें गति सद्गति का ठिकाना मिल गया। ऐसी शक्तिशाली स्थिति को अब से अपनाओ। सितारे तो अभी हो लेकिन अभी लाइट क्या होती है....?
सदा एक रस सम्पूर्ण चमकता हुआ सितारा हो, ऐसे स्वयं को प्रत्यक्ष करो। सुना, क्या करना है? डबल विदेशी तीव्रगति वाले हो ना? या रूकते हो, चलते हो? कभी बादलो के बीच छिप तो नहीं जाते हो? - बादल आते हैं? ऐसा सम्पूर्ण स्वरूप बहुत काल सदा-सदा रहे तब प्रत्यक्षता हो। अभी-अभी चमकता हुआ सितारा और अभी अभी फिर बादलों में छिप जाये तो विश्व की आत्मायें स्पष्ट अनुभव कर नहीं सकतीं। इसलिए एक रस रहने का, सदा सूर्य समान चमकते रहने का संकल्प करो। अच्छा –
सभी डबल विदेशी बच्चों को और चारों ओर के सेवाधारी बच्चों को, सदा बाप समान मन, वाणी और कर्म में फालो करने वाले, सदा बाप के दिलतख्तनशीन, मास्टर दिलाराम, सदा भटकती हुई आत्माओं को रास्ता दिखाने वाले लाइट हाउस बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।''
पार्टियों के साथ
नेरोबी पार्टी से - ‘‘सभी रेस में नम्बरवन हो ना? नम्बरवन की निशानी है - हर बात में विन करने वाले अर्थात् वन नम्बर में आने वाले। किसी भी बात में हार न हो। सदा विजयी। तो नेरोबी निवासी सदा विजयी हो ना! कभी चलते- चलते रूकते तो नहीं हो। रूकने का कारण क्या होता? जरूर कोई न कोई मर्यादा वा नियम थोड़ा भी नीचे ऊपर होता है तो गाड़ी रूक जाती है। लेकिन यह संगमयुग है ही ‘मर्यादा पुरूषोत्तम' बनने का युग। पुरूष नहीं, नारी नहीं लेकिन ‘पुरूषोत्तम' हैं, इसी स्मृति में सदा रहो। पुरूषों में उत्तम पुरूष - ‘प्रजापिता ब्रहमा' को कहा जाता है। तो ब्रह्मा के बच्चे आप सब ‘ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ' भी पुरूषोत्तम हो गये ना। इस स्मृति में रहने से सदा उड़ती कला में जाते रहेंगे, नीचे नहीं रूकेंगे। चलने से भी ऊपर सदा उड़ते रहेंगे क्योंकि संगमयुग उड़ती कला का युग है, और कोई ऐसा युग नहीं जिसमें उड़ती कला हो। तो स्मृति में रखो कि यह युग उड़ती कला का युग है, ब्राह्मणों का कर्त्तव्य भी उड़ना और उड़ाना है। वास्तविक स्टेज भी उड़ती कला है। उड़ती कला वाला सेकण्ड में सर्व समस्यायें पार कर लेगा। ऐसा पार करेगा जैसे-कुछ हुआ ही नहीं। नीचे की कोई भी चीज डिस्टर्ब नहीं करेगी। रूकावट नहीं डालेगी। प्लेन में जाते हैं तो हिमालय का पहाड़ भी रूकावट नहीं डालता, पहाड़ को भी मनोरंजन की रीति से पार करते हैं। तो ऐसे ही उड़ती कला वाले के लिए बड़े ते बड़ी समस्या भी सहज हो जाती है।
नेरोबी अपना नम्बर आगे ले रही है ना! अभी वी.आई.पीज. की सर्विस में नम्बर आगे लेना है। संख्या तो अच्छी है, अभी देखेंगे कांफ्रेंस में वी.आई.पीज. कौन कौन ले आता है? अभी है वह नम्बर। सबसे नम्बरवन वी.आई.पीज. कौन लाता है, अभी यह रेस बापदादा देखेंगे।''
नये हाल के लिए चित्र बनाने वाले चित्रकारों प्रति बापदादा का ईशारा - ‘‘चित्रकार बन करके चित्र बना रहे हो वा स्वयं उस स्थिति में स्थित हो करके चित्र बनाते हो! क्या करते हो? क्योंकि और कहाँ भी कोई चित्र बनाते हैं तो वह रिवाजी चित्रकार चित्र बना देते हैं। यहाँ चित्र बनाने का लक्ष्य क्या है? जैसे बाप का चित्र बनायेंगे तो उसकी विशेषता क्या होनी चाहिए? चित्र चैतन्य को प्रत्यक्ष करें। चित्र के आगे जाते ही अनुभव करें कि यह चित्र नहीं देख रहा है, चैतन्य को देख रहा है। वैसे भी चित्र की विशेषता - चित्र जड़ होते चैतन्य अनुभव हो, इसी पर प्राइज मिलती है। उसमें भी भाव और प्रकार का होता। लेकिन रूहानी चित्र का लक्ष्य है - चित्र रूहानी रूह को प्रत्यक्ष कर दे। रूहानियत का अनुभव कराये। ऐसे अलौकिक चित्रकार, लौकिक नहीं। लौकिक चित्रकार तो लौकिक बातों को - नयन, चैन को देखेंगे लेकिन यहाँ रूहानियत का अनुभव हो - ऐसा चित्र बनाओ। (आशीर्वाद चाहिए) आशीर्वाद तो क्या आशीर्वाद की खान पर पहुँच गये हो, मांगने की आवश्यकता नहीं है, अधिकार लेने का स्थान है। जब वर्से के रूप में प्राप्त हो सकता है तो थोड़ी सी ब्लेसिंग क्यों? खान पर जाकर दो मुट्ठी भरकर आना उसको क्या कहा जायेगा? बाप जैसे स्वयं सागर है तो बच्चों को भी मास्टर सागर बनायेंगे ना। सागर में कोई भी कमी नहीं होती। सदा भरपूर होता है। अच्छा -''
स्वीडन पार्टी से :-’’सदा निश्चयबुद्धि विजयी रत्न हैं।'' - इसी नशे में रहो। निश्चय का फाउन्डेशन सदा पक्का है! अपने आप में निश्चय, बाप में निश्चय और ड्रामा की हर सीन को देखते हुए उसमें भी पूरा निश्चय। सदा इसी निश्चय के आधार पर आगे बढ़ते चलो। अपनी जो भी विशेषतायें हैं, उनको सामने रखो, कमज़ोरियों को नहीं, तो अपने आप में फेथ रहेगा। कमज़ोरी की बात को ज्यादा नहीं सोचना तो फिर खुशी में आगे बढ़ते जायेंगे। बाप का हाथ लिया तो बाप का हाथ पकड़ने वाले सदा आगे बढ़ते हैं, यह निश्चय रखो। जब बाप सर्वशक्तिवान है तो उसका हाथ पकड़ने वाले पार पहुँचे कि पहुँचे। चाहे खुद भले कमजोर भी हो लेकिन साथी तो मजबूत है ना। इसलिए पार हो ही जायेंगे। सदा निश्चयबुद्धि विजयी रत्न, इसी स्मृति में रहो। बीती सो बीती, बिन्दी लगाकर आगे बढ़ो।''
महावाक्यों का सार
1. सदा नज़र चमकते हुए सितारे की तरफ जाए। जब ऐसी रूहानी नज़र सदा नेचुरली रूप में हो जावेगी तब विश्व की नज़र आप चमकते हुए धरती के सितारों पर जायेगी।