15-02-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"विश्व शांति सम्मेलन में सम्मिलित होने वाले भाई-बहेनो के प्रति अव्यक्त बापदादा का मधुर सन्देश"

(गुलजार बहन द्वारा)

सदा की रीति प्रमाण आज जैसे ही मैं वतन में पहुँची तो बाप दादा बहुत मीठी नजर से दृष्टि द्वारा सर्व बच्चों को यादप्यार दे रहे थे। बाबा की दृष्टि से आज ऐसे अनुभव हो रहा था जैसे अति शान्ति, शक्ति, प्रेम और आनन्द की किरणें निकल रही हों। ऐसी रूहानी दृष्टि जिससे चार ही बातों की प्राप्ति हो रही थी। ऐसे लग रहा था जैसे हम बहुत कुछ पा रहे हैं। ऐसे बाप दादा ने हम सभी बच्चों का स्वागत किया और बोले - ‘‘बच्ची, सभी की याद लाई हो?’’ मैनें कहा -’’याद तो लाई हूँ लेकिन सबके आह्वान का संकल्प भी लाई हूँ’’ तो बाबा बोले - ‘‘इस समय तो मेरे इतने प्यारे बच्चे, जो भी आये हैं, जानने के लिए आए हैं, ऐसा भी दिन आएगा जो फिर मिलने के लिए आयेंगे। बापदादा तो सभी बच्चों का दृश्य वतन में रहते हए भी सदा देखते रहते हैं।’’ ऐसा कहते बाबा ने एक दृश्य दिखाया - जैसे भारत देश में भक्त लोग मन्दिरों में शिवालिंग की प्रतिमा बनाते हैं। ऐसे वतन में भी एक प्रतिमा दिखाई दी लेकिन उस प्रतिमा का गोल आकार था। और उस गोल आकार में अनेक चमकते हुए हीरे चारों ओर नजर आ रहे थे। उन चमकते हुए हीरों पर चार प्रकार की लाइट पड़ रही थी। एक रंग था सफेद, दूसरा हरा, तीसरा हल्का ब्ल्यु और चौथा गोल्ड। थोड़े समय में वह लाइट शब्दों में बदल गई। सफेद लाइट के अक्षरों से लिखा था शान्ति। दूसरे पर उमंग’, तीसरे पर उत्साहऔर चौथी लाइट से सेवा

तो बाबा बोले - ‘‘सभी बच्चों ने बहुत ही उमंग उत्साह और शान्ति के संकल्प द्वारा विश्व की सेवा की। एक-एक आत्मा संगठित रूप में देखो कितनी चमक रही है।’’ फिर बाबा ने कहा - ‘‘मेरे बच्चे मुझे यथा शक्ति जान पाए हैं, फिर भी हैं तो मेरे ही बच्चे। मेरे सभी मीठे-मीठे बच्चों को यादप्यार देना। जो भी बच्चे आये हैं। सबके मुख से यह आवाज़ तो निकलती है कि हम अपने घर में आये हैं - बापदादा बच्चों की यह आवाज़ सुनकर मुस्कराते हैं। जब बच्चे घर में आए हैं तो पूरा अधिकार लेने आए हैं, या थोड़ा सा?’’ तो बाबा ने कहा - ‘‘सागर के किनारे पर आकर गागर भरकर नहीं जाना लेकिन मास्टर सागर बनकर जाना। खान पर आकर दो मुट्ठी भर कर नहीं जाना।’’ फिर बाप दादा ने तीन प्रकार के बच्चों को तीन प्रकार की सौगात दी –

1. बाबा बोले - ‘‘मेरे कलमधारी बच्चे (प्रेस वाले) जो आये हैं उन्हें बाप दादा कमल पुष्प की सौगात देते हैं। मेरे कलमधारी बच्चों को कहना कि सदा कमल समान सारे विश्व के तमोगुणी वायब्रेशन से न्यारे और पिता परमात्मा के प्यारे बनें। अगर ऐसी स्थिति में स्थित हो कलम चलायेंगे तो आपका व्यवहार भी सिद्ध हो जायेगा और परमार्थ भी सिद्ध हो जायेगा।’’

2. वी.आई.पी. बच्चे जो भी आये हैं, उन्हों को बाबा ने सिंहासन नहीं लेकिन हंस-आसन दिया। बाबा बोले - ‘‘यह जो मेरे वी.आई.पी. बच्चे आये हैं उन्हों के मुख में शक्ति है। इन्हें मैं हंस-आसन देता हूँ। इस आसन पर बैठकर फिर कोई वार्य करना। हंस-आसन पर बैठने से आपकी निर्णय शक्ति रेष्ठ होगी और जो भी कार्य करेंगे उसमें विशेषता होगी। जैसे कुर्सा पर बैठकर कार्य करते हो वैसे बुद्धि इस हंस-आसन पर रहे तो लौकिक कार्य से भी आत्माओं को स्नेह और शक्ति मिलती रहेगी।’’

3. सरेन्डर सेवाधारी बच्चों को बाप दादा ने एक बहुत अच्छा लाइट के फूलों का बना हुआ हारदिया। हरेक लाइट पर कोई न कोई दिव्यगुण लिखा था तो बाबा बोले - ‘‘ये मेरे बच्चे सर्वगुण धारण करने वाले गुण मूर्त बच्चे हैं। सभी बच्चों ने एक बल एक मत होकर जो यह बेहद की सेवा की, उसके रिटर्न में बाप दादा यह दिव्यगुणों की माला सभी बच्चों को सौगात रूप में देते हैं। और लास्ट में कहा - ‘‘सभी बच्चों को बाप दादा के यही महावाक्य सुनाना - कि सदा खुश रहना, खुशनसीब बनना और सर्व को खुशी के वरदानों से, खज़ानों से सम्पन्न बनाते रहना।’’ ऐसे मधुर महावाक्य सुनते, यादप्यार देते और लेते मैं अपने साकार वतन में पहुँच गई।