09-05-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार स्मृति, वृत्ति्, और दृष्टि की स्वच्छता

स्वच्छ, पवित्र, श्रेष्ठ तथा पूज्य बनाने वाले, परम पवित्र अव्यक्त बापदादा बोले:-

आज बापदादा सभी ब्राह्मण बच्चों के श्रेष्ठ कर्म की रेखा देख रहे हैं। जिस कर्म की रेखा द्वारा ही वर्तमान और भविष्य तकदीर की लकीर खींची जा रही है। सभी ब्राह्मणों की कर्म रेखा वा कर्म कहानी वा कर्मों का खाता देख रहे थे। वैसे भाग्य विधाता बाप के, कर्मों के गुह्य गति के ज्ञाता बाप के डायरेक्ट वर्से के अधिकारी बच्चे हैं। साथ-साथ स्वयं विधाता बापदादा ने सभी बच्चों को गोल्डन चांस दिया है कि विधाता के बच्चे हो इसलिए जो जितना भाग्य बनाना चाहे, जितना सर्व प्राप्ति स्वरूप बनना चाहे, हरेक को सम्पूर्ण अधिकार है। अधिकार देने में नम्बर नहीं है, फ्रीडम है अर्थात् सम्पूर्ण स्वतन्त्रता है। और साथ-साथ ड्रामा अनुसार वरदानी समय का भी सहयोग है। वह भी सभी को समान है। फिर भी इतना गोल्डन चांस मिलते, बेहद की प्राप्ति को भी नम्बरवार की हद में ला देते हैं। बाप भी बेहद का, वर्सा भी बेहद का, अधिकार भी बेहद का लेकिन लेने वाले नम्बरवार बन जाते हैं - ऐसा क्यों? इसके संक्षेप में दो कारण हैं। एक बुद्धि में स्वच्छता नहीं, क्लीयर नहीं। दूसरा हर कदम में सावधान नहीं अर्थात् केयरफुल नहीं। इन दो कारणों से नम्बरवार बन जाते हैं। मुख्य बात स्वच्छता की है। इसको ही पवित्रता वा पहले विकार पर जीत कहा जाता है। जब ब्राह्मण जीवन अपनाई तो ब्राह्मण जीवन का मुख्य आधार कहो, नवीनता कहो, अलौकिकता कहो, जीवन का श्रृंगार कहो, वह है ही शृंगार -पवित्रता। ब्राह्मण जीवन की चैलेन्ज ही है काम-जीत। यही असम्भव से सम्भव कर दिखाने की, श्रेष्ठ ज्ञान और श्रेष्ठ ज्ञान दाता की निशानी है। जैसे नामधारी ब्राह्मणों की निशानी चोटी और जनेऊ है वैसे सच्चे ब्राह्मणों की निशानी पवित्रता और मर्यादायेंहैं। जन्म की वा जीवन की निशानी वह तो सदा कायम रखनी होती है ना। पवित्रता की पहली आधारमूर्त पाइंट है ‘‘स्मृति की पवित्रता’’। मैं सिर्फ आत्मा नहीं लेकिन मैं शुद्ध पवित्र आत्मा हूँ। आत्मा शब्द तो सभी कहते हैं लेकिन ब्राह्मण आत्मा सदा यही कहेंगे कि - मैं शुद्ध पवित्र आत्मा हूँ। श्रेष्ठ आत्मा हूँ। पूज्य आत्मा हूँ। विशेष आत्मा हूँ। यह स्मृति की ही पवित्रता आधार मूर्त है। तो पहला आधार मजबूत किया है? यह आक्यूपेशन सदा स्मृति में रहता है? जैसा आक्यूपेशन वैसा कर्म स्वत: होता है। पहले स्मृति की स्वच्छता चाहिए। उसके बाद वृत्ति और दृष्टि। जब स्मृति में पवित्रता आ गई कि मैं पूज्य आत्मा हूँ तो पूज्य आत्मा का विशेष गायन क्या है? सम्पूर्ण निर्विकारी, सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण। यही पूज्य आत्मा की क्वालिफिकेशन है। वह स्वत: ही स्वयं को और सर्व को किस दृष्टि से देखेंगे? चाहे अलौकिक परिवार में, चाहे लौकिक परिवार कहो वा लौकिक स्मृति में रहने वाली आत्मायें कहो, सभी के प्रति परम पूज्य आत्मायें हैं वा पूज्य बनाना है यही दृष्टि में रहे। पूज्य आत्माओं अर्थात् अलौकिक परिवार की आत्माओं के प्रति अगर कोई भी अपवित्र दृष्टि जाती है तो यह स्मृति का फाउन्डेशन कमज़ोर है। और यह महा-महा-महापाप है। किसी भी पूज्य आत्मा प्रति अपवित्रता अर्थात् दैहिक दृष्टि जाती है कि यह सेवाधारी बहुत अच्छे हैं, यह शिक्षक बहुत अच्छी है। लेकिन अच्छाई क्या है? अच्छाई है ऊँची स्मृति और ऊँची दृष्टि की। अगर वह ऊँचाई नहीं तो अच्छाई कौन सी है? यह भी सुनहरी मृगमाया का रूप है, यह सर्विस नहीं है, सहयोग नहीं है लेकिन स्वयं को और सर्व को वियोगी बनाने का आधार है। यह बात बार-बार अटेन्शन रखो।

बाप द्वारा निमित्त बने हुए शिक्षक वा सेवा के सहयोगी बनी हुई आत्मायें चाहे बहन हो या भाई हो, लेकिन सेवाधारी आत्माओं के सेवा के मुख्य लक्षण - ‘त्याग और तपस्याहैं, इसी लक्षण के आधार पर सदा त्यागी और तपस्वी की दृष्टि से देखो, न कि दैहिक दृष्टि से। श्रेष्ठ परिवार है तो सदा श्रेष्ठ दृष्टि रखो। क्योंकि यह महापाप कभी प्राप्ति स्वरूप का अनुभव करा नहीं सकता। सदा ही कोई न कोई कर्म में, संकल्प में, सम्बन्ध-सम्पर्क में डिफेक्ट वा इफेक्ट इसी उतराई और चढ़ाई में चलता रहेगा। कभी भी परफेक्ट स्थिति का अनुभव नहीं कर सकेगा। इसलिए सदा याद रखो पूज्य आत्मा के बदले पाप आत्मा तो नहीं बन गये! इसी एक विकार से और विकार स्वत: ही पैदा हो जाते हैं। कामना पूरी न हुई तो क्रोध साथी पहले आयेगा। इसलिए इस बात को हल्का नहीं समझो। इसमें अलबेले मत बनो। बाहर से शुभ सम्बन्ध है, सेवा का सम्बन्ध है इस रायल रूप के पाप को बढ़ाओ मत। चाहे कोई भी दोषी हो इस पाप के, लेकिन दूसरे को दोषी बनाए स्वयं को अलबेले मत बनाओ। ‘‘मैं दोषी हूँ’’, जब तक यह सावधानी नहीं रखेंगे तब तक महापाप से मुक्त नहीं हो सकेंगे। किसी भी प्रकार का, मन्सा संकल्प का वा बोल का वा सम्पर्क का विशेष झुकाव होना यह लगाव की निशानी है। और कुछ नहीं करते हैं, सिर्फ बात करते हैं, यह बातों का झुकाव भी लगाव की परसेन्टेज है। चाहे सेवा के सहयोग की तरफ भी विशेष झुकाव है, यह भी लगाव है। और जब कोई भी इशारा मिलता है तो इशारे को इशारे से खत्म कर देना चाहिए। अगर जिद्ध करते हो और सिद्ध करते हो, स्पष्टीकरण देने की कोशिश करते हो, इससे समझो स्पष्टीकरण अपने पाप की करते हो। बात की नहीं करते हो, पाप की लकीर और लम्बी करते जाते हो। इसलिए जब हैं ही विश्व परिवर्तन के कार्य में तो स्व-परिवर्तन कर लेना यही समझदारी का काम है। अगर कुछ नहीं है तो नहीं कर दो ना। अर्थात् स्व परिवर्तन कर बात का नाम निशान खत्म कर दो। यह क्यों, ऐसा क्यों, यह तो चलता ही है। यह वायुमण्डल की अग्नि में तेल डालना है। आग को भड़काना है। बात को बढ़ाना है। इसीलिए फुल स्टाप लगाना चाहिए। है वा नहीं है कि बहस में नहीं जाओ। लेकिन संकल्प, बोल और सम्पर्क में परिवर्तन लाओ। यह है विधि - इस पाप से बचने की। समझा! ब्राह्मण परिवार में यह संस्कार नाम निशान मात्र न रहें। अच्छा फिर सुनायेंगे कि क्रोध महाभूत क्या है।

यही विशेष अटेन्शन देने की बातें हैं। जो भी आये हो विशेष बल भरने आये हो। किसी भी कमज़ोर संस्कार को सदा के लिए समाप्त करने आये हो तोकमज़ोर संस्कार समाप्ति समारोहकरके जाना। यह समारोह मनायेंगे ना। है भी विशेष पुरानों का ग्रुप। आप लोग जब समारोह मनायेंगे तब नये भी उमंग उत्साह में आयेंगे। ऐसे नहीं कि हर वर्ष यह समारोह मनाना पड़े। एक बार का यह समारोह और फिर सम्पन्न समारोह’! सदाकाल के लिए समाप्ति का समारोह मनायेंगे ना। इसमें मातायें भी आ जातीं, अधरकुमार भी आ जाते। ऐसे नहीं सिर्फ पाण्डव मनायेंगे। कुमारियाँ भी मनायेंगी, टीचर भी मनायेंगी। अधरकुमारियाँ भी मनायेंगी। सब मिलकर यह समारोह मनावें। ठीक है ना। कुमारियाँ शक्तियाँ है ना! तो शक्ति रूप का समारोह मनायेंगे ना। अच्छा –

सदा स्वयं प्रति शुभचिन्तक, सदा स्व-परिवर्तन के कार्य में पहले मैं’, इस पाठ में नम्बरवन आने वाले, सदा संकल्प, बोल और सम्पर्क में सर्व प्रति बेहद के स्मृति स्वरूप, सदा स्वच्छता और सावधानी में रहने वाले, ऐसे पवित्र पूज्य आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

कुमारों से:- सदा अपने को हर कदम में साक्षी और सदा बाप के साथी - ऐसे अनुभव करते हो? जो सदा साक्षी होगा वह सदा ही हर कर्म करते हर कदम उठाते कर्म के बन्धन से न्यारे और बाप के प्यारे, तो ऐसे साक्षीपन अनुभव करते हो? कोई भी कर्मन्द्रियाँ अपने बन्धन में नहीं बाँधे इसको कहा जाता है -साक्षी। ऐसे साक्षी हो? कोई भी कर्म अपने बन्धन में बाँधता है तो उसको साक्षी नहीं कहेंगे। फँसने वाला कहेंगे। न्यारा नहीं कहेंगे। कभी आँख भी धोखा न दे। शारीरिक सम्बन्ध में आना अर्थात् आँख का धोखा खाना। तो कोई भी कर्मेन्द्रिय धोखा न दे। साक्षी रहें और सदा बाप के साथी रहें। हर बात में बाप याद आवे। महान आत्मायें भी नहीं, निमित्त आत्मायें भी नहीं लेकिन बाबा ही याद आये। कोई भी बात आती है तो पहले बाप याद आता या निमित्त आत्मायें याद आती? सदा एक बाप दूसरा न कोई, आत्मायें सहयोगी हैं लेकिन साथी नहीं है, साथी तो बाप है। सहयोगी को अपना साथी समझना यह रांग है। तो सदा सेवा के साथी लेकिन सेवा में साथी बाप है। निमित्त सहयोग देते हैं, ऐसा सदा स्मृति स्वरूप हो! किसी देहधारी को साथी बनाया तो उड़ती कला का अनुभव नहीं हो सकता। इसलिए हर बात में बाबा-बाबायाद रहे। कुमार डबल लाइट हैं, संस्कार स्वभाव का भी बोझ नहीं। व्यर्थ संकल्प का भी बोझ नहीं। इसको कहा जाता हैहल्का। जितने हल्के होंगे उतना सहज उड़ती कला का अनुभव करेंगे। अगर जरा भी मेहनत करनी पड़ती है तो जरूर कोई बोझ है। तो बाबा-बाबाका आधार ले उड़ते रहो। यही अविनाशी आधार है।

रूहानी यूथ ग्रुप शान्तिकारी, कल्याणकारी ग्रुप है। सदा विश्व में शान्ति स्थापना के कार्य में निमित्त हैं, वह अशान्ति फैलाने वाले और आप शान्ति फैलाने वाले। ऐसे अपने को समझते हो? यूथ ग्रुप में राजनीतिक लोगों की भी उम्मीदें हैं और बापदादा की भी उम्मीदें हैं। उम्मीदें पूरी करने वाले हो ना! बच्चे सदा बाप की उम्मीदें पूरी करने वाले होंगे। तो सफलता के सितारे बन गवर्मेन्ट तक यह आवाज़ बुलन्द करना कि हम विजयी रत्न हैं! अभी देखेंगे कि कौनसे ग्रुप और कहाँ यह पहले झण्डा लहराते हैं। कभी भी अपनी शक्तियों को मिसयूज नहीं करना। सदा यह याद रखो कि हमारे ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेवारी है। एक कमज़ोर तो एक के पीछे एक का सम्बन्ध है। हम जिम्मेवार हैं, यह स्मृति सदा रहे। जो कर्म आप करेंगे आपको देख सब करेंगे इसलिए साधारण कर्म नहीं, सदा श्रेष्ठ कर्म करने वाले, सदा अचल रहने वाले।

सभी कुमार फर्स्ट नम्बर में आने वाले हो ना। फर्स्ट नम्बर एक होता है या इतने होते हैं? अच्छा फर्स्ट डिवीजन में आने वाले हो? फर्स्ट आने वाले की विशेषता क्या होती है, वह जानते हो? फर्स्ट में आने वाले सदा बाप समान होंगे। समानता ही समीपता लाती है। समीप अर्थात् समान बनने वाले ही फर्स्ट डिवीजन में आ सकते हैं। तो बाप समान कब तक बनेंगे? जब विजय माला के नम्बर आउट हो जायेंगे फिर क्या करेंगे? कोई डेट फिक्स है? डेट फिक्स कौनसी करनी है? डेट नहीं लेकिन अब की घड़ी। क्या इसमें मुश्किल है? कुमारों को कौन सी मुश्किल है? दो रोटी खाना है और बाप की सेवा में लगना है, यही काम है ना। दो रोटी के लिए निमित्त मात्र कोई कार्य करते हो ना। करते हो, लगाव से तो नहीं करते हो ना! निमित्त कहने से नहीं होता, कुमार कहने से नहीं करते, स्वतन्त्र हैं। तो सदा लक्ष्य रहे बाप समान बनना है। जैसे बाप लाइट है वैसे डबल लाइट। औरों को देखते हो तो कमज़ोर होते हो, सी फादर, फालो फादर करना है। यही सदा याद रखो। स्वयं को सदा बाप की छत्रछाया के अन्दर रखो। छत्रछाया में रहने वाले सदा मायाजीत बन ही जाते हैं। अगर छत्रछाया के अन्दर नहीं रहते, कभी अन्दर कभी बाहर तो हार होती है। छत्रछाया के अन्दर रहने वाले को मेहनत नहीं करनी पड़ती। स्वत: ही सर्व शक्तियों की किरणें उसे माया जीत बनाती हैं। एक बाप सर्व सम्बन्ध से मेरा है, यही स्मृति समर्थ आत्मा बना देती है। कुमार अब ऐसा जीवन का नक्शा तैयार करके दिखाओ जो सब कहें -निर्विघ्न आत्मायें हैं तो यहाँ हैं। सब विघ्न विनाशक बनो। हलचल में आने वाले नहीं, वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाले। शक्तिशाली वायुमण्डल बनाने वाले बनो। सदा विजय का झण्डा लहराता रहे। ऐसा विशेष नक्शा तैयार करो। जहाँ युनिटी है वहाँ सहज सफलता है। लेकिन गिराने में युनिटी नहीं करना, चढ़ाने में। सदा उड़ती कला में जाना है और सबको ले जाना है - यही लक्ष्य रहे। कुमार अर्थात् सदा आज्ञाकारी वफादार। हर कदम में फालो फादर करने वाले। जो बाप के गुण वह बच्चों के, जो बाप का कर्त्तव्य वह बच्चों का, जो बाप के संस्कार वह बच्चों के, इसको कहा जाता है फालो फादर। जो बाप ने किया है वही रिपीट करना है, कापी करना है। इस कापी करने से फुल मार्क्स मिल जायेंगी। वहाँ कापी करने से मार्क्स कट जाती और यहाँ फुल मार्क्स मिल जाती। तो जो भी संकल्प करो, पहले चेक करो कि बाप समान है? अगर नहीं है तो चेन्ज कर दो। अगर है तो प्रैक्टिकल में लाओ। कितना सहजमार्ग है! जो बाप ने किया वह आप करो। ऐसे सदा बाप को फालो करने वाले ही सदा मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति में स्थित रहते हैं। बाप का वर्सा ही है सर्वशक्तियाँ और सर्वगुण। तो बाप के वारिस अर्थात् सर्वशक्तियों के, सर्वगुणों के अधिकारी। अधिकारी से अधिकार जा कैसे सकते? अगर अलबेले बने तो माया चोरी कर लेगी। माया को भी सबसे अच्छे ग्राहक ब्राह्मण आत्मायें लगती हैं। इसलिए वह भी अपना चांस लेती है। आधा कल्प उसके साथी रहे, तो अपने साथियों को ऐसे कैसे छोड़ेगी। माया का काम है आना, आपका काम है जीत प्राप्त करना, घबराना नहीं। शिकारी के आगे शिकार आता है तो घबरायेंगे क्या? माया आती है तो जीत प्राप्त करो, घबराओ नहीं। अच्छा!

अहमदाबाद, होस्टल में रहने वाली कुमारियों का ग्रुप :- कुमारी जीवन अर्थात् स्वतन्त्र जीवन, इस स्वतन्त्रता से क्या मिलता है और श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले से क्या मिलता है - यह सदा स्मृति में रहता है? या समझती हो कि हम तो कालेज में पढ़ने वाली लड़कियाँ हैं। सदा यह स्मृति में रखो - जैसा बाप वैसी मैं। बाप क्या है? सेवाधारी है। तो सभी सेवा करती हो ना! सभी कुमारियाँ बाप की माला के मणके हो? पक्का? और किसके गले की माला तो नहीं बनेंगी। जो बाप के गले की माला बन गई वह दूसरों के गले की माला नहीं बन सकती। क्या संकल्प किया है? और कहाँ स्वप्न में भी नहीं जा सकती। ऐसे पक्के? एक बाप के बने और सर्व खज़ानों के अधिकारी बन गये। सर्व अधिकार छोड़कर दो पैसों के पीछे जायेंगे क्या! वह दो पैसे भी तब मिलते जब दो चमाट लगाते हैं। पहले दु:ख की, अशान्ति की चमाट लगती फिर दो रोटी खाते। ऐसी जीवन तो पसन्द नहीं है ना? कुमारी जीवन वैसे भी भाग्यवान है और भी डबल भाग्यवान बन गई। अभी सर्व प्रैक्टिकल पेपर देंगी ना! वह कागज वाला पेपर नहीं। सदा शिव शक्ति है, कम्बाइन्ड हैं - यह स्मृति सदा रखना। कुमारियों का कहाँ-न-कहाँ जाना तो होता ही है। अगर ऐसा श्रेष्ठ घर मिल जाए तो और क्या चाहिए। कुमारियाँ सोचती हैं अच्छा घर, भरपूर घर मिले। यह कितना भरपूर घर है जहाँ कोई अप्राप्ति नहीं। ऐसा भाग्य तो सबको मिलना चाहिए। वाह मेरा भाग्य... यही गीत गाओ। जैसे चन्द्रमा की चाँदनी सबको प्रिय लगती है ऐसे ज्ञान की रोशनी देने वाली बनो। ज्ञान चन्द्रमा समान बनो। जैसे स्वयं के भाग्य का सितारा चमका है ऐसे ही सदा औरों के भाग्य का सितारा चमकाओ। तो सभी आपको बार बार आशीर्वाद देंगे।

सभी कुमारियाँ स्कालरशिप लेंगी ना। स्कालरशिप लेना माना - विजयमाला में आना। ऐसा तीव्र पुरूषार्थ हो जो विजयमाला में आ जाओ। इतनी पालना जो ले रहे हो उसका रिटर्न तो देंगी ना। पालना का रिटर्न है - बाप समान बनना, स्कालरिशप लेना। तो सदा यह दृढ़ संकल्प रखो कि विजयी बन विजय माला के मणके बनने वाले हैं। सभी इस जीवन से सन्तुष्ट हो? कभी वह जीवन खाना, पीना, घूमना - यह याद तो नहीं आता? दूसरों को देखकर यह नहीं आता कि हम भी थोड़ा टेस्ट तो करें। वह जीवन गिरने की जीवन है - यह जीवन चढ़ने की जीवन है। चढ़ने से गिरने की तरफ कौन जायेगा! सदा एवररेडी रहो। अपने रीति से सदा तैयार रहो। कोई पढ़ाई की रीति से शौक का बन्धन नहीं। जहाँ कुमारियों का सगंठन है वहाँ सेवा में वृद्धि है ही। जहाँ शुद्ध आत्मायें हैं वहाँ सदा ही शुभ कार्य है। सभी आपस में संस्कार मिलाने की सब्जेक्ट में पास हो ना। कोई खिटखिट नहीं, कहाँ भी दृष्टि वृत्ति नहीं! एक बाप दूसरा न कोई... विशेष कुमारियों को इस बात में सर्टीफिकेट लेना है। जैसे नाम है बाल ब्रह्मचारिणी... वैसे संकल्प भी ऐसा पवित्र हो - इसको कहा जाता है - स्कालरशिप लेना। फिर राइटहैण्ड हो। सदा एक बाप दूसरा न कोई - ऐसी शिव शक्तियाँ हैं। यही याद रखना तो किसी भी प्रकार की माया वार नहीं करेगी। अच्छा।

टीचर्स के साथ :- सभी निमित्त सेवाधारी, अपने को निमित्त समझकर चलते हो? निमित्त समझने वाले सदा हल्के और सदा सफलतामूर्त होते हैं। जितना हल्के होंगे उतना सफलता जरूर होगी। कभी सेवा कम होती कभी ज्यादा तो बोझ तो नहीं लगता है ना। भारी तो नहीं होते, क्या होगा, कैसे होगा। कराने वाला करा रहा है और मैं सिर्फ निमित्त बन कार्य कर रही हूँ - यही सेवाधारी की विशेषता है। सदा स्व के पुरूषार्थ से और सेवा से सन्तुष्ट रहो तब ही जिन्हों के निमित्त बनते हैं उन्हों में सन्तुष्टता होगी। सदा सन्तुष्ट रहना और दूसरों को रखना यही विशेषता है।

अच्छा - ओम शान्ति।

(विदाई के समय गुडमोर्निंग)

सर्व चारों ओर की श्रेष्ठ आत्माओं को वा विशेष आत्माओं को बापदादा मधुबन वरदान भूमि में सम्मुख देखते हुए याद प्यार दे रहे हैं। और सभी से गुडमोर्निंग कर रहे हैं। गुडमोर्निंग अर्थात् सारा दिन ऐसा ही शुभ और श्रेष्ठ रहे। सारा दिन इसी याद प्यार की पालना में रहें। यह याद प्यार ही श्रेष्ठ पालना है। इसी पालना में सदा रहो और यही ईश्वरीय याद और प्यार सभी आत्माओं को देते हुए उन्हों की भी श्रेष्ठ पालना करो। याद प्यार पालना का झूला है। जिस झूले में पालना होती है। और गुडमोर्निंगको शक्तिशाली अमृत कहो, वा औषधि कहो, वा श्रेष्ठ भोजन कहो, जो भी कहो। ऐसे शक्तिशाली बनाने की गुडमोर्निंग है और पालना का याद प्यार झूला है। इसी झूले में सदा रहें और इसी शक्ति में सदा रहें। ऐसे सदा इसी स्वरूप में रहने की सर्व बच्चों को गुडमोर्निंग।

अच्छा।