25-05-83 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
ब्रह्मा बाप की बच्चों से एक आशा
सर्व आत्माओं के शुभचिन्तक, अविनाशी ज्ञान, शक्ति और खुशी के खज़ाने देने वाले, विदेही शिव बाबा बोले:-
आज बापदादा सर्व बच्चों की सेवा का, याद का और बाप समान बनने का चार्ट देख रहे थे। बापदादा द्वारा जो भी सर्व खज़ाने मिले, बाप को निराकार और आकार रूप से साकार में बुलाया और बापदादा भी बच्चो के स्नेह में बच्चों के बुलावे पर आये, मिलन मनाया, अब उसके फलस्वरूप सभी बच्चे कौन से फल बने - प्रत्यक्षफल बने, सीजन के फल बने, रूप वाले फल बने वा रूप रस वाले फल बने? डायेरक्ट पालना के अर्थात् पेड़ के पके हुए फल बने वा कच्चे फलों को कोई एक दो विशेषता के मसालों के आधार पर स्वयं को रंग रूप में लाया है वा अब तक भी कच्चे फल हैं! यह चार्ट बच्चों का देख रहे थे। संगमयुग की विशेषता प्रमाण, प्रत्यक्ष फल के समय प्रमाण, हर सबजेक्ट में, हर कदम में, कर्म में प्रत्यक्षफल देने वाले, प्रत्यक्षफल खाने वाले बाप की पालना के पके हुए, रंग, रूप, रस तीनों से सम्पन्न अमूल्य फल होना चाहिए। अभी अपने आप से पूछो - मैं कौन? सदा संग रहने का रंग, सदा ब्रह्मा बाप समान बाप को प्रत्यक्ष करने का रूप, सदा सर्व प्राप्तियों का रस ऐसा बाप समान बने हैं? आजकल ब्रह्मा बाप ब्राह्मण बच्चों की समान सम्पन्नता को विशेष देखते रहते हैं। सारा समय हर एक विशेष बच्चे का चित्र और चरित्र दोनों सामने रख देखते रहते हैं कि कहाँ तक सम्पन्न बने हैं। माला के मणके कौन और कितने अपने नम्बर पर सेट हो गये हैं। उसी हिसाब से रिजल्ट को देख विशेष ब्रह्मा बाप बोले - ब्राह्मण आत्मा अर्थात् हर कर्म में बापदादा को प्रत्यक्ष करने वाली। कर्म की कलम से हर आत्मा के दिल पर, बुद्धि पर, बाप का चित्र वा स्वरूप खींचने वाली रूहानी चित्रकार बने हो ना। अभी ब्रह्मा बाप की, इस सीजन के रिजल्ट में बच्चों के प्रति एक आशा है। क्या आशा होगी? बाप की सदा यही आशा रहती कि हर बच्चा अपने कर्मों के दर्पण द्वारा बाप का साक्षात्कार करावे। अर्थात् हर कदम में फालो फादर कर बाप समान अव्यक्त फरिश्ता बन कर्मयोगी का पार्ट बजावे। यह आशा पूर्ण करना मुश्किल है वा सहज है? ब्रह्मा बाप तो सदा आदि से तुरन्त दान महापुण्य - इसी संस्कार को साकार रूप में लाने वाले रहे ना। करेंगे, सोचेंगे, प्लैन बनायेंगे, यह संस्कार कभी साकार रूप में देखें? अभी-अभी करने का महामन्त्र हर संकल्प और कर्म में देखा ना। उसी संस्कार प्रमाण बच्चों से भी क्या आशा रखेंगे? समान बनने की आशा रखेंगे ना? सबसे पहले बापदादा मधुबन वालों के आगे रखते हैं। हो भी आगे ना। सबसे अच्छे ते अच्छे सैम्पल कहाँ देखते हैं सभी? सबसे बड़े ते बड़ा शोकेस मधुबन है ना। देशविदेश से सब अनुभव करने के लिए मधुबन में आते हैं ना! तो मधुबन सबसे बड़ा शोकेस है। ऐसे शोकेस में रखने वाले शोपीस कितने अमूल्य होंगे! सिर्फ बापदादा से मिलने के लिए नहीं आते हैं लेकिन परिवार का प्रत्यक्ष रूप भी देखने आते हैं। वह रूप दिखाने वाले कौन? परिवार का प्रत्यक्ष सैम्पल, कर्मयोगी का प्रत्यक्ष सैम्पल, अथक सेवाधारी का प्रत्यक्ष सैम्पल, वरदान भूमि के वरदानी स्वरूप का प्रत्यक्ष सैम्पल कौन है? मधुबन निवासी हो ना!
भागवत् का महात्तम सुनने का बड़ा महत्व होता है। सारे भागवत का इतना नहीं होता। तो चरित्र भूमि का महात्तम मधुबन वाले है ना! अपने महत्व को तो याद रखते हो ना। मधुबन निवासियों को याद स्वरूप बनने में मेहनत है वा सहज है? मधुबन है ही, प्रजा और राजा दोनों आत्माओं को वरदान देने वाला।
आजकल तो प्रजा आत्मायें भी अपना वरदान का हक लेकर जा रहीं हैं। जब प्रजा भी वरदान ले रही है तो वरदान भूमि में रहने वाले कितने वरदानों से सम्पन्न आत्मायें होंगी। अभी के समय प्रमाण सभी प्रकार की प्रजा अपना अधिकार लेने के लिए चारों ओर आने शुरू हो गई है। चारों ओर सहयोगी और सम्पर्क वाले वृद्धि को पा रहे हैं। प्रजा की सीजन शुरू हो गई है। तो राजे तो तैयार हो ना। वा राजाओं का छत्र कब फिट होता है कब नहीं होता। तख्तनशीन ही ताजधारी बन सकते हैं। तख्तनशीन नहीं तो ताज भी सेट नहीं हो सकता। इसलिए छोटी-छोटी बातों में अपसेट होते रहते। यह (अपसेट होना) निशानी है तख्तनशीन अर्थात् तख्त पर सेट न होने की। तख्तनशीन आत्मा को व्यक्ति तो क्या लेकिन प्रकृति भी अपसेट नहीं कर सकती। माया का तो नाम निशान ही नहीं। तो ऐसे तख्तनशीन ताजधारी वरदानी आत्मायें हो ना। समझा - मधुबन के ब्राह्मणों के महात्तम का महत्व। अच्छा - आज तो मधुबन निवासियों का टर्न है। बाकी सब गैलरी में बैठे हैं। गैलरी भी अच्छी मिली है ना। अच्छा –
आदि रत्न आदि स्थिति में आ गये ना। मध्य भूल गया ना। डालियाँ वगैरा सब छूट गई ना। आदि रत्न सभी उड़ते पंछी बनकर जा रहे हो ना। सोने हिरण के पीछे भी नहीं जाना। किसी भी तरह की आकर्षण वश नीचे नहीं आना। चाहे किसी भी प्रकार के सरकमस्टांस बुद्धि रूपी पाँव को हिलाने आवें लेकिन सदा अचल अडोल, नष्टोमोहा और निर्मान रहना। तभी उड़ते पंछी बन उड़ते और उड़ाते रहेंगे। सदा न्यारे और सदा बाप के प्यारे। न किसी व्यक्ति के, न किसी हद के प्राप्ति के प्यारे बनना। ज्ञानी तू आत्मा के आगे यह हद की प्राप्तियाँ ही सोने हिरण के रूप में आती हैं। इसलिए, हे आदि रत्नो, आदि पिता समान ‘सदा निराकारी, निर्विकारी, निरअहंकारी रहना’। समझा। अच्छा –
ऐसे हर कर्म में बाप का प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाने वाले, प्रत्यक्षफल स्वरूप, सदा तुरन्त दान महापुण्य करनेवाले, पुण्य आत्मायें, हर कर्म में ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले, विश्व के आगे चित्रकार बन बाप का चित्र दिखाने वाले - ऐसे ब्रह्मा बाप समान श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।