10-11-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


मुख्य भाई-बहनों की मीटिंग के समय अव्यक्त बापदादा के उच्चारे हुए मधुर अनमोल महावाक्य

आज सर्व शक्तियों का सागर बाप, शक्ति सेना को देख रहे हैं। हर एक के मस्तक बीच त्रिशूल अर्थात् त्रिमूर्ति स्मृति की स्पष्ट निशानी दिखाई देती है। शक्ति की निशानी त्रिशूल दिखाते हैं। तो हरेक त्रिशूलधारी शक्ति सेना हो ना। बापदादा और आप। यह त्रिमूर्ति सदा स्पष्ट रूप में रहती है वा कभी मर्ज कभी इमर्ज होती है? बापदादा के साथ-साथ मैं श्रेष्ठ शक्तिशाली आत्मा हूँ, यह भी याद रहता है? इसी त्रिमूर्ति स्मृति से शक्ति में शिव दिखाई देगा। कई मन्दिरों में बापदादा के कम्बाइण्ड यादगार शिव की प्रतिमा के साथ उसी प्रतिमा में मनुष्य आकार भी दिखाते हैं। यह बापदादा का कम्बाइण्ड यादगार है। साथ-साथ शक्ति भी दिखाते हैं। तो इस त्रिमूर्ति स्मृति स्वरूप स्थिति से सहज ही साक्षात्कार मूर्त बन जायेंगे। अब सेवाधारी मूर्त, भाषण कर्ता मूर्त, मास्टर शिक्षक बने हो। अभी साक्षात मूर्त बनना है। सहज योगी बने हो लेकिन श्रेष्ठ योगी बनना है। तपस्वी बने हो, महातपस्वी और बनना है।

आजकल सेवा कहो, तपस्या कहो, पढ़ाई कहो, पुरूषार्थ कहो, पवित्रता की सीमा कहो, किस लहर में चल रही है, जानते हो? सहज योगी के ‘‘सहज’’ शब्द की लहर चल रही है। लेकिन लास्ट समय के प्रमाण वर्तमान मनुष्य आत्माओं को, वाणी की नहीं लेकिन श्रेष्ठ वायब्रेशन, श्रेष्ठ वायुमण्डल, जिससे साक्षात्कार सहज हो जाए, इसी की आवश्यकता है। अनुभव भी साक्षात्कार समान है। सुनाने वाले तो बहुत हैं जिन्हों को सुनाते हो वो भी सुनाने में कम नहीं। लेकिन कमी है साक्षात्कार कराने की। वह नहीं करा सकते। यही विशेषता, यही नवीनता, यही सिद्धि, आप श्रेष्ठ आत्माओं में है। इसी विशेषता को स्टेज पर लाओ। इसी विशेषता के आधार पर सभी वर्णन करेंगे कि हमने देखा, हमने पाया! हमने सिर्फ सुना नहीं लेकिन साक्षात् बाप की झलक अनुभव की। फलानी बहन वा फलाना भाई बोल रहे थे, यह अनुभव नहीं। लेकिन इन्हीं द्वारा कोई अलौकिक शक्ति बोल रही थी। जैसे आदि में ब्रह्मा को साक्षात्कार हुआ विशेष शक्ति का तो क्या वर्णन किया! यह कौन था, क्या था! ऐसे सुनने वालों को अनुभव हो कि यह कौन थे? सिर्फ पाइंटस नहीं सुने लेकिन मस्तक बीच पाइंट आफ लाइट (Point Of Light) दिखाई दे। यह नवीनता ही सभी की पहचान की आँख खोलेगी। अभी पहचान की आँख नहीं खुली है। अभी तो दूसरों की लाइन में आपको भी ला रहे हैं। जैसे यह-यह हैं वैसे यह भी है। जैसे वह भी यह कहते हैं वैसे यह भी कहते हैं। यह भी करते हैं। लेकिन यह वो ही हैं जिसका हम आह्वान करते हैं, जिसका इन्तजार कर रहे हैं। अभी इस अनुभूति की आवश्यकता है। इसका साधन है सिर्फ एक शब्द को चेन्ज करो। सहज योगी की लहर को चेन्ज करो। सहज शब्द पवित्र प्रवृत्ति में नहीं यूज करो। लेकिन सर्व सिद्धि स्वरूप बनने में यूज करो। श्रेष्ठ योगी की लहर, महातपस्वी मूर्त की लहर, साक्षात्कार मूर्त बनने की लहर, रूहानियत की लहर, अब इसकी आवश्यकता है। अब यह रेस करो। सन्देश कितनों को दिया, यह तो 7 दिन के कोर्स वालों का काम है। वो भी यह सन्देश दे सकते हैं। लेकिन यह रेस करो - अनुभव कितनों को कराया! अनुभव कराना है, अनुभवी बनाना है। यह लहर अभी चारों ओर होनी चाहिए। समझा।

84 का साल आ रहा है। 84 घण्टों वाली शक्ति मशहूर है। सभी देवियों की महिमा है। 84 में घण्टा तो बजायेंगे ना तब तो गायन हो, 84 का घण्टा है। अभी आदि-समान साक्षात्कार की लहर फैलाओ। धूम मचाओ। आप साक्षात् बाप बनो तो साक्षात्कार आप ही हो जायेगा। साक्षात् बाप बनना ही साक्षात्कार की चाबी मिलना है। अभी थोड़ा-थोड़ा अनुभव करते हैं लेकिन यह चारों ओर लहर फैलाओ। जैसे मेले की भी लहर फैलाते हो ना? मेले बहुत किये हैं, समारोह भी बहुत किये। अभी मिलन समारोह मनाओ। 84 का प्लैन बनाने आये हो। सबसे पहला प्लैन - स्वयं को सर्व कमज़ोरियों से प्लेन बनाओ। तब तो साक्षात्कार होगा। अगर इस मीटिंग में यह प्लैन प्रैक्टिकल में आ जाए तो सेवा आपके चरणों में झुकेगी। अभी बापदादा की यह आश पूरी करनी है। आश अभी पूरी हुई नहीं है। मीटिंग तो हो जाती है। बापदादा के पास चार्ट तो सबका है ना। सिर्फ रिगार्ड रखने के कारण बापदादा कहते नहीं है। अच्छा - आज तो थोड़ा मिलने आये हैं, चार्ट बताने नहीं आये हैं। (दादी को) आपकी सखी (दीदी) कहाँ हैं? गर्भ में? निमित्त गर्भ में है लेकिन अभी भी सेवा की परिक्रमा दे रही है। जैसे ब्रह्मा बाप के साथ साकार स्वरूप में जगत अम्बा के बाद साथी रही। वैसे अभी भी अव्यक्त ब्रह्मा के साथ है। सेवा में साथीपन का पार्ट बजा रही है। निमित्त कर्मेन्द्रियों का बन्धन है लेकिन विशेष सेवा का बन्धन है। जैसे यज्ञ की स्थापना की कारोबार पहले विशेष रूप में जगत अम्बा ने सम्भाली। जगत अम्बा के बाद विशेष निमित्त रूप में इसी आत्मा (दीदी) को रहा। साथी भले और भी रहे लेकिन विशेष स्टेज पर और साकार ब्रह्मा के साथ पार्ट में रही। अभी भी ब्रह्मा बाप और दीदी की आपस में रूह-रूहान, मनोरंजन और सेवा के भिन्न-भिन्न पार्ट चलते रहते हैं। नई सृष्टि की स्थापना में भी विशेष ब्रह्मा के साथ-साथ अनन्य आत्माओं का अभी जोर-शोर से पार्ट चल रहा है! जैसे साकार दीदी के विशेष संस्कार, सेवा के प्लैन को प्रैक्टिकल में लाने का, उमंग-उत्साह दिलाने का रहा। वैसे अभी भी वो ही संस्कार नई दुनिया की स्थापना के कार्य को वा कार्य के अर्थ निमित्त बने हुए ग्रुप को और तीव्रगति देने का पार्ट चल रहा है। दीदी का विशेष बोल याद है? उमंग उत्साह में लाने के लिए विशेष शब्द क्या थे? हमेशा यही शब्द रहे कि कुछ और नया करो। अभी क्या हो रहा है? बार-बार पूछती थी, नवीनता क्या लाई है? ऐसे अभी भी अव्यक्त ब्रह्मा से बार-बार इसी शब्दों से रूह-रूहान करती थी। एडवान्स पार्टी में भी उमंग-उत्साह ला रही है। अभी तक क्या किया है, क्या हो रहा है। वो ही संस्कार अभी भी प्रैक्टिकल में ला रही है। किसको भी बैठने नहीं देती थी ना। एडवान्स पार्टी को भी अभी स्टेज पर लाने का बाण भर रही है। कन्ट्रोलर के संस्कार थे ना। अभी एडवान्स पार्टी का कन्ट्रोलर है। सेवा के संस्कार अभी भी इमर्ज रूप में है। समझा! अभी दीदी कहाँ है? अभी तो विश्व का चक्कर लगा रही हैं। जब सीट ले लेंगी तो बता देंगे। अभी वह भी आपको सहयोग देने के बहुत बड़े-बडे प्लैन्स बना रही है। अभी देरी नहीं लगेगी। अच्छा।

ऐसे सदा श्रेष्ठ योगी, सदा महान तपस्वी मूर्त, साक्षात बाप बन बाप का साक्षात्कार कराने वाले, चारों ओर ‘‘हमने देखा हमने पाया’’ इस प्राप्ति की लहर फैलाने वाले, ऐसे महान तपस्वी मूर्तों को देश-विदेश के सर्व स्नेही, सेवा में मग्न रहने वाले सर्व बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

मीटिंग वालों से:- मीटिंग तो हो ही गई। मीटिंग होती है विश्व को बाप के समीप लाने के लिए। सिर्फ सन्देश देने के लिए नहीं। समीप लाने से संग का रंग लगता है ना। जितना बाप के समीप आते हैं उतना संग का रंग लगता है। जहाँ सुनना है वहाँ कुछ सुनना होता - कुछ भूलना होता लेकिन जो समीप आ जाते वो बाप के समीप होने से रूहानी रंग में रंगे रहते हैं। तो अभी क्या सेवा है? समीप लाने की। सन्देश तो दे दिया। मैसेन्जर बन के मैसेज देने का पार्ट तो बजाया। लेकिन अभी क्या बनना है? शक्तियों को सदैव किस रूप में याद करते हैं? सब शक्ति सेना हो ना! शक्तियों को हमेशा माँके रूप में याद करते हैं, पालना लेने के संकल्प से याद करते हैं। मैसेज तो बहुत दिया और अभी और भी देने वाले तैयार हो गये, अभी चाहिए पालना वाले। जो विशेष निमित्त हैं उन्हों का कार्य अभी हर सेकण्ड बाप की पालना में रहना और सर्व को बाप की पालना देना। जैसे छोटे बच्चे होते हैं तो सदा पालना में रहने के कारण कितने खुश रहते हैं। कुछ भी हो लेकिन पालना के नीचे होने के कारण कितने खुश रहते हैं। ऐसे आप सभी सर्व आत्माओं को प्रभु पालना के अन्दर चलने का अनुभव कराओ। वह समझें कि हम प्रभु की पालना के अन्दर चल रहे हैं। यह हमें प्रभु के पालना की दृष्टि दे रहे हैं। तो अभी पालना की आवश्यकता है। तो पालना करने वाले हो या मैसेन्जर हो? मैसेन्जर तो आजकल बहुत कहलाने लग पड़े हैं। मैसेन्जर बनना बहुत कामन बात है। लेकिन अभी जो भी आयें वह ऐसे अनुभव करें कि हम ईश्वरीय पालना के अन्दर आ गये। इसी को ही कहा जाता है - सम्बन्ध में लाना

सभी अनन्य हैं ना। अनन्य अर्थात् जो अन्य न कर सकें वह करके दिखाने वाले। जो सब करते वो ही किया तो बड़ी बात नहीं। पालना का अर्थ है उन्हों को शक्तिशाली बनाना, उन्हों के संकल्पों को, शक्तियों को इमर्ज करना, उमंग- उत्साह में लाना। हर बात में शक्ति रूप बनाना। इसी रूप की पालना अब ज्यादा चाहिए। चल रहे हैं, लेकिन शक्तिशाली आत्मायें बनकर चलें वो अभी आवश्यक है। जो कोई नये भी आवें तो ईश्वरीय शक्ति की अनुभूति जरूर करें। वाणी की शक्ति की अनुभूति तो हो रही है लेकिन यहाँ ईश्वरीय शक्ति है, वह अनुभव कराओ। स्टेज पर आते हो तो याद रहता है - भाषण करना है लेकिन यह ज्यादा याद रहे, भाषण निमित्त है, ईश्वरीय शक्ति की भासना देनी है। वाणी में भी ईश्वरीय शक्ति की भासना आवे। इसको कहा जाता है - न्यारापन। स्पीच बहुत अच्छी की तो यह स्पीकर के रूप में देखा ना। यह ईश्वरीय अलौकिक आत्मायें हैं इस रूप में देखें। यह महसूसता करानी है। यह भासना ही ईश्वरीय बीज डाल देती। फिर वह बीज निकल नहीं सकता। एक सेकण्ड का भी किसको अनुभव हो जाता है तो वह अन्त तक मेहनत नहीं लेता। ईश्वरीय झलक का अनुभव जिसने आते ही किया उनका चलना, सेवा करना वह और होता है। जो सिर्फ सुनकर प्रभावित होते उनका चलना और होता है, जो सिर्फ प्यार में ही चलते रहते उनका चलना और है। भिन्न-भिन्न प्रकार हैं ना। तो अभी पहले स्वयं को सदा ईश्वरीय पालना में अनुभव करो तब औरों को अनुभव हो। सेवा में चल रहे हैं लेकिन सेवा भी पालना है। ईश्वरीय पालना में चल रहे हैं। सेवा शक्तिशाली बनाती है तो यह भी ईश्वरीय पालना है ना। लेकिन यह इमर्ज रहे। यह दृढ़ संकल्प करना चाहिए। अनन्य अर्थात् बाप समान सैम्पल। अच्छा –

धर्म नेताओं की सेवा का प्लैन

धर्म नेताओं के लिए विशेष वह रूप चाहिए - क्योंकि धर्म की बातों में तो वे भी होशियार हैं। प्यार से सुनते भी हैं लेकिन अपने में प्रैक्टिकल की कमी महसूस करते हैं। यह साक्षात्कार करें जो आज सुनाया, वह प्रैक्टिकल अनुभव करें कि हमारे सामने यह कोई साधारण रूप नहीं है तब वह झुकें। अनुभव के पीछे झुक सकते हैं। वाणी से नहीं। वह तो कहेंगे आप भी बहुत अच्छा कार्य करते हो, आपको भी आशीर्वाद मिलती रहे। यह कहकर खुश कर देंगे। लेकिन समझें यह कोई विशेष हैं। जिसमें जो कमज़ोरी होती है उनके आधार पर उसको तीर लगाना - यह है विजय पाना। शास्त्र में भी गायन है देवताओं ने विजय प्राप्त की तब, जब उन्हें कमज़ोरी का पता पड़ा यह भी आध्यात्मिक बात है। तो धर्म नेतायें भी आयेंगे जरूर लेकिन ऐसी कोई नवीनता देखेंगे तब। अभी सिर्फ कहते हैं कि ज्ञान अच्छा है। आप भी ठीक हैं, हम भी ठीक हैं, ऐसा कह पानी डाल देते हैं। सिस्टम के ऊपर प्रभावित होते हैं लेकिन उन्हीं के मुख से जब यह निकले कि यह एक ही रास्ता है। अनेक रास्ते हैं उसमें आपका भी एक रास्ता है, यह बदल जाए। जब यह टच हो कि यहाँ से ही मुक्ति और जीवन मुक्ति मिल सकती है तब झुकें। तो अभी कोई नवीनता होनी चाहिए।

प्रवृत्ति में बहुत लग गये हो। लेकिन जैसे औरों को सुनाते हो - प्रवृत्ति में भी रहना है और प्रवृत्ति में रहते निवृत्त भी रहना है। तो यही पाठ अपने को रोज पढ़ाओ। प्रवृत्ति तो बढ़नी ही है लेकिन उसमें रहते निवृत्त रहना यह आवश्यकता है। इसमें थोड़ा अटेन्शन और अन्डर लाइन करना पड़े। हरेक अपनी-अपनी सेवा में बिजी हो गये हो लेकिन बेहद विश्व का नशा चाहिए। यह सब सम्भालते हुए बुद्धि बेहद सेवा के लिए फ्री होनी चाहिए। तन-मन-धन, बुद्धि सब रचना में ज्यादा लगी रहती है। जैसे साकार बाप को देखा, कारोबार चलाते भी सदा अपने को फ्री रखा। कभी भी बिजी होने की रूपरेखा चेहरे पर नहीं आई। चाहे जिम्मेवारी ब्राह्मण परिवार की रही लेकिन बुद्धि में क्या था? बेहद! शक्ति देनी है, पालना करनी है। आत्माओं को जगाना है, यही धुन रही। तो अभी वह होना चाहिए। उसकी कमी है। अनन्य बच्चों को मिलकर ऐसा वातावरण बनाना है। हरेक बाप समान लाइट हाउस हो। जहाँ जावे - उनको लाइट मिले, शक्ति मिले, उमंग-उत्साह मिले, जो काम साधारण आत्मायें करती वह नहीं करना है। साकार बाप का बोल, संकल्प, दृष्टि, वृत्ति न्यारी रही ना। साधारण नहीं। तो ऐसी स्टेज बनाओ। इसके लिए सेवा रूकी हुई है। खर्चा ज्यादा, मेहनत ज्यादा, निकलते कितने हैं!

अभी समय के प्रमाण एडवांस पार्टी भी जोर कर रही है तो साकार वालों को तो और ज्यादा तेज होना चाहिए। होना सब अचानक है, डेट नहीं बताई जायेगी। पेपर जरूर आने हैं। आप लोगों के थाट्स को चेक करने वाले भी आयेंगे। पेपर लेने आयेंगे। जितनी प्रत्यक्षता होगी उतना यह सब पेपर्स आयेंगे। इस योग और उस योग, इस ज्ञान और उस ज्ञान में क्या अन्तर है वह लाइफ की प्रैक्टिकल की चेकिंग करेंगे। वाणी की नहीं। उसके लिए पहले से ही इतनी तैयारी चाहिए। 84 में कुछ न कुछ तो होगा ही। पेपर्स आयेंगे। आवाज़ फैलाने की तैयारी का यही साधन है। जैसे शुरू-शुरू में अभ्यास करते थे, चल रहे हैं लेकिन स्थिति ऐसी हो जो दूसरे समझें कि यह कोई लाइट जा रही है। उनको शरीर दिखाई न देवे। जब पहले-पहले मित्र-सम्बन्धियों के पास गये तो क्या पेपर था, वह शरीर को न देखें, लाइट देखें। बेटी न देखें लेकिन देवी देखें। यह पेपर दिया ना। अगर सम्बन्ध के रूप से देखा, बेटी-बेटी कहा तो फेल। तो ऐसा अभ्यास चाहिए। समय तो बहुत खराब आ रहा है लेकिन आप की ऐसी स्थिति हो जो दूसरों को सदैव लाइट का रूप दिखाई दे, यही सेफ्टी है। अन्दर आवें और लाइट का किला देखें। अपने ईश्वरीय सेवा में लगने वाली सम्पत्ति भी ऐसी ही क्यों जावें, उन्हें अलमारी नहीं दिखाई दे लेकिन लाइट का किला देखें। इतना अभ्यास चाहिए। शक्ति रूप की झलक बढ़ानी चाहिए। साधारण नहीं दिखाई दे। यह लक्ष्य रहे। वार तो कई प्रकार के होंगे - आत्माओं के वार होंगे, बुरी दृष्टि वालों के वार होंगे, कैलेमिटीज के वार होंगे, बीमारियों का वार होगा लेकिन इन सबसे बचने का साधन है - अनन्य बनना। अर्थात् जो अन्य न कर सकें वह करना। सिर्फ यह याद रखों कि मैं अनन्य हूँ तो भी प्यारे और न्यारे रहेंगे। अच्छा-

विदेशी बच्चों को याद-प्यार देते हुए

सभी डबल विदेशी बच्चों को विशेष याद प्यार बापदादा पद्मगुणा रिटर्न में दे रहे हैं। सभी ने जो भी पत्र और समाचार लिखे हैं उसकी रिटर्न में सभी बच्चों को पुरूषार्थ तीव्र करने की मुबारक हो और साथ-साथ पुरूषार्थ करते अगर कोई साइड-सीन आ भी जाती है तो उसमें घबराने की कोई बात नहीं है। जो भी साइड-सीन आती है उसको याद और खुशी से पार करते चलो। विजय वा सफलता तो आप सबका जन्म-सिद्ध अधिकार है। साइडसीन पार किया और मंज़िल मिली। इसलिए कोई भी बड़ी बात को छोटा करने के लिए स्वयं बड़े ते बड़ी स्टेज पर स्थित हो जाओ तो बड़ी भी बात स्वयं छोटी स्वत: हो जायेगी। नीचे की स्थिति में रहकर और ऊपर की चीज़ को देखते हो तब बड़ी लगती है तो ऊँची स्टेज पर स्थित होकर के किसी भी बड़ी चीज़ को देखो तो छोटी अनुभव होगी। जब भी कोई परिस्थिति आती है या किसी भी प्रकार का विघ्न आता है तो अपनी श्रेष्ठ स्थिति में, ऊँचे ते ऊँची स्थिति में स्थित हो जाओ। बाप के साथ बैठ जाओ तो बाप के संग का रंग भी सहज लग जायेगा। साथ भी मिल जायेगा। और ऊँची स्टेज के कारण सब बातें बहुत छोटी-सी अनुभव होंगी, इसलिए घबराओं नहीं। दिलशिकस्त नहीं हो लेकिन सदा खुशी के झूले में झूलते रहो तो सदा ही सफलता आपके सामने आयेगी। सफलता मिलेगी या नहीं यह सोचना भी नहीं पड़ेगा। लेकिन सफलता स्वयं ही आपके सामने आयेगी। प्रकृति सफलता का हार स्वयं ही पहनायेगी। परिस्थिति बदलकर विजय का हार हो जायेगी। इसीलिए बहुत हिम्मत वाले हैं, उमंग वाले हैं, उत्साह में रहने वाले हैं, यह बीच-बीच में थोड़ा-सा होता भी है तो उसको सोचो नहीं। समय बीत गया, परिस्थिति बीत गई फिर उसका सोचना व्यर्थ हो जाता है। इसलिए जैसे समय बीत गया वैसे अपनी बुद्धि से भी बीती सो बीती, जो बीती सो बीती करते हैं वह सदा ही निश्चिन्त रहते हैं। सदा ही उमंग-उत्साह में रहते हैं इसलिए बापदादा विशेष ऐसे उमंग उत्साह में रहने वाले, हिम्मत वाले बच्चों को विशेष अमृतवेले याद करते हैं। और विशेष शक्ति देते हैं, उसी समय अपने को पात्र समझ वह शक्ति लेंगे तो बहुत ही अच्छे अनुभव होंगे।

अमृतवेले सुस्ती आ जाती है:- खुशी की पाइंटस का मनन कम करते हैं। अगर मनन सारा दिन चलता रहे तो अमृतवेले भी वही मनन किया हुआ खज़ाना सामने आने से खुशी होगी तो सुस्ती नहीं आयेगी। लेकिन सारा दिन मनन कम होता है उस समय मनन करने की कोशिश करते हैं तो मनन नहीं होता है क्योंकि बुद्धि फ्रेश नहीं होती है। फिर न मनन होता, न अनुभव होता, फिर सुस्ती आती है। अमृतवेले को शक्तिशाली बनाने के लिए सारे दिन में भी, श्रीमत मिलती है उसी प्रमाण चलना बहुत आवश्यक है तो सारा दिन मनन करते चलो। ज्ञान रत्नों से खेलते चलो तो वही खुशी की बातें याद आने से नींद चली जायेगी और खुशी में ऐसे ही अनुभव करेंगे जैसे अभी प्राप्ति की खान खुल गई। तो जहाँ प्राप्ति होती है वहाँ नीद नहीं आती है। जहाँ प्राप्ति नहीं वहाँ नींद आती वा थकावट होती है वा सुस्ती आती है। प्राप्ति के अनुभव में रहो, उसका कनेक्शन है सारे दिन के मनन पर। अच्छा-

जिन्होंने भी याद-प्यार का सन्देश भेजा है उन्हों को सम्मुख तो मिलना ही है लेकिन अभी भी जो दूर बैठे भी बापदादा सम्मुख देख रहे हैं और सम्मुख देखकर ही बात कर रहे हैं। अभी भी सम्मुख हो फिर भी सम्मुख रहेंगे। सभी को नाम सहित, समाचार के रेसपान्ड सहित याद-प्यार। सदा तीव्र उमंग, तीव्र पुरूषार्थ में रहना है और औरों को भी तीव्र पुरूषार्थ के वायब्रेशन देते हुए वायुमण्डल ही तीव्र पुरूषार्थ का बनाना है। पुरूषार्थ नहीं, ‘तीव्र पुरूषार्थ। चलने वाले नहीं, उड़ने वाले। चलने का समय पूरा हुआ अब उड़ो और उड़ाते चलो। अच्छा-

84 के, कांफ्रेंस की सफलता के लिए - जितना हो सके साइलेन्स का वातावरण रहे, ईश्वरीय ज्ञान है, ईश्वर का स्थान है यह अनुभव करके जाएँ। टोटल ऐसा वातावरण हो, अनुभूति कराने का लक्ष्य रहे। पाइंटस की चटाबेटी में न जाकर, बोलते-बोलते अनुभव कराते जाओ। लक्ष्य रखो सभी के मुख से कहलाना है कि - यह ईश्वरीय रास्ता है। ईश्वर आ गया है। बहुत अच्छा है यह तो कहते हैं लेकिन ईश्वर पढ़ा रहा है, यह कहें। ज्ञान अच्छा है लेकिन ज्ञानदाता कौन है, उसको अनुभव करें। अभी यह फाउण्डेशन डालो। जब बीज ऊपर आ जाए तब समाप्ति हो। बीज ऊपर नहीं आया तो वृक्ष परिवर्तन कैसे हो? जब इस स्थान पर अपनी रूचि से आ रहे हैं तो स्थान की जो विशेषता है वह देखें उसका अनुभव करें। आप उनकी व्यु (View) को देखकर अपनी (View) व्यु चेन्ज न करो लेकिन आपकी व्यु को देखकर वह अपनी व्यु चेन्ज करें - ऐसा प्लैन बनाओ। जब लक्ष्य रहता कि भाषण करना है तो पाइंट्स तरफ अटेन्शन जाता लेकिन बाप को प्रत्यक्ष करने का लक्ष्य हो तो बाप ही दिखाई देगा। जैसा लक्ष्य होगा वैसी रिजल्ट निकलेगी। अच्छा-