14-12-83 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
प्रभु परिवार - सर्वश्रेष्ठ परिवार
प्रभु रत्नों के प्रति भोलानाथ शिवबाबा बोले:-
आज बापदादा अपने श्रेष्ठ ब्राह्मण परिवार को देख रहे हैं। ब्राह्मण परिवार कितना ऊँचे ते ऊँचा परिवार है। उसको सभी अच्छी तरह से जानते हो! बापदादा ने सबसे पहले परिवार के प्यारे सम्बन्ध में लाया। सिर्फ श्रेष्ठ आत्मा हो, यह ज्ञान नहीं दिया लेकिन श्रेष्ठ आत्मा, बच्चे हो। तो बाप और बच्चे के सम्बन्ध में लाया। जिस सम्बन्ध में आने से आपस में भी पवित्र सम्बन्ध भाई-बहन का जुटा। जहाँ बापदादा, भाई-बहन का सम्बन्ध जुटा तो क्या हो गया - ‘प्रभु परिवार’। कभी स्वप्न में भी ऐसे भाग्य को सोचा था कि साकार रूप से डायरेक्ट प्रभु परिवार में वारिस बन वर्से के अधिकारी बनेंगे! वारिस बनना सबसे श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ भाग्य है। कभी सोचा था कि स्वयं बाप हम बच्चों के लिए हमारे समान साकार रूपधारी बन बाप और बच्चे का वा सर्व सम्बन्धों का अनुभव करायेंगे! साकार रूप में प्रभु पालना लेंगे! यह कभी संकल्प में भी नहीं था। लेकिन अभी अनुभव कर रहे हो ना! यह सब अनुभव करने का भाग्य तब प्राप्त हुआ जब प्रभु परिवार के बने। तो कितने ऊँचे परिवार के अधिकारी बच्चे बने। कितनी पवित्र पालना में पल रहे हो! कैसे अलौकिक प्राप्तियों के झूले में झूल रहे हो! यह सब अनुभव करते हो ना। परिवार बदल गया। युग बदल गया। धर्म, कर्म सब बदल गया। युग परिवर्तन होने से दु:ख के संसार से सुखों के संसार में आ गये। साधारण आत्मा से पुरूषोत्तम बन गये। 63 जन्म कीचड़ में रहे और अभी कीचड़ में कमल बन गये। प्रभु परिवार में आना अर्थात् जन्म-जन्मान्तर के लिए तकदीर की लकीर श्रेष्ठ बन जाना। प्रभु परिवार, परिवार अर्थात् वार से परे हो गये। कभी भी प्रभु बच्चों पर वार नहीं हो सकता। प्रभु परिवार का बने, सदा के लिए सर्व प्राप्तियों के भण्डार भरपूर हो गये। ऐसे मास्टर सर्वशक्तिवान बन गये जो प्रकृति भी आप प्रभु बच्चों की दासी बन सेवा करेगी। प्रकृति आप प्रभु परिवार को श्रेष्ठ समझ आपके ऊपर जन्म-जन्मान्तर के लिए चंवर (पंखा)झुलाती रहेगी। श्रेष्ठ आत्माओं के स्वागत में, रिगार्ड में चंवर झुलाते हैं ना। प्रकृति सदाकाल के लिए रिगार्ड देती रहेगी। प्रभु परिवार का अभी भी सर्व आत्माओं को स्नेह है। उसी स्नेह के आधार पर अभी तक गायन और पूजन करते रहते हैं। प्रभु परिवार के चरित्रों का अभी भी कितना बड़ा यादगार शास्त्र - ‘भागवत’, प्यार से सुनते और सुनाते रहते हैं। प्रभु परिवार का शिक्षक और गाडली स्टूडेन्ट लाइफ का, पढ़ाई का यादगार शास्त्र -’गीता’, कितने पवित्रता से विधिपूर्वक सुनते और सुनाते हैं। प्रभु परिवार का यादगार आकाश में भी सूर्य, चन्द्रमा और लकी सितारों के रूप में मनाते और पूजते रहते हैं। प्रभु परिवार बाप के दिलतख्तनशीन बनते, ऐसा तख्त सिवाए प्रभु परिवार के और किसको भी प्राप्त हो नहीं सकता। प्रभु परिवार की यही विशेषता है। जितने भी बच्चे हैं सब बच्चे तख्तनशीन बनते हैं। और कोई भी राज्य परिवार में सब बच्चे तख्तनशीन नहीं होते हैं। लेकिन प्रभु के बच्चे सब अधिकारी हैं। इतना श्रेष्ठ और बड़ा तख्त सारे कल्प में देखा? जिसमें सभी समा जाएँ। प्रभु परिवार ऐसा परिवार है जो सभी स्वराज्य अधिकारी होते। सभी को राजा बना देता। जन्म लेते ही स्वराज्य का तिलक बापदादा सभी बच्चों को देते हैं। प्रजा तिलक नहीं देते। राज्य तिलक देते हैं। महिमा भी राज्य तिलक की है ना। राज-तिलक दिवस विशेष मनाया जाता है। आप सबने अपना राज्य तिलक दिवस मनाया है। या अभी मनाना है। मना लिया है ना। खुशी की निशानी, भाग्य की निशानी, संकट दूर होने की निशानी -’तिलक’ होता है। जब कोई किसी कार्य पर जाते हैं, कार्य सफल रहे उसके लिए परिवार वाले तिलक लगाकर भेजते हैं। आप सबको तो तिलक लगा हुआ है ना। तिलकधारी, तख्तधारी, विश्वकल् याण के ताजधारी बन गये हो ना। भविष्य का ताज और तिलक इसी जन्म के प्राप्ति की प्रालब्ध है। विशेष प्राप्ति का समय वा प्राप्तियों की खान प्राप्त होने का समय अभी है। अभी नहीं तो भविष्य प्रालब्ध भी नहीं। इसी जीवन का गायन है - दाता के बच्चों को, वरदाता के बच्चों को अप्राप्त नहीं कोई वस्तु। भविष्य में फिर भी एक अप्राप्ति तो होगी ना। बाप का मिलन तो नहीं होगा ना। तो सर्व प्राप्तियों का जीवन ही -’ईश्वरीय परिवार’ है। ऐसे परिवार में पहुँच गये हो ना। समझते हो ना ऐसे ऊँचे परिवार के हैं। जिसकी महिमा करें तो अपने रात-दिन बीत जाएँ। देखो भक्तों को कीर्तन गाते-गाते कितने दिन और रात बीत जाते हैं। अभी तक भी गा रहे हैं। तो ऐसा नशा और खुशी सदा रहती है? ‘‘मैं कौन’’! यह पहेली सदा याद रहती है। विस्मृति-स्मृति के चक्र में तो नहीं आते हो ना। चक्र से तो छूट गये ना। ‘स्वदर्शन चक्रधारी’ बनना अर्थात् अनेक हद के चक्करों से छूट जाना। ऐसे बन गये हो ना। सभी स्वदर्शन चक्रधारी हो ना! मास्टर होना! तो मास्टर सब जानते हैं! रोज अमृतवेले ‘‘मैं कौन’’ - यह स्मृति में रखो तो सदा समर्थ रहेंगे। अच्छा-
बापदादा बेहद के परिवार को देख रहे हैं। बेहद का बाप बेहद के परिवार को बेहद की याद-प्यार देते हैं।
सदा श्रेष्ठ परिवार के नशे में रहने वाले, प्रभु परिवार के महत्त्व को जान, महान बनने वाले, सर्व प्राप्तियों के भण्डार, श्रेष्ठ राज्य भाग्य प्राप्त करने वाले प्रभु रत्नों को याद-प्यार और नमस्ते।’’
(ग्याना के अंकल और आंटी जो आजकल देहली में ट्रांसफर होकर आये हैं, वे बापदादा से मिलने के लिए आये थे।)
सर्विसएबल बच्चों का बापदादा मिलन के साथ स्वागत कर रहे हैं। जितना पल-पल याद करते आये हो उसके रिटर्न में बापदादा नयनों की पलकों में समाए हुए बच्चों का स्वागत कर रहे हैं। एक बाप के गुण गाने वाले बच्चों को देख बापदादा भी बच्चों की विशेषता के गुण गाते हैं। निशदिन, निशपल, गीत गाते रहते हो ना। जब बच्चे गीत गाते तो बाप क्या करते? जब कोई अच्छा गीत गाता है तो सुनने वाले क्या करते हैं? न चाहते हुए भी नाचने लग जाते हैं। चाहे नाचना आवे या न आवे लेकिन, बैठे-बैठे भी नाचने लग जाते हैं। तो बच्चे जब स्नेह के गीत गाते हैं तो बापदादा भी खुशी में नाचते हैं ना। इसीलिए शंकर डांस बहुत मशहूर हैं। सेवा भी तो नाचना है ना। जिस समय सर्विस करते हो उस समय मन क्या करता है? नाचता है ना। तो सेवा करना भी नाचना ही है। अच्छा-
बापदादा सदा बच्चों की विशेष विशेषता को देखते हैं। जन्मते ही विशेष 3 तिलक बापदादा द्वारा मिले हैं। कौन से? ताज, तख्त तो हैं ही लेकिन 3 तिलक विशेष हैं। एक स्वराज्य का तिलक तो मिला ही है। दूसरा जन्मते ही सर्विसएबल का तिलक मिला। तीसरा जन्मते ही सर्व परिवार के, बापदादा के स्नेही और सहयोगीपन का तिलक। तीनों तिलक जन्मते ही मिले ना। तो त्रिमूर्ति तिलकधारी हो। ऐसे विशेष सेवाधारी सदा अपने को समझते हो। अनेक आत्माओं को उमंग उत्साह दिलाने के निमित्त बनने की सेवा ड्रामा में मिली हुई है। अच्छा।
जितना बच्चे बाप को याद करते हैं, उतना बाप भी तो याद करते हैं। सबसे ज्यादा अखण्ड अविनाशी बाप की याद है। बच्चे और कार्य में भी बिजी हो जाते हैं लेकिन बाप का तो काम ही यह है। अमृतवेले से लेकर सबको जगाने का काम शुरू करते हैं। देखो कितने बच्चों को जगाना पड़ता है और फिर देश-विदेश में, एक स्थान पर भी नहीं हैं। फिर भी बच्चे पूछते, सारा दिन क्या करते!
बच्चों के बाद फिर भक्तों का करते, फिर साइंस वालों को प्रेरणा देते। सभी बच्चों की देख-रेख तो करनी पड़े। चाहे ज्ञानी हैं, चाहे अज्ञानी हैं लेकिन कई प्रकार से सहयोगी तो हैं ना। कितने प्रकार के बच्चों की सेवा है। सबसे ज्यादा बिजी कौन है? सिर्फ अन्तर यह है, शरीर का बन्धन नहीं है। अभी कुछ टाइम तो आप सब भी बाप समान बनेंगे ही। मूलवतन में रहेंगे। यह भी आशा सभी की पूरी होगी। अच्छा –
मधुबन निवासियों के साथ - मधुबन निवासियों की महिमा तो जानते ही हो। जो मुधबन की महिमा है वही मधुबन निवासियों की महिमा है। हर पल समीप साकार में रहना इससे बड़ा भाग्य और क्या हो सकता है! दर पर बैठे हो, घर में बैठे हो, दिल पर बैठे हो। मधुबन निवासियों को मेहनत करने की आवश्यक्ता नहीं, योग लगाने की आवश्यक्ता है क्या! योग लगा हुआ ही रहता है। लगे हुए को लगाने की आवश्यकता नहीं। स्वत: योगी, निरन्तर योगी। जैसे ट्रेन में इंजन लगी हुई है, सभी डिब्बे पट्टे पर हैं तो स्वत: चलते रहते हैं, चलाना नहीं पड़ता है। ऐसे आप भी मधुबन के पट्टे पर हो, इंजन लगी हुई है तो स्वत: चलते रहेंगे। मधुबन निवासी अर्थात् मायाजीत। माया आने की कोशिश करेगी लेकिन जो बाप की कशिश में रहते हैं वह सदा मायाजीत रहेंगे। माया की कशिश दूर से ही समाप्त हो जायेगी। सेवा तो सभी बहुत अच्छी करते हैं। सेवा के लिए एक एग्जाम्पल हो। कोई कहाँ भी चारों ओर सेवा में थोड़ा भी नीचे ऊपर करते हैं तो सभी मधुबन वालों का ही दृष्टान्त देते हैं। मधुबन में कितनी अथक सेवा प्यार से घर समझकर करते हैं। यह सभी मानते हैं। जैसे सेवा में सभी नम्बरवन हो, 100 मार्क्स ली हैं ऐसे सब सब्जेक्ट में भी 100 मार्क्स चाहिए। आप लोग बोर्ड पर लिखते हो ना - हेल्थ, वेल्थ, हैपीनेस तीनों ही मिलती है। तो यह भी सब सब्जेक्ट में मार्क्स चाहिए। सबसे ज्यादा सुनते मधुबन वाले हैं। पहला-पहला ताजा माल तो मधुबन वाले खाते हैं। दूसरे तो एक टर्न में एक बारी विशेष ब्रह्मा भोजन खाते। आप तो रोज खाते। सूक्ष्म भोजन, स्थूल भोजन सब गर्म, ताजा मिलता है। अच्छा - नई तैयारी क्या कर रहे हो? घर को तो अच्छा प्यार से सजा रहे हो। मधुबन की यह विशेषता है हर बार कोई न कोई नई एडीशन हो जाती है। जैसे स्थूल में नवीनता देखते ऐसे चैतन्य में भी हर बार नवीनता देख वर्णन करें कि इस बार विशेष मधुबन में इस प्राप्ति की लहर देखी। भिन्न-भिन्न लहरें हैं ना। कभी विशेष आनन्द की लहर हो, कभी प्यार की, कभी ज्ञान के विशेषताओं की.. हरेक को यही लहर दिखाई दे। जैसे सागर की लहरों में कोई जाता तो लहराना ही पड़ता, नहीं तो डूब जायेगा। तो यह लहरें स्पष्ट दिखाई दें। इस कानफ्रीन्स में विशेष क्या करेंगे? वी.आई.पीज. आयेंगे, पेपर वाले आयेंगे, वर्कशाप होंगी, यह तो होगा लेकिन आप सब विशेष क्या करेंगे? जैसे स्थूल दिलवाड़ा है, उसकी विशेषता क्या है? हरेक कमरे की डिजाइन अलग-अलग वैरायटी है। हर कमरे की अपनी-अपनी विशेषता है। इसलिए यह मन्दिर सब मन्दिरों से न्यारा है। मूर्तियाँ तो औरों में भी होती है लेकिन इस मन्दिर में जहाँ जाओ वहाँ विशेष कारीगरी है। ऐसे चैतन्य दिलवाड़ा मन्दिर में भी हम मूर्तियों की विशेषता अपनी-अपनी दिखाई दे। जिसको देखें, उसकी एक दो से आगे विशेष विशेषता दिखाई दे। जैसे वहाँ कहते कमाल है बनाने वाले की। ऐसे यहाँ एक-एक की विशेषता की कमाल वर्णन करें। आप लोग इस बात की मीटिंग करो। कोई बड़ी बात नहीं है कर सकते हो। जैसे सतयुग में देवताएँ सिर्फ निमित्त मात्र टीचर द्वारा थोड़ा-सा सुनेंगे लेकिन स्मृति बहुत तेज होगी, याद करने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। जैसे सुना हुआ ही है, वह सिर्फ फ्रेश हो रहा है। मधुबन वालों के लिए हुआ पड़ा है। सिर्फ थोड़ा-सा दृढ़ संकल्प का इशारा है बस। संकल्प भी बहुत अच्छे-अच्छे करते हो लेकिन उसमें दृढ़ता को बार-बार अण्डरलाइन करो। अच्छा!
सेवाधारियों से- जो सेवा करता वह मेवा खाता। मेवा खाने वाले सदा तन्दरूस्त रहते हैं। सूखा मेवा खाने वाले नहीं, ताजा मेवा खाने वाले। सेवाधारी सो भाग्य अधिकारी। कितना बड़ा भाग्य है। यादगार चित्रों के पास जाकर भक्त लोग सेवा करते हैं। उस सेवा को महापुण्य समझते हैं। और आप कहाँ सेवा करते हो! चैतन्य महातीर्थ पर। वे सिर्फ तीर्थों पर जाकर चक्कर लगाकर आते तो भी महान आत्मा गाये जाते। आप तो महान तीर्थ पर सेवा कर महान भाग्यशाली बन गये। सेवा में तत्पर रहने वाले के पास माया आ नहीं सकती। सेवाधारी माना मन से भी सेवाधारी, तन से भी सेवा में बिजी रहने वाले। तन के साथ मन भी बिजी रहे तो माया नहीं आयेगी। तन से स्थूल सेवा करो और मन से वातावरण, वायुमण्डल को शक्तिशाली बनाने की सेवा करो। डबल सेवा करो, सिंगल नहीं। जो डबल सेवाधारी होगा उसको प्राप्ति भी इतनी होगी। मन का भी लाभ, तन का भी लाभ, धन तो अकीचार (अथाह) मिलना ही है। इस समय भी सच्चे सेवाधारी कभी भूखे नहीं रह सकते। दो रोटी जरूर मिलेगी। तो सभी ने सेवा की लाटरी में अपना नम्बर ले लिया। जहाँ भी जाओ, जब भी जाओ यह खुशी सदा साथ रहे क्योंकि बाप तो सदा साथ है। खुशी में नाचते-नाचते सेवा का पार्ट बजाते चलो। अच्छा-
प्रश्न:- संगमयुग की कौन-सी विशेषता है जो सारे कल्प में नहीं हो सकती?
उत्तर:- संगमयुग पर ही हरेक को ‘‘मेरा बाबा’’ कहने का अधिकार है। एक को ही सब ‘मेरा बाबा’ कहते हैं। मेरा कहना अर्थात् अधिकारी बनना। संगम पर ही हरेक को एक बाप से मेरे-पन का अनुभव होता है। जहाँ मेरा बाबा कहा वहाँ वर्से के अधिकारी बन गये। सब कुछ मेरा हुआ। हद का मेरा नहीं, बेहद का मेरा। तो बेहद के मेरे-पन की खुशी में रहो।
प्रश्न:- समीप आत्मा की मुख्य निशानी क्या होगी?
उत्तर:- समीप आत्माएं अर्थात् सदा बाप के समान हर संकल्प, हर बोल और हर कर्म करने वाली। जो समीप होंगे वह समान भी अवश्य होंगे। दूर वाली आत्माएँ थोड़ी अंचली लेने वाली होंगी। समीप वाली आत्माएँ पूरा अधिकार लेने वाली होंगी। तो जो बाप के संकल्प, बोल, वह आपके। इसको कहा जाता है - ‘समीप’। अच्छा –