23-12-83 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
डबल लाईट की स्थिति से मेहनत समाप्त
देश-विदेश से पधारे लवलीन बच्चों के प्रति बापदादा बोले:-
आज दूर देश में रहने वाले बापदादा, दूरदेशी बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। आप सब भी दूरदेश से आये हो तो बापदादा भी दूरदेश से आये हैं। सबसे दूर से दूर और नज़दीक से नज़दीक बापदादा का देश है। दूर इतना है जो इस साकार दुनिया की बाउण्ड्री से बहुत दूर है। लोक ही दूसरा है। आप सभी साकार लोक से आये हैं और बापदादा साकार लोक से भी परे परलोक से वाया सूक्ष्मवतन ब्रह्मा बाप को साथ लाये हैं। और नज़दीक भी इतना है जो सेकण्ड में पहुँच सकते हो ना। आप लोगों को आने में कितने घण्टे लगते हैं और कितना मेहनत का कमाया हुआ धन देना पड़ा। कितना समय लगा धन इकठठा करने में। और बाप के वतन से आने और जाने में खर्चा भी नहीं लगता है। सिर्फ स्नेह की पूँजी, इसके द्वारा सेकण्ड में पहुँच जाते हो। कोई मेहनत तो नहीं लगती है ना। बापदादा जानते हैं कि राज्य-भाग्य गँवाने के बाद बच्चे अनेक जन्म भिन्न-भिन्न प्रकार की तन की, मन की, धन की मेहनत ही करते रहे हैं। कहाँ विश्व के मालिक ताज, तख्तधारी, सर्व प्राप्तियों के भण्डार के मालिक! प्रकृति भी दासी! ऐसे राज्य अधिकारी, राज्य भाग्य करने वाले, अब अधीन बनने से क्या कर रहे हैं! नौकरी कर रहे हैं! तो मेहनत हुई ना। कहाँ राजे और कहाँ कमाई करके खाने वाले गवर्मेन्ट के सर्वेन्ट हो गये। कितने जन्म शरीर को चलाने के लिए, शरीर निर्वाह का कर्म, मन को बाप से लगाने के लिए भिन्न-भिन्न साधनायें, अनेक प्रकार की भक्ति और धन को इकठठा करने के लिए कितने प्रकार के भिन्न-भिन्न जन्मों में भिन्न-भिन्न कार्य किये। ऐसे ताज-तख्तधारी सुख-चैन से पलने वाले को क्या-क्या करना पड़ा। तो बच्चों की मेहनत को देख बापदादा ने मेहनत से छुड़ाए सहज योगी बना दिया है। सेकण्ड में स्वराज्य-अधिकारी बनाया ना। मेहनत से छुड़ाया ना। यह सब सोचते हैं कि नौकरी से तो नहीं छुड़ाया। लेकिन अभी कुछ भी करते हो अपने लिए नहीं करते हो। ईश्वरीय सेवा के प्रति करते हो। अभी मेरा काम समझकर कर नहीं करते हो। ट्रस्टी बन करके करते हो। इसलिए मेहनत मुहब्बत में बदल गई। बाप की मुहब्बत में, सेवा की मुहब्बत में, मिलन मनाने की मुहब्बत में - मेहनत नहीं लगती।
दूसरी बात, करावनहार बाप है। निमित्त करने वाले आप हो। सर्वशक्तिवान बाप की शक्ति से अर्थात् स्मृति के कनेक्शन से अभी निमित्त मात्र कार्य करने वाले हो। जैसे लाइट के कनेक्शन से बड़ी-बड़ी मशीनरी चलती है। तो आधार है लाइट। आप सभी हर कर्म करते कनेक्शन के आधार से स्वयं भी डबल लाइट बन चलते रहते हो ना। जहां डबल लाइट की स्थिति है वहाँ मेहनत और मुश्किल शब्द समाप्त हो जाता है। नौकरी से नही छुड़ाया लेकिन मेहनत से छुड़ाया ना। भावना और भाव बदल गया ना। ट्रस्टीपन का भाव और ईश्वरीय सेवा की भावना, तो बदल गयी ना। अभी अपना-पन है? तीन पैर पृथ्वी तो मिली है वह भी बाबा का घर कहते हो ना। मेरे घर तो नहीं कहते हो ना। अपने घर में नहीं रहते। बाप के घर में रहते हो। बाप के डायरेक्शन से कार्य करते हो। अपनी इच्छा से, अपनी आवश्यकताओं के कारण नहीं करते। जो डायरेक्शन बाप का, उसमें निश्चिंत और न्यारे होकर करते जो मिला बाप का है वा सेवा अर्थ है। भले शरीर प्रति भी लगाते हो लेकिन शरीर भी अपना नहीं है। वह भी बाप को दे दिया ना। तन-मन-धन सब बाप को दे दिया है ना वा कुछ रखा है किनारे करके, ऐसे तो नहीं हो ना। तो बापदादा ने बच्चों की जन्म-जन्म की मेहनत देख अब से अनेक जन्मों तक मेहनत से छुड़ा दिया। यही निशानी है बाप और बच्चों के मुहब्बत की।
जैसे आप सब स्पेशल मिलने आये हो, बापदादा भी स्पेशल मिलने आये हैं। ब्रह्मा बाप को भी वतन से ले के आये हैं। ब्रह्मा बाप का ज्यादा स्नेह है। बाप का तो है ही लेकिन ब्रह्मा बाप का ज्यादा स्नेह है। डबल विदेशियों से विशेष स्नेह क्यों है? ब्रह्मा बोले - विदेशी बच्चों का बहुत समय से आह्वान किया। कितने वर्षों से पहले बच्चों का आह्वान किया। उसी आह्वान से विदेश से बाप के पास पहुँचे। तो बहुत समय जिसका आह्वान किया जाए और बहुत समय के आह्वान के बाद वह बच्चे पहुँचे तो जरूर विशेष प्यार होगा ना। तो ब्रह्मा बाप ने बहुत स्नेह से साकार रूप में वारिस बनने का, आप सबको आह्वान किया। समझा। सुनते रहते हो ना कि कितने वर्ष पहले आपको जन्म दिया। गर्भ में तो आ गये थे पैदा पीछे हुए हो साकार रूप में। इसलिए ब्रह्मा बाप को विशेष स्नेह है और भविष्य की तकदीर जानते हुए स्नेह है।
जानकी दादी को देख
सभी डबल विदेशी जैसे बाप को देख करके खुश होते हैं वैसे आपको भी देख करके खुश होते हैं क्योंकि बाप से ली हुई पालना का प्रत्यक्ष रूप साकार में आप निमित्त बच्चों से सीखते हैं। इसलिए विशेष आप से भी सभी का प्यार है। दादी वा दीदी जो भी निमित्त आत्माएँ हैं उन्हों की विशेषता यही दिखाई देती जो उनमें बाप को देखेंगे। यही बाप की पालना का विशेष अनुभव करते। जब भी दीदी दादी से मिलते हो तो क्या देखते हो! बाप साकार आधार से मिल रहे हैं। ऐसे अनुभव होता है ना। यही विशेष आत्माओं की पालना है, जो आप गुम हो जायेंगे और बाप दिखाई देंगे। क्योंकि उन्हों के हर संकल्प, हर बोल में सदा ‘बाबा-बाबा’ ही रहता है। तो औरों को भी वो ही बाबा शब्द सुनाई वा दिखाई देता है। आज दीदी भी याद आ रही है। गुप्त गंगा हो गई ना। वैसे भी 3 नदियों में एक नदी गुप्त ही दिखाते हैं। अभी दीदी तो दादी में समाई हुई है ना। सूक्ष्म रूप में वह भी अपनी भासना दे रही है। क्योंकि कर्मबन्धनी आत्मा नहीं है। सेवा के सम्बन्ध से पार्ट बजाने गई है। कर्मबन्धनी आत्माएँ जहाँ हैं वहाँ ही कार्य कर सकती हैं। और कर्मातीत आत्माएँ एक ही समय पर चारों ओर अपना सेवा का पार्ट बजा सकती हैं। क्योंकि कर्मातीत हैं। इसलिए दीदी भी आप सबके साथ है। कर्मातीत आत्मा को डबल पार्ट बजाने में कोई मुश्किल नहीं। स्पीड बहुत तीव्र होती है। सेकण्ड में जहाँ चाहे वहाँ पहुँच सकती है। विशेष आत्माएँ अपना विशेष पार्ट सदा बजाती हैं। इसलिए ही हवा के मुआफिक चली गई ना। जैसे अनादि अविनाशी प्रोग्राम बना हुआ ही था। यह भी विचित्र पार्ट था। शुरू से लेकर दीदी का विचित्र ट्रांस का पार्ट रहा। अन्त में भी विचित्र रूप के ट्रांस में ही ट्रान्सफर हो गई। अच्छा –
सभी देश-विदेश के चात्रक बच्चों को कल्प के सिकीलधे बच्चे को, सदा बाप के स्नेह में लवलीन रहने वाले लवलीन आत्माओं को बापदादा का यादप् यार और नमस्ते।’’
पर्सनल मुलाकात
कहाँ-कहाँ से बापदादा ने चुनकर अपने अल्लाह के बगीचे में लगा लिया। यह खुशी रहती है ना! अभी सभी रूहानी गुलाब बन गये। सदा औरों को भी रूहानी खुशबू देने वाले ‘रूहे गुलाब’ हो। कोई भी आप सबके समीप आता है, सम्पर्क में आता है तो आप सभी से क्या महसूस करता है? समझते हैं कि यह रूहानी हैं। अलौकिक हैं। लौकिकता समाप्त हो गयी। जो भी आपकी तरफ देखेंगे उनको फरिश्ता रूप ही दिखाई दे। फरिश्ते बन गये ना। सदा डबल लाइट स्थित में स्थित रहने वाले फरिश्ता दिखाई देंगे। फरिश्ते सदा ऊँचे रहते हैं। फरिश्तों को चित्र रूप में भी दिखायेंगे तो पंख दिखायेंगे। किसलिए? उड़ते पंछी हैं ना। तो पंछी सदा ऊपर उड़ जाते। तो बाप मिला, ऊँचा स्थान मिला, ऊँची स्थिति मिली और क्या चाहिए!
(विदेशी बच्चों के रिटर्न में)
सबकी दिल के प्यार भरे याद-प्यार पत्र तथा याद मिली। बच्चे मीठी-मीठी रूह-रूहान भी करते तो कभी-कभी मीठे-मीठे उल्हने भी देते हैं। कब बुलायेंगे, क्यों नहीं हमको मदद करते जो हम पहुँच जाते। ऐसे उल्हने भी बाप को प्रिय लगते हैं। क्योंकि बाप को नहीं कहेंगे तो किसको कहेंगे! इसलिए बापदादा को बच्चों का लाड़-प्यार अच्छा लगता है। इसलिए बाप के प्यारे हैं और सदा बाप के प्यारे होने के कारण रिटर्न में बाप द्वारा स्नेह और सहयोग मिलता है।
अच्छा - ओम शान्ति