25-12-83 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
संगमयुग के दिन - बड़े ते बड़े दिन मौज मनाने के दिन
बड़े दिन के अवसर पर वृक्षपति शिवबाबा अपने लकी सितारों, बच्चों प्रति बोले:-
आज बड़े ते बड़ा बाप बड़े ते बड़े बच्चों को बड़े दिल की बधाई दे रहे हैं। सभी ‘किसमिस’ से भी मीठे बच्चों को ‘क्रिसमिस’ की बधाई दे रहे हैं। बड़े ते बड़े दिन - संगयुग के दिन हैं। बुरे दिन खत्म हो खुशी के उत्साह में रहने के उत्सव का दिन ‘संगमयुग’ है। जिस बड़े दिन पर वृक्षपति ‘कल्प-वृक्ष’ की कहानी सुनाते हैं। इसी संगमयुग के बड़े दिन पर कल्प वृक्ष के फाउण्डेशन में चमकती हुई श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माएँ जगमगाती हुई सारे वृक्ष को जगमगाती हैं। लकी सितारे, लवली सितारे, वृक्ष को अति सुन्दर बना देते हैं। वृक्ष के डेकोरशन चैतन्य जगमगाते सितारे हैं। वृक्ष में व्हाइट और लाइट फरिश्ते चमकते हुए वृक्ष को चमकाते हैं। इसी का यादगार आज के दिन - ‘क्रिसमस ट्री’ के रूप में सजाते हैं। संगम के बड़े दिन में उत्साह के उत्सव के दिन में, रात को दिन बना देते हैं। अंधकार को रोशनी में बदल लेते हैं। ब्राह्मण परिवार संगम के बड़े दिन पर मिलकर आत्मा का भोजन - ‘ब्रह्मा भोजन’ प्यार से खाते हैं। इसलिए यादगार रूप में भी सपरिवार मिलकर खाते-पीते मौज मनाते हैं। सारे कल्प में मौज मनाने का दिन वा मौजों का युग - ‘संगमयुग’ है। जिस संगमयुग में जितना चाहें दिल भरकर मौज मना सकते हैं। ज्ञान अमृत का नशा लवलीन बना देता है। इस रूहानी नशे का अनुभव विशेष बड़े दिन पर करते हैं। संगमयुग के ब्रह्म-महूर्त में अमृतवेले में श्रेष्ठ जन्म की आँख खोली और क्या मिला! कितने सौगाते मिलीं? आँख खोली बूढ़ा बाबा देखा! सफेद-सफेद बाबा देखा! सफेद में लाल देखा ना! कौन देखा? शान्ति कर्त्ता बाप देखा! कितने सौगातें दी। इतनी सौगाते दी जो जन्म-जन्म उन सौगातों से ही पलते रहेंगे। कुछ खरीद नहीं करना पड़ेगा। सबसे बड़ी ते बड़ी सौगात हीरे से भी मूल्यवान स्नेह का कंगन, ईश्वरीय जादू का कंगन दिया। जिस द्वारा जो चाहे जब चाहो संकल्प से आह्वान किया और प्राप्त हुआ। अप्राप्त कोई वस्तु नहीं ब्राह्मणों के खज़ाने में। ऐसी सौगात आँख खोलते ही, सभी बच्चों को मिली। सबको मिली है ना। कोई रह तो नहीं गया ना। यह है बड़े दिन का महत्त्व। फर्स्ट ब्राह्मण आत्माओं का यादगार, लास्ट धर्म तक भी, निशानी अब तक चल रही है। क्योंकि आप ब्राह्मण श्रेष्ठ आत्माएं सारे वृक्ष के फाउण्डेशन हो। सर्व आत्माओं के दादे परदादे तो आप ही हो ना। आपकी यह शाखायें हैं। वृक्ष का फाउण्डेशन आप बड़े ते बड़े ब्राह्मण हो। इसलिए हर धर्म की आत्मायें किसी न किसी रूप में आप आत्माओं को और आपके संगमयुगी रीति रसम को अभी तक भी मनाते रहते हैं। ऐसी परमपरा की पूज्य आत्माएँ हो। परम-आत्मा से भी डबल पूज्य आप हो। ऐसे स्वयं को बड़े ते बड़े, श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ समझते हुए मौजों के दिन मना रहे हो ना! मनाने के दिन कितने थोड़े से हैं। कल्प के हिसाब से एक ही बड़ा दिन खूब मनाओ। खुशी में नाचो। ब्रह्मा भोजन खाओ और खुशी के गीत गाओ। और कोई िफकर है क्या! बेफिकर बादशाह सारा दिन क्या करते हैं! मौज मनाते हैं ना। मन की मौज मनाओ। हद के दिन की मौज नहीं मनाना। बेहद के दिन की, बेहद के बेगम की मौज मनाओ। समझा! ब्राह्मण संसार में आये हो, किसलिए? मौज मनाने के लिए। अच्छा –
आज विशेष चारों ओर के डबल विदेशी बच्चों को मौजों के दिन, बड़े ते बड़े दिन मनाने की विशेष मुबारक हो। बापदादा विशेष मिलन की सौगात देने के लिए आये हैं। अभी तो बहुत थोड़े हो फिर भी इतना दूर बैठना पड़ता है। जब वृद्धि को प्राप्त होंगे तो फिर दर्शन मात्र रह जायेंगे। फिर मिलने का चान्स नहीं होगा। सिर्फ दर्शन करने का। दृष्टि, दर्शन में बदल जायेगी। अन्त में जो सिर्फ दृष्टि मिलेगी वह भक्ति में दर्शन शब्द में बदल जायेगी। डबल विदेशियों को विशेष नशा कौन सा है? एक गीत है ना- ऊँची-ऊँची दीवारें, ऊँचे-ऊँचे समुद्र, दुनिया के देशों की दीवारें तो हैं। तो ऊँचे-ऊँचे देशों की दीवारें, धर्म की दीवारें, नॉलेज की दीवारें, मान्यताओं की दीवारें, रसम-रिवाज की दीवारें, सब पार करते आ गये हो ना। मिलते तो भारतवासी भी हैं, भारतवासियों को भी वर्सा मिला लेकिन देश का देश में मिला। इतनी ऊँची दीवारें पार नहीं करनी पड़ी। सिर्फ भक्ति की दीवार क्रास की। लेकिन डबल विदेशी बच्चों ने अनेक प्रकार की ऊँची दीवारें पार की। इसलिए डबल नशा है। अनेक प्रकार के पर्दों की दुनिया को पार किया। इसलिए पार करने वाले बच्चों को डबल याद-प्यार। मेहनत तो की है ना। लेकिन बाप की मुहब्बत ने मेहनत भुला दी। अच्छा-
सर्वश्रेष्ठ पूज्य आत्माओं को, सर्व को लाइट माइट देने वाले बड़े ते बड़े बच्चों को, मौजों के संसार में सदा रूहानी मौज मनाने वाले, हर दिन उत्सव समझते उत्साह में रहने वाले, बेहद की ईश्वरीय सौगात प्राप्त करने वाले, ऐसे कल्पवृक्ष के चमकते हुए, जगमगाते हुए श्रेष्ठ सितारों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’
विदेशी भाई-बहनों से पर्सनल मुलाकात
1. सभी अपने को सिकीलधे समझते हो ना? कितने सिक व प्रेम से बाप ने कहाँ-कहाँ से चुनकर एक गुलदस्ते में डाला है। गुलदस्ते में आकर सभी ‘रूहे गुलाब’ बन गये। रूहे गुलाब अर्थात् अविनाशी खुशबू देने वाले। ऐसे अपने को अनुभव करते हो? हरेक को यही नशा है ना कि हम बाप को प्रिय हैं! हरेक कहेगा कि मेरे जैसा प्यारा बाप को और कोई नहीं है। जैसे बाप जैसा प्रिय और कोई नहीं। वैसे बच्चे भी कहेंगे। क्योंकि हरेक की विशेषता प्रमाण बाप को सभी से विशेष स्नेह है। नम्बरवार होते हुए भी सभी विशेष स्नेही हैं। बच्चों के मूल्य को सिर्फ बाप जानें और आप जानों। और कोई नहीं जान सकता। दूसरे तो आप लोगों को साधारण समझते हैं, लेकिन कोटो में कोई और कोई में भी कोई आप हो। जिसको बाप ने अपना बना लिया। बाप का बनते ही सर्व प्राप्तियाँ हो गई। खज़ानों की चाबी बाप ने आप सबको दे दी। अपने पास नहीं रखी। इतनी चाबियाँ हैं जो सबको दी है। यह मास्टर की (चाबी) ऐसी है जो जिस खज़ाने को लगाना चाहो, लगाओ और खज़ाना प्राप्त करो। मेहनत नहीं करनी पड़ती। वैसे भी लंदन राज्य का स्थान है ना। प्रजा बनने वाले नहीं। सभी सेवा में आगे बढ़ने वाले। जहाँ प्राप्ति हैं वहाँ सेवा के सिवाए रह नहीं सकते। सेवा कम अर्थात् प्राप्ति कम। प्राप्ति स्वरूप बिना सेवा के रह नहीं सकते। देखो, आप लोग कितना भी देश छोड़कर विदेश चले गये तो भी बाप ने विदेश से भी ढूँढकर अपना बना लिया। कितना भी भागे फिर भी बाप ने तो पकड़ लिया ना। अच्छा-
आस्ट्रेलिया ग्रुप से
सभी महावीर हो ना। महावीर ग्रुप अर्थात् सदा के लिए माया को विदाई देने वाले। ऐसी सेरीमनी मनाई है! आस्ट्रेलिया को सदा बापदादा बहादुरों का स्थान कहते हैं। तो आस्ट्रेलिया निवासी सदा ही माया को विदाई देने वाले। क्योंकि जब बाप साथ है तो बाप के साथ होते माया आ नहीं सकती। सदा साथ बाप है तो विदाई हो गई ना। विदाई देने वाले सदा सन्तुष्टमणि। स्वयं भी सन्तुष्ट, सेवा से भी सन्तुष्ट, सम्पर्क में भी सन्तुष्ट। सबमें सन्तुष्ट। ऐसी सन्तुष्ट मणियाँ सदा दिलतख्तनशीन हैं। तो जो तख्तनशीन होगा वह सदा खुशी और नशे में रहेगा। बापदादा - सन्तुष्ट मणियाँ , महावीर, मायाजीत ग्रुप देख रहे हैं। सभी अनुभवी आत्मायें दिखाई दे रही हैं। सेवाधारी भी हैं। जैसे सेवा की विशेषता में लंदन का विशेष पार्ट है वैसे आस्ट्रेलिया का भी विशेष पार्ट है। बापदादा आस्ट्रेलिया निवासियों को सदा सेवा में एवररेडी और सदा सेवा में वृद्धि को पाने वाले ऐसा सर्टिफकेट देते हैं। अच्छा–
विदाई के समय
अभी आप सब जाग रहे हो, आप सभी के लिए कहाँ न कहाँ जागरण होता रहता है। जब आपके भक्त जागरण करते हैं तो आपने किया तो क्या बड़ी बात है। सभी शुरू संगम से ही होता है। जो आप ज्ञान से करते उसे वह भक्ति से करते हैं। भक्ति का फाउण्डेशन भी संगम पर ही पड़ता है। वह भावना और यह ज्ञान। सभी सेवा पर जा रहे हो, घर में जा रहे हो, नहीं, जाना अर्थात् सेवा का सबूत फिर से ले आना। खाली हाथ नहीं आना। कम से कम गुलदस्ता तो भेंट किया जाता है। गुलदस्ता लाओ या बटन। फार्म में यह भी क्वेश्चन ऐड करना कि एक साल में कितने तैयार किये! जो खाली आये उसको दूसरी बार सर्टिफकेट नहीं देना। एक साल में एक तो तैयार करके साथ में लेकर आओ। अच्छा –