31-12-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


नववर्ष के अवसर पर अव्यक्त बापदादा के महावाक्य

रूहानी माशूक शिवबाबा अपने आशिक रूहानी बच्चों के प्रति बोले:-

आज सागर के कण्ठे पर अर्थात् मधुबन के कण्ठे पर मधुर मिलन मनाने के लिए माशूक अपने रूहानी आशिकों से मिलने आये हैं। कितना दूर-दूर से मिलन मनाने के लिए आये हैं, क्यों? ऐसा वण्डरफुल माशूक सारे कल्प में मिल नहीं सकता। एक माशूक और आशिक कितने हैं? अनेक आशिक एक माशूक के। तो आज विशेष आशिकों की महिफल में आये हैं। महिफल में मनाना होता है, सुनाना नहीं होता है। तो आज सुनाने नहीं आये हैं, मिलने और मनाने आये हैं। विशेष डबल विदेशी बच्चे आज का दिन मनाने के लिए आये हैं। नया वर्ष मनाने का संकल्प लेकर आये हैं। बापदादा भी नये वर्ष में स्नेह और सहयोग सम्पन्न बधाई दे रहे हैं। संगमयुग नया युग है। भविष्य सतयुग इस वर्तमान नये युग के नये जीवन की प्रालब्ध है। ब्राह्मणों के लिए नवयुग, श्रेष्ठ युग अभी है। जब से ब्राह्मण बने नया युग, नया संसार, नया दिल, नयी रातें शुरू हो गई। इसी नये युग के नये जीवन की हर घड़ी पद्मों तुल्य है। हीरे तुल्य है। सतयुग में यह गीत नहीं गायेंगे - नया दिन लागे, नयी रात लागे। यह अब की बात है। बापदादा ने शुरू से किस गीत से बच्चों को जगाया है! वह गीत याद है? - जाग सजनियाँ जाग.... क्यों जागो? नवयुग आया! बचपन का यही गीत है ना! अभी तो नये-नये गीत बना दिये हैं। आदि गीत बाप ने यही सुनाया ना। तो नवयुग कब हुआ? अब! पुराने के आगे नया लगता है ना। पुरानी दुनिया, पुरानी जीवन बदल गई। नयी जीवन में आ गये ना। बेहोश थे। अपना होश था कि मैं कौन हूँ? तो बेहोश हुए ना। बेहोश से होश में आये। नया जीवन अनुभव किया ना। आँख खुलते नया सम्बन्ध, नया संसार देखा ना। तो नये युग की, नये युग में, नये वर्ष की बधाई!

लौकिक दुनिया में भी हैप्पी न्यू ईयरकहते हैं। वैसे एवर हैपी होते नहीं हैं लेकिन कहेंगे हैपी न्यू ईयर। अब आप सभी रीयल रूप में कहेंगे हैपी न्यू ईयरतो क्या लेकिन - हैपी न्यू युग। सारा ही युग खुशी का युग है। हैपी न्यू ईयर कहते हो तो बधाई देने के समय क्या करते हो? पहले तो फॉरेन का रिवाज है हाथ से हाथ जरूर मिलायेंगे। बापदादा हाथ से हाथ कैसे मिलाते? स्थूल हाथ तो एक सेकण्ड के लिए मिलाते हैं, लेकिन बापदादा सारा ही युग हाथ मिलाते अर्थात् एक ही ‘श्रेष्ठ मतरूपी हाथ दे, हाथ में हाथ मिलाए अन्त में भी साथ में ले जाते हैं। श्रीमत का हाथ सदा आप सबके साथ है। इसलिए सारा ही युग हाथ में हाथ देकर चल रहे हो। हाथ छोड़ा तो क्या हो जायेगा? किनारा हो जायेगा ना। इसलिए सच्चे आशिक सदा हर कदम हाथ में हाथ देकर चलते हैं। हाथ में हाथ देकर चलना यह स्नेह की भी निशानी है और सहयोग की भी निशानी है। कभी भी कोई चलते-चलते थक जाते हैं तो दूसरा उसका हाथ पकड़कर ले जाते हैं ना। रूहानी माशूक आशिकों का हाथ कभी नहीं छोड़ते। अन्त तक वायदा है, हाथ और साथ सदा ही रहेगा। सभी आशिकों ने हाथ तो पक्का पकड़ लिया है ना! ढीला तो नहीं है! छोड़ने वाले तो नहीं हो ना! जो छोड़ते और लेते रहते हैं, वह हाथ उठाओ। कभी छोड़ते, कभी पकड़ते ऐसा कोई है? यह विशेषता है इन्हों की, छिपाने वाले नहीं है। साफ बोलने वाले हैं इसलिए भी आधा विघ्न, साफ सुनाने से खत्म हो जाता है। लेकिन कच्चा सौदा कब तक? पुराने वर्ष में पुरानी रीति रसम समाप्त करनी है ना! यह नये वर्ष में भी यही रीति रसम चलेगी? अब तक जो हुआ उसको फुलस्टाप की बिन्दी लगाए, सदा साथ और हाथ रहने के स्मृति की बिन्दी अब से लगाओ। बड़े दिन वा खुशी के दिन पर विशेष सुहाग, भाग्य और बधाई की बिन्दी अर्थात् तिलक लगाते हैं। आप लोग भी विशेष याद की भटठी के दिन स्मृति की बिन्दी लगाते हो ना! क्यों लगाते हो? भट्टी के दिन बिन्दी खास क्यों लगाते हो? दृढ़ संकल्प की निशानी बिन्दी लगाते हो कि आज का दिन सारा ही सहज योगी और श्रेष्ठ योगीके स्वरूप में रहेंगे। तो आज भी जो थोड़ा सा कच्चा हो तो दृढ़ संकल्प द्वारा फुलस्टाप की बिन्दी लगाओ, दूसरी समर्थ स्वरूप की बिन्दी लगाओ। बिन्दी लगाने आती है? पाण्डवों को बिन्दी लगाने आती है? अच्छा, शक्तियों को बिन्दी लागाने आती है? अविनाशी बिन्दी। आज सुबह भी सभी ने क्या वायदा किया? समारोह मनाना है ना? (मैरेज समारोह मनाना है) अभी मैरेज की नहीं है क्या? बाल बच्चे पैदा नहीं किये हैं? मैरेज तो हो गई है लेकिन मैरेज का दिन मनाने आये हो। जिसकी मैरेज नहीं हुई है - वह हाथ उठाओ। कितना भी नाज नखरे करो लेकिन माशूक छोड़ने वाला नहीं है क्योंकि जानते हैं कि छोड़कर जायेंगे कहाँ जायेंगे! जैसे आजकल का विदेश का रिवाज है ना कि छोड़कर हिप्पी बन जाते हैं तो हिप्पी बनना है क्या! एवर हैपी बनना है या हिप्पी बनना है! क्या हालत होती है जो देख भी नहीं सकते। आप सब तो राज्य अधिकारी हो। इसलिए बापदादा जानते हैं कि कभी-कभी नटखट बन जाते हैं। लेकिन बापदादा ने जो वायदा किया है कि साथ ले जायेंगे तो बाप वायदा नहीं छोड़ सकता। इसलिए साथ चलना ही है। अच्छा।

नये वर्ष में नवीनता क्या करेंगे? कोई नई बात तो करेंगे ना। कोई प्लैन बनाया है? निमित्त टीचर ने कोई नया प्लैन बनाया है? गीता का भगवान तो देश में प्रत्यक्ष करेंगे। विदेश में क्या करेंगे? जो रही हुई बातें हैं उन बातों को प्रैक्टिकल में लाना, यह तो बहुत अच्छी बात है। समय प्रमाण सब बातें प्रैक्टिकल होती जा रही है। इस बात से भारत में तो नगाड़ा बजायेंगे ही। धर्म नेताओं को जगायेंगे, हलचल भी मचायेंगे। जो थोड़ा-सा जागकर बहुत अच्छा कह फिर सो जाते हैं उन्हों के लिए जैसे कोई नींद से नहीं उठता है तो उस पर ठण्डा-ठण्डा पानी डालते हैं। तो भारत वालों पर भी विशेष ठण्डा पानी डालने से जागेंगे। अच्छा तो इस वर्ष क्या नवीनता करेंगे?

जितना लौकिक दुनिया में जिस स्थान पर हलचल हो, उसी हलचल के स्थान पर सदा खुशी की अचल स्थिति का झण्डा लहराना। गवर्मेन्ट हलचल में हो और गुप्त प्रभु रत्न सदा सम्पन्न सदा अचल का विशेष झण्डा लहरायें। गवर्मेन्ट का भी अटेन्शन हो जाए कि यह इस देश में गुप्त वेषधारी कौन-सी विचित्र आत्मायें हैं जो सारे देश में न्यारी और प्यारी हैं। जो अपने को धन से कमज़ोर समझते हैं उन्हों को अविनाशी धन से सम्पन्न कर, हम सबसे भरपूर हैं, हम सदा पद्मापद्मपति हैं, यह अनुभव कराओ। धन की गरीबी का दु:ख उन्हों को भूल जाए। ऐसी लहर फैलाओ। जो भी आवे वह समझे कि अखुट खज़ानों से भरपूर हो गये, और भी कोई धन होता है, वह अनुभव करें। और इसी धन द्वारा यह स्थूल धन भी स्वत: ही समीप आता है। दु:ख नहीं देगा। अच्छाõ तो विदेश में नये वर्ष की नवीनता क्या करेंगे? सेन्टर्स तो खुलते जा रहे हैं और खुलते रहेंगे। अभी इस वर्ष विदेश में भी विशेष क्वालिटी की सर्विस, विशेष रूप से होनी चाहिए। आप सबकी विशेष क्वालिटी तो रही लेकिन आप सभी क्वालिटी वाले और भी विशेष क्वालिटी वाली आत्मायें जो स्थापना के कार्य में सहयोगी बन जाएँ, ऐसा विदेश में चारों ओर से एक गु्रप तैयार करो जो गु्रप मिलकर भारतवासियों की सेवा के अर्थ विशेष निमित्त बने। नामीग्रामी आवाज़ फैलाने वाले अलग ग्रुप हैं लेकिन यह है सम्बन्ध वाले, वह हैं सम्पर्क वाले। और यह ग्रुप चाहिए क्वालिटी वाला जो समीप सम्बन्ध में हो। विशेष जीवन के परिवर्तन के अनुभवी हों। जिसके अनुभवों द्वारा और भी विशेष क्वालिटी वाली आत्मायें, वारिस क्वालिटी निकलती रहे। वह है सेवा के निमित्त ग्रुप और यह है वारिस क्वालिटी सेवाधारी ग्रुप। नागीग्रामी भी हो और वारिस भी हो। ऐसा ग्रुप विदेश में तैयार होने से, देश में सेवा का चक्कर लगायें। राज नेता, धर्म नेता, सर्व प्रकार की आत्माओं को अपने अनुभव की शक्ति द्वारा अनुभव करने की इच्छा उत्पन्न करा सकें। तो ऐसा चक्कर लगाने वाले वारिस सेवाधारी क्वालिटी का ग्रुप तैयार करो। समझा!

विदेश में चारों ओर आवाज़ फैलाने के साधन सहज हैं इसलिए विदेश में आवाज़ फैल भी रहा है और फैलता भी रहेगा। लेकिन भारत में आवाज़ फैलाने के साधन इतने सहज नहीं। भारतवासियों को जगाने के लिए पर्सनल सेवा चाहिए। और वह भी बहुत सिम्पल अनुभव के आवाज़ की सेवा हो। भारतवासी विशेष परिवर्तन के अनुभव से परिवर्तन होंगे। ऐसे विशेष अनुभवी, जिन्हों के अनुभव में ऐसी शक्तिशाली परिवर्तन की बातें हो - ऐसी कहानियाँ सुन करके भारतवासी ज्यादा आकर्षित होंगे। भारत में कथा कहानियाँ सुनने का रिवाज है। समझा

विदेशियों को क्या करना है। इतनी सब टीचर्स आई हैं तो ऐसा ग्रुप तैयार करके लाना। अच्छा-

नये वर्ष की विशेष सौगात

बापदादा वरदान मालादे रहे हैं। सेरीमनी बनाते हैं तो वरमाला डालते हैं। बापदादा सभी आशिकों को वरदान माला की सौगात दे रहे हैं। सदा सन्तुष्टता से सन्तुष्ट रहो और सन्तुष्ट करो। हर संकल्प में विशेषता हो, हर बोल और कर्म में विशेषता हो। ऐसे विशेषता सम्पन्न सदा रहो। सदा सरल स्वभाव, सरल बोल, सरलता सम्पन्न कर्म हों। ऐसे सरल स्वरूप रहे। सदा एक की मत पर, एक से सर्व सम्बन्ध, एक से सर्व प्राप्ति ऐसे एक द्वारा सदा एक रस रहने के सहज अभ्यासी रहो। सदा खुश रहो, खुशी का खज़ाना बाँटो। खुशी की लहर सर्व में फैलाओ। ऐस सदा खुशी की मुस्कराहट चेहरे पर चमकती रहे। ऐसे हर्षित मुख रहो। सदा याद में रहो। वृद्धि को पाओ। ऐसे वरदान माला सदा साथ रहे। समझा। यह है नये वर्ष की सौगात!

अच्छा

ऐसे सदा के वरदानी, सदा हाथ और साथ के अमर श्रेष्ठ आत्मायें, हर संकल्प में नवीनता की विशेषता को जीवन में लाने वाले, ऐसी विशेष आत्माओं को, नव युग के, नये वर्ष की अमर याद-प्यार। उड़ती कला का याद-प्यार और नमस्ते।’’

रात्रि 12 बजे के बाद सभी बच्चों को बधाई

चारों ओर के स्नेही सिकीलधे, सदा सेवाधारी बच्चों को सदा नये उमंग, नये उत्साह भरे जीवन की, नये वर्ष की बधाई हो। संगमयुग नवयुग, जिसमें हर घड़ी नई हो, हर संकल्प नये ते नया उमंग उत्साह दिलाता है। ऐसे युग में नये वर्ष की मुबारक तो सदा बापदादा देते ही हैं फिर भी विशेष दिन पर विशेष याद दे रहे हैं कि सदैव स्वयं भी नये ते नये सेवा में स्वयं के प्रति प्लैन बनाते हुए प्रैक्टिकल में लाते रहो और दूसरों को भी अपने नवीन जीवन से प्रेरणा देते रहो। लण्डन निवासी वा जो भी विदेश में हैं, सभी के याद प्यार और हैपी न्यू ईयर के कार्ड भी पाये, बहुत-बहुत पत्र भी पाये, छोटी बड़ी सौगातें भी पाईं। बापदादा ऐसे नये युग में श्रेष्ठ कर्म करने वाले और नया युग रचने वाले बच्चों को विशेष वरदानों सहित नये वर्ष की बधाई दे रहे हैं। सभी बहुत अच्छे मुहब्बत और मेहनत से सेवा कर रहे हैं और सदा ही सेवा में बिजी रह औरों को भी सेवा द्वारा बाप के वर्से के अधिकारी बनाते है। अच्छा - देश-विदेश के सभी बच्चों को फिर भी बार-बार शुभ बधाईयों से याद-प्यार। अच्छा –

पार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

(1) सदा अपने को पुण्य आत्मा समझते हो? सबसे बड़े ते बड़ा पुण्य है - बाप का सन्देश दे बाप का बनाना। ऐसा श्रेष्ठ कर्म करने वाली पुण्य आत्मा हो क्योंकि अब की पुण्य आत्मा सदाकाल के लिए पूज्य बन जाती है। पुण्य आत्मा ही पूज्य आत्मा बनती है। अल्पकाल का पुण्य भी फल की प्राप्ति कराता है लेकिन वह है अल्पकाल का, यह है अविनाशी पुण्य। क्योंकि अविनाशी बाप का बनाते हो। इसका फल भी अविनाशी मिलता है। जन्म-जन्म के लिए पूज्य आत्मा बन जायेंगे। तो सदा पुण्य आत्मा समझते हुए हर कर्म पुण्य का करते रहो। पाप का खाता खत्म। पिछला पाप का खाता भी खत्म। क्योंकि पुण्य करतेकरते पुण्य का तरफ ऊँचा हो जायेंगा तो पाप नीचे दब जायेगा। पुण्य करते रहो तो पुण्य का बैलेन्स बढ़ जायेगा और पाप नीचे हो जायेगा अर्थात् खत्म हो जायेगा। सिर्फ चेक करो - हर संकल्प पुण्य का संकल्प हुआ, हर बोल पुण्य के बोल हुए? व्यर्थ बोल भी नहीं। व्यर्थ से पाप नहीं कटेगा। और पुण्य का फल भी नहीं मिलेगा इसलिए हर कर्म, हर बोल, हर संकल्प पुण्य का हो। ऐसे सदा श्रेष्ठ पुण्य का कर्म करने वाली पुण्य आत्मा हैं, यही सदा याद रखो। संगमयुगी ब्राह्मणों का काम ही क्या है? पुण्य करना। और जितना पुण्य का काम करते हो उतना खुशी भी होती है। चलते-फिरते किसको सन्देश देते हो तो उसकी खुशी कितना समय रहती है! तो पुण्य कर्म सदा खुशी का खज़ाना बढ़ाता है। और पाप कर्म खुशी गँवाता है। अगर कभी खुशी गुम होती है तो समझो कोई न कोई बड़ा पाप नहीं तो छोटा अंश मात्र भी जरूर किया होगा। देह-अभिमान में आना यह भी पाप है ना क्योंकि बाप याद नहीं रहा तो पाप ही होगा ना। इसलिए सदा पुण्य आत्मा भव

(2) सदा अपने को निश्चय बुद्धि विजयी रत्न समझते हो? सदा के निश्चय बुद्धि अर्थात् सदा के विजयी। जहाँ निश्चय है वहाँ विजय स्वत: है। अगर विजय नहीं तो निश्चय में कहाँ न कहाँ कमी है। चाहे स्वयं के निश्चय में, चाहे बाप के निश्चय में, चाहे नॉलेज के निश्चय में, किसी भी निश्चय में कमी माना विजय नहीं। निश्चय की निशानी है - ‘‘विजय’’। अनुभवी हो ना। निश्चय बुद्धि को माया कभी भी हिला नहीं सकती। वह माया को हिलाने वाले होंगे, स्वयं हिलने वाले नहीं। निश्चय का फाउण्डेशन अचल है तो स्वयं भी अचल होंगे। जैसा फाउण्डेशन वैसी मजबूत बिल्डिंग बनती है। निश्चय का फाउण्डेशन अचल है तो कर्म रूपी बिल्डिंग भी अचल होगी। माया को अच्छी तरह से जान गये हो ना। माया क्यों और कब आती है, यह ज्ञान है ना। जिसको पता है कि इस रीति से माया आती है। तो वह सदा सेफ रहेंगे ना। अगर मालूम है कि यहाँ से इस रीति से दुश्मन आयेगा तो सेफ्टी करेंगे ना। आप भी समझदार हो तो माया वार क्यों करे। माया की हार होनी चाहिए। सदा विजयी रत्न हैं, कल्प-कल्प के विजयी हैं, इस स्मृति से समर्थ बन आगे बढ़ते चलो। कच्चे पत्तों को चिड़ियायें खा जाती है इसलिए पक्के बनो। पक्के बन जायेंगे तो माया रूपी चिड़िया खायेगी नहीं। सेफ रहेंगे। अच्छा –

(3) सदा शान्ति के सागर की सन्तान शान्त स्वरूप आत्मा बन गये? हम विश्व में शान्ति स्थापन करने वाली आत्मा हैं, यह नशा रहता है? स्व धर्म भी शान्त और कर्त्तव्य भी विश्व शान्ति स्थापन करने का। जो स्वयं शान्त स्वरूप हैं वही विश्व में शान्ति स्थापन कर सकते हैं। शान्ति के सागर बाप की विशेष सहयोगी आत्मायें हैं। बाप का भी यही काम है तो बच्चों का भी यही काम है। तो स्वयं सदा शान्त स्वरूप, अशान्ति का नाम-निशान भी न हो। अशान्ति की दुनिया छूट गई। अभी शान्ति की देवी, शान्ति के देव बन गये। शान्ति देवाकहते हैं ना। शान्ति देने वाले शान्ति देवा और शान्ति देवी बन गये। इसी कार्य में सदा बिजी रहने से मायाजीत स्वत: हो जायेंगे। जहाँ शान्ति है वहाँ माया कैसे आयेगी? शान्ति अर्थात् रोशनी के आगे अंधकार ठहर नहीं सकता। अशान्ति भाग गई, आधा कल्प के लिए विदाई दे दी। ऐसे विदाई देने वाले हो ना!

(4) सदा अपने को बाप के साथ रहने वाले सदा के सहयोग लेने वाली आत्मायें समझते हो? सदा साथ का अनुभव करते हो? जहाँ सदा बाप का साथ है वहाँ सहज सर्व प्राप्ति हैं। अगर बाप का साथ नहीं तो सर्व प्राप्ति भी नहीं क्योंकि बाप है सर्व प्राप्तियों का दाता। जहाँ दाता साथ है वहाँ प्राप्तियाँ भी साथ होंगी। सदा बाप का साथ अर्थात् सर्व प्राप्तियों के अधिकारी। सर्व प्राप्ति स्वरूप आत्मायें अर्थात् भरपूर आत्मायें सदा अचल रहेंगी। भरपूर नहीं तो हिलते रहेंगे। सम्पन्न अर्थात् अचल। जब बाप साथ दे रहा है तो लेने वालों को लेना चाहिए ना। दाता दे रहा है तो पूरा लेना चाहिए, थोड़ा नहीं। भक्त थोड़ा लेकर खुश हो जाते लेकिन ज्ञानी अर्थात् पूरा लेने वाले।

जर्मन ग्रुप से

सदा अपने को बाप के समीप रत्न समझते हो? जितना दूर रहते, देश से दूर भले हो लेकिन दिल से नज़दीक हो। ऐसे अनुभव होता है ना। जो सदा याद में रहते हैं, याद समीप अनुभव कराती है। सहज योगी हो ना। जब बाबा कहा तो बाबाशब्द ही सहज योगी बना देता है । बाबाशब्द जादू का शब्द है। जादू की चीज़ बिना मेहनत के प्राप्ति कराती है। आप सभी को जो भी चाहिए - सुख चाहिए, शान्ति चाहिए, शक्ति चाहिए जो भी चाहिए बाबाशब्द कहेंगे तो सब मिल जायेगा। ऐसा अनुभव है! बापदादा भी, बिछुड़े हुए बच्चे जो फिर से आकर मिले हैं, ऐसे बच्चों को देख खुश होते हैं। ज्यादा खुशी किसको? आपको है या बाप को? बापदादा सदा हर बच्चे की विशेषता सिमरण करते हैं। कितने लकी हो। अनुभव करते हो कि बाप हमको याद करते हैं? सभी अपनी-अपनी विशेषता में विशेष आत्मा हो। यह विशेषता तो सभी की है - जो दूर देश में होते, दूसरे धर्म में जाकर फिर भी बाप को पहचान लिया। तो इस विशेष संस्कार से विशेष आत्मा हो गये।

अच्छा - ओम शान्ति।