18-02-84 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
ब्राह्मण जीवन - अमूल्य जीवन
अपने संगे के रंग में रंगाने वाले सर्वश्रेष्ठ बापदादा अपने सिकीलधे बच्चों प्रति बोले:-
आज सदा स्नेह में समाये हुए स्नेही बच्चों से स्नेह के सागर मिलन मनाने आये हैं। जैसे बच्चे स्नेह से बाप को याद करते हैं वैसे बाप भी स्नेही बच्चों को पद्मगुणा रिटर्न देने के लिए, साकारी सृष्टि में मिलने के लिए आते हैं। बाप बच्चों को आपसमान अशरीरी निराकार बनाते और बच्चों स्नेह से निराकारी और आकारी बाप को आप समान साकारी बना देते हैं। यह बच्चों के स्नेह की कमाल! बच्चों के ऐसे स्नेह की कमाल देख बापदादा हर्षित होते हैं। बच्चों के गुणों के गीत गाते हैं कि कैसे सदा बाप के संग के रंग में बाप समान बनते जा रहे हैं। बापदादा ऐसे फॉलो फादर करने वाले बच्चों को आज्ञाकारी, वफादार, फरमानवरदार सच्चे-सच्चे अमूल्य रत्न कहते हैं। आप बच्चों के आगे यह स्थूल हीरे जवाहरात भी मिट्टी के समान हैं। इतने अमूल्य हो। ऐसे अपने को अनुभव करते हो कि मैं बापदादा के गले की माला के विजयी अमूल्य रत्न हूँ। ऐसा स्वमान रहता है?
डबल विदेशी बच्चों को नशा और खुशी रहती है कि हमें बापदादा ने इतना दूर होते हुए भी दूरदेश से चुनकर अपना बना लिया है। दुनिया बाप को ढूँढती और बाप ने हमें ढूँढा। ऐसे अपने को समझते हो? दुनिया पुकार रही है कि आ जाओ और आप सभी नम्बरवार क्या गीत गाते हो? तुम्हीं से बैठूँ, तुम्ही से खाऊँ, तुम्हीं से सदा साथ रहूँ। कहाँ पुकार और कहाँ सदा साथ! रात दिन का अन्तर हो गया ना! कहाँ एक सेकण्ड की सच्ची अविनाशी प्राप्ति के प्यासी आत्मायें और कहां आप सभी प्राप्ति स्वरूप आत्मायें! वह गायन करने वाली और आप सभी बाप की गोदी में बैठने वाले। वह चिल्लाने वाली और आप हर कदम उनकी मत पर चलने वाले। वह दर्शन की प्यासी और आप बाप द्वारा स्वयं दर्शनीयमूर्त्त बन गये। थोड़ा सा दु:ख दर्द का अनुभव और बढ़ने दो फिर देखना आपके सेकण्ड के दर्शन, सेकण्ड की दृष्टि के लिए कितना प्यासे बन आपके सामने आते हैं।
अभी आप निमन्त्रण देते हो, बुलाते हो। फिर आपसे सेकण्ड के मिलने के लिए बहुत मेहनत करेंगे कि हमें मिलने दो। ऐसा साक्षात साक्षात्कार स्वरूप आप सभी का होगा। ऐसे समय पर अपनी श्रेष्ठ जीवन और श्रेष्ठ प्राप्ति का महत्त्व आप बच्चों में से भी उस समय ज्यादा पहचानेंगे। अभी अलबेलपन और साधारणतापन के कारण अपनी श्रेष्ठता और विशेषता को भूल भी जाते हो। लेकिन जब अप्राप्ति वाली आत्मायें प्राप्ति के प्यास से आपके सामने आयेंगे तब ज्यादा अनुभव करेंगे कि हम कौन और यह कौन! अभी बापदादा द्वारा सहज और बहुत खज़ाना मिलने के कारण कभी-कभी स्वयं की और खज़ाने की वैल्यू को साधारण समझ लेते हो - लेकिन एक-एक महावाक्य, एक-एक सेकण्ड, एक-एक ब्राह्मण जीवन का श्वास कितना श्रेष्ठ है! वह आगे चल ज्यादा अनुभव करेंगे। ब्राह्मण जीवन का हर सेकण्ड एक जन्म नहीं लेकिन जन्म-जन्म की प्रालब्ध बनाने वाला है। सेकण्ड गया अर्थात् अनेक जन्मों की प्रालब्ध गई। ऐसी अमूल्य जीवन वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो। ऐसी श्रेष्ठ तकदीरवान विशेष आत्मायें हो। समझा कौन हो? ऐसे श्रेष्ठ बच्चों से बाप मिलने आये हैं। डबल विदेशी बच्चों को यह सदा याद रहता है ना! वा कभी भूलता कभी याद रहता है? याद स्वरूप बने हो ना! जो स्वरूप बन जाते वह कभी भूल नहीं सकते। याद करने वाले नहीं लेकिन याद स्वरूप बनना है। अच्छा-
ऐसे सदा मिलन मनाने वाले, सदा बाप के संग के रंग में रहने वाले, सदा स्वयं के समय के सर्व प्राप्ति के महत्व को जानने वाले, सदा हर कदम में फॉलो फादर करने वाले, ऐसे सिकीलधे सपूत बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’
पोलैण्ड तथा अन्य देशों से आये हुए नये-नये बच्चों से
सभी अपने को भाग्यवान समझते हो, कौन सा भाग्य है? इस श्रेष्ठ भूमि पर आना यही सबसे बड़ा भाग्य है। यह भूमि महान तीर्थ की भूमि है। तो यहाँ पहुँचे यह तो भाग्य है ही। लेकिन अभी आगे क्या करेंगे? याद में रहना, याद के अभ्यास को सदा आगे बढ़ाते रहना। जो जितना भी सीखे उसको आगे बढ़ाते रहना। अगर सदा सम्बन्ध में रहते रहेंगे तो सम्बन्ध द्वारा बहुत प्राप्ति करते रहेंगे। क्यों? आज के विश्व में सभी को खुशी और शान्ति दोनों चाहिए। तो यह दोनों ही इस राजयोग के अभ्यास द्वारा सदा के लिए प्राप्त हो जायेंगी। यह प्राप्ति चाहते हो तो सहज साधन यह है। इसको छोड़ना नहीं। साथ रखना। बहुत खुशी मिलेगी। जैसे खुशी की खान मिल जायेगी। जिससे औरों को भी सच्ची खुशी बाँट सकेंगे। औरों को भी सुनाना, औरों को भी यह रास्ता बताना। विश्व में इतनी आत्मायें हैं लेकिन उन आत्माओं में ऐसे आप थोड़ी आत्मायें यहाँ पहुँची हो। यह भी बहुत तकदीर की निशानी है। शान्तिकुण्ड में पहुँच गये। शान्ति तो सभी को आवश्यक है ना। स्वयं भी शान्त और सर्व को भी शान्ति देते रहें यही मानव की विशेषता है। अगर शान्ति नहीं तो मानव जीवन ही क्या है। आत्मिक अविनाशी शान्ति। स्वयं को और अनेकों को भी सच्ची शान्ति प्राप्त करने का रास्ता बता सकते हो। पुण्य आत्मा बन जायेंगे। किसी अशान्त आत्मा को शान्ति दे दो तो कितना बड़ा पुण्य है। स्वयं पहले भरपूर बनो फिर औरों के प्रति भी पुण्यात्मा बन सकते हो। इस जैसा पुण्य और कोई नहीं। दु:खी आत्माओं को सुख शान्ति की झलक दिखा सकते हो। जहां लगन है वहां दिल का संकल्प पूरा हो जाता है। अभी बाप द्वारा जो सन्देश मिला है वह सन्देश सुनाने वाले सन्देशी बनकर चलते रहो।
सेवाधारियों से:- सेवा की लाटरी भी सदाकाल के लिए सम्पन्न बना देती है। सेवा से सदाकाल के लिए खज़ाने से भरपूर हो जाते हैं। सभी ने नम्बरवन सेवा की। सब फर्स्ट प्राइज लेने वाले हो ना! फर्स्ट प्राइज है - सन्तुष्ट रहना और सर्व को सन्तुष्ट करना। तो क्या समझते हो, जितने दिन सेवा की उतने दिन स्वयं भी सन्तुष्ट रहे और दूसरों को भी किया या कोई नाराज़ हुआ? सन्तुष्ट रहे और सन्तुष्ट किया तो नम्बरवन हो गये। हर कार्य में विजयी बनना अर्थात् नम्बरवन होना। यही सफलता है। न स्वयं डिस्टर्ब हो और न दूसरों को करो यही विजय है। तो ऐसे सदा के विजयी रत्न। विजय संगमयुग का अधिकार है। क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिवान हो ना।
सच्चे सेवाधारी वह जो सदा रूहानी दृष्टि से, रूहानी वृत्ति से रूहे गुलाब बन रूहों को खुश करने वाले हों। तो जितना समय भी सेवा की उतना समय रूहानी गुलाब बन सेवा की? कोई बीच में काँटा तो नहीं आया। सदा ही रूहानी स्मृति में रहे अर्थात् रूहानी गुलाब स्थिति में रहे। जैसे यहाँ यह अभ्यास किया वैसे अपने-अपने स्थानों पर भी ऐसे ही श्रेष्ठ स्थिति में रहना। नीचे नहीं आना। कुछ भी हो, कैसा भी वायुमण्डल हो लेकिन जैसे गुलाब का पुष्प काँटों में रहते भी स्वयं सदा खुशबू देता, काँटों के साथ स्वयं काँटा नहीं बनता। ऐसे रूहानी गुलाब सदा वातावरण के प्रभाव से न्यारे और प्यारे। वहाँ जाकर यह नहीं लिखना कि क्या करें माया आ गई। सदा मायाजीत बनकर जा रहे हो ना। माया को आने की छुट्टी नहीं देना। दरवाजा सदा बन्द कर देना। डबल लाक है - याद और सेवा, जहाँ डबल लाक है वहाँ माया आ नहीं सकती है।
दादी जी तथा अन्य बड़ी बहनों से:- जैसे बाप सदा बच्चों का उमंग उत्साह बढ़ाते रहते वैसे फॉलो फादर करने वाले बच्चे हैं। विशेष सभी टीचर्स को देशविदेश से जो भी आईं, सबको बापदादा सेवा की मुबारक देते हैं। हरेक अपने को नाम सहित बाप के याद और प्यार के अधिकारी समझकर अपने आपको ही प्यार कर लेना। एक-एक के गुण गायें तो कितने के गुण गायें। सभी ने बहुत मेहनत की है। अगले वर्ष से अभी उन्नति को प्राप्त किया है और आगे भी इससे ज्यादा से ज्यादा स्वयं और सेवा से उन्नति को पाते रहेंगे। समझा - ऐसे नहीं समझना हमको बापदादा ने नहीं कहा, सभी को कह रहे हैं। भक्त बाप का नाम लेने के लिए प्रयत्न करते रहते हैं, सोचते हैं बाप का नाम मुख पर रहे लेकिन बाप के मुख पर किसका नाम रहता? आप बच्चों का नाम बाप के मुख पर है समझा। अच्छा!